अभिनेता विनय पाठक का नाम आज दिग्गज कलाकारों की सूची में शामिल है. उन्होंने कभी ह्यूमर के साथ हंसाया,तो कभी संजीदा अभिनय से दर्शकों को रुलाया. यही वजह है कि उन्हें हर निर्माता, निर्देशक अपनी फिल्मों में कास्ट करना चाहते है. विनय पाठक ने अभिनय की शुरुआत थिएटर से किया, इसके बाद विदेश में पढ़ाई करते हुए उन्होंने फिल्म ‘खोसला का घोसला’ और ‘भेजा फ्राई’ दो फिल्में की. दोनोंफिल्मों के हिट होने के बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. विनय पाठक अभिनेता के अलावा टीवी प्रेजेंटर और निर्माता भी है. बिहार के रहने वाले विनय पाठक थिएटर में काम करना सबसे अधिक पसंद करते है.वे सामाजिक काम करते है, पर किसी से बताना पसंद नहीं करते. उनके हिसाब से हर व्यक्ति को अपने आसपास कुछ काम दूसरों के लिए करते रहना चाहिए. अमेजन मिनी टीवी पर उनकी एंथोलोजी ‘काली पिली टेल्स’ रिलीज होने वाली है. उन्होंने अपनी जर्नी को शेयर किया, आइये जाने उन्हीँ से.
सवाल- इस तरह की एंथोलोजी में कामकरने की वजह क्या रही?
मुझे निर्देशक ने कहानी सुनाई और मुझे लगा कि ये फीचर फिल्म है, लेकिन जब काम करने गया तब पता चला कि ये शार्ट फिल्म की फोर्मेट पर मुंबई की मॉडर्न लाइफ, जिसमें प्यार , रिश्ते, बेवफाई, समलैंगिक, शादी आदि विषयों को लेकर 6 छोटी-छोटी कहानियोंपर बनी एंथोलोजी है, जिसमें मैं और सोनी राजदान एक कपल की भूमिका निभा रहे है, हमारी शादी नहीं हुई है, पर एक बेटी है. इसके अलावा नयी कांसेप्ट, स्क्रिप्ट और सोनी राजदान के साथ काफी सालों बाद अभिनय करना मेरे लिए खास थी.
सवाल- इस तरह की एंथोलोजी को ओटीटी प्लेटफार्म पर दर्शक अभी कोविड पीरियड में एन्जॉय कर रहे है, क्या सबकुछ नार्मल होने के बाद दर्शकों को थिएटर तक लाना कठिन होगा?
अभी हम सब ने इन नन्ही-नन्ही फिल्मों को बनाया है और दर्शक घर पर बैठकर इसे एन्जॉय करें,क्योंकि लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में है और उनका मनोरंजन करवाना मेरा दायित्व है.
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सवाल- आजकल ओटीटी पर काफी अच्छी-अच्छी कहानियों की फिल्में और वेब सीरीज आ रही है,लोग दिन-रात मोबाइल पर लगे है, लेकिन मुंबई जैसे शहर में लोग पहले भी मोबाइल पर फिल्म देखते हुए लोकल ट्रेन में चढ़ते-उतरते थे, जिससे कई बार हादसे की शिकार होने सेलड़कियां बची है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?
लोकल ट्रेन की बात करें, तो हर शहर का मिजाज अलग होता है. कोलकाता जैसी शहर में उतनी भीड़ लोकल ट्रेन में नहीं होती, जितनी मुंबई में होती है. मनोरंजन हर किसी के लिए जरुरी है, लेकिन समय के अनुसार करने पर किसी प्रकार की समस्या नहीं होती.
सवाल- आप हर फिल्म में अपनी एक जगह बना लेते है और दर्शक आपको याद रखते है, इसे कैसे कर पाते है?
ये तो स्क्रिप्ट और डायरेक्टर का कमाल होता है. मैं तो उनके अनुसार काम करता रहता हूं. इसके अलावा सोनी राजदान के साथ काम कर बहुत अच्छा लगा, क्योंकि अभिनय की शुरुआत में मैंने सोनी राजदान के साथ एक सीरीज ‘साहिल’ की एक दृश्य में अभिनय किया था और अब हम दोनों एक कपल के रूप में आये है. बहुत मजा आया, बहुत सारी बातें राजनीति, आसपास की घटनाओं के बारें में चर्चा की है.
सवाल- आपने एक लम्बी जर्नी इंडस्ट्री में तय की है, कैसे इसे लेते है?
मैं अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली समझता हूं, क्योंकि मैंने कभी किसी भी काम के लिए कोई प्लान नहीं किया था. प्लान करें भी, तो वैसा जिंदगी में होता नहीं है. अच्छी बात यह है कि मुझे हमेशा अच्छे लोगों का साथ मिला. शुरुआत मैंने रंगमंच के साथ किया. अभी भी मैं नाटकों में काम करता हूं. इससे मुझे अच्छे कलाकार दोस्त मिले. मुझे बहुत सीखने को मिला और मैं आगे बढ़ता गया.
सवाल- आप अभिनय के बाद अपने चरित्र को कितने समय में भूल पाते है? क्या यह मुश्किल होता है?कभी अपने काम से पछतावा हुआ?
मैंने अपने अभिनय को तीन प्लगों में बांटा है. लाल रंग के प्लग, जिसमें बहुत ही सीरियस भूमिका ,सफ़ेद प्लग जो कॉमिक रोल के लिए होता है और काली प्लग ऐसी है, जिसमें मैं अपनी भूमिका को समझ नहीं पाता और निर्देशक के कहने पर कर देता हूं. इसी तरह प्लग केअनुसार मैं अपनी भूमिका निभाता हूं. जिससे एक्टिंग करने में आसानी होती है और घर मैं किसी चरित्र को भी लेकर नहीं जाता. जब मैं किसी भी कहानी को सुनता हूं और वह अगर पसंद आ जाती है तो उसी में कूद पड़ता हूं. बाद में गलत समझ आने पर भी कुछ नहीं कर पाता. पछतावा होता है, क्योंकि पछतावे के बिना कोई जिंदगी नहीं.
सवाल- हंसी का सफ़र आपके जिंदगी में कबसे शुरू हुआ?
ये मुझे आजतक भी पता नहीं चल पाया कि ये कैसे शुरू हो गया. मैंने कभी कुछ क्रिएट नहीं किया. परिस्थिति के अनुसार होता गया. कॉमेडी वही है,जिसमें आप जो सोचते है, होता कुछ और है, जिससे दर्शकों और पाठकों को हंसी आती है.
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सवाल- अभिनय के अलावा और क्या करना पसंद करते है?
मैं थिएटर करता हूं ,इसके अलावा समय मिले, तो लिखता और बहुत भ्रमण करता हूं. मेरा पहला प्यार ट्रेवल है, इसके बाद आर्ट आती है. मैंने कहानी लिखी है, उसकी फिल्म बनाने की इच्छा है.
सवाल- आपके यहाँ तक पहुँचने में परिवार का सहयोग कितना रहा है?
परिवार के सहयोग के बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता. मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं, जहाँ पैसे की हमेशा कमी होती है औरमैं अपनी इच्छा के अनुसार काम नहीं कर पाता था. सामंजस्य हर जगह करनी पड़ती है. मेरे माता-पिताने बहुत सपोर्ट किया है.उनका कहना था कि तुम जिस क्षेत्र में जा रहे हो, मुझे पता नहीं और हम चाहे भी तो कुछ तुम्हारे लिए नहीं कर सकते,क्योंकि उस क्षेत्र के बारें में मेरी जानकारी नहीं है. मैं अपनी मंशा से इस क्षेत्र मेंआया.माता-पिता अगर बच्चों के सपनों को पूरा करने मेंमानसिक सहयोग देते है, तो ये बहुत बड़ी बात होती है. अभी मुझे मेरी पत्नी और बच्चे भी सहयोग देते है.