डिलिवरी के बाद वजन घटाएं ऐसे

बच्चे को जन्म देने के बाद महिला के लिए सब से बड़ी चुनौती होती है अपना वजन कम करना. गर्भावस्था में पेट और कूल्हों का साइज बढ़ जाता है. डिलिवरी के बाद पहले वाली शेप में आने के लिए महिला को बहुत मेहनत करनी पड़ती है.

डिलिवरी के 3 से 6 महीने बाद महिला व्यायाम कर सकती है, लेकिन जब तक वह बच्चे को दूध पिला रही हो तब तक उसे वेट लिफ्टिंग और पुशअप्स नहीं करने चाहिए. उसे किसी भी तरह की डाइटिंग या व्यायाम शुरू करने से पहले डाक्टर से जरूर सलाह लेनी चाहिए.

स्तनपान:

बच्चे को दूध पिलाने से वजन आसानी से कम होता है, क्योंकि शरीर में दूध बनने के दौरान कैलोरीज बर्न हो जाती हैं. यही कारण है कि वे महिलाएं जो बच्चे को दूध पिलाती हैं, उन का वजन जल्दी कम होता है.

पर्याप्त मात्रा में पानी पीना:

अगर आप अपनी पतली कमर फिर से वापस देखना चाहती हैं तो रोजाना कम से कम 3 लिटर पानी पीएं. पानी पीने से शरीर के टौक्सिस बाहर निकल जाते हैं और शरीर में फ्लूइड बैलेंस बना रहता है. इस के अलावा पानी पीने से शरीर का अतिरिक्त फैट भी निकल जाता है.

कुनकुने पानी में नीबू का रस और शहद मिला कर लें:

रोज सुबह खाली पेट इसे पीएं. इस से शरीर के टौक्सिंस निकल जाते हैं और फैट भी बर्न होता है. हर बार खाना खाने से पहले भी इस का सेवन कर सकती हैं. ऐसा करने से पाचन ठीक रहेगा और फैट जल्दी बर्न होगा.

ग्रीन टी पीएं:

ग्रीन टी में ऐसे बहुत सारे अवयव होते हैं जो फैट बर्निंग की प्रक्रिया को तेज करते हैं. इस में मौजूद मुख्य तत्व ऐंटीऔक्सीडैंट होता है, जो मैटाबोलिज्म को तेज करता है. इसलिए दूध और चीनी वाली चाय के बजाय ग्रीन टी बेहतर विकल्प है. यह न केवल सेहतमंद है, बल्कि वजन पर नियंत्रण रखने में भी मदद करती है.

सेहतमंद खाद्य पदार्थ चुनें:

प्रोसैस्ड फूड से बचें. ज्यादा कैलोरी वाले खा-पदार्थों का सेवन भी न करें जैसे कैंडी, चौकलेट व बेक की गई चीजें जैसे कुकीज, केक, फास्ट फूड तथा तला हुआ भोजन जैसे फ्राइज और चिकन नगेट्स. प्रोसैस्ड फूड में सब से ज्यादा कैलोरीज और चीनी होती है, जो वजन बढ़ाती है. ऐसे भोजन में उचित पोषक पदार्थों की कमी होती है. इन के बजाय सेहतमंद विकल्प चुनें जैसे मौसमी फल, सलाद, घर में बना सूप और फलों का रस आदि.

इन घरेलू उपायों के अलावा भरपूर मात्रा में सब्जियों और फलों का सेवन करने से पेट की चरबी कम होती है. अगर आप बच्चे को दूध पिला रही हैं, तो आप को रोजाना 1800 से 2,200 कैलोरीज का सेवन करना चाहिए ताकि आप के बच्चे को उचित पोषण मिले.

अगर आप स्तनपान नहीं करा रही हैं तो आप को कम से कम 1200 कैलोरीज का सेवन करना चाहिए. रोजाना 3 बार कम कैलोरी युक्त खा-पदार्थों का सेवन करें. इस के लिए आप को प्रोसैस्ड फूड के बजाय प्राकृतिक खा-पदार्थ चुनने चाहिए.

नैचुरल ब्रेकफास्ट चुनें जैसे ओट्स, दलिया या अंडों के सफेद हिस्से से बना आमलेट. दोपहर के भोजन में साबूत अनाज की चपाती, बेक्ड चिकन या कौटेज चीज, हरा सलाद और फल खाएं. रात के भोजन की बात करें तो आप की आधी प्लेट फलों और सब्ज्यों से भरी होनी चाहिए. एक चौथाई प्लेट में प्रोटीन और एकचौथाई प्लेट में साबूत अनाज होना चाहिए.

सेहतमंद आहार के साथसाथ नियमित व्यायाम करना भी बहुत जरूरी है.

भोजन के बाद तेज चलें:

खाना खाने के बाद 15 से 20 मिनट तेज चलें. इस से पेट की चरबी कम होगी. ऐसा जरूरत से ज्यादा न करें. बच्चे को स्ट्रौलर में लिटा कर सैर कर सकती हैं. यह व्यायाम शुरू करने का सब से अच्छा तरीका है.

ऐब्स क्रंच:

पेट की चरबी कम करने का सब से अच्छा तरीका है ऐब्स क्रंच. इस से पेट की पेशियों में मौजूद कैलोरीज बर्न होंगी और पेट की चरबी कम होने लगेगी.

लोअर एब्डौमिनल स्लाइड:

यह व्यायाम बच्चे के जन्म के बाद नई मां के लिए अच्छा है. खासतौर पर अगर बच्चे का जन्म सीसैक्शन से हुआ हो, क्योंकि सर्जरी के बाद पेट के निचले हिस्से की पेशियों पर असर पड़ता है. यह व्यायाम उन्हीं पेशियों पर काम करता है.

पीठ के बल लेट जाएं, पैर जमीन पर फैला दें, बाजुएं साइड में सीधी रखें और हथेलियां नीचे की ओर हों. अपनी पेट की पेशियों को सिकोड़ते हुए दाईं टांग को बाहर की ओर स्लाइड करें. फिर सीधा कर यही प्रक्रिया बाईं टांग से दोहराएं. दोनों टांगों से इसे 5 बार दोहराएं.

पैल्विक टिल्ट:

अपनी पेट की पेशियों को सिकोड़ें. इन का इस्तेमाल करते हुए अपने कूल्हों को आगे की ओर मोड़ें. ऐसा आप लेट कर, बैठ कर या खड़े हो कर कर सकती हैं. इसे रोजाना जितनी बार हो सके करें.

नौकासन:

नौकासान के कई फायदे हैं. इस से पेट की पेशियां टोन हो जाती हैं, पाचन में सुधार आता है तथा रीढ़ की हड्डी और कूल्हे भी मजबूत होते हैं.

टांगों को उठाएं:

अपनी टांगों को 30 डिग्री, 45 डिग्री और 60 डिग्री पर उठाएं. हर अवस्था में 5 सैकंड्स के लिए रुकें. इस से पेट की पेशियां मजबूत होती हैं.

उस्थासन:

उस्थासन के कई फायदे हैं. इस से कूल्हों की चरबी कम होती है, कूल्हों और कंधों में खिंचाव आता है.

मौडीफाइड कोबरा:

अपनी हथेलियों को फर्श पर टिकाएं. कंधे और कुहनियां अपनी पसलियों के साथ टिके हों. अपने सिर और गर्दन को ऊपर उठाएं, इतना भी नहीं कि पीठ पर खिंचाव पड़ने लगे. अब ऐब्स को अंदर की ओर ऐसे खींचें जैसे आप अपने पेल्विस को फर्श से उठाने की कोशिश कर रही हों.

अन्य तरीके

पोस्टपार्टम सपोर्ट बैल्ट:

यह बैल्ट पेट की पेशियों को टाइट करती है. इस से आप का पोस्चर ठीक रहता है, साथ ही पीठ के दर्द में भी आराम मिलता है.

बैली रैप इस्तेमाल करें:

बैली रैप या मैटरनिटी बैल्ट आप की ऐब्स को टक कर देती है, जिस से आप के यूट्रस और पेट का हिस्सा अपनी सामान्य शेप में आने लगता है. यह पेट की चरबी कम करने का सब से पुराना तरीका है. इस से पीठ के दर्द में भी आराम मिलता है.

फुल बौडी मसाज करवाएं:

मसाज शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होती है. इस से आप बिना जिम गए बिना पसीना बहाए वजन कम कर सकती हैं. इस तरह से मसाज करवाएं कि आप के पेट की चरबी पर असर हो. इस से फैट शरीर में बराबर फैल जाएगा, मैटाबोलिज्म में सुधार होगा और आप को चरबी से छुटकारा मिलेगा.

-डा. रीनू जैन

कंसलटैंट ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनेकोलौजी, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

Monsoon Special: वायरल फीवर को हल्के में न लें

बदलते मौसम में अधिकतर लोग वायरल फीवर के शिकार हो जाते है. वायरल फीवर को  ‘मौसमी बुखार’ के शिकार हो जाते हैं. वायरल फीवर से ठीक होने में 4-5 दिन लग जाते हैं. कई बार यह बुखार 10-12 दिन मंे ठीक नहीं होता है. फीवर तेजी मरीज की उम्र पर निर्भर करती है और अगर वायरल फीवर किसी फ्लू वायरस की वजह से हुआ है तो इसे ठीक होने में कम से कम 5 दिनों का समय लगता है.

अगर दवा लेने के बावजूद भी तीन दिनों के अन्दर बुखार कम नहीं हो रहा है तो आप तुरंत किसी डॉक्टर के पास जायें. ऐसे में सबसे जरूरी यह होता है कि वायरल फीवर को हल्के में न ले. जैसे ही बुखार का अनुभव हो डाक्टर के पास जाकर दवाएं लें. लापरवाही करने में यह बुखार ठीक होने में लंबा समय ले लेता है. बच्चों में अगर यह बुखार 48 घंटे में भी कम नहीं हो रहा है तो तुरंत डॉक्टर से चेकअप करायें.
वायरल फीवर रुक-रुक कर होता है. कई बार यह नियमित अंतराल में अनुभव होता है. उदाहरण के लिए ज्यादातर लोगों को दोपहर या शाम को एक विशेष समय के दौरान वायरल फीवर का अनुभव होता है. वायरल फीवर होने पर ठंड लगती है. वायरल फीवर के दौरान तेज गर्मी और नम तापमान के समय में ठंड का अनुभव होता है. नाक बहना, बंद नाक, आंखों में लालिमा, निगलने में कठिनाई आदि ये वायरल फीवर के कुछ लक्षण हैं.

वायरल फीवर सामान्य फीवर की दवाओं से ठीक नहीं होते. सामान्य फीवर की दवाएं वायरल फीवर को कुछ समय के लिए ही ठीक कर पाती हैं, जैसे ही दवाओं का असर खत्म होता है, वायरल फीवर फिर से हो जाता है. वायरल फीवर सामान्य फीवर से ज्यादा समय तक रहता है. वायरल फीवर वायरल संक्रमण के कारण होता है. इसकी मुख्य विशेषता होती है कि शरीर का तापमान का बढता है. वायरल फीवर का बच्चों और वृद्धों में होना काफी आम होता है. क्योंकि उनकी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है.

क्या होता है वायरल फीवर:

वायरल फीवर आमतौर पर एयरबोर्न यानि हवा में फैलने वाले वायरल इन्फेक्शन के कारण होता है. हालांकि यह वाटरबोर्न यानि पानी में फैलने वाले संक्रमण के कारण भी होता है. वाटरबोर्न इन्फेक्शन की रोकथाम करने के लिए उपाय किए जा सकते हैं, लेकिन जिस हवा में हम सांस लेते हैं उससे फैलने वाले इन्फेक्शन की रोकथाम करने के उपाय काफी कम हैं. वायरल फीवर बहुत ही कम मामले में चिंता का कारण बन पाता है. ज्यादातर मामलों में यह बिना किसी विशेष उपचार के ही ठीक हो जाता है.
वायरल फीवर और बैक्टीरियल इन्फेक्शन के बीच के अंतर को स्पष्ट करना इतना आसान नहीं है, क्योंकि इनके काफी सारे लक्षण एक समान होते हैं. इसलिए यदि आपके शरीर का तापमान 102 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर हो जाता है या बुखार 48 घंटो तक कम नहीं होता तो डॉक्टर से बात करना आवश्यक है. जो लोग इस संक्रमण से पीड़ित होते है, उनको शरीर में दर्द, त्वचा पर चकत्ते और सिर दर्द की समस्या होती है. वायरल फीवर का इलाज करने के लिए दवाएं भी उपलब्ध हैं, कुछ मामलों में घरेलू उपचार भी इस स्थिति से निपटने में आपकी सहायता करते हैं.

जब वायरल फीवर हो जाये:

बैक्टीरिया के कारण होने वाले वायरल फीवर तीन दिनों के बाद हल्का पड़ जाता है. वैसे वायरल फीवर की शुरुवात में ही इसकी सही वजह की जांच कर पाना बहुत मुश्किल होता है.डॉक्टर्स शुरुवात में गले की जाँच, पेशाब में जलन को चेक करके ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि आपको वायरल किस वजह से हुआ है. आमतौर पर अगर मरीज को बहुत तेज बुखार रहता है तो डॉक्टर उनका सबसे पहले ब्लड टेस्ट करवाते हैं, क्योंकि ब्लड टेस्ट से सही कारण आसानी से पता चल जाता है. अगर बुखार के साथ साथ आपको सिरदर्द, खांसी और गले में इन्फेक्शन भी हो तो इसे अनदेखा न करें बल्कि इसकी जांच करवाएं.
यदि फीवर अधिक है तो सिर पर ठंडे पानी की पट्टी रख कर फीवर को नार्मल करें. खाने में फल, हरी सब्जी ले. पानी का सेवन करें. साफ और हवादार कमरे में रहे. अपने कपडे और बिस्तर रोज बदलते रहे. फीवर का एक चार्ट बना लें. जिससे डाक्टर को देखने में आसानी रहेगी कि कब कब फीवर रहता है.

वायरल फीवर के सामान्य लक्षण:
वायरल फीवर के लक्षणों में फीवर का कम या तेज होना, नाक का बहना, खाँसी का आना,  आँखों में लालिमा और जलन का एहसास होना, मसल्स और जॉइंट में दर्द बने रहना,  थकान और चक्कर आना, कमजोरी का अनुभव करना, सिर दर्द, टॉन्सिल में दर्द होना, छाती में जकड़न,  गले में दर्द, स्किन रैशेस, डायरिया, मतली, उल्टी और सामान्य रूप से कमजोरी का अनुभव होना होता है. कमजोरी से बचने के लिये अच्छा भोजन लें. सफाई का ध्यान रखें. आराम जरूर करें. अगर आप आराम नहीं करेगे तो फीवर लंबे समय तक चल सकता है. फीवर होने पर पारासिटामोल का उपयोग करें. कोई एंटीबायोटिक्स देने की जरूरत नहीं है.

बढ़ते वजन से हैं परेशान

अकसर कोई अपने बढ़ते वजन को ले कर परेशान रहता है तो कोई अपने दुबलेपन के कारण. उन की समझ में नहीं आता कि उन का आहार कैसा हो. अगर आप के समक्ष भी यह परेशानी है तो परेशान न हों. इस संबंध में डाइटीशियन श्रेया कत्याल से की गई बातचीत पर गौर फरमाएं:

आहार का मतलब क्या है?

आहार का मतलब भोजन का स्वस्थ तरीका है, जिस में सभी पोषक तत्त्व मौजूद हों.

अच्छा भोजन व बुरा भोजन क्या है?

भोजन अच्छाबुरा नहीं होता है. हम कैसे, कब, क्या और कितना खाते हैं, वह उसे अच्छा या बुरा बनाता है. इसलिए व्यक्ति को सब कुछ खाना चाहिए, परंतु कम मात्रा में. खानेपीने की इच्छा का दमन करना शरीर से धोखा करना है.

स्वस्थ तरीके से इंसान 1 महीने में कितना वजन कम कर सकता है?

यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है. स्वस्थ तरीके से 1 महीने में औसतन कम से कम 3-4 किलोग्राम तक (1 किलोग्राम प्रति हफ्ते) वजन कम किया जा सकता है और ज्यादा से ज्यादा 8 किलोग्राम तक. वजन में कमी के साथसाथ जीवनशैली में परिवर्तन भी जरूरी होता है.

क्या स्वस्थ आहारशैली छोड़ने के बाद वजन फिर बढ़ जाएगा?

स्वस्थ तरीके से वजन में कमी लाने पर यह स्थिति आहार में परिवर्तन के बाद भी बनी रहती है. बावजूद इस के वजन में कमी तभी बनी रह सकती है, जब आप का ध्येय जीवनशैली में परिवर्तन हो. इसलिए जब आप एक बार आहार प्रबंधन के साथ सकारात्मक तौर पर जीवनशैली में परिवर्तन कर लेते हैं, तो आहारशैली से हटने के बावजूद आप अपनी यथास्थिति बनाए रख सकते हैं.

क्या आप वजन कम करने के लिए किसी खुराक, दवा आदि की सलाह देती हैं?

मैं वजन कम करने के लिए खुराक, दवा या किसी कृत्रिम तरीके पर भरोसा नहीं करती, क्योंकि लंबे अंतराल में इन चीजों के दुष्परिणाम सामने आते हैं.

ब्लड ग्रुप आधारित आहारशैली कितनी प्रभावी है और आप किस आधार पर आहार योजना तैयार करती हैं?

ए ब्लड ग्रुप आधारित आहारशैली एक सीमा तक ही सफल है. यह 100% सफल नहीं होती. यह प्रभावी तो है और इस के सकारात्मक परिणाम भी दिखते हैं, परंतु यह सभी लोगों पर पूरी तरह लागू नहीं की जा सकती. लोगों के लिए आहार योजना तैयार करते वक्त मैं उन के ब्लड ग्रुप को ध्यान में तो रखती हूं, परंतु वह पूरी तरह ब्लड ग्रुप पर आधारित नहीं होती. व्यक्ति विशेष की पसंदनापसंद व प्राथमिकता, दिनचर्या, जीवनशैली आदि आहार योजना बनाते वक्त अहम भूमिका निभाते हैं.

आमतौर पर यह कहा जाता है कि परहेज वाली आहारशैली के पश्चात त्वचा निष्प्रभाव हो जाती है. इस में कितनी सचाई है?

आहार योजना का पालन सिर्फ अतिरिक्त कैलोरी को खत्म करने के लिए नहीं किया जाता, बल्कि आप की संपूर्ण स्वास्थ्य स्थिति को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है. संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए पोषक तत्त्वों की सही खुराक लेना सुनिश्चित करने के लिए पूरे दिन के दौरान 5-6 बार भोजन करने की योजना तैयार की जाती है ताकि चयापचय प्रक्रिया मजबूत हो सके और आप ज्यादा ऊर्जावान महसूस कर सकें. स्वस्थ वसा को आप के आहार में शामिल किया जाता है तथा अस्वास्थ्यकर वसा को हटाया जाता है.

वजन कम करने के लिए क्या मिठाई खाना छोड़ना जरूरी है?

मिठाई पसंद करने वालों के लिए मेरा उत्तर न में है. हम एक निश्चित अंतराल के लिए आहार योजना का पालन कर सकते हैं और अपने पसंदीदा व्यंजन को हमेशा के लिए नहीं छोड़ सकते. इसलिए आप को जो पसंद है, खाएं परंतु सही ढंग व सही समय पर खाएं. एक वक्त के आहार के तौर पर मिठाई लें न कि खाना खाने के पश्चात मिठाई खाएं.

क्या रात्रि भोजन 8 बजे से पहले कर लेना चाहिए या फिर बगैर नमक का डिनर लेना चाहिए?

आप ने जितना वजन घटाया है, ऐसा नहीं है कि बगैर नमक का डिनर उसे हमेशा बनाए रखेगा, बल्कि त्याग किए हुए पानी के वजन को ही स्थिर रखेगा. इसलिए मैं नियमित तौर पर बगैर नमक के डिनर के पक्ष में नहीं हूं. इस के अलावा, कोई भी व्यक्ति बहुत लंबे समय तक बगैर नमक के डिनर या 8 बजे से पहले डिनर लेना जारी नहीं रख पाएगा. मैं ऐसी कोई सलाह नहीं देती, जिस पर लंबे समय तक अमल न किया जा सके. इसलिए सही वक्त पर डिनर लें ताकि डिनर व बिस्तर पर जाने के बीच कम से कम 2 घंटे का अंतराल हो.

क्या आहार योजना के साथ कोई कसरत भी जरूरी है?

वजन में कमी लाने के मामले में 70% तक आहार और 30% तक कसरत की भूमिका मानी जाती है. इस के अलावा चूंकि वजन कम करने के प्रयास के दौरान जीवनशैली में परिवर्तन जरूरी होता है, इसलिए कुछ बुनियादी व्यायाम भी जरूरी हैं, क्योंकि आजकल ज्यादातर लोगों की जीवनशैली श्रमहीन हो चुकी है. व्यायाम हमारी चयापचय की प्रक्रिया को सुदृढ़ करता है तथा वजन कम होने की प्रक्रिया को गति प्रदान करता है.

श्रेया कत्याल, डाइटीशियन

क्या औस्टियोपोरोसिस से अपने बचाव के लिए कुछ उपाय कर सकती हूं?

सवाल-

मेरी मां की उम्र 62 साल है. उन्हें हड्डियों में दर्द रहता है. जांच, एक्सरे कर के डाक्टर ने बताया है कि उन्हें औस्टियोपोरोसिस है. उन की हड्डियां कमजोर हो गई हैं. मां डाक्टर की बताई दवा ले रही हैं पर मैं खुद को ले कर चिंतित हूं कि कहीं यह रोग मुझे भी तो नहीं हो जाएगा? क्या मैं अपने बचाव के लिए कुछ उपाय कर सकती हूं?

जवाब-

हां, क्यों नहीं. आप की मां के डाक्टर ने यह बात ठीक ही बताई है कि औस्टियोपोरोसिस में हड्डियां अंदर ही अंदर कमजोर हो जाती हैं. नतीजतन छोटी सी चोट भी उन पर भारी पड़ सकती है और वे चटक सकती हैं. ऐसे लोग जो खानपान, रहनसहन और आचारव्यवहार के प्रति लापरवाही बरतते हैं या कुछ खास दवा लेने के लिए मजबूर होते हैं, उन में जवानी पार होने के बाद हड्डियों की ताकत घटती जाती है. मगर कोई अपने स्वास्थ्य के प्रति समय से चेत जाए, तो हड्डियों को कमजोर होने से बचा सकता है. इस के लिए निम्नलिखित बातों को गांठ बांध लेना जरूरी है:

चुस्त रहें, तंदुरुस्त रहें: आप जितना चलतेफिरते हैं, शारीरिक मेहनत करते हैं, व्यायाम करते हैं आप की हड्डियां उतनी ही मजबूत बनी रहती हैं. जिन लोगों का पूरा दिन बैठेबैठे बीतता है उन की हड्डियां 40 की उम्र से ही कमजोर होनी शुरू हो जाती हैं. लेकिन शारीरिक भागदौड़ करने वालों की हड्डियां बुढ़ापे में भी ताकत नहीं गवांतीं. अगर आप का स्वास्थ्य अनुमति देता रहे तो जब तक यह जीवन है, व्यायाम को अपनी नित्यचर्या का अंग बनाए रखें. रोज 30-40 मिनट की सैर हड्डियों को युवा बनाए रखने का सब से सरल उपाय है.

पर्याप्त कैल्सियम लें: हड्डियों के निर्माण और पोषण के लिए कैल्सियम जरूरी पोषक तत्त्व है. वयस्क स्त्री और पुरुष के लिए नित्य 500-600 मिलीग्राम कैल्सियम जरूरी है. बुढ़ापा आने पर कैल्सियम की यह दैनिक जरूरत बढ़ कर 1,000 मिलीग्राम हो जाती है.

दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही, छेना, पनीर, मक्खन कैल्सियम के सब से अच्छे स्रोत हैं. आधा लिटर दूध में 600 मिलीग्राम कैल्सियम होता है. शरीफा, खजूर, खुबानी, किशमिश, हरी पत्तेदार सब्जियां, अनाज, पेयजल और मछली में भी कैल्सियम अच्छी मात्रा में होता है. आहार से कैल्सियम की भरपाई न हो पाए तो डाक्टर से सलाह ले कर कैल्सियम की गोलियां भी ली जा सकती हैं.

शरीर में विडामिन डी का भंडार बनाए रखें: शरीर में विटामिन डी का पर्याप्त भंडार होना भी हड्डियों के निर्माण और पोषण के लिए जरूरी है. अगर शरीर में विटामिन डी की कमी हो तो कैल्सियम के जज्ब होने में अड़चन आ जाती है. चाय और कौफी का कम सेवन करें: चाय, कौफी और ठंडे पेय अधिक पीने से भी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. मदिरा और धूम्रपान से दूर रहें: मद्यपान और धूम्रपान करने वालों की हड्डियां भी जल्दी ताकत गवां बैठती हैं.

कुछ दवाएं भी दोषी हो सकती हैं: कुछ दवाएं भी हड्डियों की मजबूती कम करती हैं. इन में कार्टिकोस्टीरौयड सब से महत्त्वपूर्ण है. दूसरी दवा हिपेरिन है, जो रक्तजमावरोधक है और कुछ खास हृदयरोगियों को दी जाती है. इस दवा के प्रयोग से बचा तो नहीं जा सकता, पर इसे रोज ले रहे हैं तो सावधान अवश्य हो जाएं.

कुछ बीमारियां भी हड्डियों में सेंध लगाती हैं: कोई लंबी बीमारी जैसे रूमेटाएड गठिया, मिरगी, डायबिटीज, दमा, क्रौनिक ब्रौंकाइटिस और खास हारमोनल विकार तथा उन में दी जाने वाली दवाओं के दुष्प्रभाव से भी हड्डियां छोटी उम्र में ही कमजोर होने लगती हैं.

इन बीमारियों के होने पर जीवन में अनुशासन रख कर हड्डियों की मजबूती कायम रखी जा सकती है. नियमित सैर करें. खानपान का भी ध्यान रखें. किसी गलत लत में न पड़ें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे पीरियड्स पहले या बाद में हो?

सवाल-

मैं 26 साल की युवती हूं. मेरा 2 महीने बाद विवाह होने वाला है. मेरा मासिकचक्र बिलकुल नियमित है. गिनती करने पर मुझे लगता है कि जिस महीने मेरा विवाह होने वाला है उस महीने मासिकधर्म और विवाह की तारीख एकदूसरे से मिल जाएं. क्या कोई ऐसा उपाय है जिस से मासिकधर्म पहले या बाद में हो?

जवाब-

आप बहुत आसानी से मासिकधर्म को आगेपीछे कर सकती हैं और यह निर्णय आप अभी से ले लें तो बेहतर होगा. अपनी फैमिली डाक्टर से मिल कर आप अभी से गर्भनिरोधक कौंट्रासेप्टिव पिल्स लेना शुरू कर दें.

इन का नियम बिलकुल सरल है. जिस तारीख को आप पीरियड्स शुरू होने की इच्छा रखती हैं, उस से 3-4 दिन पहले कौंट्रासेप्टिव पिल्स बंद कर दें. पीरियड्स के 5वें दिन से दोबारा कौंट्रासेप्टिव पिल्स लेना शुरू कर दें. आमतौर पर ये पिल्स अगले 21 दिनों तक लेनी होती हैं. पर विशेष स्थितियों में जब पीरियड्स अधिक दिन तक विलंबित करने होते हैं तो कौंट्रासेप्टिव पिल्स अधिक दिनों तक भी जारी रखी जा सकती हैं. उन्हें बंद करने के 3-4 दिनों बाद पीरियड्स आ जाता है. इस हिसाब से डाक्टर से चर्चा कर आप मासिकधर्म जितने दिन चाहें, उतने दिन आगे खिसका सकती हैं.

कौंट्रासेप्टिव पिल्स लेने से आप विवाह के शुरू के दिनों में गर्भवती होने से भी बची रहेंगी. पर यह ध्यान रखें कि कौंट्रासेप्टिव पिल्स शुरू करने से पहले फैमिली डाक्टर से एक बार सलाह जरूर ले लें.

जिन स्त्रियों को मिरगी, माइगे्रन, डायबिटीज या हाई ब्लडप्रैशर हो या फिर जो धूम्रपान करती हों, जिन्हें मासिक ठीक से न होता हो, जिन के खून में कोलैस्ट्रौल अधिक मात्रा में हों, जिन्हें पहले कभी खून का थक्का बना हो, उन्हें कौंट्रासेप्टिव पिल्स नहीं दी जातीं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पीरियड्स में ब्रेस्‍ट पेन हो तो आजमाएं ये घरेलू नुस्‍खे

पीरियड्स के दौरान काफी सारी महिलाओं को ब्रेस्‍ट में दर्द महसूस होता है. ऐसा इसलिये होता है क्‍योंकि उस दौरान हमारे शरीर में कई सारे हार्मोनल चेंज हो रहे होते हैं.

ब्रेस्‍ट में कड़ापन, दर्द और सूजन देख कर कई महिलाओं को शंका हो जाती है कि कहीं यह ब्रेस्‍ट कैंसर के संकेत तो नहीं. हार्मोनल बदलाव के अलावा भी कई ऐसी और भी चीज़ें हैं, जो ब्रेस्‍ट में दर्द पैदा कर सकती हैं, उदाहरण के तौर पर शरीर में पोषण की कमी, खराब खान-पान की आदत और बहुत ज्‍यादा तनाव.

अगर आपको भी अपने पीरियड्स के समय ब्रेस्‍ट में दर्द रहता है तो, हमारे बताए हुए घरेलू उपचार जरुर आजमाएं, आपको इससे जरुर राहत मिलेगी.

केस्टर ऑयल

केस्टर ऑयल को जैतून के तेल के साथ मिक्‍स करें और उससे अपने ब्रेस्‍ट को हल्‍के हाथों से मसाज करें. इससे आपको आराम मिलेगा.

गरम पानी से सिकाईं

गरम पानी के बरतन में एक सादा कपड़ा डाल कर उसे निचोड़ें और फिर उसको अपने ब्रेस्‍ट पर तब तक रखें जब तक कि वह कपड़ा गरम बरकरार रहे. ऐसा 10 मिनट तक करें. इस गर्मी की वजह से खून की धमनियां खूल जाएंगी और खून पूरे शरीर में प्रवाह करने लगेगा. इससे ब्रेस्‍ट का दर्द कम हो जाएगा.

बरफ का पैक

एक साफ कपड़े में कुछ बरफ ले लें, फिर इसे ब्रेस्‍ट पर रखें. इससे दर्द कम हो जाएगा क्‍योंकि खून की सिकुड़ी हुई धमनियां खुल जाएंगी.

सौंफ

सौंफ से सूजन और दर्द दोंनो ही चीजें कम हो जाएगी. आप इसे चाय की तहर ले सकती हैं. 1 कप पानी में थोड़ी सी सौंफ डाल कर उबालें और उसे छान कर पी लें.

पीपल की पत्‍तियां

एक पैन में पीपल की पत्‍तियां रख कर उस पर कुछ बूंद सरसों या जैतून का तेल डाल कर गरम करें. फिर इन गरम पत्‍तियों को ब्रेस्‍ट पर रख कर सिकाईं करें. इन पत्‍तियों से 4-5 बार सिकाई करें.

केला

केले में पोटैशियम पाया जाता है, जिसको खाने से ब्रेस्‍ट में जमा रक्‍त प्रवाह करने लगता है और दर्द कम हो जाता है.

नारियल पानी

नारियल पानी में भी पोटैशियम की मात्रा काफी अधिक होती है, जिसे पीने पर दर्द कम हो जाता है.

अलसी के बीज

आपको अपने डाइट में रोजाना अलसी के बीजों को शामिल करना चाहिए. इन्‍हें खाने से दर्द में कमी आती है.

हरी पत्‍तेदार सब्‍जियां

ब्रॉक्‍ली और पालक जैसी सब्‍जियां शरीर में estrogen level को कम करती हैं, जिससे ब्रेस्‍ट में दर्द कम होता है.

पीरियड्स का दर्द दे सकता है हार्ट अटैक

पीरियड्स का दर्द और इस दौरान होने वाला ब्लड फ्लो सबके लिए अलग होता है. किसी को इस दौरान बहुत अधिक फ्लो और दर्द का सामना करना पड़ता है तो किसी को न के बराबर दर्द होता है.

अब तक पीरियड्स के दर्द को सिर्फ कमजोरी और चिड़चिड़ेपन से ही जोड़कर देखा जाता था लेकिन हाल में हुए एक शोध के मुताबिक, जिन महिलाओं को माहवारी के दौरान बहुत अधि‍क तकलीफ उठानी पड़ती है उन्हें हार्ट अटैक होने की आशंका तीन गुना बढ़ जाती है.

भारी और पीड़ादायक महावारी एंडोमेट्रियोसिस विकार के कारण होती है. इस विकार की वजह से यूटरस यानी गर्भाशय की बाहरी परत पर टिशूज की असामान्य वृद्धि होने लगती है.

अमेरिका के बोस्टन शहर के ब्रिंघम एंड विमेन हॉस्पिटल में हुई ए‍क रि‍सर्च में यह तथ्य सामने आया है. इसके मुख्य लेखक , फैन मू के मुता‍बिक, एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाओं में दूसरी महिलाओं की तुलना में हार्ट अटैक का खतरा तीन गुना अधि‍क होता है. चौंकाने वाली बात यह है कि युवावस्था में यह जोखिम अधिक होता है.

इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने नर्सेस हेल्थ स्टडी के दूसरे भाग की एक लाख 16 हजार 430 महिलाओं के आंकड़ों का आकलन किया. शोधार्थियों का कहना है कि एंडोमेट्रियोसिस के ऑपरेशन से भी आंशिक रूप से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ सकता है.

यह शोध ‘सर्कुलेशन कार्डियोवस्कुलर क्वालिटी एंड आउटकम्स’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

जानें अनियमित पीरियड्स से जुड़ी जरुरी बातें

औरतों को हर माह पीरियड से दोचार होना पड़ता है, इस दौरान कुछ परेशानियां भी आती हैं. मसलन, फ्लो इतना ज्यादा क्यों है? महीने में 2 बार पीरियड क्यों हो रहे हैं? हालांकि अनियमित पीरियड कोई असामान्य घटना नहीं है, किंतु यह समझना आवश्यक है कि ऐसा क्यों होता है.

हर स्त्री की मासिकधर्म की अवधि और रक्तस्राव का स्तर अलगअलग है. किंतु ज्यादातर महिलाओं का मैंस्ट्रुअल साइकिल 24 से 34 दिनों का होता है. रक्तस्राव औसतन 4-5 दिनों तक होता है, जिस में 40 सीसी (3 चम्मच) रक्त की हानि होती है.

कुछ महिलाओं को भारी रक्तस्राव होता है (हर महीने 12 चम्मच तक खून बह सकता है) तो कुछ को न के बराबर रक्तस्राव होता है.

अनियमित पीरियड वह माना जाता है जिस में किसी को पिछले कुछ मासिक चक्रों की तुलना में रक्तस्राव असामान्य हो. इस में कुछ भी शामिल हो सकता है जैसे पीरियड देर से होना, समय से पहले रक्तस्राव होना, कम से कम रक्तस्राव से ले कर भारी मात्रा में खून बहने तक. यदि आप को प्रीमैंस्ट्रुल सिंड्रोम की समस्या नहीं है तो आप उस पीरियड को अनियमित मान सकती हैं, जिस में अचानक मरोड़ उठने लगे या फिर सिरदर्द होने लगे.

असामान्य पीरियड के कई कारण होते हैं जैसे तनाव, चिकित्सीय स्थिति, अतीत में सेहत का खराब रहना आदि. इन के अलावा आप की जीवनशैली भी मासिकधर्म पर खासा असर कर सकती है.

कई मामलों में अनियमित पीरियड ऐसी स्थिति से जुड़े होते हैं जिसे ऐनोवुलेशन कहते हैं. इस का मतलब यह है कि माहवारी के दौरान डिंबोत्सर्ग नहीं हुआ है. ऐसा आमतौर पर हारमोन के असंतुलन की वजह से होता है. यदि ऐनोवुलेशन का कारण पता चल जाए, तो ज्यादातर मामलों में दवा के जरीए इस का इलाज किया जा सकता है.

इलाज संभव

जिन वजहों से माहवारी अनियमित हो सकती है या पीरियड मिस हो सकते हैं वे हैं: अत्यधिक व्यायाम या डाइटिंग, तनाव, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन, पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, युटरिन पोलिप्स या फाइब्रौयड्स, पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज, ऐंडोमिट्रिओसिस और प्रीमैच्योर ओवरी फेल्योर.

कुछ थायराइड विकार भी अनियमित पीरियड का कारण बन सकते हैं. थायराइड एक ग्रंथि होती है, जो वृद्धि, मैटाबोलिज्म और ऊर्जा को नियंत्रित करती है. किसी स्त्री में आवश्यकता से अधिक सक्रिय थायराइड है, इस का रक्तपरीक्षण से आसानी से पता किया जा सकता है. फिर रोजाना दवा खा कर इस का इलाज किया जा सकता है. हारमोन प्रोलैक्टिन का उच्च स्तर भी इस समस्या का कारण हो सकता है.

यदि किसी महिला को पीरियड के दौरान बहुत दर्द हो, भारी रक्तस्राव हो, दुर्गंधयुक्त तरल निकले, 7 दिनों से ज्यादा पीरियड चले, योनि में रक्तस्राव हो या पीरियड के बीच स्पौटिंग, नियमित मैंस्ट्रुअल साइकिल के बाद पीरियड अनियमित हो जाए, पीरियड के दौरान उलटियां हों, गर्भाधान के बगैर लगातार 3 पीरियड न हों तो अच्छा यही होगा कि तुरंत चिकित्सीय परामर्श लिया जाए. अगर किसी लड़की को 16 वर्ष की आयु तक भी पीरियड शुरू न हो तो तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए.

– डा. मालविका सभरवाल
स्त्रीरोग विशेषज्ञा, नोवा स्पैशलिटी हौस्पिटल्स

Monsoon Special: ताकि खुल कर लें रिमझिम का मजा

झुलसाती गरमी से राहत पाने के लिए बरसात के मौसम का हम सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं. इस रोमांटिक मौसम का मजा वाकई अनोखा है, लेकिन इस मौसम में बारिश की वजह से आप को सेहत, फिटनैस, कपड़ों के स्टाइल, त्वचा और केशों की समस्याओं से भी दोचार होना पड़ता है. इन समस्याओं से बचने के लिए पेश हैं, विशेषज्ञों के बताए खास टिप्स:

बरसात और फिटनैस

बरसात का मौसम सुहावना और आनंदमयी होता है, मगर बारिश की वजह से फिटनैस के शौकीनों की जौगिंग, लौंग वाक और ऐक्सरसाइज वगैरह पर जैसे बंदिशें लग जाती हैं. लेकिन इस मौसम में व्यायाम को छुट्टी न दे कर और भी सख्ती से व्यायाम के टाइमटेबल को फौलो करने की जरूरत होता है.

बारिश की वजह से हम बाहर ऐक्सरसाइज करने या जिम जाने के लिए आनाकानी करते हैं. कभीकभी तो लोग घर में अपने मन से टीवी पर फिटनैस प्रोग्राम देख कर ऐक्सरसाइज करते हैं. लेकिन गलत ऐक्सराइज करने से मसल्स पेन हो सकता है. इसलिए जिम जाना ही सर्वोत्तम विकल्प है क्योंकि जिम में हम सही ढंग से ऐक्सरसाइज कर सकते हैं.

अगर प्रतिदिन जिम नहीं जा सकते तो भी हफ्ते में कम से कम 5 दिन तो नियमित रूप से जाना ही चाहिए. ऐक्सरसाइज के बाद समुचित मात्रा में प्रोटीन लेना भी जरूरी होता है. आज की दौड़धूप भरी जिंदगी में अगर फिट रहना है तो फिटनैस और डाइट का सही तालमेल बहुत जरूरी है.

अगर वेट बढ़ रहा है तो जिम में ऐक्सरसाइज के साथ योगा, पावर योगा या साल्सा डांस कर के बढ़ता वेट कंट्रोल में रख सकते हैं. आज केवल सैलिब्रिटी ही नहीं आम आदमी के लिए भी जिम जाना जैसे एक जरूरत बन गया है. ऐक्सरसाइज से बौडी टोनिंग होती है और वेट कंट्रोल में रहता है.

आज के युवकयुवतियों को लगता है कि जिम में कार्डिओ कर के हम अपनी बौडी शेप में ला सकते हैं, मगर बौडी शेप के लिए संतुलित डाइट, ऐक्सरसाइज और आराम की जरूरत होती है. आप बारिश की मौसम में इन सभी चीजों का ध्यान रखेंगे तो बरसात का मौसम और भी सुहावना हो जाएगा.

– लीना मोगरे, फिटनैस इंस्टिट्यूट की संचालक

कौटन एक सर्वोत्तम विकल्प

बरसात के मौसम में तरोताजा रहने के लिए कपड़ों का चयन सतर्कता से करना जरूरी होता है. इस वक्त तापमान में अधिक नमी रहती है और यह नमी कौटन के कपड़े ही सोखते हैं. इसलिए इस मौसम में कौटन के कपड़ों का चयन सर्वोत्तम है. आजकल मार्केट में बारिश के मौसम के लिए लाइट कौटन के विविध विकल्प मौजूद हैं. आप गरमी के मौसम में लाइट कलर के कपड़ों का चयन करती हैं, लेकिन बरसात के मौसम में डार्क कलर के कपड़ों का चयन कर सकती हैं.

बरसात के मौसम में चारों तरफ कीचड़, पानी और गंदगी होती है. फिर भी हमें बस या टे्रन में सफर तो करना पड़ता है. डार्क कलर के कपड़ों पर कीचड़ और मिट्टी के दाग दिखते नहीं हैं, जो इस मौसम में कपड़ों पर अकसर लग जाते हैं. कौटन के साथ आप सिंथैटिक कपड़ों का भी चयन कर सकती हैं क्योंकि सिंथैटिक कपड़े भीगने पर जल्दी सूखते हैं. बारिश में डैनिम और वूलन कपड़ों का इस्तेमाल बिलकुल न करें. उन्हें सुखाने में भी बहुत वक्त लगता है और नमी की बदबू उन से आती रहती है.

बरसात में अगर किसी प्रोग्राम या शादी के अवसर पर साड़ी पहननी हो तो फ्लोरल प्रिंट और डिजाइनर वर्क की सिंथैटिक साड़ी पहन सकती हैं. ज्वैलरी भी लाइट वेटेड और रंग न छोड़ने वाली पहनें. बरसात में कपड़ों के साथ मेकअप पर भी विशेष ध्यान दें. पाउडर, कुमकुम की जगह वाटरपू्रफ मेकअप प्रोडक्ट इस्तेमाल करें. अगर छोटे केश हों तो उन्हें खुला छोड़ सकती हैं. केश लंबे हों तो एक चोटी बांध कर ऊपर फोल्ड कर सकती हैं.

– अनिता डोंगरे, फैशन डिजाइनर

त्वचा व बालों की देखभाल जरूरी

पहली बारिश में हर कोई भीगते हुए रिमझिम बरसात का लुत्फ उठाना चाहता है. लेकिन इस से तो दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि शुरुआती बारिश में ऐसिड ड्रीन अधिक होने के कारण त्वचा की समस्याएं हो जाती हैं.

इस मौसम में लोग समझते हैं कि धूप नहीं है तो फिर सनस्क्रीन लगाने की क्या जरूरत? लेकिन यह सच नहीं है. इस मौसम में सनस्क्रीन लगाना बहुत जरूरी है. इसलिए आप सुबह सनस्क्रीन लगाएं और उस के 3-4 घंटे के बाद फिर सनस्क्रीन लगाएं.

कुछ लोगों का मानना है कि इस मौसम में त्वचा व बालों की देखभाल की खास जरूरत नहीं होती. लेकिन बारिश में धूप नहीं होती और ड्राईनैस महसूस कराने वाली ठंड भी नहीं होती, इस लिए कारण उन की अपेक्षा बरसात के मौसम में त्वचा व बालों में काफी बदलाव होते रहते हैं.

कभी त्वचा औयली हो जाती है तो कभी ड्राई. इस के अलावा त्वचा निस्तेज भी होने लगती है. पसीना व औयल की वजह से और चेहरे पर धूलमिट्टी की वजह से पिंपल्स और ब्लैकहैड्स की समस्या बढ़ जाती है. इस मौसम में त्वचा में चिपचिपाहट रहने के कारण कुछ लोग मौइश्चराइजर लगाने की जरूरत नहीं समझते लेकिन नैचुरल कौंप्लैक्शन कायम रखने के लिए स्किन केयर बहुत जरूरी है.

बारिश में क्लींजिंग भी बहुत जरूरी है. क्लींजिंग के बाद अल्कोहल फ्री टोनर का इस्तेमाल कीजिए. इस मौसम में नमी के कारण स्किन पोर्स अपने आप खुल जाते हैं. इस कारण धूलमिट्टी जमने से पिंपल्स की समस्या बढ़ जाती है. इसीलिए क्लींजिंग के बाद टोनिंग जरूरी है. इस से खुले पोर्स बंद होते हैं.

भले ही इस मौसम में सूरज बादलों में छिप जाए, लेकिन अल्ट्रावायलेट रेज तो सक्रिय रहती हैं. इस के लिए लाइटनिंग एजेंट और लैक्टिक ऐसिडयुक्त मौइश्चराइजर का इस्तेमाल कीजिए और सैलेड, वैजिटेबल सूप का अपने डाइट में समावेश कीजिए. स्किन नरिशमैंट के लिए पानी की जरूरत होती है, इसलिए रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पीजिए. बारिश में ज्यादा प्यास नहीं लगती है, लेकिन शरीर में पानी की कमी न हो इस के लिए भरपूर मात्रा में पानी पीना चाहिए, यह बात ध्यान में रखिए.

– अनुजा, त्वचा विशेषज्ञ

बरसात के इस रोमांटिक मौसम का मजा तो है पर इसे और भी आनंददायक बनाने के लिए उपरोक्त सुझावों पर अमल करना भी जरूरी होगा ताकि किसी समस्या से दोचार न होना पड़े.

स्ट्रोक के बाद रिकवरी के लिए खानपान कैसा होना चाहिए?

सवाल

मेरे पति का स्ट्रोक का उपचार चल रहा है. उन की तेज और बेहतर रिकवरी के लिए उन के खानपान का किस तरह ध्यान रखना चाहिए?

जवाब-

एक बार स्ट्रोक आने के बाद खानपान का ध्यान रखना बहुत जरूरी है ताकि स्ट्रोक से रिकवरी बेहतर हो और दोबारा स्ट्रोक की चपेट में आने का खतरा भी कम हो जाए. संतुलित, पोषक और सादा भोजन रक्तदाब और वजन को नियंत्रित रखने में सहायता करता है  जो स्ट्रोक के प्रमुख रिस्क फैक्टर्स माने जाते हैं.

स्ट्रोक के मरीज के डाइट चार्ट में साबूत अनाज, रंगबिरंगे फल और सब्जियां, वसारहित दूध व दुग्ध उत्पाद, दालें, फलियां आदि संतुलित मात्रा में लेने चाहिए. आप उन्हें थोड़ी मात्रा में चिकन और फिश भी दे सकती हैं, लेकिन इसे पकाने में तेलमसालों का इस्तेमाल अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए. तेल, घी, नमक चीनी, चाय, कौफी बहुत थोड़ी मात्रा में दें. जंक और प्रोसैस्ड फूड्स, धूम्रपान और शराब का सेवन बिलकुल न करने दें. इस से न केवल रिकवरी की प्रक्रिया धीमी होगी बल्कि दोबारा स्ट्रोक आने की आशंका भी बढ़ जाएगी.

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मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे गूढ़ और महत्वपूर्ण अंग है जिसे खोपड़ी के अंदर बहुत ही नजाकत से संभाल कर रखा जाता है. लेकिन खराब लाइफस्टाइल और कई बीमारियां मस्तिष्क के लिए बड़ा खतरा बन जाती हैं. स्ट्रोक इन्हीं में से एक ऐसी बीमारी है, जो वैश्विक स्तर पर चार में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है. हालांकि सभी तरह के स्ट्रोक में तकरीबन 80 फीसदी मामलों से बचा जा सकता है, बशर्ते कि इसकी सही समय पर पहचान की जाए ताकि मरीज को तत्काल अस्पताल पहुंचाकर उसे लकवाग्रस्त होने तथा मौत से बचाया जा सके.

स्ट्रोक की स्थिति में लोगों को तत्काल कार्रवाई करने के लिए जागरूक करना बहुत जरूरी है और 6—एस पद्धति से इसकी पहचान करने में मदद मिलती है. ये हैं: सडेन यानी लक्षणों की तत्काल उभरने की पहचान, स्लर्ड स्पीच यानी जुबान अगर लड़खड़ाने लगे, साइड वीक यानी बाजू, चेहरे, टांग या इन तीनों में दर्द होना, स्पिनिंग यानी सिर चकराना, सिवियर हेडेक यानी तेज सिरदर्द और छठा सेकंड्स यानी लक्षणों के उभरते ही कुछ सेकंडों में अस्पताल पहुंचाना. कई सारे अध्ययन बताते हैं कि स्ट्रोक पीड़ित मरीज की प्रति मिनट 19 लाख मस्तिष्क कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, लगभग 140 करोड़ स्नायु संपर्क टूट जाता है और 12 किमी तक स्नायु फाइबर खराब हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में मिनट भर की देरी भी मरीज को स्थायी रूप से लकवाग्रस्त और मौत तक की स्थिति में पहुंचा देती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- स्ट्रोक की स्थिति में 6 – एस को जानें

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

वजन घटाने के लिए लाइफस्टाइल चेंज कैसे करुं?

सवाल-

मैं घरेलू महिला हूं, मेरा वजन काफी बढ़ गया है. मैं थोड़ा सा काम करने में ही काफी थक जाती हूं. मैं अपने खानपान में क्या बदलाव लाऊं कि मेरा वजन भी कम हो जाए और थकान से निढाल भी न रहूं?

जवाब-

आप अपने खानपान पर नियंत्रण रख कर और ऐक्सरसाइज कर के अपना वजन कम कर सकती हैं और थकान से भी छुटकारा पा सकती हैं. आप को रोजाना 1 घंटा तेज चलना चाहिए या ऐक्सरसाइज करना चाहिए. दिन में कम से कम

5 बार मिनी मील खाएं. नाश्ता हैवी करें, लंच और डिनर हलका लें. खाने के बीच में थोड़ा सलाद और फल खाएं. चीनी, आलू, नमकीन बिस्कुट का सेवन न करें. नाश्ते में डबल टोंड मिल्क, कौर्नफ्लैक्स या ओट्स आदि ले सकती हैं. व्हाइट ब्रैड के बजाय मल्टी ग्रेन ब्रैड खाएं. अब तो मल्टी ग्रेन आटा भी मिलने लगा है. सामान्य आटे के बजाय इसे प्राथमिकता दें.

आप को कुछ रूटीन टैस्ट जैसे थायराइड फंक्शन, ब्लड शुगर, विटामिन डी, विटामिन बी12 आदि कराने चाहिए.

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जब थायराइड ग्रंथि में थायराक्सिन हार्मोन कम बनने लगता है, तब उसे हाइपोथाइरॉयडिज्‍म कहते हैं. ऐसा होने पर शरीर का मेटाबॉलिज्‍म धीमा पड़ने लगता है और आप अपना वजन नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाते हैं.

इस बीमारी से अक्‍सर सबसे ज्‍यादा महिलाएं ही पीड़ित होती हैं. जो लोग हाइपोथाइरॉयडिज्‍म से पीडित हैं, उन्‍हें वजन घटाने में काफी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ता है.

मगर डॉक्‍टरों के अनुसार अगर एक स्‍वस्‍थ दिनचर्या रखी जाए तो आप अपना बढ़ा हुआ वजन आराम से घटा लेंगी. आइये जानते हैं कुछ उपाय :

अपना पोषण सुधारिये: आप दिनभर में जो कुछ भी खाते हैं, उसके पोषण का हिसाब रखिये. आपकी डाइट में लो फैट वाली चीजें होनी चाहिये. ऐसे आहार शामिल करें जिसमें आयोडीन हो. आप, बिना वसा का मीट, वाइट फिश, जैतून तेल, नारियल तेल, साबुत अनाज और बीजों का सेवन कर सकते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- Hypothyroidism: कैसे कम करें वजन

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