बड़ेबड़ेशहरों में ऐसी छोटीछोटी घटनाएं होती रहती हैं,’’ हमारे किस नेता ने किस दारुण घटना के संबंध में यह वक्तव्य दिया था, अब ठीक से याद नहीं पड़ता. यों भी अपने नेताओं और बुद्धिजीवियों के अमूल्य वक्तव्यों के सुनने के हम इतने आदी हो गए हैं कि अब उन का कोई कथन हमें चौंकाता नहीं. पर जब हमारे छोटे से शहर में अपहरण जैसी घटना घटने की संभावना प्रतीत हो तो हम सब का चौंकना स्वाभाविक था और वह भी तब, जब वह घटना मेरी घनिष्ठ सहेली संगीता और उस के प्रेमी से संबंधित हो.
हमारे छोटे से कसबेनुमा शहर के हिसाब से हमारी सहेली संगीता कुछ अधिक ही फैशन की दीवानी थी. अपनी 18वीं सदी की मानसिकता वाले मातापिता से छिप कर वह ब्यूटीपार्लर भी जाती थी. माथे पर बड़ी अदा से गिरने वाली घुंघराली लटों को घर में घुसने से पहले पीछे खोंस लेती थी. संपन्न परिवार की 3 भाइयों की इकलौती बहन. तरहतरह के सौंदर्यप्रसाधनों के प्रयोग से उस का व्यक्तित्व निखर उठा था. घर में कड़ा ड्रैस कोड लागू होने पर भी वह विशेष अवसरों पर अतिआधुनिक छोटे परिधानों में नजर आ ही जाती थी. अभिभावकों से छिपा कर कैसे वह इन परिधानों को कालेज तक ले आती थी, यह केवल वही जानती थी. पर हम चाह कर भी उस के जैसा साहस नहीं जुटा पाते थे.
‘‘मैं अपना नाम बदलना चाहती हूं,’’ एक दिन संगीता अचानक बोली.
‘‘अपने मातापिता से पूछा है? कितना अच्छा नाम रखा है तेरा, संगीता. वे नाम बदलने की बात सुनते ही भड़क उठेंगे. वैसे कौन सा नाम रखेगी तू?’’ सपना, नीरजा और मैं ने एकसाथ पूछा.
‘‘संयोगिता. कितना अच्छा नाम है. है न? थोड़ा सा ऐतिहासिक, थोड़ा सा रोमांटिक.’’
‘‘तू कब से इतिहास में रुचि लेने लगी और अभी से रोमांस? सोचना भी मत. आंटी और अंकल घर से निकलना बंद कर देंगे.’’
‘‘निर्भय बनो, निडर बनो. डरडर कर जीना भी कोई जीना है… देखो, मैं कैसे मां और पापा को मना कर अपना नाम बदलवाती हूं.’’
मगर अपना नाम नहीं बदलवा पाई थी संगीता. आंटी के कुछ बोलने की नौबत ही नहीं आई. अंकल ने सुनते ही उस की बात को नकार दिया, ‘‘हंसीखेल है क्या नाम बदलना? कोर्टकचहरी के चक्कर लगाओ… अखबार में छपवाओ… और कोई काम नहीं है क्या? मैं इस झमेले में नहीं पड़ना चाहता और फिर संगीता नाम में बुराई क्या है? इन बेकार की बातों को भुला कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. जब देखो तब बेकार की बातें करती रहती हो.’’
‘‘क्या हुआ?’’ दूसरे दिन उस का फूला मुंह देख कर हम हंस पड़े.
‘‘यहां जान पर बनी है और तुम लोगों को हंसी आ रही है.’’
‘‘क्या हुआ तुम बताओगी नहीं तो हम जानेंगे कैसे और जानेंगे नहीं तो सहानुभूति कैसे प्रकट करेंगे?’’ हम ने हंसी दबाने का प्रयास करते हुए कहा.
‘‘पापा ने सुनते ही नाम बदलने की बात रिजैक्ट कर दी. मन की बात मन में ही रह गई. हाय, संयोगिता और पृथ्वीराज… क्या प्रेम कहानी थी… इतिहास में नाम अमर कर दिया.’’
‘‘तो तू अमर होने के लिए नाम बदलना चाहती है?’’ मैं ने गंभीरता से पूछा.
‘‘मैं तो केवल उस घटना की पुनरावृत्ति करने का सपना पूरा करना चाहती हूं,’’ वह अपनी नजरें क्षितिज के पार करते हुए पुन: अपने स्वप्नलोक में खो गई.
हम सहेलियों ने उस की स्वप्निल आंखों के सामने हाथ हिलाहिला कर उसे यथार्थ के धरातल पर उतारा और हंसतेहंसते लोटपोट हो गईं.
‘‘देख संगीता, हम से कहा तो कहा, क्योंकि हम चारों पक्की सहेलियां हैं. हम से तो तू बेधड़क अपने मन की बात कह सकती है पर और किसी के सामने यह सब मत कहना वरना पता नहीं कौन क्या समझे,’’ हम ने उसे समझाया.
‘‘तुम तीनों इस तरह मेरा उपहास नहीं उड़ा सकतीं. तुम सब शायद भूल रही कि 3 वर्ष पहले जब स्कूल के वार्षिकोत्सव में पृथ्वीराजसंयोगिता का नाटक खेला गया था तो संयोगिता का रोल मैं ने ही निभाया था.’’
‘‘तो क्या हुआ? संयोगिता का रोल करने से कोई संयोगिता नहीं बन जाती. मैं उस नाटक में पृथ्वीराज बनी थी. तो क्या मैं पृथ्वीराज बन जाऊंगी?’’ नीरजा ने कहा.
‘‘तू कौन सी मुझे घोड़े पर बैठा कर ले गई थी? नाचने वाले घोड़े पर नाचती हुई आई थी और मैं घिसटती हुई चली गई थी तेरे साथ. पर मैं ने तो अपने रोल में जान डाल दी थी. याद है मेरा परिचय दिया गया तो दर्शक खड़े हो कर देर तक तालियां बजाते रहे थे.’’
‘‘मान लिया तू बड़ी महान अभिनेत्री है, पर अभिनय और जीवन में अंतर होता है… 12वीं कक्षा फेल संयोगिता को भला कौन सा पृथ्वीराज घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा?’’ मैं ने उसे समझाना चाहा.
‘‘क्या कह रही है तू? मैं क्या आज तक कभी फेल हुई हूं? देखना सब से ज्यादा नंबर आएंगे मेरे,’’ संगीता नाराज हो गई.
‘‘इसी तरह काल्पनिक पृथ्वीराज के सपनों में खोई रही तो फेल भी हो जाएगी… 10वीं कक्षा की बात और थी, पर इंटर को हंसीखेल मत समझ… परीक्षा में केवल 1 माह रह गया है और तू अपना और हमारा समय खराब कर रही है,’’ मैं तनिक रुष्ट स्वर में बोली.
‘‘अर्चना, तू तो दादीअम्मां की तरह बातें करने लगी है. पर तू ठीक कह रही है. पापा भी यही कह रहे थे. मुझे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए.’’
‘‘वही तो… हम चारों मिल कर पढ़ाई करते हैं. चल साथ मिल कर प्लान करते हैं कि कब और कहां साथ मिल कर परीक्षा की तैयारी करेंगे.’’
‘‘प्लान क्या करना है. प्रैक्टिकल परीक्षा होते ही परीक्षा अवकाश होने वाला है. सदा की तरह मेरे घर आ जाया करना तुम सब. मिल कर परीक्षा की तैयारी करेंगे. पर एक बात है.’’
‘‘वह क्या?’’
‘‘संयोगिता कितनी खुशहाल थी… जिंदगी कितनी रोमांटिक हुआ करती थी. संयोगिता और पृथ्वीराज, पृथ्वीराज और संयोगिता… जीवन कितना रसपूर्ण और भावुक होता था. हमारी तरह घर से स्कूल और स्कूल से घर तक ही सीमित नहीं था. संयोगिता के सपनों का राजकुमार आया और उसे घोड़े पर बैठा कर ले गया. पर ऐसा हमारे हिस्से कहां,’’ संगीता अपने कल्पनालोक में खोई हमें संबोधित कर रही थी.
‘‘बस बहुत हो गया. हमें नहीं करनी साथ मिल कर पढ़ाई वरना संगीता के साथ हम सब भी धराशायी हो जाएंगे… संगीता का पृथ्वीराज उसे ही मुबारक हो,’’ अचानक नीरजा गुस्से में बोली तो हम सब हैरान रह गए.
‘‘कैसी बातें कर रही हो नीरजा. तुम तो हासपरिहास भी नहीं समझतीं,’’ संगीता उदास स्वर में बोली.
‘‘न समझती हूं और न ही समझना चाहती हूं. हमारे साथ पढ़ने की पहली शर्त यही है कि तू पृथ्वीराजसंयोगिता के नाम अपनी जबान पर नहीं लाएगी,’’ नीरजा ने धमकी दी.
लंबे वादविवाद और मानमनौअल के बाद संगीता सहमत हुई. सब ने अपनी सहमति दे दी. संगीता के घर के शांत वातावरण में हम सब खूब मन लगा कर पढ़ाई करते. हमारे घर पासपास होने के कारण यह काफी सुविधाजनक भी था. कुछ समय के लिए ही सही संगीता अपने स्वप्निल संसार से बाहर निकल आई थी. पर जब परीक्षाफल आया तो चौंकने की बारी हमारी थी. यद्यपि हम सभी सहेलियों के अच्छे नंबर आए थे पर संगीता पूरे बोर्ड में प्रथम थी. देखते ही देखते वह सब की आंखों का तारा बन गई.
हमारे बढि़या परीक्षाफल से प्रभावित हो कर हमारे मातापिता ने हमें पास के शहर में रह कर पढ़ने की अनुमति दे दी. उन्हें भी हमारी ही तरह यह विश्वास हो गया था कि हम एकसाथ रह कर अच्छी तरह पढ़ाई कर पाएंगे. एक किराए के घर में हमारे रहने का प्रबंध कर दिया गया. बारीबारी से हम सब की मांएं हमारी देखभाल करने और हम पर नजर रखती थीं. पर संगीता पुन: अपने सपनों में विचरण करने लगी थी.