वजन कम होने से पीरियड्स बंद हो गए हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 19 साल की हूं और कालेज में पढ़ती हूं. मैं अपने बढ़े वजन को कम करने के लिए दिन में कम से कम 2 घंटे व्यायाम करती हूं. मैं ने इस दौरान 12-13 किलोग्राम वजन कम भी कर लिया है. मगर अब मेरे पीरियड्स बिलकुल बंद हो गए हैं. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

कई चीजें मासिकधर्म को रोक सकती हैं, जिन में बहुत ज्यादा व्यायाम कर जल्दी वजन कम करना भी शामिल है. खासकर तब जब आप पर्याप्त कैलोरी और पौष्टिक खाद्यपदार्थों का सेवन नहीं कर रही हों. दिन में 2 घंटे व्यायाम करने से बहुत सारी कैलोरी बर्न हो जाती है, इसलिए अब आप को अपने खाने में अधिक कैलोरी लेनी चाहिए और डाक्टर से जल्दी मिलना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आप के पीरियड्स रोकने के लिए और कोई समस्या जिम्मेदार तो नहीं. आप स्वस्थ भोजन और व्यायाम की योजना पर काम करें, जिस से आप की पीरियड्स की साइकिल दोबारा ठीक हो सके.

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औरतों को हर माह पीरियड से दोचार होना पड़ता है, इस दौरान कुछ परेशानियां भी आती हैं. मसलन, फ्लो इतना ज्यादा क्यों है? महीने में 2 बार पीरियड क्यों हो रहे हैं? हालांकि अनियमित पीरियड कोई असामान्य घटना नहीं है, किंतु यह समझना आवश्यक है कि ऐसा क्यों होता है.

हर स्त्री की मासिकधर्म की अवधि और रक्तस्राव का स्तर अलगअलग है. किंतु ज्यादातर महिलाओं का मैंस्ट्रुअल साइकिल 24 से 34 दिनों का होता है. रक्तस्राव औसतन 4-5 दिनों तक होता है, जिस में 40 सीसी (3 चम्मच) रक्त की हानि होती है.

कुछ महिलाओं को भारी रक्तस्राव होता है (हर महीने 12 चम्मच तक खून बह सकता है) तो कुछ को न के बराबर रक्तस्राव होता है.

अनियमित पीरियड वह माना जाता है जिस में किसी को पिछले कुछ मासिक चक्रों की तुलना में रक्तस्राव असामान्य हो. इस में कुछ भी शामिल हो सकता है जैसे पीरियड देर से होना, समय से पहले रक्तस्राव होना, कम से कम रक्तस्राव से ले कर भारी मात्रा में खून बहने तक. यदि आप को प्रीमैंस्ट्रुल सिंड्रोम की समस्या नहीं है तो आप उस पीरियड को अनियमित मान सकती हैं, जिस में अचानक मरोड़ उठने लगे या फिर सिरदर्द होने लगे.

असामान्य पीरियड के कई कारण होते हैं जैसे तनाव, चिकित्सीय स्थिति, अतीत में सेहत का खराब रहना आदि. इन के अलावा आप की जीवनशैली भी मासिकधर्म पर खासा असर कर सकती है.

कई मामलों में अनियमित पीरियड ऐसी स्थिति से जुड़े होते हैं जिसे ऐनोवुलेशन कहते हैं. इस का मतलब यह है कि माहवारी के दौरान डिंबोत्सर्ग नहीं हुआ है. ऐसा आमतौर पर हारमोन के असंतुलन की वजह से होता है. यदि ऐनोवुलेशन का कारण पता चल जाए, तो ज्यादातर मामलों में दवा के जरीए इस का इलाज किया जा सकता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए-जानें अनियमित पीरियड्स से जुड़ी जरुरी बातें

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अर्ली मेनोपॉज़ का होना बन सकता है कोरोनरी हार्ट रोगों का कारण

मासिक धर्म और उससे जुड़े हार्मोनल बदलाव किसी भी महिला के जीवन में प्रजनन काल के महत्‍वपूर्ण चरण माने जाते हैं, लेकिन समय से पहले यानि अर्ली मेनोपॉज़, अर्थात 40 वर्ष से पूर्व मेनोपॉज़ के कारण महिलाओं में कोरोनरी हार्ट रोगों की आशंका बढ़ जाती है.पिछले दोदशकों में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं, जब किशोरियों में अर्ली प्‍यूबर्टी हो रही है और महिलाओं में अर्ली मेनोपॉज, इसकी वजह खराब डाइट, खराब जीवनशैली और तनाव को बताया जा रहा है. वहीं महिलाओं में बढ़ती स्‍मोकिंग और एल्‍कोहल की लत भी उनके स्‍वास्‍थ्‍य पर नकारात्‍मक असर डाल रही है. खासतौर से तनाव के कारण महिलाओं का स्‍वास्‍थ्‍य बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

पहचाने लक्षण

इस बारें में दिल्ली के फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स हार्ट इंस्‍टीट्यूट की डायरेक्‍टर, इलैक्‍ट्रोफिजियोलॉजी एंड कार्डियाक पेसिंग की डॉ अपर्णा जसवाल कहती है कि कोरोनरी हार्ट रोग आजकल काफी होने लगा है. इसे साधारण किस्‍म के हृदय रोगों में शामिल किया जाता हैं, जिनमें हृदय के आसपास मौजूद धमनियों में प्‍लाक जमा होने की वजह से रुकावट पैदा हो जाती है और धीरे-धीरे यह समस्‍या गंभीर हो जाती है. यदि इसका समय रहते इलाज न कराया जाए, तो महिलाओं को सीने में दर्द, हार्ट अटैक या कई बार अचानक कार्डियाक अरेस्‍ट की शिकायत भी हो सकती है, जिन महिलाओं को अर्ली मेनोपॉज़ हुआ है उनमें कम समय में हृदय रोग होने की आशंका बढ़ जाती है. महिलाओं के मामले में हृदय रोगों की वजह से जोखिम बढ़ाने वाले कारक कौन से हो सकते हैं, जिसकी जोखिम मेनोपॉज़ सेजुड़ा हो सकता है, आइये जाने मुख्य लक्षण क्या है?

  • थकान
  • भोजन के बाद असहज होने का अहसास
  • जबड़े में और पीठ में भी अजीबोगरीब दर्द
  • बाएं और दाएं हाथ में दर्द
  • सीढ़ियां चढ़ते समय सांस ज्यादा फूलना, खासकर भोजन के बाद
  • खाने के बाद पेट में दर्द या पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द हृदय संबंधी समस्या के कारण हो सकता है
  • बिना किसी कारण काफी ज्यादा पसीना आना आदि है.

डॉ. कौल ने बताया कि ये सभी दिक्कतें महिलाओं में दिल की समस्याओं के संकेत हैं. हालांकि, हृदय रोगों की जांच और इलाज पुरुषों व महिलाओं के लिए एक जैसा होता है.

सावधानी की जरुरत

डॉ. अपर्णा कहती है कि तीन में से एक से अधिक महिला को किसी न किसी तरह का कार्डियोवास्क्‍युलर रोग होता है. सच तो यह है कि हृदय रोग महिलाओं में मृत्‍यु का सबसे प्रमुख कारण बन चुका हैं. इसलिए हृदय रोगों से बचाव के लिहाज़ से महिलाओं को काफी सावधान रहने की जरूरत है. युवावस्‍था में महिलाओं का बचाव इस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍ट्रोन हार्मोनों से होता है, लेकिन यह सुरक्षा कवच मनोपॉज़ के साथ खत्‍म हो जाता है. जैसे-जैसे महिलाएं रजोनिवृत्ति की ओर बढ़ती हैं, उन्‍हें कई कष्‍टकारी लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें हॉट फ्लश, सोते समय पसीने छूटना, मूड में उतार-चढ़ाव, अवसाद, चिंता, और साथ ही, जेनाइटोयूरिनरी और यौन क्रियाओं में बदलाव आदि हो सकता है.

जोखिम कोरोनरी हार्ट डिसीज का

डॉ. अपर्णा आगे कहती है कि मेनोपॉज़ होने के बाद महिलाओं के शरीर में इस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍ट्रोन हार्मोनों का बनना रुक जाता है, जिसके चलते उन्‍हें भी पुरुषों के समान जोखिमों का सामना करना पड़ता है. ये हार्मोन न सिर्फ प्रजनन से जुड़े हैं, बल्कि महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य में भी इनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है और उनकी धमनियों में प्‍लाक जमने, हृदय धमनी के रोगों, उच्‍च रक्‍तचाप, नुकसानदायक कलेस्‍ट्रोल के अधिक स्‍तर, उपयोगी कलेस्‍ट्रोल के कम स्‍तर जैसी परेशानियों से भी बचाते हैं. इस्‍ट्रोजेन के बारे में माना जाता है कि यह आर्टरी की अंदरूनी दीवार को सुरक्षित रखता है, रक्‍त वाहिकाओं को लचीला बनाता है और उन्‍हें सूजन, अन्‍य नुकसान से भी बचाता है, लेकिन जिन महिलाओं में रजोनिवृत्ति हो चुकी होती है, उनके शरीर में इस प्रकार के हार्मोन न रहने पर महिलाओं में उच्‍च रक्‍तचाप, कोरोनरी प्‍लाक और एंडोथीलियल की समस्‍या बढ़ जाती है. एंडोथीलियल को नुकसान पहुंचने के बाद, कोरोनरी आर्टरी रोग का जोखिम बढ़ जाता है और यहां तक कि हार्ट अटैक का भी जोखिम बढ़ जाता है.

असल में मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं को समान उम्र के पुरुषों की तुलना में हृदय रोग का जोखिम अधिक होता है. इसलिए हमेशा याद रखना चाहिए कि मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं में जोखिम बढ़ने की वजह से उन्‍हें खुद को हृदय रोगों से बचाने वाले जोखिमों से बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए. महिलाओं को अपनी कार्डियोवास्‍क्‍युलर सेहत को लेकर काफी सक्रिय होना चाहिए और अपने उच्‍च रक्‍तचाप तथा मधुमेह को नियंत्रित रखना चाहिए.साथ ही इस ओर काफी ध्‍यान देने की जरूरत है.इसके अलावा महिलाओं के कार्डियोवास्‍क्‍युलर जोखिम को कम करने के लिए पर्सनलाइज्‍़ड, प्रीवेंटिव कार्डियोलॉजी केयर काफी महत्‍वपूर्ण होता है.

रिस्क फैक्टर्स

कुछ रिस्क फैक्टर्स निम्न है,

  • परिवार में हृदय रोगों का इतिहास रहा हो, या मधुमेह, उच्‍च रक्‍तचाप, मोटापा, धूम्रपान और व्‍यायाम रहित जीवनशैली होने वालों में अर्ली मेनोपॉज़ के बाद कार्डियोवास्‍क्‍युलर समस्‍याएं बढ़ सकती है.
  • अर्ली मेनोपॉज़ होने पर अपने हृदय के स्‍वास्‍थ्‍य की ओर अच्‍छी तरह से ध्‍यान देना जरुरी है, जिसमे जीवनशैली में बदलाव, नियमित व्‍यायाम, स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक भोजन, निरंतर ब्‍लड प्रेशर औरकोलेस्‍ट्रॉल स्‍तर की जांचकरना जरुरी है.
  • इसके अलावा मधुमेह रोगियों के ब्‍लड शुगर को नियंत्रित रखने, धूम्रपान न करने जैसे उपाय हृदय रोगों से बचाव में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

अर्ली मेंनोपॉज के बाद शरीर को स्‍वस्‍थ रखने के लिए आवश्‍यक पोषक तत्‍वों की आवश्यकता भोजन में होती है, जो निम्न है,

फल एवं सब्जियां

साबुत अनाज

कम वसायुक्‍त डेयरी उत्‍पाद

पोल्‍ट्री, मछली और मेवे

रैड मीट, शूगर युक्‍त फूड एवं बेवरेज़ेस का सीमित सेवन आदि

डॉ. मानती है कि महिलाओं को हृदय रोगों को खुद से दूर रखने के लिए हर हफ्ते शारीरिक व्‍यायाम को अपनी जीवनशैली में शामिल कर लें, ये भी व्‍यक्तिगत आवश्‍यकतानुसार वेट लॉस प्रोग्राम को ही अपनाएं.इसके अलावा, सैर, साइकिल चलाना, नृत्‍य करना और तैराकी जैसी गतिविधियां भी, जो कि मांसपेशियों का बड़े पैमाने पर इस्‍तेमाल करती हैं, अच्‍छे ऐरोबिक व्‍यायाम माने जाते हैं.महिलाओं के प्री-मेनोपॉज़ल और रिप्रोडक्टिव वर्षों में, मासिक धर्म के दौरान शरीर की एंडोमीट्रियल कोशिकाएं नष्‍ट होती रहती हैं.इसके अलावा मेनोपॉज़ के बाद हृदय रोगों से सुरक्षा के लिए हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी की सलाह नहीं दी जाती.

हर साल करवाएं जांच

इस प्रकार यह कहना सही होगा कि अर्ली मेनोपॉज़ होने पर महिलाओं को हर साल अपनी नियमित रूप से जांच करवानी चाहिए ताकि हृदय रोगों के जोखिम से बचा जा सके, साथ ही, जीवनशैली में भी बदलाव करें तथा गाइनीकोलॉजिस्‍ट से नियमित रूप से मिलें.

आहार से जुड़ी गलत आदतें

मई, 2022 के अंतिम सप्ताह में पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी अपने कार्यकर्ताओं के साथ बात कर रही थीं. उस में एक कार्यकर्ता कहने के लिए खड़ा हुआ था तो ममता से रहा नहीं गया. उन्होंने पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा मध्य प्रदेश इतना बढ़ा हुआ है. क्या बीमार हो?’’

कार्यकर्ता बेचारा सफाई देता रहा पर ममता ने उस का पीछा नहीं छोड़ा. असल में मटके की तरह निकला पेट बहुतों की पर्सनैलिटी को चकनाचूर कर देता है.

ज्यादा खाना, पेट बढ़ना कई बीमारियों को जन्म देता है और एक पूरा फिटनैस उद्योग आज इस मोटापे को कंट्रोल करने के लिए दुनिया भर में चल रहा है और इस में खूब कमाई हो रही है.

हमारी भूख मिटाने वाला, हमारे शरीर को ऊर्जा देने वाला, शरीर का सुयोग्य पोषण करने वाला और पाक कुशलता साक्षात्कार करने वाला उचित आहार स्वस्थ, आनंदित और सब से महत्त्वपूर्ण फिट और फाइन रखता है. लेकिन कभीकभी अनजाने या उस समय की मानसिक या आसपास की परिस्थिति के अनुसार अथवा अन्य किसी वजह से अनुपात से ज्यादा खा लिया जाता है.

गलत तरीके का, गलत तरीके से और गलत समय पर खाना खाया जाता है जिस का परिणाम धीरेधीरे शरीर पर नजर आने लगता है. फिर अचानक आए इस बदलाव का न सिर्फ एहसास होता है बल्कि बदलाव भी नजर आता है और फिर शुरू होती है अपनी खुद की तलाश.

कई बार तो यह तलाश अर्थहीन, बोरियतभरी और कभी न खत्म होने वाली होती है. फिर उस के लिए ढूंढ़े जाते हैं कुछ भयानक उपाय. लेकिन इन भयानक उपायों से कई बार सिर्फ और सिर्फ निराशा हाथ लगती है. मोटापे से ले कर सुडौल काया यानी आज की आधुनिक भाषा में जीरो फिगर.

सुडौल, सुंदर और फिट दिखना किसे पसंद नहीं है? हरकिसी की यही चाहत होती है और इस का सपना दिखाने वाले और इसे सच करने का दावा करने वाले भी अनेक नाम जगमगाते हुए हमारे सामने आते रहते हैं. इन से हमें जो चाहिए वह तो हासिल होता नहीं है, पर दूसरा कुछ जरूर मिल जाता है.

कैसी हो जीवनशैली

आहार विशेषज्ञ का कहना है कि हमारे घर की रसोई में ही हमारे आहार का तरीका छिपा होता है. लेकिन घर के आहार का तरीका छोड़ कर गलत दिशा में निकल जाएं तो उस का शरीर भी बुरा प्रभाव दिखाईर् देने लगता है. आप जैसा खाते हैं वैसा ही बनते हैं. डाइट की कालावधी बहुत छोटी होती है क्योंकि केवल सूप्स, सलाद और फल और सब्जियों के जूस पर हम पूरी जिंदगी नहीं बिता सकते. हमारा आहार हमारी जीवनशैली होनी चाहिए. यह जीवनशैली केवल हमारे शरीर पर ही प्रभाव नहीं डालती इस का हमारे मन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है.

कई बार गलत कारणों के लिए वेट लौस करने की कोशिश की जाती है. स्वस्थ और फिट रहने के लिए आहार पर कंट्रोल करने वाले या उचित आहार के तरीके को अपनी जीवनशैली बनाने वाले लोग बहुत कम होते हैं. ऊंचाई और वजन का गलत तालमेल बैठा कर गलत जानकारी से डाइट या वेटलौस किया जाता है.

गलत धारणा

सच पूछो तो हमारा वजन हमारे शरीर का बहुत छोटा हिस्सा होता है. कई लोगों को यह पता ही नहीं होता कि उन्हें फैट लौस करना है या वेट लौस. वजन कम होने से जीवन स्वस्थ और आरोग्यसंपन्न होता है आज ऐसी गलत धारणा सभी ओर प्रचलित है कि आप का वजन महत्त्वपूर्ण नहीं होता, आप खुद को कितना स्वस्थ, खुशहाल और आरोग्यसंपन्न महसूस करते हैं यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है.

खाने के विषय में अपना वैचारिक नजरिया हमेशा विशाल रखें. इस के लिए हमारा शरीर स्वस्थ और मन शांत होना चाहिए. जब हमारे द्वारा खाए गए आहार में अधिक मात्रा में पोषक घटक हों तब ही यह संभव होता है. हम जहां रहते वहां मौसम के अनुसार खाने से पेट समतल रहता है. हम जहां रहते है वहां उगने वाले अनाज, फल और सब्जियों में होने वाले पोषक घटक वहां के वातावरण द्वारा निर्मित खतरे से हमारी रक्षा करते हैं, इसलिए लोकल फूड को महत्त्व देना जरूरी होता है.

आप कितना खाना चाहते हैं यह अपने पेट को तय करने दें, डाक्टर, मां, प्रशिक्षक, आहारविशेषज्ञ या और किसी को नहीं. हम अपने पेट की मांग के अनुसार खाने लगें तो मोटे होने का डर नहीं और सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप जो बचपन से खाते आए हैं या जो खा कर बड़े हुए हैं वही चीजें खाएं क्योंकि उन चीजों की आप के पेट को आदत होती है. उन से कोई तकलीफ नहीं होती.

ऐसे दिखें तरोताजा

एक  ही बार में पेटभर खाना और बाद में व्रत रखना ये दोनों ही बातें बहुत मुश्किल हैं. इस पर एक मात्र उपाय पाने के लिए आप अपने पेट और मन की सुने और आप की जितनी इच्छा हो उतना ही खाएं. हमारी भूख कभी 1 रोटी से मिट जाती है तो कभी 3 रोटियों से. ऐसे समय आप खाने की मात्रा निश्चित न करें.

हर 2 घंटे में कुछ न कुछ खाना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. अगर हम यह नियम बना लें तो अपनेआप ही थोड़ा खाने से भी हमारा पेट भर जाएगा. कम खाना हमारा उद्देश्य नहीं है बल्कि पेट को जितने खाने की जरूरत हो उतना खाना ही महत्त्वपूर्ण होता है.

आवश्यकतानुसार खाना महत्त्वपूर्ण होता है. भूख लगना यह जवां बने रहने और स्वास्थ्य की निशानी है. इसलिए सही तरीके से खाएं और अपनी भूख बनाए रखें.

एक बात पर आप जरूर गौर करें कि आप को ठीक तरह से भूख लगती है या नहीं? अगर आप का जवाब हां है तो समझ लीजिए कि आप सही रास्ते पर आ रहे हैं. उचित समय पर खाएं, स्वस्थ और तरोताजा दिखें और इस के लिए अपनी हंगर को समयसमय पर ऊर्जा दे कर प्रदीप्त रखें.

आहार और व्यायाम

सुयोग्य आहार के साथ ही व्यायाम भी जरूरी है. व्यायाम करना हमारे शरीर को स्वस्थ और मजबूत रखने के लिए बहुत जरूरी होता है.  आप को जो व्यायाम अच्छा लगे वही करें.

चाहें तो मार्शल आर्ट के लिए जाएं, डांस करें, दौड़ लगाएं, वेट ट्रेनिंग करें या तैरने जाएं ताकि आप के जोड़ों, पेशियों और हड्डियों को गति मिले. व्यायाम करने के लिए प्रशिक्षण भी जरूरी होता है. हमारा शरीर जितना हलका होगा उतना ही स्वस्थ, मजबूत होगा.

सामान्य तौर पर ऐसा कहा जाता है कि वजन उठाने वाला व्यायाम केवल पुरुष ही करते हैं, लेकिन वजन उठाने वाले व्यायाम करना यानी अपनी मांसपेशियां मजबूत करना होता है. जब कोई महिला कहती है कि वह सुडौल, सुघड़ बनना चाहती है तब उस का संबंध सीधेसीधे मांसपेशियों की सुडौलता से होता है.

सिर्फ चलते रहना ऐसा कहना मानो पहली के बच्चे को अगले 10 सालों तक पहली में ही रहे ऐसा कहना होगा. केवल चलना पूरा नहीं व्यायाम कहलाया जा सकता. कोई चैलेजिंग ऐक्टीविटी करना ही पूरा व्यायाम कहलाएगा. सप्ताह में कम से कम 5 दिनों तक नियमित व्यायाम करें. व्यायाम हमेशा बदलते रहें ताकि आप और आप के शरीर को बोरियत महसूस न हो.

बार-बार होने वाली थकान बढ़ाती है परेशानी

थकान मानसिक या शारीरिक दोनों तरह की हो सकती है.  आपके शरीर में होने वाली थकावट कई तरह के कारणों की वजह से होती है. थकान या सुस्ती होने से आलस का अनुभव होता है. जिस व्यक्ति को हर समय थकान होती है, उसे अपने जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अगर आपको भी थकान रहती है, तो इससे निजात पाना बहुत मुश्किल होता है. आज हम आपको बताना चाहते हैं कि वास्तव में थकान से उत्पन्न होने वाले लक्षणों को पहचानना एक बहुत मुश्किल काम है.

आपने यह देखा तो होगा कि आप में से कई लोग एक ही समय में दस काम बेहतर तरीके से कर लेते हैं पर आप में पहले जितनी एनर्जी बाकी नहीं रह पाती और थकान के बाद आप उतने ही समय में सही तरीके से अपना काम पूरा नहीं कर पाते हैं. इसे ही शारीरिक या मानसिक थकान भी कहते हैं.

कई बार थोड़े आराम और सही पौष्टिक आहार की कमी से भी ऐसा होता है. यहां हम थकान की मुख्य वजहों और उनके निवारण के उपाय बता रहे हैं.

1. पर्याप्त नींद न होने की वजह से थकान

अगर आप देर तक बिस्तर में केवल सोये रहने हैं तो ये थकान भगाने का सही तरीका नहीं है. रात की नींद पूरी न होने की वजह से आपको थकान का सामना करना पड़ता है. कम नींद की वजह से आपको बहुत सी दिक्कतें होती हैं. नींद पूरी न हो तो एक जगह ध्यान केन्द्रित करने में भी मुश्किल होती है और फिर इस कारण मानसिक थकान का अनुभव भी होने लगता है.

समाधान

अपना बिस्तर में जाने का और नींद का या सोने का समय सुनिश्चित करे लें. एक समय सारिणी सीमा बनाकर उसका पालन करें और नींद भी अच्छे से पूरी करें. नींद पूरी होगी तो सुबह उठकर आप अपने सभी कामों को फुर्ती के साथ आसानी से करेंगे. रात की नींद ठीक तरह से न होना थकान का एक मुख्य कारण है.

2. स्लीप एप्नीय

नींद के वक्त होने वाला एक स्लीपिंग डिसऑर्डर है स्लीप एप्नीय. इस बिमारी में नींद की अवस्था में अपने आप सांस रुक जाने की वजह से नींद खुल जाती है और ऐसा बार बार होने के कारण आपकी नींद पूरी नहीं हो पाती और व्यक्ति शारीरिक व मानसिक थकान से परेशान रहता है.

समाधान

जरुरत से ज्यादा वजन बढ़ने और अत्यधिक मोटापे की वजह से यह समस्या होने की संभावना बढ़ जाती है. इसके अलावा बहुत धूम्रपान करने वाले लोगों को भी इस परेशानी से गुजरना पड़ता है. इस परेशानी से बचने के लिए एक्सरसाइज और वर्कआउट आदि की शुरुआत करें और धूम्रपान करने की बुरी आदत से छुटकारा पाएं.

3. उचित और संतुलित आहार

शरीर को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए और खुद को थकान से दूर रखने के लिए सही और उपयुक्त भोजन करना बहुत जरूरी है. भोजन में कम पोषण की वजह से शरीर को पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाती है, जिसके कारण थकान होती है. यह बात ध्यान रखें कि आपके भोजन में सभी प्रकार के पोशाक तत्वों का सही अनुपात में होना जरूरी है और साथ ही नमक और चीनी की भी उचित मात्रा में होनी चाहिए. आलस को शरीर से दूर रखने के लिए ये आवश्यक होते हैं.

समाधान

नाश्ता करना कभी भी नहीं भूलना चाहिए. सुबह का नाश्ता शरीर के लिए बहुत ज़्यादा ज़रूरी है. सुबह की यह एक और पहली खुराक शरीर को दिन भर ऊर्जा देने में मदद करती है और यह भी आवश्यक ध्यान में रखें कि आप जो कुछ भी नाश्ते के वक्त ले रहे हैं वह पर्याप्त पोषक तत्वों से भरपूर होना चाहिए. नाश्ते के अलावा भोजन में सभी प्रकार के प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट भी उचित मात्रा में होना चाहिए. ये सभी आपकी एनर्जी को ज्यादा से ज्यादा समय तक बनाए रखने में मदद करते हैं और साथ ही आपका प्रतिरोधी तंत्र भी मजबूत करता है जो थकान से बचने के लिए बहुत जरूरी है.

लीवर पर कैसे असर डालता है हेपेटाइटिस बी और सी का संक्रमण

लिवर हमारे शरीर का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है, जो हृदय को सहारा देने, रक्त से विषाक्त पदार्थों को निकालने, हार्मोन बनाने और विटामिन स्टोर करने के साथ ही अन्य महत्वपूर्ण कार्य करता है. हेपेटाइटिस बी और सी सामान्य वायरल संक्रमण हैं जो लिवर को प्रभावित करते हैं जिससे तीव्र और जीर्ण हेपेटाइटिस होता है. ये बीमारियां साइलेंट किलर मानी जाती हैं जो वर्षों में धीरे-धीरे विकसित होती हैं और लिवर सिरोसिस और लीवर ट्रांसप्लांट का प्रमुख कारण बनती हैं. दुनिया भर में, लगभग 350 मिलियन लोग हेपेटाइटिस बी से संक्रमित हैं और लगभग 170 मिलियन लोगों को हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं.

डॉ मनोज गुप्ता, वरिष्ठ सलाहकार – लीवर ट्रांसप्लांट और जीआई सर्जरी, पी.एस.आर.आई अस्पताल के बता रहे हैं हेपेटाइटिस वायरस के प्रकार और लक्षण.

हेपेटाइटिस वायरस कई प्रकार के हैं, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी सहित जो कुछ समानताओं वाले अलग-अलग वायरस हैं – दोनों के लक्षण समान हैं. हेपेटाइटिस बी आमतौर पर शरीर के तरल पदार्थ बी से फैलता है, हालांकि, यह इंट्रानेसल और इंजेक्शन दवा के उपयोग के साथ-साथ टैटू और शरीर भेदने  चीज़ों का उपयोग किए जाने वाले से भी फैल सकता है. बीमारी के लिए जिम्मेदार यह वायरस छींकने या खांसने से नहीं फैलता है, यह खून, वीर्य या शरीर के अन्य तरल पदार्थों से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जाता है. हेपेटाइटिस बी और सी के फैलने के सामान्य तरीकों में शामिल हैं:

  • यौन संपर्क –

किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने से आपको रोग होने की संभावना बढ़ जाती है. संक्रमित व्यक्ति के खून, लार, वीर्य या योनि स्राव से वायरस आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है.

  • सुई साझा करना –

यह बीमारी दूषित सुई और सिरिंज से आसानी से फैल सकती है. सुई से अचानक चोट लगना स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों और मानव रक्त के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए चिंता का बड़ा विषय है.

  • मां से बच्चे में –

इस बीमारी से संक्रमित गर्भवती महिलाओं से बच्चे के जन्म के दौरान उनके बच्चों को वायरस जा सकता है. नवजात को संक्रमित होने से बचने के लिए टीका लगाया जा सकता है.

यदि आप जांच में हेपेटाइटिस बी से पॉजिटिव पाए जाते हैं, तो हेपेटाइटिस सी का परीक्षण करना आवश्यक है क्योंकि इससे पता चलता है कि क्या आप कभी हेपेटाइटिस सी के संपर्क में आये हैं या क्रोनिक हेपेटाइटिस सी हुआ है. हेपेटाइटिस बी के विपरीत, हेपेटाइटिस सी वायरस के लिए कोई टीका नहीं है, इसलिए, हेपेटाइटिस सी के संपर्क में न आने को लेकर विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए – उदाहरण के लिए, कभी भी किसी के साथ सुइयों को साझा न करें.

इसके अलावा, पर्याप्त रूप से विटामिन और मिनरल्स लेना महत्वपूर्ण है. जब तक कहा न जाए, आयरन की खुराक से बचें क्योंकि बड़ी खुराक लेने पर वे लीवर को नुकसान पहुंचने की प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं.

रोग के सामान्य लक्षणों में त्वचा का पीला रंग, म्यूकस मेम्ब्रेन, और आंखों का सफेद भाग, पीला मल, खुजली और गहरे रंग का मूत्र शामिल हैं. साथ में, कुछ मामलों में थकान, पेट दर्द, वजन घटना, उल्टी और बुखार जैसे लक्षण दिख सकते हैं. हेपेटाइटिस बी और सी वायरस के साथ क्रोनिक संक्रमण से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि लिवर फेल होना, लिवर कैंसर, और सिरोसिस या लिवर पर चोट आना, जो लिवर की बेहतर ढंग से काम करने की क्षमता को क्षीण कर सकता है. इसके अलावा, क्रोनिक हेपेटाइटिस से पीड़ित लोगों में किडनी  की बीमारी या रक्त वाहिकाओं की सूजन हो सकती हैं. इसलिए हेपेटाइटिस वायरस से संक्रमित होने से बचने के लिए सावधानी बरतना जरूरी है. आप रोग होने के जोखिम को कम करने के लिए निम्न कुछ तरीकों को आज़मा सकते  हैं:

  • यदि आपको अपने साथी की हेपेटाइटिस स्थिति के बारे में नहीं पता है तो हर बार यौन संबंध बनाते समय नए कंडोम का उपयोग करें. भले ही कंडोम आपके रोग के होने के जोखिम को कम कर सकते हैं, वे जोखिम को पूरी तरह से समाप्त नहीं करते हैं.
  • अवैध ड्रग्स से दूर रहें. अवैध दवाओं के इंजेक्शन लगाने से बचें और कभी भी सुई साझा न करें.
  • टैटू और शरीर भेदने वाली चीज़ों को लेकर सावधान रहें. सुनिश्चित करें कि उपकरण साफ है और कर्मचारी स्टेराइल की गई सुई का उपयोग कर रहा है.
  • हेपेटाइटिस बी के टीके के बारे में पूछें – यदि आप किसी ऐसे क्षेत्र की यात्रा कर रहे हैं जहां हेपेटाइटिस आम है, तो अपने डॉक्टर से संबंधित टीके के बारे में पहले ही पूछ लें.

हेपेटाइटिस बी और सी दोनों का लिवर पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है, हालांकि, हेपेटाइटिस सी की तुलना में हेपेटाइटिस से तीव्र संक्रमण होने की संभावना अधिक है, जो आमतौर पर गंभीर स्थिति में बदल जाता है. और भले ही हेपेटाइटिस बी शरीर के तरल पदार्थ से फ़ैल सकता है, हेपेटाइटिस सी का संक्रमण आमतौर पर रक्त से रक्त संपर्क से होता है. व्यक्ति को किसी भी तरह के हेपेटाइटिस के जोखिम कारकों के सम्बन्ध में डॉक्टर से बात करनी चाहिए, जैसे कि असुरक्षित यौन संबंध का इतिहास या सुई साझा करना आदि.

कहीं आप डिप्रेस्ड तो नहीं?

डिप्रेशन एक आम बिमारी बन गई है. कुछ लोग समझते हैं कि एक सीमित वर्ग के लोग ही डिप्रेस्ड होते हैं.  पर पहले की तुलना में अब कहीं ज्यादा लोग डिप्रेशन के बारे में जानते हैं. कुछ समय पहले तक तो लोग इस बीमारी के बारे में जानते तक नहीं थे. डिप्रेशन को अक्सर पागलपन से जोड़कर देखा जाता था लेकिन अब इसके प्रति लोग काफी जागरुक हो गए हैं.

डिप्रेशन भले ही एक मानसिक स्थिति है लेकिन इसके कुछ शारीरिक लक्षण भी होते हैं. मानसिक लक्षणों के साथ-साथ अगर इन शारीरिक लक्षणों पर भी ध्यान दिया जाए तो डिप्रेशन की पहचान करना और इसका इलाज करना काफी आसान हो जाएगा.

डिप्रेशन से जूझ रहा शख्स अक्सर उदास रहता है, निराश रहता है और नकारात्मक सोच रखने लगता है. हॉर्मोन्स का संतुलन बिगड़ना, आनुवांशिकता, काम का दबाव, रिश्तों का तनाव, खराब माहौल और अकेलापन इसके प्रमुख कारण हो सकते हैं.

अगर डिप्रेशन की पहचान शुरुआती समय में ही कर ली जाए तो इससे छुटकारा पाना आसान है लेकिन अगर इसे लंबे समय से इग्नोर किया जा रहा है तो यह खतरनाक भी हो सकता है. डिप्रेशन से जूझ रहे शख्स की पहचान उसकी मानसिक स्थिति के आधार पर तो की ही जा सकती है, इसके अलावा कुछ शारीरिक लक्षण भी होते हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

1. थकान

डिप्रेशन से जूझ रहा रहा शख्स हर समय थकान का अनुभव करता है. ऐसे इंसान को न तो किसी काम को करने में मन लगता है. अवसादग्रसीत व्यक्ति फीजिकली फिट फील नहीं करता.

2. सरदर्द और बदन दर्द

अवसादग्रसीत व्यक्ति के सिर में दर्द रहता है. अकेलेपन के अंधेरों के कारण ऐसे व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा होती है.

3. वजन का घटना-बढ़ना

डिप्रेशन से जूझ रहे शख्स के वजन पर इसका साफ असर नजर आता है. कई बार तो ऐसे लोगों का वजन बहुत कम हो जाता है तो कई बार बहुत अधिक बढ़ जाता है.

5. भूख न लगना

डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को भूख भी नहीं लगती. चाहे उसकी पसंद की चीज ही क्यों न हो.

6. नींद न आना

डिप्रेस्ड व्यक्ति को नींद भी नहीं आती. अकेलेपन और बेचैनी से वो इमोश्नली कमजोर हो जाता है.

Alzheimer के खतरे से बचायेंगे ये 7 फूड हैबिट्स

क्या आपने भी अब एक छोटी डायरी रखने का फैसला कर लिया है? भूलने की बीमारी ने बहुतों को नोट बुक रखने पर मजबूर कर दिया है. पर सोचिए किसी दिन आप इस नोट बुक को ही कहीं रखकर भूल गए तो…?

अगर आपको अपनी जरूरी चीजों को भी याद रखने में तकलीफ होने लगी है तो सावधान हो जाइए. ये अल्जाइमर  के शुरुआती लक्षण हैं. अभी अल्जाइमर  की शुरुआत हुई है और आप चाहें तो अपनी डाइट में कुछ चीजों को शामिल करके और कुछ आदतें बदलकर इस खतरे को बढ़ने से रोक सकते हैं.

अल्जाइमर , एक खतरनाक दिमागी बीमारी है, जिसका सीधा असर दिमाग पर होता है, जिसकी वजह से ता‍र्किक क्षमता और याददाश्त पर असर पड़ता है.

ये डिमेंशिया का सबसे सामान्य रूप है. इस बीमारी का सीधा संबंध बढ़ती उम्र से है. 60-65 की उम्र के बाद ज्यादातर लोगों को अल्जाइमर  की शिकायत हो जाती है.

कुछ लोगों में ये अनुवांशिक भी होता है. कई बार सिर में गंभीर चोट लगने की वजह से या बहुत अधिक तनाव लेने वालों को भी अल्जाइमर  की शिकायत हो जाती है. सबसे अधिक चिंता की बात ये है कि अल्जाइमर  की कोई स्पेसिफिक दवा नहीं है. इससे बचाव ही इसका इलाज है.

ऐसे में बेहतर यही है कि हम सावधान रहें और खानपान में ऐसी चीजों को शामिल करें, जिससे इस बीमारी के खतरे से बचा जा सके.

डाइट में शामिल करें ये 7 चीजें और दूर करें अल्जाइमर  का खतरा:

1. हरी सब्ज‍ियां

हरी सब्ज‍ियों को डाइट में शामिल करें. ये विटामिन ए और सी का बेहतरीन स्त्रोत होती हैं. हरी सब्ज‍ियों में कई ऐसे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं जो दिमागी सेहत के लिए जरूरी होते हैं. आप चाहें तो अपनी डाइट में पालक, ब्रोकली, बीन्स और ऐसी ही दूसरी हरी सब्ज‍ियों को शामिल कर सकते हैं.

2. ओमेगा 3 फैट

साल्मन मछली, टुना और दूसरी मछलियां हेल्दी ऑयल और ओमेगा 3 फैटी एसिड का अच्छा स्त्रोत होती हैं. अपनी डाइट में ऐसी चीजों को जरूर शामिल करें, जिनमें ओमेगा 3 मौजूद हो.

3. बहुत तली-भुनी चीजों से बचें, पैकेट वाले खाने को भी कहें ना

डीप फ्राई चीजों को खाने से बचें. इसके अलावा प्रोसेस्ड फूड भी नुकसानदेह हो सकता है. ये चीजें शरीर में फ्री-रेडिकल्स को बढ़ाती हैं, जो दिमाग के लिए खतरनाक हो सकती हैं. इन चीजों में हाइड्रोजेनेटेड ऑयल होता है, जो दिमागी सेहत के लिए खतरनाक होता है.

4. अलसी या फ्लैक्स सीड्स

फ्लैक्स सीड्स में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स की अच्छी मात्रा होती है. बहुत से अध्ययनों में साबित हो चुका है कि फ्लैक्स सीड्स बीटा-एमिलॉयड प्लाक को बनने से रोकता है, जिससे अल्जाइमर  का खतरा कम होता है.

5. चीनी कम खाएं

बहुत अधिक मात्रा में चीनी लेना खतरनाक हो सकता है. इससे ब्लड शुगर बढ़ जाता है, जिससे दिमाग को नुकसान पहुंचता है.

6. फल खाना है जरूरी

फलों में एंटी-ऑक्सीडेंट, विटामिन, कैल्शियम, आयरन, जिंक और दूसरे कई पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं. इनके सेवन से याददाश्त दुरुस्त रहती है. साथ ही अल्जाइमर  का खतरा भी कम होता है.

7. ड्राई फ्रूट्स

अल्जाइमर  से बचे रहना है तो ड्राई फ्रूट्स जरूर खाएं. इनमें फाइबर, फैट और एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं. जो दिमागी सक्रियता को बढ़ाते हैं और अल्जाइमर  के खतरे को कम करते हैं.

झड़ते बाल: समय पर करें इलाज

थोड़े बहुत बालों का झड़ना तो प्राकृतिक है और हर किसी के साथ ऐसा होता है. 60-100 बाल रोजाना झड़ें तो कोई बात नहीं. लेकिन जब बालों का झड़ना लंबे समय तक जारी रहे और झड़ने वाले बालों की मात्रा भी बढ़ जाए तो यह चिंता की बात है. यदि बालों का झड़ना आप के पूरे परिवार में दिखाई दे रहा है तो यह समस्या वंशानुगत हो सकती है. इस से पहले कि गंजापन दिखने लगे, आप को चिकित्सकीय मदद की जरूरत है.

अगर बालों का झड़ना सामान्य से ज्यादा है और सिर के किसी खास स्थान से अन्य हिस्सों के मुकाबले ज्यादा बाल झड़ रहे हैं तो इस में विशेषज्ञ की सहायता लें. पुरुषों और महिलाओं में गंजेपन के कई कारण हैं, जैसे पोषक तत्वों की कमी, हेयरकेयर उत्पादों का अत्यधिक उपयोग, वंशानुगत समस्या, चल रही दवाओं का साइड इफैक्ट, प्रोटीन की कमी, हार्मोन का असंतुलन, तनाव, एनीमिया, सिर की त्वचा का संक्रमण और कई अन्य कारण शामिल हैं. भारी मात्रा में बालों के झड़ने या गंजेपन का वास्तविक कारण जानने के लिए बेहतर है डाक्टर से मिलें और इस के लिए उचित इलाज लें.

किस के लिए कौन सा इलाज बेहतरीन काम करता है, यह समस्या और उस के संभावित परिणामों पर निर्भर करता है. आमतौर पर प्रोटीन, मैग्नीशियम या जिंक सप्लीमैंट्स युक्त पौष्टिक आहार लेने से बालों के झड़ने की समस्या दूर हो सकती है.

जो व्यक्ति ज्यादा विश्वसनीय, सुरक्षित और दीर्घावधि समाधान चाहते हैं उन के लिए हेयर ट्रांसप्लांट सब से अच्छा विकल्प है. अत्याधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल, अत्याधुनिक क्लीनिक्स की आसान उपलब्धता और कुशल सर्जनों की विशेषज्ञता के चलते और सिर पर बालों को फिर से उगाना संभव है जो असली बालों जितने ही अच्छे दिखते हैं. आमतौर पर, हेयर ट्रांसप्लांट की यह प्रक्रिया जनरल एनेस्थेसिया के अंतर्गत की जाती है और अस्पताल में रुकने की जरूरत नहीं होती. इस से कोई भी व्यक्ति बिना किसी दर्द के अपना युवा लुक फिर से हासिल कर सकता है.

हेयर ट्रांसप्लांट की आसान प्रक्रिया और संतोषजनक परिणाम देने की क्षमता ने इसे मनोरंजन उद्योग और क्रिकेट जगत में भी लोकप्रिय बना दिया है. कई जानीमानी शख्सीयतों जैसे अभिनेता गोविंदा, परमीत सेठी और क्रिकेटर युसुफ पठान, निखिल चोपड़ा, वीवीएस लक्ष्मण, रोजर बिन्नी, दिलीप वैंगसरकर, सौरव गांगुली, कमैंटेटर हर्षा भोगले, चारू शर्मा और अरुण लाल आदि ने भी इस प्रक्रिया को अपनाया है और कैमरे के सामने अपना चेहरा रखने का आत्मविश्वास पाया.

हेयर ट्रांसप्लांट की 2 तरह की प्रक्रियाएं फिलहाल लोकप्रिय हैं-फोलिक्यूलर यूनिट ट्रांसप्लांट यानी एफयूटी पद्घति या स्ट्रिप मैथड और फोलीक्यूलर यूनिट एक्सट्रैक्शन यानी एफयूई या पंच मैथड. एफयूटी या स्ट्रिप पद्घति को दुनियाभर में 90 फीसदी सर्जन इस्तेमाल करते हैं.

इस प्रक्रिया में सिर के बालों को सावधानीपूर्वक फिर से उगाया जाता है. इस में मरीज को लोकल एनेस्थेसिया दिया जाता है और सिर के पिछले हिस्से और साइडों से त्वचा की एक पट्टी बालों एवं बालों के रोम सहित हटाई जाती है.

इस पट्टी को सिर के उन हिस्सों पर ग्राफ्ट (लगाया) किया जाता है जहां बाल नहीं हैं और उसे ‘ट्रिकोपैथिक क्लोजर’ से सील कर दिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में 6-8 घंटे का समय लगता है और उसी समय 8-10 डाक्टरों की टीम औपरेशन पर काम करती है. मरीज उसी दिन घर जा सकता है और अगले दिन से अपना काम शुरू कर सकता है. इसी सहूलियत की वजह से ज्यादातर मामलों में यह पद्घति काम करती है.

एक नहीं अनेक कारण

बालों का झड़ना इन दिनों हर उम्र के लोगों में लगातार रहने वाली समस्या बन गई है. युवा हो, वयस्क हो या फिर बुजुर्ग, कोई भी इस अनचाही स्थिति से नहीं बच सकता. रोजाना 100 बालों का झड़ना तो सामान्य है, लेकिन जब झड़ते बालों की संख्या इस आंकड़े को पार कर जाए तो यह चिंता का विषय है.

बालों के झड़ने के पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं, जैसे खानपान में पौष्टिकता एवं विटामिन की कमी, संक्रमण, दवाइयां, आनुवंश्किता और वह वातावरण जिस में व्यक्ति रहता है. विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है, ऐसे में बालों का अत्यधिक झड़ना एक प्रोटीन बोटुलिनम टौक्सिन की मदद से रोका जा सकता है जिस को बोटोक्स भी कहते हैं.

बोटुलिनम टौक्सिन कौस्मेटिक इंडस्ट्री में लोकप्रिय नाम है और यह दुनियाभर के एस्थेटिक (सौंदर्य) क्लीनिक्स में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाला उत्पाद है. यह चेहरे के हावभाव व्यक्त करते समय पड़ने वाली झुर्रियों को अस्थायी रूप से कम कर देता है.

इस के अलावा, यह मांसपेशियों में होने वाले दर्द, पुराने माइग्रेन, यूरिनरी इनकंटीनेंस (मूत्र असंयम), ब्लैफेरोस्पाज्म (पलकों का उद्वेष्ट) और अंडरआर्म से अत्यधिक पसीने जैसी बीमारियों के इलाज में भी उपयोग किया जाता है. इन सब के अलावा, हाल ही के अध्ययन बताते हैं कि बोटुलिनम टौक्सिन झड़ते बालों के इलाज में भी बहुत ही मदद कर सकते हैं.

दरअसल, यह आधुनिकतम पद्घति है जिस का इस्तेमाल सर्जन उन महिलाओं व पुरुषों के इलाज में करते हैं जो बाल झड़ने या कमजोर होने की समस्या से जूझ रहे हैं. अनुसंधान इस बात को साबित कर चुके हैं कि सिर के उन हिस्सों पर बाल उड़ने की संभावना ज्यादा रहती है जहां रक्त व औक्सीजन की आपूर्ति कम रहती है और डीहाइड्रोटेस्टोस्टीरोन यानी डीएचटी का स्तर ज्यादा होता है. बोटुलिनम टौक्सिन का इंजैक्शन लगा कर बालों के रोमों में खून और औक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई जा सकती है, जिस के चलते नए बालों के विकास और मौजूदा बालों को मजबूती मिलती है. इस के अलावा, यह बालों की जड़ों को पौष्टिक तत्त्वों की आपूर्ति भी बढ़ाती है और किसी भी क्षेत्र में औक्सीजन का स्तर ऊंचा होने से बनने वाले डीएचटी को रोकती है.

क्या है प्रक्रिया

टौक्सिन को सिर के अग्रभाग, टैंपल्स और शिखर में लगाया जाता है. एक पतली सुई के जरिए 15 मिनट के लिए 20-30 माइक्रोइंजैक्शंस लगाए जाते हैं. यह उपचार एक एनेस्थेटिक क्रीम के तहत शुरू किया गया है जो किसी भी तरह के दर्द से बचने के लिए सिर की त्वचा पर लगाया जाता है. बोटुलिनम टौक्सिन सिर की मांसपेशियों को आराम पहुंचाती है और तनाव को दूर करती है. रक्तवाहिनियों को आराम पहुंचा कर तनाव को दूर करती है और बालों के रोमों में रक्त की आपूर्ति बढ़ाती है.

हालांकि बोटुलिनम टौक्सिन को बालों की ग्रोथ को बढ़ावा देने में सहायक माना गया है लेकिन गंजेपन के इलाज में इस की सुरक्षा और दक्षता पर और अधिक क्लीनिकल रिसर्च व अध्ययन की जरूरत है. एक बार कौस्मेटिक्स इंडस्ट्री इस बात का पुख्ता प्रमाण जुटा ले तो बालों को उगाने में टौक्सिन का इस्तेमाल हेयरलौस ट्रीटमैंट में एक लंबी छलांग होगा.

(लेखिका कौस्मेटिक डर्मेटोलौजिस्ट ऐंड लेजर सर्जन हैं.)

मैंस्ट्रुअल हाइजीन के लिए 5 बातें

मासिकधर्म यानी पीरियड्स के दौरान हाइजीन का ध्यान रखना हर महिला के के लिए बेहद जरूरी है. वूमन हैल्थ और्गेनाइजेशन द्वारा कराए गए सर्वे में भारत में सभी तरह की प्रजनन संबंधी बीमारियों के पीछे मेन कारण पीरियड्स के दौरान साफसफाई का ध्यान न रखना पाया गया.

देश के देहातों में मासिकधर्म को ले कर कई तरह के भ्रम फैले हैं. ग्रामीण इलाकों में तो आज भी मासिकधर्म पर बात करना मना सा है, जिस से मासिकधर्म के दौरान साफसफाई की कमी रह जाती है, जो कई बीमारियों का कारण बनती है.

आज भी गिनीचुनी महिलाओं की ही पहुंच उन साधनों तक है, जिन से संपूर्ण हाइजीन तय होती है. ज्यादातर महिलाएं मासिकधर्म और हाइजीनिक हैल्थ प्रैक्टिस के वैज्ञानिक पहलुओं से अनजान हैं. मासिकधर्म के बारे में जानकारी की कमी के कारण न सिर्फ सेहत पर असर पड़ता है, बल्कि यह महिलाओं की मासिक सेहत के लिए भी खतरा हो सकता है. वे तनाव, विश्वास में कमी जैसी परेशानियों से घिर सकती हैं.

मासिकधर्म के दौरान बेसिक हाइजीन को ले कर हर लड़की, महिला को इन बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए:

सैनिटेशन का तरीका: आज बाजार में कई तरह के साधन मुहैया हैं जैसे सैनिटरी नैपकिन, टैंपून्स और मैंस्ट्रुअल कप जिन से मासिकधर्म के दौरान साफसफाई तय होती है. कुछ महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान अलगअलग दिनों पर अलगअलग प्रकार के सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करती हैं या फिर अलग प्रकार के उपायों को अपनाती हैं जैसे टैंपून और सैनिटरी नैपकिन. लेकिन कुछ किसी एक प्रकार और ब्रैंड को अपनाती हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि वह आप की जरूरतों के हिसाब से सही है या नहीं.

रोज नहाएं: कुछ समाजों में यह मान्यता है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को नहाना नहीं चाहिए. इस सोच के पीछे का कारण यह है कि पुराने जमाने में महिलाओं को खुले में या फिर किसी नदी अथवा झील के किनारे खुले में नहाना पड़ता था. नहाने से बदन की सफाई होती है. नहाने से मासिकधर्म के दौरान ऐंठन, दर्द, पीठ दर्द, मूड में सुधार होने के साथसाथ पेट फूलना जैसी परेशानी से भी राहत मिलती है. इस के लिए कुनकुने पानी से नहाएं.

साबुन इस्तेमाल न करें: मासिकधर्म के दौरान साबुन का प्रयोग न करें. योनि की साबुन से सफाई करने पर अच्छे बैक्टीरिया के नष्ट होने का खतरा रहता है, जो इन्फैक्शन का कारण बन सकता है. लिहाजा, इस दौरान योनि की सफाई के लिए कुनकुना पानी ही काफी है. हां, बाहरी भाग की सफाई के लिए साबुन का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस दौरान वैजाइनल केयर लिक्विड वाश का इस्तेमाल करना चाहिए और इस का इस्तेमाल सिर्फ मासिकधर्म के दौरान ही नहीं, बल्कि बाकी दिनों में भी करना चाहिए.

हाथ अवश्य धोएं: सैनिटरी पैड या टैंपून या फिर मैंस्ट्रुअल कप बदलने के बाद हाथ जरूर धोएं. हाइजीन की इस आदत का हमेशा पालन करें. इस के अलावा इस्तेमाल किए गए पैड या टैंपून को डस्टबिन में ही डालें, फ्लश न करें.

अलग अंडरवियर का इस्तेमाल करें: मासिकधर्म के दौरान अलग अंडरवियर्स का इस्तेमाल करें. इन्हें सिर्फ पीरियड्स के दौरान ही इस्तेमाल करें और अलग से कुनकुने पानी और साबुन से धोएं. एक ऐक्स्ट्रा पैंटी साथ जरूर रखें ताकि रिसाव होने पर उस का इस्तेमाल किया जा सके. यदि पैंटी पर दाग लग जाए तो नीबू या ब्लीचिंग पाउडर से हटा लें.

-अमोल प्रकाश (संस्थापक, डिया कौर्प)

6 Tips: माइग्रेन के दर्द से पाएं छुटकारा

आमतौर पर लोग सिर के दर्द को सामान्य सी तकलीफ समझकर नजरअंदाज कर देते हैं. लेकिन इसे नजरंदाज करना ठीक नहीं है, क्योंकि लंबे वक्त के बाद ये काफी तकलीफदेह साबित हो सकता है. बारबार सिर में होने वाला दर्द माइग्रेन कहा जाता है. यह उम्र के किसी भी पड़ाव पर हो सकता है.

माइग्रेन से होने वाले सिरदर्द को कुछ आसान घरेलू उपायों से दूर किया जा सकता है. ये उपाय पूरी तरह से साइड इफेक्ट से रहित हैं और आपको किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते. आइए, जानते हैं कि कौन से घरेलू उपाय आपको इस समस्या से निजात दिलाने में मददगार हो सकते हैं.

अंगूर का रस

ताजा अंगूर के रस को ब्लेंड कर लें. इसमें थोड़ा पानी मिलाएं और पी जाएं. इससे माइग्रेन के दर्द से राहत मिलती है. बेहतर परिणाम के लिए इस ड्रिंक का दिन में दो बार सेवन करें. अंगूर डाइटरी फाइबर, विटामिन ए, सी और कार्बोहाइड्रेड से भरपूर होता है. माइग्रेम के लिए यह बेहतरीन घरेलू नुस्खा है.

अदरक

अदरक शरीर के किसी भी भाग में दर्द से निजात दिलाने में लाभकारी है. चाहे वह दर्द माइग्रेन का ही क्यों न हो. इसके लिए आप अदरक की चाय पी सकते हैं. या फिर अदरक के जूस में थोड़ा सा नींबू का रस मिला लें और सेवन करें. इसके अलावा आप अदरक के पाउडर का पेस्ट बनाकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

दालचीनी

दालचीनी सिर्फ आपके खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता है. बल्कि यह माइग्रेन के लिए बेहतरीन औषधि है. दालचीनी पाउडर में थोड़ा पानी मिलाकर पेस्ट बना लें. इस लेप को माथे पर लगाकर 30 मिनट तक रहने दें. बाद में गर्म पानी की मदद से हटा लें. माइग्रेन से काफी राहत मिलेगा.

व्यायाम

नियमित रूप से व्यायाम माइग्रेन से राहत देता है. स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से भी माइग्रेन की समस्या से निजात मिलती है. हरी शाक-सब्जियों के नियमित सेवन से भी माइग्रेन की समस्या से निजात मिलती है.

थोड़ी सी कौफी

माइग्रेन में दर्द से राहत पाने के लिए कैफीन का भी सहारा लिया जा सकता है. कौफी से दर्द को कम किया जा सकता है.

ज्यादा प्रकाश से बचें

माइग्रेन को रोगी प्रकाश में देर तक न बैठें. इससे दर्द काफी बढ़ सकता है. बेहतर होगा कि प्रकाश के संपर्क में ज्यादा न रहें. अगर रहें भी तो आंखों पर चश्मा जरूर लगाएं.

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