‘‘देखिए… मैं अभी नहा कर आई हूं,’’ सुखलाल से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए सलोनी किसी तरह बोली, लेकिन वह शराबी कहां मानने वाला था. वह बेशर्मी से बोला, ‘‘इसीलिए तो अभी खासतौर से तुम को प्यार करने आया हूं. तरोताजा फल का स्वाद ही अलग होता है.’’
इसी पकड़धकड़ में सलोनी का सिर टेबल के कोने से जा टकराया और उस की चीख निकल गई, ‘‘आह…’’
लेकिन सलोनी की कमजोरी तो जिस्मानी से ज्यादा दिमागी थी. वह कसमसा कर रह गई और सुखलाल उस के ऊपर छा गया.
तकरीबन 15 मिनट बाद सलोनी के जलते दिल पर अपने जहर की बरसात करने के बाद संतुष्टि की सांसें भरता सुखलाल उठा और कहने लगा, ‘‘बस, हो तो गया. कोई ज्यादा समय थोड़े ही लगता है हम को काम करने में. तुम्हीं बेकार में टैंशन ले लेती हो और हम को भी दे देती हो,’’ इस के बाद वह बाहर चला गया.
सलोनी ने भरी आंखों से घड़ी देखी तो बच्चों के स्कूल से लौटने का समय हो रहा था. बुझे मन से वह दोबारा नहाने चली गई. बाहर आ कर अपने माथे की चोट पर एंटीसैप्टिक क्रीम लगा ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी.
सलोनी ने दरवाजा खोला. उस के दोनों बेटे स्कूल से आ चुके थे.
बड़े बेटे की नजर अपनी मां के माथे पर गई तो वह पूछ बैठा, ‘‘मम्मी, यह चोट कैसे लगी?’’
‘‘वह जरा टेबल से सिर टकरा गया. तुम दोनों फ्रैश हो लो. मैं आलू के परांठे बना रही हूं,’’ सलोनी ने जल्दी से उसे टाला और रसोईघर में चली गई.
सलोनी के साथ इस तरह की घटनाओं की भूमिका तो उसी दिन से शुरू हो गई थी जब तकरीबन 6 महीने पहले उस के पति सुधीर ने पैसे की तंगी कम करने के लिए सुखलाल को ऊपर का कमरा किराए पर दिया था. उन को तब पता नहीं था कि कि 50 साल का सुखलाल किस कदर काइयां आदमी है. उस के तार इलाके के कुछ बड़े दबंगों से जुड़े थे और पुलिस से भी.
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टीवीकूलरपंखे वगैरह की रिपेयरिंग की दुकान चलाने वाला सुधीर सीधासादा आदमी था. सुखलाल की गंदी नजरें यहां आते ही खुद से 10 साल छोटी सलोनी पर टिक गई थीं. पहली मुलाकात में ही वह उस के हुस्न को देखता रह गया था, जब वह उस के लिए चाय ले कर आई थी. इस के बाद तो सुखलाल ने उस पर लगातार डोरे डालने शुरू कर दिए थे.
जब सलोनी ने सुखलाल की दाल नहीं गलने दी तो उस ने एक दिन अपना गैरकानूनी कट्टा चुपके से सुधीर की दुकान में रखवा कर इलाके के अपने परिचित दारोगा से उस को गिरफ्तार
करा दिया.
अपने पति को दिलोजान से चाहने वाली सलोनी ने हर मुमकिन कोशिश कर ली लेकिन सुधीर को छुड़ा नहीं पाई. तब एक रात इसी सुखलाल ने सलोनी को अपने कमरे में इस बारे में बात करने के लिए बुलाया और अपने मन की कर ली. सुबह उस ने अपने नशे में होने का बहाना बनाया और सुधीर की रिहाई का लालच दे कर उसे किसी से कुछ भी न बताने के लिए राजी कर लिया.
रोजरोज थाने में थर्ड डिगरी झेल रहा बेकुसूर सुधीर अगले दिन ही रिहा कर दिया गया. सलोनी उस की हालत देख कर रो पड़ी.
सुखलाल ने उस के इलाज के लिए कुछ पैसे दे कर सलोनी की रहीसही हिम्मत भी तोड़ दी. उस ने सोचा कि अपनेआप को एक बार दागदार कर के उस ने अपना घर और सुहाग बचा लिया है, लेकिन उस का यह सोचना गलत निकला.
सुखलाल पर सलोनी का स्वाद लग चुका था. अब वह अकसर उस को मौका पाते ही दबोच लेता था.
आज भी सलोनी के साथ वही हुआ. वह बारबार सोचती कि सुधीर को सबकुछ बता दे, लेकिन सुखलाल का डर उस की जबान सिल देता.
शाम को सुधीर दुकान से आया और सलोनी के माथे पर लगी चोट देख कर शंका भरी आवाज में सवाल करने लगा.
दरअसल, सुधीर को यह सारा मामला किसी और ही नजरिए से दिखने लगा था. वह सोचता था कि सलोनी और सुखलाल के बीच कुछ है और उस का खमियाजा पति होने के नाते थाने में गिरफ्तार हो कर उसे भुगतना पड़ा.
सलोनी ने सुधीर से भी अपनी चोट का वही बहाना बनाया जो उस ने अपने बच्चों से बनाया था. सुधीर उस का जवाब सुन कर चुपचाप वहां से चला तो गया, लेकिन आज उस की आंखों में सलोनी ने एक ऐसी आग की झलक देखी जो उस ने पहले कभी महसूस नहीं की थी.
अगली सुबह बाहर हो रहे शोर से सलोनी जागी तो उस ने सुधीर को अपने पास नहीं पाया. वह हड़बड़ी में अपने बाल बांधती बाहर भागी. उस के घर के बगल वाली खाली जमीन के सामने लोगों की भीड़ लगी थी. कोई आदमी कह रहा था, ‘‘जिंदा है कि मर गया?’’
ये शब्द सुनते ही सलोनी को बेहोशी आने लगी. कहीं सुधीर ने तनाव में आ कर खुदकुशी तो…
घबराहट में वह बेतहाशा लोगों को धकियाती आगे बढ़ी तो पाया कि सामने सुखलाल खून से लथपथ गिरा पड़ा था. उस के पेट में लोहे की एक छड़ धंसी थी और जिस्म शांत हो चुका था.
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इसी बीच पुलिस भी आ गई. नए दारोगा राम सिंह ने कुछ ही दिनों पहले इस इलाके का चार्ज लिया था और सुखलाल उस से भी मेलजोल बढ़ाने में लगा रहता था लेकिन राम सिंह की ईमानदारी के चलते वह कामयाब नहीं हो सका था.
सलोनी घर वापस आई और सुधीर को पूरे घर में तलाशा. उसे नहीं पा कर उस को फोन मिलाया. वह भी बंद मिला.
सलोनी सिर पकड़ कर रोने लगी कि आखिर वही हुआ जिस से बचने के लिए उस ने अपना सबकुछ लुटा दिया था… आखिरकार सुधीर कानून का मुजरिम बन ही गया.
सुखराम की लाश को कस्टडी में लेने के बाद दारोगा राम सिंह सलोनी
के घर आया क्योंकि सुखलाल उसी का किराएदार था. उस ने सुखलाल के कमरे की तलाशी ली. सीढ़ीघर के बाहर
की तरफ दीवार नहीं बनी थी जिस के चलते वहां से नीचे गिरने का खतरा बना रहता था.
दारोगा राम सिंह ने अंदाजा लगा लिया कि यहीं से सुखलाल भी नीचे गिरा है. उस के कमरे में रखी शराब की बोतलों को आगे की जांच के लिए जब्त कर उस ने सलोनी से सवाल किया, ‘‘आप के पति कहां हैं?’’
‘‘ज… जी, वे मेरे मायके गए हैं, कल रात को… मेरे चाचाजी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी तो उन को ही देखने,’’ सलोनी ने झूठ बोल दिया ताकि राम सिंह का शक सुधीर पर न जाए. अपनी बात की तसदीक तो वह अपने मायके वालों को समझा कर करा ही सकती थी.
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