लड़कियों में न निकालें मीनमेख

सुश्रुत अपने परिवार के साथ दिल्ली के राजौरी गार्डन में लड़की देखने गया. वह बड़े जोश में था और दोस्तों को भी बता कर आया था कि लड़की देखने जा रहा हूं. लड़की वालों के घर जब उस का पूरा परिवार पहुंचा तो उन्होंने आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी. अच्छा खाना खिलाया. सभी रिश्तेदारों ने उन का खुले दिल से स्वागत किया.

अब आई लड़की दिखाने की बारी. सौम्य सी लड़की वंदना जब सामने बैठी तो सुश्रुत समेत उस के घर वाले इस तरह से सवाल दागने लगे मानो वंदना उन की कंपनी में इंटरव्यू देने आई हो.

कितनी उम्र है? अब तक कितने लड़के देख चुके हैं तुम्हें? कहां जौब करती हो औफिस में किसी से अफेयर तो नहीं है? बौस पुरुष है या महिला? हाइट कितनी है तुम्हारी? सैलरी कितनी मिलती है? इन्हैंड कितनी है और पेपर में कितनी है? तुम्हारी हाईट बिना हाई हील्स के कितनी है? तुम्हारा कलर ही इतना फेयर है या मेकअप किया है? कपड़े कैसे पहनती हो? वैस्टर्न का भी शौक है? इतनी ज्यादा उम्र हो गई है, अभी तक कोई लड़का नहीं मिला या कोई कमी थी?

ऐसे ही सवालों की झड़ी लगा दी उन्होंने, जिस से वंदना घबरा गई और बिना कुछ कहे रोते हुए अंदर चली गई. इस पर भी सुश्रुत का परिवार नहीं माना. लड़की हकली है क्या? कुछ बीमारी तो नहीं है? कुछ बोल क्यों नहीं रही थी? कुछ छिपा रही थी क्या? जैसे सवाल दागते रहे. जाहिर है लड़की और उन के परिवार वालों को उन की इन हरकतों से बहुत शर्मिंदा होना पड़ा.

लड़की राशन का सामान नहीं

यह ऐसी अकेली घटना नहीं है. लगभग हर घर में लड़की देखने आए लोग ऐसा ही व्यवहार करते हैं. बड़े बुजुर्ग ऐसा व्यवहार करते हैं तो समझ में आता है, लेकिन जब आज के युवा लड़की देखते वक्त इतनी मीनमेख निकालते हैं, तो लगता है उन्हें लड़की नहीं कोई स्मार्ट फीचर वाला फोन चाहिए, जिस का एकएक स्पैसिफिकेशन चैक करना जरूरी हो. अरे भाई, लड़की है कोई खानेपीने का सामान नहीं, जो इतना मोलभाव किया जाए.

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हर इंसान में कुछ कमियां और कुछ खूबियां होती हैं. ऐसे में सिर्फ युवती में ही कमी निकालना गलत है. आज युवाओं को सोचना चाहिए कि युवतियां आत्मनिर्भर हो कर अपना जीवन जीना चाहती हैं.

इसलिए वे आत्मसम्मान से समझौता नहीं करतीं ऐसे में क्या कोई युवा चाहेगा कि उस की होने वाली वाइफ के साथ इस तरह की मीनमेख निकाल कर शादी हो. होना तो यह चाहिए कि युवक अपनी होने वाली पत्नी के साथ अलग से बात कर के अपनी पसंदनापसंद, हौबीज, आइडियोलौजी और जीवन में वरीयता देने वाली बातों पर चर्चा करे और जब मन मिल जाएं तब शादी के लिए हां करे.

शक्लसूरत और धनसंपदा न होने के कारण लड़की में कमी निकालना मूर्खता है. शरीर और पैसा तो बदलता रहता है, लेकिन इंसान के विचार नहीं बदलते. जरा सोचिए जो युवक शादी से पहले युवतियों में इतनी मीनमेख निकाल कर उन्हें शर्मिंदा करते हैं, अगर उन की बहन को देखने आए लड़के वाले भी ऐसी ही हरकत करें तो उन्हें कितना बुरा लगेगा? जाहिर है सब की भावना और आत्मसमान का आदर करना चाहिए.

अपने गिरेबान में भी झांकें

हमारी संस्कृति और रीतिरिवाज ऐसे हैं जहां लड़की को लड़के वालों के सामने झुकना पड़ता है. लड़का लड़की को ब्याह कर यह समझता है कि वह उस पर एहसान कर रहा है जबकि दुनिया में दो लड़कालड़की शादी करते वक्त एकदूसरे का बराबरी से सामना करते हैं और कोई बिना किसी के सामने झुके व आपस में बात कर शादी तय करते हैं, लेकिन हमारे यहां युवक समझते हैं कि अगर वे शादी करने जा रहे हैं तो लड़की की क्लास ले कर आएंगे. उस का अगलापिछला सब चैक कर फिर उसे पास करेंगे.

दरअसल, वे अपने गिरेबान में झांकना भूल जाते हैं. जरा सोचिए, युवती यदि आप के शरीर, लंबाई और हैसियत का मजाक बना कर शादी के दौरान आप को कमतर आंके तो कैसा लगेगा?

युवा प्रश्न करने से पहले यह भूल जाते हैं कि पहले वे अपनी खूबियां भी तो बताएं. जब उन से सिर्फ लड़के के बारे में पूछा जाता है तो कहते हैं कि लड़का ज्यादा पढ़ा तो नहीं है, लेकिन बाप का बिजनैस देखेगा.

अगर लड़का लड़की देखने जा रहा है तो बिना लड़की देखे कोई राय न बनाएं. अकसर लोग पहले से ही नकारात्मक विचार मन में बना लेते हैं. जिस वजह से उन्हें हर चीज में यही भाव दिखाई देता है. लड़की वालों को ऐसा महसूस न कराएं कि आप को लड़की नापसंद है. सिर्फ लड़की की कमियां न गिनवाएं. इतना ही नहीं यदि लड़की या लड़के में कोई कमी या विकार है तो उसे उजागर करें.

लड़की वालों के यहां रिश्तेदारों की पूरी फौज ले कर न जाएं. अगर युवक ज्यादा कमाता है या परिवार आर्थिक रूप से लड़की वालों से मजबूत भी हो, तो भी लड़की वालों पर अपने पैसे का रोब दिखा कर उन्हें छोटा होने का एहसास न होने दें.

अंधविश्वासी न बनें

शादी के समय पंडेपुरोहित लड़के के घर वालों को अंधविश्वास में फंसा कर अपनी जेब भर लेते हैं. युवक को भी लड़की की खूबसूरती से जुड़े टोटके बता कर भटकाने का काम करते हैं.

वे भाग्य को चमकाने वाले चिह्न बता कर युवक के मन में शारीरिक और नस्लीय भेदभाव का बीज रोप देते हैं. कभी भी अंधविश्वास के चक्कर में पड़ कर शादी के दौरान लड़की देखते हुए ऐसे रिवाजों में न पड़ें. तन की नहीं मन की सुंदरता भी देखें.

लड़की को करें सहज

जब कोई युवा किसी लड़की को देखने जाता है तो उसे यह बात समझनी चाहिए कि यह समय लड़की के लिए बड़ा नर्वस होने वाला होता है. उस पर कई तरह के दबाव रहते हैं. मातापिता का दबाव होता है कि ठीक ढंग से तैयार हो कर लड़के के सामने जाना. किसी भी तरह की कोई चूक नहीं होनी चाहिए, जबकि लड़के के सामने किसी तरह का कोई दबाव नहीं होता. उलटे वह सीना चौड़ा कर यह सोच कर जाता है कि उसे तो लड़की सिलैक्ट या रिजैक्ट करनी है.

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यह मानसिकता गलत है. युवक को चाहिए कि लड़की से बात कर उसे सहज करे. जाहिर सी बात है इस दिन आप दोनों अच्छे कपड़े पहन कर गए होंगे, लेकिन बात की शुरुआत के लिए कपड़ों की तारीफ करना अच्छा रहेगा. इस से उस लड़की को लगेगा कि आप ने उसे नोटिस किया.

लड़की को अच्छा लगेगा अगर आप अपनी संभावित पत्नी से उन के घरपरिवार के बारे में पूछें. कैरियर के बारे में उस से बातें करना भी एक अच्छा विकल्प है. कुछ न समझ आए तो चुपचाप उस की पसंद के बारे में पूछ लें. ऐसा करने से लड़की काफी सहज हो जाएगी और आप की बातों का उचित और तार्किक जवाब दे पाएगी.

जरा सोचिए, आप एक परिवार के साथ जीवनभर का रिश्ता जोड़ने के इरादे से जाते हैं ऐसे में अगर वे भी आप के परिवार व आप को ले कर मीनमेख निकालें तो जाहिर है बुरा लगेगा. जो व्यवहार आप को बुरा लग सकता है उसे दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए. रीतिरिवाज या रिश्तेदारों के दबाव में आ कर लकड़ी की या उस के परिवार वालों की मीनमेख निकालने के चक्कर में हो सकता है आप के हाथ से एक अच्छा रिश्ता निकल जाए. शादी को सौदेबाजी का खेल बनाना निहायत ही गलत है.

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तो आसान होगी तलाक के बाद दूसरी शादी

2017 में पति अरबाज खान से तलाक ले चुकी फिल्म अभिनेत्री मलाइका अरोड़ा ने हाल ही में अपने 17 वर्षीय बेटे अरहान का जन्मदिन मनाया. 46 वर्षीय मलाइका फिलहाल अपने बौयफ्रैंड अर्जुन कपूर के साथ रिलेशनशिप में हैं और दोनों जल्द ही शादी प्लान करने की सोच रहे हैं.

एक वैबसाइट को दिए इंटरव्यू में मलाइका ने बताया कि तलाक के बाद दोबारा प्यार पाना उन के लिए बहुत खास है. उन के मुताबिक यह एक कमाल की फीलिंग है क्योंकि जब शादी टूट रही थी, वे नहीं जानती थीं कि दूसरी बार उन्हें इस रिश्ते में जाना है या नहीं. बहरहाल उन्हें खुशी है कि उन्होंने अपनेआप को दोबारा यह मौका दिया और सही फैसला लिया. उन के अनुसार तलाक के बाद दूसरी शादी एक औरत का नितांत निजी निर्णय है जिस पर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

यह सही है कि तलाक के बाद किसी भी व्यक्ति की जिंदगी में बदलाव आ जाता है खासकर औरतों की जिंदगी तो लगभग पूरी तरह से बदल जाती है क्योंकि संबंधविच्छेद द्वारा पति की ओर से मिलने वाली तकलीफों से तो वे आजाद हो जाती हैं परंतु दूसरी परेशानियां इस कदर बढ़ जाती हैं मानो ंिंजदगी में कोई भूचाल आ गया हो. ऐसे में तलाकशुदा स्त्री अगर दूसरी शादी के बारे में सोचती है तो यकीनन उस की दिक्कतें और बढ़ जाती हैं.

आज के दौर में तेजी से होते तलाक इतना गंभीर विषय नहीं जितना कि इस के बाद तलाकशुदा स्त्री की जिंदगी में होने वाली परेशानियां हैं. निम्न केस इस मसले पर महत्त्वूपर्ण प्रकाश डाल सकते हैं:

नीरा के तलाक को 2 साल हो चुके हैं. पति की बेवफाई ने उसे जिंदगी के मझधार पर ला कर खड़ा कर दिया है. 15 वर्षीय बेटी शैली की मां नीरा को अब बेटी के साथ ही अपने भविष्य की भी चिंता सता रही है. तलाक की कानूनी प्रक्रिया में उलझ कर उस ने एक तरफ जहां समय की बरबादी झेली है वहीं दूसरी ओर अपना मानसिक सुकून भी खोया है. फिलहाल वह एक प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी कर रही है. लेकिन भविष्य की असुरक्षा कई बार उस के मन को बेचैन कर देती है. वह दूसरी शादी की इच्छुक है, मगर जानती है कि दूसरी शादी का यह सफर उतना आसान भी नहीं.

पिंक सिटी जयपुर की निवासी कोमल गुप्ता के तलाक की मुख्य वजह उस के पति का हिंसक रवैया था. यहां तक कि अंतरंग पलों में भी उसे अपने पति के वहशीपन को झेलना पड़ता था. तलाक की बोझिल प्रक्रियाओं से गुजरती कोमल भीतर ही भीतर टूट चुकी है. उसे अब किसी सहारे की दरकार है. मगर 8 साल के बच्चे आशू के साथ उसे कोई अपना सकेगा, इस पर उसे संशय है.

नीरा और कोमल की तरह कई महिलाएं हैं, जो किसी न किसी मजबूरी के चलते पति से तलाक ले कर अलग तो हो गई हैं, किंतु आगे की जिंदगी का सफर उन के लिए बेहद दुष्कर प्रतीत होता है. वे बच्चों के भविष्य के साथसाथ अपने भविष्य के प्रति भी शंकित हैं.

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तलाक के बाद होने वाली परेशानियां

हेयदृष्टि वाली सामाजिक मानसिकता:

भले ही हमारा सामाज आज तकनीकी ज्ञान व रहनसहन, पहनावे आदि से काफी आधुनिक हो चुका है पर सच तो यह है कि उस की सोच आज भी सदियों पुरानी है. यही कारण है कि तलाकशुदा महिलाओं को आज भी हेयदृष्टि से देखा जाता है फिर चाहे वह किसी भी वर्ग से क्यों न हो. उसे तेजतर्रार, बेशर्म व चालाक औरत की पदवी दी जाती है मानो उस ने बड़ी खुशी से अपने पति से तलाक का चुनाव किया हो.

व्यक्तिगत जीवन में ताकझांक:

समाज में स्त्रीपुरुष के दोहरे मानदंड के चलते अकसर स्त्रियों को ही तलाक के लिए पूर्णरूपेण दोषी करार दिया जाता है. उन की तकलीफ समझना तो दूर लोग उन पर तंज कसने से भी बाज नहीं आते. तलाक को ले कर गाहेबगाहे उन्हें पासपड़ोस, नातेरिश्तेदारों के कटाक्षों का सामना करना पड़ता है. वैसे भी हमारा तथाकथित सभ्य समाज एक पुरुष के मुकाबले स्त्री के व्यक्तिगत जीवन में ज्यादा दिलचस्पी रखता है. ऐसे में जाहिर सी बात है उस की पर्सनल लाइफ में लोगों की ताकझांक अधिक कुतूहल और चर्चा का विषय बन जाती है.

आर्थिक निर्भरता:

चूंकि आज भी ज्यादातर महिलाएं आर्थिक रूप से पति पर ही निर्भर हैं लिहाजा तलाक के बाद भी अपने भरणपोषण के लिए उन्हें अपने पति की ओर देखना पड़ता है. कोर्ट द्वारा पति से दिलवाया गया गुजाराभत्ता कई बार उन के खर्चों के लिए नाकाफी होता है.

शारीरिक व मानसिक शोषण:

तलाकशुदा औरतों का उन के वर्कप्लेस पर शारीरिक व मानसिक शोषण होने की बहुत गुंजाइश होती है. पुरुषप्रधान समाज होने से बिना मर्र्द वाले घर की औरतें सभी के लिए आसान शिकार मानी जाती हैं, जिन्हें थोड़ी सी हमदर्दी दिखा कर कोई भी बड़ी सहजता से हासिल कर सकता है. लिहाजा घर में नातेरिश्तेदार तथा बाहर बौस की ललचाई नजरें तलाकशुदा स्त्री पर विचरती ही रहती हैं. इस तरह महिलाओं को हर कदम फूंकफूंक कर रखना पड़ता है.

बढ़ती जिम्मेदारियां:

जिस तरह 2 पहियों की गाड़ी अपने बोझ को आसानी से उठा पाने में सक्षम होती है उसी तरह पतिपत्नी भी मिल कर सहजता से अपनी गृहस्थी की गाड़ी को चला लेते हैं जबकि अकेली स्त्री के लिए गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारियां संभालना इतना आसान नहीं है. घरबाहर के काम, बच्चों की परवरिश, आमदनी का जुगाड़ करतेकरते उस की हालत खराब होने लगती है. ऐसे में बढ़ती जिम्मेदारियों का दबाव उस के तलाकशुदा जीवन को मुश्किलों में डाल देता है.

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दूसरी शादी में आने वाली अड़चनें:

पुरुषवादी सोच का गुलाम हमारा समाज आज भी तलाकशुदा स्त्री को संदेह की नजर से देखता है. इसलिए उस के साथ वैवाहिक संबंध जोड़ने से पहले अपने स्तर पर तलाक के कारणों की जांचपड़ताल की जाती है कि तलाक का जो कारण था वह वाजिब था या नहीं. ऐसे में तलाकशुदा महिला के चरित्र पर भी कई सवाल उठ खड़े होते हैं जिन से उस की परेशानियां बढ़ जाना लाजिम है.

मगर कहते हैं जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों की क्या गिनती यानी जब तलाक लेने का तय कर ही लिया तो उस के बाद आने वाली मुश्किलों से घबराना कैसा.

शादी के 7 सालों बाद अपने पति से तलाक ले चुकी रीना तलाक के बाद की जिंदगी पर खुल कर अपने विचारों को साझा करती है. उस के मुताबिक तलाक के बाद का जीवन कठिन है पर नामुमकिन नहीं. वैसे भी तलाक से पहले उस का जीवन एक दर्दभरी दास्तां के अलावा कुछ नहीं था. पति और ससुराल वालों ने उस का व बच्ची का जीना मुहाल कर रखा था. वह कभी अपने पति के पास लौटने को तैयार नहीं है. अपनी 6 साल की बच्ची के साथ अपने जीवन को खुशीखुशी जीना चाहती है. रीना दूसरी शादी की भी इच्छा रखती है बशर्ते उस की बच्ची को पिता का प्यार मिले. पर शादी के नाम पर अपनी स्वतंत्रता को गिरवी रख देना अब उसे गवारा नहीं है.

तलाकशुदा होना कोई गुनाह नहीं. किसी वाजिब कारण से यदि आप ने तलाक ले ही लिया है तो जिंदगी को बदनुमा दाग की तरह नहीं बल्कि प्रकृति की अनमोल देन मान कर जीएं. अपने सकारात्मक रवैए से आने वाली चुनौतियों का हंस कर मुकाबला करें और अबला नहीं बल्कि सबला बन कर समाज में अपने वजूद, अपनी गरिमा को बनाएं. निम्न उपाय इस काम में आप की सहायता कर सकते हैं:

भविष्य की प्राथमिकताएं तय करना:

बिना किसी दबाव के अपने भविष्य की प्राथमिकताओं को तय करें. याद रखें जिंदगी आप की है तो उसे जीने का सलीका और तरीका भी आप का ही होगा. सोचसमझ कर जिंदगी को दूसरा मौका दें और बिना घबराए अपने लक्ष्य की ओर चलने का प्रयास करें.

सकारात्मक सोच हो भविष्य की:

कभीकभी ऐसा होता है कि 2 व्यक्ति एकसाथ नहीं रह पाते, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि जिंदगी खत्म हो चुकी है. जिंदगी हमेशा दूसरा मौका देती है और वह भी पहले से बेहतर. अत: लोग क्या कहेंगे इस बात को दिल से निकाल दें और उन के द्वारा की जा रहीं टीकाटिप्पणियों पर ध्यान न दें क्योंकि कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना. अत: सकारात्मक हो कर जीवन को नए सिरे से जीने की कोशिश करें.

आत्मनिर्भर बनें:

आर्थिक रूप से अपने आप को मजबूत बनाने की कोशिश करें. अपनी पढ़ाई व प्रतिभा अनुसार रोजगार के अवसर तलाशें और अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करें.

बच्चे के साथ मजबूत ब्रैंड:

कितनी भी परेशानियां हों बच्चे को नजरअंदाज न करें. उस के साथ खुशियों भरे पल जरूर बिताएं. इस से बच्चे के साथ आप का रिश्ता भी मजबूत होगा और आप स्वयं सकारात्मक ऊर्जा से भर उठेंगी. कोईर् भी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले बच्चों को विश्वास में लेना जरूरी है अन्यथा उन का रोष या उदासीनता आप के किसी भी निर्णय पर भारी पड़ सकती है. अत: बच्चों के साथ मजबूत बौंड बनाएं.

आत्मविश्वास बढ़ाएं:

आप ने कुछ गलत नहीं किया बल्कि आप के साथ जो गलत हो रहा था आप ने उस का विरोध कर अपना मानसिक बल दिखाया है. भले ही समाज कुछ देर से आप के नजरिए को सही माने मगर आप स्वयं हमेशा अपने साथ खड़ी रहें अर्थात अपने को बेवजह के आरोपों और दोषों से मुक्त कर खुली हवा में सांस लें और अपने हर फैसले पर विश्वास रखें.

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करिए वही जो आप को लगता है सही:

तलाक के बाद अकेले रहना है या खुद को दूसरा मौका दे कर शादी करनी है आप का अपना फैसला होना चाहिए. कठिनाइयों के डर से पीछे न हटें बल्कि पूरी मुस्तैदी से उठ खड़ी हों अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करने हेतु क्योंकि लोग भी उन्हीं का साथ देते हैं जो अपने लिए खड़े होने का जज्बा रखते हैं. इसलिए यदि आप हैं तैयार तो आसान होगा तलाक के बाद दूसरी शादी का सफर भी.

इस Festive Season डर नहीं लाएं खुशियां

त्योहार का मतलब खुशियों का समय, लेकिन पिछले साल से कोरोना के हमारे बीच में रहने की वजह से हम अपने घरों में रहने पर मजबूर हो गए हैं और अगर निकलते भी हैं तो डरडर कर. इस कारण लोगों से मिलनाजुलना न के बराबर हो गया है.

अब त्योहारों पर वह एक्साइटमैंट भी देखने को नहीं मिलता, जो पहले मिलता था. ऐसे में जरूरी हो गया है कि हम त्योहारों को खुल कर ऐंजौय करें. खुद भी पौजिटिव रहें, दूसरों में भी पौजिटिविटी का संचार करें.

तो आइए जानते हैं उन टिप्स के बारे में, जिन से आप इन त्योहारों पर अपने घर में पौजिटिव माहौल बनाए रख सकते हैं:

घर में बदलाव लाएं

त्योहारों के आने का मतलब घर की साफसफाई करने से ले कर ढेर सारी शौपिंग करना, घर के इंटीरियर में बदलाव लाना, घर व अपनों के लिए हर वह चीज खरीदना, जो घर को नया लुक देने के साथसाथ अपनों के जीवन में खुशियां लाने का भी काम करे. तो इन त्योहारों पर आप यह न सोचें कि किस को घर पर आना है या फिर ज्यादा बाहर आनाजाना तो है नहीं, बल्कि इस सोच के साथ घर को सजाएं कि इस से घर को नयापन मिलने के साथसाथ घर में आए बदलाव से आप की जिंदगी की उदासीनता पौजिटिविटी में बदलेगी.

इस के लिए आप ज्यादा बाहर न निकलें बल्कि खुद की क्रिएटिविटी से घर को सजाने के लिए छोटीछोटी चीजें बनाएं या फिर आप मार्केट से भी बजट में सजावट की चीजें खरीद सकती हैं और अगर आप काफी टाइम से घर के लिए कुछ बड़ा सामान खरीदने की सोच रही हैं और आप का बजट भी है तो इन त्योहारों पर उसे खरीद ही लें. यकीन मानिए यह बदलाव आप की जिंदगी में भी खुशियां लाने का काम करेगा.

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करें साथ सैलिब्रेट

त्योहार हों और अपनों से मिलनाजुलना न हो, तो त्योहारों का वह मजा नहीं आ पाता, जो अपनों के साथ सैलिब्रेशन में आता है. इन त्योहारों पर आप सावधानी बरत कर अपनों के साथ खुल कर त्योहारों को सैलिब्रेट करें. अगर आप व आप का परिवार जिन अपनों व दोस्तों के साथ त्योहार मनाने का प्लान कर रहा है और अगर वे फुली वैक्सिनेटेड हैं तो आप उन के साथ सावधानी बरत कर त्योहारों को सैलिब्रेट कर सकते हैं. इस दौरान खुल कर मस्ती करें, खूब सैल्फीवैल्फी लें, जम कर डांस पार्टी करें, अपनों के साथ गेम्स खेल कर त्योहारों की रात को भी रंग डालें.

पार्टी में इतनी धूम मचाएं कि आप के जीवन की सारी उदासीनता ही गायब हो जाए और आप बस इन दिनों हुए ऐंजौयमैंट को याद कर बस यही सोचें कि हर दिन ऐसा ही हो. मतलब सैलिब्रेशन में इतना दम हो कि आप को उस की याद आते ही चेहरे पर मुसकान लौट आए.

खुद को भी रंगे रंगों से

आप ने त्योहारों के लिए घर को तो सजा लिया, लेकिन फैस्टिवल वाले दिन आप का लुक फीकाफीका आप को बिलकुल भी त्योहारों का एहसास नहीं दिलवाएगा. ऐसे में घर को सजाने के साथसाथ आप को अपनी जिंदगी में रंग भरने के लिए खुश रहने के साथसाथ नए कपड़े खरीदना और खुद को सजानासंवारना होगा ताकि आप में आया नया बदलाव देख कर आप का कौन्फिडैंस बढ़े.

आप को खुद लगे कि आप त्योहारों को पूरे मन से सैलिब्रेट कर रही हैं. आप के नए आउटफिट्स पर आप का खिलाखिला चेहरा दूसरों के चेहरे पर भी मुसकान लाने का काम करेगा. आप भले ही किसी से मिलें या न मिलें, लेकिन त्योहारों पर सजनासंवरना जरूर क्योंकि यह बदलाव हमारे अंदर पौजिटिविटी लाने का काम करता है.

गिफ्ट्स से दूसरों में भी बांटें खुशियां

जब भी आप त्योहारों पर किसी के घर जाएं या फिर कोई अपना आप के घर आए तो आप उसे खाली हाथ न लौटाएं बल्कि आपस में खुशियां बांटने के लिए गिफ्ट्स का आदानप्रदान करें. भले ही गिफ्ट्स ज्यादा महंगे न हों, लेकिन ये मन को इस कदर खुशी दे जाते हैं, जिस का अंदाजा भी हम नहीं लगा पाते हैं.

गिफ्ट्स मिलने की खुशी से ले कर उन्हें खोलने व देखने की खुशी हमें अंदर तक गुड फील करवाने का काम करती है. साथ ही इस से किसी स्पैशल डे का भी एहसास होता है. आप औनलाइन भी अपनों तक गिफ्ट्स पहुंचा सकती हैं. तो फिर इन त्योहारों पर अपनों के चेहरों पर गिफ्ट्स से लाएं खुशियां.

खानपान से करें ऐंजौय

अगर आप त्योहारों पर त्योहारों जैसा फील लेना चाहती हैं तो फिर इन दिनों बनने वाले पकवानों का जम कर ऐंजौय करें. यह न सोचें कि अगर हम चार दिन तलाभुना खाना खा लेंगे तो मोटे हो जाएंगे बल्कि इन दिनों बनने वाले हर ट्रैडिशनल फूड का मजा लें. खुद भी खाएं और दूसरों को भी खिलाएं. इस से घर में खुशियों भरा माहौल रहता है.

चाहे कोरोना के कारण त्योहारों को मनाने के स्टाइल में थोड़ा बदलाव जरूर आया है, लेकिन आप त्योहारों को वैसे ही पूरी ऐनर्जी के साथ मनाएं, जैसे पहले मनाती थीं. भले ही कोई न आए, लेकिन आप अपनों के लिए बनाएं पकवान. जब घर में बनेंगे पकवान और उन्हें सब मिल बैठ कर खाएंगे, तो त्योहारों का मजा और दोगुना हो जाएगा.

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सजावट से लाएं पौजिटिविटी

अगर आप घर में एक ही चीज को सालों से देखदेख कर बोर हो गई हैं और घर में पौजिटिविटी लाना चाहती हैं तो घर में छोटीछोटी चीजों से बदलाव लाएं. जैसे कमरे की एक दीवार को हाईलाइट करें. इस से आप के पूरे रूम का लुक बदल जाएगा. वहीं घर में नयापन लाने के लिए कुशन कवर, टेबल कवर, बैडशीट को कौंबिनेशन में डालें. आप पुरानी साडि़यों से भी कुशन कवर बना सकती हैं. आप बाहर बालकनी में हैंगिंग वाले गमले लगाने के साथसाथ खाली बोतलों को भी सजा कर उन में भी पौधे लगा सकती हैं.

ऐसा करना आप को अंदर से खुशी देने के साथसाथ आप के घर में पौजिटिव ऐनर्जी लाने का काम भी करे. वहीं कमरे की दीवारें जो घर की जान होती हैं, उन्हें अपने हाथ से बनी चीजों से सजा कर  फिर से जीवंत करें.

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मेरे देवर को क्राइम शो देखने की लत लग गई है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 32 वर्षीया विवाहिता हूं. सासससुर नहीं रहे इसलिए 17 साल का देवर साथ ही रहता है. मैं उसे अपने बच्चे जैसा प्यार करती हूं. पर इधर कुछ दिनों से देख रही हूं कि वह टीवी पर अकसर क्राइम शो देखता है और उसी पर बातें भी करता है. कुछ दिनों पहले उस का 2-4 लड़कों से झगड़ा भी हो गया था. मैं ने डांटा तो पलट कर जवाब तो नहीं दिया पर उस ने उस दिन से मुझ से बात कम करता है. क्राइम शो देखने की लत कई बार मना करने पर भी उस ने नहीं छोड़ी है. उस की यह लत उसे गलत दिशा में तो नहीं ले जाएगी? कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

टीवी पर दिखने वाले अधिकतर क्राइम शो काल्पनिक होते हैं, जो समाज में जागरूकता तो नहीं फैलाते अलबत्ता लोगों को गुमराह जरूर करते हैं.

अकसर रिश्ते में धोखाधड़ी, एक दोस्त द्वारा दूसरे दोस्त का कत्ल, पैसे के लिए हत्या, शादी में धोखा, अवैध संबंध, पतिपत्नी में रिश्तों में विश्वास का अभाव दिखाना कहीं न कहीं लोगों के मन में अपनों के प्रति अविश्वास का भाव ही पैदा करता है. यकीनन, टीवी पर दिखाए जाने वाले अधिकतर क्राइम शो न सिर्फ रिश्तों को प्रभावित करते हैं, अपराधियों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं.

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हाल ही में एक खबर सुर्खियों में आई थी जिस में एक आदमी ने अपनी ही पत्नी की निर्मम हत्या कर दी थी. जब वह पकड़ा गया तो उस ने पुलिस को बताया कि यह हत्या उस ने टीवी पर प्रसारित एक क्राइम शो देखने के बाद की थी. यह कोई एक मामला नहीं. आएदिन ऐसी घटनाएं घट रही हैं.

अधिकतर क्राइम शो में दिखाया जाता है कि अपराधी किस तरह अपराध करते वक्त एहतियात बरतता है, ताकि वह कानून के चंगुल में फंस न सके. इस से कहीं न कहीं आपराधिक मानसिकता के लोगों का गलत मार्गदर्शन ही होता है.

बच्चों को तो इन धारावाहिकों से दूर ही रखने में भलाई है. और फिर आप के देवर की उम्र तो अभी काफी कम है. उस का मन अभी पढ़ाई की ओर लगना चाहिए. आप उसे प्यार से समझाने की कोशिश करें. उसे अच्छी पत्रिकाएं या अच्छा साहित्य पढ़ने को दें या प्रेरित करें. आप चाहें तो अपने पति से भी बात करें ताकि समय रहते उसे सही दिशा की ओर मोड़ा जा सके.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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एक बेटी होने के नाते मैं ससुराल या मायके में कैसे बैलेंस बनाऊं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. ससुराल और मायका आसपास ही है. इस वजह से मेरी मां और अन्य रिश्तेदार अकसर ससुराल आतेजाते रहते हैं. पति को कोई आपत्ति नहीं है पर मेरी सास को यह पसंद नहीं. वे कहती हैं कि तुम अपनी मां से बात करो कि वे कभीकभी मिलने आया करें. हालांकि ससुराल में मेरे मायके के लोगों का पूरा ध्यान रखा जाता है, मानसम्मान में कमी नहीं है मगर सास का मानना है कि रिश्तेदारी में दूरी रखने से संबंध में नयापन रहता है. इस वजह से घर में क्लेश भी होता है पर मैं अपनी मां से कहूं तो क्या कहूं? एक बेटी होने के नाते मैं उन का दिल नहीं दुखाना चाहती. कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

आप की सास का कहना सही है. रिश्ते दिल से निभाएं पर उन में उचित दूरी जरूरी है. इस से रिश्ता लंबा चलता है और संबंधों में गरमाहट भी बनी रहती है.

अधिकांश मामलों में देखा गया है कि जब बेटी का ससुराल नजदीक होता है तब उस के मायके के रिश्तेदारों का बराबर ससुराल में आनाजाना होता है और वे अकसर पारिवारिक मामलों में दखलंदाजी करते हैं. इस से बेटी का बसाबसाया घर भी उजाड़ जाता है.

भले ही हरेक सुखदुख में एकदूसरे का साथ निभाएं पर रिश्तों में दूरियां जरूर रखें. इस से सभी के दिलों में प्रेम व रिश्तों की मिठास बनी रहती है.

आप अपनी मां से इस बारे में खुल कर बात करें. वे आप की मां हैं और यह कभी नहीं चाहेंगी कि इस वजह से घर में क्लेश हो. हां, एक बेटी होने का दायित्व भी आप को निभाना होगा और इसलिए एक निश्चित तिथि या अवकाश के दिन आप खुद भी मायके जा कर उन का हालचाल लेती रहें.

आप उन से फोन पर भी नियमित संपर्क में रहें, मायके वालों के सुखदुख में शामिल रहें. यकीनन, इस से घर में क्लेश खत्म हो जाएगा और रिश्तों में मिठास भी बनी रहेगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बच्चों को सिखाएं खुश रहने की कला

रीमा और रमन के इकलौते बेटे 8 वर्षीय अक्षत के पास मंहगे से मंहगे खिलौनों का भंडार है पर कल से उसने अपने दोस्त बीनू के जैसी कार खरीदने की जिद लगा रखी है. उसे कुछ के समझाने के बजाए रमन ने उसे रोता देखकर अगले दिन वैसी ही कार लाकर दे दी जिससे वह उस समय तो खुश हो गया परन्तु क्या अभिभावकों द्वारा बच्चे क़ी जिद पूरी करने का ये तरीका सही है ? क्या इसके बाद उसकी इच्छाओं का अंत हो जाएगा. वास्तव में  बच्चे मिट्टी के समान होते हैं उन्हें जिस भी ढांचे में ढाल दिया जाए वे बड़ी आसानी से ढल जाते हैं. आजकल आमतौर पर परिवार में एक या दो बच्चे होते हैं और अपने इन नौनिहालों को हर अभिभावक जिंदगी की दौड़ में शिखर पर देखना चाहता है. इसके अतिरिक्त कई बार माता पिता अपने सपनों को पूरा करने के लिए भी बच्चों को मोहरा बना देते हैं. नौनिहालों को शिखर  पर पहुंचाने के लिए वे बाल्यावस्था से ही केरियर में श्रेष्ठतम करने के लिए विभिन्न विषयों की कोचिंग में भेजना प्रारम्भ कर देते हैं, स्कूल और कोचिंग के बीच में पिसते बच्चे जीवन के व्यवहारिक ज्ञान से अनभिज्ञ ही रह जाते हैं.

अक्सर वे कैरियर और एकेडेमिक्स में तो बेहतर प्रदर्शन करना सीख जाते हैं परन्तु दूसरों की भावनाओं या तकलीफों को समझना या उन पर काम करने से अछूते ही रह जाते हैं. जब कि जीवन को सफलता पूर्वक चलाने के लिए एकेडमिक्स के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान का होना भी अत्यंत आवश्यक है. यद्यपि 2020 में कोरोना के आगमन के बाद से कोचिंग व स्कूल के बंद होने से बच्चे घर में हैं, कोचिंग या क्लासेज भी ऑनलाइन ही हैं  भले ही बच्चे घर में हैं और उनका परिवार के साथ जुड़ाव भी बढ़ा है परन्तु उन्हें जीवन मूल्यों से परिचित कराना अत्यंत आवश्यक है. आवश्यक है कि किताबी शिक्षा के साथ साथ बच्चों को भावनाओं क़ी कोचिंग भी दी जाए. उन्हें खुश रहने और अपने व्यवहार से दूसरों को खुश करने की कला सिखाई जाए ताकि वे भविष्य में भी एक जिम्मेदार पिता, पति और नागरिक बनकर  सुखमय जीवन व्यतीत कर सकें.

-रिश्तों की महत्ता बताएं

अक्सर माता पिता बच्चों से केरियर और सफलता के बारे में तो बात करते हैं परन्तु कभी भी रिश्तों और रिश्तेदारों के बारे में बात नहीं करते. काउंसलिंग एक्सपर्ट कैथलीन ओकानर कहती हैं, ” बच्चों से उन रिश्तों पर बात करें जिन्होंने आपको खुशी दी. उन्हें बताएं कि आपने उन रिश्तों के लिए क्या कुछ नहीं किया. उन्हें जिंदगी में रिश्तों का महत्त्व बताएं ताकि भविष्य में वे उनके साथ जीना सीख सकें. उन्हें परिवार की महत्ता और उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाना सिखाएं. इसके लिए आवश्यक है कि आप उन्हें अपने बाल्यावस्था की छोटी छोटी शैतानियां और बातें कहानियों के रूप में सुनाएं इससे उन्हें सुनने में मजा भी आएगा और वे उन रिश्तों से परिचित भी हो सकेंगे. पहले जहां छुट्टियों में बच्चे दादी नानी के घर जाते थे वहीं आजकल छुट्टियों में घूमने जाने का ट्रेंड हो गया है जिससे बच्चे नाते रिश्तेदारों से अपरिचित ही रह जाते हैं. वर्ष में कम से कम एक बार उन्हें परिवार के सदस्यों से अवश्य मिलवाएं ताकि वे उनसे जुड़ाव भी महसूस कर सकें.

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-रोल मॉडल बनें

बच्चे सदैव अपने माता पिता का अनुकरण करते हैं. परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों पर  रश्मि हमेशा दीवाली मनाने अपने ससुराल ही जाती है इससे उसके बच्चे ग्रैंड पेरेंट्स और चाचा बुआ जैसे रिश्तों को तो समझ ही पाते हैं साथ साथ उनका सम्मान करना और परिवार के साथ रहना भी सीखते हैं. इस बाबत रश्मि कहती है,”आप इसे मेरा स्वार्थ भी कह सकते हैं क्योंकि आज जो बच्चे देखेंगे कल वही वे हमारे साथ करेंगे.”

इसलिए जो भी आप उनसे करवाना चाहते हैं उसे अपने जीवन में अवश्य उतारें ताकि वे आपको देखकर अपने व्यवहार में ला सकें.

-संतुष्ट रहना सिखाएं

यद्यपि कोरोना के आगमन के बाद से अभिभावकों ने बच्चों को संतुष्ट रहना सिखाया परन्तु उन्हें समझाना होगा कि जीवन में खुशी कभी पैसे से नहीं खरीदी जा सकती बल्कि खुश रहने के लिए संतुष्ट होना आवश्यक है और इच्छाओं का कभी अंत नहीं होता. इसके लिए उन्हें ऐसे लोंगों से परिचित कराएं जो उनसे कम भौतिक चीजों के साथ भी खुश रहते हैं. उन्हें छोटी छोटी बातों में खुश होना सिखायें. 90 के दशक से सकारत्मकता के मनोविज्ञान पर काम कर रहे मार्टिन सोलोमन जिंदगी के उद्देश्य पर काम कर रहे हैं वे कहते हैं बच्चों को बताएं कि सिर्फ पैसे कमाने से खुशी नहीं मिलती खुशी के लिए संतुष्ट होना जरूरी है वह भाव खुद में तलाशें जैसे किसी को पर्यावरण की रक्षा करना पसंद है तो किसी को गरीबो की मदद करना.

-धन का मूल्य समझाएं

आजकल परिवार का स्वरूप एक या दो बच्चों तक सीमित रह गया है. बच्चों की डिमांड उनके मुंह से निकलते ही पूरी हो जाती है इससे वे समझ ही नहीं पाते कि धन कमाने में कितना परिश्रम लगता है. उज्जैन में एक प्रतिष्ठित स्कूल के संचालक श्री वासवानी जी कहते हैं,”मेरा बेटा यदि 3 चीजों की डिमांड करता है तो उसमें से मैं एक बार में एक ही डिमांड पूरी करता हूं ऐसा नहीं है कि मैं उसकी डिमांड पूरी नहीं कर सकता परन्तु यदि इच्छा व्यक्त करते ही पूरी हो जाएगी तो उसे पैसे की वैल्यू ही समझ नहीं आएगी.” इसलिए बच्चों को बाल्यावस्था से ही पैसा बहुत मेहनत से कमाया जाता है यह समझाया जाना अत्यंत आवश्यक है.

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-कृतज्ञता सिखाएं

बच्चों को अपने आसपास के लोंगों, कामगारों के प्रति कृतज्ञ होना सिखाएं. घर के प्रेस वाले, मेड, ड्राइवर और अन्य कामगारों के उदाहरणों से ही उन्हें समझाएं कि उनका आपके जीवन में कितना महत्त्व है. कई घरों में बच्चे घर के कामगारों से बदतमीजी से बात करते हैं और अभिभावक उन्हें टोकने के बजाय हसना प्रारम्भ कर देते हैं जो सर्वथा अनुचित है क्योंकि यदि उन्हें प्रथम बार में ही टोक कर दण्डित किया जाए तो वे दोबारा गल्ती नहीं करेंगे.

-पर्यावरण के प्रति जगरूक बनाएं

अनीता अपने बच्चे के जन्मदिवस पर हर साल एक पौधा लगाती है और अपने बच्चे से ही उसकी देखभाल करने को कहती है इससे बच्चे में प्रकृति प्रेम बढ़ने के साथसाथ जिम्मेदारी का भाव भी आता है. आज समय की मांग है कि हम अपने बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाएं ताकि भविष्य में भी वे पर्यावरण को सहेजने में अपनी जिम्मेदारी निभा सकें. प्रकृति ने मानव जीवन को क्या क्या दिया है और उसे सहेजना कितना और क्यों जरूरी है यह उन्हें बचपन से ही सिखाया जाना अत्यंत आवश्यक है.

कौन संभाले बच्चा : पति या पत्नी

एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली सुधा का पति नीरज हमेशा अपनी बेटी की देखभाल में सुधा की मदद करता है. दरअसल, सुधा सुबह जल्दी उठती है व घर का काम निबटा कर औफिस चली जाती है. नीरज बेटी को स्कूल छोड़ता है और शाम को औफिस से आते हुए बेटी को ‘बेबी सिटर’ से साथ ले कर आता है. घर आ कर वही बच्चे के खानपान व अन्य बातों पर ध्यान देता है. सुधा घर आ कर रात का खाना बना लेती है. इस तरह पतिपत्नी दोनों ने अपने काम को आपस में बांट लिया है, जिस से उन की सामंजस्यता हमेशा बनी रहती है. यह सच है कि बच्चों का लगाव मां से अधिक होता है. पर इस का मतलब यह तो नहीं कि उन्हें पिता के स्नेह व प्रोटैक्शन की आवश्यकता नहीं होती. अब अधिकतर लोग यह मानते हैं कि बच्चों को पालने में मां और पिता की समान भागीदारी होनी चाहिए.

हालांकि पहले यह धारणा थी कि मां घर पर रह कर बच्चों की देखभाल करे और पिता वित्तीय व्यवस्था को संभाले. लेकिन आजकल बढ़ती महंगाई और आर्थिक व्यवस्था के बीच संतुलन के लिए महिलाएं भी कामकाजी हो चुकी हैं. महिलाएं अब केवल मां की भूमिका नहीं निभातीं. वे औफिस गोइंग भी हैं. ऐसे में बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी केवल मां की नहीं, बल्कि पिता की भी होती है. लेकिन यह बात मातापिता की सोच पर निर्भर करती है, जो हरेक की अलगअलग होती है.

मातापिता दोनों की हो भागीदारी

मैरिज काउंसलर राशिदा कपाडि़या कहती हैं कि बच्चों को पालने में मातापिता दोनों की भागीदारी होनी चाहिए. मां की केयरिंग और पिता का प्रोटैक्शन दोनों से बच्चा अपनेआप को सुरक्षित महसूस करता है. अधिकतर देखा गया है कि जो बच्चा केवल मां या पिता के संरक्षण में बड़ा होता है, वह हमेशा अपनेआप को अकेला महसूस करता है. वह आगे चल कर किसी के साथ रिश्ता निभा नहीं पाता. क्योंकि वह रिश्तों की बौंडिंग समझ नहीं पाता. इसलिए मांपिता दोनों को ही अपना खाली समय बच्चे के साथ किसी न किसी रूप में बिताना चािहए.

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लेखिका सूर्यबाला कहती हैं कि आज के युवा अभिभावक अपने बच्चों की परवरिश पर अधिक ध्यान देते हैं, जो अच्छी बात है. लेकिन दोनों के लिए यह भी आवश्यक है कि बच्चों का बचपना वे भरपूर ऐंजौय करें क्योंकि छोटी उम्र में बच्चे का हर पल रोमांचक होता है. और चूंकि आजकल पतिपत्नी दोनों कामकाजी होते हैं और बच्चे 1 या 2 ही होते हैं, ऐसे में मां के साथ पिता को भी बच्चे के लालनपालन, किचन व रोजमर्रा के काम में हाथ बंटाना चाहिए ताकि काम का तनाव पत्नी के मन से दूर हो जाए और बच्चे को एक खुशनुमा वातावरण मिले.

जिम्मेदारी को समझें

मां बनते ही स्त्री की जिंदगी बदल जाती है. बच्चा उस की प्राथमिकता हो जाता है. उस का ध्यान हमेशा बच्चे के इर्दगिर्द रहता है. कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को सुलातेसुलाते मां खुद भी सो जाती है. बच्चा छोटा होने पर रात में कई बार उठता है. ऐसे में पति को भी पत्नी के साथ अपनी नींद कुरबान करनी होती है. इस समय मातापिता दोनों को धैर्य की आवश्यकता होती है. कई बार अगर बच्चा बीमार हो जाए, तो वह रात भर जागता है. तब बिना परेशान हुए पति को अतिरिक्त सूझबूझ दिखाने की जरूरत होती है. मातापिता के बीच बच्चा अपनी जगह पूरे अधिकार के साथ बनाता है, इसलिए मातापिता दोनों को बच्चे की जिम्मेदारियों को बांट लेना चाहिए. एक सर्वे के अनुसार, अमेरिका में एक तिहाई पुरुष अपने बच्चे के साथ उतना ही समय बिताते हैं, जितना उस की मां. भारत में महिलाएं ही घर संभालती हैं इसलिए पुरुषों पर बच्चे की जिम्मेदारी अपेक्षाकृत कम होती है. अमेरिका में तो वहां की सरकार भी पिता को बच्चे संभालने की हिदायत देती है. जहां स्त्रीपुरुष दोनों कमाते हैं, वहां बच्चे की परवरिश का दायित्व दोनों पर होना चाहिए. मनोचिकित्सक डा. मालिनी कृष्णन कहती हैं कि पिता की जिम्मेदारी बड़े शहरों में बहुत अधिक बढ़ गई है. बच्चे के साथसाथ मां के खानपान, व्यायाम और नींद की जरूरतों पर भी पुरुष ध्यान देने लगे हैं, क्योंकि बच्चा होने के बाद मां कई बार पोस्टपार्टम डिप्रैशन की शिकार हो जाती है. ऐसे में पिता की भूमिका इस दृष्टि से काफी बड़ी होती है कि वह परिस्थिति को सामान्य बनाए. बच्चे के जन्म के बाद लगभग 2 से 3 साल तक मातापिता बच्चे की सही परवरिश को ले कर परेशान रहते हैं, इसलिए मानसिक रूप से दोनों तैयार होने के बाद ही स्त्री को गर्भधारण करना चाहिए क्योंकि बच्चे के साथ पूरी दिनचर्या बदल जाती है. उस समय सेहत और खानपान पर ध्यान देना भी आवश्यक होता है. साथ ही जीवनशैली को भी बदलना पड़ता है. कामकाजी महिला है तो मैटरनिटी लीव के बाद उसे काम पर जाना पड़ता है. ऐसा होने पर उसे पति का सहयोग मिले तो वह बेफिक्र हो कर दोबारा काम पर जा सकती है.

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शारीरिक व मानसिक मजबूती

दरअसल, मां बनने के बाद हर महिला चाहती है कि उसे परिवार या पति का सहयोग मिले ताकि वह अपनी जिम्मेदारी आसानी से निभा सके. हमारे सैलिब्रिटीज भी इस बात को मानते हैं. अभिनेत्री जेनेलिया डिसूजा देशमुख कहती हैं कि जब उन का बेटा हुआ तो उन के पति रितेश देशमुख बहुत खुश हुए. वे बच्चे से जुड़ी जिम्मेदारियां पहले भी निभाते थे और अब भी निभाते हैं. वे डायपर बदलना, दूध पिलाना, कपड़े बदलना, नहलाना आदि सब करते हैं. आखिर बच्चा दोनों का है तो जिम्मेदारी भी दोनों की होती है. अभिनेत्री तनाज ईरानी का कहना है कि उन के दोनों छोटे बच्चों को संभालने में उन के पति की खास भूमिका है. जब वे शूटिंग पर जाती हैं, तो वे उन के बेटों जियूस और जारा को संभालते हैं. उन के स्कूल का होमवर्क भी वे ही करवाते हैं. वैसे काम हम दोनों के बीच बंटा नहीं है. जिसे जब समय मिलता है वह काम कर लेता है. मुझे लगता है कि बिना दोनों की भागीदारी के बच्चों को संभालना और बाहर काम करना संभव नहीं. अभिनेत्री लारा दत्ता कहती हैं कि जब उन की बेटी सायरा हुई, तो महेश विदेश में खेल रहे थे. घर आए तो सब से पहले बेटी को गोद में ले कर खिलाया. आज भी जब मैं शूट या किसी काम से बाहर जाती हूं, तो महेश बेटी का पूरा ध्यान रखते हैं. बच्चे को संभालने में मातापिता दोनों की जिम्मेदारी होती है. जब ऐसा होता है तभी बच्चा खुशी महसूस करता है और उस का विकास अच्छा होता है. वह मानसिक रूप से भी मजबूत रहता है.

कहीं महंगा न पड़ जाए असलियत छिपाना

गृहस्थ जीवन में पदार्पण यानी शादी के बंधन में बंध जाने का फैसला स्त्रीपुरुष दोनों ही यह सोचसमझ कर करते हैं कि यह बंधन उम्र भर का है और यह अटूट बना रहे. स्त्रियों के लिए तो शादी का बंधन खास माने रखता है क्योंकि आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा उन के लिए अति महत्त्वपूर्ण है. आज के युग में भले ही स्त्री आर्थिक तौर पर स्वयं को सुरक्षित कर ले, सामाजिक तौर पर सुरक्षा के लिए उसे पुरुष पर ही निर्भर रहना पड़ता है. फिर वह चाहे पिता हो, भाई हो या पति. शादी से पहले वह अपने पिता के घर में सुरक्षित होती है, शादी के बाद पति के घर में सुरक्षित रहने की मनोकामना ले कर ही वह ससुराल जाती है.

आजकल शादी के समय वरवधू की उम्र आमतौर पर 22-23 साल से ज्यादा ही होती है, इसलिए शिक्षा और अर्थोपार्जन वगैरह की समस्याएं काफी हद तक हल हो चुकी होती हैं. फिर चाहे लव मैरिज हो या अरेंज मैरिज, शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है. 2 परिवारों को एकसूत्र में बांधने का नेक कार्य भी शादी के बंधन में बंधने वाले लड़कालड़की करते हैं.

छिपाना महंगा पड़ा

जिस के साथ उम्र भर रहना हो, उस साथी की योग्यता भी परखी जाती है. लड़की की योग्यता में देखा जाता है कि वह सुंदर, सुशील हो, उस का स्वास्थ्य अच्छा हो. वह पढ़ीलिखी तो हो, मगर खाना बनाने से ले कर गृहस्थी के सभी कार्यों में ससुराल वालों की मरजी पर निर्भर करे. स्वतंत्र हो कर किसी भी मामले में निर्णय लेने से पहले पति या ससुराल वालों की अनुमति जरूर ले, यह पति और ससुराल वालों को इज्जत देने के लिए अपेक्षित माना जाता है.

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शादी के बंधन में बंधने जा रही लड़की की तरह, कुछ जांचपड़ताल लड़के के बारे में भी की जाती है. जैसे उस का शैक्षणिक स्तर क्या है, उस की नौकरी या बिजनैस से होने वाली कमाई कितनी है, उस के ऊपर निर्भर रहने वाले परिवारजनों की संख्या कितनी है इत्यादि. जब लड़की वालों को वह अपने स्टेटस के अनुकूल जान पड़ता है, तभी विवाह के लिए उन की तरफ से रजामंदी मिलती है. लड़की या लड़के बारे में जो जानकारी आपस में दी जाती है, उस की सचाई पर विश्वास करने के बाद ही विवाह संपन्न होता है. यहां विश्वास एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है, इसलिए किसी बात को छिपाना अच्छा नहीं होता, जैसा कविता ने किया.

कविता वैसे दिखने में सुंदर है और उस ने बी.कौम. तक पढ़ाई की हुई है. उस की शादी मयंक के साथ बड़ी धूमधाम से हुई. मयंक इंजीनियर है और एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत है. कविता के मामाजी उस के पड़ोसी हैं. उन की तरफ से प्रस्ताव आया तो उन पर विश्वास कर और कविता को देख कर मयंक ने शादी के लिए हामी भर दी. उस के मातापिता को भी यह रिश्ता अच्छा लगा.

बिखराव के कगार पर शादी

लेकिन शादी के बाद सुहागरात को ही मंयक को पता चला कि कविता की पीठ और जांघों पर सफेद दाग हैं. यह तथ्य मयंक से छिपाया गया था. कविता ने उसे समझाने की लाख कोशिश की कि इलाज चल रहा है और डाक्टर ने यह बीमारी ठीक हो जाने की गारंटी दी है, लेकिन मयंक माना नहीं. उस का कहना था कि इस बीमारी की बात छिपाई क्यों गई? यह विश्वासघात है. अब कविता मायके में ही रह रही है और मयंक उस से डिवोर्स लेने पर आमादा है.

कविता और उस के मामाजी ने, उस की बीमारी की बात छिपा कर गलत काम किया. अब वह जमाना नहीं रहा कि ‘भाग्य में जो था वही हुआ’ सोच कर लोग अपनी आंखें मूंद लें. भुगतना तो कविता को ही पड़ रहा है.

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टूट गया भरोसा

राकेश लगभग 10 साल से अमेरिका में रह रहा है. उस की पहली शादी अमेरिकन युवती से हुई थी, जिस से उस का एक बेटा हुआ था. लेकिन यह शादी ज्यादा चली नहीं. पतिपत्नी में अनबन हो गई. परिणामस्वरूप डिवोर्स हो गया. अपने 6 साल के बेटे को राकेश ने अपने पास ही रख लिया और बाद में अपनी बहन के घर रहने के लिए भेज दिया. राकेश ने भारत आ कर दोबारा शादी की. पत्नी सुजाता को पहले डिवोर्स के बारे में तो बताया, लेकिन संतान होने की बात छिपा गया. डिवोर्स के कुछ ऐसे पेपर भी दिखा दिए जिस में उस के बेटे के बारे में कोई उल्लेख नहीं था. सुजाता और उस के परिवार को राकेश योग्य लगा और शादी हो गई. शादी के बाद सुजाता अमेरिका  चली गई. उस के जाने के 2 महीने बाद ही राकेश की बहन राकेश के बेटे को ले कर उस के घर आ धमकी. उस ने उस के बेटे को अपने साथ अपने घर पर रखने से साफ मना कर दिया. सुजाता के सामने भेद खुल गया कि राकेश का पहली शादी से एक बेटा भी है.

सुजाता के साथ विश्वासघात हुआ था, इसलिए सुजाता को बहुत दुख हुआ. राकेश ने जो भी कहा था उस पर विश्वास कर के उस ने शादी रचाई थी. मगर अब वह राकेश से डिवोर्स लेने के लिए मन बना चुकी है. हालांकि भारत में रहने वाले उस के मातापिता उसे ऐसा न करने की सलाह दे रहे हैं मगर अब यह शादी बनी रहेगी या डिवोर्स में बदल जाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता.

विश्वास कायम रखना जरूरी

शादी के बाद आपसी विश्वास कायम रखना बेहद जरूरी है. शादी के बाद स्नेहा एक अच्छी पत्नी साबित हुई. औफिस जाने से पहले सुबह उठ कर घर के काम अच्छे से निबटाना और शाम को औफिस से आने के बाद भी घर संभालने का काम वह बखूबी करती थी. उस का पति अश्विन तो उस की प्रशंसा करते अघाता नहीं था. अपनी मित्रमंडली और रिश्तेदारों के सामने वह स्नेहा को ले कर गर्व महसूस करता था कि उसे स्नेहा जैसी नेक और सुशील पत्नी मिली है. लेकिन स्नेहा के साथ कालेज में पढ़ने वाला और उस का प्रेमी रह चुका निकुंज उस के नए बौस के तौर पर नियुक्त हुआ तो उन दोनों की नजदीकियां फिर बढ़ती गईं.

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बात ज्यादा दिनों तक छिपी न रह सकी. अश्विन ने उन दोनों को एक सिनेमा हौल में एकसाथ फिल्म देखते हुए पाया. अश्विन के पूछने पर स्नेहा ने सफाई देने की बहुत कोशिश की कि उस दिन औफिस के बहुत से कर्मचारी छुट्टी पर थे इस वजह से काम कम था, इसलिए मैं निकुंज के साथ फिल्म देखने चली गई. लेकिन अश्विन के ज्यादा जोर दे कर पूछने पर स्नेहा ने बताया कि निकुंज से उस का प्रेम संबंध कालेज के जमाने से ही था. एक बार वह निकुंज के साथ घर से भाग भी चुकी थी. लेकिन उस के परिवार वालों ने निकुंज के विजातीय होने की वजह से उस से शादी नहीं होने दी. अश्विन का अब स्नेहा पर से विश्वास उठ चुका था, क्योंकि उस ने अपने पहले प्रेम संबंध को न सिर्फ छिपाया था, बल्कि पहले प्रेमी के साथ फिर से संबंध बना लिए थे.

अब अश्विन ने अपना तबादला दूसरे शहर में करवा लिया है और स्नेहा से बोलचाल बंद है. स्नेहा अकेली रह गई है. उस की शादी टूटने की कगार पर है. अपने जीवनसाथी के साथ धोखाधड़ी करना और असलियत को छिपाना शादी के लिए घातक है. डिवोर्स होना जीवन की एक बेहद दुखद घटना है.

Adolescence में बदलते रहते हैं मूड

रमा कालेज में पढ़ती है और अपनी पढ़ाई व कैरियर के प्रति जितनी सजग है, उतनी ही अपने दायित्वों के प्रति गंभीर भी है. इसीलिए उस के पेरैंट्स को उसे न तो कभी किसी बात के लिए टोकना पड़ा, न ही उन्हें उस के व्यवहार से कोई शिकायत है, लेकिन फिर भी अचानक उसे कभीकभी न जाने क्या हो जाता है. वह पढ़ाई करतेकरते बीच में ही उठ जाती है, उस का खाना खाने का मन नहीं करता. बस, वह एकांत चाहती है और बिना किसी कारण के उस का रोने का मन करता है.

वह सुबह जब भी उठती है तो उस का मूड बहुत अच्छा रहता है, वह सारा दिन खिलखिलाती रहती है पर शाम को उसे लगता है कि कुछ भी ठीक नहीं हुआ. अब छोटीछोटी बातों को ले कर उसे गुस्सा आने लगता है. किसी ने कुछ पूछा नहीं कि वह झुंझला पड़ती है, मानो सब उसे तंग करना चाहते हैं. उसे लगता है कि कोई उसे समझना ही नहीं चाहता.

बदलाव की उम्र

ऐसा केवल रमा के साथ ही नहीं, हर टीनएजर के साथ होता है. किशोरावस्था उम्र ही ऐसी है इस दौरान शरीर और मन दोनों में इतने बदलाव आते हैं कि मूड बदलना यानी मूड स्विंग होना नैचुरल है. अपनी आइडैंटिटी को ले कर चिंता, कालेज का उन्मुक्त वातावरण, अचानक ढेर सारी आजादी मिलने से सारी सोच में बदलाव आना, अपनी फिटनैस और ब्यूटी को ले कर सजगता आना और फ्रैंडशिप को अलग ढंग से जीना कुछ ऐसी बातें हैं जो उस समय किशोरों पर हावी हो जाती हैं. उन के साथ हारमोंस में होने वाले परिवर्तन की वजह से भी उन के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है. कभी वे खूब प्रफुल्लित दिखते हैं तो कभी अकारण उदास.

किशोरावस्था जिंदगी का सब से उथलपुथल मचाने वाला समय होता है. जब सारे शारीरिक हारमोनल और इमोशनल बदलाव होते हैं और अगर इस समय उन पर उचित ध्यान न दिया जाए या उन के मूड को समझते हुए उन से व्यवहार न किया जाए तो इमोशनल इंबैलेंस हो जाता है.

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काउंसलर हरमन सैनी का मानना है कि किशोरावस्था एक बहुत ही खतरनाक उम्र है क्योंकि इस समय बच्चे न तो बच्चे रह जाते हैं न ही वयस्क हुए होते हैं. अपने शरीर में आने वाले शारीरिक, हारमोनल और इमोशनल परिवर्तनों को वे न तो समझ पाते हैं न ही पहचान पाते हैं और इसी वजह से मूड स्विंग होते हैं, जो एक तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया है. इस उम्र में उन के व्यवहार में भी अजीब सा बदलाव आ जाता है. कभी वे निर्णय नहीं ले पाते तो कभी अत्यधिक अधीर हो जाते हैं. आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है और दूसरों की कोईर् भी बात सुनना उन्हें अच्छा नहीं लगता.

अधिकांश अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि बायोलौजिकल व इमोशनल परिवर्तन किशोरों के बदलते स्वभाव के कारण होते हैं. अगर आप के किशोर बेटेबेटी के अंदर कुछ अंतर आ रहा है और वह घर देर से आने लगा है या उस के स्वभाव का कोईर् पता नहीं होता कि कब क्या हो जाए तो संभवत: यह भी हो सकता है कि उसे किसी से प्यार हो गया है. साइकियाट्रिक यूनिवर्सिटी क्लीनिक के स्विट्जरलैंड के अनुसंधानकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि जो किशोर रोमांटिक किस्म के होते हैं, उन में मूड स्विंग की समस्या ज्यादा रहती है,

उन्हें नींद भी कम आती है और एकाग्रता बनाए रखना भी मुश्किल होता है. उन्होंने यह भी पाया कि इस दौरान किशोरों के अंदर जो मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आते हैं, उन से उन की हथेलियों पर पसीना आता है, दिल की धड़कनें बेकाबू रहती हैं और जब वे उस के साथ होते हैं, जिसे वे प्यार करते हैं, तो उन का एनर्जी लैवल घटताबढ़ता रहता है. इमोशनल लैवल पर उन में पजैसिवनैस, उस की हर बात जानने की इच्छा व उस के बारे में ही हर वक्त सोचते रहना अच्छा लगने लगता है. यहां तक कि वे उस पर भावनात्मक रूप से अत्यधिक निर्भर भी हो जाते हैं.

अलग पहचान बनाने की चाह

बच्चों और बड़ों में तनाव को कम करने वाले जिस हारमोन को शरीर पैदा करता है, वह एक नैचुरल नींद की दवा की तरह काम करता है, इस का किशोरों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इस वजह से वे बहुत मूडी हो जाते हैं. यही नहीं इस दौरान जब शरीर सैक्स हारमोंस बनाता है तो शारीरिक बदलावों के कारण भी किशोर परेशान रहने लगते हैं. वे एक तरह की दुविधा में रहते हैं जो उन के अंदर सुरक्षा की भावना भर देती है, जिस से वे एक ओर तो अपनेआप से लड़ते हैं और दूसरी ओर वयस्कों के जवाबों से परेशान रहते हैं इसीलिए उन की मन:स्थिति पलपल बदलती रहती है.

किशोरावस्था वह अवस्था है जब वे वयस्कों की दुनिया से हट कर अपनी एक पहचान बनाने की चाह रखने लगते हैं, यह वजह भी उन के भीतर पैदा होने वाली दुविधा का एक कारण है. उन के आसपास की दुनिया लगातार बदलती रहती है और उस प्रैशर का सामना करना कठिन लगने लगता है तो परेशान रहने लगते हैं. मूड के बदलते रहने से उन्हें लगता है कि कुछ भी चीज उन के नियंत्रण में नहीं है जो किसी के लिए भी एक असहज स्थिति हो सकती है.

काउंसलर पल्लवी गिलानी का कहना है, ’’वयस्कों को किशोरों के सामने आदर्श व उदाहरण बनाना होगा. उन के साथ जैसे को तैसा वाली नीति वाला व्यवहार करना ठीक नहीं होगा. पानी की बनिस्बत उन के साथ बहें. उन्हें उचित व्यवहार करना सिखाएं और उन के अनुचित व्यवहार पर कोईर् गलत टिप्पणी न करें. टीनएजर जानते हैं कि क्या गलत है और क्या सही. केवल उन्हें ऐक्सपैरिमैंट करना पसंद होता है. इसलिए उन्हें ऐसा आजादी वाला माहौल दें कि वे अपने ऐक्सपैरिमैंट्स को आप के साथ बांटें. याद रखें कि यह एक अस्थायी दौर है और जल्द ही बीत जाएगा.’’

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पेरैंट्स के लिए यह समझना आवश्यक है कि किशोरावस्था में मूड स्विंग होना एक नैचुरल प्रक्रिया है. उन के लिए इस समय धैर्य रखना और समस्या की तह तक जाना आवश्यक है. उन्हें इस समय अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए, हालांकि इस समय किशोर अकेला रहना या अपने मित्रों के साथ रहना ज्यादा पसंद करते हैं पेरैंट्स का उन से कुछ भी पूछना उन्हें किसी हस्तक्षेप से कम नहीं लगता. उन के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें और बिना किसी विवाद में पड़े खुले मन से उन की बातों व विचारों को सुनें. इस समय उन के मन में क्या चल रहा है, यह जानना जरूरी है, तभी आप उन का विश्वास जीत कर उन से हर बात शेयर करने को कह सकते हैं.

चेज़ योर ड्रीम्स

अभी हाल ही में मिसेज शाह से मिलना हुआ तो कहने लगी “क्या करें बेटी को समय ही नहीं मिलता”.

कहाँ व्यस्त रहती है इतना वह ? मैं ने पूछा.

क्या बताऊँ आजकल ऑनलाइन पर्सनैलिटी डवलपमेंट और सेल्फ ग्रूमिंग कोर्स जॉइन किया हुआ है. उसके अलावा एक घंटा एरोबिक्स एवं योगा. इतने समय से जिम बंद थे अब वे भी खुल गए सो एक घंटा सुबह जिम जाती है. इसके अलावा पढाई तो है ही सही.

इतना कुछ आखिर क्यूँ ?

अब ज़िंदगी में कुछ करना है तो मेहनत तो अभी से ही करनी होगी न.

मिसेज शाह का जवाब सुन मैं चुप रह गयी किन्तु मन  ही मन सोचने लगी “ऐसा भी क्या करना है इन्हें मेरी बेटी भी तो उसी के साथ पढ़ती है, उसे तो बहुत समय मिलता है”

बहुत कुछ इन्फार्मेटिव है इंटरनेट पर

घर आ कर मैं और मेरी बेटी जब रसोई में एक साथ काम कर रहे थे तो बातों ही बातों में मैं ने कहा “आज मिसेज शाह मिली थीं बता रही थीं कि उनकी बिटिया मायरा पूरा दिन कुछ न कुछ सीखती ही रहती है, बहुत व्यस्त रहती है और तुम हो कि इन्स्टा, यूं ट्यूब में समय गँवा रही हो”

ऐसा क्यूँ सोचती हैं आप मॉम ? मैं क्या सारा समय इन्स्टा और यू ट्यूब पर फ़ालतू समय बिताती हूँ ?

इंटरनेट पर भी बहुत सारे इन्फार्मेटिव वीडियों आते हैं वो देखती हूँ. इन्स्टा पर अपने पहचान के लोगों से मिलती हूँ आखिर मुझे भी तो अपनी ज़िंदगी जीनी है या टाइम मशीन बन कर रह जाऊं ?

तुलना करना उचित नहीं

उफ़ ! मॉम आप कम्पेयर क्यूँ कर रही हैं ? यह कोई नई बात नहीं कि मायरा हर समय व्यस्त रहती है हम सभी जानते हैं यह तो पहले से ही, पर उसकी ज़िंदगी कोई ज़िन्दगी है ?

क्या मतलब ? मैं ने पूछा.

मतलब यह कि मॉम न तो वह किसी से मिलती है और न ही किसी से कभी बात करने को फुर्सत है उसके पास ? और सबसे जरूरी बात यह कि क्या वह स्वयं खुश है ऐसी ज़िंदगी से.

“क्यूँ खुश होगी तभी तो इतना कुछ कर लेती है वह”

चक्की के दो पाटों में पिसती ज़िंदगी

नहीं मॉम  आपको कुछ भी नहीं पता वह तो चक्की के दो पाटों में पिस रही है.

कैसे ?

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कैसे क्या उसके डैड तो उसे सी.ऐ., एम्, बी. ऐ. करवा कर अफसर बनाना चाहते हैं और उसकी मॉम उसे मॉडलिंग करने को फ़ोर्स करती हैं. वो बेचारी अपने दिन का सारा समय सिर्फ उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने में बिताती है. जैसे उसकी तो कोई लाइफ ही नहीं.

पैरेंट्स बंदिश देते हैं

पर उसके पैरेंट्स भी तो उसी के भले के लिए सोचते हैं.

ह्म्म्म सोचते होंगे, पर पहले वे दोनों तो आपस में मिल-बैठ कर बातचीत कर तय कर लें कि उन्हें अपनी बेटी को क्या बनाना है. बेचारी दो नावों की कश्ती में सवार न तो हंस-बोल पाती है और न ही कुछ तय कर पाती है कि आखिर उसे अपनी ज़िंदगी में क्या करना है.

ज़रा वज़न बढे तो उसकी मॉम उसका घी-पनीर बंद कर देती हैं. दो नंबर भी कट जाएँ किसी विषय में तो डैड ट्यूशन टीचर के पीछे पड़ जाते हैं. उसकी एक्स्ट्रा वीकेंड क्लासेज़ शुरू करवा देते हैं और हरेक क्लास की फीस बताऊँ ?

“हाँ-हाँ बताओ तो” मैं ने कहा.

मॉम साढे बारह सौ रुपये प्रति घंटा. सोचो हर महीने उस की ट्यूशन पर कितना खर्च करते होंगे. उसके अलावा योगा, एरोबिक्स एवं अन्य कोर्सेज़ का खर्चा सो अलग.

तुम्हें किस ने बताया कि इतनी फीस  देते हैं वे.

उसी ने स्वयं ने बताया और यह भी बताया कि उसे ये सारे दिन के कोर्सेज़ और पढाई अच्छी भी नहीं लगती है, बोर हो जाती है वह ये सब करके.

पर उसके नंबर तो अच्छे ही आते हैं हमेशा और कितनी सुन्दर लगती है बिलकुल फिट एंड ग्लोइंग .

तो वो तो लगेगी ही न मॉम सारा ध्यान इन्हीं चीज़ों पर रखो हर वक़्त सोचो क्या खाऊँ क्या नहीं, चेहरे पर क्या लगाऊँ कि स्किन ग्लो करे . ननिहाल से पसंद की मिठाई आये पर उसे फ्रूट्स जूस पीने पड़ें. हम सभी पिज्जा खाएं पर उसे ग्रीन सैलेड खाना पड़े तो भूख तो खुद ही मर जायेगी न. कैसे बढेगा उसका वज़न ? फिट ही रहेगी न.

लेकिन ये सब सेहत के लिए फायदेमंद भी तो है अभी से ख्याल रखेगी तो चुस्त-तंदरुस्त रहेगी.

तन के साथ मन का स्वास्थ्य है जरूरी

वो ठीक है माँ पर सिर्फ तन ही तो सब कुछ नहीं होता मन की खुशी भी तो कोई चीज़ होती है न. आखिर कब तक वह अपने माता-पिता के अरमानों के बोझ तले दब कर ऐसी ज़िन्दगी जी सकेगी ?  जब कि वह स्वयं तो वाइल्ड लाइफ सफारी गाइड बनना चाहती है.

उसने स्वयं बताया तुम्हें कि वह गाइड बनना चाहती है ?

हाँ मॉम, कभी-कभी जब लेक्चर ख़त्म होने के बाद दूसरे लेक्चर के बीच गैप होता है तब वह हमसे बात करती है और अपने मन की बताती है.

ह्म्म्म , पर बेटी आज जो सैक्रिफाइस वह कर रही है इसका उसे भविष्य में फ़ायदा होगा.

मन मारकर कोई कैसे जिए

पर मॉम किसे पता वह जितनी मेहनत कर रही है इसका उसे फायदा ही न हो क्यूंकि उसका मन तो कुछ और करने का है, वह सिर्फ अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन कर रही है.  आखिर कब तक अपना मन मारकर यह सब सीखती रहेगी ? अभी तो समय कम पड़ रहा है वर्ना उसकी मॉम उसे कत्थक डांस क्लास और जॉइन करवाएंगी.

वो क्यूँ ?

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अरे ! मॉम माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय की छवि देखती हैं उसकी मॉम उसमें.

विद्रोह करना चाहिए

तो तुम्हारे हिसाब से उसे यह सब नहीं करना चाहिए ? अपने माता-पिता के सामने विद्रोह करना चहिये ?

हाँ बिलकुल करना चाहिए . माना कि उसके माता-पिता पढ़े-लिखे हैं, अच्छा कमाते हैं दोनों वर्किंग हैं, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं लेकिन वे अपने सपनों का बोझ अपनी बेटी पर नहीं लाद सकते.

मैं ये कहूंगी कि वे पढ़े लिखे हैं, लेकिन समझदार नहीं.

ये क्या कह रही हो तुम ? मैं ने कहा.

छुप-छुप कर शौक पूरे करते हैं

मॉम यदि वे समझदार होते तो अपनी बेटीकी खूबियों को पहचानते. मालूम है वह फ्री पीरियड में लायब्रेरी जाती है और वहां अफ्रीका के जंगलों और जानवरों के बारे में पढ़ती है, हम लोगों से फोन लेकर इंटरनेट पर वाइल्ड लाइफ सर्फ़ करती है. वह सब करते समय उसके चेहरे पर अलग ही मुस्कराहट होती है. हम सभी सहेलियां उसकी इस मामले में बहुत मदद करती हैं. हम अपने फोन उसे दिया करते हैं ताकि वह इंटरनेट का इस्तेमाल कर सके. उसके पैरंट्स ने उसके फोन पर तो ट्रैकर लगा रखा है कहीं वह उनकी मर्जी के खिलाफ कुछ देख-पढ़ न ले.

ओह ! यह तो बहुत गलत है, आखिर वह भी तो फ्री पीरियड में अपनी मर्जी का कुछ तो करना  चाहती होगी.

वही तो मैं कह रही हूँ, मॉम आप कहती है कि वह सुन्दर है फिट है मैं कहती हूँ वह ताश के पत्तों में जो गुलाम का पत्ता है वह है. क्या आप उसके चेहरे की उदासी नहीं पढ़ पातीं ?

तो तुम क्या कहती हो उसे अपने माता-पिता से झगड़ा करना चाहिए ?

मेरी ज़िंदगी मेरी मर्जी

नहीं मॉम, उसे झगड़ा नहीं करना चहिये लेकिन उनके सपनों के बोझ तले अपने जीवन को नष्ट भी नहीं करना चाहिए.बल्कि अपने  पसंद के फील्ड की पूरी जानकारी लेकर अपने माता-पिता से बातचीत करनी चाहिए. वह जंगल और जानवरों से प्रेम करती है, माना कि यह फील्ड नया है जिसकी जानकारी उसके माता-पिता को नहीं. शायद हम जैसे लोग आमतौर पर इस फील्ड में नहीं जाते. पर वे स्वयं ही तो उसे खास बनाना चाहते हैं.

हर फील्ड में है स्कोप

नया है शायद इसलिए वे डरते हों कि भविष्य में वह क्या करेगी ? लेकिन हर फील्ड में कुछ न कुछ स्कोप तो होता ही है. फिर आजकल तो टूरिज्म इंडस्ट्री खूब फल-फूल रही है. नैशनल जियोग्राफिक चैनल, डिस्कवरी चैनल पर यह सब कितना आता है. वह किसी ख़ास विषय या जानवर पर रिसर्च भी कर सकती है. किन्तु आप लोगों को यह सब बताना फ़िज़ूल है. आप लोग तो  लकीर के फ़कीर बने रहना चाहते हैं. जैसे जो सब आपने किया या सोचा उसके अलावा दुनिया में कुछ और अच्छा है ही नहीं.

अच्छी लडकी की परिभाषा 

मुझे तो डर है कि मायरा कभी स्ट्रेस और फ्रस्टेशन में पढ़ना-लिखना ही न छोड़ दे.

नहीं वह अच्छी लडकी है वह ऐसा नहीं करेगी कभी.

“अच्छी लडकी माय फुट” मॉम बस पैरेंट्स कहें वो ही करो तब ही अच्छी लड़की होती है ? मैं क्या बुरी लडकी हूँ. लेकिन मेरी अपनी ओपिनियन होती है, मैं रेस्पेक्ट करती हूँ अपनी ओपिनियन और अपनी चॉइस को. मैं अपने सपनों को साकार करने के लिए जब आँखें मूंदती हूँ मन ही मन कहती हूँ “यस आय विल डू इट” और उसके लिए निरंतर प्रयासरत हूँ. लेकिन आप लोगों ने अपने सपने मुझ पर लादे नहीं. मैं जो पढना चाहती हूँ उसकी छूट दी, हकीकत तो यह है कि सबकुछ मैं ने ही तय किया. जो मुझे कॉलेज में पढ़ाया जाता है मैं उसे एक दिन पहले ही घर में पढ़ लेती हूँ क्यूंकि मुझे वह सब अच्छा लगता है. क्यूंकि मुझे अपने विषय को जानने के लिए क्युसिओसिटी भी है. मुझे अपने विषय में ज्यादा सर नहीं खपाना पड़ता. इसीलिए आपको मेरी मेहनत नज़र भी नहीं आती और मैं समय निकाल कर मौज-मस्ती भी कर लेती हूँ.

समझना होगा माता-पिता को

हम्म बात तो तुम्हारी सही है, तुम अपनी सहेली को क्यूँ नहीं  समझाती कि वह अपने माता-पिता से बात करे और उन्हें बताये कि वह अपने पसंद का करियर चुनना चाहती है.

उन्हें समझा कर कोई फ़ायदा नहीं मॉम क्यूंकि उसके माता और पिता दोनों आपस में ही नहीं समझा पाए एक दूसरे को. बस दोनों अपनी जिद पर अड़े हैं कि एक के अनुसार बेटी मॉडलिंग करे और दूसरे के अनुसार हर वक़्त किताबों में सर घुसाए रखे. पहले उन्हें आपस में समझना जरूरी है और यह जानना जरूरी है कि उनकी बेटी क्या करना चाहती है पर वे दोनों इतने नासमझ हैं कि इस विषय पर बेटी से बातचीत ही नहीं करते, बस उसके लिए एक पगडंडी बना दी है और जैसे घोड़े की आँखों पर कुछ बाँध दिया जाता है कि वह साइड में न देखे बस आगे देखे वैसे ही उसे अपने माता-पिता की ऑंखें लेकर उस पगडंडी पर चलना है.

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“ह्म्म्म बात तो तुम सही कहती हो” मैं ने कहा.

तुम्हें लगता है कि मैं सही कहती हूँ तो तुम ही समझाओ उसकी मॉम व डैड को वर्ना किसी दिन वह कुछ गलत न कर बैठे और यदि विद्रोह कर दिया तो फिर वह उन दोनों से बहुत दूर न चली जाये. हो सकता है वह मॉडल या अफसर बन जाए किन्तु उसके माता-पिता की आँखें कब तक उसे राह दिखाएंगी. वह तो छुप-छुप कर वाइल्ड लाइफ सफारी को सर्च करती है और सोचती है एक बार माँ-बाप का सपना पूरा कर दे फिर अपना सपना पूरा करेगी. एक बार मॉडलिंग में चली भी जायेगी तो छोड़ देगी. या फिर किसी बड़ी कंपनी में अफसर बन गयी तो नौकरी छोड़ देगी. और यदि ये भी न हुआ तो पूरी ज़िंदगी कसमसाती रहेगी अपने अधूरे ख़्वाबों के साथ.

अपने सपनों को जिओ

मैं तो कहूंगी आखिर ज़िंदगी उस की है और उसे ही जीनी है उसे अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रयास करना चाहिए न कि अपने माता-पिता के अरमानों को जीना चाहिए.

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