चुनौतियां मुझे कुछ नया करने को प्रेरित करती हैं : रश्मि शर्मा

मध्यवर्गीय परिवार में जन्मीं रश्मि शर्मा ने कभी नहीं सोचा था कि वे आगे चल कर राइटर से क्रिएटिव डायरैक्टर और फिर प्रोड्यूसर बनेंगी. लेकिन मेहनत, लगन और कुछ कर दिखाने की जिद ने उन्हें आम से खास बना दिया. 2008 में रश्मि ने पहली बार धारावाहिक ‘राजा की आएगी बरात’ के लिए काम किया. उस के बाद ‘रहना है तेरी पलकों की छांव में’, ‘मिसेज कौशिक की 5 बहुएं’, ‘देश की बेटी नंदनी’ के साथ मानो उन की सफलता का सिलसिला शुरू हो गया. धारावाहिक ‘साथिया साथ निभाना’ और ‘ससुराल सिमर का’ ने अब तक 1000 से भी अधिक ऐपिसोड पूरे कर लिए हैं, तो उन के दूसरे सीरियल्स जैसे ‘शक्ति’, ‘स्वरागिनी’, ‘सरोजिनी’ आदि हमेशा टीआरपी की रेस में आगे रहे. बता दें कि इन में से कुछ धारावाहिक उन्होंने खुद लिखे हैं. आइए, रश्मि के व्यक्तित्व को और करीब से जानें:

आप के मन में प्रोड्यूसर बनने का खयाल कब आया?

मैं ने इंडस्ट्री में शुरुआत बतौर क्रिएटिव डायरैक्टर की. प्रोड्यूसर बनने से पहले मैं कई धारावाहिकों की क्रिएटिव हैड रह चुकी हूं. उन धारावाहिकों की कहानी को सोचना, स्टोरी लाइन बनाना, उसे दर्शकों के सामने परोसना यह सब मेरा काम होता था. कई धारावाहिकों में काम करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि जो चीजें आज मैं दूसरों के लिए कर रही हूं, उन्हें मैं अपने लिए भी तो कर सकती हूं. दरअसल, आप जब किसी दूसरे इनसान के प्रोडक्ट को प्रेजैंट करते हैं, तो आप पर बहुत सारी पाबंदियां लगाई जाती हैं. दूसरों के लिए धारावाहिक करते समय कई बार मुझे ऐसा लगता था कि अगर यह शो मेरा होता तो मैं इसे अलग दिशा में ले जाती. इन्हीं सोचों के साथ और खुद को पहले एक अच्छा क्रिएटिव हैड साबित करने के बाद मैं ने प्रोड्यूसर बनने की सोची.

मेल डौमिनेटिंग ग्लैमर इंडस्ट्री में अपने लिए स्थान बनाना कितना मुश्किल रहा?

मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं और यह कहूंगी भी कि ग्लैमर इंडस्ट्री में मेल डौमिनेशन बहुत ज्यादा स्ट्रौंग है. यहां एक फीमेल होने के नाते अपनी बात रखना और मनवाना बहुत मुश्किल है. लेकिन एक औरत होते हुए भी मैं ने अपनेआप को दोनों इंडस्ट्री (फिल्म और टीवी) में बेहतरीन तरीके से पेश किया. मैं अपनी बातें मनवाने में सफल भी रही हूं. हां, लेकिन मैं यह बात भी कहना चाहती हूं कि जब मैं क्रिएटिव हैड थी, तब मुझे यह डौमिनेशन सहना पड़ा था, लेकिन मेरा इस बात में गहरा यकीन है कि अगर आप को अपना काम आता है, आप अपने काम के प्रति ईमानदार हैं, तो आप को कोई डौमिनेट नहीं कर सकता. मेरे अंदर शुरू से सीखने की कला रही है. मैं ने बहुत निचले दर्जे से काम करना शुरू किया था, इसलिए मैं अपना काम अच्छी तरह जानती हूं और सही फैसला लेने में सक्षम हूं.

आप के व्यक्तित्व को निखारने में आप के पिता की क्या भूमिका रही है?

मेरे पिता प्रिंसिपल थे और मां हाउसवाइफ. मेरे पिताजी का जहांजहां तबादला होता था, हम उन के साथ चले जाते थे. मेरी पढ़ाई भी उन्हीं की निगरानी में हुई है. आज मेरी लाइफ में जो अनुशासन है, काम के प्रति जो डैडिकेशन है और काम को ले कर मैं जितनी फोक्सड हूं, सब उन्हीं की बदौलत है. चूंकि मेरे पिता ऐजुकेशन बैकग्राउंड से रहे हैं, इसलिए वे ओपन माइंडेड भी थे. वे अकसर कहते थे कि जहां मन चाहे उस दिशा में कैरियर बनाओ, लेकिन पढ़ाई पर खास ध्यान दो. उन का मानना था कि लड़का हो या लड़की उस का पढ़ालिखा होना बहुत जरूरी है.

आज किस तरह की चुनौतियां आप के सामने हैं?

हमेशा कुछ नया करना इस फील्ड की सब से बड़ी चुनौती है, जो कभी खत्म होने वाली नहीं है. यहां सब से बड़ी चुनौती है नया कौन्सैप्ट सोचना. कुछ ऐसा जो किसी और के दिमाग में न हो. बिलकुल अलग. मेरे लिए अपनेआप में यह एक चुनौती है कि मैं वह न सोचूं जो लोग सोच रहे हैं. मेरी सोच उन से अलग हो. इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है. काफी नए लोग नए टेलैंट के साथ आ रहे हैं. ऐसे में अपनेआप को सब से अलग रखना और अपनी बात को सही तरीके से दर्शकों तक पहुंचाना अपनेआप में एक चुनौती है. लेकिन यह एक ऐसी चुनौती है, जो मुझे कुछ नया करने के लिए प्रेरित करती है.

कैंसर मेरी जिंदगी का सिर्फ एक पन्ना है : आनंदा शंकर जयंत

यदि आप कैंसर को एक चुनौती के रूप में लेती हैं और यह तय करती हैं कि आप को इस से लड़ना ही है, छुटकारा पाना ही है तो यह मुश्किल नहीं है. इस का ताजा उदाहरण हैं आनंदा शंकर जयंत, जिन्होंने अपनी कीमो थेरैपी के दौरान भी डांस प्रैक्टिस को जारी रखा और अपने पैशन से कैंसर पर जीत हासिल की. पेश हैं, आनंदा से हुई मुलाकात के कुछ अहम अंश:

कैंसर का पता चलने पर आप की क्या प्रतिक्रिया रही?

मैं काफी उदास हो गई. घर आ कर रोई भी, पर इसलिए नहीं कि मुझे ब्रैस्ट कैंसर है, बल्कि इसलिए कि इस की वजह से मेरे डांस में गैप आ जाएगा, मैं डांस नहीं कर पाऊंगी. दरअसल, जब आप कला के क्षेत्र से ब्रेक लेते हैं तो आप खत्म से हो जाते हैं, पर मैं कला को नहीं छोड़ना चाहती थी. अत: मैं इस सोच के साथ आगे बढ़ी कि कुछ भी हो जाए, लेकिन मुझे इस कठिनाई से बाहर निकलना ही है.

उस वक्त कई तरह की बातें दिमाग में आ रही थीं. अचानक मेरे दिमाग में एक खयाल आया और मैं ने अपने पति जयंत से पूछा कि क्या यह अंत है मेरे जीवन का, नहींनहीं मेरे डांस का? तो उन्होंने प्यार से कहा कि तुम बस ट्रीटमैंट लो. सब ठीक हो जाएगा. उन का पौजिटिव व्यवहार देख कर मैं ने निर्णय लिया कि मैं कैंसर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दूंगी. अत: मैं ने अपनेआप से तेज आवाज में 3 बातें कहीं-

पहली यह कि कैंसर मेरी जिंदगी का सिर्फ एक पन्ना है, मैं इसे पूरी किताब नहीं बनने दूंगी, दूसरी यह कि मैं इसे अपनी जिंदगी से बाहर कर दूंगी न कि अपनी जिंदगी में शामिल होने दूंगी और तीसरी यह कि मैं कभी यह सवाल नहीं करूं गी कि मैं ही क्यों?

वह दिन है और आज का दिन मैं ने इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया, बल्कि इस पर जीत हासिल कर के आगे बढ़ी.

इस स्थिति में डांस पर कैसे फोकस किया?

इस कठिन स्थिति से बाहर निकलने का श्रेय मैं अपने पति और डांस को ही देती हूं. डांस ने न सिर्फ मुझे परेशान होने से बचाया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि कैंसर मेरे जीवन को घेरे न रखे. 7 जुलाई, 2008 को मेरी सर्जरी हुई थी. सर्जरी के 3 दिन बाद मैं घर आई. 2-3 दिन आराम जरूर किया, लेकिन खुद को कभी बीमार के रूप में नहीं रखा. उस दौरान भी मैं बच्चों को रिहर्सल करवाती थी, अपने लैपटौप पर काम करती थी.

इस दौरान पति का कैसा सहयोग रहा?

मेरे पति जयंत बहुत ही रोमांटिक इनसान हैं. वे मेरे सब से अच्छे दोस्त हैं. उस वक्त उन के प्यार व सपोर्ट से ही मैं कैंसर की गिरफ्त से बाहर निकल पाई. कीमो थेरैपी के बाद जब मैं सोई रहती थी तब वे ही मुझे कहते थे कि उठो, बहुत हुआ सोना. अब प्रैक्टिस करो. उस दौरान उन की सब से अच्छी बात यह थी कि वे मुझे कुछ भी करने से नहीं रोकते थे, बल्कि कहते थे तुम्हारी बौडी है, तुम अपनी बौडी को अच्छी तरह से जानती हो, इसलिए तुम्हारा जो करने का दिल करता है करो.

एक डांसर के लिए उस के बाल और खूबसूरती बहुत माने रखती है. ऐसे में बाल झड़ने पर आप क्या फील कर रही थीं?

अधिकांश महिलाओं को लगता है कि बालों के बिना कैसे रहेंगी, कैसी दिखेंगी, लोग क्या कहेंगे. लेकिन मैं ने अपने बालों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि मेरे डाक्टर ने मुझे बताया था कि कीमो थेरैपी के दौरान बाल झड़ते हैं, लेकिन कीमो साइकिल खत्म होते ही आ भी जाते हैं. मेरे साथ हुआ भी ऐसा ही. 8वीं कीमो के बाद 2-3 महीने के अंदर मेरे बाल आ गए. हां, उस दौरान मैं विग लगाने लगी थी.

हैल्थ को ले कर महिलाओं से क्या कहना चाहेंगी?

महिलाएं परिवार के सदस्यों को देखने के बाद ही अपने बारे में सोचती हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें तो कोई प्रौब्लम नहीं है, फिर क्यों डाक्टर के पास जाएं. जब होगी तब देखी जाएगी. इसी वजह से कई मामलों में ट्रीटमैंट संभव नहीं हो पाता. इसलिए जरूरी है कि 40 साल की उम्र के बाद हर महिला को साल में एक बार मैडिकल चैकअप जरूर करवाना चाहिए. यह एक नौर्मल टैस्ट है, जो आप की हैल्थ के लिए जरूरी है. अगर टैस्ट में कैंसर का पता भी चलता है, तो घबराने की जरूरत नहीं है और न ही इसे अपनी जिंदगी का अंत समझना चाहिए, बल्कि इस सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए कि अच्छा हुआ पहले पता चल गया.

परिवार के साथ बहुत धक्के खाए हैं : गीता टंडन

मन में अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कठिन से कठिन हालात भी आगे बढ़ने की राह में रोड़ा नहीं बनते. ऐसी ही जीवन की कठिन राह पर अपने आत्मविश्वास के बलबूते सफलता की नई इबारत लिखने वाली बॉलीवुड की स्टंट वूमन गीता टंडन हैं.  बॉलीवुड में कई अभिनेत्रियों के लिए स्टंट कर चुकीं गीता की बीती जिंदगी भी उन के प्रोफैशन के जैसी ही कठिन और जोखिम भरी रही है.

महज 15 साल की उम्र में शादी हो जाने और उस के बाद पति व सास की प्रताड़ना से निकल कर 2 बच्चों को पालने तथा स्टंट जैसे जोखिम भरे प्रोफैशन के साथ सम्मान की जिंदगी जीने वाली गीता रीबोक ‘फिट टू फाइट’ अवार्ड से सम्मानित हैं. एक मुलाकात के दौरान उन से हुई बातचीत के कुछ चुनिंदा अंश पेश हैं:

स्टंट वूमन बनने का सफर कैसा रहा?

जैसे हर एक काली रात के बाद सुबह होती है, मेरा जीवन भी कुछ उसी तरह का रहा. जब 15 साल की थी, तो पिता ने मेरी शादी यह सोच कर कर दी कि मैं शादी के बाद खुश रहूंगी, क्योंकि शादी के पहले मैं ने अपने परिवार के साथ बहुत धक्के खाए थे. लेकिन शादी के बाद भी वे सभी अरमान हवा हो गए, जो मैं ने संजोए थे. पति शराबी था. रोज पीटता था. सास भी प्रताडि़त करती थी. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी जब मेरी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया, तब मैं ने फैसला किया कि मैं ऐसे ही अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी बरबाद नहीं होने दूंगी. अत: पति का घर छोड़ दिया. समाज ने बहुत कुछ कहा. पति का घर छोड़ने के बाद कई रातें सड़कों पर गुजारीं. लोगों के घरों में काम किया, क्योंकि मुझे पैसों की जरूरत थी.

3 साल ऐसे ही संघर्ष करते निकल गए.  इस के बाद एक भांगड़ा पार्टी में शामिल हो गई. शादीविवाह पर डांस करने लगी. जब पैसे आए तब जिंदगी में कुछ सुधार आया, लेकिन मुझे और पैसों की जरूरत थी. तभी किसी ने फिल्मों में स्टंट के बारे में बताया कि इस में पैसे अच्छे मिलते हैं. तब मैं यह काम करने लगी.

अतीत कैसा रहा?

पिछला समय कठिनाइयों में गुजरा है. तभी आने वाला समय अच्छा बन पाया है. मैं अपने बुरे अतीत को हमेशा अपने लिए पौजिटिव मानती हूं, क्योंकि अगर जरूरतें न होतीं तो मैं कभी इस प्रोफैशन को न चुन पाती. मैं मानती हूं कि मेरी पैसे की जरूरत ही इस काम के लिए मेरा जनून बन गई.

इतना जोखिम भरा काम ही क्यों चुना?

मैं ऐसा बिलकुल नहीं बोलूंगी कि मेरा बचपन से ही स्टंट करने का सपना रहा है. सच बताऊं तो जब मैं जीवन की उस राह पर खड़ी थी जब मुझे पैसों की बहुत जरूरत थी तब जो काम मिला मैं करती गई. मेरा मानना है कि काम कोई छोटाबड़ा नहीं होता. अगर मुझे सड़क पर झाड़ू लगाने का काम भी मिलता तो मैं हां कर देती, क्योंकि उस में पैसे तो मिलते. ऐसे ही जब स्टंट करने का काम मेरे पास आया तो मैं ने हां कह दी. मेरे पास इस काम की कोई ट्रेनिंग नहीं थी, लेकिन वक्त हर काम करवा देता है.

असली पहचान कब मिली?

पहले मुझे सिर्फ इंडस्ट्री के लोग ही जानते थे कि मैं एक स्टंट वूमन हूं और 2 बच्चों की सिंगल मदर हूं. लेकिन जब मेरी डौक्यूमैंटरी आई तब लोगों के सामने मेरी कहानी आई. इस के बाद तो मेरी जिंदगी ही बदल गई. मुझे कई अवार्ड मिले. इंटरव्यू के लिए लोगों के फोन आने लगे. पहले मैं अपनी कहानी सब के सामने लाने के पक्ष में नहीं थी, लेकिन जब लोगों ने कहा कि मेरी कहानी से और लोग भी प्रेरित होंगे तब मैं ने डौक्यूमैंटरी के लिए हां कही.

सपने देखती हैं?

मेरा मानना है कि अगर सपने ही न होंगे, तो उन्हें सच करने की प्रेरणा कहां से मिलेगी. मेरा  अक्षय कुमार के साथ काम करने का बचपन से सपना था. फिल्म ‘दे दनादन’ में उन्हें करीब से देखने का मौका तो मिल गया. लेकिन साथ काम कभी नहीं कर पाऊंगी, क्योंकि मैं तो एक स्टंट वूमन हूं कोई ऐक्ट्रैस नहीं.

अपने बच्चों के लिए क्या सपने हैं आप के?

मैं ने हमेशा उन्हें एक बात सिखाई है कि जिंदगी में जैसा खुद को बनाओगे वैसे ही तुम्हें लोग मिलेंगे. खूब पढ़ो और वह सब करो, जो मैं न कर पाई. उन दोनों में मैं अपना बचपन और जवानी जीते देखना चाहती हूं. बेटा फिल्म इंडस्ट्री में आना चाहता है पर क्या काम करेगा, यह अभी तय नहीं है. 

इन सितारों ने की भागम-भाग शादी

प्यार करना आसान है, लेकिन उसे निभाना उतना ही मुश्किल‌‌‌‌‌, और सबसे ज्याद मुश्किल तब हो जाता है, जब आप किसी के साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहते हो. और आपके घर के लोग इसके खिलाफ रहते हैं.
‌‌‌‌प्यार कोई जाति, धर्म देखकर नहीं होता है, बस हो जाता है, और इतना हो जाता है कि लोग साथ मरने जीने की कसमें खा लेते है, वहीं उनके इसी प्यार के आड़े जब जाति के बंधन के लिए घर वाले और ये समाज आता है, तो बिना लोगों की परवाह ये अपना सही गलत चुन लेते है और वो अपने प्यार के लिए सारी दुनिया से लड़ने को तैयार हो जाते हैं.‌‌‌‌‌‌ ये सामाजिक परेशानियां केवल हम आम लोगों के साथ नहीं होती है, बल्कि इस समस्या से हमारे बॉलीवुड सितारे भी अछूते नहीं रहे हैं. कुछ फिल्मी सितारे जिन्होंने अपने प्यार के लिए घर से भागकर शादी की.

सोहेल और सीमा सचदेव

एक्टर-प्रोड्यूसर सोहेल खान की कहानी भी उनकी फिल्मों की तरह ही है ‌दरअसल सोहेल को एक हिंदू लड़की सीमा सचदेव से प्यार हो गया, लेकिन सोहेल को ड़र था कि कहीं परिवार के दबाव में आकर उनका प्यार उनसे जुदा न हो जाएं,‌‌‌‌‌‌ इसलिए सोहेल ने सीमा से भागकर शादी कर ली.‌‌‌ सोहेल खान की शादी की दिलचस्प बात ये है कि सोहेल ने उसी दिन शादी की थी जिस दिन उनके भाई सलमान खान की फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ पर्दे पर आई थी.‌‌‌‌‌‌

आमिर खान और रीना दत्ता

आमिर जिस तरह अपनी फिल्मों में अभिनेत्री के साथ भागकर शादी करते है. उन्होंने ऐसा अपनी असल जिन्दगी में भी किया. आमिर को रीना से प्यार हो गया, लेकिन अलग मजहब होने के कारण दोनों के घरवाले राजी नहीं थे.‌‌‌‌‌ और फिर उन्होंने इस रिश्ते को निभाने के लिए घर से भागकर शादी कर ली. हालांकी यह रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चला और आमिर ने किरण राव से दूसरी शादी कर ली थी.

शशि कपूर और जेनिफर

शशि कपूर ने भले ही फिल्मों में खूब नाम कमाया हो, लेकिन उनका पहला प्यार थिएटर था.‌‌‌‌‌‌ शशि अक्सर अपना वक्त थिएटर में बिताया करते थे और वहीं उन्हें अपना जीवनसाथी भी मिल गया.‌‌‌‌‌‌ कोलकाता के एक थिएटर में शशि कपूर को एक विदेशी कलाकार से प्यार हो गया.‌‌‌‌‌‌ दोनों अक्सर साथ काम करते थे.‌‌‌‌‌‌ शशि कपूर भारतीय थे इसलिए जेनफिर के पिता ने यह रिश्ता नामंजूर कर दिया.‌‌‌‌‌‌ लेकिन जमाने की परवाह ना करते हुए शशि कपूर ने जेनिफर से हिंदू रीति रिवाज के अनुसार शादी कर ली.‌‌‌‌‌

गीता बाली और शम्मी

सूत्रों के मुताबिक इन दोनों के ‘रंगीला रतन’ फिल्म के दौरान नैन मिले थे. उस समय कपूर खानदान में एक अघोषित-सा नियम था कि फिल्म एक्ट्रेस से कोई शादी नहीं करेगा. इसलिए शम्मी और गीता बाली थोड़ा डरे हुए थे. उम्र में भी गीता, शम्मी से बड़ी थी और उस जमाने में इसे बेमेल जोड़ी माना जाता था. प्यार किया तो डरना क्या तर्ज पर शम्मी-गीता ने पहली मुलाकात के लगभग चार महीने बाद मुंबई के एक मंदिर में शादी कर ली और उसके बाद ही अपने परिवार को बताया.

आशा भोसले और गनपत राव भोसले

सुरों की देवी आशा भोसले ने 16 वर्ष की उम्र में अपने 31 वर्षीय प्रेमी ‘गणपत राव भोसले’ के साथ घर से भागकर पारिवारिक इच्छा के खिलाफ विवाह किया, लेकिन ये जोड़ी 1960 में टूट गई. इनके तीन बच्चे हैं. 1980 में आशा जी ने ‘राहुल देव वर्मन’ से विवाह किया.

म्यूचुअल फंड से करें टैक्स प्लान

इनकम टैक्स का नाम सुनते ही ज्यादातर लोग नए नए तरीके सोचने लगते हैं कि टैक्स कैसे बचाएं, क्या करें कि टैक्स का भुगतान कम करना पड़े. कुछ लोगों का तो आधे से ज्यादा समय टैक्स बचाने की युक्ति खोजने में ही बीत जाता है.

क्या आप भी उन लोगों में शामिल हैं? अगर हां, तो म्यूचुअल फंड में पैसे निवेश करने के बारे में आप का क्या विचार है? अब आप सोच रहे होंगे कि आप को तो म्यूचुअल फंड के बारे में कुछ भी नहीं पता, इस से आप कैसे टैक्स बचा सकते हैं?

एक प्रभावी योजना

दरअसल, म्यूचुअल फंड में ई.एल.एस.एस. एक ऐसी प्रभावी योजना है, जिस में निवेश करने पर आप को अच्छा रिटर्न तो मिल ही सकता है, आप इस से टैक्स में भी छूट पा सकते हैं. ई.एल.एस.एस. एक डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड है, जिस में राशि को अलग अलग उद्योगों और कंपनियों के शयरों में निवेश किया जाता है, जिस से कि फंड में विविधता बनी रहे.

इसमें इनकम टैक्स ऐक्ट 1961 की धारा 80सी के अनुसार एक वित्तीय वर्ष में अपनी सकल कुल आय से अपने ई.एल.एस.एस. निवेश के 1.50 लाख रुपए तक कटौती के रूप में क्लेम किया जा सकता है. टैक्स में छूट के लिए जितनी भी निवेश की अन्य योजनाएं उपलब्ध हैं जैसेकि बैंक डिपौजिट, पीपीएफ, पोस्ट औफिस सेविंग अकाउंट. इन में ई.एल.एस.एस. में सब से कम समय के लिए निवेश किया जाता है.

इस में खरीदी गई यूनिट को तब तक सौंपा, हस्तांतरित गिरवी व स्विच नहीं किया जा सकता जब तक कि संबंधित यूनिट के आवंटन की तिथि से 3 वर्ष पूरे न हो जाएं.

अच्छे रिटर्न का प्रभावी माध्यम

आप सोच रहे होंगे कि किस फंड में निवेश करें? आज मार्केट में कई सारे म्यूचुअल फंड उपलबध हैं, जो टैक्स में छूट की सुविधा देते हैं. इन में कुछ म्यूचुअल फंड टैक्स सेविंग का एक बेहतर विकल्प हैं. म्यूचुअल फंड से प्राप्त राशि टैक्स फ्री होती है यानी जब अवधि पूरी होने पर आप को कुल राशि प्राप्त होती है तो आप को उस पर टैक्स नहीं देना पड़ता. इस में निवेशक को फार्म भर डौक्यूमैंट के साथ चैक को दाता म्यूचुअल फंड के औफिस या फिर रजिस्ट्रार के औफिस में जमा करना पड़ता है.

न्यूनतम निवेश से शुरुआत

यह जरूरी नहीं है कि आप बड़ी रकम निवेश कर के ही कर में छूट पा सकते हैं. इस में आप अपनी सुविधानुसार कितनी भी राशि निवेश कर सकते हैं. निवेश की न्यूनतम राशि 500 रुपए है और अधिकतम राशि निवेश करने की कोईर् सीमा नहीं है. आप कितनी भी राशि निवेश कर सकते हैं.

इस में निवेशक एस.आई.पी. यानी सिस्टेमैटिक इनवैस्टमैंट प्लान द्वारा भी निवेश कर सकते हैं और एकसाथ भी कर सकते हैं. एस.आई.पी. में थोड़थोड़ी राशि किश्तों में जमा की जाती है और एकसाथ कुल राशि का भुगतान एक बार में ही करना पड़ता है.

यह उन लोगों के लिए भी उपयोगी है जिन्होंने अपनी नईनई नौकरी शुरू की है. इस से उन में सेविंग की आदत बनी रहती है. कई लोग ऐसा सोचते हैं कि यह 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए उपयोगी नहीं है. लेकिन ऐसा नहीं है.

यदि कोई व्यक्ति 60 वर्ष से अधिक उम्र का है और उस की आय या पैंशन आदि सब मिला कर कर योग्य है, तो उन के लिए भी यह उपयोगी है. इस में जोखिम है, लेकिन रिटर्न अच्छा मिल सकता है.

मार्केट ऐक्सपर्ट की मानें तो टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड पीपीएफ की तुलना में एक अच्छा विकल्प है.

म्यूचुअल फंड में निवेश करें तो ध्यान रखें कि ई.एल.एस.एस. अन्य म्यूचुअल फंडों की तरह बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए इन में निवेश करते समय सावधानी जरूरी है. निवेश से पहले कंपनी के औफर डौक्यूमैंट को पढ़ना और म्यूचुअल फंड के पुराने ट्रैक रिकौर्ड को देखना जरूरी है.

किसी भी म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले थोड़ा होमवर्कजरूर करें. ऐसा न करें कि आप को किसी ने कहा और आप ने उस की बातों पर यकीन कर लिया. आप खुद भी जांचपड़ताल कर लें.

महिलाओं में दिल की बीमारी

दिल की बीमारी का जोखिम महिलाओं पुरुषों में बराबर ही रहता है. हालांकि पुरुषों और महिलाओं में कार्डियोलौजी अलग अलग तरह से काम करता है. पुरुषों और महिलाओं में कार्डियोवैस्क्युलर बीमारियों के साझे जोखिम कारकों (डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, खून में कोलैस्ट्रोल का बढ़ा स्तर और धूम्रपान) के अलावा और भी ऐसे कारक हैं, जो महिलाओं में कार्डियोवैस्क्युलर बीमारी का जोखिम बढ़ा देते हैं.

रजोनिवृत्ति और ऐस्ट्रोजन की हानि

महिलाओं के शरीर में बनने वाला हारमोन ऐस्ट्रोजन हृदय की बीमारियों से प्राकृतिक सुरक्षा मुहैया कराता है. उम्र बढ़ने के साथसाथ प्राकृतिक ऐस्ट्रोजन की कमी से उन में रजोनिवृत्ति के बाद दिल की बीमारी का जोखिम बढ़ सकता है. अगर रजोनिवृत्ति का कारण गर्भाशय या अंडाशय निकालने की सर्जरी की गई हो तो जोखिम और भी बढ़ जाता है.

गर्भनिरोधक गोलियां

खाने वाली कुछ गोलियां दिल की बीमारी का जोखिम पैदा कर सकती हैं खासकर उन महिलाओं में जो धूम्रपान भी करती हैं या जिन्हें उच्च रक्तचाप रहता है. तनाव, मोटापा और अवसाद अच्छेखासे जोखिम कारणों में हैं, जो तुलनात्मक रूप से महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करते हैं.

डायबिटीज की शिकार महिलाओं की कार्डियोवैस्क्युलर बीमारी से मौत का जोखिम डायबिटीज वाले पुरुषों की तुलना में ज्यादा होता है. गर्भावस्था के दौरान अस्थायी डायबिटीज भी महिलाओं में जोखिम बढ़ा देती है.

दिल की कई तरह की बीमारियां महिलाओं में पुरुषों की तुलना में ज्यादा आम हैं. जैसे स्ट्रोक, हाइपरटैंशन, ऐंडोथेलियल डिसफंक्शन और कंजैस्टिव हार्ट फेल्यर.

आज हैल्थकेयर समाज में सब से चर्चित विषय है. अत: महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें और समय पर रोगनिदान हेतु उपचार का चुनाव करें.

-डा. नीति चड्ढा

मैट्रो हौस्पिटल, फरीदाबाद

जायकेदार व्यंजन : सनफ्लौवर सीड्स स्टफ्ड कबाब

सामग्री

1 कप राजमा रात भर पानी में भिगोए

1 हरीमिर्च

1 इंच टुकड़ा अदरक

1 मीडियम आकार का उबला आलू

1/4 कप ब्रैडक्रंब्स

1 बड़ी इलायची

2 छोटी इलायची

4 लौंग

1/2 इंच टुकड़ा दालचीनी

1 छोटा चम्मच जीरा

6-7 धागे केसर

नमक स्वादानुसार

स्टफिंग की सामग्री

3 बड़े चम्मच सनफ्लौवर सीड्स

10-12 काजू

1 छोटा चम्मच खसखस

2 बड़े चम्मच खोया, केवड़ा ऐसेंस और कबाब, सेंकने के लिए थोड़ा सा रिफाइंड औयल

सजावट के लिए प्याज गोल कटा

नमक स्वादानुसार

विधि

राजमा में 2 कप पानी डाल कर प्रैशर कुकर में अच्छी तरह गलने तक पकाएं. पानी सूख जाना चाहिए. खड़े मसालों को हलका सा रोस्ट कर के पीस लें. राजमा में उबला आलू, अदरक व हरीमिर्च डाल कर मिक्सी में पेस्ट बना लें. इस पेस्ट में पिसा खड़ा मसाला व ब्रैडक्रंब्स मिलाएं.

अब भरावन की सामग्री के लिए सनफ्लौवर सीड्स, खसखस और काजू को अलग अलग रोस्ट करें. 1 बड़ा चम्मच सनफ्लौवर सीड्स अलग निकालें और बाकी सीड्स खसखस और काजू को मिला कर पाउडर बना लें. खोए को भी हलका सा सेंक लें. इस में सीड्स पाउडर व भुने सीड्स, नमक और 2 बूंद केवड़ा ऐसेंस मिलाएं.

राजमा मिक्सचर से नीबू के बराबर मिश्रण लें. उस में बीच में थोड़ा सा भरावन भरें और बंद कर के चपटा कर दें. इसी तरह सभी कबाब बनाएं और नौनस्टिक तवे पर थोड़ा थोड़ा तेल डाल कर शैलो फ्राई करें. प्याज के छल्लों के साथ सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: नीरा कुमार

ट्रैंड में हैं डार्क लिप्स

ड्रैसिंग टेबल पर रखी मम्मी की गहरे लाल रंग की लिपस्टिक नेहा को हमेशा से आकर्षित करती थी. मगर दोस्त आंटी कह कर चिढ़ाएंगे, यह सोच कर नेहा कभी उसे हाथ नहीं लगाती थी. मगर वक्त के साथ फैशन के पैमाने बदल चुके हैं. आज स्ट्रौंग डार्क लिपस्टिक शेड्स युवा लड़कियों में हौट ट्रैंड बन चुके हैं.

कौस्मैटोलौजिस्ट, अवलीन खोकर कहती हैं, ‘‘डार्क लिपस्टिक ट्रैंडी लुक देती है और सब से खास बात यह है कि डार्क लिप्स लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं. इसलिए डार्क लिपस्टिक का इस्तेमाल सावधानी के साथ किया जाना चाहिए.’’

वैसे तो मेकअप के कोई ठोस नियमकायदे नहीं होते, मगर बात जब डार्क लिपस्टिक की आती है, तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है.

कैसा है स्किन कौंप्लैक्शन

ध्यान देने वाली बातों में सब से जरूरी है स्किन टोन कलर. भारत में अधिकतर महिलाओं की त्वचा का रंग गेहुआं होता है. इस रंग को वार्म स्किन टोन कहा जाता है. ऐसी स्किन टोन पर प्लम और ब्राउन कलर फैमिली के शेड्स बहुत जंचते हैं. वहीं अगर कूल स्किन टोन है तो रैड कलर के विभिन्न डार्क शेड्स चुने जा सकते हैं.

कौन से शेड्स हैं ट्रैंड में

इस बार डार्क लिपस्टिक के ट्रैंड में नए रंगों की भरमार है. अवलीन कुछ खास रंगों के बारे में बताती हैं, ‘‘ब्लैक करंट, बरगंडी, ब्लड रैड, रस्क, मैरून रैड, ब्लैक चेरी, क्रिमसन और पिंक कटिंग एज कुछ ऐसे शेड्स हैं, जो युवतियों को यूथफुल लुक के साथ ट्रैंडी और ग्लैमरस लुक भी देते हैं.’’

लगाने का सही तरीका

डार्क शेड्स लिपस्टिक यदि सही तकनीक से लगाई जाए तो हर उम्र की महिला पर जंचती है. अवलीन कुछ ऐसी ही तकनीकों के बारे में बताती हैं:

– डार्क लिपस्टिक फेशियल फीचर्स को उभारती है. मगर होंठ अधिक चौड़े या पतले हैं तो यह लुक को बिगाड़ भी सकती है. इसलिए अधिक चौड़े होंठों पर डार्क लिपस्टिक लगाने से पहले ब्लैक लिप लाइनर से लिप कंटूरिंग करें और फिर लिपस्टिक लगा कर अच्छी तरह से ब्लैंडिंग करें. इसी तरह होंठ पतले हैं तो लाइनर से लिपलाइन के ऊपर लाइन ड्रा करें और ब्रश से डार्क शेड्स होंठों पर लगाएं.

– मार्केट में मैट और ग्लौसी दोनों तरह की लिपस्टिक में डार्क शेड्स आते हैं. वैसे तो यह लिपस्टिक किसप्रूफ और ट्रांसफर फ्री होती है, मगर मैट लिपस्टिक का इस्तेमाल कर रही हैं तो पहले अपने होंठों की कंडीशनिंग कर लें.

– फटे होंठों पर कभी डार्क लिपस्टिक न लगाएं वरना पपड़ी हटने के साथ लिपस्टिक भी हट जाएगी और भद्दा सा पैच नजर आने लगेगा.

– फटे होंठों पर टूथब्रश में पैट्रोलियम जैली लगा कर मसाज करें और उस के बाद लिपस्टिक लगाएं.

– यदि रोज देशी घी और शक्कर से होंठों की मसाज की जाए तो होंठों का कालापन तो दूर होता ही है, साथ ही ब्लड सर्कुलेशन भी सही हो जाता है.

कौन सा रंग कब लगाएं

स्किन टोन के हिसाब से डार्क शेड चुनने के साथ ही इस बात का भी खयाल रखना जरूरी होता है कि कौन सा शेड कब लगाया जाए. इस संबंध में अवलीन कहती हैं, ‘‘डार्क लिपस्टिक में भी न्यूड और पेस्टल शेड्स को शामिल किया गया है. इसलिए रैड और ब्राउन शेड्स जहां शाम की कंसीलिंग लाइट्स में अच्छे लगते हैं, वहीं पिंक और बरगंडी कलर दोपहर के समय सौफ्ट लुक देते हैं.’’

नियोन कलर्स भी आजकल ट्रैंड में हैं. वैसे तो ये सौफ्ट कलर्स होते हैं, मगर इन का रिफ्लैक्शन हमेशा डार्क होता है. लिपस्टिक के इन शेड्स को दोपहर के समय इस्तेमाल किया जा सकता है.

मेकअप को कैसे करें बैलेंस

डार्क लिपस्टिक के साथ मेकअप हमेशा बैलेंस होना चाहिए. जाहिर है, जब होंठ डार्क होंगे तो फेशियल मेकअप सौफ्ट होना चाहिए. खासतौर पर आंखों का मेकअप हैवी नहीं होना चाहिए. मगर डार्क शेड्स फेशियल फीचर्स उभारते हैं, इसलिए कंटूरिंग अच्छी तरह होनी चाहिए. होंठों पर डार्क शेड्स और आंखों पर हैवी मेकअप गौडी लुक देता है, साथ ही आंखों और होंठों के अलावा दूसरे फीचर्स भी दब जाते हैं. इसलिए जब भी डार्क लिपस्टिक लगानी हो तो आंखों का मेकअप हलका रखें, साथ ही चेहरे की कंटूरिंग सही तरह से करें. इस से डार्क लिप्स और भी अट्रैक्टिव लगेंगे.

ट्राई करें ये ऐक्सपैरिमैंट

डार्क लिपस्टिक को होंठों के आउटर पार्ट्स पर फिल करें और पाउट एरिया पर उसी कलर का हलका शेड लगाएं और अच्छी तरह ब्लैंड करें.

– डार्क मैट शेड से होंठों को फिल करें और उसी कलर के ग्लिटर को पाउट एरिया पर लगाएं.

– अपर लिप में डार्क शेड और लोअर लिप में लाइट शेड भी इन ट्रैंड हैं.

– डार्क लिपस्टिक के साथ आई मेकअप को सैटल करने के लिए लिपस्टिक के शेड का ग्लिटर आईलाइनर लगा लें. इसे ब्लैक आईलाइनर के साथ ग्लिटर आउटलाइन की तरह भी लगाया जा सकता है.

मां बनने के लिए पिता की जरूरत नहीं : निरुशा निखत

टीवी धारावाहिक ‘आम्रपाली’ से ड्रैस डिजाइनिंग का काम शुरू करने वाली कौस्ट्यूम डिजाइनर निरुशा निखत ने कई फिल्मों में भी ड्रैस डिजाइनिंग का काम किया है. वे अब तक करीब 40 टीवी धारावाहिकों और फिल्मों के लिए ड्रैस डिजाइन कर चुकी हैं. अपने 16 साल के कैरियर में निरुशा 54 अवार्ड जीत चुकी हैं. उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में निम्न मध्यवर्गीय मुसलिम परिवार में जन्मीं निरुशा ने इलाहाबाद से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की.

यहां तक पहुंचना निरुशा के लिए आसान नहीं था. काफी संघर्ष के बाद उन्होंने अपनी मंजिल हासिल की. वे सिंगल मदर हैं. बिना शादी किए 1 बेटे की मां बनी हैं. मां बनने का फैसला लेना उन के लिए आसान नहीं था, फिर भी यह साहसी कदम अपने बल पर उठाया. वे अपनी लाइफ को अपने तरीके से जीना पसंद करती हैं. अपने बेटे मनाल और काम के बीच तालमेल बनाए रखती हैं. वे कैसे यहां तक पहुंचीं, आइए जानें उन्हीं से:

आप की नजर में सफलता क्या है?

संतुष्टि का दूसरा नाम सफलता है. अगर आप अपने काम से संतुष्ट नहीं, तो आप सफल नहीं हैं, क्योंकि संतोष से ही आप को मानसम्मान, धन यानी सबकुछ मिलता है.

यहां तक पहुंचने में पिता का कितना सहयोग रहा?

सब से अधिक मातापिता ने ही सहयोग दिया. उन्हीं के सहयोग से मैं इलाहाबाद से मुंबई आई थी. सिंगल मदर बनने का निर्णय भी मातापिता के सहयोग से ही ले सकी थी. मेरे पिता ए.आर. खान डाक्टर थे, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन्होंने खुद बचपन में बहुत संघर्ष किया था. उन की कहानियों को मैं हमेशा सुनती रहती थी. मेरी मां भी अनाथ थीं और पढ़ीलिखी भी नहीं थीं. उन को सिर्फ उर्दू भाषा आती थी. पिता की कोशिश से उन्होंने 10वीं की परीक्षा शादी के बाद पास की थी. पिता मेरे लिए रियल लाइफ हीरो थे. उन से मैं बहुत प्रेरित थी.

जीवन में कितना संघर्ष रहा?

जब मैं मुंबई आई थी तो मेरी मां ने अपनी सोने की अंगूठी बेच कर मुझे पैसे दिए थे. मैं बचपन से क्रिएटिव थी. बचपन से पेंटिंग का शौक था. मां की साडि़यों को काट कर कुशन कवर बनाती थी. 3 साल तक काफी संघर्ष रहा, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है. जब जो काम मिला करती गई. मेरे लिए यह अच्छा रहा कि जिस दिन मुंबई आई उस के अगले दिन ही मुझे काम मिल गया. उस समय मैं केवल 21 वर्ष की थी. मैं ने अपने फोटो हर जगह भेजे थे. लेकिन पाया कि ऐक्टर बनने का सपना ठीक नहीं, क्योंकि उस समय चैनल कम थे. फिर अधिकतर लोग रात को चर्चा करने के लिए बुलाते थे, जो मुझे पसंद नहीं था. इस के बाद सैल्स गर्ल का काम किया. सैट पर कपड़े ले कर जाती थी. इस से लोगों से परिचय बढ़ा और मैं डिजाइनर बन गई.

पिता की किस बात को अपने जीवन में उतारती हैं?

उन में किसी भी स्थिति में आगे बढ़ते रहने की भावना थी, जिसे मैं ने अपने जीवन में उतारा है. उन्होंने हर कठिन स्थिति में कभी हार नहीं मानी. वे गांव से स्कूल 50 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय कर जाते थे. उन का उद्देश्य बहुत साफ था. मुसलिम परिवार में होते हुए भी उन की सोच बहुत अलग थी. उन्होंने हमें सीख दी कि हम सभी भाईबहनों को किसी भी तरह अपनी पढ़ाई पूरी करनी है.

आप ने सिंगल मदर बनने का इतना बड़ा फैसला कैसे लिया?

2005 में मैं मुंबई में लिव इन रिलेशनशिप में थी. जब शादी करना चाही तो पता चला कि वह शादीशुदा है. जब तक यह समझ पाती कि अब क्या करूं, तब तक मैं प्रैगनैंट हो चुकी थी. रिश्ता टूट गया. सब ने गर्भपात करवाने की सलाह दी, लेकिन मैं ने सोचा कि यह मेरे प्रेम संबंध का नतीजा है, इस में बच्चे का क्या कसूर है? अत: मैं ने फैसला लिया कि मैं इसे जन्म दूंगी. मेरे इस फैसले को मेरे परिवार वालों ने सहयोग दिया. गर्भावस्था के दौरान मैं पूरा समय अकेली थी. बच्चे की डिलिवरी के वक्त मैं ने खुद अपने फार्म पर हस्ताक्षर किए थे. पैसे की भी तंगी थी. लेकिन सब धीरेधीरे ठीक हो गया. अब मेरा बेटा 11 साल का है. इस दौरान मुझे कभी नहीं लगा कि मां बनने के लिए पिता की जरूरत होती है.

मैंने बहुत कुछ गिव अप किया है : सुमन अग्रवाल

3 बेटियों की मां सुमन अग्रवाल न सिर्फ न्यूट्रिशन इंडस्ट्री की जानीमानी हस्ती हैं, बल्कि एक सफल व्यवसायी, लेखिका, गायिका के साथसाथ नृत्य कला में भी महारत हासिल कर चुकी हैं. वेट लौस, वेट मैंटेन, वेट गेन, डाइट फौर बूस्टिंग इम्यूनिटी, चिल्ड्रन न्यूट्रिशन जैसी सर्विसेज अपने जरीए लोगों तक पहुंचाने के लिए 2001 में उन्होंने मुंबई और कोलकाता में सैल्फ केयर सैंटर की शुरुआत की. स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए उन्होंने 3 किताबें- ‘द डौंट डाइट डाइट कुकबुक’, ‘अनजंक्ड हैल्दी ईटिंग फौर वेट लौस’ व ‘सुपर किड हैल्दी ईटिंग फौर किड्स ऐंड टीन’ भी लिखीं. मां बनने के बाद कैरियर की शुरुआत और सफलता पाने वाली सुमन की जिंदगी को आइए और करीब से जानें:

आप ने बतौर न्यूट्रिशनिस्ट एवं फिटनैस ट्रेनर शुरुआत कैसे की और आप का सफर कैसा रहा?

बचपन से मेरी इस क्षेत्र में रुचि रही है. 12-13 साल की उम्र से मैं हैल्थ और बीमारियों से जुड़ी किताबें पढ़ती थी, लेकिन मेरी शादी 20 साल की उम्र में ही हो गई और फिर बच्चे हो गए, इसलिए इस ओर बढ़ने का मौका नहीं मिला. अपनी तीसरी बेटी को जन्म देने के बाद मैं ने 1 साल का फूड ऐंड न्यूट्रिशन डिप्लोमा किया. मुझे हमेशा लगता था कि कुछ खाने से अगर बीमारी हो सकती है, तो खाने के जरीए ठीक भी हो सकती है. मैं सही थी. कोर्स के दौरान मुझे इन्हीं बातों की जानकारी मिली. जब मेरी छोटी बेटी 3 साल की हो गई तब मैं ने औफिस जौइन किया. धीरेधीरे मेरे पास क्लाइंट आने लगे और मेरा व्यवसाय बढ़ता गया. आम लोगों के साथसाथ आज सैलिब्रिटीज और इंडस्ट्रिलिस्ट भी मेरे क्लाइंट हैं. मैं ने शुरुआत अपने पति के औफिस के एक छोटे से कैबिन से की थी, लेकिन आज मेरा सैंटर 5000 स्क्वेयर फुट में फैला है. पहले मेरे पास सिर्फ एक कर्मचारी था और अब 50 हैं.

पुरुषप्रधान समाज में अपने लिए स्थान बनाना कितना मुश्किल रहा?

मैं खुश हूं कि इन क्षेत्रों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या अधिक है, इसलिए मुझे बतौर प्रतिस्पर्धी बहुत कम पुरुषों का सामना करना पड़ा. हां, लेकिन शुरुआती दौर में मेरे साथ ऐसा बहुत होता था कि जब मेरे पुरुष दोस्त किसी पुरुष से मेरी तारीफ करते और उसे मेरे पास ट्रीटमैंट के लिए जाने को कहते तो वे यह कह कर टाल देते कि एक महिला पुरुष को कैसे ठीक कर सकती है. उन की यह प्रतिक्रिया मुझे थोड़ी देर के लिए निराश कर देती थी, पर मैं सारी चीजों को नजरअंदाज कर अपना पूरा ध्यान काम पर लगाती और आज परिणाम यह है कि मेरे पास जितनी महिला क्लाइंट हैं उतने ही पुरुष भी हैं.

आप के व्यक्तित्व को निखारने में आप के पिता की क्या भूमिका रही है?

सच कहूं तो मेरे अंदर न्यूट्रिशनिस्ट का बीज बोने वाले मेरे पिता ही थे. दरअसल, वे बहुत ज्यादा हैल्थ कौंशस थे. हमारा पूरा परिवार यानी 6 लोग, 4 भाईबहन और ममीपापा एकसाथ ब्रेकफास्ट करते थे, जो 1 घंटा चलता था. उस दौरान मेरे पापा इसी विषय पर बात करते कि क्या हैल्दी है और क्या नहीं. हमें क्या खाना चाहिए क्या नहीं. हालांकि वे इस क्षेत्र से नहीं थे, लेकिन उन की रुचि बहुत थी. वे स्वास्थ्य से जुड़ी ढेरों किताबें घर ले आते थे, जिन्हें मैं पढ़ती थी और इस तरह मेरी रुचि इस क्षेत्र में बढ़ती गई. मेरे पापा बहुत ही सपोर्टिव फादर रहे हैं. उन्होंने हम चारों भाईबहनों को फ्रीडम दे रखी थी. कभी हम पर बेमतलब की पाबंदी नहीं लगाई.

आज आप किस तरह के चैलेंजेस फेस कर रही हैं?

मेरे लिए घरपरिवार और बच्चों को संभालते हुए यहां तक पहुंचाना काफी मुश्किल रहा है. मैं ने काफी स्ट्रगल किया है. बहुत कुछ गिव अप किया है. मैं ने कभी टीवी नहीं देखा, कभी कोई किट्टी पार्टी जौइन नहीं की. मेरा फोकस मेरा परिवार और काम रहा है. 2004 में मैं ने ब्रेन सर्जरी भी करवाई थी. दरअसल, मेरे चेहरे के बाईं ओर के हिस्से पर मेरा कंट्रोल नहीं था. वह लगातार हिलता रहता था, जिस की वजह से मैं स्माइल भी नहीं कर पाती थी. नतीजतन मैं बहुत टौर्चर होती थी. डिप्रैशन भी मुझ पर हावी होने लगा था. लेकिन मैं ने हिम्मत नहीं हारी. अपनी रिपोर्ट्स देशविदेश भेजीं. आखिरकार जरमनी में जा कर सर्जरी करवाई जो कामयाब रही.

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