ओटीटी से सिनेमा को कोई खतरा नहीं- दिव्या खोसला कुमार

सोलह वर्ष की उम्र में दिल्ली से एक लड़की मौडलिंग करने मुंबई पहुंची थी. उस वक्त उसे फिल्मी दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं पता था. बतौर अभिनेत्री 17 वर्ष की उम्र में उस की एक तेलुगु फिल्म ‘लव टुडे’ तथा हिंदी फिल्म ‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो’ प्रदर्शित हुईर् और लोगों ने उसे अभिनेत्री दिव्या खोसला के नाम से पहचाना. तब उसे लगा कि उसे तकनीक सीखनी चाहिए.

उस ने सिनेमैटोग्राफी और निर्देशन की ट्रेनिंग ली. फिर लगातार कई म्यूजिक वीडियो और ‘यारियां’ व ‘सनम रे’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर अपनी एक अलग पहचान बनाई. इस बीच टीसीरीज के भूषण कुमार के संग विवाह रचाया. एक बेटे की मां बनी और फिर कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया. अब वह फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ में एक सशक्त नारी का किरदार निभा रही है.

प्रस्तुत हैं दिव्या खोसला कुमार से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत के अंश:

सवाल- आप अभिनेत्री, निर्माता, निर्देशक, मां व पत्नी हैं. इन सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह आप किस तरह से करती हैं और कब किसे प्रधानता देती हैं?

हमें निजी और प्रोफैशनल जिंदगी के बीच तालमेल बैठा कर चलना पड़ता है. यह सच है कि हम सभी की निजी जिंदगी भी होती है. लेकिन प्रोफैशनल जिंदगी में जब मैं निर्देशन कर रही थी, तब मैं अभिनय नहीं कर रही थी और अब जब अभिनय कर रही हूं, तो निर्देशन नहीं कर रही हूं क्योंकि मेरा मानना है कि प्रोफैशनली एकसाथ कई चीजें करना संभव नहीं है, इन दिनों में सिर्फ अभिनय पर ही पूरा ध्यान दे रही हूं.

मैं बहुत पैशनेटली अभिनय के कैरियर को आगे बढ़ा रही हूं. पर यह तय है कि भविष्य में मैं पुन:निर्देशन करूंगी. जब हम निजी और प्रोफैशनल जिंदगी के बीच तालमेल बैठा कर चलते हैं, तो हमें परिवार से काफी मदद मिलती है. परिवार की तरफ से हौसलाअफजाई होती है. मेरी राय में प्रोफैशन में निरंतर आगे बढ़ने के लिए परिवार का सहयोग बहुत माने रखता है.

सवाल-मगर अकसर देखा गया है कि प्रोफैशनल जिंदगी जीते समय प्रोफैशन को महत्त्व देने पर पारिवारिक जिंदगी पर असर पड़ता है. कम से कम मां का जो रूप होता है, उस पर काफी असर पड़ता है. तो इस से उबरने के लिए आप क्या करती हैं?

जहां तक मेरा अपना सवाल है मैं अपने परिवार संग काफी समय बिताती हूं. बेटे को भी काफी समय देती हूं. मुझे अपने बेटे की हर बात पता है. मैं हर बात उसे बताती रहती हूं. हम जब फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ की शूटिंग लखनऊ में कर रहे थे, तब घर से दूर थी. पर जब हमारी शूटिंग नहीं होती है, तो हम घर पर ही रहते हैं. जब हमारी प्रोफैशनल मीटिंग होती है, तब भी घर से दूर रहना पड़ता है. बेटे के साथ मेरी अच्छी दोस्ती है. वह भी मुझे अपनी हर बात बताता है. अभी तो काफी छोटा है, पर जिस ढंग से वह बड़ा हो रहा है, उसे देखते हुए मैं बहुत खुश हूं.

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सवाल-फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ में ऐसी क्या खास बात लगी कि इस से आप ने अभिनय में वापसी की बात सोची?

मैं सशक्त नारी किरदार की तलाश में थी और मिलापजी ने मेरा किरदार काफी दमदार लिखा है. इस फिल्म में मिलाप झवेरी सर ने जिस संसार को गढ़ा है, वह अद्भुत है. फिल्म में भ्रष्टाचार पर कुठाराघात किया गया है. हमारे देश में हर जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है. लेकिन मिलाप सर ने पूरी फिल्म मनोरंजक बनाई है. यह फिल्म मनमोहन देसाई और रोहित शेट्टी मार्का मनोरंजक फिल्म है.

सवाल-फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ के अपने किरदार को ले कर क्या कहना चाहेंगी?

मैं ने इस में एक सशक्त राजनेता विद्या का किरदार निभाया है. यह मेरे लिए एक बहुत ही ज्यादा चुनौतीपूर्ण किरदार है. निजी जीवन में मैं राजनीतिक पृष्ठभूमि से नहीं हूं. मैं निजी जीवन में विद्या जैसी नहीं हूं. मैं निजी जीवन में बहुत ही ज्यादा इमोशनल इंसान हूं, जबकि विद्या इमोशनल नहीं, बल्कि सख्त व सशक्त है. वह अपने आसपास के लोगों को भी ताकतवर बनाती है.

सवाल-फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ में राजनेता विद्या को देख कर आम दर्शक या औरतें राजनीति से जुड़ने के संदर्भ में क्या सोचेंगी?

हर भारतीय अपने देश के लिए अंदर से एहसास करता है. जब वह देखता है कि कुछ नाइंसाफी हो रही है, तो वह सोचता है कि वह कुछ करे. फिर चाहे भ्रष्टाचार का ही मसला क्यों न हो. देश के लिए कुछ करने या राजनीति से जुड़ने की भावना फिल्म से नहीं बल्कि इंसान के अंदर से आती है. इंसान के अंदर से ही आवाज उठती है कि उसे समाज के लिए कुछ करना चाहिए. समाज में इस बुराई के खिलाफ आवाज उठा कर बदलाव लाना चाहिए.

मेरी राय में लोगों को खुद अपनी तरफ से इस दिशा में पहल करनी चाहिए. मैं देख रही हूं कि औरतें सिर्फ राजनीति ही नहीं हर क्षेत्र में बड़ी मजबूती के संग अपना झंडा गाड़ रही हैं. आप हमारी फिल्म इंडस्ट्री में ही देखिए औरतें अभिनय से ले कर लेखन, निर्देशन, नृत्य निर्देशन सहित हर विभाग में बेहतरीन काम कर रही हैं. राजनीति जगत में भी औरतों ने दमदार ढंग से अपना अस्तित्व बनाया है. यह युग औरतों के लिए सर्वश्रेष्ठ युग है.

सवाल-एक नागरिक के नाते किसी बात को ले कर आप को भी कोफ्त होती होगी. क्या उस पर इस फिल्म में बात की गई है?

मुझे भ्रष्टाचार को ले कर ही सब से ज्यादा कोफ्त होती है और इस फिल्म में उसी पर बात की गई है. जिस तरह से अदालत में मुकदमे लंबे समय तक चलते हैं, उस से मुझे कोफ्त होती है. हमारी फिल्म में कोर्ट केस को ले कर कोई बात नहीं की गई है. लेकिन फिल्म में भ्रष्टाचार के कई रूपों को ले कर बात की गई है. मुझे निजी स्तर पर लगता है कि जब आप किसी अदालत के मामले में या पुलिस के शिकंजे में आ जाते हैं, तो जबरदस्त भ्रष्टाचार नजर आता है.

छोटे से बड़े अफसर तक भ्रष्टाचार में लिप्त नजर आते हैं. यह बहुत दुख की बात है. बिना पैसा लिए आम नागरिक का काम न करना बहुत ही दुख की बात है. मगर यदि हम सभी खुद को भारतीय नागरिक समझें व देश को महत्त्व दें, तो भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकती है.

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सवाल-नारी सशक्तीकरण की बातें काफी हो रही हैं, इस का असर फिल्म इंडस्ट्री पर हो रहा है?

मैं ने पहले ही कहा कि यह औरतों के लिए बहुत अच्छा समय है. हर क्षेत्र की तरह फिल्म इंडस्ट्री में भी औरतें काफी बढ़चढ़ कर बेहतरीन काम कर रही हैं. अब लड़कियां ज्यादा पढ़ रही हैं. सभी अपने बच्चों को शिक्षा दिला रहे हैं. औरतें नौकरी कर रही हैं. परिवार भी अब लड़कियों या औरतों को नौकरी या व्यवसाय करने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं. समाज में काफी जागरूकता आ गई है. नारी सशक्तीकरण के ही चलते औरतें अपने सपनों को पूरा कर पा रही हैं.

सवाल-आप ने निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी की शिक्षा ली. इस का अभिनय में कितना फायदा मिल रहा है?

अभिनय में तो हमारी जिंदगी के अनुभव मदद करते हैं. मैं इस क्षेत्र में 17 वर्ष की उम्र में आई थी. उस वक्त मैं कुछ भी नहीं जानती थी. अब मैं ने अपनी जिंदगी में कुछ ज्ञान अर्जित किया, कुछ अनुभव हासिल किए तो मेरे अंदर एक आत्मविश्वास पैदा हुआ. इसी आत्मविश्वास के चलते मैं कुछ अच्छा काम कर पा रही हूं. मेरी राय में इंसान की जिंदगी के अनुभव, उतारचढ़ाव उस की मदद करते हैं.

सवाल-इन दिनों ओटीटी प्लेटफौर्म जिस तरह से बढ़ रहे हैं, इस से सिनेमा को फायदा होगा या नुकसान?

मुझे नहीं लगता कि इस से सिनेमा को नुकसान होगा. कोविड-19 के समय जब हमारे पास मनोरंजन का कोई साधन नहीं था तब ओटीटी ही साधन बना. पर अब भी सिनेमाघर जा कर फिल्म देखना चाहते हैं तो ओटीटी व सिनेमाघर अपनीअपनी जगह रहेंगे.

सवाल-सोशल मीडिया पर आप सब से अधिक सक्रिय रहती हैं. आप कई बार विवादों में भी फंसीं. सोशल मीडिया को ले कर आप की सोच क्या है?

मेरी राय में लोगों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम है. लोगों से सीधे बात करने का एक अच्छा जरीया है. रचनात्मक इंसान या कलाकार के तौर पर दर्शकों के साथ सीधे जुड़ाव होने से फायदा ही होता है. मैं ने म्यूजिक वीडियो का निर्देशन करने के साथसाथ अभिनय भी किया. उस के साथ भी लोग जुड़े. मैं तो सोशल मीडिया को अच्छा ही मानती हूं.

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‘महाराष्ट्राची गिरीशिखरे अवार्ड’ से नवाजे गए ये सेलेब्स, पढ़ें खबर

लंबे समय तक चले आंदोलन के बाद एक मई 1960 को मराठी भाषा के आधार पर ‘महाराष् ट्’राज्य का गठन हुआ था. अब साठ वर्ष पूरे होने पर ‘‘पीपुल्स आर्ट सेंटर’ की तरफ से हर क्षेत्र से चुनी गयी चालिस मराठी भाषी हस्तियों को ‘‘महाराष्ट्रची गिरी शिखरे पुरस्कार’’से नवाजा गया.मुंबई में बांदरा स्थित रंग शारदा सभागृह में 26 दिसंबर को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सुरेश वाडेकर, उषा मंगेशकर, डॉ मीरा बोरवणकर, रोहिणी हतंगिड़ी, तेजस्विनी सावंत, भीमराव पंचाले, अशोक पतकी, अनंत कुलकर्णी,शशिकांत गरवारे,डॉ.आर के शेट्टी, माधव पवार आशा खाडिलकर सहित काफी हस्तियों को महाराष्ट्राची गिरीशिखरे अवार्ड से नवाजा.

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इन हस्तियों को अपने हाथों से ट्रॉफी देने के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सम्बोधित करते हुए कहा-‘‘मैं यहाँ सभी पुरस्कृत हस्तियों को बधाई देता हूँ.यह सभी अपने अपने क्षेत्रों के दिग्गज लोग हैं.जिन्हें भी सम्मानित किया गया न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि पूरा देश आप सभी पर गर्व महसूस करता है. समाज के कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों के लिए उदाहरण पेश करते हैं. ऐसे ही लोगों को आज यह सम्मान दिया गया.पुरस्कार से प्रोत्साहन मिलता है.इसलिए समाज में अच्छा काम करने वालों का समय समय पर सम्मान किया जाना जरूरी होता है.  हम सब भारत माता की संतान हैं और अपने देश का नाम ऊंचा करने की दिशा में हम सबको कार्य करना चाहिए.पीपल स आर्ट सेंटर से जुड़े तमाम लोगों का मैं अभिनंदन करता हूँ.‘‘

1 मई 1960 को कोंकण, पश्चिमी महाराष्ट्र, विदर्भ और मराठवाड़ा के एक बहुभाषी राज्य मराठी भाषी लोगों के रूप में महाराष्ट्र के गठन तक लगभग डेढ़ दशक तक महाराष्ट्र का एक बहुमुखी इतिहास रहा है.इस शानदार कार्यक्रम में शास्त्रीय और लोक कलाकारों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए गए.

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Sushmita Sen ने किया बौयफ्रेंड Rohman Shawl से ब्रेकअप, शेयर किया ये पोस्ट

बौलीवुड इंडस्ट्री में जहां इन दिनों शादियों का सिलसिला जारी है तो वहीं हाल ही में एक्ट्रेस सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) के ब्रेकअप की खबरों ने फैंस को चौंका दिया है. दरअसल, हाल ही में खबरें थीं कि एक्ट्रेस सुष्मिता सेन का बॉयफ्रेंड रोहमन शॉल (Rohman Shawl) के साथ ब्रेकअप हो गया है, जिसके बाद अब सुष्मिता सेन ने अपने पोस्ट के साथ खबरों पर मोहर लगा दी है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सुष्मिता सेन ने ब्रेकअप पर लगाई मोहर

 

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दरअसल, एक्ट्रेस सुष्मिता सेन ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर रोहमन शॉल संग एक फोटो शेयर करते हुए ब्रेकअप की खबरों को कंफर्म किया है. वहीं इस फोटो के साथ उन्होंने लिखा है कि ‘हमने दोस्त की तरह शुरुआत की थी… हम दोस्त बने रहेंगे… रिश्ता काफी पहले ही खत्म हो चुका है… सिर्फ प्यार बचा है.’ वहीं इस कैप्शन के साथ एक्ट्रेस ने #nomorespeculations का हैशटैग भी शेयर किया है.

 

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ब्रेकअप की छाईं थीं खबरें

 

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सुष्मिता सेन और रोहमन शॉल के ब्रेकअप की खबरें अक्सर सामने आती रहती थीं, हालांकि दोनों बाद में एक दूसरे के साथ रोमांटिक फोटोज शेयर करके इन खबरों को अफवाह बताते थे. लेकिन हाल ही में खबरें थीं रोहमन शॉल ने एक्ट्रेस का घर छोड़ दिया है. हालांकि दोनों ने इस खबर पर कोई रिएक्शन नहीं दिया था. लेकिन अब इस पोस्ट के बाद फैंस को झटका लगा है.

 

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वर्क फ्रंट की बात करें तो एक्ट्रेस सुष्मिता सेन की हाल ही में डिज्नी हॉट स्टार पर वेब सीरीज आर्या 2 रिलीज हुई थी, जिसके चलते वह सुर्खियों में छाई हुई हैं. लेकिन ब्रेकअप की खबरों से सोशलमीडिया छा गया है.

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‘भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अवार्ड 2021’ से सम्मानित हुए ये सेलेब्स

हाल ही में मुंबई के इस्कॉन ऑडिटोरियम में चांद सुल्ताना के ‘भारत निर्माण फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट’ द्वारा “भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अवार्ड 2021“ का शानदार आयोजन किया गया. इस अवार्ड फंक्शन में मुख्य अतिथि के रूप में किरीट सोलंकी (मेम्बर अॉफ पार्लियामेंट, लोक सभा) मौजूद रहे.    इस अवसर पर गायिका मधुश्री ने ‘यहां कान्हा सो जा जरा’ तथा गायक उदित नारायण ने ‘‘पापा कहते हैं..’’ गाकर मौजूद लोगों को भाव विभोर कर दिया.

प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अवार्ड 2021“ से सलमा आगा, उदित नारायण, अनु मलिक, दीपशिखा नागपाल, मधुश्री,  निहारिका रायजादा, सुनील पाल, डॉ भारती लव्हेकर (एमएलए), एकता जैन, कैलाश मासूम, एकांश भारद्वाज,मौरिस नोरोन्हा, डॉ खालिद शेख, डॉ राजेश डेरे, परवेज लकड़ावाला, सत्यम आनंदजी, विजय केड़िया, आराध्या गुप्ता, वैजयंतीमाला कांबले, चंद्रकांत द्विवेदी को नवाजा गया.

मशहूर गायक सलमा आगा ने इस अवसर पर कहा-‘‘यह दर्शकों की मोहब्बतें हैं कि हमारे परिवार के लोग चार पीढ़ियों से पसंद किए जा रहे हैं. मेरी बेटी ज़ारा खान का गाना ‘कुसु कुसु’ काफी हिट हुआ है. मैं चांद सुल्ताना को बधाई देती हूं कि वह भारत निर्माण फाउंडेशन चैरिटबल ट्रस्ट की अध्यक्ष हैं, जिनके द्वारा भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम अवार्ड का शानदार आयोजन किया  गया. चांद सुल्ताना सेंसर बोर्ड की सदस्य भी हैं. इतनी छोटी सी उम्र में इन्होंने काफी बड़ा मुकाम हासिल किया है. यह इनका पहला अवार्ड शो है, जो बेहद कामयाब रहा. मैं कलाम साहब जैसी हस्ती के नाम का अवार्ड पाकर गौरवान्वित महसूस कर रही हूं.’’

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जबकि संगीतकार अनु मलिक ने कहा-‘‘किरीट सोलंकी जी ने मुझसे कहा कि आपने ‘बॉर्डर’ सहित कई फिल्मों में देशभक्ति पूर्ण संगीत दिया है. मैं बेहद खुश हूं कि मुझे एपीजे अब्दुल कलाम के नाम का अवार्ड दिया गया ऐसा लग रहा है कि जैसे मुझे उनकी दुआएं मिलीं.’’

एकांश भारद्वाज ने कहा-‘‘ एक तो यह अवार्ड शो डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब के नाम पर था, उसपर से यहां इतनी बड़ी बड़ी हस्तियां स्टेज पर मौजूद थीं, ऐसे में मुझे एंकरिंग की जिम्मेदारी दी गई, जो मेरे लिए काफी चैलेंजिंग थी. मुझे खुशी है कि लोगों ने बतौर एंकर मेरे काम को सराहा, उदित नारायण जी ने मेरे लिए दो शब्द कहे, तो अच्छा लगा. भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अवाड्र्स 2021 की ट्रॉफी हासिल करना मेरे लिए उम्र भर का यादगार लम्हा रहा.’’

फिल्म ‘सूर्यवंशी’ फेम अभिनेत्री निहारिका रायज़ादा ने कहा-‘‘एपीजे अब्दुल कलाम के नाम का अवार्ड मिलना मेरे लिए गर्व की बात है. कलाम साहब जैसा दिमाग रखने वाले व्यक्तित्व एक मिसाल होते हैं. सूर्यवंशी फ़िल्म के लिए मुझे यह अवार्ड मिला है. मैं तमाम आयोजकों की शुक्रगुजार हूं.’’

स्टैंडअपन कॉमेडियन सुनील पाल ने कहा-‘‘एपीजे अब्दुल कलाम के नाम का अवार्ड मिलना बड़ी बात है. मैं कैलाश मासूम और चांद सुल्ताना का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे इस सम्मान से नवाजा.’’

उदित नारायण ने कहा-‘‘चांद सुल्ताना का शुक्रिया. भारत निर्माण फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट का आभार. अब्दुल कलाम जैसे इंसान, राष्ट्रपति के नाम का पुरस्कार पाकर गर्व महसूस होता है.’’

पालघर से आई सोशल वर्कर वैजयंती माला कांबले को भी इस सम्मान से नवाजा गया जो वर्षों से लोगों की मदद कर रही हैं.

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एक्टिंग में जल्दी काम न मिलने की वजह बता रहे है एक्टर सौरभ गोयल

नैनीताल के पास एक छोटा सा क़स्बा किच्छा है, वहां से निकल कर इंजिनीयरिंग की पढाई पूरी करने के बाद अभिनेता सौरभ गोयल मुंबई आये और काफी संघर्ष के बाद उन्हें छोटे-छोटे काम विज्ञापनों,टीवी शो और फिल्मों में मिलने लगे. दिल्ली पढाई करते हुए उन्होंने बैरीजोन एक्टिंग स्कूल और मुंबई में व्हिसलिंग वुड्स में ट्रेनिंग ली थी. करीब 10 साल की मेहनत के बाद उन्हें फीचर फिल्म ‘छोरी’ में मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला और चर्चा में आये. फिल्म में उनके अभिनय की आलोचकों ने काफी प्रशंसा की और आगे उन्हें इसका फायदा मिल रहा है. ये फिल्म उनके जर्नी की माइलस्टोन साबित हुई है,हालाँकि अभी भी वे संघर्ष रत है, लेकिन धीरज की कमी उनमे नहीं है. वे हर बार एक अलग और चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाना चाहते है. उनसे बात करना रोचक था, पेश है, कुछ अंश.

सवाल बिना गॉडफादर के इंडस्ट्री में काम मिलना कितना कठिन था?

जवाब – मेरी कोई जान-पहचान नहीं है, यहाँ तक पहुँचने में मुझे 10 साल लग गए है. संघर्ष अभी भी जारी है, काम का संघर्ष रहता है, क्योंकि बाहर से आकर फिल्म हिट होने पर भी नया काम मिलने में समय लगता है. परिवारवाद से संपर्क रखने वालों को थोडा अधिक काम अवश्य मिलता है. नए कलाकार को आगे आने में समय लगता है, लेकिन एक या दो शो हिट होने पर उन्हें भी काम मिलता है. मेरे मेहनत का फल मुझे मिलने लगा है. बाहर से आने वालों के लिए संघर्ष अवश्य होता है. इसके अलावा फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वालों को आज भी अच्छा नहीं माना जाता. लोग अपने बेटे को डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते है, आर्ट के क्षेत्र को तवज्जों नहीं दी जाती, लेकिन मेरे पेरेंट्स ने मुझे पढाई पूरी कर इस फील्ड में आने की सलाह दी. मुम्बई एक महंगा शहर है और इतने सालों से मैं यहाँ रह रहा हूँ. कहावत है कि यहाँ काम करना आसान है, लेकिन काम ढूँढना बहुत मुश्किल है. असल में काम ढूंढने की प्रोसेस बहुत कठिन है.

सवाल – ऑडिशन देते समय आपको किस तरह के रिजेक्शन का सामना करना पड़ा?

जवाब – पहले अधिकतर लोग शकल को देखकर ही मना कर देते थे या कहते थे कि ऑडिशन दे दो, लेकिन इस शो में आपको नहीं रखा जायेगा, पर पिछले कुछ सालों से ऑडिशन की प्रथा बदली है, क्योंकि पहले एक खास चेहरा इंडस्ट्री में चलता था, जिसमें गोरे, फिट बॉडी और सुंदर नाक नक्श को ही लिया जाता था, तब हमारे जैसे साधारण कद – काठी के कलाकारों को काम नहीं मिलता था. पिछले 4 से 5 सालों से इसमें बदलाव आया है, आज उन्हें ऐसा चेहरा चाहिए, जो आम चेहरा हो, जिससे आम इंसान कनेक्ट कर सके. इससे मुझ जैसे साधारण कलाकारों को काम मिल रहा है, जो एक अच्छी बात है.

सवाल– पहला ब्रेक कब और कैसे मिला?

जवाब – पहला ब्रेक साल 2012-13 में परवरिश एक टीवी शो में कैमियों किया, इसके बाद धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया.

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सवाल–‘छोरी’ फिल्म में काम करने खास वजह क्या रही?

जवाब – एक हॉरर फिल्म थी और हमारे देश में हॉरर फिल्म अधिक नहीं बनती, इसलिए मैं इसकी कहानी सुनकर एक्साईट हो गया था. इसके अलावा ये एक मराठी फिल्म ‘लापाछापी’ पर आधारित फिल्म है. निर्देशक भी विशाल फुरिया है और इस फिल्म को बहुत सारे अवार्ड मिले है, तो मेरे लिए मना करने की कोई वजह नहीं थी. कन्या भ्रूण हत्या पर बनी ये एक कमर्शियल फिल्म होने के साथ-साथ मैने इसमें मुख्य भूमिका भी निभाई है.

सवाल–हमारे देश में ऐसे कई दकियानूसी बातें और सोच है, जिसे बदलना बहुत जरुरी है, ऐसे में किस तरह की मानसिकता और जिम्मेदारी होने जरुरत है, आप क्या सोचते है?

जवाब – मेरे ख्याल से एक जेनरेशन से दूसरी जेनरेशन बदलती जा रही है, ऐसे ही धीरे-धीरे सोच बदल रही है. इसमें आगे आने वाली जेनरेशन को अच्छी शिक्षा,सही मानसिकता रखने, बेटे – बेटी में फर्क न समझने वाले, बराबर के अधिकार की सोच रखने की जरुरत है. इसमें हमारे बच्चों को आगे आकर अपने बच्चों को वैसी शिक्षा देनी पड़ेगी. इसमें समाज, परिवार, धर्म, टीवी, फिल्म्स आदि सभी जिम्मेदार है. गांव या छोटे कस्बों में थोडा समय लग सकता है, लेकिन सुधार होना शुरू हो चुका है.

सवाल इस फिल्म को हिट होने पर दर्शकों की प्रतिक्रिया क्या रही?

जवाब – सभी को मेरी भूमिका पसंद आई है. आज सोशल मीडिया एक अच्छीमाध्यम है, जहाँ आप अपनी बातें मेसेज कर सकते है, पहले ऐसी बात नहीं थी, किसी भी कलाकार को आगे आने में समय लगता था. सोशल मीडिया पर ढेरों ऐसे मेसेज है, जिसे पढ़कर मुझे ख़ुशी हुई.

सवालएक्टर बनना एक इत्तफाक था या बचपन से सोचा था ?

जवाब – बचपन से थोडा शौक था, लेकिन मैं जिस परिवार और जगह से हूँ, वहां एक्टिंग को लेकर कुछ लेना-देना नहीं था, मुंबई आने पर भी मेरा किसी से कोई परिचय नहीं था. मैं एक इंजीनियर हूँ और कॉलेज के दौरान थिएटर ग्रुप ज्वाइन किया और इस ओर जाने का मन किया. इसके बाद मैंने इंजीयरिंग की पढ़ाई पूरी की, लेकिन नौकरी नहीं की और मुंबई आ गया. यहाँ पर शुरुआत कुछ टीवी शो, वेब सीरीज और अब फीचर फिल्म मैंने किया है.

सवालकास्टिंग काउच का सामना केवल लड़कियों को ही नहीं, लड़कों को भी करना पड़ता है, क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ?

जवाब – मैंने भी इस बारें में सुना है, पर मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि जब भी मुझे कुछ ऐसी बातों का अंदाजा होता है, तो मैं रास्ता बदल लेता हूँ, उसमें घुसता नहीं, क्योंकि किसी से भी बात करते समय जब बातें दूसरी दिशा में जाने लगे, तो पलट जाना बेहतर होता है. मैं हमेशा काम आने पर उसकी छानबीन कर मिलने जाता हूँ, ताकि किसी प्रकार की अनकम्फ़र्टेबल मुझे न लगे.

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सवाल– यहाँ तक पहुँचने में किसका श्रेय मानते है?

जवाब– माता -पिता का सहयोग हमेशा रहता है, भले ही वे कई बार मेरे फैसले से दुखी हुए, पर अंत में सब ठीक हो गया. भाई – बहन और दोस्तों ने भी बहुत सहयोग किया है.

सवाल– आप के सपनो की राजकुमारी कैसी हो?

जवाब– अभी तक मैंने सोचा नहीं है, लेकिन मेरे लिए वह लड़की ठीक है, जिसने मुझे दिल से चाही हो, मैं एक सुलझा हुआ शांत, व्यक्ति हूँ, मेरे साथ वैसी ही कोई लड़की सही रहेगी, जो मेरे साथ मिलकर काम करें और महत्वाकांक्षी हो.

सवाल– आपको अगर कोई सुपर पॉवर मिले तो आप क्या बदलना चाहते है?

जवाब– करप्शन को हटाना, हायजिन के बारें में जागरूक करना, अच्छी सड़क का निर्माण करना, गांव में अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करना है, ताकि आगे हमें देश के विकास में इनका योगदान रहे.

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21 साल बाद 70th Miss Universe बनीं Harnaaz Sandhu, इंडिया को दिलाया ताज

मिस यूनिवर्स 2021 (Miss Universe) का सपना हर कोई देखता है, लेकिन देश के लिए यह सम्मान जीतना बेहद गौरव की बात है. वहीं इसी गौरव और सम्मान को 21 साल बाद हरनाज संधू (Harnaaz Sandhu) भारत को दिलाया है. दरअसल, 21 साल बाद हरनाज संधू ने मिस यूनिवर्स 2021 का खिताब अपने नाम कर लिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

7वीं मिस यूनिवर्स बनीं ये हसीना

 

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हाल ही में 70th Miss Universe 2021 के रिजल्ट की घोषणा की गई, जिसमें भारत का नेतृत्व करने वाली हरनाज संधू ने ये खिताब अपने नाम कर लिया है. वहीं इस दौरान एक्ट्रेस दिया मिर्जा भी नजर आईं. तो दूसरी तरफ एक्ट्रेस उर्वशी रौतेला ब्यूटी कॉन्टेस्ट की जज की कुर्सी संभालते दिखीं.

 

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इमोशनल हुईं हरनाज

 

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पंजाब के चंडीगढ़ की रहने वाली हैं हरनाज संधू एक मॉडल हैं. वहीं 70th Miss Universe 2021 का खिताब जीतते ही हरनाज संधू इमोशनल होती हुई नजर आईं.  वहीं जीत की बात की जाए तो प्रतियोगियों से पूछे गए आखिरी सवाल ने जीत हरनाज के नाम करवाई. दरअसल, फाइनल राउंड में टॉप तीन प्रतियोगियों से पूछा गया कि आप दबाव का सामना कर रहीं महिलाओं को क्या सलाह देना चाहती हैं, जिसके जवाब में हरनाज संधू ने कहा, आपको मानना होगा कि आप सबसे अलग हैं. ये खूबी ही आपको सबसे खूबसूरत बनाती है. आपको आगे बढ़कर बोलना होगा क्योंकि अपनी जिंदगी के लीडर आप खुद ही हैं.

 

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बता दें, टौप 3 में हरनाज संधू के साथ साउथ अफ्रीका और पराग्वे की हसीनाएं थीं. वहीं इन हसीनाओं को हराकर हरनाज ने ये जीत हासिल की है. इसके अलावा बात करें आखिरी मिस यूनिवर्स की तो साल 1994 में सुष्मिता सेन और साल 2000 में लारा दत्ता के बाद हरनाज संधू ने ये सम्मान हासिल किया  है.

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रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः टीसीरीज

निर्देशकः अभिषेक कपूर

लेखकः सुपार्तिक सेन व तुशार परांजपे

कलाकारः आयुष्मान खुराना, वाणी कपूर,कंवलजीत सिंह,अंजन श्रीवास्तव,गौतम शर्मा,गौरव शर्मा,तान्या ओबेरॉय,गिरीश धमीजा व अन्य

अवधिः एक घंटा 57 मिनट

आयुष्मान खुराना लगातार लीक से हटकर उन विषयों पर आधारित फिल्मों में अभिनय करते जा रहे हैं,जिन विषयों या मुद्दों पर लोग बातचीत करने से परहेज करते हैं. अब वह ट्रांस ओमन सेक्स आपरेशन करवाकर पुरूष से स्त्री बन रहे हैं,उन्हें इंसान समझने व उन्हे सम्मान देने की बात करने वाली फिल्म ‘‘चंडीगढ़ करे आशिकी’’ में नजर आ रहे हैं,जो कि दस दिसंबर से देश के सिनेमाघरों में रिलीज हुई है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में चंडीगढ़ में जिम के मालिक,बॉडी बिल्डर, फिटनेस प्रेमी तथा अपने शहर का गबरू जवान का खिताब जीतने के लिए हर वर्ष प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले मनविंदर मंुजाल उर्फ मनु ( आयुष्मान खुराना ) के इर्द गिर्द घूमती है. मनु को शादी व्याह व लड़कियों में कोई रूचि नही है. मनु हर वर्ष प्रतियोगिता हारते रहते हैं. तो वहीं उनके अथक प्रयासों के बावजूद उनका जिम घाटे में ही रहता है. एक दिन मनु अपने जिम में बतौर जुम्बा नृत्य प्रशिक्षक मानवी ब्रार ( वाणी कपूर ) को शामिल करते हैं.  फिर सब कुछ बदल जाता है. जिम फायदे में पहुंच जाता है. मानवी खूबसूरत और आकर्षक लड़की है. लेकिन मानवी का अपना अतीत है. मानवी ब्रार कभी लड़का थी. पर उसे अपने अंदर स्त्रीत्व के ही भाव व लक्षणों का अहसास होता था. अपने आपको एक पूर्ण इंसान बनाने के लिए वह अपना ‘सेक्स चेंज आपरेशन’ करवाकर खूबसूरत लड़की मानवी बन जाती है. अब उसे एक स्त्री होने पर गर्व है. जबकि समाज और उसके परिवार के लोग उसे बहिस्कृत कर देते हैं. इसी वजह से वह अंबाला छोड़कर चंडीगढ़ आ जाती है और मनु के जिम में जुम्बा नृत्य प्रशिक्षक बन जाती है.

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इधर मनु और मानवी के बीच रोमांस शुरू हो जाता है. मनु की बहने,पिता व दादा सोचते हैं कि अब जल्द ही मनु व मानवी की शादी हो सकती है. उधर  मनु और मानवी के बीच सेक्स शारीरिक संबंध बनते हैं और वह इसे काफी इंज्वॉय करता है. एक दिन मानवी हिम्मत जुटाकर अपने अतीत के बारे में मनु को बता देती है. मानवी कभी लड़का थी,यह जानकर मनु को खुद से ही घृणा हो जाती है. मनु के सिर से मानवी के प्यार का भूत उतर जाता है. वह मानवी से संबंध खत्म कर लेता है. फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. मानवी को उसके परिवार के सदस्यों के साथ साथ मनु व मनु के परिवार के सदस्य भी स्वीकार कर लेते हैं.

लेखन व निर्देशनः

निर्देशक अभिषेक कपूर ने मानवीय पहलुओं का चित्रण करने के साथ ही हल्के फुल्के ह्यूमरस परिस्थितियों को भी खूबसूरती से गढ़ा है. उन्होने हार्ड हीटिंग विषय को बड़ी गंभीरता,संजीदगी व परिपक्वता के साथ पेश किया है. फिल्म की शुरूआत काफी हल्की फुल्की है. इंटरवल तक फिल्म बड़े ही खुशनुमा माहौल में आगे बढ़ती है,मगर इंटरवल के बाद फिल्म गंभीर हो जाती है. लेखकद्वय ने बड़ी खूबसूरती से इस बात को रेखांकित है कि हर इंसान अपनी जिंदगी को अपने अंदाज में जीने के लिए स्वतंत्र है. हर इंसान   यह तय करने के लिए स्वतंत्र है कि वह कौन है और क्या रहना चाहता है. फिल्म इस बात को साफ तौर पर कहती है कि बच्चे मां बाप की जागीर नही होते. फिल्म के अधिकांश संवाद पंजाबी भाषा में हैं. फिल्म में सेक्स से ही बात शुरू और सेक्स पर ही खत्म होती है. फिल्म में कई सेक्स व संभोग दृश्य हैं,जिन्हे देखकर इसे साफ्ट पॉर्न फिल्म भी कह सकते हैं. इस फिल्म को देखने के बाद कुछ लोग संेसर बोर्ड पर सवाल उठा सकते हैं कि सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को ‘ए’ प्रमाणपत्र देने की बजाय क्या सोचकर ‘यूए’ प्रमाणपत्र दिया है. इतना ही नही कुछ लोगों को बहनों द्वारा सेक्स को लेकर अपने भाई के साथ की गयी बातचीत भी पसंद नही आने वाली है.

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अभिनयः

मनविंदर मुंजाल उर्फ मनु के किरदार को आयुष्मान खुराना ने अपने अभिनय से जीवंत किया है. उन्होने खुद को ‘चंडीगढ़ ब्वॉय’के रूप में बदला है. मानवी ब्रार के किरदार में वाणी कपूर ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ अभिनय किया है. फिल्म में वाणी कपूर और आयुष्मान खुराना की केमिस्ट्री लाजवाब है. अन्य कलाकार ठीकठाक हैं.

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हिंदी सिनेमा की अभिनेत्री कैटरिना कैफ और अभिनेता विक्की कौशल 9 दिसम्बर 2021 को राजस्थान के सवाई माधोपुर स्थित सिक्स सेंसस बरवाड़ा फोर्ट में परिणय सूत्र में बंध गए. ये एक रॉयल थीम में की गई शादी है, जिसमें कैटरिना डोली में और विक्की सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर शादी के मंडप पहुंचे. खबरों की मानें तो,कपल दो रीति-रिवाज के अनुसार एक साथ अपने जीवन की शुरुआत करने जा रहे है.

शांत, हंसमुख विक्की और कैट एक दूसरे को दो साल से डेट कर रहे थे, लेकिन इसकी भनक कभी नहीं लगी. कई बार मिडिया को इसकी भनक लगी और इसकी सच्चाई जानने की कोशिश करने पर भी दोनों ने इस राज को दबाये रखा और हंसकर टाल दिया. दोनों के नजदीकियां लॉकडाउन के दौरान बढ़ी और दोनों बॉलीवुड की विवाहित कपल की श्रेणी में शामिल हो चुके है.

 

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एक इंटरव्यू में विकी कौशल ने कहा था कि जब उन्हें कोई प्यार करने वाला सच्चा साथी मिलेगा, तभी वह डेट और शादी करेगा. कैटरिना कैफ से भी उनकी शादी के बारें में पूछे जाने पर उसने जोर से हँसते हुए कहा था कि अभी मैं शादी तक सिंगल हूँ और जब शादी करुँगी, सबको सूचित भी करुँगी, इसलिए सभी प्रशंसक को इंतजार करना पड़ेगा. बात सही थी अभिनेत्री ने बहुत ही धूमधाम से शाही अंदाज में शादी की. कैटरिना कैफ की शादी की ऑउटफिट फेमस सेलेब्रिटी डिजाइनर सब्यसाची ने किया है.

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दोनों परिवारों के सदस्यों और करीबी दोस्तों के साथ मेहंदी औरसंगीत खास बनाने के लिए नेहा कक्कड़, हार्डी संधू, रोहनप्रीत आदि भी शामिल हुए. सूत्रों की माने तो इस शादी में 120 मेहमान शामिल हुए, जिसमे अधिकतर सेलेब्रिटी ही रहे,सभी ने पति-पत्नी को दिल से आशीर्वाद दिया. कैटरीना कैफ ने पारंपरिक उत्तर भारतीय दुल्हन की तरह नजर आई उन्होंने अपनी शादी के लिए पिंक कलर का खूबसूरत लहंगा पहना था, जिसमें शानदार एंब्रॉयडरी की गई थी, इसके साथ कैटरीना कैफ के बालों में गजरा सजा हुआ था, उन्होंने अपने लहंगे को चूड़ा, नथ, मांग टीका समेत पूरे सोलह श्रृंगार के साथ विवाह किया.

 

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कैटरीना कैफ और विक्की कौशल शादी के बाद दोनों फिल्मों के सेट पर वापस लौटेंगे. प्रोजेक्ट्स पूरे करने के बाद कैटरीना कैफ और विक्की कौशल मालदीव्स हनीमून मनाने जाएंगे. हनीमून के बाद कैटरीना कैफ और विक्की कौशल फिर से अपने प्रोफेशनल लाइफ में बिजी हो जाएंगे.

कैटरीना जहाँ हिंदी फिल्म जगत की पॉपुलर एक्ट्रेस की श्रेणी में जानी जाती है. वहीं व‍िक्‍की कौशल इंडस्‍ट्री के उभरते नाम है, उन्होंने मसान, उरी व शहीद उधम स‍िंह जैसी फ‍िल्‍मों से खुद को सिद्ध किया है.

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फिल्म निर्माता, निर्देशक की किस प्रौब्लम का जिक्र कर रहे है एक्टर Manoj Bajpayee

फिल्म ‘बेंडिटक्वीन’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाले अभिनेता मनोज बाजपेयी को फिल्म ‘सत्या’ से प्रसिद्धी मिली. इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.बिहार के पश्चिमी चंपारण के एक छोटे से गाँव से निकलकर कामयाबी हासिल करना मनोज बाजपेयी के लिए आसान नहीं था. उन्होंने धीरज धरा और हर तरह की फिल्में की और कई पुरस्कार भी जीते है.बचपन से कवितायें पढ़ने का शौक रखने वाले मनोज बाजपेयी एक थिएटर आर्टिस्ट भी है. उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी  में हर तरह की कवितायें पढ़ी है. साल 2019 में साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा गया है.ओटीटी पुरस्कार की प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित मनोज बाजपेयी कहते है कि ओटीटी ने फिल्म इंडस्ट्री को एक नई दिशा दी है, पेंड़ेमिक और लॉकडाउन में अगर इसकी सुविधा नहीं होती, तो लोगों को घर में समय बिताना बहुत मुश्किल होता,वे और अधिक तनाव में होते. हालांकि अभी भी लोग थिएटर हॉल जाने से डर रहे है, क्योंकि ओमिक्रोन वायरस एकबार फिर सबको डरा रहा है.

करनी पड़ेगी मेहनत

आज आम जनता की आदत घरों में आराम से बैठकर फ़िल्में अपनी समय के अनुसार देखने की है,ऐसे में फिल्म निर्माता, निर्देशक, लेखक और कलाकार के लिए थिएटर हॉल तक दर्शकों को लाना कितनी चुनौती होगी ?पूछे जाने पर मनोज कहते है कि सेटेलाइट टीवी, थिएटर, ओटीटी आदि ये सारे मीडियम रहने वाले है. लॉकडाउन के बाद थिएटर हॉल में दर्शकों की संख्या कम रही, पर सूर्यवंशी फिल्म अच्छी चली है. दर्शकों को समय नहीं मिल रहा है कि वे कुछ सोच पाए और हॉल में बैठकर फिल्म का आनंद उठाएं. कोविड वायरस उन्हें समय नहीं दे रहा है. असल में सभी की आदत बदलने की वजह पेंडेमिक है,जो पिछले दो सालों में हुआ है, इसे कम करना वाकई मुश्किल है.इसके अलावा इसे आर्थिक और सहूलियत से भी जोड़ा जा सकता है, क्योंकि अब दर्शक घरों में या गाड़ी में बैठकर अपनी पसंद के अनुसार कंटेंट देख सकते है, इसमें उन्हें थोड़े पैसे में सब्सक्रिप्शन और इन्टरनेट की सुविधा मिल जाती है और वे एक से एक अच्छी फिल्में देख सकते है, इसमें पैसे और समय दोनों की बचत होती है. फिल्म निर्माता, निर्देशक, कहानीकार, कलाकार आदि सभी के लिए ये एक चुनौती अवश्य है, क्योंकि फिर से लार्जर देन लाइफ’ और अच्छी कंटेंट वाली फिल्में देखने ही दर्शक हॉल तक जायेंगे और इंडस्ट्री के सभी को मेहनत करनी पड़ेगी, लेकिन मैं इतना मानता हूँ कि कोविड सालों तक रहने वाली नहीं है, उम्मीद है वैज्ञानिक जल्द ही इस बीमारी की दवा अवश्य खोज लेंगे और तब सुबह एक टेबलेट लेने से शाम तक व्यक्ति बिल्कुल इस कोविड फीवर से स्वस्थ हो जाएगा. तब दर्शक बिना डरे फिर से थिएटर हॉल में आयेंगे. इसके अलावा ओटीटी की वजह से नए और प्रतिभाशाली कलाकारों को देखने का मौका मिला है, जो बिग स्टार वर्ल्ड लॉबी से दूर अपनी उपस्थिती को दर्ज कराने में सफल हो रहे है, जिसमें नए निर्देशक, लेखक, कलाकार, एडिटर, कैमरामैन आदि सभी को काम मिल रहा है.

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आहत होती है क्रिएटिविटी

कई बार ओटीटी फिल्मों में कुछ अन्तरंग दृश्य या अपशब्द होते है, ऐसे में कई बार फिल्म निर्देशकों और कलाकारों को धमकी मिलती है कि वे ऐसी फिल्में न बनाये और न ही एक्टिंग करें, क्योंकि ये समाज के लिए घातक साबित हो सकती है.फिल्म बनाने वाले पर ऐसे लोग अपना गुस्सा भी उतारते है. इसके अलावा कुछ लोग इन फिल्मों पर सेंसर बोर्ड की सर्टिफिकेशन करने पर जोर देते आ रहे है. इस बारें में मनोज बाजपेयी कहते हैकि डर के साये में क्रिएटिविटी पनप नहीं सकती. सुरक्षा के लिए कठिन कानून होनी चाहिए, क्योंकि क्रिएटिव माइंड पर किसी की दखलअंदाजी से क्रिएटिव माइंड मर जाती है. किसी भी फिल्म को बनाने में सालों की मेहनत होती है, अगर उसमें कोई दूसरा आकर कुछ बदलाव करने को कहे, तो उस फिल्म को दिखाने का कोई अर्थ नहीं होता. समाज के आईने को उसी रूप में दिखाने के उद्देश्य से ऐसी फिल्में बनती है. दर्शकके पास सही फिल्म चुनने का अधिकार होता है.वे ही तय करते है कि फिल्म या वेब सीरीज उनके या उनके बच्चे देखने के लायक है या नहीं. सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को पूरा करने में निर्माता, निर्देशक के साथ नहीं होता, इसलिए वे सालों की मेहनत को नहीं समझते, लेकिन वे सर्टिफाइड करते है, इससे फिल्म की कंटेंट का अस्तित्व समाप्त हो जाता है.

एक्टर बनने की थी चाहत

मनोज बाजपेयी पिछले 25 साल से काम कर रहे है और उन्होंने हर चरित्र को अपनी इच्छा के अनुसार ही चुना है. बचपन की दिनों को याद करते हुए मनोज कहते है कि मुझे छोटी उम्र से फिल्में देखने का शौक था और मेरे पिता मुझे कभी-कभी शहर ले जाकर फिल्में दिखाते थे, तब उस छोटे से पंखे वाली हॉल में देखना भी अच्छा लगता था. थिएटर से मैं फिल्मों में आया और मुझे हमेशा अनुभवी कलाकारों से बहुत कुछ सीखने को मिला है. सभी ने मुझे सहयोग दिया, इसलिए आज मैं भी जरूरतमंद को सहयोग करता हूँ.

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वेब सीरीज ‘ Dil Bekraar’ में नजर आएंगी एक्ट्रेस Poonam Dhillon, पढ़ें इंटरव्यू

1980 के दशक की कामयाब, खुबसूरत और ग्लैमरस लुक की धनी अभिनेत्री पूनम ढिल्लों किसी परिचय की मोहताज़ नहीं. उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखी है, पहली फिल्म ‘त्रिशूल’ की सफलता के बाद फिल्म ‘नूरी’ जो बहुत कम बजट में बनाई गयी हिट फिल्म थी. अभिनेता फारुख शेख के साथ बनी इस फिल्म को दर्शकों का प्यार खूब मिला. इससे पूनम इंडस्ट्री पर राज करने लगी और उनकी अधिकतर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट रही. पूनम ने हिंदी फिल्मों के अलावा साउथ की फिल्मों में भी काम किया है.

पूनम को जितनी सफलता फिल्मों में मिली, उतनी उनके निजी जीवन में प्यार के रूप में नहीं मिली. उनके प्यार के चर्चे रमेश तलवार, राज सिप्पी और अशोक ठाकरिया से रही. किसी कारणवश रमेश तलवार और राज सिप्पी के प्यार को छोड़कर पूनम ने निर्माता अशोक ठाकरिया से शादी की और दो बच्चों,अनमोल और पालोमा की माँ बनी. पति की एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर और पत्नी पर ध्यान न देने की वजह से पूनम ने बच्चों की कस्टडी अपने पास रखकर साल 1997 में तलाक लिया. पूनम ने फिल्मों के अलावा थिएटर और टीवी में भी काम किया है. वह 100 से अधिक फिल्में कर चुकी है. अभी उनकी वेब सीरीज ‘दिल बेक़रार’ डिजनी + हॉटस्टार पर रिलीज होने वाली है. इसे पेंड़ेमिक के दौरान बहुत मुश्किल से शूट किया गया है. पूनम से उनकी जर्नी के बारें में वर्चुअली बात की, पेश है कुछ खास अंश.

सवाल – इस वेब सीरीज को एक्सेप्ट करने की खास वजह क्या है?

जवाब –पहले थोड़ी सोच थी कि ये कैसी होगी और मेरा करना सही होगा या नहीं,क्योंकि वेब के दर्शक अलग होते है और कंटेंट भी अलग होते है. पिछले कुछ सालों में वेब सीरीज बहुत पोपुलर हो चुकी है और इसकी पहुँच भी बहुत अधिक है. इसके अलावा एक अच्छी कहानी,अच्छी सेटअप, सही निर्देशक और अच्छे साथी कलाकार हो, तो अधिक सोचने और झिझकने की जरुरत नहीं होती.

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सवाल –क्या आप पहले की प्यार आज के प्यार में कुछ अंतर पाती है?

जवाब – पहले और अब की प्यार में कोई अंतर नहीं होती, क्योंकि व्यस्क होना कुदरती है. समय के साथ सब कुछ बदलती है, हाँ इतना जरुर है कि ये कहानी 80 के दशक की है, अब देश इलेक्ट्रोनिकली काफी आगे बढ़ चुका है. फ़ोन, गाड़ी, वीडियोज, टीवी,रिकार्ड्स, आदि कई चीजे है, जिसका मॉडर्न रूप हमारे सामने है, लेकिन रिश्ते और इमोशन वैसे ही रहते है, केवल भाषा थोड़ी बहुत बदल जाती है, कुछ नए शब्द इसमें जुड़ जाते है. हमारे ज़माने में चीजें थोड़ी साधारण हुआ करती थी. आज की जेनरेशन ने कभी फ़ोन डायल नहीं किया होगा, बटन प्रेस किया है. चीजे बदलती है, जबकि कुछ एक जैसी ही रहती है.

सवाल – आज के समय में रिश्तों की अहमियत बहुत कम रह गयी है, क्योंकि अधिकतर यूथ जॉब की तरह रिश्ते बदलते रहते है, इस बारें में आपकी राय क्या है?

जवाब – ये एक बड़ी चर्चा का विषय है, लेकिन मैं इसमें इतना कहूंगी कि 80 के दशक में हम सभी को कहीं भी जाना हो, माता-पिता को बताकर जाना था. मैं जितनी भी बड़ी हो जाऊं, पर बोलकर ही कही जाना पड़ता था. ये एक प्रकार का सिस्टम परिवार में होता था. आज के बच्चों में भी ऐसे संस्कार होने चाहिए. वे कही जाने पर पेरेंट्स को बताएं, क्योंकि उन्हें समझना है कि पेरेंट्स हर काम बच्चों की भलाई के लिए ही करते है. उन्हें अपमानित करना या दोषी बताना ठीक नहीं. इसके अलावा ये भी सही है कि आज के बच्चे माता-पिता से दूर पढने या जॉब करने चले जाते है. मेरी बेटी और बेटा जब भी बाहर जाते है, मेरे फ़ोन करने पर वे मुझे निश्चित होकर सोने को कहते है, लेकिन मुझे नींद तब तक नहीं आती, जब तक बच्चे घर नहीं आ जाते. पेरेंट्स की फ़िक्रमंदी उन्हें समझ में नहीं आती.

सवाल – ये कहानी 80 के दशक की किस बात बताने की कोशिश कर रही है?

जवाब – इसमें 80 के दशक की पोलिटिकल और सोशल इवेंट्स किस तरीके की होते थे, जिसमें लोगों की सोच और नजरिये को बताते हुए नई जेनरेशन के विचार को दर्शाने की कोशिश की गई है. ये एक पारिवारिक कहानी है, जिसमें बच्चे का बड़े होना, जॉब करना, शादी करना आदि कई चीजों को शामिल किया गया है और ये हर परिवार में होता है, ये एक नार्मल फीचर है. 80 के दशक को पृष्ठभूमि में रखते हुए नई जेनरेशन को दिखाने की कोशिश की गयी है.कुछ सालों पहले जहाँ एक गाडी के बीच रास्ते में रुक जाने पर सभी लोग कार से उतरकर धक्का मारते है, पर उन्हें इसमें कोई शर्म नहीं, बल्कि अपने पास गाडी होने का गुमान होता था.

सवाल –आपने काफी दिनों बाद ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कदम रखी है, जबकि उस समय के काफी कलाकार काम कर रहे है, इसकी वजह क्या रही?

जवाब –मैंने रैट रेस में नहीं पड़ते हुए और अपनी सुविधा के अनुसार परिवार की देखभाल करते हुए काम किया है. जब कभी लगता है कि अगले 6 महीने फिल्म या टीवी नहीं कर सकती तब मैंने काम आने पर भी उसे छोड़ दिया, क्योंकि इस उम्र में मुझे किसी के साथ किसी प्रकार की कॉम्पिटिशन नहीं करना है. लाइफ में कम्फर्ट जरुरी है और मैं खुद का ध्यान रखती हूं. इतने सालों से काम कर रही हूं और अब प्रायोरिटी थोड़ी अलग हो चुकी है.

सवाल – आपके बच्चों का रुझान किस क्षेत्र में है?

जवाब –मेरे बेटे की एक फिल्म ओटीटी पर रिलीज हुई है, क्योंकि लॉकडाउन था और हॉल बंद थे. अभी वह दूसरे प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. बेटी की इच्छा फिल्मों में आने की है, लेकिन अभी कोई निर्णय उसने नहीं लिया है.

सवाल – आपने बहुत कम उम्र से अभिनय की शुरुआत की और कामयाब रही, क्या फिल्म इंडस्ट्री में किसी प्रकार की बदलाव महसूस करती है?

जवाब – आज कहानियां काफी रीयलिस्टिक हो चुकी है. मसलन अगर एक कहानी एक बच्चे पर है, तो पूरी कहानी उस बच्चे के इर्दगिर्द घूमती हुई बन जाती है. इसके अलावा बायोपिक्स का दौर भी आ चुका है. पहले पुराने हिस्टोरिकल चरित्र पर बायोपिक फिल्में बनती थी, जबकि आजकल जीवित व्यक्ति की भी बायोपिक बन जाती है. पहले ऐसी जीवंत लोगों के बारें में कोई सोच भी नहीं सकता था.

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सवाल – आपकी इतनी फिल्मों में कौन सी फिल्म आपके दिल के करीब है और क्यों?

जवाब – उस समय काम बहुत अधिक हुआ करते थे,हॉल में जाकर फिल्मे देखना संभव नहीं था. बाद में डीविडी आई तो कुछ फिल्में मैंने देखी, पर अपनी नही, क्योंकि अपनी फिल्मों को देखने में कोई मज़ा नहीं था. कई बार लोग कहते है कि मेरी फिल्म टीवी पर आ रही है, तो मैं उसे देख लेती हूं. शूटिंग, डबिंग के बाद फिल्म थिएटर में आ गयी, बस मेरा काम खत्म हो जाता था, लेकिन अब जब देखती हूं तो लगता है कि कुछ आलोचना खुद को ही कर लेना आवश्यक है. मेरी फिल्म सोहनी महिवाल बहुत अच्छी बनी थी. मेरे हिसाब से एक नोस्टाल्जिया होती है और उसे याद करना अच्छा लगता है. इसके अलावा नूरी फिल्म इतनी इम्पैक्टफुल फिल्म होगी, मुझे पता नहीं था, क्योंकि उस समय मेरी उम्र भी कम थी. इस फिल्म को बहुत सादगी से बनायीं गयी है और इसके गाने एवरग्रीन है.

सवाल – अभी घर पर आपकी रूटीन कैसी होती है?

जवाब –हर एक हाउसवाइफ की तरह मैं घर की देखभाल करती हूं, एक जमाना था, जब हमें सामान खरीदने बाज़ार जाना पड़ता था, अब घर पर एक फोन कॉल से समान घर पहुँच जाता है. कई बार मैं बच्चों को इसकी दायित्व लेने के लिए कहती हूं. इसके अलावा थोड़ी वर्कआउट भी करती हूं.

सवाल – क्या कोई मेसेज देना चाहती है?

जवाब – आज की महिलाएं घर और जॉब दोनों को आसानी से सम्हाल लेती है. इसलिए उन्हें जो भी काम पसंद हो, उसे करें, छोड़े मत.

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