आलिया की अजीबोगरीब आदत के बारे में जानते हैं आप!

बॉलीवुड एक्टर वरुण धवन ने आलिया भट्ट की आदत के बारे में मजेदार बातें बताई हैं. अभिनेता वरुण धवन का कहना है कि ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ में उनकी सह-कलाकार आलिया भट्ट को दुनियाभर से किस्म-किस्म की चायपत्तियां इकट्ठा करने का जुनून सवार है. ‘यार मेरा सुपरस्टार सीजन 2’ में फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ के प्रमोशन के लिए पहुंचे वरुण ने आलिया की इस आदत के बारे में बताया.

शो की होस्ट ने पूछा कि आलिया को दुनियाभर से लिपस्टिक, जूते और बैग को छोड़कर क्या खरीदना पसंद है? इस पर वरुण ने कहा, ‘चाय’. उन्होंने कहा, ‘आलिया दुनियाभर से चाय इकट्ठा करती है. वह सिर्फ ग्रीन-टी ही नहीं, बल्कि हर तरह की चाय खरीदती है. उसे और उसकी बहन को व्हाइट-टी पसंद है. यहां तक कि मैंने एक बार तोहफे में उसे व्हाइट-टी ही दी थी.’

फिल्म की शूटिंग के दौरान की घटना को याद करते हुए वरुण ने कहा, ‘जब हम सिंगापुर में थे, तो उनकी बहन शाहीन भी वहां थीं. हम सभी कुछ लोगों के साथ बाहर गए, लेकिन सिर्फ वही दोनों नहीं गईं. उन्होंने कहा कि वह चाय खरीदेंगी. मैं सोच रहा था कि आखिर सिंगापुर से ये चाय क्यों लेना चाहती हैं? इसके बाद हम चाय की दुकान पर गए, जहां अलग अलग तरह की चायपत्तियां थीं. मैं वहां टी-बार देखकर एट्रैक्ट हुआ और वो काफी मजेदार था.

..तो क्या टीवी पर वापसी करेगा शक्तिमान

‘शक्तिमान’ के रूप में कभी बच्चों को हैरत व खुशी से भर देने वाले टीवी अभिनेता मुकेश खन्ना इस धारावाहिक को एक बार फिर छोटे पर्दे पर लाना चाहते हैं. अभिनेता कहा, “पिछले सप्ताह मैं दो स्कूलों के कार्यक्रमों में शामिल हुआ था, जहां मुझे बहुत प्यार मिला और बच्चे मेरे लिए जोर-जोर से ‘शक्तिमान’ चिल्ला रहे थे. इसलिए मुझे लगता है कि सुपरहीरो ‘शक्तिमान’ श्रृंखला की फिर से छोटे पर्दे पर वापसी होनी चाहिए. दूरदर्शन इसके लिए तैयार है, लेकिन मैं चाहता हूं कि इस श्रृंखला का प्रसारण सैटेलाइट चैनलों पर हो.”

चिल्ड्रन फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएफएसआई) के अध्यक्ष खन्ना ने फिल्म ‘बाहुबली’ का उदाहरण देते हुए कहा कि जहां एक ओर भारत में बड़े बजट की फिल्में बन रही हैं, वहीं बच्चों के विषयों पर आधारित फिल्में बनाने के लिए लोग तैयार नहीं हैं, क्योंकि निर्माताओं को लगता है कि वे ऐसी फिल्मों से ज्यादा कमाई नहीं कर सकेंगे.

बकौल खन्ना, इसलिए वह इस साल मनोरंजक और सिनेमाघरों में पैसा कमाने में सक्षम फिल्मों को रिलीज होने की अनुमति प्रदान कर रहे हैं.

खन्ना ने ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के नाम पर कुछ भी बोलने का विरोध किया. उन्होंने कहा, “जो लोग स्वतंत्रता के नाम पर बच्चों को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं. मैं ऐसे लोगों की कड़ी निंदा करता हूं.”

घुमक्कड़ों की चहेती दिल्ली

दिल्ली पिछले कई सालों से बतौर राजधानी देश की सियासत का केंद्र तो है ही, साथ में अपने ऐतिहासिक महत्त्व के चलते देशीविदेशी पर्यटकों को भी लुभाती है. अपने 102 साल पूरे कर चुकी दिल्ली आज जितनी पुरानी है उतनी आधुनिक भी है. इन सालों में इस ने सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में बेहतर परिवर्तनों के साथ देसी विदेशी पर्यटकों के दिलों में खासी जगह भी बनाई है.

दिल्ली में पर्यटन का मजा ही कुछ और है. यहां की प्राचीन इमारतें, लजीज व्यंजन और फैशन पर्यटकों को विशेषतौर पर आकर्षित करते हैं. यहां घूमने के लिए जहां कुतुब मीनार, लाल किला, पुराना किला, इंडिया गेट, चिड़ियाघर, डौल्स म्युजियम, जामा मसजिद, चांदनी चौक, नई सड़क, संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, राष्ट्रीय संग्रहालय, प्रगति मैदान, जंतरमंतर, लोटस टैंपल, बिड़ला मंदिर, अक्षरधाम मंदिर हैं वहीं पुरानी दिल्ली की परांठे वाली गली के परांठे, लाजपत नगर की चाट और शौपिंग व इंटरटेनमैंट के लिए शानदार मौल व मल्टीप्लैक्स भी हैं.

ऐतिहासिक धरोहरें

इंडिया गेट : दिल्ली में होने वाली ज्यादातर फिल्मों की शूटिंग का पहला शौट इंडिया गेट में ही संपन्न होता है. राजपथ पर स्थित इंडिया गेट को दिल्ली का सिग्नेचर मार्क भी कह सकते हैं. अन्ना के अनशन और आंदोलन के दौरान भी इस जगह ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी. इस का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में मारे गए 90 हजार भारतीय सैनिकों की स्मृति में कराया गया था. 160 फुट ऊंचा इंडिया गेट दिल्ली का पहला दरवाजा माना जाता है. जिन सैनिकों की याद में यह बनाया गया था उन के नाम इस इमारत पर अंकित हैं. इस के अंदर अखंड अमर जवान ज्योति जलती रहती है. दिल्ली का पर्यटन यहां आए बिना अधूरा है.

पुराना किला : पुराना किला आज दिल्ली का लोकप्रिय पिकनिक स्पौट बन कर उभर रहा है. यहां हरी घास और पुराने खंडहर हैं तो वहीं एक बोट क्लब भी है जहां सैलानी अपने परिवार के साथ नौकायन का आनंद उठाते हैं. इस में प्रवेश करने के 3 दरवाजे हैं. हुमायूं दरवाजा, तलकी दरवाजा और बड़ा दरवाजा. हालांकि वर्तमान में सिर्फ बड़े दरवाजे को प्रयोग में लाया जाता है.

जंतरमंतर : यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति का नायाब नमूना है. जंतरमंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है. ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं. यहां बना सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से समय और ग्रहों की स्थिति की सूचना देता है.

कुतुब मीनार : इस मीनार को देख कर स्मृतिपटल पर पीसा की झुकी हुई मीनार का चित्र उभर कर सामने आता है. भले ही इस मीनार के अंदर जाने के दरवाजे पर्यटकों के लिए बंद करा दिए गए हों पर यहां आने वाले सैलानियों की तादाद में कोई कमी नहीं आई है. यह मीनार मूल रूप से सातमंजिला थी पर अब यह पांचमंजिला ही रह गई है. इस मीनार की कुल ऊंचाई 75.5 मीटर है और इस में 379 सीढि़यां हैं. परिसर में और भी कई इमारतें हैं जो अपने ऐतिहासिक महत्त्व व वास्तुकला से सैलानियों का मन मोहती हैं. मीनार के करीब में चौथी शताब्दी में बना लौहस्तंभ भी दर्शनीय है.

दिल्ली के गार्डन

दिल्ली शहर ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जितना मशहूर है उतना ही दुर्लभ किस्म के पुष्पों से भरे उद्यानों के लिए भी जाना जाता है. यहां कई बेहतरीन गार्डन हैं जहां आ कर लगता है मानो किसी हिल स्टेशन पर आ गए हों. मुगल गार्डन की बात करें तो यहां तकरीबन 125 प्रकार के गुलाबों की खुशबू आप के दिल में उतर जाएगी. राष्ट्रपति भवन में स्थित यह गार्डन प्रकृतिप्रेमी पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना है.

13 एकड़ में फैले इस विशाल गार्डन में मुगलकाल व ब्रिटिशकाल की शैली का अद्भुत संगम परिलक्षित होता है. पर्ल गार्डन और बटरफ्लाय गार्डन जैसे कई बगीचों से मिल कर बना मुगल गार्डन 15 फरवरी से 15 मार्च तक आमजन के लिए खुलता है.

इसी तरह लोदी गार्डन भी खूबसूरत फौआरों, तालाब व रंगबिरंगे फूलों से सजा है. गार्डन में राष्ट्रीय बोनसाई पार्क भी है. कभी लेडी विलिंगटन पार्क के नाम से मशहूर रहे लोदी गार्डन में पेड़ों की विभिन्न प्रजातियों समेत विविध किस्म के पक्षियों को देखना मजेदार अनुभव होता है. लोदी गार्डन के अलावा तालकटोरा गार्डन में रंगबिरंगे फूलों के साथसाथ स्टेडियम भी है जहां खेलों और कार्यक्रमों का समयसमय पर आयोजन होता रहता है.

संग्रहालय : शिल्प संग्रहालय यानी क्राफ्ट म्यूजियम में भारत की समृद्ध हस्तशिल्प कला को निहायत खूबसूरती से सजाया गया है. यहां अलगअलग जगहों से आए शिल्पकार प्रदर्शनियों में भाग लेते हैं. यहां आदिवासी और ग्रामीण शिल्प व कपड़ों की गैलरी हैं. अगर आप को हर राज्य के आर्टिस्टों के हाथों से बनी चीजें देखने और खरीदने का शौक है तो प्रगति मैदान के गेट नंबर 2 के पास स्थित क्राफ्ट म्यूजियम आप के लिए ही है. आम विजिटर के लिए यहां प्रवेश हेतु 10 रुपए का टिकट है जबकि स्कूल और फिजिकली डिसएबल्स के लिए कोई टिकट नहीं है. सोमवार को यह बंद रहता है.

शिल्प संग्रहालय के पास ही डौल संग्रहालय भी है. विभिन्न परिधानों में सजी गुडि़यों का यह संग्रह, विश्व के बड़े संग्रहों में से एक है. बहादुरशाह जफर मार्ग पर नेहरू हाउस की बिल्डिंग में स्थित इस संग्रहालय में 85 देशों की करीब साढ़े 6 हजार से अधिक गुडि़यों का अद्भुत संग्रह है. वहीं, 1960 में स्थापित राष्ट्रीय संग्रहालय में लघु चित्रों का संग्रह है. इस में बनी संरक्षण प्रयोगशाला में छात्रों को ट्रेनिंग दी जाती है.

साउथ दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित रेल संग्रहालय भारतीय रेल के 140 साल के इतिहास की अभूतपूर्व झांकी पेश करता है. यहां रेल इंजनों के अनेक मौडल सहित देश का प्रथम रेल मौडल और इंजन भी देखा जा सकता है. यहां बच्चों के लिए एक टौय ट्रैन भी है.

चिड़ियाघर : दिल्ली का चिड़ियाघर पुराने किले के नजदीक है. इस विशाल चिड़ियाघर में जानवरों और पक्षियों की हजारों प्रजातियां और सैकड़ों प्रकार के पेड़ हैं. यहां दुनियाभर से लाए गए पशु पक्षियों को देखना रोचक लगता है. यह गर्मियों में सुबह 8 से शाम 6 बजे तक और सर्दियों में सुबह 9 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है.

खाना, खरीदारी और मनोरंजन स्थल : दिल्ली में घुमक्कड़ों के लिए सिर्फ स्मारक और म्यूजियम ही नहीं हैं बल्कि मौजमस्ती, शौपिंग, इंटरटेनमैंट के साथ खानेपीने के भी अनेक विकल्प मौजूद हैं. बात खरीदारी की करें तो सब से पहला नाम कनाट प्लेस यानी सीपी मार्केट का आता है. दिल्ली के इस केंद्र बिंदु में सभी देशीविदेशी ब्रैंड्स के शोरूम तो हैं ही, साथ ही अंडरग्राउंड पालिका बाजार भी है, जो पूरी तरह से वातानुकूलित है. खरीदारी के साथ यहां खाने का भी पूरा इंतजाम है.

यहां के इनर सर्किल में लगभग सभी अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंड के कपड़ों के शोरूम, रेस्टोरैंट और बार हैं. पास में ही जनपथ बाजार है जहां कई तरह का एंटीक सामान मिल जाता है.

इसी तरह पुरानी दिल्ली का चांदनी चौक इलाका, जहां विदेशी सैलानियों की भारी तादाद दिखती है, खानेपीने और खरीदारी के लिए मुफीद जगह है. दिल्ली आने वाले किसी भी व्यक्ति की यात्रा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक वह चांदनी चौक न आए. यहां की परांठे वाली गली में तो जवाहर लाल नेहरू से ले कर अक्षय कुमार जैसी हस्तियां परांठों का लुत्फ उठा चुकी हैं.

सुबह जल्दी उठना है परेशानी

ये तो सभी जानते हैं कि रोज सुबह जल्दी उठने के बहुत सारे फायदे होते हैं. सुबह जल्दी उठने वाले लोग आम तौर पर ज्यादा सक्रिय और अधिक उत्पादक होते हैं. सुबह जल्दी उठने से आप स्वस्थ, धनी, और बुद्धिमान बनते है. लेकिन क्या हमेशा आप सुबह जल्दी उठ पाते हैं. सुबह बहुत जल्दी उठना तो जैसे अपने आप में एक भारी काम है.

इस बात में तो शत-प्रतिशत सच्चाई है कि सुबह जल्दी उठने से आपके शरीर को और आपके जीवन शैली को कई फायदे होते हैं. सुबह जल्दी उठने की आदत आपके शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी अच्छा रखती है और आपको आपके आगे के जीवन में अधित उत्पादक और सफल बनाती है.

अगर आप रोज रात को ये सोच कर सोते हैं कि सुबह जल्दी उठ ही जाएंगे, पर अक्सर या हर रोज ऐसा हो नहीं पाता तो, यहां हम आज हम आपको हर रोज सुबह जल्दी उठने के कुछ अच्छे और उपयोगी टिप्स व सुझाव बताने जा रहे हैं.

1. सबसे आसान और सर्वविदित उपाय जो सबसे सामान्य भी है कि सुबह जल्दी उठने के लिए अलार्म सेट कर लें. ये आपकी सहायता करेगा.

2. रोजाना उठने के समय से 10-15 मिनट पहले जागें और दिन ब दिन ये कोशिश जारी रखें. ये खुद को समायोजित करने में सहायता करेगी.

3. अगर अलार्म लगाने और आपकी बड़ी अलार्म क्लॉक से भी आपको जल्दी उठने में दिक्कत होती है तो आप एक उपाय ये भी कर सकते हैं कि आपके परिवार के सदस्य या जहां भी आप रहते हैं वहां जो भी व्यक्ति सुबह जल्दी उठ जाता है, उनसे उठाने के लिए बोलें.

4. सोने और सुबह जागने की आदत को नियमित रखें. सोने और उठने के लिए एक रेगुलर समय सेट करें और सप्ताहांत हो या छुट्टी का दिन, ये आदत बरकरार रखें. ये कड़ा शेड्यूल आपको सुबह जल्दी उठने में खासी मदद करेगा.

5. हर रोज एक पर्याप्त नींद लें ताकि आप हमेशा तरोताजा महसूस कर सकें, हर रोज कम से कम 7 से 8 घंटे की नींद लेना उचित माना गया है और ऐसा होगा तो आपको सुबह-सुबह जल्दी उठने में भी आलस नहीं लगेगा.

बिजनैस वर्ल्ड का नया मंत्र टेक इट ईजी

मुंबई में किसी भी टैलीविजन चैनल के दफ्तर में जिधर भी नजर जाती है, सब की पोशाकें स्मार्ट कैजुअल दिखती हैं. जींस, टीशर्ट, लैगिंग्स, टौप्स आदि विभिन्न रंगों की पोशाकें चारों तरफ दिखाई पड़ती हैं. पूछने पर पता चला कि ऐसी पोशाक वे हर दिन पहनते हैं. वजह बहुत साधारण थी. ऐसी पोशाक को न तो प्रैस की जरूरत होती है, न ही अधिक रखरखाव की. मीटिंग से ले कर आउटडोर वर्क, हर जगह कैजुअल पोशाक आसानी से चलती हैं. अधिक समय तक इसे पहने रहने पर थकान का अनुभव भी नहीं होता.

इतना ही नहीं, किसी भी ऐड एजेंसी के व्यक्ति, कितने ही टौप पोस्ट पर क्यों न हों, जींस और टीशर्ट ही पहनना पसंद करते हैं. एक मीटिंग के दौरान स्टार टीवी की वाइस प्रैसिडैंट जब कैजुअल ड्रैस के साथ मिलने आईं तो यह समझना मुश्किल था कि वे इतनी बड़ी पोस्ट पर बिना फौर्मल ड्रैस के कैसे काम कर रही हैं.

सालों से चले आ रहे ड्रैस कोड जब मौडर्न बिजनैस पैटर्न के साथसाथ बदले गए तो बहुत सारे दिग्गजों ने नाकभौं सिकोड़े. दरअसल, आज के यंग बिजनैस फाउंडर्स ने पुरुषों और महिलाओं को बिना ड्रैस कोड के औफिस में आने की इजाजत दी. वे सभी कर्मचारियों को उन के फर्स्ट नाम से बुलाने और उन के साथ टीम बना कर काम करने में विश्वास करने लगे. उन का मानना है कि ऐसा करने से वे हर कर्मचारी के नजदीक होंगे और ऐसे में उन की सोच व कंपनी का भरोसा उन्हें आगे बढ़ने में मददगार साबित होगा. यह देखा भी गया कि कैजुअल ड्रैस में उन के व्यवहार भी काफी अच्छे थे, वे किसी विषय पर खुल कर बात करने में घबराते नहीं थे.

ड्रैस कोड को हटाने में पहले कई बड़ी कंपनियों ने पहल की और पाया कि फौर्मल ड्रैस से अधिक कैजुअल ड्रैस टीम कल्चर को आगे बढ़ाती है. इस के अलावा न्यू ड्रैस कोड लोगों को काफी आकर्षित करता है. दूसरी तरफ कंपनी के बौस भी इस संस्कृति को अधिक महत्त्व देने लगे. यह सही है कि कुछ खास अवसरों पर फौर्मल ड्रैस कोड जरूरी होता है. इस से आप की अहमियत बढ़ती है. लेकिन जरूरत के बिना फौर्मल ड्रैस आज की युवा पीढ़ी पसंद नहीं करती. जिस का समर्थन कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी भी करते हैं. उन के हिसाब से वयस्कों के अनुभव और युवा ऊर्जा से ही उन की कंपनी आगे बढ़ सकती है और ऐसा देखा भी गया है कि युवा अधिकतर हलकेफुलके परिवेश को पसंद करता है. ऐसे में उन्हें ड्रैस पहनने की आजादी है. यह परिवर्तन केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में आजकल चल रहा है. जरमनी, फ्रांस, अमेरिका आदि सभी स्थानों पर इस का प्रभाव देखा जा रहा है.

सहजता में सफलता

ड्रैस कोड केवल कौर्पोरेट सैक्टर में ही नहीं, बल्कि राजनेता से ले कर सभी इसी का अनुसरण करते हैं. राजनेता मानते हैं कि उन का खादी कुरता और चूड़ीदार पजामा, उन की सहजता, गतिशीलता और ‘डाउन टू अर्थ’ स्वभाव को दर्शाते हैं. लेकिन आज की नईर्पीढ़ी के युवा नेता इस से हट कर जींस और टीशर्ट में भी नजर आते हैं, क्योंकि वे इस पहनावे से अपनेआप को आम लोगों के करीब समझते हैं. इधर, कौर्पोरेट सैक्टर के  बौस मौडर्न ड्रैस कोड के द्वारा यह दिखाना चाहते हैं कि उन की कंपनी उबाऊ नहीं, जैसा लोग समझते हैं. इस बदलाव से व्यवसाय को बढ़ाने का भी काफी मौका मिल रहा है. आजकल यूनिवर्सिटी में स्नातकों की कमी नहीं है और वह जमाना गया जब एक नामचीन कंपनी में काम करने के लिए युवा लालायित रहते थे. आज के युवा वहां काम करना पसंद करते हैं जहां उन्हें काम करने की आजादी हो. कुछ कंपनियों के बौस भी अपनेआप को यंग और डाइनेमिक समझते हैं और अपनेआप को वे वैसा ही सिद्ध करने की कोशिश करते हैं.

जब पहली बार इनफोसिस के विशाल सिक्का टीशर्ट और जींस में अपने कर्मचारियों को संबोधित करने आए तो सभी चौंक गए. लेकिन सब को उन का यह बदलाव अच्छा लगा. क्योंकि इस से पहले कर्मचारियों को हफ्ते में केवल एक दिन कैजुअल पहनने की इजाजत थी. इस के बाद उन्होंने अपने कर्मचारियों को कैजुअल पोशाकें हर दिन पहनने की आजादी दी. इनफोसिस के इस कदम के कुछ दिनों के  बाद हिंदुस्तान यूनिलीवर ने भी अपने कर्मचारियों को कैजुअल पोशाक पहनने की आजादी दी और पाया कि कंपनी में इस का असर सकारात्मक दिखा.

इस का एक और उदाहरण यशराज फिल्म्स में दिखाई पड़ता है जहां फिल्मकार यश चोपड़ा हमेशा फौर्मल ड्रैस में ही अपने औफिस में आते थे लेकिन अब उन के बेटे आदित्य चोपड़ा जींस टीशर्ट में औफिस आते हैं. उन के सभी कर्मचारी स्मार्ट कैजुअल में औफिस आते हैं. आदित्य चोपड़ा अपने दफ्तर में कई बार ट्रैक सूट, टीशर्ट में मिलते हैं. उन के हिसाब से वे अपनेआप को नए माहौल और यूथ से ऐडजस्ट करने के लिए ऐसा करते हैं. वे मानते हैं कि जितना वे सहज होंगे उतना ही वे अपने काम में सफल हो सकेंगे. टी सीरीज के मालिक भूषण कुमार और अभिनेता अनिल कुमार भी अपने दफ्तरों में अकसर कैजुअल्स में दिखते हैं.

इस चलन की शुरुआत की बात करें तो सालों पहले जब एक मीडियाकर्मी ने अभिनेता गोविंदा को चीची कर संबोधित किया, तो वे भड़क उठे और इंटरव्यू देने से मना कर दिया था, क्योंकि उन्हें इस तरह अभद्र तरीके से बुलाया जाना पसंद नहीं था. वहीं, आज की प्रियंका चोपड़ा अपनेआप को ‘पिग्गी चोप्स’ कहलाने से नाखुश नहीं होतीं. सलमान खान को ‘सल्लू’ बुलाए जाने पर वे उत्साहित हो जाते हैं. शाहरुख खान अपने सहयोगियों के बीच हमेशा एसआरके और रवीना टंडन ‘राव्स’ नाम से जानी जाती हैं.

स्मार्ट कैजुअल अब बिजनैस वर्ल्ड का मंत्र बन गया है जो पुराने ड्रैस कोड से थोड़ा हट कर है. इस में पोशाक थोड़ी स्टाइलिश होने के साथसाथ आरामदायक भी है. यह घर पर पहने जाने वाले कपड़ों से थोड़ी मौडर्न लुक की होती है. इन कपड़ों में स्लीवलैस टौप, जींस, स्कर्ट्स, फ्रौक आदि महिलाओं के  लिए होती हैं जबकि पुरुषों के लिए टीशर्ट, जैकेट, और जींस अधिक पहनी जाती हैं. इस कैजुअलनैस से कई फर्मों की सोच में बदलाव आया है. केवल ड्रैस कोड ही नहीं, बल्कि उन की बातचीत और व्यवहार में भी परिवर्तन आया है.

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कैजुअलनैस कंपनी के आगे बढ़ने की दिशा में ठीक है पर समय और अवसर के अनुसार इस में बदलाव की भी आवश्यकता होती है, क्योंकि अगर किसी को उस के फर्स्ट नाम या शौर्ट नाम से किसी खास जगह पर बुलाया जाता है तो कुछ लोग, जो इस तरह के व्यवहार से परिचित नहीं होते, उस जगह पर अपनेआप को अकेला समझ सकते हैं, या उन्हें कुछ अजीब भी लग सकता है.

साधारण से बाथरूम को बनाएं ‘शाही हमाम’

बाथरूम में आप कितना वक्त बिताती हैं? अगर आपको जल्दबाजी है, तो ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट. कुछ लोग तो 2-3 मिनट में नहाकर निकल जाते हैं, वहीं कुछ लोग अपनी फुल बॉडी ग्रूमिंग के लिए बाथरूम में घंटों बिताते हैं. पर इस बात से बहुत से लोग सहमत होंगे कि ज्यादा से ज्यादा शांति और सुकून का वक्त भी हम बाथरूम में ही बिताते हैं, क्योंकि जब हम बाथरूम में होते हैं तब हमें कोई डिस्टर्ब नहीं करता, जब तक कोई इमरजेंसी न हो. और ऐसे में हमारे दिमाग में कई तरह के आइडिया भी आते हैं.

बदलते वक्त के साथ लिविंग रूम और डाइनिंग स्पेस का इंटीरियर तो बदला ही है, पर इसके साथ ही किचन और बाथरूम में भी नए तरह के प्रयोग किए जाने लगे हैं. अपने नोर्मल से बाथरूप को लग्जरी टच देकेर आप रोयाल लुक दे सकती हैं. जरूरत है तो बस जरा सी थींकिंग की और ऐक्ससरीज की. खूबसूरत दीवारों और बड़े से बाथटब के अलावा भी ऐसी कई चीजें हैं जिससे आपका बाथरूम शाही बाथरूम लगेगा.

दीवारों में भरे नए रंग

सबसे पहले दीवारों को शाही रंगों से रंगें. आप दीवारों पर अपने आइडिया के अनुसार जो एक्सपेरीमेंट करना चाहे कर सकती हैं. बाथरूम को लग्जरी टच देने के लिए आप इसमें कैंडल्स और इंडोर प्लांट्स भी लगा सकती हैं. ध्यान रखें की ज्यादा तड़क-भड़क न हो. बाथरूम में अपने आइडिया लगाएं पर हिसाब से लगाएं.

एक्सेसरीज

एक्सेसरी अलग ही तरह बाथरूम की रंगत जिस तरह निखारते हैं. अपनी स्पेस और पसंद के मुताबिक आप ग्लास, लेदर या फिर फाइबर बेस्ड मेटीरयिल के एक्सेसरीज को बाथरूम में सजा सकती हैं.

बाथरूम को मेटैलिक लुक देने के लिए लेदन में ब्रॉन्ज, ब्राउन, सिल्वर या मल्टी यूटिलिटी बॉक्सेस का इस्तेमाल भी कर सकती हैं. बॉथरूम को नया रूप रंग देने के लिए मौजूदा समय में एक्सेसरीज और प्रोडक्ट्स की कोई कमी नहीं है. बस आपके एक्सेसरी का सेलेक्शन आपके बाथरूम के अनुसार होना चाहिए.

ग्लास को दीजिए बाथरूम में ऐंट्री

ग्लास किसी भी कमरे की रंगत को निखार देता है. अपने बाथरूम को रोयाल टच देने के लिए ग्लास एक बेहतरीन थीम है. इससे आप बाहर का नजारा तो देख ही सकती हैं साथ ही आपका छोटा बाथरूम भी ज्यादा छोटा नहीं लगता. खिड़कियों और काउंटरटॉप्स के लिए आप फ्रॉस्टेड ग्लास चुन सकती हैं. ग्लास थीम हो तो टिंटेड ग्लास का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.

वुड

बाथरूम को शाही लुक देने के लिए वुडन डेकोर बहुत ज्यादा पॉपुलर है. वुडन शेल्फ से लेकर रिलेक्सिंग स्टूल तक, आप वुडन डेकोर से अपने बाथरूम को नया लुक दे सकती हैं. वुडन फीनिशिंग वाला टब और शावर हेड भी आजकल खूब फेमस हैं.

बाथ टब हो कैसा ?

आज बाजर में अलग अलग तरह के बाथ टब मिलते हैं. बॉडी मसाज करने वाले जकूजी भी आसानी से मिल जाते हैं. यही नहीं दो से तीन लोगों के लिए जकूजी आराम से मिल जाता हैं. इसके अलावा फ्री स्टेंडिंग और स्पा स्पेशल बाथ टब्स भी उपलब्ध हैं. वुडन थीम बाथरूम के साथ फ्री स्टेंडिंग बाथ टब बढ़िया रहेगा.

पर्दे

आमतौर पर आप प्लेन या प्रिंटेड पर्दे लगाते हैं. पर आप अपने बाथरूम में कई तरह के पर्दे लगा सकती हैं. शाही घरों जैसे पर्दे, थॉट्स या कोट्स लिखे हुए पर्दे, हैंड-रिटेन पर्दों से आप अपने बाथरूम को ऐसा बना सकती हैं कि एक बार जो आए उसे वापस जाने का मन न करे.

खुद बनें अपने प्रेरक

खुद को प्रेरणा देना, खुद को सलाह देना बहुत सुंदर परिकल्पना है. कैसी भी स्थिति आ जाए खुद को राय देना और अपनेआप से मशविरा करना बहुत सकारात्मक रिजल्ट दिलवा देता है. आप को बता दें कि हवा जब दीपक की लौ से टकराती है तब वह लौ चाहे छोटी सी भी क्यों न हो, हवा से संवाद करती है. हवा को आगे जाने को कहती है. फिर और अधिक प्रकाश के साथ जगमगाने लगती है. कहने का तात्पर्य यह है कि प्रकृति मनुष्य रूप देती ही इसलिए है ताकि इंसान हजारों बाधाओं को पार कर जीवन में अपने लिए एक मुकाम हासिल कर सके.

एक दार्शनिक का यह मत है कि जीवन में कभी भी, कहीं भी प्रेरणा की कमी नहीं होती. बात तो तब अनूठी होगी जब इंसान अपने ऊपर फेंके गए पत्थरों से एक खूबसूरत इमारत बना ले और उस को भी प्रेरक रूप दे दे.

एक कवि ने कल्पना की है,

‘ढूंढ़ सकते हैं रत्न समंदर की अथाह गहराई से,

खोज सकते हैं नए सितारे इस अबूझे अंतरिक्ष में,

आखिर मुश्किल क्या है उस के लिए जो,

हर बात में अपने लिए प्रेरणा का दर्शन करता है.’

 यह घटना सुप्रसिद्ध विचारक लुईस पाश्चर ने लिखी है कि एक बार एक गरीब किसान महात्मा गांधी के पास आया और उस ने उन्हें बताया कि वह बिहार के चंपारण गांव से आया है जहां काश्तकारों को अंगरेज जमींदारों ने बहुत दुखी कर रखा है. गांधीजी बड़े अचंभे में पड़ गए कि यह निर्धन किसान अपना कामधंधा, खेतीबाड़ी छोड़ कर चंपारण से यहां इतनी दूर आश्रम में उन के पास आया.

गांधीजी ने उस से कुछ बातचीत की तो पता लगा कि वह अपने मन की राह पर चल कर यहां तक आया. उस की सरलता महात्मा गांधी को भीतर तक छू गई थी. गांधीजी उस के साथ चल पड़े. वहां जा कर उस के लिए, उस के साथियों के लिए न्याय मिलने तक संघर्ष करते रहे.

विद्वानों का कहना है कि इस जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस के लिए खुद को प्रेरणा नहीं दी जा सके. याद कीजिए वह क्षण, जब प्रेम के एक खूबसूरत प्रतीक ताजमहल का निर्माण करने की प्रेरणा शाहजहां के मन में जागी होगी. इस से ऐसी बेहतरीन कृति, उभर कर आई कि आज तक लाखोंकरोड़ों के लिए प्रेरणा का सबब बनी हुई है.

कहने का तात्पर्य है कि पराजित वह होता है जो स्वयं से संवाद करना बंद कर देता है. माना कि जीवन की जद्दोजेहद बहुत सारी हैं और उन का कोई रूप हमें दिखाई भी नहीं दे रहा है पर अपने अंतर्मन से राय ले कर देखें, तमाम जटिलताएं सुलझ जाएंगी.

पत्रकार की जेल यात्रा

मुझे लग रहा था कि होम मिनिस्टर के खिलाफ अखबार में लिखना भारी पड़ेगा. और हुआ भी यही. उस के बाद लगा कि पुलिस मुझे पकड़ने का बहाना ढूंढ़ रही थी. स्कूटर पर जाते समय रास्ते में 2 पुलिस वालों ने मुझ से स्कूटर किनारे लगाने को कहा.

‘‘पेपर्स दिखाओ.’’

मैं ने दिखा दिए.

वह अपने इंस्पैक्टर से बोला, ‘‘सर, सब ठीक हैं.’’

इंस्पैक्टर बोला, ‘‘लाइट चैक करो, आगेपीछे की और साइड वाली भी.’’

वह बोला, ‘‘यह भी ठीक हैं. जाने दूं?’’

इंस्पैक्टर बोला, ‘‘खबरदार जो जाने दिया, नौकरी से निकाले जाओगे.’’

इंस्पैक्टर ने खुद आ कर मेरे स्कूटर का मुआयना शुरू किया. अचानक उस की नजर मेरे स्कूटर पर रखी एक डंडी (कमची) पर पड़ी. वह बोला, ‘‘आप इतनी खतरनाक डंडी ले कर कहां जा रहे हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, मेरे महल्ले में कुछ कुत्ते हैं जो मेरे स्कूटर के पीछे लग जाते हैं, उन को भगाने के लिए रखी है.’’

इंस्पैक्टर बोला, ‘‘झूठ बोलते हो. इतना खतरनाक हथियार, लगता है तुम कुत्ते भगाने नहीं, शहर में अशांति फैलाने के इरादे से इसे ले कर घूम रहे हो. और हां, तुम कुत्तों को इस डंडी से मारते हो और कहीं मैडम को पता लग गया, क्या नाम है उन का?’’

सिपाही बोला, ‘‘सर, मैडम मेनका.’’

‘‘हां, यदि उन को खबर हो गई कि तुम कुत्तों को मारते हो तो वे तुम्हारी खाल ही खिंचवा लेंगी और भूसा भर देंगी. सिपाही, गिरफ्तार कर लो इसे और ले जाओ थाने.’’

मैं ने कहा, ‘‘सर, आप विश्वास करें. वाकई में यह डंडी सिर्फ कुत्ते भगाने के लिए है.’’

वह बोला, ‘‘जब थाने में यही डंडी 8-10 बार तुम पर पड़ेगी तो कुत्ते की तरह मिमियाने लगोगे.’’

मैं बोला, ‘‘सर, कुत्ते मिमियाते नहीं, भौंकते हैं.’’

‘‘हांहां, मुझे पढ़ाओ नहीं. सिपाही, जल्दी से इसे थाने ले जाओ, 2-4 दिन हवालात में रहेगा तो ठीक हो जाएगा. मिमियाना व भौंकना दोनों भूल जाएगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘सर, मैं तो एक पत्रकार हूं. मैं क्यों शांति भंग करूंगा?’’ फिर आगे बोला, ‘‘सर, क्या मैं अपने संपादक को फोन कर सकता हूं?’’

वह बोला, ‘‘बच्चू, तुम अब होम मिनिस्टर को भी फोन करो तो नहीं बच सकते. चलो, कर लो अपनी अंतिम इच्छा पूरी.’’

मैं ने संपादकजी को फोन लगाया और पूरी बात बताई. वे बोले, ‘‘अरे किशन, तुम्हें मालूम ही है कि होम मिनिस्टर अपने अखबार से बहुत नाराज हैं, सो तुम्हें आज तो कोई नहीं बचा सकता. अगले 2 दिन छुट्टी के हैं, तीसरे दिन मैं तुम्हारी बेल करवा दूंगा, तब तक तुम धीरज रखो. तुम तो बहादुर पत्रकार हो. जेल में भी कोई न कोई जेल से जुड़ा लेख लिख लेना, वह अपन पहले पेज पर छापेंगे.’’

मेरे अंदर का पत्रकार जागृत हुआ और मैं खुशीखुशी उन के साथ जाने को तैयार हो गया.

थाने में थानेदार ने डांटा, ‘‘साला, खतरनाक हथियार ले कर घूमता है शहर में आतंक फैलाने के लिए. ऐसे खतरनाक अपराधी को अपने थाने में नहीं रख सकते. जज साहब से स्पैशल और्डर ले कर साले को तिहाड़ जेल भिजवाओ.

2 दिन में ही यह वहां सारी आतंकवादी हरकतें भूल जाएगा.’’

जज साहब के और्डर पर मुझे तिहाड़ जेल ले जाया गया. जेलर भी देख कर यों बोले जैसे वे मेरी आतंकवादी गतिविधियों से परिचित हों.

‘‘आ गया आतंकवादी, हमारी जेल तो पहले ही बड़ेबड़े लोगों से भरी पड़ी है, अब हम इसे कहां रखें? जब दूसरे आतंकवादी इस की बजाएंगे तो 2 दिन में ही लिखनापढ़ना भूल जाएगा.’’

पहली बार मुझे डर लगा. 2 कंबल, 1 थाली, 1 कटोरी, 1 गिलास और जेल की ड्रैस के साथ मुझे आतंकवादियों के पास डाल दिया गया.

वहां 10 डरावने से लोग थे. मुझे घूरघूर कर देख रहे थे. एक ने पूछा, ‘‘क्यों बिरादर, कहां बम फोड़ा?’’

मैं ने कहा, ‘‘कहीं नहीं.’’

वह बोला, ‘‘तो फिर फोड़ने वाले हो क्या या पहले ही पकड़ लिए गए?’’

मैं चुपचाप रहा, उस के सब साथी हंस दिए और मैं चुपचाप अपने कंबल में दुबक कर लेट गया. 9 बजे रात में सब के सोने के लिए घंटे बजी. मैं मन मार कर सोने की कोशिश करने लगा, मेरे साथ के दूसरे आतंकवादी उर्दू, पश्तो में गाने लगे. वार्डन से कहा, ‘‘अरे सर, इन को गाने से मना करो, मुझे नींद नहीं आ रही है.’’

वह बोला, ‘‘चुपचाप सो जाओ, ये तो रोज गाते हैं और सुबह को नाचते हैं.’’

3-4 घंटे वे गाते रहे और मैं मन मार कर करवटें बदलता रहा.

सुबह 5 बजे, मेरी पीठ में डंडा चुभा कर उठाया गया. पर साथ वाले आतंकवादियों को सोने दिया गया. मैं ने डंडा चुभाने वाले से कहा, ‘‘भाई, उन लोगों को भी तो उठाओ.’’

‘‘तुम को मालूम नहीं, वे लोग कितनी देर तक नाचगा रहे थे, उन को सोने दो.’’

मैं ने पूछा, ‘‘क्यों भाई, उन को ये रियायत क्यों?’’

‘‘उन के पास ताकत है, दौलत है, पड़ोसी देश की बैकिंग है, मानवाधिकार वालों का सपोर्ट है, तुम्हारे पास क्या है?’’

मैं फिल्मी अंदाज में बोला, ‘‘मेरे पास मेरे अखबार का संपादक है.’’

‘‘तुम्हारे अदना से संपादक भी तुम्हें 2 दिन के पहले बेल नहीं दिलवा सकते. जाओ, तैयार हो जाओ और नाश्ते की लाइन में लग जाओ.’’

‘‘और उन लोगों का नाश्ता?’’

वह बोला, ‘‘उन का नाश्ता यहीं आएगा, ये सिर्फ गोश्त और रोटी खाते हैं.’’

‘‘गोश्त, यह कैसे मुमकिन है?’’

‘‘यदि नहीं दो तो भूख हड़ताल पर बैठ जाते हैं और बोलते हैं, हम लोग मानवाधिकार वालों को बतला देंगे कि हिंदुस्तान सरकार हमें घासपत्ती खिला कर मारना चाहती है.’’

नाश्तापानी कर के जब तक मैं लौटा, मेरे साथ के कैदी, गोश्तरोटी खा चुके थे और फिर उन्होंने ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘शीला की जवानी’ गागा कर नाचना शुरू कर दिया. सब लोग खूब खुश दिखाई दे रहे थे. एक आतंकवादी मेरे पास आया और बोला, ‘‘बिरादर, तुम भी मजे करो और हम लोगों की तरह जश्न मनाओ.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप लोगों पर मुकदमा चल रहा है और सभी को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है, फिर भी आप लोग इतने खुश दिखाई दे रहे हैं?’’

वह बोला, ‘‘बिरादर, खुश क्यों नहीं दिखाई देंगे, तुम्हारे मुल्क में तो हमें जिंदगी मिली है. हम लोगों को हमारा आका अमेरिका भेजना चाहता था, बम फोड़ने के लिए. हम लोगों ने उस के पैर पकड़ लिए और बोले कि हम लोगों में से कोई भी अमेरिका नहीं जाना चाहता.’’

मैं बोला, ‘‘अरे, अमेरिका तो सब जाना चाहते हैं, फिर तुम लोग क्यों नहीं?’’

वह बोला, ‘‘बिरादर, सुना है बम फोड़ने वालों को अमेरिका वाले गोली मार कर समंदर में फेंक देते हैं. हम सब को तैरना नहीं आता, हम पहाड़ी इलाके से हैं न.’’

मैं ने कहा, ‘‘पर मरने के बाद तैरने की क्या जरूरत पड़ेगी?’’

वह बोला, ‘‘अरे नहीं, यह भी सुना है कि पैर में गोली मार कर समंदर में जिंदा फिंकवा देते हैं, इसलिए सब लोगों ने ना कर दी,’’ वह आगे बोला, ‘‘और सुनो जी, सब लोग तुम्हारे मुल्क में आ कर बम फोड़ने को तैयार रहते हैं. हमारे आका बोलते हैं कि यहां रहोगे तो 30-40 साल में भूख या बीमारी से मर जाओगे, पर हिंदुस्तान में बम फोड़ोगे तो फांसी तो होगी, पर लटकाएंगे कभी नहीं.

‘‘देखो न, वह दादा जो हमारे साथ डांस कर रहा था, 60 बरस का हो गया है.

25 साल पहले हिंदुस्तान में बम फोड़ा था, फांसी की सजा भी सुना दी गई फिर भी तुम्हारे देश वालों ने उस का दिल का औपरेशन भी किया और दोनों घुटने भी बदल दिए, इसलिए वह अब हम से भी ज्यादा डांस करता है. तुम्हारे मुल्क वालों ने उस के नकली दांत लगवा दिए, मजे में रोज गोश्त खाता है. पर फांसी अभी तक नहीं दी. हां, एक बात है, यहां भेजने के लिए हमारे आकाओं ने हम से बहुत घूस ली.’’

‘‘अरे, घूस भी देनी पड़ती है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हमारे आका हिंदुस्तान जा कर बम फोड़ने का 70 प्रतिशत पैसे ले लेते हैं. यानी 50 लाख में से वे 35 लाख रुपए अपनी जेब में रख लेते हैं और बाकी हमारे घर भिजवा देते हैं. इतना घूस देने के बाद भी हिंदुस्तान में आ कर बम फोड़ना महंगा सौदा नहीं है, क्योंकि यहां हमारी जानमाल बचने की गारंटी है और इलाज फ्री.’’

‘‘और यदि किसी ने घूस देने से मना कर दिया तो?’’

‘‘तो फिर वे उस को अमेरिका भेजने की धमकी देते हैं.’’

उस की बातें सुन कर मुझे अखबार के लिए बहुत मसाला मिल रहा था, ‘‘तुम्हारे देश में मानवाधिकार के लोग भी बहुत नेक इंसान हैं. हमारा बहुत खयाल रखते हैं. जिस दिन खाने को गोश्त नहीं मिलता, जेलर की नाक में दम कर देते हैं. एक बार तो गोश्त वालों की हड़ताल थी, पर हम को गोश्त देने के लिए डर के मारे जेलर साहब ने अपनी प्यारी बकरी को मार दिया, नहीं तो उस का इस जेल से तबादला कर दिया जाता.

‘‘हमारा जेलर बड़ा नेकदिल इंसान है. सब से ज्यादा नेकदिल इंसान तुम्हारे नेता लोग और मिनिस्टर हैं, हर बार बम फूटने के बाद हमारे खिलाफ कड़ी सजा की धमकी देते हैं और जल्दी से भूल भी जाते हैं. दिल में कोई बात नहीं रखते जी.’’

खैर, मुझे 2 दिन बाद बेल मिल गई. निकलते समय वही आतंकवादी मेरे पास आ कर धीरे से कान में बोला, ‘‘बिरादर, तैयार हो तो हम अपने आका से बात करें, पर हिंदुस्तान में बम फोड़ने के लिए 7 टका घूस देनी पड़ेगी.’’ मैं बोला, ‘‘हां, सोचूंगा,’’ और उन को अलविदा बोल कर जेल से बाहर आ गया.

– डा. पी के राय

जंपसूट में आप दिखेंगी स्टाइलिश

फैशन और ट्रेंड में तो बहुत सारी चीजें होती हैं, पर क्या उन्हें आंख मूंदकर अपना लेना चाहिए? जंपसूट की लगातार बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए अगर आपने भी इसे अपने वॉर्डरोब का हिस्सा बनाना तय कर लिया है तो उससे पहले कुछ बातों को ध्यान में रखें.

जंपसूट का चुनाव करते वक्त तीन चीजों को हमेशा ध्यान में रखें- अपने शरीर का आकार, किस मौके पर आप जंपसूट पहनने वाली हैं और मौसम कौन-सा है. कुछ और बातों को ध्यान में रखकर आप जंपसूट पहनकर हमेशा फैशनेबल दिख सकती हैं.

फिटिंग रखती है मायने

जंपसूट के माध्यम से शरीर के सबसे स्लिम हिस्से को उभारने की कोशिश करें, तय मानिए आप खूबसूरत दिखेंगी. अगर आपके पैर पतले हैं और कमर चौड़ी है तो जंपसूट ऐसा चुनें, जिसका टॉप ढीला-ढाला हो लेकिन पैरों के पास उसकी फिटिंग अच्छी हो. अगर कमर वाला हिस्सा या आपके पैर मोटे हैं तो हमेशा ऐसा जंपसूट चुनें, जो कमर से नीचे ढीला-ढाला हो. हमेशा फिगर को उभारने वाला जंपसूट पहनें.

कमर को उभारें

अगर आप चाहती हैं कि जंपसूट पहनकर आपका फिगर और आकर्षक दिखे तो आपको ऐसा जंपसूट चुनना होगा जो आपकी कमर को और उभार सके. ऐसा दो तरीके से संभव है-जंपसूट के ऊपर बेल्ट लगाकर या फिर अपने लिए ऐसा जंपसूट चुनें, जिसमें इलास्टिक लगी हो.

ब्लेजर के साथ पहनें जंपसूट

अगर आप पहली बार जंपसूट पहन रही हैं और असहज महसूस कर रही हैं तो उसके साथ ब्लेजर पहन लें. ब्लेजर के साथ जंपसूट पहनकर आप न सिर्फ सहज महसूस करेंगी बल्कि स्टाइलिश भी दिखेंगी. जंपसूट के साथ पहनने के लिए ब्लेजर का चुनाव करते वक्त मौके का ध्यान हमेशा रखें. अगर किसी नाइट पार्टी के लिए ब्लेजर चुन रही हैं तो ध्यान रखें कि वह थोड़ा शिमरी (चमकदार) हो. अगर किसी मीटिंग आदि के लिए ब्लेजर चुन रही हैं तो वह हल्के रंग का होना चाहिए.

एक्सेसरीज चुनें ध्यान से

सही फिटिंग वाला जंपसूट चुनने के साथ फैशनेबल दिखने के लिए उसके साथ अच्छी एक्सेसरीज का चुनाव भी जरूरी होता है. सही एक्सेसरीज की मदद से जंपसूट आपको ढेर सारे लुक दे सकता है.

बेल्ट

जंपसूट का लुक बदलने के लिए बेल्ट सबसे उपयोगी एक्सेसरीज है. अगर आपका वजन थोड़ा ज्यादा है तो अपने लिए चौड़ी बेल्ट चुनें. चौड़ी बेल्ट पहनने से आपकी कमर पतली नजर आएगी. अगर आप बहुत दुबली-पतली हैं तो अपने लिए पतली बेल्ट चुनें. चौड़ी बेल्ट पहनने से आप और छोटी नजर आएंगी.

फुटवियर

जंपसूट पहनने के बाद आप शानदार दिखें, इसके लिए बेहद जरूरी है कि आपके फुटवियर का चुनाव अच्छा हो. वेजेज स्टाइल वाली फुटवियर जंपसूट के साथ हमेशा अच्छी लगती है. अगर आपकी लंबाई थोड़ी कम है तो अपने लिए थोड़ी ऊंचाई वाली वेजेज चुनें. हाई हील पहनने से भी अच्छा लुक मिलेगा. जंपसूट के साथ फ्लैट फुटवियर सिर्फ तभी चुनें, जब आपकी लंबाई बहुत ही ज्यादा हो.

बैग

सही पर्स या हैंडबैग का चुनाव आपके पूरे आउटफिट का लुक बदल सकता है. अच्छी फिटिंग वाले जंपसूट के साथ हमेशा बड़े आकार का हैंडबैग इस्तेमाल में लाएं. अगर जंपसूट पहनकर पार्टी आदि में जा रही हैं तो उसके साथ हैंडबैग की जगह क्लच का चुनाव बेहतर होगा.

जरा सी आजादी: भाग-1

‘‘आखिर क्या कमी है जो तुम्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता. दिमाग तो ठीक है न तुम्हारा. तुम तो मुझे भी पागल कर के छोड़ोगी, नेहा. इतना समय नहीं है मेरे पास जो हर समय तुम्हारा ही चेहरा देखता रहूं.’’

एक कड़वी सी मुसकान चली आई नेहा के होंठों पर. बोली, ‘‘समय तो कभी नहीं रहा तुम्हारे पास. जब जवानी थी तब समय नहीं था, अब तो बुढ़ापा सिर पर खड़ा है जब अपने पेशे के शिखर पर हो तुम. इस पल तुम से समय की उम्मीद तो मैं कर भी नहीं सकती.’’

‘‘क्या चाहती हो? क्या छुट्टी ले कर घर बैठ जाऊं? माना आज बैठ भी गया तो कल क्या होगा. कल फिर तुम्हारा मन नहीं लगेगा, फिर क्या करोगी? कोई ठोस हल है?’’

तौलिया उठा कर ब्रजेश नहाने चले गए. आज एक मीटिंग भी थी. नेहा ने उन्हें जरूरी तैयारी भी करने नहीं दी. वे समझ नहीं पा रहे थे आखिर वह चाहती क्या है. सब तो है. साडि़यां, गहने, महंगे साधन जो भी उन की सामर्थ्य में है सब है उन के घर में. अभी इकलौते बेटे की शादी कर के हटे हैं. पढ़ीलिखी कमाऊ बहू भी मिल चुकी है. जीवन के सभी कोण पूरे हैं, फिर कमी क्या है जो दिल नहीं लगता. बस, एक ही रट है, दिल नहीं लगता, दिल नहीं लगता. हद होती है हर चीज की.

जीवन के इस पड़ाव पर परेशान हो चुके हैं ब्रजेश. रिटायरमैंट को 3 साल रह गए हैं. कितना सब सोच रखा है, बुढ़ापा इस तरह बिताएंगे, उस तरह बिताएंगे. जीवनभर की थकान धीरेधीरे अपनी मरजी से जी कर उतारेंगे. आज तक अपनी इच्छा से जिए कब हैं? पढ़ाई समाप्त होते ही नौकरी मिल गई थी. उस के बाद तो वह दिन और आज का दिन.

पिताजी पर बहनों की जिम्मेदारी थी इसलिए जल्दी ही उन का सहारा बन जाना चाहते थे ब्रजेश. अपना चाहा कभी नहीं किया. पिता की बहनें और फिर अपनी बहनें… सब को निभातेनिभाते यह दिन आ गया. अपना परिवार सीमित रखा, सब योजनाबद्ध तरीके से निबटा लिया. अब जरा सुख की सांस लेने का समय आया है तो नेहा कैसी बेसिरपैर की परेशानी देने लगी है. नींद नहीं आती उसे, परेशान रहती है, अकेलेपन से घबराने लगी है. बारबार एक ही बात कहती है, उस का दिल नहीं लगता. उस का मन उदास होने लगा है.

कुछ दिन के लिए मायके भी भेज दिया था उसे. वहां से भी जल्दी ही वापस आ गई. पराए घर में वह थोड़े न रहेगी सारी उम्र. उस का घर तो यह है न, जहां वह रहती है. कुछ दिन बहू के पास भी रहने गई. वह घर भी अपना नहीं लगा. वह तो बहू का घर है न, वह वहां कैसे रह सकती है.

रिटायरमैंट के बाद एक जगह टिक कर बैठेंगे तब शायद साथसाथ रहने के लिए बड़ा घर ले लें. अभी जब तक नौकरी है हर 3-4 साल के बाद उन्हें तो शहर बदलना ही है. उस शहर में आए मात्र  4 महीने हुए हैं. यह नई जगह नेहा को पसंद नहीं आ रही. नया घर ही मनहूस लग रहा है.

‘‘अड़ोसपड़ोस में आओजाओ, किसी से मिलोजुलो. टीवी देखो, किताबें पढ़ो. अपना दिल तो खुद ही लगाना है न तुम्हें, अब इस उम्र में मैं तुम्हें दिल लगाना कैसे सिखाऊं,’’ जातेजाते ब्रजेश ने समझाया नेहा को.

हर रोज यही क्रम चलता रहता है. जीवन एकदम रुक जाता है जब ब्रजेश चले जाते हैं, ऐसा लगता है हवा थम गई है, इतनी भारी हो कर ठहर गई है कि सांस भी नहीं आती. छाती पर भी हवा ही बोझ बन कर बैठ गई है.

बेमन से नहाई नेहा, तौलिया सुखाने बालकनी में आई. सहसा आवाज आई किसी की.

‘‘नमस्कार, भाभीजी. इधर देखिए, ऊपर,’’ ताली बजा कर आवाज दी किसी ने.

नेहा ने आगेपीछे देखा, कोई नजर नहीं आया तो भीतर जाने लगी.

‘‘अरेअरे, जाइए मत. इधर देखिए न बाबा,’’ कह कर किसी ने जोर से सीटी बजाई.

सहसा ऊपर देखा नेहा ने. चौथे माले पर एक महिला खड़ी थी.

‘‘क्या हैं आप भी. इस उम्र में मुझ से सीटी बजवा दी. कोई अड़ोसीपड़ोसी देखता होगा तो क्या कहेगा, बुढि़या का दिमाग घूम गया है क्या. नमस्कार, कैसी हैं आप?’’

हंस रही थी वह महिला. नेहा से जानपहचान बढ़ाना चाह रही थी. कहां से आए हैं? नाम क्या है? पतिदेव क्या काम करते हैं?

‘‘आप से पहले जो इस फ्लैट में थे उन से मेरी बड़ी दोस्ती थी. उन का तबादला हो गया. आप से रोज मिलना चाहती हूं मैं, आप मिलती ही नहीं. वाशिंग मशीन पिछली बालकनी में रख लीजिए न. इसी बहाने सूरत तो नजर आएगी.

‘‘अरे, कपड़े धोते समय ही किसी का हालचाल पूछा जाता है. सारा दिन बोर नहीं हो जातीं आप? क्या करती रहती हैं? आज क्या कर रही हैं?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं. आप आइए न मेरे घर.’’

‘‘जरूर आऊंगी. आज आप आ जाइए. एक बार बाहर तो निकल कर देखिए, आज मेरे घर किट्टी पार्टी है. सब से मुलाकात हो जाएगी.’’

कुछ सोचा नेहा ने. किट्टी डालना ब्रजेश को पसंद नहीं है. बिना किट्टी डाले वह कैसे चली जाए. चलती किट्टी में जाना अच्छा नहीं लगता.

‘‘आप मेरी मेहमान बन कर आइए न. इधर से घूम कर आएंगी तो फ्लैट नं. 22 सी नजर आएगा. चौथी मंजिल. जरूर आइएगा, नेहाजी.’’

हाथ हिला दिया नेहा ने. मन ही नहीं कर रहा था. साड़ी निकाल कर रखी थी कि चली जाएगी मगर मन माना ही नहीं, सो, वह नहीं गई. वह दिन बीत गया और भी कई दिन. एक शाम वही पड़ोसन दरवाजे पर खड़ी नजर आई.

‘‘आइए,’’ भारी मन से पुकारा नेहा ने.

‘‘अरे भई, हम तो आ ही जाएंगे जब आ गए हैं तो. आप क्यों नहीं आईं उस दिन? मन नहीं घबराता क्या? एक तरफ पड़ेपड़े तो रोटी भी जल जाती है. उसे भी पलटना पड़ता है. आप कहीं बाहर नहीं निकलतीं, क्या बात है? सामने निशा से पूछा था मैं ने, उस ने बताया कि आप उस से भी कभी नहीं मिलीं.’’

आने वाली महिला का व्यवहार नेहा को इतना अपनत्व भरा लगा कि सहसा आंखें भर आईं. रोटी भी एक ही तरफ पड़ेपड़े जल जाती है तो वह भी जल ही तो गई है न. क्या फर्क है उस में और एक जली रोटी में. जली रोटी भी कड़वी हो जाती है और वह भी कड़वी हो चुकी है. हर कोई उस से परेशान है.

‘‘नेहाजी, क्या बात है? कोई परेशानी है?’’

गरदन हिला दी नेहा ने, न ‘न’ में न ‘हां’ में. कंधे पर हाथ रखा उस ने. सहसा रोना निकल गया. उस के साथ ही चली आई वह भीतर.

‘‘घर इतना बंदबंद क्यों रखा है? खिड़कियांदरवाजे खोलो न. ताजी हवा अंदर आने दो. उस दिन आईं क्यों नहीं?’’ सहसा थोड़ा रुक कर पूछा.

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आंखें मिलीं नेहा से. भीगी आंखों में न जाने क्या था, न कुछ कहा न कुछ सुना. नेहा ने नहीं, शायद आने वाली महिला ने ही एक नाता सा बांध लिया.

‘‘मेरा नाम शुभा है. तुम मुझे जैसे चाहो पुकार सकती हो. दीदी कहो, भाभी कहो, नाम भी ले सकती हो. मेरी उम्र 53 साल है, हिसाब लगा लो, कैसे बुलाना चाहती हो. तुम छोटी लग रही हो मुझ से.’’

‘‘जी, मेरी उम्र 50 साल है.’’

‘‘वैसे किसी खूबसूरत महिला से उस की उम्र पूछनी तो नहीं चाहिए थी मगर महिला तुम जैसी हो तो कहना ही क्या, जो खुद अपने को 50 की बता रही हो. तुम इतनी बड़ी तो नहीं लगती हो. मैं नाम ले कर पुकारूं? नेहा पुकारूं तुम्हें?’’

‘‘जी, जैसा आप को अच्छा लगे.’’

‘‘मुझे अच्छा लगे क्यों. तुम्हें क्या अच्छा लगता है, यह तो बताओ.’’

चुप रही नेहा. शुभा ने कंधे पर हाथ रखा. झिलमिलझिलमिल करती आंखों में ढेर सारा नमकीन पानी शुभा को न जाने क्याक्या बता गया.

‘‘जो तुम्हें अच्छा लगे मैं वही पुकारूंगी तुम्हें. तुम से पहले जो इस घर में रहती थी उस से मेरा बहुत प्यार था. यह घर मेरे लिए पराया नहीं है, उसी अधिकार से चली आई हूं. मीरा नाम

था उस का जो यहां रहती थी. बहुत प्यारी सखी थी वह मेरी. तुम भी

उतनी ही प्यारी हो. जरा दरवाजे- खिड़कियां तो खोलो.’’

‘‘उन को दरवाजेखिड़कियां खोलना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘उन को किसी के साथ हंसनाबोलना भी पसंद है कि नहीं? उस दिन तुम किट्टी पार्टी में भी नहीं आईं.’’

‘‘उन्हें किट्टी डालना पसंद नहीं.’’

‘‘तुम्हारे बच्चे कहां हैं. बाहर होस्टल में पढ़ते हैं क्या?’’

‘‘एक ही बेटा है. अभी 4 महीने पहले ही उस की शादी हुई है.’’

‘‘अरे वाह, सास हो तुम. सास हो कर भी उदास हो. भई, बहू को 2-4 जलीकटी सुनाओ, अपनी भड़ास निकालो और खुश रहो. टीवी सीरियल में यही तो सिखाते हैं. शादी होती है, उस के बाद एक तो रोती ही रहती है, या बहू रुलाती है या सास. तुम्हारे यहां क्या सीन है?’’

‘‘मैं तो यहां अकेली हूं. बहू आगरा में है. दूरदूर रहना है जब, तब लड़ाई कैसी?’’

‘‘बहू तुम ने पसंद की थी या भाईसाहब ने?’’

‘‘किसी ने भी नहीं. उन दोनों ने ही एकदूसरे को पसंद कर लिया था.’’

‘‘चलो, मेहनत कम हुई. मुझे तो अपने बच्चों के लिए साथी ही ढूंढ़ने में बहुत मेहनत करनी पड़ी. कहीं परिवार अच्छा नहीं था, कहीं लड़की पसंद नहीं आती थी.’’

शुभा ने धीरेधीरे घर की खिड़कियां खोलनी शुरू कर दीं. ताजी हवा घर में आने लगी.

‘‘आज खाने में क्या बनाया था तुम ने?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘कुछ नहीं, मतलब. भूखी हो सुबह से? अभी शाम के 6 बज रहे हैं. तुम ने कुछ भी खाया नहीं है.’’

शुभा ने हाथ पकड़ा नेहा का. रोक कर रखा बांध बह निकला. एक अनजान पड़ोसन के गले लग नेहा फूटफूट कर रो पड़ी. शुभा भी उस का माथा सहलाती रही.

‘‘चलो, तुम्हारी रसोई में चलें. बेसन है न घर में. पकौड़े बनाते हैं. आटा तो गूंध रखा होगा, चपाती के साथ पकौड़े और गरमगरम चाय पीते हैं.’’

आननफानन ही सब हो गया. आधे घंटे के बाद ही दोनों मेज पर बैठी चाय पी रही थीं.

‘‘क्यों इतना उदास हो, नेहा? खुश होना चाहिए तुम्हें. नए शहर में आई हो, उदासी स्वाभाविक है, मैं मानती हूं मगर इतनी नहीं कि भूखे ही मरने लगो. एक ही बच्चा है जिसे पालपोस दिया, उस का घर बसा दिया. तुम्हारा कर्तव्य पूरा हो गया, और क्या चाहिए?’’

‘‘बहुत खालीपन लगता है, दीदी. जी चाहता है कि अपने साथ कुछ कर लूं. जीवन और क्यों जीना, अब क्या करना है मुझे, किसे मेरी जरूरत है?’’

‘‘अपने साथ कुछ कर लूं, क्या मतलब?’’ शुभा का स्वर तनिक ऊंचा हो गया.

‘‘कुछ खा कर मर जाऊं.’’

‘‘क्या?’’ अवाक् रह गई शुभा. अनायास उस के सिर पर चपत लगा दी.

‘‘पागल हो क्या. अपने परिवार और अपनी बहू को सजा देना चाहती हो क्या? मर कर उन का क्या बिगाड़ लोगी. तुम्हें क्या लगता है वे उम्रभर रोते रहेंगे? जो जाएगा तुम्हारा जाएगा, किसी का क्या जाएगा.

खालीपन लगता है तो क्या मर कर भरोगी उसे? पति, बेटा और बहू के सिवा भी तुम्हारे पास कुछ है, नेहा. तुम्हारे पास तुम हो, अपनी इज्जत करना सीखो. पति को खिड़की खोलना पसंद नहीं तो तुम खिड़कीदरवाजे बंद कर के बैठी हो. पति को किट्टी डालना पसंद नहीं तो उस दिन तुम मेरे घर ही नहीं आईं. इतना कहना क्यों मान रही हो कि घुट कर मर जाओ?’’

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‘‘शुरू से… शुरू से ऐसा ही है. मैं चाहती थी दूसरा बच्चा हो, ये माने ही नहीं. जीवन में मैं ने तो कभी सांस भी खुल कर नहीं ली. सोचा था मनपसंद लड़की को बहू बना कर लाऊंगी, सोचा था बेटी की इच्छा पूरी हो जाएगी. बेटे ने अपनी पसंद की ढूंढ़ ली. मेरी पसंद मन में ही रह गई.’’

‘‘अच्छा किया बेटे ने. अपनी पसंद से तो जी रहा है न. क्या चाहती हो कि आज से 20-30 साल बाद वह भी वही भाषा बोले जो आज तुम बोल रही हो. तुम आज कह रही हो न अपने तरीके से जी नहीं पाई, क्या चाहती हो कि तुम्हारा बच्चा भी तुम्हारी तरह अपना जीवन खालीपन से भरा पाए. अपनी पसंद से जी नहीं पाई और मर जाना चाहती हो. क्या तुम्हारा बच्चा भी…’’

‘‘नहीं… नहीं तो दीदी,’’ सहसा जैसे कुछ कचोटा नेहा को, ‘‘मेरे बच्चे को मेरी उम्र भी लग जाए.’’

‘‘अपने बच्चे को अपनी उम्र देना चाहती हो लेकिन चैन से जीने देना नहीं चाहती. कैसी मां हो? मर कर उम्रभर का अपराधबोध देना चाहती हो. तुम तो मर कर चली जाओगी लेकिन तुम्हारा परिवार चेहरे पर प्रश्नचिह्न लिए उम्रभर किसकिस के प्रश्न का उत्तर देता रहेगा. अरे, मन में जो है आज ही कह कर भड़ास निकाल लो. सुन लो, सुना दो, किस्सा खत्म करो और जिंदा रहो.’’

सहसा शुभा का हाथ नेहा के हाथ पर पड़ा. कलाई में रूमाल बांध रखा था नेहा ने.

‘‘यह क्या हुआ, जरा दिखाना तो,’’ झट से रूमाल खींच लिया. हाथ सीधा किया, ‘‘अरे, यह क्या किया? यहां काटा था क्या? कब काटा था? ताजे खून के निशान हैं. क्या आज ही काटा? क्या अभी यही काम कर रही थीं जब मैं आई थी?’’

काटो तो खून नहीं रहा शुभा में. यह क्या देख लिया उस ने. यह अनजानी औरत जिस से वह पड़ोसी धर्म निभाने चली आई, क्या भरोसे लायक है? अभी अगर इस के जाने के बाद इस ने यह असफल प्रयास सफल बना लिया तो क्या से क्या हो जाएगा? आत्महत्या या हत्या, इस का निर्णय कौन करेगा? वही तो होगी आखिरी इंसान जो नेहा से मिली. कहीं उसी पर कोई मुसीबत न आ जाए.

‘‘नहीं तो दीदी. चूड़ी टूट कर लग गई थी.’’

‘‘भाईसाहब वापस कब आते हैं औफिस से?’’

‘‘वे तो 9-10 बजे से पहले नहीं आते. आजकल ज्यादा काम रहता है, मार्च का महीना है न.’’

‘‘तुम चलो मेरे साथ, मेरे घर. जब वे आएंगे, तुम्हें उधर से ही लेते आएंगे. तुम अकेली मत रहो.’’

‘‘मैं तो पिछले कई सालों से अकेली हूं. अब थक गई हूं. एक ही बेटे में सब देखती रही. आज वह भी मुझे एक किनारे कर पराई लड़की का हो गया. मैं खाली हाथ रह गई हूं, दीदी. पति तो पहले ही अपने परिवार के थे. मेरी इच्छा उन के लिए न कल कोई मतलब रखती थी न आज रखती है. बेटा अपनी पत्नी की इच्छा पर चलता है, पति अपने तरीके से चलते हैं. दम घुटता है मेरा. सांस ही नहीं आती. इन से कुछ कहती हूं तो कहते हैं, मेरा घर है, जैसा मैं कहता हूं वैसा ही होगा. बहू का घर उस का घर होना ही चाहिए. तो फिर मेरा घर कहां है, दीदी?

‘‘मायके जाती हूं तो वहां लगता है यह भाभी का घर है. वहां मन नहीं लगता. पति कहते हैं कि क्या कमी है, साडि़यां हैं, गहने हैं. भला साडि़यां, गहनों से क्या कोई सुखी हो जाता है? मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. मैं तो अपने घर में एक पत्ता भी हिला नहीं सकती. यह सोफासैट इधर से उधर कर लूंगी तो भी तूफान आ जाएगा. बेजान गुडि़या हूं मैं, जिसे चूं तक करने का अधिकार नहीं है.’’

अवाक् रह गई शुभा. नेहा की परेशानी समझ रही थी वह. इस की जगह अगर वह भी होती तो शायद उस की भी यही हालत होती.

‘‘कल सोफासैट से ही शुरुआत करते हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि अभी खिड़कियां खोली हैं न. इन्हें आज बंद मत करना. कहना मेरा दम घुटता है इसलिए इन्हें बंद मत करो. थोड़ा सा विरोध भी करो. कल बाई के साथ मिल कर जरा सा सामान अपनी मरजी से सजाना. कुछ कहेंगे तो कहना, तुम्हें इसी तरह अच्छा लगता है. अपनी भी कहना सीखो, नेहा. कई बार ऐसा भी होता है, हम ही अपनी बात नहीं कहते या हम ही अपनी इच्छा का सम्मान किए बिना दूसरे की हर इच्छा मानते चले जाते हैं, जिसे सामने वाला हमारी हां ही मानता है. इस में उन का भी क्या दोष.

‘‘इतने सालों में तुम ने अपने पति को कभी ‘न’ नहीं कहा और उन का अधिकार क्षेत्र तुम्हारी सांस तक पहुंच गया. 12 घंटे तुम इस बंद घर में इतनी भी हिम्मत नहीं कर सकती कि खिड़कियां ही खोल पाओ. जिंदा इंसान हो, तुम कोई मृत काया नहीं जिसे ताजी हवा नहीं चाहिए. सारा दोष तुम्हारा अपना है, तुम्हारे पति का नहीं. जिस की सांस घुटती है, विरोध भी उसी को करना पड़ता है. 4 दिन घर में अशांति होगी, होने दो मगर अपना जीवन समाप्त मत करो. शांति पाने के लिए कभीकभी अशांति का सहारा भी लेना पड़ता है. तुम्हारे पति को परेशानी तो होगी क्योंकि उन्होंने कभी तुम्हारी ‘न’ नहीं सुनी. इतने बरसों में न की गई कितनी सारी ‘न’ हैं जिन का उन्हें एकसाथ सामना करना होगा. अब जो है सो है. तब नहीं तो अब सही, जब जागे तभी सवेरा. अपना घर अपने तरीके से सजाओ.’’

नेहा आंखें फाड़े उस का चेहरा देखती रही.

‘‘घर में वह सामान जो बेकार पड़ा है, सब निकाल दो. कबाड़ी वाला मैं ले आऊंगी. गति दो हर चीज को. तुम भी रुकी पड़ी हो, सामान भी रुका पड़ा है. तुम मालकिन हो घर की, जैसा चाहो, सजाओ.’’

‘‘वही तो मैं भी सोचती हूं.’’

‘‘कुछ भी गलत नहीं सोचती हो तुम. इस घर में पतिदेव सिर्फ रात गुजारते हैं. तुम्हें तो 24 घंटे गुजारने हैं. किस की मरजी चलनी चाहिए?’’

शुभा को नेहा के चेहरे का रंग बदलाबदला नजर आया. आंखों में बुझीबुझी सी चमक, जराजरा हिलती सी नजर आई.

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‘‘अच्छा, भाईसाहब का बिजनैस कार्ड देना जरा. मेरे पतिदेव को इनकम टैक्स की कोई सलाह लेनी थी. तुम चलो, अभी मेरे साथ. आज 31 मार्च है न. क्या पता रात के 12 ही बज जाएं. जब आएंगे, तुम्हें बुला लेंगे. अरे, फोन पर बात कर लेंगे न हम,’’ कहते हुए शुभा उस का हाथ थाम चलने के लिए खड़ी हो गई.

– क्रमश:  

क्या नेहा अपनी मरजी के मुताबिक खुली हवा में सांस ले पाएगी? क्या वह अपने मन में दबी इच्छाओं को पूरा कर पाएगी? कौन उस का हाथ थामेगा? पढि़ए अगले अंक में.

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