औनलाइन फ्रैंड- भाग 3: रिया ने कौनसी बेवकूफी की थी

रिया बाहर वेटिंगरूम में आ कर मोहित के कंधे पर सिर रख रोने लगी. “मोहित, अगर तुम ने मुझे नहीं बचाया होता तो मुझे नहीं पता कि मेरे साथ क्या होता. वह अपराधी मुझे लौंग ड्राइव और फौर्महाउस में दिन बिताने के लिए बुला रहा था.”

मोहित ने उस के आंसू पोंछे. “संभालो अपनेआप को, रिया.” फिर उस ने अपनी घड़ी की तरफ देखा, “मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं. मेरी औफिस में मीटिंग है.”

गाड़ी के अंदर मोहित ने रिया के गाल पे गिरे हुए बाल को धीरे से हटाया. रिया ने उस का हाथ पकड़ कर रखा ताकि मोहित का हाथ उस के गालों पे रहे. उस के पूरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन हो रही थी. दिल तेज़ी से धड़क रहा था. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. क्या मोहित उस के होंठों को छुएगा? लेकिन मोहित ने ऐसा कुछ भी नहीं किया.

उस ने धीरे से अपना हाथ हटा कर गाड़ी स्टार्ट की और रिया को उस के घर के एकदम पास छोड़ दिया.

“मोहित, थैंक यू.”

रिया ने एक पल के लिए सोचा कि मोहित को अपने दिल की बात साहस कर के बता दे.

“मोहित, मैं ने नादानी में बहुत बड़ी गलती की है. मुझे माफ़ कर दो. मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. तुम्हारा जीवनसाथी बनना चाहती हूं.”

लेकिन मोहित कह रहा था, “जब तक तुम अपने घर के अंदर नहीं जातीं, रिया, मैं यहीं हूं. इन आपराधिक गिरोहों का कोई भरोसा नहीं. बाय रिया.”

रिया को अचानक महसूस हुआ कि मोहित ने उस से दोबारा मिलने के बारे में कुछ नहीं कहा. मोहित ने एक खूंखार अपराधी से बचा कर उसे एक नई जिंदगी दी थी लेकिन उस ने अपनी मूर्खता से मोहित को हमेशा के लिए खो दिया था.

मम्मी ने उस के आंसुओं से लथपथ चेहरे की ओर देखा.

“क्या हुआ? तारा से झगड़ा हुआ? अब जाओ हाथमुँह धो कर कपड़े बदल लो. खाना तैयार है.”

रिया पूरी रात मोहित के फोन का इंतज़ार करती रही लेकिन मोहित का कोई फ़ोन नहीं आया.

यह स्पष्ट हो रहा था मोहित उस से फिर कभी संपर्क नहीं करेगा.

पश्चात्ताप के आंसू से उस की आंखें भीग गईं.

कुछ दिन बीत गए. रिया ने ठीक से खाना खाना बंद कर दिया. मोहित की याद में और पछतावे के आंसू से रात बीत जाती थी. एक हफ्ते बाद हिम्मत कर के रिया ने अपनी मां से पूंछा, “मम्मी, क्या मोहित का कोई फोन आया था?”

“वह क्यों फ़ोन करे? मैं ने तुझ से कहा था, अगर तूने फैसला करने में इतना समय लगाया तो हम मोहित जैसे होनहार लड़के को खो देंगे. मूर्ख लड़की.”

‘मम्मी, मैं मोहित से प्यार करने लगी हूं,’ यह कहने से पहले उस ने अपनेआप को जल्दी से रोक लिया. फिर धीरे से कहा, “मम्मी, मैं ने फैसला कर लिया है. मोहित बहुत ही अच्छा लड़का है.”

“आज रात मैं तुम्हारे पापा से बात करूंगी. लेकिन मुझे लगता है बहुत देर हो चुकी है. कल कोई लेडी बता रही थी कि मोहित के परिवार वाले उस की सगाई मेहराजी की छोटी बेटी से कराने की सोच रहे हैं.

“मुझे याद आया, आज रात मेहराजी की बड़ी बेटी की शादी हो रही है.

हमें वहां जाना होगा. पापा उन्हें जानते हैं. मोहित और उन का परिवार भी वहां आएंगे.”

रिया का मेहराजी की बड़ी बेटी की शादी में शामिल होने का कोई इरादा नहीं था. वह उन्हें जानती तक नहीं थी लेकिन मोहित से मिलने की आस ने उस में एक अजीब सी उमंग भर दी.

उस ने बड़े ध्यान से ड्रैसअप और मेकअप किया.

शादी में बहुत मेहमान आ चुके थे. कुछ लड़कियां रिया को अंदर ले गईं जहां दुलहन तैयार हो रही थी.

“अब शादी करने की बारी तृषा की है,” एक लड़की ने मेहराजी की छोटी बेटी की ओर इशारा करते हुए कहा. “रिया, क्या आप ने मोहित खन्ना को देखा है जिन से तृषा शायद जल्द ही

सगाई कर रही है?” एक दूसरी लड़की ने कहा.

“अभीअभी बाहर आया है मोहित,” किसी ने कहा, “बहुत डैशिंग लग रहा है. तृषा, तुम सचमुच लकी हो.” सारी लड़कियां हंसने लगीं.

रिया अब और नहीं सुन सकती थी. इस से पहले कि लड़कियां उस के आंसू देख पातीं, वह बैडरूम से बाहर आ गई.

उस ने मोहित को दूर खड़े कुछ लोगों से बात करते हुए देखा. शेरवानी में वह बिलकुल दूल्हा लग रहा था. सारी लड़कियों की नज़रें उसी पर टिकी हुई थीं.

अचानक उस ने रिया को देखा और मुसकराया, फिर उस की ओर आने लगा.

रिया का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. क्या होगा अगर वह सब के सामने रोने लगी? शुक्र था कि उस के मम्मीपापा आसपास दिखाई नहीं दे रहे थे.

“हाय रिया,” उस ने मोहित को सुना, “बहुत सुंदर लग रही हो साड़ी में.”

“तृषा के साथ सगाई के लिए बधाई.”

“सगाई? किस के साथ?”

“मेहराजी की छोटी बेटी तृषा के साथ.”

रिया अब और नहीं बोल पा रही थी क्योंकि उस की आंखों से आंसू छलक पड़े थे.

उस ने अपने सामने सीढ़ी देख कर ऊपर भागी और छत पर जा पहुंची, जो रोशनी से जगमगा रहा था. लेकिन वहां कोई नहीं था. सभी लोग शादी के लिए नीचे थे.

रिया एक कोने में खड़ी हो कर रोने लगी. उस का दिल टूट रहा था. आज तृषा की जगह वह खुद होती लेकिन उस ने अपनी बेवकूफी से मोहित को हमेशा के लिए खो दिया था.

“रिया, क्या बात है?” उस ने अपने पीछे मोहित को सुना. “क्यों रो रही

हो, रिया? सब ठीक तो है?”

फिर मोहित ने कुछ सोचा, “कोई आप को परेशान तो नहीं कर रहा है, रिया?”

“तुम तृषा से शादी कर रहे हो और मुझ से पूछ रहे हो कि मैं क्यों रो रही हूं?”

मोहित ने धीरे से रिया का मुंह ऊपर उठाया और अपने रूमाल से उस के आंसू पोंछे.

“क्या मेरी किसी और से शादी करने की बात तुम्हें इतना दुखी करती है, रिया?”

रिया ने उस के चेहरे पर हलकी मुसकान देखी और शरमाते हुए अपनी पलकें झुका लीं. उस ने बिना सोचेसमझे अपनी भावनाओं को ज़ाहिर कर दिया था “रिया, आप ही थे जिन्हें फैसला करना था और मेरे परिवार को फ़ोन कर के बताना था.”

“मैं ने मम्मी से कहा था, लेकिन मम्मी ने कहा कि तुम्हारे लोग तृषा से तुम्हारी शादी कराने की कोशिश कर रहे हैं.”

“उन के परिवार की ओर से शादी का प्रस्ताव आया था. बस, इतना ही.

मैं तृषा को देखने नहीं गया. न ही मेरी किसी से इस बारे में और कोई बात हुई. रिया, क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम से बात किए बिना किसी और लड़की को देखने जाता?”

“मोहित, मैं ने सोचा, तुम ने मुझे मेरी बेवकूफ़ी के लिए माफ़ नहीं किया.”

“उस घटना के बारे में बात मत करो, रिया. मुझे रोज़ बुरे सपने आते हैं जब मैं सोचता हूं कि वह अपराधी गैंग तुम्हारे साथ क्या कर सकता था.”

उस ने रिया को अपनी बांहों में ले लिया.

“मेरी नासमझ, प्यारी जान.”

रिया ने अपनी आंखें बंद कर लीं. इस मनमोहक चांदनी रात में मोहित की बांहों में वह ख़ुशी से मर जाना चाहती थी.

“मुझे पहली नजर में ही तुम से प्यार हो गया था,” मोहित फुसफुसाया, “रिया, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?”

उस के होंठ रिया के कांपते हुए होंठों के बहुत नज़दीक थे.

रिया ने सिर हिलाया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे. “मिसेज रिया खन्ना, मैं अपने मम्मीपापा से कहूंगा कि कल ही तुम्हारे घर जा कर शादी की तारीख तय करें.”

रिया जवाब नहीं दे सकी क्योंकि मोहित ने धीरे से उस के होंठों को छुआ.

औनलाइन फ्रैंड- भाग 2: रिया ने कौनसी बेवकूफी की थी

मोहित उठ कर उस के पास आया, उस का हाथ पकड़ा और अपने रूमाल से उस के आंसू पोंछे.

“रिया, तुम ने कुछ नहीं किया. लेकिन हमें पता लगाना है कि जय असल में क्या वही है जो वह बता रहा है?”

“क्या होगा अगर पुलिस ने मम्मीपापा को सबकुछ बता दिया?”

“नहीं रिया, मैं ने पुलिस को बता दिया है. वह सबकुछ गोपनीय रखेगी.

मीडिया को भी कुछ नहीं बताएगी.”

मोहित ने अपने टेबल से प्रिंटआउट उठाया. “रिया, मैं ने इसे अभी टाइप किया है. इसे पढ़ कर इस पर दस्तखत करो.”

“लेकिन, यह तो जय के खिलाफ शिकायत है.”

“हां रिया, हमें यह ले जाना होगा. लेकिन मैं इसे पुलिस को तभी दूंगा जब मेरा शक सही निकलेगा.”

मोहित खुद भी अजनबी ही था लेकिन कार में उस के नज़दीक बैठते ही रिया को सुकून और सुरक्षा का एक अजीब एहसास हुआ.

“मोहित, आने के लिए शुक्रिया.”

“नहीं रिया, यह बहुत जरूरी था कि मैं आप की मदद करूं.” रास्ते में वह एक कंप्यूटर की दूकान पर रुका. “अपना फ़ोन और डाक्यूमैंट्स दो रिया. हमे साईंफ्ट कौपी भी देना होगा पुलिस को.”

“मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है, मोहित.”

“मुझ पर भरोसा रखो, रिया.”

जैसे ही वे पुलिस साइबर क्राइम सैल दफ्तर पहुंचे, मोहित ने उस का हाथ पकड़ लिया.

“डरना नहीं, रिया. मैं हूं तुम्हारे साथ.”

पुलिस अफसर को मोहित ने जय के बारे में पहले ही बता दिया था. अफसर ने उन की बातचीत, बैंक लेनदेन विवरण चैक किया. फिर जय की तसवीर को देख कर कहा, “यह लंदन रिटर्न्ड नहीं है. यह एक कुख्यात मुजरिम है और एक खूंखार आपराधिक गिरोह का सदस्य है. कुछ महीने पहले ही जेल से छूट कर आया है.

“आप लोग अपनी लिखित शिकायत और सुबूत मेरे पास छोड़ जाइए. मिस रिया, जब यह जय फोन करे तो उस से बात कीजिए. कहना कि

आप पैसे की व्यवस्था कर रही हैं, ताकि उसे कोई शक न हो. इस की सारी

डिटेल्स पुलिस फाइल्स में हैं. इसे पकड़ने में ज़्यादा समय नहीं लगना

चाहिए. जैसे ही हमें इस केस में कोई सफलता मिलेगी, हम आप को फ़ोन

कर देंगे.”

“आप मुझे फ़ोन कर लेना,” मोहित ने अपना विजिटिंग कार्ड पुलिस को दिया.

रिया का सिर चकरा रहा था. कुख्यात मुजरिम और वह उसे अपना प्यार समझ बैठी थी. अगर मोहित न होता…

रिया बाहर वेटिंगरूम में मोहित के कंधे पर अपना सिर रख कर फूटफूट कर रोने लगी. मोहित ने उस का हाथ कस कर पकड़ उस के आंसू पोंछे.

“मत रो रिया, प्लीज.”

फिर मोहित ने अपने कालेज के दिनों के कुछ मज़ेदार किस्से सुना कर माहौल को हलका करने की कोशिश की. रिया को उसी पल एहसास हुआ कि वास्तव में मोहित कितना अच्छा इंसान है.

थाने से बाहर आने के बाद रिया ने मोहित का हाथ पकड़ लिया. “मोहित, आई एम सौरी. तुम इतने व्यस्त हो और तुम ने मेरे लिए इतना समय बरबाद किया.”

“यह समय की बरबादी नहीं है, रिया. अगर हम यहां न आते तो तुम बहुत मुसीबत में पड़ सकती थीं.”

उस ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला. “रिया, मुझ से वादा करो कि आज के बाद तुम उस जय का कोई फ़ोन नहीं उठाओगी. सिर्फ आज अगर उस ने फ़ोन किया तो पुलिस के कहने के मुताबिक उस से बात करना.”

“मैं वादा करती हूं, मोहित.”

“जैसे ही पुलिस अफसर मुझे फ़ोन करेगा, मैं तुम्हें बता दूंगा. मैं तुम्हारे साथ आऊंगा पुलिस स्टेशन.”

घर पहुंचते ही जय का फ़ोन आया.

“रिया, तुम ने पैसे अरेंज किए?”

रिया के हाथपैर ठंडे हो रहे थे. वह एक कुख्यात क्रिमिनल के साथ बात कर रही थी. लेकिन उस ने वैसा ही किया जैसा पुलिस ने उसे सलाह दी थी.

“जय, मुझे एकदो दिन और दे दो,”  किसी तरह से उस ने कहा.

जय निराश लग रहा था.

“जल्दी अरेंज करो, रिया. मैं तुम से मिलना चाहता हूं. पैसे अपने साथ ले कर आओ जल्दी. फिर हम लौंग ड्राइव पर निकलेंगे. हम एक दोस्त के फौर्महाउस जाएंगे और वहां उस के घर में पूरे दिन बिताएंगे. सिर्फ हम दोनों. मैं तुम्हें अपनी बांहों में समेटने के लिए बेक़रार हूं, रिया.”

रिया भय और घृणा से कांप रही थी. वह कितनी बेवक़ूफ़ थी. अगर मोहित न होता और वह जय के साथ चली जाती… “जय, मैं कल आप को फोन कर के बता दूंगी पैसे अरेंज हुए कि नहीं. बाय

जय.”

अगले दिन सुबह 10स बजे मोहित ने फ़ोन किया. “रिया जल्दी से तैयार हो जाओ. पुलिस के वहां से फ़ोन आया था. हमें अभी वहीं जाना है. मैं आधे घंटे में तुम्हारे घर के नज़दीक से तुम्हें पिक करूंगा.”

रिया बाहर जाने के लिए तैयार हो कर कमरे से निकली तो उस की मम्मी ने पूछा, “आज फिर से कहां जा रही हो, रिया?” रिया ने जल्दी में बताया कि उसे अपनी सहेली तारा के घर से कुछ किताबें उठानी हैं.

“जल्दी वापस आना.”

तभी उसे मोहित का मैसेज आया. “मैं पहुंच गया हूं, बाहर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं.”

मोहित अपनी कार के पास खड़े इतना हैंडसम और स्मार्ट लग रहा था कि लोग उसे घूर रहे थे.

“हम कल रात ही जय को पकड़ने में कामयाब रहे. सोनीपत में छिप रहा था,” पुलिस अधिकारी ने कहा, “इस का असली नाम राजेश है. यह 10वीं क्लास का ड्रौपआउट है और एक खूंखार आपराधिक गिरोह का सदस्य है. जिन में पैसे की जबरन वसूली, धोखाधड़ी, सामूहिक बलात्कार लड़कियों को उन के अंतरंग वीडियो के साथ ब्लैकमेल करना, और कई बार बेरहमी से उन्हें क़त्ल करना भी शामिल है.

“औनलाइन दोस्ती करने के बाद ये लोग अपनेआप को विदेश से लौटे अमीर आदमी बताते हैं. राजेश कई साल पहले लड़कियों के रेप और अश्लील वीडियो औनलाइन लीक करने के आरोप में पकड़ा गया था. जेल से छूटने के बाद उस ने फिर से यह काम शुरू कर दिया है. उस के गिरोह के 2 सदस्य अभी तक जेल में ही हैं. जब हमारी पुलिस टीम ने कल उस के घर पर छापा मारा, हम राजेश के साथ उसके गिरोह से एक और लड़के को पकड़ने में कामयाब रहे.”

रिया बिना कुछ बोले सुनती रही. सबकुछ एक भयानक दुस्वप्न की तरह लग रहा था. उस का शरीर कांप रहा था यह सोच कर कि अगर मोहित ने उस की मदद न की होती तो वह खूंखार गिरोह उस के साथ क्या कर सकता था.

मोहित ने उस का हाथ पकड़ कर रखा था नहीं तो वह शायद बेहोश हो कर गिर ही जाती.

अधिकारी ने रिया की ओर देखा, “आप सभी महिलाओं और पुरुषों को मेरी सलाह है कि इतनी आसानी से औनलाइन दोस्त न बनाएं और उन्हें व्यक्तिगत विवरण, पैसा न दें. या उन से अकेले मिलने के लिए बाहर न जाएं. आप लड़कियां एक आपराधिक गिरोह के जाल में फंस सकती हैं जो सामूहिक बलात्कार के बाद आप को ब्लैकमेल कर सकता है.

“पुरुषों के मामले में उन्हें महिला आपराधिक गिरोहों द्वारा हनी ट्रैप किया जा सकता है. कई मामलों में हम ने पाया है कि पहचान से बचने के लिए इन गिरोहों द्वारा लड़कियों या लड़कों की बाद में हत्या कर दी जाती है.”

रिया कांपने लगी. मोहित फुसफुसाया, ‘हिम्मत रखो, रिया.’

फिर मोहित उठ खड़ा हुआ.

“बहुत धन्यवाद, सर.”

“मुझे बहुत खुशी है मिस्टर मोहित खन्ना, आप ने समझदारी से टाइम रहते ही मिस रिया को बचा लिया.”

औनलाइन फ्रैंड- भाग 1: रिया ने कौनसी बेवकूफी की थी

“जय, मैं तुम्हारे लिए और 50 हजार रुपए कहां से लाऊं?” रिया ने कहा, “मैं पहले ही पापा से 30 हजार रुपए ले कर तुम्हें दे चुकी हूं. तुम जानते हो कि मैं ने अभीअभी अपने कालेज का फाइनल एग्जाम दिया है. कोई नौकरी नहीं करती.”

रिया ने अपनी मां को अंदर आते सुना और जल्दी से फोन नीचे रख दिया. “मम्मी आ रही हैं, बाय जय. मैं तुम से बाद में बात करूंगी.”

“रिया बेटे, जल्दी से तैयार हो जाओ. एक घंटे में एक लड़का और उस का परिवार तुम्हें देखने आ रहे है.”

“मम्मी, मैं ने आप से कहा है, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती. मैं नौकरी करना चाहती हूं.”

“उन्हें तुम्हारे काम करने में कोई समस्या नहीं है. लड़का खुद इतनी कम उम्र में एक बड़ी फर्म में मैनेजिंग डायरैक्टर है. तुम्हारी रीना दीदी मुंबई में सैटल हैं और एक बच्चा होने के बाद भी काम कर रही हैं. दीदी की ससुराल वालों को भी उन के काम करने में कोई दिक्कत नहीं है. तुम्हारे पापा अगले साल रिटायर होंगे. वे तुम्हें उस से पहले सैटल देखना चाहते हैं.”

“मम्मी प्लीज…”

“अब जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ. ऐसा लड़का दोबारा नहीं मिलेगा. तुम्हारे पापा ने उन के बारे में पता किया है. बहुत ही अच्छा परिवार है. लड़के का सिर्फ एक बड़ा भाई है जो शादीशुदा है और विदेश में रहता है. उन की कोई मांग नहीं है. वे सिर्फ एक अच्छी लड़की चाहते है.”

“रिया बेटे, यह मोहित है.”

एक बहुत ही हैंडसम लड़का अपने मातापिता के साथ बैठा था. मातापिता भी बहुत सुशील लग रहे थे. यह एक ऐसा मैच था जिसे कोई भी लड़की तुरंत ‘हां’ कह देती लेकिन रिया के दिल में जय के अलावा और किसी के लिए जगह नहीं थी.

मोहित की मां ने रिया से उस के कालेज और एग्जाम के बारे में पूछा. फिर मुसकरा कर कहा, “हमें लड़की पसंद है. लेकिन बच्चों को अंतिम फैसला लेना है.”

“तुम दोनों अलग बैठ कर बात क्यों नहीं करते?” रिया की मां ने सुझाव दिया, “एकदूसरे को बेहतर तरीके से जान लो. रिया, मोहित को छत पर ले जाओ.”

छत के बगीचे में रंगबिरंगे फूल खिले हुए थे.

मोहित बहुत ही सौम्य और मृदुभाषी लग रहा था. वह निश्चित रूप से बहुत अच्छा पति साबित होगा. लेकिन वह रिया के लिए नहीं था. “मोहितजी.”

“मुझे केवल मोहित बुलाओ, रिया,” वह मुसकराया.

“रिया,” उसने धीरे से कहा, “मैं ने तुम्हें पसंद किया है. लेकिन मुझे तुम्हारा फैसला जानना ज़रूरी है.”

“मोहित, मुझे माफ करना. मैं आप से शादी नहीं कर सकती. मैं किसी और से प्यार करती हूं. लेकिन आप प्लीज किसी को कुछ मत बताना.

मेरे मातापिता को इस के बारे में पता नहीं है.”

मोहित का चेहरा भावहीन बना रहा.

“मुझे अपना दोस्त समझो, रिया. मैं किसी को नहीं बताऊंगा. क्या वह लड़का तुम्हारे कालेज का है?”

“नहीं. 2 हफ्ते पहले मेरी उस से डेटिंग ऐप पर दोस्ती हुई है. मैं अभी तक उस से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिली.”

“तुम अभी तक उस से नहीं मिलीं और तुम उस से प्यार करती हो?”

“जय बहुत अच्छा लड़का है. अमेरिका से पढ़ाई की है. वह अभी लंदन से भारत आया है. लंदन में उस का कारोबार है.”

“लेकिन तुम डेटिंग ऐप पर क्यों गईं, रिया?”

रिया शरमाई, बोली, “मेरी क्लास में कुछ लड़कियों के बौयफ्रैंड थे. वे लोग मुझे चिढ़ाते थे और मुझ से पूछते थे, मेरा अभी तक कोई बौयफ्रैंड क्यों नहीं हैं. इसलिए मैं एक डेटिंग ऐप पर गई और जय जैसा काबिल व अमीर लड़का मुझे मिला.”

मोहित बिना कुछ बोले उसे चुपचाप सुन रहा था.

रिया ने अचानक कुछ सोचा, फिर बोली, “मोहित, क्या आप प्लीज मेरी मदद करोगे?”

“कैसे?”

“क्या आप मुझे 50 हजार रुपए उधार दे सकते हो?”

“क्यों रिया?”

“मुझे जय को देना है. नौकरी मिलते ही मैं आप को पैसे वापस कर दूंगी.”

“अगर जय इतना अमीर है और लंदन में उस का अपना कारोबार है, तो उसे तुम से पैसे लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी, रिया?”

“नहीं मोहित. जैसा मैं ने आप से कहा, जय अभीअभी भारत आया है. उसे कुछ फौरेन एक्सचेंज समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. मैं ने उसे 30 हजार रुपए दिए हैं. क्या आप 50 हजार और अरेंज कर सकते हो?”

मोहित अपने सामने खड़ी खूबसूरत, मासूम लड़की की तरफ देखा. वह बहुत चिंतित लग रहा था.

“रिया,” उस ने गंभीर स्वर में कहा, “यह रहा मेरा औफिस का पता. कल ज़रूर आ कर मुझ से मेरे औफिस में मिलो और अपना फोन ले आना जिस में जय का फोटो और तुम दोनों की बातचीत हो. अपना 6 महीने का बैंक स्टेटमैंट भी ले आना. उस में जय के साथ तुम्हारे बैंक ट्रांजैक्शन की सारी डिटेल्स ज़रूर होनी चाहिए. अपनी पहचान और पते का प्रमाण भी साथ लाना. मुझे जय का बैंक अकाउंट नंबर और बैंक डिटेल्स भी चाहिए.”

“मोहित, आप बहुत ही अच्छे हो.”

“रिया, वादा करो कि तुम जय से अभी नहीं मिलोगी. अगर उस ने फ़ोन किया तो बोलना कि तुम पैसे अरेंज करने की कोशिश कर रही हो.”

“मैं वादा करती हूं.”

मोहित ने अपनी घड़ी की ओर देखा.

“हमें नीचे चलना चाहिए. हमारे मम्मीपापा इंतजार कर रहे हैं. मैं उन से कहूंगा तुम्हे हमारे मैच के बारे में सोचने के लिए कुछ समय चाहिए.”

“थैंक यू मोहित. मैं कल आप के औफिस ज़रूर आऊंगी. लेकिन किसी को कुछ मत बताना.”

रिया फैसला करने के लिए थोड़ा और समय चाहती है, यह सुन कर सब बहुत निराश हो गए.

मेहमान जाने के बाद रिया के पापा गुस्से में अंदर चले गए.

“पागल हो गई है लड़की?” रिया की मम्मी ने कहा.

“तू और समय क्यों लेना चाहती है? तुझे इतना अच्छा लड़का बाद में नहीं मिलेगा. कुछ ही दिनों में उस की शायद किसी दूसरी लड़की से शादी भी हो जाएगी.”

“मैं काम करना चाहती हूं, मम्मी.”

“शादी के बाद भी काम कर सकती थी. तुझे कब अक्ल आएगी?”

अगले दिन सुबह रिया ने बैंक जा कर अपना स्टेटमैंट लिया, फिर मोहित के औफिस गई.

रिसैप्शनिस्ट ने इंटरकौम पर बात की. और रिया को मैनेजिंग डायरैक्टर लिखा हुआ कमरे के अंदर जाने के लिए कहा.

“रिया बैठो,” मोहित ने कहा.

फौर्मल सूट में वह बेहद ही हैंडसम लग रहा था. उस ने रिया के लिए सौफ्ट ड्रिंक मंगवाया. फिर रिया से सारे डाक्यूमैंट्स ले कर कुछ टाइप करने लगा और एक प्रिंटआउट निकाला.

“रिया, मैं चाहता हूं कि तुम पहले इसे देखो.”

यह मोहित के फ़ोन पे एक टीवी चैनल की रिपोर्ट थी.

“‘औनलाइन दोस्त ने एक लड़की को मां के बीमार होने की झूठी बात कह कर 2 लाख रुपए ठगे.’” और यह देखो रिया, “‘औनलाइन दोस्त एक लड़की के साथ घनिष्ठ संबंध बना कर बैडरूम वीडियो को वायरल करने की धमकी दे कर उसे ब्लैकमेल कर रहा था. डरके मारे लड़की ने अपने घर में कुछ नहीं बताया. फिर जब उस के दोस्तों ने भी उस के साथ गैंगरेप किया तब लड़की ने जा कर पुलिस में शिकायत की.’”

मोहित ने अपना फ़ोन बंद किया.

“रिया, इतनी आसानी से औनलाइन दोस्तों पर भरोसा नहीं करना चाहिए. मेरे साथ चलो.”

“कहां?”

“पुलिस के पास.”

“पुलिस के पास? पर मैं ने क्या किया हैं, मोहित?” डर के मारे रिया के आंखों में आंसू आ गए.

अदृश्य मोहपाश

परीक्षा के अंतिम दिन घर आने पर पुन्नी इतनी थकी हुई थी कि लेटते ही सो गई. उठी तो शाम होने को थी, खिड़की से देखा तो पोर्टिको में मम्मी की गाड़ी खड़ी थी यानी वे आ चुकी थीं. छोटू से मम्मी के कमरे में चाय लाने को कह कर उस ने धीरे से मम्मी के कमरे का परदा हटाया, मम्मी अलमारी के सामने खड़ी, एक तसवीर को हाथ में लिए सिसक रही थीं, ‘‘आज पुन्नी की आईएएस की लिखित परीक्षा पूरी हो गई है, सफलता पर उसे और उस के पापा को पूरा विश्वास है. लगता है बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना पूरा करने की मेरी वर्षों की तपस्या सफल हो जाएगी.’’

पुन्नी ने चुपचाप वहां से हटना बेहतर सम झा. उस का सिर चकरा गया. मम्मी रोरो कर कह क्या रही हैं, ‘उस के पापा का विश्वास…बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना…? कैसी असंगत बातें कर रही हैं, डिगरी कालेज की प्रिंसिपल मालिनी वर्मा? और वह तसवीर किस की है?’

चाय की ट्रौली मम्मी के कमरे में ले जाते छोटू को उस ने लपक कर रोका, ‘‘उधर नहीं, बरामदे में चल.’’

‘‘आप को हो क्या गया है, दीदी? कहती कुछ हो और फिर करती कुछ हो. दोपहर को मु झे फिल्म की सीडी लगाने को बोल कर आप तो सो गईं, मु झे मांजी से डांट खानी पड़ी…’’

‘‘मम्मी दोपहर को ही आ गई थीं?’’ पुन्नी ने छोटू की बात काटी.

‘‘आई तो अभी हैं, मु झे डांट कर तुरंत अपने कमरे में चली गईं.’’

‘और कमरे में जा कर उस तसवीर से बातें कर रही हैं? मगर तसवीर है किस की?’ पुन्नी ने सोचा.

तभी मालिनी बाहर आ गईं. चेहरे पर से आंसुओं के निशान तो धो लिए थे लेकिन आंखों की नमी तो धुलती नहीं. इस से पहले कि वे कुछ बोलतीं,

पापा चहकते हुए आ गए, ‘‘हैलो, डिप्लोमैट…’’

‘‘डिप्लोमैट? किस से बात कर रहे हो, अभय?’’

‘‘अपनी बेटी से, मालिनी, उस का आईएफएस में चयन यानी डिप्लोमैट बनना तो पक्का सम झो,’’ पापा की खुशी समेटे नहीं सिमट रही थी, ‘‘आज जो प्रश्न पूछे गए हैं उन सब के उत्तर तो इसे जबानी याद हैं.’’

‘‘लेकिन आप को इस का प्रश्नपत्र किस ने दिखा दिया?’’ मालिनी ने जिरह की.

‘‘नीलाभ ने. वह परीक्षा भवन से सीधा अपने पापा के पास आया था. उसी का कहना है कि जिस फर्राटे से पुन्नी सब सवालों के सही जवाब सब को बता रही थी, उस का नाम प्रथम

5 प्रत्याशियों में होगा. फिर मैं ने प्रश्नपत्र देखा तो वह सब तो वे प्रश्न थे जो हम ने कल रात रिवाइज कराए थे.’’

‘‘आज ही नहीं पापा, अकसर हर रोज कई सवाल वही होते थे जो आप रात को रिवाइज करवाते थे,’’ पुन्नी ने कहा.

‘‘और तू उन्हें कंठस्थ कर लेती थी, नीलाभ की बात से तो यही लगा. यह बता, दोपहर को क्या किया?’’

‘‘मु झ से फिल्म ‘ओह माई गौड’ की सीडी लगवा कर खुद सो गईं,’’ छोटू ने शिकायत की.

‘‘और तु झे फिल्म अकेले देखनी पड़ी, कैसी है?’’ अभय ने पूछा.

‘‘पूरी नहीं देखी, मांजी ने डांट कर टीवी बंद करवा दिया.’’

‘‘कोई बात नहीं, अब सब के साथ देख लेना, खाना बनाने की जरूरत नहीं है, बाहर से मंगवा लेंगे,’’ मालिनी ने सहृदयता से कहा.

फिल्म देखते हुए मालिनी भी सब के साथ सहज भाव से हंस रही थीं लेकिन पुन्नी को उन की सहजता ओढ़ी हुई लगी और हंसी जैसे दबी हुई सिसकी. अगली सुबह मालिनी का व्यवहार सब के साथ सामान्य था.

‘‘पुन्नी, तु झे कहीं जाना हो तो मैं गाड़ी तेरे लिए छोड़ जाती हूं, मैं तेरे पापा के साथ चली जाऊंगी.’’

‘‘मु झे कहीं नहीं जाना, मम्मा, आज घर पर ही रहूंगी.’’

‘‘फिर भी अगर किसी के साथ कुछ प्रोग्राम बन जाए तो मु झे फोन कर देना, ड्राइवर से गाड़ी भिजवा दूंगी या अभय, तुम पुन्नी के साथ लंच करने घर आ जाओ न फिर…’’

‘‘ओह मम्मा, प्लीज, आप दोनों इतमीनान से घर आना,’’ पुन्नी ने बात काटी,

‘‘मेरा मूड या तो आज सोने का है या गानेवाने सुनने का. आप लोग मु झे फोन भी मत करना और छोटू, तू भी मेरे आगेपीछे मत घूमना. मैं जिस कमरे में चाहे बैठूंगी या सोऊंगी.’’

‘‘अब और कुछ मत कहना मालिनी, वरना समय पर आने पर भी पाबंदी लग जाएगी,’’ पापा ने कहा.

उन दोनों के जाते ही पुन्नी मालिनी की अलमारी के सामने जा खड़ी हुई. अलमारी में तो ताला नहीं था मगर उस का सेफ लौक्ड था. चाबी जरूर मां ने अपनी साडि़यों के नीचे रखी होगी, सोच कर पुन्नी ने सब साडि़यों को बाहर निकाल कर  झाड़ा, दूसरे कपड़े भी देख लिए, कुछ किताबें और पुरानी पत्रिकाएं भी थीं. उन का भी हरेक पन्ना इस आस से देख लिया कि कहीं कोई पुराना खत, तसवीर या किसी कविता की पंक्तियां ही मिल जाएं लेकिन एक सूखा फूल तक नहीं मिला. सेफ की चाबी मां अपने पर्स में ही रखती होंगी और उस में से चाबी निकालना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था क्योंकि मां के घर में रहते तो यह हो नहीं सकता था और घर के बाहर मां पर्स के बगैर निकलती नहीं थीं.

मां से पूछने का मतलब था उन्हें व्यथित के साथ ही लज्जित भी करना और पापा से पूछना एक तरह से मां की शिकायत करना. तो फिर करे क्या? किस से पूछे? मां की बचपन की सहेली चित्रा आंटी को सब पता होगा. उन से पुन्नी की खूब पटती थी, आसानी से तो नहीं लेकिन मनुहार करने पर जरूर बता देंगी. चित्रा अपने पति सेवानिवृत्त एअरमार्शल ओम प्रकाश के साथ शहर से दूर अपने फार्महाउस में रहती थीं. उस ने चित्रा आंटी को फोन किया कि वह उन के पास आना चाहती है.

‘‘आज ही आजा. तेरे अंकल कुछ सामान लाने शहर गए हुए हैं, उन्हें फोन कर देती हूं कि आते हुए तु झे ले आएं,’’ चित्रा ने चहक कर कहा, ‘‘तेरी मां को भी कह देती हूं कि मैं तु झे अगवा करवा रही हूं.’’

पुन्नी ने तुरंत पापा को फोन किया.

‘‘पापा, साक्षात्कार की तैयारी से पहले मैं पूरी तरह रिलैक्स करना चाहती हूं. नो मूवीज, नो टीवी, न्यूजपेपर या फोन कौल्ज. ये सब घर पर रहते हुए तो हो नहीं सकता, सो मैं चित्रा आंटी के फार्महाउस पर जा रही हूं. वहां योगा करूंगी, ध्यान लगाने की कोशिश भी…’’

‘‘क्याक्या करोगी यह वहां जा कर सोचना,’’ अभय ने बात काटी, ‘‘नीलाभ अपने पापा की गाड़ी लेने आया हुआ है, उस से कहता हूं कि मेरी गाड़ी ले जाए और तुम्हें ओमी के फार्महाउस पर छोड़ दे.’’

‘‘ओमी अंकल मु झे लेने आ रहे हैं, पापा, वहां से लाने के लिए आप आ जाना.’’

चित्रा से बात करने के लिए उसे कोई भूमिका नहीं बांधनी पड़ी क्योंकि अगले रोज सुबह के नाश्ते के बाद ओमी अंकल जब फार्म पर चले गए तो चित्रा ने पूछा, ‘‘तेरी मां कहती थी कि तेरे पेपर बड़े अच्छे हुए हैं और तू भी बड़े आत्मविश्वास से ओमी को बता रही थी कि यहां तरोताजा होने के बाद तू धमाकेदार साक्षात्कार की तैयारी करेगी लेकिन तेरी शक्ल से तो ऐसा नहीं लग रहा. बहुत परेशान लग रही है, जैसे किसी कशमकश में फंसी हुई हो. लगता है तू यहां रिलैक्स करने नहीं, किसी परेशानी का हल ढूंढ़ने आई है.’’

‘‘आप ने ठीक सम झा, आंटी और वह परेशानी सिर्फ आप सुल झा सकती हैं

क्योंकि ननिहाल वाले तो अमेरिका में हैं, सो उन से तो पूछने का सवाल ही नहीं उठता. एक आप ही हैं जो मम्मी को बचपन से जानती हैं और मेरी परेशानी उन के अतीत से जुड़ी हुई है,’’ पुन्नी ने चित्रा को सब बता दिया.

चित्रा हताशा से सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘कितना सम झाया था मालू को कि अतीत से जुड़ी कोई चीज अपने पास मत रखना और न ही अपने जेहन में लेकिन उस ने तो जैसे मेरी बात न सुनने की कसम खा रखी है. तू ने यह बात अपने पापा को तो नहीं बताई न?’’

पुन्नी को इनकार में सिर हिलाते देख कर चित्रा ने राहत की सांस ली.

‘‘बहुत अच्छा किया, नहीं तो बुरी तरह टूट जाता बेचारा. अच्छा सिला दे रही है मालिनी अभय के त्याग और प्यार का, एक नकारे और ठुकराए गए रिश्ते की सड़ीगली लाश को सहेज कर,’’ चित्रा के स्वर में तिरस्कार था या सहानुभूति, पुन्नी सम झ नहीं सकी.

‘‘प्लीज आंटी, अब पहेलियों में बात न कर के पूरी कहानी बताओ,’’ पुन्नी ने चिरौरी करी.

‘‘कह नहीं सकती कि सुनने के बाद तु झे धक्का लगेगा या इस दुविधा की स्थिति से उबरने का सुकून मिलेगा लेकिन जब इतना सम झ चुकी है कि मालिनी का अतीत है तो उस के बारे में सब जानने का तु झे पूरा हक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘मैं, मालिनी, पुनीत, ओमी और अभय स्कूल से ही सहपाठी और दोस्त थे. कालेज के अंतिम वर्ष में पहुंचते ही हम सब ने भविष्य में क्या करना है, सोच लिया था. ओमी ने एअरफोर्स चुनी थी, मैं ने और मालिनी ने अध्यापन, अभय और पुनीत आईएएस प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे थे. स्कूल की दोस्ती रोमांस में बदल गई थी. मेरा और ओमी का तो खैर ठीक था क्योंकि हमारे परिवारों में मित्रता थी, किसी को हमारी शादी पर एतराज नहीं था लेकिन पुनीत का परिवार बहुत रूढि़वादी था और उस की मां बेहद बदमिजाज व तेजतर्रार थीं, उन की मरजी के बगैर घर में पत्ता भी नहीं हिलता था.

‘‘पुनीत दब्बू किस्म का ‘माताजी का लाड़ला’ था. मगर मालिनी तो हमेशा से दबंग, अपनी मरजी की मालिक थी. मैं ने उसे सम झाया कि उस के और पुनीत के प्यार का न तो कोई मेल है और न ही कोई भविष्य. पुनीत की रूढि़वादी मां उसे कदापि बहू बनाने को तैयार नहीं होंगी और वह स्वयं भी पुनीत के परिवार से तालमेल नहीं बैठा सकेगी.

‘‘‘अगर पुनीत अपनी मां का लाड़ला है तो मैं भी अपने पापा की लाड़ली हूं. वे मु झे इतना दहेज देंगे कि हिटलर माताजी मु झे  झोली पसार कर ले जाएंगी और रहा सवाल परिवार से तालमेल बैठाने का, तो शादी तय होते ही बड़े भैया हम दोनों को आगे पढ़ाई के लिए अमेरिका बुला लेंगे,’ मालिनी ने दर्प से कहा था.

‘‘मेरे इस तर्क को कि आईएएस की तैयारी करने वाला पुनीत अमेरिका क्यों जाएगा, मालिनी ने यह कह कर काट दिया कि पुनीत की तो आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास करने लायक योग्यता ही नहीं है, इसलिए अमेरिका जाने का मौका वह नहीं छोड़ेगा.

‘‘और हुआ भी वही. पुनीत दोबारा प्रवेश परीक्षा देना चाहता था लेकिन मालिनी के सम झाने पर कि दूसरी बार भी सफल हो और फिर मुख्य और मौखिक परीक्षा में सफलता की क्या गारंटी है, सो बेहतर है कि अमेरिका चल कर अपने प्रिय विषय अर्थशास्त्र में महारत हासिल करे. पुनीत मालिनी की बात मान गया. अपेक्षा से अधिक दहेज और अमेरिका में बेटे की पढ़ाई के लालच में उस की मां ने भी बगैर हीलहुज्जत के शादी के लिए सहमति दे दी.

‘‘मालिनी के भाई ने भी पुनीत और मालिनी को बुलाने की कार्यवाही शुरू कर दी. मालिनी के दोनों भाई अमेरिका में थे ही, सेवानिवृत्त पापा मालिनी की पढ़ाई और शादी की वजह से यहां रुके हुए थे, उस की शादी के तुरंत बाद मम्मीपापा यहां की गृहस्थी समेट कर, मालिनी की शादी में आए बेटों के साथ ही अमेरिका चले गए. पुनीत को भी पेनसिल्वानियां विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया लेकिन मालिनी को अंगरेजी साहित्य में अभी कहीं भी दाखिला नहीं मिल रहा था. इस बीच, वह गर्भवती भी हो गई थी और सास उस का बहुत खयाल रखने लगी थीं. भैया ने पुनीत का वीजा और टिकट वगैरह भेज दिया था. सो, उसे तो जाना ही था. मालिनी यह सोच कर कि कुछ ही दिनों की तो बात है, भैया जल्दी ही उस के भी आने की व्यवस्था कर देंगे, मालिनी अकेले ससुराल में रहना मान गई. और कोई चारा भी नहीं था. मम्मीपापा अमेरिका जा चुके थे, मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया था सो मैं होस्टल में रह कर पीएचडी कर रही थी. मालिनी मु झ से अकसर होस्टल में मिलने आती थी, सास की भी तारीफ करती थी. लेकिन एक रोज वह बहुत ही व्यथित अवस्था में आई.

‘‘कल रुटीन चैकअप के दौरान सोनोग्राफी हुई तो पता चला कि मेरे गर्भ में

लड़की है, बस, तब से मेरी सास ने विकराल रूप धारण कर लिया है कि मैं गर्भपात करवाऊं. मेरी बहुत मिन्नत और ससुरजी के सम झाने पर मानीं कि पुनीत से पूछ लें. मगर मेरे से पहले उन्होंने स्वयं पुनीत से बात की और माताजी के आज्ञाकारी बेटे ने तोते की तरह दोहरा दिया-जैसा मां कहती हैं, तुम वैसा ही करो. पुनीत ने कुछ रोज पहले ही फोन पर मु झ से कहा था कि अमेरिका में पैसा भले ही ज्यादा हो, मानसम्मान अपने देश में ही है, मैं तो नहीं बन सका लेकिन अपने बेटे को जरूर भारत में प्रशासनिक अधिकारी बना कर मानसम्मान दिलवाऊंगा. मैं ने चुहल की कि लड़की हुई तो? उस ने छूटते ही कहा था कि

तो क्या हुआ, उसे ही आईएएस अफसर बनाएंगे और वही पुनीत अब अम्मा के सुर में सुर मिला रहा है. लेकिन मेरी भी जिद है चाहे जो भी हो

मैं गर्भपात नहीं करवाऊंगी, डाक्टर और

अस्पताल के स्टाफ को साफ मना कर दूंगी. यह मेरी भ्रांति थी.

‘‘माताजी ने कहा कि वह घर पर ही

अपनी पहचान की एक मिडवाइफ को बुला

कर किस्सा खत्म करवा देंगी. मैं किसी तरह

जान बचा कर यहां आई हूं और अब वापस वहां नहीं जाऊंगी.’

‘‘मैं परेशान हो गई. न तो मालिनी को होस्टल में रख सकती थी न वापस जाने को कह सकती थी. तभी मु झे अभय का खयाल आया और मैं मालिनी को उस के घर ले गई.

‘‘अभय आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास कर के मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहा था. वर्षों पहले एक सड़क दुर्घटना में उस की मां का निधन हो गया था और वकील पिता अपाहिज हो गए थे. उस के घर में सिवा पिता और नौकर के कोई और न था.

‘‘उस के पिता ने कहा कि मालिनी जब तक चाहे उन के घर में सुरक्षित रह सकती है लेकिन उसे पुलिस में ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करानी होगी. मु झे तो समय से होस्टल पहुंचना था, सो अभय अकेला ही

मालिनी को ले कर थाने गया. फिर उस की अमेरिका में उस के घर वालों से बात करवाई. उन्होंने आश्वासन दिया कि वे पुनीत से बात करेंगे. उस जमाने में मोबाइल तो थे नहीं, ईमेल की सुविधा भी बहुत कम थी, सो रोज बात नहीं हो पाती थी.

‘‘खैर, अभय और उस के पिता ने मालिनी का बहुत साथ दिया, उस की देखभाल के लिए नौकरानी भी रख दी. लेकिन मालिनी के ससुराल वालों ने उस पर चोरी कर के घर से भागने

के आरोप में उसे गिरफ्तार करवा दिया. अभय

के पिता ने अपने संपर्क द्वारा उस की तुरंत जमानत तो करवा दी लेकिन इस से मालिनी का विदेश जाना खटाई में पड़ गया. पहले ही उसे कहीं दाखिला न मिलने के कारण वीजा नहीं

मिल रहा था. और जैसे यह काफी नहीं था,

पुनीत ने बदचलनी का आरोप लगा कर उसे तलाक का नोटिस भिजवा दिया. पुनीत को यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल चुका था और पार्टटाइम जौब भी, अब उसे मालिनी के

परिवार की मदद की जरूरत नहीं थी और वैसे भी, उस ने यह पूछ कर उन का मुंह बंद कर दिया था कि मालिनी किस रिश्ते से अभय के घर में रह रही है?

‘‘मालिनी के अमेरिका जाने का कोई बनाव नहीं बन रहा था. भाई वृद्ध मातापिता को वापस भेजना नहीं मान रहे थे क्योंकि वे भारत में सब समेट कर बेटों के पास गए थे, एक गर्भवती बेटी के सहारे दोबारा यहां व्यवस्थित होना आसान

नहीं था.

‘‘एक बार फिर अभय मालिनी का संबल बना, सहर्ष मालिनी को अपनाकर उस की बेटी को अपना नाम दिया और भरपूर प्यार भी, मांबाप के साथ हुए हादसे के कारण वह अब तक हार्ट फ्री था. मगर अब इन चक्करों में पड़ने के कारण अभय की पढ़ाई का बहुत हरजा हुआ और उस का चयन आईएएस के बजाय आयकर विभाग में हुआ. लेकिन उसे इस का कोई मलाल नहीं है, कर्मठता से तरक्की करते हुए बीवीबेटी के साथ बेहद खुश है…’’

‘‘लेकिन, मम्मी?’’ पुन्नी ने चित्रा की बात काटी, ‘‘मम्मी तो अभी भी उसी माताजी के दब्बू बेटे की तसवीर के आगे आंसू बहा रही हैं. शर्म आती है उन्हें मम्मी कहते हुए.’’

‘‘शर्म तो मु झे भी आती है उसे अपनी सहेली कहते हुए लेकिन पुन्नी, पहले

प्यार का नशा शायद कभी नहीं उतरता. इसे विडंबना ही कहेंगे कि अभय का पहला प्यार मालिनी है और मालिनी का पहला प्यार तो पुनीत अभी तक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘लेकिन मेरे लिए सब से बढ़ कर मेरे पापा हैं और आज से मैं वही करूंगी जो मेरे जन्मदाता का नहीं, मु झे अनमोल जीवन देने वाले पापा का सपना है,’’ पुन्नी ने दृढ़ता से कहा.

‘‘उस का सपना तो तेरी शादी नीलाभ से करने का है.’’

‘‘जो उन्होंने मेरी आंखों में देख कर

अपनी आंखों में बसाया है, पापा और मेरे बीच

में एक अदृश्य मोहपाश है जिसे मैं कभी टूटने नहीं दूंगी,’’ पुन्नी ने विह्वल मगर दृढ़ स्वर में कहा. चित्रा ने भावविभोर हो कर उसे गले से लगा लिया.

फैसला: क्या रवि और सविता का कामयाब हुआ प्यार

मैं अपने सहयोगियों के साथ औफिस की कैंटीन में बैठा था कि अचानक सविता दरवाजे पर नजर आई. खूबसूरती के साथसाथ उस में गजब की सैक्स अपील भी है. जिस की भी नजर उस पर पड़ी, उस की जबान को झटके से ताला लग गया.

‘‘रवि, लंच के बाद मुझ से मिल लेना,’’ यह मुझ से दूर से ही कह कर वह अपने रूम की तरफ चली गई.

मेरे सहयोगियों को मुझे छेड़ने का मसाला मिल गया. ‘तेरी तो लौटरी निकल आई है, रवि… भाभी तो मायके में हैं. उन्हें क्या पता कि पतिदेव किस खूबसूरत बला के चक्कर में फंसने जा रहे हैं… ऐश कर ले सविता के साथ. हम अंजू भाभी को कुछ नहीं बताएंगे…’ उन सब के ऐसे हंसीमजाक का निशाना मैं देर तक बना रहा.हमारे औफिस में तलाकशुदा सविता की रैपुटेशन बड़ी अजीब सी है. कुछ लोग उसे जबरदस्त फ्लर्ट स्त्री मानते हैं और उन की इस बात में मैं ने उस का नाम 5-6 ऐसे पुरुषों से जुड़ते देखा है, जिन्हें सीमित समय के लिए ही उस के प्रेमियों की श्रेणी में रखा  जा सकता है. उन में से 2 उस के आज भी अच्छे दोस्त हैं. बाकियों से अब उस की साधारण दुआसलाम ही है.

सविता के करीब आने की इच्छा रखने वालों की सूची तो बहुत लंबी होगी, पर वह इन दिलफेंक आशिकों को बिलकुल घास नहीं डालती. उस ने सदा अपने प्रेमियों को खुद चुना है और वे हमेशा विवाहित ही रहे हैं. मैं तो पिछले 2 महीनों से अपनी विवाहित जिंदगी में आई टैंशन व परेशानियों का शिकार बना हुआ था. अंजू 2 महीने से नाराज हो कर मायके में जमी हुई थी. अपने गुस्से के चलते मैं ने न उसे आने को कहा और न ही लेने गया. समस्या ऐसी उलझी थी कि उसे सुलझाने का कोई सिरा नजर नहीं आ रहा था. मेरा अंदाजा था कि सविता ने मुझे पिछले दिनों जरूरत से ज्यादा छुट्टियां लेने की सफाई देने को बुलाया है. तनाव के कारण ज्यादा शराब पी लेने से सुबह टाइम से औफिस आने की स्थिति में मैं कई बार नहीं रहा था. लंच के बाद मैं ने सविता के कक्ष में कदम रखा, तो उस ने बड़ी प्यारी, दिलकश मुसकान होंठों पर ला कर मेरा स्वागत किया.

‘‘हैलो, रवि, कैसे हो?’’ कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए उस ने दोस्ताना लहजे में वार्त्तालाप आरंभ किया.

‘‘अच्छा हूं, तुम सुनाओ,’’ आगे झूठ बोलने के लिए खुद को तैयार करने के चक्कर में मैं कुछ बेचैन हो गया था.

‘‘तुम से एक सहायता चाहिए.’’

अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए मैं ने पूछा, ‘‘मैं क्या कर सकता हूं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ दिन पहले एक पार्टी में मैं तुम्हारे एक अच्छे दोस्त अरुण से मिली थी. वह तुम्हारे साथ कालेज में पढ़ता था.’’

‘‘वह जो बैंक में सर्विस करता है?’’

‘‘हां, वही. उस ने बताया कि तुम बहुत अच्छा गिटार बजाते हो.’’

‘‘अब उतना अच्छा अभ्यास नहीं रहा है,’’ अपने इकलौते शौक की चर्चा छिड़ जाने पर मैं मुसकरा पड़ा.

‘‘मेरे दिल में भी गिटार सीखने की तीव्र इच्छा पैदा हुई है, रवि. प्लीज कल शनिवार को मुझे एक अच्छा सा गिटार खरीदवा दो.’’

बड़े अपनेपन से किए गए सविता के आग्रह को टालने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं ने उस के साथ बाजार जाना स्वीकार किया, तो वह किसी बच्चे की तरह खुश हो गई.

‘‘अंजू मायके गई हुई है न?’’

‘‘हां,’’ अपनी पत्नी के बारे में सवाल पूछे जाने पर मेरे होंठों से मुसकराहट गायब हो गई.

‘‘तब तो तुम कल सुबह नाश्ता भी मेरे साथ करोगे. मैं तुम्हें गोभी के परांठे खिलाऊंगी.’’

‘‘अरे, वाह. तुम्हें कैसे मालूम कि मैं उन का बड़ा शौकीन हूं?’’

‘‘तुम्हारे दोस्त अरुण ने बताया था.’’

‘‘मैं कल सुबह 9 बजे तक पहुंचूं?’’

‘‘हां, चलेगा.’’

सविता ने दोस्ताना अंदाज में मुसकराते हुए मुझे विदा किया. मेरे आए दिन छुट्टी लेने के विषय पर चर्चा ही नहीं छिड़ी थी, लेकिन अपने सहयोगियों को मैं सच्ची बात बता देता, तो वे मेरा जीना मुश्किल कर देते. इसलिए उन से बोला, ‘‘ज्यादा छुट्टियां न लेने के लिए लैक्चर सुन कर आ रहा हूं.’’ यह झूठ बोल कर मैं अपने काम में व्यस्त हो गया. पिछले 2 महीनों में वह पहली शुक्रवार की रात थी जब मैं शराब पी कर नहीं सोया. कारण यही था कि मैं सोते रह जाने का खतरा नहीं उठाना चाहता था. सविता के साथ पूरा दिन गुजारने का कार्यक्रम मुझे एकाएक जोश और उत्साह से भर गया था. पिछले 2 महीनों से दिलोदिमाग पर छाए तनाव और गुस्से के बादल फट गए थे. कालेज के दिनों में जब मैं अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने जाता था, तब बड़े सलीके से तैयार होता था. अगले दिन सुबह भी मैं ढंग से तैयार हुआ. ऐसा उत्साह और खुशी दिलोदिमाग पर छाई थी, मानो पहली डेट पर जा रहा हूं. सविता पर पहली नजर पड़ी तो उस के रंगरूप ने मेरी आंखें ही चौंधिया दीं. नीली जींस और काले टौप में वह बहुत आकर्षक लग रही थी. उस पल से ही उस जादूगरनी का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा. दिल की धड़कनें बेकाबू हो चलीं. मैं उस के इशारे पर नाचने को एकदम तैयार था. फिर हंसीखुशी के साथ बीतते समय को जैसे पंख लग गए. कब सुबह से रात हुई, पता ही नहीं चला.

सविता जैसी फैशनेबल, आधुनिक स्त्री से खाना बनाने की कला में पारंगत होने की उम्मीद कम होती है, लेकिन उस सुबह उस के बनाए गोभी के परांठे खा कर मन पूरी तरह तृप्त हो गया. प्यारी और मीठीमीठी बातें करना उसे खूब आता था. कई बार तो मैं उस का चेहरा मंत्रमुग्ध सा देखता रह जाता और उस की बात बिलकुल भी समझ में नहीं आती.

‘‘कहां हो, रवि? मेरी बात सुन नहीं रहे हो न?’’ वह नकली नाराजगी दर्शाते हुए शिकायत करती और मैं बुरी तरह झेंप उठता.

मैं ने उसे स्वादिष्ठ परांठे खिलाने के लिए धन्यवाद दिया तो उस ने सहजता से मुसकराते हुए कहा, ‘‘किसी अच्छे दोस्त के लिए कुकिंग करना मुझे पसंद है. मुझे भी बड़ा मजा आया है.’’

‘‘मुझे तुम अपना अच्छा दोस्त मानती हो?’’

‘‘बिलकुल,’’ उस ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘कब से?’’

‘‘इस सवाल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण एक दूसरा सवाल है, रवि.’’

‘‘कौन सा?’’

‘‘क्या तुम आगे भी मेरे अच्छे दोस्त बने रहना चाहोगे?’’ उस ने मेरी आंखों में गहराई से झांका.

‘‘बिलकुल बना रहना चाहूंगा, पर क्या मुझे कुछ खास करना पड़ेगा तुम्हारी दोस्ती पाने के लिए?’’

‘‘शायद… लेकिन इस विषय पर हम बाद में बातें करेंगे. अब गिटार खरीदने चलें?’’ सवाल का जवाब देना टाल कर सविता ने मेरी उत्सुकता को बढ़ावा ही दिया.

हमारे बीच बातचीत बड़ी सहजता से हो रही थी. हमें एकदूसरे का साथ इतना भा रहा था कि कहीं भी असहज खामोशी का सामना नहीं करना पड़ा. हमारे बीच औफिस से जुड़ी बातें बिलकुल नहीं हुईं. टीवी सीरियल, फिल्म, खेल, राजनीति, फैशन, खानपान जैसे विषयों पर हमारे बीच दिलचस्प चर्चा खूब चली. उस ने अंजू से जुड़ा कोई सवाल मुझ से पूछ कर बड़ी कृपा की. हां, उस ने अपने भूतपूर्व पति संजीव से अपने संबंधों के बारे में, मेरे बिना पूछे ही जानकारी दे दी.

‘‘संजीव से मेरा तलाक उस की जिंदगी में आई एक दूसरी औरतके कारण हुआ था, रवि. वह औरत मेरी भी अच्छी सहेली थी,’’ अपने बारे में बताते हुए सविता दुखी या परेशान बिलकुल नजर नहीं आ रही थी.

‘‘तो पति ने तुम्हारी सहेली के साथ मिल कर तुम्हें धोखा दिया था?’’ मैं ने सहानुभूतिपूर्ण लहजे में टिप्पणी की.

‘‘हां, पर एक कमाल की बात बताऊं?’’

‘‘हांहां.’’

‘‘मुझे पति से खूब नाराजगी व शिकायत रही. पर वंदना नाम की उस दूसरी औरत के प्रति मेरे दिल में कभी वैरभाव नहीं रहा.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘वंदना का दिल सोने का था, रवि. उस के साथ मैं ने बहुत सारा समय हंसतेमुसकराते गुजारा था. यदि उस ने वह गलत कदम न उठाया होता तो वह मेरी सब से अच्छी दोस्त होती.’’

‘‘लगता है तुम्हें पति से ज्यादा अपनी जिंदगी में वंदना की कमी खलती है?’’

‘‘अच्छे दोस्त बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, रवि. शादी कर के एक पति या पत्नी तो हर कोई पा लेता है.’’

‘‘यह तो बड़े पते की बात कही है तुम ने.’’

‘‘कोई बात पते की तभी होती है जब उस का सही महत्त्व भी इंसान समझ ले. बोलबोल कर मेरा गला सूख गया है. अब कुछ पिलवा तो दो, जनाब,’’ बड़ी कुशलता से उस ने बातचीत का विषय बदला और मेरी बांह पकड़ कर एक रेस्तरां की दिशा में बढ़ चली.

उस के स्पर्श का एहसास देर तक मेरी नसों में सनसनाहट पैदा करता रहा. सविता की फरमाइश पर हम ने एक फिल्म भी देख डाली. हौल में उस ने मेरा हाथ भी पकड़े रखा. मैं ने एक बार हिम्मत कर उस के बदन के साथ शरारत करनी चाही, तो उस ने मुझे प्यार से घूर कर रोक दिया. ‘‘शांति से बैठो और मूवी का मजा लो रवि,’’ उस की फुसफुसाहट में कुछ ऐसी अदा थी कि मेरा मन जरा भी मायूसी और चिढ़ का शिकार नहीं बना.

लंच हम ने एक बढि़या होटल में किया. फिर अच्छी देखपरख के बाद गिटार खरीदने में मैं ने उस की मदद की. उस के दिल में अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए वह गिटार मैं उसे अपनी तरफ से उपहार में देना चाहता था, पर वह राजी नहीं हुई.

‘‘तुम चाहो तो मुझे गिटार सिखाने की जिम्मेदारी ले सकते हो,’’ वह बोली तो उस के इस प्रस्ताव को सुन कर मैं फिर से खुश हो गया.

जब हम सविता के घर वापस लौटे, तो रात के 8 बजने वाले थे. उस ने कौफी पिलाने की बात कह कर मेरी और ज्यादा समय उस के साथ गुजारने की इच्छा पूरी कर दी. वह कौफी बनाने किचन में गई तो मैं भी उस के पीछेपीछे किचन में पहुंच गया. उस के नजदीक खड़ा हो कर मैं ऊपर से हलकीफुलकी बातें करने लगा, पर मेरे मन में अजीब सी उत्तेजना लगातार बढ़ती जा रही थी. अंजू के प्यार से लंबे समय तक वंचित रहा मेरा मन सविता के सामीप्य की गरमाहट को महसूस करते हुए दोस्ती की सीमा को तोड़ने के लिए लगभग तैयार हो चुका था. तभी सविता ने मेरी तरफ घूम कर मुझे देखा. उस ने जरूर मेरी प्यासी नजरों को पढ़ लिया होगा, क्योंकि अचानक मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे ड्राइंगरूम की तरफ ले चली.

मैं ने रास्ते में उसे बांहों में भरने की कोशिश की, तो उस ने बिना घबराए मुझ से कहा, ‘‘रवि, मैं तुम से कुछ खास बातें करना चाहती हूं. उन बातों को किए बिना तुम को मैं दोस्त से प्रेमी नहीं बना सकती हूं.’’ उसे नाराज कर के कुछ करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता था. मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रण में कर के ड्राइंगरूम में आ बैठा और सविता बेहिचक मेरी बगल में बैठ गई.

मेरा हाथ पकड़ कर उस ने हलकेफुलके अंदाज में पूछा, ‘‘मेरे साथ आज का दिन कैसा गुजरा है, रवि?’’

‘‘मेरी जिंदगी के सब से खूबसूरत दिनों में से एक होगा आज का दिन,’’ मैं ने सचाई बता दी.

‘‘तुम आगे भी मुझ से जुड़े रहना चाहोगे?’’

‘‘हां… और तुम?’’ मैं ने उस की आंखों में गहराई तक झांका.

‘‘मैं भी,’’ उस ने नजरें हटाए बिना जवाब दिया, ‘‘लेकिन अंजू के विषय में सोचे बिना हम अपने संबंधों को मजबूत आधार नहीं दे सकते.’’

‘‘अंजू को बीच में लाना जरूरी है क्या?’’ मेरा स्वर बेचैनी से भर उठा.

‘‘तुम उसे दूर रखना चाहोगे?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह तुम्हें मेरी प्रेमिका के रूप में स्वीकार नहीं करेगी.’’

‘‘और तुम मुझे अपनी प्रेमिका बनाना चाहते हो?’’

‘‘क्या तुम ऐसा नहीं चाहती हो?’’ मेरी चिढ़ बढ़ रही थी.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘रवि, लोग मुझे फ्लर्ट मानते हैं और तुम्हें भी जरूर लगा होगा कि मैं तुम्हें अपने नजदीक आने का खुला निमंत्रण दे रही हूं. इस बात में सचाई है क्योंकि मैं चाहती थी कि तुम मेरा आकर्षण गहराई से महसूस करो. ऐसा करने के पीछे मेरी क्या मंशा है, मैं तुम्हें बताऊंगी. पर पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो, प्लीज.’’

‘‘पूछो,’’ उस को भावुक होता देख मैं भी संजीदा हो उठा.

‘‘क्या तुम अंजू को तलाक देने का फैसला कर चुके हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ मैं ने चौंकते हुए जवाब दिया.

‘‘मुझे तुम्हारे दोस्त अरुण से मालूम पड़ा कि अंजू तुम से नाराज हो कर पिछले 2 महीने से मायके में रह रही है. तुम उसे वापस क्यों नहीं ला रहे हो?’’

‘‘हमारे बीच गंभीर मनमुटाव चल रहा है. उस को अपनी जबान…’’

‘‘मुझे पूरा ब्योरा बाद में बताना रवि, पर क्या तुम्हें उस की याद नहीं आती है?’’ सविता ने मुझे कोमल लहजे में टोक कर सवाल पूछा.

‘‘आती है… जरूर आती है, पर ताली एक हाथ से तो नहीं बज सकती है, सविता.’’

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर मिल कर साथ रहने का आनंद तो तुम दोनों ही खो रहे हो न?’’

‘‘हां, पर…’’

‘‘देखो, कुसूरवार तो तुम दोनों ही होंगे… कम या ज्यादा की बात महत्त्वपूर्ण नहीं है, रवि. इस मनमुटाव के चलते जिंदगी के कीमती पल तो तुम दोनों ही बेकार गवां रहे हो या नहीं?’’

‘‘तुम मुझे क्या समझाना चाह रही हो?’’ मेरा मूड खराब होता जा रहा था.

‘‘रवि, मेरी बात ध्यान से सुनो,’’ सविता का स्वर अपनेपन से भर उठा, ‘‘आज तुम्हारे साथ सारा दिन मौजमस्ती के साथ गुजार कर मैं ने तुम्हें अंजू की याद दिलाने की कोशिश की है. उस से दूर रह कर तुम उन सब सुखसुविधाओं से खुद को वंचित रख रहे हो जिन्हें एक अपना समझने वाली स्त्री ही तुम्हें दे सकती है.

‘‘मेरा आए दिन ऐसे पुरुषों से सामना होता है, जो अपनी अच्छीखासी पत्नी से नहीं, बल्कि मुझ से संबंध बनाने को उतावले नजर आते हैं

‘‘मेरे साथ उन का जैसा रोमांटिक और हंसीखुशी भरा व्यवहार होता है, अगर वैसा ही अच्छा व्यवहार वे अपनी पत्नियों के साथ करें, तो वे भी उन्हें किसी प्रेमिका सी प्रिय और आकर्षक लगने लगेंगी.

‘‘तुम मुझे बहुत पसंद हो, पर मैं तुम्हें और अंजू दोनों को ही अपना अच्छा दोस्त बनाना चाहूंगी. हमारे बीच इसी तरह का संबंध हम तीनों के लिए हितकारी होगा.

‘‘तुम चाहो तो मेरे प्रेमी बन कर सिर्फ आज रात मेरे साथ सो सकते हो. लेकिन तुम ने ऐसा किया, तो वह मेरी हार होगी. कल से हम सिर्फ सहयोगी रह जाएंगे.

‘‘तुम ने दोस्त बनने का निर्णय लिया, तो मेरी जीत होगी. यह दोस्ती का रिश्ता हम तीनों के बीच आजीवन चलेगा, मुझे इस का पक्का विश्वास है.’’

‘‘बोलो, क्या फैसला करते हो, रवि? अंजू और अपने लिए मेरी आजीवन दोस्ती चाहोगे या सिर्फ 1 रात के लिए मेरी देह का सुख?’’

मुझे फैसला करने में जरा भी वक्त नहीं लगा. सविता के समझाने ने मेरी आंखें खोल दी थीं. मुझे अंजू एकदम से बहुत याद आई और मन उस से मिलने को तड़प उठा.

‘‘मैं अभी अंजू से मिलने और उसे वापस लाने को जा रहा हूं, मेरी अच्छी दोस्त.’’ मेरा फैसला सुन कर सविता का चेहरा फूल सा खिल उठा और मैं मुसकराता हुआ विदा लेने को उठ खड़ा हुआ

उलझे रिश्ते- भाग 2: क्या प्रेमी से बिछड़कर खुश रह पाई रश्मि

रश्मि कुछ नहीं बोल पाई. उसी दिन दिल्ली से लड़का संभव अपने छोटे भाई राजीव और एक रिश्तेदार के साथ रश्मि को देखने आया. रश्मि को देखते ही सब ने पसंद कर लिया. रिश्ता फाइनल हो गया. जब यह बात सुधीर को रश्मि की एक सहेली से पता चली तो उस ने पूरी गली में कुहराम मचा दिया,  ‘‘देखता हूं कैसे शादी करते हैं. रश्मि की शादी होगी तो सिर्फ मेरे साथ. रश्मि मेरी है.’’ पागल सा हो गया सुधीर. इधरउधर बेतहाशा दौड़ा गली में. पत्थर मारमार कर रश्मि के घर की खिड़कियों के शीशे तोड़ डाले. रश्मि के पिता के मन में डर बैठ गया कि कहीं ऐसा न हो कि लड़के वालों को इस बात का पता चल जाए. तब तो इज्जत चली जाएगी. सब हालात देख कर तय हुआ कि रश्मि की शादी किसी दूसरे शहर में जा कर करेंगे. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होगी. अब एक तरफ प्यार, दूसरी तरफ मांबाप के प्रति जिम्मेदारी. बहुत तड़पी, बहुत रोई रश्मि और एक दिन उस ने अपनी भाभी से कहा, ‘‘मैं अपने प्यार का बलिदान देने को तैयार हूं. परंतु मेरी एक शर्त है. मुझे एक बार सुधीर से मिलने की इजाजत दी जाए. मैं उसे समझाऊंगी. मुझे पूरी उम्मीद है वह मान जाएगा.’’

भाभी ने घर वालों से छिपा कर रश्मि को सुधीर से आखिरी बार मिलने की इजाजत दे दी. रश्मि को अपने करीब पा कर फूटफूट कर रोया सुधीर. उस के पांवों में गिर पड़ा. लिपट गया किसी नादान छोटे बच्चे की तरह,  ‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ रश्मि. मैं नहीं जी  पाऊंगा, तुम्हारे बिना. मर जाऊंगा.’’ यंत्रवत खड़ी रह गई रश्मि. सुधीर की यह हालत देख कर वह खुद को नहीं रोक पाई. लिपट गई सुधीर से और फफक पड़ी, ‘‘नहीं सुधीर, तुम ऐसा मत कहो, तुम बच्चे नहीं हो,’’ रोतेरोते रश्मि ने कहा.

‘‘नहीं रश्मि मैं नहीं रह पाऊंगा, तुम बिन,’’ सुबकते हुए सुधीर ने कहा.

‘‘अगर तुम ने मुझ से सच्चा प्यार किया है तो तुम्हें मुझ से दूर जाना होगा. मुझे भुलाना होगा,’’ यह सब कह कर काफी देर समझाती रही रश्मि और आखिर अपने दिल पर पत्थर रख कर सुधीर को समझाने में सफल रही. सुधीर ने उस से वादा किया कि वह कोई बखेड़ा नहीं करेगा. ‘‘जब भी मायके आऊंगी तुम से मिलूंगी जरूर, यह मेरा भी वादा है,’’ रश्मि यह वादा कर घर लौट आई. पापा किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे, इसलिए एक दिन रात को घर के सब लोग चले गए एक अनजान शहर में. रश्मि की शादी दिल्ली के एक जानेमाने खानदान में हो गई. ससुराल आ कर रश्मि को पता चला कि उस के पति संभव ने शादी तो उस से कर ली पर असली शादी तो उस ने अपने कारोबार से कर रखी है. देर रात तक कारोबार का काम निबटाना संभव की प्राथमिकता थी. रश्मि देर रात तक सीढि़यों में बैठ कर संभव का इंतजार करती. कभीकभी वहीं बैठेबैठे सो जाती. एक तरफ प्यार की टीस, दूसरी तरफ पति की उपेक्षा से रश्मि टूट कर रह गई. ससुराल में पासपड़ोस की हमउम्र लड़कियां आतीं तो रश्मि से मजाक करतीं  ‘‘आज तो भाभी के गालों पर निशान पड़ गए. भइया ने लगता है सारी रात सोने नहीं दिया.’’ रश्मि मुसकरा कर रह जाती. करती भी क्या, अपना दर्द किस से बयां करती? पड़ोस में ही महेशजी का परिवार था. उन के एक कमरे की खिड़की रश्मि के कमरे की तरफ खुलती थी. यदाकदा रात को वह खिड़की खुली रहती तो महेशजी के नवविवाहित पुत्र की प्रणयलीला रश्मि को देखने को मिल जाती. तब सिसक कर रह जाने के सिवा और कोई चारा नहीं रह जाता था रश्मि के पास.

संभव जब कभी रात में अपने कामकाज से जल्दी फ्री हो जाता तो रश्मि के पास चला आता. लेकिन तब तक संभव इतना थक चुका होता कि बिस्तर पर आते ही खर्राटे भरने लगता. एक दिन संभव कारोबार के सिलसिले में बाहर गया था और रश्मि तपती दोपहर में  फर्स्ट फ्लोर पर बने अपने कमरे में सो रही थी. अचानक उसे एहसास हुआ कोई उस के बगल में आ कर लेट गया है. रश्मि को अपनी पीठ पर किसी मर्दाना हाथ का स्पर्श महसूस हुआ. वह आंखें मूंदे पड़ी रही. वह स्पर्श उसे अच्छा लगा. उस की धड़कनें तेज हो गईं. सांसें धौंकनी की तरह चलने लगीं. उसे लगा शायद संभव है, लेकिन यह उस का देवर राजीव था. उसे कोई एतराज न करता देख राजीव का हौसला बढ़ गया तो रश्मि को कुछ अजीब लगा. उस ने पलट कर देखा तो एक झटके से बिस्तर पर उठ बैठी और कड़े स्वर में राजीव से कहा कि जाओ अपने रूम में, नहीं तो तुम्हारे भैया को सारी बात बता दूंगी, तो वह तुरंत उठा और चला गया. उधर सुधीर ने एक दिन कहीं से रश्मि की ससुराल का फोन नंबर ले कर रश्मि को फोन किया तो उस ने उस से कहा कि सुधीर, तुम्हें मैं ने मना किया था न कि अब कभी मुझ से संपर्क नहीं करना. मैं ने तुम से प्यार किया था. मैं उन यादों को खत्म नहीं करना चाहती. प्लीज, अब फिर कभी मुझ से संपर्क न करना. तब उम्मीद के विपरीत रश्मि के इस तरह के बरताव के बाद सुधीर ने फिर कभी रश्मि से संपर्क नहीं किया.

रश्मि अपने पति के रूखे और ठंडे व्यवहार से तो परेशान थी ही उस की सास भी कम नहीं थीं. रश्मि ने फिल्मों में ललिता पंवार को सास के रूप में देखा था. उसे लगा वही फिल्मी चरित्र उस की लाइफ में आ गया है. हसीन ख्वाबों को लिए उड़ने वाली रश्मि धरातल पर आ गई. संभव के साथ जैसेतैसे ऐडजस्ट किया उस ने परंतु सास से उस की पटरी नहीं बैठ पाई. संभव को भी लगा अब सासबहू का एकसाथ रहना मुश्किल है. तब सब ने मिल कर तय किया कि संभव रश्मि को ले कर अलग घर में रहेगा. कुछ ही दूरी पर किराए का मकान तलाशा गया और रश्मि नए घर में आ गई. अब तक उस के 2 प्यारेप्यारे बच्चे भी हो चुके थे. शादी के 12 साल कब बीत गए पता ही नहीं चला. नए घर में आ कर रश्मि के सपने फिर से जाग उठे. उमंगें जवां हो गईं. उस ने कार चलाना सीख लिया. पेंटिंग का उसे शौक था. उस ने एक से बढ़ कर एक पोट्रेट तैयार किए. जो देखता वह देखता ही रह जाता. अपने बेटे साहिल को पढ़ाने के लिए रश्मि ने हिमेश को ट्यूटर रख लिया. वह साहिल को पढ़ाने के लिए अकसर दोपहर बाद आता था जब संभव घर होता था. 28-30 वर्षीय हिमेश बहुत आकर्षक और तहजीब वाला अध्यापक था. रश्मि को उस का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक लगता था. खुले विचारों की रश्मि हिमेश से हंसबोल लेती. हिमेश अविवाहित था. उस ने रश्मि के हंसीमजाक को अलग रूप में देखा. उसे लगा कि रश्मि उसे पसंद करती है. लेकिन रश्मि के मन में ऐसा दूरदूर तक न था. वह उसे एक शिक्षक के रूप में देखती और इज्जत देती. एक दिन रश्मि घर पर अकेली थी. साहिल अपने दोस्त के घर गया था. हिमेश आया तो रश्मि ने कहा कि कोई बात नहीं, आप बैठिए. हम बातें करते हैं. कुछ देर में साहिल आ जाएगा.

उलझे रिश्ते- भाग 1: क्या प्रेमी से बिछड़कर खुश रह पाई रश्मि

दिनभर की भागदौड़. फिर घर लौटने पर पति और बच्चों को डिनर करवा कर रश्मि जब बैडरूम में पहुंची तब तक 10 बज चुके थे. उस ने फटाफट नाइट ड्रैस पहनी और फ्रैश हो कर बिस्तर पर आ गई. वह थक कर चूर हो चुकी थी. उसे लगा कि नींद जल्दी ही आ घेरेगी. लेकिन नींद न आई तो उस ने अनमने मन से लेटेलेटे ही टीवी का रिमोट दबाया. कोई न्यूज चैनल चल रहा था. उस पर अचानक एक न्यूज ने उसे चौंका दिया. वह स्तब्ध रह गई. यह क्या हुआ? सुधीर ने मैट्रो के आगे कूद कर सुसाइड कर लिया. उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. उस का मन किया कि वह जोरजोर से रोए. लेकिन उसे लगा कि कहीं उस का रोना सुन कर पास के कमरे में सो रहे बच्चे जाग न जाएं. पति संभव भी तो दूसरे कमरे में अपने कारोबार का काम निबटाने में लगे थे. रश्मि ने रुलाई रोकने के लिए अपने मुंह पर हाथ रख लिया, लेकिन काफी देर तक रोती रही. शादी से पूर्व का पूरा जीवन उस की आंखों के सामने घूम गया.

बचपन से ही रश्मि काफी बिंदास, चंचल और खुले मिजाज की लड़की थी. आधुनिकता और फैशन पर वह सब से ज्यादा खर्च करती थी. पिता बड़े उद्योगपति थे. इसलिए घर में रुपयोंपैसों की कमी नहीं थी. तीखे नैननक्श वाली रश्मि ने जब कालेज में प्रवेश लिया तो पहले ही दिन सुधीर से उस की आंखें चार हो गईं.

‘‘हैलो आई एम रश्मि,’’ रश्मि ने खुद आगे बढ़ कर सुधीर की तरफ हाथ बढ़ाया. किसी लड़की को यों अचानक हाथ आगे बढ़ाता देख सुधीर अचकचा गया. शर्माते हुए उस ने कहा, ‘‘हैलो, मैं सुधीर हूं.’’

‘‘कहां रहते हो, कौन सी क्लास में हो?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘अभी इस शहर में नया आया हूं. पापा आर्मी में हैं. बी.कौम प्रथम वर्ष का छात्र हूं.’’ सुधीर ने एक सांस में जवाब दिया.

‘‘ओह तो तुम भी मेरे साथ ही हो. मेरा मतलब हम एक ही क्लास में हैं,’’ रश्मि ने चहकते हुए कहा. उस दिन दोनों क्लास में फ्रंट लाइन में एकदूसरे के आसपास ही बैठे. प्रोफैसर ने पूरी क्लास के विद्यार्थियों का परिचय लिया तो पता चला कि रश्मि पढ़ाई में अव्वल है. कालेज टाइम के बाद सुधीर और रश्मि साथसाथ बाहर निकले तो पता चला कि सुधीर को पापा का ड्राइवर कालेज छोड़ गया था. रश्मि ने अपनी मोपेड बाहर निकाली और कहा, ‘‘चलो मैं तुम्हें घर छोड़ती हूं.’’

‘‘नहींनहीं ड्राइवर आने ही वाला है.’’

‘‘अरे, चलो भई रश्मि खा नहीं जाएगी,’’ रश्मि के कहने का अंदाज कुछ ऐसा था कि सुधीर उस की मोपेड पर बैठ गया. पूरे रास्ते रश्मि की चपरचपर चलती रही. उसे इस बात का खयाल ही नहीं रहा कि वह सुधीर से पूछे कि कहां जाना है. बातोंबातों में रश्मि अपने घर की गली में पहुंची, तो सुधीर ने कहा, ‘‘बस यही छोड़ दो.’’

‘‘ओह सौरी, मैं तो पूछना ही भूल गई कि आप को कहां छोड़ना है. मैं तो बातोंबातों में अपने घर की गली में आ गई.’’

‘‘बस यहीं तो छोड़ना है. वह सामने वाला मकान हमारा है. अभी कुछ दिन पहले ही किराए पर लिया है पापा ने.’’

‘‘अच्छा तो आप लोग आए हो हमारे पड़ोस में,’’ रश्मि ने कहा

‘‘जी हां.’’

‘‘चलो, फिर तो हम दोनों साथसाथ कालेज जायाआया करेंगे.’’ रश्मि और सुधीर के बाद के दिन यों ही गुजरते गए. पहली मुलाकात दोस्ती में और दोस्ती प्यार में जाने कब बदल गई पता ही न चला. रश्मि का सुधीर के घर यों आनाजाना होता जैसे वह घर की ही सदस्य हो. सुधीर की मम्मी रश्मि से खूब प्यार करती थीं. कहती थीं कि तुझे तो अपनी बहू बनाऊंगी. इस प्यार को पा कर रश्मि के मन में भी नई उमंगें पैदा हो गईं. वह सुधीर को अपने जीवनसाथी के रूप में देख कर कल्पनाएं करती. एक दिन सुधीर घर में अकेला था, तो उस ने रश्मि को फोन कर कहा, ‘‘घर आ जाओ कुछ काम है.’’

जब रश्मि पहुंची तो दरवाजे पर मिल गया सुधीर. बोला, ‘‘मैं एक टौपिक पढ़ रहा था, लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था. सोचा तुम से पूछ लेता हूं.’’

‘‘तो दरवाजा क्यों बंद कर रहे हो? आंटी कहां है?’’

‘‘यहीं हैं, क्यों चिंता कर रही हो? ऐसे डर रही हो जैसे अकेला हूं तो खा जाऊंगा,’’ यह कहते हुए सुधीर ने रश्मि का हाथ थाम उसे अपनी ओर खींच लिया. सुधीर के अचानक इस बरताव से रश्मि सहम गई. वह छुइमुई सी सुधीर की बांहों में समाती चली गई.

‘‘क्या कर रहे हो सुधीर, छोड़ो मुझे,’’ वह बोली लेकिन सुधीर ने एक न सुनी. वह बोला,  ‘‘आई लव यू रश्मि.’’

‘‘जानती हूं पर यह कौन सा तरीका है?’’ रश्मि ने प्यार से समझाने की कोशिश की,  ‘‘कुछ दिन इंतजार करो मिस्टर. रश्मि तुम्हारी है. एक दिन पूरी तरह तुम्हारी हो जाएगी.’’ परंतु सुधीर पर कोई असर नहीं हुआ. हद से आगे बढ़ता देख रश्मि ने सुधीर को धक्का दिया और हिरणी सी कुलांचे भरती हुई घर से बाहर निकल गई. उस रात रश्मि सो नहीं पाई. उसे सुधीर का यों बांहों में लेना अच्छा लगा. कुछ देर और रुक जाती तो…सोच कर सिहरन सी दौड़ गई. और एक दिन ऐसा आया जब पढ़ाई की आड़ में चल रहा प्यार का खेल पकड़ा गया. दोनों अब तक बी.कौम अंतिम वर्ष में प्रवेश कर चुके थे और एकदूजे में इस कदर खो चुके थे कि उन्हें आभास भी नहीं था कि इस रिश्ते को रश्मि के पिता और भाई कतई स्वीकार नहीं करेंगे. उस दिन रश्मि के घर कोई नहीं था. वह अकेली थी कि सुधीर पहुंच गया. उसे देख रश्मि की धड़कनें बढ़ गईं. वह बोली,  ‘‘सुधीर जाओ तुम, पापा आने वाले हैं.’’

‘‘तो क्या हो गया. दामाद अपने ससुराल ही तो आया है,’’ सुधीर ने मजाकिया लहजे में कहा.

‘‘नहीं, तुम जाओ प्लीज.’’

‘‘रुको डार्लिंग यों धक्के मार कर क्यों घर से निकाल रही हो?’’ कहते हुए सुधीर ने रश्मि को अपनी बांहों में भर लिया. तभी जो न होना चाहिए था वह हो गया. रश्मि के पापा ने अचानक घर में प्रवेश किया और दोनों को एकदूसरे की बांहों में समाया देख आगबबूला हो गए. फिर पता नहीं कितने लातघूंसे सुधीर को पड़े. सुधीर कुछ बोल नहीं पाया. बस पिटता रहा. जब होश आया तो अपने घर में लेटा हुआ था. सुधीर और रश्मि के परिवारजनों की बैठक हुई. सुधीर की मम्मी ने प्रस्ताव रखा कि वे रश्मि को बहू बनाने को तैयार हैं. फिर काफी सोचविचार हुआ. रश्मि के पापा ने कहा,  ‘‘बेटी को कुएं में धकेल दूंगा पर इस लड़के से शादी नहीं करूंगा. जब कोई काम नहीं करता तो क्या खाएगाखिलाएगा?’’ आखिर तय हुआ कि रश्मि की शादी जल्द से जल्द किसी अच्छे परिवार के लड़के से कर दी जाए. रश्मि और सुधीर के मिलने पर पाबंदी लग गई पर वे दोनों कहीं न कहीं मिलने का रास्ता निकाल ही लेते. और एक दिन रश्मि के पापा ने घर में बताया कि दिल्ली से लड़के वाले आ रहे हैं रश्मि को देखने. यह सुन कर रश्मि को अपने सपने टूटते नजर आए. उस ने कुछ नहीं खायापीया.

भाभी ने समझाया, ‘‘यह बचपना छोड़ो रश्मि, हम इज्जतदार खानदानी परिवार से हैं. सब की इज्जत चली जाएगी.’’

‘‘तो मैं क्या करूं? इस घर में बच्चों की खुशी का खयाल नहीं रखा जाता. दोनों दीदी कौन सी सुखी हैं अपने पतियों के साथ.’’

‘‘तेरी बात ठीक है रश्मि, लेकिन समाज, परिवार में ये बातें माने नहीं रखतीं. तेरे गम में पापा को कुछ हो गया तो…उन्होंने कुछ कर लिया तो सब खत्म हो जाएगा न.’’

सुबह की किरण: क्या पूरी हुई प्रीति और समीर की कहानी

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उलझे रिश्ते- भाग 3: क्या प्रेमी से बिछड़कर खुश रह पाई रश्मि

रश्मि चाय बना लाई और दोनों सोफे पर बैठ गए. रश्मि ने बताया कि वह राधाकृष्ण की एक बहुत बड़ी पोट्रेट तैयार करने जा रही है. उस में राधाकृष्ण के प्यार को दिखाया गया है. यह बताते हुए रश्मि अपने अतीत में डूब गई. उस की आंखों के सामने सुधीर का चेहरा घूम गया. हिमेश कुछ और समझ बैठा. उस ने एक हिमाकत कर डाली. अचानक रश्मि का हाथ थामा और ‘आई लव यू’ कह डाला. रश्मि को लगा जैसे कोई बम फट गया है. गुस्से से उस का चेहरा लाल हो गया. वह अचानक उठी और क्रोध में बोली, ‘‘आप उठिए और तुरंत यहां से चले जाइए. और दोबारा इस घर में पांव मत रखिएगा वरना बहुत बुरा होगा.’’ हिमेश को तो जैसे सांप सूंघ गया. रश्मि का क्रोध देख उस के हाथ कांपने लगे.

‘‘आ…आ… आप मुझे गलत समझ रही हैं मैडम,’’ उस ने कांपते स्वर में कहा.

‘‘गलत मैं नहीं समझ रही आप ने मुझे समझा है. एक शिक्षक के नाते मैं आप की इज्जत करती रही और आप ने मुझे क्या समझ लिया?’’ फिर एक पल भी नहीं रुका हिमेश. उस के बाद उस ने कभी रश्मि के घर की तरफ देखा भी नहीं. जब कभी साहिल ने पूछा रश्मि से तो उस से उस ने कहा कि सर बाहर रहने लगे हैं. रश्मि की जिंदगी फिर से दौड़ने लगी. एक दिन एक पांच सितारा होटल में लगी डायमंड ज्वैलरी की प्रदर्शनी में एक संभ्रात परिवार की 30-35 वर्षीय महिला ऊर्जा से रश्मि की मुलाकात हुई. बातों ही बातों में दोनों इतनी घुलमिल गईं कि दोस्त बन गईं. वह सच में ऊर्जा ही थी. गजब की फुरती थी उस में. ऊर्जा ने बताया कि वह अपने घर पर योगा करती है. योगा सिखाने और अभ्यास कराने योगा सर आते हैं. रश्मि को लगा वह भी ऊर्जा की तरह गठीले और आकर्षक फिगर वाली हो जाए तो मजा आ जाए. तब हर कोई उसे देखता ही रह जाएगा.

ऊर्जा ने स्वाति से कहा कि मैं योगा सर को तुम्हारा मोबाइल नंबर दे दूंगी. वे तुम से संपर्क कर लेंगे. रश्मि ने अपने पति संभव को मना लिया कि वह घर पर योगा सर से योगा सीखेगी. एक दिन रश्मि के मोबाइल घंटी बजी. उस ने देखा तो कोई नया नंबर था. रश्मि ने फोन उठाया तो उधर से आवाज आई,  ‘‘हैलो मैडम, मैं योगा सर बोल रहा हूं. ऊर्जा मैडम ने आप का नंबर दिया था. आप योगा सीखना चाहती हैं?’’‘‘जी हां मैं ने कहा था, ऊर्जा से,’’ रश्मि ने कहा.

‘‘तो कहिए कब से आना है?’’

‘‘किस टाइम आ सकते हैं आप?’’

‘‘कल सुबह 6 बजे आ जाता हूं. आप अपना ऐडै्रस नोट करा दें.’’

रश्मि ने अपना ऐड्रैस नोट कराया. सुबह 5.30 बजे का अलार्म बजा तो रश्मि जाग गई. योगा सर 6 बजे आ जाएंगे यही सोच कर वह आधे घंटे में फ्रैश हो कर तैयार रहना चाहती थी. बच्चे और पति संभव सो रहे थे. उन्हें 8 बजे उठने की आदत थी. रश्मि उठते ही बाथरूम में घुस गई. फ्रैश हो कर योगा की ड्रैस पहनी तब तक 6 बजने जा रहे थे कि अचानक डोरबैल बजी. योगा सर ही हैं यह सोच कर उस ने दौड़ कर दरवाजा खोला. दरवाजा खोला तो सामने खड़े शख्स को देख कर वह स्तब्ध रह गई. उस के सामने सुधीर खड़ा था. वही सुधीर जो उस की यादों में बसा रहता था.

‘‘तुम योगा सर?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘हां.’’

फिर सुधीर ने, ‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ कहा तो रश्मि हड़बड़ा गई.

‘‘हांहां आओ, आओ न प्लीज,’’ उस ने कहा. सुधीर अंदर आया तो रश्मि ने सोफे की तरफ इशारा करते हुए उसे बैठने को कहा. दोनों एकदूसरे के सामने बैठे थे. रश्मि को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले, क्या नहीं. सुधीर कहे या योगा सर. रश्मि सहज नहीं हो पा रही थी. उस के मन में सुधीर को ले कर अनेक सवाल चल रहे थे. कुछ देर में वह सामान्य हो गई, तो सुधीर से पूछ लिया, ‘‘इतने साल कहां रहे?’’

सुधीर चुप रहा तो रश्मि फिर बोली, ‘‘प्लीज सुधीर, मुझे ऐसी सजा मत दो. आखिर हम ने प्यार किया था. मुझे इतना तो हक है जानने का. मुझे बताओ, यहां तक कैसे पहुंचे और अंकलआंटी कहां हैं? तुम कैसे हो?’’ रश्मि के आग्रह पर सुधीर को झुकना पड़ा. उस ने बताया कि तुम से अलग हो कर कुछ टाइम मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ा रहा. फिर थोड़ा सुधरा तो शादी की, लेकिन पत्नी ज्यादा दिन साथ नहीं दे पाई. घरबार छोड़ कर चली गई और किसी और केसाथ घर बसा लिया. फिर काफी दिनों के इलाज के बाद ठीक हुआ तो योगा सीखतेसीखते योगा सर बन गया. तब किसी योगाचार्य के माध्यम से दिल्ली आ गया. मम्मीपापा आज भी वहीं हैं उसी शहर में. सुधीर की बातें सुन अंदर तक हिल गई रश्मि. यह जिंदगी का कैसा खेल है. जो उस से बेइंतहां प्यार करता था, वह आज किस हाल में है सोचती रह गई रश्मि. अजब धर्मसंकट था उस के सामने. एक तरफ प्यार दूसरी तरफ घरसंसार. क्या करे? सुधीर को घर आने की अनुमति दे या नहीं? अगर बारबार सुधीर घर आया तो क्या असर पड़ेगा गृहस्थी पर? माना कि किसी को पता नहीं चलेगा कि योगा सर के रूप में सुधीर है, लेकिन कहीं वह खुद कमजोर पड़ गई तो? उस के 2 छोटेछोटे बच्चे भी हैं. गृहस्थी जैसी भी है बिखर जाएगी. उस ने तय कर लिया कि वह सुधीर को योगा सर के रूप में स्वीकार नहीं करेगी. कहीं दूर चले जाने को कह देगी इसी वक्त.

‘‘देखो सुधीर मैं तुम से योगा नहीं सीखना चाहती,’’ रश्मि ने अचानक सामान्य बातचीत का क्रम तोड़ते हुए कहा.

‘‘पर क्यों रश्मि?’’

‘‘हमारे लिए यही ठीक रहेगा सुधीर, प्लीज समझो.’’

‘‘अब तुम शादीशुदा हो. अब वह बचपन वाली बात नहीं है रश्मि. क्या हम अच्छे दोस्त बन कर भी नहीं रह सकते?’’ सुधीर ने लगभग गिड़गिड़ाने के अंदाज में कहा.

‘‘नहीं सुधीर, मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी, जिस से मेरी गृहस्थी, मेरे बच्चों पर असर पड़े,’’ रश्मि ने कहा. सुधीर ने लाख समझाया पर रश्मि अपने फैसले पर अडिग रही. सुधीर बेचैन हो गया. सालों बाद उस का प्यार उस के सामने था, लेकिन वह उस की बात स्वीकार नहीं कर रहा था. आखिर रश्मि ने सुधीर को विदा कर दिया. साथ ही कहा कि दोबारा संपर्क की कोशिश न करे. सुधीर रश्मि से अलग होते वक्त बहुत तनावग्रस्त था. पर उस दिन के बाद सुधीर ने रश्मि से संपर्क नहीं किया. रश्मि ने तनावमुक्त होने के लिए कई नई फ्रैंड्स बनाईं और उन के साथ बहुत सी गतिविधियों में व्यस्त हो गई. इस से उस का सामाजिक दायरा बहुत बढ़ गया. उस दिन वह बहुत से बाहर के फिर घर के काम निबटा कर बैडरूम में पहुंची तो न्यूज चैनल पर उस ने वह खबर देखी कि सुधीर ने दिल्ली मैट्रो के आगे कूद कर सुसाइड कर लिया था. वह देर तक रोती रही. न्यूज उद्घोषक बता रही थी कि उस की जेब में एक सुसाइड नोट मिला है, जिस में अपनी मौत के लिए उस ने किसी को जिम्मेदार नहीं माना परंतु अपनी एक गुमनाम प्रेमिका के नाम पत्र लिखा है. रश्मि का सिर घूम रहा था. उस की रुलाई फूट पड़ी. तभी संभव ने अचानक कमरे में प्रवेश किया और बोला, ‘‘क्या हुआ रश्मि, क्यों रो रही हो? कोई डरावना सपना देखा क्या?’’ प्यार भरे बोल सुन रश्मि की रुलाई और फूट पड़ी. वह काफी देर तक संभव के कंधे से लग कर रोती रही. उस का प्यार खत्म हो गया था. सिर्फ यादें ही शेष रह गई थीं.

खुशियों के पल: कौन थी नीरजा

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