संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार- भाग 1

बड़ेबड़ेशहरों में ऐसी छोटीछोटी घटनाएं होती रहती हैं,’’ हमारे किस नेता ने किस दारुण घटना के संबंध में यह वक्तव्य दिया था, अब ठीक से याद नहीं पड़ता. यों भी अपने नेताओं और बुद्धिजीवियों के अमूल्य वक्तव्यों के सुनने के हम इतने आदी हो गए हैं कि अब उन का कोई कथन हमें चौंकाता नहीं. पर जब हमारे छोटे से शहर में अपहरण जैसी घटना घटने की संभावना प्रतीत हो तो हम सब का चौंकना स्वाभाविक था और वह भी तब, जब वह घटना मेरी घनिष्ठ सहेली संगीता और उस के प्रेमी से संबंधित हो.

हमारे छोटे से कसबेनुमा शहर के हिसाब से हमारी सहेली संगीता कुछ अधिक ही फैशन की दीवानी थी. अपनी 18वीं सदी की मानसिकता वाले मातापिता से छिप कर वह ब्यूटीपार्लर भी जाती थी. माथे पर बड़ी अदा से गिरने वाली घुंघराली लटों को घर में घुसने से पहले पीछे खोंस लेती थी. संपन्न परिवार की 3 भाइयों की इकलौती बहन. तरहतरह के सौंदर्यप्रसाधनों के प्रयोग से उस का व्यक्तित्व निखर उठा था. घर में कड़ा ड्रैस कोड लागू होने पर भी वह विशेष अवसरों पर अतिआधुनिक छोटे परिधानों में नजर आ ही जाती थी. अभिभावकों से छिपा कर कैसे वह इन परिधानों को कालेज तक ले आती थी, यह केवल वही जानती थी. पर हम चाह कर भी उस के जैसा साहस नहीं जुटा पाते थे.

‘‘मैं अपना नाम बदलना चाहती हूं,’’ एक दिन संगीता अचानक बोली.

‘‘अपने मातापिता से पूछा है? कितना अच्छा नाम रखा है तेरा, संगीता. वे नाम बदलने की बात सुनते ही भड़क उठेंगे. वैसे कौन सा नाम रखेगी तू?’’ सपना, नीरजा और मैं ने एकसाथ पूछा.

‘‘संयोगिता. कितना अच्छा नाम है. है न? थोड़ा सा ऐतिहासिक, थोड़ा सा रोमांटिक.’’

‘‘तू कब से इतिहास में रुचि लेने लगी और अभी से रोमांस? सोचना भी मत. आंटी और अंकल घर से निकलना बंद कर देंगे.’’

‘‘निर्भय बनो, निडर बनो. डरडर कर जीना भी कोई जीना है… देखो, मैं कैसे मां और पापा को मना कर अपना नाम बदलवाती हूं.’’

मगर अपना नाम नहीं बदलवा पाई थी संगीता. आंटी के कुछ बोलने की नौबत ही नहीं आई. अंकल ने सुनते ही उस की बात को नकार दिया, ‘‘हंसीखेल है क्या नाम बदलना? कोर्टकचहरी के चक्कर लगाओ… अखबार में छपवाओ… और कोई काम नहीं है क्या? मैं इस झमेले में नहीं पड़ना चाहता और फिर संगीता नाम में बुराई क्या है? इन बेकार की बातों को भुला कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. जब देखो तब बेकार की बातें करती रहती हो.’’

‘‘क्या हुआ?’’ दूसरे दिन उस का फूला मुंह देख कर हम हंस पड़े.

‘‘यहां जान पर बनी है और तुम लोगों को हंसी आ रही है.’’

‘‘क्या हुआ तुम बताओगी नहीं तो हम जानेंगे कैसे और जानेंगे नहीं तो सहानुभूति कैसे प्रकट करेंगे?’’ हम ने हंसी दबाने का प्रयास करते हुए कहा.

‘‘पापा ने सुनते ही नाम बदलने की बात रिजैक्ट कर दी. मन की बात मन में ही रह गई. हाय, संयोगिता और पृथ्वीराज… क्या प्रेम कहानी थी… इतिहास में नाम अमर कर दिया.’’

‘‘तो तू अमर होने के लिए नाम बदलना चाहती है?’’ मैं ने गंभीरता से पूछा.

‘‘मैं तो केवल उस घटना की पुनरावृत्ति करने का सपना पूरा करना चाहती हूं,’’ वह अपनी नजरें क्षितिज के पार करते हुए पुन: अपने स्वप्नलोक में खो गई.

हम सहेलियों ने उस की स्वप्निल आंखों के सामने हाथ हिलाहिला कर उसे यथार्थ के धरातल पर उतारा और हंसतेहंसते लोटपोट हो गईं.

‘‘देख संगीता, हम से कहा तो कहा, क्योंकि हम चारों पक्की सहेलियां हैं. हम से तो तू बेधड़क अपने मन की बात कह सकती है पर और किसी के सामने यह सब मत कहना वरना पता नहीं कौन क्या समझे,’’ हम ने उसे समझाया.

‘‘तुम तीनों इस तरह मेरा उपहास नहीं उड़ा सकतीं. तुम सब शायद भूल रही कि 3 वर्ष पहले जब स्कूल के वार्षिकोत्सव में पृथ्वीराजसंयोगिता का नाटक खेला गया था तो संयोगिता का रोल मैं ने ही निभाया था.’’

‘‘तो क्या हुआ? संयोगिता का रोल करने से कोई संयोगिता नहीं बन जाती. मैं उस नाटक में पृथ्वीराज बनी थी. तो क्या मैं पृथ्वीराज बन जाऊंगी?’’ नीरजा ने कहा.

‘‘तू कौन सी मुझे घोड़े पर बैठा कर ले गई थी? नाचने वाले घोड़े पर नाचती हुई आई थी और मैं घिसटती हुई चली गई थी तेरे साथ. पर मैं ने तो अपने रोल में जान डाल दी थी. याद है मेरा परिचय दिया गया तो दर्शक खड़े हो कर देर तक तालियां बजाते रहे थे.’’

‘‘मान लिया तू बड़ी महान अभिनेत्री है, पर अभिनय और जीवन में अंतर होता है… 12वीं कक्षा फेल संयोगिता को भला कौन सा पृथ्वीराज घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा?’’ मैं ने उसे समझाना चाहा.

‘‘क्या कह रही है तू? मैं क्या आज तक कभी फेल हुई हूं? देखना सब से ज्यादा नंबर आएंगे मेरे,’’ संगीता नाराज हो गई.

‘‘इसी तरह काल्पनिक पृथ्वीराज के सपनों में खोई रही तो फेल भी हो जाएगी… 10वीं कक्षा की बात और थी, पर इंटर को हंसीखेल मत समझ… परीक्षा में केवल 1 माह रह गया है और तू अपना और हमारा समय खराब कर रही है,’’ मैं तनिक रुष्ट स्वर में बोली.

‘‘अर्चना, तू तो दादीअम्मां की तरह बातें करने लगी है. पर तू ठीक कह रही है. पापा भी यही कह रहे थे. मुझे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए.’’

‘‘वही तो… हम चारों मिल कर पढ़ाई करते हैं. चल साथ मिल कर प्लान करते हैं कि कब और कहां साथ मिल कर परीक्षा की तैयारी करेंगे.’’

‘‘प्लान क्या करना है. प्रैक्टिकल परीक्षा होते ही परीक्षा अवकाश होने वाला है. सदा की तरह मेरे घर आ जाया करना तुम सब. मिल कर परीक्षा की तैयारी करेंगे. पर एक बात है.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘संयोगिता कितनी खुशहाल थी… जिंदगी कितनी रोमांटिक हुआ करती थी. संयोगिता और पृथ्वीराज, पृथ्वीराज और संयोगिता… जीवन कितना रसपूर्ण और भावुक होता था. हमारी तरह घर से स्कूल और स्कूल से घर तक ही सीमित नहीं था. संयोगिता के सपनों का राजकुमार आया और उसे घोड़े पर बैठा कर ले गया. पर ऐसा हमारे हिस्से कहां,’’ संगीता अपने कल्पनालोक में खोई हमें संबोधित कर रही थी.

‘‘बस बहुत हो गया. हमें नहीं करनी साथ मिल कर पढ़ाई वरना संगीता के साथ हम सब भी धराशायी हो जाएंगे… संगीता का पृथ्वीराज उसे ही मुबारक हो,’’ अचानक नीरजा गुस्से में बोली तो हम सब हैरान रह गए.

‘‘कैसी बातें कर रही हो नीरजा. तुम तो हासपरिहास भी नहीं समझतीं,’’ संगीता उदास स्वर में बोली.

‘‘न समझती हूं और न ही समझना चाहती हूं. हमारे साथ पढ़ने की पहली शर्त यही है कि तू पृथ्वीराजसंयोगिता के नाम अपनी जबान पर नहीं लाएगी,’’ नीरजा ने धमकी दी.

लंबे वादविवाद और मानमनौअल के बाद संगीता सहमत हुई. सब ने अपनी सहमति दे दी. संगीता के घर के शांत वातावरण में हम सब खूब मन लगा कर पढ़ाई करते. हमारे घर पासपास होने के कारण यह काफी सुविधाजनक भी था. कुछ समय के लिए ही सही संगीता अपने स्वप्निल संसार से बाहर निकल आई थी. पर जब परीक्षाफल आया तो चौंकने की बारी हमारी थी. यद्यपि हम सभी सहेलियों के अच्छे नंबर आए थे पर संगीता पूरे बोर्ड में प्रथम थी. देखते ही देखते वह सब की आंखों का तारा बन गई.

हमारे बढि़या परीक्षाफल से प्रभावित हो कर हमारे मातापिता ने हमें पास के शहर में रह कर पढ़ने की अनुमति दे दी. उन्हें भी हमारी ही तरह यह विश्वास हो गया था कि हम एकसाथ रह कर अच्छी तरह पढ़ाई कर पाएंगे. एक किराए के घर में हमारे रहने का प्रबंध कर दिया गया. बारीबारी से हम सब की मांएं हमारी देखभाल करने और हम पर नजर रखती थीं. पर संगीता पुन: अपने सपनों में विचरण करने लगी थी.

तू मुझे कबूल: क्या वापस मिलीं शायरा और सुहैल की खुशियां

शायरा और सुहैल एकसाथ खेलते बड़े हुए थे. उन्होंने पहले दर्जे से 7वें दर्जे तक एकसाथ पढ़ाई की थी. शायरा के अब्बा बड़ी होती लड़कियों के बाहर निकलने के सख्त खिलाफ थे, इसलिए उसे घर बैठा दिया गया.

उस समय शायरा और सुहैल को लगा था, जैसे उन की खुशियों पर गाज गिर गई हो, मगर दोनों के घर गांव की एक ही गली में होने के चलते उन्हें इस बात की खुशी थी कि शायरा की पढ़ाई छूट जाने के बाद भी वे दोनों एकदूसरे से दूर नहीं थे.

उन दोनों के अब्बा मजदूरी कर के घर चलाते थे, मगर माली हालात के मामले में दोनों ही परिवार तंगहाल नहीं थे. शायरा के चाचा खुरशीद सेना में सिपाही थे, बड़ी बहन नाजनीन सुहैल के बड़े भाई अरबाज के साथ ब्याही थी, जो सौफ्टवेयर इंजीनियर थे और बैंगलुरु में रहते थे. शायरा का एकलौता भाई जफर था, उस से बड़ा, जिस की गांव में ही परचून की दुकान थी.

सुहैल 3 भाइयों में बीच का था. अरबाज बैंगलुरु में सैटल था. गुलफान और सुहैल अभी पढ़ रहे थे. सुहैल खूब  मन लगा कर पढ़ रहा था, ताकि सेना में बड़ा अफसर बन सके.

स्कूल से आते ही सुहैल का पहला काम होता शायरा के घर पहुंच कर उस से खूब बातें करना. उस समय घर में शायरा के अलावा बस उस की अम्मी हुआ करती थीं.

शायरा कोई काम कर रही होती तो सुहैल उसे बांह पकड़ कर छत पर ले जाता. जब वे छोटे थे, तब उन की योजनाओं में गुड्डेगुडि़यों और खिलौनों से खेलना शामिल था, मगर अब वे बड़े हो गए थे तो योजनाएं भी बदल गई थीं.

वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे

अब सुहैल को लगता था कि वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे, मगर उस के मासूम बरताव को देख कर वह ठहर जाता.

एक दिन स्कूल से छुट्टी ले कर सुहैल ने शहर जा कर कोई फिल्म देखी. वापस लौटते हुए फिल्म की प्यार से सराबोर कहानी उस के जेहन पर छाई हुई थी. जैसे ही वह और शायरा छत पर पंहुचे, उस ने बिना कोई बात किए शायरा का हाथ पकड़ लिया.

ऐसा नहीं था कि उस ने शायरा का हाथ पहली बार पकड़ा हो, मगर उस की आंखों में तैर रहे प्यार के भाव को महसूस कर के शायरा घबरा गई और हाथ छुड़ा कर नीचे चली गई.

सुहैल चुपचाप अपने घर लौट आया. अब हालात बदल गए थे. स्कूल से आते ही वह अपना होमवर्क खत्म करता और उस के बाद शायरा के घर जा कर बस उसे देखभर आता.

समय बीतता गया. सुहैल की ग्रेजुएशन खत्म हो चुकी थी. घर वाले शादी की बात करने लगे थे, मगर सुहैल कह देता, ‘‘अभी मु?ो सीडीएस की तैयारी करनी है और फिर नौकरी लग जाने के बाद शादी करूंगा.’’

एक शाम सुहैल सीडीएस का इम्तिहान दे कर लौटा और सीधा शायरा के घर पहुंच गया. शायरा खाना बना रही थी. सुहैल ने हाथ पकड़ कर उसे उठाया, तो वह धीरे से बोली, ‘‘क्या करते हो… रोटी बनानी है मु?ो.’’

सुहैल ने शायरा की एक न सुनी और छत पर ले आया. वहां दोनों हाथों से उस का चेहरा ऊपर कर के बोला, ‘‘मेरी जल्द ही नौकरी लग जाएगी और फिर हम दोनों शादी कर लेंगे.’’

शायरा चुप खड़ी रही. उस का दिल तो कह रहा था कि सुहैल उसे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करे.

‘‘मैं अब्बा से कहूंगा कि वे तेरे घर आ कर हमारे रिश्ते की बात करें,’’ कह कर सुहैल अपने घर चला आया.

कई दिन बाद शायरा को खबर लगी कि सुहैल की नौकरी लग गई है और उसे श्रीनगर भेज दिया गया है. यह सुनते ही शायरा को लगा जैसे घरमकान, गलीकूचा सब बदरंग हो गए हों. न खाने का मन करता था और न ही किसी से बात करने को दिल करता. दिनभर या तो वह काम करती रहती या छत पर चली जाती. रात तो तारे गिनते कब बीत जाती, उसे पता ही न चलता.

शायरा की यह हालत देख कर एक रात उस की अम्मी ने अपने शौहर से कहा कि वे सुहैल के अब्बा से उन दोनों के रिश्ते की बात कर आएं.

अगले दिन शायरा के अब्बू घर लौटे, तो शायरा ने उन्हें पानी दिया. जब वह जाने लगी, तो उन्होंने उसे रोक लिया और बोले, ‘‘मैं ने निजाम से बात कर ली है. कहते हैं कि जैसे ही सुहैल छुट्टी पर आएगा, तुम दोनों का निकाह कर देंगे.’’

शायरा भाग कर कमरे में चली गई और तकिए में मुंह छिपा कर खूब मुसकराई. उस दिन उस ने भरपेट खाना खाया और कई दिनों के बाद अच्छी नींद आई. अब इंतजार था तो सुहैल के घर लौट आने का.

एक दिन अब्बू ने बताया कि एक महीने बाद सुहैल घर लौट कर आ रहा है. यह सुन कर शायरा की खुशी का ठिकाना न रहा. अब तो बस दिन गिनने थे. महीने का समय ही कितना होता है? मगर जल्द ही उसे एहसास हो गया कि अगर किसी अजीज का इंतजार हो, तो एक दिन भी सदियों सा बड़ा हो जाता है.

शायरा सुबह उठती तो खुश होती कि चलो एक दिन बीता, मगर दिनभर बस घड़ी की तरफ निगाहें जमी रहतीं.

आखिर वह दिन भी आया, जब उसे पता चला कि सुहैल घर लौट आया  है. मेरठ नजदीक था तो चाचा भी घर  आ गए.

शाम को मौलवी की हाजिरी में दोनों परिवार के लोगों ने बैठ कर 10 दिन बाद का निकाह तय कर दिया.

शायरा को यकीन ही न था कि उसे मनमांगी मुराद मिल गई थी. घर में चूंकि चहलपहल थी, इसलिए सुहैल से मिलने का तो सवाल ही न था. बस, तसल्ली यह थी कि 10 ही दिनों की तो बात थी.

शादी में अभी 3 दिन बचे थे. घर में हर तरफ खुशी का माहौल था. अचानक एक बुरी खबर आई कि बैंगलुरु वाली बहन नाजनीन को बच्चों को स्कूल से लाते समय एक बस ने कुचल दिया. उन की मौके पर ही मौत हो गई.

एक पल में जैसे खुशियां मातम में बदल गईं. कुछ लोग तुरंत बैंगलुरु रवाना हो गए. हालात की नजाकत देखते  हुए उन्हें बैंगलुरु में ही दफना कर सब लौटे, तो अरबाज भी दोनों बच्चों के साथ आए.

शादी का समय नजदीक था, मगर शायरा ऐसे माहौल में शादी करने के हक में नहीं थी. उस ने जब यह बात सुहैल को बताई, तो उस ने शायरा का साथ दिया, मगर दोनों जानते थे कि कोई भी फैसला करना तो बड़ों को ही है.

शायरा दिनभर नाजनीन के बच्चों को अपने साथ रखती, उन के खानेपीने, नहलाने जैसी हर जरूरत का खयाल रखती. अरबाज दिन में 2-3 बार आ कर उस से बच्चों के बारे में जरूर जानते, उन का हालचाल लेते.

शादी की तैयारियां भी चुपचाप जारी थीं. शायरा भी कबूल कर चुकी थी कि बहन की मौत कुदरत की मरजी थी और यह शादी भी. उस ने मन ही मन खुद को तैयार भी कर लिया था.

शाम का समय था. सब लोग घर के आंगन में बैठे थे कि अरबाज और उस के अब्बू एकसाथ वहां पहुंचे. उन्हें बैठा कर चाय दी गई. शायरा उठ कर दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘क्या बात है मियां, कुछ परेशान हो?’’ शायरा के अब्बू ने अरबाज के अब्बा से पूछा.

निजाम कुछ पल खामोश रहे, फिर कहा, ‘‘नाजनीन चली गई. अभी उस की उम्र ही कितनी थी. उस के बच्चे भी अभी बहुत छोटे हैं. अरबाज की हालत भी मु?ा से देखी नहीं जाती.’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘अरबाज अभी जवान है. लंबी उम्र पड़ी है. कैसे कटेगी? और इन बच्चों को कौन पालेगा? आखिर इन सब के बारे में भी तो हमें ही सोचना है.’’

‘‘अब क्या किया जा सकता है?’’

‘‘नाजनीन के बच्चे शायरा के साथ घुलमिल गए हैं. अगर अरबाज और शायरा का निकाह कर दें तो कैसा रहे?’’

एक पल के लिए खामोशी छा गई. शायरा ने सुना तो उस के शरीर से जैसे जान निकल गई.

‘‘वह सुहैल से प्यार करती है. वह नहीं मानेगी,’’ शायरा के अब्बा बोले.

‘‘औरत जात की मरजी के माने ही क्या हैं? जानवर की तरह जिस के हाथ रस्सी थमा दी गई उसी से बंध गई. तुम अपनी कहो. मंजूर हो तो निकाह की तैयारी करें. अरबाज की भी नौकरी का सवाल है.’’

शायरा के अब्बा इसलाम ने अपनी बीवी जुबैदा की ओर देखा, तो जुबैदा ने हां में सिर हिला दिया.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी.’’

अगले ही दिन से शादी की तैयारी शुरू हो गई. सुहैल को इस निकाह की खबर लगी, तो उस ने अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.

जब यह खबर शायरा ने सुनी, तो उसे लगा कि जाने से पहले सुहैल उस से मिलने जरूर आएगा. मगर वह नहीं आया. उन के घर से खबर ही आनी बंद हो गई.

शादी बहुत सादगी से हो रही थी. शायरा को जब निकाह के लिए ले जाया गया, तो उस की हालत ऐसी थी जैसे मुरदे को मैयत के लिए ले जाया जा रहा हो. उस के सारे सपने टूट गए थे. जीने की वजह ही खत्म हो गई थी.

शायरा को लग रहा था कि जब उस से पूछा जाएगा कि अरबाज वल्द निजाम आप को कबूल है, तो वह कैसे कह पाएगी कि कबूल है?

दूल्हे से पूछा गया, ‘‘शायरा वल्द इसलाम आप को कबूल है?’’

आवाज आई, ‘‘कबूल है.’’

शायरा की जैसे धड़कन बढ़ गई. फिर शायरा से पूछा गया, ‘‘मोहतरमा, सुहैल वल्द निजाम आप को  कबूल है?’’

शायरा ने जैसे ही सुहैल का नाम सुना, तो उस ने धड़कते दिल और  चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘कबूल है.’’

दरअसल, अरबाज को पता चल चुका था कि शायरा सुहैल को चाहती है. उस ने सुहैल से बात की और शादी के दिन शायरा को यह खूबसूरत तोहफा देने की सोची. अब सुहैल और शायरा एक हो चुके थे.

दिल वर्सेस दौलत- भाग 3: क्या पूरा हुआ लाली और अबीर का प्यार

मां का यह विकट क्रोध देख लाली सम झ गई थी कि अब अगर कुदरत भी साक्षात आ जाए तो उन्हें इस रिश्ते के लिए मनाना टेढ़ी खीर होगा. मां के इस हठ से वह बेहद परेशान हो उठी. उस का अंतर्मन कह रहा था कि उसे अबीर जैसा सुल झा हुआ, सम झदार लड़का इस जिंदगी में दोबारा मिलना असंभव होगा. आज के समय में उस जैसे सैंसिबल, डीसैंट लड़के बिरले ही मिलते हैं. अबीर जैसे लड़के को खोना उस की जिंदगी की सब से बड़ी भूल होगी.

लेकिन मां का क्या करे वह? वे एक बार जो ठान लेती हैं वह उसे कर के ही रहती हैं. वह बचपन से देखती आई है, उन की जिद के सामने आज तक कोई नहीं जीत पाया. तो ऐसी हालत में वह क्या करे? पिछली मुलाकात में ही तो अबीर के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं उस ने. दोनों ने एकदूसरे के प्रति अपनी प्रेमिल भावनाएं व्यक्त की थीं.

पिछली बार अबीर के उस के कहे गए प्रेमसिक्त स्वर उस के कानों में गूंजने लगे, ‘लाली माय लव, तुम ने मेरी आधीअधूरी जिंदगी को कंप्लीट कर दिया. दुलहन बन जल्दी से मेरे घर आ जाओ. अब तुम्हारे बिना रहना शीयर टौर्चर लग रहा है.’

क्या करूं क्या न करूं, यह सोचतेसोचते अतीव तनाव से उस के स्नायु तन आए और आंखें सावनभादों के बादलों जैसे बरसने लगीं. अनायास वह अपने मोबाइल स्क्रीन पर अबीर की फोटो देखने लगी और उसे चूम कर अपने सीने से लगा उस ने अपनी आंखें मूंद लीं.

तभी मम्मा उस का दरवाजा पीटने लगीं… ‘‘लाली, दरवाजा खोल बेटा.’’

उस ने दरवाजा खोला. मम्मा कमरे में धड़धड़ाती हुई आईं और उस से बोलीं, ‘‘मैं ने अबीर के पापा को इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. सारा टंटा ही खत्म. हां, अब अबीर का फोनवोन आए, तो उस से तु झे कुछ कहने की कोई जरूरत नहीं. वह कुछ कहे, तो उसे रिश्ते के लिए साफ इनकार कर देना और कुछ ज्यादा बात करने की जरूरत नहीं. ले देख, यह एक और लड़के का बायोडाटा आया है तेरे लिए. लड़का खूब हैंडसम है. नामी एमएनसी में सीनियर कंसल्टैंट है. 40 लाख रुपए से ऊपर का ऐनुअल पैकेज है लड़के का. मेरी बिट्टो राज करेगी राज. लड़के वालों की दिल्ली में कई प्रौपर्टीज हैं. रुतबे, दौलत, स्टेटस में हमारी टक्कर का परिवार है. बता, इस लड़के से फोन पर कब बात करेगी?’’

‘‘मम्मा, फिलहाल मेरे सामने किसी लड़के का नाम भी मत लेना. अगर आप ने मेरे साथ जबरदस्ती की तो मैं दीदी के यहां लंदन चली जाऊंगी. याद रखिएगा, मैं भी आप की बेटी हूं.’’ यह कहते हुए लाली ने मां के कमरे से निकलते ही दरवाजा धड़ाक से बंद कर लिया.

मन में विचारों की उठापटक चल रही थी. अबीर उसे आसमान का चांद लग रहा था जो अब उस की पहुंच से बेहद दूर जा चुका था. क्या करे क्या न करे, कुछ सम झ नहीं आ रहा था.

सारा दिन उस ने खुद से जू झते हुए बेपनाह मायूसी के गहरे कुएं में बिताया. सां झ का धुंधलका होने को आया. वह मन ही मन मना रही थी, काश, कुछ चमत्कार हो जाए और मां किसी तरह इस रिश्ते के लिए मान जाएं. तभी व्हाट्सऐप पर अबीर का मैसेज आया, ‘‘तुम से मिलना चाहता हूं. कब आऊं?’’

उस ने जवाब में लिखा, ‘जल्दी’ और एक आंसू बहाती इमोजी भी मैसेज के साथ उसे पोस्ट कर दी. अबीर का अगला मैसेज एक लाल धड़कते दिल के साथ आया, ‘‘कल सुबह पहुंच रहा हूं. एयरपोर्ट पर मिलना.’’

लाली की वह रात आंखों ही आंखों में कटी. अगली सुबह वह मां को एक बहाना बना एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गई.

क्यूपिड के तीर से बंधे दोनों प्रेमी एकदूसरे को देख खुद पर काबू न रख पाए और दोनों की आंखों से आंसू बहने लगे. कुछ ही क्षणों में दोनों संयत हो गए और लाली ने उन दोनों के रिश्ते को ले कर मां के औब्जेक्शंस को विस्तार से अबीर को बताया.

अबीर और लाली दोनों ने इस मुद्दे को ले कर तसल्ली से, संजीदगी से विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अब जो कुछ करना है उन दोनों को ही करना होगा.

‘‘लाली, इन परिस्थितियों में अब तुम बताओ कि क्या करना है? तुम्हारी मां हमारी शादी के खिलाफ मोरचाबंदी कर के बैठी हैं. उन्होंने साफसाफ लफ्जों में इस के लिए मेरे पापा से इनकार कर दिया है. तो इस स्थिति में अब मैं किस मुंह से उन से अपनी शादी के लिए कहूं?’’ अबीर ने कहा.

‘‘हां, यह तो तुम सही कह रहे हो. चलो, मैं अपने पापा से इस बारे में बात करती हूं. फिर मैं तुम्हें बताती हूं.’’

‘‘ठीक है, ओके, चलता हूं. बस, यह याद रखना मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. शायद खुद से भी ज्यादा. अब तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं.’’

लाली ने अपनी पनीली हो आई आंखों से अबीर की तरफ एक फ्लाइंग किस उछाल दिया और फुसफुसाई, ‘हैप्पी एंड सेफ जर्नी माय लव, टेक केयर.’’

लाली एयरपोर्ट से सीधे अपने पापा के औफिस जा पहुंची और उस ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया. उस की बातें सुन पापा ने कहा, ‘‘अगर तुम और अबीर इस विषय में निर्णय ले ही चुके हो तो मैं तुम दोनों के साथ हूं. मैं कल ही अबीर के घर जा कर तुम्हारी मां के इनकार के लिए उन से माफी मांगता हूं और तुम दोनों की शादी की बात पक्की कर देता हूं. इस के बाद ही मैं तुम्हारी मां को अपने ढंग से सम झा लूंगा. निश्चिंत रहो लाली, इस बार तुम्हारी मां को तुम्हारी बात माननी ही पड़ेगी.’’

लाली के पिता ने लाली से किए वादे को पूरा किया. अबीर के घर जा कर उन्होंने अपनी पत्नी के इनकार के लिए उन से हाथ जोड़ कर बच्चों की खुशी का हवाला देते हुए काफी मिन्नतें कर माफी मांगी और उन दोनों की शादी पक्की करने के लिए मिन्नतें कीं.

इस पर अबीर के पिता ने उन से कहा, ‘‘भाईसाहब, अबीर के ही मुंह से सुना कि आप लोगों को हमारे इस 2 बैडरूम के फ्लैट को ले कर कुछ उल झन है कि शादी के बाद आप की बेटी इस में कहां रहेगी? आप की परेशानी जायज है, भाईसाहब. तो, मेरा खयाल है कि शादी के बाद दोनों एक अलग फ्लैट में रहें. आखिर बच्चों को भी प्राइवेसी चाहिए होगी. यही उन के लिए सब से अच्छा और व्यावहारिक रहेगा. क्या कहते हैं आप?’’

‘‘बिलकुल ठीक है, जैसा आप उचित सम झें.’’

‘‘तो फिर, दोनों की बात पक्की?’’

‘‘जी बिलकुल,’’ अबीर के पिता ने लाली के पिता को मिठाई खिलाते हुए कहा.

बेटी की शादी उस की इच्छा के अनुरूप तय कर, घर आ कर लाली के पिता ने पत्नी को लाली और अबीर की खुशी के लिए उन की शादी के लिए मान जाने के लिए कहा. लाली ने तो साफसाफ लफ्जों में उन से कह दिया, ‘‘इस बार अगर आप हम दोनों की शादी के लिए नहीं माने तो मैं और अबीर कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’’ और लाली की यह धमकी इस बार काम कर गई. विवश लाली की मां को बेटी और पति के सामने घुटने टेकने पड़े.

आखिरकार, दिल वर्सेस दौलत की जंग में दिल जीत गया और दौलत को मुंह की खानी पड़ी.

जीवन की मुसकान- भाग 2: क्या थी रश्मि की कहानी

उसे सुंदरम का कहा याद आने लगा, ‘रश्मि, मैं तुम्हारी हर खुशी का खयाल रखूंगा. लेकिन मेरी प्यारी रश्मि, कर्तव्य के आगे मैं तुम्हें भी भूल जाऊंगा.’

उसे अपने स्वर भी सुनाई दिए, ‘सुंदरम, क्या दुनिया में तुम्हीं अकेले डाक्टर हो? हर समय तुम मरीज को नहीं देखने जाओगे तो दूसरा डाक्टर ही उसे देख लेगा.’

‘रश्मि, अगर ऐसे ही हर डाक्टर सोचने लगे तो फिर मरीज को कौन देखेगा?’

‘मैं कुछ नहीं जानती, सुंदरम. क्या तुम्हें मरीज मेरी जिंदगी से भी प्यारे हैं? क्या मरीजों में ही जान है, मुझ में नहीं? इस तरह तो तुम मुझे भी मरीज बना दोगे, सुंदरम. क्या तुम्हें मेरी बिलकुल परवा नहीं है?’

अजीब कशमकश में पड़ा सुंदरम उस की आंखों के आगे फिर तैर आया, ‘मुझे रुलाओ नहीं, रश्मि. क्या तुम समझती हो, मुझे तुम्हारी परवा नहीं रहती? सच पूछो तो रश्मि, मुझे हरदम तुम्हारा ही खयाल रहता है. कई बार इच्छा होती है कि सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे पास ही आ कर बैठ जाऊं, चाहे दुनिया में कुछ भी क्यों न हो जाए.

‘लेकिन क्या करूं, रश्मि. जब भी किसी मरीज के बारे में सुनता या उसे देखता हूं तो मेरी आंखों के आगे मां का तड़पता शरीर तैर जाता है और मैं रह नहीं पाता. मुझे लगता है, 14 साल पहले की स्थिति उपस्थित होने जा रही है. उस समय किसी डाक्टर की गलती ने मेरी मां के प्राण लिए थे और आज मैं मरीज को न देखने जा कर उस के प्राण ले रहा हूं. और उस के घर वाले उसी तरह मरीज की असमय मृत्यु से पागल हुए जा रहे हैं, मुझ को कोस रहे हैं, जिस तरह मैं ने व मेरे घर वालों ने डाक्टर को समय पर न आने से मां की असमय मृत्यु हो जाने पर कोसा था.’

‘रश्मि, मैं जितना भी बन सकता है, तुम्हारे पास ही रहने की कोशिश करता हूं. 24 घंटों में काफी समय तब भी निकल आता है, तुम्हारे पास बैठने का, तुम्हारे साथ रहने का. मेरे अलग होने पर तुम अविनाश से ही खेल लिया करो या टेप ही चला लिया करो. तुम टेप सुन कर भी अपने नजदीक मेरे होने की कल्पना कर सकती हो.’

‘ऊंह, केवल इन्हीं बातों के सहारे जिंदगी नहीं बिताई जा सकती, सुंदरम. नहीं, बिलकुल नहीं.’

‘रश्मि, मुझे समझने की कोशिश करो. मेरे दिल की गहराई में डूब कर मुझे पहचानने की कोशिश करो. मुझे तुम्हारे सहारे की जरूरत है, रश्मि. मुझे तुम्हारे प्यार की जरूरत है, रश्मि. उस प्यार की, उस सहारे की जो कर्तव्य पथ पर बढ़ते मेरे कदमों को सही दिशा प्रदान करे. तुम क्या जानो, रश्मि, तुम जब प्रसन्न हो, जब तुम्हारा चेहरा मुसकराता है तो मेरे मन में कैसे अपूर्व उत्साह की रेखा खिंच जाती है.

‘और जब तुम उदास होती हो, तुम नहीं जानतीं, रश्मि, मेरा मन कैसीकैसी दशाओं में घूम उठता है. मरीज को देखते वक्त, कैसी मजबूती से, दिल को पत्थर बना कर तुम्हें भूलने की कोशिश करता हूं. और मरीज को देखने के तुरंत बाद तुम्हारी छवि फिर सामने आ जाती है और उस समय मैं तुरंत वापस दौड़ पड़ता हूं, तुम्हारे पास आने के लिए, तुम्हारे सामीप्य के लिए…

‘रश्मि, जीवन में मुझे दो ही चीजें तो प्रिय हैं-कर्तव्य और तुम. तुम्हारी हर खुशी मैं अपनी खुशी समझता हूं, रश्मि. और मेरी खुशी को यदि तुम अपनी खुशी समझने लगो तो…तो शायद कोई समस्या न रहे. रश्मि, मुझे समझो, मुझे पहचानो. मैं हमेशा तुम्हारा मुसकराता चेहरा देखना चाहता हूं. रश्मि, मेरे कदमों के साथ अपने कदम मिलाने की कोशिश तो करो. मुझे अपने कंधों का सहारा दो, रश्मि.’

और रश्मि के आगे घूम गया सुंदरम का तेजी से हावभाव बदलता चेहरा. चलचित्र की भांति उस के आगे कई चित्र खिंच गए. मां की असमय मृत्यु की करुणापूर्ण याद समेटे, आज का बलिष्ठ, प्यारा सुंदर, जो मां को याद आते ही बच्चा बन जाता है, पत्नी के आगे बिलख उठता है. रो उठता है. वह सुंदरम, जो कर्तव्य पथ पर अपने कदम जमाने के लिए पत्नी का सहारा चाहता है, उस की मुसकराहट देख कर मरीज को देखने जाना चाहता है और लौटने पर उस की वही मुसकराहट देख कर आनंदलोक में विचरण करना चाहता है लेकिन वह करे तो क्या करे? वह नहीं समझ पाती कि सुंदरम सही है या वह. इस बात की गहराई में वह नहीं डूब पाती. उस का मन इस समस्या का ऐसा कोई हल नहीं खोज पाता, जो दोनों को आत्मसंतोष प्रदान करे. सुंदरम की मां डाक्टर की असावधानी के कारण ही असमय मृत्यु की गोद से समा गई थीं और उसी समय सुंदरम का किया गया प्रण ही कि ‘मैं डाक्टर बन कर किसी को भी असमय मरने नहीं दूंगा,’ उसे डाक्टर बना सका था. इस बात को वह जानती थी.

किंतु वह नहीं चाहती कि इसी कारण सुंदरम उस की बिलकुल ही उपेक्षा कर बैठे. कुछ खास अवसरों पर तो उसे उस का खयाल रखना ही चाहिए. उस समय वह किसी अपने दोस्त डाक्टर को ही फोन कर के मरीज के पास क्यों न भेज दे?

रश्मि ने एक गहरी सांस ली. खयालों में घूमती उस की पलकें एकदम फिर पूरी खुल गईं और फिर उसे लगा, वही अंधेरा दूरदूर तक फैला हुआ है. वह समझ नहीं पा रही थी कि इस अंधेरे के बीच से कौन सी राह निकाले?

अंधेरे की चादर में लिपटी उस की आंखें दूरदूर तक अंधेरे को भेदने का प्रयास करती हुई खयालों में घूमती चली गईं. उसे कब नींद ने अपने आगोश में ले लिया, उसे खुद पता न चला. अगले दिन कौलबैल एक बार फिर घनघनाई. और इस बार न केवल बजी ही, बल्कि बजती ही चली गई. इस के साथ ही दरवाजे पर भी जोरों की थाप पड़ने लगी. और यह थाप ऐसी थी जो रश्मि को पांव से ले कर सिर तक झकझोर गई. उस के चेहरे की भावभंगिमा भयंकर हो गई और शरीर कांपने सा लगा. माथे की सलवटें जरूरत से ज्यादा गहरी हो गईं और दांत आपस में ही पिसने लगे. पति का मधुर सामीप्य उसे फिर दूर होता प्रतीत हुआ और भावावेश में उस की मुट्ठियां भिंचने लगीं. उस का एकएक अंग हरकत करने लगा और वह अपने को बहुत व्यथित तथा क्रोधित महसूस करने लगी.

वह चोट खाई नागिन की तरह उठी. आज तो वह कुछ कर के ही रहेगी. मरीज को सुना कर ही रहेगी और इस तरह सुनाएगी कि कम से कम यह मरीज तो फिर आने का नाम ही नहीं लेगा. अपना ही राज समझ रखा है. ‘उफ, कैसे दरवाजा पीट रहा है, जैसे अपने घर का हो? क्या इस तरह तंग करना उचित है? वह भी आधी रात को? खुद तो परेशान है ही, दूसरों को बेमतलब तंग करना कहां की शराफत है?’ वह बुदबुदाई और मरीज के व्यवहार पर अंदर ही अंदर तिलमिला गई.

‘‘मैं देखती हूं,’’ दरवाजे की ओर बढ़ते हुए सुंदरम को रोकते हुए रश्मि बोली.

‘‘ठीक है,’’ सुंदरम ने कहा, ‘‘देखो, तब तक मैं कपड़े पहन लेता हूं.’’

रश्मि दरवाजा खोलते हुए जोर से बोली, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैं हूं, दीदी,’’ बाहर से उस के भाई सूरज की घबराई हुई सी आवाज आई.

आगाज- भाग 1: क्या हुआ था नव्या के साथ

शिकागो में एक बड़ी कंपनी में ब्रांच मैनेजर के पद पर कार्यरत नव्या अपने स्टूडियो अपार्टमैंट में बीन बैग पर एक मुलायम कंबल में दुबकी टीवी पर अपना

पसंदीदा टौक शो देख रही थी कि तभी बैल बजी. उस ने अलसाते हुए उठ कर दरवाजा खोला.

उस के सामने दुनिया के 8वें अजूबे के रूप में उस का एक जूनियर

सेल्स ऐग्जिक्यूटिव हाथों में सुर्ख ट्यूलिप्स का एक बुके लिए खड़ा था. ‘‘हाय नैवेद्य, तुम यहां? तुम्हें मेरे घर का पता किस ने दिया?’’ नव्या के स्वर में तनिक तुर्शी घुल आई थी.

वह अपनी व्यक्तिगत और प्रोफैशनल लाइफ अलगअलग रखने में विश्वास रखती थी. अपने जूनियर ट्रेनी को अपने दरवाजे पर यों शाम के वक्त

देख वह तनिक खीज सी गई, लेकिन अगले ही क्षण अपनी इरिटेशन को छिपाते हुए वह अपने स्वर को भरसक सामान्य बना उस से बोली, ‘‘आओ… आओ…

भीतर आओ.’’

‘‘थैंक्यू नव्या,’’ कहते हुए नैवेद्य उस के ठंडे लहजे से तनिक हिचकिचाते हुए कमरे में घुसा.

‘‘बैठोबैठो. बताओ कैसे आना हुआ?’’ उस की

असहजता भांपते हुए नव्या ने इस बार तनिक नर्मी से पूछा.

उस के सामान्य लहजे से नैवेद्य की अचकचाहट खत्म हुई और वह उस की ओर अपने हाथों में थामा

हुआ बुके बढ़ाता हुआ अपने चिरपरिचित हाजिरजवाब अंदाज में एक नर्वस सी मुसकान देते हुए बोला, ‘‘यह तुम्हारे लिए नव्या.’’

‘‘मेरे लिए? अरे भई किस

खुशी में? मैं कुछ समझी नहीं.’’

‘‘बताऊंगा नव्या, बहुत लंबी कहानी है.’’

‘‘व्हाट? लंबी कहानी है, अरे भई, यह सस्पेंस तो क्त्रिएट करो मत. बता डालो जो भी

है,’’ लेकिन नैवेद्य इतनी जल्दी मन की बात जुबान पर लाने में हिचक  रहा था.

तभी नव्या का कोई जरूरी फोन आ गया और वह उसे अटैंड करने अपार्टमैंट में

लगे पार्टीशन के पार चली गई.

नैवेद्य अपने खयालों की दुनिया में खो गया…

वह और नव्या एक ही कंपनी में सेल्स विभाग में थे. नव्या उस की ब्रांच मैनेजर थी और

वह उस के मातहत एक सेल्स ऐग्जिक्यूटिव. उन दोनों का साथ लगभग 1 साल पुराना था.

नैवेद्य अपनी नौकरी की शुरुआत से उस के प्रति एक तीव्र खिंचाव महसूस करता आ रहा था. जब भी वह उस के साथ होता, उस से बातें करना, उस के इर्दगिर्द रहना बेहद अच्छा लगता. औफिस में उस की उपस्थिति मात्र से वह मानो खिल जाता. पहली नजर में उस से प्यार तो नहीं हुआ था, लेकिन हां पहली बार में ही उस से नजरें मिलाने पर न जाने क्यों उस के हृदय की धड़कन तेज हो आईं. वक्त

के साथ उस का सौम्य, सलोना, संजीदा चेहरा दिल की गहराइयों में उतरता गया.

पिछले सप्ताह ही कंपनी की सेल्स ट्रेनिंग कौन्फ्रैंस खत्म हुई थी. उस में उस के साथ

कुछ दिनों तक निरंतर रहने का मौका मिला. नव्या ने ही उस के ग्रुप की ट्रेनिंग ली थी.

ट्रेनिंग खत्म होतेहोते वह पूरी तरह से नव्या के प्यार में डूब चुका था. इतना

कि शाम को ट्रेनिंग से घर लौटता, तो एक अबूझ से खालीपन की अनुभूति से भर जाता. उस का दिल उस के बस में नहीं रहा था. उस का मन करता कि नव्या हर

समय उस की आंखों के सामने रहे. जबजब वह उस के पास होता, मन में जद्दोजहद चलती रहती कि वह उस के प्रति अपनी फीलिंग का उस से खुलासा कर दे,

लेकिन औफिस में नव्या का उस के समेत सभी ट्रेनीज के प्रति उस का पूरी तरह से प्रोफैशनल रवैया देख उस की उस से इस मुद्दे पर कुछ कहने की हिम्मत नहीं

होती.

मगर उस दिन सेल्स ट्रेनिंग कौन्फ्रैंस के आखिरी दिन कुछ ऐसा हुआ कि वह उस से

अपने प्यार का इजहार करने आज उस के घर तक चला आया.

उस दिन

दोपहर लंच होने से पहले ही कौन्फ्रैंस औपचारिक रूप से खत्म हो गई

थी और औफिस कैंटीन में सब हलकेफुलके माहौल में एकसाथ लंच करने लगे.

लंच करते वक्त

एक साथी ट्रेनी ने अपनी शादी का कार्ड नव्या और सभी ट्रेनीज को दिया.

उस की शादी से बातों का रुख मैरिज, प्यार, मुहब्बत, अफेयर की ओर मुड़ गया.

उस दिन

नव्या भी खासे रिलैक्स्ड मूड में

थी और सब के साथ हंसतेमुसकराते हुए बातें कर रही थी.

उसी चर्चा के दौरान नव्या ने एक साथी ट्रेनी से पूछा, ‘‘तुम्हारी शादी नहीं

हुई अभी तक?’’

‘‘नहीं नव्या. अभी तक मैं उस खास की तलाश में हूं, जिस के साथ पूरी जिंदगी बिता सकूं.’’

‘‘ओह, अभी तक तुम्हें कोई भी लड़की ऐसी

नहीं मिली, जिस ने तुम्हारे दिल के तारों को छुआ हो?’’

‘‘नव्या, बहुत पहले जब मैं बस 17-18 साल का था, एक लड़की को अपना बनाने की शिद्दत से

तमन्ना हुई थी, लेकिन तभी मुझे पता चला कि उस का औलरेडी कोई बौयफ्रैंड है. बस तब जो मेरा दिल टूटा, तो आज तक नहीं जुड़ पाया. आज तक टूटा दिल ले

कर घूम रहा हूं.’’

‘‘ओह, अभी तक… वैरी सैड.’’

तभी अचानक नव्या ने अभी के साथ बैठे उस से भी अपना प्रश्न कर डाला, ’’और भइ नैवेद्य, तुम भी तो

कुछ अपनी सुनाओ? तुम

अभी तक सिंगल हो या किसी के साथ

कमिटमैंट में?’’

‘‘नव्या मुझे लड़की तो मिल गई है, लेकिन उस से अपने प्यार का इजहार करने

की हिम्मत नहीं होती मेरी.’’

‘‘क्यों, कोई हिटलर है क्या, जो तुम उस से इतना डरते हो?’’

‘‘नहीं, हिटलर तो नहीं है वह. मेरा लगभग रोजाना ही उस से

काफी मिलनाजुलना होता रहता है, पर पता नहीं क्यों उस से कभी मन की बात कह ही नहीं पाया. इस स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए, तुम ही बताओ.’’

उस की

ये बातें सुन वह हो हो कर जोर से हंस पड़ी.

उसे यों हंसता देख कर उस की हिम्मत बढ़ी और वह उस से पूछ बैठा, ‘‘बताओ न नव्या. मैं भी अपने इस एकतरफा

प्यार से बेहद परेशान हो गया हूं.’’

‘‘अरे भई, मेरा तो मानना है, जो डर गया, वह मर गया. तो आज ही उस से अपनी फींिलग शेयर कर डालो और हां, अगर

लड़की पट जाए तो मुझे मिठाई खिलाना मत भूलना.’’

‘‘नहींनहीं, बिलकुल नहीं. थैंक यू सो मच नव्या,’’ और नव्या ने फिर से खिलखिलाते हुए उसे जवाब

दिया, ‘‘मोस्ट वैलकम नैवेद्य, माई प्लेजर.’’

बस उसी दिन उस ने मन ही मन सोच लिया कि वह आज ही उस के घर जाएगा और उस से अपने मन की बात

शेयर करेगा और इसीलिए वह अभी नव्या के घर पर था.

तभी नव्या फोन पर अपनी बातचीत खत्म कर उस के पास आ गई.

‘‘हां नैवेद्य, तुम मुझे कुछ बताने वाले

थे.’’

नव्या की इस बात पर वह बेहद नर्वस महसूस कर रहा था कि तभी जेहन में उसी के उस दोपहर को हुए शब्द गूंजे कि जो डर गया, वह मर गया और बहुत हिम्मत जुटा कर तनिक घबराते हुए वह बोला, ‘‘नव्या… नव्या मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

‘‘क्या…क्या… क्या बोला तुम ने? तुम्हें मुझ से प्यार हो गया है.

व्हाट रबिश,’’ और यह कहते हुए वह जोर से खिलखिला उठी. ‘‘सीरियसली? आर यू किडिंग?’’

दिल वर्सेस दौलत- भाग 1: क्या पूरा हुआ लाली और अबीर का प्यार

‘‘किस का फोन था, पापा?’’

‘‘लाली की मम्मी का. उन्होंने कहा कि किसी वजह से तेरा और लाली का रिश्ता नहीं हो पाएगा.’’

‘‘रिश्ता नहीं हो पाएगा? यह क्या मजाक है? मैं और लाली अपने रिश्ते में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. नहीं, नहीं, आप को कोई गलतफहमी हुई होगी. लाली मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है? आप ने ठीक से तो सुना था, पापा?’’

‘‘अरे भाई, मैं गलत क्यों बोलने लगा. लाली की मां ने साफसाफ मु झ से कहा, ‘‘आप अपने बेटे के लिए कोई और लड़की ढूंढ़ लें. हम अबीर से लाली की शादी नहीं करा पाएंगे.’’

पापा की ये बातें सुन अबीर का कलेजा छलनी हो आया. उस का हृदय खून के आंसू रो रहा था. उफ, कितने सपने देखे थे उस ने लाली और अपने रिश्ते को ले कर. कुछ नहीं बचा, एक ही  झटके में सब खत्म हो गया, भरे हृदय के साथ लंबी सांस लेते हुए उस ने यह सोचा.

हृदय में चल रहा भीषण  झं झावात आंखों में आंसू बन उमड़नेघुमड़ने लगा. उस ने अपना लैपटौप खोल लिया कि शायद व्यस्तता उस के इस दर्द का इलाज बन जाए लेकिन लैपटौप की स्क्रीन पर चमक रहे शब्द भी उस की आंखों में घिर आए खारे समंदर में गड्डमड्ड हो आए.  झट से उस ने लैपटौप बंद कर दिया और खुद पलंग पर ढह गया.

लाली उस के कुंआरे मनआंगन में पहले प्यार की प्रथम मधुर अनुभूति बन कर उतरी थी. 30 साल के अपने जीवन में उसे याद नहीं कि किसी लड़की ने उस के हृदय के तारों को इतनी शिद्दत से छुआ हो. लाली उस के जीवन में मात्र 5-6 माह के लिए ही तो आई थी, लेकिन इन चंद महीनों की अवधि में ही उस के संपूर्ण वजूद पर वह अपना कब्जा कर बैठी थी, इस हद तक कि उस के भावुक, संवेदनशील मन ने अपने भावी जीवन के कोरे कैनवास को आद्योपांत उस से सा झा कर लिया. मन ही मन उस ने उसे अपने आगत जीवन के हर क्षण में शामिल कर लिया. लेकिन शायद होनी को यह मंजूर नहीं था. लाली के बारे में सोचतेसोचते कब वह उस के साथ बिताए सुखद दिनों की भूलभुलैया में अटकनेभटकने लगा, उसे तनिक भी एहसास नहीं हुआ.

शुरू से वह एक बेहद पढ़ाकू किस्म का लड़का था जिस की जिंदगी किताबों से शुरू होती और किताबों पर ही खत्म. उस की मां लेखिका थीं. उन की कहानियां विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में छपती रहतीं. पिता को भी पढ़नेलिखने का बेहद शौक था. वे एक सरकारी प्रतिष्ठान में वरिष्ठ वैज्ञानिक थे. घर में हर कदम पर किताबें दिखतीं. पुस्तक प्रेम उसे नैसर्गिक विरासत के रूप में मिला. यह शौक उम्र के बढ़तेबढ़ते परवान चढ़ता गया. किशोरावस्था की उम्र में कदम रखतेरखते जब आम किशोर हार्मोंस के प्रभाव में लड़कियों की ओर आकर्षित होते हैं,  उन्हें उन से बातें करना, चैट करना, दोस्ती करना पसंद आता है, तब वह किताबों की मदमाती दुनिया में डूबा रहता.

बचपन से वह बेहद कुशाग्र था. हर कक्षा में प्रथम आता और यह सिलसिला उस की शिक्षा खत्म होने तक कायम रहा. पीएचडी पूरी करने के बाद एक वर्ष उस ने एक प्राइवेट कालेज में नौकरी की. तभी यूनिवर्सिटी में लैक्चरर्स की भरती हुई और उस के विलक्षण अकादमिक रिकौर्ड के चलते उसे वहीं लैक्चरर के पद पर नियुक्ति मिल गई. नौकरी लगने के साथसाथ घर में उस के रिश्ते की बात चलने लगी.

वह अपने मातापिता की इकलौती संतान था. सो, मां ने उस से उस की ड्रीमगर्ल के बारे में पूछताछ की. जवाब में उस ने जो कहा वह बेहद चौंकाने वाला था.

मां, मु झे कोई प्रोफैशनल लड़की नहीं चाहिए. बस, सीधीसादी, अच्छी पढ़ीलिखी और सम झदार नौनवर्किंग लड़की चाहिए, जिस का मानसिक स्तर मु झ से मिले. जो जिंदगी का एकएक लमहा मेरे साथ शेयर कर सके. शाम को घर आऊं तो उस से बातें कर मेरी थकान दूर हो सके.

मां उस की चाहत के अनुरूप उस के सपनों की शहजादी की तलाश में कमर कस कर जुट गई. शीघ्र ही किसी जानपहचान वाले के माध्यम से ऐसी लड़की मिल भी गई.

उस का नाम था लाली. मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की हुई थी. संदली रंग और बेहद आकर्षक, कंटीले नैननक्श थे उस के. फूलों से लदीफंदी डौलनुमा थी वह. उस की मोहक शख्सियत हर किसी को पहली नजर में भा गई.

उस के मातापिता दोनों शहर के बेहद नामी डाक्टर थे. पूरी जिंदगी अपने काम के चलते बेहद व्यस्त रहे. इकलौती बेटी लाली पर भी पूरा ध्यान नहीं दे पाए. लाली नानी, दादी और आयाओं के भरोसे पलीबढ़ी. ताजिंदगी मातापिता के सान्निध्य के लिए तरसती रही. मां को ताउम्र व्यस्त देखा तो खुद एक गृहिणी के तौर पर पति के साथ अपनी जिंदगी का एकएक लमहा भरपूर एंजौय करना चाहती थी.

विवाह योग्य उम्र होने पर उस के मातापिता उस की इच्छानुसार ऐसे लड़के की तलाश कर रहे थे जो उन की बेटी को अपना पूरापूरा समय दे सके, कंपेनियनशिप दे सके. तभी उन के समक्ष अबीर का प्रस्ताव आया. उसे एक उच्चशिक्षित पर घरेलू लड़की की ख्वाहिश थी. आजकल अधिकतर लड़के वर्किंग गर्ल को प्राथमिकता देने लगे थे. अबीर जैसे नौनवर्किंग गर्ल की चाहत रखने वाले लड़कों की कमी थी. सो, अपने और अबीर के मातापिता के आर्थिक स्तर में बहुत अंतर होने के बावजूद उन्होंने अबीर के साथ लाली के रिश्ते की बात छेड़ दी.

संयोगवश उन्हीं दिनों अबीर के मातापिता और दादी एक घनिष्ठ पारिवारिक मित्र की बेटी के विवाह में शामिल होने लाली के शहर पहुंचे. सो, अबीर और उस के घर वाले एक बार लाली के घर भी हो आए. लाली अबीर और उस के परिवार को बेहद पसंद आई. लाली और उस के परिवार वालों को भी अबीर अच्छा लगा.

दोनों के रिश्ते की बात आगे बढ़ी. अबीर और लाली फोन पर बातचीत करने लगे. फिर कुछ दिन चैटिंग की. अबीर एक बेहद सम झदार, मैच्योर और संवेदनशील लड़का था. लाली को बेहद पसंद आया. दोनों में घनिष्ठता बढ़ी. दोनों को एकदूसरे से बातें करना बेहद अच्छा लगता. फोन पर रात को दोनों घंटों बतियाते. एकदूसरे को अपने अनुकूल पा कर दोनों कभीकभार वीकैंड पर मिलने भी लगे. एकदूसरे को विवाह से पहले अच्छी तरह जाननेसम झने के उद्देश्य से अबीर  शुक्रवार की शाम फ्लाइट से उस के शहर पहुंच जाता. दोनों शहर के टूरिस्ट स्पौट्स की सैर करतेकराते वीकैंड साथसाथ मनाने लगे. एकदूसरे को गिफ्ट्स का आदानप्रदान भी करने लगे.

दिन बीतने के साथ दोनों के मन में एकदूसरे के लिए चाहत का बिरवा फूट चुका था. सो, दोनों की तरफ से ग्रीन सिगनल पा कर लाली के मातापिता अबीर का घरबार देखने व उन के रोके की तारीख तय करने अबीर के घर पहुंचे. अबीर का घर, रहनसहन, जीवनशैली देख कर मानो आसमान से गिरे वे.

अबीर का घर, जीवनस्तर उस के पिता की सरकारी नौकरी के अनुरूप था. लाली के रईस और अतिसंपन्न मातापिता की अमीरी की बू मारते रहनसहन से कहीं बहुत कमतर था. उन के 2 बैडरूम के फ्लैट में ससुराल आने पर उन की बेटी शादी के बाद कहां रहेगी, वे दोनों इस सोच में पड़ गए. एक बैडरूम अबीर के मातापिता का था, दूसरा बैडरूम उस की दादी का था.

अबीर की दादी की घरभर में तूती बोलती. वे काफी दबंग व्यक्तित्व की थीं. बेटाबहू उन को बेहद मान देते. उन की तुलना में अबीर की मां का व्यक्तित्व उन्हें तनिक दबा हुआ प्रतीत हुआ.

अबीर के घर सुबह से शाम तक एक पूरा दिन बिता कर उन्होंने पाया कि उन के घर में दादी की मरजी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता. उन की सीमित आय वाले घर में उन्हें बातबात पर अबीर के मातापिता के मितव्ययी रवैए का परिचय मिला.

जीवन की मुसकान- भाग 1: क्या थी रश्मि की कहानी

कौलबैल की आवाज सुनते ही रश्मि के दिल पर एक घूंसा सा लगा. उसे लगा, आग का कोई बड़ा सा गोला उस के ऊपर आ गया है और वह उस में झुलसती जा रही है.

पति की बांहों में सिमटी वह छुईमुई सी हुई पागल होना चाहती थी कि सहसा कौलबैल ने उसे झकझोर कर रख दिया. कौलबैल के बीच की दूरी ऐसी थी, जिस ने कर्तव्य में डूबे पति को एकदम बिस्तर से उठा दिया. रश्मि मन ही मन झुंझला उठी.

‘‘डाक्टर, डाक्टर, हमारे यहां मरीज की हालत बहुत खराब है,’’ बाहर से आवाज आई.

रश्मि बुदबुदाई, ‘ये मरीज भी एकदम दुष्ट हैं. न समय देखते हैं, न कुछ… अपनी ही परवा होती है सब को. दूसरों को देखते तक नहीं, मरमरा जाएं तो…’

‘‘शी…’’ उस के पति डाक्टर सुंदरम ने उस को झकझोरा, ‘‘धीरे बोलो. ऐसा बोलना क्या तुम्हें शोभा देता है?’’

रश्मि खामोश सी, पलभर पति को घूरती रही, ‘‘मत जाइए, हमारी खुशियों के वास्ते आज तो रहम कीजिए. मना कर दीजिए.’’

‘‘पागल तो नहीं हो गई हो, रश्मि? मरीज न जाने किस अवस्था में है. उसे मेरी जरूरत है. विलंब न जाने क्या गुल खिलाए? मुझे जाने दो.’’

‘‘नहीं, आज नहीं जाने दूंगी. रोजरोज ऐसे ही करते हो. कभी तो मेरी भी सुना करो.’’

‘‘कर्तव्य की पुकार के आगे हर आवाज धीमी पड़ जाती है, रश्मि. यह नश्वर शरीर दूसरों की सेवा के लिए ही तो बना है. जीवन में क्या धरा है, केवल आत्मसंतोष ही तो, जो मुझे मरीजों को देख, उन्हें संतुष्ट कर के मिल जाता है.’’

‘‘कर्तव्य, कर्तव्य, कर्तव्य,’’ रश्मि खीझी, ‘‘क्या तुम्हीं रह गए हो कर्तव्य पूरा करने वाले? मरीज दूसरे डाक्टर को भी तो बुला सकता है. तुम मना कर सकते हो.’’

‘‘ऐसे ही सब डाक्टर सोचने लगें तो मरीज को कौन देखेगा?’’ सुंदरम ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हटो आगे से…हटो, रश्मि.’’

‘‘नहीं, नहीं,’’ रश्मि सिर को झटक कर एक ओर हट गई. उस की आंखों में आंसू थे.

डाक्टर सुंदरम शीघ्रता से बाहर निकल गए. रश्मि की आंखों तले अंधेरा सा छाया था. वह उठ कर खिड़की से बाहर देखने लगी. हां, अंधेरा है, दूरदूर तक अंधेरा है. सारा नगर सो रहा है और वह जागी है. आसपास पत्तों के खड़कने की भी आवाज नहीं है और उस की आंखों की पुतलियां न जाने किस दिशा में बारबार फिर रही हैं, आंखों में विवशता का पानी है. लाचार है. आंखों में पानी का गहरा नीला सागर है. होंठों पर न जाने कैसे झाग निकल कर बाहर टपक रहे हैं. किंतु यहां उस की इस दशा को देखने वाला कौन है? परखने वाला कौन है?

रश्मि ध्यान से कमरे की एकएक चीज अंधेरे में आंखें फाड़फाड़ कर देखने लगी. पलंग पर एक तरफ उस का 2 वर्ष का बेटा अविनाश सोया पड़ा है. कमरे में सुखसुविधा की सारी चीजें उपलब्ध हैं. रेडियो, फ्रिज, टेपरिकौर्डर और न जाने क्याक्या. किंतु इन सब के बीच वह सुख कहां है जिस की किसी भी पत्नी को चाह होती है, जरूरत होती है? वह सुख उस से क्यों छीना जाता है, लगभग हर रोज? उस की आंखों की पुतलियां एक बार फिर अविरल हो चलीं. उस की आंखें घूमती गईं. कुछ न भूलने वाली बातें, कुछ हमेशा याद रखने वाली बातें.

आज बड़ी मुश्किल से पति के पास कुछ अधिक देर बैठने का मौका मिला था. उस ने आज पूरे चाव से अपना शृंगार किया था, ताकि मरीजों से अलग बैठा सुंदरम उस में खो सके. खाने की मेज पर सुंदरम बोला था, ‘रश्मि, आज कितनी अच्छी लग रही हो, इच्छा होती है, तुम इसी तरह बैठी रहो और मैं भी इसी तरह बैठा तुम्हें देखता रहूं?’ और वह खुशी से झूम उठी. मस्ती के उन क्षणों को सोते वक्त वह और भी मधुर बनाना चाहती थी कि मरीज ने आ कर किसी लुटेरे की भांति उस के सुख को छिन्नभिन्न कर दिया और वह मुट्ठियां भींच बैठी थी. कर्तव्य के आगे सुंदरम के लिए कोई भी महत्त्व नहीं रखता. वह शीघ्रता से ओवरकोट पहन कर बाहर निकल गया था.

रश्मि को ध्यान आया, यह सब आज की बात नहीं है. उस के सुख पर ऐसा हमला शादी के तुरंत बाद ही होने लगा था. सुहागरात की उन मधुर घडि़यों में तो शायद मरीजों को उस पर तरस आ गया था. उस रात कोई कौलबैल नहीं घनघनाई थी. उस की सुखभरी जिंदगी का शादी के बाद वह शायद पहला व अंतिम दिन था, जब रात बिना किसी बाहरी हलचल के बीती थी. किंतु उस के अगले ही दिन उस के सपनों का सजाया कार्यक्रम छिन्नभिन्न हो गया था और जिंदगी अस्तव्यस्त. सुंदरम अपने मरीजों के प्रति इतना वफादार था कि उस के आगे खानापीना ही नहीं, बल्कि पत्नी भी महत्त्वहीन हो जाती थी. कौलबैल बजी नहीं कि वह मरीज को देखने निकल जाता. इस तरह रश्मि का जीवन एक अजीब प्रतीक्षा और अस्तव्यस्त ढंग से बीतने लगा था. जीने का न कोई ढंग था, न नियम. था तो केवल मरीजों को देखने का नियम, हर समय जब भी मालूम पड़े कि मरीज बीमार है. और घर में खाना कभी 12 बजे खाया जा रहा है, तो कभी 1 बजे, कभी 2, 3 या 4 बजे, कभी बिलकुल ही नहीं. रात का भी यही हाल था.

रश्मि प्रतीक्षा करती रहती कि कब सुंदरम आए, वह उस के साथ भोजन करे, बातें करे. लेकिन अस्पताल से देर से लौटने के बाद भी यह हाल था कि ऊपर से मरीज आ गए तो फिर बाहर. रात के 2 बजे कौलबैल बज उठे तो परवा नहीं, अफसोस नहीं. बस, कर्तव्य एक डाक्टर का एक मरीज के प्रति ही याद रहता. रश्मि को यह बिलकुल पसंद नहीं था. चौबीस घंटों में वह बहुत कम समय पति को अपने नजदीक पाती थी. वह चाहती थी, सुंदरम एक निश्चित कार्यक्रम बना ले, इतने से इतने बजे तक ही मरीजों को देखना है, उस के बाद नहीं. बाकी समय उसे वह अपने पास बिठाना चाहती थी.

पति का मूड भी बात करने का होता कि मरीज आ धमकता और सारा मजा किरकिरा. सब बातें बंद, मरीज पहले. घूमने का प्रोग्राम भी मरीज के कारण रुक जाता. उसे लगता है, रात कभी 2 बजे से शुरू होती है, कभी 3 बजे से. यह भी कोई जिंदगी है. लेकिन सुंदरम कहता कि मरीज को देखने का कोई समय नहीं होता. मरीज की हालत तो अनायास ही बिगड़ती है और यह मालूम पड़ते ही डाक्टर को उस की जांच करनी चाहिए. मरीजों को देखने के लिए बनाए कार्यक्रम के अनुसार चलने पर वह कार्यक्रम किसी भी मरीज की जान ले सकता है. जब मरीज बीमार है तभी डाक्टर के लिए उसे देखने का समय होता है. देखने का कोई निश्चित समय नहीं तय किया जा सकता.

आगाज- भाग 2: क्या हुआ था नव्या के साथ

नव्या के यों हंसने से नैवेद्य को लगा वह फिर से अपना कौन्फिडैंस खोने लगा, लेकिन अगले ही क्षण अपनी पूरी हिम्मत बटोर बोल पड़ा, ‘‘नव्या, मैं मजाक नहीं कर रहा. मैं बहुत सीरियसली कह रहा हूं. मुझे वाकई में

तुम से प्यार हो गया है.’’

‘‘कम औन किड्डो. ग्रो अप. यह प्यारव्यार कुछ नहीं. तुम्हें मुझ पर क्रश हो गया है, और कुछ नहीं. यह क्रश का बुखार कुछ ही दिन

रहता है. इस का पारा जैसे चढ़ता है, वैसे ही उतर भी जाता है,’’ नव्या ने मंदमंद मुसकराते हुए उस से कहा.

‘‘ओह नव्या, यह क्रश नहीं, डैम इट, प्यार है

प्यार. पिछले वीक की सेल्स कौन्फ्रैंस के बाद से मैं तुम्हें दिल दे बैठा हूं. सोतेजागते, उठतेबैठते मुझे तुम ही तुम दिखती हो. मेरी फीलिंग का मजाक तो कम से कम

मत उड़ाओ.’’

इस पर नव्या बोली, ‘‘मैं तुम्हारा मजाक नहीं उड़ा रही किड, लेकिन मेरी और  तुम्हारी दुनिया में जमीनआसमान का अंतर है.’’

‘‘अंतर, कैसा

अंतर?’’

‘‘यह तुम्हारा ऐप्पल का आईफोन और वाच, नाइके के जूते, प्रीमियम ब्रैंड के कपड़े और परफ्यूम बताते हैं तुम्हारी बैकग्राउंड बेहद रिच है. मुझे देखो, यह

मेरा ऐंड्रौइड फोन, जरूरत भर सामान के साथ यह मेरा छोटा सा स्टूडियो अपार्टमैंट. मेरी बैकग्राउंड तुम से बहुत कमतर है बच्चे. मेरे पापा एक रिकशा चलाने वाले हैं.

बोलो एक रिक्कशा चलाने वाले की बेटी के साथ इनवौल्व होना पसंद करोगे?’’

‘‘ओह नव्या, सब से पहले तो मुझे यह किड कहना बंद करो. और हां मुझे इस

बात से बिलकुल कोई फर्क नहीं पड़ता?’’

‘‘ओह, तुम्हारी क्या उम्र है, नैवेद्य?’’

‘‘मैं पूरे 25 साल का हूं.’’

‘‘मैं पूरे 30 की हूं. तुम से पूरे 5 साल

बड़ी.’’

‘‘तो क्या हुआ? प्यार में ये बातें माने

नहीं रखतीं.’’

‘‘रखती हैं नैवेद्य, मेरीतुम्हारी दुनिया

2 पोल्स हैं. मेरातुम्हारा कोई मेल नहीं.’’

‘‘मैं तुम्हें कैसे

विश्वास दिलाऊं कि मैं तुम्हें दिलोजान से चाहने लगा हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं कभी अपने से कम उम्र इंसान को अपनी जिंदगी में शामिल नहीं कर सकती.’’

‘‘ओह

नव्या, प्लीज, ये दकियानूसी बातें करना बंद करो. अच्छा चलो मेरा प्यार कबूल करना नहीं चाहती, तो न सही. मेरी दोस्ती ही ऐक्सैप्ट कर लो यार. चलो, यह

ट्यूलिप्स तुम्हारीमेरी दोस्ती के नाम.’’

‘‘ओके, बहुत प्यारे ट्यूलिप्स हैं,’’ नव्या ने उन्हें हाथ से सहलाते हुए कहा, ‘‘ओके डन, औनली फ्रैंडशिप, नो प्यारव्यार

ओके?’’

‘‘ठीक है भई, ठीक है.’’

दोनों को बातचीत करतेकरते रात के

10 बजने को आए. यह देख कर नव्या

ने उस से कहा, ‘‘नैवेद्य 10 बजने वाले हैं. घर

नहीं जाना?’’

‘‘तुम्हें छोड़ कर घर जाने का मन ही नहीं कर रहा. यार भूख लग रही है डिनर ही करवा दो.’’

‘‘नैवेद्य, अब मेरा तो खाना बनाने का मन ही

नहीं कर रहा. चलो रेस्तरां चलते हैं.’’

‘‘अरे नव्या, मैं बाहर का खाना अवौइड करता हूं. और हां बाई द वे, मैं बहुत अच्छा कुक भी हूं. क्या आज मैं तुम्हें अपने

हाथों से खाना बना कर खिला सकता हूं? इजाजत है तुम्हारी किचन में घुसने की? बोलो तुम्हें क्या खाना है?’’

‘‘अरे नैवेद्य, तुम मेरी किचन में क्या बनाओगे?

अब इतनी देर से मेरा तो किचन में पैर रखने तक का मन नहीं कर रहा.’’

‘‘औल द बेटर. चलो तुम्हें पकौड़े पसंद हैं?’’

‘‘बेहद. प्याज के पकौड़े मेरे पसंदीदा

हैं. क्या तुम पकौड़े बना लेते हो?’’

‘‘मैडम, बस आप मुझे पकौड़े बनाने की सारी चीजें दे दीजिए, बेसन, प्याज, अदरक, हरीमिर्च और बस तसल्ली से बाहर बैठ

जाइए. और हां, मुझे मसालादानी भी चाहिए.’’

नव्या ने उसे बेसन और मसालदानी थमाई. फिर प्याज, अदरक और हरीमिर्च

प्लैटफौर्म पर रख कर बोली, ‘‘चलो,

मैं ये सब धो कर काट देती हूं.’’

‘‘नहीं मैडम, मुझे अपनी किचन में कोई नहीं चाहिए. किचन में बस मैं और मेरी तनहाई. यहां किसी तीसरे की गुंजाइश नहीं,’’

कहते हुए उस ने नव्या के हाथ से चाकू छीना और उसे कंधों से थाम लगभग धकेलते हुए ओपन किचन के प्लेटफौर्म की दूसरी ओर एक स्टूल पर बैठा दिया और

फिर उस से कहा, ‘‘आप बस यहां बैठिए और मुझ से बातें कीजिए. अगले 1 घंटे तक किचन में आप की नो ऐंट्री है.’’

लगभग आधे घंटे में पकौड़े बन गए.

गरमगरम पकौड़े एक प्लेट में रख कर नैवेद्य ने प्लेट नव्या को थमाई, ‘‘चलो नव्या, ऐंजौय दी…’’

खातेखाते रात के 12 बजने को आए.

नैवेद्य ने नव्या से

विदा ली. उस रात नैवेद्य को सी औफ कर के वह नैवेद्य के बारे में ही सोचती रही.

उस का खयाल करते ही उस का मासूम सा चेहरा आंखों के सामने आ गया और

कानों में उस के शब्द गूंजने लगे कि मुझे तुम से प्यार हो गया है. उस के चेहरे पर बरबस एक उदास मुसकराहट तिर आई और वह मन ही मन में बुदबुदाई कि

नैवेद्य, तुम्हें मेरी असलियत नहीं मालूम. मैं जिस दिन तुम्हें अपनी वास्तविकता बता दूंगी उसी दिन तुम मेरी दुनिया से दूर चले जाओगे, दूर बहुत दूर.

उस की आंखें

नम हो आईं कि तभी नींद का एक झोंका आया और कुछ ही देर में वह नींद के आगोश में गुम हो गई.

अगली सुबह वह उठी तो उस ने अपना फोन चैक किया. फोन

पर नैवेद्य का मैसेज आया था, ‘गुड मौर्निंग लव. गुड डे,’ साथ में एक हार्ट की सुर्ख इमोजी भी थी.

नैवेद्य का यह मैसेज पढ़ कर उस के मन में गुदगुदी हुई. यह

एहसास मन को बेहद भला लगा कि कोई तो है इस दुनिया में जो उसे चाहने लगा है, उसे पसंद करने लगा है.

दिन यों ही कैसे घर के कामों, कुकिंग, सफाई में बीत

गया, उसे पता ही नहीं चला.

शाम हो आई थी. वह कंबल में सिकुड़ी टीवी देख रही थी कि तभी अचानक फोन पर नैवेद्य का मैसेज फ्लैश हुआ. स्क्रीन पर हार्ट की

बहुत सारी सुर्ख इमोजी लगातार आए जा रही थीं. उन्हें देख वह बरबस मुसकरा उठी कि तभी अचानक उस के घर की घंटी बजी.

उस ने दरवाजा खोला. एक बार फिर

अपने हाथों में सुर्ख ट्यूलिप्स का बेहद खूबसूरत बुके थामे नैवेद्य उस के सामने खड़ा था.

‘‘गुड मौर्निंग माई लव. यह उस स्वीट सी लड़की के लिए, जिस ने मेरा

दिल चुरा लिया है.’’

जवाब में नव्या ने उसे एक उदास दृष्टि से देखा, जिसे लक्ष्य कर नैवेद्य ने उस से कहा, ‘‘क्या हुआ नव्या, कोई परेशानी?’’

‘‘नहींनहीं,

कुछ नहीं. भीतर आओ, बैठो.’’

तभी नैवेद्य अपने चिरपरिचित अंदाज में चहका, ‘‘आज घर में रहने का बिलकुल मन नहीं है. आज मौसम बहुत सुहाना हो रहा

है… आज रिवर वौक चलते हैं. तुम्हारे घर के पास भी है. कल ही मेरा एक दोस्त इस के बारे में बता रहा था कि बहुत बढि़या जगह है.’’

‘‘ठीक है नैवेद्य, वहीं

चलते हैं. मुझे तो वहां जाना बहुत अच्छा लगता है. मैं तो कई बार शाम को जौगिंग के लिए वहां जाती हूं. वहां कहींकहीं घास पर कुरसियां भी पड़ी हैं. किसी शांत

कोने में बैठ कर अपने मन की बातें भी कर लेंगे. मैं आज अपने बारे में तुम्हें सबकुछ साफसाफ बताना चाहती हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारे पास्ट के बारे में कुछ नहीं जानना चाहता. कितनी बार कह चुका हूं कि मुझे उस से कोई मतलब नहीं.’’

‘‘पर मैं तो तुम्हें सबकुछ बताना चाहती हूं. ठीक है, तुम बैठो मैं तैयार हो कर आती हूं.’’

‘ ‘ओके यार, देर मत करना.’’

‘‘हांहां, बस अभी आई.’’

आगाज- भाग 3: क्या हुआ था नव्या के साथ

कुछ ही देर में नव्या और नैवेद्य रिवर वौक जाने के लिए घर से निकल पड़े. शाम का धुंधलका गहराता जा रहा था.

दोनों नदी किनारे उगी घास  पर लगी

कुरसियों को एक कोने में खींच उन पर बैठ गए.

नदी के सामने आसमान छूती अट्टालिकाओं पर जलतीबुझती इंद्रधनुषी

लाइटें, नीले पानी में तैरते पानी के जहाज, सामने आकाश में ढलता हुआ सिंदूरी सूरज, समां बेहद खूबसूरत थी.

तभी नव्या ने कहना शुरू किया, ‘‘नैवेद्य,

मैं एक

विधवा हूं. मेरे पिता ने मेरी शादी महज

16 साल की उम्र में कर दी थी. शादी के मात्र एक साल बाद मेरे पति की मौत हो गई.’’

‘‘ओह, आई ऐम सो सौरी.

बसबस नव्या, मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं तुम्हें शिद्दत से चाहता हूं और मेरी चाहत में ऐसी किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.’’

‘‘उफ नैवेद्य,

पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो. मैं एक बेहद गरीब परिवार से हूं. मेरे फादर यूपी के एक छोटे से कसबे में रिकशा चलाते हैं. मेरी 2 छोटी बहनें और 1 भाई है. दोनों

बहनें एमबीबीएस के दूसरे ईयर में और भाई फर्स्ट ईयर में है. पूरे घर की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है. तीनों की मोटी फीस और घर खर्चे में मेरी आधी से ज्यादा तनख्वाह खर्च हो जाती है. तो अपने पास्ट और अपनी जिम्मेदारियों की वजह से मैं ताजिंदगी किसी रिलेशनशिप में बंधना नहीं चाहती. मैं नहीं सोचती कि कोई भी लड़का इन

सब के साथ मुझ से रिश्ता बनाना चाहेगा.

‘‘साथ ही मेरी और तुम्हारी दुनिया में जमीनआसमान का फासला है. तुम एक रईस खानदान से हो और मैं महज एक गरीब रिकशा चलाने वाले की बेटी. हम दोनों का कोई साझा भविष्य नहीं.’’

‘‘तुम गलत हो नव्या. प्यार में ये बातें कोई माने नहीं रखतीं.’’

‘‘बहुत माने रखती

हैं नैवेद्य. क्या तुम्हारे पेरैंट्स एक रिकशे वाले की विधवा बेटी को अपनी बहू के रूप में ऐक्सैप्ट कर लेंगे? कभी नहीं.’’

तभी नैवेद्य ने मंदमंद मुसकराते हुए नव्या

के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘नव्या, मेरे पापा नहीं है. वे आर्मी में ब्रिगेडियर की पोस्ट से रिटायर हुए थे. पिछले साल ही उन की डैथ हुई. बस मम्मा

हैं. मम्मा बेहद ब्रौड माइंडेड हैं. वे मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हैं. एक बार बस तुम्हें देखने भर की देर है, वे तुम्हें भी पूरे मन से अपना लेंगी.’’

‘ ‘नहींनहीं नैवेद्य मेरातुम्हारा कोई मेल नहीं. कहां ब्रिगेडियर कहां एक गरीब रिकशा चलाने वाला.’’

‘‘अरे नव्या मैं तुम्हें कैसे विश्वास दिलाऊं? मैं अब तुम्हें छोड़

कर किसी और लड़की के बारे में सोच तक नहीं सकता. प्लीज नव्या, माई लव, मान जाओ, प्लीज…’’ और यह कहतेकहते नैवेद्य ने उस का हाथ अपने हाथ में

लेते हुए उस की हथेली चूम भावविह्वल होते हुए कहा, ‘‘नव्या प्लीज, प्लीज मेरी जिंदगी को पूरा कर दो. तुम्हारे बिना मैं बिलकुल अधूरा हूं.’’

मगर नव्या पर उस की इन बातों का कोई असर नहीं हुआ और वह आखिर तक उस के इस प्रस्ताव को न… न… करती रही.’’

ये सब बातें करतेकराते एक रेस्तरां में खाते हुए रात

का 1 बजने को आया था. नैवेद्य उसे उस के अपार्टमैंट के दरवाजे तक छोड़ने आया.

‘‘नव्या यार, मेरा तो घर जाने का बिलकुल मन नहीं कर रहा. तुम से चिटचैट

करने का मन कर रहा है.’’

‘‘आर यू क्रेजी नैवेद्य? 1 बज रहा है. चलो, अब तुम जाओ.’’

नव्या ने उस के सामने ही दरवाजा बंद कर दिया और फिर अंदर से

बोली, ‘‘बस नैवेद्य आज के लिए बहुत हुआ. गुड नाइट.’’

विवश हो उसे घर जाना ही पड़ा. वह पूरी तरह से नव्या के प्यार मैं दिल के हाथों हार गया था. जब भी वह उस के घर आता वह उसे लाख समझाता, न तो उस का पास्ट, न ही उस की जिम्मेदारियों से उस के लिए उस के प्यार में कोई कमी आएगी, लेकिन अपनी

जमीनी हकीकत से जुड़ी नव्या कुछ ज्यादा ही समझदार थी.

नैवेद्य के लाख इसरार करने पर भी उस ने उस का प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया.

तभी उन्हीं दिनों

नैवेद्य औफिस से एक पखवाड़े की छुट्टी ले कर अपनी मां से मिलने इंडिया गया.

उस अवधि में नव्या को नैवेद्य और अपने रिश्ते के बारे में सोचने का मौका

मिला.

पिछले कुछ महीनों में वह नैवेद्य के बेहद करीब आ गई थी. अब उस से जुदा हो कर उस की मासूमियत भरी बातें, उस की शैतानी भरी छेड़छाड़, नौनस्टौप

गपियाना उसे रहरह कर याद आता. कभीकभी कमजोर क्षणों में वह सोचती

कि उसे नैवेद्य का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए. उस के साथ जिंदगी कितनी खुशनुमा

हो जाएगी, लेकिन अगले ही पल उस की वास्तविकता उसे डराने लगती और वह वापस अपने खोल में सिमट जाती.

उस दिन शनिवार था. घर के काम निबटा कर वह

आराम कर रही थी कि तभी इंडिया से नैवेद्य की वीडियो कौल आ गई. उस ने पूछा, ‘‘नव्या कुछ सोचा मेरे बारे में?’’

‘‘क्या सोचना है नैवेद्य? कितनी बार

तुम्हें कह चुकी हूं, मेरीतुम्हारी दुनिया बिलकुल अलग है. मेरे पीछे टाइम जाया मत करो नैवेद्य. इस पर वह उस से बोला ‘‘लो मम्मा से बात करो. तुम्हारी दुविधा

खत्म हो जाएगी.’’

स्क्रीन पर नैवेद्य की मां आ गईं, ‘‘हैलो नव्या बेटा. यह तुम क्या कह रही हो.

हमारीतुम्हारी दुनिया में कोई फर्क नहीं बेटा. तुम मेरे बेटे से

किसी माने में कमतर नहीं. तुम ने मेरे बेटे का दिल चुरा लिया है, मेरे लिए बस यही अहम है. खुशीखुशी मेरे बेटे की जिंदगी में आ जाओ बेटा, उसे ऐक्सैप्ट कर लो.

प्लीज बेटा

मान जाओ.’’

इस के बाद और कुछ बोलनेसुनने को शेष न रहा था.

उस दिन औफिस की छुट्टी थी. वैलेंटाइनडे भी था. नव्या ने वह पूरा दिन अलकसाते

हुए, आराम करते हुए घर पर ही बिताया. शाम को वह रिवर वौक पर 1 घंटा जौगिंग करने के बाद नदी के सामने घास पर बेमनी सी बैठी हुई पानी में तैरते जहाजों

को देख रही थी. सामने मिशीगन नदी के पार स्काई स्क्रैपर्स पर रंगबिरंगी जलतीबुझती लाइटिंग, नीले पानी में तैरते लाललाल दिलों, गुब्बारों और रंगीन रोशनी से

सजे जहाज, अपने इर्दगिर्द हर ओर प्रेमी जोड़ों की खुशनुमा चहक से रिवर वौक गुलजार था.

उस के सामने नदी में तैरते जहाजों पर तेज म्यूजिक बज रहा था और

कई जहाजों के डैक पर संगीत की धुन पर कई जोड़े थिरक रहे थे.

तभी एक जहाज उस के सामने किनारे के बेहद नजदीक आ गया. उस ने देखा,

उस जहाज पर एक

जोड़ा बांहों में बांहें डाले मदहोश हो नृत्य कर रहा था.

बेहद खूबसूरत पिंक गाउन में सजीधजी युवती की आंखों में आंखें डाले उस युवक को देख नजरों के सामने

नैवेद्य का मुसकराता भोलाभाला चेहरा कौंध उठा.

कलेजे में हूक सी उठी कि तभी अचानक उस के कानों में नैवेद्य के अल्फाज पड़े.

उस ने चौंक कर नजरें घुमाईं,

उस के सामने नैवेद्य अपने एक घुटने पर बैठा मुसकराता हुआ भावविह्वल स्वरों में बुदबुदा रहा था, ‘‘लव यू नव्या, विल यू बी माई वैलेंटाइन?’’

वह सोच नहीं पा रही थी कि यह सपना या हकीकत. तभी अनायास अपूर्व खुशी से खिलखिला पड़ी और उस ने नैवेद्य का हाथ अपने हाथ में ले उसे हौले से चूम लिया.

एक और मुहब्बत की मीठी दास्तान का आगाज हो गया था.

ऐ दिले नादां: क्या पूरी हुई अनवर की प्रेम कहानी

मेसी मुझे जयपुर से पुष्कर जाने वाली टूरिस्ट बस में मिला था. मैं अकेला ही सीट पर बैठा था. उस वक्त वे तीनों बस में प्रविष्ट हुए. एक सुंदर विदेशी लड़की और 2 नवयुवक अंगरेज. लड़की और उस का एक साथी तो दूसरी सीट पर जा कर बैठे, वह आ कर मेरे बाजू वाली सीट पर बैठ गया. मैं ने उस की तरफ मुसकरा कर देखा तो उस ने भी जबरदस्ती मुसकराने की कोशिश करते हुए देखा.

‘‘यू आर फ्रौम?’’ मैं ने सवाल किया.

‘‘स्पेन,’’ उस ने उत्तर दिया, ‘‘मेरा नाम क्रिस्टियानो मेसी है. वह लड़की मेरे साथ स्पेन से आई है. उस का नाम ग्रेटा अजीबला है और उस के साथ जो लड़का बैठा है वह अमेरिकी है, रोजर फीडर.’’

लड़की उस के साथ स्पेन से आई थी और अब अमेरिकी के साथ बैठी थी. इस बात ने मुझे चौंका दिया. मैं ने गौर से उस का चेहरा देखा. उस का चेहरा सपाट था और वह सामने देख रहा था. मैं ने लड़की की तरफ नजर डाली तो रोजर ने उसे बांहों में ले रखा था और वह उस के कंधे पर सिर रखे अपनी जीभ उस के कान पर फेर रही थी. विदेशी लोगों के लिए इस तरह की हरकतें सामान्य होती हैं. अब हम भारतीयों को भी इस तरह की हरकतों में कोई आकर्षण अनुभव नहीं होता है बल्कि हमारे नवयुवक तो आजकल उन से भी चार कदम आगे हैं.

रोजर और गे्रटा आपस में हंसीमजाक कर रहे थे. मजाक करतेकरते वे एकदूसरे को चूम लेते थे. उन की ये हरकतें बस के दूसरे मुसाफिरों के ध्यान का केंद्र बन रही थीं. लेकिन मेसी को उन की इन हरकतों की कोई परवा नहीं थी. वह निरंतर उन की तरफ से बेखबर सामने शून्य में घूरे जा रहा था. या तो वह जानबूझ कर उन की तरफ नहीं देख रहा था या फिर वह उन्हें, उन की हरकतों को देखना नहीं चाहता था. मेसी का चेहरा सपाट था मगर चेहरे पर एक अजीब तरह की उदासी थी.

‘‘तुम ने कहा, गे्रटा तुम्हारे साथ स्पेन से आई है?’’

‘‘हां, हम दोनों एकसाथ एक औफिस में काम करते हैं. हम ने छुट्टियों में इंडिया की सैर करने की योजना बनाई थी और हम 4 साल से हर महीने इस के लिए पैसा बचाया करते थे. जब हमें महसूस हुआ, काफी पैसे जमा हो गए हैं तो हम ने दफ्तर से 1 महीने की छुट्टी ली और इंडिया आ गए.’’

उस की इस बात ने मुझे और उलझन में डाल दिया था. दोनों स्पेन से साथ आए थे और इंडिया की सैर के लिए बरसों से एकसाथ पैसा जमा कर रहे थे. इस से स्पष्ट प्रकट होता है कि उस के और ग्रेटा के क्या संबंध हैं. ग्रेटा उस वक्त रोजर के साथ थी जबकि उसे मेसी के साथ होना चाहिए था. मगर वह जिस तरह की हरकतें रोजर के साथ कर रही थी इस से तो ऐसा प्रकट हो रहा था जैसे वे बरसों से एकदूसरे को जानते हैं, एकदूसरे को बेइंतिहा प्यार करते हैं या फिर एकदूसरे से गहरा प्यार करने वाले पतिपत्नी हैं.

‘‘क्या ग्रेटा और रोजर एकदूसरे को पहले से जानते हैं?’’ मैं ने उस से पूछा.

‘‘नहीं,’’ मेसी ने उत्तर दिया, ‘‘ग्रेटा को रोजर 8 दिन पूर्व मिला. वह उसी होटल में ठहरा था जिस में हम ठहरे थे. दोनों की पहचान हो गई और हम लोग साथसाथ घूमने लगे…और एकदूसरे के इतना समीप आ गए…’’ उस ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

मैं एकटक उसे देखता रहा.

‘‘ये पुष्कर क्या कोई धार्मिक पवित्र स्थान है?’’ मेसी ने विषय बदल कर मुझ से पूछा.

‘‘पता नहीं, मुझे ज्यादा जानकारी नहीं. मैं मुंबई से हूं. अमृतसर से आते हुए 2 दिन के लिए यहां रुक गया था. एक दिन जयपुर की सैर की. आज पुष्कर जा रहा हूं. साथ ही ये बस अजमेर भी जाएगी,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘हम लोग दिल्ली, आगरा में 8 दिन रहे. जयपुर में 8 दिन रहेंगे. वहां से मुंबई जाएंगे. वहां 3-4 दिन रहने के बाद गोआ जाएंगे और फिर गोआ से स्पेन वापस,’’ मेसी ने अपनी सारी भविष्य की यात्रा की योजना सुना दी और आगे कहा, ‘‘सुना है पुष्कर एक पवित्र स्थान है, जहां मंदिर में विदेशी पर्यटक हिंदू रीतिरिवाज से शादी करते हैं. हम लोग इसीलिए पुष्कर जा रहे हैं. वहां ग्रेटा और रोजर हिंदू रीतिरिवाज से शादी करेंगे?’’ मेसी ने बताया.

‘‘लेकिन शादी तो गे्रटा को तुम से करनी चाहिए थी. तुम ने बताया कि तुम ने यहां आने के लिए एकसाथ 4 सालों तक पैसे जमा किए हैं और तुम दोनों एकसाथ काम करते हो.’’

‘‘ये सच है कि इस साल हम शादी करने वाले थे,’’ मेसी ने ठंडी सांस भर कर बताया, ‘‘इसलिए साथसाथ भारत की सैर की योजना बनाई थी. हम बरसों से पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं मगर…’’

‘‘मगर क्या?’’ मैं ने प्रश्नभरी नजरों से मेसी की ओर देखा.

‘‘अब ग्रेटा को रोजर पसंद आ गया है,’’ उस ने एक ठंडी सांस ली, ‘‘तो कोई बात नहीं, ग्रेटा की इच्छा, मेरे लिए दुनिया में उस की खुशी से बढ़ कर कोई चीज नहीं है.’’

मेसी की इस बात पर मैं उस की आंखों में झांकने लगा. उस की आंखों से एक पीड़ा झलक रही थी. मैं ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा. वह 28-30 साल का एक मजबूत कदकाठी वाला युवक था. लेकिन जिस तरह बातें कर रहा था और उस के चेहरे के जो भाव थे, आंखों में जो पीड़ा थी मुझे तो वह कोई असफल भारतीय प्रेमी महसूस हो रहा था. उस की प्रेमिका एक पराए पुरुष के साथ मस्ती कर रही है लेकिन वह फिर भी चुपचाप तमाशा देख रहा है, पे्रमिका की खुशी के लिए…इस बारे में सोचते हुए मेरे होंठों पर एक मुसकराहट रेंग गई. यह प्रेम की भावना है. जो भावना भारतीय प्रेमियों के दिल में होती है वही भावना मौडर्न कहलाने वाले यूरोपवासी के दिल में भी होती है. दिल के रिश्ते हर जगह एक से होते हैं. सच्चा और गहरा प्यार हर इंसान की धरोहर है, उसे न तो सीमा में कैद किया जा सकता है और न देशों में बांटा जा सकता है.

जब मेसी ये सारी बातें बता रहा था तो वह एक असफल प्रेमी तो लग ही रहा था, अपनी प्रेमिका से कितना प्यार करता है, उस की बातों से स्पष्ट झलक रहा था साथ ही उस की भावनाओं से एक सच्चे प्रेमी, आशिक का त्याग भी टपक रहा था. बस चल पड़ी. इस के बाद हमारे बीच कोई बात नहीं हो सकी. मगर वह कभीकभी अपनी स्पेनी भाषा में कुछ बड़बड़ाता था जो मेरी समझ में नहीं आता था लेकिन जब मैं ने एक बार उस की आंखों में आंसू देखे तो मैं चौंक पड़ा और मुझे इन आंसुओं का और उस की बड़बड़ाहट का मतलब भी अच्छी तरह समझ में आ गया. आंसू प्रेमिका की बेवफाई के गम में उस की आंखों में आ रहे थे और जो वह बड़बड़ा रहा था, मुझे विश्वास था उस की अपनी बेवफा प्रेमिका से शिकायत के शब्द होंगे. ग्रेटा और रोजर की मस्तियां कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थीं. मैं तो पूरे ध्यान से उन की मस्तियां देख रहा था. वह भी कभीकभी मुड़ कर दोनों को देख लेता था लेकिन जैसे ही वह ग्रेटा और रोजर को किसी आपत्तिजनक स्थिति में पाता था, झटके से अपनी गरदन दूसरी ओर कर लेता था. जबकि मैं उन की आपत्तिजनक स्थिति से न सिर्फ पूरी तरह आनंदित हो रहा था बल्कि पहलू बदलबदल कर उन की हरकतों को भी देख रहा था.

पुष्कर आने से पूर्व हम ने एकदूसरे से थोड़ी बातचीत की. एकदूसरे के मोबाइल नंबर और ईमेल लिए, इस के बाद वे तीनों पुष्कर में मुझ से जुदा हो गए क्योंकि पुष्कर में बस 2-3 घंटे रुकने वाली थी. पुष्कर में एक बड़ा सा स्टेडियम है जहां पर हर साल प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है. इस में ऊंटों की दौड़ भी होती है. वहां मैं ने कई विदेशी जोड़ों को देखा, जिन के माथे पर टीका लगा हुआ था और गले में फूलों का हार था. पुष्कर घूमने के लिए आने वाले विदेशी पर्यटक बड़े शौक से हिंदू परंपरा के अनुसार विवाह करते हैं. उन का वहां हिंदू परंपरा अनुसार विवाह कराया जाता है फिर चाहे वह विवाहित हों या कुंवारे हों.

वापसी में भी वे हमारे साथ थे. मेसी मेरे बाजू में आ बैठा और ग्रेटा और रोजर अपनी सीट पर. तीनों के माथे पर बड़ा सा टीका लगा हुआ था और गले में गेंदे के फूलों का हार था जो इस बात की गवाही दे रहा था कि रोजर और ग्रेटा ने वहां पर हिंदू परंपरा के अनुसार शादी कर ली है. वापसी में बस अजमेर रुकी. मेसी भी मेरे साथ आया. जब वह उस स्थान के बारे में पूछने लगा तो मैं ने संक्षिप्त में ख्वाजा गरीब नवाज के बारे में बताया.

लौट कर बोला, ‘‘यहां बहुत लोग कह रहे थे कि कुछ इच्छा है तो मांग लो, शायद पूरी हो जाए.’’

‘‘तुम ने कुछ मांगा?’’ मैं ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘हां,’’ उस का चेहरा गंभीर था.

‘‘क्या?’’

‘‘हम ने अपना प्यार मांगा?’’

‘‘प्यार? कौन?’’

‘‘ग्रेटा.’’

एक शब्द में उस ने सारी कहानी कह दी थी. और उस की इस बात से यह साफ प्रकट हो रहा था कि वह गे्रटा को कितना प्यार करता है. वही गे्रटा जो कुछ दिन पूर्व तक तो उस से प्यार करती थी, इस से शादी भी करना चाहती थी…लेकिन यहां उसे रोजर मिल गया. रोजर उसे पसंद आ गया तो अब वह रोजर के साथ है. यह भी भूल गई है कि मेसी उसे कितना प्यार करता है. वे एकदूसरे को सालों से जानते हैं. सालों से एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी भी करने वाले थे. लेकिन पता नहीं उसे रोजर में ऐसा क्या दिखाई दिया या रोजर ने उस पर क्या जादू किया, अब वह रोजर के साथ है. रोजर से प्यार करती है. मेसी के प्यार को भूल गई है. यह भूल गई है कि वह मेसी के साथ भारत की सैर करने के लिए आई है. वह मेसी, जिसे वह चाहती है और जो उसे दीवानगी की हद तक चाहता है. सुना है कि विदेशों में प्यार नाम की कोई चीज ही नहीं होती है. प्यार के नाम पर सिर्फ जरूरत पूरी की जाती है. जरूरत पूरी हो जाने के बाद सारे रिश्ते खत्म हो जाते हैं.

शायद गे्रटा भी मेसी से अभी तक अपनी जरूरत पूरी कर रही थी. जब उस का दिल मेसी से भर गया तो वह अपनी जरूरत रोजर से पूरी कर रही है. लेकिन मेसी तो इस के प्यार में दीवाना है. बस वाले हमारा ही इंतजार कर रहे थे. हम बस में आए और बस चल पड़ी. रोजर और ग्रेटा एकदूसरे की बांहों में समाते हुए एकदूसरे का चुंबन ले रहे थे. वह पश्चिम का एक सुशिक्षित युवक दिल के हाथों कितना विवश हो गया है और अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर स्वयं को धोखा देने वाली की बातें करने लगा है. गंडेतावीज भी पहनने लगा है जो अजमेर की दरगाह पर थोक के भाव में मिलते हैं.

जयपुर में वे अपने होटल के पास उतर गए, मैं अपने होटल पर. उस ने मेरा फोन नंबर व ईमेल आईडी ले लिया और कहा कि वह मुझे फोन करता रहेगा. मैं रात में ही मुंबई के लिए रवाना हो गया और उस को लगभग भूल ही गया. 8 दिन बाद अचानक उस का फोन आया.

‘‘हम लोग मुंबई में हैं और कल गोआ जा रहे हैं.’’

‘‘अरे तो पहले मुझ से क्यों नहीं कहा. मैं तुम से मिलता. आज या कल तुम से मिलूं?’’

‘‘आज हम एलीफैंटा गुफा देखने जाएंगे और कल गोआ के लिए रवाना होना है. इस से कल भी मुलाकात संभव नहीं.’’

‘‘गे्रटा कैसी है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘रोजर के साथ बहुत खुश है,’’ उस का स्वर उदास था.

इस के बाद उस का गोआ से एक बार फोन आया, ‘‘हम गोआ में हैं. बहुत अच्छी जगह है. इतना अच्छा समुद्री तट मैं ने आज तक नहीं देखा. मुझे ऐसा महसूस हो रहा है मानो मैं अपने देश या यूरोप के किसी देश में हूं. 4 दिन के बाद मैं स्पेन चला जाऊंगा. गे्रटा भी मेरे साथ स्पेन जाएगी. लेकिन वह दूसरे दिन न्यूयार्क के लिए रवाना हो जाएगी. वहां रोजर उस का इंतजार कर रहा होगा. वह हमेशा के लिए स्पेन छोड़ देगी. अब वे दोनों वहां के रीतिरिवाज के अनुसार शादी करने वाले हैं.’’ उस की बात सुन कर मैं ने ठंडी सांस ली, ‘‘कोई बात नहीं मेसी, गे्रटा को भूल जाओ, कोई और गे्रटा तुम्हें मिल जाएगी. तुम गे्रटा को प्यार करते हो न. तुम्हारे लिए तो गे्रटा की खुशी से बढ़ कर कोई चीज नहीं है. गे्रटा की खुशी ही तुम्हारी खुशी है,’’ मैं ने समझाया.

‘‘हां,अनवर यह बात तो है,’’ उस ने मरे स्वर में उत्तर दिया. इस के बाद उस से कोई संपर्क नहीं हो सका. एक महीने के बाद जब एक दिन मैं ईमेल चैक कर रहा था तो अचानक उस का ईमेल मिला : ‘गे्रटा अमेरिका नहीं जा सकी. रोजर ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया. वह कई दिनों तक बहुत डिस्टर्ब  रही. अब वह नौर्मल हो रही है. ‘हम लोग अगले माह शादी करने वाले हैं. अगर आ सकते हो तो हमारी शादी में शामिल होने जरूर आओ. मैं सारे प्रबंध करा दूंगा.’ उस का ईमेल पढ़ कर मेरे होंठों पर एक मुसकराहट रेंग गई. और मैं उत्तर में उसे मुबारकबाद और शादी में शामिल न हो सकने का ईमेल टाइप करने लगा.

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