REVIEW: लिखावट में बिखराव के बावजूद पीरियड कहानी का बेहतरीन चित्रण ‘ग्रहण’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः जार पिक्चर्स

निर्देशकः राजन चांदेल

लेखकः सत्य व्यास के उपन्यास ‘‘चैरासी’’से प्रेरित

क्रिएटरः शैलेंद्र झा

कलाकारः पवन मल्होत्रा, जोया हुसैन, अंशुमन पुष्कर, वामिका गब्बी, टीकम जोशी, सहिदुर रहमान व अन्य.

अवधिः 45 से 55 मिनट के आठ एपीसोड,कुल अवधि छह घ्ंाटे 48 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिज्नी

लेखक सत्यव्यास ने 1984 के सिख विरोधी दंगों की पृष्ठभूमि में  एक प्रेम कहानी के साथ कुत्सित राजनीति,जांच आदि की भावनात्मक उथल पुथल वाला काल्पनिक उपन्यास ‘‘चैरासी’’ लिखा था,जिस पर निर्देशक राजन चंदेल लगभग सात घंटे की अवधि की आठ एपीसोड वाली वेब सीरीज ‘‘ग्रहण’’लेकर आए हैं.

‘ग्रहण’एक भावनात्मक रूप से आहत करने वाली कहानी है,जो 1984 के सिख विरोधी दंगों की भयानक तबाही के बीच नाटकीय रूप से चलती हुई मानवता के उत्कर्ष को छूती है,जहां अब 1984 के दंगो को राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते हवा देने वाला इंसान ही उस गंदगी को खत्मकर राजनीति को भी साफ करने पर आमादा है.

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कहानीः

कहानी 2016 में रांची से शुरू होती है और बार बार 1984 के बोकारो आती जाती रहती है. कहानी 2016 में रांची से शुरू होती है,जहां गुरूसेवक(पवन मल्होत्रा ) अपनी बेटी व एसपी अमृता सिंह (जोया हुसेन ) के साथ रह रहे हैं. अम्रता सिंह का प्रेमी कार्तिक (नंदिश संधू ) कनाडा से आया हुआ है, दोनों के बीच प्रेम कीड़ा शुरू होते ही पत्रकार संतोष जायसवाल का फोन आता है. अमृता तुरंत कार्तिक को वैसे ही छोड़कर भागती है,मगर संतोष मारा जाता है.

शक के तौर पर अमृता सिंह दो लोगों को गिरफ्तार करती है,जिन्हे बाद में डीआईजी केशर छोड़ देते हैं. उधर मुख्यमंत्री केदार भगत( सत्यकाम आनंद  )अपने प्रतिद्वंदी संजय सिंह उर्फ चुन्नू (टीकम जोशी )को फंसाने के लिए डीआईजी केशर को आदेश देते हंै कि वह 1984 के बोकारो कांड की जांच के लिए एआईटी बनाएं. केशर एसआईटी बनाकर जांच अधिकारी डीएसपी विकास मंडल(सहिदुर रहमान  ) को बना देते हैं. फिर डीआई केशर,अमृता सिंह को एसआईटी का प्रमुख बना देते हैं.

विकास मंडल,अमृता को 1984 के बोकारो दंगे के दौरान लोगों के घरो में आग लगा रहे रिषि रंजन की एक तस्वीर देता है. तस्वीर देखकर अमृता परेशान हो जाती है. क्यांेकि यह तस्वीर तो उनके पिता गुरूसेवक की है और उसने अपने पिता को लोगों की मदद करते हुए देखती आयी है. वह अपने पिता से सवाल करती है,पर पिता चुप रहते हैं. लेकिन अब अमृता भी सच जानना चाहती है कि अगर  दंगे के समय उसके पिता थे,तो क्या वजह थी.

इसी के साथ अब कहानी तीन स्तर पर 2016 के रांची व 1984 के बोकारो में चलती रहती है. एक तरफ 1984 में रिषि रंजन(अंशुमन पुष्कर) और मंजीत कौर छाबड़ा उर्फ मनु(वामिका गब्बी )की प्रेम कहानी चलती है,जो कि संजय सिंह की नफरत भरी महत्वाकांक्षा से घिरी हुई है. जबकि रिषि रंजन का दोस्त झंडू भी मनू से प्यार करता है. तो दूसरी तरफ अमृता व विकास मंडल बोकारो में जब लोगों से मिलते हैं,तो वह 31 अक्टूबर व एक नवंबर 1984 की घटना व उससे जुड़े लोगों के बारे में बताते हैं.

31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के बाद बोकारो की स्टील फैक्टरी के प्रबंधक द्वारा ही कत्लेआम की साजिश रची गयी थी,जिसमें रिषि रंजन,झंडू सहित कई युवक शामिल हुए थे. तीसरे स्तर पर वर्तमान समय में 1984 के दंगो से जुड़े रहे राजनेेताओं की एसआईटी जांच की आड़ में एक दूसरे को पटकनी देने की राजनीतिक शतरंजी चालें चली जाती रहती हंै.

लेखन व निर्देशनः

कुछ जख्म कभी नही भरते. वह सतह के नीचे सदैव फड़फड़ाते रहते हैं. और इन जख्मों की छाप उसकी अगली पीढ़ी पर भी पड़ती ही है. ऐसे ही जख्म और मानव द्वारा रचे गए प्रलय के घटनाक्रम पर यह वेब सीरीज बनायी गयी है,जो कि इंसानों के अलावा सदैव राजनीतिक हलकों में भी गर्म रहती है,तो वहीं महज राजनीतिक स्वार्थ की रोटी सेंकने के लिए कुछ नेताओं ने जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिलाया था,वह सब कुछ बहुत से लोगों के दिलों में जिंदा है.

कुछ दिन पहले ही एक सिख फिल्मकार से हमारी बात हुई,तो उसने कबूला कि उनके माता पिता को किस तरह से पंजाब मंे सब कुछ छोड़कर गुजरात में शरण लेनी पड़ी थी और गुजरात में भी उन्हे आतंकवादी कहा जाता था. पर वेब सीरीज में वह दर्द उसी वेग के साथ नही उभरता. जबकि मानवता का चरमोत्कर्ष जरुर है. कुत्सित राजनीति पर भी खुलकरकुछ भी कहने से फिल्मकार बचते हुए नजर आए हैं,यानीकि वह पलायनवादी हो गए हैं. परिणामतः कुछ बातें अस्पष्ट रह जाती हैं. प्रेम कहानी में भी ऐसा कुछ नही है,जो कि लोगों के दिलों को दू सके.

हर एपीसोड का अलग नामकरण भी किया है. अफसोस पहला एपीसोड जितना कसा हुआ है,वैसी कसावट बाद के एपीसोडो में नही हैं. विखरी हुई लिखावट के चलते कहानी यानी कि कथा कथन में प्रवाह नही रहता. आठवें एपीसोड में जिस तरह से अदालत के अंदर के दृश्य फिल्माए गए हैं,वह तो काफी हास्यास्पद हैं. क्लायमेक्स भी जंचा नही.

लेखक व निर्देशक ने बहुत कुछ सत्य निरूपित किया है. इसमें गुरसेवक यानी कि पवन मल्होत्रा का एक संवाद है-‘‘उस वक्त हालात ऐसे थे कि हम या तो उनके साथ थे या उनके ख्लिाफ. ’’पर तीन एपीसोड बाद चुन्नू उर्फ संजय सिंह यानी कि अभिनेता टीकम जोशी,गुरूसेवक यानी कि अभिनेता पवन मल्होत्रा से कहते हैं-‘‘आज भी वही हालात है, या तो हम उनके साथ हो सकते हैं या उनके खिलाफ. ’’यह संवाद आज भी सच्चाई का आईना हैं. यानी कि वर्तमान मंे जो हालात हैं,उसमें आप या तो ‘बाएं‘ या ‘दाएं‘ हो सकते हैं,बीच का कोई रास्ता नहीं है.

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इसके कुछ दूसरे संवाद मसलन-‘‘हम दूसरे घाव दिखाकर अपने घाव छिपाना चाहते हैं. ’

आठ एपीसोडों को अनु सिंह चैधरी, नवजोत गुलाटी, प्रतीक पयोढ़ी, विभा सिंह, रंजन चंदेल, शैलेंद्र कुमार झा और सलाहकार लेखक करण अंशुमान और अनन्या मोदी ने गढ़ा है. सूक्ष्मता से लिखी गयी इस कहानी में एक मार्मिक और विचलित करने वाली तस्वीर भी है तो वहीं काफी कुछ मेलोड्ामा भी है. कहानी में दोहराव काफी है. यदिल लेखकीय टीम व निर्देशक ने थोड़ी मेहनत की होती तो यह एक क्लासिंक वेब सीरीज बन सकती थी,जिसकी जरुरत भी है.

इतना ही तकनीक रूप से भी यह वेब सीरीज काफी कमजोर है. निर्देशन के साथ साथ एडीटिंग में भी कमियां हैं. दो तीन दृश्यों में तो दृश्य बाद में शुरू होता है और संवाद पहले आ जाते हैं. मसलन- कनाडा में कार्तिक ,मंजीत कौर से मिलने उनके घर जाता है. कार्तिक घर के बाहर ही रहता है,मगर कार्तिक व मंजीत के बीच बातचीत के संवाद शुरू हो जाते हैं.

प्रोडक्शन डिजाइनर वसीक खान अस्सी के दशक व उस काल के बोकारो को सटीक ढंग से उभारा है. कैमरामैन कमलजीत नेगी बधाई के पात्र हैं. अमित त्रिवेदी के गाने गति के साथ तालमेल बिठाते हैं.

अभिनयः

गुरूसेवक के किरदार में पवन मल्होत्रा ने शानदार परफार्मेंस देते हुए एक बार फिर हर किसी को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल रहे हैं. जोया हुसेन की परफार्मेंस जानदार है. कुछ दृश्यों में तो वह बेहतरीन काम कर गयी,पर कुछ जगह मात खा गयी.

रिषि रंजन के किरदार में अस्सी के दशक के हालात से मजबूर,गुस्सैल पर प्यार के लिए किसी भी हद तक जाने वाले रिषि रंजन के किरदार को अंशुमान पुष्कर ने एकदम सही ढंग से परदे पर उकेरा है.

मंजीत कौर उर्फ मनु के किरदार में वामिका गब्बी आकर्षक हैं. कुछ दृश्यों में उन्होने इंगित किया है कि उनके अंदर अभिनय क्षमता है,उसे निखारने वाले निर्देशक की जरुरत है.

तेज तर्रार, कपटी व चालाक लोमड़ी चुन्नू के किरदार को टीकम जोशी ने अपने शानदार अभिनय से जीवंतता प्रदान की है.

डीएसपी विकास मंडल के रूप में सहिदुर रहमान अद्भुत यथार्थवादी हैं. कई दृश्यों में उनकी आंखे व उनके चेहरे के भाव काफी कुछ कह जाते हैं.

फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का हुआ निधन, एक हफ्ते पहले छूटा था पत्नी का साथ

काफी दिनों तक कोरोना से जंग लड़ने के बाद भारत के महान धावक मिल्खा सिंह जिंदगी की जंग हार गए. 91 साल की उम्र में कोरोना के चलते फ्लाइंग सिख ने चंडीगढ़ पीजीआई में अंतिम सांस ली. मिल्खा सिंह वो धावक हैं जिन्होंने ने चार बार एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता है. साथ ही वह 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स के चैंपियन भी हैं. 1960 रोम ओलिंपिक खेलों में कुछ मामूली अंतर से पदक से चूक गए थे. दरअसल मेडलिस्ट मिल्खा सिंह को मई माह में कोरोना पॉजिटिव हो जाने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था और पिछले एक महीने से कोरोना से जंग लड़ रहे थें.

खबरों के मुताबिक मिल्खा सिंह को 3 जून को पीजीआई में भर्ती कराया गया था.क्योंकि उनका ऑक्सीजन लेवल कम हो गया था. इससे पहले उनका घर पर ही इलाज चल रहा था….जबकि वो इससे पहले उनकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आए थें. इसके बाद उन्हें कोविड आईसीयू से सामान्य आईसीयू में भेज दिया गया था. फिर खबरों से पता चला की उनकी हालत गंभीर हो गई थी और अब नतीजा आपके सामने है.

सबसे दु:खद बात ये है कि उनके परिवार ने बताया था कि इससे पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का कोविड-19 संक्रमण से जूझते हुए 13 जून को मोहाली में एक निजी अस्पताल में निधन हो गया था. निर्मल कौर खुद एक एथलीट रही थीं. खास बात ये है कि वह भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान रह चुकी थीं. मिल्खा जी के लिये दिन थोड़ा मुश्किल रहा…लेकिन वह इससे संघर्ष कर रहे थें. मिल्खा सिंह के साथ निर्मल कौर की शादी साल 1962 में हुई थी. लेकिन दोनों ने ही बारी- बारी से इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

आइए जानते हैं उनकी जिंदगी की कुछ दिलचस्प बातें…

भले ही अब भारत के सबसे महान एथलीट मिल्खा सिंह हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनका कभी नहीं भूल पाएगा ये देश….

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मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान में हुआ था….मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था, लेकिन आजादी के बाद वो हिंदुस्तान आ गए थें. चार बार एशियन गेम्स के गोल्ड ट्रेक एंड फील्ड में कई रिकॉर्ड बनाने वाले इस दिग्गज को फ्लाइंग सिख नाम किसने दिया तो….दरअसल उन्हें ये नाम पाकिस्तान के तानाशाह जनरल अयूब खान ने दिया था. ये नाम उन्हें सन 1960 के धाकड़ एथलीट अब्दुल खालिक को रेस में हराने पर दिया था. इतना ही नहीं उस वक्त शायद वो ओलंपिक भी जीत जाते लेकिन बहुत ही मामूली अंतर से वो चौथे स्थान पर आए थें लेकिन कड़ी टक्कर दी थी. मिल्खा सिंह को सन 1959 में पद्मश्री सम्मान भी मिला था.

मिल्खा सिंह ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था…कि मेरी आदत थी कि मैं हर दौड़ में एक दफा पीछे मुड़कर देखता था… रोम ओलिंपिक में दौड़ बहुत नजदीकी थी और मैंने शुरुआत तो बहुत जबरदस्त ढंग से की थी. लेकिन आदत से मजबूर मैंने एक बार पीछे मुड़ कर देखा और वहीं मेरी गलती थी…मैं वहीं चूंक गया क्योंकि उस दौड़ में कांस्य पदक विजेता का समय 45.5 सेकंड था और मेरा ने 45.6 सेकंड…मैं मात्र एक सेकंड से चूक गया. हालांकि एशियाई खेलों में 4 और कॉमवेल्थ गेम्स में एक गोल्ड हैं मिल्खा सिंह के नाम…एक जानने वाली बात ये भी है कि रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह नंगे पांव बिना जूतों के दौड़े थें.

मिल्खा सिंह के संघर्ष पर फिल्म भी बन चुकी है जिसमें मिल्खा सिंह का रोल निभाया था एक्टर फरहान अख्तर.
दिग्गज धावक मिल्खा सिंह के जीवन पर ‘भाग मिल्खा भाग’ नाम से फिल्म बनी है. खबरों के मुताबिक उड़न सिख के नाम से फेमस मिल्खा सिंह ने कभी भी हार नहीं मानी उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा. हालांकि मिल्खा सिंह ने कहा था कि भले ही उन पर फिल्म बनी है लेकिन फिल्म में उनकी संघर्ष की कहानी उतनी नहीं दिखाई गई है जितनी कि उन्होंने अपने जीवन में झेली है.

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महान ऐथलीट के निधन पर पीएम मोदी ने भी दु:ख जताया है. तस्वीर शेयर करते हुए शोक व्यक्त किया है. उन्होंने ट्वीट किया- “मिल्खा सिंह जी के निधन से हमने एक महान खिलाड़ी खो दिया, जिसने देश की कल्पना पर कब्जा कर लिया और अनगिनत भारतीयों के दिलों में एक विशेष स्थान बना लिया. उनके प्रेरक व्यक्तित्व ने उन्हें लाखों लोगों का प्रिय बना दिया. उनके निधन से आहत हूं.”इसके साथ ही मिल्खा सिंह के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दुख व्यक्त किया है…उन्होंने कहा..स्पोर्टिंग आइकन मिल्खा सिंह के निधन से मैं दुखी हूं…उनके संघर्षों की कहानी और चरित्र की ताकत भारतीय पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी…गृहमंत्री अमित शाह ने भी उनके निधन पर दुःख जताया और कहा कि उन्हें देश हमेशा याद रखेगा…पूरे देश सें उन्हें श्रद्धांचलि दे रहे हैं…।

सच में आज देश ने अपना एक महान एथलीट खो दिया…..

Neena Gupta को बिन शादी के मां बनने पर Satish Kaushik से मिला था शादी का प्रपोजल, पढ़ें खबर

बौलीवुड एक्ट्रेस नीना गुप्ता अपनी एक्टिंग से लेकर स्टाइलिश लुक को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. वहीं उनकी पर्सनल लाइफ से भी कोई अनजान नही हैं. लेकिन हाल ही में रिलीज हुई नीना गुप्ता (Neena Gupta) की बायोग्रॉफी ‘सच कहूं तो’ में कई सारे खुलासे हुए हैं, जिन्हें पढ़कर हर कोई हैरान है. शादी से लेकर मां बनने की कहानी बयां करती नीना गुप्ता की किताब में कई अनकही बातों का जिक्र है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मां बनने के समय मिला शादी का प्रस्ताव

दरअसल, अपनी जिंदगी पर आधारित इस किताब में नीना गुप्ता ने बताया है कि जब वह बिन ब्याही मां बनने वाली थी तो उनके दोस्त और को-स्टार सतीश कौशिक ने आगे बढ़कर शादी का प्रस्ताव दिया था. हालांकि नीना गुप्ता ने अपनी बेटी मसाबा गुप्ता को बिना शादी के ही जन्म दिया था. वहीं इस बारे में एक्टर सतिश कौशिक (Satish Kaushik) ने भी एक इंटरव्यू में पुरानी यादों ताजा की हैं.

 

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सतीश कौशिक ने कही ये बात

 

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सतीश कौशिक ने कहा, ‘आप उनकी किताब में जो कुछ भी पढ़ रहे हैं वो मेरा उनके लिए एक सच्चे दोस्त के तौर पर लिया गया प्यार भरा फैसला था. मैं चाहता था कि वह अकेला न महसूस करें. आखिरकार अंत में दोस्त होते ही इसलिए हैं. जैसा किताब में लिखा है, जब मैंने उन्हें शादी का प्रस्ताव दिया तो वो एक हल्के मजाक, देखभाल, सम्मान और मेरे बेस्ट फ्रेंड को सहारा देने के लिए था. जिसे इसकी बहुत जरूरत थी. मैंने उन्हें कहा, मैं हूं न, तू चिंता क्यों करती है, वो इस प्रस्ताव से बेहद भर गई थी और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े थे. उसके बाद हमारी दोस्ती और भी गहरी होती चली गई.’

प्रैग्नेंसी में शादी ना करने पर कही ये बात

 

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बुक रिलीज होने के बाद नीना गुप्ता ने एक इंटरव्यू में प्रैग्नेंसी में शादी ना करने की वजह बताते हुए कहा कि उनके प्रेगनेंट होने के बावजूद उन्हें शादी के ऑफर्स मिल रहे थे. हालांकि उन्होंने फैसला किया. नीना ने कहा, ‘मुझे अपने ऊपर बहुत गर्व था. मैंने खुद से कहा कि मैं केवल इसलिए शादी नहीं करूंगी क्योंकि मुझे किसी के नाम की जरूरत हैं या पैसे की जरूरत है जैसेकि मुझे एक समलैंगिक आदमी से शादी का ऑफर आया था.’

बता दें, नीना गुप्ता की बेटी मसाबा गुप्ता के पिता वेस्ट इंडिज क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स हैं. हालांकि दोनों की शादी नही हुई है. इसके बावजूद सिंगल मदर होने के बाद भी नीना गुप्ता ने मसाबा गुप्ता को जन्म दिया और पाला है. वहीं आज मसाबा मशहूर फैशन डिजाइनर्स की लिस्ट में शामिल हैं.

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REVIEW: जानें कैसी है विद्या बालन की Film ‘शेरनी’

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः भूषण कुमार, किशन कुमार,  विक्रम मल्होत्रा, अमित मसूरकर

निर्देशकः अमित वी मसूरकर

कलाकारः विद्या बालन, शरत सक्सेना,  विजय राज, ब्रजेंद्र काला, इला अरूण , नीरज काबी, मुकुल चड्ढा व अन्य.

अवधिः दो घंटे दस मिनट 44 सेकंड

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम वीडियो

एक तरफ देश के राष्ट्ीय पशुं टाइगर(बाघ )की प्रजाति खत्म होती जा रही है. तो दूसरी तरफ विकास के नाम पर जंगल खत्म हो रहे हैं, ऐसी परिस्थितियों में हर जानवर के सामने समस्या है कि वह कहां स्वच्छंदतापूर्ण विचरण करे. जंगल के खत्म होने से टाइगर, भालू आदि हिंसक जानवर खेतों व आबादी की तरफ बढ़ रहे हैं. जिसके चलते पशु और इंसान के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है. तो वहीं इस समस्या का सटीक हल ढूढ़ने की बनिस्बत राजनेता अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए हैं, जिसका फायदा अवैध तरीके से टाइगर का शिकार करने वाला शिकारी उठा रहा है. इन्ही मुद्दों व पशु व इंसान के बीच  संघर्ष को खत्म कर संतुलन बनाने का संदेश देने वाली फिल्म ‘‘शेरनी’’ लेकर आए हैं फिल्म निर्देशक अमित वी मसुरकर, जो कि 18 जून से ‘‘अमैजॉन प्राइम’’पर स्ट्रीम हो रही है.

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कहानीः

कहानी शुरू होती है विजाशपुर वन मंडल के जंगलों से, जहां कुछ पुलिस  की टीम व वन संरक्षण अधिकारी टाइगर की आवाजाही को समझने के लिए वीडियो कैमरा लगा रही है. उसी वक्त नई वन अधिकारी विद्या विंसेट(विद्या बालन) भी वहां पहुंचती है और हालात का जायजा लेती है. वाटरिंग होल सूखा हुआ है. क्योंकि स्थानीय विधायक जी के सिंह(अमर सिंह परिहार  )का साला मनीष उस जंगल में सुविधाएं देखने वाला ठेकेदार है. वह किसी नही सुनता. उधर जंगल के नजदीक में बसे गांव वासी अपने मवेशियों को चारा खिलाने इसी जंगल में कई वर्षों से जाते रहे हैं. मगर अब राष्ट्रीय पार्क और इस जंगल के बीच हाइवे सहित कई विकास कार्य संपन्न हो चुके है, जिसकी वजह से जंगल कें अंदर मौजूद टाइगर व भालू जैसे हिंसक पशु नेशनल पार्क नही जा पा रहे हैं और वह ग्रामीणों का भक्षण करने लगे हैं. पूर्व विधायक पी के सिंह(सत्यकाम आनंद)  ग्रामीणों के जीवन की सुरक्षा के नाम पर वन अधिकारियों को धमकाते हुए अपनी राजनीति को चमकाने में लगे हैं. वन अधिकारी विद्या विंसेट चाहती है कि इंसानों और पशुओं के बीच संघर्ष खत्म हो और एक संतुलन बन जाए. इसके लिए वह अपने हिसाब से प्रयास शुरू करती हैं, जिसमें वन विभाग से ही जुड़े मोहन, हसन दुर्रानी(  विजय राज )  व अन्य लोगों की मदद से प्रयासरत हैं. पर विधायक जी के सिंह के चमचे व वन विभाग के अधिकारी बंसल(ब्रजेंद्र काला )  व अन्य अपने हिसाब से टंाग अड़ाते रहते हैं. तभी चुनाव जीतने के लिए विधायक जी के सिंह शिकारी पिंटू को लेकर आते हैं.  विद्या चाहती है कि नर भक्षी बन चुकी बाघिन टी 12 व उसके दो नवजात बच्चों को इस जंगल से निकालकर नेशनल पार्क भेज दिया जाए, जिससे ग्रामीणों की भी सुरक्षा हो सके. जबकि बंसल व पिंटू(शरत सक्सेना) की इच्छा टाइगर यानी कि शेरनी को बचाने में बिलकुल नही है. इसी बीच अपने उच्च अधिकारी नंागिया(नीरज काबी )  की हरकत से विद्या विंसेट को तकलीफ होती है. अब राजनीतिक कुचक्र और नेताओं के इशारे पर नाच रहे कुछ भ्रष्ट वन अधिकारियों व इमानदार वन अधिकारी विद्या विंसेट में से किसकी जीत होती है, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

लेखन व निर्देशनः

‘‘सुलेमानी कीड़ा’’ और ऑस्कर के लिए भारतीय प्रविष्टि के रूप में भेजी जा चुकी फिल्म‘‘ न्यूटन’’के निर्देशक अमित वी मसूरकर  इस बार मात खा गए हैं. फिल्म की कमजोर पटकथा के चलते फिल्म काफी नीरस और धीमी है. जंगल में  नरभक्षी टाइगर की मौजूदगी के चलते जो डर व रोमांच पैदा होना चाहिए, उसे पैदा कर पाने में अमित वी मसूरकर असफल रहे हैं. शेरनी की आंखों से पैदा होने वाला सम्मोहन भी नदारद है. दो राजनेताओं के बीच की राजनीतिक चालों का भी ठीक से निरूपण नही हुआ है.

फिल्म‘‘शेरनी’’ अवनी या टी1 के मामले की याद दिलाती है. जब बाघिन पर 13 लोगों की हत्या का आरोप लगा था. महीनों के लंबे शिकार के बाद,  2018 में महाराष्ट्र के यवतमाल में एक नागरिक शिकारी के नेतृत्व में वन विभाग के कुछ अधिकारियों के साथ उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. कई कार्यकर्ताओं ने इसे ‘कोल्ड ब्लडेड मर्डर‘ बताया और मामला भारत के सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया. यह मामला अभी भी चल रहा है और अधिकारी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि अवनी नामक बाघिन आदमखोर थी या नहीं. लेकिन फिल्मकार इस सत्य घटनाक्रम को सही अंदाज में नही उठा पाए.

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फिल्म का संवाद ‘‘विकास के साथ जाओ, तो पर्यावरण को नहीं बचा सकते. और यदि पर्यावरण के साथ जाएं, तो विकास बेचारा उदास हो जाता है. ’’कई सवाल उठाता है, मगर अफसोस की बात यह है कि इस तरह की बात करने वाले नंागिया का कार्य इस संवाद से मेल नही खात. यानी कि चरित्र चित्रण में भी फिल्मकार ने गलतियंा की हैं. फिल्म में पशुओं को लेकर मनुष्य की संवेदनहीनता, वन विभाग में भ्रष्टाचार, राजनेताओं की नकली नारेबाजियां, जैसे मुद्दे उठाए गए हैं मगर बहुत ही सतही तौर पर. बीच बीच में फिल्म पूरी तरह से डाक्यूमेंट्री बनकर रह जाती है.

कैमरामैन राकेश हरिदास बधाई के पात्र हैं.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो विद्या बालन का अभिनय शानदार है. उन्होने वन अधिकारी विद्या विसेंट को जीवंतता प्रदान की है. फिर चाहे डर का भाव हो या कुछ न कर पाने की विवशता. मगर लेखक व निर्देशक ने विद्या बालन के किरदार को भी ठीक से नही गढ़ा है. वह कहीं भी दहाड़ती नही है, उसके कारनामे ऐसे नही है जो कि याद रह जाएं. नीरज काबी व मुकुल चड्ढा की प्रतिभा को जाया किया गया है. हसन दुर्रानी के किरदार मे विजय राज एक बार फिर अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. ब्रजेंद्र काला को अवश्य कुछ अच्छे दृश्य मिल गए हैं.

आखिर एक्ट्रेस विद्या बालन क्यों बनी ‘शेरनी’, पढ़ें खबर

अभिनेत्री विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ की एक टाइटल म्यूजिकका लौंच अमेजन प्राइम विडियो पर किया गया, जिसमें विद्या ने फारेस्ट ऑफिसर विद्या विंसेट की भूमिका निभाई है, जो अपनी बात सबके सामने एक शेरनी की तरह रख सकती है.उनके साथ 9 ऐसी महिलायें है, जो कठिन परिस्थिति से गुजर कर अपनी मंजिल पायी है. विद्या कहती है कि मैं एक अभिनेत्री होने की वजह से लोग मुझे और मेरे काम को देखते और सराहते है, लेकिन ऐसी बहुत सी महिलाएं है जिन्हें हम नहीं जानते और उन्होंने भी अपने रास्ते एक शेरनी की तरह तय कर अपनी मंजिल पायी है.

असल में हर महिला में एक शेरनी होती है और वे इसे समझती नहीं. ऐसी महिलाएं बिना कुछ कहे लगातार चुनौती का सामनाकरती रहती है.मैंने देखा है कि अधिकतर घरेलू महिलाएं चुपचाप, शांत और अपनी भावनाओं को बिना बताये रहती है और वह परिवार में अदृश्य रहती है, कोई उसकी मौजूदगी को महसूस नहीं करता. मैं उन सभी महिलाओं को इस संगीत के द्वारा सैल्यूट करना चाहती हूं. मेरे जीवन में मेरी माँ शेरनी है, उन्होंने बिना कुछ कहे समस्याओं का सामना कर मुझे बड़ा किया और हमेशा मेरा साथ दिया है. उम्र के इस पढ़ाव में भी वह डांस, फिटनेस, संगीत सीखती और खुश रहती है. माँ हमेशा कहती है कि जितना तुम झुकोगे, लोग उतना ही तुमको झुकायेंगे. इसलिए डटकर किसी समस्या का समाधान करो. इसके अलावा मेरी बहन और भतीजी भी शेरनी की तरह घने जंगल में अपना रास्ता बना लेने में सक्षम है.

 

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इसके आगे विद्या कहती है कि इस म्यूजिक वीडियो को करते वक्त जब मैं जंगल में गयी, तो वहां की ताज़ी हवा, आकर्षक हरियाली, पर्वत, जलाशय आदि को देखकर मैंने प्रकृति के इस क्रिएशन को धन्यवाद दिया. इसके अलावा मेरे अंदर एक शक्ति है, जो किसी भी समस्या का हल निकाल सकती है, क्योंकि जंगल नष्ट कर दिए जाने पर भी प्रकृति उसे बार-बार सहेजती है.

 

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15 साल के इस कैरियर में विद्या ने फिल्म ‘परिणीता’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘कहानी’ आदि कई फिल्मों से अभिनय कीलोहा मनवा चुकी है. फिल्म‘लगे रहो मुन्ना भाई’विद्या कैरियर की टर्निंग पॉइंट थी, जिसके बाद से उसे पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा.उसने बेहतरीन परफोर्मेंस के लिए कई अवार्ड जीते.साल 2014 में उसे पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है. विद्या ने फिल्म ‘मिशन मंगल’ और ‘शकुंतला’ जैसी महिला प्रधान फिल्में की है, इसकी वजह के बारें में वह कहती है किमैं महिला प्रधान फिल्म सोचकर नहीं करती. मैं उन कहानियों को चुनती हूं, जो सबको कही जाय और सब पसंद करें, ऐसे में अगर महिला प्रधान फिल्म हो तो मुझे कोई समस्या नहीं और जिस फिल्म में मेरी भूमिका मेरे लायक हो, उसे मैं चुनती हूं. हर चरित्र कुछ न कुछ सिखाती है. मैंने इस फिल्म से भी बहुत कुछ सीखा है. ऐसी फिल्में आपको अंदर से पूरा करती है. इसके अलावा एक अच्छी स्टोरी ही एक सफल फिल्म दे सकती है.

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‘बुसान फिल्म फेस्टिवल’ के बाद अब न्यूयार्क फिल्म फेस्टिवल में आशापूर्णा देवी की ‘नजरबंद’ का हुआ प्रदर्शन

4 से 13 जून तक अमरीका के न्यूयार्क शहर में संपन्न ‘‘न्यूयार्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल’’में मशहूर फिल्मकार सुमन मुखेपाध्याय निर्देशित फिल्म‘‘नजरबंद’’का यूएस प्रीमियर संपन्न हुआ. ज्ञातब्य है कि इससे पहले फिल्म‘‘नजरबंद’’का विश्व प्रीमियर ‘‘25 वें बुसान अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव’’में हो चुका है. आशापूर्णा देवी की लघु कहानी ‘‘चुटी नकोच’’ पर आधारित इस फिल्म में तन्मय धनानिया और इंदिरा तिवारी ने मुख्य भूमिका निभायी है.

सुमन मुखोपाध्याय ने इस फिल्म के निर्माण व शूटिंग के लिए एक अपरंपरागत दृष्टिकोण अपनाया. आशापूर्णा देवी ने इस लघु कहानी को दशको पहले लिखा था, पर फिल्मकार सुमन मुखोपाध्याय ने इसे समसामायिक बनाकर चित्रित किया है.  कोलकाता में दो ‘बाहरी लोगों‘ की कहानी ‘नजरबंद’वास्तव में समाज में हाशिए पर मौजूद वर्गों पर एक दिलचस्प दृश्य प्रस्तुत करती है.

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मशहूर बंगला फिल्मकार व रंगकर्मी के लिए यह पहला मौका नही है?जब उनकी फिल्म अंतरराष्ट्ीय फिल्म समारोहों में ेधूम मचा रही हो. खुद सुमन मुखोपाधय कहते हैं-‘‘इस फिल्म को लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया जाएगा.  एनवाईआईएफएफ एक आभासी फिल्म समारोह है, लेकिन एलआईएफएफ जून के मध्य में ब्रिटिश फिल्म संस्थान में और बर्मिंघम में भी एक भौतिक संस्करण आयोजित करने जा रहा है. दोनों स्थान विज्ञान और कला के लिए प्रमुख स्थल हैं और मैं वहां स्क्रीनिंग के लिए बहुत खुश हूं. मैं चैथी बार एनवाईआईएफएफ में भाग लूंगा. फिल्मोउत्सव में ‘चतुरंगा’ (2008),  ‘महानगर एट कोलकाता’ (2010) और ‘शेषर कोबिता’ (2015) का भी प्रदर्शन हुआ था. ’’

सुमन मुखोपाध्याय बंगला  भाषा की फिल्में व नाटक बनाते रहे हैं. लेकिन उन्होने ‘पोशम पा’को हिंदी भाषा में बनाया था. अब उन्होने आशापूर्णा देवकी की कहानी पर आधारित इस फिल्म को भी हिंदी भाषा में ही बनाया है. वह कहते हैं-‘‘मैंने शुरू से ही गैर-बंगाली आप्रवासियों के रूप में पात्रों की कल्पना की और उन्हें हाशिए पर रहने वाले लोगों के रूप में उजागर करना चाहता था. साथ ही,  इन दिनों ‘बाहरी लोगों‘ का विचार बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य की हवा में है.  विचार सिर्फ भाषा के लिए हिंदी फिल्म बनाने का नहीं था, बल्कि मैंने हिंदी में फिल्म बनाने की कल्पना की थी. ’’

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Sushant Singh Rajput 1st Death Anniversary: Ankita से लेकर Aly तक इमोशनल हुए सेलेब्स¸ किया ये काम

साल 2020 में कई सितारों ने दुनिया को अलविदा कहा, जिनमें बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) भी शामिल हैं. वहीं सुशांत सिंह राजपूत की मौत को आज यानी 14 जून को एक साल  की मौत को एक साल पूरा हो गया है. लेकिन आज भी फैंस और सेलेब्स उन्हें भुला नहीं पा रहे हैं. जहां फैंस उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. तो सेलेब्स सोशलमीडिया पर उनके लिए खास मैसेज देकर इमोशनल होते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं सितारों के इमोशनल पोस्ट…

अंकिता लोखंडे ने किया ये काम

 

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सुशांत की पहली बरसी पर उनकी फैमिली और फैंस से लेकर बौलीवुड और टीवी सेलेब्स अंकिता लोखंडे, अशोक पंडित, पुलकित सम्राट, अर्जुन बिजलानी, भूमि पेडनेकर समेत कई सेलेब्स ने उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. सुशांत की एक्स गर्लफ्रैंड रह चुकीं अंकिता लोखंडे ने अपनी इंस्टा स्टोरी पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वे हवन करती नजर आ रही हैं. वहीं सुशांत को याद करते हुए अर्जुन बिजलानी ने लिखा, ‘हम दोनों बाइक्स के शौकीन थे. एक दिन उन्होंने मुझे सरप्राइज करते हुए कहा कि अर्जुन नीचे आओ. मुझे तुम्हें कुछ दिखाना है. जैसे ही मैं नीचे गया तो मैंने देखा कि वो एक नई फैंसी बाइक पर बैठे थे.’

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भूमि पेडनेकर ने लिखी ये बात

 

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भूमि पेडनेकर ने लिखा, ‘तुम्हें, तुम्हारे सवालों और हमारी बातचीत को मिस करती हूं. तारों से लेकर अनजानी चीजों तक, तुमने मुझे वो दुनिया दिखाई जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था. मुझे उम्मीद है कि तुम्हें उस दुनिया में शांति मिल गई होगी. ओम शांति.’ वहीं एक्टर अली गोनी ने सशांत सिंह को याद करते हुए अपनी प्रोफाइल फोटो पर सुशांत की फोटो लगा ली है.

 

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आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले एक्ट्रेस कृति सेनन ने फिल्म राब्ता से जुड़ी एक वीडियो शेयर की थी, जिसमें सुशांत संग वह नजर आ रही थीं.

 

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REVIEW: कीर्ति कुल्हारी का शानदार अभिनय दिखाती ‘शादीस्तान’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताःफेमस डिजिटल स्टूडियो

निर्देशकः राज सिंह चैधरी

कलाकारः कीर्ति कुल्हारी, मेधा शंकर, निवेदिता भट्टाचार्य, केके मेेनन, रंजन मोदी, अजय जयनाथ, अपूर्व डोगरा, निशंक वर्मा व अन्य.  

अवधिः एक घंटा तेंतिस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः डिज्नी हॉट स्टार

दो पीढ़ियों के बीच विचारों का टकराव सामान्य सी बात है. इस मुद्दे पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. मगर लेखक निर्देशक राज सिंह चैधरी अपनी फिल्म‘‘शादीस्थान’’में दकियानूसी, सामंती व पितृसत्तात्मक सोच तथा आधुनिक सोच के टकराव का मुद्दा उठाते हुए फिल्म को जिस तरह से मनोरंजक कहानी के सॉंचे में ढाला है, उसमें गंभीरता व गहराई का अभाव खलता है. ‘‘शादीस्थान’’ ग्यारह जून की शाम से ‘डिज्नी हॉटस्टार’ पर स्ट्रीम हो रही है.

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कहानीः

फिल्म की कहानी एक रूढ़िवादी परिवार की मुंबई से अजमेर तक की सड़क यात्रा है. कहानी शुरू होती है मुंबई से. जहां संजय शर्मा(राजन मोदी ) गुस्से में हैं, क्योंकि उन्हें अपने भांजे चोलू की शादी में हवाई जहाज पकड़कर पत्नी कमला शर्मा (निवेदिता भट्टाचार्य )व बेटी आर्शी शर्मा(मेधा शंकर) के साथ अजमेर पहुंचना है, मगर फ्लाइट छूट गयी. जिसके लिए वह बेटी आर्शी शर्मा को दोषी मानते हैं. चोलू की शादी में संगीत पार्टी मुंबई से निजी बस से जा रही होती है, चोलू के कहने पर संजय शर्मा अपनी पत्नी व बेटी के साथ इसी बस में सवार हो जाते हैं. गुस्सैल संजय शर्मा को बस में मौजूद म्यूजीशियन का रंग ढंग पसंद नही आता. बस में गायिका साशा(कीर्ति कुल्हारी)और उसके बैंड के सदस्य,  अपूर्व डोगरा (फ्रेडी),  जिम्मी (शेनपेन खिमसर) और इमाद (अजय जयंती)हैं. यह सिगरेट पीते हैं, बियर पीते हैं. गाना गाते हैं. पुराने व दकियानूसी ख्यालों के संजय शर्मा को बस के अंदर का माहौल पसंद नही आता. परिणामतः संस्कृति व संवेदनाओं का टकराव होता है. धीरे धीरे कहानी स्पष्ट होती है कि आर्शी आज रात 18 वर्ष की पूरी होगी. उसके पिता ने उसकी शादी बिना उससे पूछे अजमेर में ही बुआ के कहने पर तय कर दी है, जबकि अभी वह शादी नही करना चाहती. इसीलिए वह अजमेर भी नही आना चाहती थी. इसीलिए आर्शी शर्मा अपनी सहेली के घर चली गयी थी. मगर फोन पर मॉं के रोने से उसने अपना निर्णय बदल दिया और घर वापस आ गयी और इसी चक्कर में फ्लाइट छूटी थी. बस रास्ते में टाइगर (के के मेनन) के होटल में रूकती है, उस वक्त संजय शर्मा अपनी दीदी के किसी काम को करने के लिए उदयपुर शहर जाते हैं. उस वक्त जहां साशा व कमला शर्मा, साशा व आर्शी शर्मा, इमाद और आर्शी शर्मा के बीच बातचीत होती है. यहां पारिवारिक व सामाजिक ढांचे में बंधी कमला शर्मा और आजाद ख्याल की साशा के बीच बातचीत होती है. पर जैसे ही इमाद,  आर्शी को 18 वर्ष पूरे होने यानीकि जन्मदिन की बधाई देता है,  वैसे ही संजय शर्मा वहां पहुॅच जाते हैं और इमाद पर आग बबुला होते हैं, इमाद उन्हे ऐसा जवाब देता है कि वह गुमसुम रहने लगते हैं. अजमेर में छोलू की शादी में पहुंचते है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं और फिल्म की कहानी को शादीस्थान पर एक नया अंजाम मिलता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मकार राज सिंह चैधरी इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होने समाज में टैबू या यॅू कहें कि कलंक समझे जाने वाले विषय को फिल्म में उठाया है, जिसके बारे में सतत बातें की जानी चाहिए,  लेकिन फिल्म का अंत आम फिल्मों की ही तरह है. संजय शर्मा का हृदय परिवर्तन जिस तरह से होता है, वह गले नही उतरता. यदि राज सिंह चैधरी ने थोड़ा गहराई व गंभीरता से इस फिल्म को बनाया होता, तो लड़कियों व औरतों की आजादी तथा समाज के चक्रव्यूह में फंसे लोगों की चेतना जगाने को लेकर अति बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. पर कमजोर पटकथा के चलते फिल्म अपने दर्शकों को सही मायने में नही जोड़ पाती. जबकि फिल्मकार ने बिना किसी भाषण बाजी के सामंती,  दकियानूसी व पितृ सत्तात्मक सोच रखने वाले पुरूषों पर चोट करने की कोशिश जरुर की है. नारीवाद का मसला नही है, मगर फिल्मकार ने इस मुद्दे को बड़ी साफगोई से उठाया है कि वर्तमान समय की लड़कियां किस तरह पारिवारिक व सामाजिक जकड़न से बाहर निकलने को बेताब हैं. तो वहीं टाइगर के होटल के प्रांगण में पेय पदार्थ के प्रभाव में मॉं बेटी का नृत्य बनावटी नजर आता है.

फिल्म के कुछ संवाद बेहतर बन पड़े हैं. मसलन-साशा का संवाद-‘हम जैसी औरतें लड़ाई करती हैं, ताकि आप जैसी औरतों को अपनी दुनिया में लड़ाई न करनी पड़े. ’’

फिल्म में राहुल भाटिया व नकुल शर्मा का संगीत कथानक के अनुरूप व कर्ण प्रिय है.

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अभिनयः

महिलाओं के अधिकारों के लिए मजबूत नेतृत्व वाली महिला साशा के किरदार को कीर्ति कुल्हारी ने बेहतर तरीके से निभाया है, पर कुछ दृश्यों में वह मजबूर नजर आती हैं. पितृसत्ता की सोच और अपनी बेटी से परेशान संजय शर्मा के किरदार में अभिनेता राजन मोदी तथा विवेकशील और बुद्धिमान कमला के किरदार में निवेदिता भट्टाचार्य भी अपनी छाप छोड़ जाती हैं. छोटी सी भूमिका में के के मेनन अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

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रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः रिलायंस इंटरटनमेंट

क्रिएटरः विकास बहल

लेखकः विकास बहल व चैताली परमार

निर्देशकः विकास बहल व राहुल सेन गुप्ता

कलाकारः सुनील ग्रोवर, रणवीर शोरी, आशीश विद्यार्थी, रिया नलावडे,  मुकुल चड्ढा,  डायाना एरप्पा, अश्विन कौशल,  सलोनी खन्ना, सोनल झा,  गिरीश कुलकर्णी, शोनाली नागरानी व अन्य

अवधिः पांच घंटे पांच मिनट,  30 से 45 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5 ,  ग्यारह जून से

फिल्म‘‘क्वीन’’सहित कई फिल्मों के लेखक व निर्देशक विकास बहल इस बार क्राइम थ्रिलर व डार्क ह्यूमर मिश्रित वेब सीरीज ‘‘सनफ्लावर’’ लेकर आए हैं, जो कि इंसान को अवसाद की ओर ही ले जाती है और यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि ‘‘क्वीन’’जैसी बेहतरीन फिल्म के लेखक व निर्देशक विकास बहल ही इस वेब सीरीज के क्रिएटर, सह लेखक व निर्देशक हैं.

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कहानीः

मुंबई शहर में समाज के  प्रतिष्ठित लोगों से युक्त एक सोसायटी है सनफ्लावर. इस सोसायटी के दिलचस्प किरदारो में हिंदी रसायन शास्त्र शिक्षक आहूजा (मुकुल चड्ढा), अमीर अभिमानी पड़ोसी राजकपूर (अश्विन कौशल),  नैतिक पुलिसिंग के ध्वजवाहक दिलीप अय्यर (आशीष विद्यार्थी), मासूम मगर विचित्र सोनू (सुनील ग्रोवर) व अन्य. अमीर घमंड में चूर राज कपूर हर दिन अपने पड़ोसियों को परेाान करते है. एक सुबह राज कपूर की नौकरानी कामनी(सुश्री अन्नपूर्णा सोनी) लोगों को तथा पुलिस को सूचित करती है कि कपूर की मौत हो गयी है. वैसे दर्शक को अहसास हो जाता है कि कपूर की हत्या कैसे हुई है. पर कपूर की मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए शांत और नियंत्रित पुलिस इंस्पेक्टर  देवेंद्र (रणवीर शौरी) और उनके आकर्षक जूनियर सहयोगी तांबे (गिरीश कुलकर्णी)आते हैं.

इधर पुलिस मामले की जांच कर रही है, तो वहीं सनफ्लावर सोसाइटी के लिए एक नेक सचिव की तलाश शुरू करती है, जो समाज की तथाकथित गरिमा और शांति को बनाए रख सके. दिलीप अय्यर (आशीष विद्यार्थी) नैतिक पुलिस व्यवस्था के आदर्श रूपक के रूप में सेवा करते हुए संस्कृति और परंपरा के नाम पर कठोर नियमों और विनियमों के साथ आते हैं. डॉ. आहुजा बुराइयों का अवतार हैं. वह रूढ़िवादी,  हिंसक,  दोहरे चेहरे वाले,  पितृसत्तात्मक सोच के साथ ही इस कदर मंत्रमुग्ध इंसान है, जो बिस्तर पर पत्नी संग अंतरंग होने पर चाहते हैं कि पत्नी उनकी प्रशंसा करे. कहानी धीरे धीरे घिसटती रहती है. कई किरदार आते रहते हैं. कई बार इमानदार, तो कई बार मानसिक रोगी नजर आने वाले सोनू सिंह अपने आफिस की सहकर्मी  आंचल (सलोनी खन्ना)पर प्यार की डोर डालने के प्रयास मे लगे नजर आते है, आठवें एपीसोड में पता चलता है कि उनकी पहली प्रेमिका जुही ने उन्हे छोड़कर अशीश कपूर का हाथ थाम लिया था. प्रोफेसर आहुजा गुस्सैल हैं, यह बात सामने आती रहती है. वह अपना अपराध छिपाने के प्रयास में असफल होते रहतें हैं, मगर बार बार दोषारोपण अपनी पत्नी(राधा भट्ट ) पर करते रहते हैं.

सातवें एपीसोड में इंस्पेक्टर तांबे को सोनू सिंह हत्यारा नजर आात है जबकि इंस्पेक्टर देवेंद्र को प्रोफेसर आहूजा . आठवें एपीसोड में पुलिस सोनू सिंह की ही तलाश करती रह जाती है और सोनू सिंह अपहृत होकर चंडीगढ़ गुरलीन के पिता के पास पहुंच जाता है.

लेखन व निर्देशनः

‘सनफ्लावर’’नाम रूपक के तौर पर है. इस मर्डर मिस्ट्री व ब्लैक कॉमेडी वाली वेब सीरीज को इतना नुकीला ऐसा होना चाहिए था कि दर्शक देखते ही रह जाए, मगर यहां तो सब कुछ सपाट सा है. बेहतरीन कलाकारों के बावजूद वेब सीरीज सही नही बन पायी.  इस वेब सीरीज की अति कमजोर कड़ी है इसकी कहानी व पटकथा. कहानी इतनी धीमी गति से आगे बढ़ती है कि दर्शक अवसाद से ग्रस्त हो जाता है. यह अधपकी खिचड़ी के अलावा कुछ नही है. कई किरदारों का चरित्र चित्रण भी सही ढंग से नही हो पाया है.       ‘

कहानी अति धीमी गति से आगे बढ़ती है. सोनू सिंह यानी कि सुनील ग्रोवर का अपने घर को बंद कर आफिस जाने का दृश्य काफी बोरिंग है और इसे कई एपीसोड में दोहराया गया है. कैब ड्राइवर संग सोनू सिंह का मंुबई की सड़कों पर पकड़ा पकड़ी एकदम बचकानी हरकत लगती है और यह काफी लंबा दृश्य है, जो कि दर्शकों को बोर करता है.

यूं तो यह एक मर्डर मिस्ट्री है, मगर लेखक व निर्देशक ने इसमें कुछ विचित्र सामाजिक टिप्पणियां की है. मसलन-सोसायटी में बैचलर लड़कियों को किराए पर मकान न देना, तीन तीन शादीयां कर चुके पुरूषों,  ट्रांसजेंडर और पान बेचने वाले को सोसायटी में फ्लैट खरीदने पर पाबंदी लगाना वगैरह. . इस तरह की बातें समाज व देश को एकजुट नही खंडित करने का ही काम करती है.

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अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो अजीब, विचित्र और मजाकिया मासूमियत के सोनू सिंह के किरदार को जीवंत करने में सुनील गा्रेवर सफल रहे हैं. इंस्पेक्टर के किरदार में रणवीर शौरी भी ठीक हैं. इंस्पेक्टर तांबे की भूमिका में गिरीश कुलकर्णी अपने अंदाज में लोगों का मनोरंजन करने में सफल और लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं. गुरलीन के किरदार में सिमरन नेरूरकर प्रभावित करती हैं. उनके चेहरे व उनकी आवाज में मासूमियत हमेशा रहती है. आशीष विद्यार्थी,  मुकुल चड्ढा, अश्विन कौशल, दयाना इरप्पा, सलोनी खन्ना, सोनल झा का अभिनय ठीक ठाक है.

Shilpa Shetty ने कुछ इस अंदाज में मनाया 46वां बर्थडे, देखें फोटोज

बौलीवुड की फिटनेस एंड फैशन के लिए फैंस के बीच पौपुलर एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) ने हाल ही में अपना 46वां बर्थडे सेलिब्रेट किया है. कोरोना से जंग जीतने के बाद शिल्पा शेट्टी(Shilpa Shetty) का ये बर्थडे और भी खास बन गया है, जिसके चलते शिल्पा ने जर्नलिस्ट्स के साथ मिलकर अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया. इसी बीच उनके बर्थडे सेलिब्रेशन की इन्साइड फोटोज भी सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं बर्थडे की लेटेस्ट फोटोज…

मीडिया के साथ मनाया बर्थडे

एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty)ने मीडियावालों के साथ भी अपने बर्थडे के मौके पर जश्न मनाया. दरअसल, अदाकारा बर्थडे के मौके पर अपने घरवालों के साथ ही नजर आईं. वहीं शिल्पा शेट्टी के जन्मदिन पर बहन शमिता शेट्टी केक लेकर आई थीं. हालांकि इस दौरान शिल्पा शेट्टी ने कोरोना नियमों का पालन भी किया.

 

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 फैमिली के संग भी किया सेलिब्रेट

मीडिया के अलावा शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) ने अपना बर्थडे खास अंदाज में सेलिब्रेट किया. इस दौरान केवल उनकी फैमिली साथ नजर आईं. वहीं ढेर सारे केक को देखकर शिल्पा बेहद खुश दिखीं, जिसका अंदाजा उनकी बर्थडे वीडियो से लगाया जा सकता है. वहीं अपने बर्थडे पर विश करने वाले सभा लोगों को शिल्पा ने सोशलमीडिया के जरिए थैंक्यू भी कहा.

पति ने ऐसे किया विश

 

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सोशलमीडिया पोस्ट को लेकरअक्सर सुर्खियों में रहने वाले राज कुंद्रा ने वाइफ शिल्पा को सोशलमीडिया पर एक प्यारा सा वीडियो शेयर करके किया, जिसमें वह बेहद खुश लग रही थीं.

बता दें, बीते दिनों एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी कुंद्रा (Shilpa Shetty) का पूरा परिवार कोरोना की चपेट में आ गया था, जिसमें उनका छोटा बेटा भी शामिल था. हालांकि शिल्पा ने पूरे परिवार के हेल्दी होने की जानकारी फैंस को दे दी थी और कहा था कि वह मेरी फैमिली के लिए प्रार्थना करें.

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