लेखिका- वीना टहिल्यानी
झल्लाई हुई निशा ने जब गाड़ी गैरेज में खड़ी की तो रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी. ‘रवि का यह खेल पुराना है,’ वह काफी देर तक बड़बड़ाती रही, ‘जब भी घर में किसी सोशल गैदरिंग की बात होगी, वह बिजनैस ट्रिप पर भाग खड़ा होगा, अब भुगतो अकेले.’
‘तुम चिंता न करना, मेरा सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा.’
‘हूं,’ सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा. कार्ड बांटने और इनवाइट करने तो पर्सनली ही जाना पड़ता है न.’
‘न जाने पार्टी के नाम से उसे इतनी चिढ़ क्यों है? महेश ने विदेश जाने पर पार्टी दी थी तो अरविंद ने विदेश से लौटने की. राघव की बेटी रिंकी को फिल्मों में हीरोइन का चांस मिला तो पार्टी, भाटिया ने फिल्म का मुहूर्त किया तो पार्टी. अपनी सुधा तो कुत्तेबिल्लियों के जन्मदिन पर भी पार्टी देती है. इधर एकलौते बेटे का जन्मदिन मनाना भी खलता है. फिर इन्हीं पार्टियों की बदौलत सोशल स्टेटस बनता है. सोशल कौंटैक्ट्स बनते है,’ पर रवि के असहयोग से अपने किटी सर्किल में निशा पार्टीचोर के नाम से ही जानी जाती थी. इसी कारण वह तमतमा उठी.
‘‘मेमसाब, खाना गरम करूं?’’ मरिअम्मा ने पूछा.
‘‘नहीं, मैं खा कर आई हूं,’’ पर्स पलंग पर फेंक कर निशा बाथरूम में घुस गई.
‘इतना भी नहीं कि एक फोन ही कर दे. 1-1 बजे तक बैठे रहो इंतजार में,’ मन ही मन भुनभुनाते हुए रामआसरे ने टेबल पर रखा सामान हटाया, किचन साफ किया और पिछवाड़े अपने क्वार्टर में चला गया.
मरिअम्मा अपने कमरे में ऊंघ रही थी. रोहन का कमरा नाइटलैंप के नीले प्रकाश में नहाया था. दबेपांव जा कर निशा ने बड़ा सा चमकीला गुलाबी गिफ्टपैक रोहन की स्टडी टेबल पर रख दिया, फिर उस के ऊपर जन्मदिन का कार्ड भी लगा दिया, रोहन के बिस्तर के ठीक सामने.
‘उठते ही सामने उपहार देख कर वह कितना खुश होगा,’ उस ने सोचा.
एक बार तो निशा के दिल में आया कि सोते बेटे को सहलाए, पुचकारे, पर फिर कुछ सोच कर वह ठिठक गई. जाग गया, तो साथ सुलाने की जिद करेगा. साथ सोया तो सुबह मुझे भी उस के साथ जल्दी उठना पड़ेगा. नहीं, नहीं, कल रात तो पार्टी है. अभी नींद पूरी न की तो सिर भारी और चेहरा रूखारूखा सा लगेगा. देररात गए से ले कर सुबह सूरज उगने तक चलने वाली ये हाईफाई पार्टियां तो वैसे भी अघोषित सौंदर्र्य प्रतियोगिताओं सी होती हैं. निशा भला अकारण ही किसी से उन्नीस लगने का जोखिम क्यों उठाती. धीरे से बेटे के कमरे का दरवाजा बंद करती वह अपने कमरे में चली गई.
निशा थकान से चूर थी. पहले जागरूक महिला मंडल की मीटिंग, फिर क्लब में किटी, ऊपर से घरघर जा कर कार्ड बांटने का झमेला, सुबह से मुसकरातेमुसकराते उस के जबड़े दर्द करने लगे थे.
‘दरजी ने ब्लाउज आज भी नहीं दिया. कल बैंक से जड़ाऊ सैट भी निकालना था, ओह,’ तनाव से उस का सिर फटा जा रहा था. करवटें बदलतेबदलते वह उठ बैठी और एक सिगरेट सुलगा ली. फिर सोचने लगी.
‘यह रोहन भी दिनोंदिन कैसा घुन्ना होता जा रहा है. बिलकुल अपने बाप पर गया है, कार में स्कूल नहीं जाना, जिद कर के स्कूलबस लगवा ली है. खेलेगा तो कालोनी के बच्चों के साथ, साथ में मरिअम्मा को भी नहीं ले जाना. अब जन्मदिन पर भी न दोस्तों को बुलाना है न टीचरों को. कितना कहा, सब को एकएक कार्ड पकड़ा दो. अच्छीभली दावत, साथ में रिटर्न गिफ्ट्स भी. आने वाले तो उपकृत हो कर ही जाते. पर कहां, नहीं बुलाना तो नहीं बुलाया. किसी बात की ज्यादा जिद करो, तो बस, रोना शुरू.’
निशा ने सिगरेट का गहरा कश ले कर ढेर सारा धुआं उगला.
‘इस बार रवि पर भी नजर रखनी होगी. पीने की आदत नहीं, तो 2 पैग पी कर ही बहकने लगते हैं महाशय. पिछली बार कैसा तमाशा खड़ा किया था, उस के हाथ की सुलगी सिगरेट खींच कर बोला कि डार्लिंग, तुम्हारी गोलगोल बिंदी और लाल गुलाब जैसी साड़ी के साथ यह सिगरेट तो जरा भी मैच नहीं करती. हूं, मैच नहीं करती… मेहमानों के जाते ही मैं ने भी उस की वह खबर ली कि सारा नशा काफूर कर दिया. पर भरी सभा में उस की बेइज्जती को याद कर निशा आज भी तिलमिला जाती है. अंतिम लंबे कश के साथ उस ने अप्रिय यादों और तनावों को झटकने का प्रयास किया. सिगरेट को जोर से दबा कर बुझाया. नींद की गोली ली और चली सोने.
‘‘हैप्पी बर्थडे, सनी,’’ मरिअम्मा का स्वर सुनाई पड़ा. साथ ही ‘कुक्कू’ क्लाक के मधुर अलार्म का स्वर भी.
आंखें खुलते ही रोहन की नजर गिफ्टपैक पर रखे कार्ड पर पड़ी. नजरभर देखे बिना ही वह अलसा कर फिर से ऊंघने लगा.
‘‘उठो बाबा, उठो, स्कूल को देरी होगा,’’ आवाजें लगाती मरिअम्मा उस के कपड़े निकाल रही थी.
बाथरूम से निकल कर रोहन ने मां के कमरे में झांका ही था कि मरिअम्मा ने घेर लिया. दबी आवाज में समझाती बोली, ‘‘शशश, चलो बाबा, चलो, मम्मी जाग गया तो बहुत गुस्सा होगा. रात कितनी देर से सोया है. चलोचलो, तैयार हो, बस निकल जाएगा,’’ वह उस का हाथ पकड़ वापस अपने कमरे में ले आई.
कपड़े देख कर रोहन अड़ गया, ‘‘मैं ये नए कपड़े नहीं, स्कूल की यूनिफौर्म ही पहनूंगा.’’
‘‘क्यों बाबा, आज तो तुम्हारा हैप्पी बर्थडे है. स्कूल में भी नया कपड़ा पहन सकता है. मेमसाब बोला है. हम को भी 2 जोड़ा नया कपड़ा लाया है. एक, स्कूल में पहनने के वास्ते और दूसरा, रात की पार्टी के वास्ते,’’ प्यार से पुचकारती मरिअम्मा उसे मनाने लगी.
‘‘नहीं, नहीं, नहीं. बोला नहीं पहनूंगा. तो नहीं पहनूंगा,’’ नए कपड़ों को एक ओर पटक कर अलमारी से स्कूल की ड्रैस निकाल रोहन बाथरूम में घुस गया.
अब वह मरिअम्मा को कैसे समझाए कि नए कपड़े पहन कर स्कूल जाने से उस के सारे दोस्त समझ जाएंगे कि आज उस का बर्थडे है.
‘मैं ने तो उन्हें इनवाइट भी नहीं किया,’ रोहन ने सोचा.
पिछले साल की पार्टी की गड़बड़ रोहन को आज भी याद थी. पापा को नशा कुछ ज्यादा हो गया था. उन्होंने मम्मी के हाथ की सिगरेट छीनी तो रोहन का दिल धक से रह गया. ‘अब होगा झगड़ा,’ उस ने सोचा. लेकिन मम्मी मधु आंटी से बातें करती रही थीं. पर, पार्टी के बाद की वह जोरदार लड़ाई उफ…’
मां का सिगरेट पीना रोहन को भी असमंजस में डाल देता है.
वह सोचने लगता है, ‘विक्की की मम्मी तो सिगरेट नहीं पीतीं, रेनू की मां भी नहीं, शाहिद की अम्मी भी नहीं, फिर मम्मी ही क्यों. पापा मना करें तो लो, हो गया झगड़ा.’
‘आज तो मेरी बस निकल ही जाती, यह तो रेनू की मम्मी ने दूर से ही मुझे देख लिया और ड्राइवर को रोके रखा. आंटी कितनी अच्छी हैं, रोज रेनू का बैग उठा कर उसे बसस्टौप पर छोड़ने, फिर लेने भी आती हैं. कीर्ति के साथ उस के दादा आते हैं और निधि के साथ उस के पापा. लेकिन ये सब तो छोटे हैं. मैं, मैं तो कितना बड़ा हो गया हूं, फिर भी मम्मी मरिअम्मा को साथ भेज देती हैं.’
पहले तो रोहन का भी मन करता था कि मम्मी उस के साथ आएं बसस्टौप तक. बस, एक दिन के लिए ही सही. पर कहां? मम्मी को तो कितने काम होते हैं, कितनी सोशल सर्विस करनी पड़ती है. रेनू, छवि, पवन उन सब की मम्मियां तो सिर्फ हाउसवाइफ हैं, बस, घर का काम करो और आराम से रहो. सोशल क्लब जौइन करना पड़े तो पता चले. मम्मी ने ही सब समझाया था.
फिर भी रोहन सोचता, ‘काश, उस की मम्मी भी केवल हाउसवाइफ ही होतीं. या फिर उस के दादादादी ही उस के साथ रहते, जैसे कीर्ति और विक्की के रहते हैं. फिर तो मजा ही मजा होता. वे उस के साथ बाग में खेलते, बातें करते, बसस्टौप तक छोड़ने आते. पर दादादादी का आना मम्मी को जरा भी नहीं भाता. फिर वे हर समय गुस्से में रहती हैं. पापा से भी झगड़ती हैं, मुझे भी डांटती हैं.’
दादी तो उसे अपने साथ ही सुलाती थीं. सितारों और परियों की कहानियां भी सुनाती थीं, पर मम्मी कहती हैं, ‘बच्चों को अलग कमरे में सोना चाहिए. हर समय मां का आंचल पकड़े रहने वाले बच्चे कमजोर और दब्बू बन जाते हैं, जैसे तुम्हारे पापा हैं.’
रोहन को पापा का उदाहरण अखरता है, ‘पापा तो कितने स्मार्ट, कितने हैंडसम हैं, पर क्या वे सचमुच मम्मी से डरते हैं? क्या वे सच में दब्बू हैं?’
हर तरह की सोच से परे उस का मन फिर भी मचलता ही रहता है, मम्मीपापा के साथ उन के बीच सोने को. तकिया फेंकफेंक कर उन के साथ खेलने को, पर नहीं, अब तो वह कितना बड़ा हो गया है, पूरे 11 साल का. अब तो वह मम्मीपापा के साथ सोने की जिद भी नहीं करेगा, कभी नहीं.
रोहन स्कूल से लौटा तो लौन में शामियाना लग चुका था. पेड़पौधों पर बिजली के रंगबिरंगे छोटेछोटे बल्बों की कतारें झूल रही थीं. बरामदा और हौल रंगबिंरगे गुब्बारों व चमकतीदमकती झालरों से सजेधजे थे. रोहन ने दौड़ कर मम्मीपापा के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मरिअम्मा, पापा कहां हैं?’’
‘‘उन का फ्लाइट लेट है बाबा, अब वह तुम को सीधा पार्टी में ही मिलेगा,’’ मरिअम्मा ने कहा.
‘‘और मम्मी?’’ कहता हुआ रोहन रोने को हो उठा.
‘‘वह तो टेलर के पास गया है. वहां से फिर ब्यूटीपार्लर जाने का, देर से लौटेगा. अब तुम हाथमुंह धो कर खाना खाने का, फिर आराम कर के जल्दीजल्दी होमवर्क फिनिश करने का. फिर तुम्हारा हैप्पी बर्थडे होगा. बड़ाबड़ा केक कटेगा.’’
‘‘नहीं खाना मुझे खाना, नहीं करना होमवर्क,’’ मरिअम्मा को धकेलता रोहन धड़ाम से पलंग पर जा पड़ा. यह देख मरिअम्मा हैरान रह गई.
‘‘गुस्साता काहे रे. अरे, तू ने तो अपना गिफ्ट भी खोल कर नहीं देखा, खोलोखोलो. देखोदेखो, मम्मी रात तुम्हारे वास्ते क्या ले कर आया. अभी पापा भी अच्छाअच्छा खिलौना लाएगा,’’ मरिअम्मा ने राहुल को समझाया.
‘‘नहीं चाहिए मुझे खिलौने. मैं अब बड़ा हो गया हूं,’’ मरिअम्मा के हाथ से गिफ्टपैक छीन कर रोहन ने बाथरूम के दरवाजे पर दे मारा और सुबकने लगा.
डरी हुई मरिअम्मा पलभर तो शांत रही, फिर धीरेधीरे उस का सिर सहलाती उसे पुचकारनेमनाने लगी, ‘‘मेरा अच्छा बाबा. मेरा राजा बेटा. अब तो तू बड़ा हो गया रे, रोते नहीं. रोते नहीं बाबा. अपने जन्मदिन पर कोई रोता है क्या?’’ उसे समझातेमनाते मरिअम्मा की आवाज भी भर्रा गई, ‘‘उठ, उठ जा मुन्ना. मेरा अच्छा बच्चा, चल, खाना खाएं होमवर्क करें. देरी हुआ तो मेमसाब मेरे को गुस्सा करेगा कि हम तेरा ध्यान नहीं रखता.’’
रोहन का सुबकना थम गया. आंखें चुराता, मुंह छिपाता वह बाथरूम में चला गया.
एक मरिअम्मा ही है जो उसे प्यार करती है, उस का इतना ध्यान रखती है. फिर भी मम्मी उसे डांटती ही रहती हैं. पहले वाली वह रोजी, उफ, कितनी गंदी थी, चुपकेचुपके उसे चिकोटी काटती, उस का चौकलेट खा जाती. उस का दूध पी जाती और बसस्टौप पर रोज उस का बौयफ्रैंड भी उस से मिलने आता. मम्मी से शिकायत की, पापा को पता चला तो घर में कितना हंगामा हुआ था. पापा ने तो यहां तक कह दिया था, ‘तुम से एक बच्चा तो संभलता नहीं, करती हो समाजसेवा. रोहन को आज से तुम ही देखोगी, रोजी की छुट्टी है.’
मम्मी का क्लब, किटी आदि सब बंद हो गया. वे हर समय गुस्सातीझल्लाती रहतीं. घर में रोज लड़ाई होती. फिर एक दिन मरिअम्मा आ गईं.
मरिअम्मा सच में अच्छी हैं. उसे कहानियां सुनाती हैं, उस के साथ खेलती हैं, उसे प्यार भी करती हैं.
खाना खा कर रोहन लेटा तो जरूर, पर उस की सभी इंद्रियां मम्मीपापा के इंतजार में सचेत थीं.
‘पापा अभी तक नहीं आए. मम्मी अभी और कितनी देर लगाएंगी? मम्मीपापा हमेशा इतने बिजी क्यों रहते हैं?’
अचानक ही रोहन को बैग में रखी ‘जादू की पुडि़या’ की याद आई. उस दिन बस में 12वीं कक्षा के किशोर के दोस्तों की सभा जमी थी. झुरमुट में फुसफुसाते वे जोरजोर से ठहाके लगा रहे थे, ‘अरे, जादू है जादू, जबान पर रख लो तो मन की सभी मुरादें पूरी.’
‘एक पुडि़या मुझे भी दो न,’ बस में चढ़ते रोहन ने फुसफुसाते हुए फरमाइश की.
‘तू क्या करेगा रे, अभी तू मुन्ना है, मुन्ना, थोड़ा बड़ा हो ले, फिर मौज मारना,’ कह कर किशोर के दोस्तों ने ठहाका लगाया था.
‘अरे, दे दे न मुन्ना को, अपना क्या जाता है,’ राकेश ने आंख दबा कर रोहन की सिफारिश करते हुए कहा था.
‘चल, निकाल 25 रुपए, औरों के लिए 50-100 से कम नहीं, पर तू
तो अभी बच्चा है न, बिलकुल नयानवेला, नन्हामुन्ना. बच्चू, मजा न आए तो कहना.’
लेकिन रोहन न ही इतना नन्हामुन्ना था और न ही पूरा बेवकूफ.
किशोर उस के स्कूल का दादा था. उस ने किशोर और उस के साथियों को दरवाजे के पास खड़े आइसक्रीम वाले से बहुत सारी पुडि़याएं खरीदते देखा था. सफेद पाउडरभरी उन पुडि़याओं में कैसा जादू था, वह खूब जानता था. फिर भी उस ने वह पुडि़या खरीद ली. खरीदने के बाद लगा, वह उसे फेंक दे, पर नहीं फेंकी. संभाल कर बैग के अंदर वाली जिप में रख ली.
रोहन मम्मीपापा के बारे में सोच ही रहा था पर तभी उसे उस पुडि़या का ध्यान आया. उस ने उठ कर बैग खोल कर देखा. पुडि़या ज्यों की त्यों रखी थी. पुडि़या निकाल कर रोहन कुछ पल
उसे घूरता रहा, फिर उसे बैग में रख कर लेट गया.
‘‘बाबा, ओ बाबा, उठो. देखो शाम हो रही है,’’ मरिअम्मा ने रोहन को पुकारा.
रोहन ने आलस में आंखें खोलीं तो मरिअम्मा प्यार से मुसकरा उठी.
‘‘उठो बाबा, होमवर्क करना है. तैयार होना है. फिर मेहमान आना शुरू हो जाएगा.’’
रोहन तुरंत एक झटके में ही उठ बैठा और पूछा, ‘‘मम्मी आ गईं, मरिअम्मा?’’
‘‘आ गया, बाबा. वह तो सब से पहले तुम्हारे पास ही आया, पर तुम सोता था,’’ मरिअम्मा ने जवाब दिया.
रोहन ने दौड़ कर मां के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मम्मी तो नहीं हैं, मरिअम्मा.’’
‘‘वह नहाता होगा बाबा, पार्टी के लिए सजना है न. अब तुम भी जल्दी करो, देरी हुआ तो मेमसाब नाराज होगा.’’
होमवर्क खत्म कर रोहन फिर से मां के कमरे की ओर भागा, पर दरवाजा तो अंदर से बंद था. रोहन समझ गया मम्मी अब मेकअप कर रही होंगी और मेकअप करते समय कोई डिस्टर्ब करे, यह उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं. हारे कदमों से रोहन वापस आ गया.
‘‘अरे, रोहन बाबा, तुम अभी इधर ही बैठा है, चलोचलो, नहा लो, तैयार हो जाओ. देखो, तुम्हारा नया कपड़ा भी निकाल दिया,’’ मरिअम्मा ने कहा.
‘‘पापा अभी तक नहीं आए, मरिअम्मा?’’
‘‘आते ही होंगे बाबा,’’ मरिअम्मा ने बिलकुल सफेद रूमाल रोहन की जेब में रखते हुए कहा.
‘‘चलो बाबा, अब पार्टी का टाइम हो गया. मेमसाब वहीं मिलेगा.’’
‘‘तुम जाओ मरिअम्मा, मैं आ जाऊंगा.’’
‘‘देखो, देरी नहीं करना, जल्दी से पहुंच जाना,’’ जातेजाते मरिअम्मा ने एक बार फिर रोहन के बाल संवारे और उसे प्यारभरी नजरों से देखती बाहर चली गई.
शाम होते ही बंगला रंगारंग रोशनी में नहा उठा. रात गहराते ही रौनक बढ़
गई. मेहमान आने शुरू हो गए. चहकतेमहकते, मुसकराते, सजेधजे मेहमान, आंखों ही आंखों में एकदूसरे को आंकते मेहमान, बातों ही बातों में एकदूसरे को नापते मेहमान.
‘‘रवि आज भी नदारद है, निशा,’’ हरीश ने कहा.
‘‘उस के वही बिजनैस ट्रिप्स, फिर हमारी यह बेटाइम चलने वाली एअरलाइंस, बस, आता ही होगा,’’ मनमोहनी मुसकान के साथ निशा ने सफाई दी.
‘‘रोजरोज के ये बिजनैस ट्रिप्स. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं, निशा?’’ हरीश ने आंख दबा कर शिगूफा छोड़ा तो वातावरण में हंसी की फुलझडि़यां फूट गईं. निशा भी पूरी तरह मुसकरा उठी.
‘‘बर्थडे बौय कहां है भाई?’’ माला ने बड़ी नजाकत से हाथ में पकड़े उपहार के डब्बे को साथ वाली कुरसी पर रखते हुए कहा.
‘‘अब साहबजादे को भी बुलाइए जरा,’’ रमेश ने अपने हाथ में पकड़ा गिफ्टपैक राधिका को देते हुए कहा.
‘‘रोहन, रोहन, माई सन,’’ निशा की धीमी मीठी आवाज गूंज उठी.
‘‘रोहन, सनी?’’ निशा ने इधरउधर देखा, ‘‘रोहन कहां है मरिअम्मा?’’
‘‘इधर ही था मेमसाब, बाथरूम में होगा, अभी देखता,’’ कह कर वह उसे ढूंढ़ने लगी.
‘‘रोहन बाबा, रोहन बाबा,’’ मरिअम्मा ने कमरे में झांका, बाथरूम देखा, लौन में ढूंढ़ा, पिछवाड़े भी देखा पर वह न मिला. मरिअम्मा रोंआसी हो उठी, ‘कहां गया रोहन?’ वह सोचने लगी. फिर बोली, ‘‘मेमसाब, बाबा नहीं मिल रहा.’’
निशा की भौंहें तन गईं, ‘‘तुम किस मर्ज की दवा हो फिर?’’ उस ने दबी आवाज में मरिअम्मा को लताड़ते हुए कहा.
‘रोहन नहीं मिल रहा,’ ‘रोहन खो गया है,’ मेहमानों में अफरातफरी मच गई. बंगले का कोनाकोना छन गया.
‘‘पुलिस को फोन करिए, निशा,’’ मेहमानों ने कहा.
‘‘किडनैपिंग का केस लगता है?’’ सुन कर निशा के हाथपैर सुन्न पड़ गए, सिर चकरा गया.
‘‘मेमसाब, मेमसाब,’’ खुली छत की रेलिंग पर झुकी मरिअम्मा की भयभीत चीखपुकार सुन कर सब ऊपर की
ओर दौड़े.
‘‘देखिए, देखिए तो मेमसाब, रोहन बाबा को क्या हो रहा है?’’
छत के एक कोने में निढाल, बेसुध पड़े रोहन के मुंह पर तो एक मीठी मुसकान बिखरी हुई थी. जादू की पुडि़या का जादू उस पर चल चुका था. उसे अपना मनचाहा सबकुछ मिल चुका था.
पुचकारते पापा, दुलारती मम्मी. खेल खिलाते पापा. साथ सुलाती मम्मी…
उछलताकूदता, खिलखिलाता, फुदकता रोहन तो सीधा उन की गोद में ही जा बैठा था. दृश्य खयालों में चल रहे थे…
‘हैप्पी बर्थडे सनी.’
‘हैप्पी बर्थडे रोहन.’
‘थैंक यू पापा,’ कहता रोहन पिता के सीने से चिपक गया.
‘थैंक यू मम्मी,’ रोहन मां से लिपट गया. जोरजोर से ठहाके लगाता रोहन अचानक सुबकने लगा तो मरिअम्मा परेशान हो उठी. उस ने चुप बैठ कर उस का सिर अपनी गोद में रख लिया.
‘‘देखो न मेमसाब, हमारे बाबा को क्या हो रहा है. बाबा, बाबा, रोहन बाबा,’’ मरिअम्मा जोरजोर से उस के गाल थपथपाने लगी.
मेहमानों के चेहरे पर भय, आश्चर्य और जिज्ञासा के मिलेजुले भाव तैरने लगे.
‘‘इतना छोटा बच्चा और ड्रग एडिक्ट?’’ एक आश्चर्यभरा स्वर उभरा, ‘‘ये आजकल के बच्चे? माई गौड.’’
निशा की मुट्ठियां भिंच गईं, भौंहें तन गईं. उस की सारी इज्जत, सारा का सारा सोशल स्टेटस धूल में जा मिला.