धर्म डराता क्यों है

दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कालेज की छात्रा गुरमेहर कौर की दिलेरी की तारीफ करनी होगी. उस ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को चुनौती दे कर साबित कर दिया है कि 20 वर्षीय अनजान युवती भी कट्टर, हिंसक, कानून की परवाह न करने वाले शासकों से नहीं डरती जबकि बड़ेबड़े उद्योगपति, ऊंचे ओहदों पर बैठे अफसर, समाचारपत्रों के मालिक, लेखक, विचारक, छोटे दलों के नेता सरकार से डर कर दुबक जाते हैं.

यह दूसरी बात है कि गुरमेहर कौर अंतत: डर सी गई और फेसबुक व सोशल मीडिया पर अपना वीडियो वापस लेते हुए ट्वीट कर जालंधर लौट गई. उसे अपने गृहनगर में तंग नहीं किया जाएगा इस की गारंटी नहीं पर उस के पिता कैप्टन मंदीप सिंह का करगिल युद्ध में शहीद होने का कवच उस के काम आया वरना भगवाई ताकतें उसे जिंदा लाश बना देतीं.

हिंदू धर्म की रक्षा करने का अधिकार संवैधानिक अधिकार है पर यही अधिकार दूसरों का भी है कि वे सच को सच कहें. सच को कुचल कर एक छद्म समाज बना कर हलवापूरी और अपने लिए धन व सुविधाओं को जमा करना न तो राजनीतिक अधिकार है और न ही संवैधानिक अधिकार.

यह वही हिंदू धर्म है, जो औरतों की रक्षा न करने पर उन्हें जिंदा जलने को जौहर कह कर उन्हें मरने को उकसाता रहा है. यह वही धर्म है जिस में कैकेयी को खलनायक बना डाला जबकि दशरथ उस के पुत्रों को राज्य के बाहर भेज कर राम का राज्याभिषेक कराना चाह रहे थे. यह वही धर्म है जिस ने कुंती को मजबूर किया कि उसे पति से नहीं औरों से पुत्र पैदा करने पड़े.

इस तरह की बेईमानियों से हिंदू धर्म भरा पड़ा है. इस हिंदू धर्म को अब देशभक्ति का बुरका पहना कर जेहादीपन अपने लोगों पर ही थोपना और वह भी औरतों पर, धर्म की असलियत की पोल खोलता है. हर धर्म असल में सच से डरता है और गुरमेहर कौर ने यही कहने की कोशिश की है. चूंकि धर्म के ग्राहकों में औरतों की गिनती ज्यादा है, चाहे मलाला हो, वृंदा करात, अरुंधति रौय या गुरमेहर कौर, धर्म के दुकानदार अपनी आमदनी कम होते देख उन के पीछे पड़ जाते हैं.

गुरमेहर कौर ने हिम्मत दिखाई है. चाहे अब वह फिर घर में दुबक जाना चाहती है पर वह जता गई कि राज्य गृहमंत्री तक एक अदना 20 वर्षीय लड़की को कुचलने में किस तरह साजिश का हिस्सा बन सकते हैं. देश की सत्ता आज से ही नहीं, 1947 से ही हिंदू समाज के सुधारों का विरोध करती रही है. गुरमेहर कौर चाहे कुछ दिनों के लिए चर्चा में रहे पर उस ने बता दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तभी तक जिंदा है जब तक उसे इस्तेमाल करा जाए.

प्राण जाएं पर कीमत न जाए

नई तकनीकों पर आधारित नई दवाओं और नए उपचारों से लाखों जानें तो बचाई जा रही हैं पर उन के बढ़ते दाम की चिंता की बात भी उठ रही है. सरकार ने डाक्टरों और अस्पतालों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है कि वे ओवर चार्ज न करें पर यह एक ऐसी समस्या है जिस का हल आसान नहीं है.

नई दवाओं, नए उपचारों और जांच की नई मशीनों की कीमत वाकई बहुत ज्यादा है, क्योंकि इन को खोजने में बहुत समय, पैसा और शक्ति लगती है. कंपनियां वर्षों तक पहले जानवरों पर और फिर आदमियों पर इन का ट्रायल करती हैं. इस दौरान वैज्ञानिक वेतन व सुविधाएं तो पाते ही हैं, बहुत बार बीच में ही दवा या मशीन का विकास छोड़ना पड़ता है, जिस से लगाया गया पैसा बेकार जाता है. इस की कीमत असल में मरीज से ही वसूल की जा सकती है, क्योंकि दवा, उपचार या नई बनने वाली मशीन का लाभ तो मरीजों को ही मिलता है.

दुनिया भर के अस्पतालों का खर्चा भी बढ़ गया है. उन के भवन 5 सितारा होटलों की तरह होने लगे हैं ताकि एक तरफ इन्फैक्शन कम हो तो दूसरी ओर मरीजों और उन के रिश्तेदारों को यह न लगे कि वे किसी जेल में आ गए हैं, जहां से रास्ता केवल मृत्यु की ओर जाता है. अस्पतालों को चलाने के लिए हर जने का प्रशिक्षित होना जरूरी है और यह काम महंगा और धैर्य वाला होता है. दर्द से कराहते मरीजों को रोजरोज देखना और उन्हें मौत के मुंह से निकाल कर लाना आसान नहीं होता. डाक्टरों और सपोर्ट स्टाफ का मानसिक संतुलन भी बना रहे यह खर्चीला काम है.

भारत सरकार ने नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथौरिटी गठित की है, जो अस्पतालों के खर्चों पर नजर रखने के लिए बनाई गई है पर इस तरह की अंकुश रखने वाली एजेंसियां अस्पतालों का खर्च बढ़ाती हैं. उन्हें लगाई गई पूंजी पर तो लाभ कमाना ही है खर्च भी पूरे करने हैं. एजेंसियां यदि सख्त हुईं तो अस्पताल वे इलाज देंगे ही नहीं जो महंगे हैं पर जिन से जान बच सकती है. मरीजों की जेब तो बचेगी पर जान चली जाएगी.

इस का उपाय यह है कि सरकार जनता से जमा किए टैक्स से चिकित्सा मुफ्त उपलब्ध कराए पर यह फार्मूला दुनिया भर में असफल हुआ है. चूंकि इस में मरीज पैसा नहीं देता, इसलिए सरकारी अस्पताल या सरकार से पैसा पाने वाले निजी क्षेत्र के अस्पताल व डाक्टर लापरवाह हो जाते हैं. मरीज भी बेमतलब का इलाज कराने चले आते हैं.

आदमी की जान बहुत कीमती है पर इसे बचाने की कीमत भी बहुत है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा सरकार ने इस की भरपाई करने की कोशिश की थी पर अब नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उसे खत्म कर रहे हैं. दुनिया भर के कई देशों में हैल्थ सेवाएं जो सरकारी थीं, धीरेधीरे गैरसरकारी बनाई जा रही हैं, जिस से मरीजों को इलाज कराना महंगा पड़ रहा है. पर इस का उपाय क्या है?

चिकित्सा का खर्च किसी को तो वहन करना ही होगा. मरीज करे तो अच्छा है. रैग्युलेटरी अथौरिटी हो पर रैग्युलेशन के नाम पर शोध का गला न घोट दिया जाए.

फिल्म रिव्यू : ट्रैप्ड

इंसानी फितरत है कि उसे दूसरों का दुख, दूसरों का दर्द, दूसरों के संघर्ष को देखने में आनंद मिलता है. इसी इंसानी फितरत को ध्यान में रखकर विक्रमादित्य मोटवाणे रोमांचक फिल्म ‘‘ट्रैप्ड’’ लेकर आए हैं. मगर फिल्म देखकर कहीं भी फ्लैट के अंदर कैद इंसान का दर्द या दुख उभरकर नहीं आता है, बल्कि फिल्म का नायक शौर्य जिस तरह के कदम उठाता है, उसे देखकर लगता है कि वह सिरे दर्जे का बेवकूफ या विवेक शून्य इंसान है.

‘‘उड़ान’’ से निर्देशक विक्रमादित्य मोटावणे ने जो उम्मीद बंधाई थी, उसे उन्होंने अपनी दूसरी फिल्म ‘‘लुटेरा’’ में तोड़ा था और अब अपनी तीसरी फिल्म ‘‘ट्रैप्ड’’ से तो उन्होंने साबित कर दिखाया कि बतौर निर्माता व निर्देशक वह अच्छी फिल्म बना ही नहीं सकते.

फिल्म ‘‘ट्रैप्ड’’ की कहानी के केंद्र में शाकाहारी युवक शौर्य (राज कुमार राव) हैं. जो कि एक कंपनी में नौकरी कर रहे हैं तथा मुंबई में चार दोस्तों के साथ एक मकान में रहते हैं. उन्हें नूरी (गीतांजली थापा) से प्यार है. शौर्य व नूरी के बीच जिस्मानी रिश्ते भी हैं.

एक दिन नूरी कह देती है कि यदि शौर्य ने अपना फ्लैट लेकर दो दिन के अंदर उससे शादी नहीं की, तो उसकी शादी किसी अन्य पुरूष से हो जाएगी. इसके बाद शौर्य किसी तरह पंद्रह हजार माह के किराए पर एक नई बहुमंजली इमारत में फ्लैट का जुगाड़ कर लेते हैं.

पता चलता है कि कुछ कानूनी पचड़ों की वजह से इस इमारत में कोई रहने नहीं आया. वह रात में ही उस फ्लैट में रहने आ जाता है. दूसरे दिन सुबह वह नूरी से मिलने जाने लगता है. घर से बाहर निकलने के बाद याद आता है कि मोबाइल अंदर रह गया. वह दरवाजे के ताले में चाभी लगी छोड़कर अंदर मोबाइल लेने जाता है. और दरवाजा बंद हो जाता है.

अब शौर्य दरवाजे का ताला खोलने के सारे उपाय करते हैं. दीवार पर लगा टीवी, पंखा सब कुछ उखाड़कर दरवाजे पर पटकते हैं. पर सफलता नहीं मिलती है. पता चलता है कि उस फ्लैट में पानी या खाने पीने का कोई सामान नही है. मोबाइल की बैटरी चार्ज नहीं है. वह मोबाइल की बैटरी को चार्ज करना चाहते हैं,पर बिजली जा चुकी है.

अब शौर्य के समाने समस्या है कि वह फ्लैट से बाहर कैसे निकले. यहीं से शौर्य की उस फ्लैट से बाहर निकलने की जद्दो जेहाद शुरू होती है. और जब कुछ दिनों बाद किसी तरह उस फ्लैट से निकल कर शौर्य अस्पताल पहुंचते हैं, तो नूरी मिलने आती है और पता चलता है कि नूरी की शादी हो चुकी है.

वास्तव में फिल्म ‘‘ट्रैप्ड’’ का कथानक पूरी तरह से अंग्रेजी भाषा की फिल्मों ‘‘कास्ट अवे’’ और ‘‘127 आवर्स’’ की नकल है. मगर खुद पर नकल का आरोप न लगे, इस कारण विक्रमादित्य मोटावणे और उनकी लेखकीय टीम ने शौर्य के किरदार व वह जो कुछ करता है, उसे इस तरह से बुना कि लोग फिल्म देखते समय यह कहने लगते हैं कि यह क्या पागलपन है. दर्शकों को शौर्य की तकलीफ के प्रति न सहानुभूति होती है और न ही दर्शक के मन में शौर्य के प्रति किसी अन्य तरह की संवेदना ही उपजती है. दर्शक सोचता है कि वह कहां फंस गया. पटकथा लेखक व निर्देशक की सोच पर तरस आता है कि जब एजेंट शौर्य को बताता है कि यह इमारत दो साल से कानूनी पचड़ो में है और यहां कोई रहता नहीं है, फिर भी शौर्य उस इमारत के 25 वें महले पर किराए के मकान में रहने जाता है. फिल्म में कमियां ही कमियां हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेत्री गीतांजली थापा के हिस्से करने को कुछ था ही नहीं. उन्हें इस फिल्म में देखकर सवाल उठता है कि उन्होंने क्या सोचकर इस फिल्म में अभिनय किया. इस तरह तो वह अपने करियर पर अपने ही हाथों कुल्हाड़ी चला रही हैं.

जहां तक राज कुमार राव का सवाल है, तो लगता है कि उन्होंने ‘फैंटम फिल्मस’ से जुड़े लोगों के साथ महज दोस्ती निभायी है. अन्यथा राष्ट्रीय पुरस्कार पाने व ‘क्वीन’, ‘शाहिद’, ‘अलीगढ’ जैसी फिल्में कर चुके राज कुमार राव का इस फिल्म से जुड़ना सही नहीं माना जा सकता. मगर उनका दावा है कि उन्होंने कुछ अलग करने के लिए ही यह फिल्म की. कुछ दिन पहले हमसे बात करते हुए राज कुमार राव ने अपने इस किरदार को लेकर जितने बड़े दावे किए थे, वह तो ‘थोथा चना बाजे घना’ ही चरितार्थ करता है. क्या राष्ट्रीय पुरस्कार पाने के बाद अब राज कुमार राव के लिए चेहरे पर दाढ़ी लेना, फ्लैट के अंदर की चीजों का तोड़फोड़ करना, गद्दे आदि को जलाना ही अभिनय कहलाने लगा है.

फिल्म की लंबाई काफी ज्यादा है. पटकथा में कसाव नहीं है. फिल्म देखते समय कहीं भी रोमांच पैदा नहीं होता.

एक घंटे 42 मिनट की अवधि वाली फिल्म का निर्माण ‘फैंटम फिल्मस’ ने किया है. फिल्म के निर्देशक विक्रमादित्य मोटावणे, लेखक अमित जोशी व हार्दिक मेहता, संगीतकार आलोकानंद दास गुप्ता तथा कलाकार हैं राज कुमार राव, गीतांजली थापा.

सोच समझकर कराएं ऐबौर्शन

आजकल के युवा जितनी जल्दी फ्रैंडशिप करते हैं उतनी ही जल्दी रिलेशन भी बना लेते हैं, जिस का नुकसान उन्हें ताउम्र भुगतना पड़ सकता है. कई बार तो सावधानी बरतने के बावजूद गर्भ ठहर जाता है और उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें, किस से सलाह लें. ऐसे में घर में पता चलने के डर से व समाज में बदनामी से बचने के लिए वे कैमिस्ट से ऐबौर्शन पिल्स ले आते हैं जिस के उन के शरीर पर घातक परिणाम भी देखने को मिलते हैं.

कई बार तो जान जाने का खतरा बन जाता है. ऐसे में जरूरत है यह समझने की कि यहां तक नौबत ही न आए और अगर आ भी गई है तो डरें नहीं बल्कि प्रौब्लम को फेस करें और किसी अनुभवी डाक्टर से संपर्क कर के ही ऐबौर्शन करवाएं.

इस संबंध में फोर्टिस हौस्पिटल की सीनियर गाइनोकोलौजिस्ट डा. बंदिता सिन्हा से बात हुई तो उन्होंने बताया कि भारत में अविवाहित युवतियों के ऐबौर्शन के केसेज पहले की तुलना में काफी बढ़े हैं, क्योंकि आज वे जल्दी जल्दी पार्टनर चेंज करने में विश्वास करने लगे हैं. ऐसे में वे खुद की फीलिंग्स पर कंट्रोल नहीं कर पाने के कारण जोश में आ कर होश खो बैठते हैं जिस से उन के सामने जटिल परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है और वे इस से नजात पाने के लिए जहां कहीं से भी ऐबौर्शन पिल्स अरेंज करते हैं, चाहे इस के लिए कितने ही पैसे खर्च हों, वे देने के लिए तैयार रहते हैं.

इतना ही नहीं कई डाक्टर्स भी इस स्थिति का फायदा उठा कर मरीज से ढेरों रुपए ऐंठने में नहीं सकुचाते. इन्हीं सब बातों को देखते हुए पिछले 3-4 साल से सरकार ने ऐबौर्शन पर बैन लगाया है कि अगर कोई भी डाक्टर ऐबौर्शन करते हुए या फिर एमटीपी पिल्स देते पकड़ा गया तो उस का लाइसैंस रद्द कर दिया जाएगा. आप सिर्फ एमटीपी मान्यता प्राप्त नर्सिंग होम और अस्पताल में ही गर्भपात करवा सकते हैं.

रोक का खास कारण यह भी

पुरुष प्रधान देश में यही माना जाता है कि अगर वंश को आगे बढ़ाना है तो उस के लिए परिवार में पुत्र का जन्म होना बहुत जरूरी है. ऐसे में जब परिवार वालों को सोनोग्राफी के माध्यम से यह पता चलता है कि गर्भ में बेटी है तो वे डाक्टर को मुंहमांगी रकम दे कर ऐबौर्शन करवाने के लिए तैयार हो जाते हैं. इसी का नतीजा है कि हरियाणा के 70 गांवों में पिछले कुछ सालों से लड़कियों ने जन्म नहीं लिया. आंकड़े इसी ओर इशारा करते हैं कि वहां पता लगते ही कि गर्भ में लड़की है, ऐबौर्शन करवा दिया जाता है.

लेकिन फिर भी कुछ स्थितियों में युवतियों व महिलाओं को बिना परेशानी के ऐबौर्शन कराने का अधिकार है, जो हैं :

–   अगर युवती या महिला जबरदस्ती किसी के यौन शोषण का शिकार हुई है और वह इस बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती तो उसे ऐबौर्शन करवाने का पूरा अधिकार है.

–   यदि इस से महिला या युवती के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो.

–   अगर यह पता लगे कि गर्भ में  पल रहे बच्चे का विकास सही ढंग से नहीं हो रहा और उसे 9 माह तक गर्भ में रखना सही नहीं है, तो ऐसी स्थिति में भी ऐबौर्शन करवाया जा सकता है. इसे डाक्टरी भाषा में मैडिकल टर्मिनेशन औफ प्रैग्नैंसी कहते हैं.

क्या है मैडिकल टर्मिनेशन औफ प्रैग्नैंसी

एमटीपी प्रक्रिया, जिस में डाक्टर की देखरेख में ऐबौर्शन को अंजाम दिया जाता है, को हर डाक्टर अंजाम नहीं दे सकता. सिर्फ अनुभवी गाइनोकोलौजिस्ट या सिर्फ वे डाक्टर्स जिन्होंने एमटीपी की ट्रेनिंग ली होती है, इसे अंजाम दे सकते हैं, क्योंकि वे जरूरत पड़ने पर अपने अनुभव के बल पर स्थिति को संभाल सकते हैं.

डाक्टरी देखरेख में ऐबौर्शन 2 तरीके से होते हैं :

ऐबौर्शन पिल्स

इस तरीके से ऐबौर्ट करने के लिए सब से पहले यह देखा जाता है कि कितने माह का गर्भ है. अगर गर्भ 6 से 8 सप्ताह के बीच है तो उसे पिल्स द्वारा रिमूव किया जा सकता है और इस का पता लगाने के लिए डाक्टर अल्ट्रासाउंड करता है. एमटीपी पिल डाक्टर की सलाह पर ही दी जाती है. यह पिल असल में गर्भाशय से पदार्थ को बाहर निकालने का काम करती है.

डाक्टर बताते हैं कि दवाएं कितने समय के अंतराल में लेनी हैं, क्योंकि जरा सी लापरवाही पूरे कोर्स को खराब कर सकती है. सिर्फ  दवाएं लेने से ही काम पूरा नहीं होता बल्कि डाक्टर 15 दिन के बाद अल्ट्रासाउंड के लिए बुलाता है जिस से करंट सिचुएशन के बारे में पता चल जाता है. अगर कोई पीस वगैरा रह गया होता है तो इस प्रोसैस को पुन: दोहराया जाता है या फिर सर्जरी से बाहर निकाला जाता है.

सर्जरी से

इस में बेहोश कर के ऐबौर्शन किया जाता है. इसे तब किया जाता है जब 8 सप्ताह से ज्यादा का गर्भ हो चुका होता है, क्योंकि इस के बाद पिल्स असर नहीं करतीं. इसे डाइलेशन ऐंड क्रूटेज प्रोसैस कहते हैं. इस में आप डाक्टर्स की देखरेख में रहते हैं और आप को प्रौपर केयर मिलती है. यह काफी सेफ प्रोसैस माना जाता है.

डाक्टर से करवाना क्यों फायदेमंद

गर्भपात के लिए कैमिस्ट वगैरा से दवा लेना हानिकारक होता है क्योंकि उन्हें आप की इंटरनल स्टेज के बारे में तो पता नहीं होता, इसलिए कौंप्लिकेशंस पैदा होने का भय रहता है. इस से आप की जान भी जोखिम में पड़ सकती है. कभीकभी ओवर ब्लीडिंग होने से सिचुएशन आउट औफ कंट्रोल भी हो सकती है. इसलिए जरूरी है डाक्टर की सलाह के बिना कोई दवा न लें.

अगर आप को अस्थमा, एनीमिया वगैरा की शिकायत है तो डाक्टर चैकअप के बाद ही बताते हैं कि गोली देना सही रहेगा या नहीं. यहां तक कि सर्जरी के वक्त कंसर्ल्ट फौर्म भी भरवाया जाता है, जिस में पूरी जानकारी दी जाती है. यह भी बताया जाता है कि आप को औपरेशन के कितने दिन बाद दिखाने के लिए आना है. इस से आप काफी सेफ रहते हैं.  

ऐबौर्शन के बाद क्या क्या सावधानियां बरतें

– इस दौरान भारी चीजें उठाने व झुकने वगैरा से थोड़े समय तक परहेज करना चाहिए.

– किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन भूल कर भी न करें.

– डाइटिंग न करें, क्योंकि इस दौरान लंबे समय तक भूखे रहना सेहत पर बुरा प्रभाव डाल सकता है.

– एकदम से सैक्स न करें, खुद को थोड़ा समय दें, क्योंकि कई बार ऐसा करने से दोबारा प्रैग्नैंसी का खतरा बन जाता है.

– इस समय आप जितना अच्छा खाएंगी व अच्छा सोचेंगी उतनी ही जल्दी फिट हो पाएंगी.

इथियोपिया का अदिस अबाबा

इथियोपिया ऐतिहासिक दृष्टि से अफ्रीका का ऐसा महत्त्वपूर्ण देश है. जहां आधुनिक मानव जाति के आदिम पूर्वजों के सब से पुराने सुबूत मिलते हैं. माना जाता है कि यहीं से पहली बार होमोसीपियंस, जिन से आधुनिक मानव जाति का उद्गम हुआ, ने मध्यपूर्व तथा उस से आगे के क्षेत्रों में फैलना शुरू किया और शायद इसीलिए यह दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां आदिम संस्कृति के चिह्न जहांतहां बिखरे मिलते हैं. इस की राजधानी अदिस अबाबा विषुवत रेखा के एकदम करीब स्थित है. समुद्रतल से लगभग 8 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण बारहों महीने यहां की जलवायु बहुत खुशगवार बनी रहती है.

स्थानीय भाषा में अदिस अबाबा का अर्थ होता है ‘नया फूल’. सच में ऊंची-नीची पहाड़ियों पर करीब 1 हजार साल पहले बसाए गए इस नगर के चारों ओर फैली हरियाली, लंबी-चौड़ी तथा साफ-सुथरी सड़कें, ऊंचे-ऊंचे यूकेलिप्टस के पेड़ तथा गगनचुंबी अट्टालिकाओं के बीच देश के प्राचीन राजसी गौरव का बखान करता हुआ भव्य राजमहल देख कर यह नगर आप को किसी फूल से कम नहीं लगेगा. हवाई अड्डे से होटल पहुंचने तक की अपनी यात्रा के दौरान ही हम अत्याधुनिकता के बीच सिमटे इस के ऐतिहासिक गौरव का बखान पढ़ चुके थे.

यहां पर हम आप को यह बताना चाहेंगे कि इस देश का राजवंश, जिस के अंतिम शासक थे हेल सिलासी, जिन्हें 1974 की कम्युनिस्ट क्रांति के दौरान अपदस्थ कर दिया गया था, बिना किसी बाधा के हजारों साल पहले के पुरातन येरूशलम के राजा सोलेमन तथा शीबा की महारानी मकेदा के पुत्र मेनेलिक प्रथम के समय से ही चला आ रहा था. कहते हैं कि मकेदा अपने जमाने की सब से सुंदर महारानी थीं और आज भी उन के सौंदर्य से जुड़े अनेक किस्से आप को इथियोपिया के बूढ़े लोगों से सुनने को मिल जाएंगे.

होटल पहुंचते पहुंचते रात हो गई थी और नैरोबी से अदिस अबाबा तक की लंबी हवाई यात्रा के कारण थकान भी महसूस होने लगी थी. सो हम रात का खाना खाने के बाद जल्दी ही नींद की गोद में झूलने लगे थे. रात को 3 बजे अचानक हमारी नींद टूट गई. हमारी सांस जोर से फूलने लगी थी और इसी वजह से नींद में भी विघ्न पड़ गया था. अगले दिन सुबह होटल के मैनेजर से जब हम ने बात की तो उस ने मुसकराते हुए हमारी शंका का समाधान किया, ‘‘समुद्रतल से ऊंचाई ज्यादा होने के कारण औक्सीजन की कमी हो जाती है और यह चूंकि आप का पहला दिन है, आप अभी इस के अभ्यस्त नहीं हुए हैं, इसलिए रात को आप की सांस फूलने लगी थी.’’

अगले दिन सुबह हम ने इस नगर की परिक्रमा मेस्केल स्क्वायर से शुरू की, जहां से साइडेस्ट किलो एवेन्यू की ओर पैदल चलतेचलते हम ने नगर के कुछ महत्त्वपूर्ण स्थान जैसे अफ्रीका हाल, संसद भवन, राजमहल, विदेश मंत्रालय की खूबसूरत इमारत, जो किसी आर्किटैक्चरल आश्चर्य से कम नहीं है, इथियोपिया का पहला आधुनिक स्कूल जो मेनेलिक द्वितीय ने 1880 के दशक में बनवाया था, त्रिनिटी और्थोडौक्स कैथेड्रल तथा नैशनल म्यूजियम आदि देखे.

इथियोपियन नैशनल म्यूजियम की गिनती इथियोपिया या केवल अफ्रीका के ही नहीं, बल्कि दुनिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ संग्रहालयों में होती है. आदिम मानव जाति के विकास से जुड़ी अनेक दुर्लभ चीजें यहां देखने को मिलेंगी, जिन में से एक आदिम महिला लूसी की प्रतिकृति विशेष रूप से उल्लेखनीय है.

यहां पर उल्लेखनीय है कि इथियोपिया की संस्कृति दुनिया की सब से पुरानी संस्कृति है और इस पुरातन संस्कृति से जुड़ी मानव जाति के विकास के हजारों साल पुराने इतिहास का सफर आप इस संग्रहालय में घूम कर कुछ समय में ही पूरा कर सकते हैं. किस तरह आदिम युग से पाषाण युग की तरफ मनुष्य ने कदम रखा, किस तरह का जीवन वे लोग जीते रहे होंगे और किस तरह शिकार से ले कर रहनसहन की विभिन्न चीजों, साथ ही मानव की कलात्मक प्रवृत्तियों का विभिन्न कालों में विस्तार और विकास हुआ, ये सब एक सीमित जगह में देखना और अनुभव करना बहुत रोमांचक है.

इथियोपियन नैशनल म्यूजियम से थोड़ी दूरी पर मसकल स्क्वायर के अंतिम छोर पर स्थित है एक और संग्रहालय, जो इस देश के कम्युनिस्ट शासन के दुष्कर्मों तथा अत्याचारों की कहानी सुनाता है. यह ’रेड टैरर म्यूजियम’ के नाम से जाना जाता है. इस संग्रहालय का निर्माण 2010 में हुआ था और इस में आम जनता पर हुए कम्युनिस्टों के जुल्मोसितम और फिर 1990 के दशक के भीषण अकाल की दर्दभरी दास्तान से जुड़े चित्र तथा चीजें रखी गई हैं. इस संग्रहालय में काम करने वाले कर्मचारी खुद उस जुल्म तथा भुखमरी के शिकार हो चुके हैं और उन के मुंह से यह दिल दहला देने वाली कहानी सुन कर आप की आंखें नम हो जाएंगी.

इन 2 संग्रहालयों के अलावा अदिस अबाबा का इथनोलौजिकल म्यूजियम, अदिस अबाबा म्यूजियम, इथियोपियन नैशनल हिस्ट्री म्यूजियम, इथियोपियन रेलवे म्यूजियम तथा नैशनल पोस्टल म्यूजियम भी उल्लेखनीय हैं. यह आप की दिलचस्पी पर निर्भर करता है कि आप ये सारे संग्रहालय देखना पसंद करेंगे या नहीं. अगर आप के पास समय की कमी हो तो भी हम चाहेंगे कि आप इथियोपियन इथनोलौजिकल म्यूजियम देखने जरूर जाएं, जो अदिस अबाबा विश्वविद्यालय के कैंपस के भीतर स्थित है. इस में आप को इस देश की विभिन्न प्रजातियों के जीवन, संस्कृति, कला तथा धर्म से जुड़ी अनेक दिलचस्प चीजें देखने का अवसर मिलेगा. यह शायद इथियोपिया का सब से ज्यादा दिलचस्प संग्रहालय है.

संग्रहालयों के बाद आप मेनेलिक द्वितीय एवेन्यू पर स्थित अफ्रीका हाल देखना न भूलें, जहां आजकल संयुक्त राष्ट्रसंघ के अफ्रीका संबंधी आर्थिक आयोग का प्रधान कार्यालय स्थित है. असल में संयुक्त राष्ट्रसंघ के इथियोपिया स्थित लगभग सभी कार्यालय इसी भवन में विद्यमान हैं. इस भवन का नाम अफ्रीका भवन इसलिए रखा गया क्योंकि यहीं पर सब से पहले और्गेनाइजेशन और अफ्रीकन यूनिटी नामक संस्था की नींव पड़ी थी, जो आजकल अफ्रीकन यूनियन के नाम से जानी जाती है. इस के थोड़ा आगे स्थित है इथियोपिया का संसद भवन, जिस का निर्माण सम्राट हेल सिलासी ने करवाया था. आज भी देश की संसद का सत्र यहीं आयोजित किया जाता है. केवल कम्युनिस्ट शासन के दौरान संसद को शेंगो हाल में स्थानांतरित कर दिया गया था. इस भवन का निर्माण कम्युनिस्टों ने ही करवाया था.

इथियोपिया में पुरातन गिरजाघरों की भरमार है. इन में से एक मेधाने अलेम को तो हम ने अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से होटल जाते समय पहले देख लिया था. इस कैथेड्रल के नाम का अर्थ होता है ‘दुनिया का रक्षक’ और यह अफ्रीका महाद्वीप का दूसरे नंबर का सब से बड़ा गिरजाघर है. इस के अलावा अदिस अबाबा का दूसरा गिरजाघर है सैंट जौर्ज कैथेड्रल, जो चर्च रोड के उत्तरी सिरे पर स्थित है. इस का निर्माण 1896 में हुआ था. चर्च की गोलाकार इमारत बाहर से इतनी प्रभावशाली नजर नहीं आती, लेकिन भीतर प्रवेश करने के बाद आप इस के सौंदर्य से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे. इस में एक छोटा सा संग्रहालय भी स्थित है, जिस में आप को पादरियों की, विभिन्न समारोहों में पहनने वाली पोशाकें तथा कुछ पुरातन पांडुलिपियां भी देखने को मिलेंगी.

एक अन्य पुराना गिरजाघर गोला स्ट्रीट माइकेल चर्च नगर के बीचोबीच स्थित है, जहां आप को इथियोपिया के पुराने से ले कर आधुनिकतम, लगभग सभी चित्रकारों की कलाकृतियां देखने को मिल जाएंगी. अदिस अबाबा के अन्य दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं नैशनल पैलेस, जो पहले जुबली पैलेस के नाम से जाना जाता था. इस का निर्माण सम्राट हेल सिलासी की रजत जयंती के उपलक्ष्य में 1955 में हुआ था. अब इस में इथियोपिया के राष्ट्रपति का निवास है.

दूसरा पुराना राजमहल इंपीरियल पैलेस के नाम से जाना जाता है, जहां कभी सम्राट मेनेलिक निवास करते थे. इस में आजकल इस देश के विभिन्न मंत्रियों के दफ्तर स्थित हैं. आप इथियोपिया के कुछ स्थानीय सोवीनियर खरीदना चाहते हैं, तो नगर के बीचोबीच स्थित मरकाटो बाजार जरूर जाएं. यह अदिस अबाबा का सब से बड़ा बाजार है. यहां स्थानीय लोगों के उपयोग की लगभग सभी चीजें मिलती हैं. यही कारण है कि यहां हर समय स्थानीय लोगों की भीड़ रहती है.

आप नेत्सा आर्ट विलेज भी जा सकते हैं, जो फ्रैंच दूतावास के सामने एक सुंदर पार्क में स्थित है. इस विलेज में आप को इथियोपिया के कलाकारों तथा कारीगरों द्वारा बनाए गए अनेक चित्र तथा दस्तकारी की वस्तुएं देखने का अवसर तो मिलेगा ही, साथ ही इन में से आप अपनी मनपसंद चीजें भी खरीद सकते हैं. इस शहर में रेस्तरां तथा कौफी हाउस की भी कोई कमी नहीं है, जहां स्वादिष्ठ स्थानीय व्यंजनों के साथसाथ कौंटिनैंटल डिशेज भी आसानी से मिल जाती हैं. इतना ही नहीं, यहां कुछ भारतीय रेस्तरां भी हैं. इन में ‘ज्वैल औफ इंडिया’ सब से ज्यादा लोकप्रिय है.

अदिस अबाबा अपनी रात की रंगीनियों के लिए भी दुनियाभर में मशहूर है. शोरशराबे वाला संगीत तथा आप के साथ पश्चिमी नृत्य करने वाली इथियोपियन बालाएं. बोल रोड पर, जो अफ्रीका रोड के नाम से भी जाना जाता है, आप को लाइन से नाइट क्लब, बार तथा इस देश के परंपरागत नृत्यों का विशेष प्रदर्शन (हबेशा शो) करने वाले स्थान मिल जाएंगे. जहां कहीं भी आप को संगीत का शोर सुनाई दे, समझ लें कि वहां आप अपनी रात गुजारने जा सकते हैं. सामान्यतया रात में 10-11 बजे के करीब इन स्थानों पर लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है.

इस क्षेत्र के अलावा लगभग पूरे शहर में ही जगहजगह ये क्लब बिखरे हुए हैं, जिन में से प्रमुख हैं- मेमो क्लब, सिल्वर बुलेट वार, माई बार, कौंकौर्ड, डोम क्लब, इल्यूजन, डिवाइन टैंपटेशन, इंडिगो, द केव तथा करामारा. इन में से कुछ तो किसी वेश्यालय से कम नहीं हैं. देह का व्यापार यहां खुलेआम चलता है और इस पर यहां कोई कानूनी पाबंदी भी नहीं है. छोटी जगहों पर जो काम खुलेतौर पर चलता है वहीं दूसरी तरफ कौंकौर्ड जैसे महंगे क्लबों में, जहां भीतर प्रवेश करने के लिए आप को एक मोटी फीस चुकानी पड़ती है, ये सबकुछ परदे के पीछे चलता है. कौंकौर्ड में प्रवेश करने के 3 मिनट के भीतर ही हमें एहसास हो गया था कि यहां भी सुंदर इथियोपियन लड़कियों को माध्यम बना कर आप की जेब काटने के पुराने हथकंडे अपनाए जाते हैं. इस सब का अनुभव हम नैरोबी, मोंबासा तथा ऐसी ही अन्य कितनी ही जगहों पर पहले भी कर चुके थे.

हम अपनी मेज पर बैठे बैंड के संगीत का आनंद ले रहे थे, तभी एक सुंदरी हमारे पास मुसकराती हुई बैठ जाती है और फिर शुरू होती है उस की फरमाइश. अब यह सब तो आप पर निर्भर करता है कि आप रात की मदहोशियों में उस सुंदरी के साथ डूबना चाहते हैं, या फिर संगीत और वहां की रौनक के बीच केवल कुछ समय बिता कर अपने होटल वापस लौटना चाहते हैं.

..तो यह देख थियेटर में ही रोने लगे रणवीर सिंह

हाल ही में एक्टर रणवीर सिंह के साथ कुछ ऐसा हुआ कि वो खुद पर काबू नहीं रख पाए और रो पड़े. दरअसल मौका था एक्टर राजकुमार राव की इस हफ्ते रिलीज होने वाली फिल्म ‘ट्रैप्ड’ की स्क्रीनिंग का. प्रोड्यूसर विक्रमादित्य मोटवानी ने अपने फेवरेट स्टार रणवीर के लिए स्पेशल स्क्रीनिंग रखी.

रणवीर ने यह फिल्म देखी और देखते ही वो इमोशनल हो गए. राजकुमार राव की एक्टिंग से रणवीर इतने भावविभोर हो गए कि थियेटर के अंदर ही काफी देर तक बैठे रहे और रोने लगे. फिल्म के प्रोडक्शन हाउस फैंटम ने फेसबुक पर रणवीर का वीडियो शेयर किया है जिसमें रणवीर राजुकमार राव की तारीफ कर रहे हैं और रो रहे हैं.

कार लोन लेते वक्त इन बातों का रखें ध्यान

अपना घर और अपनी गाड़ी हर किसी का सपना होता है. जब कोई इंसान पैसे कमाने लगता है तब उसे अपने घर के ख्वाब आने लगते हैं. अगर आप भी नई कार खरीदने के बारे में सोच रहे हैं तो आपके पास भी कई ऑप्शन होंगे. अगर आपकी आए उतनी नहीं है, और आप कार लोन के लिए एप्लाई करने के बारे में सोच रहे हैं, तो आपके लिए कुछ बातों का जानना बहुत जरूरी है.

कार लोन के लिए एप्लाई करने से पहले-

लोन अमाउंट

कार खरीदने वाले अधिकतर लोगों यह कंफ्यूजन रहता है कि उन्हें कितनी रकम लोन के तौर पर बैंक से लेनी चाहिए. बैंक कार लोन देने से पहले आवेदनकर्ता के आय का विश्लेषण करते हैं. अगर आपकी कार लोन की ईएमआई आपके मासिक आय का 20 फीसदी के आसपास है तो ऐसे में बैंक आपको लोन दे देते हैं. अगर किसी की मासिक सैलेरी 50,000 रुपए है तो कार लोन की ईएमआई 10,000 रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए.

सिर्फ इंट्रेस्ट ही काफी नहीं

अगर आप सिर्फ बैंक के ब्याज दरों को देखकर कार लोन लेते हैं तो यह गलत है. मान लें कि आप चार लाख रुपए का कार लोन लेना चाहते हैं. कोई बैंक कार की कीमत का 80 फीसदी लोन पांच साल के लिए 10.5 फीसदी की ब्याज दर पर देता है. वहीं,  दूसरा बैंक 10.25 फीसदी की ब्याज दर पर लोन देता है. इन दोनों ब्याज दरों में सिर्फ 48 रुपए का ही फर्क है. थोड़े से कम ब्याज के चक्कर में एकदम से लोन लेने का फैसला न करें. ब्याज दरों के अलावा दूसरी बातों का भी ध्यान रखें और फिर लोन लेने का फैसला लें.

प्रोसेसिंग चार्ज

बैंक के नियमों के अनुसार कार लोन प्रोसेसिंग फीस तय रहती है. आमतौर पर 2.5 लाख तक के लोन पर बैंक 2500 रुपए तक प्रोसेसिंग चार्ज लेते हैं और इसके साथ ही डाक्‍यूमेंटेशन के 350 रुपए देने पड़ते हैं. वहीं, 4 से 5 लाख के लोन पर बैंक 4000 रुपए प्रोसेसिंग फीस और डाक्‍यूमेंटेशन के लिए 350 रुपए ही लेते हैं. लोन लेने से पहले बैंकों के ब्याज दर और प्रोसेसिंग फीस को भी कंपेयर करना जरूरी है.

प्रीपेमेंट चार्ज का रखें ध्यान

सस्ती ब्याज दरें देखकर लोन के लिए एप्लाई न करें. कार लोन चुकाने के लिए आपको 5-7 साल का वक्त मिलता है. अगर आपकी सैलेरी बढ़ती है और आप लोन को जल्द से जल्द चुकाना चाहते हैं, तो कई बैंकों की पॉलिसी के अनुसार आपसे प्रीपेमेंट चार्ज भी वसूला जाता है. कुछ बैंक प्रीपेमेंट पैनल्‍टी चार्ज नहीं लेते. अगर आपको लगता है कि आपकी आय बढ़ने वाली है तो प्रीपेमेंट वाले बैंकों से कर्ज न लें. बैंक की शर्तों को ध्यान से पढ़े.

अपना क्रेडिट स्कोर पता करें

कार लोन के लिए एप्लाई करने से पहले अपने क्रेडिट स्कोर के बारे में पता करना जरूरी है. बैंक आपको क्रेडिट स्कोर के हिसाब से ही लोन देगा. लो क्रेडिट स्कोर पर आपका लोन ऐप्लीकेशन रिजेक्ट हो सकता है और हाई क्रेडिट स्कोर पर आपको तुरंत लोन मिल सकता है.

आय के हिसाब से हो व्यय

जितनी आपकी आय है उसी हिसाब से व्यय भी करें. पहले यह तय करें कि क्या आप ईएमआई पेमेंट करने के काबिल हैं या नहीं. अगर आप एक बार भी ईएमआई चुकाने में चुकते हैं तो इसका प्रभाव आपके सिबिल स्कोर पर ही पड़ता है. आपकी अभी की मासिक आय के हिसाब से ही लोन रिपेमेंट की अवधि चुनें. भविष्य में सैलेरी बढ़ने की आशा में कोई भी कदम न उठायें.

यूपी बिहार लूटने के बाद शिल्पा कर रही हैं नागिन डांस

बॉलीवुड की दिलकश अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरों और वीडियो के जरिए खबरों में बनी रहती हैं. फैंस उनकी हर अपडेट को फॉलो करना चाहते हैं. शिल्पा भी सोशल मीडिया के जरिए अपनी गतिविधियों से फैंस को अवगत कराती रहती हैं.

राज कुंद्रा भी अपनी पत्नि शिल्पा की तस्वीरें और वीडियो खूब शेयर करते हैं. होली के दिन राज कुंद्रा ने शिल्पा का एक वीडियो शेयर किया है जो अब वायरल हो रहा है.

शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा ने अपने दोस्तों और परिवार के साथ खंडाला में होली मनाई. शिल्पा को होली के दौरान काफी मस्ती करते हुए में देखा गया. उनके पति राज कुंद्रा ने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में शिल्पा ने दो घूंट भांग पी ली जिसके बाद उन्होंने जमकर नागिन डांस किया. भांग के नशे में शिल्पा एकदम मस्ती में डांस कर रही हैं.

शिल्पा का यह फनी वीडियो को शेयर करते हुए राज कुंद्रा ने लिखा, ‘दो घूंट भांग पीने का असर.’ वहीं शिल्पा ने भी अपने इंस्टाग्राम पर होली की कुछ तस्वीरें शेयर की हैं. शिल्पा ने अपनी और राज कुंद्रा की एक तस्वीर शेयर करते हुए एक रोमांटिक कैप्शन लिखा कि ‘तुमने मेरी जिंदगी में रंग भरे हैं.’

यहां देखें शिल्पा का नागिन डांस वीडियो…

 

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क्या है ये ‘तम्मा तम्मा लोगे’

क्या आपने कभी ‘तम्मा तम्मा लोगे’ गाने के इन शब्दों का अर्थ ढूँढ़ने की कोशिश की है. हाल ही में अभिनेत्री आलिया भट्ट और वरुन धवन अभिनीत फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ रिलीज हुई है. इस फिल्म के एक गाने ने सभी के दिलों पर धूम मचा रखी है. आप में से भी बहुत से लोगों ने यकीनन इस गाने के शब्दों ‘तम्मा-तम्मा’ का अर्थ जानना चाहा होगा. आपकी इस मुश्किल को हम थोड़ा आसान कर सकते हैं. हम आपको बता देना चाहते हैं कि इस शब्द ‘तम्मा तम्मा लोगे’ का वास्तव में कुछ भी मतलब नहीं है. कम से कम हिंदी या किसी भी अन्य भारतीय भाषा में शब्द तम्मा वास्तव में अर्थहीन है.

आपको हम कहानी की थोड़ी गहराई में ले चलते हैं. ये बात तो आप जानते हैं कि तम्मा-तम्मा लोगे, साल 1990 दिसम्बर में आई फिल्म ‘थानेदार’ का भी एक गीत है. उस समय भी ये गाना बहुत लोकप्रिय हुआ था बावजूद इसके कि हिन्दी में ‘तम्मा’ वाकई कोई शब्द है ही नहीं.

अब आपको बताते हैं कि मूल गीत ‘तम्मा तम्मा’ दरअसल एक विदेशी गीतकार और गायक ‘मोरे केंटे’ का गीत ‘तमा’ है. कहने का मतलब ये हुआ कि ‘तम्मा-तम्मा’ ये गाना साल 1988 में ही आ चुका था. आप शायद जानते होंगे कि बॉलीवुड का एक और गीत ‘जुम्मा चुम्मा’ भी बिल्कुल ऐसा ही लगता है. तो कहानी यही है कि दोनों ही गीत ‘मोरे केंटे’ के लोकप्रिय गीत ‘तमा’ द्वारा ‘प्रेरित’ हैं. उस समय अर्थात 80 और 90 के दशक में अफ्रीका के लोगों द्वारा ये गाना बहुत पसंद किया गया था.

इसके अलावा हम आपको बताना चाहते हैं कि फरवरी 1990 में आई सुपरस्टार अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘अग्नीपथ’ के एक द्रश्य में बैकग्राउण्ड म्यूजिक की तरह पेश किया गया गाना ‘येके-येके’ भी, इससे 3 साल पहले 1987 में अफ्रीका के गीतकार मोरे द्वारा ही गाया गया था.

अफ्रीका के देश ‘गिनी’ के मशहूर गीतकार ‘मोरे केंटे’ के गीत ‘tama tama gnogonte, tama tama gnogonte tama’ के इस पंक्ति को हिंदी भाषा में सरल कर, गाने के तम्मा-तम्मा हिस्से को छोड़ ‘लोगे’ बना दिया गया जो समझने में कम से कम ‘तम्मा-तम्मा’ से आसान है. ‘तम्मा-तम्मा’ अर्थ तो कुछ भी नहीं है, इसलिए शब्दों की चिन्ता किए बिना, अर्थ केवल इन शब्दों में नृत्य करने या नाचने में ही है.

वोडका से निखारें अपना रूप

वोडका हमारे सौन्दर्य के लिए अच्छा होता है. इससे बाल और त्वचा की खूबसूरती बढ़ती है. हम आपको कुछ टिप्स बता रहे हैं जिससे आप अपना सौन्दर्य और रूप निखार सकती है.

झुर्रियां

इससे ढीली त्वचा में कसाव आता है वोडका में स्टार्च होता है जो लटकती हुई त्वचा को टाइट बनाने में मदद करता है. इसके नियमित प्रयोग से बारीक धारियां गायब हो जाती हैं.

स्किन टोन

कॉटन बॉल में इसे भिगोकर चेहरे परे मलने से ओपन पोर्स बंद हो जाते हैं. इससे स्किन टाइट हो जाती है और चेहरा स्मूथ दिखने लगता है.

एक्ने

अपने एंटीबैक्टीरियल गुणों के कारण मुंहासों पर वोडका लगाने से मुंहासे जल्दी सूख जाते हैं. बालों और त्वचा पर लगाने से इससे बालों और त्वचा की गंदगी साफ हो जाती है.

ग्लो

इससे चेहरे पर गजब का ग्लो आता है और निस्तेज त्वचा भी खिल उठती है.

बाल

शैंपू में अगर थोड़ा सा वोडका मिलाकर लगाया जाए तो इससे बाल मुलायम और सुंदर हो जाते हैं. बालों का रूखापन ठीक हो जाता है. वोडका में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो फंगस और बैक्टीरिया का खात्मा करता है. यही बैक्टीरिया सिर में रूसी का कारण बनते हैं. इससे बालों में रूसी की समस्या से भी निजात मिलेगी.

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