बबूल का पौधा- भाग 1 : अवंतिका ने कौनसा चुना था रास्ता

रात के लगभग 2 बजे अवंतिका पानी पीने के लिए रसोई में गई तो बेटे साहिल के कमरे की खिड़की पर हलकी रोशनी दिखाई दी. रोशनी का कभी कम तो कभी अधिक होना जाहिर कर रहा था कि साहिल अपने मोबाइल पर व्यस्त है. गुस्से में भुनभुनाती अवंतिका ने धड़ाक से कमरे का दरवाजा खोल दिया.

साहिल को मां के आने का पता तक नहीं चला क्योंकि उस ने कान में इयरफोन ठूंस रखे थे और आंखें स्क्रीन की रोशनी में उलझ हुई थीं.

‘‘क्या देख रहे हो इतनी रात गए? सुबह स्कूल नहीं जाना क्या?’’ अवंतिका ने साहिल को झकझरा.

मां को देखते ही वह हड़बड़ा गया, लेकिन उसे मां की यह हरकत जरा भी पसंद नहीं आई.

‘‘यह क्या बदतमीजी है? प्राइवेसी क्या सिर्फ आप लोगों की ही होती है, हमारी नहीं? मैं तो कभी इस तरह से आप के कमरे में नहीं घुसा,’’

साहिल जरा जोर से बोला. बेटे की तीखी प्रतिक्रिया से हालांकि अवंतिका सकते में थी, लेकिन उस ने किसी तरह खुद को संयत किया.

‘‘क्या देख रहे थे मोबाइल पर?’’ अवंतिका ने सख्ती से पूछा.

‘‘वैब सीरीज,’’ साहिल ने जवाब दिया.

अवंतिका ने मोबाइल छीन कर देखा. सीरीज सिक्सटीन प्लस थी.

‘‘बारह की उम्र और वैब सीरीज. अभी तो तुम टीन भी नहीं हुए और इस तरह की सीरीज देखते हो,’’ अवंतिका पर गुस्सा फिर हावी होने लगा.

साहिल ने कुछ नहीं कहा, लेकिन बिना कहे भी उस ने जाहिर कर दिया कि उसे मां की यह दखलंदाजी जरा भी नहीं सुहाई. अवंतिका उसे इसी हालत में छोड़ कर अपने कमरे में आ गई. पानी से भरी आंखें बारबार उसे रोने के लिए मजबूर कर रही थीं, मगर वह उन्हें रोके बैठी थी. रोए भी तो आखिर किस के कंधे पर सिर रख कर.

ये भी पढ़ें- – Romantic Story: जिंदगी जीने का हक

कोई एक कंधा थोड़ी नियत किया था उस ने अपनी खातिर. सुकेश का कंधा जरूर कहने को अपना था, लेकिन उस के अरमान थे ही इतने ऊंचे कि उसे कंधा नहीं आसमान चाहिए था.

अवंतिका ने आंखों को तो बहने से रोक लिया, लेकिन मन को बहने से भला कौन रोक सका है. इस बेलगाम घोड़े पर लगाम कोई बिरला ही लगा सकता है. अवंतिका ने भी मन के घोड़े की लगाम खोल दी. घोड़ा सरपट दौड़ता हुआ 15 बरस पीछे जा कर ठहर गया. यहां से अवंतिका को सबकुछ साफसाफ नजर आ रहा था…

अवंतिका को वह सब चाहिए था जो उस की निगाहों में ठहर जाए, फिर कीमत चाहे जो हो. कीमत की परवाह वह भला करती भी क्यों, हर समय कोई न कोई एटीएम सा उस की बगल में खड़ा जो होता था और उस एटीएम की पिन होती थी उस की अदाएं, उस की शोखियां.

जब वह अदा से अपने बाल झटक कर अपनी मनपसंद चीज पर उंगली रखती, तो क्या मजाल कि एटीएम काम न करे.

अवंतिका 24 की उस उम्र में महानगर आई थी जिसे वहां लोग बाली उम्र कहते थे. शादी के बाद छोटे शहर से महानगर में आई इस हसीन लड़की को अपनी खूबसूरती का बखूबी अंदाजा था. इस तरह का अंदाजा अकसर खूबसूरत लड़कियों को स्कूल छोड़तेछोड़ते हो ही जाता है.  कालेज छोड़तेछोड़ते तो यह पूरी तरह से पुख्ता हो जाता है. भंवरे की तरह मंडराते लड़कों का एक मुख्य काम यह भी तो होता है.

अवंतिका ने कालेज करने के बाद डिस्टैंस लर्निंग से एमबीए किया था. एक तो महानगर की ललचाती जिंदगी और दूसरे पति सुकेश के औफिस जाने के बाद काटने को दौड़ता अकेलापन… अवंतिका ने भी नौकरी करने का मानस बनाया. सुकेश ने भी थोड़ी हिचक के बाद अपनी रजामंदी दे दी तो हवा पर सवार अवंतिका अपने लिए काम तलाश करने लगी.

2-4 जगह बायोडाटा भेजने का बाद एक जगह से इंटरव्यू के लिए बुलावा आया. सुकेश के जोर देने पर वह साड़ी पहन कर इंटरव्यू देने के लिए गई. अवंतिका ने महसूस किया कि इंटरव्यू पैनल की दिलचस्पी उस के डौक्यूमैंट्स से अधिक उस की आकर्षक देहयष्टि में थी.

‘साड़ी से कातिल कोई पोशाक नहीं. तरीके से पहनी जाए तो कमबख्त बहुत कमाल लगती है,’ यह खयाल आते ही डाइरैक्टर के साथसाथ अवंतिका की निगाह भी साड़ी से झंकते अपनी कमर के कटाव पर चली गई. वह मुसकरा दी.

न जाने क्यों अवंतिका अपने चयन को ले कर आश्वस्त थी. और हुआ भी वही. अवंतिका का चयन डाइरैक्टर रमन की पर्सनल सैक्रेटरी के रूप में हो गया.

औफिस जौइन करने के लगभग 3 महीने बाद कंपनी की तरफ से उसे रिफ्रैशर कोर्स करने के लिए दिल्ली हैड औफिस भेजा गया. पहली बार घर से बाहर अकेली निकलती अवंतिका घबराई तो जरूर थी, लेकिन अंतत: वह अपना आत्मविश्वास बनाए रखने में कामयाब हुई.

इस कोर्स में कंपनी की अलगअलग शाखाओं से करीब 10 कर्मचारी आए थे. रोज शाम को क्लास के बाद कोई अकेले तो कोई किसी के साथ इधरउधर घूमने निकल जाता.

यह एक सप्ताह का कोर्स था. 5 दिन की ट्रेनिंग के बाद आज छठे दिन परीक्षा थी. अवंतिका सुखद आश्चर्य से भर उठी जब उस ने परीक्षक के रूप में अपने बौस रमन को देखा. 2 घंटे की परीक्षा के बाद पूरा दिन खाली था. अवंतिका की फ्लाइट अगले दिन सुबह की थी. रमन ने उस के सामने आउटिंग का प्रस्ताव रखा जिसे अवंतिका ने एक अवसर की तरह स्वीकार कर लिया.

मौल में घूमतेघूमते अवंतिका ने महसूस किया कि रमन उस की हर इच्छा पूरी करने को तत्पर लग रहा है. पहले तो अवंतिका ने इसे महज एक संयोग समझ, लेकिन फिर मन ही मन अपना वहम दूर करने का निश्चय किया.

टहलतेटहलते दोनों एक साडि़यों के शोरूम के सामने से गुजरे तो अवंतिका जानबूझ कर वहां ठिठक कर खड़ी हो गई. उस ने शरारत से साड़ी लपेट कर खड़ी डमी के कंधे से पल्लू उतारा और अपने कंधे पर डाल लिया. अब इतरा कर रमन की तरफ देखा. रमन ने अपनी अनामिका और अंगूठे को आपस में मिला कर ‘लाजवाब’ का इशारा किया. अवंतिका शरमा गई.

इस के बाद उस ने प्राइज टैग देखा और आश्चर्य से अपनी आंखें चौड़ी कीं. अवंतिका ने साड़ी का पल्लू वापस डमी के कंधे पर डाला और निराश सी वहां से हट गई. इस के बाद वे एक कैफे में चले गए.

अवंतिका अनमनी सी मेन्यू कार्ड पर निगाहों को सैर करवा रही थी और रमन की आंखें उस के चेहरे पर चहलकदमी कर रही थीं.

‘‘तुम और्डर करो, मैं अभी आता हूं,’’ कह कर रमन कैफे से बाहर निकल गया.

15 मिनट बाद रमन वापस आया. अब तक अवंतिका कौफी और सैंडविच और्डर कर चुकी थी. खापी कर दोनों गैस्ट हाउस चले गए.

ये भी पढ़ें- मोक्ष: क्या गोमती मोक्ष की प्राप्ति कर पाई?

रात लगभग 10 बजे रमन का कौल देख कर अवंतिका को जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ.  लेकिन जब उस ने उसे अपने कमरे में आने को कहा तब वह अवश्य चौंकी. ‘इतनी रात गए क्या कारण हो सकता है,’ सोच कर अवंतिका ने अपने टू पीस पर गाउन डाला और बैल्ट कसती हुई रमन के रूम की तरफ चल दी. रमन उसी का इंतजार कर रहा था.

‘‘हां, कहिए हुजूर, कैसे याद फरमाया?’’ अवंतिका ने आंखें नचाईं. एक शाम साथ बिताने के बाद अवंतिका उस से इतना तो खुल ही गई थी कि चुहल कर सके. अब उन के बीच औपचारिक रिश्ता जरा सा पर्सनल हो गया था.

‘‘बस, यों ही. मन किया तुम से बातें करने का,’’ रमन उस के जरा सा नजदीक आया.

‘‘वे तो फोन पर भी हो सकती थीं,’’ अवंतिका उस की सांसें अपनी पीठ पर महसूस कर रही थी. यह पहला अवसर था जब वह सुकेश के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के इतना नजदीक खड़ी थी. वह सिहर कर सिमट गई.

‘‘फोन पर बातें तो हो सकती हैं लेकिन यह नहीं,’’ कहते हुए रमन ने अवंतिका को उस साड़ी में लपेटते हुए अपनी बांहों में कस लिया. साड़ी को देखते ही अवंतिका खुशी से उछलती हुई पलटी और रमन के गले में बांहें डाल दी.

‘‘वाऊ, थैंक्स सर,’’ अवंतिका ने कहा.

‘‘सरवर औफिस में, यहां सिर्फ रमन,’’ कह कर रमन ने दोनों के बीच से पहले साड़ी की और उस के बाद गाउन की दीवार भी हटा दी.

यही वह पल था जिस ने अवंतिका के इस विश्वास को और भी अधिक मजबूत कर दिया था कि हुस्न चाहे तो क्या कुछ हासिल नहीं हो सकता. संसार का कोई सुख नहीं जो उस के चाहने पर कदमों में झक नहीं सकता. दुनिया में ऐसा कोई पुरुष नहीं जो बहकाने पर बहक नहीं सकता.

आगे पढ़ें- धीरेधीरे अवंतिका रमन की सैक्रेटरी कम…

ये भी पढ़ें- कोई नहीं: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

Romantic Story: सार्थक प्रेम- भाग 2- कौन था मृणाल का सच्चा प्यार

कहानी- मधु शर्मा

मृणाल ने इस बार बहुत धीमी और डरी आवाज में पूछा, ‘तो फिर आप मुझे कैसे जानते हैं?’ उस ने इस बार भी मृणाल के प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया. उस की इस खामोशी और गंभीरता ने मृणाल के दिमाग में एक द्वंद्व पैदा कर दिया कि यह व्यक्ति कैसे जानता है मुझे, मैं कहां मिली हूं इस से. फिर खुद को संभालते हुए बड़ी भद्रता के साथ फिर बात शुरू की. ‘सर, प्लीज आप बताइए न, आप मुझे कैसे जानते हैं, अगर आप मुझ से कभी मिले ही नहीं.’

‘मैं ने कब कहा कि मैं आप से कभी नहीं मिला.’

अरे, अभी तो कहा आप ने.’

‘आप ने शायद ठीक से सुना नहीं. मैं ने कहा, आप मुझ से कभी नहीं मिलीं.’

‘हां, तो एक ही बात है.’

‘एक  बात नहीं है.’ उस ने फिर से गंभीरता से जवाब दिया और मृणाल उस के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगी.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह जाने कि वह कौन है और उस व्यक्ति के चेहरे के भावों ने मृणाल के मन और दिमाग में जो अंतर्द्वंद्व पैदा कर दिया था, वह उन पर भी नियंत्रण नहीं रख पा रही थी. फिर अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘क्या करते हैं सर, आप यह तो बता दीजिए?’

और बहुत देर बाद उस ने फिर मुसकराहट के साथ जवाब दिया, ‘कुछ खास नहीं. आजकल कुछ लिखना शुरू किया है.’

‘मतलब आप किसी पत्रिका या फिर किसी तरह के लेख लिखते हैं. कुछ बताइए न अपने बारे में? दरअसल, मुझे भी पढ़नेलिखने का काफी शौक है.’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: ड्रीम डेट- आरव ने कैसे किया अपने प्यार का इजहार

‘मैं जानता हूं,’ उस व्यक्ति ने कहा. मृणाल ने इस बार चौंकते हुए ऊंची आवाज में कहा, ‘क्या आप यह भी जानते हैं. अब तो आप को अपने बारे में बताना ही पड़ेगा, नहीं तो मैं आप का पीछा नहीं छोड़ने वाली.’ मृणाल एक अबोध बच्चे की तरह जिद करने लगी. वह भूल गई कि वह एक अजनबी से बात कर रही है.

वह मृणाल की ओर प्रेम, स्नेह और वात्सल्य के भाव से गौर से देख कर हलके से मुसकराए जा रहा था और मृणाल ने भी अब तक अपने जीवन में किसी को भी अपने लिए इन तीनों भावों को एकसाथ लिए नहीं देखा था. फिर मृणाल ने खुद को संभालते और परिपक्वता दिखाते हुए पूछा, ‘बताइए न सर, जब तक आप बताएंगे नहीं, मेरे दिमाग के घोड़े दौड़ते रहेंगे.’

‘अरेअरे, आप परेशान मत होइए, मैं आप को परेशान बिलकुल नहीं करना चाहता. दरअसल, मैं एक लेखक हूं, छोटीमोटी कहानियां लिख लेता हूं. जैसे शायद आप ने पढ़ी हों और अपनी लिखी हुई कुछ कहानियों के शीर्षक वह मृणाल को बताने लगा.’

‘अच्छा, आप अनय शुक्ला हैं. सर, मैं तो आप की बहुत बड़ी फैन हूं. आप के लिखे कुछ उपन्यास मैं ने पढ़े हैं और आप का लिखा ‘एकतरफा प्रेम’ तो मुझे बहुत पसंद है.

‘लेकिन सर आप इतने बड़े सैलिब्रिटी हैं आप को कौन नहीं जानता पर आप मुझे कैसे जानते हैं. मैं तो एक सामान्य सी महिला हूं, जिसे घरपरिवार और अपने कार्यस्थल के चुनिंदा लोग ही जानते हैं. कभी किसी सामाजिक गतिविधि में भी मैं भाग नहीं लेती. मेरे लिए तो मेरा काम और मेरा घर बस यही मेरा जीवन है. बहुत सीमित सा दायरा है मेरा. फिर आप मुझे कैसे?’ कहते हुए मृणाल वहीं रुक गई. अपनी बात को पूरी किए बिना और इंतजार करने लगी उस के जवाब का पर वह कुछ सैकंड बोला नहीं, फिर उस ने बोलना शुरू किया.

‘देखिए मैडम, दरअसल आप मुझे नहीं जानतीं और अगर आज मेरे बारे में पता चला है तो मेरे काम से, यह काम भी मैं ने पिछले कुछ वर्षों से शुरू किया है. आप को याद है करीब 10 साल हुए होंगे आप उदयपुर में रहती थीं.’ उस की बातचीत काटते हुए मृणाल बोली, ‘हां, मेरे पति की 10 साल पहले उदयपुर में पोस्टिंग थी.’ फिर वह चुप हो गई. उसे लगा जैसे बीच में बात काट कर उस ने ठीक नहीं किया. उस व्यक्ति ने फिर से बोलना शुरू किया, ‘आप को याद है आप जहां रहती थीं वहां आप के बिलकुल बगल में एक बंगला था…’

‘हां, उस के मालिक पुणे में रहते थे,’ मृणाल ने कहा.

‘जी, उस समय मैं एक आर्किटैक्ट था. उस बंगले के रीकंस्ट्रक्शन का काम मैं ने ही करवाया था. इसलिए कुछ महीने मैं वहां रहा था. बगल वाले बंगले में मैं ने आप को अकसर बरामदे में बैठ कर कुछ पढ़तेलिखते या यों कह सकते हैं कि शायद आप की कुछ गतिविधियां जो मैं देख पाता था, देखता था.’

‘सर, इतने साल बाद भी मैं आप को याद हूं. ऐसे तो हम कितने लोगों को रोज देखा करते हैं. मुझे तो कोई ऐसे याद नहीं रहता. आप की याददाश्त तो कमाल की है, सर, तभी आप आज यहां हैं.’ मृणाल ने कहा.

ये भी पढ़ें- Romantic Story: चावल पर लिखे अक्षर: क्या हुआ था सीमा के साथ

‘नहीं, ऐसा नहीं है. हर कोई मुझे भी याद नहीं रहता पर…’ कहतेकहते वह चुप हो गया. मृणाल उस की तरफ देखने लगी कि शायद वह कुछ और बोले पर वह नहीं बोला. इतने में पायलट ने अनांउस किया कि फ्लाइट लैंडिंग की ओर है.

फ्लाइट थोड़ी देर में लैंड कर चुकी थी. सभी यात्री एयरपोर्ट से बाहर जा रहे थे. मृणाल भी टैक्सी का इंतजार करने लगी. इतने में एक टैक्सी आ कर उस के सामने रुकी पर उस में कोई पहले से ही बैठा हुआ था. देखा तो वह अनय शुक्ला ही थे. उन्होंने टैक्सी का दरवाजा खोला और बाहर आ कर मृणाल से बोले, ‘कहां जाना है आप को, मैडम, मैं छोड़ देता हूं.’

‘पर आप को कहीं और जाना होगा,’ मृणाल ने कहा.

‘नहीं, कोई बात नहीं, आप को छोड़ते हुए निकल जाऊंगा. ऐसी कोई जल्दी नहीं है मुझे.’

‘दरअसल, मुझे रेलवे स्टेशन जाना है. साढ़े 5 बजे की ट्रेन है मेरी अलवर के लिए,’ मृणाल ने कहा.

‘पर अभी तो 2 बजे हैं और शायद आप ने अभी लंच भी नहीं किया है, अगर आप को एतराज न हो तो हम क्या साथ में लंच कर सकते हैं.’

मृणाल की तो खुशी का ठिकाना नहीं था. इतने बड़े उपन्यासकार ने आज उसे अपने साथ लंच के लिए इनवाइट किया है. मृणाल सोचने लगी, प्रणय को जा कर सब बताएगी क्योंकि जब भी वह उस के नोवल पढ़ती, प्रणय गुस्सा करने लगता और मजाक में तंज कस देता कि जितनी गहराई से इस अनय शुक्ला को पढ़ती हो कभी हमें भी पढ़ लिया करो.

आगे पढ़ें-  मृणाल विचारों में डूबी ही थी कि अनय ने कहा-‘मैं आप का नाम…

ये भी पढ़ें- Family Story: औरत की औकात- प्रौपर्टी में फंसे रिश्तों की कहानी

Romantic Story: कैसे कैसे मुखौटे-भाग 4- क्या दिशा पहचान पाई अंबर का प्यार?

 दिशा अब चुप नहीं रह सकी. थरथरायी आवाज़ में ग़ुबार निकालते हुए बोली, “मुझे आज बहुत हैरत हो रही है. आप सब कितने स्वार्थी हैं. अम्बर को क्या एक खिलौना समझ रखा है आपने कि जब ज़रूरत पड़ी बेटी के हाथ में थमा दिया और जब बेटी को उससे दूर करना था तो तोड़-मरोड़ कर फेंकने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया. जब मैं अम्बर को चाहती थी तब आपको सिर्फ़ उसकी नीची जाति दिखाई दे रही थी, उसके गुण नहीं. यह कैसे हो सकता है कि पहले मेरी भलाई अम्बर से रिश्ता तोड़ने में थी और अब अम्बर से रिश्ता जोड़ने में? कहां गया अब वह ऊंची जाति का दंभ? आप में अचानक आया यह बदलाव तो वह मुखौटा है जो आज अपनी तलाकशुदा बेटी पर उठ रही समाज की उंगलियों से बचने के लिये आपको लगाना पड़ रहा है. बोलो यही सच है ना?” बात पूरी होते-होते दिशा फूट-फूट कर रोती हुई अपने कमरे में चली गयी.

रात को सोने से पहले अम्बर को ‘सब ठीक है’ का मैसेज भेज वह सोचने लगी, ‘कितना अच्छा होता कि परिवार वाले उसी समय मान गए होते ! आज वह सबको बोझ तो न लगती और अम्बर उसका होता.’ अपने ज़ख्मों पर अम्बर की यादों की मरहम लगाते हुए उसे कब नींद आ गयी पता ही नहीं लगा.

अगले दिन औफ़िस में बैठे हुए भी अम्बर की याद उसे बेचैन कर रही थी. बार-बार कुणाल की शादी का कार्ड निकाल वह गणना करने लगती कि कितने दिनों बाद वह अम्बर के साथ एक सुकून भरी लम्बी शाम बिता सकेगी. दिशा को आज वह पल बहुत याद आ रहा था जब समुद्र किनारे पहली बार दोनों ने प्यार का इज़हार किया था. उसके मन में कुछ पंक्तियां गूंजने लगीं. पर्स में से पेन और कुणाल वाला कार्ड निकालकर उसने भावों को लिपिबद्ध कर दिया…..

समन्दर किनारे बीता भीगा पल याद आता है,

एक-दूजे को यूं ही सा चाहना याद आता है!

मेरा वो ठहरा सा बचपन और नदी सा अल्हड़पन,

किनारा बनकर तुम्हारा समेटे रखना याद आता है!

रेत पर लिखकर नाम दोनों का उंगलियों से अपनी,

घरौंदा छोटा सा पैरों पर बनाना याद आता है!

महक कुछ अलग सी आयी थी उन फूलों से,

बालों में तुम्हारा उनको लगाना याद आता है!

सहारे बहुत ज़िन्दगी ने यूं तो दिए हैं मुझको भी,

जाने क्यों कांधे पर तेरे सिर टिकाना याद आता है!

कार्ड और पेन पर्स में वापिस रख दिशा ने मेज़ पर सिर टिका डबडबायी आंखों को मूंद लिया.

ये भी पढ़ें- Short Story: साक्षी के बाद- संदीप की दूसरी शादी के लिए जल्दबाजी के पीछे क्या थी वजह?

कुणाल की शादी के दिन दिशा ने आधे दिन की छुट्टी ले ली थी. शाम को अम्बर का मैसेज आते ही वह घर से निकल पडी. अम्बर बाहर कार में प्रतीक्षा कर रहा था. दिशा बहुत दिनों बाद किसी फ़ंक्शन के लिए तैयार हुई थी. अम्बर चांद से चमकते उसके चेहरे को देखता ही रह गया. कढ़ाई वाली गुलाबी नैट की साड़ी के साथ कुंदन और मोतियों से बने नैकलेस सैट में वह किसी अप्सरा सी दिख रही थी. अम्बर को आसमानी कुर्ते और फ्लोरल प्रिंट की जैकेट में देख दिशा का मन भी रीझे जा रहा था. वहां पहुंचकर दोनों दूल्हा-दुल्हन को बधाई देने एक साथ स्टेज पर गये, दोनों ने खाना भी साथ-साथ खाया और रौनक भरे माहौल का एक साथ आनंद लेते रहे. रात को दिशा को घर छोड़ते समय अम्बर ने बताया कि कल वे शाम को नहीं मिल सकेंगे क्योंकि औफ़िस से वह सीधा घर जायेगा. एक लड़की से इन दिनों रिश्ते की बात चल रही है, वही अपने मम्मी-पापा के साथ आएगी. मोबाइल में अम्बर ने दिशा को उसकी तस्वीर भी दिखाई. एक ख़ूबसूरत लड़की से अम्बर के रिश्ते की बात चलती देख दिशा अन्दर ही अन्दर मायूस हो रही थी, किन्तु बेबसी को छुपाते हुए बोली, “इस बार हां कर ही देना अम्बर. लड़की अच्छी लग रही है और जौब भी नोएडा में कर रही है. तुम दोनों को किसी तरह की परेशानी नहीं होगी.” अम्बर मुस्कुरा कर रह गया.

अगले दिन सुबह औफ़िस के लिए निकलने से पहले अम्बर अपनी कार साफ़ कर रहा था. सीट पर कुणाल की शादी का कार्ड रखा था जो कल उसने दिशा से ऐड्रेस देखने के लिए मांगा था. अम्बर कार्ड फाड़कर फेंक ही रहा था कि दिशा के लिखे शब्दों पर उसका ध्यान चला गया. हाथ में कार्ड ले उसने पूरी कविता एक सांस में पढ़ डाली. पढ़कर अम्बर को ऐसा लगा जैसे किसी कुशल चितेरे ने कूची से समुद्र किनारे सालों पहले बीते उस अमूल्य पल को जीवंत कर दिया हो. शब्द-शब्द से प्रेम छलक रहा था. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि दिशा अब भी उससे इतना प्यार करती है. अम्बर तो दिशा का साथ हमेशा से ही पाना चाहता था, लेकिन उसे लगता था कि वह किस्सा तो कब का खत्म हो चुका है. उसने बिना देर किये दिल की धड़कनों पर काबू रख दिशा को लंच में मिलने का मैसेज कर दिया.

ये भी पढ़ें- Family Story: किराए की कोख – सुनीता ने कैसे दी ममता को खुशी

लंच टाइम से पहले ही वह कौफ़ी-शॉप में बैठकर अधीरता से दिशा की प्रतीक्षा करने लगा.

“अरे, अच्छा हुआ कि तुमने लंच में मिलने का कार्यक्रम बना लिया. मैं सुबह से बोर हो रही थी. औफ़िस में भी कुछ ख़ास करने को नहीं था आज.” आते ही दिशा मुस्कुराकर बोली.

अम्बर तो जैसे सोचकर ही बैठा था कि उसे क्या कहना है. दिशा की ओर एक मिनट तक चुपचाप मुस्कुराकर देखने के बाद उसने बोलना शुरू किया, “दिशा, कुछ सालों पहले कितना प्यारा था हमारा जीवन. दोनों निश्छल, एक-दूजे में खोये रहते थे. फिर हमें मजबूर होकर दुनिया के बनाये नियमों का मुखौटा लगाना पडा और हम एक-दूसरे के लिए अजनबी से बन गए. तुम्हारी जिंदगी में विक्रांत आया जो शराफ़त का मुखौटा लगाये था. उससे तुम कितनी आहत हुईं, लेकिन अपने अन्दर की घायल दिशा को छुपाने के लिए तुमने दुनिया के सामने एक नौर्मल इंसान बने रहने का और फिर घरवालों को खुश देखने के लिए एक हंसती-खेलती लड़की का मुखौटा लगा लिया. और मैं…..लाख चाहकर भी तुम्हें अपने मन से कभी निकाल नहीं पाया, लेकिन जब तुम मिलीं तो एक दोस्त का मुखौटा लगाकर मिलता रहा तुमसे. कल तुम्हारी लिखी कविता ने मेरी आंखें खोल दीं. मुझे एहसास हुआ कि मेरे सामने तुम भी दोस्ती का मुखौटा लगाकर आती हो. कहीं ऐसा न हो कि मुखौटे चढ़ाते-चढ़ाते हम अपने असली किरदार को ही भूल जाएं. मन में जो प्रेम है वह खो जाये. दिशा, मैं तो उतार देना चाहता हूं आज अपना मुखौटा….प्लीज़ तुम भी उतार दो. अब मैं उस दिशा से मिलना चाहता हूं जिसके सिर चढ़कर मेरे इश्क़ का जादू बोलता था. असली दिशा से मिलना चाहता हूं मैं आज !”

“अम्बर, विक्रांत से शादी और फिर तलाक़. इन बातों ने मुझे अन्दर तक छलनी कर दिया था. गोआ में तुम क्या मिले कि एक बार फिर मेरी ज़िंदगी गुलज़ार हो गयी. यह अहसान ही क्या कम था कि फिर से दोस्त बनकर मेरा दुःख बांटा तुमने. किस मुंह से कहती कि किसी की पत्नी बनने के बाद भी तुमसे प्यार करती हूं ?” अंतिम वाक्य बोलते हुए दिशा की रुलाई फूट पड़ी.

“दिशा, किसी की पत्नी क्या तुम अपनी मर्ज़ी से बनी थीं? समाज के जो लोग जाति-पाति का भेद मन में रखते हैं, वे स्वयं तो आडम्बर का मुखौटा पहनकर रखते ही हैं, हम जैसे लोगों को भी ऐसे मुखौटे पहनने को मज़बूर कर देते हैं. लेकिन वे भूल जाते हैं कि मुखौटा केवल चेहरे पर पहनाया जा सकता है, मन पर नहीं. दिल से हमेशा मैं तुम्हारा था और तुम मेरी. अब दुनिया के सामने भी एक हो जायेंगे हम.”

ये भी पढ़ें- Short Story: सलाह लेना जरूरी- क्या पत्नी का मान रख पाया रोहित?

“अम्बर, क्या तुम्हारे घरवाले एक तलाकशुदा से…..”

“परवाह नहीं मुझे.” दिशा की बात बीच में काटते हुए अम्बर बोला. “आज हम दोनों इस समाज के बनाये हर उस उसूल को ठुकरा देंगे जो एक प्यार को बेसिर पैर के नियमों से बने मुखौटे पहनने को विवश करता है. तुम्हारा साथ चाहिए बस.”

दिशा ने गीली आंखों से अम्बर को देखा और उसकी हथेली को अपने लरज़ते गर्म होंठों से छू लिया.

बन्धनों का मुखौटा उतार वे एक-दूजे का हाथ थामे कौफ़ी-शॉप से बाहर निकल पड़े.

Romantic Story: सार्थक प्रेम- भाग 3- कौन था मृणाल का सच्चा प्यार

कहानी- मधु शर्मा

मृणाल विचारों में डूबी ही थी कि अनय ने कहा, ‘मैं आप का नाम जान सकता हूं, मैम.’

‘जी, मृणाल, मृणाल जोशी नाम है मेरा.’

‘वैरी नाइस, आप के जितना नाम भी खूबसूरत है आप का.’

‘ओह, थैंक्यू सर’ तो आप को फ्लर्ट करना भी आता है? मैं तो सोचती थी आप बहुत गंभीर और संजीदा व्यक्ति होंगे. पर आप तो…’ और बीच में रुक गई.

‘पर आप तो कुछ लंफगे टाइप के हो, फ्लर्ट करते हो,’ कहते हुए अनय ने मृणाल के वाक्य को पूरा करने की कोशिश की.

‘नहींनहीं सर, मेरा वह मतलब नहीं था.’ दोनों जोर से हंसने लगे.

‘सर, सच में मैं आप को बता नहीं सकती मुझे आप से मिल कर कितना अच्छा लग रहा है.’

‘पर मुझ से ज्यादा नहीं,’ अनय ने कहा और एक बार फिर दोनों की हंसी ठहाकों में बदल गई.

‘सर, आप फिर फ्लर्ट कर रहे हैं.’

‘नहीं, मैं फ्लर्ट नहीं कर रहा, मृणाल.’ और कुछ सैकंड के लिए रुक कर अनय बोला, ‘मैं आप का नाम ले सकता हूं.’

‘जी, बिलकुल.’

‘मुझे अच्छा लगेगा अगर आप भी मुझे अनय कहेंगी.’

‘जी, मैं कोशिश करूंगी.’ अनय ने भी सिर हिला कर उस की बात को स्वीकार किया. क्योंकि अनय जानता था कि किसी भद्र महिला का एकदम से किसी अनजान व्यक्ति को नाम से बुलाना आसान नहीं होता.

बातें करतेकरते दोनों एक रैस्तरां में पहुंच गए और लंच और्डर कर दिया. जब तक लंच आता, मृणाल ने अनय से पूछा, ‘सर, आप को आप के लिखे उपन्यास में सब से पसंदीदा कौन सा है?’

‘जो आप को,’ अनय ने बिना कुछ सोचे तपाक से जवाब दिया.

ये भी पढ़ें- Family Story: तृप्त मन- राजन ने कैसे बचाया बहन का घर

‘यानी एकतरफा प्रेम’, मृणाल बोली.

‘जी,’ अनय ने जवाब दिया.

फिर अनय ने मृणाल से पूछा, ‘अच्छा बताइए, वह आप को इतना पसंद क्यों है?’ मृणाल कुछ सैकंड के लिए रुकी, फिर बोली, ‘सर, दरअसल, उस में प्रेम का जो रूप आप ने अपने लेखन में चित्रित किया है मुझे वह बहुत पसंद आया कि नायिका को पता नहीं कि कोई उसे कितना प्रेम करता है. असल जिंदगी में तो हम अगर किसी को छोटी सी वस्तु भी देते हैं तो उम्मीद करते हैं कि बदले में हमें भी उस से कुछ मिले. पर वहां तो नायक का गहरा प्रेम है, बिना किसी शर्त के और बदले में किसी प्रकार की कोई चाहत नहीं. बस, प्रेम किए जा रहा है और नायिका को पता ही नहीं.

‘पर सर, एक बात मैं आप से कहूंगी कि उपन्यास का अंत अगर आप इस बात से करते कि किसी भी तरह नायिका को पता चल जाता कि कोई उसे कितना प्रेम करता है तो मेरे हिसाब से बात कुछ और ही होती.’

‘क्या बात, कुछ और होती. मैं कुछ समझा नहीं.’

‘नहीं सर, मेरा मतलब शायद कुछ लोग इस बात को ज्यादा पसंद करते.’

‘हो सकता है,’ अनय ने कहा.

‘अच्छा सर, आप ने नहीं बताया. आप को यह उपन्यास सब से पसंद क्यों है? और आप को कुछ भी लिखने की प्रेरणा कहां से मिली है?’

अनय कुछ देर के लिए रुका और फिर मुसकराते हुए बोलने लगा, ‘सच बताऊं या झूठ?’

मृणाल बोली, ‘सच ही बताइए,’

‘अच्छा सुनिए, मैं ने जो कुछ भी आज तक लिखा वह बहुत हद तक मेरी कल्पना या जो कुछ भी मेरे आसपास घटित होता था उसे अपनी लेखनी में उतारा पर यह उपन्यास मेरे जीवन की वास्तविकता है.’ यह कह कर अनय चुप हो गया और गौर से मृणाल के चेहरे के भावों को पढ़ने लगा. मृणाल स्तब्ध सी रह गई.

‘मतलब सर, इस कहानी के नायक आप हैं. यह सब कुछ आप के जीवन में घटित हो चुका है.’

‘हां, आप कह सकती हैं.’

मृणाल को समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या बोले. उस ने अनय की तरफ देखा. वह ऐसे सिर झुकाए बैठा था जैसे प्रेम में असफल हाराथका एक प्रेमी है जो आज भी यह चाहता है कि कैसे भी वह अपनी प्रेमिका का बता पाए कि उस ने उसे कितना और किस हद तक प्रेम किया. यह सब देख कर मृणाल खुद को रोक नहीं पाई. और उस ने बोलना शुरू किया.

‘माफ कीजिए सर, मुझे आप की जिंदगी में दखलंदाजी का कोई अधिकार नहीं है पर वास्तविक जीवन और एक उपन्यास में फर्क होता है. आप को नहीं लगता कि इंसान की अपने मन के प्रति भी एक जिम्मेदारी बनती है. उसे संतुष्ट करना भी उस का कर्तव्य है, जब तक कि आप के किसी कृत्य से किसी को कोई नुकसान न हो. आप जिस से प्रेम करते हैं कम से कम उसे बता तो देना चाहिए.’

‘हां, कोशिश तो कर रहा हूं,’ बहुत धीमी आवाज में अनय बोला. बीच में ही वेटर ने टेबल पर लंच रख दिया और बोला, ‘मैम, मैं सर्व करूं.’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: कैसे कैसे मुखौटे- क्या दिशा पहचान पाई अंबर का प्यार?

‘नहीं, हम कर लेंगे,’ कह कर मृणाल लंच सर्व करने लगी. अनय भी उस की मदद करने लगा और दोनों ने लंच किया. लंच करते हुए अनय बोला, ‘पता है मृणाल, कभी नहीं सोचा था कि जीवन में आप से यों फिर मुलाकात होगी और आप के साथ लंच भी कर पाऊंगा.’

‘आप ने कहा न कि नायक को भी तो आखिर इतने प्रगाढ़ प्रेम के बदले कुछ मिलना चाहिए. मैं ने सुना था कि इंसान अगर कुछ भी साफ नीयत और सच्चे मन से अपने जीवन में करता है तो उस का सकारात्मक परिणाम उसे जरूर मिलता है अपने जीवन में.

‘तुम सच कहती हो, सौरी, आप सच कहती हैं.’

‘नहीं सर, आप मुझे तुम कह सकते हैं,’ मृणाल ने अनय को टोकते हुए कहा.

‘थैंक्यू,’ बोल कर अनय ने बोलना शुरू किया, ‘जिस से हमें प्रेम हो जाए उस की परिस्थितियां ऐसी न हों कि वह हमारे प्रेम को स्वीकार कर पाए और हमारे साथ जीवन में आगे बढ़ सके, तो फिर क्या किया जाए? इसलिए मैं ने अब तक उसे नहीं बताया. पर अब सोचता हूं कि कह दूं उस से.’

मृणाल एकटक स्तब्ध सी अनय की तरफ देखे जा रही थी. उस की आंखों में कुछ सवाल थे जो उस के होंठों पर नहीं आ पा रहे थे. पर अनय ने उस की आंखों को पढ़ लिया और कहने लगा, ‘हां मृणाल, तुम ही हो जिसे मैं उस वक्त चाहने लगा था. उन दिनों सुबह से शाम तक जब भी तुम बाहर आतीजातीं, मैं तुम्हें देखता था. सच बताऊं तो मुझे नहीं पता मुझे तुम्हारी कौन सी बात, कौन सी खूबी इतनी भा गई पर जिस साथी की मैं ने अपने जीवन में कल्पना की थी, तुम बिलकुल वैसी थीं. और मैं ने जब भी तुम्हें अपने परिवार के साथ देखा, तुम बहुत खुश लगती थीं अपने जीवन में. इसलिए जब उस बंगले का काम खत्म हो गया तो बहुत टूटे मन से तुम्हें बिना कुछ बोले नैतिकता को ध्यान में रखते हुए वहां से चला आया.

‘और ऐसा नहीं कि मैं ने कोशिश नहीं की खुद को रोकने की तुम से प्रेम करने से पर मैं नाकाम रहा और तुम्हारे प्रेम में बहता ही चला गया. तुम्हारा प्रेम हमेशा मेरी आंखों से विरह के आंसू बन कर  बहता था. खुद को संभालना बहुत मुश्किल हो रहा था मेरे लिए. इसलिए अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का यह सब से अच्छा तरीका मुझे लगा और तुम्हारे प्रति जो कुछ भी मैं ने महसूस किया उसे कागज पर अपनी कलम से उतार दिया.

‘एक दिन मेरे एक मित्र के हाथ मेरी वह डायरी लग गई और मुझ से बिना पूछे उस ने अपने एक प्रकाशक मित्र से बात की. उसे यह कहानी बहुत पसंद आई और उस ने इसे छाप दिया और लोगों को भी यह बहुत पसंद आई.

‘इस तरह तुम्हारा प्रेम मेरे लिए प्रेरणा बन गया और मेरे लिए उसे व्यक्त करने का जरिया. और इस तरह एक आर्किटैक्ट लेखक बन गया.’ झूठी मुसकराहट के साथ आंखों में आ रहे आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए अनय ने अपनी बात पूरी की.

ये भी पढ़ें- Romantic Story: दो कदम साथ: क्या दोबारा एक हुए सुलभ और मानसी

सामने मृणाल सिर झुकाए मुजरिम की तरह बैठी थी और कोशिश कर रही थी अनय उस के आंसू न देख पाए. थोड़ी देर दोनों खामोशी में बैठे रहे, फिर अनय ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘चलो मृणाल, तुम्हारी ट्रेन का वक्त हो गया है, मैं तुम्हें स्टेशन छोड़ देता हूं.’ मृणाल खड़ी हो गई और दोनों अपनीअपनी मंजिल की तरफ चल दिए.

मृणाल खयालों की दुनिया से निकल कर यथार्थ के धरातल पर खड़ी थी. आज उस के सामने अनय नहीं, सिर्फ प्रणय है, सिर्फ प्रणय.

उसका सच- भाग 2 : क्यों दोस्त को नहीं समझ पाया हरि

‘सुनो, भाभी से जिक्र मत करना. तुम्हें तो पता है, औरतें ही सदा हमदर्दी का पात्र बनती हैं. हर तरफ औरतों की ताड़नाओं, अत्याचारों के चर्चे होते रहते हैं. ऐसी बात नहीं कि पुरुष औरतों के अत्याचारों के शिकार नहीं होते. जबान के खंजर पड़ते रहते हैं उन पर और वे चुप्पी साधे हृदय की व्यथा लिए अंधेरों में विलीन हो जाते हैं. न ही कोई उन्हें सुनता है और न ही विश्वास करता है.’

‘धर्मवीर, चिंता मत करो, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. स्थिति को सुधारने की कोशिश करते रहो. चलता हूं, जल्दी मिलेंगे.’

हरि मित्तर से मिल कर धर्मवीर का मन थोड़ा हलका हुआ. घर की दहलीज पार करते ही धर्मवीर की पत्नी ने प्रश्नों की बौछार कर दी.

‘कहां गए थे? बोलते क्यों नहीं? उसी से मिलने गए होगे? शर्म नहीं आती इस उम्र में? पता नहीं क्या जादू कर दिया है उस नामुराद कलमुंही ने?’

‘देखो विमला, तुम चाहती हो तो मैं फिर बाहर चला जाता हूं. तुम्हें जो कहना है, कहो. किसी और को बीच में घसीटने की कोई आवश्यकता नहीं,’ इतना कह कर मैं अपने कमरे में चला गया.

हरि मित्तर से मिले केवल 3 दिन ही हुए थे. धर्मवीर का मन हरि से बातें करने को बेचैन था. उस ने हरि को फोन किया. वह घर पर नहीं था. धर्मवीर ने संदेश छोड़ दिया.

शाम को फोन की घंटी बजी.

‘हां, बोलो हरि?’

‘धर्म, कल क्या कर रहे हो? चलना है कहीं?’

‘कल? कल नहीं, परसों ठीक रहेगा, तुम्हारी भाभी कहीं बाहर जाने वाली है.’

ये भी पढ़ें- एक नारी ब्रह्मचारी: पति वरुण की हरकतों पर क्या था स्नेहा का फैसला

‘ठीक है, परसों जैक्सन हाइट में, वह ‘पायल’ वाला डोसे बहुत अच्छे बनाता है. वहीं मिलेंगे 12 बजे.’

डोसा खातेखाते हरि ने पूछा, ‘धर्मवीर, घर पर हालात कुछ सुधरे या नहीं?’

‘नहीं यार, क्या बताऊं. तुम्हारी भाभी को शंका का घुन लग गया है. उस की सोच अपाहिज हो गई है जो मेरे घर को बरबाद कर के ही रहेगी. निशा अपना काम करती जा रही है.’

‘लगभग 5 दशक दिए हैं इस घर और पत्नी को. शिकायत का कभी अवसर नहीं दिया. अब वही घर जेल लगता है. जहां अब सांस भी आजादी से नहीं ले सकता. अपनी इच्छानुसार वस्तु यहां से वहां नहीं टिका सकता. किसी से खुल कर बात नहीं कर सकता. जहां वर्षों की वफादारी पर विश्वास न कर के, खोखले, ओछे लोगों की बातें पत्थर की लकीर मानी जाती हैं. अब तो उन की ताड़ना के दायरे केवल हम दोनों के बीच ही नहीं रहे, बल्कि सामाजिक स्थलों में, परिचित लोगों के बीच हमें लताड़ना उन का मनोरंजन बन गया है. अब तुम्हीं बताओ, क्या साझेदारी इसे कहते हैं? क्या यही सुखी जीवन है? हरि, तुम भी तो शादीशुदा हो?’

‘धर्मवीर, भाभी तो बहुत पढ़ीलिखी और समझदार हैं, फिर इतनी असुरक्षित भावनाएं क्यों?’

‘हां, सो तो है, किंतु सोच सिमट गई है. क्या फायदा ऐसी पढ़ाई का, जिस की रोशनी में जीवन का रास्ता साफसाफ नजर आने के बावजूद आदमी उस पर चल न सके. घूमफिर कर शक की आग में खुद और दूसरों को भस्म करने की ठान ले.’

‘विश्वास नहीं होता. आज तक जब भी कहीं आदर्श दंपती का संदर्भ आता है, वहां तुम दोनों का उदाहरण दिया जाता है. स्थिति नाजुक है, बहुत समझदारी से काम लेना होगा. इतने वर्षों की साधना को हाथों से फिसलने मत देना. प्यार से समझाने का प्रयत्न करो.’

‘समझाऊं? किसे समझाऊं? जो सुनने को तैयार नहीं? जिस के लिए अर्थों की सारी ऊहापोह अब बासी हो गई है. स्थिति अब यह है कि मैं मुंह तक आए शब्द निगलने लगा हूं. किस के पक्ष में हथियार डालूं? सचाई के या उस झूठ के, जो मेरे घर में अशांति पैदा कर रहे हैं? सखी निशा का तो यह हाल है, अंगूर नहीं मिले तो खट्टे हैं. निशा की उकसाने की खुराकें तुम्हारी भाभी के चित्र पर पत्थर की लकीरें बन गई हैं, जैसे परमानैंट मार्कर से लिखी हों. निशा की बातों को ले कर उन के मन और मस्तिष्क को कुंठा की धुंध घेरने लगती है. उसी धुंध में झूठ का पल्ला भारी हो जाता है और सच दब जाता है. तुम तो जानते हो, झूठ से हमें कोई हमदर्दी नहीं.’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: चावल पर लिखे अक्षर: क्या हुआ था सीमा के साथ

‘परेशान तो भाभी भी होंगी? पूछो उन से कि ऐसा उन्होंने क्या देखा, या तुम ने क्या किया? हर पल तो उन्हीं के पास बैठे रहते हो?’

‘जरूर होती होगी. कुछ देखा हो तो बताएं. कभीकभी तो अचानक उस के भीतर तूफानी तूफान करवटें ले बैठता है. तब वह जहान भर का अनापशनाप बोलने लगती है. कहीं का सिर, कहीं का धड़, मनगढ़ंत किस्से-लोग बातें करते हैं, तुम्हारी छवि खराब होती है, वगैरावगैरा. बस, मुंह खोलते ही चुभते कटाक्ष, काल्पनिक गंभीर इल्जाम मुझ पर थोपने आरंभ कर देती है. उस समय उस की बातों के गुलाब कम और कांटे अधिक मेरे दिल पर खरोंचें छोड़ जाते हैं.

‘मैं एक बार फिर चुप्पी साध लेता हूं. फिर कभी पास आ कर बैठ जाती है. कभी आधी रात को मेरे कमरे में आ कर पूछती है, आप ने बात करना क्यों छोड़ दिया? मुझे अच्छा तो नहीं लगता. पर बात भी क्या करूं, उन्हें मेरे शब्दों की अपेक्षा ही कहां है?  हजार बार कह चुका हूं, विमला, तुम्हारे सिवा कभी किसी को नहीं चाहा. मैं रिश्तों की अहमियत जानता हूं. पूरा जीवन तुम्हें दिया है. अब बचा ही क्या है मेरे पास?

‘कहती है, झूठ बोलते हो. अब तो वही है तुम्हारी सबकुछ? बदनाम कर देगी, तुम्हें? इस्तेमाल कर के छोड़ देगी तुम्हें? तुम नहीं जानते…आदमखोर है आदमखोर.

‘उस दिन मैं ने भी कह दिया, विमला, यह सबकुछ कहने की आवश्यकता नहीं. कैनवास तुम्हारे पास है. रंग तुम्हारे दिमाग में. जैसी चाहो तसवीर बना लो.

‘मैं गुस्से से बड़बड़ाता बाहर चला गया. हरि मित्तर, तुम्हीं बताओ, 70 से ऊपर आयु हो गई है. वैसे भी वर्षों से अलगअलग कमरों में बिस्तर हैं. क्या शोभा देती हैं ऐसी बातें? इस उम्र में अश्लील वाहियात तोहमतें सहता हूं. मेरी पत्नी होते हुए क्या वह नहीं जानती मेरी क्षमता? ऐसी घिनौनी बातें मुझे अंधेरी सुरंग में धकेल देती हैं.’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: ड्रीम डेट- आरव ने कैसे किया अपने प्यार का इजहार

‘यार, स्थिति गंभीर है. तुम दोनों कहीं छुट्टियों पर क्यों नहीं चले जाते. बच्चों के पास चले जाओ…इस वातावरण से दूर.’

‘सभी उपाय आजमा चुका हूं. मेरे साथ कहीं चलने को तैयार ही नहीं होती. जबर्दस्ती तो कर नहीं सकता. एक आत्मनिर्भर स्वतंत्र अमेरिकी भारतीय नारी है. कुछ पूछते ही बौखला सी जाती है. मेरी हर बात, हर हावभाव, मेरे हर काम में मुझे अपमानित करने के लक्षण ढूंढ़ती रहती है.

आगे पढ़ें- ‘धर्मवीर, मुझे तुम्हारी चिंता होने लगी है….

उसका सच- भाग 3 : क्यों दोस्त को नहीं समझ पाया हरि

‘आजकल तो यह अपने गुप्त समाचार विभाग की बिल्लियों के बहुत गुणगान करती रहती है. वह भूल जाती है कि मैं एक लंबे काल से उस के दुखसुख का साथी, जिसे मक्कार, झूठा, बेईमान, बदमाश, चोर, निर्लज्ज घोषित कर दिया गया है. जैसेजैसे उस के कटाक्ष लंबे होते जाते हैं, मेरे दुख बढ़ते जाते हैं. रही बात बच्चों की, तुम्हीं बताओ, भारतीय अमेरिकी बहुओं के घर भला कितने दिन जा कर रहा जा सकता है?’

‘धर्मवीर, मुझे तुम्हारी चिंता होने लगी है. बस, यही कह सकता हूं कि वार्त्तालाप का रास्ता खुला रहना जरूरी है.’

‘हरि मित्तर, कोशिश तो बहुत करता हूं. पर जब परिचित लोगों के सामने मेरी धज्जियां उड़ाई जाती हैं, लांछन लगाए जाते हैं तब मैं बौखला जाता हूं. बोलता हूं तो मुसीबत, नहीं बोलता तो मुसीबत. इस उम्र में इतना तोड़ डालेगी, वजूद इतना चकनाचूर कर डालेगी, कभी सोचा न था. जब स्थिति की जटिलता बेकाबू होने लगती है, मैं उठ कर बाहर चला जाता हूं या किताबों को उथलपुथल करने लगता हूं. तब दोनों अपनेअपने कोकून में बंद रहने लगते हैं, मानो एकदूसरे को रख कर भूल गए हों. साथ ही तो रह जाता है केवल? दिन बड़ी मुश्किल से गुजरते हैं. जैसे छाती पर कोई पत्थर रखा हो और रातें, जैसे कभी न होने वाली सुबह. कामना करता हूं, इस से अच्छा तो बाहर सड़क पर किसी खूंटी पर टंगा होता. थोड़ा जीवित, थोड़ा मृत. फिर सोचता हूं कहीं दूर भाग जाऊं जहां कम से कम ये लंबे दिनरात कलेजे पर अपना वजन महसूस करते तो नहीं गुजरेंगे. पूरे घर की हवा में उदासी छितरी रहती है. तब एहसास होता है, शायद यह उदासी मेरे मरते दम तक हवा में ही ठहरी रहेगी. तू भली प्रकार से जानताहै कि मेरे भीतर एक कैदखाना है. कैसे भाग सकता हूं यथार्थ से.

‘रही बात से बात कायम रखने की? जरूरत उस की है, मात्र उस की. इन लंबेलंबे दिनों और काली रातों के अटूट मौन में आवाज बनाए रखने की गरज भी उस की है, मात्र उस की. मेरी भावनाओं को कुचल कर चीथड़ेचीथड़े कर दिए हैं उस ने. गरीब हो गया हूं भावनाओं से. सरकतेरपटते रहते हैं मेरे शब्द, बेअसर, सपाट. तुम्हारी भाभी की चेतना सुनती नहीं, मस्तिष्क सोकता नहीं.’

ये भी पढ़ें- Family Story: औरत की औकात- प्रौपर्टी में फंसे रिश्तों की कहानी

हरि मित्तर ने घड़ी देखते हुए कहा, ‘धर्मवीर, बहुत देर हो गई है. मौसम भी खराब होता जा रहा है. अब चलते हैं. जल्दी ही मिलेंगे.’

धर्मवीर आज सबकुछ उगलने को तैयार था. धर्मवीर की बातें सुन कर हरि का मन भारी हो गया. उसे इस समस्या का कोई हल दिखाई नहीं दे रहा था कि वह कैसे धर्मवीर की सहायता करे.

धर्म को लगा जैसे कोई तो है, जो उसे समझता है. फोन की प्रतीक्षा करतेकरते धर्म ने 4 दिन बाद हरि को फोन किया, ‘हैलो हरि, कैसे हो?’

‘ठीक हूं, और तुम?’

कुछ ही देर में धर्म हरि के द्वार पर था.

‘धर्मवीर, आज तुम मेरे यहां आ जाओ. तुम्हारी भाभी अपने भाई के यहां गई है.’

‘चाय बनाओ, आता हूं.’

‘अंदर आओ धर्म, बैठो. आज मैं तुम्हें अपने इलैक्ट्रौनिक खिलौने दिखाता हूं. यह है मेरा आईपौड और यह ‘वी’ इस में अलगअलग खेल हैं. 4 लोग एकसाथ खेल सकते हैं. जब कुछ करने को नहीं मिलता, हम बूढ़ाबूढ़ी खेलते रहते हैं. या फिर ताश. चलो, एक गेम तुम्हारे साथ हो जाए. ध्यान भी दूसरी ओर जाएगा और समय का भी सदुपयोग हो जाएगा.’

‘नहीं यार, यह मुमकिन नहीं. मुझे समय व्यतीत करने की कोई समस्या नहीं. चलो, अगलीपिछली बातें करते हैं.’

‘धर्मवीर, अभी तक मैं यह समझ नहीं पाया कि तुम इतना कुछ अकेले क्यों सहते रहे? एक बार जिक्र तो किया होता?’

‘चाहता तो था किंतु कब एक शून्य मेरे चारों ओर भरता गया, पता ही नहीं चला. कोई ऐसा दिखाई भी नहीं दिया जिस से ऐसी व्यक्तिगत बात कर सकता, जो मेरे भयावह शून्य को समझता और मेरी बरबादी का कहानी पर विश्वास करता. 2 बार आत्महत्या का प्रयत्न भी किया. मुझे लगा, मुक्ति का रास्ता यही है. जानते हुए भी कि सब अलगअलग अपनीअपनी सूली पर चढ़ते हैं. कोई किसी के काम नहीं आता. किसी का दुख नहीं बांटता. केवल मुंह हिला देते हैं या तमाशा देखते हैं.’

‘धर्मवीर, मेरी तो सोच भी जवाब दे चुकी है. तुम किसी करीब के रिश्तेदार से बात कर के तो देखो या काउंसलिंग की मदद ले कर देखो. घर के वातावरण को सामान्य रखने का प्रयत्न करो. शायद कोई परिवर्तन आ जाए.’

‘हरि, यह भी सुन लो, एक दिन घर पर बहुत मेहमान आने वाले थे. सुबह से तुम्हारी भाभी अपने विरोधी भावों की धूपछांव में अपना कर्तव्य निभाती रही. दिन अच्छी तरह से बीता. शाम की चाय के समय किसी ने पूछ लिया कि तुम्हारी ‘उस’ सहेली का क्या हाल है?

‘‘उस’ शब्द सुनते ही मेरी पत्नी की उनींदी सी सुस्ती एकदम तन गई. उस का कभी न रुकने वाला राग शुरू हो गया. सभी मेहमानों के सामने उस ने मुझ पर अनेक लांछन लगा कर मेरे चरित्र की धज्जियां उड़ा दीं. एक ही झटके में मुझे घर छोड़ने को कहा. सामने बैठे मेरी जिह्वा तालू से चिपकने लगी. एक मौन जमने लगा. मैं चुप. सब चुप. खामोशी का एक पहाड़ और भीतर की उदासी मुझे चुभने लगी. मुझे लगा, शायद यह मौन सदा के लिए हमारे साथ बैठ जाएगा. मैं ने गहरी पीडि़त सांसें लीं. रुदन की अतिशयता से मेरा शरीर कांपने लगा. मैं पसीने से तर हो गया.

‘मेरे सीने में एक बेचैनी सी घर कर गई. अपनी खुद्दारी को इतना घायल कभी नहीं पाया. उस की बातों से ऐसा लगा, मानो अपराधबोध की छोटी सी सूई मन के अथाह सागर में डाल दी गई हो, जो तल में बैठ कर अपना काम करने लगी. उस ने भीतर से मुझे अस्थिर कर दिया. वह लगातार कहर ढाती शब्दावली का बोझ डालती रही. मैं अपने ही घर में कठघरे में खड़ा रहा जिस का प्रभाव मेरे रोजमर्रा के जीवन पर पड़ने लगा.’

‘धर्म, अगर तुम कहो तो मैं भाभी से बात कर के देखूं?’

ये भी पढ़ें- Family Story: तृप्त मन- राजन ने कैसे बचाया बहन का घर

‘ना-ना, जब से विमला को पता लगा कि हम दोनों हर हफ्ते मिलते हैं, उस ने तुम्हें दलाल के खिताब से सुशोभित कर दिया है. अब अपनी ही नियति में अकेला निशब्द सब सहता जा रहा हूं. मेरे उसूलों की गड्डमड्ड. उस दिन मेहमानों के सामने उस की निर्लज्जता का रूप देख कर मैं सकते में आ गया. वह रूप मेरे मन पर चिपका रहा. मैं चूरचूर हो गया. उसे मेरे टुकड़े भी पसंद नहीं थे. पर टुकड़े तो उसी ने किए थे. उस ने ही मेरे उसूलों को अस्वीकारा और मुझे 2 टुकड़ों में बांट दिया. मैं सफाई के बोझ से दबा पड़ा हूं. न जाने कौन सा मेरा हिस्सा हृदय रोग के हमले के बाद मर जाने वाले हृदयकोष्ट की तरह ठंडा हो गया.’

वह हमारी आखिरी मुलाकात थी. इस के बाद मुझे उस से मिलने का अवसर ही नहीं मिला.

काश उस से मिल पाता. आज इस वक्त मैं धर्मवीर के अंत्येष्टि संस्कार पर उस के घर बैठा खुद को धिक्कार रहा हूं. वह चिल्लाता रहा. मेरा दोस्त मोमबत्ती की तरह पिघलपिघल कर अंधेरों में विलीन हो गया. रहरह कर मुझे उस के शब्द याद आ रहे थे – ‘हरि, मेरे शब्दों की उसे (विमला) अपेक्षा ही कहां थी?’ मेरे भीतर का एहसास कातर पलपल छटपटाता रहा. मैं बोल नहीं पा रहा था पर उस के कहे शब्द बारबार मस्तिष्क को झकझोर रहे थे- ‘तारतार कर देने से वस्तु ही मिट जाती है. और मैं तो टर्रटर्र टर्राता रहा, विमला तुम्हीं को चाहा है, सिर्फ तुम्हीं को. चाहो तो अग्नि परीक्षा ले लो.’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: कैसे कैसे मुखौटे- क्या दिशा पहचान पाई अंबर का प्यार?

Romantic Story: कहीं यह प्यार तो नहीं- विहान को किससे था प्यार

hindi story

Romantic Story: कहीं यह प्यार तो नहीं- भाग 1 : विहान को किससे था प्यार

‘‘अरवाह, हो गई तुम्हें जौब औफर. प्राउड औफ यू बेटा. यहां दिल्ली में ही यह कंपनी या कहीं और जाना पड़ेगा?’’

‘‘मम्मा, बस निकल ही रहा हूं कालेज से. घर आ कर बताता हूं सब.’’

बेटे विहान से फोन पर बात होते ही कावेरी पति सुनील से उत्साह में भर कर बोली, ‘‘सुनो, विहान को एक मल्टीनैशनल कंपनी ने नौकरी दी है. मैं अभी जूही के घर जा कर यह खुशखबरी दे दे आती हूं.’’

‘‘वाह, अब कमाऊ हो जायेगा अपना बेटा. मैं भी चलता हूं तुम्हारे साथ. पड़ोसियों को दे ही देते हैं यह गुड न्यूज.’’

‘‘पड़ोसी नहीं, समधी कहो. अब जल्द ही कर देंगे जूही और विहान का रिश्ता पक्का.’’

दोनों खिलखिलाते हुए घर से निकल पड़े.

बीटैक फाइनल ईयर में पढ़ रहे विहान के कालेज में कुछ कंपनियां आज कैंपस प्लेसमैंट के लिए आई थीं. तीक्ष्ण बुद्धि और आकर्षक व्यक्तित्व के विहान को 5 मिनट का साक्षात्कार ले कर ही चुन लिया गया. वह जानता था कि मातापिता को यह बात सुन कर जितनी प्रसन्नता होगी, उतनी ही निराशा यह सुन कर होगी कि उसे समैस्टर पूरा होते ही जौइनिंग के लिए बैंगलुरु जाना होगा.

पड़ोस में रहने वाली जूही विहान की बचपन की मित्र थी. गोरा रंग, औसत कद, भूरी आंखें और मुसकराते भोलेभाले चेहरे वाली जूही विहान से 1 साल छोटी थी. दोनों एक ही स्कूल में पढ़े थे. 12वीं के बाद विहान ने एक इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन ले लिया. कंप्यूटर साइंस से बीटैक कर रहे विहान के कालेज से सटा भवन जूही का इंस्टिट्यूट था, जहां वह ग्राफिक डिजाइन में बैचलर्स कर रही थी. प्रतिदिन दोनों साथसाथ कालेज आतेजाते थे. आज प्लेसमैंट के लिए इंटरव्यू चल रहे थे, इसलिए विहान देर तक कालेज में रुका हुआ था.

विहान के घर पहुंचते ही पहला प्रश्न नौकरी के स्थान को ले कर हुआ.

‘‘जौब मिली भी तो कहां? मु झे तो लगा था कि आसपास ही नोएडा या गुरुग्राम में होगी कंपनी, लेकिन इतनी दूर,’’ कावेरी के मुख पर प्रसन्नता व निराशा के भाव आ जा रहे थे.

ये भी पढ़ें- मुक्ति का बंधन: अभ्रा क्या बंधनों से मुक्त हो पाई?

‘‘अरे, कब तक बेटे को अपने पास बैठा कर रखोगी? उड़ने दो पंख फैला कर,’’ सुनील प्रयास कर रहा था कि कावेरी मन से डर को निकाल दे.

‘‘मम्मा, परेशान क्यों होती हो? मैं अकेला थोड़े ही जा रहा हूं. कुछ और फ्रैंड्स का सिलैक्शन भी तो हुआ है न, वे भी तो जाएंगे मेरे साथ,’’ विहान कावेरी के कंधे पर हाथ रखते हुए सांत्वना दे रहा था.

‘‘मैं सोच रही हूं कि क्यों न जाने से पहले तुम्हारी और जूही की सगाई करवा दी जाए? फिर अगले साल उस की डिगरी हो जाएगी तब शादी करवा देंगे. कोई देखने वाला होगा तुम्हें तो हमें चिंता नहीं होगी. पता नहीं कब तक रहना पड़ेगा वहां,’’ कावेरी ने कहा तो सुनील ने सहमति में सिर हिला दिया.

‘‘क्या जूही और मेरी इंगेजमैंट? मम्मा, यह क्या कह रही हो?’’ विहान का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘गलत तो कुछ कहा नहीं कावेरी ने शायद. क्या तुम दोनों…’’

सुनील की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि विहान ने प्रश्नसूचक दृष्टि से देखते हुए पूछा, ‘‘हम दोनों क्या पापा?’’

‘‘अरे, दोनों एकदूसरे को कितना चाहते हो. आज जूही के घर पर भी यही बात कर रहे थे हम सब,’’ कावेरी आश्चर्यचकित थी.

‘‘मैं ने तो कभी जूही को अपनी गर्लफ्रैंड सम झा ही नहीं. ये सब क्या है? अभी उसे कौल करता हूं,’’ विहान जूही का नंबर मिला कर अपने रूम की ओर चल दिया.

‘‘हैलो जूही.’’

‘‘बधाई… आ गए कालेज से? मैं तुम्हें कौल करने ही वाली थी.’’

‘‘थैंक्स जूही… एक बात पूछनी है तुम से.’’

‘‘पूछो.’’

‘‘क्या हम दोनों एकदूसरे से लव करते हैं?’’

‘‘मतलब इश्क वाला लव? यानी जो प्रेमीप्रेमिका के बीच होता है?’’

‘‘हां बाबा हां, वही.’’

‘‘यह हो क्या रहा है? मैं खुद तुम से पूछने वाली थी. आज मेरी मौम भी तुम्हारा नाम ले कर मु झ से अजीब सा मजाक कर रही थीं.’’

‘‘क्या यार, मेरे मम्मीपापा ने तो हमारी मैरिज का प्लान भी बना लिया. बचपन से हम दोनों फ्रैंड्स हैं, एकदूसरे की कंपनी में खुश रहते हैं, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि हमें प्यार है.’’

‘‘वही तो… एकदूसरे की केयर प्यार थोड़े ही है. देखा नहीं मूवीज में कि प्यार होते ही कैसे सब हवा में उड़ने लगते हैं. यहां तो ऐसा नहीं है.’’ जूही ने बात समाप्त की तो दोनों खिलखिला कर हंस दिए.

समैस्टर समाप्त हुआ और विहान बैंगलुरु चला गया. मित्रों ने मिल कर एक फ्लैट ले लिया. काम करने के लिए मेड और कुक का प्रबंध भी हो गया.

अपनी नई जिंदगी से संतुष्ट विहान अपनी औफिस टीम में लोकप्रिय होने लगा. उसी टीम में सुगंधा भी कार्य कर रही थी. अपनी स्मार्टनैस के लिए मशहूर सुगंधा किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती थी. काम में व्यस्त विहान चोर नजरों से उसे देखा करता था. कभी स्कर्ट, कभी जंपसूट तो कभी जींस पहने सुगंधा की ड्रैस सैंस से विहान पहले दिन ही प्रभावित हो गया था. पिंक, पीच या किसी अन्य हलके रंग की लिपस्टिक में लिपटे उस के होंठ और आई मेकअप से सजी बड़ीबड़ी आंखें विहान को बेहद आकर्षक लगती थीं.

उस दिन मुसकराते हुए सुगंधा ने विहान को ‘हाय हैंडसम’ कहा तो विहान की धड़कनें बढ़ गईं. अदा से चलती हुई विहान की सीट तक आ कर वह पास रखी चेयर पर बैठ गई. बात शुरू हुई तो सुगंधा विहान के कपड़ों, जूतों और रिस्ट वौच की प्रशंसा करते हुए उस की पसंद की दाद देने लगी. विहान के मन में लड्डू फूट रहे थे.

ये भी पढ़ें- इंटरनैट: क्या कावेरी अपने फैसले से खुश थी?

कुछ देर बात करने के बाद जब सुगंधा उठी तो प्लाजो सूट पर लिया उस का दुपट्टा लहराता हुआ विहान के चेहरे से टकरा गया. नाक से होते हुए परफ्यूम की खुशबू विहान के मन में उतर गई.

घर पहुंच कर वह सुगंधा के बारे में सोचता रहा. अगले दिन अच्छी तरह दाढ़ी शेव कर नहाने के बाद अपने ऊपर खूब डियो छिड़क लिया. अपनी पसंदीदा काली टीशर्ट पहन बारबार अपने को दर्पण में देखने के बाद समय से आधा घंटा पहले ही औफिस पहुंच गया. कमरे में सुगंधा को आया देख यह सोचते हुए कि दोनों तरफ आग बराबर लगी है, वह प्रसन्न हो उठा.

सुगंधा के पास जा विहान ने उल्लासित हो बातचीत करना शुरू कर दिया, लेकिन सुगंधा में पहले दिन सा जोश नहीं था. कल जिन नैनों में विहान को प्यार का सागर छलकता दिख रहा था, आज अजनबी रंग लिए वही निगाहें दरवाजे पर लगी थीं. कुछ देर बाद मैनेजर ने प्रवेश किया तो सुगंधा की आंखें चमक उठीं.

बातचीत अधूरी छोड़ वह मुसकरा कर ‘गुड मौर्निंग’ कह इठलाती हुई मैनेजर के पीछेपीछे चल दी. उस के साथ बातें करते हुए एक बार भी उसे विहान का ध्यान नहीं आया. बातचीत के बीच जिस तरह ठहाके लग रहे थे, उस से विहान ने अनुमान लगा लिया कि वहां औफिस के काम की बातें तो बिलकुल नहीं हो रहीं. मैनेजर ने कुछ देर बाद कौफी मंगवा ली. कमरे में उन दोनों के अलावा विहान ही था, लेकिन उस से किसी ने पूछना भी जरूरी नहीं सम झा.

जब अन्य लोग भी आने लगे तो मैनेजर वहां से चलता बना. सुगंधा अपने गु्रप के मित्रों को चटखारे ले कर बताने लगी कि किस प्रकार उस ने बौस के कपड़ों की प्रशंसा कर आज उसे उल्लू बना दिया. ये सब उस ने आने वाले सप्ताह में छुट्टियां लेने के लिए किया था.

‘‘मार डालती हो यार तुम तो अपने गोरे रंग से सभी को, फिर यह मैनेजर का बच्चा क्या चीज है?’’ मनीष के कहते ही सब का मिलाजुला जोरदार ठहाका कमरे में गूंज उठा.

आगे पढ़ें- घर आ कर भी वह स्वयं को उपेक्षित सा महसूस करता रहा….

ये भी पढ़ें- मुखरित मौन: मानसी को क्या समझाना चाहती थी सुजाता

आईना- भाग 3 : रिश्तों में संतुलन ना बनाना क्या शोभा की एक बढ़ी गलती थी

चाय बनाने में चारू के हाथ कांप रहे थे. वह डर रही थी तो मैं ने उस का हौसला बढ़ाने के लिए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, कुछ कमी होगी तो हम पूरी कर लेंगे. तुम बनाओ तो सही. बनाओ, शाबाश.’’

मेरे इस अभियान में पति भी मेरे साथ हो गए थे. उन्हें विश्वास था कि चारू अच्छी हो जाएगी. शाम को घर आए तो पता चला कि 15 दिन की छुट््टी पर हैं. पूछा तो हंसने लगे, ‘‘क्या करता, आज शोभा का फोन आया था. कहती थी 2 दिन के लिए यहां आना चाहती है. उसे मैं ने टाल दिया. मैं ने कह दिया कि कल से बनारस जा रहे हैं हम, मिल नहीं पाएंगे. इसलिए क्षमा करें.’’

‘‘अच्छा? यह तो मैं ने सोचा ही न था,’’ पति की समझदारी पर भरोसा था मुझे.

‘‘अब चारू के बहाने मैं भी घर पर रह कर आराम करूंगा. चारू नएनए पकवान बनाएगी, है न बिटिया.’’

‘‘मेरी खातिर आप को कितना झूठ बोलना पड़ रहा है.’’

15 दिन कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. सब बदल गया, मानो हमें बेटी मिल गई हो. सुबह नाश्ते से ले कर रात खाने तक सब चारू ही करती रही. मेरे कितने काम रुके पड़े थे जो मैं गरदन में दर्द की वजह से टालती जा रही थी. चारू ने निबटा दिए थे. घर की सब अलमारियां करीने से सजा दीं और बेकार सामान अलग करवा दिया.

घर की साजसज्जा का भी चारू को शौक है. फैब्रिक पेंट और आयल पेंट से हमारा अतिथि कक्ष अलग ही तरह का लगने लगा. नई सोच और नई ऊर्जा पर मेरी थक चुकी उंगलियां संतुष्ट एवं प्रसन्न थीं. काश, ऐसी ही बहू मुझे भी मिल जाए. क्या दीदी को ऐसा नहीं लगता? फिर सोचती हूं उस की उंगलियां थकी ही कब थीं जो बहू में सहारा खोजतीं. उस ने तो आज तक सदा अभिनय किया और दांवपेच खेल कर अपना काम चलाया है. मेरी बनाई पाक कला पर बड़ी सहजता से अपना नाम चिपकाना, बनीबनाई चीज और पराई मेहनत का सारा श्रेय खुद ले जाना दीदी का सदा का शौक रहा है. भला इस में मेहनत कैसी जो वह थक जाती और बहू का सहारा उसे मीठा लगता.

ये भी पढ़ें- कोई नहीं: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

अनुराग का फोन अकसर आता रहता. चारू उस से बात करने से भी कतराती. पूछने पर बताने लगी, ‘‘बहुत परेशान किया है मुझे अनुराग ने भी. कम से कम इन्हें तो मेरा साथ देना चाहिए. मेरा मन नहीं है बात करने का.’’

एक दिन चारू बोली, ‘‘मौसी, मैं अपने मायके पापा के पास भाग जाना चाहती थी लेकिन डरती हूं कि पापा को मेरी हालत देख कर धक्का लगेगा. उन्हें भी तो दुखी नहीं करना चाहती.’’

‘‘इस घर को अपने पापा का ही घर समझो, मैं हूं न,’’ भावविह्वल हो कर मेरे पति बोले थे. बरसों से मन में बेटी की साध थी. चारू से इन की अच्छी दोस्ती हो गई थी. दोनों किसी भी विषय पर अच्छी खासी चर्चा कर बैठते.

‘‘बहुत समझदार और बड़ी सूझबूझ वाली है चारू, इसीलिए तुम्हारी बहन के गले में कांटे की तरह फंस गई. यह तो होना ही था. भला शोभा जैसी औरत इसे कैसे बरदाश्त करती?’’ मेरे पति बोले.

15 दिन बाद अनुराग आया और उस के सभी प्रश्नों के उत्तर उस के सामने थे. मेरे घर की नई साजसज्जा, दीवार पर टंगी खूबसूरत पेंटिंग, सोफों पर पड़े सुंदर कुशन, मेज पर सजा स्वादिष्ठ नाश्ता, सब चारू का ही तो कियाधरा था.

‘‘पता चला, मैं क्यों कहती थी कि चारू को मेरे पास छोड़ जा. कुछ नहीं किया मैं ने, सिर्फ उसे मनचाहा करने की आजादी दी है. पिछले 15 दिन से मैं ने पलट कर भी नहीं देखा कि वह क्या कर रही है. जो लड़की मेरा घर सजासंवार सकती है, क्या अपने घर में निपट गंवार होगी? क्या एक कप चाय भी वह तुम्हें नहीं पिला पाती होगी? अपनी मां का इलाज कराओ अनुराग, चारू तो अच्छीभली है. जाओ, जा कर मिलो उस से, अंदर है वह.’’

ये भी पढ़ें- मैं जरा रो लूं : मधु को क्यों आ गया रोना

शाम तक अनुराग हमारे ही साथ रहा. घर जाने का समय आया तो हम दोनों का भी मन डूबने लगा. अपने मौसा की छाती से लग कर चारू फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘नहीं बिटिया, रोना नहीं. तुम्हारा अपना घर तो वही है न. अब तुम्हें उसी को सजानासंवारना है. जब भी याद आए, मत सोचना तुम्हारे पापा का घर दूर है. नहीं तो एक फोन ही घुमा देना, हम अपनी बच्ची से मिलने आ जाएंगे.’’

हाथ में पकड़ी सुंदर टाप्स की डब्बी इन्होंने चारू को थमा दी.

‘‘पापा के घर से बिटिया खाली हाथ नहीं न जाती. जाओ बच्ची, फलो- फूलो, खुश रहो.’’

दोनों चले गए. हम उदास भी थे और संतुष्ट भी. पूरी रात अपने कदम का निकलने वाला नतीजा कैसा होगा, सोचते रहे. सुबहसुबह इन्होंने शोभा दीदी के घर फोन किया.

‘‘दीदी, हम बनारस से लौट आए हैं. आप आइए न, कुछ दिन हमारे पास,’’ और कुछ देर इधरउधर की बात करने के बाद हंसते हुए फोन रख दिया.

‘‘सुनो, अब तुम्हारी बहन परेशान हैं. क्या उन्हें भी बुला लें. कह रही हैं, चारू अनुराग के साथ कुछ दिनों के लिए टूर पर गई थी और अब लौटी है तो मेमसाहब के रंगढंग ही बदले हुए हैं. कह रही हैं कि अपना और अनुराग का नाश्ता वह खुद ही बनाएंगी.’’

ये भी पढ़ें- जिंदगी की धूप: मौली के मां बनने के लिए क्यों राजी नहीं था डेविड

हैरान रह गई मैं, ‘‘तो क्या बहू की चुगली दीदी आप से कर रही हैं. उन्हें शर्म है कि नहीं?’’

मेरे पति खिलखिला कर हंस पडे़ थे. हमारा प्रयोग सफल रहा था. चारू संभल गई थी. अब भोगने की बारी दीदी की थी. कभी न कभी तो उसे अपना बोया काटना ही पड़ता न, सो उस का समय शुरू होता है अब.

अब अकसर ऐसा होता है, दीदी आती हैं और घंटों चारू के उसी अभिनय को कोसती रहती हैं जिस के सहारे दीदी ने खुद अपनी उम्र गुजारी है. कौन कहे दीदी से कि उसे आईना दिखाया जा रहा है, यह उसी पेड़ का कड़वा फल है जिस का बीज उस ने हमेशा बोया है. कभी सोचती हूं कि दीदी को समझाऊं लेकिन जानती हूं वह समझेंगी नहीं.

भूल जाता है मनुष्य अपने ओछे कर्म को. अपने संताप का कारण कभीकभी वह स्वयं ही होता है. जरा सा संतुलन अगर रिश्तों में शोभा भी बना लेने का प्रयास करती तो न वह कल औरों को दुखी करती और न ही आज स्वयं परेशान होती.

Romantic Story: कैसे कैसे मुखौटे-भाग 3- क्या दिशा पहचान पाई अंबर का प्यार?

दिशा अपने को प्रसन्न रखने का भरपूर प्रयास कर रही थी. स्वयं को सांत्वना देती रहती थी कि कभी न कभी समय और विक्रांत का मन बदल ही जायेगा. लेकिन सुधरना तो दूर विक्रांत की निर्लज्जता दिनों-दिन बढ़ रही थी. हद तो तब हुई जब वह कौल गर्ल्स को घर पर बुलाने लगा. दिशा के बैड-रूम में उसके पति की किसी और के साथ हंसने-खिलखिलाने की आवाज़ बाहर तक आती. जब एक दिन निराश हो दिशा ने इसका विरोध किया तो विक्रांत उसे संकीर्ण विचारधारा की पिछड़ी हुई औरत कहकर मज़ाक उड़ाते हुए बोला, “तुम जैसी कंज़र्वेटिव औरत के लिए मेरे दिल में कभी जगह नहीं हो सकती. चुपचाप घर के कोने में पड़ी रहा करो. पैसा जब चाहे मांग लेना, कभी मना नहीं करूंगा. बस उन पैसों के बदले सोसायटी में मेरी प्यारी सी संस्कारी धर्मपत्नी बनी रहना और मैं बना रहूंगा तुम्हारा शरीफ़ सा सिविलाइज़्ड हज़बैंड!”

गुस्से से थर-थर कांपती दिशा ने यह सुन घर छोड़ने में एक मिनट की भी देरी नहीं की. विक्रांत के क्षमा मांगने पर दिशा के माता-पिता ने उसे एक मौका और देने को कहा, लेकिन वह नहीं मानी. दिशा की कोई मांग नहीं थी इसलिए तलाक़ जल्दी हो गया. इक्नौमिक्स में एमए करने के बाद एक प्राइवेट बैंक में उसकी नौकरी लग गयी. पिछले तीन वर्षों से माता-पिता के साथ रह रही थी वह.

ये  भी पढ़ें- Short Story: मर्यादा- आखिर क्या हुआ निशा के साथ

अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई और दिशा को आभास हुआ कि वह गैस्ट हाउस में लेटे हुए न जाने कितने वर्ष पीछे चली गयी थी. ‘लगता है डायरेक्टर सर होंगे, मीटिंग को लेकर कुछ ज़रुरी बात करनी होगी.’ सोचते हुए दिशा ने दरवाज़ा खोला तो सामने अम्बर को देख आश्चर्यमिश्रित हर्ष से उसका मुंह खुला रह गया.

“कितने मैसजेस किये मैंने अभी तुम्हें व्हाट्सऐप पर, देखे भी नहीं तुमने….बहुत बिज़ी हो गयी हो.” बैड के पास रखी कुर्सी पर बैठते हुए अम्बर स्नेह भरे शिकायती अंदाज़ में बोला.

“बस सिर दर्द था तो आंख लग गयी थी…..अरे, रात के दस बज गए!” दीवार घड़ी की ओर देखते हुए दिशा बोली.

“तभी तो आया था तुम्हारे पास. सोचा था अब तक तो डिनर भी कर लिया होगा तुमने. तुम्हारे साथ कुछ देर बैठने का मन था. चलो, कहीं बाहर चलते हैं, वैसे खाना मैंने भी नहीं खाया अब तक.” दिशा को मना करने का अवसर ही नहीं मिला. दोनों पास के एक रेस्टोरैंट में चले गए.

दिशा चाह रही थी कि उसके चेहरे पर पीड़ा की एक रेखा भी न आने पाये. अम्बर के सामने वह प्रसन्न दिखने की पूरी कोशिश कर रही थी. कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद अम्बर ने विक्रांत की चर्चा छेड़ दी. दिशा अधिक देर तक अम्बर के समक्ष संतुष्टि और प्रसन्नता का मुखौटा नहीं लगा सकी और पनीली आंखों से जीवन का कड़वा सच उसके सामने खोल कर रख दिया.

“क्या दिशा तुम भी…..! इतने दुःख झेले और मुझे ख़बर तक नहीं दी. आज भी हम नहीं मिलते तो मैं जान ही नहीं पाता कि तुम पर क्या बीती है.” दिशा की पीड़ा का असर अम्बर के दिल से होकर चेहरे पर झलक रहा था.

ये भी पढे़ं- Romantic Story: फिर वही शून्य: क्या शादी के बाद पहले प्यार को भुला पाई सौम्या

डिनर के बाद कुछ देर बाहर टहलते हुए दोनों ने बीते समय की अन्य बातें शेयर की. अम्बर दिशा को गैस्ट हाउस तक छोड़ने आया. बाद में वे जितने दिन गोआ में रहे काम से समय निकालकर कहीं न कहीं घूमने निकल जाते. यूं तो समुद्री तटों के लिए विख्यात गोआ में घूमते हुए दिशा को वह पल याद आ ही जाता था जब वे स्टडी टूर पर गए थे, लेकिन ‘डोना पाउला’ के लवर पौइंट पर जाकर वह खो सी गयी. कहते हैं कि उस समय के वायसराय की बेटी ‘डोना पाउला डी मेनजेस’ एक मछुआरे से बहुत प्रेम करती थी. जब उसके पिता ने दोनों को विवाह की अनुमति नहीं दी तो उसने चट्टान से कूदकर अपनी जान दे दी थी. एक पुरुष और स्त्री की मूर्तियां भी हैं वहां पर. दिशा उनकी कहानी सुनकर उदास हो गयी. उसकी उदासी अम्बर से छुपी न रही और वह उसका मन बहलाने पास की एक मार्किट में ले गया. दिशा ने सीपियों और शंखों से बने कुछ गहने खरीदे और अम्बर ने पुर्तगाली हस्तशिल्प से तैयार नौका का एक शो-पीस. अगले दिन दिशा दिल्ली लौट गयी और तीन दिन बाद अम्बर भी आ गया.

वापिस दिल्ली आने के बाद अम्बर और दिशा अक्सर मिलने लगे. कभी शाम को औफ़िस के बाद वे एक साथ चाय-कौफ़ी पीते तो कभी रविवार के दिन मौल में मिलते. अपने घर में यह सब बताकर दिशा कोई बवंडर खड़ा नहीं करना चाहती थी, किन्तु एक दिन गौरव भैया ने दोनों को साथ-साथ देख लिया.

उन दोनों के एक मित्र, कुणाल का कुछ दिनों बाद विवाह होने वाला था. एक साथ कार्ड देने के उद्देश्य से उसने कुछ दोस्तों को रेस्टोरैंट में बुला लिया. सबसे पहले अम्बर व दिशा वहां पहुंचे. वे जाकर बैठे ही थे कि दिशा की नज़र सामने की टेबल पर पड़ गयी. गौरव अपने एक मित्र के साथ वहां बैठा हुआ था. कुणाल व अन्य मित्रों के आने तक वे दोनों गौरव के पास बैठ गए. सबके आ जाने पर गौरव वापिस चला गया. चाय पीते हुए वे सब कौलेज के दिनों को याद कर ठहाके लगा रहे थे. दिशा भी बातचीत और हंसी-मज़ाक में सबका साथ दे रही थी, लेकिन भीतर ही भीतर भयभीत थी कि घर पर जाने क्या होगा? गौरव भैया अम्बर को लेकर न जाने मम्मी-पापा से क्या कहेंगे?

रेस्टोरैंट से निकलकर दिशा ने अपने मन का डर जब अम्बर के सामने रखा तो उसने आश्वासन देते हुआ कहा कि किसी भी समय यदि उसकी आवश्यकता हो तो दिशा कौल या मैसेज कर दे. वह जल्द से जल्द उनके घर पहुंचकर उसके परिवारवालों को समझा देगा.

दिशा ने डरते हुए घर में कदम रखा. मां उसके लिए चाय लेकर आ गयीं. फिर गौरव और माता-पिता के बीच कानाफूसी होने लगी. कुछ देर बाद वे तीनों मुस्कुराते हुए दिशा के पास आये और बात शुरू करते हुए मां बोली, “बेटा, गौरव बता रहा था कि अम्बर की अभी तक शादी नहीं हो पायी है. हम चाहते हैं कि उसे कल घर पर बुला लो, हम रिश्ते की बात करना चाहते हैं.”

ये  भी पढ़ें- बोया पेड़ बबूल का-जब संगीता ने अपनी बसी बसाई गृहस्थी उजाड़ ली

“यह क्या कह रही हैं आप?” दिशा के माथे पर बल पड़ गए.

“मेरी और पापा की भी यही राय है.” गौरव मुस्कुरा रहा था.

दिशा उनके इस व्यवहार से भौंचक्की रह गयी. गुस्से से तमतमाया चेहरा लेकर वह कमरे से निकल ही रही थी कि पापा बोल उठे, “तुम्हारी भलाई की बात ही कर रहे हैं, बेटा.”

आगे पढ़ें- दिशा अब चुप नहीं रह सकी…..

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें