परिवारवाद पर कटाक्ष

घर का काम पीढिय़ों तक चलता आए, यह सिद्धांत हिंदू धर्म और हिंदू कानून की देन है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान दिवस पर कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि परिवारों से चलती हुई राजनीतिक पार्टियां संविधान की भावना के विरुद्ध हैं घर वही नरेंद्र मोदी उस हिंदू भारतीय संस्कृति के गुण गाते अघाने नहीं हैं जिस में बारबार परिवारों का व्याख्यान है.

सगर राजा की कहानी को लें जिसे विश्वमित्र ने सुनाई. सगर अयोध्या का राजा था. उस की 2 पत्नियां थीं. 100 वर्ष (!) तप करने पर उसे वरदान मिला, और एक के एक पुत्र असमंजस पुत्र हुआ और दूसरी के एक लूंबी उत्पन्न हुई जिसे फोडऩे से 6000 पुत्र निकले. अब राजा सगर का बड़ा पुत्र असंमजस दृष्ट निकला और वह लोगों को और अपने भाइयों तक को पानी में फेंक कर खुश होना पर उस का पुत्र अंशुमन सज्जन निकला. इसी राजा समर ने एक यज्ञ करने का फैंसला लिया और उस में इंद्र ने यज्ञ के पवित्र अश्व को चुरा लिया. उस को ढूंढऩे 60000 पुत्र ही निकले.

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जब हमारे नेता धर्मग्रंथों पर अपाध श्रद्धा करते हुए उन का बखान करते हैं, उन के चमत्कारों को वैज्ञानिक खोज बताते हैं तो परिवारों को कैसे दोष दे सकते हैं. जब महाभारत का युद्ध जनता के हित के लिए नहीं राजाओं के पुत्रों के लिए हुआ हो तो उस की आलोचना कैसी की जा सकती है.

प्रधानमंत्री को विपक्षी दलों के बारे में सब कुछ बोलने का राजनीतिक अधिकार है पर नैतिकता कहती है कि आज जो बोलो, उस पर टिके और टिके रहो. सिर्फ बोलने के लिए मंहगाई का ‘म’ न बोलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन ङ्क्षसह की आलोचना जनसभाओं में करने वाले अपनी मंहगाई न रोकने पर कांग्रेस का परिवारबाद पर भाषण नहीं दे सकते जबकि उन्हीं की पार्टी में मेनका गांधी और वरुण गांधी सांसद हैं. जब वे गांधी परिवार के महत्व को समझ रहे हैं तो कांग्रेस या समाजवादी या अन्य दलों को दोष कैसे दे सकते हैं.

भारतीय जनता पार्टी की शिवसेना लंबे समय सहयोगी रही जो बाल ठाकरे के बाद बेटे उद्धव ठाकरे के हाथों में है. परिवार के बिना पार्टियां चल सकती हैं यह पश्चिम के लोकतंत्र स्पष्ट कर रहे हैं पर भारत तो अपने पुराने ढोल पीटता रहता है, वह कैसे परिवारों को दोष दे सकता है?

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नाम बड़े और दर्शन छोटे

देश में 2 समाज बनाने की पूरी तैयारी चल रही है- एक पैसे वालों का, एक बिना पैसों वालों का. समाज का गठन इसा तरह किया जा रहा है कि दोनों को आपस में एक दूसरे का चेहरा भी न देखना पड़े. पैसे वाले केवल पैसे वालों के साथ रहे और बिना पैसे वाले रातदिन लग कर अपने शरीर और जन के जोड़े रखने के लिए मेहनत कर के अलगथलग रहें. इन दोनों वर्गों में अपनेअपने छोटेछोटे और वर्ग भी होंगे, बहुतबहुत अमीर, बहुत अमीर, अमीर कम अमीर. बिना पैसे वालों में बहुतबहुत गरीब से मध्यर्म वर्ग तक होगा जो पैसे वालों को कमा कर भी देगा और अपनी बचत भी उन के पास आएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली से 75 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश में दिल्ली आगरा के बीच बनने वाले जेवर हवाई अड्डे का जो उद्घाटन किया है वह इस वर्ग विभाजन की एक और ईट है. इस विशाल 3000 एकड़ में फैले हवाई अड्डे पर 30000 करोड़ से ज्यादा खर्च होंगे जो जनता पर कर लगा कर वसूले जाएंगे और उस में वे ही जा सकेंगे जो फर्राटेदार गाडिय़ों में 75 किलोमीटर जा सकें और हजारों के टिकट खरीद सकें. बल्कि आम जनता के लिए भेड़ों की तरह भरी बसें हैं जिन की फटी सीटें और गमाती बदबू कुत्तों को भी उन में घुसने न दे. मुंबई और कोलकाता की लोकल ट्रेनें इ सकी सुबूत हैं. दिल्ली में 3 पहिए वाले ग्रामीण सेवा के वाहन इस के जीते जागते निशान हैं.

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अब सडक़ें ऐसी बनेंगी जिन में दोनों तरह के लोगों को एकदूसरे को देखने की जरूरत ही न हो. अमीरों के लिए जो बनेगा वह वहीं बनाएंगे जिसे अमीर देखना भी नहीं चाहते. उन की बस्तियां अभी बसेंगी फिर उजाड़ दी जाएंगी और किसी दलदली जगह बसा दी जाएंगी जहां सीवर न हों या होंं  तो भरे हों, जहां एयरकंडीशंड बसे न हो, ट्रकनुमा धक्के हों.

जेवर हवाई अड्डा दुनिया का चौथा सबसे बड़ा हवाई अड्डा होगा. पर क्या भारत के प्रति व्यक्ति की आय दुनिया के चौथे नंबर पर खड़े प्रति व्यक्ति वाले देश के बराबर है? यह एशिया का सब से बड़ा हवाई अड्डा होगा पर क्या हमारी आम बेबस जनता चीनी, जापानी, दक्षिणी कोरियाई तो छोडि़ए, थाईलैंड और वियतनाम की जनता के बराबर भी खुशहाल है, संपन्न है.

जेवर हवाई अड्डा चमचमाता होगा, बढिय़ा ग्रेनाइट के फर्श होंगे, महंगा खाना परोसने वाले रेस्ट्रां होंगे जहां चाय 250 ग्राम रुपए की एक कप होगी. पर क्या वे औरतें इस के दर्शन कर पाएंगे जिन्हें अपने घर आए मेहमान के लिए 3 एक जैसे कप जुटाने में तकलीफ होती है?

जेवर हवाई अड्डा प्रगति का प्रतीक है पर यह प्रगति तब अच्छी लगेगी जब आम लोगों का जीवन स्वर भी उठ रहा हो. जब आम लोग और ज्यादा छोटे मोहल्लों में जाने को विवश हो रहे हों तो क्या जेवर को पहन कर मोदीयोगी इतराते फिरें, यह अच्छा है?

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औरत नहीं है बच्चा पैदा करने की मशीन

हाल ही में मुंबई के पौश इलाके दादर की एक 40 वर्षीय महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उस के पति ने उसे बेटा पैदा करने के दबाव में 8 बार गर्भपात कराने को मजबूर किया. इस के साथ ही उस को 1,500 से अधिक हारमोनल और स्टेराइड इंजैक्शन दिए गए.

भारत में गर्भपात गैरकानूनी है, इसलिए उस का गर्भपात और उपचार बिना उस की सहमति के विदेश में करवाया. बेटे की ख्वाहिश में की जा रही इस मनमानी के खिलाफ आवाज उठाने पर उस के साथ मारपीट की.

पीडि़ता ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि शादी के कुछ समय बाद ही पति ने वारिस के रूप में एक बेटे की जरूरत पर जोर दिया और जब ऐसा नहीं हो सका तो उस के साथ मारपीट करनी शुरू कर दी. इसी वजह से विदेश में उस का 8 बार गर्भपात कराया. महिला के पिता सेवानिवृत्त जज हैं और उन्होंने अपनी बेटी का विवाह एक उच्च शिक्षित और प्रतिष्ठित परिवार में किया था. पीडि़ता के पति और सास दोनों ही पेशे से वकील हैं और ननद डाक्टर है.

2009 में पीडि़ता ने एक बच्ची को जन्म दिया. 2 साल के बाद 2011 में जब वह दोबारा गर्भवती हुई तो उस का पति उसे डाक्टर के पास ले गया और गर्भ में फिर से बेटी होने की खबर पा कर उसे गर्भपात के लिए मजबूर किया.

आरोपी पति अपनी पत्नी को भ्रूण प्रत्यारोपित कराने ले गया और इस से पहले आनुवंशिक रोग के निदान के लिए बैंकौक भी ले कर गया. गर्भाधान से पहले भ्रूण के लिंग की जांच कर के उस का इलाज और सर्जरी की जा रही थी. इस के लिए पीडि़ता को 1,500 से अधिक हारमोनल और स्टेराइड के इंजैक्शन दिए गए. महिला की शिकायत के आधार पर पति के खिलाफ उत्पीड़न, मारपीट, धमकी और जैंडर सलैक्शन का केस दर्ज कर लिया गया.

सोचने वाली बात है कि जब रईस और पढ़ेलिखे लोग ऐसा करेंगे तो दहेज देने में लाचार या अनपढ़ लोगों के बारे में कुछ कहना ही बेकार है. आज के समय में जबकि लड़कियां बड़े से बड़े ओहदे पर पहुंच कर बखूबी अपनी भूमिकाएं निभा रही हैं तब इस तरह की सोच रखने वाले रईस परिवारों की इस मानसिक संकीर्णता पर अफसोस जाहिर करने के सिवा क्या कहा जा सकता है?

औरतों के साथ हैवानियत

मगर बात यहां केवल संकीर्ण सोच या बेटे के लिए पागलपन की नहीं है. इस तरह के मामले दरअसल हैवानियत की सीमा पार कर जाते हैं. एक औरत के लिए मां बनने का सफर आसान नहीं होता. गर्भधारण के बाद के पूरे 9 महीने उसे कितनी शारीरिक तकलीफों से गुजरना पड़ता है यह केवल एक औरत ही समझ सकती है. मगर अकसर पुरुष औरत को इंसान नहीं बल्कि बच्चे पैदा करने वाली मशीन समझते हैं.

उन्हें यह भी समझ नहीं आता कि एक मां का अपने बच्चे से जुड़ाव उसी समय हो जाता है जब वह उस के पेट में आता है. बच्चा उस के शरीर का ही हिस्सा होता है. ऐसे में महज बेटी होने की वजह से उस का गर्भपात करा देना उस अजन्मी बच्ची के साथसाथ मां की ममता का भी खून करना होता है. असुरक्षित गर्भपात गर्भवती औरतों की मृत्यु का तीसरा सब से बड़ा कारण है.

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यही नहीं गर्भपात और इलाज के नाम पर उस के शरीर में हारमोनल और स्टेराइड इंजैक्शन घुसाना या सर्जरी करना किसी भी तरह मान्य नहीं है. पति होने का मतलब यह नहीं कि पुरुष महिला के शरीर का मालिक हो गया और उस के साथ कुछ भी करने का हक हासिल कर लिया. इस तरह के लोग तो रैपिस्ट से भी ज्यादा हैवान होते हैं. रेपिस्ट किसी अनजान महिला के साथ जबरदस्ती करते हैं, मगर पति 7 वचन निभाने का वादा कर के भी महिला को मर्मांतक पीड़ा पहुंचाते हैं.

औरत केवल बच्चे पैदा करने के लिए नहीं है

हाल ही में अफगानिस्तान में तालिबान की नई सरकार में महिलाओं को शामिल किए जाने की सभी संभावनाओं को खारिज करते हुए समूह के एक प्रवक्ता ने कहा कि महिलाओं को सिर्फ बच्चे पैदा करने चाहिए. एक महिला के लिए कैबिनेट में होना जरूरी नहीं है. इस के बाद अफगानिस्तान की सैकड़ों महिलाएं अपनी जान जोखिम में डाल कर इस के विरोध में सड़कों पर उतर आईं.

तालिबान द्वारा विरोध पर काररवाई में महिला प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कोड़े और लाठियों का इस्तेमाल किया. यही नहीं तालिबान ने अफगानिस्तान में महिलाओं के खेलों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है.

इस तरह की सोच पुरुषों की छोटी सोच का नतीजा होती है. आज महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिला कर अपनी काबिलीयत साबित कर रही हैं. फिर भी औरतों को दोयम दर्जा ही दिया जाता है. बात तालिबान की हो या भारत की, औरतों के साथ हैवानियत कहीं भी हो सकती है और इस की वजह महिलाओं के प्रति समाज का संकीर्ण रवैया है. समाज का यह रवैया कहीं न कहीं धार्मिक अंधविश्वासों और धर्मगुरुओं की देन है.

मैं बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं हूं

महिला हीरोइन हो या साधारण घर की लड़की अकसर भारतीय समाज में शादी के बाद ज्यादातर लड़कियों से यह सवाल जरूर पूछा

जाता है कि वह खुशखबरी कब सुनाएगी यानी मां कब बन रही है. ऐसा लगता है जैसे औरत का सब से पहला और जरूरी काम बच्चे पैदा करना ही है.

दरअसल, ससुराल में ऐंट्री होने के बाद से ही लड़कियों पर एक अच्छी पत्नी और बहू के साथसाथ घर को वारिस देने की जिम्मेदारी भी डाल दी जाती है. उसे बेटे की मां बनने का आशीर्वाद दिया जाता है. मां बनने में देर हुई तो ताने दिए जाने लगते हैं. सिर्फ परिवार वाले ही नहीं बल्कि रिश्तेदार और पासपड़ोस वालों का नजरिया भी यही होता है.

अकसर घर के बड़े बेटियों को समझते हैं कि शादी के बाद कैरियर को भूल कर पहले घर देखना और घर की जिम्मेदारी संभालनी चाहिए. लड़की को कभी अपनी जिंदगी से जुड़े अहम फैसले लेने का हक भी नहीं मिलता. कई बार सासससुर द्वारा बहू से डिमांड की जाती है कि वह उन्हें पोता ही दे.

इस तरह कभी पोते की चाह को ले कर सासससुर बहू पर हावी होते हैं तो कभी शादी के तुरंत बाद बच्चे की पैदाइश को ले कर उतावले रहते हैं. ऐसा लगता है जैसे बहू बच्चा पैदा करने की मशीन है. जब चाहे पोता पैदा करवा लो और यदि गर्भ में बच्ची है तो उस की हत्या कर दो. लगता है जैसेकि लड़की की अपनी कोई संवेदना ही नहीं. उस का कोई वजूद ही नहीं, रूढ़ीवादी सोच के चलते लड़की के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है.

बदल जाती है लड़की की जिंदगी

शादी वैसे तो 2 लोगों के बीच होती है, लेकिन अपेक्षाएं केवल बहू से ही की जाती हैं. वैसे ही नए माहौल में एडजस्ट होना और घर को संभालना उस के जीवन की चुनौती होती है. उस की जिंदगी में ऐसे कई बदलाव आते हैं जिन का सामना सिर्फ और सिर्फ लड़की को ही करना पड़ता है. यही नहीं नए रीतिरिवाजों से ले कर सब के मन की करने का बोझ भी घर की नई बहू पर डाल दिया जाता है.

जिन लड़कियों के लिए जिंदगी में कैरियर बहुत महत्त्वपूर्ण होता है उन्हें भी शादी के बाद अपनी प्राथमिकताएं बदलनी पड़ती हैं. एक अच्छी बहू, पत्नी बनने के चक्कर में कैरियर बहुत पीछे छूट जाता है. बची हुई कसर उन के मां बनने के बाद घर पर रह कर बच्चा संभालने की जिम्मेदारी पूरी कर देती है.

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सोसाइटी में दिखावा

समाज में दिखावा करने का रिवाज बहुत पुराना है. बहू के आने के बाद शादी में मिले सामान से ले कर उस की खूबसूरती और कुकिंग स्किल्स को ले कर ससुराल वाले रिश्तेदारों के सामने तारीफ करते नहीं थकते. ऐसा कर के वे समाज में अपनी हैसियत बढ़ा रहे होते हैं. सोसाइटी में अच्छी और बुरी बहू के कुछ पैमाने बने हुए हैं जिन के आधार पर एक बहू को जज किया जाता है. बहू घर का कितना काम करती है, कितनी जल्दी पोते का मुंह दिखा रही है या कितने बड़े घर से आई है जैसी बातें ही उस के अच्छा और बुरा बनने का फैसला करती हैं.

समाज को नहीं भाती आत्मनिर्भर लड़की

समाज में एक आत्मनिर्भर बहू को पचा पाना आज भी मुश्किल है. अगर बहू अपने पहनावे, कैरियर और दोस्तों से मिलनेजुलने जैसी बातें खुद डिसाइड करती है तो ससुराल में उस का टिकना मुश्किल हो जाता है. उस के पति और सासससुर को यह बात बिलकुल रास नहीं आती है. अगर एक बहू काम से घर पर देर से लौटती है तो उसे जज किया जाता है. लड़के दोस्त होने पर उस के चरित्र तक पर सवाल उठाए जाते हैं और शादी के तुरंत बाद मां न बनने का फैसला उस में कई तरह की कमियां ढूंढ़ निकालता है.

जरूरी है कि महिलाएं खुद अपनी अहमियत को समझेंं और किसी भी तरह के दबाव को अपनी लाइफ पर हावी न होने दें. पुरुषों को भी जरूरत है इस सोच से ऊपर उठने की, बेटा हो या बेटी बिना किसी पक्षपात के बच्चे को अपना पूरा प्यार देने की.

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देश की पुलिस व्यवस्था

पौराणिक कहानियां जो हमारे यहां हर मौके पर पंडितों, प्रवचन कर्ताओं और व्हाट्सएप महानुभवों द्वारा सुनार्ई जाती हैं, एक विशेषता रखती हैं. वह है कि उन में न सिरपैर होता है, न तर्क, न सही तथ्य पर पढऩे में मजेदार होती है. हमारी पुलिस इस ज्ञान में माहिर है और जब भी किसी अभियुक्त को साल 6 माह बाद जेल में रखने के बाद जमानत मिलती है (आरोपमुक्ति नहीं) यह स्पष्ट हो जाता है कि बेबात में पौराणिक सी कहानी बना कर उसे जेल में इतने दिन बंद रखा गया.

सुशांत ङ्क्षसह राजपूत की आत्महत्या के मामले में कितनों को ही बेमतलब की पौराणिक कहानियां बनाकर मजिस्ट्रेट के सामने अभियुक्त बना कर खड़ा किया गया और गिरफ्तारी का आदेश ले लिया गया. आमतौर पर हमारे जज पुलिस की बात कानून व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर मान लेते हैं पर जब तथ्यों की कमी होने लगती है तो लगने लगता है कि पुलिस का केस तो सत्यनारायण व्रत कथा की तरह का है. जिसमें सत्यनारायण की कथा है ही नहीं.

मुंबई के अंधेरी के रहने वाले जपतप ङ्क्षसह आनंद को फरवरी 2020 में गिरफ्तार किया गया था क्योंकि सुशांत सिंह राजपूत की मैनेजर करिश्मा प्रसाद ने उस के अकाउंट में 3100 रुपए भेजे थे. अब यह न पूछें कि यह पुलिस को कैसे पता चला कि यह पैसा 50 ग्राम गांजा खरीदने के लिए भेजे गए थे. पुलिस का दावा था कि जपतप ङ्क्षसह ने यह पैसे अपने भाई करमजीत ङ्क्षसह को दिए जिसे भी गिरफ्तार किया गया था पर पहले ही जमानत मिल चुकी थी.

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विलक्षण ज्ञान वाले नैरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरों के पुलिस अधिकार रखने वाले अफसरों को दिव्य ज्ञान हो गया था कि यह पैसा ड्रग खरीदने के लिए दिया गया था. अब जपतप ङ्क्षसह आनंद के पास चाहे ड्रग न मिली हो पुलिस के लिए यह ब्रहत वाक्य सी एंट्री थी कि 3100 रुपए का लेनदेन ड्रग के अरबों के व्यापार का हिस्सा है.

जपतप को पुलिस कैंट में इतना समय बिताने के बाद आर्यन खान की तरह जमानत मिल गई पर सबाल उठता है कि हम कैसे समाज में जी रहे हैं जहां जो सत्ता में हो वे चाहे जैसे आरोप लगा कर अपराधी सिद्ध कर सकते हैं. यह ऐसा ही आरोप है जैसा व्हाट्सएप पर घूमता है कि सोनिया गांधी के पास इतने 1 अरब डौलर हैं, लालू यादव के पास इतने, मनमोहन ङ्क्षसह के पास इतने.

इन सब की जड़ में वह धाॢमक प्रचार है जिसे पढ़ कर औरतें खुद भी झूम उठती हैं और पूरे परिवार को उसी पर चलाती हैं. शुक्रवार के व्रत की यह महिला है, गैरमुखी घर का यह दुर्गुण है, लाल साड़ी में यह शुभ बात है, विधवा अपने पति का इस तरह खा जाती है. विभूति के ग्रह दोष इन कारणों से है आदि की कंपाल कल्पित कहानियां सुन कर, पढ़ कर व्हाट्सएप पर जान कर देश का समाज पुलिसमयी हो गया है. सैंकड़ों जजों के आदेश भी इसी तरह के होते हैं जो यथासंभव पुलिस की हां में हां मिलाते हैं जैसे झुंड में बैठी प्रवचनकर्ता वे शब्दों पर जयजयकार करती हैं.

देश की खराब पुलिस व्यवस्था का दोष घरों की सोच को दिया जा सकता है. अज्ञान किस तरह हानिकारक हो सकता है, हम सब जानते हैं. हमारी गरीबी, हमारे झगड़ों और हमारी बिमारियों की जड़ों में बहुत हद तक यह अज्ञान ही है जो पुलिस दस्तावेजों में भी पहुंच जाता है और निर्दोषों को महीनों, सालों जेलों में सडऩा होता है. उन के घर वाले किस तरह तिलतिल कर मरमर के जीते हैं, यह कल्पना ही शरीर को झनझना देती है.

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वर्क फ्रौम होम और औरतें

वर्क फ्रौम होम कल्चर ने उन औरतों के लिए नए दरवाजे खोलें हैं जिन्होंने पहले परिवार में बच्चों और बूढ़ों को देखने के लिए अच्छे कैरियर के बावजूद नौकरियां छोड़ी हैं. जौब्स फौरहर पोर्टल की एक रिपोर्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार 300 बड़ी कंपनियों ने ऐसी मेधावी शिक्षित व स्मार्ट औरतों के अवसर देने शुरू किए हैं जो पहले से खासी ट्रेन की जा चुकी हैं और उन से व्यवहार करना पुरुषों से ज्यादा आसान होता है.

इन औरतों के घर संभालते हुए बाहर के काम करने की डबल आदत पहले से होती है और ये पुरुषों की तरह आलसी और क्रिकेट मैच के लिए टीवी के सामने बैठने वाली भी नहीं हैं. जिनकी योग्यता अच्छी है वे सोप ऊपेरा टाइप की सास बहू धारावाहिकों के चक्कर में भी नहीं रहते. आज की शिक्षित युवा औरतों को अपने व्यक्तित्व की ङ्क्षचता ज्यादा होती है.

अगर टैक्रोलौजी ने औरतों को आज भी घर की किचन और बेड से छुटकारा नहीं दिलाया है तो वर्क फ्रौम होम अवश्य उन के जीवन में क्रांति ला देगा और वर्षों की जम कर की गई पढ़ाई बेकार नहीं जाएगी.

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बस ऐसी औरतों को यह ध्यान रखना होगा कि वे धर्म के चक्करों में न पड़ें. आजकल कोविड के जमाने में पंडों के जुल्म पर प्रवचन सुनाने शुरू कर दिए हैं, औन लाइन दान  देना शुरू कर दिया है, औन लाइन पाखंडी क्रियाओं का सिलसिला शुरू कर दिया है. पुरुषों के लिए तो धर्म जरूरी है क्योंकि उसी के सहारे वे वर्ण व्यवस्था को वापस रखते हैं. ङ्क्षहदूमुसलिम कर के राजनीति करते हैं, ……… और ………… खेलते हैं, औरतें के रीतिरिवाजों के चक्करों में बांधतें हैं. नौकरियां मिलने पर घर में ही रह कर औरतें इन पाखंडों से भी बच सकेंगी और अपना खुद का पैसा भी बचा सकेंगी. आज दोहरी इंकम बहुत जरूरी है चाहे बच्चे कम हो. आज हर औरत को कोविड के अचानक प्रहार के लिए तैयार रहना पड़ेगा. आज वैसे भी चिकित्सा का बोझ भी बढऩे लगा है क्योंकि सरकार ने चिकित्सा सुविधा से हाथ पूरी तरह खींच लिया है. औरतों की अतिरिक्त कमाई उन के लिए बहुत जरूरी है.

वर्क फ्रौम होम तो एक तरह से औरतों के लिए आरक्षित हो जाना चाहिए और हर सरकारी व गैर सरकारी कंपनी को रिजर्वेशन देनी चाहिए. जरूरी हो तो इस का कानून बनें. औरतें अगर डेटा कनेक्शन खरीदें, मोबाइल खरीदें, लैपटौप खरीदें तो उन्हें करों में वैसे ही छूट दी जानी चाहिए जैसी स्टैंप ड्यूटी में दी जा रही है जिस के कारण आज बहुत संपत्ति औरतों के हाथ में आने लगी है.

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रेप और भारत की छवि

अमेरिकी सरकार ने हाल में एक चेतावनी जारी की है कि अमेरिकी नागरिक भारत जाते समय यह ध्यान में रखें कि यहां बलात्कार बहुत होते हैं. यह बहुत ही गंभीर है कि महान ङ्क्षहदू सांस्कृतिक राष्ट्र बनने की राह पर चलने वाला देश दुनिया में बलात्कार केंद्र माना जाए और यह चेतावनी भारत जैसे थोड़े से ही देशों में दी जाए भारत के अपने नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के अनुसार 2020 में 28,000 मामले तो  दर्ज किए गए थे. बलात्कार के मामलों में ज्यादातर में लड़कियां खुद ही रेप छिपा जाती हैं और जहां मातापिता को पता चल भी जाए वे भी मुंह पर जिप लगा लेते हैं.

भारत में रेप पौराणिक युग से चला आ रहा है और कभी कोई देवता बलात्कारी को दंड देने के लिए अक्तरित हुआ, ऐसा नहीं लगता, यहां तो बलात्कार की शिकार को दोषी माना जाता है, वह अहिल्या या सीता की तरह दोषी मान ली जाती है और या तो पत्थर बन जाती है या घर निकाला दे दिया जाता है.

यह आश्चर्य की बात है कि जब भारत के भगवा गैंग किसी को भी जय श्री राम बोलने को मजबूर कर सकते हैं कहीं भी मांस की बिक्री बंद कर सकते हैं, किसी भी सडक़ या किसी की निजी संपत्ति पर मंदिर बना सकते हैं, किसी मसजिद को तोड़ सकते हैं.

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हाल में एक बाल गृह में रह रही लडक़ी ने आरोप लगाया कि 16 वर्ष की आयु में उस का 400 लोगों ने रेप किया है जिस में बहुत से पुलिस वाले हैं. क्या भगवाई इन अपराधियों को अपने प्रवचनों से नहीं रोक सकते? क्या इन अपराधों को रोकने के लिए हर नुक्कड़ पर खाकी वर्दी वाले बैठाए जाएं जबकि हर नुक्कड़ एक तिलकधारी, सीता-राम का दुपट्टा ओड़े बैठा है जो दान तो ले रहा है पर आदर्श व्यवहार लागू नहीं कर सकता.

अमेरिकी सरकार की नजर में नेपाल भारत से ज्यादा सुरक्षित है, बांग्लादेश सुरक्षित है, अफ्रीका का मलावी देश ज्यादा सुरक्षित है. अमेरिकी चेतावनी ने अपने नागरिकों को भारत में धाॢमक ङ्क्षहसा के प्रति भी आगाह किया गया है कि धर्म परिवर्तन का बहाना बना कर किसी भी विद्यर्मी विदेशी को भारत में निशाना बनाया जा सकता है.

रेप के मामलों में चेतावनी ने सख्त शब्दों में कहा है कि अमेरिकी नागरिकों का इस अपराध को झेलना पड़ा है चाहे उन्होंने सही ढंग के कपड़े क्यों न पहन रखे हों. अगर अमेरिकी महिला अश्वेत है तो उस के साथ भारत में कुछ ज्यादा ही बुरा व्यवहार रिपोर्ट किया गया है.

अपराध दुनिया में हर जगह होते है पर जितने मंदिर और प्रवचन भारत में हो रहे हैं और जितना ज्ञान यहां व्हाट्सएप और फेसबुक पर बांटा जा रहा है उस से तो हर ङ्क्षहदू भारतीय विशुद्ध आचरण वाला बन जाना चाहिए था. जो पूजापाठ, ईश्वर भक्ति, चढ़ावा, दानपुण्य, तीर्थ यात्रा भारत में है शायद कहीं और नहीं और फिर भी औरतें सुरक्षित न हों यह आखिर कैसे संभव है.

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अमेरिकी या विदेशी नागरिकों के लिए ही नहीं भारत में भी शाम ढलते ही औरतें घरों में घुस जाती हैं क्योंकि धर्मशास्त्र सुनने के बाद भी सडक़ों पर अपराधियों का जाल बिछा रहता है. आखिर क्यों? अगर धर्म सत्य के मार्ग पर चलाने वाला है तो भारत के लोगों को दुनिया का सब से सक्षम होना चाहिए, अगर धर्म परिवार प्रेम सिखाता है तो भारत में तो पारिवारिक विवाह शून्य के बराबर होने चाहिए, अगर धर्म हर पाप का लेखाजोखा रखने वाला है तो यहां कोई  पापी होना ही नहीं चाहिए.

पर यहां तो कुछ और ही हो रहा है. इस का दोष सरकार को दें, पुलिस को दे या इन के ऊपर की शक्ति धर्म के ठेकेदारों को?

कोविड-19 में मृत्यु और प्रमाणपत्र

जीवन साथी के अचानक चले जाने का गम तो हरेक को होता है और कोविड 19 के कारण लाखों मौतों ने एकदम बहुतों को बिना साथी के समझौते करने पर मजबूर कर दिया है पर उस औरत की त्रासदी का तो कोई अंत नहींं  है जिस के पति का पता ही नहीं कि वह मौत के आगोश में गया तो कब और कहां. दिल्ली की एक औरत महिला आयोग के दरवाजे खटखटा रही है कि दिल्ली पुलिस और अस्पताल बता तो दें कि उस के पति की कब कहां मृत्यु हुई या वह कहीं आज भी ङ्क्षजदा है.

अप्रैल में पुलिस के अनुसार उस के पति को सडक़ के किनारे कहीं बेहोश पड़ा पाया गया था और एक अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था. वहां से उसे दूसरे अस्पताल भेजा गया जहां कोई रिकार्ड नहीं है और अब पत्नी को नहीं मालूम कि उन का क्या हुआ. खुद कैंसर की मरीज पत्नी पति की मृत्यु के प्रमाण पत्र पाने के लिए भटक रही है.

जीवन साथी के चले जाने के बाद भी उस के हिसाबकिताब करने के लिए बहुत से प्रमाणों की जरूरत होती है. मृत्यु प्रमाण पत्र इस देश में बहुत जरूरी है. उस के बिना तो विरासत का कानून चालू ही नहीं हो सकता. धर्मभीरूओं को लगता है कि वे अगर सारे पाखंड वाले रीतिरिवाज नहीं करेंगे तो मृत को स्वर्ण नहीं मिलेगा और आत्मा भटकती रहेगी. बहुत मामलों में घरवाले जब तक मृतक का शव न देख लें, यह स्वीकार करने को तैयार ही नहीं होते कि मौत आ चुकी है.

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जैसे उत्तर प्रदेश बिहार में बहुत से लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र उन के जिंदा रहते जारी कर दिए जाते हैं और वे अपने को जिंदा होने का प्रमाण पत्र खोजते दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं, वैसे ही जो मगर गया उसे खोया गया मान कर कुछ अधूरा मान लिया जाता है जो अपनेआप में एक बहुत ही दुखद स्थिति होती है.

कोविड-19 के भयंकर प्रहार के दिनों में लोगों को अपने प्रियजन का शव देखने तक का अवसर नहीं मिला था पर उन्हें प्रमाण पत्र मिल गया था इसलिए संतोष कर लिया गया. इस मामले में जीवनसाथी का अभाव, अपनी बिमारी और कागजी कारवाई सरकारी लापरवाही के कारण पूरी न होने के कारण तीहरा दुख सरकार एक बेबस औरत को दे रही है.

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सपने सच होने का आनंद ही कुछ और होता है- शीतल निकम

शीतल निकम, ड्रैस डिजाइनर

आत्मविश्वास से चमकता चेहरा, बोल्ड ऐंड ब्यूटीफुल, ठाणे निवासी शीतल निकम ने अपने सुंदर, सजे बुटीक में गरमजोशी से स्वागत किया. उन से बात करने के लिए मैं उन से समय ले कर गई थी. इस क्षेत्र में उन का बुटीक दिनोंदिन अपनी नईनई ड्रैसेज के कारण खूब सुर्खियां बटोर रहा है.

अपने घर के एक कोने से बुटीक तक के सफर में उन्होंने जो मेहनत की, जिस लगन से यहां तक पहुंचीं, वह सराहनीय है. पेश हैं, उन से बातचीत के कुछ अंश:

आप की इस काम में रुचि कैसे हुई?

मैं दर्जी परिवार की लड़की थी और यह काम मुझे बहुत क्रिएटिव लगता था. दादी तो इतनी होशियार थीं कि एक बार सामने वाले इंसान पर नजर डालतीं और उस की नाप का कपड़ा काट कर रख देतीं. मैं खूब मूवीज देखती थी. मैं ने अपना पहला कपड़ा एक पीले रंग का सूट सिला था. एक मूवी देख कर पटियाला स्टाइल का सिला था जो मुझे आज भी याद है.

मैं कभी मम्मी से पूछपूछ कर मोतियों के सैट्स बनाती. कपड़ों पर कई तरह की पेंटिंग्स करना सीखा, घर के परदों, चादरों पर कुछ भी पेंट करती, उन्हें सजाती रहती. धीरेधीरे पापा ठेकेदारी का काम करने लगे, जिस से उन्हें थोड़ी सफलता मिलनी शुरू हुई, आर्थिक स्थिति सुधरने लगी और फिर जब एक दिन हम लोग घर में बासमती चावल खा रहे थे, वह दिन हमारे लिए बहुत बड़ा था. लगा, हां अब उतने गरीबी के दिन नहीं रहे. पापा का काम चलने लगा था.

5वीं से 10वीं तक मैं ने कई चीजें सीखीं, कई कोर्स किए. 10वीं के नंबरों पर पापा से साइकिल मिली जो उन की तरफ से गिफ्ट के रूप में मिली पहली चीज थी. 12वीं के बाद मैं ने टेलरिंग की क्लास ली. मुझे पढ़ने का बहुत शौक है, मैं कई घंटे लगातार पढ़ा करती. नवापुर से फिर मैं ने 2 साल का डीएड किया. बीए के दूसरे साल में ठाणे के विनोद निकम से मेरी शादी हो गई. बीए की पढ़ाई मैं ने शादी के बाद पूरी की. मुझे कुछ करना ही था, मैं खाली बैठ ही नहीं सकती थी. मैं ने ऐरोली में 1 साल एक स्कूल में टीचिंग भी की.

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आप के पति कब मिले और शादी कैसे हुई?

‘‘अरेंज्ड मैरिज है, ससुरजी आए थे सब से पहले मुझे देखने, फिर वही हुआ जैसाकि रस्मोरिवाज चलता रहता है. हमारे गांव में अरेंज्ड मैरिज ज्यादा होती हैं.’’

पति क्या करते हैं?

‘‘नौकरी करते हैं. पति को औफिस में बहुत काम रहता था. घर आ कर भी वे उस में काफी व्यस्त रहते. मुझे लगा कि मैं खाली क्यों बैठी रहूं, मुझे भी कुछ करना चाहिए.

अत: मैं ने अपने पति से कहा कि मैं टैक्सेशन का कोर्स कर लूं? फिर तुम्हारी हैल्प भी कर दिया करूंगी.

‘‘पति ऐसे मिले हैं जिन्होंने हमेशा कुछ करने के लिए प्रेरित ही किया, कभी रोका नहीं. फिर मैं ने 1 साल का टैक्सेशन में डिप्लोमा किया. तब एक बेटा हो चुका था. मैं उस की परवरिश में कुछ समय काफी व्यस्त रही. वह कुछ बड़ा हुआ तो मैं ने एलएलबी भी कर ली. फिर एलएलएम भी कर लिया, 2 साल जौब भी कर ली पर इतना सब सीखनेकरने के बाद भी मेरा मन खुश नहीं था. मुझे लगता कि मुझे इतना सब कर के भी मजा नहीं आ रहा है, मैं खुश नहीं हूं, मुझे कुछ और करना है.’’

जौब कहां की और किस तरह की थी?

‘‘1 साल देशपांडे फर्म में की, ला डिपार्टमैंट में. 1 साल नायर ऐंड कंपनी में की. ला की पढ़ाई में तो मन खूब लगा पर जौब में मन नहीं लग रहा था.’’

अपने खुद के बुटीक का आइडिया  कैसे आया?

‘‘अब तक दूसरा बेटा भी हो गया था, मैं ने धीरेधीरे सोसाइटी के ही टेलर से ब्लाउज वगैरह में हुक लगाने का काम लेना शुरू कर दिया, कभी साडि़यों में फौल लगाती. मैं व्यस्त तो रहती पर मेरा मन कुछ और करने के लिए छटपटाता. मुझे हर समय यही लगता कि मुझे यह ला केस की बातें नहीं करनी हैं, मुझे इन से खुशी नहीं मिल रही है, बहुत कन्फ्यूज्ड थी, तब मैं ने एक कोर्स और किया, पर्सनल डैवलपमैंट का. उस के बाद मुझे अपने ऊपर अचानक से कौन्फिडैंस आया. लगा कि मैं अच्छी तरह से सोच लूंगी कि मुझे किस चीज में अब खुशी मिलेगी.

मैं ने अपनी जौब छोड़ दी. लोकल ट्रेन के रोज के सफर से मैं बहुत थकने भी लगी. 2 साल घर से ही सिलाई करती रही. अपने कपड़े खुद सिलने लगी. समझ आने लगा कि मुझे कपड़ों के रंगबिरंगे कलर्स में खुशी मिलती है. अब मैं बहुत उत्साह से अपना काम करती रहती. हमारी बिल्डिंग में नीचे छोटेछोटे सामान रखने के कमरे हैं. मैनेजमैंट ने सोसाइटी में रहने वालों से कहा कि किराया दे कर अगर कोई उन में अपना सामान रखना चाहे तो रख सकता है. पति ने यह बात सुनी तो आकर कहा कि छोटी सी जगह है, अगर वह तुम्हारे काम की हो तो उसे ले सकते हैं. मुझे तो जैसे कोई खजाना मिल गया. मैं ने उस छोटी सी जगह में बैठ कर अपना काम शुरू कर दिया. खूब काम किया. ग्राहक आने लगे, साथसाथ फिर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया.

उस के बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. 3 फैशन शोज कर चुकी हूं. एशिया का फैशन शो किया जिन के 20 डिजाइनर्स में से एक मैं हूं. सोलो फैशन शो भी किया है. अपने खुद के ब्रैंड का किड्स शो भी किया है.’’

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लौकडाउन के समय कैसे समय बिताया?

‘‘खाली तो कभी नहीं बैठती. इन दिनों मनीष मल्होत्रा का 5 दिन का इलस्ट्रेशन का औनलाइन वर्कशौप किया, बहुत सारी चीजें सीखती रही, किताबें पढ़ीं.’’

स्टाफ कितना है?

पहले 15 लोग थे, अब  बुटीक पर 7 लोग हैं, बाहर से काम करने वाले  3 लोग हैं.’’

और क्या क्या शौक हैं?

‘‘मूवीज खूब देखती हूं, घूमने जाना पसंद है, खाली समय में फ्रैंड्स से मिलतीजुलती हूं, पार्टीज करती हूं, फ्रैंड्स खूब हैं, नएनए फ्रैंड्स बनाती हूं.’’

‘जहां चाह, वहां राह,’ कहावत को चरितार्थ करती शीतल कहती हैं, ‘‘अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी तोड़ कोशिश कर लेनी चाहिए, कोई भी शौक हो, उसे पूरा करने में अगर बहुत मेहनत भी हो, तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए. अपने सपने सच होने पर जो खुशी मिलती है, उस का आनंद ही कुछ और होता है.’’\

बैडरूम से पार्लर तक का सफर

पूनम मेटकर  

ब्यूटीशियन व मेकअप आर्टिस्ट

कभी दीवारों पर अपने हाथ से एक पेपर पर लिख कर अपने पार्लर का ऐड करने वाली पूनम मेटकर से जब इस इंटरव्यू को करने के लिए समय मांगा तो उन्होंने खुशीखुशी अपने बेहद व्यस्त रूटीन को मैनेज कर ठाणे स्थित अपने खूबसूरत बड़े से पार्लर ‘चार्मी हेयर ऐंड ब्यूटी सैलून’ में आने के लिए कहा.

पेश हैं, उन से हुए कुछ सवालजवाब:

सब से पहले अपनी पढ़ाईलिखाई और परिवार के बारे में बताएं?

मैं मालेगांव, महाराष्ट्र से हूं, मायके में मम्मीपापा और हम 2 भाई, 3 बहनें हैं, मैं दूसरे नंबर की संतान हूं, पापा की ग्रौसरी की शौप थी. खाने वाले ज्यादा, कमाने वाले एक पापा. आर्थिक स्थिति ऊपरनीचे होती रहती थी. मुझे हर चीज को सजानेसंवारने का बचपन से ही बहुत शौक था. मैं पेंटिंग्स बनाती थी. पेंटिंग्स बेचने पर कुछ आमदनी हो जाती. मुझे यह धुन बचपन से थी कि मुझे कुछ करना है, कोई बिजनैस करना है. घर में खाली नहीं बैठूंगी. मैं ने इंग्लिश में एमए किया है. मेरी स्पोर्ट्स में भी बहुत रुचि थी. मैं अपनी यूनिवर्सिटी की फुटबाल टीम की कप्तान रही हूं. पापा ने कभी रोका नहीं, जो करना चाहा करने दिया.

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शादी कैसे हुई, पति क्या करते हैं और ससुराल से कैसा सपोर्ट मिला?

अरैंज्ड मैरिज थी. पति जीएसटी में असिस्टैंट कमिश्नर हैं. एमए करते ही शादी हो गई थी. मुझे कुछ करना ही था, मैं ने एयर होस्टेस बनने के लिए 1 साल का कोर्स भी किया, पर मैं प्रैंगनैंट हो गई तो इस काम के बारे में मुझे सोचना बंद करना पड़ा. फिर मैं ने मेकअप का 6 महीने का बेसिक कोर्स किया. 9 महीने के बच्चे के साथ 6 महीने का कोर्स करने में मुझे डेढ़ साल लग गया. पति ने हमेशा मुझे बहुत सपोर्ट किया.

फिर मैं ने घर में ही अपने बैडरूम में ही 1 साल ब्यूटीपार्लर का काम किया. बहुत लेडीज आने लगीं. किसीकिसी को मैं ने फ्री सर्विस भी दी. मैं चाहती थी कि एक बार लोग आएं और मेरा काम देखें. मुझे पता था कि कोई लेडी एक बार मुझ से अपना फेशियल करवा लेगी तो वह जरूर दोबारा मेरे पास आएगी.

मुझे अपने काम करने के ढंग पर पूरा भरोसा था. वही हुआ, जो एक बार आई वह दोबारा अपनेआप आई. उन दिनों की मेरी क्लाइंट्स आज भी मुझ से ही फेशियल करवाती हैं. मैं कितनी भी बिजी रहूं, वे मेरा इंतजार करती हैं. 20 साल हो गए वे मेरे पास ही आती हैं.

ससुराल में जौइंट फैमिली है. ससुर डाक्टर हैं. आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी है. मैं 7 बहुओं में छठे नंबर पर हूं. जब मैं ने अपने पार्लर की इच्छा बताई तो किसी ने सपोर्ट नहीं किया, सब का कहना था कि क्या जरूरत है, आराम से रहो. मुझ पर तो अपने पैरों पर खड़े होने की धुन सवार थी. मैं नहीं रुकी. पति ने बहुत साथ दिया. बहुत काम किया, खूब कोर्स किए, बहुत काम सीखा. जावेद हबीब के हेयर कट का कोर्स किया.

आज भी जहां भी कोई कोर्स, वर्कशौप होती है, मैं अटैंड करने की पूरी कोशिश करती हूं. बौलीवुड के मेकअप आर्टिस्ट पंडरी दादा जुकर से मैं ने बहुत कुछ सीखा है. सिम्मी मकवाना के साथ काम किया है. कुछ अरसा पहले अहमदाबाद में इंडिया की टौप मेकअप आर्टिस्ट ऋ चा दवे से 10 दिन की ट्रेनिंग ली. यह फील्ड ऐसी है जहां पढ़ाई कभी खत्म नहीं होती, रोज कुछ न कुछ नया आता रहता है, बहुत कुछ सीखने के लिए रहता है.’’

लौकडाउन में कैसा समय बीता?

औनलाइन क्लासेज कीं. घर में ही प्रैक्टिस की. वर्कहोलिक हूं, खाली नहीं बैठ सकती. मेकअप करने का तो इतना शौक है कि कोई रात में नींद से उठा कर भी कहे कि मेकअप कर दो तो भी खुशीखुशी करूंगी. बहुत ऐंजौय करती हूं मेकअप फील्ड का.

कितना स्टाफ है?

पहले 7-8 लड़कियां थीं, अब लौकडाउन के बाद 4 ही हैं. मेरे यहां जो मेड्स हैं, मैं उन की लड़कियों को भी पार्लर में बुला कर कोई न कोई काम सिखाती हूं ताकि वे जब चाहें अपना कोई काम कर सकें. वे घरघर बरतन धोने जाएं, उस से अच्छा मैं उन्हें छोटीछोटी चीजें सिखा दूं. उन्हें साफसुथरी जगह रह कर पैसे मिल जाते हैं और मुझे यह संतोष रहता है कि मैं ने किसी गरीब लड़की को कोई चीज सिखा दी. लौकडाउन के टाइम पूरे स्टाफ के घर राशनपानी भेजती रही.

मुझे लड़कियों, महिलाओं को आगे बढ़ते हुए देख बड़ी खुशी होती है. मैं चाहती हूं कि सब कुछ न कुछ करें, खाली बैठ कर अपना टाइम खराब न करें.

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टाइम के साथ इतना सब सीखते हुए, इतनी मेहनत से आगे बढ़ते हुए, इतने खूबसूरत पार्लर में व्यस्त रह कर लाइफ में कितना चेंज आया है?

एक टाइम था जब ठाणे से मुंबई की कितनी ही जगहों पर अपने पार्लर का सामान लेने लोकल ट्रेन में आयाजाया करती थी. मेरे 2 बेटे हैं. एक बार तो प्रैगनैंसी टाइम में मैं लोकल ट्रेन से दोनों हाथों में सामान भर कर वापस आ रही थी. इतनी भीड़ थी कि मैं ठाणे स्टेशन पर उतर ही नहीं पाई. डोंबिवली चली गई. उस दिन की परेशानी नहीं भूलती. आज जब अपनी कार और ड्राइवर ले कर बाहर निकलती हूं तो कई बार वे दिन भी याद आ ही जाते हैं. ऐसा लगता है जैसे अपने बैडरूम से एक पार्लर तक का लंबा सफर तय किया है. अभी यहां रुकना थोड़े ही है. अभी बहुत कुछ है जिसे सीख कर आगे बढ़ती रहूंगी.

ससुराल के जिन लोगों ने उस समय सपोर्ट नहीं किया, वे आज क्या कहते हैं?

अब वे घर की बाकी बहुओं से कहते हैं कि देखो पूनम को. ऐसे अपना शौक पूरा करना चाहिए. देखो कितनी मेहनत से आज भी अपने काम में व्यस्त है, उस से सीखो कुछ. सब बहुत तारीफ करते हैं. मेरे बारे में सब को गर्व से बताते हैं.

आप अपने फ्यूचर को कहां देखती हैं?

बहुत आगे, अभी अपने पार्लर की ब्रांचेज खोलूंगी, अभी तो मुझे यही सब जानते हैं, एक दिन ऐसा होगा कि मेरे सेमीनार हो रहे होंगे और 100-200 लोग सीखने के लिए आएंगे. मैं रातदिन एक कर रही हूं,        -पूनम अहमद द

जागृति तो सिर्फ पढ़ने से आती है

सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग यानी सादा जीवन उच्च विचार पर अमल करने वाले युवाओं की तादाद दिनोंदिन कम होती जा रही है. युवा टिपटौप रहें, अच्छे मनपसंद कपड़े पहनें, वक्त के हिसाब से फैशन करें ये बातें कतई हरज की नहीं, लेकिन उन की सोच और मानसिकता कैसी होनी चाहिए जो उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचा दे यह सबक भोपाल की 24 वर्षीय जागृति अवस्थी से लिया जा सकता है जिस ने इस साल यूपीएससी के इम्तिहान में देशभर में दूसरा स्थान हासिल किया है.

मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली दुबलीपतली लेकिन आकर्षक दिखने वाली खूबसूरत जागृति भोपाल के शिवाजी नगर स्थित सरकारी आवास में रहती है. उस के पिता सुरेश अवस्थी आयुर्वेदिक कालेज में होमियोपैथी के प्रोफैसर हैं और मां मधुलता हाउसवाइफ हैं. एकलौता भाई सुयश मैडिकल कालेज का छात्र है.

नतीजे के दिन से जागृति के घर मीडिया और बधाई देने वालों का तांता लगा है. हरकोई उस से जानना चाहता है कि उस ने यह मुकाम कैसे हासिल किया.

पड़ोसी होने के नाते इस प्रतिनिधि ने बचपन से ही उसे देखा है. जागृति शुरू से ही आम बच्चों से भिन्न रही है. उस की जिज्ञासा और मासूमियत ने उसे वहां तक पहुंचा दिया जो किसी भी युवा का सपना होता है.

इस प्रतिनिधि ने उस से लंबी अंतरंग बातचीत की तो कई अहम बातें सामने आईं जो बताती हैं कि यों ही कोई आईएएस अधिकारी नहीं बन जाता. इस उपलब्धि के लिए न केवल कड़ी मेहनत करना पड़ती है बल्कि बहुत से सुख और मौजमस्ती भी छोड़नी पड़ती है. आइए, जागृति की जबानी जानें उस के सफर की कहानी:

हाई रिस्क हाई गेन

जागृति ने जिंदगी का बहुत बड़ा जोखिम बीएचईएल की नौकरी छोड़ देने का उठाया था. भोपाल के एनआईटी से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिगरी लेने के बाद उस की जौब जब इस सरकारी कंपनी में लगी थी तब तक उस ने सिविल सेवाओं के बारे में सोचा भी नहीं था. क्व95 हजार महीने की खासी लगीलगाई नौकरी छोड़ना एक बहुत बड़ी रिस्क था जिस पर दोस्तों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों ने उस के इस फैसले को एक तरह से नादानी करार दिया था. कुछ की सलाह थी कि तैयारी तो नौकरी के साथसाथ भी हो सकती है यानी नौकरी छोड़ने का जोखिम मत उठाओ.

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मगर जागृति ने जोखिम उठाया और कामयाब रही. युवाओं को रिस्क लेना चाहिए. वह कहती है कि इस के लिए जरूरी है अपनेआप पर भरोसा होना कि जो लक्ष्य उन्होंने चुना है उसे हासिल कर ही दम लेंगे. अगर ठान लिया जाए और खुद को पूरी तरह झोंक दिया जाए तो दुनिया का कोईर् काम मुश्किल नहीं.

पत्रपत्रिकाएं जरूरी

जागृति के पेरैंट्स ने कभी उस के फैसलों पर एतराज नहीं जताया बल्कि हमेशा उसे प्रोत्साहित ही किया. जब बच्चे बड़े होने लगे तो मधुलता ने उस की बेहतर पढ़ाई के लिए टीचरशिप की नौकरी छोड़ दी. लेकिन अकेले पढ़ाई में अव्वल होना किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता की गारंटी जागृति नहीं मानती. उस के मुताबिक आप को बहुत सा और हर तरह का साहित्य पढ़ना चाहिए जो सिर्फ पत्रपत्रिकाओं और पुस्तकों में ही मिलता है. सोशल मीडिया और टीवी, मोबाइल का युवाओं को सीमित उपयोग करना चाहिए.

खुद जागृति के घर टीवी नहीं है जो पढ़ाई में बाधक ही होता. वह बताती है कि परीक्षा की तैयारी के लिए उस ने तरहतरह की किताबें पढ़ीं जिस से उस का ज्ञान बढ़ा. वह बचपन में बड़े चाव से चंपक पढ़ा करती थी और अब सरिता, गृहशोभा सहित कारवां पत्रिका भी जरूर पढ़ती है. पत्रपत्रिकाओं के अध्ययन ने उसे व्यावहारिक और तार्किक बनाया.

आईएएस ही क्यों

जागृति जब बीएचईएल में नौकरी करती थी तब उस ने देखा कि छोटे स्तर के कर्मचारी अपने छोटेछोटे कामों के लिए कलैक्टर के दफ्तर भागते थे. कुछ के काम हो जाते थे और कुछ के नहीं. इन लोगों की परेशानी देख उस के मन में भी आईएएस बनने का खयाल आया. वह कहती है कि वह खुद बुदेलखंड इलाके के जिले छतरपुर के छोटे से गांव से है, लिहाजा बचपन में ही उस ने देहाती जिंदगी की दुश्वारियों को देखा है. अब वह महिला और बाल विकास विभाग को प्राथमिकता में रखते हुए काम करेगी.

राजनीतिक हस्तक्षेप

ब्यूरोक्रेट्स को अकसर राजनीतिक दबाव में फैसले लेने पड़ते हैं. अगर ऐसी नौबत कभी आई तो क्या करोगी? इस सवाल पर वह पूरे आत्मविश्वास से बोली कि उसे नहीं लगता कि राजनीतिक दबाव में वह कोई फैसला लेगी. देश में एक संविधान है. उस के दायरे में ही फैसले लेगी. जागृति का मानना है कि कोई भी फैसला आम और वंचित लोगों के भले के लिए संस्थागत तरीके से लिया जाना चाहिए. देश टैक्स के पैसे से चलता है किसी खैरात से नहीं, यह बात सभी को ध्यान में रखनी चाहिए. ऐसा ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ट्रांसफर कर दिया जाएगा, जिन की परवाह नहीं.

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महिला आरक्षण

जागृति का ध्यान पिछले दिनों चीफ जस्टिस एनवी रमण के उस बयान जिस में उन्होंने न्यायपालिका में महिलाओं के 50 फीसदी आरक्षण की जोरदार वकालत की थी पर खींचने पर वह बोली कि आरक्षण होना चाहिए, लेकिन यह देखा जाना जरूरी है कि वह कैसे दिया जा रहा है. आरक्षण के मसले पर हमें महिलाओं को विभिन्न तबकों में बांटना होगा क्योंकि सभी की हालत एक सी और ठीक नहीं है जिसे सुधारने के लिए महिला शिक्षा और जागरूकता पर ध्यान दिया जाना जरूरी है.

डाक्टर भीमराव अंबडेकर ने जातिगत आरक्षण दे कर उस तबके का भला ही किया था जो सदियों से शिक्षा से वंचित था. शहरों में तो स्थिति ठीकठाक है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में काफी कुछ काम इस दिशा में होना बाकी है.

शादी के बारे में

जागृति का नजरिया शादी के बारे में बहुत स्पष्ट है. वह हंसते हुए कहती है कि बहुत से चीजों को देखते हुए किसी समकक्ष से ही शादी करेगी लेकिन उस में मम्मीपापा की रजामंदी होगी. उन्होंने उसे इस बारे में भी फैसला लेने की छूट दे रखी है. ऐसा जीवनसाथी पसंद करेगी जिस में आदमी को आदमी समझने का जज्बा हो और जो जमीनी सोच रखता हो.

युवा धैर्य और समझ से काम लें

अब बहुतों की रोल माडल बन चुकी जागृति मौखिक इंटरव्यू में एक मामूली से सवाल पर लड़खड़ा गई. यह सवाल था मध्य प्रदेश का पिनकोड 4 से शुरू होता है और किस राज्य का पिनकोड 4 से शुरू होता है. जबाव बहुत आसान था कि छत्तीसगढ़ का क्योंकि वह मध्य प्रदेश से अलग हो कर ही बना था. वह कहती है अकसर इंटरव्यू में ऐसा होता है कि उम्मीदवार मामूली से सवालों के जवाब मालूम होते हुए भी नहीं दे पाता.

जागृति की नजर में यह घबराहट हालांकि स्वाभाविक है, लेकिन युवाओं को न केवल किसी इंटरव्यू बल्कि जिंदगी की हर लड़ाई में धैर्य और अपनी समझ बनाए रखनी चाहिए. आज का युवा कई अनिश्चितताओं में जी रहे हैं पर आत्मविश्वास एक ऐसी पूंजी है जो उन्हें कभी दरिद्र नहीं होने देती.

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