मुझे लग रहा था कि होम मिनिस्टर के खिलाफ अखबार में लिखना भारी पड़ेगा. और हुआ भी यही. उस के बाद लगा कि पुलिस मुझे पकड़ने का बहाना ढूंढ़ रही थी. स्कूटर पर जाते समय रास्ते में 2 पुलिस वालों ने मुझ से स्कूटर किनारे लगाने को कहा.
‘‘पेपर्स दिखाओ.’’
मैं ने दिखा दिए.
वह अपने इंस्पैक्टर से बोला, ‘‘सर, सब ठीक हैं.’’
इंस्पैक्टर बोला, ‘‘लाइट चैक करो, आगेपीछे की और साइड वाली भी.’’
वह बोला, ‘‘यह भी ठीक हैं. जाने दूं?’’
इंस्पैक्टर बोला, ‘‘खबरदार जो जाने दिया, नौकरी से निकाले जाओगे.’’
इंस्पैक्टर ने खुद आ कर मेरे स्कूटर का मुआयना शुरू किया. अचानक उस की नजर मेरे स्कूटर पर रखी एक डंडी (कमची) पर पड़ी. वह बोला, ‘‘आप इतनी खतरनाक डंडी ले कर कहां जा रहे हैं?’’
मैं ने कहा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, मेरे महल्ले में कुछ कुत्ते हैं जो मेरे स्कूटर के पीछे लग जाते हैं, उन को भगाने के लिए रखी है.’’
इंस्पैक्टर बोला, ‘‘झूठ बोलते हो. इतना खतरनाक हथियार, लगता है तुम कुत्ते भगाने नहीं, शहर में अशांति फैलाने के इरादे से इसे ले कर घूम रहे हो. और हां, तुम कुत्तों को इस डंडी से मारते हो और कहीं मैडम को पता लग गया, क्या नाम है उन का?’’
सिपाही बोला, ‘‘सर, मैडम मेनका.’’
‘‘हां, यदि उन को खबर हो गई कि तुम कुत्तों को मारते हो तो वे तुम्हारी खाल ही खिंचवा लेंगी और भूसा भर देंगी. सिपाही, गिरफ्तार कर लो इसे और ले जाओ थाने.’’
मैं ने कहा, ‘‘सर, आप विश्वास करें. वाकई में यह डंडी सिर्फ कुत्ते भगाने के लिए है.’’
वह बोला, ‘‘जब थाने में यही डंडी 8-10 बार तुम पर पड़ेगी तो कुत्ते की तरह मिमियाने लगोगे.’’
मैं बोला, ‘‘सर, कुत्ते मिमियाते नहीं, भौंकते हैं.’’
‘‘हांहां, मुझे पढ़ाओ नहीं. सिपाही, जल्दी से इसे थाने ले जाओ, 2-4 दिन हवालात में रहेगा तो ठीक हो जाएगा. मिमियाना व भौंकना दोनों भूल जाएगा.’’
मैं ने कहा, ‘‘सर, मैं तो एक पत्रकार हूं. मैं क्यों शांति भंग करूंगा?’’ फिर आगे बोला, ‘‘सर, क्या मैं अपने संपादक को फोन कर सकता हूं?’’
वह बोला, ‘‘बच्चू, तुम अब होम मिनिस्टर को भी फोन करो तो नहीं बच सकते. चलो, कर लो अपनी अंतिम इच्छा पूरी.’’
मैं ने संपादकजी को फोन लगाया और पूरी बात बताई. वे बोले, ‘‘अरे किशन, तुम्हें मालूम ही है कि होम मिनिस्टर अपने अखबार से बहुत नाराज हैं, सो तुम्हें आज तो कोई नहीं बचा सकता. अगले 2 दिन छुट्टी के हैं, तीसरे दिन मैं तुम्हारी बेल करवा दूंगा, तब तक तुम धीरज रखो. तुम तो बहादुर पत्रकार हो. जेल में भी कोई न कोई जेल से जुड़ा लेख लिख लेना, वह अपन पहले पेज पर छापेंगे.’’
मेरे अंदर का पत्रकार जागृत हुआ और मैं खुशीखुशी उन के साथ जाने को तैयार हो गया.
थाने में थानेदार ने डांटा, ‘‘साला, खतरनाक हथियार ले कर घूमता है शहर में आतंक फैलाने के लिए. ऐसे खतरनाक अपराधी को अपने थाने में नहीं रख सकते. जज साहब से स्पैशल और्डर ले कर साले को तिहाड़ जेल भिजवाओ.
2 दिन में ही यह वहां सारी आतंकवादी हरकतें भूल जाएगा.’’
जज साहब के और्डर पर मुझे तिहाड़ जेल ले जाया गया. जेलर भी देख कर यों बोले जैसे वे मेरी आतंकवादी गतिविधियों से परिचित हों.
‘‘आ गया आतंकवादी, हमारी जेल तो पहले ही बड़ेबड़े लोगों से भरी पड़ी है, अब हम इसे कहां रखें? जब दूसरे आतंकवादी इस की बजाएंगे तो 2 दिन में ही लिखनापढ़ना भूल जाएगा.’’
पहली बार मुझे डर लगा. 2 कंबल, 1 थाली, 1 कटोरी, 1 गिलास और जेल की ड्रैस के साथ मुझे आतंकवादियों के पास डाल दिया गया.
वहां 10 डरावने से लोग थे. मुझे घूरघूर कर देख रहे थे. एक ने पूछा, ‘‘क्यों बिरादर, कहां बम फोड़ा?’’
मैं ने कहा, ‘‘कहीं नहीं.’’
वह बोला, ‘‘तो फिर फोड़ने वाले हो क्या या पहले ही पकड़ लिए गए?’’
मैं चुपचाप रहा, उस के सब साथी हंस दिए और मैं चुपचाप अपने कंबल में दुबक कर लेट गया. 9 बजे रात में सब के सोने के लिए घंटे बजी. मैं मन मार कर सोने की कोशिश करने लगा, मेरे साथ के दूसरे आतंकवादी उर्दू, पश्तो में गाने लगे. वार्डन से कहा, ‘‘अरे सर, इन को गाने से मना करो, मुझे नींद नहीं आ रही है.’’
वह बोला, ‘‘चुपचाप सो जाओ, ये तो रोज गाते हैं और सुबह को नाचते हैं.’’
3-4 घंटे वे गाते रहे और मैं मन मार कर करवटें बदलता रहा.
सुबह 5 बजे, मेरी पीठ में डंडा चुभा कर उठाया गया. पर साथ वाले आतंकवादियों को सोने दिया गया. मैं ने डंडा चुभाने वाले से कहा, ‘‘भाई, उन लोगों को भी तो उठाओ.’’
‘‘तुम को मालूम नहीं, वे लोग कितनी देर तक नाचगा रहे थे, उन को सोने दो.’’
मैं ने पूछा, ‘‘क्यों भाई, उन को ये रियायत क्यों?’’
‘‘उन के पास ताकत है, दौलत है, पड़ोसी देश की बैकिंग है, मानवाधिकार वालों का सपोर्ट है, तुम्हारे पास क्या है?’’
मैं फिल्मी अंदाज में बोला, ‘‘मेरे पास मेरे अखबार का संपादक है.’’
‘‘तुम्हारे अदना से संपादक भी तुम्हें 2 दिन के पहले बेल नहीं दिलवा सकते. जाओ, तैयार हो जाओ और नाश्ते की लाइन में लग जाओ.’’
‘‘और उन लोगों का नाश्ता?’’
वह बोला, ‘‘उन का नाश्ता यहीं आएगा, ये सिर्फ गोश्त और रोटी खाते हैं.’’
‘‘गोश्त, यह कैसे मुमकिन है?’’
‘‘यदि नहीं दो तो भूख हड़ताल पर बैठ जाते हैं और बोलते हैं, हम लोग मानवाधिकार वालों को बतला देंगे कि हिंदुस्तान सरकार हमें घासपत्ती खिला कर मारना चाहती है.’’
नाश्तापानी कर के जब तक मैं लौटा, मेरे साथ के कैदी, गोश्तरोटी खा चुके थे और फिर उन्होंने ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘शीला की जवानी’ गागा कर नाचना शुरू कर दिया. सब लोग खूब खुश दिखाई दे रहे थे. एक आतंकवादी मेरे पास आया और बोला, ‘‘बिरादर, तुम भी मजे करो और हम लोगों की तरह जश्न मनाओ.’’
मैं ने कहा, ‘‘आप लोगों पर मुकदमा चल रहा है और सभी को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है, फिर भी आप लोग इतने खुश दिखाई दे रहे हैं?’’
वह बोला, ‘‘बिरादर, खुश क्यों नहीं दिखाई देंगे, तुम्हारे मुल्क में तो हमें जिंदगी मिली है. हम लोगों को हमारा आका अमेरिका भेजना चाहता था, बम फोड़ने के लिए. हम लोगों ने उस के पैर पकड़ लिए और बोले कि हम लोगों में से कोई भी अमेरिका नहीं जाना चाहता.’’
मैं बोला, ‘‘अरे, अमेरिका तो सब जाना चाहते हैं, फिर तुम लोग क्यों नहीं?’’
वह बोला, ‘‘बिरादर, सुना है बम फोड़ने वालों को अमेरिका वाले गोली मार कर समंदर में फेंक देते हैं. हम सब को तैरना नहीं आता, हम पहाड़ी इलाके से हैं न.’’
मैं ने कहा, ‘‘पर मरने के बाद तैरने की क्या जरूरत पड़ेगी?’’
वह बोला, ‘‘अरे नहीं, यह भी सुना है कि पैर में गोली मार कर समंदर में जिंदा फिंकवा देते हैं, इसलिए सब लोगों ने ना कर दी,’’ वह आगे बोला, ‘‘और सुनो जी, सब लोग तुम्हारे मुल्क में आ कर बम फोड़ने को तैयार रहते हैं. हमारे आका बोलते हैं कि यहां रहोगे तो 30-40 साल में भूख या बीमारी से मर जाओगे, पर हिंदुस्तान में बम फोड़ोगे तो फांसी तो होगी, पर लटकाएंगे कभी नहीं.
‘‘देखो न, वह दादा जो हमारे साथ डांस कर रहा था, 60 बरस का हो गया है.
25 साल पहले हिंदुस्तान में बम फोड़ा था, फांसी की सजा भी सुना दी गई फिर भी तुम्हारे देश वालों ने उस का दिल का औपरेशन भी किया और दोनों घुटने भी बदल दिए, इसलिए वह अब हम से भी ज्यादा डांस करता है. तुम्हारे मुल्क वालों ने उस के नकली दांत लगवा दिए, मजे में रोज गोश्त खाता है. पर फांसी अभी तक नहीं दी. हां, एक बात है, यहां भेजने के लिए हमारे आकाओं ने हम से बहुत घूस ली.’’
‘‘अरे, घूस भी देनी पड़ती है?’’ मैं ने पूछा.
‘‘हमारे आका हिंदुस्तान जा कर बम फोड़ने का 70 प्रतिशत पैसे ले लेते हैं. यानी 50 लाख में से वे 35 लाख रुपए अपनी जेब में रख लेते हैं और बाकी हमारे घर भिजवा देते हैं. इतना घूस देने के बाद भी हिंदुस्तान में आ कर बम फोड़ना महंगा सौदा नहीं है, क्योंकि यहां हमारी जानमाल बचने की गारंटी है और इलाज फ्री.’’
‘‘और यदि किसी ने घूस देने से मना कर दिया तो?’’
‘‘तो फिर वे उस को अमेरिका भेजने की धमकी देते हैं.’’
उस की बातें सुन कर मुझे अखबार के लिए बहुत मसाला मिल रहा था, ‘‘तुम्हारे देश में मानवाधिकार के लोग भी बहुत नेक इंसान हैं. हमारा बहुत खयाल रखते हैं. जिस दिन खाने को गोश्त नहीं मिलता, जेलर की नाक में दम कर देते हैं. एक बार तो गोश्त वालों की हड़ताल थी, पर हम को गोश्त देने के लिए डर के मारे जेलर साहब ने अपनी प्यारी बकरी को मार दिया, नहीं तो उस का इस जेल से तबादला कर दिया जाता.
‘‘हमारा जेलर बड़ा नेकदिल इंसान है. सब से ज्यादा नेकदिल इंसान तुम्हारे नेता लोग और मिनिस्टर हैं, हर बार बम फूटने के बाद हमारे खिलाफ कड़ी सजा की धमकी देते हैं और जल्दी से भूल भी जाते हैं. दिल में कोई बात नहीं रखते जी.’’
खैर, मुझे 2 दिन बाद बेल मिल गई. निकलते समय वही आतंकवादी मेरे पास आ कर धीरे से कान में बोला, ‘‘बिरादर, तैयार हो तो हम अपने आका से बात करें, पर हिंदुस्तान में बम फोड़ने के लिए 7 टका घूस देनी पड़ेगी.’’ मैं बोला, ‘‘हां, सोचूंगा,’’ और उन को अलविदा बोल कर जेल से बाहर आ गया.
– डा. पी के राय