प्यार खुद से और लाइफ पार्ट्नर से

‘योर बैस्ट ईयर एट’ की लेखिका जिन्नी डिटजलर कहती हैं कि अगर आप चाहते हैं कि आप का प्रत्येक वर्ष विशेष व अच्छा हो, तो अपने आप से प्रेम करने एवं आनंद प्राप्ति हेतु सब से पहले अपने प्रति दयावान बनो. जब तक आप चिंतामुक्त रहने का तरीका नहीं सीखोगे तब तक अपने आप को खुश नहीं रख सकते और दूसरों के साथ उदार व्यवहार नहीं कर सकते. इसलिए स्वयं से प्रेम करो और स्वयं को असंतोष और पछतावे से मुक्त रखो.

अपने आप को स्वीकार करो

जब आप स्वयं से बिना शर्त प्रेम करते हो, तो यह गुण आप की औरों से प्रेम करने की योग्यता में वृद्धि करता है. योग गुरु गुरमुख और खालसा कहती हैं कि स्वयं से प्रेम करना सांस लेने की भांति है. जबकि आमतौर पर होता यह है कि हम स्वयं से और अपने सपनों से अलग हो जाते हैं, इसलिए दुखी रहते हैं.

जिन्नी कुछ व्यावहारिक तरीके स्वयं से जुड़ने के लिए बताती हैं, जो हैं अच्छा खाना, ध्यान, नए चलन के कपड़े पहनना, दान देने की कला और जीवन के उद्देश्य प्राप्त करना इत्यादि.

100 दिन के नियम

मोनिका जांडस, जिन्होंने ‘स्वयं से प्रेम करें’ नाम से प्रचार अभियान चलाया है, कहती हैं कि स्वयं को प्रेम भरा आलिंगन दो. स्वयं से प्रेम करोगे तो आजीवन प्रेम मिलेगा. जब मैं ने प्रचार शुरू किया तो मैं लोगों से चाहती थी कि वे स्वयं को 100 दिन 100 तरीकों से प्रेम करें. मैं चाहती थी लोग स्वयं की देखभाल करें. जीवन के प्रति लगाव रखें और अपनी भावनाओं को व्यक्त करें. आप विभिन्न चीजों को विभिन्न तरीकों से प्रतिदिन व्यवहार में लाने से स्वयं से प्रेम करना शुरू कर सकते हो. साथ ही अपना जीवन उद्देश्य तय कर के अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हो.

पूर्वाग्रह को न कहो

पूर्वाग्रह का कभी पुलिंदा न बांधो. जहां भी संभव हो क्षमादाता बनो. माइकल डिओली, जो ‘आप के लिए उत्तम संभावनाएं’ के लेखक भी हैं, कहते हैं कि जीवन में सुगम यात्रा के लिए व्यक्ति को पूर्वाग्रहों के अतिरिक्त भार से समयानुसार मुक्त हो जाना चाहिए. केवल जरूरत पड़ने पर ही व्यक्ति को एक स्थान पर रुकना चाहिए. आप का द्वेष, आप का नकारात्मक आचरण, आप की सनक, द्वंद्व, क्रोध और आप की उदारता की कमी, आप को अच्छे संबंध बनाने से रोकती है.

अनीता मोरजानी, जो नैतिक उत्थान परामर्शदाता एवं लेखिका भी हैं, कहती हैं कि वास्तव में स्वयं के शत्रु हम स्वयं हैं और स्वयं के कठोर आलोचक भी. यदि औरों के प्रति भी हम इसी तरह का रवैया रखते हैं, तो हम हर व्यक्ति का आकलन एक ही दृष्टिकोण से करते हैं. हमें अपने जीवन के प्रत्येक पहलू को स्वीकार करना चाहिए, चाहे वह अच्छा हो या बुरा.

दूसरों के अधीन न बनो

सामान्य जीवन जीते हुए भी अगर मौका मिले तो पूर्ण आनंद लेने से खुद को मत रोको. मनोवैज्ञानिक रोहित जुनेजा, जो ‘दिल से जियो’ के लेखक भी हैं, कहते हैं कि हम स्वयं के सुख और विवाद के मुख्य स्रोत हैं. हम सभी मानव हैं और गलती करना मानवीय प्रवत्ति है. श्रेष्ठता के लिए दूसरों के अधीन न बनो और स्वयं के बारे में गलत राय भी न बनाओ. जरूरतमंद व्यक्तित्व प्रभावशाली नहीं होता. जीवन के उतारचढ़ाव के कारण स्वयं को जीवन के आनंदमयी क्षणों का आनंद लेने से वंचित न रखो.

स्वयं से प्रेम कैसे मुमकिन

स्वयं से प्रेम करने के लिए दिन में कम से कम 5 मिनट ध्यान करो जो रक्तचाप को कम कर जठराग्नि प्रणाली मजबूत करता है और साथ ही जीवन को प्रभावशाली तरीके से जीने योग्य बनाता है. ध्यान आप की स्मरण शक्ति में भी वृद्धि करता है, दुखों से लड़ना सिखाता है और आप के आवेश को रोकता है. तब आप स्वयं को प्रेम करने लगते हैं क्योंकि ध्यान आप की मानसिकता और स्वास्थ्य में वृद्धि करता है. यह खुशी प्रदान करने वाले हारमोंस का भी संचार करता है.

पारिवारिक समस्याएं

आप के निरंतर याद दिलाने और टोकने पर भी अगर आप का जीवनसाथी, घर के बिल, चाबी और घर के अन्य जरूरी सामान सही जगह पर नहीं रखता है, तो समस्या है कि खत्म ही नहीं होती और आप की परेशानी का कारण भी बन जाती है.

ऐसा कछ होने पर परेशानी में उलझे रहने के बजाय यह सोचो कि आप ने जिस व्यक्ति से विवाह अपना सुखदुख साझा करनेके लिए किया है, उस के साथ आप को असमानता का साझा भी करना है. आप अपनी चिंता को सहज रूप से जीवनसाथी के समक्ष रखो और घर की व्यवस्था एवं निजी जरूरतों के बारे में भी बात करो.

इसी प्रकार कई बार थकावट के कारण कुछ पुरुष संभोग के इच्छुक नहीं होते, जिस के कारण संबंध बनाते समय उन में गर्मजोशी की कमी रहती है. ऐसे में उन की इच्छा के विरुद्ध अगर उन की जीवनसंगिनी उन से यौन संबंध बनाती है तो वे असहज महसूस करते हैं. जिस से जीवनसंगिनी असंतुष्ट रह जाती है.

इस संबंध में यौन विशेषज्ञों का कहना है कि हर 3 में से 1 युगल तब यौन संतुष्टि न होने की समस्या का सामना करता है जब एक साथी इच्छुक होता है और दूसरा इच्छुक नहीं होता. कई बार ऐसी दुशवारियों के कारण आप के दांपत्य जीवन की डोर टूटने की कगार पर आ जाती है. संभोग आप के लिए मात्र औपचारिकता नहीं है, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है. यदि आप का साथी संभोग हेतु इच्छुक नहीं है तो यौन इच्छा जाग्रत करने के कई कई उपाय हैं. आप उसे गुदगुदाएं तथा प्रेम भरी व कामुक वार्त्ता करें. इस से आप के साथी की यौन इच्छा जाग्रत होगी और वह यौन क्रिया हेतु तत्पर हो कर आप से सहयोग करने लगेगा. इस से आप दोनों ही यौन संतुष्टि पा सकोगे.

कामकाजी समस्याएं

औफिस से घर लौटने पर आजकल कई पुरुष लैपटौप या डिनर टेबल पर काम से संबंधित फोनकाल में व्यस्त रहते हैं, जो उन की जीवनसंगिनी की नाराजगी का कारण बनता है क्योंकि पूरे दिन के बाद यह समय आपसी बातचीत का होता है.

जब आप का जीवनसाथी लैपटौप या फोनकाल में व्यस्त हो, तो उसी समय समस्या पर तर्कवितर्क करने के बजाय मुद्दे को सही समय पर उठाएं और उसे प्रेमपूर्वक बताएं कि हम दोनों को साथ समय बिताने की सख्त आवश्यकता है. इस में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना चाहिए. यदि आप को रोज समय नहीं मिलता तो हफ्ते का एक दिन भी सिर्फ मेरे लिए रखो.

जीवन को रसीला बनाए रखने हेतु चुंबन की सार्थकता से इनकार नहीं किया जा सकता. इस संबंध में किए गए सर्वे का निष्कर्ष यह है कि नौकरी, बच्चे, आदत और पारिवारिक उत्तरदायित्व के कारण विवाहित युगल दिन में केवल 4 मिनट साथ होते हैं. वह वक्त वे चुंबन या प्रेमवार्त्ता को देते हैं तो दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहती है.

एक आम युगल साल में 58 बार संभोग करता है यानी औसतन सप्ताह में एक बार. इसलिए सिर्फ सैक्स नहीं मित्रता, हासपरिहास, उदारता, क्षमापूर्ण स्वभाव व संभोग से बढ़ कर दंपती के बीच आपसी विश्वास सुखद  वैवाहिक जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है. इस के साथ ही जो व्यक्ति अपनी जीवनसंगिनी का सुबह के समय चुंबन लेते हैं, वे चुंबन न लेने वालों की तुलना में 5 वर्ष दीर्घ आयु वाले होते हैं. इसलिए चुंबन व प्रेमवार्त्ता हेतु समय अवश्य निकालें.

य़े भी पढ़ें- झट प्यार पट ब्रेकअप

झट प्यार पट ब्रेकअप

कुछ समय से सैलिब्रिटी ब्रेकअप्स सुर्खियों में छाए हुए हैं. पहले सलमान कैटरीना, फरहान अधुना, बिपाशा जौन अचानक अलग हो गए अब मलाइकाअरबाज ने अगल हो कर सब को हैरान कर दिया. छोटे परदे के मशहूर अभिनेता करण सिंह ग्रोवर का अपनी पहली पत्नी श्रद्धा निगम से तलाक, फिर जेनिफर से विवाह और फिर तलाक, फिर बिपाशा बसु से विवाह. यह रिश्ता कितने दिन या हमेशा चलेगा, यह देखना बाकी है. जैसे ही हम किसी सैलिब्रिटी को देख कर सोचते हैं कि वाह, क्या जोड़ी है. पता चलता है कि उस जोड़ी का भी ब्रेकअप हो चुका है और हमारा आधुनिक रिश्तों पर विश्वास डगमगाने लगता है.

रणबीर और दीपिका की जोड़ी देखते ही बनती थी, आज भी दोनों के फैंस दोनों को साथ देखना चाहते हैं. रितिक रोशन ने जब सुजैन से विवाह किया तो कइयों के दिल टूटे पर अब ये भी अलग हो चुके हैं.

हौलीवुड की जान ब्रैडपिट और जेनिफर का प्यार एक मिसाल था, पर ऐंजेलिना से ब्रैडपिट के संबंध होने पर इन का भी ब्रेकअप हो गया. बेन हिंजिस और लौरेन बुशनैल, कैटीपैरी और ओलैंडो ब्लूम, रिचर्ड पैरी और जेन फोंडा, निकी मिनाज और मीक मिल का ब्रेकअप भी सब को हैरान कर गया था.

टीवी की मशहूर हस्ती दिव्यांका त्रिपाठी और शरद मल्होत्रा दोनों ‘बनूं मैं तेरी दुलहन’ के सैट पर मिले थे. यह रिश्ता 7 साल चला पर फिर टूट ही गया. करण पटेल और काम्या पंजाबी का संबंध भी काफी चर्चा में रहा पर रिश्तों में अचानक आई खटास से ब्रेकअप भी हो गया. करण ने धूमधाम से अंकिता भार्गव से फिर जल्दी विवाह भी कर लिया.

आम लोगों में भी बढ़ता अलगाव

जहां मशहूर हस्तियों के टूटते रिश्तों के कई उदाहरण रोज देखने को मिलते हैं, वहीं आम लोगों के जीवन में भी इस तरह के रिश्ते कमजोर पड़ते दिख रहे हैं. झट प्यार भी होता है पर ब्रेकअप की खबर आते भी देर नहीं लग रही. पवई निवासी जूही और प्रशांत का 4 सालों से अफेयर था, दोनों के दोस्तों के ग्रुप में यह बात तय थी कि जल्द ही दोनों विवाह भी कर लेंगे. अलगअलग जाति थी पर दोनों के परिवार आधुनिक थे. दोनों के परिवार को यह संबंध पता भी था पर जब जूही के परिवार ने इस विवाह के लिए हामी नहीं भरी तो जूही ने प्रशांत से दूरी बनानी शुरू कर दी. आधुनिक, सुशिक्षित जूही का पीछे हटना सब को हैरान कर गया. जूही ने बहुत ही सहजता से तर्क दिया कि कौन फैमिली की टैंशन मोल ले. जितना साथ रहना था रह लिए. अब आगे देखते हैं.

बात सुननेपढ़ने में मामूली सी है पर अब रिश्ते सचमुच कमजोर पड़ते दिख रहे हैं. जूही का इतना व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रशांत को तोड़ गया. वह कई दिन तक आहत रहा. जूही ने 6 महीने के अंदर मातापिता की मरजी से एक लड़के से विवाह भी कर लिया. जीवन में आगे बढ़ने में कोई बुराई नहीं पर प्रश्न यह है कि आधुनिक रिश्ते इतने कमजोर क्यों हैं?

रिश्ते निभाना आजकल जटिल क्यों हो रहा है? क्या हम प्रेम करना भूल गए हैं? या उस से भी बुरा यह है कि हम यही भूल गए हैं कि प्रेम है क्या? आजकल के रिश्ते इतनी जल्दी क्यों टूट रहे हैं, कारणों पर एक नजर:

हम शायद त्याग के लिए, समझौते के लिए, बिना किसी शर्त के प्यार करने के लिए तैयार ही नहीं हैं. हम आजकल हर चीज सुगमता से पा लेना चाहते हैं. हम पलायन कर जाते हैं, हम अपना प्यार पूर्णतया विकसित ही नहीं होने देते. समय से पहले ही सब पा लेना चाहते हैं या सब छोड़ देते हैं.

यह वह प्यार है ही नहीं जिस की हमें तलाश है. हम लाइफ में अब उत्तेजना और रोमांच चाहते हैं. हमें मूवीज और पार्टियों के लिए एक साथी चाहिए, न कि कोई ऐसा जो हमारे मौन को भी समझ ले. हम साथ समय तो बिताते हैं पर यादें नहीं सहेजते. हम बोरिंग लाइफ नहीं चाहते. हम अब जीवनसाथी नहीं, बस इसी समय वर्तमान का साथी सोच रहे होते हैं. हम अब किसी रहस्य की सुंदरता में यकीन नहीं करते, क्योंकि अब हमें साहसपूर्ण रोमांच भाता है.

हमारे पास प्यार का समय ही नहीं है, रिश्तों को निभाने का धैर्य हम में बचा ही नहीं. शहरी भागदौड़ के बाद प्यार की जगह ही नहीं बचती. हम भौतिक सपने देखने वाले व्यस्त इंसान हो गए हैं. रिश्ते अब सुविधा से ज्यादा कुछ भी नहीं.

हमें हर चीज में फौरन खुशी चाहिए. चाहे वह हमारी औनलाइन पोस्ट हो, कैरियर हो या वह इंसान जिसे हम प्यार करते हैं. रिश्तों में गंभीरता समय के साथ आती है, दूसरे व्यक्ति से पूर्णतया जुड़ने में सालों लग जाते हैं. अब प्यार के लिए समय और धैर्य कम ही पड़ जाते हैं.

हम विकल्पों में विश्वास करने लगे हैं. हम सोशल लोग हैं, हम लोगों को जानने की बजाय बस उन से मिलते हैं. हम लालची हो गए हैं. हमें सब कुछ चाहिए. हम जरा से आकर्षण पर भी रिश्ता शुरू कर देते हैं और थोड़ा सा अपेक्षाकृत अच्छा साथी मिलने पर फौरन पुराने से बाहर आ जाते हैं.

टैक्नोलौजी हमें एकदूसरे के बहुत ज्यादा पास ले आई है. इतना पास कि सांस लेना मुश्किल हो गया है. हमारी शारीरिक उपस्थिति की जगह टैक्स्ट्स, वौइस मैसेज, स्नैप चैट्स, वीडियो कौल्स ने ले ली है. हमें एकदूसरे के साथ समय बिताने की जरूरत ही महसूस नहीं होती, हमारे पास एकदूसरे के बारे में पहले ही बहुत जानकारी होती है, बात करने के लिए कुछ रह ही नहीं जाता.

प्यार और सैक्स को अलगअलग ही देखा जाने लगा है. सैक्स अब आसान है, निष्ठा रखना मुश्किल है. रिश्तों के बाहर सैक्स अब बड़ी बात नहीं रही. प्यार की जगह हमारे जीवन में सीमित रह गई है.

यह व्यावहारिक पीढ़ी है, जो तर्क जानती है. हमें पागलपन की हद तक प्यार करना नहीं आता. हम अपना हितअहित सोचसमझ कर ही कोई कदम उठाते हैं. प्यार में दीवानों की तरह किसी को देखने भागे जाने का समय अब किसी के पास नहीं.

हम प्यार में कमिटमैंट और दिल टूटने से डरते हैं. हम अब आंख बंद कर किसी के प्यार में पड़ कर अपनी लाइफ खराब नहीं कर सकते.

इंसान का सब से जरूरी गुण प्यार है. हम शायद धीरेधीरे इस शब्द के माने ही भूल रहे हैं. आधुनिक समय में रह रहे हम कहीं प्यार का वजूद, महत्त्व ही न भूल जाएं, यह विचारणीय है. रिश्तों से प्यार, सहयोग, समर्पण कहीं पूरी तरह से न खो जाए, इस बात का ध्यान रखना होगा. मशीन की तरह न जी कर जीवनरूपी पौधे को प्यार भरे रिश्तों से सींचना होगा ताकि चारों ओर हवाओं में प्यार भरे रिश्तों की खुशबू आए.

ये भी पढ़ें- साथ खाना बनाने के 4 फायदे

तो तकरार से नहीं पड़ेगी रिश्ते में दरार

पतिपत्नी एकदूसरे के जीवनसाथी होने के साथसाथ एकदूसरे के दोस्त भी होते हैं. लेकिन भले ही दोनों एकदूसरे के साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं, फिर भी बहुत सी चीजों में उन के विचार नहीं मिलते हैं. कभी वे नेचर में अलग होते हैं, तो कभी उन का लाइफस्टाइल एकदूसरे से मेल नहीं खाता है, जिस वजह से उन के बीच नोकझंक होनी शुरू हो जाती है और कई बार तो छोटीछोटी बातों पर यह झगड़ा इतना अधिक बढ़ जाता है कि रिश्ता टूटने तक की नौबत आ जाती है.

ऐसे में दोनों को रिश्ते में मधुरता बनाए रखने के लिए एकदूसरे की हैबिट्स को इग्नोर करने या फिर उन से इरिटेट होने के बजाय उन्हें आपसी समझ व प्यार से अपनाने की जरूरत

होती है ताकि रिश्ते में प्यार बरकरार रह सके वरना यह तकरार कब रिश्ते में दरार का कारण बन जाएगी, पता नहीं चलेगा. आइए, जानते हैं कैसे करें एडजस्टमैंट:

बैड पर टौवेल छोड़ने की आदत

वैसे तो यह हैबिट किसी की भी अच्छी नहीं होती है, लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं. अगर आप का पार्टनर नहाने के बाद गीला टौवेल बैड पर छोड़ दे तो बजाय झगड़ने के आप उन्हें प्यार से समझएं कि माई स्वीटहार्ट, अगर तुम रोज गीला टौवेल बैड पर छोड़ दोगे तो इस से टौवेल में नमी बरकरार रहने से तुम्हें बैक्टीरिया के इन्फैक्शन का खतरा हो सकता है साथ ही इस से बैड पर भी नमी रहने से हम भी बीमार हो सकते हैं.

इसलिए अपनी इस आदत को अपनी हैल्थ के लिए बदल लो. हो सकता है कि आप का यों प्यार से समझना काम कर जाए क्योंकि कई बार झगड़े की जगह प्यार में वह बात होती है, जो अपनों की बुरी से बुरी आदत को बदल देती है. अगर फिर भी पार्टनर न सुधरे तो आप ही बैड से टौवेल को उठा कर सही जगह रख दें क्योंकि यही है अच्छे रिश्ते की पहचान.

अगर आप को पसंद हों स्टाइलिश कपड़े

आज का जमाना स्टाइलिश है. ऐसे में हरकोई खुद को स्टाइलिश दिखाना चाहता है. लेकिन जरूरी नहीं कि आप का पार्टनर आप को स्टाइलिश कपड़ों में देखना पसंद करे. उसे आप सिंपल लुक में ज्यादा पसंद आती हों या फिर ट्रैडिशनल आउटफिट्स में. ऐसे में आप अगर रोज उन से स्टाइलिश कपड़े पहनने को ले कर बहस करेंगी तो आपस में मनमुटाव पैदा होगा.

इस से बेहतर है कि आप उन की पसंद के आउटफिट्स तो पहनें ही, साथ ही आप उन्हें प्यार से, अपने रोमांस से अट्रैक्ट करते हुए उसे समझने की कोशिश करें कि स्टाइलिश कपड़े पहनने में कोई बुराई नहीं है, बल्कि आज हरकोई जमाने के साथ चल कर खुद को अपडेटेड रखना चाहता है. अगर पार्टनर की समझ में आ जाए तो अच्छा वरना आप उस के पीछे स्टाइलिश कपड़े पहन कर अपने इस शौक को पूरा कर सकती हैं.

लेकिन यह भी जरूरी है कि आप उसे धीरेधीरे इस तरह समझने की कोशिश करें कि उसे अपनी गलती का एहसास भी हो जाए और आपस में तकरार भी न हो.

जब हो पति को इंग्लिश मूवीज का शौक

अगर दोनों पार्टनर की हैबिट्स मैच करें तो इस से अच्छा हो ही क्या सकता है. लेकिन अगर न करें तो दिक्कत तो काफी होती ही है, लेकिन फिर भी जरूरी होता है कि एकदूसरे की हैबिट्स को खुशीखुशी अपनाने की. जैसे प्रवीण को इंग्लिश मूवीज देखने का बहुत शौक था, लेकिन उस की पत्नी दीप्ति को सीरियल्स व हिंदी मूवीज पसंद थीं, जिस कारण दोनों कभी साथ बैठ कर टीवी नहीं देखते थे और साथ ही इस बात पर दोनों में कई बार कहासुनी भी हो जाती थी.

ऐसे में प्रवीण ने तो कभी अपनी पत्नी की पसंद की मूवी उस के साथ बैठ कर देखने का मन नहीं बनाया, लेकिन दीप्ति ने सोचा कि ऐसा कब तक चल सकता है, इसलिए मु?ो भी खुद में इंग्लिश मूवीज के प्रति इंटरैस्ट पैदा करना होगा. धीरेधीरे उस ने प्रवीण के साथ इंग्लिश मूवीज देखना शुरू किया और फिर धीरेधीरे ऐंजौय करने लगी. इस से मूवी के मजे के साथसाथ दोनों साथ में एकदूसरे की कंपनी को भी ऐंजौय करने लगे. अगर इसी तरह सब पार्टनर एकदूसरे को समझ कर चलें तो रिश्ते में मधुरता आने के साथसाथ आपसी समझ भी विकसित होती है.

न हो आउटिंग पर जाने का शौक

हो सकता है कि आप के पार्टनर को अपनी छुट्टी को घर पर ही स्पैंड करने की आदत हो और आप उस के बिलकुल उलट हों यानी आप को आउटिंग पर जाना बहुत अच्छा लगता हो. ऐसे में आप अपने पार्टनर को कहीं घूमने के लिए मनाएं कि इस से मूड व माइंड दोनों फ्रैश होने के साथसाथ एक ही तरह की दिनचर्या से चेंज भी मिलता है.

ऐसे में आप खुद कहीं आउटिंग पर जाने के लिए बुकिंग करवाएं, पूरी तैयारी करें. हो सकता है कि आप की यह कोशिश आप के पार्टनर में घूमने के प्रति थोड़ाबहुत शौक पैदा कर दे. लेकिन कोशिश व मनाने की मेहनत तो आप को ही करनी होगी.

अगर फिर भी आप को लगे कि मेहनत करने का कोई फायदा नहीं है तो आप खुद ही अकेले या फिर फ्रैंड्स के साथ आउटिंग के लिए निकल जाएं क्योंकि पार्टनर पर जोरजबरदस्ती करने का कोई फायदा नहीं है. इस से आप जबरदस्ती पार्टनर को आउटिंग पर तो ले जाएंगी, लेकिन यह आउटिंग मजा नहीं बल्कि सजा जैसी लगेगी.

बातबात पर रिएक्ट करने की आदत

कुछ पार्टनर्स की यह आदत होती है कि वे बिना किसी बात के गुस्सा करने लगते हैं या फिर छोटीछोटी बात पर रिएक्ट करने लगते हैं, जिस से आपस में तनाव बढ़ने के साथसाथ इस का प्रभाव धीरेधीरे रिश्ते पर पड़ने के कारण रिश्ता कमजोर पड़ने लगता है. ऐसे में रिश्ते की नींव को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है कि दोनों पतिपत्नी में से किसी एक को पार्टनर के रिएक्ट करने पर खुद को चुप रखने की आदत डालनी होगी वरना ऐसे वक्त में बेवजह की बहस रिश्ते को वीक बनाने का काम करेगी.

लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि आप हमेशा ही चुप रहें बल्कि जब पार्टनर शांत हो जाए तो उसे समझएं कि आप का इस तरह से रिएक्ट करना आप की पर्सनैलिटी को खराब करने के साथसाथ हम दोनों को एकदूसरे से दूर ले जाने का काम करेगा, इसलिए खुद को शांत रखना सीखें. हो सकता है कि आप की इन बातों का असर पार्टनर पर हो जाए वरना आप की चुप्पी ही इस प्रौब्लम का समाधान है.

जब बातबात पर टोके

टोकाटोकी किसी को भी पसंद नहीं होती है. लेकिन अगर आप की पार्टनर आप को हर छोटीछोटी बात पर टोके कि तुम ने यह काम सही नहीं किया, तुम ऐसे कैसे कर सकते हो, तुम्हें यह नहीं आता, तुम ने किचन में काम क्या किया कि उसे गंदा कर के मेरे लिए ही काम को बढ़ा दिया. ऐसे में अगर आप उस की हर बात पर प्रतिक्रिया देंगी तो हर बार बात लड़ाई में बदल जाएगी. इस से अच्छा है कि आप उसे प्यार से समझएं कि जरूरी नहीं हर बात पर टोक कर ही समझया जाएं बल्कि प्यार से भी चीजों को सुलझया जा सकता है और हर बार टोकना किसी को भी बुरा लग सकता है और तुम अपनी इस टोकने की आदत को धीरेधीरे सुधारने की कोशिश करो.

इस से हो सकता है कि वह आप की इमोशनल बातों से खुद को सच में सुधारने की कोशिश करे. अगर न सुधारे तो आप थोड़े टाइम के लिए उस से कम बात करना शुरू कर दें क्योंकि कई बार गलती का एहसास करवाने के लिए रिश्ते में थोड़ी दूरी बनाना भी जरूरी हो जाता है.

घर का खाना हो पसंद

हर इंसान की अपनी पसंद होती है. किसी को घर में रहना पसंद होता है, तो किसी को आउटिंग करना, किसी को घर का खाना पसंद होता है, तो किसी को बाहर का. ऐसे में हो सकता है कि आप के पार्टनर को घर का खाना पसंद हो और आप को बाहर का, तो इस बात पर आप दोनों आपस में लड़ने के बजाय सहमति बनाएं कि हफ्ते में 6 दिन घर का खाना बनेगा तो एक दिन हम लोग बाहर जा कर खाना खाएंगे. इस से दोनों की बात भी रह जाएगी और इस वजह से बेवजह की लड़ाई से भी बचा जा सकता है.

पार्टनर को हो दाड़ी रखने का शौक

हर कोई चाहता है कि उस का पार्टनर हैंडसम लगे. लेकिन हर लड़के की अपनी आदत होती है कि वह खुद को कैसा रखना पसंद करता है. किसी को सिंपल कपड़ों में रहना पसंद होता है, तो किसी को काफी बनठन कर. किसी को शेव कर के अच्छा लगता है तो किसी को कईकई दिनों तक बिना शेव करे. ऐसे में अगर आप पार्टनर को रोज शेव बनाने के लिए टोकती रहेंगी तो खुद भी परेशान रहेंगी और पार्टनर भी आप से चिढ़ने लगेगा. इस से अच्छा है कि उस की इस आदत को आप खुशीखुशी स्वीकार करें. लेकिन आप खुद को टिपटौप रखना न छोड़ें.

ये भी पढ़ें- वह क्यों बनी बेवफा

वह क्यों बनी बेवफा

पार्टनर द्वारा बेवफाई किए जाने का दर्द काफी गहरा होता है. बेवफाई खुशियों पर ग्रहण लगा सकती है, आप को अपने अजीजों से दूर कर सकती है. मगर बेवफाई की जानकारी मिलते ही अपना होशोहवाश खो बैठना ठीक नहीं.

मुंबई के नालासोपारा की एक सच्ची घटना पर जरा गौर करें:

एक दिन एक शौंपिंग सैंटर की दूसरी मंजिल पर रहने वाले होटल सुपरवाइजर की लाश मिलती है. उस लाश के साथ ही कमरे में उस के 2 नन्हे बच्चों की लाशें भी थीं, साथ ही कमरे की दीवार पर मौत की वजह भी लिखी हुई थी. सुपरवाइजर ने अपनी व अपने दोनों बच्चों की हत्या के लिए बेवफाई को जिम्मेदार ठहराया था.

जरा उस व्यक्ति की मानसिक पीड़ा की कल्पना कीजिए जिस ने सुसाइड करने से पहले चैन की नींद सो रहे अपने 2 मासूमों का गला दबाया.

दीवार पर लिखी मौत की वजह

श्रीधर ने तकिए से बच्चों की हत्या कर खुद सुसाइड करने से पहले कमरे की दीवार पर पत्नी की बेवफाई का किस्सा लिखा. दीवार पर श्रीधर ने लिखा, ‘‘मेरी औरत साथ देती तो मैं

ऐसा कदम नहीं उठाता. मेरी औरत बच्चों को छोड़ कर किसी के साथ भाग गई, इसलिए मैं ने यह कदम उठाया.’’

जानकारी के अनुसार इस दर्दनाक घटना की पटकथा लिखने की शुरुआत वैलेंटाइन डे के दिन हुई थी. 42 साल के श्रीधर की पत्नी सोनाली अपने 2 मासूम बच्चों के साथ 13 फरवरी को पड़ोस में रहने वाले तेजस के साथ भाग गई थी. हालांकि वह 16 फरवरी को घर लौट आई. उस के बाद पतिपत्नी के बीच काफी झगड़ा हुआ. सोनाली ने श्रीधर से कहा कि वह तेजस से प्यार करती है और उसी के साथ रहना चाहती है.

झगड़े के बाद श्रीधर ने सोनाली से बच्चों को छोड़ कर चले जाने को कहा. इस के बाद सोनाली घर के पास ही तेजस के साथ रहने लगी.

इस बीच श्रीधर बहुत दुखी और बैचैन

रहने लगा. पुलिस के मुताबिक 18 फरवरी को सोनाली और तेजस कहीं चले गए जिस के बाद परेशान श्रीधर ने शाम के समय इस वारदात को अंजाम दिया.

कैसे करें मैनेज ऐसी सिचुएशन

बेवफाई का सामना किसी को भी करना पड़ सकता है. मगर इस सिचुएशन में आप का रिएक्शन बहुत माने रखता है. आप को यह समझना होगा कि इंसान बेवफाई यों ही नहीं करता. इस के पीछे कोई न कोई वजह होती है, इसलिए पार्टनर द्वारा बेवफाई किए जाने का पता चलने पर एकदम से आपा खो देना, चीखनाचिल्लाना, उस से लड़नाझगड़ना, अपशब्द कहना या एकदम कोई बड़ा फैसला ले लेना उचित नहीं.

मगर साथ ही ऐसी परिस्थिति में खुद परेशान होते रहना या चुपचाप बेवफाई देखते रहना भी व्यावहारिक नहीं है. इस स्थिति में जरूरी है कि आप पार्टनर से इस मसले पर शांति से बात करें. उसे अपना पक्ष रखने दें और यदि वह झठ बोले कि ऐसा कुछ नहीं तो सुबूत पेश करें. बिना सुबूत आप अपनी बात मजबूती से नहीं कह पाएंगे.

बेहतर होगा कि पहले मन को शांत करें और सोचें कि बहुत बड़ी बात नहीं हुई है. ऐसा बहुतों के साथ होता रहता है. यह एक सामान्य घटना है और फिर से सब ठीक भी हो सकता है. यह आप के ही किसी ऐक्शन या व्यवहार में मौजूद किसी कमी का नतीजा है. इस तरह की सोच दिमाग में आते ही सामने वाले पर आप का गुस्सा कम हो जाएगा और आप वजह की तलाश करने लगेंगे. एक बार वजह मिल जाए तो फिर आप उसे दूर भी कर सकते हैं.

याद रखें

‘‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी यों ही कोई बेवफा नहीं होता…’’

बेवफाई के कारण

भावनात्मक दूरी: अकसर पाया गया है कि आमतौर पर महिलाएं तभी धोखा देती हैं जब उन्हें पति से भावनात्मक रूप से दूरी का एहसास होता है. एक आदमी के लिए शारीरिक सुख ज्यादा महत्त्वपूर्ण है पर पत्नी दिल से करीब रहना चाहती है. पत्नी जब खुद को पति से इमोशनली कनैक्टेड महसूस नहीं करती तो वह उसे धोखा दे सकती है.

पति का पूरा अटैंशन न मिलने पर

पति द्वारा इग्नोर किए जाने पर पत्नी का गुस्सा इस रूप में जाहिर हो सकता है. वह पति का पूरा अटैंशन चाहती है पर अकसर काम की भागदौड़ या किसी और के साथ कनैक्टेड होने के कारण पति पत्नी पर पूरा ध्यान नहीं दे पाती. कुछ समय तक तो पत्नी सबकुछ सह लेती है, मगर जब जीवन का यही ढर्रा बन जाता है तो वह विरोध स्वरूप घर के बाहर प्यार ढूंढ़ना शुरू कर देती है.

सैक्सुअली खुश न रहने पर

रिश्तों में दरार आने और बेवफाई की ओर कदम बढ़ाने की एक वजह सैक्स भी है. अगर कोई महिला शादी के बाद अपनी सैक्सुअल लाइफ से खुश नहीं है तो वह अपनी इच्छा के हिसाब से अपने पार्टनर की तलाश कर सकती है. कई बार पति द्वारा बिना प्यार या भावना के जबरन शारीरिक संबंध बनाया जाना भी उसे गवारा नहीं होता.

जब पत्नी को पति के ऊपर हो शक

अगर पत्नी को लगे कि उस के पति का कहीं चक्कर चल रहा है तो यह बात पत्नी के लिए सब से ज्यादा पीड़ादायक होती है. वह हर दुख सह सकती है पर किसी और औरत को पति की जिंदगी में स्वीकार नहीं कर सकती. ऐसे में वह जैसे को तैसा की तर्ज पर अपने लिए भी किसी को तलाश कर सकती है. इस तरह बदला लेने और पति द्वारा उस के भरोसे को तोड़े जाने के विरोध में वह पति को धोखा दे सकती है.

अपमानित करने वाला पति

जब पति अपनी पत्नी की इज्जत नहीं करता, उस की इच्छाओं का खयाल नहीं रखता और मारपीट करता है तो ऐसे में कई बार पत्नी पति के अलावा किसी और पुरुष की तरफ झकने लगती है. ऐसे पुरुष की तरफ जो उसे सम्मान दे और उस की भावनाओं का खयाल रखे.

बेवफाई पर माफ नहीं करते पुरुष

बेवफाई करने का हक सिर्फ मर्दों के हाथ में रहे यह मुमकिन नहीं है. आज बेवफाई के खेल में कई बार महिलाएं मर्दों से आगे निकल जाती हैं. बहुत सी शादीशुदा महिलाओं के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होते हैं.

वैसे रिलेशनशिप में महिलाओं की तुलना में पुरुषों द्वारा पार्टनर को धोखा देने की आशंका अधिक होती है, मगर जब बात आती है माफ करने की तो ज्यादातर पुरुष ऐसा नहीं कर पाते. हाल ही में हुई एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जब बात बेवफाई पर पार्टनर को माफ करने की आती है तो पुरुष ऐसा नहीं कर पाते और तुरंत तलाक ले लेते हैं या कोई और बड़ा खतरनाक कदम उठा लेते हैं.

पार्टनर की बेवफाई के बावजूद पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपनी टूटी शादी को बचाने के लिए ज्यादा कोशिशें करती हैं, जबकि पुरुषों में पत्नी की बेवफाई को सहन करने की क्षमता बेहद कम होती है.

कैसे समझें पत्नी की बेवफाई

पत्नी के मोबाइल पर बारबार कौल या मैसेज का आना, पत्नी द्वारा कुछ अलग अंदाज या धीमेधीमे बात करना जैसी बातें ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की तरफ इशारा करती हैं.

यदि पत्नी अचानक अपने कपड़ों या लुक पर ज्यादा ध्यान देने लगे या अकसर रोमांटिक गाने गाती दिखे तो सम?िए कि उसे कोई अच्छा लगने लगा है.

यदि वह अपनी किसी खास सहेली के साथ पहले की अपेक्षाज़्ज्यादा समय बिताने लगी है और फोन पर ही लंबे समय तक उस से बात करती रहती है तो संभव है कि या तो वह उस सहेली से नए पार्टनर के बारे में सारी बातें शेयर करती है या फिर सहेली के नाम पर पार्टनर से ही मिलने जाती है.

आप के द्वारा कुछ सवाल किए जाने पर वह एकदम से सचेत हो जाए या ज्यादा सफाई देने लगे तो जरूर कुछ गड़बड़ है.

यदि पत्नी शाम को कहीं से आ कर सीधे नहाने चली जाए तो समझ लें कुछ गड़बड़ है.

पत्नी के नजदीक आते ही यदि आप को किसी दूसरे पुरुष जैसी महक महसूस हो और जब आप कोई सवाल पूछें जैसेकि अब तक कहां थी या आज देर क्यों हो गई तो यदि पत्नी इन सवालों के जवाब देते समय आंखें चुराने लगे तो यह साफ है कि वह आप को धोखा दे रही है.

रिश्तों को दोबारा कैसे सुधारें

याद रखें गलती किसी से भी हो सकती है. उस गलती को भुला कर आगे बढ़ना ही जिंदगी है. इसलिए अपनी पत्नी को बातें सुनाते रहने या हमेशा के लिए कड़वाहट बनाए रखने के बजाय सबकुछ भूल कर फिर से नए विश्वास के साथ जिंदगी की शुरुआत करें.

– अपने ईगो को एक तरफ रख दें और फिर रिश्ते को बचाने की कोशिश करें. याद रखें कि ताली एक हाथ से नहीं बजती. कहीं न कहीं गलती दोनों से हुई है. इसलिए मिल कर ही स्थिति सुधारनी होगी.

– सब से पहले तो खुद को ही परखें. कहीं आप की तरफ से ही तो गलती नहीं हुई है? यदि आप से रिश्ता निभाने में कोई चूक हुई है तो पहले उसे सुधारने की कोशिश करें.

– अगर आप को जीवनसाथी की बेवफाई के बारे में पता चल गया है तो तुरंत निर्णय लेने के बजाय शांत मन और नौर्मल टोन में पहले अपने साथी से अकेले में इस बारे में बात करें और कोई समाधान निकालने की कोशिश करें.

– अगर पत्नी को अपनी गलती का एहसास हो गया है और वह सच्चे दिल से आप से माफी मांग कर सबकुछ सुधारना चाहती हो तो उसे एक मौका जरूर दें. कई बार परिस्थितिवश इंसान कुछ समय के लिए गलत हो सकता है, लेकिन इस का यह मतलब नहीं है कि उसे गलती सुधारने का मौका ही न मिले. अपना दिल बड़ा रखें और सबकुछ भूल कर फिर से पहले की तरह प्यार से जीने का प्रयास करें.

– कई कपल्स के बीच बेवफाई की बड़ी वजह एकदूसरे की भावनाओं को न समझना और एकदूसरे को अधिक समय नहीं दे पाना होती है. इस बात को समझ कर सुधार करना जरूरी होता है.

– याद रखें अगर रिश्तों में कोई कमी लंबे समय तक बनी रहे और यह कमी किसी और से पूरी होने लगे तो उस व्यक्ति की तरफ झकाव होना स्वाभाविक है. इसलिए बेवफाई करने पर भी पत्नी को नीचा दिखाने के बजाय अपने रिश्ते की कमियों को दूर करने का प्रयास करें.

ये भी पढ़ें- सिंगल मदर के लिए पेरैंटिंग टिप्स

रिश्तों से दूर न कर दें दोस्ताना, जानिए क्या हैं इसके नुकसान

आजकल युवाओं में अपने सगे रिश्तों को दरकिनार कर दोस्तोंसहेलियों को महत्त्व देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. यह सच है कि दोस्ती का रिश्ता बेमिसाल होता है और अगर समझदारीपूर्वक निभाया जाए तो जीवनपर्यंत बना रहता है. किंतु खेद इस बात का है कि आज हम अपने इर्दगिर्द इकट्ठे हो गए कुछ चेहरों को ही अपना मित्र मानने लगे हैं और इन मात्र दिखावटी और टाइमपास मित्रों के लिए न केवल अपनों की अनेदेखी कर रहे हैं, बल्कि अपनों के प्रति निभाने वाली जिम्मेदारियों से भी मुंह मोड़ते जा रहे हैं.

अवंतिका अपने बेटे की जन्मदिन पार्टी का आमंत्रण देने के लिए रिश्तेदारों की सूची तैयार कर रही थी तो उसे देख कर बेटा पलाश बोल पड़ा, ‘‘अरे अम्मी, ये इतने रिश्तेदारों की सूची क्यों तैयार कर रही हैं? क्या करना है सब को बुला कर? मैं इस बार अपना बर्थडे अपने दोस्तों के साथ मनाऊंगा.’’

‘‘दोस्तों को तो हम हर साल बुलाते हैं, इस साल भी बुलाएंगे पर तुम रिश्तेदारों को बुलाने से क्यों मना कर रहे हो?’’

अवंतिका ने आश्चर्य से पूछा. इस पर पलाश ने कहा, ‘‘मम्मी, रिश्तेदार तो आप लोगों के होते हैं. उन के बीच मैं बोर हो जाता हूं. इस बार अपना बर्थडे मैं केवल अपने दोस्तों के साथ किसी मौल या रैस्टोरैंट में ही सैलिब्रेट करूंगा.’’

दोस्त हमारे रिश्तेदार तुम्हारे

पलाश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर अवंतिका खामोश हो गई. ‘रिश्तेदार तो आप लोगों के होते हैं’ यह वाक्य काफी देर तक उस के कानों में गूंजता रहा और वह सोचती रही कि क्या अब बच्चों की दुनिया सिर्फ उन के दोस्तों तक ही सिमट कर रह जाएगी? बच्चों को चाची, बूआ, मौसी, भाभी जैसे रिश्तों से कोई लेनादेना नहीं रह गया है? अब वे केवल हमारे रिश्तेदार हैं?

दिल्ली की सुमन ने जब अपनी भतीजी से जोकि दिल्ली में ही किसी कंपनी में जौब करती है से पूछा कि वह न्यू ईयर पर अपने घर बनारस जा रही है या नहीं? तो उस ने जवाब दिया कि वह नहीं जा रही है, क्योंकि अगले ही महीने उस की एक सहेली का जन्मदिन है और इस बार वे सारी सहेलियां उस का जन्मदिन मनाने शिमला जाने वाली हैं. अत: अगर उस ने न्यू ईयर पर छुट्टी ले ली तो फिर सहेली के जन्मदिन में जाने के लिए उसे छुट्टी नहीं मिल पाएगी. इसलिए उस ने न्यू ईयर पर घर जाने का विचार त्याग दिया. यह सुन कर सुमन को क्रोध तो बहुत आया पर उस ने कहा कुछ नहीं, उस के सामने अपने भैयाभाभी का चेहरा घूम गया कि वे कितनी उत्सुकता से त्योहार पर बेटी के घर आने का इंतजार कर रहे हैं पर उस के न आने की खबर सुन कर वे कितने मायूस हो जाएंगे.

विरोधाभास क्यों

युवाओं के अलावा विवाहित महिलाओं और पुरुषों में भी आजकल पारिवारिक सदस्यों को दरकिनार कर तथाकथित दोस्तोंसहेलियों को अहमियत देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. मैं अपनी एक पड़ोसिन की शादी की 25वीं सालगिरह में जब पहुंची तो वहां मौजूद लोगों में केवल सहेलियों और पड़ोसियों को देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और मैं उन से पूछ बैठी कि तुम्हारा कोई रिश्तेदार नजर नहीं आ रहा है?

तब उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम लोग किसी रिश्तेदार से कम हो क्या? यार जितनी मस्ती हम दोस्तों के साथ मिल कर कर रहे हैं उतनी क्या रिश्तेदारों के साथ हो पाती है? उन्हें बुलाती तो हजार समस्याएं होतीं. पहले तो उन्हें 1-2 दिन ठहराने और खिलानेपिलाने की व्यवस्था करनी पड़ती. पूरा समय आवभगत में लगा रहना पड़ता. उस के बाद तरहतरह के नखरे उठाने पड़ते वे अलग.’’

दोस्तों की अहमियत कितनी

मैं मन ही मन सोचने लगी कि इतनी बड़ी खुशी, लाखों का खर्च और इस खुशी में शरीक होने के लिए किसी अपने को कोई आमंत्रण नहीं. यह कैसा समय आ गया है? बिना पारिवारिक सदस्यों के कोई खुशी मनाने से अच्छा तो न ही मनाओ.

सारिका ने अपनी सोसायटी में किट्टी जौइन की. शुरूशुरू में उसे वहां नईनई सखियों के साथ बैठना और उन से बातें करना बहुत अच्छा लगा. वह सोचने लगी कि उसे बहुत अच्छी सहेलियां मिल गई हैं. लेकिन धीरेधीरे उस ने देखा कि उस की उन कथित सहेलियों के लिए अपनों से ज्यादा किट्टी पार्टी में शामिल होने वाली सहेलियों की अहमियत है.

सारिका ने देखा कि एक दिन उस की एक किट्टी मैंबर आयशा किट्टी में नहीं पहुंची. उस ने मैसेज भेजा था कि उस की सास की तबीयत खराब हो गई है, इसलिए वह नहीं आ पाएगी. सारिका यह देख हैरान रह गई कि आयशा के साथ सहानुभूति जताने और फोन कर के उस की सास का हाल पूछने के बजाय किट्टी में उस के खिलाफ बातें होने लगीं कि अरे, उस की सास तो रोज ही बीमार रहती है, यह तो किट्टी में न आने का एक बहाना है. आयशा आना चाहती तो दवा दे कर आ जाती.

धीरेधीरे सारिका यह नोट करने लगी कि उस की किट्टी से किस तरह महिलाएं अपने परिवारजनों की उपेक्षा कर के पहुंचती हैं और फिर उस बात को इस तरह बताती हैं जिस से यह सिद्घ हो सके कि उस की नजर में सहेलियों की अहमियत कितनी ज्यादा है जिन से मिलने वह अपने परिवारजनों से झूठ बोल कर आ गई.

सिक्के का दूसरा पहलू

दोस्त बनाना और दोस्ती करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन दोस्तों के आगे परिवारजनों की उपेक्षा व उन की अनदेखी करना बहुत ही घातक है. हमारे आसपास दोस्तों की भीड़ भले ही नजर आए पर उन में सच्चा दोस्त एक भी हो यह कहना बहुत मुश्किल होता है. दोस्तों के साथ बैठना हंसनाहंसाना, समय व्यतीत करना अच्छा तो लगता है पर क्या इन चीजों से वे हमारे इतने अपने हो जाते हैं कि उन के आगे रिश्तों का महत्त्व नगण्य कर दिया जाए?

मोबाइल, व्हाट्सऐप और फेसबुक की आदी दुनिया के इस दौर में मित्रों की एक फौज तैयार कर लेना बहुत आसान हो गया है. घर बैठे दिनरात उन से चटरपटर करते रहने से मन में यह गलतफहमी बन जाती है कि हम बहुत अच्छे मित्र बन चुके हैं और फिर वही मित्र अपने सच्चे हितैषी लगने लगते हैं. जबकि हकीकत यह है कि ऐसे मित्र खुशियों में तो बहुत बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, किंतु जब कभी मित्रता की कसौटी पर खरा उतरने का समय आता है तब टांयटांय फिस हो जाते हैं. दुखपरेशानी के समय में ऐसे मित्र 2-4 दिन तो साथ देते हैं, पर उस के बाद रिश्तेदारों का ही मुंह ताकने लगते हैं कि कब वे आएं और उन्हें छुट्टी मिले.

ये भी पढ़ें- Father’s day 2022: पिता बदल गए हैं तो कोई हैरानी नहीं, बदलते वक्त के साथ

लव इन सिक्सटीज : जानिए क्या करें और क्या नहीं

आधी से ज्यादा उम्र बीत जाने के बाद जब जीवन में किसी नए साथी के रूप में स्त्री या पुरुष का प्रवेश होता है तो एक नए अध्याय की शुरुआत होती है. इस नए अध्याय को पढ़ने की जिम्मेदारी उठाना बड़ा मुश्किल काम है.

आइए ऐसे नए रिश्ते जो खासकर अधिक उम्र में पनपें उन की साजसंभाल, जोखिम, परख और सावधानियों पर चर्चा करें ताकि जब भी उम्र के कई पड़ाव पार कर आप ऐसे किसी नए रिश्ते को संग ले चलने का निर्णय लें, तो खतरों को भांप सकें, जिद और मानसिक असंतुलन की स्थिति में नहीं, बल्कि वास्तविकता की समझ विकसित कर के.

स्त्री पुरुष की दोस्ती की कुछ मुख्य बातें:

स्त्रीपुरुष की दोस्ती में बस दोस्त का रिश्ता बहुत कठिन है. इस के अंतत: रोमांस में तबदील होने की पूरी संभावना रहती है.

स्त्रीपुरुष की दोस्ती अगर सिर्फ सामान्य दोस्ती रह पाए तो यह बहुत लंबी भी चल सकती है, लेकिन ऐसी दोस्ती में जब रोमांस आ जाता है तब दोस्ती की उम्र कम हो जाती है. बीच में साथ टूटने का अंदेशा रहता है.

उम्रदराज से क्रौस दोस्ती यानी विपरीत सैक्स से दोस्ती कब और किन हालात में हो सकती है और ऐसी दोस्ती के क्या कारक और जोखिम हैं इस पर काफी रिसर्च हुई है.

जब हो जाए कम उम्र के लड़के को अधिक उम्र की स्त्री से लगाव: कई बार कम उम्र के लड़कों की मानसिक स्थिति काफी परिपक्व रहती है और वे अपनी ही तरह किसी मानसिक रूप से परिपक्व स्त्री की दोस्ती चाहते हैं. ऐसे में जब उन्हें अपने से काफी अधिक उम्र की ऐसी स्त्री मिलती है, जो रुचि, व्यवहार, सोचसमझ और दृष्टिकोण में उन के साथ समानता रखे, तो उन की दोस्ती मजबूत हो जाती है. अगर बाद में ऐसे रिश्ते में रोमांस या शादी का रंग भर जाए तो आश्चर्य नहीं.

कम उम्र की स्त्री का अधिक उम्र के पुरुषों के प्रति लगाव और इस के कारण: इस स्थिति में कम उम्र की स्त्रियां अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति यहां तक कि पिता की उम्र के व्यक्ति से भी मानसिक, शारीरिक आधार पर जुड़ने की कामना रखती हैं. साइकोलौजिकल आधार पर देखा जाए तो ऐसा पुरुष उम्र की परिपक्वता के साथसाथ सैक्सअपील से भी भरपूर होता है. उसे खुद को प्रस्तुत करने का तरीका आता है और वह अपनी उम्र में नहीं, बल्कि व्यक्तित्व में जीता है.

कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे पुरुषों का अपनी बढ़ती उम्र की मजबूरी या असुविधाओं से ज्यादा ध्यान अपने व्यक्तित्व के गुणों को निखारने और प्रस्तुत करने पर होता है. ऐसे में उन के साथ मिलनेजुलने वाली स्त्री खुद उन पर ध्यान देती है, उन के संरक्षण में जाने और उन से जुड़ने का ख्वाब देखती है.

ऐसे पुरुषों का जीनगत प्रभाव भी काफी अच्छा रहता है. ये अपने कर्म, विचार और सामर्थ्य में शक्तिशाली, अपने परिवार की पूरी देखभाल करने वाले या फिर अपने ऊंचे पद और कर्मजीवन को बखूबी निभाने वाले होते हैं. ऐसे में कम उम्र की स्त्रियां इन पर समर्पित हो कर तृप्त होना चाहती हैं.

कई मामलों में पति की अवहेलना भी स्त्रियों के इन कर्मठ और रोमांटिक पुरुषों के प्रति आकर्षण का कारण बनती है. इन के सान्निध्य में अतृप्त स्त्रियां आत्मविश्वास वापस पाती हैं. इन पुरुषों के द्वारा की गई प्रशंसा, मदद इन्हें जीने की राह भी दिखा सकती है.

60 या इस के बाद की उम्र वाले पुरुषों का कम उम्र की स्त्रियों के प्रति झुकाव: ऐसी स्थिति आज के समाज में आम है. काम और व्यवसाय के सिलसिले में अधिक उम्र वाले पुरुषों से कम उम्र की स्त्रियों का नजदीकी वास्ता जब लगातार पड़े, तो पुरुष का इन स्त्रियों के प्रति हमदर्दी, अपनापन और रोमांस स्वाभाविक है.

ऐसे रिश्तों में पुरुष के व्यक्तित्व का खासा प्रभाव पड़ता है कि कम उम्र की स्त्रियों के साथ उन का आपसी संबंध कैसा होगा. दूसरे, पुरुष का स्वभाव और जुड़ने वाली स्त्री से पुरुष की अपेक्षाएं दोनों तय होती हैं उस पुरुष की बैकग्राउंड से. कैसे, आइए जानें:

उम्रदराज कामुक पुरुष और उस की स्त्री से अपेक्षाएं: ऐसे पुरुष स्वभाव से स्त्रीशरीर कामी होते हैं. ये अपनी कामनापूर्ति के लिए नाखुश रहने को ढाल बना कर स्त्री के भोग का बहाना ढूंढ़ ही लेते हैं. इस से इन्हें समाज व्यवस्था या न्यायव्यवस्था को न मानने के दोष से उबरने का सहारा मिलता है. इस तरह अपराधभावना से बच कर सिर्फ अपने स्वार्थ को तवज्जो देते हैं.

भोगी पुरुषों की पहचान और स्त्री की इन से खुद की सुरक्षा: यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दा है. नौकरी हो या व्यवसाय या फिर कैरियर का कोई भी पहलु 20 से 40 साल की महिला को ज्यादातर उम्रदराज पुरुषों के सान्निध्य में काम करना पड़ता है.

ऐसी स्त्रियां अपनी बातों, विचारों, व्यवहार और गुणों की वजह से अकसर सब के आकर्षण का केंद्र होती हैं. स्वाभाविक है कि उम्रदराज पुरुष ऐसी स्त्रियों का सान्निध्य ज्यादा चाहें. मगर बात तब बिगड़ती है जब ये दोस्ती के नाम पर स्त्रियों को लुभा कर उन्हें अपने चंगुल में फंसाते हैं. जो स्त्रियां जानबूझ कर अपने रिस्क पर इन रिश्तों में आगे बढ़ती हैं उन के लिए यह चर्चा भले ही काम की न हो, लेकिन उन्हें आगाह करना जरूरी है जो ऐसे पुरुषों की दोस्ती को बिना समझे ही अपना लेती हैं और बाद में उन्हें न पीछे लौटने का रास्ता मिलता है, न आगे जाने का. इन्हीं शरीरकामी पुरुषों की मानसिकता की कुछ झलकियां हैं, जिन्हें जान लेने से ऐसे पुरुषों की पहचान आसान हो जाएगी:

ऐसे पुरुष शुरुआती दौर में भावनात्मक पहल करते ही पाए जाते हैं.

जुड़ने वाली स्त्री की हर जरूरत का खयाल रखना चाहते हैं.

स्त्री के परिवार में पति या निकट के लोगों में खामियां ढूंढ़ कर वे खुद भला बन कर स्त्री पर छा जाना चाहते हैं.

काम के क्षेत्र में अतिरिक्त सुविधा देते हैं.

गाहेबगाहे स्त्री शरीर का स्पर्श करते हैं, लेकिन उसे केयर का रूप देते हैं.

झूठ बोलने और अभिनय में माहिर होते हैं.

शिकार को पूरा वक्त देते हैं, चाशनी में उतारने की जल्दी नहीं करते.

उम्रदराज पुरुषों का कम उम्र की स्त्री से भावनात्मक संबंध: अधिक उम्र वाले ऐसे पुरुष भी होते हैं जो कम उम्र की समझदार स्त्री से दोस्ती का भावनात्मक संपर्क बनाए रखना चाहते हैं. ऐसे पुरुष ऐसी स्त्री के साथ दोस्ती रखना चाहते हैं, जो विचारों, स्वभाव और अनुभूति में उन के समान हो.

अगर ऐसे संबंध सहज हों, विचारों के आदानप्रदान से ले कर स्वस्थ मानसिकता तक दर्शाते हों और दोनों के पारिवारिक संबंधों को नष्ट न करते हों, तो यह दोस्ती ठीक है.

भावनात्मक सहारे ढूंढ़ने वाले पुरुषों की पारिवारिक स्थिति: ऐसे पुरुष घर में अकसर पत्नी को जीवनसंगिनी का वह मोल नहीं दे पाते जिस की पत्नी को अपेक्षा रहती है. ऐसे व्यक्ति पारिवारिक जिम्मेदारियां तो निभाते हैं और पत्नी की जरूरतों को भी पूरा करते हैं, लेकिन पत्नी को खुद के बराबर नहीं समझते.

हो सकता है, पत्नी में भी उन का सहारा बनने की योग्यता न हो, घरपरिवार में कई तरह के क्लेश हों या पुरुष के कामकाजी जीवन की मुश्किलों को उस की पत्नी न समझती हो या फिर उस पुरुष की अपेक्षाएं इतनी हों कि उन पर खरा उतरना उस की पत्नी के लिए संभव न हो.

जो भी कारण रहे, अगर बाहरी स्त्रीपुरुष में संबंध बन ही गए हों, तो ‘लव इन सिक्सटीज’ के लिए कुछ मुख्य बातें जो स्त्रीपुरुष दोनों पर ही लागू होंगी:

ऐसे साझा संबंध निभाते वक्त सब से पहले संबंध का प्रकार अवश्य तय कर लें. इस पर अमल दोनों ही करें. मसलन, यह संबंध सिर्फ दोस्ती का है और दोस्ती ही रहेगी या इस संबंध को आगे किसी भी मोड़ तक ले जाने को दोनों स्वच्छंद हैं.

दोनों अपनी दोस्ती को समाजपरिवार से छिपा कर रखेंगे या जाहिर करेंगे, यह भी दोनों तय कर लें.

दोनों ही एकदूसरे को कोई छोटामोटा गिफ्ट देने तक ही सीमित रहें. बड़ा गिफ्ट देने से बचें. इस से परिवार विद्रोह पर उतर सकता है और आप बेमतलब के झंझट में फंस सकते हैं.

आपसी रिश्ते को पारदर्शी रखें और सच के साथ जुड़े रहें. इस से दोस्त को आप की सीमाओं का भान रहेगा और आप से उस की अपेक्षाएं कम रहेंगी.

ये भी पढ़ें- कम जगह में कैसे बढ़ाएं प्यार

युवती भी बन जाए कभी युवक

सैक्स की इच्छा युवक व युवती दोनों की होती है. पर देखा यह गया है कि युवक ही इस की शुरूआत करते हैं पर यदि युवती सैक्स की शुरुआत करे तो युवक को भरपूर आनंद मिलता है लेकिन समस्या यह है कि सैक्स की पहल करे कौन? इस बारे में किए गए एक शोध में पता चला है कि तकरीबन 80 प्रतिशत युवक सैक्स की शुरुआत और इच्छा जाहिर करते हैं. 10 प्रतिशत ऐसे युवक भी हैं जो सैक्स की इच्छा होने पर भी बिस्तर पर पहुंच कर युवती की इच्छाअनिच्छा जाने उस पर टूट पड़ते हैं. कई इस दुविधा में रहते हैं कि पहल करें या न करें.

सैक्स की इच्छा

 सैक्स युवकयुवती का सब से निजी मामला है. दोनों आपसी सहमति से इस का मजा लेते हैं. इस मामले में देखा गया है कि सैक्स की पहल युवक ही करते हैं. इस का मतलब यह नहीं कि युवतियों में सैक्स की इच्छा नहीं होती या वे सैक्स संबंध के लिए उत्सुक नहीं रहतीं.

सच तो यह है कि हमारे देश (मुसलिम देशों में भी) में युवतियों के दिमाग में बचपन से ही यह बात भर दी जाती है कि सैक्स अच्छी बात नहीं होती. इस से बचना चाहिए. अपने प्रेमी के सामने भी कभी सैक्स की इच्छा जाहिर नहीं करनी चाहिए. न ही खुद इस की पहल करनी चाहिए. यह बात उन के दिमाग में इस कदर बैठ जाती है कि प्रेम के बाद वे अपने प्रेमी से इस बारे में बात नहीं कर पाती और न ही खुल कर इच्छा जाहिर कर पाती हैं.

एक महत्त्वपूर्ण बात और है, सबकुछ भूल कर साहस के साथ यदि कोई युवती अपने प्रेमी से सैक्स की पहल कर दे तो उस के लिए आफत आ सकती है, क्योंकि उस का प्रेमी उसे खाईखेली समझ सकता है. इसी भय से सैक्स की इच्छा होते हुए भी युवती इस की पहल नहीं करती. यह बात सच है कि युवकों में युवतियों के सैक्स की पहल को ले कर गलत धारणा है कि जो युवती सैक्स की पहल करती है वह खेलीखाई होती है. देश में आज भी सैक्स को बुराई ही समझा जाता है इसलिए भी युवतियां अपनी ओर से पहल करने से कतराती हैं जबकि विदेशों की युवतियां बराबर शरीक होती हैं.

कनाडा के एक मनोचिकित्सक डा. भोजान ने हाल ही में सैक्स की पहल को ले कर औनलाइन सर्वे करवाया, जिस में यह पता करना था कि सैक्स को ले कर युवक और युवतियों का नजरिया क्या है. अधिकतर युवतियां सैक्स को भरपूर ऐंजौय करना तो चाहती हैं, पर सैक्स की पहल उन के ऐंजौय में आड़े आती है. इच्छा होने पर भी वे पहल नहीं कर पातीं और अनिच्छा होने पर मना भी नहीं कर पाती हैं. डा. भोजान का कहना है, युवतियों को सैक्सुअली ऐक्टिव बनाने के लिए उन में इमोशंस की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. सैक्स का आनंद वे तभी उठा पाती हैं.

मजेदार बात यह है कि सैक्स की पहल को ले कर युवकों का नजरिया काफी बदला है. अब युवक भी चाहता है कि उस की पार्टनर सैक्स के बारे में उस से खुल कर बात करे. उस से सैक्स की इच्छा जाहिर करे.

यह जान कर अधिकतर युवतियों को विश्वास नहीं होगा कि औनलाइन सर्वे में पता चला है कि युवक अपने मन में युवती की तरफ से पहल की चाह संजोए रहते हैं, लेकिन उन की चाह बहुत कम ही पूरी हो पाती है. युवतियों द्वारा पहल न करने की वजह से मजबूरन युवकों को अपनी तरफ से पहल करनी पड़ती है.

युवती करे पहल

 जब सैक्स की चाह युवती और युवक दोनों में समान होती है तो ऐसे में सिर्फ युवक ही सैक्स की पहल क्यों करें? युवतियों को भी कभीकभी सैक्स की पहल करनी चाहिए ताकि वे सैक्स को अपनी तरह से ऐंजौय कर सकें.

सर्वे में यह भी पता चला है कि युवतियों को ले कर उन की सोच बदल रही है. युवक भी यह बात समझने लगे हैं कि सैक्स की इच्छा सिर्फ उन में ही नहीं युवतियों में भी होती है. ऐसे में युवती अपने पति से सैक्स की पहल करती है तो इस में बुराई क्या है? सर्वे में अनेक युवकों का कहना था कि अपनी पार्टनर की ओर से की गई पहल उन की रगरग में जबरदस्त जोश भर देती है.

डा. भोजान कहते हैं कि युवक के जोश का युवती के सैक्सुअल सैटिस्फैक्शन से सीधा संबंध होता है. मतलब अपनी ओर से की गई पहल का फायदा उन्हें सीधे तौर पर मिलता है.

युवतियों को अब जान लेना चाहिए कि जमाना बदल गया है. दुनिया भर के युवकों की सोच भी बदल रही है. अपनी झिझक और डर को दूर कर बेझिझक हो कर आप भी कभीकभी युवक बन जाएं और सैक्स ऐंजौय करें.

यहां कुछ तरीके बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपना कर आप पार्टनर को सैक्स के लिए उत्साहित कर सकती हैं.

आत्मविश्वास लाएं : सब से पहले अपने अंदर आत्मविश्वास लाएं, ताकि बेझिझक सैक्स की पहल कर सकें.

मूड बनाएं : अपने पार्टनर के मूड को देखें और उस के साथ प्यार भरी बातें करें. आप की बातें ऐसी होनी चाहिए कि इस में तैरते हुए सैक्स में डूब जाएं. लव मेकिंग के दौरान खुल कर सैक्स की बातें करें. यदि आप शर्मीली हैं तो डबल मीनिंग वाले नौटी जोक्स उन पलों का मजा बढ़ा देंगे.

तारीफ करें : आज की रात आप खुद ही लगाम थामिए. सब से पहले उन की तारीफ की झड़ी लगा दें. फिर कान में फुसफुसा कर  अचानक किस कर उन्हें हैरान करें. कान में की गई फुसफुसाहट उन की रगों में खून का लावा भर देगी. जब हर कहीं ऐक्सपैरिमैंट की बहार चल रही है तब सैक्स लाइफ में इसे क्यों न आजमाएं.

छेड़छाड़ करें : लव मेकिंग के लिए छेड़छाड़ को मामूली क्रिया न समझें. अपनी ओर से पहल करते हुए पार्टनर के साथ छेड़छाड़ करें. इस दौरान कमरे की लाइट धीमी कर दें. साथ में हलका रोमांटिक हौट म्यूजिक बजा दें. कमरे की धीमी लाइट में आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं, जिस से रोमांस हार्मोंस शरीर में तेजी से बढ़ने लगता है. साथ में हौट म्यूजिक. इस पल के लिए पूरी रात भी आप के लिए कम पड़ेगी.

आकर्षक लगें : सैक्स की इच्छा अपने पार्टनर से जाहिर करनी है तो अट्रैक्टिव व सैक्सी मेकअप करें. फिर देखें बैडरूम में अपनी बोल्ड ब्यूटी को देख कर उन्हें आज की रात का प्लान समझते देर नहीं लगेगी.

माहौल बनाएं : अपने आसपास का माहौल खुशबूदार व रोमांटिक बनाएं. इस के लिए बेहद हौट म्यूजिक बजाएं. रोमांटिक सौंग गुनगुनाएं. तेज परफ्यूम का छिड़काव करें. ऐेसे माहौल में उन के अंदर आग भड़काने में देर नहीं लगेगी. आप के शरीर की भीनीभीनी खुशबू और गरम सांसें उन को बेचैन करने के लिए काफी हैं. क्यों न उन की पसंद की खुशबू का इस्तेमाल कर उन्हें कहर ढाने के लिए मजबूर कर दें.

खुलापन लाएं : अपने पार्टनर पर खुल कर प्यार लुटाएं. किस करें, गले लगें, बांहों में जकड़ लें. आहें या सिसकियां भरें, ब्लाउज या ब्रा के बटन लगाने या खोलने के बहाने उन्हें अपने पास बुलाएं, टौवेल में उन के सामने हाजिर हो जाएं. आप के खुलेपन को देख कर आप की भावनाओं को वे बड़ी आसानी से समझ जाएंगे. मूड न होने पर भी उन का मूड बन जाएगा.

सैक्सी लौंजरी : लौंजरी, नाइटी या अंडरगारमैंट की खूबी को ऐसे मौके पर इस्तेमाल करें. इन्हें खरीदते वक्त खासकर इस के फैब्रिक पर ध्यान दें. महीन, मुलायम और फिसलन वाले फैब्रिक हो, जिन पर हाथ फेरते ही उन के हाथ खुदबखुद फिसलने लगेंगे. इस के आकार और रंग का भी ध्यान रखें. यह आप की नहीं उन की पसंद की हो.

हौलेहौले : यदि आप रात को कुछ खास बनाना चाहती हैं तो देर न करें. उन के बैडरूम में आते ही उन के नजदीक जा कर प्यार जताएं. एकएक कर उन के कपड़े उतारना शुरू करें. आप का बदला रूप देख कर वे ऐक्साइट हो जाएंगे. उन्हें हौट होने में देर नहीं लगेगी. यह उन्हें शारीरिक रूप से ही नहीं मानसिक रूप से भी उत्तेजित करता है.

पोर्न ट्रंप : अगर आप सचमुच में सैक्स के क्लाइमैक्स को ऐंजौय करना चाहती हैं तो पोर्न को ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल करें. उन के सामने पोर्न फिल्म, साइट, मैगजीन या अन्य सामग्री ले कर बैठ जाएं. फिर देखें उन में कैसे जोश भरता है.

ये भी पढ़ें- व्यावहारिकता की खुशबू बिखेरते रिश्ते

औनलाइन रिश्ता बनाते वक्त रहें सतर्क

कभी-कभी डिजिटल रिश्तों के जाल में कुछ लोग इस तरह फंस जाते है कि उनका रिश्तों से विश्वास उठ जाता या जिंदगी से हाथ धोना पड़ जाता है. तीन साल पहले एक मैचमेकिंग साईट पर मुंबई की रहने वाली कोमल वैभव नाम के एक लड़के से मिली. दोनों के बात विचार एक दुसरे से मिले तो बात आगे बढ़ी. दो-तीन बार मिलने के बाद, वैभव व्यस्त और लाइफ इशू बताकर बहाने बनाने शुरू कर दिया. मीटिंग में हूँ, शहर से बाहर हूँ, जल्दी मिलेंगे का झांसा देता रहा और कोमल भी उसकी बातों में विश्वास करती रही. लेकिन एक दिन कोमल ने उसे किसी और साईट पर देखा और छानबीन की तो पता चला कि वैभव ना कहीं व्यस्त था ना ही कोई लाइफ इशू थे, बल्कि वह 7 साल का शादीशुदा और खुशहाल जीवन जी रहा था. उसकी बीवी का कहना था कि वह डेटिंग और मत्रिमोनिअल साईटो पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर कई लड़कियों के साथ रिलेशन में था जिसका मकसद केवल सेक्सुअल फैंटेसी पूरी करना था.

आज के समय में मत्रिमोनिअल और डेटिंग साइटें वैभव जैसा इरादा रखने वाले बहुरूपियों के लिए एक आसान विकल्प बन गई है. एक अंतर्राष्ट्रीय डेटिंग एप्लीकेशन हिन्ज के मुताबिक, डेटिंग की दुनिया दिन-प्रतिदिन क्रूर होती जा रही है. ऐसे में ऑनलाइन रिलेशन में घोस्टिंग, मूनिंग और ब्रेडक्रम्बिंग इत्यादि धोखेबाजी के तरीके के बाद किटेनफिशिंग एक नया टर्म आया है जिससे आपको सतर्क रहने की जरूरत है.

क्या है किटेनफिशिंग?

यदि आप सोच रहे हैं, किटेनफिशिंग का सम्बन्ध डेट पर पालतू जानवर ले जाने या मछली पकड़ने से है तो आप गलत हैं. किटेनफिशिंग, “ऑनलाइन डेटिंग की दुनिया में अपनाया जाना वाला एक हथकंडा है जहाँ एक व्यक्ति वैसा बनने या दिखाने का नाटक करना है जो वास्तव में नहीं है”. यहाँ किटेनफिशर्स पुरानी और भ्रामक फोटो के जरिये स्वयं को अवास्तविक रूप में पेश कर सामने वाले को लुभाने का हरसंभव प्रयास करते है. जैसे उम्र, लम्बाई, पसंद इत्यादि के बारे में गलत जानकारी देकर आकर्षित करना.

असल जिन्दगी में भी होती है किटेनफिशिंग

किटेनफिशिंग कोई नया ट्रेंड नहीं है. ऐसे में यह कहना गलत होगा कि किटेनफिशिंग केवल उनके साथ होती है जो ऑनलाइन रिश्ते बनाते है. हमारे आसपास अक्सर ऐसे लोग और किस्से कहानियां देखने-सुनने को मिल जाएंगी. एक कंपनी में कार्यरत प्रतिभा दुबे बताती है कि वो एक लड़के को डेट करती थी, जिसने बताया था कि उसके पास घर है और वो कंस्ट्रक्शन का काम करता है. लेकिन कुछ महीनों बाद पता चला, जिस घर में लड़का रहता है वो उसके कजिन का है जो दुबई रहता है. जिसके बाद उसने रिश्ता ख़त्म कर लिया. कई बार देखा गया है कि शादी से पहले जो फोटो या जानकारी दी गई रहती है सच्चाई उससे विपरीत होती है. फर्क यह है कि आज की डिजिटल मीडिया इस ट्रेंड को खूब हवा दे रही है, जहाँ एक पक्ष दुसरे की भावनाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज़ करके अपना उद्देश्य पूरा करता है.

मानसिक तौर पर हानिकारक

पहली नजर में देखे तो यह हानिकारक नहीं लगता है. लेकिन जब कोई जान बुझकर, एक योजना के तहत करे, तो सामने वाले पर मानसिक रूप से बुरा असर हो सकता है. भोपाल के मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते है कि हर व्यक्ति के मन में खुद को लेकर असुरक्षा की भावना होती है और यह एक मानवीय प्रवृत्ति है. जब कोई अपनी असुरक्षा से बाहर नहीं निकल पाता है तो नकली मुखौटे का सहारा लेता है जिसे “एंटी सोशल मल्टीपर्सनालिटी डिसऑर्डर” कहते है. ये लोग काफी शार्प माइंड के होते है. विशेष बात यह है कि इन लोगों को दुसरे की भावनाओं या तकलीफ से कोई फर्क नहीं पड़ता.

क्यों फंस जाते है लोग

डॉ. त्रिवेदी के अनुसार, ऑनलाइन डेटिंग के जाल में ज्यादातर वे लोग फंस जाते है जो डिजिटल वर्ल्ड में पहली बार कदम रखते है और इमोशनल होते हैं. और ऐसे लोग सामने वाले की बातों में आसानी से आ जाते है. इसके अलावा ऐसे लोग भी फंस जाते हैं जो बाहरी दुनिया से कम लगाव रखते है और अकेलेपन से छुटकारा पाना चाहते है. ऐसे में ऑनलाइन डेटिंग एप्लीकेशन और साईटो पर दोस्ती करना या साथी ढूँढना एक आसान विकल्प के रूप में उनके सामने उपलब्ध होता है.

किटेनफिशर्स को कैसे पहचाने

हमारे आसपास ऐसी मानसिकता के कई लोग मिल जाएंगे है, जो अपने सकारात्मक गुणों को बढ़ा-चढ़ा कर आपको प्रभावित करने की कोशिश करते है, जिन्हें आप नजरअंदाज़ कर देते है या समझ नहीं पाते है. डॉ. त्रिवेदी कहते हैं, ये लोग आसानी से पहचान में नहीं आते. यदि थोड़ी सी सतर्कता बरती जाए तो बहुत जल्दी इस तरह की मानसिकता को समझ सकते है.

-यदि आप किसी से ऑनलाइन मिले हो, और उसके फोटो एक दुसरे से भिन्न हो. जैसे फोटो पुरानी या एडिटेड हो.

-यदि कहे, मीटिंग में है, ऑफिस के काम से बाहर है इत्यादि, लेकिन ऑफिस के बारे में कोई जानकारी ना दे.

-बात करते वक़्त यदि अपने परिवार या दोस्तों की बात ना करें. उनसे मिलाने के नाम पर बहाने करे.

-किसी सार्वजानिक जगह पर मिलने के बजाय अकेले में मिलने की बात करे.

-ऑनलाइन बात करते वक्त विदेश घुमने, जिम जाने, किताबे पढने की बात करें, लेकिन मिलने पर उससे सम्बंधित जानकारी या लक्षण ना दिखाई दे.

कैसे बचें

ऐसे लोगों से बचने के लिए हमें स्वयं सतर्क रहने की जरूरत है जिसके लिए आपको इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. जैसे- यदि आप ऑनलाइन रिश्ता देख रहे है तो एकदम से सामने वाले पर विश्वास ना करें. उनकी बात सुनकर उत्साहित ना हो, ना ही मिलने की जल्दीबाजी करे. मिलने से पहले फ़ोन पर बात करें, विडिओ कालिंग करे. मिलने के बाद भी उसे जांचना परखना ना छोड़े. उसके घर-परिवार और दोस्तों के बारे में जाने और उनसे मिलने की बात करें. साथ ही उसे भी अपने परिवार और दोस्तों से मिलाये.

यदि आप इन बातों का ध्यान रखते हुए सतर्कता बरतते हैं तो सही साथी के तलाश में ऑनलाइन डेटिंग या मत्रिमोनिअल साईटें भी काफी उपयोगी साबित हो सकती है. ऐसे ना जाने कितने लोग हैं जिन्हें ऑफ़लाइन से बेहतर जीवनसाथी ऑनलाइन मिल जाते है. ऐसे में कहना गलत ना होगा, इरादा साफ रखे तो कोई भी जरिया गलत नहीं होता है, बस हमें सतर्कता और जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए.

ऑनलाइन या ऑफलाइन हो, वे मॉडर्न डेटिंग टर्म जिसको हममे से कई लोगों ने अनुभव किया होगा

घोस्टिंग यानी जब कोई फ्रेंड और प्रेमी आपके जिन्दगी से अचानक से बिना कुछ कहे गायब हो जाए और कांटेक्ट के सारे रास्ते बंद कर ले.

स्लोफेड यानी जब कोई किसी उभरते हुए रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो, तो धीरे-धीरे बातचीत और संपर्क कम करके रिश्ता तोड़ता हो.

-ब्रेडक्रम्बिंग एक ऐसा डेटिंग टर्म है जहाँ एक व्यक्ति रिश्ता बनाने के बिना किसी इरादे के प्यार भरे संदेश भेजकर भावनाओं के साथ खेलता हो.

शिपिंग यानी एक रिश्ते में रहते हुए कई लोगों के साथ रोमांटिक रिलेशन रखना.

कैच और रिलीज टर्म में एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति का तब तक पीछा या प्रभावित करने का प्रयास करता है जब तक वो उसे मिल नहीं जाता है और मिलते ही छोड़ देता है.

बेंचिंग एक ऐसा टर्म है जहाँ एक व्यक्ति अपने संभावित प्रेमी के इंतज़ार में हो, साथ ही विकल्प भी खुले रखे हों.

-कुशनिंग यानी एक साथी के रहते हुए डेटिंग के सभी विकल्प खुले रखना. सिर्फ इसलिए कि मुख्य रिश्ता ठीक से ना चल रहा हो.

ये भी पढ़ें- घर संभालता प्यारा पति

घर संभालता प्यारा पति

सुबह के 8 बजे हैं. घड़ी की सूइयां तेजी से आगे बढ़ रही हैं. स्कूल की बस किसी भी क्षण आ सकती है. घर का वातावरण तनावपूर्ण सा है. ऐसे में बड़ा बेटा अंदर से पापा को आवाज लगाता है कि उसे स्कूल वाले मोजे नहीं मिल रहे. इधर पापा नानुकुर कर रही छोटी बिटिया को जबरदस्ती नाश्ता कराने में मशगूल हैं. इस के बाद उन्हें बेटे का लंचबौक्स भी पैक करना है. बेटे को स्कूल भेज कर बिटिया को नहलाना है और घर की डस्टिंग भी करनी है.

यह दृश्य है एक ऐसे घर का जहां बीवी जौब करती है और पति घर संभालता है यानी वह हाउस हसबैंड है. सुनने में थोड़ा विचित्र लगे पर यह हकीकत है.

पुरातनपंथी और पिछड़ी मानसिकता वाले भारतीय समाज में भी पतियों की यह नई प्रजाति सामने आने लगी है. ये खाना बना सकते हैं, बच्चों को संभाल सकते हैं और घर की साफसफाई, बरतन जैसे घरेलू कामों की जिम्मेदारी भी दक्षता के साथ निभा सकते हैं.

ये सामान्य भारतीय पुरुषों की तरह नहीं सोचते, बिना किसी हिचकिचाहट बिस्तर भी लगाते हैं और बच्चे का नैपी भी बदलते हैं. समाज का यह पुरुष वर्ग पत्नी को समान दर्जा देता है और जरूरत पड़ने पर घर और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाने को भी हाजिर हो जाता है.

हालांकि दकियानूसी सोच वाले भारतीय अभी भी ऐसे हाउस हसबैंड को नाकारा और हारा हुआ पुरुष मानते हैं. उन के मुताबिक घरपरिवार की देखभाल और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी सदा से स्त्री की रही है, जबकि पुरुषों का दायित्व बाहर के काम संभालना और कमा कर लाना है.

हाल ही में हाउस हसबैंड की अवधारणा पर आधारित एक फिल्म आई थी ‘का एंड की.’ करीना कपूर और अर्जुन कपूर द्वारा अभिनीत इस फिल्म का मूल विषय था- लिंग आधारित कार्यविभेद की सोच पर प्रहार करते हुए पतिपत्नी के कार्यों की अदलाबदली.

लिंग समानता का जमाना

आजकल स्त्रीपुरुष समानता की बातें बढ़चढ़ कर होती हैं. लड़कों के साथ लड़कियां भी पढ़लिख कर ऊंचे ओहदों पर पहुंच रही हैं. उन के अपने सपने हैं, अपनी काबिलीयत है. इस काबिलीयत के बल पर वे अच्छी से अच्छी सैलरी पा रही हैं. ऐसे में शादी के बाद जब वर्किंग कपल्स के बच्चे होते हैं तो बहुत से कपल्स भावी संभावनाओं और परेशानियों को समझते हुए यह देखते हैं कि दोनों में से किस के लिए नौकरी महत्त्वपूर्ण है. इस तरह आपसी सहमति से वे वित्तीय और घरेलू जिम्मेदारियों को बांट लेते हैं.

यह पतिपत्नी का आपसी फैसला होता है कि दोनों में से किसे घर और बच्चों को संभालना है और किसे बाहर की जिम्मेदारियां निभानी हैं.

यहां व्यवहारिक सोच महत्त्वपूर्ण है. यदि पत्नी की कमाई ज्यादा है और कैरियर को ले कर उस के सपने ज्यादा प्रबल हैं तो जाहिर है कि ऐसे में पत्नी को ब्रैड अर्नर की भूमिका निभानी चाहिए. पति पार्टटाइम या घर से काम करते हुए घरपरिवार व बच्चों को देखने का काम कर सकता है. इस से न सिर्फ बच्चों को अकेला या डेकेयर सैंटर में छोड़ने से पैदा तनाव कम होता है, बल्कि उन रुपयों की भी बचत होती है जो बच्चे को संभालने के लिए मेड या डेकेयर सैंटर को देने पड़ते हैं.

हाउस हसबैंड की भूमिका

हाउस हसबैंड होने का मतलब यह नहीं है कि पति पूरी तरह से पत्नी की कमाई पर निर्भर हो जाए या जोरू का गुलाम बन जाए. इस के विपरीत घर के काम और बच्चों को संभालने के साथसाथ वह कमाई भी कर सकता है. आजकल घर से काम करने के अवसरों की कमी नहीं. आर्टिस्ट, राइटर्स ज्यादा बेहतर ढंग से घर पर रह कर काम कर सकते हैं. पार्टटाइम काम करना भी संभव है.

सकारात्मक बदलाव

लंबे समय तक महिलाओं को गृहिणियां बना कर सताया गया है. उन के सपनों की अवहेलना की गई है. अब वक्त बदलने का है. एक पुरुष द्वारा अपने कैरियर का त्याग कर के पत्नी को अपने सपने सच करने का मौका देना समाज में बढ़ रही समानता व सकारात्मक बदलाव का संदेश है.

एकदूसरे के लिए सम्मान

जब पतिपत्नी अपनी ब्रैड अर्नर व होममेकर की पारंपरिक भूमिकाओं को आपस में बदल लेते हैं, तो वे एकदूसरे का अधिक सम्मान करने लगते हैं. वे पार्टनर की उन जिम्मेदारियों व काम के दबाव को महसूस कर पाते हैं, जो इन भूमिकाओं के साथ आते हैं.

एक बार जब पुरुष घरेलू काम और बच्चों की देखभाल करने लगता है तो खुद ही उस के मन में महिलाओं के लिए सम्मान बढ़ जाता है. महिलाएं भी उन पुरुषों को ज्यादा मान देती हैं जो पत्नी के सपनों को उड़ान देने में अपना योगदान देते हैं और स्त्रीपुरुष में भेद नहीं मानते.

जोखिम भी कम नहीं

समाज के ताने: पिछड़ी और दकियानूसी सोच वाले लोग आज भी यह स्वीकार नहीं कर पाते कि पुरुष घर में काम करे व बच्चों को संभाले. वे ऐसे पुरुषों को जोरू का गुलाम कहने से बाज नहीं आते. स्वयं चेतन भगत ने स्वीकार किया था कि उन्हें ऐसे बहुत से सवालों का सामना करना पड़ा जो सामान्यतया ऐसी स्थिति में पुरुषों को सुनने पड़ते हैं. मसलन, ‘अच्छा तो आप की बीवी कमाती है?’ ‘आप को घर के कामकाज करने में कैसा महसूस होता है? वगैरह.’

पुरुष के अहं पर चोट: कई दफा खराब परिस्थितियों या निजी असफलता की वजह से यदि पुरुष हाउस हसबैंड बनता है तो वह खुद को कमजोर और हीन महसूस करने लगता है. उसे लगता है जैसे वह अपने कर्त्तव्य निभाने (कमाई कर घर चलाने) में असफल नहीं हो सका है और इस तरह वह पुरुषोचित कार्य नहीं कर पा रहा है.

मतभेद: जब स्त्री बाहर जा कर काम कर पैसे कमाती है और पुरुष घर में रहता है तो और भी बहुत सी बातें बदल जाती हैं. सामान्यतया कमाने वाले के विचारों को मान्यता दी जाती है. उसी का हुक्म घर में चलता है. ऐसे में औरत वैसे इशूज पर भी कंट्रोल रखने लगती है जिन पर पुरुष मुश्किल से ऐडजस्ट कर पाते हैं.

सशक्त और अपने पौरुष पर यकीन रखने वाला पुरुष ही इस बात को नजरअंदाज करने की हिम्मत रख सकता है कि दूसरे लोग उस के बारे में क्या कह रहे हैं. ऐसे पुरुष अपने मन की सुनते हैं न कि समाज की.

स्त्रीपुरुष गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. आर्थिक और घरेलू कामकाज, इन 2 जिम्मेदारियों में से किसे कौन सी जिम्मेदारी उठानी है, यह कपल को आपस में ही तय करना होगा. समाज का दखल बेमानी है.

जानेमाने हाउस हसबैंड्स

ऐसे बहुत से जानेमाने चेहरे हैं, जिन्होंने अपनी इच्छा से हाउस हसबैंड बनना स्वीकार किया है-

भारतीय लेखक चेतन भगत, जिन के उपन्यासों पर ‘थ्री ईडियट्स’, ‘2 स्टेट्स’, ‘हाफ गर्लफ्रैंड’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं, ने अपने जुड़वां बच्चों की देखभाल के लिए हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया.

वे ऐसे दुर्लभ पिता हैं, जिन्होंने आईआईटी, आईआईएम से निकलने के बाद अपने बच्चों को अपने हाथों बड़ा किया. हाउस हसबैंड बनने का फैसला उन्होंने तब लिया था जब वे अपने कैरियर में ज्यादा सफल नहीं थे जबकि उन की पत्नी यूबीएस बैंक की सीईओ थीं. चेतन भगत ने नौकरी छोड़ कर भारत आने का फैसला लिया और खुशीखुशी घर व बच्चों की देखभाल में समय लगाने लगे. साथ में लेखन का कार्य भी चलता रहा. आज उसी चेतन भगत के उपन्यासों का लोगों को बेसब्री से इंताजर रहता है.

इसी तरह की कहानी जानेमाने फुटबौलर डैविड बैकहम की भी है, जिन्होंने प्रोफैशनल फुटबौल की दुनिया से अलविदा कह कर हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया. एक टैलीविजन शो के दौरान उन्होंने स्वीकारा था कि वे अपने 4 बच्चों के साथ समय बिता कर ऐंजौय करते हैं. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, स्कूल छोड़ कर आना, लंच बनाना, सुलाना जैसे सभी कामों को वे बड़ी सहजता से करते हैं.

न्यूटन इनवैस्टमैंट मैनेजमैंट की सीईओ हेलेना मोरिसे लंदन की चंद ऐसी महिला सीईओ में से एक हैं जो 50 बिलियन पाउंड्स से ज्यादा का कारोबार संभालती हैं और करीब 400 से ज्यादा कर्मचारियों पर हुक्म चलाती हैं. वे 9 बच्चों की मां भी हैं. जब हेलेना ने बिजनैस वर्ल्ड में अपना मुकाम बनाया तो उन के पति रिचर्ड ने खुशी से घर पर रह कर बच्चों की जिम्मेदारी उठाना स्वीकारा.

कुछ इसी तरह की कहानी भारत की सब से शक्तिशाली बिजनैस वूमन, इंदिरा नूई की भी है. पेप्सिको की सीईओ और चेयरमैन इंदिरा नूई के पति अपनी फुलटाइम जौब को छोड़ कर कंसलटैंट बन गए ताकि वे अपनी दोनों बच्चियों की देखभाल कर सकें.

इसी तरह बरबेरी की सीईओ ऐंजेला अर्हेंड्स के पति ने भी अपनी पत्नी के कैरियर के लिए अपना बिजनैस समेट लिया और बच्चों की देखभाल व घर की जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले लीं.

डिप्लोमैट जेम्स रुबिन ने भी खुशीखुशी अपनी हाई प्रोफाइल जौब छोड़ दी ताकि वे अपनी पत्नी जर्नलिस्ट क्रिस्टीन अमान पोर को सफलता की सीढि़यां चढ़ता देख सकें. उन्होंने जौब छोड़ कर अपने बेटे की परवरिश करने की ठानी.

ये भी पढ़ें- बच्चे भी करते हैं मां-बाप पर अत्याचार

तो समझिए कि वह आप से दूर हो रहे हैं

प्यार कितना भी गहरा हो पर कोई भी कपल हर समय एकदूसरे के प्यार में डूबे नहीं रहते. उन्हें अपनी जिम्मेदारियां भी निभानी होती है. कामकाज पर जाना पड़ता है. जिंदगी के उतारचढ़ाव सहने पड़ते हैं. मगर इन वजहों से प्यार का एहसास नहीं घटता. जब भी मिलते हैं उतनी ही शिद्दत से प्यार महसूस करते हैं.

मगर कभीकभी ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं जब अपने प्रेमी या पति के करीब हो कर भी आप को प्यार महसूस न हो. करीब हो कर भी वे आप को दूर लगें. अगर ऐसा है तो समझ जाइए कि वह  वाकई आप से दूर जा रहे हैं यानी आप का ब्रेकअप होने वाला है.

पहले से इस बात का आभास रहे तो इस दर्द को सहना थोड़ा आसान हो जाता है. ध्यान दीजिए आप के करीब रहने पर उन की कुछ खास शारीरिक गतिविधियों पर.

बौडी लैंग्वेज में परिवर्तन

जब आप किसी के साथ रिलेशन में होते हैं या प्यार करते हैं तो रातदिन उसे ही देखना और महसूस करना चाहते हैं. मगर जब कोई आप का दिल तोड़ जाता है या उस के लिए आप के मन में प्यार नहीं रह जाता तो उस का सामना करने या उस की तरफ देखने से भी कतराने लगते हैं.

प्यार में इंसान करीब जाने और बातें करने के बहाने ढूंढता है मगर दूरी बढ़ने पर एकदूसरे से दूर जाने के बहाने ढूंढने लगता है. कपल्स जो इमोशनली जुड़े होते हैं उन की बौडी लैंग्वेज ही अलग होती है. जैसे कि अनजाने ही एकदूसरे की ओर सर झुकाना, गीत गुनगुनाना, केयर करना और एकदूसरे की बातें ध्यान दे कर सुनना आदि.

मगर जब रिश्ता बैकअप के कगार पर पहुंच चुका होता है तो वे बातें कम और बहस ज्यादा करने लगते हैं. एकदूसरे के बगल में बैठने के बजाय आमनेसामने बैठते हैं और केयर करने के बजाए इग्नोर करने लगते हैं.

आई कांटेक्ट का घट जाना

आप उन चीजों को देखना पसंद करते हैं जो आप को पसंद होती हैं. जाहिर है मोहब्बत में नजरों का मिलना और मिला रह जाना अक्सर होता है. मगर जब आप दोनों एकदूसरे की तरफ देखते ही नजरें हटा लें, आंखों में देख कर बातें करना छोड़ दें तो समझिए आप दोनों  ब्रेकअप की ओर बढ़ रहे हैं.

इस संदर्भ में 1970 में सोशल साइकोलौजिस्ट जिक रुबिन ने कपल्स के बीच आई कांटेक्ट के आधार पर उन के रिश्ते की गहराई नापने का प्रयास किया. कपल्स को कमरे में अकेले छोड़ दिया गया. वैसे कपल्स जिन के बीच गहरा प्यार था, अधिक समय तक अपने पार्टनर को देखते पाए गए. जब कि कम प्यार रखने वाले कपल्स में ऐसी बौन्डिंग नहीं देखी गई.

विश्वास की कमी

साइकोलौजिस्ट जौन गौटमैन ने करीब 4 दशकों तक किए गए अपने अध्ययन में पाया कि जो कपल्स लंबे समय तक रिश्ते में हैं वह करीब 86 प्रतिशत समय एकदूसरे की ओर मुड़े होते हैं. ऐसा न सिर्फ अफेक्शन  की वजह से वरन एकदूसरे पर विश्वास के कारण भी होता है. वे गंभीर मुद्दों पर एकदूसरे का ओपिनियन जानने और मदद लेने का प्रयास भी करते हैं. मगर रिश्ता कमजोर हो तो विश्वास भी टूटने लगता है.

आधा अधूरा मुस्कुराना

यदि आप लंबे समय तक एकदूसरे की ओर देख कर मुस्कुराना या चुहलबाजिया करना भूल चुके हैं तो समझिये रिश्ता टूटने वाला है. सरल और अपनत्व भरी मुस्कान रिश्ते की प्रगाढ़ता का सबूत होती है. एकदूसरे से बिना किसी शर्त मोहब्बत करने वालों के चेहरे पर मुस्कान स्वाभाविक रूप से खिली होती है.

मतभेद जब बहस का रूप लेने लगे

अपने पार्टनर के साथ किसी बात पर मतभेद का होना स्वभाविक है. पर यह बहस यदि  स्वस्थ न रह कर अक्सर लड़ाई झगड़े पर खत्म होने लगे और  दोनों में से कोई भी कप्रोमाइज करने को तैयार न हो तो समझिए रिश्ता ज्यादा टिक नहीं सकता.

संवाद की कमी

किसी भी रिश्ते की मजबूती के लिए सहज और ईमानदार संवाद जरूरी है. पर जब आप दोनों में से किसी एक या दोनों ने आपस में संवाद कायम करना छोड़ दिया है और बहुत मुश्किल से ही कभी बातचीत हो पाती है तो रिश्ता जल्द ही दम तोड़ने लगता है. क्यों कि ऐसे में गलतफहमियां दूर करना कठिन हो जाता है.

जब दोनों ने प्रयास करना छोड़ दिया हो

आप का रिश्ता कितना भी कंफर्टेबल क्यों न रहे आप को हमेशा इस में सुधार लाने का प्रयास करते रहना चाहिए. गलती करने पर तुरंत माफी मांगना, पार्टनर को सरप्राइज देना, अपने अच्छे पक्ष सामने लाना और छोटीछोटी बातों से पार्टनर का दिल जीतने का प्रयास करना जैसी बातें रिश्ते को टूटने से बचाती है.

तारीफ बंद कर देना

मजबूत रिश्ते के लिए समयसमय पर एकदूसरे की तारीफ करना अहम होता है. जब आप दोनों एकदूसरे को ग्रांटेड लेने लगते हैं, तारीफ करना छोड़ देते हैं तो धीरेधीरे दोनों के बीच शिकायतों का दौर बढ़ने लगता है जो आप को ब्रेकअप की ओर ले जाता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें