लेखक- शोभा बंसल
यह सब क्या हो रहा था? लगता है, मैं घंटाभर यों ही वहां बैठी रही. पैट्रिक की बहुत मिन्नत के बाद मैं ने दरवाजा खोला और हम दोनों अपनेअपने साथ हुए हादसे के लिए घंटेभर आंसू बहाते रहे.
पैट्रिक ने वादा करते हुए कहा कि वह मजदूरी कर लेगा, पर दोबारा ऐसा गंदा काम नहीं करेगा. किस्मत अच्छी थी कि मुझे फिर से ट्यूशन मिल गई और एक प्राइवेट स्कूल में कम तनख्वाह पर नौकरी भी. सोचा, अब मैं कमाऊंगी और पैट्रिक अपने फिल्मी कैरियर पर ध्यान देगा. जैसा कि उस ने मुझ से वादा किया था. पर शायद वह मेरी कमाई पर रहने को पचा नहीं पा रहा था. फिर एक दिन पैट्रिक बोला, “कहीं काम मिला है. ज्यादा बड़ा तो नहीं. पर रात को देर से आएगा, क्योंकि शूटिंग रात में ही होगी.”
मैं ने भी सहज ही मान लिया. पर शक का कीड़ा अब कुलबुलाने लगा था, क्योंकि यहां के परिवेश में रहते हुए मैं भी बहुत जल्दी बाहरी दुनिया की असलियत पहचानने लगी थी.
एक रात मैं विंडो के पास खड़ी पैट्रिक का इंतजार कर रही थी तो एक बड़ी सी गाड़ी रुकी और दरवाजा खुला. पैट्रिक के साथी ने गाड़ी से उतर कर बड़े ही वाहियात तरीके से पैट्रिक को चुंबन दिया.
यह देख सिमरन को सारा माजरा समझ आ गया. तो पैट्रिक रात को कौन सी शूटिंग करता था, “यही वाली ना…”
पैट्रिक के घर में पैर रखते ही मैं ने उस की लानतमलामत शुरू कर दी. पर शराब के नशे में धुत्त वो क्या सुनता? सुबह जब पूछा तो जनाब के रंगढंग निराले थे.
“शराब पी कर ही तो जिस्म बेचे जाते हैं. इस फिल्मी लाइन में आगे बढ़ने के लिए कहीं ना कहीं कम्प्रोमाइज तो करना ही पड़ता है. तुम ने तो उस बुढ़िया की नौकरी पर लात मार कर सब से बड़ी बेवकूफी की. पैसा भी गया और नौकरी भी गई. उसी के चलते तुम्हें कहीं ना कहीं तो किसी पिक्चर में काम मिल ही जाता. शायद वह बुढ़िया ही तुम्हारे प्यार में पड़ तुम्हारे साथ कोई पिक्चर बना लेती. कुछ पाने के लिए तुम्हें भी समझौता करना आना चाहिए. मेरे साथ रह रही हो तो दोनों ही तरह की जिंदगी का मजा लो. अपना काम निकलना चाहिए, चाहे सामने वाला मेल हो या फीमेल, इस से फर्क नहीं पड़ता. इस सच को जितनी जल्दी समझ लोगी उतना अच्छा रहेगा.”
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मैं तो यह सुन कर हक्कीबक्की रह गई. उसे समझाया, “आओ, अब अपनी दुनिया में लौट चलें. मांबाप का दिल बहुत बड़ा होता है. वे हमें माफ कर देंगे.”
पर, उस पर तो फिल्मों में काम करने का जिन्न सवार था. उस के फालतू के तर्कवर्क सुन कर मैं उस पर फट पड़ी, “कभी तो तुम बहुत गरूर करते थे, सिमरन के प्रति अपने पजेसिवनेस का. कहां गया वह दम? सब इस मायानगरी के दलदल में गहरा धंस गया है. शर्म नहीं आती तुम्हें अपने ऊपर… मुझे अपने बायसैक्सुअल ग्रुप ज्वाइन करने को कहते हो.
“कालेज में इसी सिमरन पर अगर कोई दूसरा निगाह भी डाल लेता था, तो तुम उस का खून करने को उतारू हो जाते थे. आज कहां गई तुम्हारी ऊष्माभरी पजेसिवनेस… मैनलीबिहेवियर और मैनरिज्म? शोहरत और पैसे के लिए तुम इतने नीचे गिर जाओगे, मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. अभी भी वक्त है, चेते जाओ. तुम तो सैक्स की भूख में अपना जमीर भी खो बैठे हो. पता है बायसैक्सुअल होने पर कितनी बीमारियां लगेंगी? क्या कहेंगे तुम्हारे घर वाले, जब उन को तुम्हारी सचाई का पता चलेगा. इन सेलिब्रिटीज की जिंदगी खुले पन्ने की तरह होती है. फिर भी इन पर कोई उंगली नहीं उठा सकता, क्योंकि इन की ताकत और पैसे के आगे सब बोने हैं. सारा दोष तुम पर ही आएगा. अभी भी सुधर जाओ.”
पर, वह कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था. मैं तो जैसे आसमान से जमीन पर गिरी. क्या करूं? किस से बात करूं? समझ ही नहीं आया. यहां तो कोई किसी की पर्सनल लाइफ में इंटरफेयर ही नहीं करता.
क्या से क्या बन गए थे हम? सपनों को भूल, जीवनयापन की इच्छाओं की पूर्ति करने वाली मशीन. जीवन का सारा मजा ही लुप्त हो रहा था.
तभी मुझे लगा कि मेरे शरीर में नन्हा सा अंकुर फूट रहा है. जब मैं ने पैट्रिक को यह खबर दी, तो उस ने इस को अपना अंश स्वीकारने से ही मना कर दिया. वह दोषारोपण करने लगा, “क्या पता, मेरे पीछे तुम भी यही सब करती हो, जो मैं रात में करता हूं? यहां तो यह आम बात है.”
गुस्से में मैं ने एक थप्पड उस को लगा दिया और अपने स्कूल आ गई.
उसी वक्त मैं ने एक निर्णय लिया और चुपके से पैट्रिक के घर में फोन कर के बताया, “वह यहां मुंबई में आ कर गलत संगत में पड़ गया है. इसे कोई गंभीर बीमारी हो, उस से पहले ही उसे यहां से जबरदस्ती ले जाएं और उस का जीवन सुधारें.”
यह सुनते ही उस के मातापिता के पैरों तले जमीन निकल गई. उसी रात उन्होंने फ्लाइट से आने का वादा किया. मैं ने उन्हें पैट्रिक के घर का पता दे दिया और कहा कि चाबी वाचमैन से ले लें, यह कह कर मैं ने फोन रखा और अपने कपड़े और पैसे समेटे. भरपूर गीली निगाह अपने बिखरते आशियाने पर डाली और वूमेन होस्टल की डोरमेट्री में रहने आ गई.
2 दशक पहले तक यह लिव इन टैबू था लिव इन कपल को हिकारत या बदचलन के रूप में देखा जाता था और मैं तो कुंआरी मां थी. अब मेरा पेट दिखने लगा था. तो एक दिन हिम्मत कर नाभा के लिए ट्रेन पकड़ी और घर पहुंच गई. पर वहां अब कोई न था.
मेरे दारजी और बेबे घर बेच कर पता नहीं कहां चले गए थे. मुंबई वापस जाने का मन न था. हिम्मत कर के मैं ने पटियाला में अपने ननिहाल में पनाह लेने की सोची. वह तो सुखद संयोग था कि घर पर उस दिन अकेले नानी थी. बाकी सभी किसी की शादी में 2 दिन के लिए दिल्ली गए हुए थे. मेरी नानी ने बहुत हिम्मत से काम लिया. मुझे एक कमरे में छुपा कर रखा, खानेपीने का सामान दिया और फिर कुछ पैसे दिए और यहां से पुडुचेरी में अपने गुरुजी के आश्रम में भेज दिया. वे जब तक जिंदा रहीं, मेरे अकाउंट में कुछ ना कुछ रकम भेजती रहीं. मैं भी आश्रम में बच्चों को पढ़ाने लगी और हर वक्त किसी ना किसी काम में व्यस्त रहती. बस इन्हीं से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ.
मेरी नानी ने अपने गुरुजी को यह बोला था कि मैं विधवा हूं और पेट से हूं, तो किसी ने ज्यादा सवाल नहीं पूछे.
अब तक, मैं भी जिंदगी में इतने धक्के खा कर समझदार हो चुकी थी. एक दिन मेरे अकाउंट में नानी ने एक बहुत बड़ी रकम भेजी.
फिर मैं ने छोटी सी शुरुआत में ही भविष्य की संभावनाएं जोड़ी और अपनी थोड़ीबहुत जमापूंजी और नानी की रकम से यहां छोटा सा घर खरीद लिया. यहां पर शुरू में तो मैं ने पेइंग गेस्ट खोला. मेरे अच्छे व्यवहार और घर जैसे माहौल के चलते यह हमेशा भरा रहने लगा. धीरेधीरे मैं ने उस के आसपास की जगह खरीद होमस्टे का व्यवसाय शुरू किया.
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पिछले दोढाई दशकों में काफीकुछ बदल गया है. अब तो मैं भी सशक्त और आत्मनिर्भर बन गई हूं…
स्नेहा ने उस को रोक कर पूछा, “तुम फिर कभी पैट्रिक से मिली?”
सिमरन ने कहा, “नहीं. असल में हम दोनों एकदूसरे को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे थे और जिंदगी की वास्तविकता से रूबरू हो अपने ही सपनों को पूरा करना भूल गए.
“स्नेहा, मुझे कभीकभी लगता है कि हमारी सारी चाहतें और इच्छाएं केवल दैहिक वासना से जुड़ी थीं मां की नाल की तरह. दैहिक वासना से अलहदा हो कर शायद हमारा प्यार अब और अधिक मजबूत हो गया होगा.
“पैट्रिक को तो मैं ने उस दिन मुंबई छोड़ते ही अतीत के पन्नों में वहीं दफन कर दिया था. सुखद संयोग आज तुम से मिलना हो गया. आज तुम आई हो तो पूरी जिंदगी को पढ़ लिया. अब तो बस यही जीवन है.
“बस एक ही चाह है कि पैट्रिक मेरे चरित्र पर विश्वास करे. मैं ने उस के अलावा किसी और के साथ, न तब, न उस से रिलेशनशिप टूटने के बाद किसी और से कोई संबंध बनाए. वह एक बार अपनी बेटी को देख कर इस बात को मान ले कि यह उस का ही अंश है और यह सच भी है.
“वह सामने पानी में अपनी फ्रेंड्स के साथ अठखेलियां करती मेरी बेटी सिप्पी है.”
फिर सिमरन ने अपने कमरे की विंडो से आवाज लगाई, “सिप्पी यहां आओ. अपनी कालेज फ्रेंड से तुम्हें मिलवाना है.”
जैसे ही सिप्पी ने विंडो की तरफ देखा, तो स्नेहा हैरान रह गई, “हूबहू सिमरन… पर…?
“पर, आंखें…
“ओह… हरी.
“ये तो पैट्रिक जैसी हैं…”