मैरिज रजिस्ट्रेशन है जरूरी

कानूनन जरूरी होने के बावजूद लोग शादी का रजिस्टे्रशन तभी कराते हैं जब उन्हें वीजा आदि के लिए आवेदन करना होता है. शादी या उस के बाद और बातों का तो बड़ा ध्यान रखा जाता है, लेकिन शादी का रजिस्ट्रेशन कराने को प्राथमिकता नहीं दी जाती है. अनपढ़ लोगों का ही नहीं शिक्षित लोगों का भी यही हाल है.

चलिए, बात करते हैं कि शादी का रजिस्ट्रेशन कितना जरूरी है तथा यह करवाना कितना आसान है और आगे चल कर इस के क्या फायदे हैं:

मैरिज सर्टिफिकेट इस बात का आधिकारिक प्रमाण होता है कि 2 लोग शादी के बंधन में बंधे हैं. आजकल जन्म प्रमाणपत्र को उतनी अहमियत नहीं दी जाती, जितनी विवाह प्रमाणपत्र को दी जाती है. लिहाजा, इसे बनवाना अहम है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. अत: यहां 2 ऐक्ट्स के तहत शादियों का रजिस्ट्रेशन होता है- हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 और स्पैशल मैरिज ऐक्ट 1954.

आप की शादी हुई है और अमुक तारीख को हुई है, इस बात का अनिवार्य कानूनी सुबूत है मैरिज सर्टिफिकेट. आप बैंक खाता खोलने, पासपोर्ट बनवाने या किसी और दस्तावेज के लिए आवेदन करते हैं, तो वहां मैरिज सर्टिफिकेट काम आता है. जब कोई दंपती ट्रैवल वीजा या किसी देश में स्थाई निवास के लिए आवेदन करता है, तो मैरिज सर्टिफिकेट काफी मददगार साबित होता है.

भारत या विदेश में स्थित दूतावास पारंपरिक विवाह समारोहों के सुबूत को मान्यता नहीं देते. उन्हें मैरिज सर्टिफिकेट देना होता है. जीवन बीमा के फायदे लेने के लिए भी मैरिज सर्टिफिकेट जमा कराना (जिन मामलों में पति या पत्नी में से किसी की मौत हो गई हो) होता है. नौमिनी अपने आवेदन की पुष्टि में कानूनी दस्तावेज पेश नहीं करे तो कोई बीमा कंपनी अर्जी को गंभीरता से नहीं लेती. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर शादी का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य घोषित कर दिया था.

कैसे कराएं रजिस्ट्रेशन

हिंदू ऐक्ट या स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन कराना कतई मुश्किल नहीं है. पति या पत्नी जहां रहते हैं, उस क्षेत्र के सबडिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के दफ्तर में अर्जी दे सकते हैं. अर्जी पर पतिपत्नी दोनों के हस्ताक्षर होने चाहिए. अर्जी देते वक्त उस के साथ लगाए गए दस्तावेज की जांचपरख होती है. उस के बाद औफिस की ओर से एक दिन तय किया जाता है. इस की सूचना दंपती को दे दी जाती है. उस वक्त पहुंच कर पतिपत्नी शादी को रजिस्टर्ड करा सकते हैं. उस वक्त एसडीएम के सामने पतिपत्नी के साथ एक गैजेटेड औफिसर को भी मौजूद रहना पड़ता है, जो शादी में मौजूद रहा हो. प्रमाणपत्र उसी दिन जारी कर दिया जाता है.

आवेदन के लिए क्याक्या है जरूरी

  1. पूरी तरह भरा आवेदनपत्र, जिस पर पतिपत्नी और उन के मातापिता के हस्ताक्षर हों. रिहाइश का प्रमाणपत्र जैसे वोटर आईडी/राशन कार्ड/पासपोर्ट/ड्राइविंग लाइसैंस, पति और पत्नी दोनों का जन्म प्रमाणपत्र, 2-2 पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ्स, शादी का एक फोटोग्राफ.
  2. सारे दस्तावेज सैल्फ अटैस्टेड होने चाहिए. आवेदन के साथ शादी का एक निमंत्रणपत्र भी लगाना होता है.
  3. अर्हताएं: दूल्हा या दुलहन उस तहसील का निवासी हो जहां शादी रजिस्टर्ड कराई जानी है. शादी के वक्त दुलहन की उम्र 18 और दूल्हे की 21 साल से कम न हो.
  4. जुर्माना: अगर कोई शख्स विवाह प्रमाणपत्र नहीं दे पाता है, तो उसे क्व10 हजार जुर्माना भरना पड़ सकता है.
  5. विवाह प्रमाणपत्र के लिए अर्जी देने में कोई ज्यादा खर्च नहीं आता है और न ही यह लंबी प्रक्रिया है. हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत प्रमाणपत्र लेने के लिए आवेदन फीस 100 रुपए और स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत लेने के लिए क्व150 है. फीस डीएम औफिस के कैशियर के पास जमा कराई जाती है और उस की रसीद अर्जी के साथ लगानी होती है. सरकार ने औनलाइन रजिस्ट्रेशन की पहल भी की है.

विवाह प्रमाणपत्र के फायदे

  1. भारत में स्थित विदेशी दूतावासों या विदेश में किसी को पतिपत्नी साबित करने के लिए विवाह प्रमाणपत्र देना अनिवार्य होता है.
  2. विवाह प्रमाणपत्र होने से महिलाओं में विश्वास और सामाजिक सुरक्षा का एहसास जगता है. पतिपत्नी के बीच किसी तरह का विवाद (दहेज, तलाक, गुजाराभत्ता लेने आदि) होने की स्थिति में विवाह प्रमाणपत्र काफी मददगार साबित होता है.
  3. इस से प्रशासन को बाल विवाह पर लगाम लगाने में मदद मिलती है. अगर आप की उम्र शादी लायक नहीं है तो विवाह का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा.
  4. शादीशुदा हों या तलाकशुदा, दोनों ही सूरत में विवाह प्रमाणपत्र काम आता है. इस के अलावा इस प्रमाणपत्र की सब से ज्यादा उपयोगिता तलाकशुदा महिलाओं के लिए है क्योंकि तलाक के बाद महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा की जरूरत पुरुषों की तुलना में ज्यादा होती है.

स्पैशल मैरिज ऐक्ट 1954

  1. स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत भी आसानी से शादी रजिस्टर्ड कराई जा सकती है. इस के लिए निम्न स्टैप्स हैं:
  2. पतिपत्नी जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहां के मैरिज अफसर को शादी की सूचना देनी होती है.
  3. नोटिस की तारीख से कम से कम 1 महीना पहले से उस क्षेत्र में रिहाइश होनी जरूरी है.
  4. नोटिस मैरिज अफसर के औफिस में किसी ऐसी जगह पर चस्पां करना चाहिए जहां सब की नजर पड़े.
  5. अगर पतिपत्नी दोनों अलगअलग इलाके में रहते हैं तो नोटिस की एक कौपी दूसरे क्षेत्र के मैरिज अफसर को भेजनी होगी. नोटिस पब्लिश होने के 1 महीने बाद शादी को कानूनी वैधता दे दी जाती है.
  6. अगर कहीं से कोई आपत्ति आती है तो मैरिज अफसर दंपती से संपर्क कर पूछता है कि शादी को वैधता प्रदान की जाए या नहीं.

शादी रजिस्टर्ड कराने के स्टैप्स

  1. हिंदु मैरिज ऐक्ट के तहत कोई भी अपनी शादी को रजिस्टर्ड करा सकता है. इस के लिए निम्न स्टैप्स हैं:
  2. दंपती को रजिस्ट्रार के यहां आवेदन करना होता है. यह रजिस्ट्रार या तो उस क्षेत्र का होगा जहां शादी हुई हो या फिर वहां का जहां पतिपत्नी में से कोई कम से कम 6 महीने से रह रहा हो.
  3. दंपती को शादी के 1 महीने के भीतर गवाह के साथ रजिस्ट्रार के सामने हाजिर होना होगा. बतौर गवाह मातापिता, अभिभावक, दोस्त कोई भी हो सकता है.
  4. रजिस्ट्रेशन में देरी होने पर 5 साल तक रजिस्ट्रार को माफी देने का अधिकार है. इस से ज्यादा वक्त होने पर संबंधित डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार के पास इस का अधिकार ह – विपुल माहेश्वरी (सीनियर ऐडवोकेट)

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अपनों के बिना फीकी सफलता

जीवविज्ञान की कक्षा चल रही थी. अध्यापक छात्रों को ककून से तितली बनने की प्रक्रिया के बारे में बता रहे थे. उन के सामने एक ककून रखा हुआ था और उस में बंद तितली बाहर आने के लिए लगातार कठिन संघर्ष कर रही थी. इतने में ही अध्यापक कुछ कार्यवश थोड़ी देर के लिए कक्षा से बाहर निकल गए. छात्रों ने देखा कि तितली को अपने ककून से बाहर आने में काफी कष्ट व असहनीय पीड़ा हो रही है तो उन्होंने बालसुलभ सहानुभूतिवश ककून से तितली को निकलने में मदद करने की कोशिश की.

छात्रों ने ककून से बाहर आ रही अति नाजुक तितली को हाथ से पकड़ कर बाहर की तरफ खींच लिया. तितली बाहर तो आई किंतु इस प्रक्रिया के दौरान उस की मौत हो गई. जब अध्यापक कक्षा में वापस आए, छात्रों को मौन देख कर बड़ी हैरत में पड़ गए. किंतु पास में ही जब उन्होंने तितली को मृत देखा तो उन्हें सारी बातें समझने में तनिक भी देर नहीं लगी.

अध्यापक ने कहा, ‘‘तुम लोगों ने तितली को उस के ककून से बाहर आने में मदद कर उस की जान ले ली है. तितली अपने ककून से बाहर आने में जिस संघर्ष का सामना करती है, जिस दर्द को बरदाश्त करती है, वह उस के जीवन के अस्तित्व के लिए अनिवार्य होता है.

‘‘इस धरती पर जीवित रहने के लिए उसे वह पीड़ा सहनी ही पड़ती है. जन्म के समय के इस संघर्ष में जीवन जीने के लिए अनिवार्य गुणों को तितलियां बड़ी आसानी से सीख लेती हैं. कोई भी केटरपिलर अपने जीवन के इन कष्टों को सहन किए बिना जीवित नहीं रह सकता है. तुम लोगों ने उस तितली को उन जीवनदायी कष्टों से बचा कर उस की जान ले ली है.’’

सच पूछिए तो जीवन में कामयाबी प्राप्त करने तथा इस दुनिया में अपना अस्तित्व बनाए रखने का फार्मूला भी इस जीवनदर्शन से अलग नहीं है. इस धरती पर जन्म लेने वाले हर व्यक्ति को अपने जीवन के हिस्से के दुखदर्द तथा संताप को खुद सहन करना होता है.

सफर आसान नहीं

महान कूटनीतिज्ञ तथा राजनीतिज्ञ बेंजामिन डिजरायली कहा करते थे, ‘सफलता प्राप्त करना एक नया जीवन प्राप्त करने सरीखा होता है. जैसे एक नए जीव के जन्म के लिए प्रसवपीड़ा अनिवार्य तथा सर्वविदित सत्य है, उसी प्रकार सफलता के मुरीद व्यक्ति को जीवन की बेशुमार पीड़ाओं का सामना करना होता है.

‘सफलता बहुत संघर्ष व बलिदान मांगती है. निश्चय सुदृढ़ हो तथा अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए यदि कोई शख्स आने वाली हर मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार हो तो फिर कामयाबी पाने में कोई संदेह शेष नहीं रह जाता है.’

महात्मा गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी पूरी जिंदगी में रोजाना 2 घंटे से अधिक कभी भी नहीं सोए. थौमस अल्वा एडीसन को अपने अनुसंधानों के समय रात और दिन का फर्क मालूम नहीं होता था. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बेतरतीब बाल तथा बढ़ी दाढ़ी के साथ घुटने तक फटे हुए पतलून में किसी ट्रेन के थर्ड क्लास कंपार्टमैंट में यात्रा करने वाले तथा अति साधारण दिखने वाले व्यक्ति के अंदर महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन का जादुई व्यक्तित्व भी छिपा हो सकता है?

आशय यह है कि जीवन के किसी क्षेत्र तथा मानव ज्ञान की किसी भी विधा में सफलता का सफर आसान नहीं होता. हमें हर मोड़ पर त्याग करने तथा कुरबानी देने की दरकार होती है.

त्याग काफी नहीं

किंतु केवल बलिदान तथा त्याग का होना ही सफलता की कसौटी नहीं है. अहम बात यह है कि सफलता के लिए किया जा रहा संघर्ष सच्चा है या नहीं. संघर्ष सही दिशा में किया जा रहा है या नहीं? क्योंकि समर्पण जितना सच्चा होता है, जितना सुदृढ़ होता है, सफलता उतनी ही निश्चित मानी जाती है.

यहां पर सब से अधिक जरूरी तथा विचारणीय प्रश्न यह उठता है कि संघर्ष करने तथा सफल होने की उत्कट लालसा में कहीं हम अपनों को ही नजरअंदाज तो नहीं कर रहे हैं? कामयाबी की रोशनी में चकाचौंध हो कर हम जिस अहम चीज को नकार जाते हैं वह होती है हमारी अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी का एहसास तथा कर्तव्य का भाव.

इस सच से कदाचित ही कोई इनकार कर पाए कि सफलता के लिए त्याग की जरूरत होती है, किंतु अहम प्रश्न यह उठता है कि सफलता त्याग की किस कीमत पर एवं कितनी कीमत पर?

कहानी जिंदगी की

प्रतीक की जिंदगी की कहानी उस के खुद के परिवार की खुशियों तथा निरंतर सफल होने की चाहत के मध्य की सुविधा से परे नहीं है. प्रतीक किसी मल्टीनैशनल कंपनी में काम करता था. वह अपनी महत्त्वाकांक्षा की प्राप्ति की राह में इस कदर व्यस्त हो गया था कि उस के पास अपनी पत्नी तथा बेटे के साथ अपने गम व खुशियों को बांटने का न तो वक्त होता था और न ही वह इस की कोई आवश्यकता समझता था. उस की पत्नी स्वाति को भी इस बात की हमेशा शिकायत रहती थी कि प्रतीक के पास उस के लिए कोई समय नहीं होता है. इस वजह से आएदिन परिवार में कलह तथा अशांति का माहौल रहता था. स्वाति ने कुछ दिनों के बाद इसे ही अपनी नियति मान कर प्रतीक से शिकायतें करनी बंद कर दीं.

प्रतीक के इकलौते बेटे आकाश को भी अकसर यही शिकायत रहती थी. ‘पापा, आप के पास तो मेरे लिए कोई वक्त ही नहीं है. आप तो मेरे साथ कभी खेलते भी नहीं हैं. यदि आप आज मेरे साथ नहीं खेलेंगे तो जान लीजिए, मैं कभी भी आप से बात नहीं करूंगा.’

सच पूछिए तो अपने बेटे की इन दोटूक बातों से प्रतीक के दिल को बहुत ठेस लगती थी और वह भावनात्मक रूप से थोड़ी देर के लिए परेशान हो उठता था. किंतु नौकरी की जिम्मेदारियों तथा सब से आगे बढ़ने की महत्त्वाकांक्षा के चक्रव्यूह में वह फिर से उलझ जाता.

वक्त गुजरता गया. प्रतीक व उस के परिवार के मध्य की नाराजगी धीरेधीरे उसे अपनों से दूर करती गई. सब लोगों ने उस से बातें करनी बंद कर दी. हां, उस का बेटा कभीकभी जरूर उस से आ कर चिपक जाता था, किंतु जब वह अपनी मम्मी को देखता तो शीघ्र भागने की कोशिश करने लगता. साथ रहते भी तनहातनहा रहने का क्रम कुछ दिनों तक इसी प्रकार जारी रहा.

सहसा एक दिन अपनी पत्नी के एक प्रश्न ने प्रतीक को अंदर से झकझोर कर रख दिया. ‘आखिर आप चाहते क्या हैं? आप को यदि अपनी नौकरी से इतनी ही मुहब्बत थी तो फिर आप ने मुझ से शादी क्यों की? यदि आप के पास अपनी पत्नी तथा अपने बेटे के लिए वक्त नहीं है तो फिर आप हम लोगों को छोड़ क्यों नहीं देते हैं?’

‘मैं आज जो कुछ भी कर रहा हूं,

वह तुम लोगों के सुखद जीवन के लिए कर रहा हूं. जीवन के भोगविलास तथा ऐशोआराम के लिए मेरी कोशिश केवल मेरे जीवन के लिए नहीं है, यह सब केवल और केवल तुम लोगों के लिए है,’ प्रतीक अकसर यही उत्तर दे कर अपनी पत्नी का मुंह बंद कर दिया करता था.

‘मैं मानती हूं कि आप की महत्त्वाकांक्षा में, आप के सपनों में हम सभी की सुख तथा सुविधाएं निहित हैं, किंतु सोच कर देखिए यदि मैं ही जीवित नहीं रही तो आप की शोहरत व सफलता की दुहाई देने वाले कौन होंगे? आप अपनी शानोशौकत किसे दिखाएंगे व आप किस पर गर्व करेंगे?

‘सफलता के शिखर पर पहुंच कर आप दुनिया की नजर में नाम तो कमा लेंगे, किंतु जब आप के खुद अपने ही आप के करीब नहीं होंगे तो क्या आप की वे खुशियां अधूरी तथा निरर्थक नहीं रह जाएंगी?’ प्रतीक की पत्नी ने बड़ी संजीदिगी से ये बातें कहीं.

अपनी पत्नी के आत्मदर्शन पर प्रतीक ने बड़ी गंभीरता से सोचा और आखिरकार उसे जो आत्मबोध हुआ, उस की स्निग्ध छांह में उस के मन पर वर्षों से जमी भ्रम की तपिश किसी मोम की तरह पिघलती गई और उसे अपने मन के जख्म पर किसी मरहम सरीखे ठंडक की अनुभूति हुई. उस आत्मानुभूति ने उस के जीवन की दिशा व दशा दोनों में कई अहम तबदीलियां ला दीं.

ऐसा नहीं है कि प्रतीक ने सपने देखना छोड़ दिया है. आज भी वह जीवन के वही सारे सपने देखता है, किंतु उस के पास उन सपनों को साकार करने की वो बेचैनी अब नहीं रही. परिवार की खुशियों की कीमत पर प्रतीक ने सपनों का पीछा करना छोड़ दिया. वह अब अपने बेटे के साथ खेलने के लिए तथा भागनेदौड़ने के लिए पूरा वक्त निकालता है. ऐसे में पत्नी भी खुश रहने लगी है.

परिवार की भूमिका

सच पूछें तो आधुनिक अर्थव्यवस्था की सूचना क्रांति के वर्तमान जादुई युग में जनमानस की सोच तथा जीवनशैली में जिस प्रकार के बदलाव आए हैं, उन के चलते हम ने आज यदि कुछ खोया है, तो वह है मानसिक शांति व आत्मिक सुकून. भौतिक भोगविलास की अंतहीन खोज में हम ने यदि कुछ खोया है, तो वह पारिवारिक सुखसुकून की वो स्निग्धता, जिस के कोमल एहसास में जीवन का परम सुख निहित होता है.

कदाचित इस बात से हम इनकार नहीं कर सकते कि मानव जीवन में परिवार की भूमिका उस कुशन या गद्दे की तरह की होती है, जो हमें जीवन में सफलता की ऊंचाइयों से अचानक गिरने पर हमें जख्मी होने से बचाती है. इसीलिए सफलता पाने की कोशिश में केवल संघर्ष ही अनिवार्य नहीं है, बल्कि उन अपनों के प्यार व सहानुभूति की भी दरकार होती है जिन की उपस्थिति के बिना जीवन तथा जहान की सारी खुशियां अधूरी प्रतीत होती हैं.

आप के अपने आप के सपनों के पीछे भागने की रेस में आप के साथ होंगे तो आप को एक अद्भुत ऊर्जा तथा प्रेरणा का एहसास पलप्रतिपल होगा. अपनों के प्यार को खो कर पाई गई किसी भी कामयाबी की कीमत कभी भी इतनी अधिक नहीं होती, जो आप के जीवन की भावनात्मक कमी की भरपाई कर सके.

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Social media आधी हकीकत-आधा फसाना

अंजूजब कहती है कि मु झे तो घर के कामों से फुरसत ही नहीं मिलती जो सोशल मीडिया पर रहूं, मु झे तो शौक ही नहीं है तो उस की सहेलियां रेनू और दीपा हंस रही होती हैं. उस समय तो दोनों चुप रहती हैं पर बाद में दोनों इस बात पर अंजू की जो छीछालेदर करती हैं, अंजू अगर सुन ले तो इन दोनों के सामने कभी भोली बनने का नाटक न करे.

इस समय यही तो हो रहा है, अंजू की बात पर दोनों अकेले में हंस रही हैं. दीपा कह रही है, ‘‘यार, यह किसे बेवकूफ सम झती है, हर समय फेसबुक पर औनलाइन दिखती है. इस से किसी की पोस्ट पर न लाइक का बटन दबता है, न कमैंट करती है, जौब यह करती नहीं, बच्चे बड़े हो गए हैं, पढ़ने का कोई शौक है नहीं, सारा दिन इस के नाम के आगे ग्रीन लाइट जलती रहती है. सोच रही हूं एक स्क्रीनशौट इसी का ले कर इसी को दिखा दूं किसी दिन. तभी इस  झूठ से हमारा पीछा छूटेगा. यार, इसे पता नहीं है कि अब किसी की लाइफ प्राइवेट नहीं रही.’’

रेनू हंसी, ‘‘सोशल मीडिया कमाल की चीज है, भाई. लोग अपनेआप को होशियार सम झ रहे होते हैं. उन्हें पता ही नहीं चलता कि उन पर कैसी पैनी नजरें रखी जाती हैं. हीररां झा को ही ले लो,’’ इतना कहते ही दोनों फिर हंसहंस कर लोटपोट होती रहीं.

राज खुलने का भय

बात यह है कि रेनू और दीपा दोनों एक ही स्कूल में टीचर्स हैं इन्हीं के स्कूल में लाइब्रेरियन हैं दीपकजी और ड्राइंग टीचर हैं, सपनाजी. दोनों की उम्र 55 के आसपास है. दीपकजी जरा रंगीन तबीयत के इंसान हैं. महिलाओं से बात करना उन्हें खूब भाता है. महिला किसी भी उम्र की हो, कोई फर्क नहीं पड़ता, बस महिला होनी चाहिए. सपनाजी के दोनों बच्चे विदेश में हैं. यहां अपने रिटायर्ड पति के साथ रहती हैं. उम्र तो 55 हो गई पर दिल 20 पर ही अटक गया है.

एक दिन लाइब्रेरी में कोई बुक लेने गईं तो दीपकजी से ऐसे दिल मिला कि आज रेनू और दीपा जैसी शैतान, नटखट टीचर्स ने उन का नाम ही हीररां झा रख दिया है. इन की चोरी सब ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ही तो पकड़ी. अब सब लोग फेसबुक पर तो एकदूसरे के फ्रैंड्स हैं ही.

सपनाजी या दीपकजी बस कोई पोस्ट डाल दें, ऐसा मनोरंजन होता है सब का सारा दिन लोग स्कूल में दोनों की तरफ इशारे करते घूमते हैं. दोनों एकदूसरे की पोस्ट पर इतनी तारीफ भरे लंबेलंबे कमैंट करते हैं कि कुछ दिन तो लोगों ने हलके में लिया पर बात छिपी न रही, सब को सम झ आ गया कि कुछ तो है जिस की परदादारी है. अब तो यह हाल है कि रां झा ओह सौरी दीपकजी अगर एक पोस्ट मिले तो सब इंतजार करते हैं कि अभी देखते हैं. आज ही ओह सौरी सपनाजी क्या लिख कर  झंडे गाड़ेंगी. ऐसा लगता है कि बस लंबे कमैंट लिख कर एक दूसरे के गले में ही लटक जाएंगे किसी दिन.

अगर किसी दिन सपना हीर, यही नाम हो गया है अब इन का. कोई अपना पुराना फोटो डाल दें तो उफ, यह एडल्ट लव स्टोरी… रां झा दीपक के कमैंट पर सारा दिन शैतान जूनियर टीचर्स एकदूसरे को फोन कर के हंसती हैं. अब बेचारे इन दोनों अधेड़ आशिकों को सपने में भी उम्मीद नहीं होगी कि वे कितना बदनाम हो चुके हैं, दोनों अच्छेभले अपने रोमांस पर उम्र का परदा डाले चल रहे थे पर सोशल मीडिया ने सारे भेद खोल दिए.

बेवकूफ बनते लोग

अब बात सीमा की जो एक उभरती सिंगर है, अभी तक तो सोसाइटी और कालेज के प्रोग्राम में गागा कर अपना शौक पूरा कर रही थी पर उस की फ्रैंड नेहा उस से थोड़ी तेज है. नेहा भी सिगिंग में आगे बढ़ना चाहती है. दोनों के 1 ही बेटा है जो अभी छोटे हैं. दोनों के पति फुल सपोर्ट करते हैं. अचानक नेहा ने सीमा को बताया कि मशहूर गायक सुधीर वमास ने उसे मिलने के लिए बुलाया है तो सीमा का दिमाग घूम गया कि इसे कैसे बुला लिया?

यह भी तो मेरे जैसी ही है. इसे कैसे यह मौका मिला? उस ने पूछ ही लिया, ‘‘अरे, पर तु झे ये मिले कहां?’’

‘‘इंस्टाग्राम पर फौलो करती हूं.’’

‘‘तो इस से क्या हुआ? वह तो मैं भी

करती हूं.’’

‘‘बस वे धीरेधीरे मु झे पहचान गए.’’

सीमा को सम झ नहीं आया कि फौलो करने से क्या होता है. अब दोनों अच्छी सहेलियां हैं पर कंपीटिशन भी तो है, आगे भी तो बढ़ना है. अब सब नेहा ही क्यों बताए. सीमा ने घर जाकर सुधीर वर्मा को हर जगह खंगाल डाला, उन की हर पोस्ट पर नेहा के कमैंट्स दिखे. ओह, तो यह बात है. मैडम हर जगह उन्हें अच्छेअच्छे लंबे कमैंट्स कर के अपने बारे में बताती रही हैं. ओह, मैं कितनी बेवकूफ हूं उन का पेज बस लाइक कर के छोड़ दिया. उफ, चलो, अब भी क्या बिगड़ा है.

अभी शुरू कर देती हूं. फिर तो जहां सुधीर वर्मा, वहां सीमा. रियाज एक तरफ, लाइक्स और कमट्ंस एक तरफ. सुधीर वर्मा क्या, सीमा ने और भी सिंगर्स को फौलो करना शुरू कर दिया है. सारी ताकत उन की नजरों में आने के लिए  झोंक दी है. गाने का क्या है, गा तो लेती ही है.

कोई पूछे तो. कोई चांस तो दे. अब ये पैतरे भला नेहा से कैसे छिपे रहते. सीमा हर जगह दिख रही है, उसे भी औरों को फौलो करना होगा. दोनों आजकल काफी व्यस्त हैं.

नकली लोग नकली कमैंट्स

कालेज की कैंटीन में सुजाता उदास सा मुंह लटका कर बैठी थी. दोस्त रीनी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, बौयफ्रैंड भाग गया क्या?’’

‘‘बकवास मत कर.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘यार, मैं कितनी ही अच्छी पोएम फेसबुक पर पोस्ट कर दूं, मेरी पोस्ट को लाइक्स ज्यादा क्यों नहीं मिलते? मेरी कजिन रोमा कितना बेकार लिखती है, उसे कितनी वाहवाही मिलती है.’’

‘‘तु झे नहीं पता?’’

‘‘क्या?’’

‘‘वह अपने कितने फोटो मिलाती है पोएम के साथ, वह भी फिल्टर वाली. सीख कुछ, मूर्ख लड़की. ऐसे ही नहीं मिलता सबकुछ. कुछ अदाएं दिखाओ, अपने जलवे दिखाओ, लिखो चाहे बेकार पोएम पर अपने को दिखाओ. तुम्हारी कजिन को उस की पोएम पर नहीं, उस के नकली फोटो पर लाइक्स मिलते हैं.’’

सुजाता को बात सम झ आई. रीनी का कहा माना, अब वह खुश है.

आशिकी के फसाने

तो बात यह है कि सोशल मीडिया पर आप कितने ही अपनेआप को बुद्धिमान सम झ रहे हों, आप पर नजर रखने वाले आप से ज्यादा होशियार हैं. आप कभी भी बोर हो रहे हों, आप के पास बहुत टाइम हो तो आराम से सोशल मीडिया पर टाइम खराब कर सकते हैं. देखिए, लोग क्याक्या कर रहे हैं, कहीं जाना भी नहीं, ओमीक्रोन का टाइम है, सब से सेफ है सोशल मीडिया पर मनोरंजन करना. बस दूसरों को बैठ कर देखिए, पर अंजू की तरह यह कहने की गलती न कीजिए कि आप सोशल मीडिया पर नहीं रहते, सब को आप की प्रैजेंस का पता रहता है.

घर में बंद बैठ कर थोड़ा मनोरंजन करना आपका हक है. आराम से दूसरों के मामलों में टांग अड़ाइए. सोशल मीडिया बहुत काम की चीज है, जिस के बारे में पता करना हो, खंगाल लिए उसकी लाइफ को और फिर भोले बन कर आशिकी के उन फसानों का आनंद लीजिए जिन में हीर रां झा जैसे लोग एकदूसरे में डूबे हैं.

दोस्तों के साथ हंसी, मस्ती जरूर करें, बस आप के इस मनोरंजन से किसी को कोई नुकसान न पहुंचे, इस बात का ध्यान जरूर रखें.

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सास कमाऊ-बहू घरेलू तो कैसे निभाएं

कुमकुम भटनागर 55 साल की हैं पर देखने में 45 से अधिक की नहीं लगतीं. वे सरकारी नौकरी में हैं और काफी फिट हैं. स्टाइलिश कपड़े पहनती हैं और आत्मविश्वास के साथ चलती हैं.

करीब 25 साल पहले अपने पति के कहने पर उन्होंने सरकारी टीचर के पद के लिए आवेदन किया. वे ग्रैजुएट थीं और कंप्यूटर कोर्स भी किया हुआ था. इस वजह से उन्हें जल्द ही नौकरी मिल गई. कुमकुमजी पूरे उत्साह के साथ अपने काम में जुट गईं.

उस वक्त बेटा छोटा था पर सास और पति के सहयोग से सब काम आसान हो गया. समय के साथ उन्हें तरक्की भी मिलती गई. आज कुमकुम खुद एक सास हैं. उन की बहू प्रियांशी पढ़ीलिखी, सम झदार लड़की है. कुमकुम ऐसी ही बहू चाहती थीं. उन्होंने जानबू झ कर कामकाजी नहीं बल्कि घरेलू लड़की को बहू बनाया क्योंकि उन्हें डर था कि सासबहू दोनों औफिस जाएंगी तो घर कौन संभालेगा?

प्रियांशी काफी मिलनसार और सुघड़ बहू साबित हुई. घर के काम बहुत करीने से करती. मगर प्रियांशी के दिल में कहीं न कहीं एक कसक जरूर उठती थी कि उस की सास तो रोज सजधज कर औफिस चली जाती है और वह घर की चारदीवारी में कैद है.

वैसे जौब न करने का इरादा उस का हमेशा से रहा था, पर सास को देख कर एक हीनभावना होने लगी थी. कुमकुम अपने रुपए जी खोल कर खुद पर खर्च करतीं. कभीकभी बहूबेटे के लिए भी कुछ उपहार ले आतीं. मगर बहू को हमेशा पैसों के लिए अपने पति की तरफ देखना पड़ता. धीरेधीरे यह असंतोष प्रियांशी के दिमाग पर हावी होने लगा. उस की सहेलियां भी उसे भड़काने लगीं.

नतीजा यह हुआ कि प्रियांशी चिड़चिड़ी होती गई. सास की कोई भी बात उसे अखरने लगी. घर में  झगड़े होने लगे. एक हैप्पी फैमिली जल्द शिकायती फैमिली में तबदील हो गई.

आज लड़कियां ऊंची शिक्षा पा रही हैं. कंपीटीशन में लड़कों को मात दे रही हैं. भारत में आजकल ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं कामकाजी ही हैं खासकर नई जैनरेशन की लड़कियां घर में बैठना पसंद नहीं करतीं. ऐसे में यदि घर की सास औफिस जाए और बहू  घर में बैठे तो कई बातें तकरार पैदा कर सकती हैं. ऐसे आवश्यकता है इन बातों का खयाल रखने की:

रुपयों का बंटवारा

यदि सास कमा रही हैं और अपनी मनमरजी पैसे खर्च कर रही हैं तो जाहिर है कहीं न कहीं बहू को यह बात चुभेगी जरूर. बहू को रुपयों के लिए अपने पति के आगे हाथ पसारना खटकने लगेगा. यह बहू के लिए बेहद शर्मिंदगी की बात होगी. वह मन ही मन सास के साथ प्रतियोगिता की भावना रखने लगेगी.

ऐसे में सास को चाहिए कि अपनी और बेटे की कमाई एक जगह रखें और इस धन को कायदे से 4 भागों में बांटें. एक हिस्सा भविष्य के लिए जमा करें, एक हिस्सा घर के खर्चों के लिए रखें, एक हिस्सा बच्चे की पढ़ाई और किराए आदि के लिए रख दें और बाकी बचे हिस्से के रुपए बहू, बेटे और अपने बीच बराबरबराबर बांट लें. इस तरह घर में रुपयों को ले कर कोई  झगड़ा नहीं होगा और बहू को भी इंपौर्टैंस मिल जाएगी.

काम का बंटवारा

सास रोज औफिस जाएगी तो जाहिर है कि बहू का पूरा दिन घर के कामों में गुजरेगा. उसे कहीं न कहीं यह चिढ़न रहेगी कि वह अकेली ही खटती रहती है. उधर सास भी पूरा दिन औफिस का काम कर के जब थक कर लौटेंगी तो फिर घर के कामों में हाथ बंटाना उन के लिए मुमकिन नहीं होगा. ऐसे में उन की बहू से यही अपेक्षा रहेगी कि वह गरमगरम खाना बना कर खिलाए.

इस समस्या का समाधान कहीं न कहीं एकदूसरे का दर्द सम झने में छिपा हुआ है. सास को सम झना पड़ेगा कि कभी न कभी बहू को भी काम से छुट्टी मिलनी चाहिए. उधर बहू को भी सास की उम्र और दिनभर की थकान महसूस करनी पड़ेगी.

जहां तक घर के कामों की बात है तो सैटरडे, संडे को सास घर के कामों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर बहू को आराम दे सकती हैं. वे बहू को बेटे के साथ कहीं घूमने भेज सकती हैं या फिर बाहर से खाना और्डर कर बहू को स्पैशल फील करवा सकती हैं. इस तरह एकदूसरे की भावनाएं सम झ कर ही समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.

फैशन का चक्कर

कामकाजी सास की बहू को कहीं न कहीं यह जरूर खटकता है कि उस के मुकाबले सास ज्यादा फैशन कर रही हैं. वह खुद तो सुबह से शाम तक घरगृहस्थी में फंसी पड़ी है और सास रोज नए कपड़े पहन और बनसंवर कर बाहर जा रही हैं. औफिस जाने वाली महिलाओं का सर्कल भी बड़ा हो जाता है. सास की सहेलियां और पौपुलैरिटी बहू के अंदर एक चुभन पैदा कर सकती है.

ऐसे में सास का कर्तव्य बनता है कि फैशन के मामले में व बहू को साथ ले कर चलें. बात कपड़ों की हो या मेकअप प्रोडक्ट्स की, सैलून या फिर किट्टी पार्टी में जाने की, बहू के साथ टीमअप करने से सास की खुशी और लोकप्रियता बढ़ेगी और बहू भी खुशी महसूस करेगी.

वैसे भी आजकल महिलाएं कामकाजी हों या घरेलू, टिपटौप और स्मार्ट बन कर रहना समय की मांग है. हर पति यही चाहता है कि जब वह घर लौटे तो पत्नी का मुसकराता चेहरा सामने मिले. पत्नी स्मार्ट और खूबसूरत होगी तो घर का माहौल भी खुशनुमा बना रहेगा.

प्रोत्साहन जरूरी

यह आवश्यक नहीं कि कोई महिला तभी कामकाजी कहलाती है जब वह औफिस जाती है. आजकल घर से काम करने के भी बहुत सारे औप्शन हैं. आप की बहू घर से काम कर सकती है. वह किसी औफिस से जुड़ सकती है या फिर अपना काम कर सकती है. हर इंसान को प्रकृति ने कोई न कोई हुनर जरूर दिया है. जरूरत है उसे पहचानने की.

यदि आप की बहू के पास भी कोई हुनर है तो उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें. वह कई तरह के काम कर सकती है जैसे पेंटिंग, डांस या म्यूजिक टीचर, राइटर, इवेंट मैनेजर, फोटोग्राफर, ट्रांसलेटर, कुकिंग ऐक्सपर्ट या फिर कुछ और. इन के जरीए एक महिला अच्छीखासी कमाई भी कर सकती है और समाज में रुतबा भी हासिल कर सकती है.

घर में सास का रुतबा

पैसे के साथ इंसान का रुतबा बढ़ता है. बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी. जाहिर है जब पत्नी घरेलू हो और मां कमाऊ तो पति भी अपनी मां को ही ज्यादा भाव देगा. घर के हर फैसले पर मां की रजामंदी मांगी जाएगी. पत्नी को कोने में कर दिया जाएगा. इस से युवा पत्नी का कुढ़ना स्वाभाविक है.

ऐसे में पति को चाहिए कि वह मां के साथसाथ पत्नी को भी महत्त्व दे. पत्नी युवा है, नई सोच और बेहतर सम झ वाली है. वैसे भी पतिपत्नी गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. पत्नी को इग्नोर कर वह अपना ही नुकसान करेगा.

उधर मां भी उम्रदराज हैं और वर्किंग हैं. उन के पास अनुभवों की कमी नहीं. ऐसे में मां के विचारों का सम्मान करना भी उस का दायित्व है.

जरूरत है दोनों को आपस में तालमेल बैठाने की. घर की खुशहाली में घर के सभी सदस्यों की भूमिका होती है, इस बात को सम झ कर समस्या को जड़ से ही समाप्त किया जा सकता है.

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पति-पत्नी में अगर तनाव बढ़ने लगे तो करें ये काम

आज हर पुरुष और महिला अपनेअपने जीवन की प्राथमिकताओं को ले कर व्यस्त है और यही सब से बड़ा कारण है, जिस की वजह से शादी के बाद लोग तनाव के शिकार हो जाते हैं. वैसे जब 2 अनजान या एकदूसरे को जानने वाले व्यक्ति रिश्तों में बंध जाने का निर्णय लेते हैं, तो उन के इस फैसले के बाद उन की शादी उन के लिए असीम खुशियां ले कर आ सकती है तो निराशा, समस्या, गुस्सा और तनाव भरी जिंदगी में भी धकेल सकती है.

जाहिर है कि ऐसा अपने साथी द्वारा लगातार सताए जाने, आलोचना करने और नीचा दिखाने की भावना की वजह से होता है.

होता क्या है दरअसल, शादी के बाद आप के साथी की उम्मीदें आप से बढ़ने लग जाती हैं और आप अपने व्यस्त कार्यक्रमों की वजह से उन की ख्वाहिशें पूरी कर पाने में असमर्थ होती हैं. यह सिलसिला जारी रहता है और बाद में तब तनाव की वजह बन जाता है, जब कोई शादी की वजह से उपजी इन समस्याओं से निबटने के लिए शराब की मदद लेने लग जाता है, एकदूसरे से दूरी बनाने लगता है, एकदूसरे को नजरअंदाज करने लगता है या भड़ास निकालने के लिए गुस्सा करता है.

शादी 2 व्यक्तियों का मिलन है, जिस में दोनों एकदूसरे के पूरक होते हैं. हो सकता है कि दोनों में एक व्यक्ति अधिक खर्चीला हो, तो दूसरा खर्च करने से पहले सोचने की सलाह दे सकता है. या एक अंतर्मुखी हो तो दूसरा बहिर्मुखी हो सकता है. अगर ऐसा नहीं होगा तो पतिपत्नी दोनों ही जम कर खर्च करेंगे और वे कभी बचत या पूंजी निवेश नहीं कर पाएंगे.

इसी प्रकार एक व्यक्ति दूसरे की तुलना में भावनात्मक तौर पर ज्यादा जरूरतमंद हो सकता है और अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए अपनी भावनाओं को इस्तेमाल करने के ढंग से उस का अंदाजा लगाया जा सकता है. कुछ रिश्तों के मामले में यह सीखा हुआ व्यवहार हो सकता है जिस में बिना भावनात्मक दबाव के व्यक्ति की कोई इच्छा पूरी ही नहीं होती. ऐसा व्यक्ति शादी के बाद जल्दी ही इस का उपयोग करने लग जाता है.

इस का हल यह है कि दोनों लोग कुछ अच्छा समय मिल कर व्यतीत करें. ध्यान से एकदूसरे की बात सुनें और विचारों को महत्त्व दें. इस के अलावा घरेलू मुद्दों के प्रबंधन, बच्चों के भविष्य व वित्तीय मामलों की जिम्मेदारी मिल कर उठाएं.

इन बातों पर ध्यान नहीं दिए जाने की स्थिति में पतिपत्नी के बीच की खाई बढ़ती चली जाती है और धीरेधीरे यह शुरुआती चिड़चिड़ेपन की स्थिति से अलगाव में परिवर्तित हो जाती है. इस से चिंता, अवसाद, तनाव और नींद में कमी जैसे मानसिक विकार उभरने लगते हैं. इस का असर घर के माहौल पर भी पड़ता है और बच्चों में भी चिड़चिड़ापन, पढ़ाई के दौरान एकाग्रता में कमी, स्कूल से शिकायतें जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं.

देखने में यह भी आता है कि जैसेजैसे बच्चे आत्मनिर्भर होते चले जाते हैं तो जो मां पूरे वक्त उन बच्चों का खयाल रखने में व्यस्त रहती थी, अब उस के पास अचानक ही बहुत अधिक खाली वक्त हो जाता है और ऐसी स्थिति में उसे अपने पति से अधिक मदद व समय की जरूरत होती है. ऐसा संभव नहीं हो पाने की स्थिति में निराशा और चिड़चिड़ापन बढ़ने लग जाता है, परिणामस्वरूप वैवाहिक जीवन में कलह की शुरुआत हो जाती है.

ऐसी स्थिति में यह फिर से जरूरी हो जाता है कि दोनों कुछ समय मिल कर बिताएं और परेशानियों पर गौर करें. इस के अलावा महिला टहलना, व्यायाम या अध्ययन जैसी तनाव से राहत दिलाने वाली गतिविधियों में हिस्सा ले. यह भी जरूरी है कि अगर दूसरा साथी यदि किसी नई परियोजना या अपनी शौक की शुरुआत करना चाह रहा हो तो उस में मददगार बने.

संबंध सुधारने के सरल नुसखे

आगे बताए जा रहे हैं दांपत्य जीवन में आने वाले कुछ ऐसे हालात और उन के समाधान जिन का अनुसरण कर दांपत्य जीवन को तनावग्रस्त होने से बचाया जा सकता है और एकदूसरे के प्रति अपने लगाव को बढ़ाया जा सकता है.

खुद को दबा हुआ पाना

जब आप के मन में अपने सामने खड़े व्यक्ति से छोटा या कम ताकतवर होने की भावना उपजती है, तो तनाव उभर सकता है. ऐसा न हो इस के लिए आप को यह समझना चाहिए कि 2 वयस्कों के बीच प्यार के रिश्ते में साझा शक्ति ज्यादा बढि़या होती है. कार्यों को साथ मिल कर निबटाने के लिए हफ्ते में समय निश्चित करें. ऐसा भी हो सकता है कि 1 हफ्ता एक साथी अपनी पसंद का काम करे तो दूसरे हफ्ते दूसरा साथी अपनी पसंद का.

खुद की आलोचना महसूस होना

‘तुम्हारा बालों को इस तरह रखना मुझे पसंद नहीं.’, ‘तुम्हें यह स्वैटर नहीं खरीदना चाहिए था.’ जैसी आलोचनाओं पर तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करने के बजाय उस वक्त उन मुद्दों पर बातचीत करें जब दोनों का मन शांत हो. लेकिन ऐसी बातों को नजरअंदाज न करें.

साथी का आदेशात्मक रवैया

ऐसा रवैया हतोत्साहित करने वाला होता है. यहां तक कि सौम्य आदेश जैसे, ‘जाओ, मेरे लिए अखबार ला दो, हनी’ भी चिड़चिड़ेपन या तनाव को जाग्रत कर सकता है, क्योंकि हमें क्या करना है यह कोई दूसरा बताए, यह किसी को पसंद नहीं होता. इस से बेहतर पूछ लेना या अनुरोध करना होता है. अनुरोध का जवाब हां या नहीं में दिया जा सकता है, इसलिए घरेलू मुद्दों व वित्तीय मामलों जैसी जिम्मेदारियों व कर्तव्यों को आपस में बांटना भी किया जा सकता है. जैसे एक साथी सुबह की चाय तैयार करे तो दूसरा शाम की.

साथी द्वारा नियंत्रित करने की कोशिश

किस समय क्या करना है, खर्च पर नियंत्रण, दोस्ती किस से करो किस से नहीं और यहां तक कि अपने परिवार के पास कितनी बार जा सकती हो, ऐसे व्यवहार तनाव को आमंत्रित करने वाले होते हैं. जब आप का साथी आप के व्यक्तिगत फैसला लेने की ताकत छीन लेता है या आप के फैसले में भागीदार बनता है, तो तनाव उत्पन्न होना लाजिम है. ऐसे में रोजाना साथसाथ टहलने या व्यायाम करने साथ जा कर ऐसा बेहतर समय साथ मिल कर बिताएं और अपने साथी से अपने मन की बात करें.

अगर साथी न करे कोई काम

एक ऐसा साथी, जो रोजाना जीवन में प्यार से साथ मिल कर रहने के दौरान सक्रिय भूमिका निभाता है, वह दूसरे साथी को अच्छा लगता है. चाहे वह काम सुबहसुबह दोनों के लिए अंडे तलना हो या मेहमानों के आने से पहले फटाफट आसपास की सफाई करना. इन बातों से प्यार बढ़ता है. इस के विपरीत अगर कोई साथी अपनी तरफ से सक्रियता नहीं दिखाता या कोई काम नहीं करता तो यह भड़काने वाली स्थिति होती है. इस से आप के मन में उस के प्रति चिड़चिड़ापन और गुस्सा पनपता है.

नियंत्रण से बाहर होती ऐसी स्थिति में, जीवन में बढ़ते तनाव को कम करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर कुछ राहत पहुंचाने वाली गतिविधियों का सहारा लें. इस के लिए अपने पार्टनर से साथ इस पर विचार करें. परंतु ऐसा करते वक्त सावधानी बरतें. शिकायत या आलोचना जैसी हरकत आप के साथी में या तो तनाव पैदा कर सकती है या फिर आप के बीच लड़ाई की स्थिति पैदा कर सकती है. इसलिए साझा जीवन में नए नियमों के पालन हेतु साथी को राजी करने के लिए सब से अच्छे व विनम्र संचार माध्यम यानी मोबाइल वगैरह का सहारा लें और उस पर बातें ऐसी करें, जो आप के जीवन की निराशावादी तथ्यों को भगाने वाली व जीवन में खुशियां लाने वाली हों.

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12 Tips: छोटी-छोटी तारीफों में होंगे बड़े फायदे

अपनी तारीफ सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता? तारीफ के 2 मीठे बोल कानों में मिठास घोल देते हैं. तारीफ छोटेबड़े सभी में ऊर्जा का संचार करती है. बात पुरुषों की की जाए तो वे स्वभाव से थोड़े कड़क जरूर होते हैं पर उन के भीतर भी कहीं एक नन्हा सा दिल छिपा होता है, जो अपनी प्रशंसा सुनते ही तेजी से धड़कने लगता है.

आइए जानें कि पुरुष किस तरह की तारीफ सुनना पसंद करते हैं:

1. आज खूब जम रहे हैं:

लुक्स की तारीफ महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी पसंद है. अपने ड्रैसिंग सैंस, अपने हेयरस्टाइल, अपने ब्रैंडेड जूतों को ले कर मिला कोई भी कौंप्लीमैंट पुरुषों को बेहद पसंद आता है. कपड़े खरीदने आदि में अगर कोई उन का सहयोग मांगे तो वे उसे बहुत अच्छा मानते हैं

2. यू आर वैरी सपोर्टिव:

कौंप्लीमैंट कंसीडिरेट होना, सहयोगियों के प्रति कोऔपरेटिव होना पौरुष की निशानी है. यह कौंप्लीमैंट यदि पुरुष सहकर्मियों से मिले तो सिर्फ अच्छा लगता है पर यदि महिलाएं यह कौंप्लीमैंट दें तो पुरुषों का स्वाभिमान कई गुना बढ़ जाता है, सीना गर्व से फूल जाता है.

3. आप का सैंस औफ ह्यूमर बहुत अच्छा है:

चतुर, हाजिरजवाब, खुशमिजाज पुरुष सभी को अच्छे लगते हैं. हर महफिल की वे शान होते हैं. यदि यह कौंप्लीमैंट अपने जानने वालों, मिलने वालों से मिले तो पुरुष गद्गद हो उठते हैं.

4. लविंग ऐंड केयरिंग:

जीवनसाथी या बच्चे, फ्रैंड्स अथवा कुलीग्स लविंग और केयरिंग कहें तो पुरुषों का आत्मबल बढ़ जाता है. परिवार के लिए वे जो कुछ भी करते हैं उस के लिए उन्हें यदि घर के सदस्य केयरिंग मान लें तो बस इतना ही काफी है.

5. ऐक्सीलैंट इन वर्क:

अपनी फील्ड में यदि पुरुष को उस का बौस, सहकर्मी या कोई सीनियर सर्वश्रेष्ठ कह दे या उस के प्रयासों की सराहना करे तो वह प्रफुल्लित हो उठता है. अपने कार्य की सराहना हर पुरुष में स्वाभिमान व कौन्फिडैंस भर देती है.

6. यू आर रीयली वैरी टैलेंटेड:

नौकरी, व्यापार के अतिरिक्त यदि कोई गुण आप में है और उस में आप उम्दा हैं, तो कोई उसे रेकगनाइज करे तो बहुत अच्छा लगता है. समाजसेवा, गाना, लिखना, खेलना किसी भी क्षेत्र में अपनी प्रतिभा की स्वीकृति न केवल पुरुषों को खुशी देती है, बल्कि उन्हें और अच्छा करने को भी लालायित करती है.

7. लुकिंग वैरी हौट टुडे:

महिलाओं की तरफ से खासतौर पर गर्लफ्रैंड की ओर से मिला यह कौंप्लीमैंट पुरुषों को घंटों, हफ्तों, महीनों तक खुश रख सकता है. आज के जमाने में यदि यह तारीफ सहकर्मियों से भी सुनने को मिले तो पुरुष उसे बेहद अच्छा मानते हैं.

8. आप अपनी उम्र से कम दिखते हैं:

पुरुषों को भी अपनी उम्र से कम दिखना अच्छा लगता है और यह कौंप्लीमैंट अगर महिलाओं से मिले तो सोने में सुहागा. किसी भी उम्र के पुरुष को अपनी उम्र से छोटा दिखना हमेशा पसंद होता है.

9. आप को तो बहुत लोग पसंद करते हैं:

कहने वाला न केवल इस से अपनी चाहत दर्शाता है, बल्कि वह खास व्यक्ति कितना प्रसिद्ध है यह भी बताता है. पुरुषों को ऐसे जुमले बहुत पसंद होते हैं. इस से उन की काम करने की शक्ति दोगुनी हो जाती है.

10. आप बड़े टैक्नोसेवी हैं:

गैजेट्स पर मास्टरी आज के जमाने में एक अतिरिक्त टैलेंट है. यदि पुरुष कंप्यूटर, लेटैस्ट ऐप्लीकेशंस, कैमरा, मोबाइल के विषय में कौंप्लीमैंट पाते हैं, तो इस से वे अच्छा फील करते हैं और उन की कार्यक्षमता भी निखरती है.

11. आप विश्वास के योग्य हैं:

किसी भी पुरुष को यह सुन कर बेहद अच्छा लगता है कि लोग उस पर विश्वास करते हैं. फिर चाहे बात चरित्र की हो या काम की, रिश्ते निभाने की हो या सहयोग करने की.

12. यू आर वैरी कूल:

कूल कहलाना आज के जमाने में कौंप्लीमैंट है. यह स्मार्टनैस और धैर्य को दर्शाता है. वर्कप्लेस पर, घर पर, कहीं भी यदि आप कूल कहे जाते हैं तो इस का मतलब आप में कोई बात है.

अकेले में पति की तारीफ पत्नी करे तो अच्छा लगता है, पर यदि सोसाइटी में सब के सामने पत्नी पति की तारीफ करे तो समझिए जीवन सुधर गया.

शादी से डर कैसा

आप खूबसूरत हैं, शादी की उम्र भी है, संस्कारी भी हैं और अच्छा कमा भी रहे हैं यानी सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन हैं, तो आप के चर्चे आसपास होने लगते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आप सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन हैं, लेकिन शादी से कतराते हैं. सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन की शादी के बारे में उन से ज्यादा उन के दोस्त, परिवार वाले और पासपड़ोस के लोग बातें करते हैं. ऐसा सिर्फ छोटे या मैट्रो शहरों में ही नहीं होता, बल्कि देशविदेश सभी जगह यही हाल है.

मुंबई के मलाड में रहने वाली दीपा 30 साल की लड़की है. बेहद खूबसूरत है और अच्छा कमा भी रही है. अपने पैसे से देशविदेश हर जगह घूमती है. उस की बड़ी बहन और भाई की शादी 24-25 साल की उम्र में ही हो चुकी है, लेकिन दीपा अभी शादी नहीं करना चाहती. उस की मां जया शर्मा ने उस पर बहुत जोर डाला, लेकिन अंतत: हार मान ली. भाई की शादी और बच्चे होने पर छोटे घर में रहने की दिक्कत को देखते हुए दीपा ने अपनी मां को राजी कर लिया कि वह अलग घर ले कर अकेले रहेगी और शनिवारइतवार उन से मिलने आ जाया करेगी. लेकिन जब भी दीपा से उस की शादी की बात करो, वह शादी को जिंदगी का एक बहुत ही बड़ा निर्णय मानती है. यह निर्णय गलत न हो जाए, इसलिए फूंकफूंक कर कदम रखने के चक्कर में इस रास्ते पर आगे बढ़ ही नहीं पा रही. ऐसा नहीं है कि वह कभी शादी नहीं करना चाहती, लेकिन निर्णय नहीं ले पाती. अब तक उस की जिंदगी में 2 लड़के आ भी चुके हैं. एक रिश्तों के मामलों में बहुत गंभीर था. शादी भी जल्दी करना चाहता था तो दूसरे से दीपा की बनी नहीं, इसलिए दूरियां आ गईं.

ऐसा सिर्फ मुंबई में रहने वाली दीपा के साथ ही नहीं, कई लड़केलड़कियों के साथ होता है. वे शादी करना तो चाहते हैं, लेकिन शादी की उम्र और वक्त को पहचान नहीं पा रहे होते या कहें कि शादी के बाद के जिस डर से वे बच रहे होते हैं, दरअसल वह सब कुछ वे बिना शादी के भी झेल रहे होते हैं. इस संबंध में मुंबई के एस.एल. रहेजा (फोर्टिस एसोसिएट) के क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट डा. भूपेश शाह बताते हैं कि आजकल की लड़कियां बहुत नाजुक मिजाज हैं, क्योंकि वे स्वावलंबी हैं. वे अपनी जिंदगी में कोई भी समझौता नहीं करना चाहतीं, इसलिए ऐसा घर ढूंढ़ती हैं, जहां पति सुंदर हो, उस के मातापिता साथ न रहते हों, अकेला बेटा हो, अच्छे पद पर हो, तनख्वाह भी अच्छी हो और उन्हें समझ भी सके. लेकिन सारी खूबियां एक शख्स में मिलना आसान नहीं होता, इसलिए लड़कियों का इंतजार लंबा होता जाता है.

31 साल की तान्या मूलत: लखनऊ से है, दिल्ली की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती है और पिछले कई सालों से मातापिता के साथ दिल्ली में ही रह रही है, लेकिन शादी से डरती है. वह बताती है कि करीब 4-5 साल पहले उस के इर्दगिर्द दोस्तों की लाइन लगी रहती थी. जैसे ही आफिस में अपनी सीट से उठती, दोस्त आ जाते और फिर कहीं न कहीं खानेपीने जाने का प्रोग्राम बन जाता. इन में ज्यादातर लड़के थे और उसे शादी के लिए प्रपोज भी कर रहे थे. वे चाहते थे कि वह हां कर दे. लेकिन हर बार तान्या किसी न किसी बात को ले कर डर जाती. किसी लड़के के बातचीत के ढंग में अतिविश्वास झलकता था, तो किसी का परिवार रूढिवादी होता. कोई उस से जूनियर था, कमाता भी अच्छा नहीं था. राजीव नाम के एक लड़के से तो उस ने अपने मातापिता को भी मिलवाया था, लेकिन बाद में उसे राजीव बहुत ही भावुक और बेमतलब की बातें करने वाला बोरिंग लगने लगा. ऐसे ही समय निकल गया. आज उन सभी लड़कों की शादियां हो चुकी हैं, लेकिन अब भी तान्या का बहुत मन होता है, दोस्तों के साथ जाए, खाएपीए, घूमेफिरे. पहले की तरह उस का ग्रुप हो, लेकिन आज दोस्त अपनीअपनी जिंदगी में मसरूफ हैं. कभीकभी मिलने का कार्यक्रम बना कर रद्द तक कर देते हैं. तान्या की सुयोग्यतम भावी दुलहन वाली उम्र निकल गई. अब जब कभी दोस्तों के साथ कहीं घूमने जाती है तो वही पैसे खर्च करती है, जबकि यही दोस्त महज कुछ साल पहले तक उस पर खर्च करने के लिए एक पांव पर खड़े रहते थे.

सुयोग्यतम दूल्हा/दुलहन होने में मजा

जो कैरियर में अच्छा कर रहे हों, होशियार हों, खूबसूरत हों और अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते हों, तमाम लोग उन की तरक्की और उन की शादी के बारे में ही बातें करते हों, उन के यारदोस्त उन के जैसा बनने की कोशिश करते हैं, कुछ उन से जलते भी हैं. अगर ऐसे लड़केलड़की अपनी सारी खूबियों को खुद जानते हैं तो वे शादी करने से और भी ज्यादा डरने लगते हैं. उन्हें हमेशा इस बात का डर लगता है कि उन के बराबर का मैच नहीं मिला तो क्या होगा? डा. भूपेश शाह बताते हैं कि ऐसे लड़केलड़कियां बराबर का वर/वधू चाहने लगे हैं. वे अपने से थोड़ा ऊपर और नीचे के वर/वधू से सामंजस्य नहीं बैठाना चाहते.

यहां बात सिर्फ सेलिब्रिटी की नहीं है. आम जिंदगी में भी हमारे आसपास सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन होते ही हैं. जब लड़के या लड़की को यह एहसास होता है कि वह तो सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन है उस के व्यवहार या स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है. ऐसे युवा ऐसे वक्त का वे आनंद उठाने लगते हैं. उन के आसपास सब लोग उन के साथ खूब फ्लर्ट करते हैं. उन्हें खासी एहमियत मिलती है. ऐसे में उन के परिवार या दोस्तों की जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें सच से वाकिफ कराएं. आगे आने वाले वक्त के बारे में सोचने को कहें. डा. भूपेश शाह के मुताबिक, ऐसे संबंधों में रहते हुए भी मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से आप उतने ही तालमेल बैठा रहे होते हैं, जितना शादी के बाद बैठाना होता है.

शादी न करने के पीछे का डर

जब आप की जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा हो तो निम्न डर भी होते हैं, जो आप को शादी से रोकते हैं:

सामने वाला जो आप को प्रपोज कर रहा है, कहीं वह आप के पैसे और ओहदे के कारण तो आकर्षित नहीं है. हालांकि यह भय लड़कियों के मन में ज्यादा होता है. लेकिन लड़के भी चाहते हैं कि उन्हें पसंद किया जाए तो उन के स्वभाव या व्यक्तित्व को पसंद किया जाए न कि उन के ओहदे और कमाई को देख कर आप उन्हें पसंद करें. हालांकि वे आप को रिझाने के लिए अपने पैसे और ओहदे का इस्तेमाल कर रहे होते हैं.

अपने जैसी सोच वाले या अपने बराबर होशियार लड़कालड़की न मिलने का डर. यह भी लगता है कि कहीं गलती न हो जाए, सही व्यक्ति चुनने में, वह हमारे

सोचता है या नहीं, हमारी तरह होशियार है या नहीं. प्रोफैशन क्या है. कैरियर में आगे बढ़ने की इच्छा और काबिलीयत है या नहीं. यानी पहले की तरह अब हम सिर्फ एक घरेलू सीधीसादी लड़की या फिर एक बढि़या संस्कारी लड़का नहीं ढूंढ़ रहे होते, बल्कि एक पूरा पैकेज चाहिए और यह पैकेज जिस के पास है, वह खास हो जाता है.

कई बार मातापिता या किसी दोस्त की शादी में दूरियां देखी हों या असफल शादी देखी हो तो अपनी शादी के प्रति ज्यादा सतर्क हो जाते हैं. इसलिए इस शादी नाम के बंधन में बंधने से घबराहट होती है.

कुछ युवा खुद को किसी भी बंधन से आजाद रखना चाहते हैं. शादी कहीं उन के कैरियर में आगे बढ़ने के रास्ते न बंद कर दे. जिम्मेदारियों का बोझ उन की तरक्की में रुकावट होगा. शादी उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी या जवाबदेही लग रही होती है. डर होता है कि कहीं प्यार का रिश्ता, जबरदस्ती के रिश्ते में न बदल जाए.

जो जैसा चल रहा है बढि़या है. आप को पता ही नहीं है कि आप को शादी से किस तरह का डर है. बस, आप शादी करने के पीछे नहीं पड़ना चाहते, जब होनी होगी हो जाएगी. उस के लिए कोशिश करने का न तो वक्त न ही मन है.

शादी को ले कर आया लोगों की सोच में बदलाव

आज लड़का या लड़की ढूंढ़ने के मामले में सब से बड़ा आधार धर्म या जाति न हो कर प्रोफैशन और शिक्षा बन रही है. शादी डौटकौम के बिजनैस हैड गौरव रक्षित के मुताबिक, प्रोफैशन में भी कई श्रेणियां हैं. जैसे, अकसर कई गुजराती लोग बिजनैसमैन दामाद ही ढूंढ़ते हैं. उन्हें नौकरीपेशा लड़के पसंद नहीं आते. हालांकि जीवनसाथी चुनने के मामले में लोगों की पसंद में समयसमय पर बदलाव भी आते रहते हैं. जैसे आर्थिक मंदी के दौर के पहले तक भारत में सब से ज्यादा सौफ्टवेयर इंजीनियर्स की डिमांड थी, लेकिन मंदी के समय में जब विदेशों में कमा रहे बहुत से सौफ्टवेयर इंजीनियर भारत लौटे, तब से शादी के मामलों में उन की मांग घटी है. लड़कियों के मातापिता दूसरे व्यवसाय के लड़के ढूंढ़ने लगे. समय के साथ यह भी बदलाव आया है कि आज ज्यादातर लोग नौकरीपेशा बहू या बीवी ही ढूंढ़ रहे हैं.

गौरव कहते हैं कि यों तो शादी के लिए रजिस्टर करने वाले अधिकतर लोगों की उम्र 18 से 40 के बीच होती है, लेकिन सब से ज्यादा 24 से 30 साल के लोग इस में आते हैं और ज्यादातर लोग 30 से कम उम्र की लड़कियां ही ढूंढ़ते हैं. देर से शादी करने के बारे में डा. भूपेश शाह कहते हैं कि अधिक उम्र में शादी करने पर सब से ज्यादा मुश्किल लड़कियों को ही होती है, क्योंकि आज के जमाने में सचिन तेंदुलकर की तरह अधिक उम्र की लड़की से शादी करने के मामले अपवाद ही हैं.

वो गुजर रहे हैं उन्हीं परिस्थितियों से, जिन से शादी के बाद गुजरते

जिस तरह के जीवनसाथी की आप ने कल्पना की है, वैसा आप के इर्दगिर्द नहीं या फिर जो आप को पसंद आता है, उसे आप पसंद नहीं और जिन्हें आप पसंद हों, वे आप को पसंद नहीं. इसी कशमकश में जिंदगी के साल गुजर रहे हैं. लेकिन आप अड़े बैठे हैं कि जैसा जीवनसाथी आप चाहते हैं, उसी से शादी करेंगे नहीं तो शादी ही नहीं करेंगे. लेकिन इस दौरान अगर आप का बौयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड है तो क्या आप वैसे ही पूरी जिम्मेदारी उठा रहे हैं जैसे शादी के बाद उठाते? रीना उदय से शादी नहीं करना चाहती. अभी नहीं या कभी नहीं, यह तो वह भी नहीं जानती, लेकिन दोनों पिछले 3 सालों से गर्लफ्रैंड, बौयफ्रैंड हैं. दोनों ने अलगअलग घर लिया लेकिन दोनों का ज्यादातर समय एकदूसरे के घर पर ही बीतता है. उदय और रोज शाम रीना को आफिस से घर छोड़ता है. दोनों ज्यादातर बाजार में खाते हैं या फिर रीना पका कर खिलाती है.

रीना की मां की तबीयत बिगड़ी तो उदय उस के साथ मेरठ गया और सारा खर्च उस ने उठाया. यानी जितनी जिम्मेदारी एक पति की उठाई जाती उतनी रीना उठा रही है और जितने नाजनखरे बीवियों के सहने पड़ते हैं वे सब उदय सह रहा है. बीच में करीब 8 महीने तक दोनों में बातचीत बंद थी. उस दौरान रीना के जीवन में एक लड़का भी आया, लेकिन उस के साथ भी बात आगे बनी नहीं. 8 महीने बाद रीना और उदय में फिर से सुलह हो गई. अब 2 साल से दोनों साथ हैं, लेकिन शादी के लिए रीना अभी भी तैयार नहीं. जीवन में जितने भी समझौते करने हैं वे तो आप कर ही रहे हैं तो फिर शादी से डर कैसा? यह तालमेल आप अपनी शर्तों पर भी कर सकते हैं, जैसे कि बौलीवुड एक्टर इमरान खान और उन की पत्नी अवंतिका ने किया. हाल ही में दोनों ने अपनी शादी पर थाईलैंड में अपनी लिखी शर्तें या कहें वादे पढे़. ऐसा कुछ आप भी सोच सकते हैं.

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स्पाइनल इंजरी और मैरिड लाइफ

स्पाइनल इंजरी किसी के भी जीवन की त्रासदपूर्ण घटना हो सकती है. इस से व्यक्ति एक तरह से लकवाग्रस्त हो सकता है. इंजरी जब गरदन में हो तो इस से टेट्राप्लेजिया हो सकता है. यदि इंजरी गरदन के नीचे हो तो इस से पाराप्लेजिया यानी दोनों टांगों और इंजरी से निचले धड़ में लकवा हो सकता है. केंद्रीय स्नायुतंत्र का हिस्सा होने के कारण स्पाइनल कौर्ड की सेहत पर ही पूरे शरीर की सेहत निर्भर करती है. इंजरी से यौन सक्रियता भी प्रभावित हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी ऊंचाई से गिरने, सड़क दुर्घटना, हिंसक या खेल की घटनाओं के कारण हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी के नौनट्रोमेटिक कारणों में स्पाइन और ट्यूमर के टीबी जैसे संक्रमण शामिल हैं.

यौन सक्रियता जरूरी

स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति को यथासंभव आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश होनी चाहिए. भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में यौन स्वास्थ्य पर चर्चा करना हमेशा वर्जित विषय माना जाता रहा है, इसलिए इस विषय पर बात करने से लोग कतराते हैं और मरीज खामोशी से इसे सहता रहता है. शिक्षा, ज्ञान और जागरूकता के अभाव में लोग ऐसे मरीजों के बारे में यह समझने लगते हैं कि वे यौनेच्छा एवं यौन उत्कंठा से पीडि़त हैं. लेकिन सच यह है कि सामान्य व्यक्ति की तरह ही स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति के लिए भी यौन सक्रियता उतनी ही जरूरी है.

पार्टनर का अभाव

दरअसल, स्पाइन इंजरी इच्छाशक्ति का स्तर तो प्रभावित नहीं करती, लेकिन किसी व्यक्ति की यौन गतिविधि प्रभावित जरूर हो जाती हैं. कई बार ऐसा पार्टनर के अभाव में भी होता है. अन्य मामलों में यह मांसपेशियों पर नियंत्रण रखने वाले व्यायाम की कमजोर क्षमता के कारण भी हो सकता है. यौन अनिच्छा लिंग के आधार पर भी अलगअलग हो सकती है. पुरुष जहां उत्तेजना के अभाव के कारण प्रभावित होते हैं, वहीं महिलाएं आमतौर पर शिथिल पार्टनर होने के कारण इस से कम प्रभावित होती हैं खासकर भारतीय समाज में. लेकिन स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन अनिच्छा को सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम और निरंतर अभ्यास से बहुत हद तक दूर किया जा सकता है.

समस्या की अनदेखी

ऐसे मरीजों में आत्मविश्वास जगाना और यौन स्वास्थ्य के बारे में उन से खुल कर बात करना बहुत जरूरी होता है. इस में तंबाकू पूरी तरह से निषेध होना चाहिए. शारीरिक गतिविधियों के अभाव और दर्द के अलावा एससीआई मरीज आकर्षण, संबंधों और प्रजनन की क्षमता जैसे अन्य कारकों को ले कर भी चिंतित रहते हैं. समय के साथ जहां मरीज अपने नवजात शिशु के साथ जीना सीख जाते हैं और परिवर्तित जिंदगी अपना लेते हैं, वहीं वे अपने यौन स्वास्थ्य को ले कर अकसर अनजान रहते हैं. मरीज के शरीर की कुछ खोई गतिविधियां बहाल करने के लिए व्यापक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के दौरान भी यौन समस्या की अनदेखी ही की जाती है.

खुद पहल नहीं करतीं

एससीआई के मामले में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए अकसर सैक्सुअल पार्टनर बनना ज्यादा आसान होता है जो न सिर्फ शारीरिक रचना के कारण, बल्कि सक्रियता के स्तर पर भी संभव होता है. भारत जैसे रूढिवादी समाज में महिलाओं से यौनइच्छा की उम्मीद करना मुश्किल है. भारत की 80% महिलाएं ऐसी पैसिव सैक्सुअल पार्टनर होती हैं जो खुद पहल नहीं करतीं. इसलिए पुरुषों की तुलना में उन के लिए यौन स्वास्थ्य वापस पाना ज्यादा आसान होता है और उन का मुख्य लक्ष्य यौन सक्रियता वापस पाना तथा संभोग करने की क्षमता हासिल करना होता है.

समस्या का समाधान

पुरुषों के मामले में समस्याएं उत्तेजना में कमी और स्खलन से ही जुड़ी होती हैं. उन की उत्तेजना क्षमता और स्खलन में बदलाव आने के अलावा कामोत्तेजना की यौन संतुष्टि भी एक ऐसा क्षेत्र है जो एससीआई पीडि़त पुरुषों के लिए चिंता का कारण होता है. एक अन्य चिंता स्पर्म की क्वालिटी पर होने वाले प्रभाव और स्पर्म काउंट को ले कर होती है. ज्यादातर स्पाइनल इंजरी के मामले में वियाग्रा जैसी दवा से उत्तेजना की समस्या दूर की जा सकती है. कुछ मामलों में वैक्यूम ट्यूमेसेंस कंस्ट्रक्शन थेरैपी (वीटीसीटी) या पैनाइल प्रोस्थेसिस जैसे उपकरण की भी जरूरत पड़ सकती है.

गलत धारणा की वजह

सैक्सुअल काउंसलिंग और मैनेजमैंट विकासशील देशों में एससीआई के सब से उपेक्षित पहलुओं में से एक है. लेखकों के एक अध्ययन से पाया गया है कि एससीआई से पीडि़त 60% मरीजों और उन के 57% पार्टनरों ने पर्याप्त रूप से सैक्सुअल काउंसलिंग नहीं ली. जिन फैक्टर्स पर बहुत कम जोर दिया जाता है, उन में से एक है जागरूकता और सांस्कृतिक बदलाव. पति और पत्नी के बीच यौन संबंध का मकसद सिर्फ बच्चे पैदा करना ही माना जाता है. सैक्स के बारे में बातचीत को खराब माना जाता है. यौन समस्याएं न सिर्फ आम हो गई हैं, बल्कि सैक्स की अनदेखी, सैक्स के बारे में गलत धारणाओं और नकारात्मक सोच भी इस के मुख्य कारण माने जाते हैं. पारंपरिक वर्जना भी इस में अहम भूमिका निभाती है. सैक्सुअलिटी को प्रभावित करने वाले अन्य सामाजिक, पारंपरिक फैक्टर्स में यौन संबंधी सोच, मातापिता के प्रति सम्मान तथा अन्य ऐसे कारण शामिल हैं, जिन में सैक्स को खराब माना जाता है और पुरुषों तथा महिलाओं के लिए बरताव के दोहरे मानदंड अपनाए जाते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्थिति बदतर होती है.

आत्मविश्वास में कमी

एक अध्ययन के अनुसार, विकसित देशों की तुलना में भारत जैसे देश में स्पाइनल कौर्ड इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन गतिविधि की बारंबारता कम रहती है. ज्यादातर मरीज इंजरी से पहले की तुलना में मौजूदा स्तर पर अपने सैक्स जीवन को कमतर आंकते हैं. यह शायद एससीआई की समस्याओं, इंजरी के बाद पार्टनर की असंतुष्टि, यौनक्रिया के दौरान पार्टनर से कम सहयोग, आत्मविश्वास में कमी तथा अपर्यात सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के कारण भी हो सकता है. पश्चिमी देशों के मामलों की तरह बहुत कम पार्टनर संतुष्ट होते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाएं यौन संतुष्टि के अभाव की शिकायतें ज्यादा करती हैं. इस के पीछे प्रचलित सांस्कृतिक मान्यता है कि किसी बीमार महिला के साथ यौन संबंध बनाना नैतिकता के विरुद्ध है और इस से पुरुष पार्टनर में भी रोग संचारित हो सकता है. भारतीय समाज में महिलाओं की कमतर स्थिति, पार्टनर की भिन्न सोच, पाचनतंत्र आदि की गड़बड़ी और निजता का अभाव भी इस के कुछ अन्य संभावित कारण हो सकते हैं.

यौनजीवन का अंत नहीं

निष्कर्षतया स्पाइनल इंजरी को यौनजीवन का अंत नहीं मान लेना चाहिए. इस से इंजरी पीडि़त व्यक्ति को अपने नए शरीर में यौन सुख स्वीकार करने में मदद की जरूरत पड़ती है और कई बार उस के लिए अलग तरीके से सोचने की जरूरत होती है. परिवर्तित संवेदनशीलता, शारीरिक प्रतिबंध की स्वीकृति या उन्नत मसल कंट्रोल जैसे फैक्टर्स को समझने से स्पाइनल इंजरी मरीज को स्वस्थ यौनजीवन बहाल करने में मदद मिल सकती है. उस के सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के लिए मैडिकल प्रोफैशनल्स की मदद की जरूरत होती है. इस संबंध में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है खासकर भारतीय समाज तथा प्रोफैशनल्स के बीच.      –

(डा. एच.एस. छाबड़ा, इंडियन स्पाइनल इंजरीज सैंटर में स्पाइन सर्वि के प्रमुख और मैडिकल डायरैक्टर)

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जब घर आएं माता पिता

मैं अपनी पड़ोसिन कविता को कुछ दिनों से बहुत व्यस्त देख रही थी. वह बाजार के भी खूब चक्कर लगा रही थी. हर दिन शाम की वाक हम साथ करती थीं पर अपनी व्यस्तता के कारण वह आजकल नहीं आ रही थी, तो पार्क में खेलती उस की बेटी काव्या को बुला कर मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘काव्या, बहुत दिनों से तुम्हारी मम्मी नहीं दिख रही हैं. सब ठीक तो है?’’

‘‘आंटी, दादादादी आने वाले हैं मेरे घर. मम्मी उन की आने की तैयारी में ही लगी हैं,’’ काव्या ने बताया.

पता नहीं क्यों ‘मेरे घर’ शब्द सुन देर तक हथौड़े से बजते रहे मेरे मन में. फिर दूसरे ही दिन कविता के पति कामेश को देखा. शायद वह अपने मातापिता को स्टेशन से ले कर आ रहा था. उस के बाद करीब 10 दिनों तक कविता बिलकुल नहीं दिखी. दफ्तर से भी उस ने छुट्टी ले रखी थी. शाम की वाक बंद थी ही उस की.

एक दिन मैं उस के सासससुर और उस से मिलने उस के घर जा पहुंची. सासससुर ड्राइंगरूम में बैठे थे. कविता अस्तव्यस्त सी रसोई और अन्य कमरों के बीच दौड़ लगा रही थी. मैं उस के सासससुर से बातें करने लगी.

भेदभाव क्यों

‘‘हमारे आने से कविता का काम बढ़ जाता है. मुझे बुरा लगता है,’’ उस के ससुर ने कहा.

‘‘सच, मुझेभी कोई काम करने नहीं देती, बिलकुल मेहमान बना कर रख दिया है,’’ उस की सासूमां ने कहा.

उन लोगों की बातचीत से लगा कि वे जल्दी चले जाएंगे ताकि कविता अपने दफ्तर जा सके. मैं लौटने लगी तो कविता मुझे गेट तक छोड़ने आई. तब मैं ने पूछा, ‘‘क्यों मेहमानों जैसा ट्रीट कर रही उन के साथ, जबकि वे दोनों अभी इतने भी बूढ़े या लाचार नहीं हैं?’’

‘‘नहीं बाबा, मुझे अपने सासससुर से कुछ भी नहीं कराना है. मेरी बहन ने अपनी सास को जब वे उस के साथ रहने आई थीं, कुछ करने को कह दिया था तो बात का बतंगड़ बन गया था. फिर मेरे पति की भी यही इच्छा रहती है कि मैं उन्हें हाथोंहाथ रखूं पर यह अलग बात है कि मैं अब इंतजार करने लगी हूं इन के लौटने का,’’ कविता ने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा.

मैं मजबूर हो गई कि क्यों बोझ बना दिया है कविता ने सासससुर की विजिट को. वे लोग अपने बेटे और बहू के साथ रहने आए हैं अपना घर समझते हुए, परंतु उन के साथ मेहमानों जैसा सुलूक किया जा रहा है. मुझे याद आया उस की बेटी काव्या का वह कथन ‘मेरे घर’ दादादादी आ रहे हैं, जबकि वास्तव में घर तो उन का ही है यानी सब का है.

एक अलग संरचना

वहीं तसवीर का एक और पहलू भी होता है, जब बहू सासससुर के आगमन को अपनी कलह और कटुता से रिश्तों में कड़वाहट भर लेती है. मेरी मौसी को जोड़ों में दर्द रहता था. रोजमर्रा के काम करने में भी उन्हें दिक्कत आने लगी तो वे मौसाजी के साथ अपने बेटे के पास चली गईं. मगर महीना पूरा होतेहोते वे वापस अपने घर का ताला खोलते दिख गईं. वहां बेटे के तीसरी मंजिल के घर की सीढि़यां चढ़नाउतरना और कष्टकर था. फिर वे उतना घरेलू कार्य करने में भी अक्षम थीं जितनी कि उन से वहां उम्मीद की जा रही थी.

विकसित देशों में वृद्धों के लिए सरकार की तरफ से बहुत कुछ होता है ताकि वे अपने बच्चों के बगैर भी अच्छी जिंदगी जी सकें, पर विदेशों से उलट हमारे देश में मातापिता बच्चों की काफी बड़ी उम्र तक देखभाल करते हैं. मध्यवर्गीय पेरैंट्स के जीवन का मकसद ही होता है बच्चों को सैटल करना. वही बच्चे जब सैटल हो जाते हैं, उन का अपना घरसंसार बस जाता है तो मातापिता को बाहर वाला समझने लगते हैं.  बेटाबहू हो या बेटीदामाद क्या वे सहजता से मातापिता के आगमन को स्वीकार नहीं कर सकते? हो सकता है रहने का ढंग कुछ अलग हो पर क्या उन्हें अपनी दिनचर्या के हिसाब से इज्जत के साथ नहीं रखा जा सकता है? ये वही होते हैं, जो बिना बोले आप की जरूरतों को समझ लिया करते थे.

हमारे यहां सामाजिक ढांचा ही कुछ ऐसा होता है कि सब आपस में जुड़े ही रहते हैं. संयुक्त परिवारों की एक अलग संरचना होती है. यहां हम वैसे मातापिता का जिक्र कर रहे हैं, जो साल 6 महीनों में अपने बच्चों से मिलने जाते हैं. कुछ दिन या महीने 2 महीने के लिए. ऐसे में बच्चे इन बातों का ध्यान रख लें तो आपस में मिलनाजुलना, साथ रहना सुखद हो जाएगा:

– मिलतेजुलते रहना चाहिए वरना एकदूसरे के बिना जीने की आदत हो जाएगी. हमेशा मिलते रहने से दोनों ही एकदूसरे की आदतों से परिचित रहेंगे.

खुद भी सोचिए

– यह बात सही है कि वे अपने स्थान पर खुश हैं, फिर भी बच्चों का यह फर्ज बनता है कि वे मातापिता को जल्दीजल्दी बुलाएं, कम से कम जब तक वे स्वस्थ हैं. 3-4 साल में 1 बार बुलाने की जगह 3-4 महीनों में बुलाते रहें, भले ही कम दिनों के लिए ही सही, क्योंकि निरंतर मेलजोल से प्यार बना रहता है. फिर 5-6 दिनों के आगमन हेतु उन्हें कोई विशेष तैयारी भी नहीं करनी पड़ेगी.

– वे ‘आप के घर’ नहीं वरन ‘अपने घर’ आते हैं. इस सोच का आभास उन्हें भी कराएं और अपने बच्चों को भी. घर के छोटे या बड़े होने से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना दिलों के संकुचन से पड़ता है. अकसर सुना जाता है पोतेपोती/नातीनातिन कहेंगे दादाजी मेरे कमरे में सोते हैं. कितनी बार देर रात तक बत्ती जलाए रखने पर दादी द्वारा टोकने पर पोती कह देगी उफ, तुम कब जाओगी दादी? सोचिए कि आप के मातापिता के दिल पर क्या गुजरेगी जब आप के बच्चे ऐसा बोलेंगे. यह आप ही की गलती है, जो आप ने अपने बच्चों के मन में ऐसे विचार डाले हैं कि दादादादी/नानानानी बाहर वाले हैं और घर सिर्फ आप और आप के बच्चों का है. सोच कर देखिए कल को इसी तरह आप भी अपने बच्चों के जीवन में हाशिए पर होंगे.

खयाल रखें

यदि आप सुनते हैं कि बच्चों ने ऐसा कहा है तो तुरंत मातापिता के समक्ष ही उन्हें सही बात समझाएं कि आप अपने मातापिता के घर में नहीं दादादादी के घर में रह रहे हैं.

उन के आने पर अपने रूटीन को न बदलें, बल्कि उन्हें भी अपने रूटीन के हिसाब से सैट कर लें अन्यथा उन का आना और रहना जल्दी बोझ महसूस होने लगेगा.

आप जो खाते हैं जैसा खाते हैं वही उन्हें भी खिलाएं. हां, यदि स्वास्थ्य की समस्या हो तो आप को उसी हिसाब से कुछ बदलाव करना चाहिए. नई पीढ़ी का खानपान अपनी पुरानी पीढ़ी से बिलकुल बदल चुका है. रोटीसब्जी, दालचावल खाने वाले मातापिता कभीकभी ही बर्गरपिज्जा खा सकेंगे. अत: उन के स्वाद और स्वास्थ्य के अनुसार भोजन का प्रबंध अवश्य करें. यह आप का फर्ज भी है. तय करें कि बढ़ती उम्र के साथ उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्व मिल रहे हों.

यदि वे स्वेच्छा से कुछ करना चाहें तो अवश्य करने दें. जितनी उन की सेहत आज्ञा दे उन्हें गृहस्थी में शामिल करें. इस से उन का मन भी लगेगा, व्यस्त भी महसूस करेंगे और भागीदारी की खुशी भी महसूस करेंगे.

समझदारी से काम लें

न अति चुप भली न ही अति बोलना. जब मातापिता साथ हों तो उन के लिए कुछ समय अवश्य रखें, क्योंकि वे उसी के लिए आप के पास आए हैं. साथ टहलने जाएं या छुट्टी वाले दिन साथ कहीं घूमने जाएं. कुछ अपनी रोजमर्रा की बातें शेयर करें तो कुछ उन की सुनें.

उन की बदलती आदतों को गौर से देखें. कहीं किसी बीमारी के लक्षण तो नहीं. जरूरत हो तो डाक्टर को दिखाएं. याद करें कि कैसे मां आप के चेहरे को देख आप की तकलीफों को भांप लेती थी.

यदि मिलना जल्दीजल्दी होता रहेगा तो आप समय पूर्व ही उन की बीमारियों को भांप लेंगे और इस से पहले कि उन की तकलीफें ज्यादा बढ़ें आप वक्त पर उन का इलाज करा सकेंगे.

अपने बच्चों को उन के नानानानी/दादादादी से जुड़ने दें. यह बहुत जरूरी है कि बच्चे बूढ़े होते ग्रैंड पेरैंट्स को जानें. वे उन के प्रति संवेदनशील बनें. यह बात उन्हें एक बेहतर इनसान बनने में मदद करेगी. कल आप के बुढ़ापे को भी आप के बच्चे सहजता से ग्रहण कर लेंगे.

जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरैंट्स से जुड़े रहते हैं वे अधिक समझदार व परिपक्व होते हैं. उन बच्चों की तुलना में जो इन से महरूम होते हैं. अकसर एकल परिवारों के बच्चे बेहद स्वार्र्थी और आत्मलीन प्रवृत्ति के हो जाते हैं.

कुछ बातों को नजरअंदाज करें. जब 2 बरतन साथ होंगे तो उन का टकराव स्वाभाविक है. छोटी बातों को छोटी समझ दफन कर देना ही समझदारी है.

सुमेधा के पति उस के पापा को बिलकुल पसंद नहीं करते थे, परंतु इस के बावजूद सुमेधा ने पापा को बुलाना नहीं छोड़ा. न चाहते हुए भी मिलतेजुलते रहने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे को समझने लगे. सुमेधा को एक बार 3 महीनों के लिए विदेश जाना पड़ा. उस के पीछे उस के पति की टांग में फ्रैक्चर हो गया. तब उस के ससुर ने  ही आ कर उसे संभाला.

दूरियां मिटाएं

सासबहू के रिश्ते को सब से ज्यादा बदनाम किया जाता है जबकि सचाई यह है कि ये दोनों एक ही व्यक्ति को प्यार करती हैं और इस तरह यह वर्चस्व की लड़ाई बन जाती है. बेटे की समझदारी और सूझबूझ से आए दिन की टकराहट को टाला जा सकता है. पर इस के चलते मिलनाजुलना बंद कर देना रिश्तों का कत्ल है. साथ रहने से, मिलतेजुलते रहने से धीरेधीरे एकदूजे को समझने में मदद मिलेगी. मिलते रहने से ही समस्या सुलझेगी, दूरियों के मिटने से ही अंतरंगता बढ़ेगी.

मातापिता वे इनसान हैं जिन्होंने आप को पालपोस कर बड़ा किया. जब वे आप की परवरिश कर सकते हैं तो खुद की भी कर सकते हैं. अभी जब वे स्वस्थ हैं, अकेले रहने में सक्षम हैं तो आप का यह फर्ज है कि आप हमेशा मिलतेजुलते रहने का मौका तलाश करते रहें. उन्हें हमेशा अपने पास बुलाएं और इज्जत और स्नेह दें. कल को जब वे आशक्त हों, आप के साथ रहने को मजबूर हो जाएं तो उन्हें तालमेल बैठाने में कोई दिक्कत न हो. स्नेहपूर्वक बिताए हुए ये छोटेछोटे पल तब उन की जड़ों के लिए खादपानी का काम करेंगे.

रिश्ते कठपुलियों की तरह होते हैं, जिन की डोर हमारी आपसी सोच, समझदारी, सामंजस्य और सहजता में होती है. भारतीय सामाजिक संरचना भी कुछ ऐसी ही है कि दूर रहें या पास सब रहते एकदूसरे के दिल और दिमाग में ही हैं हमेशा.

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स्मार्ट पेरैंट्स तो स्मार्ट बच्चे

सभी मातापिता अपने बच्चों को सब से आगे और सफलता की ऊंचाइयों पर देखना चाहते हैं. इस के लिए वे क्याक्या नहीं करते. सुखसुविधाओं के साधन जुटाते हैं, पौष्टिक आहार खिलाते हैं, फिर भी ऐसा क्यों होता है कि कुछ बच्चे बेहद विलक्षण बुद्धि के होते हैं तो कुछ सामान्य व औसत बुद्धि के? दरअसल, जन्म के समय बच्चे के दिमाग के सैल्स सांस लेने, दिल की धड़कन जैसी कुछ खास क्रियाओं से ही जुड़े होते हैं. मस्तिष्क का बाकी हिस्सा जन्म के 5 साल के भीतर विकसित होता है. न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के चाइल्ड स्टडी सैंटर के मैनेजिंग डायरेक्टर पी. ल्यूकास के अनुसार, ‘‘जन्म के शुरुआती 5 सालों में शिशु के जीवन में घटने वाली घटनाएं न सिर्फ उस के मस्तिष्क का तत्कालीन विकास निर्धारित करती हैं, बल्कि यह भी निर्धारित करती हैं कि आने वाले जीवन में उस का मस्तिष्क कितना विकसित होगा.’’

यद्यपि शिशु के मस्तिष्क विकास के रहस्य को विशेषज्ञ अभी भी पूरी तरह सुलझा नहीं पाए हैं, लेकिन फिर भी यह तो तय है कि अभिभावकों द्वारा किए गए प्रयास बच्चे के मस्तिष्क के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

बनें स्मार्ट पेरैंट्स

यदि आप को लगता है कि बाजार में उपलब्ध बेबी डेवलपमेंट सीडी से या जल्द से जल्द उसे प्ले स्कूल में भेजने से आप के बच्चे का दिमाग तेजी से चलने लगेगा तो आप का सोचना गलत है. विशेषज्ञों की राय में बच्चे के मस्तिष्क का विकास इस पर निर्भर करता है कि आप ने उस के साथ कितना वक्त बिताया है. जी हां, बेशक यह बच्चे पालने का पारंपरिक तरीका हो, लेकिन यह बात सही है कि कंप्यूटर, वैबसाइट्स और टीवी की तुलना में बच्चे के साथ खेले गए छोटेमोटे सरल खेल, अभिभावकों का सान्निध्य बच्चे को ज्यादा ऐक्टिव और स्मार्ट बनाता है, क्योंकि इस दौरान शिशु को जो आत्मीयता और स्नेह मिलता है उस की बराबरी कोई नहीं कर सकता.यदि आप भी अपने शिशु को स्मार्ट बेबी बनाना चाहती हैं तो पहले स्मार्ट मदर बनें और उस की स्मार्ट टीचर भी. आप के द्वारा कही गई हर बात और किया गया हर कार्य आप का नन्हामुन्ना गौर से देखसुन रहा है और उस पर उस का प्रभाव भी पड़ र हा है. इसलिए उस के सर्वश्रेष्ठ विकास के लिए निम्न बातों पर गौर करें:

जन्म से 4 माह तक

उसे कुछ पढ़ कर सुनाएं, लोरी गा कर सुनाएं. शिशु के सामने तरहतरह के चेहरे बनाएं, उसे गुदगुदी करें, बच्चे की आंखों के आगे धीरेधीरे कोई रंगबिरंगी वस्तु, खिलौना या झुनझुना घुमाएं, ऐसे गाने या पोयम्स सुनाएं, जिन में शब्दों का दोहराव हो, आप और शिशु जो भी कर रहे हैं, उसे बोल कर बताएं जैसे ‘अब हम गाड़ी में जा रहे हैं’, ‘अब हम ने आप को कार की सीट पर बैठा दिया है’, ‘अब मम्मी भी कार में बैठेंगी’ आदि.

4 से 6 माह तक

स्टफ टौयज को हग करने में शिशु की मदद करें, छोटेछोटे प्लास्टिक के ब्लाक्स शिशु के आगे रख दें और देखें कि आप का नन्हामुन्ना किस तरह उन को गिरा कर अपने लिए रास्ता बनाता है. अलगअलग रिदम वाला संगीत सुनाएं, रंगबिरंगी तसवीरों वाली किताबें दिखाएं और उस की प्रतिक्रिया देखें. कोमल, खुरदरी सतह वाली विभिन्न वस्तुएं उसे स्पर्श करने को दें ताकि उन के अंतर को वह महसूस कर सके.

6 माह से 18 माह तक

बच्चे से ज्यादा से ज्यादा बातचीत करें ताकि वह विभिन्न ध्वनियों और शब्दों में तालमेल बैठा सके. परिचितों, परिवार के सदस्यों व रोजमर्रा की उपयोग की वस्तुओं से उस का रोज परिचय कराएं, सब के नाम बारबार दोहराएं, शब्दों के दोहराव वाले गाने और पोयम्स हाथों से एक्शन कर के उसे सिखाएं, उस के साथ लुकाछिपी खेलें.

18 से 24 माह

विभिन्न वस्तुओं व रंगों की पहचान कराने वाले खेल उस के साथ खेलें जैसे कई रंगों के बीच में से किसी खास रंग की वस्तु जैसे फूल, कुरसी, उस के तकिए आदि की पहचान, उस के सामने कई सारी चीजें, जिन्हें वह रोज देखता है, रख दें और उन में से कोई भी एक चीज उठाने को कहें. जितना अधिक हो सके अपने शिशु से बातचीत करें, रंगों और कागज से अब धीरेधीरे उस की पहचान कराना शुरू करें, किसी किताब में से उसे कोई कहानी पढ़ कर सुनाएं और इस दौरान उस से कुछ न कुछ सवाल पूछते रहें जैसे कब, कहां पर क्या हुआ आदि उस के खिलौने उसे स्वयं खेलने या चलाने को दें.

24 से 36 माह

जैसेजैसे शिशु साइकिल चलाना या अन्य कोई गतिविधि बखूबी करना शुरू कर दे, उसे पर्याप्त सराहना व प्रोत्साहन दें, अपने खिलौनों से विभिन्न प्रकार के खेल खेलने को प्रोत्साहित कर उस की कल्पनाशक्ति बढ़ाएं, खेलखेल में कुछ ऐसे काम उसे करने को प्रेरित करें, जो आप असल जिंदगी में करते हैं जैसे फोन पर बात करना, गाड़ी चलाना, चाय या दूध पीना आदि. कोई कहानी पढ़ कर सुनाते हुए उस से विभिन्न सवाल पूछते रहें ताकि उस की रुचि बरकरार रहे, कुछ पढ़ कर सुनाते समय विभिन्न अक्षरों या शब्दों की पहचान कराएं, फिर उस से किताब के पेज पर उन्हें ढूंढ़ने को कहें या उन की ध्वनि से परिचय कराएं.

3 से 5 वर्ष

शिशु को अपनी चीजें दूसरों से बांटना सिखाएं, इस के लिए विभिन्न उदाहरण दें, बच्चों के लिए बनाए गए गेम्स उस के साथ खेलें, जिन से उस की सोचनेसमझने और सीखने की क्षमता में वृद्धि हो, बच्चे के द्वारा टीवी देखने के समय को दिन में 1 से 2 घंटे तक सीमित करें व उस के साथ बैठ कर टीवी देखें और उस दौरान उसे बताते रहें कि टीवी में क्या हो रहा है. यदि बच्चा रुचि दिखाता है तो किताब पढ़ने या कोई पहेली हल करने जैसे विकल्प उसे दें. बच्चे को हर छोटीबड़ी चीज करने से रोकेंटोकें नहीं, बल्कि नएनए काम स्वयं करने और अपनी जिज्ञासा स्वयं शांत करने के अवसर प्रदान करें. अपने बच्चे व उस की इच्छा को पर्याप्त सम्मान व अटेंशन दें. उस की हर बात, हर नया अनुभव, चाहे वह अजीबोगरीब ही क्यों न हो, ध्यान से सुनें. रोज अपने बच्चे के साथ कुछ फुरसत के पल जरूर बिताएं और उस से पूछें कि आज दिन भर उस ने क्या किया. बच्चे को नए काम करने, नए अनुभव लेने और उन का बखान करने के लिए भी प्रोत्साहित करें.

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