लव इन सिक्सटीज : जानिए क्या करें और क्या नहीं

आधी से ज्यादा उम्र बीत जाने के बाद जब जीवन में किसी नए साथी के रूप में स्त्री या पुरुष का प्रवेश होता है तो एक नए अध्याय की शुरुआत होती है. इस नए अध्याय को पढ़ने की जिम्मेदारी उठाना बड़ा मुश्किल काम है.

आइए ऐसे नए रिश्ते जो खासकर अधिक उम्र में पनपें उन की साजसंभाल, जोखिम, परख और सावधानियों पर चर्चा करें ताकि जब भी उम्र के कई पड़ाव पार कर आप ऐसे किसी नए रिश्ते को संग ले चलने का निर्णय लें, तो खतरों को भांप सकें, जिद और मानसिक असंतुलन की स्थिति में नहीं, बल्कि वास्तविकता की समझ विकसित कर के.

स्त्री पुरुष की दोस्ती की कुछ मुख्य बातें:

स्त्रीपुरुष की दोस्ती में बस दोस्त का रिश्ता बहुत कठिन है. इस के अंतत: रोमांस में तबदील होने की पूरी संभावना रहती है.

स्त्रीपुरुष की दोस्ती अगर सिर्फ सामान्य दोस्ती रह पाए तो यह बहुत लंबी भी चल सकती है, लेकिन ऐसी दोस्ती में जब रोमांस आ जाता है तब दोस्ती की उम्र कम हो जाती है. बीच में साथ टूटने का अंदेशा रहता है.

उम्रदराज से क्रौस दोस्ती यानी विपरीत सैक्स से दोस्ती कब और किन हालात में हो सकती है और ऐसी दोस्ती के क्या कारक और जोखिम हैं इस पर काफी रिसर्च हुई है.

जब हो जाए कम उम्र के लड़के को अधिक उम्र की स्त्री से लगाव: कई बार कम उम्र के लड़कों की मानसिक स्थिति काफी परिपक्व रहती है और वे अपनी ही तरह किसी मानसिक रूप से परिपक्व स्त्री की दोस्ती चाहते हैं. ऐसे में जब उन्हें अपने से काफी अधिक उम्र की ऐसी स्त्री मिलती है, जो रुचि, व्यवहार, सोचसमझ और दृष्टिकोण में उन के साथ समानता रखे, तो उन की दोस्ती मजबूत हो जाती है. अगर बाद में ऐसे रिश्ते में रोमांस या शादी का रंग भर जाए तो आश्चर्य नहीं.

कम उम्र की स्त्री का अधिक उम्र के पुरुषों के प्रति लगाव और इस के कारण: इस स्थिति में कम उम्र की स्त्रियां अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति यहां तक कि पिता की उम्र के व्यक्ति से भी मानसिक, शारीरिक आधार पर जुड़ने की कामना रखती हैं. साइकोलौजिकल आधार पर देखा जाए तो ऐसा पुरुष उम्र की परिपक्वता के साथसाथ सैक्सअपील से भी भरपूर होता है. उसे खुद को प्रस्तुत करने का तरीका आता है और वह अपनी उम्र में नहीं, बल्कि व्यक्तित्व में जीता है.

कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे पुरुषों का अपनी बढ़ती उम्र की मजबूरी या असुविधाओं से ज्यादा ध्यान अपने व्यक्तित्व के गुणों को निखारने और प्रस्तुत करने पर होता है. ऐसे में उन के साथ मिलनेजुलने वाली स्त्री खुद उन पर ध्यान देती है, उन के संरक्षण में जाने और उन से जुड़ने का ख्वाब देखती है.

ऐसे पुरुषों का जीनगत प्रभाव भी काफी अच्छा रहता है. ये अपने कर्म, विचार और सामर्थ्य में शक्तिशाली, अपने परिवार की पूरी देखभाल करने वाले या फिर अपने ऊंचे पद और कर्मजीवन को बखूबी निभाने वाले होते हैं. ऐसे में कम उम्र की स्त्रियां इन पर समर्पित हो कर तृप्त होना चाहती हैं.

कई मामलों में पति की अवहेलना भी स्त्रियों के इन कर्मठ और रोमांटिक पुरुषों के प्रति आकर्षण का कारण बनती है. इन के सान्निध्य में अतृप्त स्त्रियां आत्मविश्वास वापस पाती हैं. इन पुरुषों के द्वारा की गई प्रशंसा, मदद इन्हें जीने की राह भी दिखा सकती है.

60 या इस के बाद की उम्र वाले पुरुषों का कम उम्र की स्त्रियों के प्रति झुकाव: ऐसी स्थिति आज के समाज में आम है. काम और व्यवसाय के सिलसिले में अधिक उम्र वाले पुरुषों से कम उम्र की स्त्रियों का नजदीकी वास्ता जब लगातार पड़े, तो पुरुष का इन स्त्रियों के प्रति हमदर्दी, अपनापन और रोमांस स्वाभाविक है.

ऐसे रिश्तों में पुरुष के व्यक्तित्व का खासा प्रभाव पड़ता है कि कम उम्र की स्त्रियों के साथ उन का आपसी संबंध कैसा होगा. दूसरे, पुरुष का स्वभाव और जुड़ने वाली स्त्री से पुरुष की अपेक्षाएं दोनों तय होती हैं उस पुरुष की बैकग्राउंड से. कैसे, आइए जानें:

उम्रदराज कामुक पुरुष और उस की स्त्री से अपेक्षाएं: ऐसे पुरुष स्वभाव से स्त्रीशरीर कामी होते हैं. ये अपनी कामनापूर्ति के लिए नाखुश रहने को ढाल बना कर स्त्री के भोग का बहाना ढूंढ़ ही लेते हैं. इस से इन्हें समाज व्यवस्था या न्यायव्यवस्था को न मानने के दोष से उबरने का सहारा मिलता है. इस तरह अपराधभावना से बच कर सिर्फ अपने स्वार्थ को तवज्जो देते हैं.

भोगी पुरुषों की पहचान और स्त्री की इन से खुद की सुरक्षा: यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दा है. नौकरी हो या व्यवसाय या फिर कैरियर का कोई भी पहलु 20 से 40 साल की महिला को ज्यादातर उम्रदराज पुरुषों के सान्निध्य में काम करना पड़ता है.

ऐसी स्त्रियां अपनी बातों, विचारों, व्यवहार और गुणों की वजह से अकसर सब के आकर्षण का केंद्र होती हैं. स्वाभाविक है कि उम्रदराज पुरुष ऐसी स्त्रियों का सान्निध्य ज्यादा चाहें. मगर बात तब बिगड़ती है जब ये दोस्ती के नाम पर स्त्रियों को लुभा कर उन्हें अपने चंगुल में फंसाते हैं. जो स्त्रियां जानबूझ कर अपने रिस्क पर इन रिश्तों में आगे बढ़ती हैं उन के लिए यह चर्चा भले ही काम की न हो, लेकिन उन्हें आगाह करना जरूरी है जो ऐसे पुरुषों की दोस्ती को बिना समझे ही अपना लेती हैं और बाद में उन्हें न पीछे लौटने का रास्ता मिलता है, न आगे जाने का. इन्हीं शरीरकामी पुरुषों की मानसिकता की कुछ झलकियां हैं, जिन्हें जान लेने से ऐसे पुरुषों की पहचान आसान हो जाएगी:

ऐसे पुरुष शुरुआती दौर में भावनात्मक पहल करते ही पाए जाते हैं.

जुड़ने वाली स्त्री की हर जरूरत का खयाल रखना चाहते हैं.

स्त्री के परिवार में पति या निकट के लोगों में खामियां ढूंढ़ कर वे खुद भला बन कर स्त्री पर छा जाना चाहते हैं.

काम के क्षेत्र में अतिरिक्त सुविधा देते हैं.

गाहेबगाहे स्त्री शरीर का स्पर्श करते हैं, लेकिन उसे केयर का रूप देते हैं.

झूठ बोलने और अभिनय में माहिर होते हैं.

शिकार को पूरा वक्त देते हैं, चाशनी में उतारने की जल्दी नहीं करते.

उम्रदराज पुरुषों का कम उम्र की स्त्री से भावनात्मक संबंध: अधिक उम्र वाले ऐसे पुरुष भी होते हैं जो कम उम्र की समझदार स्त्री से दोस्ती का भावनात्मक संपर्क बनाए रखना चाहते हैं. ऐसे पुरुष ऐसी स्त्री के साथ दोस्ती रखना चाहते हैं, जो विचारों, स्वभाव और अनुभूति में उन के समान हो.

अगर ऐसे संबंध सहज हों, विचारों के आदानप्रदान से ले कर स्वस्थ मानसिकता तक दर्शाते हों और दोनों के पारिवारिक संबंधों को नष्ट न करते हों, तो यह दोस्ती ठीक है.

भावनात्मक सहारे ढूंढ़ने वाले पुरुषों की पारिवारिक स्थिति: ऐसे पुरुष घर में अकसर पत्नी को जीवनसंगिनी का वह मोल नहीं दे पाते जिस की पत्नी को अपेक्षा रहती है. ऐसे व्यक्ति पारिवारिक जिम्मेदारियां तो निभाते हैं और पत्नी की जरूरतों को भी पूरा करते हैं, लेकिन पत्नी को खुद के बराबर नहीं समझते.

हो सकता है, पत्नी में भी उन का सहारा बनने की योग्यता न हो, घरपरिवार में कई तरह के क्लेश हों या पुरुष के कामकाजी जीवन की मुश्किलों को उस की पत्नी न समझती हो या फिर उस पुरुष की अपेक्षाएं इतनी हों कि उन पर खरा उतरना उस की पत्नी के लिए संभव न हो.

जो भी कारण रहे, अगर बाहरी स्त्रीपुरुष में संबंध बन ही गए हों, तो ‘लव इन सिक्सटीज’ के लिए कुछ मुख्य बातें जो स्त्रीपुरुष दोनों पर ही लागू होंगी:

ऐसे साझा संबंध निभाते वक्त सब से पहले संबंध का प्रकार अवश्य तय कर लें. इस पर अमल दोनों ही करें. मसलन, यह संबंध सिर्फ दोस्ती का है और दोस्ती ही रहेगी या इस संबंध को आगे किसी भी मोड़ तक ले जाने को दोनों स्वच्छंद हैं.

दोनों अपनी दोस्ती को समाजपरिवार से छिपा कर रखेंगे या जाहिर करेंगे, यह भी दोनों तय कर लें.

दोनों ही एकदूसरे को कोई छोटामोटा गिफ्ट देने तक ही सीमित रहें. बड़ा गिफ्ट देने से बचें. इस से परिवार विद्रोह पर उतर सकता है और आप बेमतलब के झंझट में फंस सकते हैं.

आपसी रिश्ते को पारदर्शी रखें और सच के साथ जुड़े रहें. इस से दोस्त को आप की सीमाओं का भान रहेगा और आप से उस की अपेक्षाएं कम रहेंगी.

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कम जगह में कैसे बढ़ाएं प्यार

परिवार एक एकल इकाई है, जहां पेरैंट्स और बच्चे एकसाथ रहते हैं. इन्हें प्रेम, करुणा, आनंद और शांति का भाव एकसूत्र में बांधता है. यही उन्हें जुड़ाव का एहसास प्रदान करता है. उन्हें मूल्यों की जानकारी बचपन से ही दी जाती है, जिस का पालन उन्हें ताउम्र करना पड़ता है. जो बच्चे संयुक्त परिवार के स्वस्थ और समरसतापूर्ण रिश्ते की अहमियत समझते हैं, वे काफी हद तक एकसाथ रहने में कामयाब हो जाते हैं.

साथ रहने के फायदे

बच्चों के साथ जुड़ाव और बेहतरीन समय बिताने से हंसीठिठोली, लाड़प्यार और मनोरंजक गतिविधियों की संभावना काफी बढ़ जाती है. इस से न सिर्फ सुहानी यादें जन्म लेती हैं बल्कि एक स्वस्थ पारिवारिक विरासत का निर्माण भी होता है.

इस का मतलब यह नहीं है कि हमेशा ही सबकुछ ठीक रहता है. एक से अधिक बच्चों वाले घर में भाईबहनों का प्यार और उन की प्रतिद्वंद्विता स्वाभाविक है. कई बार स्थितियां मातापिता को उलझन में डाल देती हैं और वे अपने स्तर पर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं तथा घर में शांतिपूर्ण स्थिति का माहौल बनाते हैं.  कम जगह में आपसी प्यार बढ़ाने के खास टिप्स बता रही हैं शैमफोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोड़ा :

व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्यवस्था : प्रत्येक बच्चे के लिए एक कमरे में व्यक्तिगत आजादी का प्रबंध करने से उन में व्यक्तिगत जुड़ाव की भावना का संचार होता है. प्रत्येक बच्चे के सामान यानी खिलौनों को उस के नाम से अलग रखें और उस की अनुमति के बिना कोई छू न सके. बच्चों में स्वामित्व की भावना परिवार से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है जिस से अनेक सकारात्मक परिवर्तन होते हैं. कमरे को शेयर करने के विचार को दोनों के बीच आकर्षक बनाएं.

नकारात्मक स्थितियों से बचाएं बच्चों को : भाईबहनों में दृष्टिकोण के अंतर के कारण आपस में झगड़े होते हैं. इस के कारण वे कुंठा को टालने में कठिनाई महसूस करते हैं और किसी भी स्थिति में नियंत्रण स्थापित करने के लिए झगड़ते रहते हैं, आप अपने बच्चों को ऐसे समय इस स्थिति से दूर रहने के लिए गाइड करें.

हमें अपने बच्चों को झगड़े की स्थिति को पहचानने में सहायता करनी चाहिए और इसे शुरू होने के पहले ही समाप्त करने के तरीके बताने चाहिए.  व्यक्तिगत सम्मान की शिक्षा दें : प्रत्येक व्यक्ति का अपना खुद का शारीरिक और भावनात्मक स्थान होता है, जिस की एक सीमा होती है, उस का सभी द्वारा सम्मान किया जाना चाहिए. बच्चों को समर्थन दे कर उन की सीमाओं को मजबूत करें.

उन्हें दूसरे बच्चों की दिनचर्या और जीवनशैली का सम्मान करने की शिक्षा भी दें. यदि दोनों भाईबहन पहले से निर्धारित सीमाओं से संतुष्ट हैं तो उन के बीच पारस्परिक सौहार्द बना  रहता है.

क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करें : कभी ऐसा भी समय आता है, जब एक बच्चा दूसरे बच्चे की किसी चीज को नुकसान पहुंचा देता है या उस से जबरन ले लेता है. ऐसे में पेरैंट्स को चाहिए कि जिस बच्चे की चीज ली गई है उस बच्चे की भावनाओं का खयाल कर उस के लिए नई वस्तु का प्रबंध करें और गलत काम करने वाले बच्चे को उस की गलती का एहसास करवाएं.

इस से परिवार में अनुशासन और ईमानदारी सुनिश्चित होगी. इस से भाईबहनों को भी यह एहसास होता है कि  पेरैंट्स उन का खयाल रखते हैं और घर में न्याय की महत्ता बरकरार है.  चरित्र निर्माण में सहयोग : एकदूसरे के नजदीक रहने से दूसरे के आचारव्यवहार पर निगरानी बनी रहती है. किसी की अवांछनीय गतिविधि पर अंकुश लगा रहता है. यानी कि बच्चा चरित्रवान बना रहता है. किसी समस्या के समय दूसरे उस का साथ देते हैं. दूसरी और, सामूहिक दबाव भी पड़ता है और बच्चा गलत कार्य नहीं कर पाता. अत: मौरल विकास अच्छा होता है.

बच्चे की जागरूकता की प्रशंसा करें : यदि कोई बच्चा समस्या के समाधान की पहल करता है और नकारात्मक स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करता है तो उस की प्रशंसा करें.

समस्या के समाधान के सकारात्मक नजरिए को सम्मान प्रदान करें, क्योंकि इस से उस का बेहतर विकास होगा और वह परिपक्वता की दिशा में आगे बढ़ेगा. प्रोत्साहन मिलने  से हम अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं.  इस से बच्चों को अपनी उपलब्धियों पर गर्व का एहसास होगा और वे इस स्वभाव को दीर्घकालिक रूप से आगे बढ़ाएंगे. हमेशा बच्चे द्वारा नकारात्मक स्थिति में सकारात्मक समाधान तलाशने के प्रयास की प्रशंसा करें.  याद रखें इन नुस्खों को अपना कर आप अपने बच्चों को संभालने में आसानी महसूस करेंगे. भाईबहन एकदूसरे के पहले मित्र और साझीदार होते हैं, जो एक सुंदर व स्वस्थ समरसता को साझा करते हैं, इस से कम जगह में भी पूरा परिवार खुशीखुशी जीवन व्यतीत कर सकता है.

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युवती भी बन जाए कभी युवक

सैक्स की इच्छा युवक व युवती दोनों की होती है. पर देखा यह गया है कि युवक ही इस की शुरूआत करते हैं पर यदि युवती सैक्स की शुरुआत करे तो युवक को भरपूर आनंद मिलता है लेकिन समस्या यह है कि सैक्स की पहल करे कौन? इस बारे में किए गए एक शोध में पता चला है कि तकरीबन 80 प्रतिशत युवक सैक्स की शुरुआत और इच्छा जाहिर करते हैं. 10 प्रतिशत ऐसे युवक भी हैं जो सैक्स की इच्छा होने पर भी बिस्तर पर पहुंच कर युवती की इच्छाअनिच्छा जाने उस पर टूट पड़ते हैं. कई इस दुविधा में रहते हैं कि पहल करें या न करें.

सैक्स की इच्छा

 सैक्स युवकयुवती का सब से निजी मामला है. दोनों आपसी सहमति से इस का मजा लेते हैं. इस मामले में देखा गया है कि सैक्स की पहल युवक ही करते हैं. इस का मतलब यह नहीं कि युवतियों में सैक्स की इच्छा नहीं होती या वे सैक्स संबंध के लिए उत्सुक नहीं रहतीं.

सच तो यह है कि हमारे देश (मुसलिम देशों में भी) में युवतियों के दिमाग में बचपन से ही यह बात भर दी जाती है कि सैक्स अच्छी बात नहीं होती. इस से बचना चाहिए. अपने प्रेमी के सामने भी कभी सैक्स की इच्छा जाहिर नहीं करनी चाहिए. न ही खुद इस की पहल करनी चाहिए. यह बात उन के दिमाग में इस कदर बैठ जाती है कि प्रेम के बाद वे अपने प्रेमी से इस बारे में बात नहीं कर पाती और न ही खुल कर इच्छा जाहिर कर पाती हैं.

एक महत्त्वपूर्ण बात और है, सबकुछ भूल कर साहस के साथ यदि कोई युवती अपने प्रेमी से सैक्स की पहल कर दे तो उस के लिए आफत आ सकती है, क्योंकि उस का प्रेमी उसे खाईखेली समझ सकता है. इसी भय से सैक्स की इच्छा होते हुए भी युवती इस की पहल नहीं करती. यह बात सच है कि युवकों में युवतियों के सैक्स की पहल को ले कर गलत धारणा है कि जो युवती सैक्स की पहल करती है वह खेलीखाई होती है. देश में आज भी सैक्स को बुराई ही समझा जाता है इसलिए भी युवतियां अपनी ओर से पहल करने से कतराती हैं जबकि विदेशों की युवतियां बराबर शरीक होती हैं.

कनाडा के एक मनोचिकित्सक डा. भोजान ने हाल ही में सैक्स की पहल को ले कर औनलाइन सर्वे करवाया, जिस में यह पता करना था कि सैक्स को ले कर युवक और युवतियों का नजरिया क्या है. अधिकतर युवतियां सैक्स को भरपूर ऐंजौय करना तो चाहती हैं, पर सैक्स की पहल उन के ऐंजौय में आड़े आती है. इच्छा होने पर भी वे पहल नहीं कर पातीं और अनिच्छा होने पर मना भी नहीं कर पाती हैं. डा. भोजान का कहना है, युवतियों को सैक्सुअली ऐक्टिव बनाने के लिए उन में इमोशंस की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. सैक्स का आनंद वे तभी उठा पाती हैं.

मजेदार बात यह है कि सैक्स की पहल को ले कर युवकों का नजरिया काफी बदला है. अब युवक भी चाहता है कि उस की पार्टनर सैक्स के बारे में उस से खुल कर बात करे. उस से सैक्स की इच्छा जाहिर करे.

यह जान कर अधिकतर युवतियों को विश्वास नहीं होगा कि औनलाइन सर्वे में पता चला है कि युवक अपने मन में युवती की तरफ से पहल की चाह संजोए रहते हैं, लेकिन उन की चाह बहुत कम ही पूरी हो पाती है. युवतियों द्वारा पहल न करने की वजह से मजबूरन युवकों को अपनी तरफ से पहल करनी पड़ती है.

युवती करे पहल

 जब सैक्स की चाह युवती और युवक दोनों में समान होती है तो ऐसे में सिर्फ युवक ही सैक्स की पहल क्यों करें? युवतियों को भी कभीकभी सैक्स की पहल करनी चाहिए ताकि वे सैक्स को अपनी तरह से ऐंजौय कर सकें.

सर्वे में यह भी पता चला है कि युवतियों को ले कर उन की सोच बदल रही है. युवक भी यह बात समझने लगे हैं कि सैक्स की इच्छा सिर्फ उन में ही नहीं युवतियों में भी होती है. ऐसे में युवती अपने पति से सैक्स की पहल करती है तो इस में बुराई क्या है? सर्वे में अनेक युवकों का कहना था कि अपनी पार्टनर की ओर से की गई पहल उन की रगरग में जबरदस्त जोश भर देती है.

डा. भोजान कहते हैं कि युवक के जोश का युवती के सैक्सुअल सैटिस्फैक्शन से सीधा संबंध होता है. मतलब अपनी ओर से की गई पहल का फायदा उन्हें सीधे तौर पर मिलता है.

युवतियों को अब जान लेना चाहिए कि जमाना बदल गया है. दुनिया भर के युवकों की सोच भी बदल रही है. अपनी झिझक और डर को दूर कर बेझिझक हो कर आप भी कभीकभी युवक बन जाएं और सैक्स ऐंजौय करें.

यहां कुछ तरीके बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपना कर आप पार्टनर को सैक्स के लिए उत्साहित कर सकती हैं.

आत्मविश्वास लाएं : सब से पहले अपने अंदर आत्मविश्वास लाएं, ताकि बेझिझक सैक्स की पहल कर सकें.

मूड बनाएं : अपने पार्टनर के मूड को देखें और उस के साथ प्यार भरी बातें करें. आप की बातें ऐसी होनी चाहिए कि इस में तैरते हुए सैक्स में डूब जाएं. लव मेकिंग के दौरान खुल कर सैक्स की बातें करें. यदि आप शर्मीली हैं तो डबल मीनिंग वाले नौटी जोक्स उन पलों का मजा बढ़ा देंगे.

तारीफ करें : आज की रात आप खुद ही लगाम थामिए. सब से पहले उन की तारीफ की झड़ी लगा दें. फिर कान में फुसफुसा कर  अचानक किस कर उन्हें हैरान करें. कान में की गई फुसफुसाहट उन की रगों में खून का लावा भर देगी. जब हर कहीं ऐक्सपैरिमैंट की बहार चल रही है तब सैक्स लाइफ में इसे क्यों न आजमाएं.

छेड़छाड़ करें : लव मेकिंग के लिए छेड़छाड़ को मामूली क्रिया न समझें. अपनी ओर से पहल करते हुए पार्टनर के साथ छेड़छाड़ करें. इस दौरान कमरे की लाइट धीमी कर दें. साथ में हलका रोमांटिक हौट म्यूजिक बजा दें. कमरे की धीमी लाइट में आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं, जिस से रोमांस हार्मोंस शरीर में तेजी से बढ़ने लगता है. साथ में हौट म्यूजिक. इस पल के लिए पूरी रात भी आप के लिए कम पड़ेगी.

आकर्षक लगें : सैक्स की इच्छा अपने पार्टनर से जाहिर करनी है तो अट्रैक्टिव व सैक्सी मेकअप करें. फिर देखें बैडरूम में अपनी बोल्ड ब्यूटी को देख कर उन्हें आज की रात का प्लान समझते देर नहीं लगेगी.

माहौल बनाएं : अपने आसपास का माहौल खुशबूदार व रोमांटिक बनाएं. इस के लिए बेहद हौट म्यूजिक बजाएं. रोमांटिक सौंग गुनगुनाएं. तेज परफ्यूम का छिड़काव करें. ऐेसे माहौल में उन के अंदर आग भड़काने में देर नहीं लगेगी. आप के शरीर की भीनीभीनी खुशबू और गरम सांसें उन को बेचैन करने के लिए काफी हैं. क्यों न उन की पसंद की खुशबू का इस्तेमाल कर उन्हें कहर ढाने के लिए मजबूर कर दें.

खुलापन लाएं : अपने पार्टनर पर खुल कर प्यार लुटाएं. किस करें, गले लगें, बांहों में जकड़ लें. आहें या सिसकियां भरें, ब्लाउज या ब्रा के बटन लगाने या खोलने के बहाने उन्हें अपने पास बुलाएं, टौवेल में उन के सामने हाजिर हो जाएं. आप के खुलेपन को देख कर आप की भावनाओं को वे बड़ी आसानी से समझ जाएंगे. मूड न होने पर भी उन का मूड बन जाएगा.

सैक्सी लौंजरी : लौंजरी, नाइटी या अंडरगारमैंट की खूबी को ऐसे मौके पर इस्तेमाल करें. इन्हें खरीदते वक्त खासकर इस के फैब्रिक पर ध्यान दें. महीन, मुलायम और फिसलन वाले फैब्रिक हो, जिन पर हाथ फेरते ही उन के हाथ खुदबखुद फिसलने लगेंगे. इस के आकार और रंग का भी ध्यान रखें. यह आप की नहीं उन की पसंद की हो.

हौलेहौले : यदि आप रात को कुछ खास बनाना चाहती हैं तो देर न करें. उन के बैडरूम में आते ही उन के नजदीक जा कर प्यार जताएं. एकएक कर उन के कपड़े उतारना शुरू करें. आप का बदला रूप देख कर वे ऐक्साइट हो जाएंगे. उन्हें हौट होने में देर नहीं लगेगी. यह उन्हें शारीरिक रूप से ही नहीं मानसिक रूप से भी उत्तेजित करता है.

पोर्न ट्रंप : अगर आप सचमुच में सैक्स के क्लाइमैक्स को ऐंजौय करना चाहती हैं तो पोर्न को ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल करें. उन के सामने पोर्न फिल्म, साइट, मैगजीन या अन्य सामग्री ले कर बैठ जाएं. फिर देखें उन में कैसे जोश भरता है.

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व्यावहारिकता की खुशबू बिखेरते रिश्ते

नीता अपने मातापिता की इकलौती संतान है. नीता के पापा इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए अब उस की मां उसी के पास रहती हैं. नीता एक कामकाजी महिला है. उस का पति विकास भी नीता की मां की जिम्मेदारियां बखूबी निभाता है. वह यह जानता है कि अगर नीता की मां खुश रहेंगी तो बदले में उस के मातापिता को नीता से उचित सम्मान मिलेगा.

बदलते परिवेश में बदलते रिश्तों का यह स्वरूप वाकई तारीफ के काबिल है. अब जब संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हो रहा है और एकल परिवार तेजी से अपने पांव जमा रहे हैं, तब ऐसे में लोगों की परिपक्व होती सोच हमारे समाज के लिए एक अच्छा संकेत है.

आज हम सभी इस बात को गहराई से महसूस कर रहे हैं कि जब तक हमारा जीवन है तब तक रिश्तों की अहमियत भी है. माना कि अब हमारे रिश्तों का दायरा सिकुड़ता जा रहा है पर बचे हुए रिश्तों को बचाने की पुरजोर कोशिश करना एक सुखद पहल है.

आयशा, जो एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्चपद पर कार्यरत है, किसी से खास मतलब नहीं रखती थी. पर जब वह बीमार पड़ी तब उसे महंगी चिकित्सा के साथसाथ प्यार के दो मीठे बोल सुनने की आवश्यकता भी महसूस हुई. बस, फिर तो ठीक होते ही उस ने अपने बिगड़े रिश्तों को जिस तरह संभाला, वह सभी के लिए अनुकरणीय बन गया.

रिश्तों को संजोना : 

रिश्तों में अहं की भावना की जगह अब जिम्मेदारी ने ले ली है. हर कोई अपनी परिपक्व सोच का परिचय देता हुआ रिश्तों की सारसंभाल में लगा है. अब जब सभी ही कामकाजी हैं और सभी के पास समय की कमी है, तब ऐसे में एकदूसरे के प्रति पनपती केयरिंग की भावना ने रिश्तों को एक नए कलेवर में ढाला है. इसलिए ही तो आज की सास अपनी कामकाजी बहू की परेशानियां भलीभांति समझने लगी है और शायद इसी के चलते वह अपनी सुबह की पूजा के आडंबरों को छोड़, किचन की अन्य जिम्मेदारियां भी बखूबी निभाने लगी है. और इसलिए ही सुबह की सैर से लौटते ससुरजी भी सब्जी व फलों की खरीदारी से गुरेज नहीं करते. इस तरह घर के कामों में हाथ बंटा कर दोनों ही मुख्यधारा से जुड़ने को प्रयासरत हैं.

अगर सासससुर बेहिचक घर की सारी जिम्मेदारियों में भागीदार बनते हैं तो बदले में उन के बेटेबहू भी उन्हें किसी चीज की कमी का एहसास नहीं होने देते. इसलिए ही तो इस बार जब नीरा को शिमला में कंपनी का गैस्टहाउस रहने को मिला तो वह अपने सासससुर को भी साथ ले गई. दिल्ली की उमसभरी गरमी से नजात पा कर उस के सासससुर को बहुत अच्छा लगा और साथ ही, नीरा की बदलती सोच के कारण उन लोगों की आपसी नजदीकियों में भी इजाफा हुआ. आपस में पनप रही छोटीमोटी गलतफहमियां भी दूर हो गईं.

बदलता नजरिया : 

रीमा ने इस बार राखी का गैटटुगैदर अपने यहां करने का मन बनाया था क्योंकि उस की भाभी भी वर्किंग हैं और कोई प्रोजैक्ट वर्क चलने के कारण वे इस बार राखी पर व्यस्त थीं. रीमा की इस पहल से उस के भाईभाभी खुश थे. पर, रीमा की सास उस के यहां रहने आई हुई थीं, इसलिए वह थोड़ी हिचक रही थी. पर जब रीमा की सास को यह सब पता चला तो न सिर्फ उन्होंने रीमा को प्यारभरी झिड़की दी बल्कि खुद आगे बढ़ कर सारे कामों में उस की मदद भी की. गैटटुगैदर के बाद जब सभी ने रीमा की सास की पाककला सराही तब रीमा का भी मन भर आया.

आज जब सभी पुरानी विचारधारा को छोड़ कर खुद को परिस्थितियों के अनुसार ढालने की भावना से आगे बढ़ रहे हैं, तब ऐसे में सीमित होते रिश्तों को सहेजना ज्यादा आसान होता जा रहा है. शायद अब सभी इस बात को महसूस करने लगे हैं कि अच्छे लोगों का हमारी जिंदगी में आना अच्छा होता है. पर उन्हें संभाल कर रखना हमारा हुनर होता है.

पीछे छूटती परंपरागत सोच :

  आज इस तरह की पुरानी सोच कि, बेटी के घर का पानी पीना भी हराम है या भाईबहन के घर खाना अच्छा नहीं लगता, पर विराम लगा है. अब लोग अपनी सुविधा के अनुसार अपनी बेटी या बहन के घर जाने लगे हैं. आज अगर 1-2 बच्चों के साथ भी तथाकथित पुरानी सोच चलती रही तो हम डिप्रैशन का शिकार अवश्य ही हो जाएंगे क्योंकि सपनों का साथ व अपनों का प्यार हमें पगपग पर चाहिए और अब जब संयुक्त परिवार समाज के हाशिए पर सिमट कर रह गए हैं, तब ऐसे में ऐसी दकियानूसी सोच हमारे दिमाग का दिवालियापन ही घोषित करेगी.

काव्या की लवमैरिज है. अब चूंकि उस का मायका उस की ससुराल के पास ही है तब ऐसे में उस की मां अकसर ही उस की ससुराल आती रहती हैं क्योंकि काव्या अपने मातापिता की इकलौती संतान जो है. काव्या की शादी के बाद उस की मां अकेलेपन के कारण डिप्रैशन की शिकार हो गई थीं, इसलिए काव्या की सास खुद ही उन से मिलने चली जाती हैं या उन्हें अपने यहां बुला लेती हैं. कभीकभी तो दोनों साथसाथ लंच पर भी बाहर चली जाती हैं. 2 समधिनों को यों सहेलियों की तरह घूमते देख न सिर्फ सभी को अच्छा लगता है, बल्कि सभी की परंपरागत सोच में भी बदलाव लाता है.

आत्मकेंद्रित सोच पर लगता विराम: 

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट यह बात मानते हैं कि अब रिश्तों में निरंतर बढ़ रही आत्मकेंद्रित सोच पर विराम लगा है और शायद इसी वजह से रिश्तों का यह बदला हुआ स्वरूप उभरा है. अब हर कोईर् अपने ईगो को एकतरफ रख कर सामने वाले के बारे में सोच कर उस की सहायता करने लगा है, जो कि आज के बदलते परिवेश के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है. मालिनी और नेहा सगी बहनें हैं. उन का कोई भाई नहीं है. पिता की मृत्यु के बाद उन दोनों ने अपने घरों के पास अपनी मां को एक छोटा सा फ्लैट दिलवा दिया ताकि जरूरत पड़ने पर उन की मदद करने में उन्हें आसानी हो.

वैसे तो बड़ी होने के कारण मालिनी ही अपनी मां की ज्यादा सहायता करती थी पर इस बार जब उस की मां अचानक बीमार पड़ीं तब उस की छोटी बहन नेहा ने अपनी बीमार मां को संभाला. इस बार मालिनी मार्च माह की क्लोजिंग की वजह से अपने बैंक के कामों में बेहद बिजी थी. नेहा का खुद आगे बढ़ कर मां की सारी सारसंभाल देख मालिनी का दिल भर आया और जानेअनजाने ही उन दोनों की नजदीकियां भी बढ़ गईं.

रमेश इस बार सैलरी समय पर न मिलने पर अपने नए फ्लैट की ईएमआई नहीं भर पाया तो उस की छोटी बहन पारुल ने चुपचाप औनलाइन ईएमआई भर दी. जब रमेश को यह सब पता चला तो वह पारुल के प्रति कृतज्ञ हो उठा. बाद में जब रमेश ने पारुल को पैसे लौटाने चाहे तब पारुल गुस्सा हो गई और अपने से 8 साल बड़े भाई

रमेश से लगभग झिड़कती हुई बोली, ‘‘क्या भाई, क्या आप का घर मेरा घर नहीं है? और फिर, क्या घर की सारी जिम्मेदारियां निभाने का ठेका आप ने ही ले रखा है?’’

पारुल की इस प्यारभरी झिड़की से न सिर्फ रमेश को अच्छा लगा बल्कि उन के रिश्तों में भी एक नई ऊर्जा का संचार हुआ. आज के बदलते परिवेश में रिश्तों का यह बदला स्वरूप वाकई ही हमारे प्रगतिशील समाज की सही व सटीक तसवीर प्रस्तुत करता है. अब सभी का एकदूसरे की परेशानियों को समझते हुए आपस में सहायक बनना क्या रिश्तों में गर्मजोशी नहीं बढ़ाएगा?

समय चाहे कैसा हो, पर रिश्तों की मिठास ताउम्र बनी रहनी चाहिए क्योंकि रिश्तों के बिना हम अपने अस्तित्व की कल्पना नहीं कर सकते. इसलिए रिश्तों को बचाने के लिए कुछ समझौते भी करने पड़ें तो पीछे न हटें. हमेशा समझौता करना सीखिए क्योंकि थोड़ा सा झुक जाना किसी रिश्ते को हमेशा के लिए छोड़ देने से बहुत बेहतर है. किसी ने क्या खूब कहा है :

जिंदगी में किसी का साथ काफी है,

कंधे पर किसी का हाथ काफी है,

दूर हो या पास फर्क नहीं पड़ता,

रिश्तों का बस एहसास काफी है.

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महामारी के बाद छोटे बच्चों को स्कूल जाने और पढने की रूचि को बढ़ाएं कुछ ऐसे

कोविड के बाद रीना अपनी 5 साल के बेटे से बहुत परेशान है, क्योंकि उसका बेटा रेयान दिन भर खेलना चाहता है. स्कूल जाना नहीं चाहता, रोज कुछ न कुछ बहाने बनाता है, एक दिन उसकी माँ बहुत घबरा गयी, क्योंकि उसने माँ को बताया कि उसे पेटदर्द हो रहा है, माँ पहले उसे पेट दर्द की दवा दी और उसे लेकर डॉक्टर के पास जब जाने लगी तो उसने माँ से कहा कि उसका पेट दर्द ठीक हो गया है. फिर भी माँ नहीं मानी और डॉक्टर ने जाँच कर बताया कि कुछ सीरियस नहीं है, शायद मौसम की वजह से ऐसा हुआ है. उसे सादा खाना देना ठीक रहेगा.

कोविड महामारी की वजह से ऑनलाइन पढाई कर रहे छोटे बच्चों कीसमस्या पेरेंट्स के लिए यह भी है कि अब ऑनलाइन नहीं है,लेकिन बच्चेमोबाइल के लिए जिद करते है, न देने पर अपनी मनमानी कुछ भी करते है. मोबाइल मिलने पर कार्टून देखना शुरू कर देते है. कल्पना की 6 साल की बेटी मायरा भी कुछ कम नहीं अपनी अपर केजी की क्लास में न जाकर नर्सरी में बैठी रहती है,उसकी भोली सूरत देखकर टीचर भी कुछ नहीं कहती. कल्पना के लिए बहुत समस्या है. उन्हें हर दूसरे दिन उसे दूसरे बच्चे से क्लास की पढाई का नोट्स लेना पड़ता है. पूछने पर मायरा कहती है कि आप तो पहले ऑनलाइन पढ़ाते समय सारे नोट्स लेती थी, अब भी ले लीजिये, मैं घर आकर आपसे पढ़ लेती हूँ. ऐसे व्यवहार केवल रीना और कल्पना ही फेस नहीं कर रही, बल्कि बाकी बच्चों की माएं भी परेशान है, उन्हें इस बात की फ़िक्र है कि पहले की तरह बच्चों में स्कूल के प्रति रुझान कैसे लाई जाय. हालाँकि बच्चे स्कूल जाकर खुश है, लेकिन उनके पुराने मित्र भी नए बन चुके है. वे चुपचाप एक कोने में बैठे रहते है और टीचर के कुछ कहने पर अनसुना कर देते है. दो साल का गैप छोटे बच्चों और उनके पेरेंट्स के लिए एक समस्या अवश्य है, लेकिन उसे ठीक करने के लिए कुछ उपाय निम्न है, जिसे टीचर्स और पेरेंट्स को धैर्य के साथ पालन करना है.

बच्चों के व्यवहार को समझे

देखा जाय, तो इसमें बच्चों का दोष भी नहीं, उन्हें क्लासरूम में सारेटीचर्स उन्हें नए लग रहे है,पिछले दो सालों में कई टीचर्स बदले गए या फिर छोड़कर चले गए, जिससे बच्चे उनसे बात करने या कुछ पूछने से डर रहे है. इस बारें में मुंबई की ओर्किड्स द इंटरनेशनल स्कूल की इंग्लिश अध्यापिका नेहा लोहाना कहती है कि छोटे बच्चों को एक रूटीन और अनुसाशन में लाना अब एक बड़ी चुनौती हो चुकी है, क्योंकि अभी इन बच्चों ने अधिकतर समय अपने पेरेंट्स के साथ इनडोर गेम्स खेलते हुए बिताया है. इसे ठीक करने के लिए पेरेंट्स और टीचर्स मिलकर कदम उठाने की जरुरत है, जिसमे उन्हें लर्निंग अनुभव और एक्टिविटीज के द्वारा एक प्लान बनाने की जरुरत होती है.पेरेंट्स अपने काम को थोड़ा रोककर बच्चे की सीखने या कुछ देखने की आदतों को सुधारें. अगर बच्चा रोज-रोज घर आकर टीचर्स के बारें में कुछ आरोप लगाता है, तो उसे धैर्य से समझने की कोशिश करें, डांटे नहीं. इसके बाद टीचर से कहकर उसके लिए कुछ दूसरे एक्टिविटीज को लागू करने की कोशिश करें, जो उसके लिए रुचिपूर्ण हो. इसके अलावा टीचर्स के साथ स्कूल के नए माहौल में बच्चे को सुरक्षा और सुरक्षित महसूस करें, ये सुनिश्चित करना बहुत जरुरी है. हालाँकि ये थोड़े दिनों में ठीक हो जायेगा, पर अभी के लिए ये बहुत चुनौतीपूर्ण है.

नए क्लास में उत्तीर्ण की चुनौती

कोविड के दौरान कुछ बच्चों ने शुरू के दो साल के क्लासेस पढ़े नहीं है और उन्हें अगले कक्षा में उत्तीर्ण कर दिया गया है,ऐसे में उन्हें नयी कक्षा में पढाई को समझ पाना मुश्किल हो रहा है. इस समस्या के बारें में पूछने पर इंग्लिश टीचर नेहा कहती है कि ये समस्या वाकई सभी स्कूलों के लिए एक बड़ी चुनौती है. लॉकडाउन के दौरान घर पर ऑनलाइन पढ़ाते हुएटीचर्स ने कई प्रकार के चैलेन्ज फेस किये है, मसलन पाठ को रिवाईज करवाना, कुछ नया सिखाना आदि, क्योंकि अधिकतर बच्चे ऑनलाइन समय पर नहीं आते थे, उनकी उपस्थिति बहुत अधिक अनियमितऔर अनुपस्थित रहना होता था, जिससे टीचर्स को एक पाठ को कई बार पढाना पड़ता था. कई बच्चों ने तो कलम और पेंसिल से लिखना बंद कर दिया और उन्हें लिखने से अधिक ओरल परीक्षा अच्छी लगने लगी थी. देखा जाय,तो ये पेरेंट्स और टीचर्स के लिए मुश्किल समय है, इसे लगातार मेहनत के साथ ही इम्प्रूव किया जा सकेगा.

मुश्किल है अनुसाशन में रखना

ये सही है कि दो साल बाद बड़े बच्चों को भी एडजस्ट करने में समस्या आ रही है, क्योंकि स्कूल के अनुसाशन, सहपाठी से खेलना, किसी चीज को शेयर करना आदि सब बच्चों से दूर चले गए है, क्योंकि उन्हें अब स्कूल में मास्क पहनना, बार-बार हाथ सेनिटाइज करना, डिस्टेंस बनाए रखना आदि सब स्कूल में करना पड़ता है, ऐसे में किसी से सहज तरीके से बात करने में भी बच्चे हिचकिचाते है. ओर्किड्स द इंटरनेशनल स्कूल में बच्चों की काउंसलिंग कर रही काउंसलर और एचओडी बेथशीबा सेठ कहती है कि इतने सालों बाद बच्चे ही नहीं, टीचर्स को भी बच्चों के साथ एडजस्ट करने में मुश्किल आ रही है. महामारी के बाद मानसिक स्वास्थ्य पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि जैसे-जैसे हम जीवन के नए तरीकों को अपनाना शुरू करते है. जीवन की नई शर्तों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है. बच्चों और उनके मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा करना असंभव है.छोटे बच्चे स्वभाव से फ्लेक्सिबल दिमाग के होते है और वे अपनी समस्या को किसी के सामने कह नहीं पाते. वे शाय और डीनायल मूड में होते है,उनके हाँव-भाँव से उनकी समस्या को पकड़ना पड़ता है. इसके अलावा उन्हें खुद को और अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए सुरक्षित वातावरण देना पड़ता है, ताकि खुलकर वे अपनी बात रख सकें.

अपने एक अनुभव के बारें में काउंसलर बताती है कि एक बच्चे का एडमिशन क्लास वन में हुआ, उसने लोअर और अपर केजी नहीं पढ़ा है, जब वह अपनी माँ और बड़े भाई के साथ स्कूल आया, तो उसे स्कूल बहुत ही अजीब लग रहा था, जब उसने अपनी टीचर को देखा, तो भाई के पीछे छुप गया और कहने लगा कि ये टीवी वाली टीचर यहाँ क्यों आई है, फिर किसी दूसरे टीचर को बुलाकर उसे क्लास में भेजा गया. अगले दिन टीचर ऑनलाइन आकर बच्चे को समझाई कि वह अब उसके पेरेंट्स की तरह सामने दिखेगी और उन्हें पढ़ाएगी. तब जाकर बच्चे ने माना और उस टीचर की क्लास में बैठा. ये समय कठिन है, इसलिए अध्यापकों और पेरेंट्स को बहुत धैर्य के साथ बच्चों को पढाना है, ताकि उन्हें फिर से वही ख़ुशी मिले और स्कूल आने से परहेज न करें.

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घर और औफिस में यों बनाएं तालमेल

मान्या की शादी 4 महीने पहले ही हुई है. वह बैंक में है. पहले संयुक्त परिवार में रह रही थी. इसलिए उस पर काम का बोझ अधिक नहीं था. लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही पति का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. मान्या को भी पति के साथ जाना पड़ा. वह जिस बैंक में थी उस की अन्य शाखा भी उस शहर में थी, इसलिए मान्या ने भी वहां तबादला करा लिया.

दोनों परिवार से दूर अनजाने शहर में रह रहे हैं. यहां मान्या के ऊपर घर व औफिस की दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा. बचपन से संयुक्त परिवार में रही थी. इसलिए उस ने अकेले काम का इतना अधिक बोझ कभी नहीं संभाला था. उस का टाइम मैनेजमैंट गड़बड़ाने लगा. वह घर और दफ्तर के कार्यों के बीच अपना सही संतुलन नहीं बना पा रही थी. धीरेधीरे उस की सेहत पर इस का असर दिखने लगा.

एक दिन अचानक मान्या औफिस में बेहोश  हो गई. उसे हौस्पिटल ले जाया गया. डाक्टर ने बताया कि वह तनाव से घिरी है. इस का असर उस के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है. उस के बेहोश होने की वजह यही है.

1 हफ्ता मान्या ने घर पर आराम किया. कई रिश्तेदार और दोस्त उस से मिलने आए. एक दिन उस की एक खास सखी भी आई, जो मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर थी. उस ने बताया, ‘‘तुम्हारे तनाव और बीमारी की वजह तुम्हारे द्वारा टाइम को सही तरीके से मैनेज नहीं करना है. वर्किंग वूमन के लिए अपने टाइम को इस तरह से बांटना कि तनाव और डिप्रैशन जैसी स्थिति न आए, बहुत जरूरी होता है.’’

आधुनिक समय में कामकाजी महिलाओं को घर और औफिस की दोहरी जिम्मेदारियां उठानी पड़ रही हैं, जिन में वे उलझ जाती हैं. वे हर जगह खुद को साबित करने और अपना शतप्रतिशत देने की चाह में तनाव की शिकार हो जाती हैं. पति और बच्चों के साथ समय नहीं बिता पातीं. सोशल लाइफ से दूर होती जाती हैं. औफिस में घर की परेशानियां और घर में औफिस की परेशानियों के साथ कार्य करना, ऐसे बहुत से कारण हैं, जो उन की जिंदगी में कहीं न कहीं ठहराव सा ला देते हैं, जो उन की सुपर वूमन की छवि पर एक प्रश्नचिह्न होता है.

ऐसे में जिंदगी में आई इन मुश्किलों का सामना जिंदादिली के साथ किया जाए, तो हार के रुक जाने का मतलब ही नहीं बनता. वैसे भी जिंदगी में सफलता का मुकाम कांटों भरी राह को तय करने के बाद ही मिलता है.

दोहरी जिम्मेदारी निभाएं ऐसे

आइए जानते हैं किस तरह वर्किंग वूमन अपनी दोहरी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए दूसरी महिलाओं के लिए कामयाबी की मिसाल बन सकती हैं:

जमाना ब्यूटी विद ब्रेन का है. अत: सुंदरता के साथसाथ बुद्धिमत्ता भी जरूरी है. हमेशा सकारात्मक सोच रखें. नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें.

ऐसी दिनचर्या बनाएं, जिस में आप अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ को समय दे सकेें.

अपने व्यक्तित्व पर ध्यान दें. अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें, क्योंकि यह आप के व्यक्तित्व विकास में बाधक बनती है. अपने अंदर आत्मनिरीक्षण करने की आदत विकसित करें. इस के अलावा अपने दोस्तों, शुभचिंतकों से भी अपनी कमियां जानने की कोशिश करें.

वर्किंग वूमन के लिए टाइम मैनेजमैंट बहुत जरूरी है. इसलिए औफिस और घर पर समय की बरबादी को रोकने का हर संभव प्रयास करें. कौन सा कार्य कितने समय में करना है, इस की रूपरेखा मस्तिष्क या लिखित रूप में आप के पास होनी चाहिए.

घर के कामों में परिवार के सदस्यों और बच्चों की मदद जरूर लें. साथ ही अपनी समस्याओं को परिवार के सदस्यों से प्यार से बताएं.

औफिस में अकसर आप को आलोचना का शिकार भी होना पड़ता होगा. ऐसी बातों को नकारात्मक ढंग से न लें. अपनी कार्यक्षमता, संयमित व्यवहार और अपने आदर्शों से आप किसी न किसी दिन अपने आलोचकों को मुंह बंद कर ही देंगी.

यदि आप को औफिस में अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, तो उन से पीछा छुड़ाने के बजाय उन्हें सकारात्मक तरीके से निभाएं, क्योंकि ऐसी जिम्मेदारियां आप की कार्यक्षमता की, परीक्षा की जांच के लिए भी आप को दी जा सकती हैं.

वीकैंड पति व बच्चों के नाम कर दें. इस दिन मोबाइल फोन से जितनी हो सके दूरी बना कर रखें. बच्चों और पति को उन की फैवरेट डिश बना कर खिलाएं. शाम के समय मूड फ्रैश करने के लिए परिवार के साथ पिकनिक स्पौट या आउटिंग पर जाएं. इस तरह आप खुद को अगले सप्ताह के कामों के लिए फ्रैश और कूल महसूस करेंगी.

औफिस में अपने काम को पूरी ईमानदारी और लगन से करें. लंच में ज्यादा समय न खराब करें. देर तक मोबाइल पर बातें करने से बचें.

औफिस में सहकर्मियों से न तो अधिक निकटता रखें और न ही अजनबियों जैसा व्यवहार करें. औफिस में सहकर्मियों के साथ फालतू की बहस से बचें. उन के साथ आप को जादा देर तक काम करना होता है. अत: उन के साथ दोस्ताना संबंध बना कर चलें.

फिस की परेशानियों को घर न लाएं. ज्यादा देर टीवी देख कर या मोबाइल पर बातें कर के समय खराब न करें.

जहां तक हो घर जा कर खाना खुद ही बनाएं. रोजरोज बाहर का खाना और्डर न करें. यह आप और आप के परिवार के लिए सही नहीं.

आप की दोहरी भूमिका निभाने में पारिवारिक सदस्यों का सहयोग बहुत ही जरूरी है. इसलिए  व्यवहारिक जीवन में पतिपत्नी को एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और एकदूसरे की परेशानी को हल करने के लिए आपस में काम बांट लेने चाहिए.

आप का अपने लिए भी समय निकालना जरूरी है ताकि आप इस बीच शौपिंग आदि कर के अपना मूड फ्रैश कर सकें. रोजाना औफिस और घर के बीच की भागदौड़ की थकावट आप की सुंदरता कम कर सकती है. इस के लिए पार्लर में जा कर अपने सौदर्य में चार चांद लगाएं. चाहें तो पति को एक दिन के लिए बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाएं.

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शादी के बाद ऐसे बनाएं कैरियर

भारत की बात करें तो यहां आज भी काफी महिलाओं को शादी के कारण अपनी पढ़ाई, अपने कैरियर को बीच में ही ड्रौप करना पड़ता है क्योंकि कभी पेरैंट्स उन्हें शादी में इतना खर्च आएगा यह कह कर उन के सपनों को उड़ने से पहले ही उन के पंख काट देते हैं तो कभी यह कह कर उन के कैरियर को बीच में ही छुड़वा देते हैं कि ये सब शादी के बाद करना और जब शादी के बाद वे अपने अधूरे सपने या कैरियर को पूरा करने की बात कहती हैं तो परिवार उन्हें यह कह कर चुप करवा देता है कि अब घरपरिवार ही तुम्हारी जिम्मेदारी है.

ऐसे में बेचारी लड़की कर ही क्या सकती है. बस बेबस हो कर रह जाती है. लेकिन इस बीच परिवार ये ताने कसे बिना रह नहीं पाता कि तुम करती ही क्या हो, कमाता तो हमार बेटा ही है. ऐसे में अपने पैरों पर खड़े होने के लिए अपनी लड़ाई आप को खुद लड़ने की जरूरत है ताकि आप खुद को आत्मनिर्भर बना सकें.

सीरियल ‘अनुपमा’ में रूपाली गांगुली जो अनुपमा का किरदार निभा रही है, उसे डांस का बहुत शौक था. वह स्टेज परफौरर्मैंस करने के साथ खुद की अकादमी भी खोलना चाहती थी. उसे शादी के बाद अपने हुनर को दिखाने के लिए विदेश जाने का भी मौका मिला, लेकिन पति, सास की सपोर्ट न मिलने के कारण उसे अपने इस हुनर को मसालों के डब्बों में ही बंद कर के रखना पड़ा और बाद में यह भी सुनने को मिला कि तुम करती ही क्या हो.

मगर जब अनुपमा को समझ आया कि घरपरिवार के साथसाथ कैरियर, पैसा, नाम कितना जरूरी है तो उस ने बच्चों के सैटल होते ही अपनी हिम्मत के दम पर छोटे से सैटअप के साथ अपनी डांस अकादमी खोली और आज उसे विदेशों में भी स्टेज परफौर्मैंस करने के कौंट्रैक्ट मिल रहे हैं.

भले ही यह वर्चुअल कहानी है, लेकिन हकीकत में भी ऐसी अनेक कहानियां आप को मिल जाएंगी, जो आप को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का काम करेंगी.

तो आइए जानते हैं आप अपने अधूरे कैरियर को कैसे पूरा करें. हर व्यक्ति के अपने सपने, अपने कैरियर एरिया होते हैं. इसे वे अपने इंटरैस्ट के हिसाब से चुनती व पूरा करती हैं. ऐसे में अगर आप का भी शादी के कारण कैरियर या डिगरी अधूरी रह गई है तो उसे जरूर पूरा करें क्योंकि आज पुरुष व महिला दोनों को बराबरी के राइट व अपने मुताबिक जीने का अधिकार है.

अपनी अधूरी डिगरी को पूरा करें

हो सकता है कि आप अपनी रुचि का प्रोफैशनल कोर्स कर रही हों, लेकिन पेरैंट्स के शादी के प्रैशर के कारण आप को अपने उस कोर्स को बीच में ही छोड़ना पड़ गया हो, जिस के कारण आप काफी परेशान भी रही होंगी. लेकिन अब मौका है कि आप अपनी उस अधूरी डिगरी को पूरा करें. हो सकता है कि घर से सपोर्ट न मिले और अब ससुराल वाले यह कह कर

फिर मना करें कि तुम्हारी पढ़ाई के कारण घर बिखर जाएगा.

तब आप उन्हें समझाएं कि अब सिर्फ बाहर जा कर ही कोर्स नहीं होता बल्कि आजकल अधिकांश कोर्सेज को औनलाइन घर बैठे भी करने की सुविधा है. इस से घर भी देख लूंगी और अपना कोर्स भी पूरा कर पाऊंगी और इस कोर्स के बाद अगर अच्छीखासी नौकरी मिल गई तो फिर तो डबल इनकम से बच्चों के और बेहतर कैरियर में भी सहायता मिलेगी. फिर अब तो बच्चे भी बड़े व समझदार हो गए हैं. अब मुझे भी खुद आत्मनिर्भर बनना है ताकि छोटीछोटी जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ न पसारने पड़ें. अपने बच्चों के लिए कुछ करना है.

यकीन मानिए आप का इस तरह से खुद के बारे में सोचना आप को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाएगा. इस से आप का अधूरा सपना तो पूरा होगा ही, साथ ही आप का कौन्फिडैंस भी बढ़ेगा.

टीचिंग में रुचि

आप की शुरू से ही टीचर बनने की इच्छा थी. लेकिन परिवार में पैसों की तंगी की वजह से आप अपने इस सपने को पूरा नहीं कर पाईं. लेकिन अब जब परिवार संपन्न है और किसी तरह की कोई दिक्कत भी नहीं है तो आप अपनी इस कैरियर इच्छा को जरूर पूरा करें.

इस के लिए आप ऐसे कोर्सेज सर्च करें जो औनलाइन व औफलाइन दोनों सुविधाएं हों और जिन में ज्यादा से ज्यादा प्रैक्टिकल नौलेज दी जाती हो, साथ ही कोर्स खत्म होने के बाद आप को उन्हीं की तरफ से प्लेसमैंट भी मिल जाए. इस से फायदा यह होगा कि आप का टीचिंग कोर्स भी हो जाएगा और आप को जौब भी मिल जाएगी. भले ही शुरुआत में सैलरी थोड़ी कम मिले, लेकिन यह कदम आप के आगे बढ़ने में काफी अहम रोल निभाएगा.

टैलेंट को पहचानें

हर व्यक्ति में कोई न कोई टैलेंट जरूर होता है, बस उसे पहचान कर निखारने की जरूरत होती है. ऐसे में आप में जो भी टैलेंट है जैसे ट्यूशन पढ़ाने का, अलगअलग तरह की डिशेज बनाने का शौक है, अच्छी स्टिचिंग कर लेती हों, अच्छी ड्राइंग बनाने का शौक है तो आप अपने अंदर छिपे इस टैलेंट को अपने अंदर ही समेट कर न रखें बल्कि शादी के बाद उस में अपना कैरियर बनाएं.

आप इस के लिए या फिर इस में कोर्स कर के और अपनी स्किल्स को निखार सकती हैं या फिर आप अगर इन की अच्छीखासी जानकार हैं तो शुरुआत में छोटे स्तर पर बिजनैस शुरू करें, फिर जैसेजैसे डिमांड बढ़े आप अपने इस हुनर से अपने बिजनैस को बड़े स्तर पर ले जा सकती हैं, जिस से आप पैसा व नाम दोनों कमा सकती हैं और आप का टैलेंट भी बरबाद नहीं जाएगा.

स्टार्टअप की शुरुआत

आज जिस तरह से स्टार्टअप का क्रेज बढ़ता जा रहा है, वह अपनेआप में एक बड़ा बदलाव है. ऐसे में अगर आप को भी मार्केटिंग की अच्छीखासी जानकारी है, नएनए आइडियाज आप के दिमाग में आते रहते हैं, जो काफी काम के साबित हो सकते हैं, तो आप बिजनैस की और अच्छी जानकारी लेने के लिए कोर्स कर सकती हैं या फिर अगर आप ने इस का कोर्स पहले ही किया हुआ है तो आप और लोगों को इस से जोड़ कर अपना खुद का स्टार्टअप शुरू कर सकती हैं. अगर आप के आइडियाज काम आ गए फिर तो इन के जरीए आप अपनी अच्छीखासी पहचान बना सकती हैं.

एचआर जौब

आप को कौरपोरेट कंपनीज में काम करने का शौक है और इस के लिए आप ने ह्यूमन रिसोर्स में एमबीए भी कर लिया, लेकिन जब इस में जौब की बारी आई तो घर वालों ने आप की शादी तय कर दी, जिस के कारण आप की डिगरी रखी की रखी रह गई.

अकसर कैरियर को ले कर जो सपने हम ने संजोए होते हैं, अगर वे पूरे नहीं होते तो हमारे अरमानों पर पानी फिर जाता है. ऐसे में अब जब आप शादी के बाद खुद के लिए समय निकाल पा रही हैं या फिर चीजें मैनेज कर पा रही हैं तो एचआर जौब कर के अपने कैरियर को पटरी पर लाएं या फिर इस में और एडवांस्ड कोर्स कर के खुद को और अपडेट कर के अच्छी नौकरी हासिल करें.

बता दें कि एक तो इस जौब के टाइमिंग काफी सूट करने वाले होते हैं, साथ ही यह जौब काफी सम्मानीय भी होती है. इस तरह आप जौब कर के अपने एचआर बनने के सपने को साकार कर सकती हैं.

फ्रीलांस वर्क

अगर आप को पढ़नेलिखने का शुरू से ही बहुत शौक रहा है, लेकिन आप परिवार की मजबूरियों व शादी हो जाने के कारण अपने इस जनून को पूरा नहीं कर पाई हैं, तो अभी भी देर नहीं हुई है क्योंकि आज कंटैंट राइटिंग के लिए ढेरों फ्रीलांस वर्क करने का औप्शन है, जिस में आप अपनी लेखन की कला को दिखा कर अच्छाखासा पैसा कमा सकती हैं.

एक बार आप के लेखन ने गति पकड़ ली, फिर तो यकीन मानिए आप के पास अवसरों की कमी नहीं रह जाएगी. इस से आप का शादी व बाकी मजबूरियों के चलते अधूरा सपना भी पूरा हो जाएगा और आप खुद को आत्मनिर्भर भी बना पाएंगी. बस जरूरत है अपने

अधूरे सपने, कैरियर, डिगरी को पूरे जज्बे के साथ पूरा करने की.

एयरहोस्टेस जौब

एयरहोस्टेस की जौब को काफी ग्लैमरस जौब माना जाता है. इस के लिए अच्छी पर्सनैलिटी होने के साथसाथ बौडी लैंग्वेज पर अच्छी कमांड होना भी बहुत जरूरी होता है. ऐसे में अगर आप ने शादी से पहले एयरहोस्टेस का कोर्स तो कर लिया, लेकिन जैसे ही जौब की बारी आई तो परिवार वालों ने कहीं रिश्ता तय कर दिया, जिस के कारण आप की इस फील्ड में जौब करने की ख्वाहिश धरी की धरी रह गई.

लेकिन अब जब चीजें सैटल हैं और आप की उम्र भी अभी ज्यादा नहीं है तो फिर एयरहोस्टेस बन कर अपने सपनों को ऊंचाइयों तक पहुंचाएं. अच्छीखासी सैलरी व माननीय जौब न सिर्फ आप के सपने को पूरा करेगी बल्कि आप भी घर में बराबर का सहयोग दे पाएंगी, जो आज के समय की जरूरत है.

दहेज जमा न कर लड़की को पढ़ाएं

आज भी हमारे देश में आप को अनेक परिवार ऐसे मिल जाएंगे, जो अपनी लड़की की शादी के लिए दहेज तो जमा करते हैं, लेकिन बेटी अगर अपने कैरियर को आगे बढ़ाने के बारे में उन से बात करती है तो वे यह कह कर टाल देते हैं कि तुम्हारी शादी के लिए पैसा जमा करें या फिर तुम्हें पढ़ाएं. तुम्हें तो वैसे भी दूसरे घर जाना है तो पढ़लिख कर क्या करोगी.

ऐसे में दहेज लड़कियों के आगे बढ़ने के मार्ग में बाधा बन कर खड़ा हुआ है, जबकि पेरैंट्स को इस बात को समझना चाहिए कि अगर आप अपनी लड़की को इतना शिक्षित कर दोगे तो आप को शादी में दहेज देने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. वह जरूरत पड़ने पर किसी पर निर्भर नहीं रहेगी बल्कि खुद को व अपनों को भी पाल लेगी. इसलिए दहेज  जमा करने से ज्यादा अपनी लड़की को पढ़ाने पर ध्यान दें.

सक्सैसफुल स्टोरी

मैं इंदौर की रहने वाली थी. मेरी शादी दिल्ली में हुई. पति रमेश की जौब काफी अच्छी है. शादी के 2 साल बाद ही मैं एक बेटे की मां बन गई, जिस कारण मुझे अच्छीखासी आईटी की जौब छोड़नी पड़ी. आखिर होता भी यही है कि पत्नी को ही परिवार व बच्चों की खातिर अपने कैरियर को छोड़ना पड़ता है. दुख बहुत हुआ, लेकिन मजबूर थी कुछ कर नहीं सकती थी. धीरेधीरे 5-6 साल बीत गए. मेरा प्रोफैशनल कैरियर किचन व घर तक ही सीमित हो कर रह गया. मुझे हर चीज के लिए पति पर निर्भर रहना पड़ता था जो मुझे अंदर ही अंदर परेशान कर रहा था. फिर एक दिन मैं ने फैसला लिया कि अब मैं दोबारा से कैरियर में कमबैक करूंगी.

शुरू में परिवार में किसी की भी सपोर्ट नहीं मिली, लेकिन जब मैं कैरियर से समझौता नहीं करने के मूड पर अड़ गई तो मुझे जौब करने की परमिशन भी मिल गई. आज मैं फैमिली, बच्चे व जौब सब को अच्छे से हैंडल कर रही हूं. मुझे कैरियर में भी काफी ऊंचाइयां मिल रही हैं. कहने का मतलब यह है कि अगर आप चीजों को मैनेज करना सीख गए और कुछ करने की ठान ली, फिर तो आप को उड़ने से कोई नहीं रोक सकता. लेकिन अगर आप ने अपने सपनों के आगे घुटने टेक दिए, फिर तो आप के पास आगे पछताने के कुछ नहीं बचेगा.

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सास को अपनी कमाई कब दें कब नहीं

भले ही सासबहू के रिश्ते को 36 का आंकड़ा कहा जाता हो पर सच यह भी है कि एक खुशहाल परिवार का आधार सासबहू के बीच आपसी तालमेल और एकदूसरे को समझने की कला पर निर्भर करता है.

एक लड़की जब शादी कर के किसी घर की बहू बनती है तो उसे सब से पहले अपनी सास की हुकूमत का सामना करना पड़ता है. सास सालों से जिस घर को चला रही होती हैं उसे एकदम बहू के हवाले नहीं कर पातीं. वे चाहती हैं कि बहू उन्हें मान दे, उन के अनुसार चले.

ऐसे में बहू यदि कामकाजी हो तो उस के मन में यह सवाल उठ खड़ा होता है कि वह अपनी कमाई अपने पास रखे या सास के हाथों पर? बात केवल सास के मान की ही नहीं होती बहू का मान भी माने रखता है. इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले कुछ बातों का खयाल जरूर रखना चाहिए.

बहू अपनी कमाई सास के हाथ पर कब रखे

जब सास हों मजबूर:

यदि सास अकेली हैं और ससुर जीवित नहीं हों तो ऐसे में एक बहू यदि अपनी कमाई सास को सौंपती है तो सास उस से अपनापन महसूस करने लगती हैं. पति के न होने की वजह से सास को ऐसे बहुत से खर्च रोकने पड़ते हैं जो जरूरी होने पर भी पैसे की तंगी की वजह से नहीं कर पातीं. बेटा भले ही अपने रुपए खर्च के लिए देता हो पर कुछ खर्चे ऐसे हो सकते हैं जिन के लिए बहू की कमाई की भी जरूरत पड़ सकती. ऐसे में सास को कमाई दे कर बहू परिवार की शांति कायम रख सकती है.

सास या घर में किसी और के बीमार होने की स्थिति में:

यदि सास की तबीयत खराब रहती है और इलाज पर बहुत रुपए लगते हैं तो यह बहू का कर्तव्य है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों पर रख कर उन्हें इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराने में मदद करे.

अपनी पहली कमाई:

जैसे एक लड़की अपनी पहली कमाई को मांबाप के हाथों पर रख कर खुश होती है वैसे ही यदि आप बहू हैं तो अपनी पहली कमाई सास के हाथों पर रख कर उन का आशीर्वाद लेने का मौका न चूकें.

यदि आप की सफलता की वजह सास हैं:

यदि सास के प्रोत्साहन से आप ने पढ़ाई की या कोई हुनर सीख कर नौकरी हासिल की है यानी आप की सफलता में आप की सास का प्रोत्साहन और प्रयास है तो फिर अपनी कमाई उन्हें दे कर कृतज्ञता जरूर प्रकट करें. सास की भीगी आंखों में छिपे प्यार का एहसास कर आप नए जोश से अपने काम में जुट सकेंगी.

यदि सास जबरन पैसे मांग रही हों:

पहले तो यह देखें कि ऐसी क्या बात है जो सास जबरन पैसे मांग रही हैं. अब तक घर का खर्च कैसे चलता था? इस मामले में अच्छा होगा कि पहले अपने पति से बात करें. इस के बाद पतिपत्नी मिल कर इस विषय पर घर के दूसरे सदस्यों से  विचारविमर्श करें. सास को समझएं. उन के आगे खुल कर कहें कि आप कितने रुपए दे सकती हैं. चाहें तो घर के कुछ खास खर्चे जैसे राशन, बिल, किराए आदि की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लें. इस से सास को भी संतुष्टि रहेगी और आप पर भी अधिक भार नहीं पड़ेगा.

यदि सास सारे खर्च एक जगह कर रही हों:

कई परिवारों में घर का खर्च एक जगह किया जाता है. यदि आप के घर में भी जेठ, जेठानी, देवर, ननद आदि साथ रह रहे हैं और पूरा खर्च एक ही जगह हो रहा है तो स्वाभाविक है कि घर के प्रत्येक कमाऊ सदस्य को अपनी हिस्सेदारी देनी होगी.

सवाल यह उठता है कि कितना दिया जाए? क्या पूरी कमाई दे दी जाए या एक हिस्सा दिया जाए? इस तरह की परिस्थिति में पूरी कमाई देना कतई उचित नहीं होगा. आप को अपने लिए भी कुछ रुपए बचा कर रखने चाहिए. वैसे भी घर के प्रत्येक सदस्य की आय अलगअलग होगी. कोई 70 हजार कमा रहा होगा तो कोई 20 हजार, किसी की नईनई नौकरी होगी तो किसी ने बिजनैस संभाला होगा. इसलिए हर सदस्य बराबर रकम नहीं दे सकता.

बेहतर होगा कि आप सब इनकम का एक निश्चित हिस्सा जैसे 50% सास के हाथों में रखें. इस से किसी भी सदस्य के मन में असंतुष्टि पैदा नहीं होगी और आप भी निश्चिंत रह सकेंगी.

यदि मकान सासससुर का है:

जिस घर में आप रह रही हैं यदि वह सासससुर का है और सास बेटेबहू से पैसे मांगती हैं तो आप को उन्हें पैसे देने चाहिए. और कुछ नहीं तो घर और बाकी सुखसुविधाओं के किराए के रूप में ही पैसे जरूर दें.

यदि शादी में सास ने किया है काफी खर्च:

अगर आप की शादी में सासससुर ने शानदार आयोजन रखा था और बहुत पैसे खर्च किए थे, लेनदेन, मेहमाननवाजी तथा उपहारों आदि में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, बहू और उस के घर वालों को काफी जेवर भी दिए थे तो ऐसे में बहू का भी फर्ज बनता है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों में रख कर उन्हें अपनेपन का एहसास दिलाए.

ननद की शादी के लिए:

यदि घर में जवान ननद है और उस की शादी के लिए रुपए जमा किए जा रहे हैं तो बेटेबहू का दायित्व है कि वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दे कर अपने मातापिता का सहयोग करें.

जब पति शराबी हो:

कई बार पति शराबी या निकम्मा होता है और पत्नी के रुपयों पर ऐय्याशी करने का मौका ढूंढ़ता है. वह पत्नी से रुपए छीन कर शराब या गलत संगत में खर्च कर सकता है. ऐसी स्थिति में अपने रुपयों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि आप ला कर उन्हें सास के हाथों पर रख दें.

कब अपनी कमाई सास के हांथों में न रखें

जब आप की इच्छा न हो. अपनी इच्छा के विरुद्ध बहू अपनी कमाई सास के हाथों में रखेगी तो घर में अशांति पैदा होगी. बहू का दिमाग भी बौखलाया रहेगा और उधर सास बहू के व्यवहार को नोटिस कर दुखी रहेंगी. ऐसी स्थिति में बेहतर है कि सास को रुपए न दिए जाएं.

जब ससुर जिंदा हो और घर में पैसों की कमी न हो:

यदि ससुर जिंदा हैं और कमा रहे हैं या फिर सास और ससुर को पैंशन मिल रही है तो भी आप को अपनी कमाई अपने पास रखने का पूरा हक है. परिवार में देवर, जेठ आदि हैं और वे कमा रहे हैं तो भी आप को कमाई देने की जरूरत नहीं है.

जब सास टैंशन करती हों:

यदि आप अपनी पूरी कमाई सास के हाथों में दे रही हैं इस के बावजूद सास आप को बुराभला कहने से नहीं चूकतीं और दफ्तर के साथसाथ घर के भी सारे काम कराती हैं, आप कुछ खरीदना चाहें तो रुपए देने से आनाकानी करती हैं तो ऐसी स्थिति में सास के आगे अपने हक के लिए लड़ना लाजिम है. ऐसी सास के हाथ में रुपए रख कर अपना सम्मान खोने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि अपनी मरजी से खुद पर रुपए खर्च करने का आनंद लें और दिमाग को टैंशनफ्री रखें.

जब सास बहुत खर्चीली हों:

यदि आप की सास बहुत खर्चीली हैं और आप जब भी अपनी कमाई ला कर उन के हाथों में रखती हैं तो वे उन रुपयों को 2-4 दिनों के अंदर ही बेमतलब के खर्चों में उड़ा देती हैं या फिर सारे रुपए मेहमाननवाजी और अपनी बेटियों और बहनों पर खर्च कर देती हैं तो आप को संभल जाना चाहिए. सास की खुशी के लिए अपनी मेहनत की कमाई यों बरबाद होने देने के बजाय उन्हें अपने पास रखें और सही जगह निवेश करें.

जब सास माता की चौकी कराएं:

जब सासससुर घर में तरहतरह के धार्मिक अनुष्ठान जैसे माता की चौकी वगैरह कराएं और पुजारियों की जेबें गरम करते रहें या अंधविश्वास और पाखंडों के चक्कर में रुपए बरबाद करते रहें तो एक पढ़ीलिखी बहू उन की ऐसी गतिविधियों का हिस्सा बनने या आर्थिक सहयोग करने से इनकार कर सकती है. ऐसा कर के वह सास को सही सोच रखने को प्रेरित कर सकती है.

बेहतर है कि उपहार दें

इस संदर्भ में सोशल वर्कर अनुजा कपूर कहती हैं कि जरूरी नहीं आप पूरी कमाई सास को दें. आप उपहार ला कर सास पर रुपए खर्च कर सकती हैं. इस से उन का मन भी खुश हो जाएगा और आप के पास भी कुछ रुपए बच जाएंगे. सास का बर्थडे है तो उन्हें तोहफे ला कर दें, उन्हें बाहर ले जाएं, खाना खिलाएं, शौपिंग कराएं, वे जो भी खरीदना चाहें वे खरीद कर दें. त्योहारों के नाम पर घर की साजसजावट और सब के कपड़ों पर रुपए खर्च कर दें.

पैसों के लेनदेन से घरों में तनाव पैदा होता है पर तोहफों से प्यार बढ़ता है, रिश्ते संभलते हैं और सासबहू के बीच बौंडिंग मजबूत होती है. याद रखें रुपयों से सास में डौमिनैंस की भावना बढ़ सकती है जबकि बहू के मन में भी असंतुष्टि की भावना उत्पन्न होने लगती है. बहू को लगता है कि मैं कमा क्यों रही हूं जब सारे रुपए सास को ही देने हैं. इसलिए बेहतर है कि जरूरत के समय सास या परिवार पर रुपए जरूर खर्च करें पर हर महीने पूरी रकम सास के हाथों में रखने की मजबूरी न अपनाएं.

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औनलाइन रिश्ता बनाते वक्त रहें सतर्क

कभी-कभी डिजिटल रिश्तों के जाल में कुछ लोग इस तरह फंस जाते है कि उनका रिश्तों से विश्वास उठ जाता या जिंदगी से हाथ धोना पड़ जाता है. तीन साल पहले एक मैचमेकिंग साईट पर मुंबई की रहने वाली कोमल वैभव नाम के एक लड़के से मिली. दोनों के बात विचार एक दुसरे से मिले तो बात आगे बढ़ी. दो-तीन बार मिलने के बाद, वैभव व्यस्त और लाइफ इशू बताकर बहाने बनाने शुरू कर दिया. मीटिंग में हूँ, शहर से बाहर हूँ, जल्दी मिलेंगे का झांसा देता रहा और कोमल भी उसकी बातों में विश्वास करती रही. लेकिन एक दिन कोमल ने उसे किसी और साईट पर देखा और छानबीन की तो पता चला कि वैभव ना कहीं व्यस्त था ना ही कोई लाइफ इशू थे, बल्कि वह 7 साल का शादीशुदा और खुशहाल जीवन जी रहा था. उसकी बीवी का कहना था कि वह डेटिंग और मत्रिमोनिअल साईटो पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर कई लड़कियों के साथ रिलेशन में था जिसका मकसद केवल सेक्सुअल फैंटेसी पूरी करना था.

आज के समय में मत्रिमोनिअल और डेटिंग साइटें वैभव जैसा इरादा रखने वाले बहुरूपियों के लिए एक आसान विकल्प बन गई है. एक अंतर्राष्ट्रीय डेटिंग एप्लीकेशन हिन्ज के मुताबिक, डेटिंग की दुनिया दिन-प्रतिदिन क्रूर होती जा रही है. ऐसे में ऑनलाइन रिलेशन में घोस्टिंग, मूनिंग और ब्रेडक्रम्बिंग इत्यादि धोखेबाजी के तरीके के बाद किटेनफिशिंग एक नया टर्म आया है जिससे आपको सतर्क रहने की जरूरत है.

क्या है किटेनफिशिंग?

यदि आप सोच रहे हैं, किटेनफिशिंग का सम्बन्ध डेट पर पालतू जानवर ले जाने या मछली पकड़ने से है तो आप गलत हैं. किटेनफिशिंग, “ऑनलाइन डेटिंग की दुनिया में अपनाया जाना वाला एक हथकंडा है जहाँ एक व्यक्ति वैसा बनने या दिखाने का नाटक करना है जो वास्तव में नहीं है”. यहाँ किटेनफिशर्स पुरानी और भ्रामक फोटो के जरिये स्वयं को अवास्तविक रूप में पेश कर सामने वाले को लुभाने का हरसंभव प्रयास करते है. जैसे उम्र, लम्बाई, पसंद इत्यादि के बारे में गलत जानकारी देकर आकर्षित करना.

असल जिन्दगी में भी होती है किटेनफिशिंग

किटेनफिशिंग कोई नया ट्रेंड नहीं है. ऐसे में यह कहना गलत होगा कि किटेनफिशिंग केवल उनके साथ होती है जो ऑनलाइन रिश्ते बनाते है. हमारे आसपास अक्सर ऐसे लोग और किस्से कहानियां देखने-सुनने को मिल जाएंगी. एक कंपनी में कार्यरत प्रतिभा दुबे बताती है कि वो एक लड़के को डेट करती थी, जिसने बताया था कि उसके पास घर है और वो कंस्ट्रक्शन का काम करता है. लेकिन कुछ महीनों बाद पता चला, जिस घर में लड़का रहता है वो उसके कजिन का है जो दुबई रहता है. जिसके बाद उसने रिश्ता ख़त्म कर लिया. कई बार देखा गया है कि शादी से पहले जो फोटो या जानकारी दी गई रहती है सच्चाई उससे विपरीत होती है. फर्क यह है कि आज की डिजिटल मीडिया इस ट्रेंड को खूब हवा दे रही है, जहाँ एक पक्ष दुसरे की भावनाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज़ करके अपना उद्देश्य पूरा करता है.

मानसिक तौर पर हानिकारक

पहली नजर में देखे तो यह हानिकारक नहीं लगता है. लेकिन जब कोई जान बुझकर, एक योजना के तहत करे, तो सामने वाले पर मानसिक रूप से बुरा असर हो सकता है. भोपाल के मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते है कि हर व्यक्ति के मन में खुद को लेकर असुरक्षा की भावना होती है और यह एक मानवीय प्रवृत्ति है. जब कोई अपनी असुरक्षा से बाहर नहीं निकल पाता है तो नकली मुखौटे का सहारा लेता है जिसे “एंटी सोशल मल्टीपर्सनालिटी डिसऑर्डर” कहते है. ये लोग काफी शार्प माइंड के होते है. विशेष बात यह है कि इन लोगों को दुसरे की भावनाओं या तकलीफ से कोई फर्क नहीं पड़ता.

क्यों फंस जाते है लोग

डॉ. त्रिवेदी के अनुसार, ऑनलाइन डेटिंग के जाल में ज्यादातर वे लोग फंस जाते है जो डिजिटल वर्ल्ड में पहली बार कदम रखते है और इमोशनल होते हैं. और ऐसे लोग सामने वाले की बातों में आसानी से आ जाते है. इसके अलावा ऐसे लोग भी फंस जाते हैं जो बाहरी दुनिया से कम लगाव रखते है और अकेलेपन से छुटकारा पाना चाहते है. ऐसे में ऑनलाइन डेटिंग एप्लीकेशन और साईटो पर दोस्ती करना या साथी ढूँढना एक आसान विकल्प के रूप में उनके सामने उपलब्ध होता है.

किटेनफिशर्स को कैसे पहचाने

हमारे आसपास ऐसी मानसिकता के कई लोग मिल जाएंगे है, जो अपने सकारात्मक गुणों को बढ़ा-चढ़ा कर आपको प्रभावित करने की कोशिश करते है, जिन्हें आप नजरअंदाज़ कर देते है या समझ नहीं पाते है. डॉ. त्रिवेदी कहते हैं, ये लोग आसानी से पहचान में नहीं आते. यदि थोड़ी सी सतर्कता बरती जाए तो बहुत जल्दी इस तरह की मानसिकता को समझ सकते है.

-यदि आप किसी से ऑनलाइन मिले हो, और उसके फोटो एक दुसरे से भिन्न हो. जैसे फोटो पुरानी या एडिटेड हो.

-यदि कहे, मीटिंग में है, ऑफिस के काम से बाहर है इत्यादि, लेकिन ऑफिस के बारे में कोई जानकारी ना दे.

-बात करते वक़्त यदि अपने परिवार या दोस्तों की बात ना करें. उनसे मिलाने के नाम पर बहाने करे.

-किसी सार्वजानिक जगह पर मिलने के बजाय अकेले में मिलने की बात करे.

-ऑनलाइन बात करते वक्त विदेश घुमने, जिम जाने, किताबे पढने की बात करें, लेकिन मिलने पर उससे सम्बंधित जानकारी या लक्षण ना दिखाई दे.

कैसे बचें

ऐसे लोगों से बचने के लिए हमें स्वयं सतर्क रहने की जरूरत है जिसके लिए आपको इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. जैसे- यदि आप ऑनलाइन रिश्ता देख रहे है तो एकदम से सामने वाले पर विश्वास ना करें. उनकी बात सुनकर उत्साहित ना हो, ना ही मिलने की जल्दीबाजी करे. मिलने से पहले फ़ोन पर बात करें, विडिओ कालिंग करे. मिलने के बाद भी उसे जांचना परखना ना छोड़े. उसके घर-परिवार और दोस्तों के बारे में जाने और उनसे मिलने की बात करें. साथ ही उसे भी अपने परिवार और दोस्तों से मिलाये.

यदि आप इन बातों का ध्यान रखते हुए सतर्कता बरतते हैं तो सही साथी के तलाश में ऑनलाइन डेटिंग या मत्रिमोनिअल साईटें भी काफी उपयोगी साबित हो सकती है. ऐसे ना जाने कितने लोग हैं जिन्हें ऑफ़लाइन से बेहतर जीवनसाथी ऑनलाइन मिल जाते है. ऐसे में कहना गलत ना होगा, इरादा साफ रखे तो कोई भी जरिया गलत नहीं होता है, बस हमें सतर्कता और जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए.

ऑनलाइन या ऑफलाइन हो, वे मॉडर्न डेटिंग टर्म जिसको हममे से कई लोगों ने अनुभव किया होगा

घोस्टिंग यानी जब कोई फ्रेंड और प्रेमी आपके जिन्दगी से अचानक से बिना कुछ कहे गायब हो जाए और कांटेक्ट के सारे रास्ते बंद कर ले.

स्लोफेड यानी जब कोई किसी उभरते हुए रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो, तो धीरे-धीरे बातचीत और संपर्क कम करके रिश्ता तोड़ता हो.

-ब्रेडक्रम्बिंग एक ऐसा डेटिंग टर्म है जहाँ एक व्यक्ति रिश्ता बनाने के बिना किसी इरादे के प्यार भरे संदेश भेजकर भावनाओं के साथ खेलता हो.

शिपिंग यानी एक रिश्ते में रहते हुए कई लोगों के साथ रोमांटिक रिलेशन रखना.

कैच और रिलीज टर्म में एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति का तब तक पीछा या प्रभावित करने का प्रयास करता है जब तक वो उसे मिल नहीं जाता है और मिलते ही छोड़ देता है.

बेंचिंग एक ऐसा टर्म है जहाँ एक व्यक्ति अपने संभावित प्रेमी के इंतज़ार में हो, साथ ही विकल्प भी खुले रखे हों.

-कुशनिंग यानी एक साथी के रहते हुए डेटिंग के सभी विकल्प खुले रखना. सिर्फ इसलिए कि मुख्य रिश्ता ठीक से ना चल रहा हो.

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घर संभालता प्यारा पति

सुबह के 8 बजे हैं. घड़ी की सूइयां तेजी से आगे बढ़ रही हैं. स्कूल की बस किसी भी क्षण आ सकती है. घर का वातावरण तनावपूर्ण सा है. ऐसे में बड़ा बेटा अंदर से पापा को आवाज लगाता है कि उसे स्कूल वाले मोजे नहीं मिल रहे. इधर पापा नानुकुर कर रही छोटी बिटिया को जबरदस्ती नाश्ता कराने में मशगूल हैं. इस के बाद उन्हें बेटे का लंचबौक्स भी पैक करना है. बेटे को स्कूल भेज कर बिटिया को नहलाना है और घर की डस्टिंग भी करनी है.

यह दृश्य है एक ऐसे घर का जहां बीवी जौब करती है और पति घर संभालता है यानी वह हाउस हसबैंड है. सुनने में थोड़ा विचित्र लगे पर यह हकीकत है.

पुरातनपंथी और पिछड़ी मानसिकता वाले भारतीय समाज में भी पतियों की यह नई प्रजाति सामने आने लगी है. ये खाना बना सकते हैं, बच्चों को संभाल सकते हैं और घर की साफसफाई, बरतन जैसे घरेलू कामों की जिम्मेदारी भी दक्षता के साथ निभा सकते हैं.

ये सामान्य भारतीय पुरुषों की तरह नहीं सोचते, बिना किसी हिचकिचाहट बिस्तर भी लगाते हैं और बच्चे का नैपी भी बदलते हैं. समाज का यह पुरुष वर्ग पत्नी को समान दर्जा देता है और जरूरत पड़ने पर घर और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाने को भी हाजिर हो जाता है.

हालांकि दकियानूसी सोच वाले भारतीय अभी भी ऐसे हाउस हसबैंड को नाकारा और हारा हुआ पुरुष मानते हैं. उन के मुताबिक घरपरिवार की देखभाल और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी सदा से स्त्री की रही है, जबकि पुरुषों का दायित्व बाहर के काम संभालना और कमा कर लाना है.

हाल ही में हाउस हसबैंड की अवधारणा पर आधारित एक फिल्म आई थी ‘का एंड की.’ करीना कपूर और अर्जुन कपूर द्वारा अभिनीत इस फिल्म का मूल विषय था- लिंग आधारित कार्यविभेद की सोच पर प्रहार करते हुए पतिपत्नी के कार्यों की अदलाबदली.

लिंग समानता का जमाना

आजकल स्त्रीपुरुष समानता की बातें बढ़चढ़ कर होती हैं. लड़कों के साथ लड़कियां भी पढ़लिख कर ऊंचे ओहदों पर पहुंच रही हैं. उन के अपने सपने हैं, अपनी काबिलीयत है. इस काबिलीयत के बल पर वे अच्छी से अच्छी सैलरी पा रही हैं. ऐसे में शादी के बाद जब वर्किंग कपल्स के बच्चे होते हैं तो बहुत से कपल्स भावी संभावनाओं और परेशानियों को समझते हुए यह देखते हैं कि दोनों में से किस के लिए नौकरी महत्त्वपूर्ण है. इस तरह आपसी सहमति से वे वित्तीय और घरेलू जिम्मेदारियों को बांट लेते हैं.

यह पतिपत्नी का आपसी फैसला होता है कि दोनों में से किसे घर और बच्चों को संभालना है और किसे बाहर की जिम्मेदारियां निभानी हैं.

यहां व्यवहारिक सोच महत्त्वपूर्ण है. यदि पत्नी की कमाई ज्यादा है और कैरियर को ले कर उस के सपने ज्यादा प्रबल हैं तो जाहिर है कि ऐसे में पत्नी को ब्रैड अर्नर की भूमिका निभानी चाहिए. पति पार्टटाइम या घर से काम करते हुए घरपरिवार व बच्चों को देखने का काम कर सकता है. इस से न सिर्फ बच्चों को अकेला या डेकेयर सैंटर में छोड़ने से पैदा तनाव कम होता है, बल्कि उन रुपयों की भी बचत होती है जो बच्चे को संभालने के लिए मेड या डेकेयर सैंटर को देने पड़ते हैं.

हाउस हसबैंड की भूमिका

हाउस हसबैंड होने का मतलब यह नहीं है कि पति पूरी तरह से पत्नी की कमाई पर निर्भर हो जाए या जोरू का गुलाम बन जाए. इस के विपरीत घर के काम और बच्चों को संभालने के साथसाथ वह कमाई भी कर सकता है. आजकल घर से काम करने के अवसरों की कमी नहीं. आर्टिस्ट, राइटर्स ज्यादा बेहतर ढंग से घर पर रह कर काम कर सकते हैं. पार्टटाइम काम करना भी संभव है.

सकारात्मक बदलाव

लंबे समय तक महिलाओं को गृहिणियां बना कर सताया गया है. उन के सपनों की अवहेलना की गई है. अब वक्त बदलने का है. एक पुरुष द्वारा अपने कैरियर का त्याग कर के पत्नी को अपने सपने सच करने का मौका देना समाज में बढ़ रही समानता व सकारात्मक बदलाव का संदेश है.

एकदूसरे के लिए सम्मान

जब पतिपत्नी अपनी ब्रैड अर्नर व होममेकर की पारंपरिक भूमिकाओं को आपस में बदल लेते हैं, तो वे एकदूसरे का अधिक सम्मान करने लगते हैं. वे पार्टनर की उन जिम्मेदारियों व काम के दबाव को महसूस कर पाते हैं, जो इन भूमिकाओं के साथ आते हैं.

एक बार जब पुरुष घरेलू काम और बच्चों की देखभाल करने लगता है तो खुद ही उस के मन में महिलाओं के लिए सम्मान बढ़ जाता है. महिलाएं भी उन पुरुषों को ज्यादा मान देती हैं जो पत्नी के सपनों को उड़ान देने में अपना योगदान देते हैं और स्त्रीपुरुष में भेद नहीं मानते.

जोखिम भी कम नहीं

समाज के ताने: पिछड़ी और दकियानूसी सोच वाले लोग आज भी यह स्वीकार नहीं कर पाते कि पुरुष घर में काम करे व बच्चों को संभाले. वे ऐसे पुरुषों को जोरू का गुलाम कहने से बाज नहीं आते. स्वयं चेतन भगत ने स्वीकार किया था कि उन्हें ऐसे बहुत से सवालों का सामना करना पड़ा जो सामान्यतया ऐसी स्थिति में पुरुषों को सुनने पड़ते हैं. मसलन, ‘अच्छा तो आप की बीवी कमाती है?’ ‘आप को घर के कामकाज करने में कैसा महसूस होता है? वगैरह.’

पुरुष के अहं पर चोट: कई दफा खराब परिस्थितियों या निजी असफलता की वजह से यदि पुरुष हाउस हसबैंड बनता है तो वह खुद को कमजोर और हीन महसूस करने लगता है. उसे लगता है जैसे वह अपने कर्त्तव्य निभाने (कमाई कर घर चलाने) में असफल नहीं हो सका है और इस तरह वह पुरुषोचित कार्य नहीं कर पा रहा है.

मतभेद: जब स्त्री बाहर जा कर काम कर पैसे कमाती है और पुरुष घर में रहता है तो और भी बहुत सी बातें बदल जाती हैं. सामान्यतया कमाने वाले के विचारों को मान्यता दी जाती है. उसी का हुक्म घर में चलता है. ऐसे में औरत वैसे इशूज पर भी कंट्रोल रखने लगती है जिन पर पुरुष मुश्किल से ऐडजस्ट कर पाते हैं.

सशक्त और अपने पौरुष पर यकीन रखने वाला पुरुष ही इस बात को नजरअंदाज करने की हिम्मत रख सकता है कि दूसरे लोग उस के बारे में क्या कह रहे हैं. ऐसे पुरुष अपने मन की सुनते हैं न कि समाज की.

स्त्रीपुरुष गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. आर्थिक और घरेलू कामकाज, इन 2 जिम्मेदारियों में से किसे कौन सी जिम्मेदारी उठानी है, यह कपल को आपस में ही तय करना होगा. समाज का दखल बेमानी है.

जानेमाने हाउस हसबैंड्स

ऐसे बहुत से जानेमाने चेहरे हैं, जिन्होंने अपनी इच्छा से हाउस हसबैंड बनना स्वीकार किया है-

भारतीय लेखक चेतन भगत, जिन के उपन्यासों पर ‘थ्री ईडियट्स’, ‘2 स्टेट्स’, ‘हाफ गर्लफ्रैंड’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं, ने अपने जुड़वां बच्चों की देखभाल के लिए हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया.

वे ऐसे दुर्लभ पिता हैं, जिन्होंने आईआईटी, आईआईएम से निकलने के बाद अपने बच्चों को अपने हाथों बड़ा किया. हाउस हसबैंड बनने का फैसला उन्होंने तब लिया था जब वे अपने कैरियर में ज्यादा सफल नहीं थे जबकि उन की पत्नी यूबीएस बैंक की सीईओ थीं. चेतन भगत ने नौकरी छोड़ कर भारत आने का फैसला लिया और खुशीखुशी घर व बच्चों की देखभाल में समय लगाने लगे. साथ में लेखन का कार्य भी चलता रहा. आज उसी चेतन भगत के उपन्यासों का लोगों को बेसब्री से इंताजर रहता है.

इसी तरह की कहानी जानेमाने फुटबौलर डैविड बैकहम की भी है, जिन्होंने प्रोफैशनल फुटबौल की दुनिया से अलविदा कह कर हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया. एक टैलीविजन शो के दौरान उन्होंने स्वीकारा था कि वे अपने 4 बच्चों के साथ समय बिता कर ऐंजौय करते हैं. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, स्कूल छोड़ कर आना, लंच बनाना, सुलाना जैसे सभी कामों को वे बड़ी सहजता से करते हैं.

न्यूटन इनवैस्टमैंट मैनेजमैंट की सीईओ हेलेना मोरिसे लंदन की चंद ऐसी महिला सीईओ में से एक हैं जो 50 बिलियन पाउंड्स से ज्यादा का कारोबार संभालती हैं और करीब 400 से ज्यादा कर्मचारियों पर हुक्म चलाती हैं. वे 9 बच्चों की मां भी हैं. जब हेलेना ने बिजनैस वर्ल्ड में अपना मुकाम बनाया तो उन के पति रिचर्ड ने खुशी से घर पर रह कर बच्चों की जिम्मेदारी उठाना स्वीकारा.

कुछ इसी तरह की कहानी भारत की सब से शक्तिशाली बिजनैस वूमन, इंदिरा नूई की भी है. पेप्सिको की सीईओ और चेयरमैन इंदिरा नूई के पति अपनी फुलटाइम जौब को छोड़ कर कंसलटैंट बन गए ताकि वे अपनी दोनों बच्चियों की देखभाल कर सकें.

इसी तरह बरबेरी की सीईओ ऐंजेला अर्हेंड्स के पति ने भी अपनी पत्नी के कैरियर के लिए अपना बिजनैस समेट लिया और बच्चों की देखभाल व घर की जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले लीं.

डिप्लोमैट जेम्स रुबिन ने भी खुशीखुशी अपनी हाई प्रोफाइल जौब छोड़ दी ताकि वे अपनी पत्नी जर्नलिस्ट क्रिस्टीन अमान पोर को सफलता की सीढि़यां चढ़ता देख सकें. उन्होंने जौब छोड़ कर अपने बेटे की परवरिश करने की ठानी.

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