romantic story in hindi
romantic story in hindi
नीलम ने किसी तरह एमए किया और घर चली गई. उस के पिता ने उस की शादी एक बिजनैसमैन से कर दी. उस के निमंत्रण पर प्रीति उस की शादी में गई. उस ने समीर को भी निमंत्रण दिया था लेकिन किसी कारणवश समीर नहीं पहुंच पाया. नीलम ने प्रीति से वादा किया था कि भले ही वह उस से दूर है लेकिन जब कभी वह याद करेगी वह जरूर उस से मिलेगी. बिछुड़ते वक्त दोनों सहेलियां खूब रोईं.
इधर समीर और प्रीति के बीच दूरी बढ़ी तो लगाव भी कम होने लगा. उन के बीच कुछ महीनों तक तो फोन पर संपर्क होता रहा, फिर धीरेधीरे वह समाप्त हो गया. यही दुनियादारी है. कभी समीर जब तक उस से एक बार नहीं मिल लेता उसे चैन न मिलता, अब उसे उस की याद ही नहीं रही. प्रीति ने भी उस से बात करनी बंद कर दी.
जीवन किसी का भी हर वक्त एकजैसा कहां रहता है. यह कोई जानता भी तो नहीं कि कब किस के साथ क्या घट जाए. प्रीति अभी दिल्ली में ही थी कि एक दिन सुबह सुबह ही उसे खबर मिली कि उस की मां को हार्टअटैक आया है और वह अस्पताल में भरती है. सुनते ही वह आगरा के लिए भागी किंतु वहां पहुंचने पर मालूम हुआ कि उस की मां अब दुनिया में नहीं रहीं.
प्रीति पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. वह फफक कर रोने लगी. अब उस का एकमात्र सहारा मां भी उसे छोड़ गई थीं. अस्पताल में वह मां के शव को पकड़ कर रो रही थी. उस को सांत्वना देने वाला कोई नहीं था. उस की मां के औफिस वाले आए हुए थे. उन लोगों ने कहा, ‘‘बेटी, अब अपने को संभाल…यह समय रोने का नहीं है. उठो, अब मां का दाहसंस्कार करने की सोचो…अब आग भी तुम्हें ही देनी है.’’
इस दुखभरी घड़ी में अपनों की कितनी याद आती है. उस ने समीर को फोन लगाया लेकिन उस का फोन तो डैड था. शायद उस ने नंबर बदल लिया था. अंतिम बार जब उस से भेंट हुई थी तो कहा था, अब दूसरा सिम लेगा. हारथक कर उस ने नीलम को याद किया. नीलम से उस की शादी में अंतिम बार भेंट हुई थी. वैसे भी उस से कभीकभी बातें होती रहती थीं. उस के हस्बैंड की प्रयागराज में एक बड़ी कपड़े की दुकान थी. वह खुले विचारवाला युवक था, इसलिए नीलम को कहीं आनेजाने में रोक नहीं थी.
नीलम खबर सुनते ही आगरा के लिए अपनी गाड़ी से चल पड़ी. प्रीति के जिम्मे अभी काफी काम थे. अस्पताल का बिल चुकाना, मां का दाहसंस्कार क्रिया करना और अकेले पड़े घर को संभालना. एक युवती जिस को दुनियादारी का भी कोई ज्ञान न हो और जिस की जिंदगी मां पिता की छत्रछाया में बीती हो, व जिस को घर संभालने का कोई व्यावहारिक ज्ञान न हो, अचानक इस तरह की विपत्ति पड़ने पर क्या स्थिति हो सकती है, यह तो वही समझ सकती है जिस के सिर पर यह अचानक बोझ आ पड़ा हो.
इस स्थिति में पड़ोसी भी बहुत काम नहीं आते सिवा सांत्वना के कुछ शब्द बोल देने के. और जिस का कोई अपना न हो उस के लिए तो यह क्षण बड़े ही धैर्य रखने और आत्मबल बनाए रखने का होता है और वह भी तब जब कोई अपना बहुत ही करीबी उसे छोड़ कर चला गया हो. सब से बड़़ी दिक्कत यह थी कि उस के पास पैसे नहीं थे और मां के बैंक अकाउंट का उस के पास कोई लेखाजोखा न था. पिछले महीने मां ने उस के खाते में जो पैसा ट्रांसफर किया था वह अब तक खर्च हो चुका था.
नीलम से वह कुछ मांगना तो न चाहती थी किंतु उस के पास इस के सिवा कोई रास्ता भी नहीं बचा था, इसलिए उस ने उस से कुछ मदद करने के लिए कहा. नीलम ने चलते वक्त चैकबुक और अपना डैबिट कार्ड भी पास में रख लिया. नीलम ने गांव के अपने सहोदर चाचाजी को बुला लिया जिन्होंने प्रीतिकी मां के दाहसंस्कार करवाने में बहुत मदद की. नीलम ने अस्पताल के सारे बिल भर दिए और मां के दाहसंस्कार व पारंपरिक विधि में होने वाले दूसरे आवश्यक खर्च को वहन किया.
प्रीति दकियानूसी विचारों वाली युवती नहीं थी, इसलिए उस ने विद्युत शवदाह द्वारा अपनी मां का दाहसंस्कार किया और अन्य पारंपरिक क्रियाएं भी बहुत सादे ढंग से संपन्न कीं. जब तक प्रीति सारी क्रियाओं से निबट नहीं गई तब तक नीलम उस के साथ रही.
परिस्थितियां चाहे जितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों मनुष्य को उस से तो बाहर निकलना ही पड़ता है और प्रीति भी इस से निकल तो गई किंतु वह जिस खालीपन का एहसास कर रही थी उसे भरना बहुत ही मुश्किल था.
कुछ समय बाद नीलम प्रयागराज लौट गई और प्रीति अपने मकान को एक विश्वस्त आदमी को किराए पर दे कर अपना रिसर्च वाला काम पूरा करने के लिए दिल्ली लौट आई. उसे पता चला कि उस की मां ने अपने नाम से एक इंश्योरैंस भी कराया था जिस का अच्छाखासा पैसा नौमिनी होने के कारण उसे मिल गया.
मां के बैंक अकाउंट में भी काफी पैसे थे, इसलिए उस को अपने रिसर्च के काम में कोई दिक्कत न आई. उस ने नीलम का सारा पैसा लौटा दिया. समय बीतता गया और उस के साथसाथ प्रीति भी पहले से ज्यादा समझदार व परिपक्व होती गई. उसे आगरा के ही एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई.
इस दुनिया में कहां किसी को किसी से मतलब होता है. वह अकेली थी. समीर जो कभी उस के दिल के करीब आ चुका था उस से भी उस का संपर्क टूट गया था. नीलम अपने घर चली गई थी जिस से कभीकभी फोन पर बातचीत होती रहती थी.
लड़कियों की शादी में तो वैसे ही काफी दिक्कतें होती हैं और उस का तो एक पैर भी खराब था. और उस की शादी के बारे में सोचने वाला भी कोई नहीं था. जो लोग उस के संपर्क में आते थे, वे उस की सुंदरता से आकर्षित हो कर आते थे न कि उस का जीवनसाथी बनने के लिए. इसलिए ऐसे लोगों से वह हमेशा ही अपने को दूर रखती थी. अब तो उस की जिंदगी का एक ही मकसद था घर से कालेज जाना, वहां मनोयोग से छात्रों को पढ़ाना और शाम को घर लौट कर मनोविज्ञान की पुस्तकों का गहरा अध्ययन करना.
इधर, वह मनोविज्ञान पर एक किताब लिख रही थी जिस से उस का खालीपन कट जाता था. कालेज के उस के सहकर्मी पढ़ाने में कम कालेज की आपसी राजनीति में ज्यादा इंटरैस्ट लेते थे और उन की इन बेवजह की चर्चाओं से वह अपने को हमेशा ही दूर रखती थी, इसलिए उन लोगों से भी उस का ज्यादा संबंध नहीं था.
किंतु कालेज के प्रिंसिपल उस को बहुत सम्मान देते थे क्योंकि उन की निगाहों में उसे इतनी कम उम्र में काफी अच्छी जानकारी थी, इसलिए वे उस की हर संभव मदद भी करते थे. कालेज के छात्र भी उस की कक्षाओं को कभी भी नहीं छोड़ते थे क्योंकि उस से अच्छा लैक्चर देने वाला कालेज में कोई अन्य लैक्चरर नहीं था.
एक दिन सुबह उस ने अखबार में देखा कि समीर नाम का कोई आईएएस अधिकारी उस के शहर में जिला अधिकारी बन कर आया हुआ है.
समीर नाम ने ही उस के दिल में हलचल पैदा कर दी. वह सोचने लगी यह वही समीर तो नहीं जो कभी उस के दिल के बहुत करीब हुआ करता था और घंटों मनोविज्ञान के किसी टौपिक पर उस से चर्चा करता था. क्या समीर आईएएस बन गया?
रविवार को सुबह से ही प्रीति समीर के लिए लंच की तैयारी में लगी हुई थी. इस बीच फोन पर उस ने प्रयागराज से नीलम को भी बुला लिया था. वह पुस्तक विमोचन समारोह में कुछ जरूरी कामों में व्यस्त रहने के कारण नहीं आ पाई थी. नीलम भी समीर से मिलने के लिए उत्साहित थी. एक लंबे समय के बाद तीनों एकसाथ एक टेबल पर मिलने वाले थे.
समीर ने उसे फोन पर सूचना दी थी कि वह रविवार को 2 बजे के बाद आएगा, उसे एक जरूरी मीटिंग में शामिल होना है क्योंकि जिले में सोमवार को सीएम का दौरा होने वाला था. किंतु वह उस दिन 12 बजे ही आ गया.
‘‘सीएम साहब का दौरा रद्द हो गया तो मैं जल्दी आ गया,’’ आते ही वह बोला. उस का घर एक संकरी गली में था. उस की गाड़ी सड़क पर खड़ी थी. बौडीगार्ड साथ में था.
उसे अचानक आया देख प्रीति और नीलम दोनों उठ खड़ी हुईं.
नीलम को देख कर उस ने सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘अरे तुम कब आईं. तुम भी आगरा में ही रहती हो क्या?’’
‘‘नहीं, तुम्हारे बारे में प्रीति ने बताया तो मिलने आ गई,’’ नीलम मुसकराते हुए बोली.
‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं इस शहर में पिछले 4 महीने से हूं लेकिन प्रीति को मेरी कभी याद न आई.’’
‘‘ऐसी बात नहीं है समीर, तुम से मिलने का मैं ने कई बार सोचा लेकिन मिलने की हिम्मत न हुई.’’ प्रीति ने कहा.
‘‘क्यों, मैं तुम्हारे लिए गैर कब से हो गया. यह क्यों नहीं कहतीं कि तुम मुझ से मिलना ही नहीं चाहती थीं.’’ अब प्रीति उस से क्या कहती और कहती भी तो क्या उस की सफाई से समीर की उलाहना दूर हो जाती?
‘‘अच्छा, अब बता मां जी कहां हैं?’’
‘‘समीर, अब प्रीति की मां इस दुनिया में नहीं हैं,’’ नीलम ने बताया.
कुछ देर तक समीर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘सौरी प्रीति, मैं ने तुम्हारे दिल के दर्द को कुरेदा. अब घर में कौन रहता है?’’
‘‘इस के साथ अब कोई रहने वाला नहीं है समीर. यह नितांत अकेलापन का जीवन जीती है. अपनी दुनिया में खोई हुई. जिस तरह कालेज में किताबों में खोई रहती थी, अब भी किताबें ही इस की साथी हैं,’’ नीलम बोली.
समीर थोड़ी देर तक घर में इधरउधर देखते रहा. उस की मां और बाबूजी का फोटो सामने की दीवार पर टंगा हुआ था. उस ने सोचा उस का ध्यान अब तक उन फोटो पर क्यों नहीं गया जो वह प्रीति को बारबार मां की याद दिलाता रहा. उस ने हाथ जोड़ कर उस के मातापिता के फोटो के सामने जा कर उन्हें प्रणाम किया और प्रीति से बोला, ‘‘जिंदगी इसी का नाम है. यह कोई नहीं जानता कि किस की जिंदगी उस को किस तरह जीने के लिए मजबूर करेगी. तुम से बिछुड़ने के बाद मैं एक बौयज होस्टल में शिफ्ट कर गया जहां सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले लड़के रहते थे. घर में पढ़ने का माहौल नहीं था.
‘‘वहां एक दिन किसी ने मेरा स्मार्टफोन चुरा लिया. उस फोन में बहुत सारी इन्फौर्मेशन थीं, उसी में तुम्हारा फोन नंबर भी था. मैं ने तुम्हें खोजने का प्रयास किया किंतु तुम्हें ढूंढ़ नहीं पाया. फिर मेरी कोचिंग की क्लासेज चलने लगीं और परीक्षा की तैयारी में इतनी बुरी तरह उलझा कि फिर तुम्हारी ओर ध्यान ही नहीं गया और इसी बीच मेरे बाबूजी का तबादला कंपनी वालों ने दूसरे शहर में कर दिया जहां वे मां के साथ शिफ्ट कर गए.
‘‘मैं इकलौती संतान था. घर में कोई रहने वाला नहीं था, इसलिए पिताजी ने
3 कमरों के इस अपार्टमैंट में एक कमरा निजी उपयोग के लिए रख कर 2 कमरे किराए पर दे दिए. लेकिन प्रीति तुम चाहतीं तो मेरे घर जा कर मेरे किराएदार से मेरा फोन नंबर मांग सकती थीं क्योंकि कभीकभी मैं वहां जाया करता था और किराएदार को मेरा फोन नंबर मालूम था. तुम तो मेरे घर आई थीं. मेरे मातापिता तुम्हें बहुत ही लाइक करते थे. मां तो हमेशा ही तुम्हारे सरल स्वभाव की प्रशंसा करती थीं और पिताजी अकसर कहा करते थे कि किसी भी व्यक्ति का गुण प्रधान होता है न कि उस का शरीर.
‘‘मेरे मांबाबूजी इसी हफ्ते यहां घूमने आने वाले हैं. मैं तुम्हें उन से मिलवाऊंगा.’’
‘‘हां समीर, मुझे भी उन से मिलने की बहुत इच्छा है. उन से मिले हुए काफी दिन हो गए हैं. उन के आने के बाद तुम मुझे फोन करना, मैं उन से मिलने जरूर आऊंगी. लेकिन तुम अपनी पत्नी को ले कर क्यों नहीं आए?’’
समीर ने हंसते हुए कहा, ‘‘अभी तुम्हारी जैसी कोई मिली नहीं.’’
‘‘क्यों मजाक करते हो समीर. मेरे जैसी कोई मिले भी नहीं. हैंडीकैप होना एक अभिशाप से कम नहीं है.’’
‘‘ऐसा न कहो प्रीति, आज भी मनोविज्ञान के क्षेत्र में तुम्हारा मुकाबला करने वाला इस शहर में कोई नहीं है.’’
यह तो प्रीति नहीं जानती थी कि समीर के साथ उस का क्या रिश्ता है किंतु अंदर ही अंदर यह जान कर कि वह अब तक कुंआरा है उस के मन के तार झंकृत हो उठे.
इस बीच समीर के मांबाबूजी के आने का वह बेसब्री से इंतजार करती रही और फिर कुछ ही दिनों बाद समीर ने उसे फोन कर बताया कि उस के मांबाबूजी आए हुए हैं और उस से मिलना चाहते हैं. आज रात का डिनर उन के साथ करोगी तो उसे खुशी होगी.
प्रीति तो इसी अवसर का इंतजार कर रही थी, इसलिए उस ने उस के निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया. उसे अंदर आने से कोई न रोके, इसलिए समीर ने उस को लाने के लिए अपनी प्राइवेट कार भेज दी थी.
प्रीति को लेने समीर अपने आवास के गेट तक स्वयं आया. जब वह उस के साथ ड्राइंगरूम में पहुंची तो उस के मांबाबूजी उस का इंतजार कर रहे थे. उस ने उन के पैर छुए. उन्होंने उसे अपनी बगल में बैठा लिया.
‘‘समीर तुम्हारी हमेशा चर्चा करता है. सुना मां भी नहीं रहीं. घर में अकेली हो. बेटी मैं समझ सकती हूं तुम्हारी तकलीफ को. लड़की वह भी अकेली,’’ समीर की मां बोलीं.
‘‘बेटी, अब आगे क्या करना है?’’ समीर के बाबूजी ने पूछा.
‘‘क्या करूंगी बाबूजी. दिन में कालेज में पढ़ाती हूं, रात में अध्ययन, कुछ लेखन.’’ उस ने नम्रता से कहा.
‘‘अभी क्या लिख रही हो?’’
‘‘अभी तो कुछ नहीं. इस पुस्तक का रिस्पौंस देख लेती हूं कैसा है, फिर आगे का प्लान बनाऊंगी.’’
‘‘यह पुस्तक ‘आनेवाली पीढि़यां और मनोविज्ञान’ मैं ने पढ़ी. समीर ने दी थी. यह सच है कि मनोविज्ञान के स्थापित सिद्धांत आने वाली पीढि़यों के संदर्भ में वैसे ही न रहेंगे.’’
‘‘बाबूजी, आप भी क्या न… आते ही पुस्तक की चर्चा में लग गए. घर और बाहर रातदिन यही तो यह करती है. आज तो हम एंजौय करें. वैसे प्रीति, मैं तुम से पूछना भूल गया था, सारे आइटम वेज ही रखे हैं. मांबाबूजी वैजिटेरियन हैं.’’
‘‘मैं भी वैजिटेरियन ही हूं.’’
खाना खाने के बाद जब प्रीति जाने को हुई तो मां ने उसे रोका.
‘‘बेटी, तुम्हारी शादी की कहीं बात चल रही है क्या?’’
प्रीति कुछ न बोल पाई. जवाब देती भी क्या. उस की शादी के लिए कौन बात करने वाला था.
‘‘समझ गई बेटी. अब तो तुम्हारे घर में तुम्हारे सिवा कोई है नहीं जिस से तुम्हारी शादी के बारे में बात की जाए. समीर तुम्हारी बहुत प्रशंसा करता है. आईएएस में उस के सिलैक्शन के बाद कई अमीर घराने के लोग अपनी बेटियों की शादी के लिए आए. वे सभी अपनी दौलत के बल पर समीर को खरीदना चाहते थे.
‘‘समीर का इस संबंध में स्पष्ट मत था कि शादी मन का मिलन होता है, सिर्फ शरीर का नहीं और जो लड़की अपने बाप की हैसियत के बल पर इस घर में आएगी वह कभी भी अपना दिल उसे न दे पाएगी. बेटी, अगर तुम्हें कोई आपत्ति न हो और समीर से तुम्हारा मन मिलता हो तो इस घर में तुम्हारी जैसी बहू पा कर हम प्रसन्न होंगे. समीर के पिताजी की भी यही इच्छा है. समीर भी यही चाहता है. अब सबकुछ तुम पर निर्भर करता है. तुम इत्मीनान से फैसला ले कर बताना. कोई जल्दी नहीं है, हम तुम्हारे जवाब का इंतजार करेंगे.’’
‘‘लेकिन मांजी, कहां समीर की पोस्ट और कहां मैं एक साधारण कालेज की लेक्चरार.’’
‘‘अब लज्जित न करो प्रीति,’’ समीर बोला, ‘‘मेरे और तुम्हारे संबंधों के बीच हमारी पोस्ट और हैसियत बीच में कहां से आ गई, इसी से बचने के लिए तो मैं ने
अब तक किसी शादी का प्र्रस्ताव स्वीकार नहीं किया.’’
प्रीति ने लज्जा से सिर झुका लिया.
उस ने समीर के मांबाबूजी के पैर छूते हुए कहा, ‘‘आप लोगों का आदेश मेरे लिए आज्ञा से कम नहीं.’’
फिर उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.
समीर उसे छोड़ने उस के घर तक गया. जब वह लौटने लगा तो उस ने प्रीति को अपने गले से लगा लिया. और बोला, ‘‘प्रीति पतिपत्नी का रिश्ता बराबर का होता है, आज भी मैं वही समीर हूं जो कालेज के दिनों में हुआ करता था और आगे भी ऐसे ही रहूंगा.’’
समीर के गले लगी प्रीति को ऐसा लग रहा था मानो सारे जहां की खुशियां उसे मिल गई हैं. रात का सियाह अंधेरा अब समाप्त हो चुका था. सुबह की नई किरणें फूटने लगी थीं.
यह प्रश्न उस के जेहन में कौंध रहा था और वह बहुत देर तक समीर के साथ बिताए गए उन पलों को याद कर रही थी जो 5 वर्ष बाद भी अभी तक वैसे ही तरोताजा थे जैसे यह बस कुछ पलों पहले की बात हो.
यही पता लगाने के लिए एक दिन वह उस के औफिस पहुंची तो पता लगा कि साहब अभी मीटिंग में व्यस्त हैं. दूसरे दिन समीर से मिलने के लिए उस के चैंबर में जाना चाहा तो, दरवाजे पर खड़े चपरासी ने उसे रोक दिया और उस से स्लिप मांगी. उस ने सोचा, पता नहीं वही समीर है या कोई और, इसलिए उस ने चैंबर में उस से मिलने का विचार त्याग दिया. वह सोचने लगी वैसे तो जिलाधिकारी आम आदमी के हितों के लिए जिला में पदस्थापित होता है और उस से मिलने के लिए कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र है लेकिन अफसरशाही ने आम आदमी से जिलाधिकारी को कितना दूर कर दिया है.
वैसे जिलाधिकारी से उस के द्वारा समयसमय पर लगाए जाने वाले जनता दरबार में भी आसानी से भेंट हो सकती थी किंतु उस के बारे में जानने की तीव्र जिज्ञासा इतनी थी कि वह बहुत समय तक इस के लिए इंतजार नहीं कर सकती थी. सो, जिलाधिकारी द्वारा राजस्व से संबंधित मुकदमों की सुनवाई के लिए किए जाने वाले कोर्ट के दौरान उस ने उसे देखने का मन बनाया.
उसे किसी ने बताया था कि उस दिन जिलाधिकारी न्यायालय में मुकदमे की सुनवाई करेंगे. जब वह उस के न्यायालय में पहुंची तो समीर मुकदमे की कोई फाइल देख रहा था. वह न्यायालय में खड़ी थी किंतु समीर ने उसे नहीं देखा और वह झट न्यायालय के कमरे से बाहर आ गई. फिर अपने घर पहुंची. अब उस ने सोचा कि वह उस के आवास में जा कर मिलेगी. जब वह उस के आवास पहुंची तो फिर चपरासी ने स्लिप मांगी. उसे लगा, वह तो लड़की है, लोग जाने उस के बारे में क्याक्या सोचने लगें, इसलिए उस से बिना मिले ही वापस घर लौट आई.
समीर को जिला में पदस्थापित हुए 4 महीने से अधिक हो गए थे, किंतु उन दोनों की मुलाकात नहीं हुई थी. अब तक मनोविज्ञान पर प्रीति की लिखी पुस्तक ‘आने वाली पीढि़यां और मनोविज्ञान’ को छापने के लिए दिल्ली का पाठ्यपुस्तकों से संबंधित एक प्रकाशक तैयार हो गया था. पुस्तक की पांडुलिपि उस ने प्रकाशक को सौंप दी थी जो अब मुद्रण के लिए भेजी जा चुकी थी.
अगले महीने उस की प्रतियां तैयार हो कर आ जाने वाली थीं और पुस्तक का विमोचन उस के कालेज के हौल में होना तय हुआ था. प्रिंसिपल के आग्रह पर जिलाधिकारी समीर ने भी विमोचन समारोह में आना स्वीकार कर लिया था और उसी के हाथों उस की पुस्तक का विमोचन होना था.
काम की बहुत ज्यादा व्यस्तता के कारण समीर का ध्यान इस ओर नहीं गया था कि इस की लेखिका वही प्रीति है जो कभी दिल्ली में उस के साथ मनोविज्ञान में एमए कर रही थी. पिं्रसिपल साहब खुद इन्विटेशन ले कर गए थे और प्रीति ने उन से कभी समीर की चर्चा नहीं की थी.
प्रीति यह सोच कर काफी उत्सुक और रोमांचित थी कि उस की पुस्तक का विमोचन समीर के हाथों होगा और उसी के द्वारा वह सम्मानित की जाएगी. वह सोच रही थी कि वह क्षण कैसा होगा जब वह पहली बार इतने दिनों के बाद समीर के सामने जाएगी. आज वह दिन आ ही गया था.
रात में उसे नींद ठीक से नहीं आई थी. बारबार उसे समीर की बातें, उस के साथ घंटों मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर हुई चर्चाएं याद आ रही थीं. उस समय समीर उस से बारबार कहता था कि वह आईएएस बन कर समाज की सेवा करना चाहता है और अब उस की मनोकामना पूरी हो गईर् थी. उस ने जो सोचा था उसे वह मिल गया था.
क्या समीर की शादी हो गई है या अभी भी वह कुंआरा है, यह प्रश्न भी उस के मन में बारबार कौंध रहा था. वह सोच रही थी कि यदि समीर की शादी हो गई है तो उस की पत्नी कैसी होगी. यदि समीर ने उसे देख कर पुरानी बातों को कुरेदना शुरू किया तो उस की पत्नी की प्रतिक्रिया क्या होगी? कहीं वह उस के संबंधों को ले कर आशंकित तो न हो जाएगी.
उस के मन में पहली बार इतना उत्साह था. दिल में हलचल थी. वहीं, अंदर से समीर से मिलने का एक मधुर एहसास भी था. उस ने अपनी सब से अच्छी साड़ी निकाली और पहली बार अपना इतनी देर तक शृंगार किया. आज सच में वह काफी सुंदर लग रही थी.
पुस्तक विमोचन समारोह के लिए कालेज के हौल को काफी सजाया गया था. शहर के कई गणमान्य व्यक्तियों को भी बुलाया गया था. दूसरे कालेजों के शिक्षक और कई विद्वानों को भी आमंत्रित किया गया था. सब के खानेपीने का इंतजाम पुस्तक के प्रकाशक की ओर से था.
वह कालेज रिकशा से जाती थी, किंतु आज प्रिंसिपल ने उसे लाने के लिए अपनी गाड़ी ड्राइवर के साथ भेजी थी और कालेज के एक जूनियर लैक्चरर को भी साथ लगा दिया था.
जब वह कालेज के हौल में पहुंची तो अधिकतर मेहमान आ चुके थे. लाउडस्पीकर पर कोई पुराना संगीत काफी कम आवाज में बज रहा था. पुस्तक विमोचन की सारी आवश्यक तैयारियां कर ली गई थीं. अब जिलाधिकारी के आने की प्रतीक्षा थी.
तभी जिलाधिकारी समीर के आने का माइक पर अनाउंसमैंट हुआ. समीर के स्टेज पर पहुंचते ही सभी उपस्थित मेहमान उस के सम्मान में खड़े हो गए. प्रिंसिपल ने समीर का स्टेज पर स्वागत किय??ा और उन्हें अपनी बगल में विशेष अतिथि के रूप में बैठाया. ठीक उस के बगल में प्रीति भी बैठी हुई थी. प्रीति ने समीर को देख कर हाथ जोड़े तो वह अप्रत्याशित रूप से उस को स्टेज पर देख कर विस्मित होते हुए बोला, ‘‘अरे तुम, प्रीति?…यहां?’’
‘‘क्या आप एकदूसरे को पहचानते हैं?’’ प्रिंसिपल ने पूछा.
‘‘हम दोनों ने एक ही साथ दिल्ली में एक ही कालेज से साइकोलौजी में एमए किया है.’’
‘‘लेकिन प्रीति ने यह कभी नहीं बताया,’’ प्रिंसिपल ने अब प्रीति की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘क्यों प्रीति, इतना बड़ा राज तुम छिपाए हुए हो. मुझे तो कम से कम बताया होता.’’
प्रीति प्रिंसिपल को क्या बताती कि उस ने कई बार समीर से मिलने की कोशिश की थी लेकिन कुछ संकोच, कुछ झिझक और परिस्थितियों ने उसे उस से नहीं मिलने दिया और चाह कर भी वह समीर से अपने संबंधों को अपने सहकर्मियों के साथ साझा न कर पाई.
‘‘समीर तुम से मिलने की मैं ने बहुत बार कोशिश की, लेकिन मिल नहीं पाई,’’ वह सकुचाते हुए धीरे से बोली.
‘‘अब यह बहानेबाजी न चलेगी प्रीति. फंक्शन के बाद मैं तुम्हारे घर पर आऊंगा. मां कैसी हैं?’’
सुनते ही प्रीति की आंखें नम होने लगीं और वह इस का कोई जवाब नहीं दे पाई तो प्रिंसिपल ने मामले की नाजुकता को समझते हुए, बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘‘इत्मीनान से इस संबंध में बातें होंगी. अभी हम लोग पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम शुरू करते हैं.’’
पुस्तक का विमोचन करते हुए समीर ने प्रीति की सादगी, नम्रता और उस के कोमल भावों की विस्तृत चर्चा करते हुए अपने कालेज के दिनों की यादों को सब के साथ साझा करते हुए कहा कि प्रीति कालेज में एक ऐसी लड़की थी जिस से हमारे प्रोफैसर भी बहुत प्रभावित थे. प्रीति को साइकोलौजी पर जितनी पकड़ है उतनी बहुत कम लोगों को होती है. हमें गर्व है कि इस शहर में हमारे बीच प्रीति जैसी एक विदुषी हैं.’’
समीर की बातों से पूरा हौल तालियों से गड़गड़ाने लगा तब प्रीति ने महसूस किया कि समीर, जिस के बारे में उस ने सोचा था कि वह उसे भूल गया है, बिलकुल उस की थोथी समझ थी. उस के दिल में उस के प्रति अभी भी उतना ही लगाव और प्रेम है जितना कालेज के दिनों में हुआ करता था.
फंक्शन के बाद समीर ने उस से उस का फोन नंबर लिया और उस के घर की लोकेशन नोट करते हुए कहा कि इस रविवार को वह उस के साथ ही लंच करेगा. अपना विजिटिंग कार्ड उसे थमाते हुए उस ने रविवार को इंतजार करने के लिए कहा.
फंक्शन के बाद उस के सभी सहकर्मी उस को आंखें फाड़ कर देख रहे थे. समीर ने सभी लोगों के बीच जिस प्रकार प्रीति की प्रशंसा की थी और सम्मान दिया था उस का किसी को भी अनुमान नहीं था. प्रीति ने घर आ कर पूरे घर को साफ किया, ड्राइंगरूम में सोफे को करीने से लगाया और घर के बाहर पड़े हुए गमलों को ठीक से लगाया और उन में पानी दिया.
मां के गुजर जाने के बाद प्रीति अंदर से काफी टूट गई थी. घर में कोई नहीं था और उस का जीवन अकेलेपन के दौर से गुजर रहा था, इसलिए पूरा घर ही अस्तव्यस्त पड़ा हुआ था. किंतु समीर ने जब से कहा था कि रविवार को उस के घर आ कर उस के साथ लंच करेगा उस के शरीर में एक नया ही उत्साह पैदा हो गया था, मनमयूर नाचने लगा था और जीवन के प्रति एक नया नजरिया पैदा हो गया था.
अजनबी होते हुए भी कभीकभी किसी के साथ ऐसी आत्मीयता बढ़ जाती है मानो बरसों से जानते हैं. विशाल और नीरजा कुछ इसी तरह मिले और साथ बढ़ता गया.
वे अब 5-7 दिनों पर लाइब्रेरी जाते. उन का लाइब्रेरी जाने का समय साढ़े 4 बजे होता. किताब जमा करते व नई किताब लेते 5 बज जाते.
5 बजे नीरजा अपना सामान समेट लेती. फिर वे अकसर ही बाहर कौफी पीने चले जाते. अब नीरजा उन से खूब खुल कर बात करती थी. वे भी उसे चिढ़ा देते थे. जब वे चिढ़ाते तो वह झूठे गुस्से में मुंह फुला लेती. फिर वे उसे मनाते. उस की सुंदरता के पुल बांधते. वह खिलखिला कर हंस देती. वह उन्हें अपना स्मार्ट बौयफ्रैंड कहती. वे अकसर कहते, उन की उम्र उस के बौयफ्रैंड बनने की नहीं है, तब वह नाराज हो जाती. वह कहती, यह बात दोबारा नहीं कहना. उम्र से क्या होता है. उस के स्मार्ट बौयफ्रैंड जैसा स्मार्ट कोई और हो तो बताएं.
उस ने कई बार साफ कहा था कि वे उसे बहुत अच्छे लगते हैं. वह अकसर ही उन के कंधे पर अपना सिर टिका कर आंखें मूंद लेती थी. वे मना करते, कहते, ‘लोग देख रहे हैं.’ तो वह कहती, ‘देखने दो. मुझे अच्छा लगता है.’
वे एक हाथ से ड्राइविंग करते व दूसरे हाथ से उस के बालों को हलकेहलके सहलाते रहते. उन्होंने एकाध बार उसे कोई गिफ्ट दिलाने की कोशिश की थी, पर उस ने सख्ती से मना कर दिया था. वह कहती थी, ‘‘कौफी, पैस्ट्री पकौड़ा तक ठीक है पर गिफ्ट वगैरह नो, बिग नो.’’
उन को भी शिद्दत से लगता था कि वे नीरजा के प्यार में आकंठ डूब चुके थे. जब भी उस से मिल कर आते, बेचैन हो जाते. 5-7 दिनों का इंतजार उन के लिए मुश्किल हो जाता था. पर रोज तो वे जा नहीं सकते थे. पर
यह कैसा प्यार था. अगर यह लगाव था तो यह कैसा लगाव था, भई. उन की उम्र 24 साल की लड़की से प्यार करने की नहीं थी. पत्नी थी, बेटे थे, बहुएं थीं, पोती भी थी.
प्यार तो कोई बंधन नहीं मानता. उम्र का भी नहीं शायद. पर समाज तो था. सामाजिक स्थिति तो थी. उन का एक कदम उन की सामाजिक स्थिति को खत्म कर सकता था. वे परिपक्व थे, जानते थे.
देखतेदेखते 3 महीने और गुजर गए. लाइब्रेरी का इंटरव्यू हो गया. अभिमन्यू ने इंटरव्यू संभाल लिया था. पर अपौइंटमैंट फंस गया. किसी ने कोर्ट केस कर दिया था. नीरजा के साथसाथ वे भी बहुत दुखी हुए. पर क्या किया जा सकता था. इंतजार करना था.
उस दिन वे कई दिनों बाद लाइब्रेरी गए थे. शायद 15 दिनों बाद. नीरजा इश्यू व डिपौजिट काउंटर पर बैठी थी. पर शायद उस की तबीयत ठीक नहीं थी, चेहरा कुम्हलाया हुआ था. अपना काम खत्म करतेकरते भी उसे 6 बज गए थे. वे कुरसी पर बैठे किताब पढ़ते रहे. 6 बजे वह अपना बैग ले करआ गई. उन्होंने सवालिया निगाहों से उसे देखा.
‘‘काम अधिक था,’’ उस ने धीरेधीरे कहा, ‘‘तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. इसीलिए देरी हो गई, चलिए.’’
दोनों बाहर आ गए.‘‘चलो, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’’
‘‘नहीं, मुझे कौफी पीनी है.’’
‘‘श्योर, आर यू औलराइट?’’
‘‘बिलकुल. गाड़ी बढ़ाओ मिस्टर विशाल, लोग देख रहे हैं.’’
रास्तेभर वह अपना सिर उन के कंधों पर टिकाए आंखें मूंदे चुपचाप बैठी रही. हां, हूं के अलावा कोई बात नहीं की. अंबर कैफे आ गया. वेटर आ गया. तब उस ने सिर उठाया व आंखें खोलीं.
‘‘क्या लोगी, कोल्ड या हौट कौफी?’’
‘‘हौट कौफी, तुम्हारे जैसी हौट.’’
उन्होंने हौट कौफी व प्याज के पकौड़ों का और्डर दिया.‘‘अगली बार हम यहां नहीं आएंगे,’’ नीरजा ने कहा.
‘‘हां, अगली बार हम एल चाइको में चलेंगे. आराम से बैठ कर चाइनीज खाएंगे.’’
‘‘तुम अपनी बीवी से डरते हो न?’’ अचानक उस ने कहा.
‘‘वैसे तो कौन नहीं डरता. पर, मेरी बीवी ऐसी नहीं है.’’
‘‘वो तो मैं जानती हूं. वह तुम्हें खूब खुश रखती होगी. अच्छा एक बात बताओ, अगर तुम 20 साल बाद पैदा हुए होते तो?’’
‘‘तो मेरी उम्र 90 साल होती अगर मैं जिंदा होता तो.’’
‘‘नहींनहीं, अगर मैं 20 साल पहले पैदा हुई होती तो?’’
‘‘तो तुम्हारी उम्र 54 साल की होती.’’
‘‘अरे नहीं यार, उम्र का सही कौम्बिनेशन मिलाओ न.’’
‘‘मतलब, अगर हम दोनों एकाध साल के अंतर से पैदा हुए होते तो क्या होेता, यही न?’’
‘‘हां, हां. मेरा यही मतलब था. तो क्या होता?’’
‘‘होता क्या, तब हमारी मुलाकात लाइब्रेरी में नहीं होती. शायद हौस्पिटल में हो जाती.’’
वह खिलखिला कर हंस पड़ी, पर हंस न पाई. उस ने अपना पेट कस कर पकड़ लिया जैसे दर्द हो रहा हो.
‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, तुम्हें क्या हुआ है नीरजा?’’
‘‘कुछ नहीं. थोड़ा फीवर है. कमजोरी लग रही है?’’
‘‘चलो, आज मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं,’’ उन्होंने इशारे से वेटर को बुलाया. आज नीरजा कौफी भी आधा कप ही पी पाई थी. पकौड़े तो छुए भी न थे. लड़का बरतन ले गया.
‘‘नहीं, मैं आप को घर नहीं ले जा सकती,’’ उस ने सख्ती से कहा, ‘‘आगे ले लीजिए, अगले चौराहे से मैं औटो ले लूंगी.’’
उन्होंने बहस नहीं की व गाड़ी आगे बढ़ा ली. आगे एक पार्क का पिछला हिस्सा था जो ऊंची बाउंड्री से घिरा हुआ था. वहां कुछ अंधेरा था.
‘‘उस पेड़ के पास गाड़ी रोकिए न, प्लीज.’’
उन्होंने पार्क के पीछे स्थित पेड़ के पास गाड़ी रोक दी. वह एकटक उन के चेहरे की तरफ देख रही थी.
‘‘क्या हुआ,’’ उन्होंने धीरे से पूछा.
वह कुछ न बोली. सिर्फ उन के चेहरे पर देखती रही.
‘‘आर यू औलराइट, तुम ठीक तो हो न.’’
‘‘यू वांट टू किस मी,’’ उस ने अचानक कहा.
‘‘व्हाट?’’ उन का चेहरा भक से उड़ गया, ‘‘व्हाट रबिश यू आर टौकिंग?’’
‘‘आई नो. यू वांट टू. क्या मुझे किस करना चाहते हो?’’
‘‘नो, नैवर, हाऊ कैन यू…’’
‘‘बट, आईर् वांट टू,’’ उस ने घूम कर अपनी दोनों बांहें उन के गले में डाल दीं व अपने होंठ उन के होंठों पर रख दिए.
‘‘किस मी, किस मी, प्लीज, होल्ड मी.’’
उस ने उन्हें जोर से पकड़ रखा था. उन के हाथ अपनेआप उस की पीठ पर पहुंच गए. नीरजा ने उन का एक लंबा सा किस लिया. गाड़ी के अंदर अंधेरा था पर इंजन स्टार्ट था.
गाड़ी के बैक पर ठकठक खटखटाने की आवाज आई.
‘‘कौन है अंदर, बाहर निकलो.’’
नीरजा छिटक कर उन से अलग हो गई. उन्होंने घूम कर पीछे देखा. एक पुलिसवाला अपने डंडे से बैक पोर्शन खटखटा रहा था, ‘‘बाहर निकलो.’’
उन्होंने तुरंत गाड़ी बढ़ा दी व स्पीड ले ली. पुलिसवाला पीछे चिल्लाता ही रह गया. चौराहा पार हो गया.
‘‘यह तुम ने क्या किया?’’ आगे आ कर उन्होंने कहा, ‘‘अभी तो हम शायद बच गए. पर कितनी बड़ी मुसीबत हो जाती हम दोनों के लिए.’’
‘‘आप मैनेज कर लेते. आप पावरफुल हैं. पर आप को अच्छा नहीं लगा क्या. मुझे तो बड़ा अच्छा लगा.’’
‘‘मुझे भी अच्छा लगा, नीरजा,’’ वे यह कहने से अपने को न रोक सके, ‘‘यू आर रियली ब्यूटीफुल.’’
बाहर निकल कर किस तरह से वे अपनी कार तक पहुंचे, उन्हें नहीं मालूम. कार में बैठते ही स्टियरिंग पर सिर टिका कर वे बेआवाज फफक पड़े. उन की नीरजा खो गई थी. इन बीते दिनों की उन की गैरहाजिरी ने उन से उन की नीरजा छीन ली थी. पर वे ऐसे हार नहीं मानेंगे. शहर के बड़े से बड़े डाक्टर को ला कर खड़ा कर देंगे. वे नीरजा को ऐसे नहीं मरने देंगे. डाक्टर मित्रा शहर के सब से बड़े कैंसर स्पैशलिस्ट हैं. उन को ले कर आएंगे. कोई तो रास्ता होगा, कोई तो रास्ता निकलेगा.
उन्होंने झटके से सिर उठाया व आंसुओं को पोंछ डाला. दूसरे दिन वे पहले बैंक गए, 50 हजार रुपए निकाले. फिर वे डाक्टर मित्रा के पास खुद गए. उन्होंने दिन में एक बजे विजिट का वादा किया. उस के बाद वे 144, मीरा?पट्टी रोड चले गए.
घर पर ताला लटक रहा था. वे सन्न रह गए. अगलबगल से पता करने पर पता चला कि सब नीरजा को ले कर ज्यूड हौस्पिटल गए हुए हैं. वे बदहवास गाड़ी चला कर ज्यूड हौस्पिटल पहुंचे. काउंटर पर पता चला नीरजा आईसीयू में है. आईसीयू के बाहर ही नीरजा की मां बैठी धीरेधीरे रो रही थीं. उन की बगल में ही एक 13-14 वर्ष का नीरजा की शक्ल जैसा लड़का बैठा था. वह नीरजा का भाई होगा. वे जा कर नीरजा की मां की बगल में खड़े हो गए. उन्हें देखते ही नीरजा की मां जोर से रो पड़ीं.
‘‘आप के जाने के बाद जब नीरजा जागी तो मैं ने उसे बताया कि विशाल आए थे. आप का नाम सुनते ही जैसे वह खिल गई, मुसकराई भी थी. मुझे लगा कि वह कुछ ठीक हो रही है. पर उस के बाद उस की तबीयत बिगड़ गई. थोड़ीथोड़ी देर में 2 उलटियां हुईं. उलटी में खून था साहब. बगल के डाक्टर प्रकाश को मेरा बेटा बुला लाया. नीरजा बेहोश हो गई थी. उन्होंने उसे तुरंत अस्पताल ले जाने को कहा. उन्होंने ही एंबुलैंस भी बुला दिया. यहां डाक्टरों ने जवाब दे दिया है.’’
तभी अंदर से नर्स आई, ‘‘यहां मिस्टर विशाल कौन हैं?’’
‘‘जी, मैं हूं,’’ उन्होंने कहा.
‘‘पेशेंट को होश आ गया है. बट शी इज वैरी क्रिटिकल ऐंड वीक. कई बार आप का नाम ले चुकी है. आइए, पर ज्यादा बात नहीं कीजिएगा. शी विल नौट होल्ड. आइए, इधर से आ जाइए.’’
वे आईसीयू के अंदर आ गए. नर्स उन्हें नीरजा के बैड तक ले गई. नीरजा गले तक सफेद चादर ओढ़े लेटी थी. उस की हिरनी जैसी बड़ीबड़ी आंखें पूरी खुली थीं. उन्हें देखते ही उस के होंठों पर मुसकराइट व आंखों में चमक आ गई. नर्स ने अपने होेंठों पर उंगली रख कर उन्हें इशारा किया.
‘‘हैलो स्मार्टी,’’ उस ने चादर से अपना हाथ निकाल कर उन का हाथ पकड़ लिया. उस की आवाज साफ थी, ‘‘बड़ी देर कर दी आतेआते?’’
वे खड़े, उसे चुपचाप देखते रहे.
‘‘मुझ से बेहद नाराज हैं न मेरे दोस्त. इसीलिए न कि मैं ने पहले क्यों नहीं बताया. पर अगर मैं पहले बता देती तो मुझे मेरा स्मार्टी बौयफ्रैंड शायद नहीं मिलता. सही है न.’’
इतना बोलने में ही उस के माथे पर पसीने की एकदो बूंदें आ गईं. उन्होंने पास पड़ा स्टूल खींच लिया व उस के पास ही बैठ गए, जिस से उसे बोलने में जोर न लगाना पड़े.
‘‘नहीं,’’ मैं तुम से नाराज नहीं हूं,’’ उन्होंने धीरे से कहा, ‘‘पर मैं तुम से बहुतबहुत नाराज हूं. अगर तुम समय से मुझे बता देतीं तो मैं हिंदुस्तान के बडे़ से बड़े डाक्टर से तुम्हारा इलाज करा कर तुम्हें बचा लेता.’’
‘‘नहीं विशाल, मैं जानती थी इस का कोई इलाज नहीं था. आप नाराज मत होइए, मैं जानती हूं मैं आप को
मना लूंगी माई डियर फ्रैंड. पर मुझे आप से माफी मांगनी है, मुझे माफ कर दीजिए प्लीज.’’
‘‘पर किसलिए? तुम किसलिए माफी मांग रही हो नीरजा?’’
‘‘मैं जीना चाहती थी. इसलिए मेरे पास जितना भी वक्त था मैं उसे जीना चाहती थी. खुशीखुशी जीना चाहतीथी. इसीलिए मैं ने आप का कुछ चुरा लिया था.’’
‘‘चुरा लिया था, पर तुम ने मेरा क्या चुरा लिया था?’’
‘‘मैं ने आप के शांत जीवन से अपने लिए कुछ खुशियों के पल चुरा लिए थे, मिस्टर विशाल. आप के पूरे जीवन के लिए एक बड़ा सा शून्य छोड़ दिया है. आई एम सौरी सर. मुझे माफ कर दीजिए सर.’’
‘‘माफी की कोई बात है ही नहीं नीरजा, क्योंकि मैं कभी भी तुम से नाराज हो ही नहीं सकता. अब मैं समझ गया. मेरी नीरजा बहुतबहुत बहादुर है, वैरी ब्रेव.’’
‘‘इसीलिए मैं आप को अपने घर नहीं ले जा सकती थी. अगर आप मम्मी से मिलते, तो मम्मी आप को सबकुछ सचसच बता देतीं. अच्छा, एक बात बताइए?’’
‘‘पूछो नीरजा, कुछ भी पूछो?’’
‘‘मैं ने बीसियों बार आप को माई स्मार्ट बौयफ्रैंड कहा है. कहा है न, बताइए?’’
‘‘बिलकुल कहा है.’’
‘‘पर आप ने एक बार भी मुझे माई गर्लफ्रैंड नहीं कहा है. कहा है?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘तो कहिए न प्लीज. मैं सुन रही हूं. मैं इस पल को भी जीना चाहती हूं.’’
उन्होंने उस की हथेली अपने हाथों में ले ली व भरे गले से कहा, ‘‘दिस इज फैक्ट नीरजा. यू आर माई
स्वीट लिटिल गर्लफ्रैंड ऐंड आई लव यू वैरीवैरी मच.’’उस ने उन की हथेली को चूम लिया.
नीरजा की आंखें मुंदने लगीं. जबान लड़खड़ाने लगी. नर्स जो नर्सिंग काउंटर से देख रही थी, तुरंत आई.‘‘आप प्लीज तुरंत बाहर जाइए. सिस्टर डाक्टर को कौल करो, अर्जेंट.’’
वे धीरेधीरे बाहर आ कर किनारे पड़ी बैंच पर बैठ गए.
डाक्टर मित्रा के आने की नौबत नहीं आने पाई. उस के पहले ही नीरजा ने आखिरी सांस ले ली.
नीरजा का जिस्म पहले घर लाया गया. वे अंतिम संस्कार तक रुके. गाड़ी घर की तरफ मोड़ते समय उन के कानों में नीरजा के आखिरी शब्द गूंजते रहे, ‘मैं ने आप के शांत जीवन से अपने लिए खुशियों के कुछ पल चुरा लिए हैं.’
‘तुम ने मेरे जीवन में शून्य नहीं छोड़ा है नीरजा,’ वे बुदबुदा पड़े, ‘मेरे जीवन के किसी खाली कोने में अपनी मुसकराहटों व खिलखिलाहटों के रंग भी भरे हैं. मैं तुम्हें माफ नहीं कर सकता, कभी नहीं.
2-3 लोग और थे. पार्टी जोरशोर से चल रही थी. उन्होंने भी एक सौफ्ट डिं्रक ले लिया. वह उन से 2 साल जूनियर था. उन्हें सर कहता था. मौका देख कर उन्होंने चर्चा छेड़ी.
‘‘यार दोस्त, तुम से एक छोटा सा काम था?’’
‘‘हुक्म कीजिए, सर. आज तक तो कोई काम कहा नहीं आप ने?’’
‘‘कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. दरअसल, तुम्हारे विभाग के यानी फिशरीज के हैड औफिस में लाइब्रेरी है. उस में वैकेंसी आई है. तुम्हें पता है क्या?’’
‘‘मुझे तो लाइब्रेरी है, यह भी नहीं मालूम. बहरहाल, होगी लाइब्रेरी. आप का कोई कैंडीडेट है क्या?’’
‘‘हां, एक लड़की है. मेरे परिचित हैं, उन की लड़की है.’’
‘‘तो प्रौब्लम क्या है. जब इंटरव्यू होगा तो मुझे याद दिला दीजिएगा. डिटेल ले कर अपने पास रख लीजिए.’’
‘‘देख लेना भाई जरा. बड़ी नीडी लड़की है. वैसे, डिजर्विंग भी है. एमलिब कर रही है.’’
‘‘देखना क्या है, वैसे तो सुपरिटैंडैंट लेवल के लोग ऐसा इंटरव्यू लेते हैं पर मैं कह दूंगा. समझ लीजिए, हो गया सर. और अगर लड़की ज्यादा खूबसूरत हो तो कहिएगा मुझ से मिल लेगी,’’ जौइंट सैक्रेटरी अभिमन्यू ने बाईं आंख दबाई.
‘‘अरे नहीं यार, मेरे बड़े खास हैं. बड़ी सोबर फैमिली है. पर एक बात बताओ, तुम इतनी गर्लफ्रैंड्स मेनटेन कैसे कर लेते हो?’’
‘‘बस हो जाता है सब. हैल्थ सप्लीमैंट्स जिंदाबाद. सप्लीमैंट्स में बड़ी ताकत होती है. आप को मेरी किसी सलाह की जरूरत हो तो निसंकोच बताइएगा,’’ अभिमन्यू मुसकरा रहा था. फिर धीरे से बोला, ‘‘होटलवोटल की जरूरत हो, तो वह भी बताइगा. मेरे बहुत परिचित हैं.’’
‘‘क्या बात करते हो यार. मैं ग्रैंड फादर बन चुका हूं.’’
‘‘इस से क्या होता है सर. वैसे तो मैं भी बाबानाना बन चुका हूं.’’
‘‘अच्छा याद दिलाया. पंकज कहां है आजकल?’’
‘‘अलीगढ़ में डीएम है. और सावित्री सीनियर पैथोलौजिस्ट बन चुकी है.’’
‘‘बढि़या, बहुत बढि़या भाई अभिमन्यू.’’
चलते को समय भी उन्होंने अभिमन्यू को रिमाइंड करा दिया. इस बार वे 10 दिनों बाद लाइब्रेरी गए. काउंटर पर नीरजा ही बैठी थी. उस समय काउंटर पर मात्र एक लड़का ही किताब इश्यू करा रहा था. वह जब चला गया तो उन्होंने कहा, ‘‘बधाई हो नीरजा. तुम्हारा काम हो गया.’’
‘‘क्या…’’ उस का चेहरा चमक गया, ‘‘आप की बात हो गई क्या?’’
‘‘और क्या, तुम ने मुझे समझ क्या रखा है.’’
‘‘आप किताबें देखिए, तब तक मैं एकाध घंटे की छुट्टी ले लेती हूं. बाहर चलते हैं, वहीं ठीक से बात करते हैं.’’
‘‘ठीक है. ये लो, किताबें जमा कर लो.’’
उसे किताबें दे कर वे वापस हौल में आ गए व इश्यू कराने के लिए किताबें देखने लगे. नीरजा के चेहरे पर वैसी ही खुशी व चमक आई थी जैसी वे देखना चाहते थे. जल्द ही उन्होंने किताबें देख लीं.
‘‘आइए सर, लाइए आप की किताबें, मैं इश्यू करा दूं.’’
नीरजा आ गईर् थी. काउंटर पर दूसरी लड़की बैठ गई थी. नीरजा ने किताबें इश्यू कराईं व उन के साथ ही बाहर आ गई. उन्होंने गाड़ी का दरवाजा खोला व वह अपनी साइड का दरवाजा खोल कर अंदर बैठ गई.
‘‘चलिए, कोल्ड कौफी पीते हुए बताइगा क्या बात हुई है?’’
‘‘कोल्ड कौफी नहीं. आज तो मैं तुम्हें हौट कौफी के साथ प्याज के पकौड़े खिलाऊंगा. तुम्हें पसंद हैं.’’
‘‘प्याज के पकौड़े तो मुझे बेहद पसंद हैं. बिलकुल चलेगा.’’
वे फिर अंबर कैफे पर आ गए. उन्होंने गाड़ी वहीं पर लगाई. हौर्न के जवाब में तुरंत लड़का आ गया.
‘‘2 कौफी और 2 प्लेट पकौड़े प्याज के. पर एकदम गरम.’’
‘‘बिलकुल सर, अभी लाया,’’ लड़का चला गया.
‘‘जौइंट सैक्रेटरी कहां मिले आप को. क्या आप को उन के घर जाना पड़ा?’’
‘‘अरे नहीं, वह अभी 3-4 दिन पहले क्लब में ही मिल गया था. बस, मैं ने उस से कह दिया.’’
‘‘आप क्लब जाते हैं, क्या होता है वहां?’’
‘‘कुछ नहीं. लोग अपना टाइम पास करते हैं. थोड़ा रिलैक्स होते हैं. कुछ लोग बिलियर्ड्स, कार्ड या चैस खेलते हैं. आउटडोर में बैडमिंटन या टेबिल टैनिस खेलते हैं. बैठते हैं, खातेपीते हैं व फिर घर चले जाते हैं.’’
‘‘लोग पीते भी हैं क्या?’’
‘‘पीने वाले पीते भी हैं. वहां इंतजाम तो रहता ही है.’’
‘‘आप भी पीते हैं वहां?’’
‘‘नहीं, मैं नहीं पीता,’’ उन्होंने झूठ बोला.
‘‘फिर क्या हुआ?’’
‘‘फिर…फिर क्या. जौइंट सैक्रेटरी अभिमन्यू ने मुझे देखा तो मेरे पास चला आया. उस पर मेरा बड़ा एहसान है. समझो, एकदम मेरा चेला है. कहने लगा, इतने दिनों से मिला क्यों नहीं. वाइफ के बारे में पूछा. दोनों लड़कों के बारे में पूछा. फिर मैं ने तुम्हारे काम का जिक्र कर दिया.’’
‘‘क्या कहा उन से आप ने? ठीक से बताइए न.’’
‘‘मैं ने कहा एक सुंदर सी लड़की है. उस के बाल व उस की आंखें दुनिया में सब से सुंदर हैं. उस हिरनी जैसी आंखों वाली लड़की ने मछली वाले विभाग में लाइब्रेरियन की पोस्ट के लिए अप्लाई किया है.’’
‘‘आप मजाक कर रहे हैं न.’’ उस की बड़ीबड़ी आंखें उन के चेहरे पर टिकी हुई थीं, ‘‘आप ने यह सब नहीं कहा न?’’
‘‘हां, मैं मजाक कर रहा था. यह सब कोई कहने वाली बातें हैं क्या. मैं ने उसे बताया कि फिशरीज में वैकेंसी है. उस में मेरी एक करीबी लड़की ने अप्लाई किया है. मैं ने उसे इंटरव्यू में देख लेने को कहा. उस ने मुझे निश्ंिचत किया है कि वह देख लेगा. उस के लिए यह कोई बड़ा काम नहीं है.’’
‘‘मैं आप की करीबी वाली लड़की हूं?’’ उस ने गुस्से से आंखें चढ़ाईं.
‘‘अरे भाई, कुछ तो कहना पड़ता है न. फिर इतनी करीब तो बैठी हो आज भी. करीबी वाली हुई कि नहीं.’’
‘‘जाइए. ऐसे होता है क्या. करीब बैठने का मतलब करीबी लड़की नहीं होता है. पर अब तो मैं आप की करीबी लड़की हूं ही. कहिए तो एक बार मैं भी उन से मिल लूं?’’
‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ उन्होंने जोर से कहा व उत्तेजनावश उस का हाथ जोर से पकड़ लिया, ‘‘तुम उस से बिलकुल नहीं मिलोगी.’’
‘‘नहीं मिलूंगी बाबा.’’ उस ने अपना हाथ न छुड़ाया, ‘‘पर इस में ऐसा क्या हुआ जो आप इतना गुस्सा हो गए?’’
‘‘तुम अभिमन्यू जैसे लोगों को जानती नहीं हो. जहां कोई सुंदर लड़की देखी नहीं, कि डोरे डालने लगते हैं. वह तुम्हें फंसाने की कोशिश करेगा. वह कुछ भी कर सकता है,’’ उन्होंने खुद ही उस का हाथ छोड़ दिया.
‘‘डोरे तो आप भी डाल रहे हैं मिस्टर विशाल. आप भी तो फंसाने की कोशिश ही कर रहे हैं न?’’ उस के चेहरे पर गाढ़ी मुसकान थी, ‘‘क्यों? सही है न?’’
‘‘एकदम गलत है. मैं तो सिर्फ तुम्हारी मदद कर रहा हूं.’’
‘‘क्यों कर रहे हैं मेरी मदद?’’
‘‘इंसानियत के नाते. तुम तो वकील की तरह जिरह कर रही हो.’’
‘‘ठीक है. करिए मदद इंसानियत के नाते. मुझे अच्छा लगता है. अब कब कहिएगा उस अभिमन्यू, उस बदमाश से?’’
‘‘इंटरव्यू से 1-2 दिन पहले कह दूंगा उस से. वह करा देगा. तुम बेफिक्र रहो. तुम्हारा सेलैक्शन हो जाएगा.’’
‘‘इंटरव्यू तो डेढ़दो महीने बाद ही होगा. तब तक तो वे भूल भी जाएंगे?’’
‘‘भूल तो जाएंगे ही. पर मैं याद जो दिला दूंगा.’’
‘‘आप ने मेरे लिए बड़ी तकलीफ की है,’’ अब उस ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘थैक्यू सर.’’
‘‘कोई बात नहीं,’’ उन्होंने उस का हाथ दबा दिया, ‘‘इंसानियत के नाते.’’ दोनों जोर से हंस पड़े.
‘‘अब मैं चलूं सर,’’ उस ने हाथ खींच लिया.
‘‘हां चलो,’’ उन्होंने वेटर को इशारा किया, ‘‘तुम ने अपने मातापिता के बारे में नहीं बताया?’’
‘‘मेरे फादर नहीं हैं. 2 साल पहले एक ऐक्सिडैंट में वे नहीं रहे. मां व छोटा भाई हैं. मां बीमार रहती हैं. उन्हें गठिया है. छोटा भाई हाईस्कूल में है. रुपएपैसे पिताजी ठीकठाक छोड़ गए हैं. पर हम पूंजी ही खा रहे हैं. मकान अपना नहीं है, किराए पर हैं. मेरी नौकरी लग जाती, तो अच्छा रहता,’’ नीरजा ने बताया.
‘‘नौकरी तो अब लग ही जाएगी. पिताजी के बारे में जान कर दुख हुआ. आई एम सौरी, नीरजा.’’
वह कुछ न बोली. वेटर बिल के रुपए व बरतन उठा कर ले गया. उन्होंने गाड़ी रिवर्स की व नीरजा को लाइब्रेरी के थोड़ा पहले उतार दिया.
घर पहुंच कर उन्होंने मुहर ढूंढ़ ली. उन के औफिस वाले बैग में ही मिल गई. अपनी स्टडी वाले छोटे रूम में आ कर उन्होंने सभी टैस्टिमोनियल्स पर मुहर लगा कर साइन भी कर दिए. ऊपर अटैस्ट भी लिख दिया. फिर पता नहीं क्या मन में आया कि उस की अप्लीकेशन स्कैन कर ली. कलर पिं्रटर व स्कैनर उन के पास था ही. अप्लीकेशन का स्कैन आ गया व नीरजा की फोटो भी बढि़या स्कैन हो गई. उन्होंने कैंची से फोटो काट ली व उलटी कर के पर्स में रख ली. अप्लीकेशन में साइन भी वैरीफाई कर दिए.
दूसरे दिन कुछ समय पहले ही लगभग साढ़े 4 बजे वे लाइब्रेरी पहुंच गए. बाहर सड़क पर ही गाड़ी पार्क कर दी. आज भी उन्होंने टीशर्ट व पैंट पहनी थी पर कलर अलग था. वे रोज सुबह नहाने से पहले दाढ़ी बनाते थे पर आज 2 बार बनाई थी. निकलने से पहले भी दाढ़ी बनाई थी.
ठीक 5 बजे नीरजा लाइब्रेरी से बाहर निकलती दिखाई दी. बाहर निकल कर वह ठिठकी, चारों तरफ देखा. उन की गाड़ी देख कर सीधे उन की तरफ आई. वे गाड़ी में बैठे रहे.
‘‘मेरा काम हुआ?’’ उस ने सीधे पूछा.
‘‘हो गया, आओ बैठो,’’ उन्होंने कहा.
‘‘नहीं, आप फाइल दे दीजिए सर. मुझे देर हो रही है.’’
‘‘लोग देख रहे हैं नीरजा. यह सड़क है. फिर तुम चैक भी तो कर लो न. कहीं छूटा न हो. आओ बैठो.’’ उन्होंने पैसेंजर साइड का दरवाजा खोल दिया. नीरजा वहां 2 क्षण खड़ी रही, फिर घूम कर आ कर बैठ गई व दरवाजा बंद कर लिया. आज उस ने ऊंची एड़ी की सैंडिल पहन रखी थी. उन्होंने इंजन स्टार्ट कर दिया.
उन्हें इंजन स्टार्ट करते देख उस ने नजरें उठाईं, ‘‘कहां ले जा रहे हैं मुझे?’’
‘‘कहीं नहीं, गाड़ी खड़ी रखना ठीक नहीं लगता. अगले चौराहे पर उतर जाना.’’
‘‘मुझे भगा कर तो नहीं ले जा रहे हैं?’’ वह हंस पड़ी.
‘‘मन तो यही कर रहा है,’’ वे भी हंस पड़े, ‘‘पर ऐसा है नहीं. तुम पेपर तो चैक कर लो.’’
‘‘करती हूं,’’ उस ने फाइल खोल ली व एकएक पेपर चैक करने लगी.
‘‘ठीक हैं. बस, एक जगह अटैस्ट लिखना रह गया है. पर कोई बात नहीं है, मैं खुद लिख लूंगी. थैंक्यू सर, आप ने मेरा बड़ा काम कर दिया.’’
‘‘यह अप्लीकेशन तुम फिशरीज डिपार्टमैंट में दे रही हो न?’’
‘‘हां, उन के हैडऔफिस में काफी बड़ी लाइब्रेरी है. उसी की वैकेंसी आई है. 2 पोस्ट हैं. बहुत लोग अप्लाई कर रहे हैं. मेरे साथ के तो सभी कर रहे हैं. सैंट्रल गवर्नमैंट जौब है न. देखिए, क्या होता है.’’
‘‘फिशरीज के जौइंट सैक्रेटरी मेरे अच्छे दोस्त हैं.’’
‘‘अच्छा, वे तो बड़े ऊंचे अफसर हुए.’’
‘‘हां, तुम कहो तो मैं उन से कह सकता हूं.’’
वह कई क्षणों तक उन के चेहरे की तरफ देखती रही. फिर अचानक उन के घुटनों पर हाथ रख कर बोली, ‘‘मेरा यह काम तुम्हें कराना होगा. जौइंट सैक्रेटरी चाहेगा तो यह जौब मुझे जरूर मिल जाएगा. सिर्फ इंटरव्यू ही है. प्लीज, मेरा यह काम करा दो न. मुझे इस जौब की बड़ी जरूरत है.’’ फिर वह जैसे अपने इस आवेग पर झेंप कर सिकुड़ कर बैठ गई. उन के पांव ऐक्सिलरेटर पर थरथरा रहे थे.
‘‘मैं देख लूंगा, डोंट वरी. मैं ने उस के कई काम किए हैं. चौराहा आ गया. तुम्हें उतरना है या आगे चलना है.’’
‘‘चलते रहिए. आई एम सौरी सर. मैं ने आप को तुम कह दिया. माफ कर दीजिए. मैं जोश में आ गई थी.’’
‘‘कोई बात नहीं, नीरजा. अगर तुम्हें अच्छा लगे, तो कह सकती हो. इस में क्या है?’’
‘‘मुझे बहुत अच्छा लगा.’’
‘‘कौफी पियोगी.’’
‘‘क्या?’’
‘‘मैं ने कहा कौफी पीने का मन है क्या. कोल्ड कौफी. आगे अंबर की कौफी शौप है. मुझे उस की कोल्ड कौफी पसंद है.’’
‘‘कोल्ड कौफी तो मुझे भी बहुत पसंद है.’’
‘‘उतरना भी नहीं पड़ेगा, लड़का गाड़ी में ही कौफी वगैरह दे देता है. तो चलते हैं कौफी पीते हैं.’’ वह चुप रही.
अंबर कैफे सड़क पर ही था. सड़क के पीछे सड़क व पटरी के बीच लोहे की रेलिंग लगी थी. उन्होंने गाड़ी लोहे की रेलिंग के साथ लगा दी व हलके से हौर्न बजाया. एक लड़का तुरंत आया.
‘‘यस सर.’’
‘‘2 कोल्ड कौफी. 2 पेस्ट्री भी लाना.’’ लड़का चला गया.
‘‘आप ने पेस्ट्री क्यों मंगवाई है, बात तो कौफी की हुई थी.’’
‘‘कोल्ड कौफी के साथ इन की पेस्ट्री का अलग मजा है.’’
‘‘मैं पेस्ट्री नहीं खाऊंगी, तुम्हीं खाना.’’
‘‘पेस्ट्री तो तुम जरूर खाओगी. पेस्ट्री तुम्हें पसंद जो है.’’
‘‘तुम्हें…आप को, कैसे पता चला?’’
‘‘मैं जानता हूं. तुम जब न कहती हो तो मतलब होता है हां.’’
‘‘इस खयाल में मत रहिएगा मिस्टर विशाल, ऐसा नहीं है.’’ वे मुसकराते रहे.
वेटर कौफी व पेस्ट्री दे गया. नीरजा ने बड़े मन से कौफी पी व पेस्ट्री खाई.
‘‘अच्छा, एक बात तो बताइए,’’ नीरजा ने पेस्ट्री खाते हुए पूछा, ‘‘आप की तो बहुत सी गर्लफ्रैंड्स रही होंगी न?’’
‘‘बहुत सी तो नहीं थीं.’’
‘‘फिर भी?’’
‘‘एकाध तो सभी की होती हैं.’’
‘‘तो हमारा अफेयर चल रहा है क्या?’’
‘‘क्या, यह क्या कह रही हो तुम?’’ वे अचकचा गए.
‘‘नहीं, ऐसे ही तो होता है न. मुलाकात हो गई, बात हो गई, बाहर भी मुलाकात हो गई, गाड़ी पर अकेले घूमवूम भी लिए. कौफीपेस्ट्री भी हो गई. ऐसे ही तो होता है न फिल्मों में.’’
‘‘फिल्मों में होता होगा. ऐसे होता नहीं है. तुम्हें देर हो रही होगी. क्या मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूं.’’
‘‘नहीं, मैं औटो पकड़ूगी.’’
‘‘चलो, मैं तुम्हें औटो तक छोड़ दूं,’’ वे बाहर निकल आए. उन्होंने बिल पेमैंट किया. वे सड़क तक आ गए. तुरंत एक औटो वाला आ गया.
‘‘साहब, चलना है क्या?’’
‘‘हां, जाना है. तुम्हें कहां जाना है नीरजा.’’
‘‘मीरापट्टी रोड.’’
‘‘बैठो.’’
‘‘सर, आप को मेरा वह काम कराना ही होगा. कब बात करेंगे आप जौइंट सैक्रेटरी साहब से. कल ही कर लीजिए न.’’
‘‘अरे, इतनी जल्दी नहीं, अभी तो तुम अप्लीकेशन भेजो. 2-3 दिन तो अप्लीकेशन पहुंचने में ही लग जाएंगे. इसी हफ्ते में बात कर लूंगा.’’
‘‘आप कब लाइब्रेरी आइएगा, सर? बात करते ही आ जाइएगा न.’’
‘‘हां, ठीक है. मैं जल्दी ही आऊंगा. वैसे भी लाइब्रेरी तो आना ही है.’’
‘‘मेरी डिटेल तो आप के पास होगी नहीं, अच्छा होता मैं अप्लीकेशन की एक कौपी आप को दे देती.’’
‘‘मैं ने स्कैन कर लिया है, डिटेल है मेरे पास.’’
‘‘पर फोटो तो अच्छी नहीं आई होगी न.’’
‘‘बहुत अच्छी आई है,’’ वे बेध्यानी में कह गए. वह खिलखिला कर हंस पड़ी.
‘‘कहिए तो अपनी एक फोटो दे ही दूं, मेरे बैग में ही है.’’
‘‘अरे नहीं. मैं क्या करूंगा तुम्हारी फोटो का. फिर स्क्रीन कौपी तो है ही.’’
‘‘करिएगा क्या, देखिएगा,’’ वह तेज मुसकराहट के साथ औटो में जा कर बैठ गई, ‘‘फिर आप के साथ तो ओरिजिनल मैं हूं. हां, मुझे देखिए. फोटो से क्या होगा.’’
औटो आगे बढ़ गया.
वे आ कर कार में बैठ गए. बाप रे, न सिर्फ तेज लड़की है, बल्कि वाचाल भी है. थोड़ा बचपना भी है. अल्हड़ तो है ही. उन्होंने गाड़ी घर की तरफ मोड़ दी.
जौइंट सैक्रेटरी से उन की मुलाकात तीसरे दिन ही क्लब में हो गई. वह बड़ा खुश था. उस का प्रमोशन हो गया था.
‘‘गुडमौर्निंग सर,’’ वे चौंक कर पीछे मुड़े.
वही लड़की पीछे खड़ी मुसकरा रही थी. वे एक क्षण के लिए ताज्जुब में पड़ गए. वह आज और भी सुंदर, और भी दिलकश लग रही थी. हरे रंग के सूट में उस की खूबसूरती और भी खिल रही थी. काउंटर पर बैठी हुई वह आधा ही दिखाई देती थी पर इस समय वह पूर्णरूप से उन के सामने थी. उस के पैरों में पतली मैचिंग चप्पलें थीं.
‘‘गुडमौर्निंग, बल्कि वैरी गुडमौर्निंग,’’ उन्होंने अपने को संभाल लिया. वे वाकई चौंक गए थे.
‘‘आय एम सौरी सर, मुझे पीछे से आवाज नहीं देनी चाहिए थी. आय एम रियली सौरी.’’
‘‘नहीं, कोई बात नहीं. आज आप की ड्यूटी काउंटर पर नहीं है क्या?’’
‘‘नहीं, यहां का कैटलौग बड़ा अव्यवस्थित है. वही ठीक करने के लिए कहा गया है. आप किस तरह की किताबें पढ़ते हैं सर?’’
‘‘नौरमली, मैं हर विषय पर पुस्तकें पढ़ लेता हूं. पर मेरी खास पसंद सोशल राइटिंग है.’’
‘‘आज लगता है अभी तक आप को कोई किताब पसंद नहीं आई है. क्या मैं आप की कोई मदद करूं?’’
‘‘नहींनहीं, मैं कर लूंगा. फिर तुम्हें अपना भी तो काम करना है, डिस्टर्ब होगा. माफ करना, मैं आप को तुम्हें कह गया.’’
‘‘ठीक तो है. आप को मुझे तुम ही कहना चाहिए. और मुझे क्या डिस्टर्ब होगा. कैटलौग का एक दिन का काम तो है नहीं. दसियों हजार किताबें हैं. पूरे कैटलौग को चैक करना व फिर मिसिंग को चढ़ाना एक आदमी का काम नहीं है. लाइब्रेरियन भी सिर्फ खानापूर्ति करते हैं. कहने को हो गया कि किसी को कैटलौग के काम में लगाया है.’’
उस का चेहरा थोड़ा तमतमा गया था. उस का तमतमाया चेहरा और भी अच्छा लग रहा था. वे किनारे की शैल्फ के पास खड़े हो कर बातें कर रहे थे व धीरेधीरे बोल रहे थे जिस से दूसरे लोगों को असुविधा न हो.
‘‘मैं तो कैटलौग के पास कभी गया ही नहीं. सीधे शैल्फ से ही किताबें सिलैक्ट कर लेता हूं.’’
‘‘आप क्या किसी सरकारी विभाग में हैं?’’
‘‘हां.’’
‘‘गजेटैड अफसर होंगे आप तो?’’
‘‘कह सकती हो, बात क्या है?’’
‘‘मुझे आप से एक काम है. इसीलिए आप को देखा तो आप के पास आ गई. क्या आप मेरा एक काम कर देंगे?’’ उस ने अपनी मुसकराहट बिखेरी.
‘‘बोलो, क्या काम है? जरूर कर दूंगा.’’ उन को अंदर से उतावलापन महसूस हुआ.
‘‘मुझे अपने कुछ टैस्टिमोनियल्स अटैस्ट कराने हैं. मुझे एक अच्छी जगह अप्लाई करना है. क्या आप अटैस्ट
कर देंगे.’’
‘‘और कहीं क्यों अप्लाई कर रही हो? यहां तो जौब कर ही रही हो न?’’
‘‘नहीं, मैं यहां जौब नहीं कर रही हूं. मैं यहां ट्रेनिंग कर रही हूं. मैं एमलिब कर रही हूं. हमें एक साल लाइब्रेरी में काम करना पड़ता है. तो आप अटैस्ट कर देंगे न.’’
‘‘अटैस्ट तो कर देता, पर एक प्रौब्लम है.’’
‘‘क्या प्रौब्लम है? क्या आप गजेटैड अफसर नहीं हैं?’’
‘‘नहीं, गजेटैड अफसर तो था पर, पर…अच्छा तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘मेरा नाम नीरजा है. नीरजा टंडन. आप का नाम क्या है?’’
‘‘तुम मुझे विशाल अंकल कह सकती हो.’’
‘‘अंकल, तो मैं कभी न कहूं आप को.’’
‘‘तो तुम विशाल कह सकती हो,’’ उन्हें अंदर से खुशी महसूस हुई.
‘‘पर प्रौब्लम क्या है, यह तो बताइए.’’
‘‘देखो नीरजा, मैं रिटायर हो चुका हूं.’’
‘‘रिटायर…आप…हो ही नहीं सकता. रिटायर तो 60 साल की उम्र में होते
हैं न? क्या आप को जल्दी रिटायर कर दिया गया?’’
‘‘नहीं, मैं समय पर ही रिटायर हुआ हूं. अभी पिछले साल ही रिटायर हुआ हूं.’’
‘‘पर आप की उम्र तो 60 की लगती ही नहीं.’’
‘‘कितनी लगती है?’’ अब वे मुसकरा पड़े. नीरजा ने उन्हें ध्यान से देखा, ऊपर से नीचे तक देखा. फिर बोली, ‘‘50, बस, इस से ज्यादा नहीं.’’
‘‘पर मैं तो समझता था कि तुम यहां नौकरी करती हो. क्या ट्रेनिंग में कुछ पैसा भी देते हैं?’’
‘‘हां, स्टाइपैंड देते हैं. पर ज्यादा नहीं. मैं तो सोच रही थी कि आप से मेरा काम हो जाएगा.’’
‘‘अरे, मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’
‘‘सच कह रहे हैं,’’ उस ने धीरेधीरे अपनी निगाह ऊपर उठाई व उन के चेहरे की तरफ देखा, ‘‘क्या सच ही.’’
‘‘बिलकुल सच. मेरे कई साथी हैं. मैं किसी से भी अटैस्ट करा दूंगा. देखूं, कौन से पेपर हैं.’’
‘‘अभी लाई. मेरे बैग में औफिस में हैं. आप पूरी फाइल ही ले लीजिएगा. यहां किसी को पता नहीं चलना चाहिए.’’
वह जल्दी से औफिस की ओर चल दी. उन को अंदर से बड़ा अच्छा लग रहा था. उन्होंने जल्दी से किताबें देखीं व उसी शैल्फ से 3 किताबें फाइनल कर लीं. तभी नीरजा वापस आ गई. उस के हाथ में एक औफिस फाइल थी.
‘‘इसी में सारे टैस्टिमोनियल्स हैं. जिन्हें अटैस्ट करना है उन में फ्लैग लगे हैं. इस में मेरी अप्लीकेशन भी है. प्लीज मेरा साइन भी वैरीफाई करा दीजिएगा.’’
‘‘ठीक है, ओरिजिनल कहां हैं.’’
‘‘ओरिजिनल तो यहां नहीं हैं. क्या नहीं हो पाएगा? ये सभी ओरिजिनल की फोटोकौपीज हैं.’’
‘‘कोई बात नहीं. मैं कह दूंगा ओरिजिनल मैं ने देख लिए हैं. फिर फोटोकौपी भी तो ओरिजिनल से ही होती है न.’’
‘‘थैंक्यू सर, आप का बड़ा एहसान होगा. लगता है आप ने बुक्स फाइनल कर ली हैं. आप बैठिए, मैं बुक्स इश्यू करा लाती हूं. कार्ड भी दे दीजिए.’’
उन्होंने कार्ड व पुस्तकें उसे दे दीं. वह इश्यू कराने के लिए चली गई. वे फाइल हाथ में लिए बुकशैल्फ के पास खड़े किताबें देखते रहे. उन के मन में नीरजा का कहा गूंजता रहा. उस ने क्यों कहा कि अंकल तो मैं कभी न कहूं आप को. चलो अगर वह उसे 50 का भी मानती है तो अंकल लायक बड़ा तो उसे मानना ही चाहिए. उन्हें थोड़ा गर्व भी महसूस हुआ. ऐसे ही नहीं, उन के दोस्त पहले उन्हें देवानंद कह कर बुलाया करते थे. नीरजा ने कहा था, फाइल में उस की अप्लीकेशन भी है. उन्होंने फाइल खोल कर देखी. उन का मन खुश हो गया. अप्लीकेशन में उस का प्यारा सा फोटो लगा हुआ था.
‘‘क्या देख रहे हैं?’’
उन्होंने ध्यान नहीं दिया था, नीरजा वापस आ चुकी थी, ‘‘मेरा फोटो देख रहे हैं न. देखिए, जीभर कर देखिए. बल्कि कहिएगा तो अपना एक फोटो अलग से दे दूंगी.’’
‘‘अप्लीकेशन में छोटा फोटो लगाते हैं, तुम ने पासपोर्ट साइज लगा रखा है. वही देख रहा था.’’
‘‘पासपोर्ट साइज ही मांगा है. ये लीजिए अपनी किताबें व टोकन. तो कब आऊं, मैं आप के घर?’’
‘‘घर…वो किस…किसलिए?’’
‘‘अरे, पेपर लेने के लिए.’’ नीरजा शरारत से मुसकरा पड़ी, ‘‘आप तो घबरा गए. अप्लाई भी तो करना है. कब अटैस्ट कराएंगे?’’
‘‘अटैस्ट तो मैं आज ही करा लूंगा. पर मेरा घर तो बहुत दूर है. ऐसा है, मुझे
2-3 दिनों में इधर आना है. मैं ही ला कर दे दूंगा.’’
‘‘आप के पास कार है न. मैं ने देखी है. किसी दिन उस में मुझे भी घुमाइए न.’’
‘‘जब कहो. पर आज मैं चलता हूं. तुम तो शाम को ही निकल पाती होगी?’’
‘‘मैं ठीक 5 बजे निकल जाती हूं. आप ऐसा कीजिएगा, आप परसों 5 बजे ही आइएगा. गाड़ी सड़क पर ही पार्क कर दीजिएगा. मैं वहीं आप से पेपर ले लूंगी. परसों जरूर आइएगा.’’
‘‘पक्का,’’ कह कर उन्होंने किताबें उठा लीं व हाथ हिला कर बाहर आ गए. गाड़ी का दरवाजा खोल कर किताबें व फाइल पीछे की सीट पर रख कर ड्राइविंग सीट पर बैठे व रूमाल निकाल कर पसीना पोंछा. नीरजा एक तेज नशे की तरह उन के व्यक्तित्व पर छाती चली जा रही थी. अटैस्ट करने का क्या है, उन्होंने गाड़ी स्टार्ट करते हुए सोचा. एडीशनल सैक्रेटरी की मुहरें घर पर पड़ी ही रहती थीं. अभी भी पड़ी हैं. मुहर लगा कर अटैस्ट कर साइन कर देंगे. बस, हो गया काम. किसी को क्या मालूम कब किया था.
लाइब्रेरी के इश्यू काउंटर पर बैठी उस सुंदर सी लड़की ने उन की तरफ मुसकरा कर देखा व बोली, ‘‘ये किताबें इश्यू करनी हैं या जमा करनी हैं.’’
वे भी मुसकरा पड़े, ‘‘इश्यू करनी हैं, प्लीज.’’
उस ने झटका दे कर अपने माथे पर आई बालों की लट को पीछे किया व किताबें अपनी तरफ खींच लीं.
3 किताबें थीं. उन्होंने अपने कार्ड तीनों किताबों के कवर के नीचे लगा दिए थे ताकि इश्यू करने में आसानी हो. लड़की ने अपने सामने पड़ा मोटा सा रजिस्टर खींच लिया व किताबों की एंट्री करने लगी. रजिस्टर व किताबों में एंट्री कर के किताबें उन की तरफ बढ़ा दीं. वे एकटक उसे देख रहे थे. उस ने किताब पर उंगली टकटकाई.
‘‘ओ यस,’’ कहते उन्होंने किताबें उठा लीं व वापस मुड़े.
‘‘अरे, टोकन तो ले लीजिए,’’ उस ने आवाज दी.
‘‘आय एम सौरी,’’ उन्होंने घूम कर उस की हथेली से टोकन उठा लिया, ‘‘मैं किसी ध्यान में था.’’
‘‘नो प्रौब्लम, यू आर औलवेज वैलकम सर,’’ तीखी मुसकान से उस लड़की ने कहा.
‘‘आप यहां नई आई हैं क्या?’’ उन से पूछे बिना न रहा गया, ‘‘मैं ने आप को पहले नहीं देखा.’’
‘‘जब पहले नहीं देखा तो नई ही हूं,’’ वह खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘मैं पहले पब्लिक लाइब्रेरी में थी, आज ही यहां आई हूं.’’
उस की हंसी पूरे इश्यू ऐंड डिपौजिट रूम के काउंटर, फर्नीचर, खिड़कियों में भर गई.
‘‘थैंक्यू,’’ कह कर वे रूम के बाहर निकल आए. बाहर के काउंटर पर किताबें चैक करा कर व टोकन सौंप कर वे लाइब्रेरी से बाहर आ गए व साइड में पार्क की गई अपनी कार के दरवाजे को रिमोट से खोल कर सीट पर बैठते हुए अपने माथे को हाथ से दबाया, ‘लड़की वाकई बड़ी खूबसूरत व तेज है भाई.’
लड़की की उम्र मुश्किल से 23-24 वर्ष की रही होगी. रंग गोरा, गुलाबी था. नाकनक्श जरा से तीखे थे. बाल घने व सीधे थे. बड़ीबड़ी आंखों की पुतलियां एकदम काली थीं व आंखें गहरी थीं. ऊंचे काउंटर पर बैठी वह लड़की उन्हें आकर्षक लगी थी.
वे कम उम्र के नौजवान नहीं थे. उन की उम्र 60 वर्ष की हो चुकी थी. अभी पिछले वर्ष ही वे अपनी 40 वर्ष की नौकरी पूरी कर के रिटायर हुए थे. एक सरकारी विभाग में उन का ओहदा एडीशनल सैक्रेटरी के स्तर का था. हालांकि उन्होंने अपनी नौकरी क्लर्क से शुरू की थी लेकिन सफलता की सीढि़यां बड़ी तेजी से चढ़ी थीं. औफिसर ग्रेड में तो वे 30 के पहले ही आ गए थे. वे बड़े मेहनती पर मस्तमौला टाइप के आदमी थे. पढ़नेलिखने का शौक उन्हें पहले से ही रहा था. वे अपने समय में आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक रहे थे. उन का रंग गोराचिट्टा था. कद भी अच्छा था. 5 फुट 10 इंच.
बचपन में गांव में पिताजी के निर्देश पर अखाड़े में की गई मेहनत ने उन का साथ ताउम्र दिया था. अभी भी सुबह आधा घंटा व्यायाम करने के कारण जिस्म चुस्त था. वे शुरू से ही पौष्टिक भोजन ही करते रहे. जीवनचर्या अनुशासित रही. कपड़े का चयन उन का हमेशा यूनीक हुआ करता था. इसी कारण उन के दोस्त कहा करते थे, ‘यार विशाल, तुम तो एकदम देवानंद लगते हो.’
विशाल की शादी 26 वर्ष की आयु में हुई थी. उन की पत्नी माधुरी भी कम खूबसूरत नहीं थी. वह उन से 2 वर्ष छोटी थी पर अब उम्र के साथ स्थूल हो गई थी. उस को उम्रभर मीठे का शौक रहा. चौकलेट व आइसक्रीम उस की कमजोरी रही. सो, वजन बढ़ना लाजिमी था. गनीमत थी उसे ब्लडप्रैशर या शुगर जैसी कोई बीमारी नहीं हुई थी.
उन के 2 पुत्र थे. पुत्री कोई नहीं थी. दोनों पुत्र इंजीनियर थे. रिटायरमैंट से पहले ही दोनों पुत्रों के विवाह कर के
वे अपनी जिम्मेदारियों से फ्री हो गए
थे. दोनों लड़के व बहुएं विदेश में थे. बड़ा वाला बेटा अमेरिका में व छोटा कनाडा में.
घर पहुंचतेपहुंचते वे उस लाइब्रेरी वाली लड़की को भूल चुके थे. पर कार की पिछली सीट से किताबें उठाते हुए बड़ी तेजी से उस की याद आई, पर उन्होंने मुसकरा कर सिर झटक दिया व अंदर की तरफ बढ़ गए. सामने ड्राइंगरूम में ही माधुरी बैठी कोई मैगजीन देख रही थी.
‘‘आ गए,’’ माधुरी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘कहां गए थे मटरगश्ती करने शशिकपूर.’’ वह उन्हें शुरू से ही शशिकपूर कहती थी. अभिनेता शशिकपूर उस का फेवरिट जो था.
‘‘आज तो लाइब्रेरी गया था,’’ उन्होंने कहा.
‘‘लाइब्रेरी में कहीं मटरगश्ती होती है क्या?’’
‘‘तुम को कैसे पता चल जाता है भई. आज तो सच में लाइब्रेरी में मटरगश्ती करने गया था. बड़ी खूबसूरतखूबसूरत लड़कियां होती हैं वहां. मजा आ जाता है.’’
‘‘चलो मूर्ख मत बनाओ, खाना लगा देती हूं, खा लो.’’
‘‘लाइब्रेरी के पहले सरला आंटी के यहां चला गया था. वे तो करीबकरीब बैडरिडेन हो गई हैं. अंकल परेशान थे.’’
‘‘चलो यह अच्छा किया,’’ माधुरी उठ गई, ‘‘सोचती हूं मैं भी किसी दिन उन्हें देख आऊं.’’
‘‘चलो न, अगले हफ्ते ही चलते हैं,’’ कह कर वे कमरे में कपड़े बदलने लगे.
यह मकान उन्होंने करीब 10 वर्ष पहले बनवाया था. जमीन तो पहले की ली हुई थी. 3 कमरे व हौल नीचे थे, ऊपर एक कमरा बनवाया था. उस के ऊपर खुली छत थी व सामने 15 फुट का बगीचा था. गाड़ी खड़ी करने को पोर्टिको भी था. मकान उन्होंने बड़े शौक से बनवाया था. माधुरी मकान को रखती भी बड़े सलीके से थी. उस से खुद तो ज्यादा मेहनत नहीं होती थी पर झाड़ू, डस्ंिटग के लिए कामवाली लगी थी. हौल में पड़ा सोफा व 2 बुकशैल्फ शानदार व चमकदार थीं. घर में रहने वाले वे 2 ही थे. लड़के तो बाहर ही थे. हां, 2 साल में एकबार वे साथसाथ आने का प्रोग्राम बनाते थे. तब घर में पूरी रौनक हो जाती थी.
बड़े लड़के के एक बेटी थी. छोटे बेटे के अभी कोईर् संतान नहीं थी. वे फैमिली प्लानिंग कर रहे थे. वे जब आते थे तो पूरे घर में तूफान सा आ जाता था. रुपएपैसे की कोई कमी नहीं थी. रिटायरमैंट के बाद पीएफ व ग्रेच्युटी की पूरी रकम बैंक में पड़ी थी. उन की पैंशन भी अच्छीखासी थी. बेटे भी कुछ भेजते रहते थे. घर में खाना बनाने का काम माधुरी खुद ही करती थी. बाहर की मार्केटिंग व सब्जी वगैरह लाने का काम विशाल खुद करते थे. 2 ही तो लोग थे, काम ही कितना था.
वे आमतौर पर 15 दिनों में लाइब्रेरी की किताबें पढ़ लिया करते थे. दिन में भी पढ़ते थे, रात में तो पढ़े बिना उन्हें
नींद ही नहीं आती थी. करीब 15 दिनों के बाद उन्होंने लाइब्रेरी जाने का
प्रोग्राम बनाया.
गरमी के दिनों में वे टीशर्ट ही पहना करते थे. आज भी उन्होंने बड़े जतन से हलके नीले रंग की टीशर्ट व गाढ़े नीले रंग का फिट पैंट पहना था. आंखों पर फोटोक्रोमिक लैंस का चश्मा भी लगा लिया था. हालांकि चश्मे का नंबर जीरो था. आराम से ड्राइविंग करते हुए वे लाइब्रेरी पहुंच गए. वे अनजाने में ही हलकेहलके सीटी बजा रहे थे. कार से उतरने के पहले हलका सैंट भी स्प्रे कर लिया था. सब से पहले उन्हें इश्यू व डिपौजिट काउंटर या रूम में ही जाना था.
उन का दिल धक से रह गया. आज वह लड़की काउंटर पर नहीं थी. उस की जगह कोई और लड़की काउंटर पर बैठी किताबें इश्यू व जमा कर रही थी. जब उन का नंबर आया तो उस ने सामान्यभाव से उन की किताबें जमा कर के उन के तीनों कार्ड उन्हें दे दिए.
क्या हो गया उस लड़की को. कहीं किसी और लाइब्रेरी में ट्रांसफर तो
नहीं हो गया. पर
इतनी जल्दीजल्दी तो ट्रांसफर होता नहीं है. जरूर तबीयत खराब हो गई होगी. उन्हें तो उस का नाम भी नहीं मालूम वरना किसी से पूछ ही लेते. उन की उम्र को देखते हुए कोई कुछ सोचता भी नहीं. यही सब सोचते हुए वे एक शैल्फ से दूसरी शैल्फ में लगी किताबें देखते रहे. आज उन से अपनी मनपसंद किताबें छांटते नहीं बन पा रहा था.