Short Story : गुड्डन – कामवाली गुड्डन की हरकतों से परेशान थी निशा

Short Story : “गुड्डन आज तुम फिर देर से आई हो, आठ बज गए हैं. तुम्हारे लिए सवेरेसवेरे सजनासंवरना ज्यादा जरूरी है. अपने काम की फिक्र बिलकुल नहीं है. तुम ने तो हद कर दी है. इतनी सुबहसुबह कोई लिपस्टिक लगाता है क्या? मैं तो तुम्हारी हरकतों से आजिज आ चुकी हूं.’’

गुड्डन लगभग 18-19 साल की लड़की है. वह उन की सोसाइटी के पीछे वाली खोली में रहती है.

जब वह 11-12 साल की थी तब वह मुड़ीतुड़ी फ्रौक पहन कर और उलझेबिखरे बालों के साथ मुंह
अंधेरे काम करने आ खड़ी होती थी. पर जैसे ही उस ने जवानी की दहलीज पर पैर रखा, उसे दूसरी
लड़कियों की तरह खुद को सजनेसंवरने का शौक हो गया था.

अब वह साफसुथरे कपड़े पहनती, सलीके से तरहतरह के स्टाइलिश हेयरस्टाइल रखती, नाखूनों में नेलपौलिश तो होंठ लिपस्टिक से रंगे होते.

बालों में रंगबिरंगी सस्ती वाली बैकक्लिप लगा कर आती.
अब वह पहले वाली सीधीसादी टाइप की नहीं वरन तेजतर्रार छम्मकछल्लो बन गई थी.

खोली के कई लड़कों के साथ उस के चक्कर चलने की बातें, उस खोली में रहने वाली दूसरी कामवालियां चटपटी खबरों की तरह एकदूसरे से कहतीसुनती रहती थीं.

निशा की बड़बड़ करने की आदत से वह अच्छी तरह परिचित थी. सुबहसुबह डांट सुन कर उस ने
मुंह फुला लिया था. लेकिन उन के घर से मिलने वाले बढ़िया कौस्मेटिक की लालच में वह चुपचाप उन की
बकबक को नजरअंदाज कर चुपचाप सुन लिया करती थी. दूसरे अंकलजी भी तो जब तब ₹100- 200 की
नोट चुपके से उसे पकड़ा कर कहते कि गुड्डन काम मत छोड़ना, नहीं तो तेरी आंटी परेशान हो जाएंगी.

वह अपनी नाराजगी दिखाने के लिए जोरजोर से बरतन पटक रही थी. निशा समझ गई थीं कि आज गुड्डन उन की बात का बुरा मान गई है. वह उस के पास आईं और प्यार से उस के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं,”क्यों रोजरोज देर से आती हो? अंकलजी को औफिस जाने में देर होने लगती है न…”

“आओ, नाश्ता कर लो.”

“आंटीजी, मुझे आज पहले ही देर हो गई है. अभी यही सारी बातें 502 वाली दीदी से सुननी पड़ेगी.‘’

निशा उस की मनुहार करतीं, उस से पहले ही गुड्डन जोर से गेट बंद कर के जा चुकी थी.

उन्हें गुड्डन का यह व्यवहार जरा भी अच्छा नहीं लगा,“जरा सी छोकरी और दिमाग तो देखो… यहांवहां लड़कों के संग मुंह मारती रहती है जैसे मैं कुछ जानती ही नहीं.’’

“निशा बस भी करो. तुम्हें अपने काम से मतलब है कि उस की इन बातों से…’’

पति की नाराजगी से बचने के लिए वे चुपचाप अपना काम करने लगी थीं पर उन के चेहरे पर नाराजगी के
भाव साफ थे.

निशा 46 वर्षीय स्मार्ट शिक्षित घरेलू महिला थीं. उन के पति रवि बैंक में मैनेजर थे. उन के पास घरेलू
कामों के लिये 3 कामवालियां थीं. उन्हीं में एक गुड्डन भी थी.

पत्रिका पढ़ने के बाद उन का सब से पसंदीदा काम था अपनी कामवाली से दूसरे घरों की महिलाओं की रिपोर्ट लेना. उस के बाद फिर थोड़ा नमकमसाला लगा कर फोन घुमा कर उन्हीं बातों की चटपटी गौसिप
करना.

गुड्डन उन की सब से चहेती और मुंहलगी कामवाली थी. वह सुबह बरतन धो कर चली जाती फिर दोपहर तक सब का काम निबटा कर आती तो बैठ कर आराम से सब के घरों में क्या चल रहा है, बताती और कभी
खाना खाती तो कभी चाय बना कर खुद पीती और उन्हें भी पिलाया करती, फिर अपने घर चली जाया करती.

निशा का यह मनपसंद टाइमपास था. दूसरों के घरों के अंदर की खबरें सुनने में उन्हें बहुत मजा आता था. गुड्डन भी तेज थी, सुनीसुनाई बातों में कुछ अपनी तरफ से जोड़ कर इस कदर चटपटी खबर में तबदील कर देती मानो सच उस ने अपनी आंखों से देखा हो. लेकिन इधर कुछ दिनों से उस का रवैआ बदल गया था.

मोबाइल फोन की आवाज से उन का ध्यान टूटा. उधर महिमा थी,”हैलो आंटी, आज गुड्डन आप के यहां
आई है क्या? बहुत नालायक है. कभी फोन बंद आता है तो कभी बिजी आता है. मैं तो इस की हरकतों से आजिज आ गई हूं. वाचमैन से मैं ने कह दिया है कि देख कर के मेरे लिए कोई ढंग की अच्छी सी कामवाली भेजो. गुड्डन आई कि नहीं?”

“तुम ने मुझे बोलने का मौका ही कहां दिया,” निशा हंस कर बोली थीं.

“आंटी आप ने इस के करम सुने. कई लड़कों के साथ इस का चक्कर चल रहा है…’’

यह उन का मन पसंद टौपिक था, वे भला कैसे चुप रहतीं,”अरे वह जो सोसाइटी के बाहर राजेंद्र प्रैस का
ठेला लगाता है न दिनभर उसी के घर में घुसी रहती है यह तो… मेरे घर से काम कर के गई और यहां तो तुम्हारे
घर पर ही जाने को बोल कर गई थी. आज तो उस ने चाय भी नहीं पी और ऐसे बरतन पटकपटक कर अपना
गुस्सा दिखा रही थी कि कुछ पूछो मत…”

“आज सुबह आप सैर पर नहीं आई थीं. तबियत तो ठीक है न?”

“हां, आज उठने में देर हो गई…”

“ओके बाय आंटी, दरवाजे पर देखती हूं शायद गुड्डन आ गई है.‘’

गुड्डन का काम करने का अंदाज सोसाइटी की महिलाओं का पसंद था. एक तो वह चोरी नहीं करती थी, दूसरा घर में झाङूपोंछा अच्छी तरह करती. वह कई सालों से इन उच्च और मध्यवर्ग परिवारों की महिलाओं के घरों में काम करती आ रही थी. इसलिए वह इन लोगों के स्वभाव और कार्यकलापों से खूब अच्छी तरह परिचित हो चुकी थी. वह इन लोगों की आपसी बातों पर अपना कान लगाए रहती थी और सब सुनने के बाद मौका मिलते ही इन लोगों को अच्छी तरह से सुना भी दिया करती थी.

इन दिनों राजेंद्र के साथ उस की दोस्ती के चर्चे सब की जबान पर चढ़े हुए थे. वह जिस के घर में भी काम करने जाती, वहां व्यंगात्मक लहजे में कुछ न कुछ सुन ही लेती,”तुम्हें यहांवहां घूमने से फुरसत मिल गई तो काम कर लो अब…”

राजेंद्र जिस की उम्र लगभग 40 साल थी, उस की बीबी उस को छोड़ कर किसी दूसरे के साथ चली गई थी.
वह और उस का बूढा बाप दोनों ही खोली में अकेले ही रहते थे. कुछ दिनों पहले उस ने अपनी खेती की जमीन बेची थी. उस के एवज में उसे लाखों रुपए मिले थे. वह गेट के बाहर ठेले पर प्रैस किया करता था. उस से भी उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. वह राजेंद्र के पिता को कभी चाय दे जाती तो कभी खाना खिला देती.
इस तरह से कालीचरण पर उस ने अपना फंदा फेंक दिया था. अब कालीचरण उसे बिटियाबिटिया कह कर उस पर लाड़ दिखाता और उस को अपने साथ बाजार ले जाता और कभी चाट खिलाता तो कभी मिठाई.

तेज दिमाग गुड्डन ने राजेंद्र को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उस से दोस्ती कर ली. वह उस के घर में उस के लिए रोटी बना देती फिर दोनों मिल कर साथ में खाना खाते. दोनों साथ में कभी घूमने जाते तो कभी मूवी देखने, तो कभी मौल घूमते. राजेंद्र छेड़ता तो वह खिलखिलाती. उन दोनों की दोस्ती पर यदि कोई कुछ उलटासीधा बोलता तो वह पलट कर उस से लड़ने पर उतारू हो जाती,”तुम्हें क्या परेशानी है? राजेंद्र हमारा दोस्त है, खसम है. हम तो खुल्लमखुल्ला कह रहे हैं. जो करना है कर लो. जो
समझना है समझ लो मेरी बला से…”

उस के दोनों मतलब सिद्ध हो रहे थे. मालकिन की तरह उस के घर में मनचाहा खाना बनाती, खुद भी खाती
और राजेंद्र को भी खिलाती. दोनों की जिंदगी में रंग भर गए थे. राजेंद्र भी रोज उस के लिए मिठाई वगैरह
कुछ न कुछ ले कर आता. वह उसे अपने साथ बाजार भी ले कर जाता. कभी सलवारसूट तो कभी लिपिस्टिक, तो कभी चूड़ियां या इसी तरह अन्य सजनेसंवरने का सामान दिलवाता रहता.

इसलिए स्वाभाविक था कि वह उसे खुश रखता है तो उस का भी तो फर्ज बनता था कि वह भी उसे खुश रखे. बस इस तरह दोनों के बीच
अनाम सा रिश्ता बन गया था.

उस की लालची अम्मां को खानेपीने को मिल रहा था. वह भी खुश थी.
उस के दोनों हाथों में लड्डू थे. जब जिस से मौका लगता उस से पैसा ऐंठती. बापबेटा दोनों उस की मुट्ठी में
थे…

इसी रिश्ते की खबर सोसाइटी की तथाकथित उच्चवर्गीय महिलाओं को मिल गई थी, क्योंकि खोली की दूसरी कामवालियां आपस में बैठ कर ऐसी बातें चटखारे लेले कर के अपने मन की भड़ास निकाला करती थीं और इसीलिए सोसाइटी की महिलाओं के पास भी गुड्डन के कारनामों की खबर नमकमिर्च के साथ पहुंचती रहती
थी.

घरेलू महिलाओं की चर्चा जानेअनजाने इन घरेलू कामवालियों पर आ कर टिक जाती थीं क्योंकि उन्हें इन के साथ रोज ही दोचार होना पड़ता था.

गुड्डन सोसाइटी में कई घरों में झाड़ूपोंछा करती थी और वर्मा अंकल के यहां तो खाना भी बनाती थी. चूंकि वह बिलकुल अकेले रहते हैं इसलिए उन के घर की तो सर्वेसर्वा वही है.

दोपहर में खाली होते ही महिमा निशा के घर आ गई थी,”क्या हो रहा है आंटी?”

“कुछ खास नहीं. आओ बैठो…”

ऐसा लग रहा था कि मानो कोई राज बताने जा रही है,”कुछ सुना है
आप ने? इस गुड्डन के तो बड़े चर्चे हैं.चारों तरफ इस की बदनामी हो रही है. अपने बगल में ही दरवाजे के
अंदर वर्मा अंकल के साथ जाने क्या गुल खिला रही है. रीना बता रही थी कि कोई रंजीत औटो चलाता है,
उस के साथ भी यह प्यार का नाटक कर के पैसा ऐंठ रही थी. अब तो वह राजेंद्र के साथ खुलेआम मटरगश्ती
करती फिर रही है.”

“अच्छा… आज उसे आने दो, ऐसी झाड़ लगाऊंगी कि वह भी याद रखेगी.”

फिर उन्हें उस का सुबह का बरतन
पटकना याद आ गया तो बोलीं,”छोड़ो महिमा, हमें उस के काम से मतलब है. छोटी सी थी तब से मेरे घर पर काम कर रही है. एक भी चम्मच इधर से उधर नहीं हुई. घर को चमका कर जाया करती है.

“हम लोगों को क्या करना है. जो जैसा करेगा वह भरेगा… उस की अम्मां ने तो इसी तरह से अपनी जिंदगी ही बिता दी.‘’

महिमा ने अपनी दाल गलती हुई न देख कर बोली,”आंटी, अब चलूंगी, आरव स्कूल से आता होगा.”

निशि के पेट में खलबली मची थी,’गुड्डन को आने दो आज उस की क्लास ले कर रहूंगी… 40- 45 साल के राजेंद्र जैसे मालदार पर अपना
हाथ मारा है. कहीं मेरे सीधेसादे रवि पर भी अपना जादू न चला दे. ऐसी छोरियां पैसे के लिए कुछ भी कर सकती हैं…’

अगली दोपहर जब वह आई तो निशा तापाक से बोल पङीं,”आज बड़ा सजधज कर आई है… यह सूट बड़ा सुंदर है. तुझे किस ने दिया है?
यह तो बहुत मंहगा दिख रहा है.”

“इतना मंहगा सूट भला कौन देगा? सोसाइटी में नाम के बड़े आदमी रहते हैं लेकिन दिल से छोटे हैं सब.
कोई कुछ दे नहीं सकता. मैं ने खुद खरीदा है.”

“साफसाफ क्यों नहीं कहतीं कि तेरे आशिक राजेंद्र ने दी है तुम्हें.”

“नहीं आंटीजी, रंजीत दिल्ली से मेरे लिए ले कर आया है. मुझ से कहता
रहता है कि तुझे रानी बना कर रखूंगा…’’ वह शर्मा उठी थी.

वे तो बंदूक में जैसे गोली भरी बैठी हुई थीं,”काहे री गुड्डन, अभी तक तो राजेंद्र के साथ तेरा लफड़ा चल रहा
था अब यह रंजीत कहां से आ मरा? उस दिन तेरी अम्मां आई थी. वह कह रही थी कि तू ज्यादा समय राजेंद्र की खोली में गुजारती है. वह तुझे इतना ही पसंद है तो उसी के साथ ब्याह रचा ले. तेरी अम्मां यहांवहां लड़का ढूंढ़ती फिर रही है.”

वह चुपचाप अपना काम करती रही तो निशा का मन नहीं माना. वह फिर से घुड़क कर बोलीं,”क्यों छोरी, तेरी इतनी बदनामी हो रही है तुझे बुरा नहीं लगता?”

“आंटीजी, राजेंद्र जैसे बूढ़े से ब्याह करे मेरी जूती. मैं कोई उपमा आंटी जैसी थोड़ी ही हूं, जो पैसा देख कर
ऐसा भारीभरकम काला दामाद ले आई हैं… ऐसी फूल सी नाजुक पूजा दीदी, बेचारी 4 फीट की दुबलीपतली लड़की के बगल में 6 फीट का लंबाचौड़ा आदमी…”

“चुप कर…” निशा चीख कर बोलीं,”तेरा मुंह बहुत चलता है… आकाशजी की बहुत बड़ी फैक्टरी है. वे रईस लोग हैं…’’

गुड्डन के मुंह से कड़वा सच सुन कर उन की बोलती बंद हो गई थी इसलिए उन्होंने इस समय वहां से चुपचाप हट जाना ही ठीक समझा था.

जनवरी की पहली तारीख थी. वह खूब चहकती हुई आई थी,”आंटी, हैप्पी न्यू ईयर…”

“तुम्हें भी नया साल मुबारक हो. कल कहां गायब थीं? किसी के साथ डेट पर गई थीं क्या…?’’

“आंटी, आप भी मजाक करती हैं… वह बी ब्लौक की रानी आंटी जो आप की किट्टी की भी मैंबर हैं…’’

“क्या हुआ उन को?’’

“उन का लड़का शिशिर है न… उन की शादी के लिए लड़की वाले आए थे, इसलिए आंटी ने मुझे काम करने के
लिए दिनभर के लिए बुलाया था…’’

“बेचारी रानी अपने बेटे की शादी के लिए बहुत दिनों से परेशान थीं… चलो अच्छा हुआ… शिशिर की शादी
तय हो गई.’’

“मेरी पूरी बात तो सुनिए… लड़की वाले उन की मांग सुनते रहे. सब का मुंह उतरा हुआ था…धीरेधीरे वे
लोग आपस में रायमशविरा करते रहे थे.

“आंटी, मैं भी बहुत घाघ हूं. चाय देने गई फिर बरतन धीरेधीरे उठाती रही और उन लोगों की आपसी बात ध्यान से सुन रही थी. वे कह रहे थे कि गाड़ी, 20 तोला सोना, शादी का दोनों तरफ का खर्चा लड़की वाले करें. शादी फाइवस्टार होटल में होगी…’’

“रानी आंटी तो पूरी मंगता हैं… देखो जरा, अपने लड़के को बिटिया वाले को जैसे बेच रही हैं.

“हम गरीब लोगन को सब भलाबुरा कहते हैं, लेकिन बड़े आदमी भी दिल के बड़े नहीं होते. आप लोग में
भी कम नहीं. एक लड़की की शादी करने में मायबाप चौराहे पर खड़े हो कर बिक जाएं, तब बिटिया का
ब्याह कर पाएं…

“रानी आंटी कैसी धरमकरम की बातें किया करती हैं. खुद को बड़ी धरमात्मा बनती हैं. अपने यहां भागवतकथा करवाने में लाखों रुपया खर्च कर डालीं थीं. का अब बिटिया वाले से वही खर्चा की वसूली करेंगी?

“सरकार तो दहेज को अपराध कहती है…आप लोगन में दहेज मांगने की कोई मनाही नाहीं है का?‘’

“गुड्डन मुंह बंद कर के काम किया कर, तुम इतना बोलती हो कि सिर में दर्द हो जाता है. शिशिर बड़ा
अफसर है, उस की तनख्वाह बहुत ज्यादा है…उन की बिटिया यहां पर राज रजती.”

लगभग 1 साल पहले उन के बेटे की शादी में भी गाड़ी और दहेज में बहुत सारा सामान आया था. इसलिए गुड्डन की बातें सुन कर उन्हें लगा कि वह इशारोंइशारों में उन पर भी बोली मार रही है.

निशा ने उस की ओर आंखें तरेर कर देखा और फोन पर अपनी आदत के अनुसार रानी के घर की चटपटी
खबर को इधर से उधर कर के अपने मनपसंद काम में जुट गईं.

लगभग 6 महीने पहले उन की सासूमां का इंतकाल उन के देवर के घर में हो गया था. निशा चालाक थी,
उन्होंने सासूमां के जेवर दबा कर रख लिए थे और अब वे उसे किसी के साथ बांटना नहीं चाह रही थीं…

पूरा का पूरा वे अकेले ही हजम करना चाह रही थीं. उन के देवर सतीश और ननद संध्या उन पर बंटवारा
करने का दबाव बनाए हुए थे. लेकिन उन्होंने साफसाफ कह दिया था कि उन के पास कोई जेवर नहीं है, क्योंकि उन की नियत खराब थी.
पर पति रवि बंटवारा करने के लिए उन पर दबाव डाल रहे थे. उसी सिलसिले में वे लोग कई बार आ चुके थे और हर बार गरमगरम बहस के बाद कोई न कोई बहाना बना कर वे उन्हें अपने घर से जाने पर मजबूर कर देती थीं.

“भाभी, आप मेरे हिस्से का जेवर मुझे दे दीजिए, मुझे ईशा की शादी करनी है. सोना इस समय इतना
मंहगा है… आप को तो मेरी हैसियत के बारे में अच्छी तरह से पता है…’’

संध्या भी हिम्मत कर के बोली,”भैया, आप ने अम्मां का सारा जेवर दाब लिया… यह गलत बात है कि
नहीं? घरमकान में तो हिस्सा नहीं मांग रहे हैं. जेवर का तो बंटवारा कर ही दो.”

गुड्डन काम करती सारी बातें ध्यानपूर्वक सुन रही थी तभी जैसे ही निशा को याद आया कि गुड्डन
सारी बातें सुन रही होगी तो उन्होंने तेजी से आ कर उस से बरतन हाथ से छुड़वा कर कहा कि इस समय जाओ, शाम को आना.

पर होशियार गुड्डन को तो मसाला मिल गया था कि निशा आंटी कितनी शातिर हैं. उन्होंने सब का हिस्सा
दबा कर रख लिया है.

सतीश और संध्या अकसर आते, आपस में बातचीत, कहासुनी और बहसबाजी होती पर अंतिम निर्णय कुछ भी नहीं हो पाता क्योंकि निशा की नियत खराब थी, वह किसी को कुछ देना ही नहीं चाहती थीं. वे गुड्डन के सामने रोरो कर नाटक करतीं कि ये लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं…

एक दिन गुड्डन उन से बोली,”आंटी, अम्मां कथा सुन कर आईं तो बता रही थीं कि हमारे धरम में बताया
गया है कि भाईबहन का हिस्सा हजम करना बहुत बड़ा पाप होता है.”

निशा को तत्काल कोई जवाब नहीं सूझा था. वे खिसिया कर बोलीं,”चल बड़ी धरमकरम वाली बनी
है.”

एक दिन गुड्डन सुबहसुबह बड़ी घबराई हुई सी आई थी,”आंटीजी, आंटीजी…”

“क्या हुआ, क्यों चिल्ला रही हो?”

“आप को किसी ने खबर नहीं दी? गेट पर पुलिस की गाड़ी खड़ी है. कई सारे पुलिस वाले श्याम अंकल को
अपने साथ ले कर जा रहे थे. उन्हें कुछ पूछताछ करनी है. गार्ड लोग आपस में बात कर रहे थे कि श्याम
अंकल ने ₹10 करोड़ का घोटाला किया है. उसी की जांच चल रही थी. घर में छापा पड़ा है. बहुत सारे
अफसर उन के घर में घुस कर छानबीन कर रहे हैं.

“आंटीजी ₹10 करोड़ में बहुत सारा रुपया होता होगा न?’’

निशा नीर से हमेशा से चिढ़ती थी, उस की तरफ देख कर बोली,”हां…हां… बहुत सारा होता है…”

वे बड़बड़ाने के अंदाज में बोलीं,”बड़ी अकड़ कर रहती थीं मिसेज श्याम. आज स्विट्जरलैंड तो कल
पैरिस… यह हार तो श्यामजी ने मेरे बर्थडे पर गिफ्ट किया था…अब आज क्या इज्जत रह गई…?”

“आंटीजी आप लोग हम लोगन को बेकार में भलाबुरा कह के बदनाम करती रहती हैं… कम से कम
हम लोग भाईबहन का हिस्सा तो नहीं मार कर रख लेते… हम लोग बैंक की रकम तो नाहीं मार लेते. हम
लोग खोली में चाहे कितना लड़झगड़ लें लेकिन यदि कोई पर मुसीबत आ जाए तो तुरंत सब उस के दरवाजे
पर मदद करने के लिए इकट्ठा होय जात हैं…

“आज श्याम अंकल का मुंह उतरा हुआ था. उन के आसपास दूरदूर तक कोई नहीं खड़ा हुआ था… नीरा
दीदी फूटफूट कर रो रही थीं… उन का फोन भी उन से ले लिया… सब लोग बताय रहे थे. हम तो सुबह से
गार्ड के पास ही खड़े होय कर सब तमाशा देख रहे थे… बेचारी नीरा दीदी…”

गुड्डन को आंसू बहाते देख निशा उस की भावुकता देखसमझ नहीं पा रही थीं कि क्या करें और इस से क्या
कहें… वे उस के लिए गिलास में पानी ले कर आईं,“लो पानी पी लो और चुप हो जाओ. उन के वकील उन्हें छुड़ा कर बाहर लाने के लिए कोशिश कर रहे होंगे और वह जल्दी ही छूट कर आ जाएंगे.”

लेकिन मन ही मन में निशा सोच रही थीं कि गुड्डन भला इस केस की पेचीदगी को क्या समझेगी?
पर आज गुड्डन की भावुकता को देख कर पता नहीं क्यों नीरा की बेबसी
के बारे में सोच कर वह भी उदास हो उठी थीं.

एक स्त्री की बेचारगी के बारे में सोच कर उन की आंखें भी भीग उठीं.

गुड्डन के हाथ काम कर रहे थे लेकिन वह निरंतर बड़बड़ा रही थी,”सब देखने के बड़े आदमी बनते हैं… कोई
किसी के दुख में नाहीं खड़ा होता… बड़े आदमी खालीपीली दिखावा करना जानत हैं…”

गुड्डन लगातार रोए जा रही थी और उस के निश्छल आंसुओं के कारण उन का भी दिल भर आया था और वे भी उदास हो उठी थीं.

Kahaniyan : कंगन – जब सालों बाद बेटे के सामने खुला वसुधा का राज

Kahaniyan : ‘‘अरे,यह कमरे का क्या हाल बना रखा है रुचिता?’’ कमरे के फर्श पर फैले सामान को देख कर वसुधा ने पूछा.

‘‘मां, राघव ने जो हीरे का कंगन दिया था शादी की वर्षगांठ पर नहीं मिल रहा. सारा सामान निकाल कर देख लिया, पता नहीं कहां है. मैं बहुत परेशान हो रही हूं कहीं खो तो नहीं गया. यहीं अलमारी में रखा रहता था… बाकी सब चीजें हैं बस वही नहीं है. राघव को बहुत बुरा लगेगा और नुकसान हो जाएगा सो अलग,’’ रुचिता ने परेशानी भरे स्वर में कहा.

‘‘जाएगा कहां घर में ही होगा तुम ज्यादा परेशान न हो, कहीं रख कर भूल गई होगी, मिल जाएगा,’’ वसुधा ने रुचिता की परेशानी कम करने को बात टाल दी. लेकिन वह भी सोच में पड़ गई कि रुचिता के कमरे में कभी कोई बाहर वाला नहीं जाता, कोरोना की वजह से आजकल सफाईवाली भी नहीं आ रही और रुचिता इतनी लापरवाह भी नहीं कि इतनी कीमती चीज कहीं भी रख दे. फिर कंगन जा कहां सकता है.

यों तो वसुधा और रुचिता दोनों सासबहू थीं, लेकिन आपस में बंधन बिलकुल मांबेटी जैसा था. वसुधा के एक ही बेटा था, राघव, जो आईआईटी से बीटैक कर के अब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीईओ था. जब राघव 5 साल का था तभी उस के मातापिता का तलाक हो गया था, क्योंकि उस के पिता के अपने ही कार्यालय की एक महिला से संबंध थे. वसुधा ने तब से अकेले ही राघव की परवरिश की थी. उस ने राघव को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. राघव पढ़ाई में होशियार था सो उस का चयन आईआईटी में हो गया. वहीं कैंपस प्लेसमैंट भी हो गया और अब 15 साल बाद वह सीईओ बन गया था. इसी बीच वसुधा ने उस के लिए रुचिता को पसंद कर 2 साल पहले दोनों की शादी करवा दी थी. उस ने सोचा अब एक बेटी की कमी पूरी हो जाएगी. रुचिता भी वसुधा को मां की तरह मानती थी. दोनों को देख कर लोग अकसर उन्हें मांबेटी समझते थे.

शाम को जब राघव अपने दफ्तर से लौटा तो रुचिता ने उस से पूछा कि कहीं उस ने वह कंगन कहीं रख तो नहीं दिया. लेकिन राघव ने भी कहा कि उसे कंगन के बारे में कुछ नहीं पता. अब तो रुचिता की सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी.

उसे इस तरह रोता हुआ देख कर राघव ने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘अरे क्यों परेशान हो रही हो मिल जाएगा और नहीं मिला तो कोई बात नहीं तुम पर ऐसे कई कंगन कुरबान. चलो रोना बंद करो और अपने हाथ की बढि़या चाय पिलाओ.’’

रुचिता मुंह धो कर चाय बना तो लाई, लेकिन उस का मन ठीक नहीं था. राघव ने उसे बताया कि उस के औफिस के कुछ साथी अगले दिन रात के खाने पर आने वाले हैं. उस ने कहा, ‘‘तुम मां के साथ मिल कर सारी तैयारी कर लेना. रोज तुम्हारे हाथ के बने टिफिन की तारीफ करते हैं सो मैं ने उन्हें घर पर बुला लिया. तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ रुचिता ने कहा? ‘‘तुम्हारे लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकती.’’

रुचिता को वैसे भी खाना बनाने का बहुत शौक था और राघव को खाने का. वह रोज नईनई रैसिपी बना कर राघव को खिलाती, वह भी उस के खाने की खूब तारीफ करता.

अगले दिन रुचिता ने सारा घर साफ किया और बढि़या सजावट कर के रसोई में जुट गई. वह जानती थी क्योंकि राघव के दफ्तर के साथ आ रहे थे सो यह उस के मानसम्मान का प्रश्न था. उस ने शाम तक बढि़या स्नैक्स, सूप, मेन कोर्स के लिए दाल मखनी, कड़ाही पनीर, स्टफ्ड टमाटर और दही भिंडी और मीठे में फ्रूट क्रीम बनाई और फिर वह खुद तैयार होने चली गई, आखिर उसे भी तो सीईओ की पत्नी जैसा लगना था.

अभी वह कपड़ों की अलमारी खोल कर सोच ही रही थी कि क्या पहने तभी वसुधा ने आ कर कहा, ‘‘सूट या साड़ी मत पहन लेना कोई राघव की पसंद की ड्रैस निकाल कर पहन लो उसे अच्छा लगेगा.’’

रुचिता खुश हो गई और फिर जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. थोड़ी ही देर में राघव के साथ उस की मित्र कनिका और उस के 4 दोस्त आ गए. रुचिता ने सभी का स्वागत किया और सब को बैठा कर सूप और स्नैक्स लेने रसोई में चली गई. इसी बीच वसुधा एक बार सब से मिल कर अपने कमरे में चली गई.

राघव मां को बुलाने गया तो वसुधा ने कहा, ‘‘तुम बच्चे मौज करो मैं यहीं आराम करूंगी. मेरा खाना यहीं भिजवा देना.’’

घर की साजसज्जा देख कर और रुचिता के हाथ का खाना खा कर सब उस की खूब तारीफ कर रहे थे.

राघव भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था कि तभी रुचिता की निगाह कनिका के कंगन पर गई अब उस के पैरों तले की जैसे जमीन खिसक गई. वह पहचान गई कि यह वही कंगन है जिसे वह ढूंढ़ रही थी. लेकिन यह कनिका के पास कैसे? तभी उस के दिमाग ने कहा राघव के अलावा कौन दे सकता है पर फिर उस के दिल ने कहा नहीं राघव मु झे धोखा नहीं दे सकता. एक बार फिर उस के दिमाग ने कहा तुम बेवकूफ हो, सुबूत तुम्हारे सामने है और तुम नकारा रही हो. फिर भी रुचिता ने सोचा कि बिना पूरी छानबीन के वह राघव से इस बारे में कोई बात नहीं करेगी. उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, उस का मन कर रहा था कि इसी समय घर छोड़ कर चली जाए, लेकिन उस ने खुद को संभाला और कनिका के साथ बैठ कर उस से बातें करने लगी. उस ने उस से कई बातें पूछीं जिन से उसे पता चला कि वह एक गरीब घर की महत्त्वाकांक्षी लड़की है. अब वह कनिका को कुछकुछ सम झ रही थी.

इसी बीच मौका पा कर वह सारी बातें अपनी सास को बता आई. वसुधा एक बार फिर अंदर से आ कर सब के साथ बैठ गईं और कनिका को देखती रहीं. वे मान रही थीं कि पूरी गलती उन के बेटे की है, लेकिन उन का अनुभव कह रहा था कि लड़की भी कुछ ठीक नहीं है. उन्होंने सोचा जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को क्या दोष देना. वे ये सब सोच ही रही थीं कि सब लोग जाने लगे.

रुचिता राघव से सब को दरवाजे तक छोड़ने के लिए कह कर वसुधा को एक कोने में ले गई और उन से बोली, ‘‘मांजी अभी आप राघव से कुछ मत कहना. मैं इस लड़की के बारे में कुछ और भी पता करना चाहती हूं तब तक हम घर में हमेशा की तरह शांत रहेंगे.’’

वसुधा ने रुचिता के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटा तुम जैसा चाहो वैसा करो मैं पूरी तरह तुम्हारे साथ हूं. मेरे बेटे की गलती है और मैं ने इस बात को स्वीकार कर लिया है,’’ कह कर वसुधा सोने अपने कमरे में चली गईं.

मगर उन की आंखों में नींद कहां. उन्हें लगा जैसे एक बार फिर इतिहास अपनेआप को दोहरा रहा है, जो राघव के पिता ने उन के साथ किया वही राघव रुचिता के साथ कर रहा है… आखिर यह अपने बाप की ही औलाद निकला. उन का मन लगातार राघव के प्रति गुस्से से भर रहा था. दूसरी तरफ डर भी लग रहा था कि रुचिता क्या करेगी, इतनी अच्छी लड़की राघव को और इस घर को कभी नहीं मिलेगी. इसी ऊहापोह में उस की आंख लग गई.

सुबह राघव नाश्ता करते हुए रुचिता से कह रहा था, ‘‘कल तो तुम ने मेरी इज्जत में चार चांद लगा दिए. सब मेरी बीवी को देख कर जलफुक गए. मैं बहुत खुश हूं कि मां ने मेरी शादी तुम से करवाई.’’

ये सब सुन कर वसुधा का पारा 7तें आसमान पर था. उन्होंने एक नजर रुचिता की तरफ देखा तो उस ने उसे चुप रहने का इशारा किया. वसुधा चुप बैठी नाश्ता करती रहीं और फिर सिरदर्द का बहाना बना कर अपने कमरे में चली गईं. थोड़ी देर में राघव भी दफ्तर चला गया. अब रुचिता जा कर अपनी सास के पास बैठ गई और उन की गोद में सिर रख कर खूब रोई. रात से सुबह तक का वक्त उस ने कैसे काटा यह वही जानती थी. बारबार उस की इच्छा हो रही थी कि राघव का कौलर पकड़ कर उस से पूछे कि उस ने उस के साथ ऐसा क्यों किया. लेकिन कुछ न कह कर चुप रहने का फैसला उस का अपना था. वसुधा भी रोती हुईं बहू को कोई दिलासा न दे सकीं. बस उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरती रहीं और बोलीं कि बेटा मैं तेरे साथ हूं.

जब रो कर रुचिता का मन हलका हो गया तब वसुधा ने उस से पूछा, ‘‘अब तुम क्या करने की सोच रही हो? तुम ने राघव से कुछ कहा क्यों नहीं?’’

इस पर रुचिता बोली, ‘‘मेरी मां हमेशा कहती हैं कि एक औरत घर बिगाड़ भी सकती है और बना भी सकती है, मैं उन की बात को आजमा कर देखना चाहती हूं. मैं कोई भी फैसला सोचसम झ कर ठंडे दिमाग से करना चाहती हूं. इसीलिए मैं ने एक जासूस से बात की है. मैं पहले राघव और कनिका के बीच के संबंधों की गंभीरता जानना चाहती हूं और ये भी कि यह कनिका कैसी लड़की है, जो एक शादीशुदा आदमी से चक्कर चला रही है. अगर राघव को वापस लाने का कोई भी रास्ता है तो मैं उस पर चलना चाहती हूं, क्योंकि मैं ने आज तक सिर्फ उसी से प्यार किया है.’’

उस की बातें सुन कर वसुधा का दिल उस के लिए असीम स्नेह और सम्मान से भर गया और उस ने फिर रुचिता को गले लगा कर कहा, ‘‘बेवकूफ है मेरा बेटा जो हीरे जैसी पत्नी को छोड़ कर किसी और लड़की के पीछे भाग रहा है. एक बात हमेशा याद रखना मैं ने तुम्हें बहू नहीं बेटी माना है और मैं हमेशा ठीक उसी तरह तुम्हारा साथ दूंगी जैसे मुसीबत में अपनी बेटी का देती.’’

2-3 दिन यों ही निकल गए. वसुधा रुचिता के साथ एक मजबूत स्तंभ की तरह खड़ी रहीं ठीक वैसे ही जैसे उस की अपनी मां उस के साथ रहतीं. चौथे दिन राघव के औफिस जाने के बाद वह जासूस रुचिता से मिलने आया और उसे कुछ चित्रों के साथ कनिका के बारे में सारी जानकारी दे गया. उस ने ध्यान से वे सारे कागज देखे और एक प्लान बना कर वसुधा को उस में शामिल कर लिया.

रुचिता जानती थी कि राघव की कंपनी में सब की तनख्वाह के खाते ऐक्सिस बैंक में हैं सो उस ने एक नए नंबर से ऐक्सिस बैंक कर्मचारी बन कर कनिका को फोन लगाया और उस से कहा कि लकी ड्रा में उस का एक लंच कूपन निकला है. 2 महिलाओं के लिए और अगर वह आना चाहती है तो बैंक ताज होटल में उस के लिए जगह आरक्षित करेगा.

ताज का नाम सुन कर कनिका फंस गई और उस ने हां कह दिया. रुचिता ने अगले

दिन के लिए दो टेबल बुक करवाईं और सब से पहले ताज पहुंच गई. कनिका भी शर्त के अनुसार अपनी एक सहेली को ले कर पहुंची. इधर वसुधाजी राघव को लंच ताज में करने के लिए यह कह कर ले गईं कि रुचिता बाहर गई है सहेलियों के साथ और वे बोर हो रही है.

राघव को उन की बात अजीब तो लगी थी, लेकिन मां ने कहा है, यह सोच कर उस ने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया. जैसे ही रुचिता ने देखा कि सब आ गए हैं उस ने वसुधा को फोन मिलाया और खुद जा कर कनिका के बराबर बैठ गई. उस ने वसुधा को पहले ही सम झा दिया था कि फोन का स्पीकर चला कर सारी बातें राघव को सुनवा दें.

यों अचानक रुचिता को देख कनिका बुरी तरह चौंक गई, वह कुछ बोलने को ही थी कि चित्र उस के सामने रख दिए. उन्हें देख कर तो कनिका जड़ हो गई. अब उस ने कुछ बोलते नहीं बन रहा था. बड़ी मुश्किल से बस इतना बोली कि ये आप के पास कैसे? रुचिता ने जवाब में कहा कि तुम ने मेरे पति को मु झ से छीनने की कोशिश की है, कुछ तो मु झे भी करना ही था सो मैं ने तुम्हारा पूरा कच्चा चिट्ठा निकलवा लिया, यही नहीं तुम्हारे घर का पता भी. सोच रही हूं ये सभी तसवीरें तुम्हारे मातापिता को भेज दूं. आखिर उन्हें भी तो पता चले शहर में उन की लड़की कितनी मेहनत कर रही है. कितनी मेहनत से राघव को फंसा कर उन के पैसे से अपने महंगेमहंगे शौक पूरे कर रही है.

अब तो कनिका की हालत खराब हो गई. उस ने लड़खड़ाती जबान से कहा, ‘‘नहीं, ऐसा मत कीजिएगा मेरे मांबाप शर्र्म से मर जाएंगे. मैं यह नौकरी छोड़ दूंगी और आप लोगों को कभी अपनी शक्ल नहीं दिखाऊंगी. मैं आप के पति से बिलकुल प्यार नहीं करती. वह तो मेरे महंगे शौक पूरे कर रहा था इसलिए…’’

इस से ज्यादा राघव सुन नहीं सका और उठ कर उन की मेज पर आ कर खड़ा हो गया. उस की निगाह उन तसवीरों पर पड़ी तो उस की आंखों में गुस्सा और पश्चात्ताप दोनों साथ दिखाई दिए. उस ने देखा रेस्तरां लोगों से भरा हुआ है तो उस ने कनिका को सिर्फ वहां से चले जाने का इशारा किया- लेकिन रुचिता ने हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और उस से कहा कि मेरी एक और चीज तुम्हारे पास है, अब रुचिता की निगाह उस के हाथ के कंगन पर थी. कनिका ने जल्दी से वो कंगन उसे वापस किया और वहां से निकल गई.

राघव ने कुछ कहना चाहा ही था कि रुचिता ने उस से कहा, ‘‘आशा करती हूं तुम्हें सम झ आ गया होगा कि कोई जब विश्वासघात करता है तब कैसा लगता है. चलो बाकी बातें घर जा कर करेंगे, सब देख रहे हैं.’’

घर पहुंचे तो वसुधा बेटे पर टूट पड़ीं. बोलीं, ‘‘तूने मु झे बहू को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. मु झे तु झ पर कितना नाज था, लेकिन तू भी अपने बाप जैसा निकला. बचपन से ले कर आज तक तू अपने बाप से नाराज है, लेकिन तु झ में और उन में क्या फर्क है? उन्होंने भी अपनी पत्नी और बच्चे के साथ धोखा किया और तूने भी अपनी पत्नी के साथ धोखा किया. आखिर तू है तो उन्हीं की औलाद.’’

सुन कर राघव फूटफूट कर रोने लगा और अपने घुटनों पर बैठ कर वसुधा से बोला, ‘‘ऐसा न कहो मां मैं तुम्हारा बेटा हूं उन का नहीं. मु झ से बहुत बड़ा गुनाह हो गया मां मु झे माफ कर दो… मु झे माफ कर दो.’’

‘‘माफी मांगनी है तो बहू से मांग… तू उस का गुनहगार है. अगर उस ने तु झे माफ कर दिया तो मैं भी कर दूंगी और अगर वह घर छोड़ कर गई तो मैं भी अपनी बेटी के पास चली जाऊंगी,’’ वसुधा ने कठोर स्वर में कहा.

राघव रुचिता की ओर बढ़ा और उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रुचिता, वैसे तो मैं माफी मांगने लायक नहीं हूं पर फिर भी क्या तुम मु झे माफ कर पाओगी? मैं वादा करता हूं भविष्य में कभी तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगा. क्या तुम एक बार इसे मेरी पहली और आखिरी गलती सम झ कर माफ नहीं कर सकतीं?’’

रुचिता ने कुछ रुक कर कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करती हूं और यह भी सच है कि इस शादी को एक और मौका देना चाहती हूं, लेकिन ये सब भूल कर एक नई शुरुआत करने के लिए और तुम्हें माफ करने के लिए मु झे कुछ वक्त चाहिए. आशा करती हूं तुम समझोगे.’’

‘‘हां रुचि तुम्हें जितना वक्त चाहिए ले लो, लेकिन मु झे छोड़ कर मत जाना. मु झे तुम्हारी जरूरत है. मैं इंतजार करूंगा उस दिन का जब तुम मु झे माफ कर दोगी,’’ राघव ने राहत की सांस लेते हुए कहा.

रुचिता ने अपनी सास की तरफ देख कर कहा, ‘‘मां सास होने के बावजूद आप ने अपने बेटे का नहीं मेरा साथ दिया… मैं किन शब्दों में आप का धन्यवाद दूं.’’

वसुधा उस के माथे को चूमते हुए बोलीं, ‘‘तुम बहुत सम झदार हो बेटा. अपनी सू झबू झ से तुम ने यह घर टूटने से बचा लिया… मैं ने वही किया जो मैं अपनी बेटी के लिए करती. हम अकसर कहते हैं बहू कभी बेटी नहीं बन सकती, जबकि सच यह है कि अधिकतर सासें ही कभी मां नहीं बन पातीं, अगर सासें मां बन जाएं तो बहुएं अपनेआप बेटियां बन जाएंगी.

Dilchasp Kahani : अपना घर

Dilchasp Kahani : औफिस की घड़ी ने जैसे ही शाम के 5 बजाए जिया जल्दी से अपना बैग उठा तेज कदमों से मैट्रो स्टेशन की तरफ चल पड़ी. आज उस का मन एकदम बादलों की तरह उड़ रहा था. उड़े भी क्यों न, आज उसे अपनी पहली तनख्वाह जो मिली थी. वह घर में सब के लिए कुछ न कुछ लेना चाहती थी. रोज शाम होतेहोते उस का मन और तन दोनों थक जाते थे पर आज उस का उत्साह देखते ही बनता था. आइए अब जिया से मिल लेते हैं…

जिया 23 वर्षीय आज के जमाने की नवयुवती है. सांवलासलोना रंग, आम की फांक जैसी आंखें, छोटी सी नाक, बड़ेबड़े होंठ. सुंदरता में उस का कहीं कोईर् नंबर नहीं लगता था पर फिर भी उस का चेहरा पुरकशिश था. घर में सब की लाडली, जीवन से अब तक जो चाहा वह मिल गया. बहुत बड़े सपने नहीं देखती थी. थोड़े में ही खुश थी.

वह तेज कदमों से दुकानों की तरफ बढ़ी. अपने 2 साल के भतीजे के लिए उस ने एक रिमोट से चलने वाली कार खरीदी. पापा के लिए उन की पसंद का परफ्यूम, मम्मी व भाभी के लिए सूट और साड़ी और भैया के लिए जब उस ने टाई खरीदी तो उस ने देखा कि बस उस के पास अब कुछ ही पैसे बचे हैं. अपने लिए वह कुछ न खरीद पाई. अभी पूरा महीना पड़ा था. बस उस के पास कुछ हजार ही बचे थे. उसे उन में ही अपना खर्चा चलाना था. मांपापा से वह कुछ नहीं लेना चाहती थी.

जैसे ही वह शोरूम से निकली, बाजू वाली दुकान में उसे आसमानी और फिरोजी रंग के बहुत खूबसूरत परदे दिखाई दिए. बचपन से उस का अपने घर में इस तरह के परदे लगाने का मन था. दुकानदार से जब दाम पूछा तो उसे पसीना आ गया. दुकानदार ने मुसकराते हुए कहा कि ये चंदेरी सिल्क के परदे हैं, इसलिए दाम थोड़ा ज्यादा है पर ये आप के कमरे को एकदम बदल देंगे.

कुछ देर तक खड़ी वह सोचती रही. फिर उस ने वे परदे खरीद लिए. जब वह दुकान से निकली तो बहुत खुश थी. बचपन से वह ऐसे परदे अपने घर में लगाना चाहती थी, पर मां के सामने जब भी बोला उस की इच्छा घर की जरूरतों के सामने छोटी पड़ गई. आज उसे ऐसा लगा जैसे वह वाकई में स्वतंत्र हो गई है.

जब वह घर पहुंची तो रात हो चुकी थी. सब रात के खाने के लिए उस का इंतजार कर रहे थे. भतीजे को चूम कर उस ने सब के उपहार टेबल पर रख दिए. सब उत्सुकता के साथ उपहार देखने लगे. अचानक मां बोली, ‘‘तुम, अपने लिए क्या लाई हो?’’

जिया ने मुसकराते हुए परदों का पैकेट उन की तरफ बढ़ा दिया. परदे देख कर मां बोलीं, ‘‘यह क्या है…? इन्हें तुम पहनोगी?’’

जिया मुसकुराते हुए बोली, ‘‘मेरी प्यारी मां इन्हें हम घर में लगाएंगे.’’

मां ने परदे वापस पैकेट में रखे और फिर बोलीं, ‘‘इन्हें अपने घर लगाना.’’

जिया असमंजस से मां को देखती रही. उस की समझ में नहीं आया कि इस का क्या मतलब है. उस की भूख खत्म हो गई थी.

भाभी ने मुसकरा कर उस के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘मैं आज तक नहीं समझ पाई, मेरा घर कौन सा है? जिया तुम अपना घर खुद बनाना,’’ और फिर भाभी ने बहुत प्यार से उस के मुंह में एक निवाला डाल दिया.

आज पूरा घर पकवानों की महक से महक रहा था. मां ने अपनी सारी पाककला को निचोड़ दिया था. कचौरियां, रसगुल्ले, गाजर का हलवा, ढोकले, पनीर के पकौड़े, हरी चटनी, समोसे और करारी चाट. भाभी लाल साड़ी में इधर से उधर चहक रही थीं. पापा और भैया पूरे घर का घूमघूम कर मुआयना कर रहे थे. कहीं कुछ कमी न रह जाए. आज जिया को कुछ लोग देखने आ रहे थे. एक तरह से जिया की पसंद थी, जिस पर आज उस के घर वालों को मुहर लगानी थी. अभिषेक उस के औफिस में ही काम करता था. दोनों में अच्छी दोस्ती थी जिसे अब वे एक रिश्ते का नाम देना चाहते थे.

ठीक 5 बजे एक कार उन के घर के सामने आ कर रुकी और उस में से 4 लोग उतरे. सब ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. जिया ने परदे की ओट से देखा. अभिषेक जींस और लाइट ब्लू शर्ट में बेहद खूबसूरत लग रहा था.

उस की मां लीला आज के जमाने की आधुनिक महिला लग रही थीं. छोटी बहन मासूमा भी बेहद खूबसूरत थी. पिता अजय बेहद सीधेसादे व्यक्ति लग रहे थे.

जिया, अभिषेक की मां और बहन के सामने कहीं भी नहीं ठहरती थी पर उस का भोलापन, सुलझे हुए विचार और सादगी ने अभिषेक को आकर्षित कर लिया था. जिया के किरदार में कहीं भी कोई बनावटीपन नहीं था. जहां अभिषेक को अपनी मां में प्लास्टिक के फूलों की गंद आती थी, वहीं जिया से उसे असली फूलों की महक आती थी.

अपने पिता को उस ने हमेशा एडजस्टमैंट करते हुए देखा था. वह खुद ऐसा नहीं करना चाहता था, इसलिए हर हाल में अपनी मां का लाड़ला, हर बात मानने वाला अभिषेक किसी भी कीमत पर अपनी जीवनसाथी के चुनाव की बागडोर मां को नहीं देना चाहता था.

जिया ने कमरे में प्रवेश किया. जहां अभिषेक प्यारभरी नजरों से उस की तरफ देख रहा था, वहीं लीला और मासूमा उस की तरफ अचरज से देख रही थीं. उन्हें जिया में कोई खूबी नजर नहीं आ रही थी. अजय को जिया एक सुलझे विचारों वाली लड़की नजर आई जो उन के परिवार को संभाल कर रख सकेगी. लीला ने अभिषेक की तरफ देखा पर उस के चेहरे पर खुशी देख कर चुप हो गईं.

जिया को लीला ने अपने हाथों से हीरे का सैट पहना दिया पर उन के चेहरे पर कहीं कोईर् खुशी नहीं थी. जिया को यह बात समझ आ गई थी कि वह बस अभिषेक की पसंद है. अपने घर में जगह बनाने के लिए उसे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.

2 माह बाद उस के विवाह की तारीख तय हो गई. दुलहन के लिबास में जिया बेहद खूबसूरत लग रही थी. अभिषेक और उस की जोड़ी पर लोगों की नजरें ही नहीं ठहर रही थीं. लीला भी आज बहुत खुश लग रही थीं. कन्यादान करते हुए जिया के मां और पापा के आंखों में आंसू थे. वह उन के घर की रौनक थी. बिदाई पर अजय ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बहू नहीं बेटी ले कर जा रहे हैं.’’

जिया ने कुछ दिनों में यह तो समझ लिया था कि इस घर में बागडोर लीला के हाथों में है. यह घर लीला का घर है और वह घर उस के मांपापा का घर था पर उस का घर कहां है? इस सवाल का जवाब उसे नहीं मिल पा रहा था.

अभी कल की ही बात थी, जिया ने ड्राइंगरूम में थोड़ा सा बदलाव करने की कोशिश करी, तो लीला ने मुसकरा कर कहा, ‘‘जिया, तुम अभिषेक की बीवी हो, इस घर की बहू हो, पर इस घर को मैं ने बनाया है, इसलिए अपने फैसले और अपने अधिकार अपने कमरे तक सीमित रखो.’’

जिया चुपचाप खड़ी सुनती रही. अभिषेक से जब भी उस ने इस बारे में बात करनी चाही, उस ने हमेशा यही जवाब दिया कि जिया उन्हें थोड़ा समय दो. उन्होंने सब कुछ हमारी खुशी के लिए ही करा है.

जिया अपने मनोभावों को चाह कर भी न समझा पाती थी. खुश रहना उस की आदत थी और हारना उस की फितरत में नहीं था.

देखते ही देखते 1 साल बीत गया. आज जिया की शादी की पहली वर्षगांठ थी. उस ने अभिषेक के लिए घर पर पार्टी करने का प्लान बनाया. उस ने अपने सभी दोस्तों को निमंत्रण भेज दिया. तभी दोपहर में जिया ने देखा, लीला की किट्टी पार्टी का गु्रप आ धमका.

जिया ने लीला से कहा, ‘‘मां, आज मैं ने अपने कुछ दोस्तों को आमंत्रित किया है.’’

लीला ने जवाब में कहा, ‘‘जिया तुम्हें पहले मुझ से पूछ लेना चाहिए था…’’ मैं तो अब कुछ नहीं कर सकती हूं. तुम अपने दोस्तों को कहीं और बुला लो.’’

जिया उठ खड़ी हुई. अपने अधिकारों की सीमा रेखा समझती रही. मन ही मन उस ने एक निर्णय ले लिया.

जिया ने शाम की पार्टी के लिए घर के बदले होटल का पता अपने सभी दोस्तों को व्हाट्सऐप कर दिया. अभिषेक को भी वहीं बुला लिया. अभिषेक ने जिया को पीली व लाल कांजीवरम साड़ी और बेहद खूबसूरत झुमके उपहार में दिए, जिया जैसी सुलझे विचारों वाली जीवनसाथी पा कर अभिषेक बेहद खुश था.

जिया को अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी पर फिर भी कभीकभी वह चंदेरी के परदे उसे मुंह चिढ़ाते थे. अभिषेक उसे हर तरह से खुश रखता था पर वह कभी जिया की अपनी घर की इच्छा को नहीं समझ पाया था.

जिया को अपने घर को अपना कहने का या महसूस करने का अधिकार नहीं था. वह उस की जिंदगी का वह खाली कोना था जिसे कोई भी नहीं समझ पाया था. न उस के अपने मातापिता, न अभिषेक और न ही उस के सासससुर. जिया ने धीरेधीरे इस घर में सभी के दिल में जगह बना ली थी. लीला भी अब उस से खिंचीखिंची नहीं रहती थीं. मासूमा की मासूम शरारतों का वह हिस्सा बन गई थी.

आज चारों तरफ खुशी का माहौल था. दीवाली का त्योहार वैसे भी अपने साथ खुशी, हर्षोल्लास और अनगिनत रंग ले कर आता है. पूरे घर में पेंट चल रहा था, जब अभिषेक परदे बदलने लगा तो अचानक जिया बोली कि रुको और फिर भाग कर चंदेरी के परदे ले आई.

इस से पहले कि अभिषेक कुछ बोलता, लीला बोल उठीं, ‘‘जिया ऐसे परदे मेरे घर पर नहीं लगेंगे.’’

जिया प्रश्नसूचक नजरों से अभिषेक को देख रही थी. उसे लगा वह कुछ बोलेगा कि मां यह जिया का भी घर है पर अभिषेक कुछ न बोला. जिया का खराब मूड देख कर बोला, ‘‘इतना क्यों परेशान हो. परदे ही तो हैं.’’

पहली बार जिया की आंखों में आंसू आए. अभिषेक आंसुओं को देख कर और चिढ़ गया.

आजकल जिया का ज्यादातर समय औफिस में बीतता था. अभिषेक ने महसूस किया कि वह अपने फोन पर ही लगी रहती है और उसे देखते ही घबरा कर मोबाइल रख देती है. अभिषेक जिया को सच में प्यार करता था, वह जिया से पूछना चाहता था पर उसे डर था कहीं सच में जिया के जीवन में उस की जगह किसी और ने तो नहीं ले ली है.

एक शाम को अभिषेक ने जिया से कहा, ‘‘जिया, चलो तुम शुक्रवार की छुट्टी ले लो, कहीं आसपास घूमनेफिरने चलते हैं.’’

जिया ने अनमने से कहा, ‘‘नहीं अभिषेक बहुत काम है औफिस में.’’ चाह कर भी अभिषेक जिया के व्यवहार में जो बदलाव आया है उसे समझ नहीं पा रहा था. वह रात को भी घंटों लैपटौप पर बैठ कर न जाने क्या करती रहती. अभिषेक जैसे ही उसे आवाज देता, वह घबरा कर लैपटौप बंद कर देती. अभिषेक जितना उस के करीब जाने की कोशिश करता वह उतना ही उस से दूर जा रही थी.

न जाने वह क्या था जिस के पीछे जिया पागल हो रही थी. जिया के भाई ने भी उस दिन अभिषेक को फोन पर कहा, ‘‘आजकल जिया घर पर फोन ही नहीं करती. सब ठीक है न?’’

अभिषेक ने कहा, ‘‘नहीं आजकल औफिस में बहुत काम है.’’

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब अभिषेक और जिया दोनों के मातापिता की इच्छा थी कि वे अपने परिवार को आगे बढ़ाएं.

आज फिर से उन की शादी की सालगिरह का जश्न था पर आज लीला ने खुद दावत रखी थी. जिया ने एक बहुत ही खूबसूरत प्याजी रंग की स्कर्ट और कुरती पहनी हुई थी. अभिषेक की नजरें उस से हट ही नहीं रही थी. सब लोग उन्हें छेड़ रहे थे कि वे खुशखबरी कब दे रहे हैं.

रात को एकांत में जब अभिषेक ने जिया से कहा कि जिया मेरा भी मन है, तो जिया ने अनमने ढंग से कहा कि वह तैयार नहीं है.

रात में भी अभिषेक को ऐसा लगा जैसे उस के पास बस जिया का शरीर है. अभिषेक रातभर सो नहीं पाया.

आज वह हर हाल में जिया से बात करना चाहता था, पर जब वह सुबह उठा, जिया औफिस के लिए निकल चुकी थी. अभिषेक को कुछ समझ नहीं आ रहा था. ऐसा लगता था, जिया उस के साथ हो कर भी उस के साथ नहीं है, वह हर हफ्ते उस के साथ कोई न कोई प्लान बनाता पर जिया को तो रविवार में भी कोई न कोई औफिस का काम हो जाता था. उन दोनों के बीच एक मौन था, जिसे वह चाह कर भी नहीं तोड़ पा रहा था. अभिषेक को अपनी वह पुरानी जिया चाहिए थी पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

देखते ही देखते फिर दीवाली आ गई. पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा था. आज अभिषेक को बहुत दिनों बाद जिया का चेहरा रोशनी से खिला दिखा.

जिया ने अभिषेक से कहा, ‘‘अभिषेक, आज मुझे तुम से कुछ कहना है और कुछ दिखाना भी है.’’

अभिषेक उस की तरफ प्यार से देखते हुए बोला, ‘‘जिया, कुछ भी बोलना बस यह मत बोलना तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है.’’

जिया खिलखिला कर हंस पड़ी और फिर बोली, ‘‘तुम पागल हो क्या, तुम ने ऐसा सोचा भी कैसे?’’

अभिषेक मुसकरा दिया. बोला, ‘‘लेकिन तुम मुझे पिछले 1 साल से नैगलैक्ट कर रही हो, हम एकसाथ कहीं भी नहीं गए.’’

जिया बोली, ‘‘पता नहीं तुम्हें समझ आएगा या नहीं पर मैं पिछले 1 साल से अपनी पहचान और अपने वजूद, अपनी जड़ें ढूंढ़ रही थी?’’

अभिषेक को कुछ समझ नहीं आ रहा था. जिया ने गुलाबी और नारंगी चंदेरी सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी. साथ में कुंदन का मेल खाता सैट, हीरे के कड़े और ढेर सारी चूडि़यां. आज उस के चेहरे पर ऐसी आभा थी कि सब लोग उस के आगे फीके लग रहे थे. रंगोली बनाने के बाद जिया ने अभिषेक को उस के साथ चलने को कहा, तो अभिषेक कार की चाबी उठा चल पड़ा.

जिया हंस कर बोली, ‘‘आज मैं तुम्हें अपने साथ अपनी कार में ले कर चलना चाहती हूं.’’

अभिषेक चल पड़ा. थोड़ी ही देर में कार हवा से बातें करने लगी और कुछ देर बाद कार नई बस्ती की तरफ चलने लगी. कार ड्राइव करते हुए जिया बोली, ‘‘अभिषेक, आज मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. तुम ने हमेशा हर तरह से मेरा खयाल रखा पर बचपन से मेरा एक सपना था जो मेरी आंखों में पलता रहा. मांपापा ने कहा कि तुम्हारा घर वह होगा, जहां तुम जा कर एक घर बनाओगी. तुम मिले, तो लगा मेरा सपना पूरा हो गया, पर अभिषेक कुछ दिनों बाद समझ आ गया कि कुछ सपने होते हैं जो साझा नहीं होते. शादी का मतलब यह नहीं कि तुम्हारे सपनों का बोझ तुम्हारा जीवनसाथी भी उठाए. मुझे तुम से या किसी से भी कोई शिकायत नहीं है. पर अभिषेक आज मेरा एक सपना पूरा हुआ है,’’ यह कह उस ने एक नई बनी सोसाइटी के सामने कार रोक दी. अभिषेक चुपचाप उस के पीछे चल पड़ा. एक नए फ्लैट के दरवाजे पर उस के नाम की नेमप्लेट लगी थी.

अभिषेक हैरानी से देख रहा था. छोटा पर बेहद खूबसूरती से सजा हुआ प्लैट. तभी हवा का झोंका आया तो चंदेरी के फीरोजी परदे जिया के अपने घर में लहराने लगे, जहां पर उस का अधिकार घर पर ही नहीं वरन उस की आबोहवा पर भी था.

Best Kahani : रिहाई – अनवार मियां के जाल में फंसी अजीजा की कहानी

Best Kahani : ‘‘अस्सलाम अलैकुम,’’ कुरैशा ने नकाब उठा कर सलाम किया.

‘‘वालेकुम अस्सलाम,’’ कमरे में मौजूद कई औरतों ने एकसाथ जवाब दिया. वहां धार्मिक ज्ञान के आदानप्रदान के लिए औरतों की एक बैठकी होनी थी.

‘‘अजीजा नहीं आई?’’ खाला बी ने छूटते ही पूछा. सुन कर कुरैशा का चेहरा तमतमा गया. गुस्से से कुछ कहना चाहती थी लेकिन कमरे में बैठी 20-25 औरतों के चलते उस ने सख्ती से होंठ भींच कर चुप्पी साध ली.

इत्र और अगरबत्ती की खुशबू ने महिलाओं के नकाबों से उठती पसीने की बदबू को कुछ हद तक दबा दिया था.

महल्ले में सब से ज्यादा धार्मिक जानकारी रखने वाली खाला बी ने कुदरत की तारीफ करने के साथ बैठकी की शुरुआत की. रोजा व नमाज हर मर्द और औरत का फर्ज है, यह बता कर पाबंदी से उस की अदायगी के तरीके समझाए. कब और किन परिस्थितियों में औरत को नमाज नहीं पढ़नी है, यह भी बताया. किसी की बुराई करने, किसी का अधिकार छीनने पर कुदरत की मार पड़ने की जानकारी देते हुए वे देर तक मजहबी बातें बताती रहीं.

दोपहर और शाम के बीच की नमाज की अजान होते ही महिलाएं नमाज पढ़ने लगीं. उस के बाद खाला बी की तलाकशुदा बेटी ट्रे में चाय के कप ले कर हाजिर हो गई. बहुत देर से जबान बंद रखने की सजा पर सब्र किए बैठी, हमेशा बोलते रहने वाली कुदरत खाला ने बारबार फिसलते दुपट्टे को सिर पर ठीक से रखते हुए कुरैशा से पूछ ही लिया, ‘‘आप की बहन अजीजा दिखाई नहीं देती, तबीयत खराब है क्या? वह तो कभी गैरहाजिर नहीं रहती?’’

बारबार अपनी बड़ी बहन अजीजा के बारे में पूछे जाने पर कुरैशा की आंखों से चिनगारियां फूटने लगीं, तभी खाला बी बोल पड़ीं, ‘‘अल्लाह जाने, हमारे छोटे बेटे इदरीस मियां बता रहे थे कि अजीजा कल अपने शौहर अनवार मियां के साथ तांगे पर बैठ कर कहीं जा रही थी.’’

सुनते ही हलीमा खाला झनझना गईं, ‘‘तौबातौबा, जिस शौहर ने 6 महीने पहले तलाक दे कर घर से बेघर कर दिया, उसी के साथ फिर मिलनाजुलना? छीछीछी, गुनाह है गुनाह.’’

‘‘मौलाना साहब बता रहे थे कि अजीजा को तलाक दे कर अनवार मियां बहुत दुखी और शर्मिंदा हैं. अपनी बिखरी जिंदगी को फिर से संवारने के लिए…’’ कुरैशा की तरफ गहरी नजर डालते हुए बोलतेबोलते बीच में रुक गईं मौलाना साहब की बीवी.

‘‘हांहां, बताइए न, क्या चाह रहे हैं अनवार मियां? क्या बतला रहे थे मौलाना साहब?’’ नसरीन आपा की चटपटी खबर को जानने की उत्सुकता छिपाए न छिपी.

‘‘तो क्या अनवार मियां दोबारा अजीजा से निकाह करना चाहते हैं?’’ बहुत देर से चुप बैठी बिलकीस फूफी ने पान का बीड़ा मुंह में डालते हुए गंभीरता से पूछा.

मौलाना साहब की बीवी कुरता उठा कर अपने बच्चे को दूध पिलाती हुई बोलीं, ‘‘महल्ले में तो यही खबर गरम है.’’

‘‘जी, मैं ने भी कुछ ऐसा ही सुना है. फरहान के अब्बू बतला रहे थे कि अनवार मियां अपने दोस्त कुरबान कसाई से अजीजा का निकाह करवा कर दूसरे ही दिन तलाक करवा कर खुद अजीजा के साथ दोबारा निकाह कर लेंगे,’’ इशाक साइकिल वाले की बीवी ने जानकारी दी.

‘‘हलाला यानी कि  तलाक के बाद उसी औरत से दोबारा निकाह करना चाहते हैं अनवार मियां,’’ तभी हुसैना फूफी ऐसी बेफिक्री से बोलीं जैसे हलाला सिर्फ एक धार्मिक रस्म की अदायगी भर है.

‘‘तो क्या अजीजा भी अनवार मियां से दोबारा निकाह करने के लिए तैयार है?’’ सईद ठेकेदार की पत्नी ने कुरैशा की तरफ व्यंग्यात्मक नजर डालते हुए पूछा.

‘‘अगर न होती तो जाती ही क्यों तलाक देने वाले शौहर के साथ,’’ एक महिला ने कहा.

कुरैशा को लगा कि एक करारा थप्पड़ जड़ दिया किसी ने उस के गाल पर.

‘क्या हो गया अजीजा को? क्यों सरेआम अपनी और मेरी बेइज्जती करवा कर अपने ही हाथों अपनी खिल्ली उड़वा रही है,’ सोचती हुई बड़ी बहन के प्रति घृणा से भर गई कुरैशा.

‘‘बराबर के 6 बच्चों के सामने अजीजा के शौहर ने उसे तलाक दिया. कितनी बदनामी हुई समाज में, कितनी जिल्लत उठानी पड़ी. अब रहीसही इज्जत भी हलाला के तहत उसी शौहर से दोबारा निकाह करने पर मिट्टी में मिल जाएगी,’’ हिफाजत तांगे वाले की अम्मा ने चिंता जताई.

‘‘इस में इज्जत जाने वाली क्या बात है? दरअसल, यह शौहर को अपनी गलती पर पछतावा कर के फिर से नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करने का एक मौका है,’’ इकबाल टायर वाले की बीवी ने कहा.

‘‘अपनी गलती की सजा शौहर को खुद भुगतनी चाहिए, न कि दूसरे मर्द के पास बीवी को भेज कर जिंदगी भर अपनी ही नजर में गिर कर जलील होने की सजा देनी चाहिए?’’ कुरैशा भड़क उठी.

‘‘कुरैशा, जब हमारा मजहब ही मुसलमान मर्दों को अपनी गलती सुधारने का मौका देता है तो किसी को भला क्यों एतराज होगा,’’ खाला बी की दलीलों में इसलामी कानून का जिक्र आते ही सारी औरतें चुप हो गईं.

मजहब के इस कानून को औरतजात का शारीरिक व मानसिक शोषण मानने वाली आधुनिक सोच रखने वाली कुरैशा ने पूरी ताकत से अपनी आवाज बुलंद की, ‘‘बहनो, जरा सोचिए, छोटी सी बात को ले कर मर्द ने औरत को तलाक दे कर समाज की नजर से गिरा दिया, फिर औरत को ही अपने शौहर को दोबारा हासिल करने के लिए एक रात दूसरे मर्द के साथ जिस्मानी रिश्ते से गुजरना पड़े तो क्या यह औरतजात के डूब मरने के लिए काफी नहीं है?

मैं कहती हूं, यह जुल्म है, इंसानियत के नाम पर धब्बा है, मानवाधिकारों का हनन है, औरत के स्वाभिमान को कुचलने की साजिश है. कोई भी औरत कभी भी ऐसी शर्तों को मानने के लिए न तो दिल से तैयार होती है न ही जिस्मानी तौर पर,’’ गुस्से की उत्तेजना से कुरैशा का सांवला रंग तांबई हो गया.

‘‘लेकिन कुरैशा, मजहब के कानून में अगरमगर या बहस और शक की कोई गुंजाइश नहीं होती. इसलामी कायदेकानून में सूत बराबर भी फेरबदल करने वाला शख्स मुसलमान होने की शर्त से ही खारिज कर दिया जाता है,’’ खाला बी ने समझाने की कोशिश की.

‘‘लेकिन औरतें इस जलील समझौते के लिए तैयार क्यों हो जाती हैं? मेरी समझ में नहीं आता. क्या औरत की अपनी कोई इज्जत नहीं? उस की अपनी राय और फैसले की कोई अहमियत नहीं? क्या उस का जमीर खुद उसे झकझोरता नहीं कि वह अपने ही शौहर को हासिल करने के लिए दूसरे मर्द की बांहों में जाने के लिए मजबूर हो? भले ही एक रात के लिए. अपनी पाकीजगी पर धब्बे लगा कर औरतजात के पैदा होने को ही उस की बदनसीबी साबित कर दे.

‘‘पता नहीं अनवार मियां ने सीधीसादी, अनपढ़ अजीजा को ऐसी क्या उलटीसीधी पट्टी पढ़ा दी है कि वह उन के साथ दोबारा निकाह करने के लिए तैयार हो गई…बेवकूफ, बुजदिल कहीं की,’’ कुरैशा के अंदर का सुलगता ज्वालामुखी फट पड़ा, जिस की तपन में महफिल झुलस गई.

घर आ कर कुरैशा छत पर जा कर बैठ गई. अभी भी गुस्से से उस के चेहरे की मांसपेशियां तनी हुई थीं. अपनी ही बहन अजीजा के प्रति उस का मन कड़वाहट से भरा था.

अभी पिछले बरस तक तो अजीजा का भरापूरा खुशियों से लहलहाता घरपरिवार था. 4 बेटे और 2 बेटियों के साथ जिंदगी मजे से कट रही थी. खिदमतगुजार अजीजा शौहर को हाकिम समझती रही. उन की हां और ना पर ही घर के फैसले लिए जाते. बहस की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती थी अजीजा कभी भी.

मगर दूसरी बेटी का रिश्ता एक धन्नासेठ के सजायाफ्ता बेटे से करने के फैसले को ले कर पतिपत्नी के बीच मनमुटाव हो गया. 22 साल की जिंदगी में पहली बार अनवार मियां ने अजीजा को अपने सामने मुंह खोल कर विरोध करते देखा. तिलमिला गए वह. मर्दाना गुरूर का सांप फन उठा कर खड़ा हो गया. 3-4 थप्पड़ जड़ दिए अजीजा के गाल पर. लेकिन बदन के निशान अजीजा को उस के फैसले से डिगा नहीं पाए. नतीजा तलाक, तलाक, तलाक. बरसों के रूहानी, जिस्मानी, सामाजिक और मजहबी रिश्ते की धज्जियां उड़ा दीं पुरुष प्रधान समाज के एक प्रतिनिधि ने अपने अहं को चूरचूर होते देख कर.

धार्मिक कानून को कट्टरता से मानते हुए अनवार मियां ने एक ही झटके में तिनकातिनका जोड़ कर घरगृहस्थी जमाने वाली, सुखदुख में बराबर शामिल रहने वाली अजीजा को घर से बेदखल कर दिया. उस दिन न आसमान कराहा, न जमीन सिसकी. सबकुछ वैसा ही चलता रहा जैसे मुसलमान औरत की यही नियति हो. तब कुरैशा ही रोतीबिलखती अजीजा की जिंदा लाश को कंधों का सहारा दे कर अपने घर ले गई थी.

महल्ले वालों व रिश्तेदारों ने सुना, लेकिन किसी ने भी सुलहसफाई की जरूरत नहीं समझी. एक तलाक का हथौड़ा और किरचियों में बदलते खुशहाल जिंदगी के शीशमहल से सपने. क्या गारंटी है रिश्तों के ताउम्र कायम रहने की? मतभेद का हलका सा जलजला आया और बहा ले गया बरसों की मेहनत के बाद खड़े किए गए आशियाने को. पानी उतरा तो दूरदूर तक, उस के अवशेष ढूंढ़ने पर भी न मिले. वक्त बहा ले गया रिश्तों की बुरादा हुई हड्डियों को.

अजीजा ने बचपन में मदरसे से उर्दू और अरबी का ज्ञान हासिल किया था. यही ज्ञान आड़े वक्त में उस के काम आया. महल्ले के बच्चों को ‘अलिफ बे पे’ पढ़ापढ़ा कर जीविका चलाने लगी.

अनवार मियां की जहालत और गुस्से की इंतेहा अखबार में पढ़ी गई, ‘तलाकनामे का हल्फिया बयान’.

‘‘अनवार मियां ने अजीजा के तलाक पर मजहबी मुहर भले ही लगा दी हो समाज के सामने, लेकिन कोर्ट का कानून अजीजा को उस के हक से महरूम न रखेगा. बहन के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ूंगी,’’ सीना ठोंक कर बोली कुरैशा.

रऊफ बीड़ी वालों ने अपने अजीज दोस्त वकील का पता दे दिया और अजीजा की तरफ से खानाखर्चा, महर और दहेज वापस लेने का दावा ठोंक दिया गया अनवार मियां पर. महल्ले के इज्जतदार और हकपसंद लोगों ने पैसे से साथ दिया. 4 महीने गुजर गए, बेटों ने मां को पलट कर नहीं देखा. हां, बेटियां जरूर चोरीछिपे आ कर मां से मिल लिया करतीं.

उस दिन कचहरी में अजीजा के सामने पड़ गए अनवार मियां. दोनों हाथ जोड़ कर भीगे स्वर में बोले, ‘‘घर आप का है. आप ही मालकिन हैं. तलाक दे कर मैं पछतावे की आग में झुलस रहा हूं. गलती हो गई मुझ से. गुस्सा हराम होता है. आप मुझे माफ कर दीजिए. इस से पहले कि हमारा आशियाना वक्त और हालात की आंधी में नेस्तनाबूद हो जाए,’’ सुन कर अजीजा चुप रही.

केस की तारीखों पर अकसर जानबूझ कर अजीजा के सामने पड़ जाते अनवार मियां और हर बार गिड़गिड़ाते हुए नई पेशकश करते, ‘‘आप जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा घर में. मैं औफिस, महल्ले और कोर्ट में सिर उठा कर चल नहीं पा रहा हूं. हर सवालिया निगाह मुझे भीतर तक छीले जा रही है. बिना मां के जवान बेटियों को कब तक संभाल सकूंगा मैं?’’

बरसों से जिस घर से अजीजा पलपल जुड़ी रही, उसे इतनी आसानी से कैसे भुला देती. बच्चों की ममता उसे बारबार खयालों में अपने घर की चौखट पर ला कर खड़ा कर देती. स्वार्थपरता से कोसों दूर भोली अजीजा अनवार मियां की तिकड़मी और चालाकी भरी बातों के पीछे छिपी चाल को समझ कर ताड़ने का विवेक कहां से लाती?

अनवार मियां पर किए गए केसों का फैसला नजदीक ही था कि एक रात अजीजा ने कुरैशा को अपना फैसला सुना कर उसे आसमान से जमीन पर गिरा दिया. कुरैशा के कानों में जहरीले सांप रेंगने लगे और वह सन्न खड़ी अजीजा के भावहीन चेहरे को एकटक देखती रह गई. कुरैशा भीतर तक मर्माहत हुई.

कुर्बान कसाई ने अनवार मियां से 50 हजार रुपए लिए थे अजीजा से निकाह कर के उसे अपने साथ एक रात सुलाने और दूसरे दिन तलाक देने के लिए. सिर्फ सिर पर एक छत की सुरक्षा और बच्चों के मोह में औरत को अपना जिस्म नुचवाना पड़े अनचाहे गैर मर्द से, यह शरीअत का कैसा कानून है? यह सोच कर कुरैशा के दिलोदिमाग में भट्ठियां सुलगने लगी थीं.

कुछ दिन बाद कुरैशा ने अनवार मियां के साथ रेशमी लिबास में लदीफंदी अजीजा को स्कूटर पर बैठ कर जाते देखा. कलेजा पकड़ कर बैठ गई, ‘‘या मेरे मालिक, क्या इसलाम में औरत को इतना कमजोर कर देने के लिए बराबरी का दरजा दिया है?’’

इस घटना के बाद, हर हफ्ते शुक्रवार के दिन महिलाओं की बैठकी में अजीजा का जिक्र किसी न किसी बहाने से निकल ही आता. नमाजरोजे की पाबंद, इसलामी कानून पर चलने वाली खाला बी ने अजीजा का हलाला के बाद अनवार मियां से दोबारा निकाह करने को नियति का फैसला करार दिया. अजीजा का यह मजबूत और सार्थक कदम मजहबपरस्ती की बेमिसाल सनद बन गया. लेकिन कुरैशा अंदर तक धधक गई. मर्दों के जुल्म को, औरतों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाली साजिशें करार देती रही और औरतों को अपने अधिकारों की जानकारी रखते हुए अपने अस्तित्व को पहचानने का मशवरा देती रही.

मजहबी कानूनों की अधकचरी जानकारी रखने वाली कट्टरपंथी खाला बी और आधुनिक विचारों वाली कुरैशा के बीच अकसर बहस छिड़ जाती और बुरकों का लबादा ओढ़े मुसलिम औरतें खाला बी के बयानों से प्रभावित होतीं व कुरैशा को मजहब के प्रति बागी और नाफरमान घोषित कर देतीं.

उस दिन हाथों में कुहनी तक मेहंदी रचाए, आंखों में सुरमा डाले, इत्र में सराबोर, मुसकान भरा चेहरा लिए अजीजा महिला सम्मेलन में आई तो वहां पर मौजूद सभी औरतों की हैरत भरी निगाहें उस पर टिक गईं. रेशमी कपड़ों की सरसराहट, बारबार सिर से ढलक जाता कामदार शिफौन का दुपट्टा, भीनीभीनी उठती इत्र की खुशबू ने अजीजा की मौजूदगी को कुछ लमहों के लिए मजहबीरूहानी एहसास को दुनियाबी, भौतिकवादी, ऐशोआरामतलबी के जज्बे से भर दिया.

उस दिन खासतौर पर खाला बी ने शौहर के लिए बीवी के फर्ज का बयान करते हुए बताया कि इसलाम में शौहर को दूसरा दरजा दिया गया है. एक किस्सा सुनाते हुए यों बयान किया कि एक शौहर ने बीवी को पानी पिलाने का हुक्म दिया. बीवी के पानी लातेलाते शौहर को नींद आ गई. बीवी ने शौहर की नींद में खलल न डाल कर पूरी रात हाथ में पानी का गिलास लिए खड़ा रहना मुनासिब समझा. बीवी की खिदमत देख कर कुदरत ने उस को बेशकीमती इनाम दिया. यह सुन कर महिलाएं भावविभोर हो गईं. कुछ तो पल्लू से आंसू पोंछने लगीं.

बातबेबात, कसूरवार हों या न हों, आएदिन लातजूते, गालीगलौज खाने वाली औरतों ने भी शौहर की लंबी जिंदगी की दुआएं मांगीं और खुद को नेक बीवी बनाने की शपथ भी ली.

अजीजा की सुनहरी चूडि़यों की खनक में हलाला के जलालत भरे दौर से गुजरने का जरा सा भी मलाल नहीं था. कुरैशा ने हिकारत भरी निगाहों से अपनी बहन अजीजा पर उचटती नजर डाली और तमतमाया चेहरा लिए झटके से उठ कर कमरे से बाहर आ गई.

खाला बी 3 महीने बाद अपने छोटे बेटे की मंगनी के लड्डू ले कर अनवार मियां के घर पहुंचीं. घर में अजीब सा सन्नाटा खिंचा था. इतने बड़े घर में सिर्फ बैठकखाने में ही पीली रोशनी वाला एकमात्र बल्ब जल रहा था.

‘‘अम्मी कहां हैं?’’ खाला बी ने अजीजा की छोटी बेटी से पूछा.

‘‘जीजी, वे ललितपुर गई हैं फूफी के घर,’’ बेटी का खौफजदा चेहरा और आवाज की थरथराहट को खाला बी ने भांप लिया.

‘‘कब तक वापस लौटेंगी?’’

‘‘जी, कुछ पता नहीं है,’’ बेटी का स्वर हकला गया.

खाला बी को याद आ गया, एक बार अजीजा ने बताया था कि अनवार मियां और उन के बहनोई में पैसों को ले कर जबरदस्त झगड़ा हो गया था, इसलिए दोनों घरों में आनाजाना बिलकुल बंद है. फिर अचानक अजीजा का उन के घर जाना और घर में इतनी खामोशी. कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जिंदगी

को नए सिरे से शुरू करने के मधुर एहसास को अजीजा के मुंह से सुनने की बेताबी खाला बी के अंतर्मन में कुलबुला रही थी. आखिर बचपन में मदरसे में अलिफ, बे, ते, से का सबक शुरू करने से ले कर बालों में चांदी चमकने तक का दोनों का पलपल साथ रहा. दोनों ने एकदूसरे से सुखदुख, प्यारमोहब्बत, अमीरीगरीबी के एहसासों को साथसाथ दिल खोल कर बांटा है.

‘‘बस दोचार दिन में वापस आ जाएंगी अम्मी,’’ अजीजा के बड़े बेटे ने छोटी बहन को आंखों ही आंखों में अंदर जाने का इशारा करते हुए तपाक से जवाब दिया.

‘‘अच्छाअच्छा, घर में और तो सब ठीक है न. मेरा मतलब अब्बूअम्मी के बीच अब कोई तकरार…’’ किसी के घर के अंदरूनी मामले की टोह लेने जैसा अपराधबोध खाला बी को छील गया.

‘‘जी, सब ठीक है,’’ बात को एक झटके में खत्म करने की कोशिश की बेटे ने.

‘‘शुक्र है कुदरत का. अच्छा, तो मैं चलती हूं. खुदाहाफिज,’’ कह कर इत्मीनान की सांस ले कर खाला बी सीढि़यों से उतरने लगीं तो जीने के नीचे के स्टोररूम का दरवाजा हिलता दिखाई दिया. खाला बी ने मोबाइल की रोशनी से देखा तो दरवाजे की सांकल में बड़ा सा ताला लटका दिखाई पड़ा. फिर अंदर से दरवाजा कौन हिला रहा है? कहीं कोई जानवर धोखे से बंद तो नहीं हो गया कमरे में. वापस मुड़ कर अजीजा के बच्चों को वे यह बताना ही चाहती थीं कि दरवाजे से मद्धिममद्धिम नारी स्वर में अपना नाम पुकारे जाने की आवाज सुनाई पड़ी. झट सीढि़यों से नीचे उतर कर स्टोररूम के दरवाजे पर कान रख कर सुनने लगीं. नारी स्वर फिर उभरा, ‘‘आपा बी, मैं अजीजा, मुझे बाहर निकालो,’’ अजीजा की सिसकियों भरी आवाज साफ सुनाई पड़ी.

ठीक उसी वक्त ऊपर से किसी के नीचे उतरने की आहट आने लगी. खाला बी काले नकाब और स्याह अंधेरे का फायदा उठा कर जीने की नीचे वाली दीवार से चिपक गईं सांस रोके हुए. धीरेधीरे अजीजा के बड़े बेटे के कदमों की आहट मेन गेट से बाहर चली गई तो खाला बी दबे कदमों से फिर स्टोररूम के दरवाजे की झिरी पर अपने कान रख कर सुनने लगीं :

‘‘आपा बी, मुझे 8 दिनों से इस कोठरी में बंद कर रखा है, भूखाप्यासा.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ खाला बी की बेचैनी बढ़ती चली गई और वे दम साधे सुनने लगीं.

‘‘लालची व दौलत के भूखे हैं मेरे शौहर और बेटे. मेरे नाम पर यह 10 कमरों का मकान है, 8 लाख की बीमा पौलिसी अगले महीने मैच्योर होने वाली है और 5 एकड़ आम के बगीचे वाली जमीन भी मेरे नाम पर है. केस हार जाने पर इन को मेरा खानाखर्चा, मेहर और दहेज वापस देना पड़ता और पूरी जायदाद पर सिर्फ मेरा हक होता. इन के सारे अधिकार खत्म हो जाते. सब कंगाल हो जाते. इसलिए मुझे बहलाफुसला कर दोबारा निकाह करने की साजिश रची गई. मुझ पर पूरी जायदाद अनवार मियां के नाम पर करने का दबाव डाला जा रहा है. मेरे इनकार करने पर मुझे जानवरों की तरह पीटा और यहां बंद कर दिया है.’’

‘‘क्या तुम्हारे बच्चों को ये सब मालूम है?’’ खाला बी ने फुसफुसा कर पूछा.

‘‘हां, बेटियों को छोड़ कर सभी बेटे इस षड्यंत्र में शामिल हैं. मुझे बहलानेफुसलाने और जज्बाती तौर पर धोखा देने में बेटों का पूरापूरा हाथ है और शौहर ने तो निकाह के बाद एक बार भी मुझ से बात नहीं की, यह कह कर कि मैं दूसरे की जूठन को खाना तो दूर देखना भी पसंद नहीं करता. आपा बी, मुझे इन शैतानों और निहायत गिरे हुए खुदगर्ज शौहर और बेटों से बचा लीजिए.’’

अजीजा की घुटीघुटी दम तोड़ती आवाज ने खाला बी को अंदर तक कंपकंपा दिया.

इतनी गंदी और भयानक सचाई ये नमाजीपरहेजगार अनवार मियां की शातिर दिमागी और ऐसी तुरुपचाल…अफसोस, चंद रुपयों और जायदाद के लिए पत्नी के साथ इतना बड़ा विश्वासघात और घिनौना अमानवीय व्यवहार?

अजीजा की कैदियों सी हालत देख कर खाला बी का कलेजा कांप गया, रोंगटे खड़े हो गए. बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए कांटे उगे गले से बोलीं, ‘‘अजीजा, किसी भी कागज पर किसी भी सूरत में दस्तखत मत करना. बस, चंद घंटे की इस काली रात को और काट लो, हिम्मत से. मैं जल्द ही तुम्हारी रिहाई का इंतजाम करती हूं. हौसला रखना, बहन,’’

खाला बी अनवार मियां के घर की बाउंड्री से चिपकती हुई धीरेधीरे मेनगेट से बाहर निकल गईं.

दूसरे दिन तड़के ही खाला बी की रिपोर्ट पर पुलिस ने अनवार मियां की कोठी से अजीजा को जख्मी और मरणासन्न हालत में बाहर निकाला. अजीजा के बयान पर पुलिस ने अनवार मियां और उन के बेटों को हथकड़ी डाल कर पैदल ही महल्ले की गलियों से ले जाते हुए पुलिस हवालात तक पहुंचा दिया.

पूरे 1 महीने बाद कुरैशा ने अजीजा के सामने अनवार मियां के खिलाफ किए जाने वाले केस के कागजात रख दिए. अजीजा दस्तखत करते हुए खाला बी और कुरैशा को भीगी आंखों से देखते हुए भर्राए गले से बस इतना ही बोल पाई, ‘‘मेरी रिहाई और मेरा आत्मसम्मान लौटाने का शुक्रिया.’’

Stories : दूसरा कोना – ऋचा के प्रति कैसी थी लोगों की राय

Stories :  ‘‘अजीब तरह का व्यवहार कर रही थी अजय की पत्नी. पूरे समय बस अपनी खूबसूरती, हंसीमजाक, ब्यूटीपार्लर उफ, कोई कह सकता है भला कि उस के पति की अभीअभी कीमोथेरैपी हुई है. उस के हावभाव, अदाओं से कहीं से भी नहीं लग रहा था कि उस के पति को इतनी गंभीर बीमारी है. मुझे तो दया आ रही है बेचारे अजय पर. ऐसे समय में उस का खयाल रखने के बजाय, उस की पत्नी ऋचा अपनी साजसज्जा में लगी रहती है,’’ घर का दरवाजा खोलने के साथ ही प्रिया ने अपने पति राकेश से कहा.

‘‘हां, थोड़ा अजीब तो मुझे भी लगा ऋचा का तरीका, पर चलो छोड़ो न, तुम क्यों अपना दिमाग खराब कर रही हो. हमें कौन सा रोजरोज उन के घर जाना है. औफिस का कलीग है, कैंसर की बीमारी का सुना तो एक बार तो देखने जाना बनता था,’’ राकेश ने प्रिया को बांहों में लेते हुए कहा.

‘‘अरे, छोड़ो क्या, मेरे तो दिमाग से ही नहीं निकल रही यह बात. कोई इतना लापरवाह कैसे हो सकता है. ऋचा पढ़ीलिखी, अच्छे परिवार की लड़की है, फिर भी ऐसी हरकतें. मुझे तो शर्म आ रही है कि  ऐसी भी होती हैं औरतें.

‘‘ऋचा औफिस की पार्टीज में भी कितना बनसंवर कर आती थी. कितना मरता था अजय उस की खूबसूरती पर. एक से एक लेटैस्ट ड्रैसेज पहनती थी वह तब भी. पर अब हालत कैसी है, कम से कम यह तो सोचना चाहिए.’’ राकेश ने प्रिया की बातों में अब हां में सिर हिलाया और कहा कि बहुत नींद आ रही है, सुबह औफिस भी जाना है, चलो सो जाते हैं.

बिस्तर पर पहुंच कर भी प्रिया के मन में ऋचा की बातें, उस की हंसी फांस की तरह चुभ रही थी. आज की मुलाकात ने रिचा को प्रिया की आंखों के सामने लापरवाह औरत के रूप में खड़ा कर दिया था. यही सब सोचतेसोचते प्रिया की आंख कब लग गई, उसे पता ही नहीं चला.

अगली सुबह औफिस जाते हुए राकेश को गुडबाय किस देने के बाद अंदर आई तो देखा राकेश अपना टिफिन भूल गए. प्रिया ने राकेश को कौल कर के रुकने को कहा. दौड़ते हुए वह राकेश का टिफिन नीचे पार्किंग में पकड़ा कर आई. ‘‘तुम एक चीज भी याद नहीं रख सकते. मैं न होती तो तुम्हारा क्या होता?’’ प्रिया ने मुसकराते हुए कहा.

राकेश ने भी उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘तुम न होती तो कोई और होती.’’

इस पर प्रिया ने उसे घूरने वाली नजरों से देखा. राकेश ने जल्दी से ‘आई लव यू’ कहा और बाय कहते हुए वहां से निकल गया.

सब काम निबटा कर प्रिया ने चाय बनाई और टीवी औन कर लिया. चैनल पलटतेपलटते ‘सतर्क रहो इंडिया’ पर आ कर उस का रिमोट रुका. प्रिया ने बिना पलकें झपकाए पूरा एपिसोड देख डाला. उसे फिर ऋचा का खयाल आ गया. अब वह तरहतरह की बातें सोचने लगी कि ऋचा का कहीं किसी से चक्कर तो नहीं चल रहा, कहीं वह अजय से छुटकारा तो नहीं पाना चाहती? दिनभर प्रिया के दिमागी घोड़े ऋचा के घर के चक्कर लगाते रहे.

शाम को राकेश के आने पर प्रिया ने फिर से ऋचा की बात छेड़ी तो राकेश ने थोड़ा झुंझला कर कहा, ‘‘अरे यार, क्या ऋचाऋचा लगा रखा है? उन की जिंदगी है, तुम क्यों इतना सोच रही हो?’’

प्रिया चुप हो गई. वह राकेश को नाराज नहीं करना चाहती थी. बहुत प्यार जो करती थी वह उस से.

मगर प्रिया के दिमाग से ऋचा का कीड़ा उतरा नहीं था. उस ने अपनी किट्टी की सहेलियों को भी उस के व्यवहार के बारे में बताया.

सहेलियों में से एक बोली, ‘‘जिस के पति के जीवन की डोर कब कट जाए, पता नहीं, वह पति के बारे में न सोच कर सिर्फ अपने बारे में बातें कर रही है, कैसी औरत है वह.’’

‘‘जो बीमार पति से भी इधरउधर घूमने की फरमाइश करती है, कैसी अजीब है वह,’’ दूसरी सहेली ने कहा.

‘‘ऐसी औरतें ही तो औरतों के नाम पर धब्बा होती हैं,’’ तीसरी बोली.

सब सहेलियों ने मिल कर ऋचा के उस व्यवहार का पूरा पोस्टमौर्टम कर दिया. धीरेधीरे प्रिया के दिमाग से ऋचा का कीड़ा निकल गया. हां, कभीकभार वह राकेश से अजय के बारे में जरूर पूछ लेती. राकेश का एक ही जवाब होता, ‘अजय अब शायद ही औफिस आ सके.’ प्रिया को अफसोस होता और मन ही मन सोचती कि बेचारे अजय का तो समयही खराब निकला.

4 महीने बाद एक दिन राकेश ने औफिस से फोन पर प्रिया को बताया कि अजय की मृत्यु हो गई. प्रिया को बहुत दुख हुआ. राकेश ने प्रिया से कहा कि तुम शाम को तैयार रहना, अजय के घर जाना है. औफिस के सभी लोग जा रहे हैं.

प्रिया और राकेश अजय के घर पहुंचे. घर में कुहराम मचा हुआ था. अभी उम्र ही क्या थी अजय की, अभी 42 साल का ही तो था. ऐसे माहौल में प्रिया का मन अंदर घुसते हुए घबरा रहा था. अंदर घुसते ही सब से पहले ऋचा पर उस की नजर पड़ी. ऋचा का रंग बिलकुल सफेद पड़ा हुआ था. जो ऋचा 4 महीने पहले उसे नवयुवती लग रही थी, आज वही मानो बुढ़ापे के मध्यम दौर में पहुंच गई हो. जिस तरह ऋचा रो रही थी, प्रिया का मन और आंखें दोनों भीग गए. वह ऋचा को संभालने उस के करीब पहुंच गई.

बाहर अजय की अंतिम यात्रा की तैयारियां चल रही थीं. राकेश भी बाहर औफिस के लोगों के साथ खड़ा था. सभी अजय की जिंदादिली और हिम्मत की तारीफ कर रहे थे.

राकेश के पास ही डा. प्रकाश खड़े थे. डा. प्रकाश राकेश के बौस के खास मित्र थे. औफिस की पार्टीज में अकसर उन से मिलना हो जाया करता था. डा. प्रकाश ने कहा, ‘‘अजय जितना हिम्मत वाला था, उस से भी बढ़ कर उस की पत्नी ऋचा है.’’

राकेश ने जब यह बात सुनी तो उस के मन में उत्सुकता जाग गई. उस ने डा. प्रकाश से मानो आंखों से ही पूछ लिया कि आप क्या कह रहे हैं.

‘‘अजय का पूरा इलाज मेरी देखरेख में ही हुआ है,’’ डा. प्रकाश ने कहा, ‘‘राकेश, अजय की रिपोर्ट्स के मुताबिक उस के पास मुश्किल से एक से डेढ़ महीने का समय था. यह ऋचा ही थी जिस ने उसे 4 महीने जिंदा रखा.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘जब इन लोगों को कैंसर की बीमारी का पता चला तो ऋचा डिप्रैशन में चली गई थी. अजय अपनी बीमारी से ज्यादा ऋचा को देख कर दुखी रहने लगा था. अजय की चिंता देख कर मैं ने पूछा तब उस ने सारी बात मुझे बताई. उस दिन अजय और मेरे बीच बहुत बातें हुईं. मैं ने उसे ऋचा से बात करने को कहा.

‘‘अगली बार जब वे दोनों मुझ से मिलने आए तो हालात बेहतर थे. तब ऋचा ने मुझे बताया कि उस के पति उसे मरते दम तक खूबसूरत रूप में ही देखना चाहते हैं. उस ने कहा था, ‘अजय चाहते हैं कि मैं हर वह काम करूं जो उन के ठीक रहने पर करती आई हूं. उन के साथ नौर्मल बातें करूं. हंसीमजाक, छेड़ना सब करूं. बस, उन की बीमारी का जिक्र न करूं. इन थोड़े बचे दिनों में वे एक पूरी जिंदगी जीना चाहते हैं मेरे साथ.

‘‘अजय ने मुझ से कहा, ‘तुम्हें दुखी देख कर मैं पहले ही मर जाऊंगा. मुझे मरने से पहले जीना है.’ मैं ने भी दिल पर पत्थर रख कर उन की बात मान ली. डाक्टर साहब, अब अजय काफी अच्छा महसूस कर रहे हैं.’ उस दिन यह कहतेकहते ऋचा की आंखों में आंसू आ गए थे, मगर पी लिए उस ने अपने आंसू भी अजय की खातिर.

‘‘ऋचा बहुत हिम्मती है. आज देखो, दिल पर से पत्थर हटा तो कैसा सैलाब उमड़ आया है उस की आंखों में.’’

डा. प्रकाश की बातें सुन कर राकेश का मन ग्लानि से भर गया. जिस ऋचा के लिए उस ने और प्रिया ने मन में गलत धारणा पाल ली थी, आज उसी ऋचा के लिए उस के मन में बहुत आदरभाव उमड़ आया था.

राकेश को काफी शर्म भी महसूस हुई यह सोच कर कि कैसे हम लोग बिना विचार किए एक कोने में खड़े हो कर किसी के बारे में अच्छीबुरी राय बना लेते हैं. कभी दूसरे कोने में जा कर देखने या विचारने की कोशिश ही नहीं करते.

Kahaniyan : एक बेटी तीन मांएं – कैसे हो गई तूलिका और आशुतोष की जिंदगी बेहतर

Kahaniyan : 90 के दशक के बीच का दौर था. वरुण आईआईटी से कंप्यूटर साइंस में बीटैक कर चुका था. उसे कैंपस से सालभर पहले ही नौकरी मिल चुकी थी. उसे इंडिया की टौप आईटी कंपनी के अतिरिक्त अमेरिका की एक स्टार्टअप कंपनी से नौकरी का औफर था.

वरुण के मातापिता चाहते थे कि उन का बेटा इंडिया में ही नौकरी करे, पर वरुण अमेरिका जाना चाहता था. अमेरिकी कंपनी उसे बेहतर वेतन औफर कर रही थी. इकलौते बेटे की खुशी के लिए मातापिता ने उस के अमेरिका जाने के लिए हामी भर दी.

वरुण के अमेरिका जाने के एक हफ्ते पहले उस के घर पर पार्टी थी. वरुण के मित्रों के अलावा मातापिता के मित्र और कुछ करीबी रिश्तेदार भी थे. उन दिनों अमेरिका में आईटी की स्टार्टअप कंपनियों का बोलबाला था. पार्टी में उस के पिता के एक करीबी मित्र की बेटी तूलिका भी आई हुई थी. इत्तफाक से उस ने भी इसी वर्ष इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी. वह भी अमेरिका जा रही थी.

तूलिका देखने में सुंदर और स्मार्ट थी. उसे एक भारतीय आईटी कंपनी ने अपने अमेरिका औफिस में पोस्ट किया था. दोनों का उसी पार्टी में परिचय हुआ. दोनों अपने अमेरिकन ड्रीम्स की बातें करने लगे. वहां डौटकौम बूम चल रहा था. नैसडैक दुनिया का दूसरा सब से बड़ा शेयर ऐक्सचेंज है. उस समय आईटी शेयरों की कीमत में भारी उछाल आया था. भारत से हजारों इंजीनियर अमेरिका जा रहे थे.

वरुण और तूलिका दोनों 2 हफ्ते के भीतर अमेरिका में थे. वरुण अमेरिका के पश्चिमी छोर कैलिफोर्निया में था जबकि तूलिका पूर्वी छोर पर न्यूयौर्क में. दोनों के राज्य अलगअलग टाइमजोन में थे. न्यूयौर्क कैलिफोर्निया की तुलना में 3 घंटे आगे था. मतलब जब कैलिफोर्निया में सुबह के 7 बजते तो न्यूयौर्क में 10 बजते. पर दोनों हमेशा कौंटैक्ट में रहे. लंबी छुट्टियों में दोनों एकदूसरे से मिलते भी थे. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे.

इधर भारत में वरुण और तूलिका दोनों के मातापिता उन की शादी की बात कर रहे थे. हालांकि दोनों अलग जातियों के थे पर दोनों पक्षों के लिए यह कोई माने नहीं रखता था. दोनों परिवार उदारवादी, आधुनिक विचार वाले थे. उन्होंने अपने बच्चों की राय भी ली थी. वरुण और तूलिका को तो बिन मांगे मनचाहा मिल रहा था. वरुण और तूलिका की शादी पक्की हो गई. वे 3 हफ्ते की छुट्टी ले कर भारत आए और शादी के बाद दोनों अमेरिका लौट गए.

अमेरिका में वरुण और तूलिका को कुछ समय के लिए अलगअलग रहना पड़ा था. उस के बाद तूलिका को भी उस की कंपनी ने कैलिफोर्निया औफिस में पोस्ट कर दिया. फिर दोनों एकसाथ खुशीखुशी रह रहे थे. दोनों का वेतन भी अच्छा था. 2 साल के भीतर तूलिका ने एक पुत्र को जन्म दिया. दोनों ने मिल कर बड़ा डुप्लैक्स घर खरीद लिया. महंगी गाडि़यां, फर्नीचर आदि से घर को अच्छी तरह सजा लिया. घर, गाडि़यां और कुछ अन्य कीमती सामान सभी किस्तों पर खरीदे गए थे. सबकुछ मजे में चल रहा था.

देखतेदेखते 4 साल बीत गए. अचानक डौटकौम का बुलबुला फटना शुरू हुआ. छोटीछोटी स्टार्टअप कंपनियां बंद होने लगीं. कुछ अच्छी कंपनियों को बड़ी कंपनियों ने खरीद लिया. हजारों सौफ्टवेयर इंजीनियरों की छंटनी होने लगी थी. बड़ी कंपनियों ने भी काफी इंजीनीयर्स की छंटनी की. इसी दौरान तूलिका को कंपनी ने ले औफ (छंटनी) कर दिया. पर चूंकि वरुण अभी नौकरी में था, इसलिए किसी तरह खींचतान कर घर चल रहा था. बड़ी मुश्किल से वह घर और गाड़ी की ईएमआई दे पा रहा था, पर घर के अन्य खर्चों में कटौती करनी पड़ती थी.

अंगरेजी में एक कहावत है- ‘मिसफौरचून नेवर कम्स अलोन.’ चंद महीनों के अंदर वरुण का भी ले औफ हो गया. अब दोनों मियांबीवी बेरोजगार हो गए थे. गनीमत थी कि दोनों को छंटनी के समय कुछ मुआवजा मिला. सो, कुछ महीने तक गुजारा हो सका था. यह अच्छा रहा कि उस समय तक दोनों को अमेरिका का ग्रीनकार्ड मिल चुका था. वरना सबकुछ औनीपौनी कीमत पर बेच कर भारत वापस आना पड़ता. वरुण कुछ बच्चों को होम ट्यूशन पढ़ाता था जिस से कुछ आमदनी हो जाती थी. फिर भी उन को पैसों की काफी कमी रहती थी.

इस बीच, तूलिका जिस कंपनी में काम करती थी उस का मालिक एक अमेरिकन था- हडसन. उस की उम्र 40 वर्ष से कुछ कम रही होगी. उस की शादी के 10 वर्षों बाद भी कोई बच्चा नहीं था. दोनों मियांबीवी एक बच्चा चाहते थे, पर मिसेज हडसन इस में सक्षम नहीं थीं. उन्हें एक सैरोगेट मदर की तलाश थी. एक दिन उन्होंने तूलिका और वरुण दोनों को डिनर पर घर बुलाया.

वरुण और तूलिका अपने बेटे आशुतोष के साथ हडसन के घर गए. हडसन दंपती ने उन का गर्मजोशी से स्वागत किया. आशुतोष उन की पालतू बिल्ली के साथ खेलने लगा. हडसन ने प्यार से उसे कहा,‘‘हाउ क्यूट बौय.’’

मिसेज हडसन बोलीं, ‘‘तुम लोगों को बहुत जरूरी काम से याद किया है हम ने. तुम लोग बुरा न मानना, एक रिक्वैस्ट है हमारी. हम दोनों पतिपत्नी संतानहीन हैं और एक सैरोगेट मदर की तलाश में हैं. तूलिका, तुम अगर चाहो तो हमें बच्चा दे सकती हो.’’

तूलिका बोली, ‘‘भला मैं इस में क्या मदद कर सकती हूं?’’

हडसन बोला, ‘‘मेरी पत्नी मां नहीं बन सकती. पर तूलिका, अगर तुम चाहो तो यह कार्य कर सकती हो सैरोगेट मदर बन कर. यह सिर्फ हमारा विनम्र निवेदन है. तुम इस पर विचार कर के बता देना बाद में.’’

तूलिका और वरुण एकदूसरे का मुंह देखने लगे. मिसेज हडसन बोलीं, ‘‘तुम को शायद पता है कि नहीं, कैलिफोर्निया एक सैरोगेसी फ्रैंडली राज्य है. यहां कमर्शियल सैरोगेसी वैध है.’’

तूलिका बोली, ‘‘मिसेज हडसन, आप को शायद पता हो, हम भारतीय मातृत्व का सौदा नहीं करते.’’

‘‘मैं जानती हूं तूलिका. इसीलिए शुरू में ही हडसन ने कहा था कि यह हमारी विनम्र प्रार्थना है. पर हम यह भी जानते हैं कि तुम लोग दिल से बहुत उदार होते हो. मैं तुम्हें पैसों का लालच नहीं दे रही हूं, पर मातृसुख प्रदान करने की भिक्षा मांग रही हूं. निर्णय तुम लोगों का होगा और तुम्हारा इनकार भी हमें खुशीखुशी स्वीकार होगा, क्योंकि ऐसा फैसला लेना नामुमकिन तो नहीं मगर बहुत मुश्किल जरूर है. तुम लोग एक बार ठीक से सोच कर अपना फैसला बता देना.’’

वरुण और तूलिका अपने घर आ गए. तूलिका ने वरुण से कहा, ‘‘मिसेज हडसन अमीर होंगी, पर उन्होंने कैसे सोच लिया कि मैं अपनी कोख बेच सकती हूं?’’

वरुण बोला, ‘‘उन्होंने सिर्फ हम से मदद मांगी है, फैसला तो हमें लेना है.’’

इधर वरुण और तूलिका की आर्थिक कठिनाइयां कम होने का नाम नहीं ले रही थीं. लगभग एक साल से दोनों बेकार थे. अभी तक नौकरी की कोई उम्मीद नहीं थी. वरुण ने तूलिका से कहा, ‘‘अगर एकाध महीने में जौब नहीं मिलती है तो इंडिया लौटना होगा. यहां की सारी प्रौपर्टी बेच कर भी शायद लोन पूरा न चुका सकें.’’

‘‘स्लोडाउन का असर तो अभी इंडिया में भी होगा. वहां भी ले औफ हुए हैं और काफी लोग बैंच पर हैं. हो सकता है नौकरी मिल भी जाए तो सैलरी बहुत कम ही मिलेगी,’’ तूलिका ने कहा.

वरुण डरतेडरते बोला, ‘‘क्यों न एक बार हडसन दंपती के प्रस्ताव पर गौर करें. अब तो आशुतोष को भी स्कूल भेजना है. मुझे सब से ज्यादा चिंता बेटे के भविष्य को ले कर हो रही है. सैरोगेसी से यहां 40 हजार डौलर तो मिल ही सकते हैं.’’

तूलिका ने बिगड़ कर कहा, ‘‘तो तुम मेरी कोख बेचना चाहते हो? मुझे यह पसंद नहीं.’’

‘‘इसे तुम उन की मदद करना समझो, खरीदबिक्री तो मुझे भी पसंद नहीं है. हां, इस के बदले हो सकता है वे हमारी भी मदद करना चाहते हों. और हम दोनों को जो बनना था, बन गए हैं. अब हमें बेटे को पढ़ालिखा कर अच्छा बनाना है. उस के लिए पैसा तो चाहिए ही.’’

उस रात को दोनों ने करवटें बदल कर काटा. एकतरफ  सैरोगेसी का प्रश्न तो दूसरी ओर बेरोजगारी और आर्थिक तंगी तथा अमेरिका छोड़ने का संकट. बहुत गौर करने के बाद दोनों हडसन दंपती का प्रस्ताव स्वीकार करने पर तैयार हुए. तूलिका ने कहा कि वह अपना अंडाणु नहीं देगी. उस का इंतजाम हडसन को करना होगा.

हडसन दंपती को जब यह फैसला बताया गया तो 10 मिनट तक वे फोन पर उन्हें धन्यवाद देते रहे. उन की आंखों के आंसू को तूलिका और वरुण देख तो नहीं सकते थे पर उन की आवाज से ऐसा महसूस किया तूलिका ने कि हडसन दंपती जैसे रो पड़े हों. उस दिन शाम को हडसन दंपती वरुण के घर आए. वे साथ में पूरे परिवार के लिए काफी उपहार भी लाए थे.

मिसेज हडसन बोलीं, ‘‘तुम्हारा शुक्रिया अदा करने के लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं. पर बुरा न मानना, इस के बदले में तुम जो रकम उचित समझो, मांग सकती हो. हमारे यहां औरतें अपने फिगर पर ज्यादा ध्यान देती हैं, इसलिए जल्द सैरोगेट मदर के लिए तैयार नहीं होतीं.’’

तूलिका बोली, ‘‘देखिए मिसेज हडसन, मैं ने पहले दिन ही कहा था कि मैं कोई खरीदफरोख्त नहीं चाहती हूं.’’

‘‘यह लीगल है, तुम्हारा हक है.’’

तब बीच में वरुण बोला, ‘‘हडसन, हम लोग इसे सौदा न कह कर एकदूसरे की मदद का रूप देना चाहते हैं.’’

हडसन बोला, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘जब तक हमें नौकरी नहीं मिलती है, आप हमारे घर और कार की ईएमआई व बच्चे की फीस देते रहेंगे और कुछ नहीं. जिस दिन मुझे नौकरी मिल जाएगी, उस के बाद हम अपनी किस्त खुद जमा करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह तो कुछ भी नहीं हुआ. मैं ऐसा करता हूं फौरन एक साल की सारी ईएमआई और तुम्हारे परिवार का मैडिकल इंश्योरैंस का प्रीमियम जमा कर देता हूं. वैसे भी डिलिवरी तक तूलिका का सारा खर्च हमें ही उठाना है.’’

अब हडसन दंपती को एक ऐसी महिला की खोज थी जो अपना एग्स (अंडाणु) डोनेट करे. उन्होंने एक सैरोगेसी क्लिनिक से संपर्क किया. कुछ ही दिनों में एक अमेरिकी युवती इस के लिए मिल गई. एक सैरोगेसी का अनुबंध तैयार किया गया जिस पर एग डोनर, सैरोगेट मदर और भावी मातापिता सब ने हस्ताक्षर किए. प्रसव के बाद हडसन दंपती ही बच्चे के कानूनी मातापिता होंगे. हडसन के शुक्राणु और उस युवती के एग्स को आईवीएफ तकनीक के जरिए क्लिनिक में फर्टिलाइज कर भ्रूण को तूलिका के गर्भ में प्रत्यार्पित किया गया. सैरोगेसी की बात गुप्त रखी गई थी.

तूलिका और वरुण का बेटा आशुतोष अब स्कूल जाने लगा था. तूलिका के गर्भ में बच्चे का समुचित विकास हो रहा था. 3 महीने के बाद अल्ट्रासाउंड में पता चला कि तूलिका के गर्भ में एक बच्ची पल रही है. हडसन दंपती को बेटा या बेटी से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.

इधर मां में आए बदलाव को देख कर आशुतोष पूछता तो तूलिका ने आशुतोष को बता दिया कि उस की एक छोटी बहन घर में आने वाली है. आशुतोष ने अपने स्कूल में अपने दोस्तों को बता दिया था कि जल्द ही उस के साथ खेलने वाली उस की बहन होगी.

जैसेजैसे प्रसव का समय नजदीक आ रहा था, तूलिका के मन में ममत्व जागृत होने लगा. यह सोच कर कि 9 महीने तक जिसे अपनी कोख में रखा उसे प्रसव के बाद हडसन दंपती को सौंपना होगा, वह उदास हो जाती थी.

आखिर वह दिन भी आ गया. तूलिका ने एक सुंदर, स्वस्थ कन्या को जन्म दिया. पर तूलिका ने उसे अपना दूध पिलाने से मना कर दिया. ऐसा उस ने सिर्फ यह सोच कर किया कि अपना दूध पिलाने के बाद वह बच्ची को अपने से जुदा नहीं कर पाएगी. वैसे भी बच्ची को छोड़ कर खाली गोद लौटना काफी दुखभरा था तूलिका के लिए. उधर उस का बेटा आशुतोष घर पर बहन की उम्मीद लगाए बैठा था. बहुत मुश्किल से उस को वरुण ने किसी तरह चुप कराया कि बहन को डाक्टर नहीं बचा पाए.

बच्ची को ले जाते समय मिसेज हडसन ने पूछा, ‘‘तूलिका, अगर यह बेबी तुम्हारे पास होती तो तुम इस का क्या नाम रखती?’’

तूलिका ने बिना देर किए कहा, ‘‘मैं इस का नाम सीता रखती.’’

‘‘ठीक है, मैं भी बेबी का नाम सीता ही रखूंगी.’’

मिसेज हडसन सीता को गोद में उठा कर चूमने लगीं. वरुण और तूलिका को धन्यवाद देते हुए हडसन दंपती सीता को ले कर अपने घर आए.

तूलिका अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आई. उसे सीता से बिछुड़ने का दुख तो था पर साथ में सीता के जन्म के समय ही वरुण को अच्छी सौफ्टवेयर कंपनी में औफर मिलने की खुशी भी थी. इधर, कुछ दिनों से सौफ्टवेयर कंपनियों के अच्छे दिन लौटने लगे थे.

तूलिका घर पर कुछ दिनों तक उदास रही. उस ने एक दिन वरुण से कहा, ‘‘एक तरह से तो सीता की 3 मांएं हुईं. एक मां जिस ने अपना अंडाणु दिया उस की बायोलौजिकल मां, दूसरी उस की सैरोगेट मां यानी मैं और तीसरी मां मिसेज हडसन जो कानूनन असली मां कहलाएंगी. पर सच कहो तो मैं ही उस की असली मां हूं. मैं ने 9 महीने तक उस को हर पल कोख में महसूस किया है.’’

वरुण ने स्वीकार करते हुए सिर हिलाया था. ठीक उसी समय हडसन का फोन आया, ‘‘मैं ने नई सौफ्टवेयर कंपनी खोली है. सीता टैक्नोलौजी नाम रखा है कंपनी का. तूलिका का उस में 5 प्रतिशत हिस्सा रहेगा और वह जब स्वस्थ महसूस करे, कंपनी जौइन कर सकती है.’’

वरुण बोला, ‘‘लो, अब खुश हो जाओ, सीता नाम के साथ तुम जुड़ी रहोगी.’’

तूलिका अपने दुपट्टे से आंसू पोंछते हुए हंसने लगी.

Kahaniyan : जय हो खाने वाले बाबा की

Kahaniyan :  घरपहुंचते ही हम ने देखा कि हमारी श्रीमतीजी अपने सामने छप्पन भोग की थाली लिए गपागप खाए जा रही थीं.

हम उन्हें देख कर खुशी से गुब्बारे की तरह फूल गए. हमारी श्रीमतीजी इतनी दुबलीपतली हैं कि एक बार उन्हें ले कर हम रेलवे स्टेशन पर गए तो वहां कमाल हो गया. वहां तोलने वाली मशीन पर उन्होंने अपना वजन जानने की जिद की तो हम ने मशीन में 1 रुपए का सिक्का डाला और उन को मशीन पर खड़ा कर दिया. थोड़ी देर में मशीन से टर्रटर्र की आवाज आई और एक टिकट निकल कर बाहर आया. उस पर लिखा था कि मुझ से मजाक मत करो. पहले मशीन पर खड़े तो हो जाओ. हम ने माथा ठोंक लिया.

श्रीमतीजी कहने लगीं, ‘‘यह मशीन झूठ बोलती है. आप खड़े हो जाइए, फिर देखते हैं कि मशीन क्या बोलती है.’’

हम ने 1 रुपए का सिक्का पुन: डाला. टर्रटर्र की आवाज के साथ एक टिकट निकला, जिस पर लिखा था कि 2 व्यक्ति एकसाथ खड़े न हों.

गुस्से में हम ने सोचा कि एक लात मशीन को मार दें, लेकिन हम जानते थे कि चोट हमारे ही पांव में लगेगी. इसलिए हम अपनी श्रीमतीजी को प्लेटफार्म घुमा कर लौट आए.

घर आ कर हम ने उन से खूब कहा कि आप खाना खाया करो, टौनिक पीया करो, लेकिन उन्होंने मुंह फेरते हुए कहा, ‘‘मेरी बिलकुल भी इच्छा नहीं होती है खाना खाने की.’’

हम उन के इस तरह दुबले होने से बेहद चिंतित थे लेकिन एक दिन जब हम शाम को घर आए और अपने सामने छप्पन भोग लगाए उन्हें गपागप खाते देखा तो हमारी बड़ी इच्छा हुई कि नाचने लगें, लेकिन शांति बनाए रहे.

प्रसन्न मुद्रा में हम ने श्रीमतीजी को देखा तो उन्होंने हमें भी छप्पन भोग खाने के लिए इशारा किया. हम ने शरीफ पति की तरह मना कर दिया. तभी परदे की ओट से किसी की हंसी की आवाज आई. हम तो डर ही गए. फिर देखा तो सामने सासूमां खड़ी थीं.

‘‘अरे, आप कब आईं?’’

‘‘आप जब सुबह औफिस गए थे, तब आई थी.’’

‘‘आप ने आने की खबर क्यों नहीं दी?’’

‘‘सोचा सरप्राइज दूंगी,’’ कह कर वे पुन: जोर से हंस पड़ीं.

‘‘अचानक कैसे आना हुआ?’’

‘‘अपने भाई के घर जा रही थी, सोचा सरला से भी मिलती चलूं… यह तो बहुत ही दुबली हो गई है.’’

‘‘फिर आप ने ऐसा क्या किया कि छप्पन भोग बनाते ही इन्हें भूख लग आई?’’ हम ने आगे बात को जोड़ते हुए कहा.

‘‘आप की यही बहुत बुरी बात है कि आप किसी की सुनते नहीं. हमारी बात खत्म तो हो जाने देते,’’ उन्होंने तनिक नाराजगी के साथ कहा.

‘‘आप ही बात पूरी कर लीजिए,’’ कहते हुए हम सोफे पर पसर गए.

सासूमां ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘मैं सुबह आई तो सरला को इतना दुबला देख कर

चकित रह गई. मैं ने इस से पूछा भी कि आखिर बात क्या है? तो इस ने कहा कि कुछ भी नहीं. मैं बड़ी परेशान थी. अचानक मुझे ध्यान आया कि आप के शहर में खाने वाले बाबा का बड़ा नाम है.’’

‘‘खाने वाले बाबा?’’ हम ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जी हां, खाने वाले बाबा. उन का बड़ा प्रताप है. उन के पास सभी प्रकार की समस्याओं के लिए एक ही इलाज होता है.

यदि किसी की ग्रहदशा खराब हो तो वे कुत्ते से ले कर सूअर तक को खाना खिलाने को कहते हैं…’’

वे कुछ और कहतीं कि हम ने बीच में बात काट दी, ‘‘सासूमां, कुत्ता तो गले से उतर रहा है, लेकिन सूअर वाली बात…’’

‘‘आप भी क्या दामादजी बाल की खाल निकालते हैं,’’ कह कर वे झेंप गईं. फिर कहने लगीं, ‘‘बस मैं सरला को ले कर बाबाजी के दरबार में गई. पूरे 2,100 रुपए की 2 रसीदें कटवाईं और उन के सामने हाजिर हो गई. उन्होंने हमें 3 मिनट का समय दिया. वाह, क्या दरबार भरा था. होंगे हजार लोग, सब हाथ जोड़े खाने वाले बाबा की महिमा का गुणगान कर रहे थे.

‘‘एक ने बताया कि बाबाजी आप ने कहा था कि कौओं को हलवा खिलाओ, इसलिए 1 दर्जन कौओं को खोज कर 3 किलोग्राम असली घी का हलवा खिला दिया. लेकिन बाबाजी सुबह वे सब मर गए.

‘‘बाबाजी जोर से हंस दिए और कहने लगे कि बेटा, तेरे दुखदरिद्र खत्म हो गए. अब तेरी विजय ही विजय है. वह भक्त वहीं खड़ाखड़ा कांपते हुए नाचने लगा.

‘‘अगले भक्त ने बताया कि बाबाजी आप ने मुझे पड़ोसी को भोजन कराने की सलाह दी थी. कहा था पकौड़े खिलाना.

‘‘‘खिलाए या नहीं?’

‘‘‘खिलाए बाबाजी.’

‘‘‘फिर क्या हुआ?’

‘‘‘बाबाजी उस ने सुबह आ कर खूब जूते मारे.’

‘‘‘क्यों?’

‘‘‘पूरे घर वालों को दस्त लग गए थे.

वह बहुत गुस्से में था. मैं ने चुपचाप जूते खा लिए बाबाजी.’

‘‘‘ठीक किया. बेटा, ये जूते तुझे नहीं उस प्रेत आत्मा को पड़े जो तुझे आगे बढ़ने से रोक रही थी. अब वह चली गई है. तेरा भाग्य उदय होने को है, समझा? वह भक्त भी तक धिना तक कह के नाचने लगा.

‘‘जब हमारी बारी आई तो मैं ने बताया कि मेरी बेटी सरला के पास सब कुछ है, फिर भी इसे भूख नहीं लगती. यह ठीक से कुछ खाती नहीं है.

‘‘बाबाजी ने मुझ से कहा कि माताजी पूरे छप्पन मीठे भोग बना कर 2 दिनों तक खिलाओ, उस के बाद प्रताप देखना.

‘‘बाबाजी की जय हो, कह कर हम मांबेटी ने 1 मिनट तक वहां भरतनाट्यम किया और फिर घर आ गईं.

‘‘घर आ कर मैं ने छप्पन भोग बनाए और बाबाजी का चमत्कार देखिए कि बेटी कैसे गपागप चट कर रही है. जय हो खाने वाले बाबाजी की,’’ कह कर सासूमां ने आंखें बंद कीं और हाथ जोड़ लिए.

‘‘तो 1 सप्ताह तक छप्पन भोग बनेंगे?’’

‘‘1 सप्ताह नहीं, मात्र 2 दिनों तक,’’ हमारी सासूमां ने कहा.

छप्पन भोग का सेवन करती हुई श्रीमतीजी को देख कर हमारी खुशी का ठिकाना न रहा. हमारा मन बारबार खाने वाले बाबा की जय करने को हो रहा था. वास्तव में देश में, परिवार में ऐसे चमत्कार बाबा और सिर्फ बाबा ही कर सकते हैं.

रात में सासूमां ने हमें नींद से जगाया और घबराए स्वर में कहने लगीं, ‘‘सरला बेटी अजीबोगरीब हरकतें कर रही है.’’

नागिन की तरह फर्श पर बलखाती श्रीमतीजी को देख कर हम दंग रह गए.

‘‘क्या हो गया प्रिय?’’ हम चीखे.

उन्होंने हमें फटीफटी आंखों से ऐसे देखा जैसे कोई इच्छाधारी नागिन हो. अचानक हमें ध्यान आया कि यही इच्छाधारी नागिन हमारी श्रीमतीजी के पेट में थी, जो खानेपीने नहीं दे रही थी. सासूमां अगरबत्ती जला लाई थीं. श्रीमतीजी अभी भी ऐंठ रही थीं.

हमें कुछ शक हुआ कि मामला कुछ उलटा है. हम ने अपने घर के फैमिली डाक्टर को फोन लगाया तो वे बेचारे तुरंत आ गए. श्रीमतीजी को अस्पताल में भरती कर जांच की गई. पता चला कि इतना खाने की आदत नहीं थी.

बाबाजी के आदेश के चलते जबरदस्ती खा लिया इसलिए बदहजमी हो गई. शुगर टैस्ट किया तो श्रीमतीजी डायबिटीज की मरीज भी निकलीं. मीठा खाने से शुगर लैवल अत्यधिक बढ़ गया था.

वह तो भला हो डाक्टर झटका का, जिन्होंने सही समय पर चिकित्सा कर दी. सब से बुरी स्थिति तो हमारी सासूमां की थी, जो एक ओर मुंह पर पल्ला किए खाने वाले बाबा को कोस रही थीं.

यदि उन की बेटी को कुछ हो जाता तो बाबा यही कहते कि प्रेत उसे ले गया. लेकिन हमारी श्रीमतीजी और एक मां की इतनी बड़ी, पलीपलाई बेटी खो जाती.

श्रीमतीजी पूरे 1 सप्ताह अस्पताल में रह कर लौटीं. अब हम ने कान पकड़ लिए हैं कि हमें कभी उन्हें ऐसे बाबाओं के चक्कर में हम उन्हें नहीं पड़ने देंगे.

कल टीवी पर देखा था कि ऐसे 1 दर्जन डायबिटीज के मरीजों ने थाने में खाने वाले बाबा के नाम शिकायतें दर्ज करवाई हैं. अब आएगा मजा जब बाबाजी थाने और जेल में अपनी ग्रहदशा को सुधारेंगे. सही कहा न हम ने?

Stories : शिकारी बना उपहास का शिकार

Stories : नीलू थक कर अभीअभी वापस आई थी. वह एक वित्तीय कंपनी में ट्रेनर का काम करती थी और आज एक सरकारी विभाग ने उसे डिजिटल फ्रौड के ऊपर सैशन लेने के लिए बुलाया था. उस की कंपनी में वैसे तो कई ट्रेनर थे पर डिजिटल फ्रौड के लिए उसे सब से अच्छा ट्रेनर माना जाता था. वैसे वह इस प्रकार के सैशन अपनी कंपनी में लेती रहती थी परंतु बात दूसरे विभाग की थी और वह भी सरकारी विभाग की. अत: जोरदार तरीके से तैयारी की थी. पावरपौइंट प्रेजैंटेशन भी बहुत ही शानदार बनाया था. उस की मेहनत रंग लाई. सभी मंत्रमुग्ध हो कर उस की बातों को सुन रहे थे. उस ने एकतरफा लैक्चर देने के स्थान पर सैशन को सहभागी बनाया था. वह प्रतिभागियों से प्रश्न पूछती थी और उन्हें प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करती थी. कई रोचक किस्से उस ने प्रतिभागियों से साझा किए और प्रतिभागियों को भी अपने अनुभव साझ करने के लिए प्रोत्साहित किया.

ऐसा लग रहा था कि नीलू प्रतिभागियों से चिरपरिचित है. परिणाम यह हुआ कि उस के सैशन को बहुत सराहना मिली और विभाग प्रमुख ने उसे हर महीने इस प्रकार का सैशन लेने के लिए आमंत्रित किया. निश्चित रूप से वह बहुत खुश थी सभी की इतनी सकारात्मक प्रतिक्रिया पा कर, पर उस स्थान की दूरी काफी थी और ट्रैफिक के कारण वह थकीथकी महसूस कर रही थी.

शाम के 5 बज गए थे. नीलू ने चाय बना कर पी और आंखें बंद कर आराम करने लगी. पास में ही उस का प्यारा टौमी भी बैठा हुआ था. वह उस की पीठ पर हाथ फेर रही थी. टौमी अपनी पूंछ हिला कर उस के स्पर्श पर प्रतिक्रिया कर रहा था.

तभी नीलू का मोबाइल बज उठा. उस ने देखा वीडियोकौल आ रही है. नंबर अनजान था. वह जानती थी कि आजकल वीडियोकौल कर कई तरह से लोगों को फंसाया जाता है. सैक्सटोर्शन और अन्य प्रकार का भयादोहन आम हो गया है आजकल और कोई वक्त होता तो शायद वह इस कौल को नहीं उठाती पर अभी उसे मनोरंजन की आवश्यकता थी. ‘चलो, मन कुछ फ्रैश कर लिया जाए,’ यह सोच कर उस ने कौल उठा ली.

उधर से कोई पुलिसवरदी में था. नीलू अभीअभी जिस विषय पर सैशन ले कर आई थी वह विषय प्रत्यक्ष सामने था. अगले सैशन में इस घटना को भी साझ करूंगी यह सोच कर उस ने कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘मैं एनआईए से एसीपी सतीश बोल रहा हूं. आप मिसेज नीलू बोल रही हैं?’’ उधर से वरदीधारी ने कहा.

‘‘जी सर, मैं नीलू ही बोल रही हूं पर मैं मिसेज नहीं मिस हूं. मेरी शादी नहीं हुई है और किसी हैंडसम पुलिस वाले से शादी करने का इरादा रखती हूं,’’ नीलू ने कहा.

‘‘देखिए मजाक मत कीजिए और मैं जो कह रहा हूं उसे ध्यान से सुनिए.

आप के आधार नंबर का प्रयोग कर के एक कनैक्शन लिया गया है और उस से आतंकवादी समूह से बात की गई है. मैं जानता हूं कि आप निर्दोष हैं परंतु यह मामला आतंकवाद से संबंधित है और इस के लिए आप को जेल हो सकती है,’’ एसीपी सतीश ने कहा.

‘‘सब से पहले मुझे निर्दोष मानने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद एसीपी साहब. जेल तो ठीक है पर मैं कैसी लग रही हूं यह तो बताइए?’’ कह कर नीलू ने टौमी की ओर कैमरा घुमा दिया.

‘‘शायद आप का दिमाग ठिकाने नहीं है. मैं यह सोच कर आप को फोन कर रहा था कि आप की सहायता करूं पर आप लगता है जेल जाने के लिए बेताब हैं,’’ एसीपी क्रोधित हो गया.

इस बीच नीलू वाशरूम मोबाइल लिए हुए अपने हाथ धोने चली गई थी. उस ने कहा, ‘‘ऐसा मत कहिए एसीपी साहब. जो झूठ बोलता है उस का वाशरूम गंदा रहता है. देखिए मेरा वाशरूम कितना साफ है,’’ कह नीलू ने मोबाइल के कैमरे को कोमोड की ओर कर दिया.

अब एसीपी गुस्से से लाल हो गया. बोला, ‘‘बकवास बंद करो, यदि तुम खुद को बचाना चाहती हो तो एक खाता नंबर दे रहा हूं उस में 3 लाख रुपए भेज दो वरना 1 घंटे के अंदर सरकारी मेहमान बन जाओगी और यहां कोमोड इतना साफ नहीं मिलेगा.’’

‘‘सर आप तो नाराज हो गए, खाता नंबर बताइए,’’ नीलू ने कहा. एसीपी ने खाते का पूरा विवरण दे दिया.

इस बीच नीलू ने व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के अपनी सहेली नेहा को भी बुला लिया. नेहा आई तो उसे इशारे में समझाया कि कुछ मजेदार चल रहा है. पहले तो नेहा स्क्रीन पर वरदीधारी को देख कर घबराई पर जब नीलू की उस से बातें सुनीं तो समझ गई कि मामला क्या है.

कुछ देर नीलू यों ही इधरउधर कुछ करती रहा. फिर बोली, ‘‘एसीपी साहब मैं ने तो 3 लाख की जगह 4 लाख रुपए भेजने की कोशिश की पर आप का खाता बड़ा ही ऐट्टीट्यूड वाला है पैसे ले ही नहीं रहा है. क्या मैं 5 लाख रुपए भेजने की कोशिश करूं?’’

‘‘मतलब साफ है तुम जेल की हवा खाना ही पसंद कर रही हो. चलो ठीक है, तुम्हारे घर पुलिस आती ही होगी. पर फोन को डिसकनैक्ट मत करना क्योंकि तुम डिजिटल अरैस्ट में हो,’’ एसीपी ने कहा.

‘‘एसीपी सर, क्या मैं अपनी सहेली को भी जेल साथ ला सकती हूं उस का नाम नेहा है. बड़ी ही सैक्सी है. देखोगे तो मस्त हो जाओगे. मना मत करना प्लीज. लो इस से भी बात कर लो,’’ कहते हुए नीलू ने नेहा को फोन दे दिया.

नेहा को नीलू की बात सुन कर हंसी आ गई, ‘‘हाय हैंडसम, कैसे हो? क्या मैं नीलू से कम खूबसूरत हूं कि तुम ने मुझे कौल नहीं की?’’ नेहा ने इतनी सैक्सी अदा से कहा कि नीलू की हंसी छूट गई.

दोनों की खिलखिलाहट की आवाज सुन कर अब एसीपी समझ चुका था कि वह गलत लोगों से उलझ गया है. उस ने कौल को डिसकनैक्ट कर दिया. हंसतेहंसते नीलू और नेहा दोनों का दम फूल रहा था. जब दोनों सामान्य हुईं तो फिर उस नंबर पर कौल बैक की. वह नंबर व्यस्त आ रहा था.

‘‘लगता है किसी और को फंसाने की कोशिश कर रहा है एसीपी सतीश. 1930 पर इस नंबर की जानकारी दें पहले, फिर बातें करते हैं,’’ नीलू ने कहा और 1930 नंबर डायल करने लगी.

Short Story : आप भी तो नहीं आए थे

Short Story :  सुबह 6 बजे का समय था. मैं अभी बिस्तर से उठा ही था कि फोन घनघना उठा. सीतापुर से बड़े भैया का फोन था जो वहां के मुख्य चिकित्सा अधिकारी थे.

वह बोले, ‘‘भाई श्रीकांत, तुम्हारी भाभी का आज सुबह 5 बजे इंतकाल हो गया,’’ और इतना बतातेबताते वह बिलख पड़े. मैं ने अपने बड़े भाई को ढाढ़स बंधाया और फोन रख दिया.

पत्नी शीला उठ कर किचन में चाय बना रही थी. उसे मैं ने भाभी के मरने का बताया तो वह बोली, ‘‘आप जाएंगे?’’

‘‘अवश्य.’’

‘‘पर बड़े भैया तो आप के किसी भी कार्य व आयोजन में कभी शामिल नहीं होते. कई बार लखनऊ आते हैं पर कभी भी यहां नहीं आते. इतने लंबे समय तक मांजी बीमार रहीं, कभी उन्हें देखने नहीं आए, उन की मृत्यु पर भी नहीं आए, न आप के विवाह में आए,’’ शीला के स्वर में विरोध की खनक थी.

‘‘पर मैं तो जाऊंगा, शीला, क्योंकि मां ऐसा ही चाहती थीं.’’

‘‘ठीक है, जाइए.’’

‘‘तुम नहीं चलोगी?’’

‘‘चलती हूं मैं भी.’’

हम तैयार हो कर 8 बजे की बस से चल पड़े और साढ़े 10 तक सीतापुर पहुंच गए. बाहर से आने वालों में हम ही सब से पहले पहुंचे थे, निकटस्थ थे, अतएव जल्दी पहुंच गए.

भैया की बेटी वसुधा भी वहीं थी, मां की बीमारी बिगड़ने की खबर सुन कर आ गई थी. वह शीला से चिपट कर रो उठी.

‘‘चाची, मां चली गईं.’’

शीला वसुधा को सांत्वना देने लगी, ‘‘रो मत बेटी, दीदी का वक्त पूरा हो गया था, चली गईं. कुदरत का यही विधान है, जो आया है उसे एक दिन जाना है,’’ वह अपनी चाची से लगी सुबकती रही.

इन का रोना सुन कर भैया भी बाहर निकल आए. उन के साथ उन के एक घनिष्ठ मित्र गोपाल बाबू भी थे और 2-3 दूसरे लोग भी. भैया मुझ से लिपट कर रोने लगे.

‘‘चली गई, बहुत इलाज कराया पर बचा न सका, कैंसर ने नहीं छोड़ा उसे.’’

मैं उन की पीठ सहलाता रहा.

थोड़ा सामान्य हुए तो बोले, ‘‘तन्मय (उन का बड़ा बेटा) को फोन कर दिया है. फोन उसी ने उठाया था पर मां की मृत्यु का समाचार सुन कर दुखी हुआ हो ऐसा नहीं लगा. कुछ भी तो न बोला, केवल ‘ओह’ कह कर चुप हो गया. एकदम निर्वाक्.

‘‘मैं ने ही फिर कहा, ‘तन्मय, तू सुन रहा है न बेटा.’

‘‘ ‘जी.’ फिर मौन.

‘‘कुछ देर उस के बोलने की प्रतीक्षा कर के मैं ने फोन रख दिया. पता नहीं आएगा या नहीं,’’ कह कर भैया शून्य में ताकने लगे.

बेटी वसुधा बोल उठी, ‘‘आएंगे… आएंगे…आखिर मां मरी है भैया की. मां…सगी मां, मां की मृत्यु पर भी नहीं आएंगे.’’

वह बोल तो गई पर स्वर की अनुगूंज उसे खोखली ही लगी, वह उदासी से भर गई.

इतने में चाय आ गई. सब चाय पीने लगे.

भैया के मित्र गोपाल बाबू बोल उठे, ‘‘कैंसर की एक से एक अच्छी दवाएं ईजाद हो गई हैं. तमाम डाक्टर दावा करते हैं कि अब कैंसर लाइलाज नहीं रहा…पर बचता तो शायद ही कोई मरीज है.’’

भैया बोल उठे, ‘‘आखिरी 15 दिनों में तो उस ने बहुत कष्ट भोगा. बहुत कठिनाई से प्राण निकले. वह तन्मय से बहुत प्यार करती थी उस की प्रतीक्षा में आंखें दरवाजे की ओर ही टिकाए रखती थी. ‘तन्मय को पता है न मेरी बीमारी के बारे में,’ बारबार यही पूछती रहती थी. मैं कहता था, ‘हां है, मैं जबतब फोन कर के उसे बतलाता रहता हूं.’ ‘तब भी वह मुझे देखने…मेरा दुख बांटने क्यों नहीं आता? बोलिए.’ मैं क्या कहता. पूरे 5 साल बीमार रही वह पर तन्मय एक बार भी देखने नहीं आया. देखने आना तो दूर कभी फोन पर भी मां का हाल न पूछा, मां से कोई बात ही न की, ऐसी निरासक्ति.’’

कहतेकहते भैया सिसक पड़े.

‘भैया, ठीक यही तो आप ने किया था अपनी मां के साथ. वह भी रोग शैया पर लेटी दरवाजे पर टकटकी लगाए आप के आने की राह देखा करती थीं, पर आप न आए. न फोन से ही कभी उन का हाल पूछा. वह भी आप को, अपने बड़े बेटे को बहुत प्यार करती थीं. आप को देखने की चाह मन में लिए ही मां चली गईं, बेचारी, आप भी तो निरासक्त बन गए थे,’ मैं मन ही मन बुदबुदा उठा.

भैया का दूसरा बेटा कनाडा में साइंटिस्ट है. उस का नाम चिन्मय है.

मैं ने पूछा, ‘‘चिन्मय को सूचना दे दी?’’

‘‘हां… उसे भी फोन कर दिया है,’’ भैया बोले, ‘‘जानते हो क्या बोला?

‘‘ ‘ओह, वैरी सैड…मौम चली गईं, खैर, बीमार तो थीं ही, उम्र भी हो चली थी. एक दिन जाना तो था ही, कुछ बाद में चली जातीं तो आप को थोड़ा और साथ मिल जाता उन का. पर अभी चली गईं. डैड, एक दिन जाना तो सब को ही है. धैर्य रखिए, हिम्मत रखिए. आप तो पढ़ेलिखे हैं, बहुत बड़े डाक्टर हैं. मृत्यु से जबतब दोचार होते ही रहते हैं. टेक इट ईजी.’

‘‘मैं सिसक पड़ा तो बोला, ‘ओह नो, रोइए मत, डैड.’

‘‘मेरे मुंह से निकल पड़ा, ‘जल्दी आ जाओ बेटा.’

‘‘ ‘ओह नो, डैड. मेरे लिए यह संभव नहीं है. मैं आ तो नहीं सकूंगा, जाने वाली तो चली गईं. मेरे आने से जीवित तो हो नहीं जाएंगी.’

‘‘ ‘कम से कम आ कर अंतिम बार मां का चेहरा तो देख लो.’

‘‘ ‘यह एक मूर्खता भरी भावुकता है. मैं मन की आंखों से उन की डेड बाडी देख रहा हूं. आनेजाने में मेरा बहुत पैसा व्यर्थ में खर्च हो जाएगा. अंतिम संस्कार के लिए आप लोग तो हैं ही, कहें तो कुछ रुपए भेज दूं. हालांकि उस की कोई कमी तो आप को होगी नहीं, यू आर अरनिंग ए वैरी हैंडसम अमाउंट.’

‘‘यह कह कर वह धीरे से हंसा.

‘‘मैं ने फोन रख दिया.’’

भैया फिर रोने लगे. बोले, ‘‘चिन्मय जब छोटा था हर समय मां से चिपका रहता था. पहली बार जब स्कूल जाने को हुआ तो खूब रोया. बोला, ‘मैं मां को छोड़ कर स्कूल नहीं जाऊंगा, मां तुम भी चलो?’ कितना पुचकार कर, दुलार कर स्कूल भेजा था उसे. जब बड़ा हुआ, पढ़ने के लिए विदेश जाने लगा तो भी यह कह कर रोया था कि मां, मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा. अब बाहर गया है तो बाहर का ही हो कर रह गया. मां के साथ सदा चिपके  रहने वाले ने एकदम ही मां का साथ छोड़ दिया. मां को एकदम से मन से बाहर कर दिया. मां गुजर गई तो अंतिम संस्कार में भी आने को तैयार नहीं. वाह रे, लड़के.’’

‘ऐसे ही लड़के तो आप भी हैं,’ मैं फिर बुदबुदा उठा.

धीरेधीरे समय सरकता गया. इंतजार हो रहा था कि शायद तन्मय आ जाए. वह आ जाए तो शवयात्रा शुरू की जाए, पर वह न आया.

जब 1 बज गया तो गोपाल बाबू बोल उठे, ‘‘भाई सुकांत, अब बेटे की व्यर्थ प्रतीक्षा छोड़ो और घाट चलने की तैयारी करो. उस को आना होता तो अब तक आ चुका होता. जब श्रीकांत 10 बजे तक आ गए तो वह भी 10-11 तक आ सकता था. लखनऊ यहां से है ही कितनी दूर. फिर उस के पास तो कार है. उस से तो और भी जल्दी आया जा सकता है.’’

प्रतीक्षा छोड़ कर शवयात्रा की तैयारी शुरू कर दी गई और 2 बजे के लगभग शवयात्रा शुरू हो गई. शवदाह से जुड़ी क्रियाएं निबटा कर लौटतेलौटते शाम के 6 बज गए.

तब तक कुछ अन्य रिश्तेदार भी आ चुके थे. सब यही कह रहे थे कि तन्मय क्यों नहीं आया? चिन्मय तो खैर विदेश में है, उस का न आना क्षम्य है, लेकिन तन्मय तो लखनऊ में ही है, उस को तो आना ही चाहिए था, उस की मां मरी है. उस की जन्मदात्री, कितनी गलत बात है.

किसी तरह रात कटी, भोर होते ही सब उठ बैठे.

भैया मेरे पास आ कर बैठे तो बहुत दुखी, उदास, टूटेटूटे और निराश लग रहे थे. वह बोले, ‘‘एकदो दिन में सब चले जाएंगे. फिर मैं रह जाऊंगा और मकान में फैला मरघट सा सन्नाटा. प्रेम से बसाया नीड़ उजड़ गया. सब फुर्र हो गए. अब कैसे कटेगी मेरी तनहा जिंदगी…’’ और इतना कहतेकहते वह फफक पड़े.

थोड़ी देर बाद मुझ से फिर बोले, ‘‘क्यों श्रीकांत? कभी तुम्हारी भेंट तन्मय से होती है?’’

‘‘कभीकभार सड़कबाजार में मिल जाता है या घूमने के दर्शनीय स्थलों पर टकरा जाता है अचानक. बस.’’

‘‘कभी तुम्हारे पास आताजाता नहीं?’’

‘‘नहीं.’’

भैया, फिर रोने लगे.

मैं लौन में जा कर टहलने लगा, कुछ देर बाद भैया मेरे पास आए और बोले, ‘‘अब कभी तन्मय तुम्हें मिले तो पूछना कि मां की मृत्यु पर क्यों नहीं आया. मां को एकदम ही क्यों भुला दिया?’’

तन्मय के इस बेगाने व रूखे व्यवहार की पीड़ा उन्हें बहुत कसक दे रही थी.

उन की इस करुण व्यथा के प्रति, उस बेकली के प्रति, मेरे मन में दया नहीं उपजी… क्रोध फुफकारने लगा, मन में क्षोभ उभरने लगा. मन में गूंजने लगा कि अपनी मां की मृत्यु पर तुम भी तो नहीं आए थे, तुम्हारे मन में भी तो मां के प्रति कोई ममता, कोई पे्रम भावना नहीं रह गई थी. यदि तुम्हारा बेटा अपनी मां की मृत्यु पर नहीं आया तो इतनी विकलता क्यों? क्या तुम्हारी मां तुम्हारे लिए मां नहीं थी, तन्मय की मां ही मां है. तन्मय की मां के पास तो धन का विपुल भंडार था, उसे तन्मय को पालतेपोसते वक्त धनार्जन हेतु खटना नहीं पड़ा था, पर तुम्हारी मां तो एक गरीब, कमजोर, बेबस विधवा थी. लोगों के कपड़े सींसीं कर, घरघर काम कर के उस ने तुम्हें पालापोसा, पढ़ाया, लिखाया था. जब तन्मय की मां अपने राजाप्रासाद में सुखातिरेक से खिल- खिलाती विचरण करती थी तब तुहारी मां दुख, निसहायता, अभाव से परेशान हो कर गलीगली पीड़ा के अतिरेक से बिलबिलाती घूमती थी. उसी विवश पर ममतामयी मां को भी तुम ने भुला दिया… भुलाया था या नहीं.

तेरहवीं बाद सब विदा होने लगे.

विदा होने के समय भैया मुझ से लिपट कर रोने लगे. बोले, ‘‘पूछोगे न भैया तन्मय से?’’

मेरे मुंह से निकल पड़ा, ‘‘यह पूछना निरर्थक है.’’

‘‘क्यों? निरर्थक क्यों है?’’

‘‘क्योंकि आप जानते हैं कि वह क्यों नहीं आया?’’

‘‘मैं जानता हूं कि वह क्यों नहीं आया,’’ यंत्रचलित से वह दोहरा उठे.

‘‘हां, आप जानते हैं…’’ मैं किंचित कठोर हो उठा, ‘‘जरा अपने दिल को टटोलिए. जरा अपने अतीत में झांक कर देखिए…आप को जवाब मिल जाएगा. याद कीजिए, जब आप अपनी मां के बेटे थे, अपनी मां के लाडले थे तो आप को अपनी बीमार मां का, आप के वियोग की व्यथा से जरूर दुखी मां का, आंसुओं से भीगा निस्तेज चेहरा दिखलाई देगा यही शिकायत करता हुआ जो आप को अपने बेटे तन्मय से है.

‘‘वह पूछ रही होगी, ‘बेटा, तू मुझे बीमारी में भी देखने कभी नहीं आया. तू ने बाहर जा कर धीरेधीरे मेरे पास आना ही छोड़ दिया, वह मैं ने सह लिया…मैं ने सोच लिया तू अपने परिवार के साथ खुश है. मेरे पास नहीं आता, मुझे याद नहीं करता, न सही. पर मैं लंबे समय तक रोग शैया पर लेटी बीमारी की यंत्रणा झेलती रही, तब भी तुझे मेरे पास आने की, बीमारी में मुझे सांत्वना देने की इच्छा नहीं हुई. तू इतना निर्दयी, इतना भावनाशून्य, क्योंकर हो गया बेटा, तू अपनी जन्मदात्री को, अपनी पालनपोषणकर्ता मां को ही भुला बैठा, तू मेरी मृत्यु पर मुझे कंधा देने भी नहीं आया, मैं ने ऐसा क्या कर दिया तेरे साथ जो तू ने मुझे एकदम ही त्याग दिया.

‘‘ ‘ऐसा क्यों किया बेटा तू ने? क्या मैं ने तुझे प्यार नहीं किया? अपना स्नेह तुझे नहीं दिया. मैं तुझे हर समय हर क्षण याद करती रही, मां को ऐसे छोड़ देता है कोई. बतला मेरे बेटे, मेरे लाल. मेरे किस कसूर की ऐसी निर्मम सजा तू ने मुझे दी. तुझे एक बार देखने की, एक बार कलेजे से लगाने की इच्छा लिए मैं चली गई. मुझे तेरा धन नहीं तेरा मन चाहिए था बेटा, तेरा प्यार चाहिए था.’ ’’

कह कर मैं थोड़ा रुका, मेरा गला भर आया था.

मैं आगे फिर कहने लगा, ‘‘आप अपने परिवार, अपनी पत्नी और संतान में इतने रम गए कि आप की मां, आप की जन्मदात्री, आप के अपने भाईबहन, सब आप की स्मृति से निकल गए, सब विस्मृति की वीरान वादियों में गुम हो गए. सब को नेपथ्य में भेज दिया आप ने. उन्हीं विस्मृति की वीरान वादियों में…उसी नेपथ्य में आप के बेटे तन्मय ने आप सब को भेज दिया, जो आप ने किया वही उस ने किया. सिर्फ इतिहास की पुनरावृत्ति ही तो हुई है, फिर शिकवाशिकायत क्यों? रोनाबिसूरना क्यों? वह भी अपने प्रेममय एकल परिवार में लिप्त है और आप लोगों से निर्लिप्त है, आप लोगों को याद नहीं करता. बस, आप को अपने बच्चोंं की मां दिखलाई दी पर अपनी मां कभी नजर नहीं आईं, उस को भी अपनी मां नजर नहीं आ रहीं.’’

कह कर मैं फिर थोड़ा रुका, ठीक से बोल नहीं पा रहा था. गला अवरुद्ध सा हुआ जा रहा था. कुछ क्षण के विराम के बाद फिर बोला, ‘‘लगता यह है कि जब धन का अंबार लगने लगता है, जीवन में सुखसुकून का, तृप्ति का, आनंद का, पारावार ठाठें मारने लगता है, तो व्यक्ति केवल निज से ही संपृक्त हो कर रह जाता है. बाकी सब से असंपृक्त हो जाता है. उस के मनमस्तिष्क से अपने मातापिता, भाईबहन वाला परिवार बिसरने लगता है, भूलने लगता है और अपनी संतान वाला परिवार ही मन की गलियों, कोनों में पसरने लगता है. सुखतृप्ति का यह संसार शायद ऐसा सम्मोहन डाल देता है कि व्यक्ति को अपना निजी परिवार ही यथार्थ लगने लगता है और अपने मातापिता वाला परिवार कल्पना लगने लगता है और यथार्थ तो यथार्थ होता है और कल्पना मात्र कल्पना.

‘‘आप को अपनी पत्नी की अपने पुत्र को देखने की ललक दिखलाई पड़ी. अपनी मां की अपने पुत्र को देखने की तड़प दिखलाई नहीं पड़ी. अपनी बीमार पत्नी की बेटे के प्रति चाह भरी आहेंकराहें सुनाई पड़ीं पर अपनी बीमार मां की, आप को देखने की दुख भरी रुलाई नहीं सुनाई पड़ी.

‘‘क्यों सुनाई पड़ती? क्योंकि आप भूल गए थे कि कोई आप की भी मां है, जैसे आप की पत्नी ने रुग्ण अवस्था में दुख भोगा था आप की मां ने भी भोगा था. जैसे आप की पत्नी ने अपने पुत्र के आगमन की रोरो कर प्रतीक्षा की थी वैसे ही दुख भरी प्रतीक्षा आप की मां ने आप की भी की थी. पर आप न आए. न आप पलपल मृत्यु की ओर अग्रसर होती मां को देखने आए और न ही उस के अंतिम संस्कार में शामिल हुए.

‘‘वही अब आप के पुत्र ने भी किया. यह निरासक्ति की, बेगानेपन की फसल, आप ने ही तो बोई थी. तो आप ही काटिए.’’

भैया कुछ न बोले…बस,

Hindi Story : अपारदर्शी सच – तनुजा और मनीष के बीच क्यों था वैवाहिक खालीपन

Hindi Story :  रात के 11 बज चुके थे. तनुजा की आंखें नींद और इंतजार से बोझिल हो रही थीं. बच्चे सो चुके थे. मम्मीजी और मनीष लिविंगरूम में बैठे टीवी देख रहे थे. तनुजा का मन हो रहा था कि मनीष को आवाज दे कर बुला ले, लेकिन मम्मी की उपस्थिति के लिहाज के चलते उसे ठीक नहीं लगा. पानी पीने के लिए किचन में जाते हुए उस ने मनीष को देखा पर उन का ध्यान नहीं गया. पानी पी कर भी अतृप्त सी वह वापस कमरे में आ गई.

बिस्तर पर बैठ कर उस ने एक नजर कमरे पर डाली. उस ने और मनीष ने एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल रख कर इस कमरे को सजाया था.

हलके नीले रंग की दीवारों में से एक पर खूबसूरत पहाड़ी, नदी से गिरते झरने और पेड़ों की पृष्ठभूमि से सजी पूरी दीवार के आकार का वालपेपर. खिड़कियों पर दीवारों से तालमेल बिठाते नैट के परदे, फर्श से छत तक की अलमारियां, तरहतरह के सौंदर्य प्रसाधनों से भरी अंडाकार कांच की ड्रैसिंगटेबल, बिस्तर पर साटन की रौयल ब्लू चादर और टेबल पर सजा महकते रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता. उसे लगा, सभी मनीष का इंतजार कर रहे हैं.

तनुजा की आंख खुली, तब दिन चढ़ आया था. उस का इंतजार अभी भी बदन में कसमसा रहा था. मनीष दोनों हाथ बांधे बगल में खर्राटे ले कर सो रहे थे. उस का मन हुआ, उन दोनों बांहों को खुद ही खोल कर उन में समा जाए और कसमसाते इंतजार को मंजिल तक पहुंचा दे. लेकिन घड़ी ने इस की इजाजत नहीं दी. फुरफुराते एहसासों को जूड़े में लपेटते वह बाथरूम चली गई.

बेटे ऋषि व बेटी अनु की तैयारी करते, सब का नाश्ताटिफिन तैयार करते, भागतेदौड़ते खुद की औफिस की तैयारी करते हुए भी रहरह कर एहसास कसमसाते रहे. उस ने आंखें बंद कर जज्बातों को जज्ब करने की कोशिश की, तभी सासुमां किचन में आ गईं. वह सकपका गई. उस ने झटके से आंखें खोल लीं और खुद को व्यस्त दिखाने के लिए पास पड़ा चाकू उठा लिया पर सब्जी तो कट चुकी थी, फिर उस ने करछुल उठा लिया और उसे खाली कड़ाही में चलाने लगी. सासुमां ने चश्मे की ओट से उसे ध्यान से देखा.

कड़ाही उस के हाथ से छूट गई और फर्श पर चक्कर काटती खाली कड़ाही जैसे उस के जलते एहसास उस के जेहन में घूमने लगे और वह चाह कर भी उन्हें थाम नहीं पाई.

एक कोमल स्पर्श उस के कंधों पर हुआ. 2 अनुभवी आंखों में उस के लिए संवेदना थी. वह शर्मिंदा हुई उन आंखों से, खुद को नियंत्रित न कर पाने से, अपने यों बिखर जाने से. उस ने होंठ दबा कर अपनी रुलाई रोकी और तेजी से अपने कमरे में चली गई.

बहुत कोशिश करने के बावजूद उस की रुलाई नहीं रुकी, बाथरूम में शायद जी भर रो सके. जातेजाते उस की नजर घड़ी पर पड़ी. समय उस के हाथ में न था रोने का. तैयार होतेहोते तनुजा ने सोते हुए मनीष को देखा. उस की बेचैनी से बेखबर मनीष गहरी नींद में थे.

तैयार हो कर उस ने खुद को शीशे में निहारा और खुद पर ही मुग्ध हो गई. कौन कह सकता है कि वह कालेज में पढ़ने वाले बच्चों की मां है? कसी हुई देह, गोल चेहरे पर छोटी मगर तीखी नाक, लंबी पतली गरदन, सुडौल कमर के गिर्द लिपटी साड़ी से झांकते बल. इक्कादुक्का झांकते सफेद बालों को फैशनेबल अंदाज में हाईलाइट करवा कर करीने से छिपा लिया है उस ने. सब से बढ़ कर है जीवन के इस पड़ाव का आनंद लेती, जीवन के हिलोरों को महसूस करते मन की अंगड़ाइयों को जाहिर करती उस की खूबसूरत आंखें. अब बच्चे बड़े हो कर अपने जीवन की दिशा तय कर चुके हैं और मनीष अपने कैरियर की बुलंदियों पर हैं. वह खुद भी एक मुकाम हासिल कर चुकी है. भविष्य के प्रति एक आश्वस्ति है जो उस के चेहरे, आंखों, चालढाल से छलकती है.

मनीष उठ चुके थे. रात के अधूरे इंतजार के आक्रोश को परे धकेल एक मीठी सी मुसकान के साथ उस ने गुडमौर्निंग कहा. मनीष ने एक मोहक नजर उस पर डाली और उठ कर उसे बांहों में भर लिया. रीढ़ में फुरफुरी सी दौड़ गई. कसमसाती इच्छाएं मजबूत बांहों का सहारा पा कर कुलबुलाने लगीं. मनीष की आंखों में झांकते हुए तपते होंठों को उस के होंठों के पास ले जाते शरारत से उस ने पूछा, ‘‘इरादा क्या है?’’ मनीष जैसे चौंक गए, पकड़ ढीली हुई, उस के माथे पर चुंबन अंकित करते, घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘इरादा तो नेक ही है, तुम्हारे औफिस का टाइम हो गया है, तुम निकल जाना.’’ और वे बाथरूम की तरफ बढ़ गए.

जलते होंठों की तपन को ठंडा करने के लिए आंसू छलक पड़े तनुजा के. कुछ देर वह ऐसे ही खड़ी रही उपेक्षित, अवांछित. फिर मन की खिन्नता को परे धकेल, चेहरे पर पाउडर की एक और परत चढ़ा, लिपस्टिक की रगड़ से होंठों को धिक्कार कर वह कमरे से बाहर निकल गई.

करीब सालभर पहले तक सब सामान्य था. मनीष और तनुजा जिंदगी के उस मुकाम पर थे जहां हर तरह से इतमीनान था. अपनी जिंदगी में एकदूसरे की अहमियत समझतेमहसूस करते एकदूसरे के प्यार में खोए रहते.

इस निश्चितता में प्यार का उछाह भी अपने चरम पर था. लगता, जैसे दूसरा हनीमून मना रहे हों जिस में अब उत्सुकता की जगह एकदूसरे को संपूर्ण जान लेने की तसल्ली थी. मनीष अपने दम भर उसे प्यार करते और वह पूरी शिद्दत से उन का साथ देती. फिर अचानक यों ही मनीष जल्दी थकने लगे तो उसी ने पूरा चैकअप करवाने पर जोर दिया.

सबकुछ सामान्य था पर कुछ तो असामान्य था जो पकड़ में नहीं आया था. वह उन का और ध्यान रखने लगी. खाना, फल, दूध, मेवे के साथ ही उन की मेहनत तक का. उस की इच्छाएं उफान पर थीं पर मनीष के मूड के अनुसार वह अपने पर काबू रखती. उस की इच्छा देखते मनीष भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते लेकिन वह अतृप्त ही रह जाती.

हालांकि उस ने कभी शब्दों में शिकायत दर्ज नहीं की, लेकिन उस की झुंझलाहट, मुंह फेर कर सो जाना, तकिए में मुंह दबा कर ली गई सिसकियां मनीष को आहत और शर्मिंदा करती गईं. धीरेधीरे वे उन अंतरंग पलों को टालने लगे. तनुजा कमरे में आती तो मनीष कभी तबीयत खराब होने का बहाना बनाते, कभी बिजी होने की बात कर लैपटौप ले कर बैठ जाते.

कुछकुछ समझते हुए भी उसे शक हुआ कि कहीं मनीष का किसी और से कोई चक्कर तो नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता है जो व्यक्ति शाम होते ही उस के आसपास मंडराने लगता था वह अचानक उस से दूर कैसे होने लगा? लेकिन उस ने

यह भी महसूस किया कि मनीष अब भी उस से प्यार करते हैं. उस की छोटीछोटी खुशियां जैसे सप्ताहांत में सिनेमा, शौपिंग, आउटिंग सबकुछ वैसा ही तो था. किसी और से चक्कर होता तो उसे और बच्चों को इतना समय वे कैसे देते? औफिस से सीधे घर आते हैं, कहीं टूर पर जाते नहीं.

शक का कीड़ा जब कुलबुलाता है तब मन जितना उस के न होने की दलीलें देता है उतना उस के होने की तलाश करता. कभी नजर बचा कर डायरी में लिखे नंबर, तो कभी मोबाइल के मैसेज भी तनुजा ने खंगाल डाले पर शक करने जैसा कुछ नहीं मिला.

उस ने कईकई बार खुद को आईने में निहारा, अंगों की कसावट को जांचा, बातोंबातों में अपनी सहेलियों से खुद के बारे में पड़ताल की और पार्टियों, सोशल गैदरिंग में दूसरे पुरुषों की नजर से भी खुद को परखा. कहीं कोई बदलाव, कोई कमी नजर नहीं आई. आज भी जब पूरी तरह से तैयार होती है तो देखने वालों की नजर एक बार उस की ओर उठती जरूरी है.

हर ऐसे मौकों पर कसौटी पर खरा उतरने का दर्प उसे कुछ और उत्तेजित कर गया. उस की आकांक्षाएं कसमसाने लगीं. वह मनीष से अंतरंगता को बेचैन होने लगी और मनीष उन पलों को टालने के लिए कभी काम में, कभी बच्चों और टीवी में व्यस्त होने लगे.

अधूरेपन की बेचैनी दिनोंदिन घनी होती जा रही थी. उस दिन एक कलीग को अपनी ओर देखता पा कर तनुजा के अंदर कुछ कुलबुलाने लगा, फुरफुरी सी उठने लगी. एक विचार उस के दिलोदिमाग में दौड़ कर उसे कंपकंपा गया. छी, यह क्या सोचने लगी हूं मैं? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती. मेरे मन में यह विचार आया भी कैसे? मनीष और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, प्यार का मतलब सिर्फ यही तो नहीं है. कितना धिक्कारा था तनुजा ने खुद को लेकिन वह विचार बारबार कौंध जाता, काम करते हाथ ठिठक जाते, मन में उठती हिलोरें पूरे शरीर को उत्तेजित करती रहीं.

अतृप्त इच्छाएं, हर निगाह में खुद के प्रति आकर्षण और उस आकर्षण को किस अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है, वह यह सोचने लगी. संस्कारों के अंकुश और नैसर्गिक प्यास की कशमकश में उलझी वह खोईखोई सी रहने लगी.

उस दिन दोपहर तक बादल घिर आए थे. खाना खा कर वह गुदगुदे कंबल में मनीष के साथ एकदूसरे की बांहों में लिपटे हुए कोई रोमांटिक फिल्म देखना चाहती थी. उस ने मनीष को इशारा भी किया जिसे अनदेखा कर मनीष ने बच्चों के साथ बाहर जाने का प्रोग्राम बना लिया. वे नासमझ बन तनुजा से नजरें चुराते रहे, उस के घुटते दिल को नजरअंदाज करते रहे. वह चिढ़ गई. उस ने जाने से मना कर दिया, खुद को कमरे में बंद कर लिया और सारा दिन अकेले कमरे में रोती रही.

तनुजा ने पत्रपत्रिकाएं, इंटरनैट सब खंगाल डाले. पुरुषों से जुड़ी सैक्स समस्याओं की तमाम जानकारियां पढ़ डालीं. परेशानी कहां है, यह तो समझ आ गया लेकिन समाधान? समाधान निकालने के लिए मनीष से बात करना जरूरी था. बिना उन के सहयोग के कोई समाधान संभव ही नहीं था. बात करना इतना आसान तो नहीं था.

शब्दों को तोलमोल कर बात करना, एक कड़वे सच को प्रकट करना इस तरह कि वह कड़वा न लगे, एक ऐसी सचाई के बारे में बात करना जिसे मनीष पहले से जानते हैं कि तनुजा इसे नहीं जानती और अब उन्हें बताना कि वह भी इसे जानती है, यह सब बताते हुए भी कोई आक्षेप, कोई इलजाम न लगे, दिल तोड़ने वाली बात पर दिल न टूटे, अतिरिक्त प्यारदेखभाल के रैपर में लिपटी शर्मिंदगी को यों सामने रखना कि वह शर्मिंदा न करे, बेहद कठिन काम था.

दिन निकलते गए. कसमसाहटें बढ़ती गईं. अतृप्त प्यास बुझाने के लिए वह रोज नए मौकेरास्ते तलाशती रही. समाज, परिवार और बच्चे उस पर अंकुश लगाते रहे. तनुजा खुद ही सोचती कि क्या इस एक कमी को इस कदर खुद पर हावी होने देना चाहिए? तो कभी खुद ही इस जरूरी जरूरत के बारे में सोचती जिस के पूरा न होने पर बेचैन होना गलत भी तो नहीं. अगर मनीष अतृप्त रहते तो क्या ऐसा संयम रख पाते? नहीं, मनीष उसे कभी धोखा नहीं देते या शायद उसे कभी पता ही नहीं चलने देते.

निशा उस की अच्छी सहेली थी. उस से तनुजा की कशमकश छिपी न रह सकी. तनुजा को दिल का बोझ हलका करने को एक साथी तो मिला जिस से सहानुभूति के रूप में फौरीतौर पर राहत मिल जाती थी. निशा उसे समझाती तो थी पर क्या वह समझना चाहती है, वह खुद भी नहीं समझ पाती थी. उस ने कई बार इशारे में उसे विकल्प तलाशने को कहा तो कई बार इस के खतरे से आगाह भी किया. कई बार तनुजा की जरूरत की अहमितयत बताई तो कई बार समाज, संस्कार के महत्त्व को भी समझाया. तनुजा की बेचैनी ने उस के मन में भी हलचल मचाई और उस ने खुद ही खोजबीन कर के कुछ रास्ते सुझाए.

धड़कते दिल और डगमगाते कदमों से तनुजा ने उस होटल की लौबी में प्रवेश किया था. साड़ी के पल्लू को कस कर लपेटे वह खुद को छिपाना चाह रही थी पर कितनी कामयाब थी, नहीं जानती. रिसैप्शन पर बड़ी मुश्किल से रूम नंबर बता पाई थी. कितनी मुश्किल से अपने दिल को समझा कर वह खुद को यहां तक ले कर आई थी. खुद को लाख मनाने और समझाने पर भी एक व्यक्ति के रूप में खुद को देख पाना एक स्त्री के लिए कितना कठिन होता है, यह जान रही थी.

अपनी इच्छाओं को एक दायरे से बाहर जा कर पूरा करना कितना मुश्किल होता है, लिफ्ट से कमरे तक जाते यही विचार उस के दिमाग को मथ रहे थे. कमरे की घंटी बजा कर दरवाजा खुलने तक 30 सैकंड में 30 बार उस ने भाग जाना चाहा. दिल बुरी तरह धड़क रहा था. दरवाजा खुला, उस ने एक बार आसपास देखा और कमरे के अंदर हो गई. एक अनजबी आवाज में अपना नाम सुनना भी बड़ा अजीब था. फुरफुराते एहसास उस की रीढ़ को झुनझुना रहे थे. बावजूद इस के, सामने देख पाना मुश्किल था. वह कमरे में रखे एक सोफे पर बैठ गई, उसे अपने दिमाग में मनीष का चेहरा दिखाई देने लगा.

क्या वह ठीक कर रही? इस में गलत क्या है? आखिर मैं भी एक इंसान हूं. अपनी इच्छाएं, अपनी जरूरतें पूरी करने का हक है मुझे. मनीष को पता चला तो?

कैसे पता चलेगा, शहर के इस दूसरे कोने में घरऔफिस से दसियों किलोमीटर दूर कुछ हुआ है, इस की भनक तक इतनी दूर नहीं लगेगी. इस के बाद क्या वह खुद से नजरें मिला पाएगी? यह सब सोच कर उस की रीढ़ की वह सनसनाहट ठंडी पड़ गई, उठ कर भाग जाने का मन हुआ. वह इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती. मनीष, मम्मी, बच्चे, जानपहचान वाले, रिश्तेदार सब की नजरों में वह नहीं गिर सकती.

वेटर 2 कौफी रख गया. कौफी की भाप के उस पार 2 आंखें उसे देख रही थीं. उन आंखों की कामुकता में उस के एहसास फिर फुरफुराने लगे. उस ने अपने चेहरे से हो कर गरदन, वक्ष पर घूमती उन निगाहों को महसूस किया. उस के हाथ पर एक स्पर्श उस के सर्वांग को थरथरा गया. उस ने आंखें बंद कर लीं. वह स्पर्श ऊपर और ऊपर चढ़ते बाहों से हो कर गरदन के खुले भाग पर मचलने लगा. उस की अतृप्त कामनाएं सिर उठाने लगीं. अब वह सिर्फ एक स्त्री थी हर दायरे से परे, खुद की कैद से दूर, अपनी जरूरतों को समझने वाली, उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखने वाली.

सहीगलत की परिभाषाओं से परे अपनी आदिम इच्छाओं को पूरा करने को तत्पर वह दुनिया के अंतिम कोने तक जा सकने को तैयार, उस में डूब जाने को बेचैन. तभी वह स्पर्श हट गया, अतृप्त खालीपन के झटके से उस ने आंखें खोल दीं. आवाज आई, ‘कौफी पीजिए.’

कामुकता से मुसकराती 2 आंखें देख उसे एक तीव्र वितृष्णा हुई खुद से, खुद के कमजोर होने से और उन 2 आंखों से. होटल के उस कमरे में अकेले उस अपरिचित के साथ यह क्या करने जा रही थी वह? वह झटके से उठी और कमरे से बाहर निकल गई. लगभग दौड़ते हुए वह होटल से बाहर आई और सामने से आती टैक्सी को हाथ दे कर उस में बैठ गई. तनुजा बुरी तरह हांफ रही थी. वह उस रास्ते पर चलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

दोनों ओर स्थितियां चरम पर थीं. दोनों ही अंदर से टूटने लगे थे. ऐसे ही जिए जाने की कल्पना भयावह थी. उस रात तनुजा की सिसकियां सुन मनीष ने उसे सीने से लगा लिया. उस का गला रुंध गया, आंसू बह निकले. ‘‘मैं तुम्हारा दोषी हूं तनु, मेरे कारण…’’

तनु ने उस के होंठों पर अपनी हथेली रख दी, ‘‘ऐसा मत कहो, लेकिन मैं करूं क्या? बहुत कोशिश करती हूं लेकिन बरदाश्त नहीं कर पाती.’’

‘‘मैं तुम्हारी बेचैनी समझता हूं, तनु,’’ मनीष ने करवट ले कर तनुजा का चेहरा अपने हाथों में ले लिया, ‘‘तुम चाहो तो किसी और के साथ…’’ बाकी के शब्द एक बड़ी हिचकी में घुल गए.

वह बात जो अब तक विचारों में तनुजा को उकसाती थी और जिसे हकीकत में करने की हिम्मत वह जुटा नहीं पाई थी, वह मनीष के मुंह से निकल कर वितृष्णा पैदा कर गई.

तनुजा का मन घिना गया. उस ने खुद ऐसा कैसे सोचा, इस बात से ही नफरत हुई. मनीष उस से इतना प्यार करते हैं, उस की खुशी के लिए इतनी बड़ी बात सोच सकते हैं, कह सकते हैं लेकिन क्या वह ऐसा कर पाएगी? क्या ऐसा करना ठीक होगा? नहीं, कतई नहीं. उस ने दृढ़ता से खुद से कहा.

जो सच अब तक संकोच और शर्मिंदगी का आवरण ओढ़े अपारदर्शी बन कर उन के बीच खड़ा था, आज वह आवरण फेंक उन के बीच था और दोनों उस के आरपार एकदूसरे की आंखों में देख रहे थे. अब समाधान उन के सामने था. वे उस के बारे में बात कर सकते थे. उन्होंने देर तक एकदूसरे से बातें कीं और अरसे बाद एकदूसरे की बांहों में सो गए एक नई सुबह मेें उठने के लिए.

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