बेऔलाद: भाग 5- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

मगर नायरा ने नरेश से बात तक करना छोड़ दिया था. उस की तो बस एक ही जिद थी कि उसे अपनी मां से मिलना है. हार कर नरेश ने ही घुटने टेक दिए और बताया कि उस की मां दक्षिण अमेरिका के चिली में रहती है. नायरा के सामने एक बहुत बड़ी समस्या यह थी कि वहां जाने के लिए पैसे भी बहुत लगेंगे… वहां तक पहुंचेगी कैसे? वहां की भी तो यहां से अलग है. लेकिन जब उसे पता चला 12 टूरिस्टों में से एक ‘चिली’ का है तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. जब उस ने उस से बात की और अपनी समस्या से अवगत कराया तो वह नायरा की मदद के लिए तैयार हो गया. उस ने यह भी कहा कि वह नायरा को वहां की थोड़ीबहुत भाषा भी सिखा देगा. 46 साल का जेम्स बहुत ही अच्छा इंसान था. वह नायरा को ‘सिस्टर’ कह कर बुलाता था. जगहजगह घूमना और वहां की युनीक चीजों को अपने कैमरे में कैद करना उस का फैशन था.

सिर पर हाथ रखे बैठी नायरा सोच ही रही थी कि यहां तक तो समस्या सुल?झते दिख रहा है, लेकिन पैसे… वे कहां से आएंगे? बिना पैसे के वह उतनी दूर अपनी मां से मिलने कैसे जाएगी? तभी अपने सामने अपने पापा नरेश को खड़े देख वह उठ खड़ी हुई. उसे लगा नरेश फिर उसे सम?झने आया है कि वह अपनी जिद छोड़ दे. लेकिन नरेश ने उस के हाथों में ब्लैंक चैक पकड़ाते हुए कहा कि वह जितने चाहे पैसे निकल ले. लेकिन वह अपना ध्यान रखे. पहुंचने पर एक फोन जरूर कर दे. बोलते हुए नरेश की आंखों से आंसू गिर पड़े, जिन्हें वह अपनी शर्ट से पोंछने लगा ताकि नायरा देख न ले. लेकिन अगर नायरा को अपने पापा के आंसुओं की इतनी ही चिंता होती तो वह उन्हें छोड़ कर जाती ही क्यों?

उसे तो अब भी यही लग रहा था कि नरेश ने उसे उस की मां से छीन कर उसे अपनी

जिंदगी से बाहर फेंक दिया. उसे लगा रहा था दुनिया के सारे मर्द एकजैसे हैं. नरेश ने कितना सम?झया कि जैसा वह सम?झ रही है वैसा बिलकुल नहीं है और अगर उस की मां को उस से प्यार होता तो क्या वह एक बार फोन कर के उस का हालचाल नहीं पूछती? लेकिन अपनी मां की तरह ही जिद्दी नायरा, 7 समुंदर पार उस से जोली से मिलने निकल पड़ी. नायरा की बहुत सी आदतें जोली से मिलतीजुलती थीं. नायरा को भी अपनी मां की तरह आर्किटैक्चर बनने का शौक था. वह भी शादी में विश्वास नहीं रखती थी. वह भी अपनी मां की तरह देशदुनिया घूमना पसंद करती थी.

अमेरिका रवाना होते समय नरेश ने खुद की और जोली की एक पेयर फोटो नायरा को थमाते हुए कहा था कि यही उस की मां है. नरेश ने फोटो इसलिए दिया ताकि जोली को लगे कि नायरा सच कह रही है. नायरा ने देखा, देखने में वह बहुत कुछ अपनी मां जैसी ही है. रास्ते भर वह अपनी मां से मिलने के खयालों में खोयी रही. उसे तो लग रहा था जैसे वह सपना देख रही है. लेकिन यह सच था कि जेम्स की मदद से वह चिली पहुंच चुकी थी. लेकिन कई दिनों की कोशिशों के बाद भी उसे जोली के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था. फिर एक दिन जेम्स ने उसे बताया कि जोली का पता चल गया. उस की मां यहीं चिली में ही अपना आर्किटेक्चर का फर्म चलाती है. जेम्स ने ही सु?झया कि क्यों न वह आर्किटेक्चर में इंटर्नशिप के बहाने जोली से मिले. नायरा को यह आइडिया बहुत ही अच्छा लगा और उस ने वही किया. अपनी मां को अपने इतने करीब देख कर नायरा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. मन तो किया उस का अपनी मां के गले लग जाए और कहे कि वह उस की बेटी है. लेकिन क्या वह किसी अंजान लड़की पर भरोसा करेगी? इसलिए नायरा को अभी कुछ बताना उचित नहीं लगा.

नायरा को तो पता था वह उस की मां है, पर जोली तो नहीं जानती थी कि वह उस की बेटी है. लेकिन फिर भी उसे नायरा का साथ बहुत अच्छा लगता था. अच्छा लगने का एक कारण यह भी था कि नायरा इंडिया से थी. नहीं, उसे नरेश की याद नहीं आती थी. मगर कुछ तो था जो उसे इंडिया से जोड़े हुए था लेकिन क्या, नहीं पता उसे. नायरा यहां एक पीजी में रहती है जो जेम्स की मदद से मिला था. पीजी अच्छा था लेकिन जोली के पूछने पर कह दिया कि वहां उसे अच्छा नहीं लगता है. ताकि जोली उसे अपने घर आ कर रहने को इनवाइट करे और वह जरा नानुकर के बाद मान जाए. यह आइडिया भी उसे जेम्स ने ही दिया था. जेम्स फोन पर उस से उस का हालचाल लेता रहता था. खैर, नायरा अब जोली के साथ उस के घर आ कर ही रहने लगी थी. लेकिन उसे जोली को अपने बारे में बताने का मौका नहीं मिल रहा था.

इंसान शराब तब पीता है जब वह बहुत खुश हो या बहुत ज्यादा दुखी. जोली बहुत

दुखी थी क्योंकि आज उस के एकलौते बेटे का जन्मदिन था और वह अपनी मां से मिलना भी नहीं चाहता था. जोली का अपने पति ग्रेग से सालों पहले तलाक हो चुका था. दोनों के बीच बच्चे की कस्टडी को ले कर ?झगड़ा चला, लेकिन जीत ग्रेग की हुई. उस ने कोर्ट में यह साबित कर दिया कि जोली एक अच्छी मां नहीं और आस्टिन, जोली का बेटा उस का भविष्य उस के साथ सुरक्षित नहीं है.  हालांकि, कोर्ट ने उसे अपने बेटे से मिलने की अनुमति दी थी. पर खुद आस्टिन ही अपनी मां से मिलना नहीं चाहता है. उसे उस की मां दुनिया की सब से बुरी मां लगती है. अपने बेटे को याद कर जोली पैग पर पैग लिए जा रही थी और बकबक बोले भी जा रही थी. ज्यादा शराब कहीं जोली को नुकसान न पहुंचा दे, यह सोच कर नायरा ने उसे और शराब पीने से रोका, तो वह कहने लगी कि उस से ज्यादा बदकिस्मत औरत इस दुनिया में और कोई नहीं होगी. कहते हैं इंसान जब नशे में होता है तो सच बोलता है और आज जोली भी सारी सचाई उगलने लगी. शराब के नशे में पुरानी सारी बातें उस ने नायरा के सामने खोल कर रख दीं. यह भी कि वह नरेश के बच्चे की मां बनने वाली थी और उस ने एक बेटी को जन्म दिया था.

‘‘तो अब वह बच्चा कहां है?’’ वह जानना चाहती थी कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि उसे अपनी बेटी को छोड़ कर यहां आना पड़ा.

‘‘बेटी को छोड़ कर. अरे नहीं, मुझे तो वह बच्चा चाहिए ही नहीं था,’’ शराब का एक घूंट भरते हुए वह बोली.

‘‘फुलिश मैन नरेश को लगा मैं उस से प्यार करती हूं और शादी करूंगी. पागल,’’ बोल कर एक ?झटके में ही पूरा ग्लास खाली कर दिया और ठहाके लगा कर आगे बोली, ‘‘वह बच्चा मेरी जिंदगी की पहली और आखिरी गलती थी जिसे मैं ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया. मैं ने कितनी कोशिश की थी अबौर्शन कराने की पर सारे डाक्टरों ने मना कर दिया. अपने देश आ कर अबौर्शन करा नहीं सकती थी क्योंकि मुझे जेल नहीं जाना था. इसलिए मजबूरन मुझे वहां रहना पड़ा ताकि उस बच्चे को जन्म दे सकूं.’’

‘‘तो वह बच्ची कहां है अब?’’ नायरा ने पूछा.

‘‘कचरे के डब्बे में… मैं उसे कचरे के डब्बे में फेंक आई थी क्योंकि उस की असली जगह वही थी.’’

जोली की बात सुन कर नायरा सन्न रह गई. उस की आंखों से ?झर?झर आंसू बहने लगे.

‘‘मुझे उस बच्चे से कुछ लेनादेना ही नहीं था तो फिर यहां ला कर क्या करती? पता नहीं, पर उसे जरूर लावारिस जानवर खा गए होंगे,’’ बोलते हुए जोली की जबान भी नहीं लड़खड़ाई.

आखिर कोई मां इतनी बेरहम दिल कैसे हो सकती है. नायरा को अपने पापा की याद सताने लगी थी. कहा था उन्होंने जैसे वह अपने पापा के बारे में सोच रही है, बात वह नहीं बल्कि… लेकिन कहां सुन पाई थी वह नरेश की पूरी बात. बीच में ही अपने कान बंद कर लिए थे ताकि कुछ सुन ही न पाए.

जोली की 1-1 बात उसे सूई की तरह चुभ रही थी. नायरा वहां से उठ कर जाने ही लगी कि उस का सिर घूम गया और वह वहीं पर गिर पड़ी.  होश आया तो वह अस्पताल में थी. जोली उस के पास बैठी उस का माथा सहला रही थी, पूछ रही थी कि अचानक उसे क्या हो गया. लेकिन नायरा के पास कोई जवाब नहीं था. उसे तो बस अब अपने पापा के पास जाना था. नरेश ने अपनी बेटी की खातिर आज तक शादी नहीं की और इस औरत ने सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ देखा.

नायरा ने फोन कर अपने बीमार होने की बात जब नरेश को बताई, तो वह पागलों की तरह भागता हुआ यहां पहुंच गया. अचानक वर्षों बाद नरेश को अपने सामने देख कर जोली की आंखें फटी की फटी रह गईं. उसे अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि नरेश उस के सामने खड़ा है. लेकिन जब भरोसा हुआ और जाना कि नायरा कोई और नहीं, बल्कि उस की वही बेटी है जिसे वह कचरे में फेंक आई थी. बेटी के लिए उस के दिल में प्यार उमड़ पड़ा. कहने लगी, ‘‘मैं मानती हूं कि मु?झ से गलती हुई, बहुत बड़ी गलती हुई. लेकिन मुझे माफ कर दो नरेश. इतनी बड़ी सजा मत दो मुझे. प्लीज, नरेश लौटा दो मेरी बेटी मुझे,’’ जोली नरेश के सामने हाथ जोड़ कर कहने लगी, ‘‘बोलो न नायरा को वह मुझे छोड़ कर न जाए. नायरा मैं तुम्हारी मां हूं मैं ने तुम्हें जन्म दिया है. मेरा हक है तुम पर… और देखो, यह घर, औफिस यहां तक की अपना सारा बैंक बैलेंस भी मैं तुम्हारे नाम कर दूंगी. प्लीज, बेटा, माफ कर दो अपनी मां को. मत जाओ मुझे छोड़ कर,’’ घिघियाते हुए जोली दोनों के सामने हाथ जोड़ने लगी. सब उस की जिंदगी से जा चुके थे. अब उसे नायरा में ही अपना सहारा नजर आ रहा था.

‘‘माफ कर दूं आप को जिस ने मेरे पापा को सिर्फ यूज किया अपने स्वार्थ के लिए. मुझे लगा था पापा गलत है इसलिए इन से लड़?झगड़ मैं यहां आप के पास आ गई थी. लेकिन गलत थी मैं.

हमारे यहां एक कहावत है, ‘पूत भले ही कुपूत बन जाए, पर माता कभी कुमाता

नहीं होती.’ लेकिन आज देख रही हूं कि एक माता भी कुमाता हो सकती है. एक मां अपने बच्चे को मरने के लिए छोड़ सकती है,’’ बोलतेबोलते नायरा का स्वर तेज हो गया…, ‘‘और आप ने सोच भी कैसे लिए कि सबकुछ जानने के बाद भी मैं आप के साथ आ कर रहूंगी? नहीं चाहिए मुझे आप का यह घर, औफिस और बैंक बैलेंस.

‘‘पापा, आप ने सही कहा था, मेरी मां मर चुकी है,’’ कह कर नायरा अपने पापा का हाथ पकड़ कर जाने लगी, लेकिन फिर पलट कर बोली, ‘‘एक बात और… 2 बच्चों को जन्म देने के बाद भी आज तुम बेऔलाद हो और रहोगी क्योंकि तुम इसी लायक हो.’’

अपनी बेटी को जाते वह देखती रह गई क्योंकि उसे रोकने का उसे कोई हक नहीं था. उस के लिए तो उस की बेटी कब की मर चुकी थी.

बेऔलाद: भाग 4- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

‘‘शादी… और तुम से?’’ जोली अजीब तरह से हंसते हुए बोली, ‘‘तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम से शादी करूंगी? वन सैकंड… कहीं तुम ने यह तो नहीं सम?झ लिया कि मैं तुम से प्यार करती हूं? ओह…,’’ और जोली ने अपने सिर पर हाथ रख लिया,’’ सही कहा है किसी ने कि तुम इंडियंस इमोशनी फूल होते हो. आज देख भी लिया. फिजिकल रिलेशनशिप का मतलब यह नहीं होता कि मैं तुम से प्यार करती हूं और तुम से शादी करना चाहती हूं. समझ लो जैसे पेट की भूख को शांत करने के लिए हम खाना खाते हैं, वैसे ही शरीर की भूख को भी शांत करना पड़ता है, ‘दैट्स इट, यू अंडर स्टैंड? और यह बच्चा एक गलती है जिसे मैं आज ही ठीक कर दूंगी.’’

जोली की दोटूक बातों से नरेश स्तब्ध हो उसे ताकने लगा. बाहर चाय ले कर खड़ी पुष्पा भी उन की बातें सुन कर वहीं जड़ हो गई. उन्हें तो सम?झ ही नहीं आ रहा था कि जो उन्हें सुना वह सही है या उन के कान बज रहे हैं?

फिर भी नरेश कहने लगा, ‘‘जोली, तुम भले ही मु?झ से प्यार न करो, पर मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और यह बच्चा, यह हमारे प्यार की निशानी है. प्लीज, इसे मत गिराओ, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं जोली.’’

लेकिन जोली उस के प्यार को अपने पैरों की जूती बताते हुए अपने कपड़े अटैची में भरने लगी कि अब उसे यहां रहना ही नहीं है.

‘‘ठीक है, चली जाओ, जहां भी जाना है. लेकिन मेरे बच्चे को मारने की सोचना तक नहीं,’’ नरेश ने उस का हाथ पकड़ते हुए कहा.

यह सुन कर जोली ने उसे घूर कर देखा और फिर गुर्राते हुए बोली, ‘‘लीव माई हैंड, आई सैड लीव माई हैंड.’’

नरेश ने भले ही उस का हाथ छोड़ दिया, लेकिन उस के बोल अब भी वही थे कि इस बच्चे पर उस का भी उतना ही अधिकार है जितना जोली का. इसलिए उस की मरजी के बिना वह इस बच्चे को गिरा नहीं सकती है.

‘‘तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई ऐसा सोचने की कि मैं तुम्हारे बच्चे को जन्म दूंगी?’’ एक नफरत भरी नजर नरेश पर डालते हुए जोली दनदनाती हुई उस के घर से निकल गई.

पीछे से पुष्पा रोकती रहीं, गिड़गिड़ाती रहीं, पर उस ने पलट कर भी नहीं देखा.

अभी कुछ ही वक्त पहले जो नरेश जोली से शादी के सपने देख रहा था, हकीकत में वही जोली उस की सारी खुशियों को अपने पैरों तले रौंदती हुई बाहर निकल गई.

जोली जल्द से जल्द यह बच्चा गिरवा कर अपने देश लौट जाना चाहती थी. जोली दक्षिण अमेरिका के देश ‘चिली’ की रहने वाली थी और वहां अबौर्शन कानूनन अपराध है. वहां बहुत ही जरूरी परिस्थिति में कोर्ट अबौर्शन की अनुमति देता है. इसलिए जोली यह ?झं?झट यही निबटा देना चाहती थी. लेकिन डाक्टर ने साफ तौर पर कह दिया कि यह अबौर्शन नहीं हो सकता क्योंकि इस से जोली की जान को खतरा है. सुन कर जोली की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. लेकिन उसे किसी भी हाल में, कैसे भी यह बच्चा गिराना ही था. इसलिए उस ने दूसरे डाक्टर से संपर्क किया और कहा कि वह पैसों की चिंता न करे, जितने चाहिए देने के लिए तैयार है, पर उसे यह बच्चा नहीं चाहिए. लेकिन सभी डाक्टरों का यही कहना था कि अब बच्चा अबौर्शन नहीं हो सकता. जोली के पास अब एक ही रास्ता बचा था कि वह इस बच्चे को जन्म दे.

बोलतेबोलते पुष्पा को ऐसी खांसी उठी कि उस की जान ले कर ही गई. दादी के जाने का गम और मां के जिंदा होने की खुशी न तो नायरा को रोने दे रही थी और न खुश होने. नायरा की एक आंख से दुख के आंसू, तो दूसरी से खुशी के आंसू बह रहे थे. गुस्सा उसे इस बात पर आ रहा था कि उसके पापा ने उस से ?झठ कहा कि उस की मां मर चुकी है, जबकि वह जिंदा है. ऐसा क्यों किया उस के पापा ने? लेकिन नरेश कहने लगा उस ने जो भी सुना वह आधा सच है.

‘‘तो पूरा सच क्या है बताइए न मुझे?’’ नायरा अपने पापा को हिकारत भरी नजरों से देखते हुए बोली, ‘‘क्या बताएंगे आप? फिर कोई ?झठी कहानी गढ़ कर सुना देंगे, है न? लेकिन अब मैं आप की बातों में आने वाली नहीं समझे आप और यह बात भी सुन लीजिए, मेरी मां चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहती हो मैं उन्हें ढूंढ़ निकालूंगी,’’ बोल कर नायरा दनदनाती हुई अपने कमरे में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

बाहर से दरवाजा पीटते हुए नरेश ने कितना कहा कि जैसे वह अपने पापा के बारे में सोच रही है, वैसी बात नहीं है. लेकिन नायरा ने तो जैसे अपने कानों में रुई ठूंस ली थी कि उसे नरेश की कोई भी बात सुननी ही नहीं है.

नरेश पूरी रात चिंता और अनिद्रा के तनाव से करवटें बदलते हुए सोचता रहा कि आखिर गलती कहां हो गई उस से? काश, नायरा पूरी सचाई जान पाती, फिर उसे पता चलता कि नरेश ?झठ नहीं बोल रहा है बल्कि उस की मां उसे मरने छोड़ गई थी. जोली किसी बंधन में बंध कर नहीं रहना चाहती थी. वह तो आजाद पंछी की तरह अपने पंख फैला कर पूरे आकाश में उड़ना चाहती थी.

किसी तरह और 5 महीने यहां काटने के बाद जब नायरा का जन्म हुआ तो वह उसे एक कचरे के डब्बे में फेंक कर अपने देश लौट गई. लेकिन उसे क्या पता था कि जिस बच्चे को उस ने कचरे के डब्बे में मरने के लिए छोड़ दिया था, उसी बच्चे को नरेश ने अपने सीने से लगा लिया था. नरेश जो हर पल जोली पीछे साये की तरह घूमता रहता था, जब उस ने जोली को अपने नवजात बच्चे को ले कर अस्पताल से बाहर निकलते हुए देखा, तो वह उस के पीछे लग गया. जैसे ही वह उस नवजात बच्ची को कचरे के डब्बे में फेंक कर भागी दौड़ कर नरेश ने उस बच्ची को वहां से निकाल लिया नहीं तो कुछ पलों की भी देरी पर वह लावारिस कुत्तों का निवाला बन जाती.

एक मां ने अपनी ही बच्ची को अपने आंचल से दूर कर दिया, लेकिन वहीं एक पिता ने उसी बच्ची को अपने सीने से लगा लिया. नायरा नरेश की जान से भी बढ़ कर थी. वह नहीं चाहता था कि नायरा को कभी भी यह बात मालूम पड़े कि जन्मते ही उस की मां ने उसे कचरे के डब्बे में मरने के लिए फेंक दिया था. इसलिए उस ने पुष्पा को वादा दे दिया था कि यह बात नायरा को न बताएं. नरेश ने आज तक शादी भी इसीलिए नहीं की क्योंकि नायरा ही उस की सबकुछ थी.

बेऔलाद: भाग 3- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

‘‘मेरे बारे में?’’ नरेशा हंसा और बोला, ‘‘अब क्या बताऊं मैडमजी, जब मैं 10 साल का था तभी मेरे पिताजी मुझे छोड़ कर चले गए और कुछ महीने बाद दादी भी हमें अकेला कर गईं. फिर मां ने लोगों के कपड़े सिल कर मुझे बड़ा किया, पढ़ायालिखाया. लेकिन मेरा मन पढ़ने में जरा भी नहीं लगता था. सोचता, क्या करूं जो मां को काम न करना पड़े. इसलिए मैं ने एक गैराज में नौकरी कर ली. लेकिन वहां भी मेरा मन नहीं लगा, तो गाइड बन गया और आज आप के सामने खड़ा हूं,’’ बोल कर नरेश हंसा तो जोली भी खिलखिला पड़ी. नरेश कहने लगा कि अब यही उस की छोटी सी दुनिया है.

‘‘नरेश… तुम्हारी यह छोटी सी दुनिया बहुत ही सुंदर है और देखो अब मैं भी तुम्हारी इस छोटी सी दुनिया की सदस्य बन गई न,’’ बोल कर जोली ने नरेश को चूम लिया.

जोली के ऐसे व्यवहार से नरेश का पूरा शरीर सिहर उठा. वह तो

सम?झ ही नहीं सका कि एकदम से यह क्या हो गया. अपलक वह जोली को देखने लगा.

‘‘क्या हुआ… करंट लगा?’’ बोल कर जोली ने फिर उस के गालों पर किस कर लिया, ‘‘अच्छे लगते हो तुम मुझे,’’ बोल कर जोली ने उस की आंखों में ?झंका तो शरमा कर उस ने अपनी नजरें ?झका लीं. एकांत में जब 2 युवा दिल मिलते हैं तो अपनेआप उन के बीच की दूरियां सिमट कर छोटी हो जाती हैं. यहां भी यही हुआ. दोनों की मरजी से कुछ ही पलों में दोनों के बीच की सारी औपचरिकताएं मिट गईं और फिर ऐसा बारबार होने लगा. लेकिन जोली के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. उस के लिए तो यह पेट की भूख की तरह था. मगर नरेश इसे प्यार सम?झ बैठा. जोली हर रात नरेश के आगोश में समा जाती और वह जोली को ले कर रोज नए सपने बुनता.

नरेश को अब हर चीज में जोली ही दिखाई पड़ती थी. उस की हर सांस जोली का ही नाम जपती. उस का दिल सिर्फ और सिर्फ जोली के लिए ही धड़कता था. उस के हर खयाल में सिर्फ जोली ही होती थी. जब वह सोता तो जोली के सपने आते और जागता तो जोली के खयालों में खोया रहता. जोली के बारे में सोच कर वह अकेले में हंसता, तो कभी उदास हो जाता था. वह दीवानों की तरह जोली से प्यार करने लगा था. उस से एक पल की भी दूरी अब उस से सहन नहीं होती थी. जोली के बिना वह खुद को अधूरा महसूस करने लगा था.

उस के बदले व्यवहार को देख कर नरेश के दोस्त उसे पागलदीवाना बुलाने लगे थे. कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. पुष्पा को भी सम?झ आ गया था कि दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं. वैसे मन ही मन पुष्पा भी जोली को पसंद करने लगी थीं. बल्कि वे तो नरेश और जोली की शादी के सपने भी देखने लगी थीं. मगर दोनों ने अभी तक अपने प्यार का इजहार नहीं किया था. इसलिए कई बार उन्होंने घुमाफिरा कर नरेश से पूछा भी कि जोली उसे पसंद है? प्यार करता है वह उस से? लेकिन शर्मीला नरेश मुसकरा कर बस अपनी नजरें ?झका लेता था.

उधर जोली कहती कि हां, नरेश उसे अच्छा लगता है और वह तो इतना प्यारा है कि किसी को भी उस से प्यार हो जाएगा.

‘‘नरेश, तुम मु?झ से प्यार तो करते हो न?’’ नरेश की बांहों के घेरे में सिमटी जोली बोल रही थी.

‘‘हां, जोली, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं,’’ जोली के रेशमी बालों से खेलते हुए नरेश बोला, ‘‘जोली, मैं तुम से इतना ज्यादा प्यार करता हूं कि तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.’’

‘‘विल यू मैरी मी?’’

जोली की बात पर नरेश ने ?झट से ‘हां’ कह कर उस का हाथ थाम लिया.

‘‘अरे, छोड़छोड़ मेरा हाथ,’’ जब पुष्पा जोर से चिल्लाईं तो नरेश हड़बड़ा कर उठा बैठा. ‘ओह, तो क्या यह सपना था और मैं ने मां का हाथ… नरेश लज्जित हो उठा.

‘‘ले चाय पी और जा कर देख जोली कब से तुम्हें आवाज लगा रही है.’’

मगर नरेश ने चाय छुआ नहीं था और तुरंत जोली के पास पहुंच गया.

‘‘देखो, इस लड़के को… अरे, चाय तो पी जाता, ठंडी हो जाएगी,’’ पीछे से पुष्पा चिल्लाईं. लेकिन नरेश कहां सुनने वाला था.

पुष्पा ने सोचा वहीं जा कर उसे चाय दे आतीं वरना ठंडी हो जाएगी.

इधर नरेश जब कमरे में पहुंचा, तो देखा जोली बाथरूम से आ कर निढाल सी बिस्तर पर पड़ गई.

‘‘क्या हुआ, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ जोली का हाथ अपने हाथों से मसलते हुए नरेश ने पूछा तो वह रोने लगी.

‘‘अरे, क्या हुआ बताओ तो?’’ नरेश अब घबरा उठा.

‘‘नरेश… आई एम प्रैगनैंट.’’

‘‘प्रैगनैंट यानी तुम मां बनाने वाली हो और मैं पापा… ओह जोली, तुम ने तो मुझे खुश कर दिया,’’ और फिर जोली को अपनी गोद में उठा लिया और उसे चूमने लगा. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो उस ने सुना वह सच है.

‘‘नरेश… नरेश… नीचे उतारो मुझे और इस का कोई रास्ता ढूंढ़ो जल्दी…’’

मगर खुशी से बौखलाया नरेश गुनगुनाने लगा, ‘‘ये हरियाली और ये रास्ता… इन

राहों पर चल कर हम और तुम…’’

‘‘नरेश,’’ जोली जोर से चीख पड़ी, ‘‘मैं तुम से शौल्यूशन मांग रही हूं और तुम हो कि पागलों की तरह गाना गा रहे हो. बताओ मुझे अब मैं क्या करूं? तुम्हें तो ध्यान रखना चाहिए था न.  वैसे गलती मेरी भी थी. सोचा था कैमिस्ट से जा कर बर्थकंट्रोल पिल ले आऊंगी पर भूल गई. लेकिन जो भी हो, मुझे यह बच्चा अबोर्ट करना है.’’

‘‘अबौर्ट मतलब गर्भपात?’’ नरेश चौंका, ‘‘पर क्यों जोली? यह बच्चा तो हम दोनों के प्यार की निशानी है. हां, मुझे पता है तुम यही सोच रही हो कि लोग क्या कहेंगे. बिन ब्याही मां बनना किसी भी लड़की के लिए शर्मिंदगी की बात होती है. इसलिए हम कल ही शादी कर लेंगे.’’

‘‘व्हाट,’’ अब चौंकने की बारी नरेश की थी, ‘‘शादी, प्यार, बच्चा… यह क्या बोले जा रहे हो तुम? नो… नो… तुम शायद गलत सम?झ रहे हो.’’

‘‘कुछ गलत नहीं सम?झ रहा हूं मैं बल्कि सब सही हो जाएगा. हम आज ही मंदिर में जा कर शादी कर लेंगे, फिर लोगों को कुछ बोलने का मौका ही नहीं मिलेगा,’’ उत्साह से भरा नरेश अपनी ही रौ में बोलता चला जा रहा था.

बेऔलाद: भाग 2- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

पुष्पा की बात सुनकर नायरा स्तब्ध रह गई, उसे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था जो उसने सुना वह सच है.

‘‘हां, बेटा सच है, एकदम सच.’’

‘‘लेकिन दादी फिर पापा क्यों कहते रहे कि मां मर गई? आप ने भी क्यों नहीं बताया मुझे कि मेरी मां जिंदा है, जिस ने मुझे जन्म दिया, जिस की वजह से मैं इस दुनिया में आई, वह मरी नहीं, बल्कि जिंदा है? आप सब ने मु?झ से ?झठ क्यों कहा? क्यों ऐसा किया आप लोगों ने?’’ बोलते हुए नायरा की आंखों से ?झर?झर कर आंसू बहे जा रहे थे. मन तो किया उस का अभी इसी वक्त उड़ कर अपनी मां के पास पहुंच जाए.

‘‘बेटा, हमें गलत मत सम?झ. हमारी मजबूरी थी इसलिए हम ने तुम से वह बात छिपा कर रखी. लेकिन मरने से पहले मैं तुम्हें सारी सचाई बता देना चाहती हूं,’’ अपनी पोती के गालों को प्यार से सहलाते हुए पुष्पा बताने लगीं कि नरेश के पिताजी उदयपुर के डांगी गांव के जमींदार के यहां नौकरी किया करते थे. पहले उन का कच्चा मकान हुआ करता था. लेकिन फिर बाद में नरेश के पिताजी ने आप ने कमाए पैसों से उस घर को पक्का बनवा लिया. घर में खानेपीने की कोई कमी नहीं थी. सब बढि़या चल रहा था कि एक दिन नरेश के पिताजी चल बसे. तब नरेश 10 साल का अबोध बच्चा था. दुनियादारी की उसे कोई सम?झ नहीं थी. लेकिन पिता के गुजर जाने के बाद नरेश जैसे अचानक से सम?झदार हो गया.  मां को रोता देख कर कहता कि मां मत रो, मैं हूं न, सब ठीक कर दूंगा. लेकिन क्या ठीक करता वह. उसे तो इतनी भी सम?झ नहीं थी कि पैसे कैसे कमाए जाते हैं. कौन सी चीज कैसे खरीदी जाती है. नरेश के पिताजी के गुजर जाने से घर की स्थिति दिनबदिन बिगड़ती ही जा रही थी. घर में एक ही कमाने वाला था, वह भी नहीं रहा तो नरेश और उस की बूढ़ी दादी की जिम्मेदारी पुष्पा पर ही आ पड़ी.

मगर बेटे के गम में कुछ दिन बाद नरेश की दादी भी चल बसीं. कुछ ही समय के

अंतराल पर पति और सास को यों खो देना पुष्पा के लिए बड़ा आहत था. ऊपर से पैसों की किल्लत, कैसे पालेगी वह अपने बेटे को? घर कैसे चलेगा? नरेश की पढ़ाई कैसे होगी, सोचसोच कर पुष्पा रोने बैठ जातीं. लेकिन उस वक्त उन की सहेली ने उन्हें उन का हुनर याद दिलाया और कहा कि क्यों न वे गांव की औरतों के कपड़े सिलना शुरू कर दें. सिलाईकढ़ाई तो आती ही है उन्हें और फिर वह है न, फिर चिंता क्यों करती हैं, उस आड़े वक्त में पुष्पा की सहेली ने उन का बड़ा साथ दिया था.

धीरेधीरे पुष्पा की मेहनत रंग लाई और उन की कमाई से घर में दालरोटी चलने लगी और नरेश फिर से स्कूल जाने लगा. लेकिन नरेश का पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था. अपनी मां को काम करते देख कहींनकहीं उसे बुरा लगता था. किसी तरह खींचतान कर उस ने 12वीं तक पढ़ाई की और एक गैराज में नौकरी करने लगा. 1-2 साल किसी तरह नौकरी करने के बाद वहां से भी उस का मन ऊब गया, तो वह अपने दोस्तों की तरह गाइड का काम करने लगा. देशीविदेशी सैलनियों को घुमाना, उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति के बारे में बताना नरेश को अच्छा लगता था.

पर्यटकों को भी नरेश का बातविचार खूब पसंद आते थे. सैलानी नरेश से इतने ज्यादा प्रभावित हो जाते थे कि जातेजाते वे उस का फोन नंबर और घर का पता नोट कर ले जाते और कहते कि अगर उन का कोई दोस्तरिश्तेदार यहां घूमने आएगा, तो वे उन्हें नरेश का फोन नंबर दे कर कहेंगे कि वह बहुत अच्छा गाइड है.

विदेशी सैलानियों की तरह ही जोली भी उदयपुर घूमने आई थी. नरेश ही उस का गाइड था. नरेश के साथ कुछ ही दिनों में वह काफी हिलमिल गई. कारण, नरेश सब से जुदा था. जोली देशविदेश घूमती रहती थी. बहुत गाइडों से उस का पाला पड़ा था. लेकिन नरेश जैसा हंसमुख सरल विचारों वाला गाइड उसे पहली बार मिला था. जब देखो वह मुसकराता रहता था जैसे उस की जिंदगी में कोई दुखतकलीफ हो ही न. वह इंसान सब से जुदा था. इसीलिए जोली को उस का साथ बहुत ही अच्छा लगता था. उस के साथ रहते हुए जोली की सारी टैंशन दूर हो जाती थी. नरेश जब जोली को मैडमजी कह कर बुलाता तो वह हंस पड़ती और कहती कि मैडमजी नहीं, तुम मुझे जोली बुला सकते हो.

एक रोज बातोंबातों में ही जोली ने बताया कि उसे राजस्थान बहुत पसंद है और वह अकसर यहां आती रहती है. लेकिन उसे होटल में रहना अच्छा नहीं लगता. अगर कोई पेइंगगैस्ट मिल जाता रहने को तो मजा आ जाता. वह जितना चाहे उतना पैसा पे करने को तैयार है पर उसे घर जैसा माहौल चाहिए.

उस पर नरेश संकुचाते हुए बोला था, ‘‘पैसे की तो कोई बात नहीं से मैडमजी, लेकिन अगर आप चाहें तो मेरे गरीबखाने में आ कर रह सकती हैं. वैसे भी हमारा ऊपर वाला कमरा खाली ही है.’’

अब जोली यही तो चाहती थी. वह तुरंत होटल से अपना सामान ला कर नरेश के ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो गईं. पुष्पा के हाथों का बना खाना वह बड़े चाव से खाती और सब से अच्छा तो उसे दालबाटी लगता था. कहती, वहां जा कर यह डिश जरूर ट्राई करेगी. जब तब जोली पुष्पा के कामों में हाथ बंटा दिया करती थी. बड़ा अच्छा लगता था उसे किचन में पुष्पा की मदद कर के. उन के साथ रह कर वह बहुत कुछ बनाना भी सीख चुकी थी. दोनों के बीच मांबेटी जैसा रिश्ता बन गया था. मां का प्यार क्या होता है, उस ने पुष्पा के साथ रह कर ही जाना था वरना तो उसे कभी अपनी मां का प्यार नहीं मिला.

रोज की तरह उस रात भी दोनों खाना खाने के बाद छत पर बैठ कर कौफी का आनंद लेते हुए यहांवहां की बातें कर रहे थे. नरेश के पूछने पर कि उस के घर में कौनकौन हैं? तो जोली भावुक हो कर बताने लगी कि जब वह 8 साल की थी तभी उस के मांपापा का तलाक हो गया और वह अपनी नानी के साथ रहने चली गई थी. तलाक लेने के बाद उस के मांपापा ने दोबारा शादी कर अपनी नई दुनिया बसा ली. अपने पेरैंट्स होने का फर्ज वे बस इतना ही निभाते कि नायरा की पढ़ाई और खर्चे के लिए पैसे भेज दिया करते थे. कुछ समय बाद जब उस की नानी का देहांत हो गया, तो वह होस्टल रहने चली गई.

‘‘क्यों, आप अपने मांपापा के साथ भी तो जा कर रह सकती थी न?’’

नरेश की बात पर जोली ने बताया कि वह गई थी अपने पापा के पास रहने, पर

सौतेली मां उसे पसंद नहीं करती थी. इसलिए वह अपनी मां के पास रहने चली आई. लेकिन वहां उस का सौतेला पिता उस पर गंदी नजर रखता था. इसलिए फिर होस्टल ही उस का घर बन गया.

‘‘उफ, बहुत दुखभरी कहानी है आप की,’’ अफसोस जताते हुए नरेश बोला.

यह सुन मुसकराई और फिर ऊपर आसमान की तरफ देखती हुई एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोली, ‘‘मुझे तो यह सम?झ नहीं आता कि जब लोगों को पालना ही नहीं होता है, फिर बच्चे पैदा ही क्यों करते हैं?’’ बोलते हुए जोली की आंखें छलक आई थीं. लेकिन बड़ी सफाई से वह अपने आंसू पोंछ कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘वे सब छोड़ो… तुम बताओ, तुम्हारे जीवन में क्याक्या हुआ… मेरा मतलब है तुम्हारी परवरिश, पढ़ाई, सब जानना है मुझे.’’

बेऔलाद: भाग 1- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

तेजी से सीढि़यां उतरती हुई नायरा चिल्लाई, ‘‘दादी… दादी… जल्दी नाश्ता दो वरना मैं चली.’’

‘‘अरे, बस ला रही हूं,’’ हाथ में थाली लिए पुष्पा बड़बड़ाती हुई किचन से बाहर निकलीं और अपने हाथों से नायरा को जल्दीजल्दी आलूपरांठा और दही खिलाते हुए बोलीं, ‘‘सुन बताती जा कब आएगी क्योंकि तेरे इंतजार में मैं भूखी बैठी रहती हूं.’’

‘‘तो तुम खा लिया करो न दादी. मैं जब आऊंगी निकाल कर खा लूंगी.’’

नायरा की बात पर पुष्पा कहने लगीं, ‘‘आज तक ऐसा हुआ है कभी कि पोती भूखी रहे और मैं खा लूं.’’

‘‘ओ मेरी प्यारी दादी… इतना प्यार करती हो तुम मु?झ से,’’ कह कर नायरा ने दादी के गालों को चूम लिया और फिर अपने कंधे पर बैग टांगते हुए बोली, ‘‘ठीक है, आज जल्दी आने की कोशिश करूंगी, अब खुश?’’

लेकिन पुष्पा मन ही मन भुनभुनाते हुए कहने लगीं कि क्या खुश रहेंगी वे. जिस की जवान पोती अनजान लोगों के साथ पूरा दिन गलीगलीकूचेकूचे घूमतीफिरती रहती हो, वह दादी खुश कैसे रह सकती है. हर पल एक डर लगा रहता है कि नायरा ठीक तो होगी न… कितनी बार कहा नरेश से कि बेटी बड़ी हो गई है, ब्याह कर दो अब इस का. लेकिन उन का. सुनता ही कौन है?

पुष्पा के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख कर नायरा को सम?झते देर नहीं लगी कि उस की दादी उसे ले कर परेशान हैं. वह बोली, ‘‘दादी… तुम यही सोच रही हो न कि कैसे जल्दी से मेरी शादी हो जाए और तुम्हारी जान छूटे? तो बता दूं नहीं छूटने वाली सम?झ लो,’’ बड़ी मासूमियत से वह अंगूठा दिखाते हुए बोली और फिर डब्बे में से एक लड्डू निकाल कर पुष्पा के मुंह में ठूंसते हुए खिलखिला कर हंस पड़ी.

लेकिन वे ‘थूथू’ कर कहने लगीं कि पता है उसे कि मुझे शुगर की बीमारी है, फिर क्यों वह मुझे मीठा खिला रही है? मारना चाहती है क्या?

नायरा सिर्फ अपनी दादी की ही नहीं, बल्कि अपने पापा नरेश की भी जान है. वही

उन के जीने की वजह है. नायरा से ही पूरे घर में रौनक है. 21 साल की नायरा अपने पापा की तरह ही टूरिस्ट गाइड का काम करती है. जब नायरा बहुत छोटी थी तभी ये लोग दिल्ली आ कर बस गए थे. यहीं दिल्ली में ही नरेश का अपना खुद का मकान है.  देखने में बला की खूबसूरत नायरा को देख कर कोई कह ही नहीं सकता कि वह नरेश की बेटी है. उस का रंग ऐसा जैसे मक्खन में जरा सा सिंदूर बुरक दिया गया हो. उस की भूरी आंखें, पतले लाललाल होंठ, रेशमी बाल देख कर लोग उसे देखते ही रह जाते. उस की बातों में ऐसी चुंबकीय शक्ति कि जब वह बोलती तो लोग बस सुनते ही रहते. अपने व्यवहार से वह लोगों को अपना बना लेती.

मगर ऐसा भी नहीं था कि किसी पर भी वह आंख मूंद कर भरोसा कर लेती थी. अच्छेबुरे लोगों को पहचानना आता था उसे. 2 साल से टूरिस्ट गाइड का काम कर रही नायरा यह बात बहुत अच्छी तरह जानती कि दिल्ली में औटो वालों से मोलभाव कर के पैसे कम कैसे करवाए जाते हैं. अगर दिल्ली में कोई विदेशी टूरिस्ट परेशान है तो उस का साथ कैसे दिया जा सकता है, टूरिस्ट को कौन से ऐतिहासिक स्थानों पर घुमाना है. टूरिस्ट के साथ बातचीत करने से ले कर उन्हें सम?झने की कुशलता ही नायरा को एक कामयाब गाइड बनाता.

नायरा विदेशी टूरिस्टों को अपने देश, शहरों के बारे में बड़े विस्तार से बताती थी. जब वह गाइड बन कर अपने देश की धरोहर, सभ्यता और संस्कृति के बारे में टूरिस्टों को बताती थी तो इस काम से उसे बहुत खुशी मिलती थी.

टूरिस्ट की जौब के साथसाथ वह अपनी पढ़ाई भी जारी रखे हुए थी. 12वीं कर लेने के बाद वह आर्किटैक्चर की पढ़ाई कर रही थी. नायरा रोज लगभग 6-7 घंटे 10-12 लोगों को गाइड करने का काम करती थी. लेकिन कभी भी उसे इस काम से ऊब महसूस नहीं हुई बल्कि उसे नएनए लोगों से मिल कर, उन के बारे में जान कर मजा आता था. दुनिया के हर कोने से लोग यहां घूमने आते थे. उन के साथ समय बिताते हुए नायरा थोड़ीबहुत उन की भाषा भी बोलना सीख जाती थी. वह चाहे कभी घर देर से पहुंचे या अपने पढ़ाई की वजह से उसे देर रात तक जागना पड़े, उस का उस समय कोई साथ देता था, तो वह थी उस की दादी पुष्पा, जो उस के लिए ही जीती और मरती थीं. लेकिन उन्हें नायरा की चिंता लगी रहती है कि कहीं वह किसी मुसीबत में न फंस जाए. वैसे भी दिल्ली लड़कियों के लिए महफूज नहीं रह गई. अगर कहीं नायरा के साथ कुछ ऐसावैसा हो गया तो क्या करेंगी वे सोच कर ही पुष्पा कांप उठतीं.

मगर नायरा उन्हें सम?झती कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा क्योंकि उन की पोती अब बच्ची नहीं रही, बल्कि वह तो लोगों को रास्ता दिखाती है. लेकिन पुष्पा अपने कमजोर दिल को कैसे सम?झएं? कैसे कहें कि सब ठीक है, कुछ नहीं होगा? कितना चाहा था उन्होंने कि नरेश शादी कर ले ताकि नायरा को एक मां मिल जाए. लेकिन नरेश तो शादी की बात से ही भड़क उठता था. उस का कहना था कि अब नायरा ही उस के लिए सबकुछ है. लेकिन पुष्पा को अब अपनी पोती नायरा की शादी की चिंता सताने लगी थी. वे चाहती हैं जल्द से जल्द उस की शादी हो जाए, तो वे चैन से मर सकें.

मगर नरेश का कहना था कि नायरा किस से शादी करेगी, कब करेगी, यह उस की अपनी मरजी होगी. नरेश को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था. अपने पापा का खुद पर भरोसा देख नायरा के मन में तसल्ली जरूर हुई थी, लेकिन पुष्पा को अपने लिए इतना चिंतित देख उसे बुरा भी लगता था. ऐसे समय में नायरा को अपनी मां की याद सताने लगती और वह भावुक हो कर रो पड़ती थी.

नायरा के पैदा होते ही उस की मां चल बसी थी, यह बात उस के पापा ने ही उसे बताई थी. लेकिन नायरा जब भी अपने पापा से अपनी मां के बारे में पूछती है कि उन्हें क्या हुआ था? कैसे मर गईं वे? तो नरेश चिड़ उठता और कहता कि एक ही सवाल बारबार दोहरा कर वह उसे परेशान न किया करे.

नायरा सम?झ नहीं पाती कि मां के बारे में पूछने पर नरेश इतना भड़क क्यों जाते हैं, जबकि उस की मां तो अब इस दुनिया में भी नहीं है. लेकिन पुष्पा उसे सम?झतीं कि उस के पापा, उस की मां से बहुत प्यार करते थे और जब वह उसे छोड़ कर चली गई तो नरेश को अच्छा नहीं लगा था.

‘‘लेकिन दादी… इस में मां की क्या गलती थी? उन्होंने क्यों मरना चाहा होगा? उन्हें दुख नहीं हुआ होगा अपने पति व बच्चे को छोड़ कर जाते हुए? बोलो न दादी… चुप क्यों हो?’’

पुष्पा क्या बोलतीं? कैसे और किस मुंह से कहतीं कि उस की मां मरी नहीं, बल्कि जिंदा है.

‘‘हां, नायरा की मां जिंदा है.  लेकिन वह अपनी बेटी से कोसों दूर रहती है. इतनी दूर कि नायरा की आवाज भी उस तक नहीं पहुंच सकती है. पुष्पा नायरा को उस की मां के बारे में सबकुछ बता देना चाहती थीं. लेकिन नरेश को दिया वचन उन्हें बोलने से रोक देता था. पुष्पा अंदर ही अंदर इस सोच में घुली जा रही थीं कि उन के जाने के बाद उन की पोती का क्या होगा? कौन ध्यान रखेगा उस का? उन्हें नायरा के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. लेकिन यह बात वे नरेश से कह भी नहीं पाती थीं.

एक बार कहा था तो कैसे चिढ़ते हुए उस ने बोला था कि क्या वह मरने वाला है जो वे ऐसी बातें कह रही हैं? जिंदा है वह अभी और अपनी बेटी का खयाल रख सकता है. लेकिन पुष्पा अपने मन की उल?झन को कैसे सम?झएं कि वे क्या सोचती रहती हैं.

इधर कई दिनों से पुष्पा की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. सोतीं तो उठने का मन

ही नहीं होता. पूरे बदन में दर्द सा महसूस होता. शायद शुगर बढ़ गई हो उन की. लेकिन सारी दवाइयां तो समय से ले ही रही थीं वे, फिर क्या हुआ उन्हें? शुगर बढ़ने पर भूखप्यास ज्यादा लगती है. पर उन का तो खाना देखने तक का मन नहीं करता. पुष्पा को अब इस बात का एहसास होने लगा कि उस के पास समय कम है, लेकिन मरने से पहले वे नायरा को उस की मां के बारे में सबकुछ बता देना चाहती थीं.

‘‘बेटा, यहां मेरे पास आ कर बैठ, मुझे तुम से कुछ बातें करनी हैं,’’ नायरा को अपने पास बुलाते हुए पुष्पा बोलीं, लेकिन नायरा कहने लगी कि वह उन की सारी बातें सुनेगी, लेकिन पहले वे ठीक हो जाएं.

‘‘नहीं बेटा, फिर शायद कहने के लिए मैं न रहूं,’’ बोलते हुए वे जोर से खांसने लगीं तो नायरा दौड़ कर उन के लिए पानी लाने चली.  लेकिन पुष्पा उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए बोलीं, ‘‘नहीं… पानी नहीं… तुम यहां… मेरे पास… बैठो और और सुन लो मेरी बात क्योंकि मेरे पास समय… नहीं है. बेटा… मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूं कि तुम्हारी मां… जिंदा है, लेकिन यह बात तुम से इसलिए छिपा कर रखी गई क्योंकि नरेश नहीं चाहता था कि तुम्हें यह बात कभी पता चले.’’

ढाई आखर प्रेम का: क्या अनुज्ञा की सास की सोच बदल पाई

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शेष जीवन: विनोद के खत में क्या लिखा था

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छोटू की तलाश : क्या पूरी हो पाई छोटू की तलाश

सुबह का समय था. घड़ी में तकरीबन साढे़ 9 बजने जा रहे थे. रसोईघर में खटरपटर की आवाजें आ रही थीं. कुकर अपनी धुन में सीटी बजा रहा था. गैस चूल्हे के ऊपर लगी चिमनी चूल्हे पर टिके पतीलेकुकर वगैरह का धुआं समेटने में लगी थी. अफरातफरी का माहौल था.

शालिनी अपने घरेलू नौकर छोटू के साथ नाश्ता बनाने में लगी थीं. छोटू वैसे तो छोटा था, उम्र यही कोई 13-14 साल, लेकिन काम निबटाने में बड़ा उस्ताद था. न जाने कितने ब्यूरो, कितनी एजेंसियां और इस तरह का काम करने वाले लोगों के चक्कर काटने के बाद शालिनी ने छोटू को तलाशा था.

2 साल से छोटू टिका हुआ, ठीकठाक चल रहा था, वरना हर 6 महीने बाद नया छोटू तलाशना पड़ता था. न जाने कितने छोटू भागे होंगे. शालिनी को यह बात कभी समझ नहीं आती थी कि आखिर 6 महीने बाद ही ये छोटू घर से विदा क्यों हो जाते हैं?

शालिनी पूरी तरह से भारतीय नारी थी. उन्हें एक छोटू में बहुत सारे गुण चाहिए होते थे. मसलन, उम्र कम हो, खानापीना भी कम करे, जो कहे वह आधी रात को भी कर दे, वे मोबाइल फोन पर दोस्तों के साथ ऐसीवैसी बातें करें, तो उन की बातों पर कान न धरे, रात का बचाखुचा खाना सुबह और सुबह का शाम को खा ले.

कुछ खास बातें छोटू में वे जरूर देखतीं कि पति के साथ बैडरूम में रोमांटिक मूड में हों, तो डिस्टर्ब न करे. एक बात और कि हर महीने 15-20 किट्टी पार्टियों में जब वे जाएं और शाम को लौटें, तो डिनर की सारी तैयारी कर के रखे.

शालिनी के लिए एक अच्छी बात यह थी कि यह वाला छोटू बड़ा ही सुंदर था. गोराचिट्टा, अच्छे नैननक्श वाला. यह बात वे कभी जबान पर भले ही न ला पाई हों, लेकिन वे जानती थीं कि छोटू उन के खुद के बेटे अनमोल से भी ज्यादा सुंदर था. अनमोल भी इसी की उम्र का था, 14 साल का.

घर में एकलौता अनमोल, शालिनी और उन के पति, कुल जमा 3 सदस्य थे. ऐसे में अनमोल की शिकायतें रहती थीं कि उस का एक भाई या बहन क्यों नहीं है? वह किस के साथ खेले?

नया छोटू आने के बाद शालिनी की एक समस्या यह भी दूर हो गई कि अनमोल खुश रहने लग गया था. शालिनी ने छोटू को यह छूट दे दी कि वह जब काम से फ्री हो जाए, तो अनमोल से खेल लिया रे.

छोटू पर इतना विश्वास तो किया ही जा सकता था कि वह अनमोल को कुछ गलत नहीं सिखाएगा.

छोटू ने अपने अच्छे बरताव और कामकाज से शालिनी का दिल जीत लिया था, लेकिन वे यह कभी बरदाश्त नहीं कर पाती थीं कि छोटू कामकाज में थोड़ी सी भी लापरवाही बरते. वह बच्चा ही था, लेकिन यह बात अच्छी तरह समझता था कि भाभी यानी शालिनी अनमोल की आंखों में एक आंसू भी नहीं सहन कर पाती थीं.

अनमोल की इच्छानुसार सुबह नाश्ते में क्याक्या बनेगा, यह बात शालिनी रात को ही छोटू को बता देती थीं, ताकि कोई चूक न हो. छोटू सुबह उसी की तैयारी कर देता था.

छोटू की ड्यूटी थी कि भयंकर सर्दी हो या गरमी, वह सब से पहले उठेगा, तैयार होगा और रसोईघर में नाश्ते की तैयारी करेगा.

शालिनी भाभी जब तक नहाधो कर आएंगी, तब तक छोटू नाश्ते की तैयारी कर के रखेगा. छोटू के लिए यह दिनचर्या सी बन गई थी.

आज छोटू को सुबह उठने में देरी हो गई. वजह यह थी कि रात को शालिनी भाभी की 2 किट्टी फ्रैंड्स की फैमिली का घर में ही डिनर रखा गया था. गपशप, अंताक्षरी वगैरह के चलते डिनर और उन के रवाना होने तक रात के साढे़ 12 बज चुके थे. सभी खाना खा चुके थे. बस, एक छोटू ही रह गया था, जो अभी तक भूखा था.

शालिनी ने अपने बैडरूम में जाते हुए छोटू को आवाज दे कर कहा था, ‘छोटू, किचन में खाना रखा है, खा लेना और जल्दी सो जाना. सुबह नाश्ता भी तैयार करना है. अनमोल को स्कूल जाना है.’

‘जी भाभी,’ छोटू ने सहमति में सिर हिलाया. वह रसोईघर में गया. ठिठुरा देने वाली ठंड में बचीखुची सब्जियां, ठंडी पड़ चुकी चपातियां थीं. उस ने एक चपाती को छुआ, तो ऐसा लगा जैसे बर्फ जमी है. अनमने मन से सब्जियों को पतीले में देखा. 3 सब्जियों में सिर्फ दाल बची हुई थी. यह सब देख कर उस की बचीखुची भूख भी शांत हो गई थी. जब भूख होती है, तो खाने को मिलता नहीं. जब खाने को मिलता है, तब तक भूख रहती नहीं. यह भी कोई जिंदगी है.

छोटू ने मन ही मन मालकिन के बेटे और खुद में तुलना की, ‘क्या फर्क है उस में और मुझ में. एक ही उम्र, एकजैसे इनसान. उस के बोलने से पहले ही न जाने कितनी तरह का खाना मिलता है और इधर एक मैं. एक ही मांबाप के 5 बच्चे. सब काम करते हैं, लेकिन फिर भी खाना समय पर नहीं मिलता. जब जिस चीज की जरूरत हो तब न मिले तो कितना दर्द होता है,’ यह बात छोटू से ज्यादा अच्छी तरह कौन जानता होगा.

छोटू ने बड़ी मुश्किल से दाल के साथ एक चपाती खाई औैर अपने कमरे में सोने चला गया. लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. आज उस का दुख और दर्र्द जाग उठा. आंसू बह निकले. रोतेरोते सुबकने लगा वह और सुबकते हुए न जाने कब नींद आ गई, उसे पता ही नहीं चला.

थकान, भूख और उदास मन से जब वह उठा, तो साढे़ 8 बज चुके थे. वह उठते ही बाथरूम की तरफ भागा. गरम पानी करने का समय नहीं था, तो ठंडा पानी ही उडे़ला. नहाना इसलिए जरूरी था कि भाभी को बिना नहाए किचन में आना पसंद नहीं था.

छोटू ने किचन में प्रवेश किया, तो देखा कि भाभी कमरे से निकल कर किचन की ओर आ रही थीं. शालिनी ने जैसे ही छोटू को पौने 9 बजे रसोईघर में घुसते देखा, तो उन की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘छोटू, इस समय रसोई में घुसा है? यह कोई टाइम है उठने का? रात को बोला था कि जल्दी उठ कर किचन में तैयारी कर लेना. जरा सी भी अक्ल है तुझ में,’’ शालिनी नाराजगी का भाव लिए बोलीं.

‘‘सौरी भाभी, रात को नींद नहीं आई. सोया तो लेट हो गया,’’ छोटू बोला.

‘‘तुम नौकर लोगों को तो बस छूट मिलनी चाहिए. एक मिनट में सिर पर चढ़ जाते हो. महीने के 5 हजार रुपए, खानापीना, कपड़े सब चाहिए तुम लोगों को. लेकिन काम के नाम पर तुम लोग ढीले पड़ जाते हो…’’ गुस्से में शालिनी बोलीं.

‘‘आगे से ऐसा नहीं होगा भाभी,’’ छोटू बोला.

‘‘अच्छाअच्छा, अब ज्यादा बातें मत बना. जल्दीजल्दी काम कर,’’ शालिनी ने कहा.

छोटू और शालिनी दोनों तेजी से रसोईघर में काम निबटा रहे थे, तभी बैडरूम से अनमोल की तेज आवाज आई, ‘‘मम्मी, आप कहां हो? मेरा नाश्ता तैयार हो गया क्या? मुझे स्कूल जाना है.’’

‘‘लो, वह उठ गया अनमोल. अब तूफान खड़ा कर देगा…’’ शालिनी किचन में काम करतेकरते बुदबुदाईं.

‘‘आई बेटा, तू फ्रैश हो ले. नाश्ता बन कर तैयार हो रहा है. अभी लाती हूं,’’ शालिनी ने किचन से ही अनमोल को कहा.

‘‘मम्मी, मैं फ्रैश हो लिया हूं. आप नाश्ता लाओ जल्दी से. जोरों की भूख लगी है. स्कूल को देर हो जाएगी,’’ अनमोल ने कहा.

‘‘अच्छी आफत है. छोटू, तू यह दूध का गिलास अनमोल को दे आ. ठंडा किया हुआ है. मैं नाश्ता ले कर आती हूं.’’

‘‘जी भाभी, अभी दे कर आता हूं,’’ छोटू बोला.

‘‘मम्मी…’’ अंदर से अनमोल के चीखने की आवाज आई, तो शालिनी भागीं. वे चिल्लाते हुए बोलीं, ‘‘क्या हुआ बेटा… क्या गड़बड़ हो गई…’’

‘‘मम्मी, दूध गिर गया,’’ अनमोल चिल्ला कर बोला.

‘‘ओह, कैसे हुआ यह सब?’’ शालिनी ने गुस्से में छोटू से पूछा.

‘‘भाभी…’’

छोटू कुछ बोल पाता, उस से पहले ही शालिनी का थप्पड़ छोटू के गाल पर पड़ा, ‘‘तू ने जरूर कुछ गड़बड़ की होगी.’’

‘‘नहीं भाभी, मैं ने कुछ नहीं किया… वह अनमोल भैया…’’

‘‘चुप कर बदतमीज, झूठ बोलता है,’’ शालिनी का गुस्सा फट पड़ा.

‘‘मम्मी, छोटू का कुसूर नहीं था. मुझ से ही गिलास छूट गया था,’’ अनमोल बोला.

‘‘चलो, कोई बात नहीं. तू ठीक तो है न. जलन तो नहीं हो रही न? ध्यान से काम किया कर बेटा.’’

छोटू सुबक पड़ा. बिना वजह उसे चांटा पड़ गया. उस के गोरे गालों पर शालिनी की उंगलियों के निशान छप चुके थे. जलन तो उस के गालोंपर हो रही थी, लेकिन कोई पूछने वाला नहीं था.

‘‘अब रो क्यों रहा है? चल रसोईघर में. बहुत से काम करने हैं,’’ शालिनी छोटू के रोने और थप्पड़ को नजरअंदाज करते हुए लापरवाही से बोलीं.

छोटू रसोईघर में गया. कुछ देर रोता रहा. उस ने तय कर लिया कि अब इस घर में और काम नहीं करेगा. किसी अच्छे घर की तलाश करेगा.

दोपहर को खेलते समय छोटू चुपचाप घर से निकल गया. महीने की 15 तारीख हो चुकी थी. उस को पता था कि 15 दिन की तनख्वाह उसे नहीं मिलेगी. वह सीधा ब्यूरो के पास गया, इस से अच्छे घर की तलाश में.

उधर शाम होने तक छोटू घर नहीं आया, तो शालिनी को एहसास हो गया कि छोटू भाग चुका है. उन्होंने ब्यूरो में फोन किया, ‘‘भैया, आप का भेजा हुआ छोटू तो भाग गया. इतना अच्छे से अपने बेटे की तरह रखती थी, फिर भी न जाने क्यों चला गया.’’ छोटू को नए घर और शालिनी को नए छोटू की तलाश आज भी है. दोनों की यह तलाश न जाने कब तक पूरी होगी.

ढाई आखर प्रेम का: भाग 2- क्या अनुज्ञा की सास की सोच बदल पाई

घर में बैडरूम से अटैच बाथरूम को धोने के लिए ड्राइंगरूम को पार करते हुए बैडरूम में घुस कर ही बाथरूम जाया जा सकता था. 3 बैडरूम का मकान होने के कारण अलग से पूजाघर नहीं बना पाए थे. स्टोर में ही मंदिर रख कर पूजाघर बना लिया था पर स्टोर भी इतना बड़ा तथा हवादार नहीं था कि उस में कोई इंसान घंटे 2 घंटे बैठ कर पूजा कर पाए. वैसे भी सुबह कई बार उसे स्वयं ही कोई न कोई सामान निकालने स्टोर में जाना ही पड़ता था जिस से मांजी की पूजा में विघ्न पड़ता था. मांजी ऐसी ढकोसलेबाजी में कुछ ज्यादा ही विश्वास करती थी. इसलिए आरती कर के वे बैडरूम में ही कुरसी डाल कर पूजा किया करती थीं.

जिस समय रामू सफाई करने आता, वही उन का पूजा का समय रहता था. कई बार उस से उस समय आने के लिए मना किया पर उस का कहना था, 9 से 5 बजे तक मेरी नगरनिगम के औफिस में ड्यूटी रहती है, यदि इस समय सफाई नहीं कर पाया तो शाम के 5 बजे के बाद ही आ पाऊंगा.

मजबूरी के चलते उस का आना उसी समय होता था. उस के आते ही मांजी उसे हिकारत की नजर से देखते हुए अपनी साड़ी के पल्लू से अपनी नाक ढक लेती थीं तथा उस के जाते ही जहांजहां से उस के गुजरने की संभावना होती, पोंछा लग जाने के बाद भी फिर पोंछा लगवातीं तथा गंगाजल छिड़क कर स्थान को पवित्र करने का प्रयास करते हुए यह कहने से बाज नहीं आती थीं कि इस ने तो मेरी पूजा ही भंग कर दी.

अनुज्ञा चाह कर भी नहीं कह पाती थी कि वह भी तो एक इंसान है. जैसे अन्य अपना काम करते हैं वैसे ही वह भी अपना काम कर रहा है. अब उस के आने से उन की पूजा कैसे भंग हो गई. उन्हें समझाना उस के क्या अमित के बस में भी नहीं था. वैसे भी 2 पुत्रियों के बाद फैमिली प्लानिंग का औपरेशन करवाने के कारण अनुज्ञा उन्हें फूटी आंख भी नहीं सुहाती थी. दरअसल, मांजी को लगता था कि इस निर्णय के पीछे अनुज्ञा का हाथ है. किसी भी मां को अपना पुत्र कभी गलत लगता ही नहीं है, अगर कहीं कुछ गलत हो रहा है तो वह पुत्र नहीं, बहू के कारण हो रहा है. शायद, इसी मनोस्थिति के कारण सासबहू में सदा छत्तीस का आंकड़ा रहता है.

अपने इस आक्रोश को जबतब छोटीछोटी बात पर उसे जलीकटी सुना कर निकालती रहती थीं. वह तो अभ्यस्त हो चली थी लेकिन जब वे शीतल और शैलजा को अपने आक्रोश का निशाना बनातीं तब उस से सहन नहीं होता था लेकिन फिर भी घर में अशांति न हो या जैसी भी हैं, अमित की मां हैं, सोच कर वह अपने क्रोध को शांत करने का प्रयास करती थी लेकिन शीतल और शैलजा चुप नहीं रहती थीं. यही कारण था कि उन की अपनी पोतियों से भी नहीं बना करती थी.

रामू तो रामू, काम वाली कमली की 5 वर्षीय बेटी काजल भी यदि गलती से उन से छू जाती तो उसे भी वे कोसने से नहीं चूकती थीं, तुरंत साड़ी बदलतीं, काम वाली के धोए बरतन वे फिर पानी से इसलिए धुलवातीं कि कहीं उस ने प्राकृतिक मासिक चक्र के दौरान बरतन न धो दिए हों.

अनुज्ञा सोचती जिस चीज के कारण प्रकृति ने औरत को नारीत्व होने का सब से बड़ा गौरव दिया, भला उस के कारण वह ‘अपवित्र’ कैसे हो सकती है? वैसे काम वाली को सख्त हिदायत थी कि इन दिनों वह काम नहीं करेगी पर फिर भी उन्हें विश्वास नहीं था, उन के इस विचार के कारण कामवाली को 4 दिन की अतिरिक्त छुट्टी देनी पड़ती थी.

व्यर्थ के बढ़े इन कामों के कारण कभीकभी मन आक्रोश से भर उठता था पर घर की सुखशांति के लिए संयम बरतना उस की मजबूरी थी. वह जानती थी कि अमित को भी यह सब पसंद नहीं है पर मां के उग्र स्वभाव के कारण वे भी चुप रहते थे. कभी वे कुछ कहने का प्रयास करते तो तुरंत कहतीं, ‘हम सरयूपारीय ब्राह्मण हैं, तुम भूल सकते हो पर मैं नहीं. आज अगर तुम्हारे पिताजी होते, तुम्हारे घर का दानापानी भी ग्रहण नहीं करते. प्रकृति मुझे न जाने किन पापों की सजा दे रही है.’ इस के साथ ही उन का रोना प्रारंभ हो जाता.

अमित के पिताजी गांव के मंदिर में पुजारी थे, 4 पीढि़यों से चला आ रहा यह व्यवसाय उन्हें विरासत में मिला था. प्रकांड विद्वान होने के कारण आसपास के अनेक गांवों में उन की बेहद प्रतिष्ठा थी. दानस्वरूप प्रचुर मात्रा में मिले धन के कारण धनदौलत की कोई कमी नहीं थी. पुरखों की जमीन अलग से धनवर्षा करती रहती थी. एक दिन वे ऐसे सोए कि उठ ही नहीं पाए. अमित परिवार में सब से बड़े थे. दोनों भाई बाहर होस्टल में रह कर पढ़ रहे थे. कोई भी भाई अपने परिवार का पुश्तैनी व्यवसाय यानी पंडिताई तथा खेतीबारी अपनाने को तैयार नहीं था. इसलिए सबकुछ बेच कर तथा खेती को बटाई में दे कर वे मां को ले कर चले आए.

उस समय शीतल 2 वर्ष की थी, उस के कारण सर्विस में भी समस्या आने लगी थी. मांजी के आने से उसे लगा कि अब शीतल को संभालने में आसानी होगी पर हुआ विपरीत. दंभी और उग्र स्वभाव की होने के साथ उन की टोकाटाकी तथा छुआछूत की आदत के कारण कभीकभी उसे लगता था कि उस का सांस लेना ही दूभर हो गया है. इस के साथ उन का एक ही जुमला दोहराना कि ‘हम सरयूपारीय ब्राह्मण हैं, तुम भूल सकते हो पर मैं नहीं,’ उसे अपराधबोध से जकड़ने लगा था. गलती शायद उन की भी नहीं थी, बचपन से जो जिस माहौल में पलाबढ़ा हो, उस के लिए इन सब को एकाएक छोड़ पाना संभव ही नहीं है. इन हालात में घर संभालना ही कठिन हो रहा था इसलिए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया.

3 दिन तक मांजी को आईसीयू में रखा गया. दवाओं के बावजूद वे स्टेबल नहीं हो पा रही थीं. डाक्टर इस चिंता में थे कि कहीं इस का कारण, उन को दिया गया खून तो नहीं है, शायद उन का शरीर उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है. रामू लगातार अनुज्ञा को देखने आता रहा था. जब वह घर जाती तब वह उस के पास बैठा रहता. शीतल और शैलजा की परीक्षाएं चल रही थीं. अंतिम 2 पेपर बाकी थे इसलिए वे भी उस के पास ज्यादा देर तक बैठ नहीं पा रही थीं. सच तो यह है कि रामू के कारण वह संकट की इस घड़ी को आसानी से पार कर गई थी.

अमित भी सूचना पा कर शीघ्र लौट आए थे. आखिर 5वें दिन उन की हालत में थोड़ा सुधार आना प्रारंभ हुआ, तब चैन आया. मांजी को आईसीयू से प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. उसी दिन शीतल और शैलजा के पेपर समाप्त हुए थे. वे भी मांजी से मिलने आई थीं. उसी समय रामू भी मांजी का हालचाल लेने पहुंच गया. उसे देखते ही शीतल ने मांजी की ओर देखते हुए कहा, ‘दादी, रामू की सहायता से ही ममा आप को अस्पताल ले कर आ पाईं.’

‘क्या इस ने मुझे छूआ…?’ मांजी ने हकबका कर कहा.

‘दादी, रामू ने छुआ ही नहीं आप को अपना खून भी दिया,’ शैलजा ने कहा.

‘क्या कहा तू ने, इस का खून मुझे चढ़ाया गया?’

‘हां दादी, अगर यह नहीं होता तो आप को खून नहीं मिल पाता.’

‘इस का खून मुझे क्यों चढ़ाने दिया, इस से तो मुझे मर ही जाने देते,’ मांजी ने लगभग रोंआसे स्वर में कहा.

यह सुन कर रामू ने सिर झुका दिया तथा बिना कुछ कहे चला गया.

‘मां, मेरी अनुपस्थिति में इस ने तुम्हारी सेवा की, जो काम मुझे करना चाहिए वह इस ने किया. इस का हम से कोई संबंध नहीं है, है तो सिर्फ इंसानियत का और तुम इसे गलत समझ रही हो. तुम्हें इस के खून से परहेज है क्योंकि तुम्हारी नजरों में वह नीच जाति का है. पर मां खून तो खून ही है, इस का धर्म और जाति से भला क्या वास्ता. अगर ऐसा होता तो तुम्हारा खून इस से कैसे मेल खाता. मां, हर इंसान का खून एक जैसा है, हम इंसानों ने ही कभी कार्य, कभी जाति तो कभी धर्म के आधार पर एकदूसरे को बांट दिया है.’

‘मां, यह रामू का नहीं, उस के जैसे अनेक लोगों का दोष है कि उन्होंने एक सवर्ण के घर नहीं बल्कि तथाकथित निम्नवर्ण में जन्म लिया. मां, वह छोटा नहीं, हम से बड़ा है. जहां हम अपनी गंदगी स्वयं साफ करने में झिझकते हैं, वहीं इन्हें उसे साफ करने में कोई संकोच नहीं होता. जरा सोचो, मां, अगर यह भी हमारी तरह गंदगी को साफ करने से मना कर दे तो? क्या यह दुनिया रहने लायक रह पाएगी? अमित उन की बात सुन कर चुप न रह पाए तथा उन्हें समझाते हुए कहा.

अमित की बात सुन कर आशा के विपरीत वे कुछ नहीं बोलीं पर उन की मुखमुद्रा से स्पष्ट लग रहा था कि वे कुछ सोच रही हैं. शायद, पुत्र की बात आज उन्हें सही लग रही थी पर वे चाह कर भी दिल की बात जबां पर नहीं ला पा रही थीं. नहीं कह पा रही थीं कि तू ठीक कह रहा है बेटा, आज तक व्यर्थ ही मैं इन ढकोसलों में पड़ी रही. मैं भूल गई थी, कार्य ही इंसान को महान बनाते हैं.

‘कैसी हैं मांजी आप?’ डाक्टर ने अंदर प्रवेश करते हुए पूछा. ‘अब ठीक हूं, तुम ने बचा लिया, वरना…’ मांजी ने चौंकते हुए कहा.

‘मांजी, मुझे नहीं, अपनी बहू और रामू को धन्यवाद दीजिए. यदि ये समय पर आप को यहां नहीं ला पाते या रामू अपना खून न देता तो मैं कुछ भी नहीं कर पाता,’ डाक्टर विनय ने उन से कहा.

ढाई आखर प्रेम का: भाग 1- क्या अनुज्ञा की सास की सोच बदल पाई

‘‘मांजी, देखिए तो कौन आया है,’’ अनुज्ञा ने अपनी सासूमां के कमरे में प्रवेश करते हुए कहा.

‘‘कौन आया है, बहू…’’ उन्होंने उठ कर चश्मा लगाते हुए प्रतिप्रश्न किया.

‘‘पहचानिए तो,’’ अनुज्ञा ने एक युवक को उन के सामने खड़े करते हुए कहा.

‘‘दादीजी, प्रणाम,’’ वे कुछ कह पातीं इस से पूर्व ही उस युवक ने उन के चरणों में झुकते हुए कहा.

‘‘तू चंदू है?’’

‘‘हां दादीजी, मैं चंद्रशेखर.’’

‘‘अरे, वही तो, बहुत दिन बाद आया है. कैसी चल रही है तेरी पढ़ाई?’’ उसे अपने पास बिठाते हुए मांजी ने कहा.

‘‘दादीमां, पढ़ाई अच्छी चल रही है, आप के आशीर्वाद से नौकरी भी मिल गई है, पढ़ाई समाप्त होते ही मैं नौकरी जौइन कर लूंगा. सैमेस्टर समाप्त होने पर हफ्तेभर की छुट्टी मिली थी, इसलिए आप सब से मिलने चला आया.’’

‘‘यह तो बहुत खुशी की बात है. सुना बहू, इसे नौकरी मिल गई है. इस का मुंह तो मीठा करा. और हां, चाय भी बना लाना.’’

मांजी के निर्देशानुसार अनुज्ञा रसोई में गई. चाय बनाने के लिए गैस पर पानी रखा पर मस्तिष्क में अनायास ही वर्षों पूर्व की वह घटना मंडराने लगी जिस के कारण उस की जिंदगी में एक सुखद परिवर्तन आ गया था.

दिसंबर की हाड़कंपाती ठंड वाला दिन था. अमित टूर पर गए थे, शीतल और शैलजा को स्कूल भेजने के बाद वह रसोई में सुबह का काम निबटा रही थी कि गिरने की आवाज के साथ ही कराहने की आवाज सुन कर वह गैस बंद कर अंदर भागी तो देखा उस की सासूमां नीचे गिरी पड़ी हैं. अलमारी से अपने कपड़े निकालने के क्रम में शायद उन का संतुलन बिगड़ गया था और उन का सिर लोहे की अलमारी में चूड़ी रखने के लिए बने भाग से टकरा गया था, उस का नुकीला सिरा माथे से कनपटी तक चीरता चला गया जिस के कारण खून की धार बह निकली थी. वे बुरी तरह तड़प रही थीं.

उस ने तुरंत एक कपड़ा उन के माथे से बांध दिया, हाथ से कस कर दबाने के बाद भी खून रुकने का नाम नहीं ले रहा था तथा मांजी धीरेधीरे अचेत होती जा रही थीं. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

आसपास ऐसा कोई नहीं था जिस से वह सहायता ले पाती, अमित के स्थानांतरण के कारण वे 2 महीने पूर्व ही इस कसबे में आए थे, घर को व्यवस्थित करने तथा बच्चों के ऐडमिशन के कारण वह इतनी व्यस्त रही कि किसी से जानपहचान ही नहीं हो पाई. घर भी बस्ती से दूर ही मिला था, घर अच्छा लगा, इसलिए ले लिया था.

15 वर्ष बड़े शहर में नौकरी के बाद इस छोटे से कसबे कासिमपुर में पोस्टिंग से अमित बच्चों की पढ़ाई को ले कर परेशान थे. उन का कहना था कि तुम बच्चों को ले कर यहीं रहो पर अनुज्ञा का मानना था कि वहां भी तो स्कूल होंगे ही. अभी बच्चे छोटे हैं, सब मैनेज हो जाएगा. दरअसल, वह मांजी के उग्र स्वभाव के कारण छोटे बच्चों को ले कर अलग नहीं रहना चाहती थी. उन की चिंता का शीघ्र ही निवारण हो गया जब उन्हें पता चला कि यहां डीएवी स्कूल की एक ब्रांच है तथा उस का रिजल्ट भी अच्छा रहता है.

मांजी के कराहने की आवाज उसे बेचैन कर रही थी, सारी बातों से ध्यान हटा कर उस ने सोचा, टैलीफोन कर के एंबुलेंस को बुलवाए. टैलीफोन उठाया तो वह डैड था. उस समय मोबाइल तो क्या हर घर में टैलीफोन भी नहीं हुआ करते थे. अगर थे भी तो वे लाइन में गड़बड़ी के कारण अकसर बंद ही रहते थे. अगर चलते भी थे तो आवाज ठीक से सुनाई नहीं देती थी. एसटीडी करने के लिए कौल बुक करनी पड़ती थी. अर्जेंट कौल भी कभीकभी 1 से 2 घंटे का समय ले लिया करती थी.

मांजी की हालत देख कर उस दिन जिस तरह से वह स्वयं को लाचार व बेबस महसूस कर रही थी, वैसा उस ने कभी महसूस नहीं किया था. आत्मनिर्भरता उस में कूटकूट कर भरी थी. वह एक कंपनी में सोशल वैलफेयर औफिसर थी. विवाह के पूर्व तथा पश्चात भी उस ने कार्य जारी रखा था.

अभी सोच ही रही थी कि क्या करे, तभी डोरबैल बजी, मांजी को वहीं लिटा कर उस ने जल्दी से दरवाजा खोला तो सामने रामू को देख कर संतोष की सांस लेते हुए, उस से कहा, ‘तू जरा मांजी के पास बैठ कर उन के माथे को दबा कर रख. मैं तब तक गाड़ी निकालती हूं.’

‘क्या हुआ मांजी को?’ चिंतित स्वर में रामू ने पूछा.

‘वे गिर गई हैं, उन के माथे से खून बह रहा है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा. प्लीज, मेरी मदद कर.’

‘लेकिन मैं?’ वह उस का प्रस्ताव सुन कर हड़बड़ा गया था.

‘मैं तेरी हिचकिचाहट समझ सकती हूं पर इस समय इस के अतिरिक्त और कोई उपाय भी तो नहीं है, प्लीज मदद कर,’ अनुज्ञा की आवाज में दयनीयता आ गई थी.

वह मांजी की छुआछूत के बारे में जानती थी पर इस समय रामू की सहायता लेने के अतिरिक्त और कोई उपाय भी तो नहीं था, यह तो गनीमत थी कि उसे कार चलानी आती थी.

अब वह अकेली नहीं थी. रामू भी साथ में था. उस ने रामू की सहायता से मांजी को गाड़ी में लिटाया तथा ताला बंद कर बच्चों के नाम एक स्लिप छोड़ कर ड्राइव करने ही वाली थी कि रामू ने स्वयं ही कहा, ‘मेमसाहब, हम भी चलें क्या?’

‘तुझे तो चलना ही होगा. यहां जो भी अच्छा अस्पताल हो, वहां ले कर चल. और हां, मांजी को पकड़ कर बैठना.’

हड़बड़ी में वह उसे बैठने के लिए कहना भूल गई थी. वैसे भी एक से भले दो, न जाने कब क्या जरूरत आ जाए. नई जगह भागदौड़ के लिए एक आदमी साथ रहेगा तो अच्छा है.

अत्यधिक खून बहने के कारण मांजी अचेत हो गई थीं, घबराहट में वह भूल ही गई थी कि यदि कहीं से खून निकल रहा हो तो उस स्थान पर बर्फ रख देने से खून के बहाव को रोका जा सकता है. मांजी अचेत थीं, ब्लडप्रैशर के साथ डायबिटीज की भी उन्हें शिकायत थी. शायद इसीलिए उस के पट्टी बांधने के बावजूद खून का बहना नहीं रुक पा रहा था.

अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था, पहुंचते ही उन्हें ऐडमिट कर लिया गया. घाव में टांके लगाने के लिए उन्हें औपरेशन थिएटर में ले जाया जाने लगा तब उस की घबराहट देख कर रामू उसे दिलासा देता हुआ बोला, ‘मेमसाहब, धीरज रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’

उस की बात सुन कर भी वह सहज नहीं हो पा रही थी, उस के चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी. तभी सिस्टर ने आ कर कहा, ‘चोट लगने से मरीज के माथे के पास की एक नस कट गई है जिस के कारण ब्लीडिंग काफी हो गई है. ब्लड देने की आवश्यकता पड़ेगी, यहां तो कोई ब्लडबैंक नहीं है, इस के लिए शहर जाना पड़ेगा पर इस में शायद देर हो जाए.’

‘सिस्टर, आप कुछ भी कीजिए पर मांजी को बचा लीजिए,’ अनुज्ञा की स्वर में विवशता आ गई थी. अमित की बहुत याद आ रही थी. काश, उन की बात मान कर यहां न आती तो शायद यह सब न झेलना पड़ता

‘आप डाक्टर साहब से बात कर लीजिए.’

डाक्टर साहब से बात की तो उन्होंने कहा, ‘स्थिति गंभीर है. अगर आप की स्वीकृति हो तो हम फ्रैश खून चढ़ा

देंगे वरना…’

‘आप मेरा खून चैक कर लीजिए डाक्टर साहब पर मांजी को बचा लीजिए.’

‘मेरा भी, डाक्टर साहब,’ रामू ने कहा.

आखिर रामू का खून मांजी के खून से मैच हो गया. अनुज्ञा से स्वीकृतिपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया. भरे मन से उस ने उस पर हस्ताक्षर कर दिए क्योंकि इस के अलावा कोई चारा न था.

मांजी को जब रामू का खून चढ़ाया जा रहा था तब वह सोच रही थी, जिस आदमी को मांजी सदा हीन और अछूत समझ कर उस का तिरस्कार करती रही थीं वही आज उन के प्राणों का रक्षक बन गया है.

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