इंसाफ: भाग 3- कौन था मालती और कामिनी का अपराधी

लेखिका- प्रमिला उपाध्याय

तभी छोटा बंशी अपनी मां को ले कर आ पहुंचा. उसे देख कर कामिनी फिर सिसकने लगी, सुबकते हुए बोली, ‘‘देखो मौसी, मां की क्या हालत बना दी है बदमाशों ने.’’ बंशी की मां अवाक् हो कर मालती को देखते हुए बोली, ‘‘घबराओ नहीं, बेटी, जिस ने यह सब किया है उस की सजा उसे अवश्य मिलेगी.’’ बंशी की मां ने दमयंतीजी को देखते हुए प्रणाम किया तो वे बोलीं, ‘‘देखिए, मालती का ध्यान रखिएगा, और आप आज यहीं रह जाइए न. कामिनी को भी आप के रहने से अच्छा लगेगा और सहारा भी रहेगा. अच्छा, मैं अब चलती हूं. कल आने की कोशिश करूंगी.’’ बंशी की मां सिर हिलाते हुए बोली, ‘‘हांहां, मैं रह जाऊंगी. आप निश्ंिचत हो कर जाइए.’’ दूसरे दिन अखबार में ‘झारखंड समाचार’ पृष्ठ पर कम्मो थी. प्रोफैसर दीदी ने जब यह समाचार पढ़ा तो उन के रोंगटे खड़े हो गए. वे आज अपनी आंखों से देखना चाहती थीं कि डायन का आरोप लगा कर किस तरह बेसहारा, अनाथ महिलाओं पर अत्याचार किया व उन्हें प्रताड़ना दी जाती है व कई तरह के अमानवीय व्यवहार किए जाते हैं. यहां तक कि नंगा कर के पूरी बस्ती में घुमाया जाता है. वे मालती और कामिनी से मिलने अस्पताल पहुंचीं. मालती को होश आ गया था लेकिन दवा के असर से सो रही थी. अभी वे उन लोगों का हाल पूछ ही रही थीं कि दमयंतीजी भी 2 महिला साथियों को ले कर पहुंच गईं. सभी वार्ड के बाहर के बरामदे में बैंच पर बैठ गईं.

प्रोफैसर दीदी से उन की जानपहचान थी. आपस में अभिवादन के बाद पूरा हालचाल जानने के बाद सभी महिलाएं अस्पताल के बरामदे में लगी कुरसियों पर बैठ गईं. वे गिरीडीह के पौश इलाके के पढ़ेलिखे सभ्य लोगों के आवास के बगल में बसी इस बस्ती में इस तरह के जघन्य अपराध पर चिंता प्रकट करने लगीं. प्रोफैसर दीदी ने कहा, ‘‘दमयंतीजी, दोषियों को सजा दिलवाना हम महिलाओं का फर्ज बनता है. एक सीधीसादी, घरों में चौकाबरतन करने वाली विधवा और बेसहारा महिला को प्रताडि़त कर अधमरा कर देना घोर अपराध है.’’ ‘‘हांहां, जिस राजनीतिक दबंग, स्वयंभू नेता रूपचंद ने यह सब करवाया है उस ने बदले की भावना के तहत किया है. मैं ने पता कर लिया है, कई दिनों से कामिनी को बारगर्ल बनाने के लिए मुंबई भेजने के लिए वह मालती पर जोर डाल रहा था. उस के न कहने के बाद उस ने यह ओछी हरकत की है.’’

‘‘ओ, अच्छा,’’ प्रोफैसर दीदी अवाक् रह गईं.

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‘‘मुझे यह भी पता चला है कि वह बारगर्ल बनाने का लालच दे कर और उन के मांबाप को रुपएपैसे दे कर न जाने कितनी लड़कियों को बहलाफुसला कर ले जाता है मुंबई और वहीं पर सैक्स रैकेट चलाता है. इस में तो वह अकेला है नहीं. बड़ेबड़े दिग्गज भी शामिल होंगे. तभी यह सब संभव भी हो पाता है.’’

‘‘मैं भी अपने कालेज की अन्य प्रोफैसरों को इस में शामिल करूंगी. हम सभी मिल कर विरोध में रैली निकालेंगे और दोषियों को सजा दिलवाने में मदद करेंगे,’’ प्रोफैसर दीदी पूरे जोश के साथ बोलीं.

‘‘हां दीदी, किसी हाल में दोषियों को सजा दिलवाना जरूरी है, नहीं तो रूपचंद जैसे लोगों का मनोबल बढ़ता चला जाएगा. बहुत सूझबूझ और सावधानी से दोषी तक पहुंचना है. मुझे पता चला है कि इस में पुलिस को भनक है लेकिन सफेदपोशों की संलिप्तता के कारण अभी तक वह उन पर हाथ नहीं डाल पाई है,’’ दमयंतीजी ने बहुत धीरेधीरे ये सब बातें बताईं. उन्होंने आगे कहा, ‘‘सब से बड़ी बात यह है कि बस्ती के लोग तथा आसपास के लोग रूपचंद से काफी सहायता लेते रहते हैं. यहां की समस्याओं में लोगों का वह साथ देता है. इसी से उस के साथ कई चमचे लगे रहते हैं. लेकिन किसी भी तरह दोषी को सजा दिलवाना बहुत जरूरी है. है तो यह थोड़ा जटिल काम,’’ उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा. सावित्री यानी प्रोफैसर दीदी बोलीं, ‘‘हां दमयंतीजी, कठिन जरूर है परंतु जहां चाह, वहां राह मिल ही जाएगी. हम लोगों की नाक के नीचे ऐसी घटनाएं घटती रहें और हम शांति से बैठे रहें, यह नहीं हो सकता, हमें डटे रहना होगा.’’ अन्य दोनों महिलाओं ने भी हामी भरी. फिर सभी अंदर आ गईं. वार्ड में डाक्टर आए हुए थे. सावित्री दीदी ने पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, अब मालती की तबीयत कैसी है? कब तक ठीक हो जाएगी यह?’’

‘‘अभी चोट वगैरह भरने में कुछ समय तो लगेगा ही, उस के बाद छुट्टी मिल जाएगी,’’ डाक्टर ने जातेजाते कहा. सावित्री दीदी बोलीं, ‘‘देखो मालती, हम सब तुम्हारे साथ हैं, घबराना नहीं, हां. तो ठीक है, अब हम लोग चलते हैं.’’

मालती और कामिनी ने सभी को प्रणाम किया और आश्वस्त हो कर सिर हिलाया. दमयंतीजी ने मुसकरा कर सिर हिला दिया. बंशी की मां रात में अस्पताल में ही थी. सभी महिलाएं एकसाथ अस्पताल से बाहर निकलीं और रिकशा या आटो की प्रतीक्षा करने लगीं. तभी पुलिस इंस्पैक्टर की जीप उन के बगल में आ कर रुक गई. इंस्पैक्टर ओझा दमयंतीजी की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘‘दमयंतीजी, कैसी है मालती? जरूरी पड़ताल के लिए आया हूं. अच्छा है आप मिल गईं. उस रूपचंद ने किसी को डरायाधमकाया तो नहीं या किसी तरह से तंग करने की कोशिश तो नहीं की न?’’

‘‘नहीं इंस्पैक्टर साहब, यदि ऐसा होता तो मांबेटी हमें जरूर बतातीं,’’ वे बोलीं.

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‘‘ठीक है दमयंतीजी, चिंता मत कीजिए, जल्दी ही हम सबकुछ आप के सामने उजागर कर देंगे और दोषी बख्शे नहीं जाएंगे. अच्छा चलता हूं,’’ और जीप आगे बढ़ गई. एकदो रोज सभी अस्पताल जाती रहीं. शहर की अधिकांश महिलाएं एकजुट हो गईं. महिलाओं की इस कदर जागरूकता देख बड़े नेता हरकत में आ गए. झारखंड पुलिस ने मुंबई पुलिस की मदद से वहां चलने वाले सैक्स रैकेट का परदाफाश किया और झारखंड की कई लड़कियां वहां से छुड़ाईं. लेकिन अभी तक रूपचंद और उस के साथी पकड़ में नहीं आए थे. वे फरार थे. आखिरकार, एक दिन वे झारखंड की राजधानी रांची के एक होटल में खाना खाते हुए पकड़े गए. कुछ महीने तक केस चला. कई लोगों की गवाहियां हुईं. कई सफेदपोश लोगों के चेहरे बेनकाब हुए. रूपचंद और उस के साथियों को जुर्माना भरना पड़ा और 5 साल की सश्रम सजा सुनाई गई. सफेदपोश तो जुर्माना और बेल करा कर बाहर आ गए लेकिन अन्य दोषियों को सजा भुगतनी पड़ी. इधर, अस्पताल से मालती और कम्मो को प्रोफैसर सावित्री अपने घर ले आईं.

दमयंतीजी अपनी 2-3 महिला साथियों के साथ मिठाई का डब्बा ले कर सावित्री दीदी के यहां पहुंचीं, ‘‘दीदी, गले मिलें. आप सभी के साथ से ही मेहनत रंग लाई है. रूपचंद और उस के साथियों को जेल हो गई है.’’ गले लगते हुए दीदी बोलीं, ‘‘सब आप जैसी जुझारू महिला नेता के कारण ही तो संभव हो सका है. आप जैसी महिलाएं हर जगह हों तो एक दिन बदमाशों का अंत होगा ही.’’

‘‘नहीं, सावित्री दीदी, आप सभी शिक्षिकाओं ने भी कुछ कम नहीं किया है. अगर ऐसी ही जागरूकता हर जगह की महिलाओं में आ जाए तो आएदिन झारखंड, बिहार तथा अन्य जगहों में भी घटती ऐसी घटनाओं में लिप्त अपराधी अपराध करने से पहले एक बार सोचेंगे जरूर. कुछ नहीं करने से वे बेखौफ होते जाते हैं,’’ दमयंतीजी बोलने के मूड में थीं. अभी गपशप चल ही रही थी कि मालती और कामिनी ने आ कर उन लोगों को नमस्कार किया. उन्हें देखते ही सभी के चेहरे और खिल उठे, ‘‘कैसी हो मालती?’’ एकसाथ दोनों बोल उठीं, ‘‘सब आप लोगों की दया और उपकार का फल है दीदी,’’ मालती बोली, ‘‘कल से कम्मो काम पर आएगी, दीदीजी,’’ फिर दोनों मांबेटी जाने को तत्पर हुईं. सावित्री दीदी ने मिठाई बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अरे चाय तो पी कर जाओ.’’ कम्मो झट से खड़ी हो गई, ‘‘नहीं दीदी, मेरे रहते आप चाय बनाएंगी? अभी लाती हूं,’’ और चल पड़ी वह रसोई की ओर.

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इंसाफ: भाग 2- कौन था मालती और कामिनी का अपराधी

लेखिका- प्रमिला उपाध्याय

‘‘साली मांबेटी दोनों ही छंटी हुई हैं,’’ रूपचंद का साथी बोला और कम्मो के बालों को पकड़ कर जोर का धक्का दिया. वह गिर पड़ी. वह उठ कर मां को फिर बचाने के लिए झपटी. तभी उस के गालों पर बदमाश ने ऐसा जोरदार थप्पड़ मारा कि उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और वह मूर्छित सी हो कर गिर गई. बदमाशों ने मालती को दमभर मारापीटा. तभी एक आदमी डब्बे भर कर मैला ले कर आ गया और जबरन मालती के मुंह में डाल दिया. वह उस के बालों को जोरजोर से खींचते हुए बोला, ‘‘साली, मेरे बच्चे को किसी तरह जिंदा करो, नहीं तो मार ही डालूंगा.’’

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया, मैं ने कुछ नहीं किया,’’ कहतेकहते मालती बेहोश हो गई. मारपीट कर बदमाश वहां से चले गए. इस दौरान बस्ती का कोई भी उसे बचाने नहीं आया. कुछ ही देर में रूपचंद एक ओझा को ले कर वहां पहुंचा और बोला, ‘‘बाप रे, यह मालती डायन है, मुझे नहीं मालूम था. ओझाजी इस से पूछिए कि रामलाल के बेटे को तो उस ने खा लिया, अब वह किसे खाना चाहती है?’’ ओझा एक छड़ी से बेहोश मालती को खोदते हुए बोला, ‘‘बोल री डायन, यह सब तू ने क्यों किया?’’ मालती नहीं उठी तो उस ने उसे झाड़ू से मारा. वह फिर भी नहीं उठी तो उस ने आग जला कर उस में मिर्चें डाल कर धुआं किया और एक झाड़ू फिर लगाते हुए बोला, ‘‘अरी जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल, उठती है या नहीं?’’ पूरी बस्ती में यह खबर आग की तरह फैल गई थी. कई लोग उस के घर दौड़े आए. ओझा के दोबारा झाड़ू उठे हाथ लोगों को देख कर रुक गए. कई लोग मालती के करीब आ कर उसे देखने लगे. तो ओझा एक झाड़ू उसे और लगाते हुए बोला, ‘‘जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल तू उठती है या नहीं?’’ कुछ लोग मालती के काफी करीब आ गए, उसे देखते हुए बोले, ‘‘यह तो बेहोश है. छोड़ दीजिए ओझाजी,’’ तभी कम्मो को होश आ गया. वह झटपट उठी और मां की ओर दौड़ी. मां की दशा देख कर फूटफूट कर रोने लगी.

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मूर्ति बने लोगों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए. रूपचंद और उस के ओझा की दबंगता के आगे सभी डरे हुए थे. जब भी किसी को कुछ काम करवाने की जरूरत होती तो वह रूपचंद की ही सहायता लेता था. उस की पार्टी के साथ लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई थीं. समयसमय पर वह लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला भाषण दिया करता था. आखिर वह एक सांप्रदायिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता जो था. उस की पार्टी के लोग धर्म के नाम पर अपना उल्लू सीधा करते रहते थे. जब देखो इस पार्टी के लोग अपनी नीतियों की प्रशंसा और अन्य पार्टियों का विरोध करते रहते थे. अपनी पार्टी में उस की धाक थी ही, बस्ती के आसपास के लोग भी उस की दबंगता के आगे खौफ खाते थे और उस की हां में हां मिलाते थे. रूपचंद बड़बड़ाते हुए ओझा को ले कर वहां से चला गया. उस के जाते ही सभी जैसे होश में आ गए. रूपचंद ने मालती का ऐसा रूप सब के सामने पेश करवाया था कि जिस के बारे में उस बेचारी को कुछ भी पता नहीं था. लोग आपस में सलाहमशविरा करने लगे. इतने में एक 7-8 साल का लड़का बंशी आ गया. कम्मो उसे अपने छोटे भाई की तरह प्यार करती थी. जिन प्रोफैसर दीदी के यहां वह काम करती थी, उन के यहां से उसे मिठाइयां या टौफी वगैरह मिलतीं तो वह थोड़ा बचा कर उस के लिए जरूर लाती थी. वह छोटा बच्चा इसी इंतजार में रोजाना रहता था कि कब दीदी उस के लिए कुछ ले कर आएंगी. वह भी उसे बहुत प्यार करता था. वह उस का कोई भी काम करने के लिए तैयार रहता था.

मालती और कम्मो की हालत देखते ही वह सरपट दौड़ पड़ा ‘जागरूक महिला सोसायटी’ की सैक्रेटरी दमयंतीजी के पास. उन से जल्दी साथ चलने का आग्रह करने लगा. वे बगल की आदिवासी कालोनी में सब से पहले घर में रहती थीं. हांफते हुए उस ने वहां का सारा नजारा बताया और बांह पकड़ कर बस्ती में ले आया. दमयंतीजी महिलाओं के किसी भी दमनकारी कृत्य में या उन का हक दिलवाने के मामलों में जीजान से जुट जाती थीं. वे खानापीना भूल कर उन की सहायता किया करती थीं. बंशी की बात सुन कर वे बड़ी तेजी से चल कर वहां पहुंचीं और वहां का दृश्य देख कर अवाक् रह गईं. मांबेटी की हालत देख कर उन्हें बहुत गुस्सा आया. वे समझ गईं कि किसी गुंडे ने इन निर्बलों पर अपना बल आजमाया है. वे बोलीं, ‘‘आप लोग तमाशा मत देखिए, फौरन एक टैंपो ले आइए और मालती को अस्पताल पहुंचाने में मदद कीजिए.’’ अब सभी लोग हरकत में आ गए और दौड़ कर टैंपो ले आए. कुछ लोगों की सहायता से मालती को उस में लिटाया गया. तब तक कम्मो ताला बंद कर के मां का सिर अपनी गोद में रख कर बैठ गई. दमयंतीजी भी अगली सीट पर बैठ गईं और अस्पताल पहुंचीं. वहां जरूरी प्रक्रिया पूरी करा कर उन्होंने मालती का इलाज शुरू कराया. मालती की खराब हालत देख कर डाक्टर ने पुलिस का मामला बताते हुए उस का इलाज करने में अपनी मजबूरी बताई. दमयंतीजी जैसी महिला समाजसेवी के आगे उन्हें झुकना पड़ा. कम्मो अभी भी रहरह कर सिसक रही थी. दमयंतीजी ने उसे समझाया, ‘‘देखो, कामिनी, घबराओ नहीं, हमारी महिला सोसायटी तुम लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटेगी. रुपएपैसे की चिंता मत करो और रोना बंद करो.’’

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अब तक मालती की बस्ती के कुछ लोग वहां पहुंच गए. दमयंतीजी ने उन लोगों से कहा, ‘‘देखिए, अभी पुलिस आती ही होगी, आप सभी जोजो बातें जानते हैं और देखा है, उस के बारे में बेहिचक पुलिस को बताइएगा. कामिनी भी रिपोर्ट देगी. इन मांबेटी की सहायता करना हम सभी का फर्ज बनता है.’’ सभी लोगों ने अपनी सहमति में सिर हिलाया. पुलिस ने आते ही सब का बयान ले कर एफआईआर दर्ज कर ली. दमयंतीजी की ओर मुखातिब हो कर इंस्पैक्टर बोला, ‘‘आप को थाने में बुलाया जा सकता है.’’ ‘हांहां इंस्पैक्टर साहब, आप बेहिचक मुझे बुला सकते हैं. मेरा तो काम ही है महिलाओं के दुखसुख में साथ देना, उन की सेवा करना. यहां तो दुष्टों ने अच्छीभली महिला को डायन बता कर मारापीटा और वहशियाना व्यवहार किया है, यहां तक कि उसे मैला तक पिलाया गया.’’ दमयंतीजी बड़ी भली महिला समाजसेविका थीं. लोग उन का आदर करते थे. उन्होंने कम्मो को जरूरी बातें समझाईं और बोलीं, ‘‘तुम कोई भी बात बेझिझक मुझ से बता सकती हो. देखो, तुम चिंता तो बिलकुल मत करो. हमारी सोसायटी तुम्हारी मां के इलाज का खर्चा उठाएगी. अच्छा, अब मैं जा रही हूं.’’

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इंसाफ: भाग 1- कौन था मालती और कामिनी का अपराधी

लेखिका- प्रमिला उपाध्याय

मालती रोज की तरह जब काम पर से लौटी तो घर के पास उसे मूंछें ऐंठते हुए रूपचंद मिल गया. उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो, मालती?’’

‘‘ठीक हूं.’’

‘‘कब तक इस तरह हाड़तोड़ मेहनत करती रहोगी? अब तो तुम्हारी उम्र भी हो गई है, क्यों नहीं अपनी बेटी कम्मो को मेरे साथ मुंबई भेज देती हो? मैं बारगर्ल का काम दिला कर उसे हजारों रुपए कमाने लायक बना दूंगा. तुम बुढ़ापे में सुख और आराम से रहोगी.’’

‘‘नहीं भैया, मेरी बेटी इतनी दूर जा कर मेरे से अलग रह ही नहीं सकती. वैसे भी वह एक प्रोफैसर दीदी के यहां काम कर रही है और खुश भी है.’’

‘‘ओहो, तुम मेरी बात ही नहीं समझ रहीं. मैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा हूं. वैसे हड़बड़ी नहीं है, सोचसमझ कर अपना विचार मुझे बताना.’’

चिंतित सी मालती धीरे से सिर हिलाते हुए अपने घर में घुस गई. कम्मो यानी कामिनी अभी नहीं लौटी थी. 10 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि वह आ गई. सुबह के 11 बजने वाले थे. मांबेटी थकी हुई थीं. कम्मो ने पूछा, ‘‘मां, चाय पिओगी?’’ चिंतित मालती ने थकी सी आवाज में कहा, ‘‘हां बेटी, बना न. अगर अदरक हो तो थोड़ी सी डाल देना, बहुत थक गई हूं.’’ थोड़ी देर में कम्मो 2 गिलासों में चाय ले कर आई, ‘‘क्या बात है मां, बहुत थकी और चिंतित लग रही हो?’’

‘‘नहीं बेटी, अब उम्र भी तो बढ़ रही है, थोड़ा ज्यादा काम करती हूं तो कभीकभी थकान लगने लगती है.’’

‘‘तुम इतनी मेहनत क्यों करती हो मां. अब तो मैं भी काम करने लगी हूं. जितना हम मांबेटी मिल कर कमा लेते हैं, 2 जनों के लिए काफी है.’’

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‘‘नहीं बेटी, महंगाई का जमाना है, कुछ दिनों बाद तेरे हाथ भी पीले करने हैं, दो पैसे नहीं जोड़ूंगी तो कैसे काम चलेगा. कहां हाथ फैलाऊंगी, बोल. अब तो तेरे पिताजी भी नहीं रहे. जानती है बेटी, एक मर्द का साया सिर पर रहना बहुत जरूरी होता है.’’ कम्मो आज के जमाने की नए विचारों वाली लड़की थी, बोली, ‘‘ऐसा क्यों सोचती हो मां, आज लड़कियां भी बहुत कुछ कर सकती हैं. मुझे तो पापा ने 8वीं तक पढ़ा भी दिया है. जिस दीदी के यहां मैं काम कर रही हूं, उन्होंने कहा है कि मुझे वे घर में ही पढ़ा कर 2-3 साल के अंदर मैट्रिक करा देंगी. फिर तो आगे बढ़ने के लिए कई रास्ते मिल जाएंगे.’’ मालती को राहत मिली. लगा प्रोफैसर दीदी उस की बेटी के लिए कुछ न कुछ अवश्य करेंगी. उस ने झट से आलू काटा. कम्मो ने भात चढ़ा दिया और सब्जी का मसाला पीसने लगी. कुछ देर में भात तैयार हो गया तो उस ने सब्जी छौंक दी. सब्जी तैयार हो जाने पर मांबेटी ने खाना खाया और बरतन आदि धो कर आराम करने लगीं. कम्मो को लेटते ही नींद आ गई पर मालती को रूपचंद की बातें याद आ रही थीं. वह करवटें बदलती रही. बारबार रूपचंद का चेहरा उस की आंखों के सामने आ जाता था. सूनी आंखें लिए वह खिड़की के सामने बैठ कर तरहतरह की बातें सोचने लगी. आज का जमाना तो वैसे भी खराब है. वह जानती है कि लड़कियों के साथ बदमाश लोग कुछ भी गलत करने से नहीं हिचकते. रूपचंद दादा किस्म का दबंग आदमी था. वह अपनी जवान बेटी को कैसे किसी के साथ बाहर भेज दे. वह एक राजनीतिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता भी था. उस ने अपना दबदबा इन झोपड़पट्टियों पर इस कदर बना रखा था कि सभी उस से डरते थे. इसीलिए मालती भी उस से भय खाती थी. वह अकसर रोज ही मालती के सामने अपना प्रस्ताव रखने लगा था, इसी से वह चिंतित थी.

पास ही आधा किलोमीटर की दूरी पर ढेरों प्राइवेट घर थे. उस पौश कालोनी को आदर्श नगर के नाम से जाना जाता था. मालती की बस्ती रामूडीह गरीबों का झोपड़पट्टी वाला इलाका था. दूसरे दिन मालती काम कर के लौटी तो फिर रूपचंद उस के घर के पास ही मूंछें ऐंठते हुए मुसकरा रहा था. उस ने भावपूर्ण नजरों से मालती को देखा पर बोला कुछ नहीं. मालती राहत की सांस लेते हुए नजरें झुकाए घर में घुस गई. वह विधवा औरत किशोर बेटी के साथ शांति से चौकाबरतन कर के अपना घर चला रही थी. एक साल पहले उस का पति एक दुर्घटना में चल बसा था. उस की गृहस्थी की गाड़ी ठीक ही चलने लगी थी. लेकिन जब से रूपचंद ने अपना विचार उस से कहा और उस के अजीब तरह के देखने के ढंग से वह अंदर से सिहर उठती थी. 3-4 दिन के बाद वह 2-3 लंपट किस्म के लड़कों के साथ खड़ा मिला और मालती को देखते ही पूछा, ‘‘क्या मालती, कुछ सोचा या नहीं?’’

वह अनजान बनते हुए बोली, ‘‘किस बारे में, भैया?’’

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‘‘अरे, इतनी जल्दी भूल जाती हो, इतनी कमजोर है तुम्हारी याददाश्त. वही मुंबई बारगर्ल वाली बात के संबंध में. भेजोगी अपनी बेटी को तो रानी बन कर रहोगी, रानी. घरघर जा कर काम करने से छुटकारा मिल जाएगा तुम्हें और इतना कुछ होगा तुम्हारे पास कि दूसरे लोगों को देने लायक हो जाओगी.’’ मालती ने बात टालने की सोच कर कहा, ‘‘हां भैया, जल्दी ही बताऊंगी. मैं ने अपनी बेटी को इस संबंध में कुछ बताया नहीं है. दूर भेजने की बात है न.’’ कामिनी से उस ने अभी तक कुछ बताया नहीं था. जब रूपचंद ने उस पर जल्दी बताने के लिए रोज जोर देना शुरू किया तो एक दिन उस ने डरतेडरते उस से पूछा, ‘‘बेटी, तू मुंबई जाएगी काम करने? बारगर्ल बन कर काम करने पर तुझे हजारों रुपए मिलने लगेंगे.’’ कम्मो सुनते ही रोने लगी, ‘‘मां, तुम ने ऐसा सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें छोड़ कर बाहर कमाने जाऊंगी. यदि मुझे लाखों रुपए भी मिलने लगेंगे तो भी मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी, समझीं. सुन लो, हां.’’ मालती उस की बात सुन कर आश्वस्त सी हो गई. मन ही मन सोचा कि मेरी बेटी ने तो मेरी मुश्किल ही आसान कर दी. उस का दिल भी उसे अपनी आंखों से ओझल होने देने का नहीं कर रहा था. अब वह रूपचंद को टका सा जवाब दे सकती है.

दूसरे दिन रूपचंद फिर कुछ लोगों के साथ खड़ा था. उस ने अपनी बात फिर दोहराई. मालती ने आज उस से साफसाफ कह दिया, ‘‘नहीं भैया, मेरी बेटी बाहर कहीं नहीं जाना चाहती. वह मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती है. सच में भैया, लड़की का मामला है, सबकुछ सोचना पड़ता है न.’’ रूपचंद ने पूछा, ‘‘अच्छी तरह सोचसमझ लिया है न?’’

‘‘हांहां भैया, अच्छी तरह सोच कर ही जवाब दे रही हूं.’’ उस ने हुंकार भरते हुए कहा, ‘‘अच्छा ठीक है.’’ जिस ढंग से उस ने हुंकार भरी थी, वह थोड़ा सहम गई. अब मालती और कामिनी काम पर से लौटतीं तो रूपचंद नजर नहीं आता था. सबकुछ सामान्य था. एक दिन मालती काम से लौट कर बैठी ही थी कि अचानक कुछ लोग उस के घर में घुस आए और चिल्लाते हुए बोले, ‘‘मारो साली को, डायन है यह डायन. इसी ने रामलाल के बेटे को खाया है, बिलकुल छंटी हुई डायन है यह.’’ मालती किसी को पहचानती नहीं थी. हां, उन में से एक रूपचंद के साथ अकसर नजर आया करता था. वह चिल्लाते हुए बोली, ‘‘आप लोग कौन हैं? कौन रामलाल का बेटा? आप लोग क्या कह रहे हैं, मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा है.’’ लेकिन उस की बात कोई नहीं सुन रहा था. वे दनादन उस पर डंडे, जूताचप्पल बरसाने लगे. इतने में कामिनी भी काम पर से वापस आ गई. वह रोनेचिल्लाने लगी, ‘‘आप लोग मेरी मां को क्यों मार रहे हैं? कौन हैं आप लोग?’’

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पाखंड का अंत : बिंदु ने कैसे किया बाबा का खुलासा

बिंदु के मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे, पर मरने से पहले वे बिंदु का रिश्ता भमुआपुर के चौधरी हरिहर के बेटे बिरजू से कर गए थे.

उस समय बिंदु 2 साल की थी और बिरजू 5 साल का. बिंदु के मातापिता के मरने के बाद उसे उस के चाचा ने पालापोसा था.

बिंदु के चाचा बहुत ही नेकदिल इनसान थे. उन्होंने बिंदु को शहर में रख कर पढ़ायालिखाया था. यही वजह थी कि 17वें साल में कदम रख चुकी बिंदु 12वीं पास कर चुकी थी.

बिरजू के घर से गौने के लिए कई प्रस्ताव आए, लेकिन बिंदु के चाचा ने उन्हें साफ मना कर दिया था कि वे गौना उस के बालिग होने के बाद ही करेंगे.

उधर बिरजू भी जवान हो गया था. उस का गठीला बदन देख कर गांव की कई लड़कियां ठंडी आहें भरती थीं. पर  बिरजू उन्हें घास तक नहीं डालता था.

‘‘अरे, हम पर भले ही नजर न डाल, पर शहर जा कर अपनी जोरू को तो ले आ,’’ एक दिन चमेली ने बिरजू का रास्ता रोकते हुए कहा.

‘‘ले आऊंगा. तुझे क्या? चल, हट मेरे रास्ते से.’’

‘‘क्या तेरी औरत के संग रहने की इच्छा नहीं होती? कहीं वो तो नहीं है तू…?’’ चमेली ने एक आंख दबा कर कहा, तो उस की हमउम्र सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘चमेली, ज्यादा मत बन. मैं ने कह तो दिया, मुझे इस तरह की बातें पसंद नहीं हैं,’’ कहते हुए बिरजू ने आंखें तरेरीं, तो वे सब भाग गईं.

उधर बिंदु की गदराई जवानी व अदाएं देख कर स्कूल के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे.

गोरा बदन, आंखें बड़ीबड़ी, उभरी हुई छाती… जब बिंदु अपने बालों को झटकती, तो कई मजनू आहें भरने लगते.

बिंदु को भी सजनासंवरना भाने लगा था. जब कोई लड़का उसे प्यासी नजरों से देखता, तो वह भी तिरछी नजरों से उसे निहार लेती.

बिंदु के रंगढंग और बिरजू के घर वालों के बढ़ते दबाव के चलते उस के चाचा ने गौने की तारीख तय कर दी और उसी दिन बिरजू आ कर अपनी दुलहन को ले गया.

शहर में पलबढ़ी बिंदु को गांव में आ कर थोड़ा अजीब तो लगा, पर बिरजू को पा कर वह सबकुछ भूल गई.

बिंदु को बहुत चाहने वाला पति मिला था. दिनभर खेत में जीतोड़ मेहनत कर के जब शाम को बिरजू घर आता, तो बिंदु उस का इंतजार करती मिलती.

रात होते ही मौका पाकर बिरजू बिंदु को अपनी मजबूत बांहों में कस कर अपने तपते होंठ उस के नरम गुलाबी होंठों पर रख देता था.

कब 2 साल बीत गए, पता ही नहीं चला. बिंदु और बिरजू अपनी हसीन दुनिया में खोए हुए थे कि एक दिन बिंदु की सास अपने पति से पोते की चाहत जताते हुए बोलीं, ‘‘बहू के पैर अभी तक भारी क्यों नहीं हुए?’’

सचाई तो यह थी कि यह बात घर में सभी को चुभ रही थी.

‘‘सुनो,’’ एक दिन बिरजू ने बिंदु के लंबे बालों को सहलाते हुए पूछा, ‘‘हमारा बच्चा कब आएगा?’’

‘‘मुझे क्या मालूम… यह तो तुम जानो,’’ कहते हुए बिंदु शरमा गई.

‘‘मां को पोते का मुंह देखने की बड़ी तमन्ना है.’’

‘‘और तुम्हारी?’’

‘‘वह तो है ही, मेरी जान,’’ बिरजू ने बिंदु को खुद से सटाते हुए कहा और बत्ती बुझा दी.

‘‘मुझे लगता है, बहू में कोई कमी है. 3 साल हो गए ब्याह हुए और अभी तक गोद सूनी है. जबकि अपने बिरजू के साथ ही गोपाल का गौना हुआ था, वह तो 2 बच्चों का बाप भी बन गया है,’’ एक दिन पड़ोस की काकी घर आईं और बोलीं.

बिंदु के कानों तक जब ऐसी बातें पहुंचतीं, तो वह दुखी हो जाती. वह भी यह सोचने पर मजबूर हो जाती कि आखिर हम पतिपत्नी तो कोई ‘बचाव’ भी नहीं करते, फिर क्या वजह है कि

3 साल होने पर भी मैं मां नहीं बन पाई?

इस बार जब वह अपने मायके गई, तो उस ने लेडी डाक्टर से अपनी जांच कराई. पता चला कि उस की बच्चेदानी की दोनों नलियां बंद हैं. इस वजह से बच्चा ठहर नहीं रहा है.

यह जान कर बिंदु घबरा गई.

‘‘क्या अब मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?’’ डाक्टर से पूछने पर बिंदु का गुलाबी चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘ऐसी बात नहीं है. आजकल विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है. तुम जैसी औरतें भी मां बन सकती हैं,’’ डाक्टर ने कहा, तो बिंदु को चेहरा खिल उठा.

गांव आ कर उस ने बिरजू को सारी बात बताई और कहा, ‘‘तुम्हें मेरे साथ कुछ दिनों के लिए शहर चलना होगा.’’

‘‘शहर तो हम लोग बाद में जाएंगे, पहले तुम आज शाम को बंगाली बाबा के आश्रम में जा कर चमत्कारी भभूत का प्रसाद ले आना. सुना है कि उस के प्रसाद से कई बांझ औरतों के बच्चे हो गए हैं,’’ बिरजू बोला.

‘‘यह तुम कैसी अनपढ़ों वाली बातें कर रहे हो? तुम्हें ऐसा करने को किस

ने कहा?’’

‘‘मां ने.’’

बिंदु ने कहा, ‘‘देखिए, मांजी तो पुराने जमाने की हैं, इसलिए वे इन बातों पर भरोसा कर सकती हैं, पर हम तो जानते हैं कि ये बाबा वगैरह एक नंबर के बदमाश होते हैं. भोलीभाली औरतों को चमत्कार के जाल में फंसा कर…

‘‘नहीं, मैं तो नहीं जाऊंगी किसी के पास,’’ बिंदु ने बहुत आनाकानी की, पर उस की एक न सुनी गई.

बिंदु समझ गई कि अगर उस ने सूझबूझ से काम नहीं लिया, तो उस का घरसंसार उजड़ जाएगा. उस ने मजबूती से हालात का सामना करने की ठान ली.

बाबा के आश्रम में पहुंच कर बिंदु ने 2-3 औरतों से बात की, तो उस का शक सचाई में बदल गया.

उन औरतों में से एक ने उसे बताया, ‘‘बाबा मुझे अपने आश्रम के अंदरूनी हिस्से में ले गया, जहां घना अंधेरा था.’’

‘‘फिर क्या हुआ तुम्हारे साथ?’’

‘‘पहले तो बाबा ने मुझे शरबत जैसा कुछ पीने को दिया. शरबत पी कर मैं बेहोश हो गई और जब मैं होश में आई, तो ऐसा लगा जैसे मैं ने बहुत मेहनत का काम किया हो.’’

‘‘और भभूत?’’

‘‘वह पुडि़या यह रही,’’ कहते हुए महिला ने हाथ आगे बढ़ा कर भभूत की पुडि़या दिखाई, तो बिंदु पहचान गई कि वह केवल राख ही है.

अगले दिन बिंदु फिर आश्रम में गई, तभी एक सास अपनी जवान बहू को ले कर वहां आई. उसे भी बच्चा नहीं ठहर रहा था.

बाबा ने उसे अंदर आने को कहा. उस के बाद बिंदु की बारी थी, पर जैसे ही वह औरत बाबा के साथ अंदर गई, बिंदु भी नजर बचा कर अंदर घुस गई.

बाबा ने उस औरत को कुछ पीने को दिया. जब वह बेहोश हो गई, तो बाबा ने उस के कपड़े हटा कर…

बिंदु यह सब देख कर हैरान रह गई. उस ने इरादे के मुताबिक अपने कपड़ों में छिपाया हुआ कैमरा निकाला और कई फोटो खींच लिए.

वह औरत तो बेहोश थी और बाबा वासना के खेल में मदहोश था. भला कैमरे की फ्लैश पर किस का ध्यान जाता.

कुछ दिनों बाद बिंदु ने भरी पंचायत में थानेदार के सामने वे फोटो दिखाए. इस से पंचायत में खलबली मच गई.

बाबा को उस के चेलों समेत हवालात में बंद कर दिया गया, पर तब तक अपने झूठे चमत्कार के बहाने वह न जाने कितनी ही औरतों की इज्जत लूट चुका था. खुद संरपच की बेटी विमला भी

उस पाखंडी के हाथों अपनी इज्जत लुटा चुकी थी.

पूरे गांव में बिंदु के हौसले और उस की सूझबूझ की चर्चा हो रही थी. जिस ने न केवल अपनी इज्जत बचा ली थी, बल्कि गांव की बाकी मासूम युवतियों की जिंदगी बरबाद होने से बचा ली थी.

शहर जा कर बिंदु ने डाक्टर से अपना इलाज कराया और महीनेभर बाद गांव लौटी.

तीसरे महीने जब वह उलटी करने के लिए गुसलखाने की तरफ दौड़ी, तो बिरजू की मां व पूरे घर वालों का चेहरा खुशी से खिल उठा.

ब्लैकमेलर: कौन था वह अनजान आदमी

बैडरूमकी दीवार पर मर्फी रेडियो के पोस्टर बौय का फोटो आज भी मिलता है. जितना खूबसूरत बच्चा उतनी ही खूबसूरत अदा से मुसकराते हुए होंठों पर उंगली रखे पोज में रंगीन फोटो. यह फोटो शिखा के बैडरूम में पिछले 4 सालों से लगा था. सास

ने कहा था कि सुंदर बच्चे का फोटो देखने से बच्चा भी सुंदर होगा. बच्चे की राह देखतेदेखते पिछले साल उस की सास चल बसीं.

खानापीना खत्म कर शिखा नाइट लाइट की मध्यम रोशनी में मर्फी बौय को देखे जा रही थी. तभी पति अमर ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा, ‘‘मैं ने डाक्टर से अपौइंटमैंट ले ली है. अब हमें चल कर टैस्ट करा लेना चाहिए. देखें डाक्टर क्या कहता है.’’

‘‘हां, पर यह पहले होता तो अम्मांजी की इच्छा पूरी होने की उम्मीद तो जरूर रहती.’’

‘‘आज से पहले डाक्टर ने कभी दोनों को टैस्ट करने के लिए नहीं कहा था… तुम्हारी सहेली जो डाक्टर है, उस ने भी कहा था कि कभीकभी प्रैगनैंसी में देर हो जाती है. वैसे हम ने भी

1 साल तक परहेज बरता था.’’

अमर ने ग्रैजुएशन के बाद एक प्राइवेट कंपनी में स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी जौइन कर ली थी. वह स्टेट लैवल बौक्सिंग चैंपियन

था. अच्छीखासी पर्सनैलिटी थी अमर की. औफिस में उस के दोस्त उस से कहते भी थे, ‘‘अरे यार बौक्ंिसग रिंग में तो तुम चैंपियन हो. अब अपनी गृहस्थी जमाओ… कम से कम अपने जैसा बलवान, हृष्टपुष्ट एक फ्यूचर चैंपियन तो पैदा करो.’’

‘‘वह भी हो जाएगा… जल्दी क्या है?’’ अमर कहता.

अब शादी के 5 साल बाद शिखा और अमर दोनों ने डाक्टर से इस विषय पर सलाह लेने की जरूरत महसूस की. डाक्टर ने दोनों के कुछ टैस्ट किए और फिर 2 दिनों के बाद जब वे मिलने गए तो डाक्टर बोला, ‘‘आप की रिपोर्ट्स तैयार हैं. शिखा की रिपोर्ट्स नौर्मल हैं. उन में मां बनने के सभी लक्षण हैं, पर…’’

‘‘पर क्या डाक्टर?’’ शिखा ने बीच में डाक्टर की बात काट कर पूछा.

‘‘आई एम सौरी, बट मुझे कहना ही होगा कि अमर पिता बनने के योग्य नहीं हैं.’’

कुछ पल डाक्टर के कैबिन में सन्नाटा रहा. फिर शिखा ने कहा, ‘‘पर डाक्टर आजकल मैडिकल साइंस इतनी तरक्की कर चुकी है… कोई मैडिसिन या उपाय तो होगा?’’

‘‘हां है क्यों नहीं… आईवीएफ तकनीक

से आप मां बन सकती हैं आजकल यह बहुत

ही आसान हो गया है. किसी सक्षम पुरुष के शुक्राणु का इस्तेमाल कर आप बच्चे को जन्म दे सकती हैं.’’

‘‘डाक्टर, इस के अलावा और कोई उपाय नहीं है?’’

‘‘सौरी, इस के अलावा एक ही उपाय बचता है कि आप किसी बच्चे को गोद ले लें. आप लोग ठीक से विचार कर के बता दें… मैं थोड़ी देर में आता हूं. अगर आप कुछ और समय चाहते हैं, तो आप अपनी सुविधा से अपना फैसला ले सकते हैं.’’

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शिखा और अमर दोनों ने कुछ देर तक डाक्टर के क्लीनिक में बैठेबैठे विचार किया कि अब और देर करने से कोई लाभ नहीं होगा और बच्चा आईवीएफ तकनीक से ही होगा. शिखा ने मन में सोचा कि इस से उसे मातृत्व का अनुभव भी होगा. फिर दोनों ने डाक्टर को अपना फैसला बताया.

डाक्टर बोला, ‘‘वैरी गुड. आप के कुछ और टैस्ट होंगे. मेरे क्लीनिक में कुछ डोनर्स के सैंपल्स हैं. देख कर 1-2 दिन में आप को खबर दूंगा. कोई बड़ा प्रोसैस नहीं है. जल्द ही आप का काम हो जाएगा.’’

1 सप्ताह के अंदर ही शिखा आईवीएफ तकनीक की देन से गर्भवती हुई. डाक्टर ने शिखा को नियमित चैकअप कराते रहने को कहा.

कुछ दिनों के बाद जब अमर ने बड़ी शान से औफिस में दोस्तों से कहा कि वह पिता

बनने वाला है, तो एक दोस्त ने कहा, ‘‘आखिर हमारे चैंपियन ने बाजी मार ली. अब तुम्हें हम लोगों का मुंह मीठा कराना होगा.’’

दोस्तों के कहने पर औफिस की कैंटीन में ही उन्हें मिठाई खिलाई. दोस्तों ने उस से कहा, ‘‘इस छोटीमोटी पार्टी से तुम बचने वाले नहीं हो. हम लोगों को सपरिवार पार्टी देनी होगी.’’

‘‘ठीक है, वह भी होगी.’’

करीब 4 महीने बाद डाक्टर ने शिखा से कहा, ‘‘आप के बच्चे की ग्रोथ बिलकुल ठीक है. अब आप निश्चिंत रहें. आप का बच्चा स्वस्थ और हृष्टपुष्ट होगा.’’

इस खुशी में उस दिन रात अमर ने अपने घर पर दोस्तों को सपरिवार आमंत्रित किया. शिखा भी घर पर पार्टी की तैयारी में लगी थी. उसी समय कौल बैल बजी. उस ने दरवाजा खोला तो एक आदमी बाहर खड़ा था. वह बोला, ‘‘नमस्ते मैडम.’’

‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं, पर लगता है पहले कहीं देखा है… अच्छा बोलिए क्या काम है? अभी साहब घर पर नहीं हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं है, मुझे सिर्फ आप ही से काम है.’’

‘‘मुझ से? मुझ से भला क्या काम हो सकता है आप को?’’

‘‘मैडम, आप के पेट में जो बच्चा है वह मेरा है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो? गैट लौस्ट,’’ बोल कर शिखा दरवाजा बंद करने लगी.

उस आदमी ने हाथ से दरवाजा पकड़ कर कहा, ‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुनिए वरना बाद में शर्मिंदगी होगी और पछताना पड़ेगा. अमर बहुत शान से पार्टी दे रहा है बाप बनने की खुशी में. मैं पार्टी के बीच में ही आ कर सब को बताऊंगा कि यह बच्चा अमर का नहीं, मेरा है. उस की सारी मर्दानगी की हवा निकाल दूंगा मैं.’’

शिखा और अमर दोनों ने आईवीएफ की बात छिपा रखी थी और अभी तक सभी से बता रखा था कि यह बच्चा उन का अपना है. वह डर गई और फिर बोली, ‘‘आखिर तुम क्या चाहते हो? हमें परेशान कर के तुम्हें क्या मिलेगा?’’

‘‘मुझे और कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ

क्व2 लाख दे दीजिए. मैं अपनी जबान बंद रखूंगा.’’

‘‘इतनी बड़ी रकम हम लोग तुम्हें नहीं दे सकते हैं.’’

‘‘देखिए, पैसे तो आप को देने ही होंगे, हंस कर या रो कर… आज नहीं तो कल… अब आप बताएं मैं रात में पार्टी में आऊं या नहीं.’’

शिखा कुछ देर सोचने लगी, फिर बोली, ‘‘अभी मेरे पास मुश्किल से क्व2 हजार हैं. उन्हें आप को दे रही हूं.’’

‘‘ठीक है, आप अभी वही दे दीजिए. बाकी आप एकमुश्त देंगी… मुझे डिलिवरी के पहले पूरी रकम मिल जानी चाहिए.’’

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शिखा ने उस आदमी को क्व2 हजार देते हुए कहा, ‘‘अभी इन्हें रखो. बाकी के लिए मैं अमर से बात करती हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं 2 दिन बाद फिर आऊंगा.’’

उस रात पार्टी के बाद शिखा ने अमर को ब्लैकमेलर वाली बात बताई तो अमर बोला,

‘‘क्व2 लाख हमारे लिए बहुत बड़ी रकम होती है. कहां से लाऊंगा… उस के लिए मुझे कर्ज लेना होगा… पर यह तो ब्लैकमेलिंग हुई… उसे हमारा पता किस ने दिया होगा?’’

‘‘मुझे लगता है उस आदमी को कभी मैं ने डाक्टर के क्लीनिक में देखा है.’’

‘‘डाक्टर ऐसा नहीं कर सकता है, फिर भी एक बार मैं उस से बात करता हूं.’’

दूसरे दिन अमर डाक्टर के पास पहुंचा तो डाक्टर ने कहा, ‘‘हम लोग ऐसी सूचनाएं गुप्त रखते हैं. इसीलिए हम 3 शपथ पत्र तैयार करते हैं- पहला आईवीएफ के लिए आप दोनों की सहमति का, दूसरा यह कि आप लोग कभी डोनर के बारे में जानकारी नहीं लेंगे और अगर किसी तरह से आप को यह मालूम भी हो जाए तो आप इसे किसी को नहीं बताएंगे और साथ ही आप के बच्चे का डोनर की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा.’’

‘‘हां, हमें याद है पर, तीसरा शपथपत्र कौन सा है?’’

‘‘तीसरा हम डोनर से लेते हैं कि वह अपना अंश स्वेच्छा से दे रहा है और उसे यह जानने का हक नहीं होगा कि उस का अंश किसे दिया गया. अगर किसी तरह उसे पता चल भी जाए तो वह इसे किसी को नहीं बताएगा और होने वाले बच्चे पर उस का कोई अधिकार नहीं होगा.’’

‘‘पर शिखा ने कहा है कि उस आदमी को शायद पहले आप के क्लीनिक में देखा है. कहीं आप का ही कोई स्टाफ तो उस से मिला नहीं है?’’

‘‘हम पूरी सावधानी बरतते हैं, पर स्वार्थवश इस के लीक होने की संभावना हो सकती है,’’ डाक्टर बोला.

‘‘हम से गलती सिर्फ इतनी हुई है कि हम ने किसी से इस तकनीक की बात न कह कर इसे अपना बच्चा बताया है,’’ अमर बोला.

‘‘खैर, आप आगे भी यह बता सकते हैं.’’

‘‘नहीं डाक्टर, इट्स टू लेट… वह ब्लैकमेल कर रहा है… लगता है हमें पैसे देने ही होंगे.’’

डाक्टर कुछ देर सोचने के बाद बोला, ‘‘आप उसे एक पैसा भी नहीं देंगे. आप लोग खासकर शिखाजी को थोड़ी होशियारी से काम लेना होगा और जरा साहस भी दिखाना होगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘देखिए 2 रास्ते हैं- या तो अबौर्शन

करवा लें या…’’

‘‘प्लीज डाक्टर अबौर्शन की बात न कीजिए… शिखा टूट जाएगी.’’

‘‘मैं भी यही चाहता हूं… शिखाजी से कहें कि जब वह आदमी पैसों के लिए आए तो बिलकुल न डरें, बल्कि बोल्ड हो कर उसे फेस करें.’’

‘‘वह किस तरह?’’

‘‘अगली बार जब वह आए तो शिखाजी को बोलना होगा कि हां, मुझे अब पता चल गया है कि मेरा रेप तुम ने ही किया था और उसी के चलते मैं प्रैगनैंट हूं. अब मैं पुलिस को सूचित करने जा रही हूं. यह बात उसे धमकाते हुए बोल्डली कहनी होगी.’’

2 दिन बाद वह आदमी बाकी के रुपए लेने आने वाला था. शिखा ने उस दिन अमर को छुट्टी लेने को कहा, क्योंकि उसे डर था कहीं वह आदमी उस पर हमला न कर बैठे.

ठीक 2 दिन बाद ब्लैकमेलर जब पैसे मांगने आया तो शिखा ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मैं ने भी पता किया है, मेरे गर्भ में तुम्हारा ही अंश है… उस दिन जो तुम ने मेरा बलात्कार किया था उसी का नतीजा है यह. बलात्कार के दिन तुम ने नकाब से चेहरा ढक रखा था, मैं पहचान नहीं सकी थी, पर आज तुम स्वयं चल कर मेरे सामने आए हो, इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. मैं ने उस दिन रुपए देने से पहले सैल फोन से तुम्हारा फोटो भी खींच रखा है. अब आसानी से पुलिस तुम्हें पकड़ सकती है.’’

पासा पलटते देख वह आदमी गिड़गिड़ाने लगा और बोला, ‘‘मैडम, आप ऐसा न

करें, मैं जेल चला जाऊंगा, मैं भी बालबच्चेदार आदमी हूं.’’

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‘‘फिर तुम मेहनत कर क्यों नहीं कमाते हो… चलो मेरे क्व2 हजार वापस करो.’’

वह आदमी अपनी जेब से क्व5 सौ का एक नोट शिखा को देते हुए बोला, ‘‘मैडम, अभी मेरे पास इतने ही हैं… इन्हें रख लो. बाकी मैं जल्द ही लौटा दूंगा.’’

शिखा ने नोट उसे लौटाते हुए कहा, ‘‘इस से अपने बच्चों के लिए खिलौने और मिठाई मेरी तरफ से दे देना. बेहतर होगा कि तुम आगे से इस तरह के गलत काम न करने का वादा करो.’’

नोट वापस ले कर ब्लैकमेलर वहां से तुरंत खिसक लिया.

उस के जाने के बाद शिखा ने पति से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सचमुच पुलिस को फोन किया है?’’

‘‘नहीं, एक झूठ रेप का तुम ने कहा और दूसरा झूठ मैं ने कहा… चलो बला टल गई,’’ और फिर दोनों जोर से हंस पड़े.

सीक्रेट: रौकी और शोमा के बीच क्या था रिश्ता

आज सुबह वह रोज से जरा जल्दी जाग गई. उस ने झट से दरवाजा खोला और बाहर पड़े अखबार को उठा लाई. अखबार के एकएक पन्ने को वह बारीकी से देखने लगी. तभी एक कुटिल सी मुसकान उस के होंठों पर तैर गई.

उस की मां रसोई से पुकार रही थी, ‘‘शोमा…शोमा, तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है. रसोई में आ कर ले जाओ. ’’

पर शोमा तो खबर पढ़ने में मशगूल थी. पूरी खबर पढ़ कर बोली, ‘‘मां, क्यों शोर मचा रही हो? मेरे तो कान पक गए.’’

‘‘तुम्हारे कान पक गए और मेरी जीभ में छाले न पड़े तुम्हें पुकारपुकार कर? उलटा चोर कोतवाल को डांटे… इतनी जोर से पुकारा तो तुम्हें अब सुनाई दिया,’’ शोमा की मां ने उलाहना देते हुए कहा.

‘‘मां, क्यों नाराज होती हो. अखबार पढ़ रही थी और तुम हो कि लगातार बोलबोल कर खबरों का मजा किरकिरा कर रही थीं.’’

‘‘लो जी, यह भी मेरा ही दोष? क्या मिलेगा इन खबरों से? एक तो भरी सर्दी में गरमगरम चाय बना कर दो ऊपर से इन का खबरों का मजा किरकिरा हो गया…ऐसी कौन सी खास खबर आ गई आज अखबार में कि तुम मुंह अंधेरे उठ कर सब से पहले अखबार टटोलने लगीं?’’

‘‘खबरें तो खास ही होती हैं मां. तुम मुझे बोलने का मौका दो तो मैं तुम्हें बताऊं. मुझे जल्दी से बाहर जाना है. अब तुम सुनो तो मैं आगे की कहानी कहूं?’’

‘‘हां, कहो जल्दी से.’’

‘‘मां, मेरा वह क्लासमेट है न रौकी, जो हीरो जैसा दिखता है और तुम अकसर जिस के बालों का मजाक बनाया करती हो…’’

‘‘कौन रौकी?… अरे, वह बाइक वाला? जो पहले तुम पर कुछ खास मेहरबान था?’’

‘‘हां मां, वही जो मुझ पर बहुत फिदा था. उस का ऐक्सीडैंट हो गया. अखबार में अभी खबर पढ़ी. शायद शराब पी कर बाइक चला रहा था. उस से मिलने अस्पताल जाना होगा. सोचा कालेज जाने से पहले यह काम पूरा कर दूं, वरना उस से मिलने के लिए कालेज बंक करना पड़ेगा.’’

‘‘ओह, तो क्या इतना जरूरी है तुम्हारा अस्पताल जाना? अब तो तुम से

उस की कुछ खास बोलचाल भी नहीं…’’

‘‘इसलिए तो जरूरी है मां, वरना मेरे दूसरे दोस्त सोचेंगे कि मैं मन ही मन उस से चिढ़ती हूं. जबकि मेरे मन में तो उस के लिए कुछ बुरे भाव हैं ही नहीं? मां, दुनियादारी निभाने के लिए यह सब करना पड़ता है.’’

‘‘बात तो तुम ठीक कहती हो… ठीक है तुम नहा लो मैं तुम्हारा टिफिन पैक कर देती हूं.

शोमा तैयार हो कर अस्पताल पहुंची. वहां पहले से ही कई मित्रों का जमावड़ा लगा हुआ था. रौकी ने जैसे ही शोमा को देखा, तो बिस्तर से उठने की कोशिश करते हुए बोला, ‘‘अरे, शोमा तुम.’’

‘‘लेटे रहो रौकी,’’ इतना कह वह उसके बैड के पास पहुंच गई. हाथ में फूलों का गुलदस्ता थमाया और पूछा, ‘‘कैसे हो गया यह सब?’’

‘‘क्या बताऊं…’’ इससे पहले कि रौकी कुछ बताता दूसरा दोस्त चुटकी लेते हुए बोला, ‘‘शायद बड़ी पार्टी की थी इस ने. ज्यादा ही पी ली थी. उड़ाउड़ा फील कर रहा था. बिलकुल लाइट…’’ और सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘तुम्हें पहले भी कितनी बार कहा रौकी, शराब पी कर बाइक मत चलाया करो.’’

शोमा की बात बीच में काटते हुए उस की दोस्त बोली, ‘‘अब नहीं चलाएगा. एक बार प्रसाद तो चख लिया. असल में अक्ल ठोकर खाने से ही आती है. समझाने से कौन समझता है भला,’’ उस ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा.

फिर से सब जोर का ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘शर्म नहीं आ रही तुम सब को? मैं यहां अस्पताल में बिस्तर पर पड़ा दर्द से तड़प रहा हूं और तुम ठहाके लगा रहे हो…कैसे मित्र हो तुम सब मेरे?’’

‘‘मित्र ऐसे ही होते हैं, जो दर्द में पड़े दोस्त को ठहाके लगालगा कर उस का दर्द ही भुला दें,’’ और फिर अस्पताल के कमरे में जोर का ठहाका गूंज उठा.

‘‘ओके बाय, टेक केयर रौकी. मैं चलती हूं. कुछ हैल्प चाहिए हो तो बोलना,’’ शोमा ने अपना हाथ वेव करते हुए कहा, तो रौकी ने भी मुसकराते हुए उसे वेव कर दिया. सभी दोस्त एकसुर में बोले, ‘‘बाय शोमा.’’

वहां से निकल उस ने अपनी स्कूटी कालेज के रास्ते पर दौड़ा दी. अचानक ही उस के चेहरे के भाव बदल गए. भवें कुछ तन गईं और मुंह से निकला, ‘‘बेचारा. अब कर मजा अस्पताल में 1 महीना तो रहना ही पड़ेगा बच्चू.’’

शाम को जब वह घर पहुंची तो बहुत रिलैक्स फील कर रही थी… रोज की तरह उस के चेहरे पर परीक्षा के लिए तैयारी करने की चिंता रेखाएं नहीं थीं.

उस ने कौफी बनाई और बालकनी में जा कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी.

‘‘आज जिम नहीं जाओगी क्या?’’ मां ने शोमा को बैठे देख कर पूछा.

‘‘नहीं मां.’’

‘‘क्यों?’’ मां ने ऐनक चढ़ाते हुए तिरछी नजरों से देखा. रोज तो उड़नतश्तरी बनी भागीभागी कहती हो कि कौफी बना दो मां मैं लेट हो जाऊंगी. फिर ट्रेनर चला जाता है. आज क्या खास हो गया कि इतनी बेफिक्र हो?’’

‘‘अब मैं परफैक्ट फिट हो गई हूं मां. ट्रेनर ने ही बोला. अब मैं बिना उस की ट्रेनिंग ही अपनेआप को फिट रख सकती हूं, फिजिकली और मैंटली भी.’’

‘‘फिजिकली और मैंटली भी?’’

‘‘फिजिकली तो समझ आया पर मैंटली कैसे?’’

‘‘मां तुम नहीं समझोगी. जाने दो.’’

‘‘अरे, कैसे नहीं समझूंगी? पर तुम मुझे कुछ बताओ तो समझूं न. क्या जमाना आ गया बच्चे अपने मांबाप से कुछ शेयर ही नहीं करना चाहते.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचती हो तुम मां. सब कुछ तो शेयर करती हूं मैं तुम से.’’

‘‘फिर बताती क्यों नहीं कि आज क्या खास बात है? तुम्हारे रोज के व्यवहार और आज के व्यवहार में बहुत फर्क है.’’

‘‘कैसा फर्क मां? रोज जैसे ही तो हूं.’’

‘‘तेरी मां हूं मैं. तुम्हारी नसनस पहचानती हूं. आज तुम्हारे चेहरे पर निश्ंिचतता के भाव हैं. रोज की तरह खामोशी नहीं. क्या रौकी से सुलह हो गई? तुम सुबह उस से मिलने अस्पताल गई थी न? क्या बात हुई? कैसा है वह अब? जब से उस से तुम्हारी दूरियां बढ़ीं तुम्हारे चेहरे की रंगत तो जैसे ढल ही गई… वह तो अच्छा हुआ तुम ने पत्रिकाएं व अच्छा साहित्य पढ़ना शुरू किया और जिम जा कर अपनेआप को फिट रखना शुरू किया.’’

शोमा अपनी मां की बात सुनते हुए बिलकुल खामोश थी. भावशून्य उस का चेहरा. न जाने उस की आंखें कहां खोई हुई थीं.

‘‘बेटा, बताती क्यों नहीं… क्या बात हुई रौकी से?’’ तुम्हारी मां हूं मैं और सिर्फ मां ही नहीं तुम्हारी दोस्त भी हूं.’’

‘‘मां तुम से क्या छिपाना… तुम तो मेरी धड़कन, मेरी नब्ज सब पढ़ लेती हो.’’

‘‘तुम्हें याद है मां पिछले वर्ष नए साल की पार्टी में मैं उस के साथ गई थी और पार्टी खत्म होने पर वह मुझे घर छोड़ने आया था.’’

पिछला भाग पढ़ने के लिए- सीक्रेट भाग-1

लेखक- रोचिका अरुण शर्मा

‘‘लेकिन घर छोड़ने से पहले रास्ते में उस ने एक जगह बाइक रोकी और मुझ से बोला कि मेरे दोस्त को कुछ खास पेपर देने हैं. सिर्फ 5 मिनट का काम है. वह मुझे अपने दोस्त के घर अंदर ले गया. टेबल पर कुछ कागजात रख वह रसोई में गया. उस ने स्वयं फ्रिज से निकाल कर पानी पीया और मुझे भी दिया. जब मैं ने पूछा कि तुम्हारा दोस्त कहां है रौकी तो उस ने बिना कुछ जवाब दिए पानी का गिलास मेरी तरफ बढ़ा दिया. पार्टी में हम भारी खाना खा कर, खूब नाचकूद कर आए थे. प्यास मुझे भी लगी थी, इसलिए मैं ने भी पानी पी लिया. उस के बाद मुझे चक्कर सा आने लगा.’’

‘‘जब मैं होश में आई, मेरे कपड़े खुले हुए थे और रौकी मेरे पास लेटा हुआ था. मैं ने होश में आते ही उस से खूब झगड़ा किया. खूब रोई भी पर कोई असर नहीं हुआ. और तो और उस ने मुझ से माफी मांगने की भी जरूरत नहीं समझी. उस ने मुझे नशीली ड्रिंक पिला कर मुझ से बलात्कार किया था मां.’’

‘‘क्या? और तुम मुझे अब बता रही हो?’’ मां की आंखें फटी की फटी रह गई थीं.

‘‘हां मां… उस के बाद सुबह वह मुझे घर छोड़ गया.’’

‘‘तुम ने उसी दिन क्यों नहीं बताया यह सब? मां तिलमिला उठी थी.’’

‘‘क्या फायदा मां. तुम परेशान होतीं. ’’

‘‘मैं जानती थी कि यदि मैं तुम्हें बताऊंगी तो सब से पहले तो तुम स्वयं डर जाओगी और फिर समाज, इज्जत का वास्ता दे कर मुझे भी डराओगी. लेकिन मैं इस दुर्घटना के बाद डरी नहीं मां. मैं ने रौकी से बोलचाल बंद कर दी.’’

‘‘अच्छा किया. ऐसे दोस्त का क्या फायदा?’’

‘‘मां, मुझे किताबें पढ़ने की आदत तो थी ही. सस्पैंस स्टोरीज पढ़पढ़ कर मेरे दिमाग में एक दिन खयाल आया, ‘जैसे को तैसा’ और बस मैं ने मन ही मन एक योजना बना डाली.’’

‘‘मैं ने जिम जौइन किया. वहां वेट ट्रेनिंग ले कर अपनेआप को मानसिक व शारीरिक रूप से मजबूत बनाया.’’

‘‘जिम का ट्रेनर ऐक्सरसाइज शुरू करवाने के पहले व बाद में

अकसर स्ट्रैचिंग कराया करता था. कई बार वह मेरी दोनों बांहों को पीछे मोड़ कर हाथ जुड़वाता. शुरू में मुझे तकलीफ होती थी, क्योंकि मेरे शरीर में लचक नहीं थी. वह मुझे रोज धीरेधीरे उस की प्रैक्टिस करवाता और कहता कि एक बार में जोर से स्ट्रैच न करना वरना कंधे की हड्डियां टूट जाएंगी. इस स्ट्रैचिंग के लिए हड्डियों में लाचीलापन होना जरूरी है.’’

‘‘मैं ने अपनी पहली योजना में फिर कुछ और नया जोड़ दिया. पिछले पूरे 1 वर्ष में मैं ने मन ही मन उस बलात्कार के दंश को झेला है. कैसे एक दोस्त पुरुष अपनी महिला दोस्त का बलात्कार कर सकता है, मैं तो रौकी पर पूरा भरोसा किया करती थी. तभी तो उस के साथ रात के समय पार्टी के लिए चली गई थी.’’

‘‘वही तो सोचने की बात है. देखनेबोलने में इतना सभ्य, सलीकेदार रौकी इतनी घिनौनी हरकत करेगा, सोच भी नहीं सकती थी,’’ मां ने नाकमुंह सिकोड़ कर कहा.

‘‘मां, उस ने मेरा भरोसा तोड़ा है. और न सिर्फ भरोसा, बल्कि मैं किसी और का भरोसा कर सकूं इस लायक भी न छोड़ा. अपने साथ पढ़ने वाले हर लड़के को अब मैं उसी नजर से देखती हूं. कई बार सोचती हूं कि यदि एक लड़का ऐसा है तो इस का मतलब यह नहीं कि सभी ऐसे ही होंगे. पर बारबार समझाने पर भी मन के किसी कोने में एक डर तो बैठ ही गया और इस का जिम्मेदार सिर्फ रौकी है. जिस दिन जिम ट्रेनर ने स्ट्रैचिंग के गुर सिखाए मेरा इरादा पक्का होता चला गया.’’

‘‘मैं ने रौकी से फिर से बोलचाल शुरू की. उसे व्हाट्सऐप पर फिर से मैसेज करने लगी. शुरू में तो वह आश्चर्यचकित हो गया कि मैं फिर से उस से बोलने लगी लेकिन धीरेधीरे सब नौर्मल होने लगा. मैं अपने लड़की होने के गुणों का इस्तेमाल करने लगी और उसे अपनी और आकर्षित करने के सब नुसखे अपना डाले. जब मुझे भरोसा हो गया कि अब वह मेरे प्रेम जाल में फंस गया है तब एक दिन उसे एक हौट मैसेज भेज दिया. उस मैसेज को पढ़ कर वह फिर से मुझ से अकेले मिलने को आतुर हो उठा और मैं भी यही चाहती थी. मैं ने कालेज में उस से मिल कर उस के साथ डेट फिक्स की और एक एकांत सी जगह पर पूरे दिन की पिकनिक का प्लान बना लिया. वह बहुत खुश हो गया.

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‘‘नियत दिन हम दोनों पिकनिक के लिए गए. एकांत में खूब सारी बातें की. साथ में खायापीया. नशे का शौकीन तो वह है ही सो मैं ने उसे ड्रिंक औफर किया. वह गटागट पीता गया और मेरे करीब आने लगा. मैं ने उसे अपने करीब आने से रोका भी नहीं. कुछ देर के बाद उसे अपनेआप पर कंट्रोल न रहा और मैं तो इसी वक्त का इंतजार कर रही थी. मैं ने उसे पेट के बल उलटापटका. उस के हाथ पीछे को घुमाए और पूरी ताकत के साथ जोर से घुमा दिए. कड़ककड़क की आवाज के साथ उस की हड्डियां टूट चुकी थीं.

‘‘उस के बाद मैं ने उस की बाइक उठाई, स्टार्ट की और पीछे की तरफ ले गई. वह जंगल का सुनसान रास्ता था. वहां कोई आवाजाही भी नहीं थी. मैं ने बाइक को चलती हालत में छोड़ दिया. थोड़ी देर बाइक सीधे चली और फिर घिसटती हुई सड़क के किनारे जा गिरी. उस के बाद मैं रोडवेज की बस में बैठ कर अपने घर आ गई.’’

‘‘ओह! तो तुम इसीलिए रात घर पर देर से आई थी और मैं पूरा दिन तेरी चिंता करती रही. तुझे फोन भी किया तो वह स्विच औफ दिखाता रहा.’’

‘‘हां मां, तुम ने ठीक समझा.’’

‘‘पर बेटी यह तो गुनाह है,’’ मां सिर पकड़ कर बोलीं.

‘‘हां, मां जो मैं ने किया वह गुनाह है और जो उस ने किया क्या वह धर्म था? शोमा तुनक कर बोली. उस के नथुने फूल गए थे. आंखें आग उगल रही थीं.’’

‘‘उस ने जो किया उसे वही मिला.’’

‘‘पर बेटी फिर जब तुम उस से अस्पताल मिलने गई तब वह कुछ बोला नहीं तुम से?’’

‘‘किस मुंह से बोलेगा मां? मैं सब के सामने उस से मुसकरा कर मिली.

जैसे पहले मिलती थी. सब को यह मालूम है कि हमारी सुलह हो चुकी है और जब वह अस्पताल पहुंचा वह नशे की हालात में था. आसपास के गांव के लोगों ने उसे अस्पताल पहुंचाया था. उस की बाइक रगड़ खाती हुई गिरी थी, जिस से साफ जाहिर था कि वह नशे की हालत में बाइक चला रहा था,उस का बैलेंस बिगड़ा और ऐक्सीडैंट हो गया. अखबार की खबर भी तो यही बताती है. यह देखो मां,’’ उस ने अखबार दिखाते हुए कहा.

‘‘उस के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं कि जिस से वह कह सके कि मैं उस दिन उस से मिली भी थी. इस मुलाकात को मैं ने उसे सीक्रेट रखने को कहा था. अपने दोस्तों को मैं ने बताया कि मैं 2 दिन कालेज नहीं आउंगी, क्योंकि अपने रिश्तेदार के यहां पास के गांव मे ंजा रही हूं. बाकायदा मैं ने बस के आने और जाने के टिकट भी खरीदे और उसी टिकट से मैं बस में बैठ कर वापस आई. सब से बड़ी बात तो यह है कि रौकी सब जानते हुए भी मुंह नहीं खोल सकता, क्योंकि इस से उसी की इज्जत का कचरा होने वाला है. यदि उस ने अपना मुंह खोला तो मैं उस की बलात्कार वाली पोलपट्टी खोल दूंगी. बलात्कार वाले दिन के कपड़े मैं ने संभाल कर रखे हैं मां.’’

‘‘पर बेटी तुम में ये सब करने की हिम्मत कहां से आ गई?’’

‘‘क्या करती मां, सारी जिंदगी घुटघुट कर इस दंश को झेलती? यदि यह बात किसी और से साझा करती तो दुनिया भर के ताने सुनती. लोग मुझे ही दोष देते कि आखिर इतनी रात गए मैं उस के साथ गई ही क्यों थी.

‘‘मैं जानती थी मुझे सहानुभूति तो कहीं से मिलेगी नहीं, बल्कि इस दुर्घटना का जिम्मेदार भी मुझे ही ठहराया जाएगा. सिर्फ चेहरे की ही रंगत नहीं मां, मेरी आत्मा को भी लहूलुहान किया था रौकी ने. आज मुझे उस पुराने दर्द से मुक्ति मिली है.

‘‘न जाने कितनी मासूम बच्चियां और महिलाएं इस दंश को झेलती होंगी और न जाने कितनी अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेती होंगी? तो फिर मैं भी उन्हीं महिलाओं के नक्शेकदम पर चलूं? जिस ने पाप किया फल भी वही भुगते. सो जैसा उस ने किया वैसा उस ने पाया. मैं अपनेआप को इस में दोषी नहीं समझती हूं मां और तुम भी मुझ पर दोष मढ़ने की कोशिश न करना. हां, एक बात और… यह बात मेरे और आप के बीच रहनी चाहिए.’’

इस के बाद जो होगा मैं उस से भी निबट लूंगी. बस तुम्हारा दिया हौसला चाहिए.’’

मां ने उसे सीने से लगा लिया था और वह आंसू बहाती हुई मुसकरा रही थी.

‘‘शोमा का हौट मैसेज पढ़ कर रौकी उस से अकेले में मिलने को आतुर हो उठा…’’

चरित्र: क्यों देना पड़ा मणिकांत को अपने चरित्र का प्रमाण

लेखक- अनिल के. माथुर

‘‘उफ, इसे भी अभी ही बजना था,’’ आटा सने हाथों से ही मधु ने दरवाजा खोला. सामने मणिकांत खड़ा था, जो उसी के कालिज में लाइब्रेरी का चपरासी था.

‘‘तुम…’’ बात अधूरी छोड़ मधु रोते विशू को उठाने लपकी मगर अपने आटा सने हाथ देख कर ठिठक गई. परिस्थिति को भांपते हुए मणिकांत ने अपने हाथ की पुस्तकें नीचे रखीं और विशू को गोद में उठा कर चुप कराने लगा.

‘‘मैं अभी आई,’’ कह कर मधु हाथ धोने रसोई में चली गई. एक मिनट बाद ही तौलिए से हाथ पोंछते हुए वह फिर कमरे में आई और मणिकांत की गोद से विशू को ले लिया.

‘‘मैडम, आप ये पुस्तकें लाइब्रेरी में ही भूल आई थीं,’’ पुस्तकों की ओर इशारा करते हुए मणिकांत ने कुछ इस तरह से कहा मानो वह अपने आने के मकसद को जाहिर कर रहा हो.

मधु को याद आया कि पुस्तकें ढूंढ़ कर जब वह उन्हें लाइब्रेरियन से अपने नाम इश्यू करवा रही थी तभी उस का मोबाइल बज उठा था. लाइब्रेरी की शांति भंग न हो इसलिए वह बात करती हुई बाहर आ गई थी. पति सुमित का फोन था. वह आफिस के कुछ महत्त्वपूर्ण लोगों को डिनर पर ला रहे थे. मधु को जल्दी

घर पहुंचना था. जल्दबाजी में वह अंदर से पुस्तकें लेना भूल गई और सीधे घर आ गई थी.

‘‘अरे, यह तो मैं कल ले लेती, पर तुम्हें मेरे घर का पता कैसे चला?’’

‘‘जहां चाह वहां राह. किसी से पूछ लिया था. लगता है आप खाना बना रही हैं. बच्चे को तब तक मैं रख लेता हूं,’’ मणिकांत ने विशू को गोद में लेने के लिए दोनों हाथ आगे बढ़ाए तो मधु पीछे हट गई.

‘‘नहीं…नहीं, मैं सब कर लूंगी. मेरा तो यह रोज का काम है. तुम जाओ,’’ दरवाजा बंद कर वह विशू को सुलाने का प्रयास करने लगी. विशू को थपकी देते हाथ मानो उस के दिमाग को भी थपथपा रहे थे.

उस की जिंदगी कितनी भागम- भाग भरी हो गई है. बाई तो बस, बंधाबंधाया काम करती है, बाकी सब तो उसे ही देखना पड़ता है. सुबह जल्दी उठ कर लंच पैक कर सुमित को आफिस रवाना करना, विशू को संभालना, खुद तैयार होना, विशू को रास्ते में क्रेच छोड़ना, कालिज पहुंचना, लौटते समय विशू को लेना, घर पहुंच कर सुबह की बिखरी गृहस्थी समेटना और उबासियां लेते हुए सुमित का इंतजार करना.

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थकेहारे सुमित रात को कभी 10 तो कभी 11 बजे लौटते. कभी खाए और कभी बिना खाए ही सो जाते. मधु जानती थी, प्राइवेट नौकरी में वेतन ज्यादा होता है तो काम भी कस कर लिया जाता है. यद्यपि पहले स्थिति ऐसी नहीं थी. सुमित 8 बजे तक घर लौट आते थे और शाम का खाना दोनों साथ खाते थे. लेकिन जब से सुमित की कंपनी के मालिक की मृत्यु हुई थी और उन की विधवा ने सारा काम संभाला था तब से सुमित की जिम्मेदारियां भी बहुत बढ़ गई थीं और उस ने देरी से आना शुरू कर दिया था.

मधु शिकायत करती तो सुमित लाचारी से कहते, ‘‘क्या करूं डियर, आना तो मैं भी जल्दी चाहता हूं पर मैडम को अभी काम समझने में समय लगेगा. उन्हें बताने में देर हो जाती है.’’

एक विधवा के प्रति सहज सहानुभूति मान कर मधु चुप रह जाती.

शादी से पहले की प्रवक्ता की अपनी नौकरी वह छोड़ना नहीं चाहती थी. उस का पढ़ने का शौक शादी के बाद तक बरकरार था. इसलिए अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में से समय निकाल कर वह लाइब्रेरी से पुस्तकें लाती रहती थी और देर रात सुमित का इंतजार करते हुए उन्हें पढ़ती रहती. हालात से अब उस ने समझौता कर लिया था. पर कभीकभी कुछ बेहद जरूरी मौकों पर उसे सुमित की गैरमौजूदगी खलती भी थी.

उस दिन भी वह आटो में गृहस्थी का सारा सामान ले कर 2 घंटे बाद घर लौटी तो थक कर चूर हो चुकी थी. गोद में विशू को लिए उस ने दोनों हाथों में भरे  हुए थैले उठाने चाहे तो लगा चक्कर खा कर वहीं न गिर पड़े. तभी जाने कहां से मणिकांत आ टपका था.

तुरतफुरत मणिकांत ने मधु को मय सामान और विशू के घर के अंदर पहुंचा दिया था. शिष्टतावश मधु ने उसे चाय पीने के लिए रोक लिया. वह चाय बनाने रसोई में घुसी तो विशू ने पौटी कर दी. मधु उस के कपड़े बदल कर लाई तब तक देखा मणिकांत 2 प्यालों में चाय सजाए उस का इंतजार कर रहा था.

‘‘अरे, तुम ने क्यों तकलीफ की? मैं तो आ ही रही थी,’’ मधु को संकोच ने आ घेरा था.

‘‘तकलीफ कैसी, मैडम? आप को इतना थका देख कर मैं तो वैसे भी कहने वाला था कि चाय मुझे बनाने दें, पर…’’

‘‘अच्छा, बैठो. चाय पीओ,’’ मधु ने सामने के सोफे की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘अच्छा, तुम इधर कैसे आए?’’

‘‘इधर मेरा कजिन रहता है. उसी से मिलने जा रहा था कि आप दिख गईं,’’ चाय पीते हुए मणिकांत ने पूछा, ‘‘मैडम, साहब कहीं बाहर नौकरी करते हैं?’’

‘‘अरे, नहीं. इसी शहर में हैं पर दफ्तर में बहुत व्यस्त रहते हैं इसलिए घर देर से आते हैं. सबकुछ मुझे ही देखना पड़ता है,’’ मधु कह तो गई पर फिर बात बदलते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन हैं?’’

‘‘मांपिताजी हैं, जो गांव में रहते हैं. शादी अभी हुई नहीं है. थोड़ा पढ़ालिखा हूं इसलिए शहर आ कर नौकरी करने लगा. पढ़नेलिखने का शौक है इसलिए पुराने मालिक ने यहां लाइब्रेरी में लगवा दिया,’’ कहते हुए मणिकांत उठ खड़ा हुआ. मधु उसे छोड़ने बाहर आई. उसे वापस उसी दिशा में जाते देख मधु ने टोका, ‘‘तुम अपने कजिन के यहां जाने वाले थे न?’’

‘‘हां…हां. पर आज यहीं बहुत देर हो गई है. फिर कभी चला जाऊंगा.’’

उस का रहस्यमय व्यवहार मधु की समझ में नहीं आ रहा था. उसे तो यह भी शक होने लगा था कि वह अपने कजिन से नहीं बल्कि उसी से मिलने आया था.

रात को मधु ने सुमित को मणिकांत के बारे में सबकुछ बता दिया.

‘‘भई, कमाल है,’’ सुमित बोले, ‘‘एक तो बेचारा तुम्हारी इतनी मदद कर रहा है और तुम हो कि उसी पर शक कर रही हो. खुद ही तो कहती रहती हो कि मैं गृहस्थी और विशू को अकेली ही संभालतेसंभालते थक जाती हूं. कोई हैल्पिंगहैंड नहीं है. अब यदि यह हैल्पिंग- हैंड आ गया है तो अपनी शिकायतों को खत्म कर दो. चाहो तो उसे काम के बदले पैसे दे दिया करो ताकि तुम्हें उस से काम लेने में संकोच न हो.’’

‘‘हूं, यह भी ठीक है,’’ मधु को सुमित की बात जंच गई.

अब मधु गाहेबगाहे मणिकांत की मदद ले लेती. वह तो हर रोज आने को तैयार था पर मधु का रवैया भांप कम ही आता था. हां, जब भी मणिकांत आता मधु के ढेरों काम निबटा जाता. कभी बिना कहे ही शाम को ढेरों सब्जियां ले कर पहुंच जाता. मधु उसे हिसाब से कुछ ज्यादा ही पैसे पकड़ा देती. फिर वह देर तक विशू को खिलाता रहता, तब तक मधु सारे काम निबटा लेती. फिर मधु उसे खाना खिला कर ही भेजती थी.

पैसे लेने में शुरू में तो मणिकांत ने बहुत आनाकानी की पर जब मधु ने धमकी दी कि फिर यहां आने की जरूरत नहीं है तो वह पैसा लेना मान गया. विशू भी अब उस से बहुत हिलमिल गया था. मधु को भी उस की आदत सी पड़ गई थी.

मणिकांत का पढ़ने का शौक भी मधु के माध्यम से पूरा हो जाता था क्योंकि वह लाइब्रेरी से अच्छी पुस्तकें चुनने में उस की मदद करती थी. किसी पुस्तक के बारे में उसे घंटों समझाती. इस तरह अपनी नीरस जिंदगी में अब मधु को कुछ सार नजर आने लगा था.

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वह मणिकांत को छोटे भाई की तरह स्नेह करने लगी थी. मणिकांत के मुंह से भी अब उस के लिए मैडम की जगह दीदी संबोधन निकलने लगा था जिसे सुन कर मधु का मन बड़ी बहन के बड़प्पन से फूल उठता. सुमित भी खुश था क्योंकि अब उस के देर से लौटने पर भी मधु खुशी मन से उस का स्वागत करती थी. वरना पहले तो वह शिकायतों का अंबार लगा देती थी. लेकिन आश्चर्य की बात थी कि इतने लंबे समय में भी सुमित और मणिकांत का अभी तक आमनासामना नहीं हुआ था. कारण, एक तो वह छुट्टी वाले दिन नहीं आता था. दूसरे, वह कभी देर रात तक नहीं रुकता था.

सुमित को मणिकांत से मिलवाने के लिए मधु ने एक रविवार मणिकांत को लंच के समय आने को कहा. नियत समय पर मणिकांत तो पहुंच गया लेकिन आफिस से जरूरी फोन आ जाने के कारण सुमित उस के आने से पहले ही निकल गए. देर तक इंतजार कर आखिर मणिकांत बिना मिले ही चला गया जिस का मधु को भी बहुत अफसोस रहा.

इस घटना के कुछ दिन बाद मधु एक दिन कालिज पहुंची तो उसे लगा कि आज कालिज की फिजा कुछ बदली- बदली सी है. विद्यार्थी से ले कर साथी अध्यापक तक उसे विचित्र नजरों से घूर रहे थे. किसी अनहोनी की आशंका से पीडि़त मधु स्टाफरूम में जा कर बैठी ही थी कि एक चपरासी ने आ कर सूचित किया कि मैडम, प्रिंसिपल साहब आप को बुला रहे हैं. अनमनी सी वह चुपचाप उस के पीछेपीछे चल दी.

‘‘मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आप जैसी जिम्मेदार और गंभीर व्यक्तित्व वाली प्रवक्ता ने इतना घटिया कदम क्यों उठाया?’’ बिना किसी भूमिका के प्रिंसिपल ने अपनी बात कह दी.

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‘‘जी?’’ मधु बौखला उठी, ‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘कालिज के एक अदने से चपरासी मणिकांत के संग नाजायज संबंध रखते हुए आप को शरम नहीं आई? विद्यार्थियों के सम्मुख यह कैसा आदर्श प्रस्तुत कर रही हैं आप?’’

‘‘आप होश में तो हैं? इतना गंदा आरोप लगाने से पहले आप ने कुछ सोचा तो होता,’’ क्रोध के आवेश में मधु थरथर कांप रही थी.

‘‘पूरी तहकीकात करने के बाद ही मैं आप से रूबरू हुआ हूं. आप के साथी अध्यापकों और विद्यार्थियों ने कई बार आप दोनों को अकेले बातचीत करते भी देखा है.’’

‘‘क्या किसी से बात करना गुनाह है?’’

‘‘आप के पड़ोसियों ने भी पूछताछ में बताया है कि वह अकसर आप के यहां आता है और आप के पति की गैरमौजूदगी में काफी वक्त वहां गुजारता है.’’

‘‘हां, तो इस से आप जो आरोप लगा रहे हैं वह तो सिद्ध नहीं होता. मणि मेरे छोटे भाई की तरह है और हम दोनों बहनभाई की तरह ही एकदूसरे का खयाल रखते हैं,’’ मधु गुस्से में बोली, ‘‘आप मणिकांत को बुलवाइए. अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’

‘‘वह आज कालिज नहीं आया है. घर पर भी नहीं मिला. शायद भेद खुल जाने के भय से शहर छोड़ कर भाग गया है.’’

‘‘जब कोई भेद है ही नहीं तो खुलेगा क्या? हमारा रिश्ता शीशे की तरह पाकसाफ है. मेरे पति को भी मुझ पर पूरा विश्वास है. आज तक हमारे संबंधों को ले कर उन्होंने कभी कोई शक नहीं किया.’’

प्रिंसिपल मधु को ऐसे देखने लगे मानो सामने कोई पागल खड़ा हो.

‘‘क्या आप नहीं जानतीं कि आप पर चरित्रहीन होने का आरोप आप के पति ने ही लगाया है?’’

‘‘क्या?’’ मधु के लिए यह दूसरा बड़ा आघात था.

‘‘वह आप से तलाक चाहते हैं,’’ प्रिंसिपल साहब बोले, ‘‘इसी बारे में साक्ष्य जुटाने सुमितजी कल कालिज आए थे. आप तब तक घर जा चुकी थीं. उन्होंने मणिकांत से आप के अवैध संबंधों के बारे में पूछताछ की. आप की चरित्रहीनता विद्यार्थियों पर गलत प्रभाव डाले, इस से पहले मैं चाहूंगा कि आप त्यागपत्र दे दें.’’

मधु किंकर्तव्यविमूढ़ बैठी रही. उसे गहरा मानसिक आघात लगा था.

‘‘मैं आप की मनोदशा समझ रहा हूं पर मजबूर हूं. अब आप जा सकती हैं.’’

लड़खड़ाते कदमों से मधु कैसे कालिज से निकली और कैसे घर पहुंची उसे खुद होश न था. उस की दुनिया उजड़ चुकी थी. अपने केबिन में बैठ कर कंपनी की उन्नति के लिए स्ट्रेटजी रचने वाला उस का पति उस के खिलाफ इतनी बड़ी स्ट्रेटजी रचता रहा और उसे भनक तक नहीं लगी. लेकिन सुमित ने यह सब किया क्यों? क्या मणिकांत उसी का आदमी था? सोचसोच कर मधु का भेजा घूम रहा था.

लाइब्रेरी और आफिस आदि में फोन से पूछताछ करने पर मधु को पता चला कि किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के सुमित साहब ने उसे कालिज लाइब्रेरी में लगवाया था. मधु का अगला दिन भी आंसू बहाने और तहकीकात करने में बीत गया. न मणिकांत मिला और न सुमित ही घर लौटे. सुमित के मोबाइल पर घंटी जाती रहती और फिर फोन कट जाता.

मधु की भूखप्यास गायब हो चुकी थी. आंखों से नींद उड़ चुकी थी. वह छत की ओर टकटकी लगाए लेटी थी. तभी दरवाजे पर ठकठक हुई.

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‘जरूर सुमित होंगे,’ सोच कर मधु ने लपक कर दरवाजा खोला. लेकिन सामने मणिकांत को देख वह एकबारगी स्तब्ध रह गई. फिर उस का कालर पकड़ कर 2-3 थप्पड़ जमा दिए.

‘‘आस्तीन के सांप, मेरी जिंदगी बरबाद कर देने के बाद अब यहां क्या लेने आए हो?’’

‘‘दीदी वो…’’

‘‘खबरदार जो अपनी गंदी जबान से मुझे दीदी कहा…’’

‘‘दीदी, प्लीज, मेरी बात तो सुनिए. मुझे खुद नहीं पता था कि सुमित साहब के इरादे इतने भयानक हैं.’’

‘‘कब से जानते हो तुम सुमित को?’’

‘‘मैं पहले उन्हीं के आफिस में काम करता था. उन के बारे में बहुत ज्यादा तो नहीं जानता था. बस, इतना पता था कि मालिक की मौत के बाद अब साहब ही कंपनी के कर्ताधर्ता हैं. मालकिन भी उन्हीं के इशारों पर नाचती हैं.

‘‘मैं अकसर आफिस में खाली समय में पुस्तकें पढ़ा करता था. सुमित साहब मेरे इस शौक से वाकिफ थे. उन्होंने मुझे इस के लिए कभी नहीं टोका जिस के लिए मैं उन का शुक्रगुजार था. एक दिन उन्होंने मुझे अकेले में बुलाया और कहा कि मुझे उन का एक काम करना होगा. आफिस में व्यस्तता की वजह से वह अपनी बीवी यानी आप की पर्याप्त मदद नहीं कर पाते जिस से आप काफी तनाव में रहती हैं. वह मुझे आप के कालिज में लगवा देंगे. मुझे धीरेधीरे आप को विश्वास में ले कर घर और विशू की देखभाल का काम संभालना होगा. लेकिन आप को कुछ पता नहीं चलना चाहिए.’’

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‘‘ऐसा क्यों?’’ मधु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मुझे भी उन की यह बात समझ में नहीं आई थी. इसीलिए मैं ने भी यही सवाल किया था. तब उन्होंने बताया कि आप नौकर या आया रखने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि एक अनजान आदमी से आप को हमेशा घर और विशू की सुरक्षा की चिंता सताती रहेगी. इसलिए मुझे पहले जानेअनजाने आप की मदद कर आप का विश्वास जीतना होगा. इस कार्य में साहब ने मेरी पूरी मदद करने का भरोसा भी दिया क्योंकि वह आप को परेशान नहीं देख सकते थे.

‘‘उस रोज रविवार के दिन जब आप ने मुझे लंच पर साहब से मिलवाने की बात कही थी तो मुझे लगा शायद आज साहब आप के सामने अपने सरप्राइज का खुलासा करेंगे, लेकिन वह तो मेरे आने से पहले ही चले गए थे. सरप्राइज तो उन्होंने मुझे कल बुला कर दिया.

‘‘वह कंपनी की विधवा मालकिन से शादी रचा कर कंपनी के एकछत्र मालिक बनना चाहते हैं लेकिन इस के लिए उन्हें पहले आप से तलाक लेना होगा और इस के लिए उन के पास आप के खिलाफ ठोस साक्ष्य होने चाहिए. आप पर चरित्रहीनता का लांछन लगाने के लिए उन्होंने मुझे मोहरा बनाया. मैं तो यह सोच कर उन के इशारों पर चलता रहा कि एक नेक काम में मैं उन की मदद कर रहा हूं. पर छी, थू है ऐसे आदमी पर जो पैसे के लालच में इतना गिर गया है कि अपनी बीवी के चरित्र पर ही कीचड़ उछाल रहा है.’’

‘‘लेकिन उन्होंने तुम्हें कल क्यों बुलाया?’’

‘‘वह नीच आदमी चाहता है कि सचाई जानने के बाद भी मैं उस के इशारों पर काम करूं. उस ने 50 हजार रुपए निकाल कर मेरे सामने रख दिए और कहा कि वह और भी देने को तैयार है लेकिन मुझे अदालत में उस की हां में हां मिलानी होगी. बयान देना होगा कि आप चरित्रहीन हैं और आप मेरे संग…’’ शरम से मणिकांत ने गरदन झुका ली.

‘‘तो अब तुम क्या…’’ मधु ने थूक गटकते हुए बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘मेरा चरित्र उस नीच आदमी के चरित्र जितना सस्ता नहीं है, दीदी,’’ मणिकांत बोला, ‘‘पैसा होते हुए भी और पैसे के लालच में वह इतना गिर गया कि अपनी बीवी के चरित्र का सौदा करने लगा. ऐसा पैसा पा कर भी मैं क्या करूंगा जिस से इनसान इनसान न रहे, हैवान बन जाए. हालांकि बात न मानने पर उस ने मुझे जान से मारने की धमकी दी है पर मैं उसे उस के कुटिल मकसद में कामयाब नहीं होने दूंगा. इस के लिए चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े.’’

‘‘तुम्हें अपनी जान देने की जरूरत नहीं है, भाई,’’ मधु भावुक स्वर में बोली, ‘‘मुझे अब न उस आदमी की चाह है और न उस के पैसे की. इसलिए तलाक हो या न हो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं अपने विशू को ले कर यहां से बहुत दूर चली जाऊंगी. तुम भी उस की बात मान लो. पैसा सबकुछ तो नहीं होता लेकिन बहुतकुछ होता है. उस पैसे से एक नई जिंदगी शुरू करो.’’

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‘‘थूकता हूं मैं ऐसी नई जिंदगी पर. और आप यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हैं? अन्याय सहने वाला भी उतना ही दोषी है जितना कि अन्याय करने वाला. दीदी, यह पाठ भी आप ही ने तो मुझे पढ़ाया था. आप कुछ भी करें लेकिन मैं दुनिया को आप के चरित्र की सचाई बता कर रहूंगा और उस चरित्रहीन को समाज के सामने नंगा कर दूंगा.’’

आवेश से तमतमाते मणिकांत की बातों ने मधु को झकझोर कर रख दिया. उस के मानसपटल में बिजली कौंध रही थी और उस में एक ही वाक्य उभरउभर कर आ रहा था. करोड़ों की संपत्ति का स्वामी सुमित इस सद्चरित के स्वामी मणिकांत के सम्मुख कितना दीनहीन है.

Top 10 Best Crime Story In Hindi: धोखे और जुर्म की टॉप 10 बेस्ट क्राइम की कहानियां हिन्दी में

Crime Story in Hindi. इस लेख में आज हम आपको गृहशोभा की Top 10 Crime Story in Hindi 2022 की कहानियां बताएंगे. इन Crime Story में आपको समाज, परिवार और रिश्तों की आड़ में हुए धोखे और जुर्म की कहानी के बारे में बताएंगे, जिसे पढ़कर आपको थ्रिलर का एहसास होगा. साथ ही रिश्तों को लेकर सीख मिलेगी. इन Crime Stories को पढ़कर आप जीवन के कई पहलुओं से परिचित होंगे. तो अगर आप भी Crime Stories पढ़ने के शौकिन हैं तो पढ़िए गृहशोभा की Top 10 Crime Story in Hindi 2022.

1. सही रास्ता: आखिर चोर कौन था

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मुन्ना के पिता गरीब थे. उस पर जेब से इतनी बड़ी रकम के गायब होने से घर में हाहाकार मच गया. शक की सूईयां कभी मुन्ना पर तो कभी उस की अम्मा पर जातीं लेकिन चोर तो कोई और ही था.

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2. बड़ा जिन्न: क्या हुआ था सकीना के साथ

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सकीना के मां न बन पाने का कारण उस के ससुराल वाले एक जिन्न को समझ रहे थे. उस काल्पनिक जिन्न को भगाने के लिए उसे पीर साहब के पास भेजा गया. लेकिन वहां पर सकीना का सामना काल्पनिक जिन्न के बजाय एक जीतेजागते शैतान से हुआ.

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3. पिपासा: कैसे हुई थी कमल की मौत

crime story in hindi

मदन की जिंदगी में चमेली का आना किसी सुनहरी धूप से कम न था. उस पर कमल ने उस की जिंदगी को खुशियों से भर दिया था. पर कमल की रहस्यमयी मौत क्या उसे अशांत कर पाई?

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4. संपत्ति के लिए साजिश: क्या हुआ था बख्शो की बहू के साथ

crime story in hindi

मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई थी कि भड़ोले से बच जाने वाला बच्चा आज कितना सुंदर जवान, बिलकुल अपने बाप गुलनवाज की तरह लग रहा था.

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5. महबूबा के प्यार ने बना दिया बेईमान: पुष्पक ने क्या किया था

crime story in hindi

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता.

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6. बदले की आग: क्या इकबाल बेटी और पत्नी को बचा पाया

crime story in hindi

इकबाल को इस बात का एहसास था कि कि उसी की गलती से उसकी पत्नी और बेटी हुस्न के बाजार में पहुंची हैं. शायद इसी वजह से वह उन्हें वापस घर ले जाने आया था, लेकिन वे नहीं मानीं. इसके बाद जो हुआ, वह बहुत बुरा था…

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7. घुंघरू: राजा के बारे में क्या जान गई थी मौली

crime story in hindi

मौली को जब राजा की इस चाल का पता चला, तो वह मन ही मन खूब कुढ़ी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी.

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8. बहन का सुहाग: क्या रिया अपनी बहन का घर बर्बाद कर पाई

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आनंद रंजन ने बड़ी बेटी निहारिका का बीए प्रथम वर्ष में एडमिशन बडे़ शहर लखनऊ में करा दिया, जहां उस की मुलाकात राजवीर सिंह से हुई. यही मुलाकात बाद में शादी में तबदील हो गई. जब रिया अपनी बहन निहारिका के घर आई तो जीजाजी की शानोशौकत देख वैसा ही पति चाहने लगी.

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9. माहौल: क्या 10 साल बाद सुलझी सुमन की आत्महत्या की गुत्थी

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सुमन की आत्महत्या की गुत्थी ने मुझे ऐसे उलझाया कि मैं मन ही मन कई तरह के कयास लगाता रहा कि आखिर सुमन ने आत्महत्या क्यों की? लेकिन सवाल ज्यों का त्यों बना रहा. आज 10 साल बाद यह गुत्थी सुलझ पाई और मैं यह जान कर अवाक रह गया.

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10. ठूंठ से लिपटी बेल : रूपा को किसका मिला साथ

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33 वसंत देखने के बाद भी रूपा अविवाहित थी. सहारे की तलाश में भटकती रूपा को साथ मिला भी तो एक ऐसे अधेड़ ठूंठ का जिसे सिर्फ बेल से लिपटने की चाह थी.

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कातिल फिसलन: भाग 3- दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस

सलोनी की बात सुनते ही पास खड़ी महिला सिपाही ने उसे मारने के लिए हाथ ऊपर किया, लेकिन राम सिंह ने उसे रोक दिया और सलोनी से पूछा, ‘‘तो तुम्हारी उंगलियों के निशान उस छड़ पर कैसे आए?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम साहब… मुझे नहीं मालूम,’’ कहते हुए सलोनी फूटफूट कर रोने लगी. दारोगा राम सिंह बाहर निकला तो उस ने सुधीर को बच्चों के साथ थाने की बैंच पर बैठा पाया.

दारोगा राम सिंह ने सुधीर से कहा, ‘‘तुम अपने वकील से बात कर लो. अगर वकील रखने में पैसों की समस्या आ रही है तो कोर्ट में अर्जी दे देना. कोर्ट तुम को वकील मुहैया कराएगा.’’

दारोगा राम सिंह को उन लोगों से हमदर्दी होने लगी थी, क्योंकि उस ने सुखलाल का असली रूप वीडियो में देख लिया था, लेकिन सुधीर गुस्से में चिल्ला उठा, ‘‘मुझे कोई वकील नहीं करना साहब. मैं क्यों परेशान होऊं उस के लिए, जो उस सुखलाल के साथ गुलछर्रे उड़ाती थी और मुझे ही जेल भिजवा दिया था. हो गया होगा दोनों में पैसों को ले कर झगड़ा और यह खून हो गया.’’

‘‘ऐसा नहीं है सुधीर…’’ दारोगा राम सिंह ने उसे समझाया, ‘‘गैरकानूनी हथियार रखने के जुर्म में तुम्हारी जो गिरफ्तारी पहले हुई थी, वह सुखलाल ने केवल तुम्हारी बीवी को पाने के लिए साजिशन कराई थी. इस में तुम्हारी बीवी का कोई कुसूर नहीं था. वह बेचारी तो बस तुम्हारे लिए उस के आगे झुकती चली गई. वह तुम से और केवल तुम से ही प्यार करती है.’’

सुधीर हैरानी से दारोगा राम सिंह का मुंह ताकने लगा. राम सिंह ने सुखलाल के मोबाइल फोन में मिला वही वीडियो उस के आगे चला दिया.

‘‘नहींनहीं… बंद कीजिए इसे दारोगा बाबू,’’ वीडियो देखता हुआ सुधीर चिल्लाया. सलोनी के शरीर पर सुखलाल का हाथ लगने वाला सीन वह नहीं देख पाया और वहीं बैठ कर रोने लगा. सलोनी के प्रति उस का शक आंसुओं से बाहर निकल चुका था.

सुधीर बोला, ‘‘मैं तो उसी रात सुखलाल को मारने उस के कमरे में गया था साहब, जिस के अगले दिन उस की लाश मिली. उस समय वह सो रहा था, लेकिन कानूनी बंधन का डर मुझे रोकने में कामयाब हो गया और मैं घर से निकल कर पूरी रात तनाव में इधरउधर भटकता रहा.

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‘‘कल दोपहर को घर लौटने पर उस हैवान के मरने की खुशखबरी मिली. खैर, चाहे उसे मेरी सलोनी ने मारा हो या जिस ने भी, मैं उस का शुक्रगुजार हूं.’’

पिता को यों रोते देख साथ खड़े बच्चे और भी सहम गए. राम सिंह ने सुधीर को उठाया और लौकअप की ओर इशारा किया. उस का संकेत समझ कर सुधीर बेतहाशा सलोनी से मिलने भागा. सलोनी भी उसे देखते ही उस की ओर दौड़ी, लेकिन दीवार बनी सलाखों ने उस के पैर रोक दिए.

सुधीर उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘चिंता मत करना. चाहे जैसे भी हो, तुम को यहां से मैं छुड़ा कर ले जाऊंगा, वरना अपनी भी जान दे दूंगा,’’ इतना कह कर वह वहां से चल दिया.

कुछ दिन बीत गए. दारोगा राम सिंह का बचपन एक अनाथ के रूप में बीता था. मांबाप के बिना बच्चों की क्या हालत होती है, वह अच्छी तरह जानता था. सलोनी थाने में बंद थी और सुधीर वकील खोजने में. ऐसे में उस के बच्चे किस हाल में होंगे?

दारोगा राम सिंह को चिंता हुई तो वह अपनी पत्नी के साथ खानेपीने का कुछ सामान ले कर सुधीर के घर आया. उस का सोचना सही निकला और बच्चे बेसहारा जैसे घर में बैठे मिले.

दारोगा राम सिंह ने उन से पूछा, ‘‘पापा कहां हैं बेटा?’’

‘‘वे तो सुबह से बाहर गए हैं… हम को भूख लगी है, लेकिन पास वाली आंटी ने अभी तक खाना नहीं दिया,’’ बड़े वाले बेटे ने कहा.

दारोगा राम सिंह का कलेजा भर आया. उस ने अपनी बीवी की ओर देखा. राम सिंह की बीवी ने दोनों बच्चों को अपनी गोद में बिठाया और बोली, ‘‘मैं भी तो तुम्हारी आंटी हूं. देखो, मैं लाई हूं खाना.’’

वह उन को खाना खिलाने लगी. कुछ देर सकुचाने के बाद बच्चे उस से घुलनेमिलने लगे.

तभी छोटा वाला बेटा बोल पड़ा, ‘‘आंटीआंटी, मेरे भैया बहुत बहादुर हैं.’’

‘‘अच्छा, क्या किया है भैया ने?’’

‘‘भैया ने उस विलेन अंकल को नीचे गिरा दिया, जो मम्मी को आएदिन परेशान करता था.’’

दारोगा राम सिंह को उस की यह बात सुन कर झटका लगा. उस ने तुरंत उस की ओर देखा, लेकिन फिर समझदारी से काम लेते हुए बड़े वाले बेटे से पूछा, ‘‘बेटा, तुम ने ऐसा क्यों किया जो तुम्हारा यह प्यारा सा छोटा भाई बता रहा है?’’

बड़ा वाला बेटा मुसकरा कर बोला, ‘‘अंकल, मम्मी कहती हैं कि मच्छर मारने वाली दवा पीने से आदमी मर जाता है, इसलिए मैं ने वही दवा उस विलेन अंकल के जूस में मिला दी थी. छोटे भाई ने तो मेरा फोटो भी लिया था.’’

दारोगा राम सिंह के कानों में जैसे बम फूट रहे थे. बड़े वाले बेटे ने उसे मोबाइल फोन में अपना वह फोटो भी दिखाया, जिस में वह सुखलाल के शराब की बोतल को जूस की बोतल समझ के उस में लिक्विडेटर मिला रहा था.

दारोगा राम सिंह कुछ और पूछता, इस से पहले ही छोटा वाला बेटा बोला, ‘‘रात को हम ने चुपके से सीढ़ी पर कंचे रख दिए थे… विलेन अंकल रोज की तरह बाथरूम जाने के लिए बाहर आए और फिसल कर नीचे गिर गए. इस का मैं ने वीडियो भी बनाया है. मेरे भैया… बहुत बहादुर…’’ कह कर वह ताली बजाने लगा.

दारोगा राम सिंह ने वीडियो लिस्ट से जल्दी से वह वीडियो खोजा. सचमुच उस में बड़ा वाला बेटा सीढ़ी पर कंचे रखता दिख रहा था और उस के तुरंत बाद सुखलाल अपना पेट पकड़े वहां आया क्योंकि लिक्विडेटर मिली शराब पी कर सोने के बाद शायद उस की तबीयत बिगड़ रही थी. उस का पैर इसी जल्दी में कंचों पर पड़ा और वह नीचे गिर गया, जहां जमीन पर पड़ी छड़ पेट में धंस गई होगी और वह मर गया.

चूंकि छड़ों के वे टुकड़े सलोनी ने ही उधर फेंके थे, सो उन पर उस की उंगलियों के निशान भी मिल गए, इस घटना का समय बिलकुल वही था जो पोस्टमार्टम में सुखलाल की मौत का बताया गया था.

‘‘बेटा, तुम ने ऐसा क्यों किया?’’ दारोगा राम सिंह ने बड़े बेटे से पूछा.

वह लड़का बोला, ‘‘वे विलेन अंकल मम्मी को हमेशा परेशान करते थे. मैं ने बहुत बार छिप कर देखा था. उस दिन मम्मी के सिर में उन्होंने ही चोट लगा दी थी. जब मैं स्कूल से आया तो पता चला और मुझे बहुत गुस्सा आया.’’

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‘‘और यह मोबाइल फोन कहां से मिला तुम को?’’

‘‘यह नानाजी ने हम को दिया है वीडियो गेम खेलने के लिए,’’ बड़े बेटे के कहने के बाद वे दोनों बच्चे फिर खाना खाने लगे.

दारोगा राम सिंह ने अपनी पत्नी की ओर देखा. वह भी हैरान थी. उस ने पूछा, ‘‘बचपन को क्या सजा दी जाएगी?’’

‘‘बचपन किलकने के लिए होता है…’’ दारोगा राम सिंह का चेहरा अब तनाव मुक्त दिखने लगा था. वह हंसते हुए बोला, ‘‘यह केस कानून के लिए एक हादसा माना जाएगा. इन बच्चों की मां भी कुछ दिनों में घर आ जाएगी.’’

कातिल फिसलन: भाग 2- दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस

तफतीश पूरी होने तक के लिए सुखलाल के कमरे को सील कर दारोगा राम सिंह वहां से चला गया.

दोपहर को अचानक सुधीर लौट आया. सलोनी भाग कर उस से लिपट गई और पूछा, ‘‘कहां चले गए थे आप अचानक आधी रात से?’’

‘‘दुकान के लिए निकलना है मुझे…’’ सुधीर ने बेरुखी से उसे खुद से अलग करते हुए कहा.

सलोनी उसे देखती रह गई. उस ने फिर बातों का सिलसिला शुरू करना चाहा, ‘‘अरे, पुलिस आई थी यहां. सुखलाल की मौत हो गई न आज…’’

‘‘हां, मुझे पता चला है पड़ोसियों से इस बारे में,’’ सुधीर ने उसे बीच में ही टोक दिया, ‘‘तुम को पैसे की तंगी हो जाएगी, फिर अब तो…’’

सलोनी उस की बात सुन कर सन्न रह गई. सुधीर तीखे लहजे में आगे बोला, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि हम को अब किराया नहीं मिल सकेगा न.’’

इतना कह कर सुधीर अपना थैला ले कर दुकान के लिए निकल गया. सलोनी उस के कहे का मतलब अच्छी तरह समझ रही थी. वह बच्चों को अपनी बांहों में भर कर उदास मन से फिर वहीं बैठ गई.

कुछ दिन ऐसे ही बीतते रहे. उधर सुखलाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. दारोगा राम सिंह उसे पढ़ने में लगा था. सुखलाल की मौत की वजह पेट में लोहे की छड़ धंसना बताई गई थी. बाकी शरीर पर लगी चोटें जानलेवा नहीं थीं. इस के अलावा एक बात जिस ने राम सिंह को चौंका दिया, वह थी सुखलाल के शरीर में मिली जहरीली चीज की मात्रा. जहरीली चीज भी क्या थी, घरों में मच्छर भगाने के लिए काम में आने वाला लिक्विडेटर उस की शराब में मिलाया गया था.

दारोगा राम सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि इस का क्या मतलब है? लिक्विडेटर इतना ज्यादा जहरीला नहीं होता कि कोई उस का इस्तेमाल किसी को जहर दे कर मारने के लिए करे. और सुखलाल खुद उसे पीएगा नहीं, फिर यह क्या चक्कर है? फोरैंसिक और फिंगर प्रिंट रिपोर्टें भी उस के सामने थीं. उन के मुताबिक जो छड़ सुखलाल के पेट में धंसी थी, उस पर सुखलाल के अलावा एक और आदमी की उंगलियों के निशान मिले थे.

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सुखलाल पर एकसाथ इतने सारे हमले कैसे हुए? पहले शराब में जहरीली चीज दी गई, उस के बाद पेट में छड़ घोंपी गई. मारने वाले को इतने से भी संतोष नहीं मिला तो उस ने उस को ऊपर से नीचे गिरा दिया और सुखलाल ने अपने बचाव के लिए किसी को कोई आवाज क्यों नहीं दी?

दारोगा राम सिंह को समझ आने लगा कि सुखलाल की मकान मालकिन सलोनी उस से झूठ बोल रही है. उस ने गुप्त रूप से उस के पड़ोसियों से पूछताछ शुरू कर दी. बाकियों ने तो कुछ खास बात नहीं बताई लेकिन सुखलाल के कमरे की खिड़की के ठीक सामने रहने वाले छात्र विवेक ने कहा, ‘‘सर, उस

रात मैं रोज की तरह जाग कर अपने कंपीटिशन के इम्तिहान की तैयारी में जुटा था तो मैं ने सुधीर भैया को सीढि़यों से ऊपर सुखलाल चाचा के कमरे में जाते देखा था, पर वे बाहर कब आए, इस का मुझे ध्यान नहीं.’’

‘‘अच्छा,’’ राम सिंह को ऐसी ही किसी बात का शक तो पहले से था. उस ने आगे पूछा, ‘‘सुखलाल और सुधीर

की कोई दुश्मनी? वह तो किराएदार था उस का.’’

‘‘सर… वह…’’ विवेक खुल कर कुछ बोलने से बचता दिखा. राम सिंह ने उसे भरोसा दिलाया कि केस में उस का नाम नहीं आएगा.

विवेक ने डरतेडरते कहा, ‘‘सर, सुधीर भैया को शक था सुखलाल चाचा और सलोनी भाभी को ले कर…’’

दारोगा राम सिंह मुसकरा उठा कि यहां भी वही चक्कर. वह वहां से चल पड़ा. गैरकानूनी हथियार रखने के केस में सुधीर के पहले भी गिरफ्तार होने की जानकारी तो उसे अपने थाने के रिकौर्ड से मिल ही चुकी थी. वह चाहता तो सुधीर को सीधे गिरफ्तार कर सकता था, मगर वह अपने महकमे के दूसरे पुलिस वालों सा नहीं था. किसी भी केस को बिना किसी पक्षपात के हल करना उस की पहचान थी.

दारोगा राम सिंह को अब सुखलाल के मोबाइल फोन की तलाश थी. उसे वह न तो सुखलाल के कमरे में मिला था और न ही उस के कपड़ों में. अचानक उस की छठी इंद्रिय ने उस से कुछ कहा और वह उसी जगह आया जहां सुखलाल की लाश पड़ी मिली थी.

दारोगा राम सिंह ने इधरउधर खोजना शुरू किया और आखिर एक पौधे के पीछे छिपा पड़ा सुखलाल का मोबाइल फोन उसे मिल गया.

थाने आ कर दारोगा राम सिंह उसे खंगालने लगा और जल्दी ही अपने

काम की चीज उसे नजर आ गई. उस में सुखलाल और सलोनी का एक वीडियो था जो शायद सुखलाल ने चोरीछिपे बनाया था. उस में सुखलाल अपने कपड़े उतारते हुए कह रहा था, ‘बस, मुझे खुश करो, तुम्हारा पति तुरंत थाने से बाहर आ जाएगा.’

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वहीं सलोनी उस के आगे गिड़गिड़ा रही थी, ‘मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं… मुझे ऐसा काम करने को मजबूर मत कीजिए.’

लेकिन सुखलाल ने उस की एक न सुनी और अपने दिल की कर के ही उसे बिस्तर पर लिटा दिया. वीडियो को आगे देखना राम सिंह को सही नहीं लगा. वह हर औरत की इज्जत करता था. उस ने ऐसे भी कई केस देखे थे जहां औरत

ने अपने साथ हुए इस तरह के जुल्मों

का बदला खुद लिया था. उस ने अपनी इसी सोच के साथ एक बार फिर सलोनी से मिलने का फैसला किया और उस के घर पहुंचा.

‘‘दारोगा बाबू, आप यहां,’’ सलोनी उसे देख कर ठिठक गई.

‘‘डरिए नहीं… बस, आप से कुछ जानकारियां चाहिए थीं,’’ दारोगा राम सिंह उसे सहज करने के लिए बोला और सामान्य तरीके से इसी केस के सिलसिले में बातें करने लगा.

इसी बीच दारोगा राम सिंह ने अपना मोबाइल फोन सलोनी के हाथ में दिया जिस से उस की उंगलियों के निशान उस पर आ जाएं और उन का मिलान छड़ पर मिले निशानों से हो सके.

सलोनी उस की यह चालाकी समझ नहीं सकी. राम सिंह ने वापस आ कर उन निशानों की जांच कराई और इस बार फिर उस का सोचना सही निकला. छड़ पर सुखलाल के अलावा सलोनी की

ही उंगलियों के निशान थे. उस ने तुरंत सलोनी को गिरफ्तार कर लिया.

लौकअप में सलोनी दारोगा राम सिंह के सामने रोरो कर कहने लगी, ‘‘दारोगा साहब, मैं ने किसी का खून नहीं किया है. जिंदगी तो मेरी उस सुखलाल ने बरबाद की थी. मैं अकेली उस भारीभरकम आदमी को कैसे मार सकती हूं? मैं ने तो अपने घर की साफसफाई में कुछ दिनों पहले ही लोहे की छड़ों के सारे टुकड़े पास की उसी खाली जमीन में फेंक दिए थे.’’

आगे पढ़ें- दारोगा राम सिंह ने सुधीर से…

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