संबंध को टेकेन फार ग्रांटेड लेंगी तो पछताना ही पड़ेगा

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

एक सुखी दांपत्य के लिए क्या जरूरी है? इस बात से जरा भी इनकार नहीं किया जा सकता कि दांपत्य जीवन के लिए हेल्दी फिजिकल रिलेशन जरूरी है. अलबत्त, यह जरूरी नहीं कि इसके अलावा भी ऐसा बहुत कुछ है जो संबंध को हमेशा सजीव रखता है.हग, स्पर्श, प्यार , कद्र, सम्मान और संवाद कभी संबंध को सूखने नहीं देते.

शबाना आजमी से एक इंटरव्यू में पूछा गया था कि जावेद साहब इतनी सारी कविताएं, गीत और गजल लिखते हैं तो आप पर भी रोजाना एक गीत या गजल लिखते होंगें? शबाना आजमी ने इस सवाल के जवाब में कहा था कि जावेद साहब मेरे ऊपर कविता या गीत नहीं लिखते, इतने लंबे वैवाहिक जीवन में मेरे ऊपर गिनती की 3-4 कविताएं लिखी होंगीं. पर सच बात तो यह है कि मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है. क्योंकि उनके व्यवहार में मैं अपने प्रति भरपूर स्नेह देखती हूं. मेरी छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना, मेरी हर बात को शांति से सुनना, मेरी कोई प्राब्लम हो तो उसे हल करना, रोजाना प्रेम से हग करना,  यह सब मेरे लिए कविता से विशेष है. मैं अपने प्रति उनके स्नेह को आज भी वैसा ही अनुभव कर रही हूं, जो मेरे लिए कविता से बढ़ कर है. शबाना आजमी की पूदी बात में आखिरी बात बारबार  पढ़ने और समझने लायक है कि ‘मैं इतने सालों बाद भी उनके अपने प्रति स्नेह को उनके व्यवहार में अनुभव कर सकती हूं.’ यही सब से महत्वपूर्ण बात है.

पूरे दिन की दौड़भाग के बाद घर आने पर मिलने वाला पत्नी का प्रेम भरा एक हग दिन भर की थकान उतार सकता है. यह वाक्य हम न जाने कितनी बार पढ़ या सुन चुकी होंगीं, शादी के बाद शुरू के दिनों में कुछ समय तक पति-पत्नी के बीच यह घटनाक्रम चलता है. पर जैसेजैसे समय बीतता जाता है, वैसेवेसे यह आदत छूटने लगती है. अलबत्त, पति थक कर आया हो, पूरे दिन घर और घर के सदस्यों की देखभाल करने वाली पत्नी की भी इच्छा होती है कि उसका भी कोई ख्याल रखे. जिस तरह पति आफिस से थकामांदा आता है और पत्नी के हाथ की गरमामरम चाय पी कर उसकी थकान उतर जाती है, उसी तरह रोज सवेरे जल्दी उठ कर नाश्ता तैयार करने वाली पत्नी को भी किसी दिन आराम दे कर पति नाश्ता बनाए तो पत्नी के लिए इससे बढ़कर खुशी की बात दूसरी नहीं होगी.

डेप्थ अफेक्शन और एट्रेक्शन का खेल

यह समय ऐसा है कि संबंधों में डेप्थ मुश्किल से ही देखने को मिलता है. युवा अफेक्शन और एट्रेक्शन के बीच की पतली रेखा को भूलते जा रहे हैं. परिणामस्वरूप एट्रेक्शन को प्रेम मान लेने की गलती कर रहे हैं. एट्रेक्शन कुछ समय बाद कम होने लगता है, इसलिए एक समय जो व्यक्ति बहुत अच्छा लग रहा होता है, वही व्यक्ति कुछ समय बाद जीवन की भूल लगने लगता है. यहां महिला या पुरुष,  किसी एक गलती नहीं कही जा सकती, महिला और पुरुष दोनों की ओर से अब ऐसा होने लगा है. मार्डर्न कल्चर को मानने वाले युवाओं में यह चीज खास कर देखने को मिलती है. ये बहुत जल्दी किसी की ओर आकर्षित हो जाते हैं. यह आकर्षण फिजिकल होता है, इसलिए कुछ दिनों बाद वह आदमी बोर लगने वगता है. फिर उस आदमी की बातें, विचार और पसंद अच्छी नहीं लगतीं.मन में उसे छोड़ कर भाग जाने का मन होने लगता है.

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 प्रेम को शारीरिक संबंध की बाऊंड्री में न लाएं

सेक्सुअल रिलेशन हम सब की जरूरत है. आदमी की बेसिक जरूरत में एक जरूरत है. पर प्रेम केवल शारीरिक संबंधों की बाऊंड्री में नहीं आता. प्रेम इस सब से परे है. हम जब अपने पार्टनर से जुड़ते हैं, तो शारीरिक रूप से खुश रखने के साथसाथ मानसिक रूप से भी खुशी देने के वचन का हमेशा पालन करना चाहिए. क्योंकि शारीरिक खुशी कहीं न कहीं स्वखुशी भी होती है. जबकि पार्टनर को दिया जाने वाला प्रेम, लगाव, स्नेह और अपनेपन की भावना पूरी तरह पार्टनर की खुशी के लिए किया गया कार्य है.

 छोटे स्टेप्स भी ध्यान देने लायक

ऐसा कहा जाता है कि प्रेम करने वाला व्यक्ति आप द्वारा की गई छोटी से छोटी बात पर ध्यान रखता है और यह बात उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है. जेसेकि पति उठे तो उसके लिए गरम पानी तैयार रखना, इससे पति को आप की केयरिंग का आभास होगा. पार्टनर की छोटी से छोटी बात का ध्यान रखने की आदत, रास्ते में जा रहे हों और पार्टनर को ठंड लगने पर अपनी जैकेट उतार कर ओढ़ाने की आदत, कार में जा रहे हों, पार्टनर जहां उतरे उसे हग कर के सीआफ करने की आदत, थोड़ा समय निकाल कर पार्टनर को सरप्राइज देने की आदत, सुबह उठने तथा रात को सोने के पहले उसी तरह बाहर से आने पर तुरंत स्नेहिल हग करने की आदत, पार्टनर को उसके कार्यस्थल से पिकअप करने की आदत, लांग ड्राइव पर गए हों तो पार्टनर की पसंद के गाने बजाने की आदत, जैसे छोटेछोटे काम भी आपको प्रेम करने के लिए अति महत्वपूर्ण हो सकते हैं. क्योंकि आपकी यही आदतें आपको अनुभव कराएंगी कि आप उसके लिए महत्वपूर्ण हैं.

 समय समय पर संबंध को पोसना जरूरी है

खैर, आप कहेंगे कि नयानया संबंध बना है तो सभी ऐसा करते हैं. यह बात सौ प्रतिशत सच है, नया संबंध बना हो, एकदूसरे को इम्प्रेश करने की शुरुआत हो तो इस तरह की तमाम छोटीछोटी चीजें एकदूसरे के लिए पार्टनर्स करते रहते हैं. पर जैसेजैसे समय गुजरता जाता है, वैसेवैसे ये चीजें भुलाती जाती हैं. कहो कि पार्टनर एकदूसरे को टेकेन फार ग्रांटेड लेना चाहते हैं. यह टेकेन फार ग्रांटेड लेने की आदत ही संबंधों में गैप लाने की शुरुआत करती है. ‘बारबार थोड़ा प्रेम जताना हो’?’ ‘यह तो पता ही हो न?’ ‘संबंध को कितना समय हो गया, अब यह बहुत अच्छा नहीं लग रहा’, ‘यह लपरझपर हमें नहीं आता’, ‘यह सब नयानया संबंध बना था तो किया था, अब हमेशा के लिए यह अच्छा नहीं लगता’, आदमी की यही मानसिकता संबंध में गैप लाने का काम करती है. एक सीधासादा उदाहरण देखते हैं. हम घर में एक पेड़ उगाते हैं. शुरूशुरू में उसकी खूब देखभाल करते हैं. उसमें खाद डालते हैं  पानी डालते हैं. थोड़ेथोड़े दिनों में उसकी गुड़ाई कर के उसे हराभरा रखने की कोशिश करते हैं. जब तक यह सब करते रहते हैं, तब तक पेड़ खूब हराभरा रहता है. उसमें सुंदर फूल भी आते हैं. पर जैसेजैसे समय गुजरता जाता है, पेड़ भी बड़ा हो जाता है, देखने में सुंदर लगने लगता है, तब उसकी देखभाल कम कर देते हैं. ऐसा करने से कुछ दिनों में पेड़ सूख जाएगा. संबंधों में भी ऐसा होता है. संबंध भी जतन मांगते हैं. इन्हें टेकेन फार ग्रांटेड लेने के बदले इनका जतन करें. संबंध में भी स्नेह, प्रेम लगाव की खाद और पानी डालते रहें. इस तरह करने से वह हमेशा हराभरा रहेगा.

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 जतन सब से ज्यादा जरूरी

लड़केलड़की के बीच संबंध बनता है तो सेक्सुअली क्लोजनेस आ ही जाती है, यह स्वाभाविक भी है. पर शारीरिक निकटता के साथ संबंध में स्नेह और मानसिक निकटता भी बनाए रखें, पार्टनर की छोटीछोटी बात का ध्यान रखें, यहां केवल लड़का या लड़की ही नहीं, दोनों की बात है. दोनों ही एकदूसरे के लिए ज्यादा समय न निकाल सकते हों तो भी छोटेछोटे काम से एकदूसरे के लिए लगाव फील कराएं, जैसेकि सुबह उठ कर एकदूसरे को स्नेह भरा हग करें, लंच बनाते समय एक साथ समय गुजारें, एकदूसरे की तमाम चीजों का ख्याल रखें, एकदूसरे को दिन में बारबार आई लव यू कहें, पूरे दिन क्या किया, रात को एकदूसरे से जानें, मन में क्या चल रहा है, एकदूसरे से शेयर करें. पार्टनर फ्रस्ट्रेट हो तो उस पर गुस्सा होने के बजाय उसे संभालें. छोटीछोटी सरप्राइज दें. जैसा पहले बताया कि संबंध भी हरेभरे पेड़ की तरह है. इसे टेकेन फार ग्रांटेड लेने के बजाय इसका जतन करना जरूरी है.

मैं जेठानी और सास के सास बहू के सीरियल से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 29 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. हम संयुक्त परिवार में रहते हैं. सासससुर के अलावा घर में जेठजेठानी, उन के 2 बच्चे व मेरे पति सहित कुल 8 सदस्य रहते हैं. ससुर सेवानिवृत्त हो चुके हैं. मुख्य समस्या घर में सासूमां और जेठानी के धारावाहिक प्रेम को ले कर है. वे सासबहू टाइप धारावाहिकों, जिन में अतार्किक, अंधविश्वास भरी बातें होती हैं, को घंटों देखती रहती हैं और वास्तविक दुनिया में भी हम से यही उम्मीद रखती हैं. इस से घर में कभीकभी अनावश्यक तनाव का माहौल पैदा हो जाता है.

इन की बातचीत और बहस में भी वही सासबहू टाइप धारावाहिकों के पात्रों का जिक्र होता है, जिसे सुनसुन कर मैं बोर होती रहती हूं. कई बार मन करता है कि पति से कह कर अलग फ्लैट ले लूं पर पति की इच्छा और अपने मातापिता के प्रति उन का आदर और प्रेम देख कर चुप रह जाती हूं. सम  झ नहीं आता, क्या करूं?

जवाब-

सासबहू पर आधारित धारावाहिक टीवी चैनलों पर खूब दिखाए जाते हैं. बेसिरपैर की काल्पनिक कहानियों और सासबहू के रिश्तों को इन धारावाहिकों में अव्यावहारिक तरीके से दिखाया जाता है.

पिछले कई शोधों व सर्वेक्षणों में यह प्रमाणित हो चुका है कि परिवारों में तनाव का कारण सासबहू के बीच का रिश्ता भी होता है और इस में आग में घी डालने का काम इस टाइप के धारावाहिक कर रहे हैं. ये धारावाहिक न सिर्फ परिवार में तनाव को बढ़ा रहे हैं, बल्कि भूतप्रेत, ओ  झातांत्रिक, डायन जैसे अंधविश्वास को भी बढ़ावा दे रहे हैं.

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काल्पनिक दुनिया व अंधविश्वास में यकीन रखने वाले लोगों में एक तरह का मनोविकार भी देखा गया है, जो इन चीजों को देखसुन कर ही इन्हें सही मानने लगते हैं. ऐसे लोगों की मानसिकता बदलना टेढ़ी खीर होता है. अलबत्ता, इस के लिए आप को धीरेधीरे प्रयास जरूर करना चाहिए.

दिल्ली प्रैस की पत्रिकाएं समाज में व्याप्त ढकोसलों, पाखंडों व अंधविश्वासों के खिलाफ शुरू से मुहिम चलाती आई हैं और अब महिलाएं समाज में व्याप्त ढकोसलों, पाखंडों का विरोध करने लगी हैं.

फिलहाल आप खाली समय में उपयुक्त वक्त देख कर सास और जेठानी को इस के गलत प्रभावों के बारे में बता सकती हैं. आप को उन के मन में यह बात बैठानी होगी कि इस से घर में तनाव का माहौल रहता है और इस का सब से ज्यादा गलत प्रभाव बच्चों और उन के भविष्य पर पड़ता है और वे वैज्ञानिक सोच से भटक कर तथ्यहीन और बेकार की चीजों को सही मान कर भटक सकते हैं. आप अपने ससुर से भी इस में दखल करने को कह सकती हैं.

बेहतर होगा कि खाली समय को ऊर्जावान कार्यों की तरफ लगाएं और उन्हें भी इस के लिए प्रेरित करें. उन्हें पत्रपत्रिकाएं व अच्छा साहित्य पढ़ने को दें. कुप्रथाओं, परंपराओं, अंधविश्वास के गलत प्रभावों को तार्किक ढंग से बताएं ताकि उन की आंखों की पट्टी खुल जाए और वे इस टाइप के धारावाहिकों को देखना बंद कर दें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

समय के साथ जरूरी है ग्रूमिंग

दादी, नानी बन कर घर व नातीपोते तक ही सीमित न रहें बल्कि बढ़ते समय के साथ आप अपनी ग्रूमिंग करती रहें. अपने रंगरूप के प्रति सचेत रहें. फेशियल मसाज, बालों का रखरखाव आदि के प्रति बेरुखी न अपनाएं. माह में 1 बार ब्यूटीपार्लर जाएं या घर पर ही ब्यूटी ऐक्सपर्ट को बुलाएं. आजकल तो घर पर जा कर भी ब्यूटी ऐक्सपर्ट अपनी सेवाएं उपलब्ध कराती हैं. यह सब रही बौडी की ग्रूमिंग की बात.

मनमस्तिष्क की ग्रूमिंग के लिए आज के आवश्यक वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग करना अवश्य सीखें. ‘अब क्या करना है सीख कर’ जैसा विचार अपने पास फटकने न दें. आज मोबाइल पर फोटो खींच कर व्हाट्सऐप से भेजना, फेसबुक पर पोस्ट करना और गूगल द्वारा नईनई जानकारी प्राप्त करना सहज हो गया है. रोजमर्रा के सोशल नैटवर्क को अपना कर आप, घर बैठे ही, सब से  जुड़ी रहेंगी.

बुजुर्ग महिला विमला चड्ढा अपने 75वें जन्मदिन पर मोबाइल में व्हाट्सऐप व फेसबुक पर उंगलियां चला रही थीं. उन की बहू के साथसाथ उन के नातीनातिन बड़े ही गर्व से उन्हें निहार कर खुश हो रहे थे.

1980 में सोशल साइंटिस्ट विलियम जेम्स ने कहा था कि 30 वर्ष की उम्र तक बना व्यक्तित्व एक प्लास्टर की भांति ठोस हो कर पूरे जीवन हमारे साथ रहता है. यानी इस उम्र तक हम जो बन जाते हैं, वैसे ही पूरे जीवन रहते हैं. यह धारणा 90 के दशक तक चली.  आज के सोशल साइंटिस्ट के अनुसार, हमारा व्यक्तित्व एक खुला सिस्टम है जिस में हम जीवन के किसी भी समय में, वर्तमान स्टाइल, जीवन का नया तरीका अपना सकते हैं. प्लास्टिसिटी सिद्धांत के अनुसार, जिंदगी में उम्र के किसी भी पड़ाव में परिवर्तन किया जा सकता है.

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ऐसी कई छोटीछोटी राहें हैं, कदम हैं, जिन के द्वारा ग्रूमिंग होती रहती है, व्यक्तित्व निखरता रहता है, जैसे कि-

अंगरेजी शब्दों के आज के उच्चारण पर ध्यान दें. उन्हें याद रखें. जैसे कि ‘डाइवोर्स’ शब्द को आजकल ‘डिवोर्स’ बोला जाता है. ‘बाउल’ (कटोरा) को ‘बोल’ कहा जाता है. मुझे याद है, रीझ को ‘बीअर’ कहा जाता था अब ‘बेअर’ कहा जाता है. ऐसे और भी कई शब्दों के उच्चारण आत्मसात करते रहें.

औनलाइन शौपिंग करना, टिकट बुक कराना जैसे कार्य सीखें. हां, औनलाइन शौपिंग करने पर होशियार अवश्य रहें. शौपिंग से पूर्व, विके्रता कंपनी से वस्तु की गारंटी तथा उस की क्याक्या शर्तें हैं, यह जरूर जान लें. वस्तु पसंद न आने पर रुपयों के वापसी की गारंटी या वस्तु बदलने की गारंटी लें. एमेजोन और फ्लिपकार्ट जैसी शौपिंग साइटें गारंटी देती हैं. थर्डपार्टी से शौपिंग करने से बचें. इस में धोखा होने की संभावना होती है.

सांस्कृतिक कार्यों, गोष्ठियों में रुचि बनाए रखें. संभव हो तो उन में भाग लें. अपने विचारों का आदानप्रदान करें. इस से सकारात्मक भाव बना रहता है.

अपने बच्चों व नातीपोतों की फेवरिट बनी रहने के लिए नईनई रैसिपी सीखती रहें. इन्हें आप टीवी, यूट्यूब या गूगल द्वारा सीख सकती हैं. इस से आप में आत्मविश्वास, एक जोश पनपेगा. जब चाहें तब अपने बच्चों की पसंद की डिश बना कर आप उन्हें सरप्राइज दे सकती हैं.

बच्चों की इच्छा पर रैस्टोरैंट जा कर, उन की पसंद की डिशेज खाएं. हो सकता है वह आप को पसंद न भी आए, पर सब की खुशी में शामिल हो कर स्वयं को उन डिशेज के टेस्ट से ग्रूमिंग करें.

पुरानी मानसिकता त्याग दें. सब से प्रथम, अपना भविष्य देखना, सुनना (टीवी व रेडियो), अखबार में पढ़ना तुरंत छोड़ दें. ‘वृद्धावस्था तो बस माला जपने, धार्मिक पोथी पढ़ने के लिए ही बुक होती है,’ जैसी पुरानी मानसिकता का त्याग कर दें.

किसी भी पुरानी आदत को स्वयं से चिपकाए न रखें. किसी ने कहा है कि ‘आदत एक जबरदस्त रस्सी होती है जिसे प्रतिदिन हम अपने ही हाथों बंटते हैं.’ सो, इसे अपने ही हाथों खोल डालें. खुले हृदय से परिवर्तन को स्वीकारें. उदाहरण के तौर पर, आज बर्गरपिज्जा के समय में आप अपने बच्चों को अपने समय का सत्तू, गुड़धानी खिलाने की जिद करेंगी तो परिणाम आप स्वयं जानती हैं. समय के साथ बदलना, जीवन को सार्थकता देता है.

सो, उम्र के नाम पर, ग्रूमिंग की पंक्ति में पीछे खड़ी न रहें. आज की सासबहू, मांबेटी स्मार्ट पोशाक, स्मार्ट व्यक्तित्व व आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की जानकारी के साथ जब बराबर कदम उठा कर चलती हैं, तब आसपास की उठती निगाहें ‘वाह, वाह’ कह उठती हैं.

बस, आप को ग्रूमिंग करते रहना है बदलते समय के साथ. न पीछे मुड़ कर देखें और न अडि़यल बनें. फिर देखिए, आप के चारों ओर खुशी और ऊर्जा बिखरी होगी.

बैंकिंग कार्य से परिचित व जुड़ी रहें, जैसे चैक जमा करना, रुपए निकालना, अपना लौकर औपरेट करना आदि. आप ने यह कार्य छोड़ रखा है तो अब शुरू कर दें. अगर कभी किया ही नहीं है तो सीख लें. इस तरह एक अलग ही आत्मविश्वास पनपेगा आप के व्यक्तित्व में.

समयानुसार अपने विचारों को बदलते रहें. आज के तरीकों व परिवेश को सहजतापूर्वक स्वीकारें. आज से कुछ दशकों पूर्व, शादी से पहले लड़कालड़की का खुलेआम घूमना, साथ समय व्यतीत करना संभव न था. पर अब शादी से पूर्व घूमनेफिरने के साथसाथ रहना तक भी संभव हो रहा है ताकि एकदूसरे की कंपैटिबिलिटी जानी जा सके. ऐसी बातों पर आप तनावग्रस्त न हों.

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अपने लिए कोई न कोई, चाहे छोटा ही हो, लक्ष्य चुनती रहें. चलते रहना जीवन है, रुक जाने का नाम मृत्यु है. तो चलती रहिए जीवनपर्यंत नईनई मंजिलों की ओर. इस तरह तनमन में एक जोश व ऊर्जा बनी रहती है. ‘अब तो आखिरी पड़ाव है, अब क्या करना है,’ ऐसे विचार को दिमाग से खुरच डालिए. अंगरेजी में कहावत है- ‘कावर्ड्स डाई मैनी टाइम्स, बिफोर देअर डैथ.

अपनी उम्र के अनुसार आधुनिक स्टाइल की पोशाकें खरीदें व बनवाएं. ‘अब तो उम्र निकल ही गई, अब क्या करना है नई पोशाकों का’, ऐसा बिलकुल न सोचें. अपनी वार्डरोब समयसमय पर बदलती रहें. बुजुर्ग महिला चांद वालिया अपनी उम्र के 80 दशक में भी कलफ लगी कौटन साड़ी, ट्राउजर आदि पहनती रहीं. सारा फ्रैंड सर्किल और पड़ोसी उन की पसंद पर दाद देते थे.

बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाने के 6 टिप्स

2 साल के अस्मित ने अभी नया नया ही चलना सीखा है पर जैसे ही वह खुद चलने की कोशिश करता है तो उसके गिरने के डर से मां मीता उसे गोद में उठा लेती है या फिर हाथ पकड़ कर चलाती है…इससे अस्मित भी धीरे धीरे चलने से डरने लगा है.

5 वर्षीया अनाया जब भी खुद से खाना खाने या अपना बैग लगाने की कोशिश करती है तो मां रीना यह कहकर उसे रोक देती है कि रहने दो तुम नहीं कर पाओगी इससे अनाया को भी अब लगने लगा है कि वह नहीं कर पायेगी क्योंकि अब वह स्वयं कोशिश करने की अपेक्षा पहले ही बैग लगाने के लिए आवाज लगाती है.

बच्चा जन्म के समय बिल्कुल गीली मिट्टी अथवा आटे के समान होता है आप जैसा उसे बनाते हैं वह वैसा ही बन जाता है. वर्तमान में परिवार में आमतौर पर एक या दो बच्चे ही होते हैं जिन्हें अभिभावक बड़े लाड़ प्यार से पालते हैं परन्तु कई बार उनका यह अति लाड़ प्यार धीरे धीरे उनके आत्मविश्वास को कम करने लगता है जिससे उनके व्यक्तित्व का समुचित विकास ही नहीं हो पाता जो बड़े होने पर उसके लिए ही नुकसानदेह साबित होता है. प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स जिनका ध्यान रखकर आप अपने बच्चे में आत्मविश्वास की वृद्धि कर सकते हैं-

 -प्रशंसा करें

रीमा ने जैसे ही ऑफिस से आकर घर में प्रवेश किया तो देखा कि रोज की अपेक्षा आज घर बड़ा ही व्यवस्थित नजर आ रहा है ….उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसकी 5 वर्षीया बेटी ने किया है उसने अपनी बेटी को गले लगाकर शाबासी दी जिससे बेटी हर रोज ही कोई न कोई कार्य करने का प्रयास करती है. बच्चा जब भी कोई कार्य करे भले ही वह उस कार्य को करने में असफल हो जाये आप उसके प्रयास की सराहना अवश्य करें ताकि भविष्य में वह कार्य को करने से डरे नहीं. आपके द्वारा की गई तारीफ उसके उत्साह में वृध्दि करेगी जिससे वह नए कार्य को करने में भी हिचकिचएगा नहीं.

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-आदर्श प्रस्तुत करें

बच्चों के लिए माता पिता सबसे बड़े उदाहरण होते हैं क्योंकि बच्चे का सबसे पहला स्कूल घर होता है और वे जैसा व्यवहार अपने माता पिता को करते हुए देखते हैं वैसा ही सीखते हैं. जिन घरों में माता पिता एक दूसरे के कार्यों में परस्पर मदद करते हैं वहां बच्चे भी अभिभावकों के साथ मिलजुलकर घर बाहर के कार्यों को करते हैं जो निस्संदेह उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक होते हैं.

-दें छोटी छोटी जिम्मेदारियां

बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार अपने खिलौनों , किताबों को व्यवस्थित रखना अथवा अपनी शेल्फ को जमाने जैसे कार्य करने को दें इससे उनमें अपने कार्य को स्वयं करने की प्रवृत्ति का विकास होगा. कई बार माताएं काम फैल जाने के डर से बच्चों को काम नहीं करने देतीं परन्तु हर समय उन्हें सब कुछ रेडी करके देने से उनके मेहनत करने की आदत का विकास हो ही नहीं पाता जो उनके ही भविष्य के लिए अत्यंत घातक होता है क्योंकि जिंदगी में बिना परिश्रम के कुछ भी हासिल नहीं होता.

– निर्णय को तरजीह दें

आजकल 5-6 वर्ष की आयु के बच्चे भी अपनी पसन्द की ड्रेस पहनना पसंद करते हैं परन्तु अक्सर अभिभावक उनकी बातों पर ध्यान न देकर अपनी इच्छा उन पर थोपते हैं परन्तु इससे उनके आत्मविश्वास में कमी होने लगती है. बच्चे का कोई भी कार्य यदि आपको नापसन्द है तो उसे अनुभव से सीखने दें और फिर उसे तर्क सहित अपनी बात बेहद प्यार से समझाएं.

-बात बात पर न टोकें

छोटी छोटी बातों पर हरदम टोकने की अपेक्षा सप्ताह में एक बार बच्चे को अपने पास बैठाकर प्यार से अपनी बात समझाएं. जहां तक सम्भव हो अपनी बात को सीधे कहने की अपेक्षा उदाहरण देकर अप्रत्यक्ष रूप से समझाने का प्रयास करें.

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-तुलना न करें

बच्चे की कभी भी उसके भाई बहन या दोस्तों से तुलना न करें क्योंकि संसार में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी खूबियां और खामियां होती हैं. दूसरे से तुलना करने पर बच्चे का स्वाभिमान आहत होता है जिससे धीरे धीरे उसके अंदर हीन भावना का जन्म होने लगता है.

महिलाओं के इन 10 नखरों के बारे में जान कर आप मुस्कुराए बिना नहीं रहेंगे

महिलाएं किसी माने में पुरुषों से कम नहीं हैं. कई क्षेत्रों में तो वे पुरुषों को भी पछाड़ चुकी हैं. बात बचत की हो या फिर परिवार को बांधे रखने की, महिलाएं अपनी सारी भूमिकाएं बखूबी निभाती हैं. उन में खूबियों के साथसाथ कुछ ऐसी हरकतें भी होती हैं, जिन का जवाब मिल पाना मुश्किल है. आइए, जानते हैं वे हरकतें कौन सी हैं :

पीछे बुराई सामने बखान:

आप ने अकसर अपनी श्रीमती को अपनी सहेली से कहते सुना होगा कि अरे वह नीलिमा न जाने खुद को क्या समझती है. थोड़े अच्छे कपड़े क्या पहनती है, उसे लगता है उस से सुंदर कोई और है ही नहीं. लेकिन जैसे ही श्रीमती की मुलाकात नीलिमा से किसी पार्टी या फंक्शन में होती है तो उन की राय तुरंत बदल जाती है. तब वे कहती हैं कि हाय नीलिमा, आप की साड़ी बहुत सुंदर है. साडि़यों का कलैक्शन आप के पास कमाल का है. कोई कुछ भी कहे, मुझे आप की ड्रैसिंग सैंस बेहद पसंद है. भई, जब आप को तारीफ करनी ही थी तो पीठ पीछे बुराई क्यों की और अगर सच में मन में नफरत थी तो फिर यह तारीफ क्यों? अब आप ही बताएं कि है न यह सोचने वाली बात?

सलाह लेंगी पर मन की करेंगी:

‘‘अच्छा मांजी मैं व्यायाम क्लास के लिए कहां जाऊं सरकार नगर या बगल वाली बिल्डिंग में?’’

मान लें कि मांजी ने कहा सरकार नगर, लेकिन तब भी वे पति से पूछेंगी, ‘‘आप को क्या लगता है मुझे व्यायाम क्लास के लिए कहां जाना चाहिए?’’

माना पति ने भी कहा सरकार नगर. पर 2 लोगों से एक सा जवाब पाने के बाद भी उन के दिल को तसल्ली नहीं मिलती. अपनी 2-4 सहेलियां से भी यही सवाल पूछेंगी और आखिर में कहेंगी, ‘‘मैं सोच रही हूं बगल वाली बिल्डिंग ठीक रहेगी. सरकार नगर वाली क्लास में बाकी सुविधाएं तो ठीक हैं, लेकिन वह घर से थोड़ा दूर है.’’

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श्रीमतीजी, जब आप को अपने मन की करनी ही थी तो लोगों की सलाह क्यों ली?

खाएंगी भी मोटापे से भी डरेंगी:

‘‘बस…बस थोड़ा ही देना’’  ‘‘अरे यह ज्यादा है थोड़ा कम करो’’, ‘‘चलो आप कह रही हैं तो चख ही लेती हूं’’, ‘‘इतना काफी है ज्यादा खाऊंगी. तो मोटी हो जाऊंगी.’’ जब भी खानेखिलाने की बात होती है महिलाएं अकसर इन जुमलों का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन खाती जरूर हैं. इतना ही नहीं, खाने की सामग्री थोड़ाथोड़ा कहतेकहते अधिक भी हो जाती है और किसी को पता भी नहीं चलता. उन्हें भी नहीं.

अगर वाकई में उन्हें नहीं खाना है तो इतनी सारी बातें कहने के बजाय एक साधारण सा न भी कह सकती हैं.

5 मिनट कहेंगी सजने में घंटों लगा देंगी:

‘‘बस 5 मिनट में रैडी हो कर आई’’, ‘‘हां…हां… मैं तैयार हूं बस 3 मिनट’’, ‘‘बस आ ही रही हूं.’’ महिलाओं के मुंह से ये वाक्य तब सुनने को मिलते हैं जब वे तैयार हो कर कहीं जाने के मूड में होती हैं. पूछने पर हर बार कहती हैं कि बस ‘‘5 मिनट’’ और उन के ये 5 मिनट 5 से 10, 10 से 15, 15 से 20 बढ़ते जाते हैं. हैरान करने वाली बात तो यह है कि तैयार होने में 30 मिनट से भी अधिक समय लगाने के बावजूद कुछ न कुछ बाकी ही रहता है. इस का खुलासा तब होता है जब कोइ उन्हें कहता है कि मिसेज शर्मा, आप बहुत खूबसूरत नजर आ रही है और वे जवाब में कहती हैं, ‘‘क्या खूबसूरत. मैं तो अच्छी तरह से तैयार भी नहीं हो पाई, शर्माजी को आने की जल्दी जो पड़ी थी.’’ क्यों यह भी सच है न?

साथी को बदलेंगी फिर बदलाव से चिढ़ेंगी:

हमसफर भले कितना भी अच्छा क्यों न हो, महिलाओं के लिए वह कभी परफैक्ट नहीं होता है. बारबार टोक कर वे उसे हमेशा सुधारने में लगी रहती हैं. ‘‘भई, पार्टी में कभी आगे बढ़ कर आप भी लोगों से बात कर लिया करो,’’ ‘‘आप कभी खुद शौपिंग पर जा कर हमारे लिए कुछ नहीं लाते हो.’’

बेचारे पति कई बार ये ताने सुनने के बाद खुद को बदल लेते हैं. तब वही पत्नियां उन से कहती हैं, ‘‘पार्टी में तुम्हें लोगो से मिलने की बड़ी जल्दी होती है’’, ‘‘यह अपने मन से क्या उठा लाए? जब शौपिंग करनी नहीं आती है तो करते क्यों हो?’’ अब आप ही बताएं कुसूरवार कौन है?

शौपिंग के लिए हर वक्त रहेंगी रैडी:

‘‘मैं औनलाइन शौंपिंग में यकीन नहीं रखती,’’  कहने वाली महिलाएं को अगर इंटरनैट पर कोई काम करते वक्त साड़ी, सूट या ज्वैलरी का विज्ञापन दिख जाए, तो क्लिक कर के एक बार उसे देखती जरूर हैं. भई, अगर खरीदना नहीं है तो देखना क्यों? कुछ कहती हैं, ‘‘मैं तो बस फलां मौल से शौपिंग करती हूं.’’ लेकिन अगर पता चल जाए कि पास में ज्वैलरी की नई शौप खुली है तो देखने जरूर पहुंच जाती हैं. खरीदें या न खरीदें यह बाद की बात है.

‘‘मैं तो बस संडे को शौपिंग करती हूं.’’ ऐसा कहने वाली महिलाओं की भी कोई कमी नहीं है, लेकिन यह भी बस कहने की बात है. कुछ दिनों बाद वे खुद कहती हैं, ‘‘सोच रही हूं मंडे को शौपिंग पर चली जाऊं, घर में अकेली बैठ कर क्या करूंगी?’’

कहने का मतलब बस यही है कि महिलाएं किसी भी स्थिति में और कहीं भी शौपिंग के लिए तैयार रहती हैं.

हर बात को ले कर रहती हैं कन्फ्यूज्ड:

‘‘जानू शादी में क्या पहनूं, लहंगासाड़ी या फिर घाघराचोली’’, ‘‘मांजी नास्ते में क्या बनाऊं डोसा या ढोकला’’, ‘‘क्या करूं यार समझ नहीं पा रही पार्टी में जाऊं या नहीं.’’ बात छोटी हो या बड़ी, फैसले को ले कर महिलाएं हमेशा कन्फ्यूज्ड रहती हैं. ‘करूं या न करूं, जाऊं या नहीं. क्या पहनूं, क्या नहीं खाऊं या न खाऊं’ जैसी तमाम बातें महिलाओं से जुड़ी होती हैं, लेकिन फैसले को ले कर वे हमेशा हां, न में ही उलझी रहती हैं. मजेदार बात यह है कि महिलाएं जिन बातों को ले कर उलझन में रहती हैं, उन को छोड़ कर कुछ तीसरा ही करती हैं.

लड़ेंगी भी रोएंगी भी:

यह कहना गलत नहीं होगा कि पत्नियां पतियों के सामने अपने आंसुओं का इस्तेमाल तलवार की तरह करती हैं, जिन्हें देख कर बेचारे पति खुद घुटने टेक देते हैं. मजेदार बात तो तब होती है जब गलती खुद पत्नी की होती है, लेकिन वे पति पर बरस पड़ती हैं और आखिर में आंसू बहा कर पति को यों एहसास दिलाती हैं जैसे गलती उन की है. बेचारे पति भी कुछ समझ नहीं पाते. पत्नी की आंखों में आंसू देख कर सौरी बोल कर मामले को रफादफा कर देते हैं और पत्नियां मन ही मन मुसकराती हैं. न जानें वे ऐसी क्यों हैं?

हर हाल में कहेंगी मैं ठीक हूं:

‘‘आप को मेरी कोई फ्रिक नहीं है’’, ‘‘कल से मेरी तबीयत खराब है. पर आप को क्या’’, ‘‘मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है, लेकिन आप को क्या.’’  जैसी न जानें कितनी बातें हैं, जो पत्नियां अपने पति से अकसर गुस्से में कहती हैं खासकर तब जब पति उन का हालचाल उन से न पूछे. लेकिन पत्नियों के तानों के बाद जब कभी पति पत्नी से पूछता है कि अब दर्द कैसा है या तबीयत कैसी है  तो पत्नी कहती है कि मैं ठीक हूं, फिर चाहे दर्द ज्यों का त्यों क्यों न हो. अब आप ही बताएं जब ठीक ही थी तो पति को इतनी बातें सुनाने की क्या जरूरत थी.

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नाराज भी रहेंगी फिक्र भी करेंगी:

चाहे पति आसमान से चांद ही क्यों न ले आएं, लेकिन पत्नियां हमेशा उन से नाराज ही रहती हैं. लेकिन यह भी सच है कि  उन की नाराजगी में फ्रिक भी छिपी होती है. नाराजगी के चलते वे भले फोन लगा कर आप से प्यार भरी बातें न करें, लेकिन नाराजगी के अंदाज में आप की खैरियत का जायजा ले ही लेती हैं. इतना ही नहीं, अपनी नाराजगी को वे हमेशा एक ओर रखती हैं और पति की चायपानी, टिफिन जैसी जरूरतों को एक तरफ, कभी वे अपनी नाराजगी में पति का नुकसान नहीं करती हैं. अब आप ही बताएं क्या वे ऐसी नहीं हैं?

इमोशनल ब्लैकमेलिंग : संबंधों के माध्यम से शोषण

लेखक- वीरेन्द्र बहादुर सिंह 

एक कार्पोरेट कंपनी में सीए धर्मेश अपने काम से काम रखने वाला युवक था. इसलिए उसे किसी लड़की से प्रेम करने का मौका ही नहीं मिला. उसके मां-बाप ने उसके लिए लड़की खोजनी शुरू कर दी. कई लड़कियां देखने के बाद यात्री नाम की एक लड़की उन्हें पसंद आ गई. यात्री ने एमकाॅम कर रखा था. वह एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थी. वह सुंदर और प्रतिभाशाली युवती थी. मैनेजमेंट को उस पर गर्व था. मनचाहा परिणाम लाती थी वह.

यात्री और धर्मेश ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था. एक दो बार मिले, रेस्टोरेंट में साथ खाना खाया, थोड़ा घूमे-फिरे, एकदूसरे के विचारों को जाना. धर्मेश की मां का स्पष्ट कहना था कि लड़के और लड़की ने एकदूसरे को पसंद कर लिया, बात पूरी हो गई. बाकी सब गौड़ है. यात्री और धर्मेश की खुशीखुशी शादी हो गई. दोनों हनीमून टूर पर विदेश गए. सब कुछ बढ़िया चल रहा था. बस, एक बात की तकलीफ थी. यात्री का स्वभाव सीधी लाइन जैसा नहीं था. वैसे तो वह योग्य और प्रतिभाशाली थी, पर बातबात में उसकी नाराज हो जाने की आदत थी. उसे जो चाहिए, वह नहीं मिलता तो वह नाराज हो जाती. उसके मन का काम न होता तो वह खाना न खाती.

वैसे तो दांपत्यजीवन में रिसाने और मनाने का एक अलग ही मजा और लिज्जत होता है. पर यहां बात एकदम अलग थी. यहां यात्री बारबार जो नाराज हो रही थी, वह इमोशनल ब्लैकमेलिंग थी. शुरूआत के दिनों में तो धर्मेश ने यह सब सहम किया, पर बात गले तक आ गई तो परशानी होने लगी. पति के रूप में उसे जितना सहन करना चाहिए था, उसने सहन किता. वह एक परिपक्व और समझदार पति था. वह घंटोंघंटो यात्री को समझाता. वह कहता कि यात्री तुम यह जो कर लही हो, वह उचित नहीं है. तुम्हारा हर मामले में रोकटोक लगना ठीक नहीं है. जब देखो, तब तुम नाराज हो जाती हो और घर वालों से बोलना बंद कर देती हो.

दूसरी ओर यात्री के लिए अपना स्वभाव बदलना मुश्किल था. समयसमय पर वह अपने स्वभाव के अनुसार घर में अपनी चलाती, जिससे घर का वातावरण भारी हो जाता. धर्मेश के माता-पिता दुखी हो ग्ए. हंसता-खेलता, किल्लोल करता परिवार अचानक मौन हो गया. जब देखो, तब घर का वातावरण भारी रहता.

ऐसा अक्सर होता है. इमोशनल ब्लैकमेलिंग एक तरह की बीमारी है. यह एक तरह की अवस्था है. ऐसे तमाम लोग होते हैं, जिनकी इमोशनल ब्लैकमेलिंग करने की गलत आदत होती है. भावनात्मक ब्लैकमेल एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोई व्यक्ति जो चाहता है, उसे पाने के लिए धमकाता है. ये धमकियां अलग-अलग स्तर की होती हैं. भावनात्मक ब्लैकमेलिंग इस तरह का वातावरण बना देती है, जिसमें वातावरण बोझिल, भारी, तनावपूर्ण, अनिश्चित और दुखी करने वाला हो जाता है.

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ब्लैकमेल करने वाले व्यक्ति की एक निश्चित प्रकार की मानसिकता होती है. इमोशनल ब्लैकमेलिंग कर के अपना काम कराने की उसकी गंदी आदत पड़ चुकी होती है. इमोशनल ब्लैकमेलिंग करने वाला व्यक्ति प्यार को एक हथियार के रूप में काम करता है. इस तरह के व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति के हृदय की संवेदना का क्रूर उपयोग करते हैं.

प्रेम तीन स्तर पर व्यक्त किया जाता है.

1) संवेदना

2) स्नेह

3) भावनात्मकता

संवेदना प्रेम को व्यक्त करने का सर्वोत्तम स्तर है. संवेदना प्रेम का एक स्वरूप है. स्नेह के स्तर पर प्रेम व्यक्त होता है. स्नेह के स्तर पर व्यक्त किए जाने वाले प्रेम में संबंध चमकते रहते हैं. संबंधों के अलग-अलग शेड होते हैं. संबंधों के अलग-अलग प्रवाह होते हैं. हर संबंध की तरह सौंदर्य होता है, उसी तरह हर शब्द के अंदर का और बाहर का भी प्रवाह होता है. इसी प्रवाह के अनुरूप लगाव उसके साथ जुड़ा होता है. स्नेहशीलता प्रेम का ही एक स्वरूप है. स्नेहशीलता व्यक्त करने वाला प्रेम मुग्ध होता है. ये ऊपरी भी हो सकता है और छिछला भी. इस प्रेम में प्रेम करने वाले का व्यवहार प्रतिबिंबित होता रहता है. महिलाएं प्रेम का स्वरुप हैं. महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक श्रद्धा और प्रेम के आधार पर सोचती और जीती हैं. महिला यानी प्रेम, ममता, वात्सल्य, भावना, स्नेह, करुणा के फूलों की क्यारी. महिला और पुरुष में तार्किक फर्क यह है कि महिला पहले श्रद्धा और प्रेम के आधार पर जीती है. जब श्रद्धा थक जाती है, तब बुद्धि की शरण में जाती है. पुरुष का इससे उल्टा है. पुरुष बुद्धिप्रधान है. वह बुद्धि से सोचता और जीता है. जब उसकी बुद्धि थक जाती है, तब वह प्रेम की शरण में जाता है.

महिलाएं स्नेह के आधार पर सोचती हैं, तभी ठगी जाती हैं. अनेक परिवारों में संतानें मां को महिला के रूप में इमोशनल ब्लैकमेल करते रहते हैं. कभी-कभी यह काम पति भी करते हैं. अगर भारत की महिलाएं स्नेहशीलता से ऊपर उठ कर भावना या संवेदना की भूमिका में जीवन जीने लगेंगी, तब वे अच्छी तरह प्रेम व्यक्त कर सकेंगी और उचित प्रेम पा भी सकेंगीं.

महिलाएं अपने साथ हुए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खराब या कड़वे अनुभव की वजह से इमोशनल ब्लैकमेलिंग के लिए प्रेरित होती हैं. शुरू में यात्री की जो बात की गई है, उसके मामले में भी ऐसा ही हुआ है. यात्री की मम्मी उर्मिला के जीवप में भारी उथल-पुथल हुई थी. उनका जीवन अनेक समस्याओं और आरोह-अवरोह से भरा था. यात्री के पालन-पोषण में तमाम कमियां रह गईं थीं. जब वह बच्ची थी, तब घर में उसे सहज रूप से कुछ नहीं मिलता था. एकाध बार उसने जिद की, भावनात्मक ब्लैकमेलिंग की, तुरंत उसका काम हो गया. उसे पता चल गया कि अपने मन का कराने का यह शार्टकट है. यह उत्तम रास्ता है. बस, उसी के बाद उसकी आदत पड़ गई. सहजता और सरलता से जो मिलता, वह उसे अच्छा न लगता. वह ब्लैकमेल कर के लेती, तब उसे लगता, यह ठीक है.

मानव मन बहुत जटिल है. अगर इसे सही दिशा में ले जाया जाए तो निश्चित यह बढ़िया परिणाम देता है. अगर इसे गलत दिशा में विकसित किया जाए तो यह गलत बर्ताव करता है. इसकी शक्ति तो है ही, इस शक्ति का रचनात्मक उपयोग किया जाए तो सब बढ़िया होगा. धर्मेश ने एक मनोचिकित्सक से संपर्क किया. पूरी घटना को समझ कर मनोचिकित्सक ने रास्ता बताया.

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वह रास्ता धीरज और संयम का था. धर्मेश अपनी जगह दृढ़ था. वह किसी भी संयोग में अपने विशाल परिवार को हरा-भरा और खुशहाल देखना चाहता था. उसे अपने प्रेम पर विश्वास था. समय बीतता गया और समय के साथ यात्री के स्वभाव में परिवर्तन आता गया. कुछ समय में यात्री की इमोशनल ब्लैकमेलिंग करने की मंशा और आदत लगभग छूट गई. धर्मेश का मानना है कि दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिजका हल नहीं है. समस्या मात्र, हल के पात्र, अगर धीरज से, सच्ची निष्ठा से, प्रेम से समस्या हल की जाए तो परिणाम निश्चित और अच्छा आता है. धर्मेश ने इमोशनल शब्द से इमोशंस को पकड़ा. सच्चे प्यार में ताकत होती है. उसने उसी शक्ति का प्रयोग और विनियोग किया.

हर बार इसी तरह जीत मिल जाए ऐसा भी नहीं है. इमोशनल ब्लैकमेलिंग के मामले में अलग-अलग समाधान खोजना पड़ता है. कभी-कभी ब्लैकमेलिंग करने वाले के सामने सख्त होना पड़ता है. कभी-कभी सख्ती और प्रेम दोनों से काम लेना पड़ता है. जिंदगी अजब है, गजब है. प्रेम के बिना जिया नहीं जा सकता और वही प्रेम अलग-अलग स्वरूप में प्रकट होता है. जिंदगी के हर स्वरूप के आनंद को स्वीकार कर जीने में ही सच्ची मजा है.

पति के वर्कहोलिज्म को समझना है जरुरी

भावना शाह का विवाह एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत ऐग्जीक्यूटिव से हुआ था, जो 2 साल से अधिक नहीं चला. वजह थी पति का काम से अत्यधिक प्यार. अपने वर्कहोलिक पति से दुखी भावना 16 घंटे अकेले गुजारती थी, क्योंकि उस का पति आधी रात को घर आता था. उस की जिंदगी में न कोई उत्साह रहा था, न रोमांस के लिए समय बचा था. इस कारण उन की सैक्स लाइफ पूरी तरह से प्रभावित हो रही थी. भावना चाहती थी कि कुछ घंटे तो कम से कम पति के साथ बिताए और इसीलिए उस ने अपनी नौकरी भी छोड़ी थी ताकि दोनों की व्यस्तता उन के वैवाहिक जीवन में कड़वाहट न घोल दे.

हफ्ते के 5 दिन मुश्किल से दोनों में कुछ मिनट बात हो पाती और शनिवार, रविवार घर के किसी काम, मेहमानों की आवभगत में गुजर जाते. तब भावना ने तंग आ कर अपने पति से तलाक ले लिया. हालांकि तलाक लेना समस्या का समाधान नहीं है, पर पति की हर समय काम करने की आदत से अधिकांश पत्नियां परेशान रहती हैं. वर्कहोलिक पति वे होते हैं, जिन के लिए उन का काम सब से पहले होता है और उस के सामने पूरा परिवार या अन्य सामाजिक सरोकार गौण होता है. ऐसे पति की पत्नी उस के साथ के लिए तरसती रहती है और वह काम में डूबा रहता है वर्कहोलिक पति की पत्नी अकसर तनाव में रहती है या पति का साथ न मिल पाने की वजह से हर समय चिड़चिड़ी रहती है. बातबात पर लड़ाई करना उस की आदत बन जाता है, जिस से चिढ़ कर पति और देर तक घर से बाहर रहने लगता है.

‘‘मैं अपने पति की हर समय काम में डूबे रहने की आदत से इस कदर परेशान हो गई थी कि कभीकभी तो मुझे लगता था कि जैसे मैं शोकेस में रखी कोई चीज हूं, जिसे 5-10 मिनट के लिए मेरे पति नजर उठा कर देख लेते हैं. वे घर में होते तब भी मैं उन से बात न कर पाने के कारण बोरियत महसूस करती. कितनी ही छोटीछोटी बातें मैं उन से करना चाहती, पर उन के पास टाइम ही कहां था मेरी बातोें के लिए.लड़ाईझगड़ा करने का भी जब उन पर कोई असर नहीं हुआ तो मुझे एहसास हुआ कि वे भी टाइम इज मनी के इस दौर का शिकार हैं. मैं ने धीरेधीरे जब उन के वर्कहोलिज्म को समझना शुरू किया तो मुझे उन का काम करना अब उतना बुरा नहीं लगता, बल्कि अब मैं उन्हें काम में सहयोग देने की कोशिश भी करती हूं,’’ यह कहना है हाउसवाइफ शालू का.

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मैरिड टू वर्क

आज के समय में हम अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने में इतने व्यस्त हैं कि हमारी सारी भावनात्मक ऊर्जाएं काम की ओर लगी हैं. हम काम के प्रति इतने आसक्त हो जाते हैं कि अपने निजी संबंधों के बारे में सोचना तक भूल जाते हैं. काम इस तरह हावी हो जाता है कि यह भी याद नहीं रहता कि पत्नी भी साथ व समय चाहती है. मैरिड टू वर्क की वजह से कई युगलों का वैवाहिक जीवन खतरे में पड़ जाता है दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल के मनोविज्ञान विभाग की सीनियर कंसल्टैंट डा. स्वाति कश्यप का कहना है, ‘‘अगर आप का पति वर्कहोलिक है, तो उसे इस बात के लिए ताना देने या उस से लड़ने के बजाय उस के साथ बैठ कर बातचीत करें. फिर ऐसा समाधान ढूंढ़ें, जो आप दोनों के लिए उपयुक्त हो. जब बात करने बैठें तो आमनेसामने बैठने के बजाय साथसाथ बैठें और मैं या तुम के बजाय हम का प्रयोग करें. बात करते हुए अपने पति को उन की इस आदत के लिए दोष न दें, न ही अपने प्रश्नों से उन्हें आहत करने की कोशिश करें. आप कह सकती हैं कि उन का साथ आप को अच्छा लगता है और आप उन के साथ अधिक से अधिक समय गुजारना चाहती हैं.’’

स्थिति का पता लगाएं

सब से पहले पति के वर्कहोलिक होने के कारण को समझना जरूरी है. क्या यह व्यवहार स्थायी है या कुछ समय के लिए? हो सकता है पति को प्रोमोशन मिलने वाला हो और इस के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही हो या किसी प्रोजैक्ट की डैडलाइन हो या फिर उन के बौस का दबाव उन पर ज्यादा हो. बौस को खुश करने और उन की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए वे काम में डूबे रहते हों. यह देखें कि किसी एक महीने या त्योहारों के समय वे ज्यादा काम करते हैं क्या? अगर ऐसा है तो यह स्थिति अस्थायी हो सकती है. यह समझने का प्रयास करें कि वे क्या सचमुच काम को ले कर गंभीर हैं या झगड़ालू बीवी से तंग आ कर ज्यादा समय औफिस में बिताते हैं. जब पति को घर में सुकून नहीं मिलता है, तो वह जल्दी घर आने से कतराता है. अगर पत्नी उस के वर्कहोलिज्म का कारण है तो समाधान मिलने में ज्यादा देर नहीं लगेगी. अगर सचमुच पति को काम की लत है और वे आप को नजरअंदाज करने या आप से बचने के लिए काम में नहीं डूबे रहते तो यह स्वीकार कर लें कि आप अपने पति को नहीं बदल सकती हैं. आप स्वयं को बदल सकती हैं. आप के व्यवहार के बदले में आप के पति में परिवर्तन आ सकता है.

कैसे निबटें पति के Workaholism से

पति के काम की कद्र करें:

अगर आप के पति ही अकेले कमाने वाले हैं और उन पर पूरे परिवार का दायित्व है, तो यह समझना आवश्यक है कि उन का काम उन के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है. वे आप की और परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही दिनरात मेहनत करते हैं. अगर आप उन के काम में सहयोग दे सकती हैं तो दें, लेकिन उन्हें उलाहने देते हुए परेशान न करें. दिन में 1-2 बार फोन कर के उन का हालचाल पूछें ताकि उन्हें एहसास हो कि आप उन की चिंता करती हैं और उन के काम की कद्र भी. काम शेयर करें: अगर पति औफिस के काम में उलझे रहते हैं, तो घर के अन्य कामों को करने के लिए उन पर जोर न डालें. घर के अन्य दायित्व अपने ऊपर ले लें ताकि वे निश्चिंत हो कर काम कर सकें.

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पानी या बिजली का बिल आदि जमा करने या घर के लिए खरीदारी का काम अपने हाथ में ले कर उन के काम को शेयर करें. आप के इस सहयोग को वे समझेंगे और आप के लिए समय निकालने का प्रयास अवश्य करेेंगे. घरपरिवार या बच्चों की छोटीछोटी समस्याओं का समाधान खुद कर लें. पति को परेशान न करें. घर का माहौल सुखद बनाएं: अकसर पत्नी के तानों व हर समय बड़बड़ाने की आदत से परेशान हो कर पति काम को उस से दूर रहने का जरिया बना लेता है. अगर घर में शांति का माहौल नहीं होता तो उस का घर आने का मन नहीं करता. घर का वातावरण सुकून भरा हो और अपनेपन की खुशबू उस में बहती हो, ऐसा करना पत्नी का दायित्व होता है. अगर घर में उसे प्यार मिलेगा तो वह घर आने के लिए लालायित रहेगा. कोई हौबी अपनाएं : अगर पति के लिए इतना काम करना अनिवार्य है, तो अपने समय को काटने के लिए किसी हौबी को अपनाएं. किताबें पढ़ें, अपने दोस्तों का दायरा बढ़ाएं. कुछ ऐसा करें, जिस में आप को खुशी मिले. इस से आप पति को ताने देने से भी बच जाएंगी और कुछ रचनात्मक काम करने का भी मौका मिलेगा. फिर जितना भी समय आप साथ होंगे, वह दोष देने व शिकायतें करने में ही नहीं बीतेगा.

अपने तरीके से जीने दें बेटे की पत्नी को

भारत के विक्रांत सिंह चंदेल ने रूस की ओल्गा एफिमेनाकोवा से शादी की. शादी के बाद वे गोवा में रहने लगे. कारोबार में नुकसान होने के बाद ओल्गा पति के साथ उस के घर आगरा रहने आ गई. लेकिन विक्रांत की मां ने ओल्गा को घर में आने देने से साफ मना कर दिया. कारण एक तो यह शादी उस की मरजी के खिलाफ हुई थी, दूसरा सास को विदेशी बहू का रहनसहन पसंद नहीं था.

सुलह का कोई रास्ता न निकलता देख ओल्गा को अपने पति के साथ घर के बाहर भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा. ओल्गा का कहना था कि उस की सास दहेज न लाने और उस के विदेशी होने के कारण उसे सदा ताने देती रही है.

जब मामला तूल पकड़ने लगा तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को हस्तक्षेप करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री से विदेशी बहू की मदद करने के लिए कहना पड़ा. उस के बाद सास और ननद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए. तब जा कर सास ने बहू को घर में रहने की इजाजत दी और कहा कि अब वह उसे कभी तंग नहीं करेगी.

नहीं देती प्राइवेसी

सास-बहू के रिश्ते को ले कर न जाने कितने ही किस्से हमें देखने और सुनने को मिलते हैं. सास को बहू एक खतरे या प्रतिद्वंद्वी के रूप में ही ज्यादा देखती है. इस की सब से बड़ी वजह है सास का अपने बेटे को ले कर पजैसिव होना और बहू को अपनी मनमरजी से जीने न देना. सास का हस्तक्षेप ऐसा मुद्दा है जिस का सामना बेटाबहू दोनों ही नहीं कर पाते हैं. वे नहीं समझ पाते कि पजैसिव मां को अपनी प्राइवेसी में दखल देने से कैसे रोकें कि संबंधों में कटुता किसी ओर से भी न आए.

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अधिकांश बहुओं की यही शिकायत होती है कि सास प्राइवेसी और बहू को आजादी देने की बात को समझती ही नहीं हैं. उन्हें अगर इस बात को समझाना चाहो तो वे फौरन कह देती हैं कि तुम जबान चला रही हो या हमारी सास ने भी हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार किया था, पर हम ने उन्हें कभी पलट कर जवाब नहीं दिया.

आन्या की जब शादी हुई तो उसे इस बात की खुशी थी कि उस के पति की नौकरी दूसरे शहर में है और इसलिए उसे अपनी सास के साथ नहीं रहना पड़ेगा. वह नहीं चाहती थी कि नईनई शादी में किसी तरह का व्यवधान पड़े. वह बहुत सारे ऐसे किस्से सुन चुकी थी और देख भी चुकी थी जहां सास की वजह से बेटेबहू के रिश्तों में दरार आ गई थी.

शुरुआती दिनों में पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए वक्त चाहिए होता है और उस समय अगर सास की दखलंदाजी बनी रहे तो मतभेदों का सिलसिला न सिर्फ नवयुगल के बीच शुरू हो जाता है बल्कि सासबहू में भी तनातनी होने लगती है.

आन्या अपने तरीके से रोहन के साथ गृहस्थी बसाना, उसे सजानासंवारना चाहती थी. उस की सास बेशक दूसरे शहर में रहती थी पर वह हर 2 महीने बाद एक महीने के लिए उन के पास रहने चली आती थी क्योंकि उसे हमेशा यह डर लगा रहता था कि उस की नौकरीपेशा बहू उस के बेटे का खयाल रख भी पा रही होगी या नहीं.

आन्या व्यंग्य कसते हुए कहती है कि आखिर अपने नाजों से पाले बेटे की चिंता मां न करे तो कौन करेगा. लेकिन समस्या तो यह है मेरी सास को हददरजे तक हस्तक्षेप करने की आदत है, वे सुबह जल्दी जाग जातीं और किचन में घुसी रहतीं. कभी कोई काम तो कभी कोई काम करती ही रहतीं.

मुझे अपने और रोहन के लिए नाश्ता व लंच पैक करना होता था पर मैं कर ही नहीं पाती थी क्योंकि पूरे किचन में वे एक तरह से अपना नियंत्रण  रखती थीं. यही नहीं, वे लगातार मुझे निर्देश देती रहतीं कि मुझे क्या बनाना चाहिए, कैसे बनाना चाहिए और उन के बेटे को क्या पसंद है व क्या नापसंद है.

सुबहसुबह उन का लगातार टोकना मुझे इतना परेशान कर देता कि मेरा सारा दिन बरबाद हो जाता. यहां तक कि गुस्से में मैं रोहन से भी नाराज हो जाती और बात करना बंद कर देती. मुझे लगता कि रोहन अपनी मां को ऐसा करने से रोकते क्यों नहीं हैं?

सब से ज्यादा उलझन मुझे इस बात से होती थी कि जब भी मौका मिलता वे यह सवाल करने लगतीं कि हम उन्हें उन के पोते का मुंह कब दिखाएंगे? हमें जल्दी ही अपना परिवार शुरू कर लेना चाहिए. जो भी उन से मिलता, यही कहतीं, ‘मेरी बहू को समझाओ कि मुझे जल्दी से पोते का मुंह दिखा दे.’ रोहन को भी वे अकसर सलाह देती रहतीं. प्राइवेसी नाम की कोई चीज ही नहीं बची थी.

रोहन का कहना था कि  हर रोज आन्या को मेरी मां से कोई न कोई शिकायत रहती थी. तब मुझे लगता कि मां हमारे पास न आएं तो ज्यादा बेहतर होगा. मैं उस की परेशानी समझ रहा था पर मां को क्या कहता. वे तो तूफान ही खड़ा कर देतीं कि बेटा, शादी के बाद बदल गया और अब बहू की ही बात सुनता है.

मैं खुद उन दोनों के बीच पिस रहा था और हार कर मैं ने अपना ट्रांसफर बहुत दूर नए शहर में करा लिया ताकि मां जल्दीजल्दी न आ सकें. मुझे बुरा लगा था अपनी सोच पर, पर आन्या के साथ वक्त गुजारने और उसे एक आरामदायक जिंदगी देने के लिए ऐसा करना आवश्यक था.

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परिपक्व हैं आज की बहुएं

मनोवैज्ञानिक विजयालक्ष्मी राय मानती हैं कि ज्यादातर विवाह इसलिए बिखर जाते हैं क्योंकि पति अपनी मां को समझा नहीं पाता कि उस की बहू को नए घर में ऐडजस्ट होने के लिए समय चाहिए और वह उन के अनुसार नहीं बल्कि अपने तरीके से जीना चाहती है ताकि उसे लगे कि वह भी खुल कर नए परिवेश में सांस ले रही है, उस के निर्णय भी मान्य हैं तभी तो उस की बात को सुना व सराहा जाता है.

बहू के आते ही अगर सास उस पर अपने विचार थोपने लगे या रोकटोक करने लगे तो कभी भी वह अपनेपन की महक से सराबोर नहीं हो सकती.

बेटेबहू की जिंदगी की डोर अगर सास के हाथ में रहती है तो वे कभी भी खुश नहीं रह पाते हैं. सास को समझना चाहिए कि बहू एक परिपक्व इंसान है, शिक्षित है, नौकरी भी करती है और वह जानती है कि अपनी गृहस्थी कैसे संभालनी है. वह अगर उसे गाइड करे तो अलग बात है पर यह उम्मीद रखे कि बहू उस के हिसाब से जागेसोए या खाना बनाए या फिर हर उस नियम का पालन करे जो उस ने तय कर रखे हैं तो तकरार स्वाभाविक ही है.

आज की बहू कोई 14 साल की बच्ची नहीं होती, वह हर तरह से परिपक्व और बड़ी उम्र की होती है. कैरियर को ले कर सजग आज की लड़की जानती है कि उसे शादी के बाद अपने जीवन को कैसे चलाना है.

फैमिली ब्रेकर बहू

आर्थिक तौर पर संपन्न होने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए एक टारगेट सैट करने वाली बहू पर अगर सास हावी होना चाहेगी तो या तो उन के बीच दरार आ जाएगी या फिर पतिपत्नी के बीच भी स्वस्थ वैवाहिक संबंध नहीं बन पाएंगे.

एक टीवी धारावाहिक में यही दिखाया जा रहा है कि मां अपने बेटे को ले कर इतनी पजैसिव है कि वह उसे उस की पत्नी के साथ बांटना ही नहीं चाहती थी. बेटे का खयाल वह आज तक रखती आई है और बहू के आने के बाद भी रखना चाहती है, जिस की वजह से पतिपत्नी के बीच अकसर गलतफहमी पैदा हो जाती है.

फिर ऐसी स्थिति में जब बहू परिवार से अलग होने का फैसला लेती है तो उसे फैमिली यानी घर तोड़ने वाली ब्रेकर कहा जाता है. सास अकसर यह भूल जाती है कि बहू को भी खुश रहने का अधिकार है.

विडंबना तो यह है कि बेटा इन दोनों के बीच पिसता है. वह जिस का भी पक्ष लेता है, दोषी ही पाया जाता है. मां की न सुने तो वह कहती है कि जिस बेटे को इतने अरमानों से पाला, वह आज की नई लड़की की वजह से बदल गया है और पत्नी कहती है कि जब मुझ से शादी की है तो मुझे भी अधिकार मिलने चाहिए. मेरा भी तो तुम पर हक है. बेटे और पति पर हक की इस लड़ाई में बेटा ही परेशान रहता है और वह अपने मातापिता से अलग ही अपनी दुनिया बसा लेता है.

शादी किसी लड़की के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण व नया अध्याय होता है. पति के साथ वह आसानी से सामंजस्य स्थापित कर लेती है, पर सास को बहू में पहले ही दिन से कमियां नजर आने लगती हैं. उसे लगता है कि बेटे को किसी तरह की दिक्कत न हो, इस के लिए बहू को सुघड़ बनाना जरूरी है. और वह इस काम में लग जाती है बिना इस बात को समझे कि वह बेटे की गृहस्थी और उस की खुशियों में ही सेंध लगा रही हैं.

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इस का एक और पहलू यह है कि बेटे के मन में मां इतना जहर भर देती है कि  उसे यकीन हो जाता है कि उस की पत्नी ही सारी परेशानियों की वजह है और वह नहीं चाहती कि वह अपने परिवार वालों का खयाल रखे या उन के साथ रहे.

जरूरी है कि सास बेटे की पत्नी को खुल कर जीने का मौका दें और उसे खुद

ही निर्णय लेने दें कि वह कैसे अपनी जिंदगी संवारना व अपने पति के साथ जीना चाहती है. सास अगर हिदायतें व रोकटोक करने के बजाय बहू का मार्गदर्शन करती है तो यह रिश्ता तो मधुर होगा ही साथ ही, पतिपत्नी के संबंधों में भी मधुरता बनी रहेगी.

बच्चों की मस्ती पर न लगाएं ब्रैक

कोरोनाकाल में विशाल का बर्थडे फिर पास आ रहा था वह अब तक अपना बर्थडे बहुत ही जोशखरोश के साथ मनाता आया था. उस के दोस्त संदली, तनु, मयंक और रजत चारों उस से वीडियो कौल पर बात कर रहे थे.

संदली ने कहा, ‘‘यार तेरा पिछला बर्थडे भी ऐसे ही चला गया था. लौकडाउन में ही तेरा पिछला बर्थडे निकल गया. घर में रहरह कर पक गए हैं. तेरा बर्थडे मिस करने का तो मन ही नहीं करता.’’

विशाल ने कहा, ‘‘देखो, तुम लोग भी घर से नहीं निकल रहे हो. मैं भी घर पर ही रहता हूं. मेरी मम्मी कह रही हैं कि सब लोग एक दिन के लिए मेरे घर आ कर ही रहो. बढि़या सैलिब्रेशन करते हैं. मम्मी तुम सब को बहुत मिस करती हैं. प्रोग्राम बनाओ, सब आ जाओ.’’

तो तय हो ही गया कि विशाल का बर्थडे तो इस बार जरूर मनेगा. सारा दिन लैपटौप पर बैठे बच्चे इस प्रोग्राम को ऐंजौय करने का मोह नहीं छोड़ पाए.

 मस्ती मगर कैसे

मुंबई में अंधेरी में ही आसपास सब रहते थे. यह 25 से 30 साल के युवाओं का गु्रप था. लंबे समय से कोरोना में हुए लौकडाउन के कारण घर में बंद था. विशाल और उस की मम्मी सुधा बस घर में 2 ही लोग थे. विशाल के पिता थे नहीं, मम्मी वर्किंग थीं जो अब वर्क फ्रौम होम कर रही थीं.

घर में 2 ही लोग थे. टू बैडरूम फ्लैट था. बच्चों को मस्ती करने के लिए काफी जगह मिल जाती थी पर सब बच्चे विशाल की मम्मी सुधा आंटी के बारे में सोचते तो जाने का सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता पर आपस में मिल कर मजा भी आता था और अब तो घर में बंद हो कर ही बहुत समय बिता लिया था तो विशाल के बर्थडे के लिए सब ने अपने घर वालों को जाने देने के लिए मना ही लिया.

संदली अपनी मम्मी से हंसते हुए कह रही थी, ‘‘सब जा तो रहे हैं, औफिस से सब ने छुट्टी भी ले ली है. रात उस के घर रुकने तो जा रहे हैं पर देखते हैं. आंटी इस बार ऐंजौय करने देंगीं या नहीं क्योंकि उन्हें भी इतने दिन से कोई मिला नहीं होगा, काफी भरी होंगी.’’

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 दिल खोल कर स्वागत

सब बच्चे विशाल के घर पहुंचे तो सुधा ने दिल खोल कर उन का स्वागत किया. सब आपस में बहुत दिन बाद मिले थे. बहुत कुछ था जो कहनासुनना था. गेम्स खेलने का प्रोग्राम था. साथ बैठ कर कोई मूवी देखनी थी. फोन पर टच में रहना अलग था. सामने मिल कर बातें करने में अलग मजा आता है. सुधा ने हमेशा की तरह खानेपीने की बहुत अच्छी तैयारी की थी. काफी चीजें और्डर भी की गईं ताकि सुधा पर ज्यादा काम का बो झ न पड़े.

जब तक बच्चे डिनर कर के फ्री हो कर साथ बैठे, सुधा भी हमेशा की तरह उन के बीच आ बैठीं. इस समय रात के 10 बज रहे थे. सुधा ने सब को अब ध्यान से देखा. संदली काफी हैल्थ कौंशस थी. जंक फूड से बहुत दूर रहती. काफी स्लिमट्रिम थी. सुधा खुद काफी भारी शरीर की महिला थीं. संदली से बोलीं, ‘‘यह क्या हाल बना लिया है तुम ने अपना?’’

‘‘क्यों आंटी, क्या हुआ?’’

‘‘इतना स्लिम क्यों हो गई?’’

‘‘आंटी, मोटा हो कर क्या करना है,’’ संदली हंसी.

‘‘तुम्हारी मम्मी क्या तुम्हारी डाइट का ध्यान नहीं रखतीं?’’

‘‘अरे आंटी क्यों नहीं रखेंगी?’’

‘‘चलो, अपनी पूरी डाइट बताओ दिन  की मु झे.’’

‘‘आंटी, नाश्ते में कभी पोहा, कभी उपमा, कभी आमलेट तो कभी परांठा खाती हूं. लंच में दाल, सब्जी, रायता होता है तो कभी कुछ…’’

सुधा बीच में ही बोलीं, ‘‘फू्रट्स कहां हैं तुम्हारी डाइट में?’’

‘‘आंटी, फ्रूट्स 4-5 बजे खाती हूं, फिर 8 बजे डिनर.’’

‘‘इस डाइट में कमी लग रही है. स्वीट्स में क्या खाती हो?’’

‘‘आंटी, स्वीट्स का तो मु झे शौक नहीं है.’’

‘‘पर ऐनर्जी कैसे मिलेगी?’’

‘‘आंटी, मैं ठीक हूं, कोई परेशानी नहीं है मु झे,’’ अंदर ही अंदर इन बातों पर चिढ़ती संदली बाहर से मुसकराते हुए पानी पीने का बहाना कर के उठ गई.

उस के जाते ही सुधा तनु से बोलीं, ‘‘बेटा, आप के पेरैंट्स आप की शादी का क्या सोच  रहे हैं?’’

अब तनु के इंटरव्यू का नंबर था, ‘‘आंटी, मैं ने मम्मीपापा को कह दिया है कि अभी मु झे थोड़ा टाइम चाहिए.’’

‘‘तुम्हारे कहने से क्या होता है. उन्हें सोचना चाहिए. अब तुम 26 की हो गई न?’’

‘‘आंटी, उन्हें मेरी बात सम झ आ गई है. वे मु झ पर प्रैशर नहीं डाल रहे हैं.’’

‘‘अब उन्हें सोचना चाहिए. उन्होंने तुम्हारे लिए शादी की क्याक्या तैयारी की है.’’

‘‘अभी क्या करें? जब कोई बात ही नहीं  है अभी.’’

‘‘फिर भी सोना तो खरीद कर रखना ही चाहिए न.’’

फिर उन की नजर मयंक पर गई, ‘‘मयंक, तुम कितनी सेविंग करते हो?’’

मयंक ने बताया, ‘‘काफी, आंटी, कई इंश्योरैंस प्लान ले रखे हैं.’’

‘‘क्यों? इतने क्यों? अरे, खाओपीयो, ऐंजौय करो, किस के लिए बचाना है?’’

सब बच्चे इस बात पर उन का मुंह देखने लगे और वे सब को यही सम झाती रहीं कि लाइफ में बचत की जरूरत क्या है, ऐंजौय करना चाहिए.

बच्चों के साथ ऐंजौय

सब बच्चे अपने पेरैंट्स से मिले सु झाव  से बिलकुल उलट इस ज्ञान पर हैरान रह गए.  2 घंटे सिर्फ सुधा ही बोलती रहीं. बच्चे आपस  में बिलकुल बात नहीं कर पाए और रात के  12 बजे विशाल के बर्थडे केक काटने की तैयारी होने लगी. तब जा कर सुधा से बच्चों को थोड़ा ब्रेक मिला.

केक और स्नैक्स में एक घंटा और बीत गया. इस दौरान सुधा ने भी बच्चों के साथ बहुत ऐंजौय किया. फिर सुधा बच्चों के साथ ही बैठ गईं तो विशाल ने कहा, ‘‘मम्मी, अब आप सो जाओ न. हम लोग कोई मूवी देखेंगे.’’

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‘‘हां, देखो, मैं भी सब के साथ देखती हूं.’’

‘‘ऊफ, मम्मी, आप सो जाओ न. इतनी रात हो गई है.’’

‘‘बाद में सो जाऊंगी,’’ सुधा ने फिर  बच्चों के साथ ही मूवी देखी. फिर संदली,  तनु और प्रिया सुधा के ही रूम में सोईं. विशाल, मयंक और रजत एकसाथ सो गए. सोते समय  भी सुधा प्रिया से कह रही थीं, ‘‘तम्हारे पेरैंट्स  ने तुम्हारे लिए कोई लड़का देखना शुरू किया?’’

प्रिया ने ऐसी ऐक्टिंग की जैसे वह बहुत नींद में है और जल्दी से ‘न’ कह कर चादर मुंह तक ओढ़ ली.

सब सुबह सो कर उठीं तो देखा सुधा रूम में नहीं थीं. प्रिया ने कहा, ‘‘यार, आंटी का क्या करें? आपस में तो बात कर ही नहीं पाते. इंटरव्यू ही देते रह जाते हैं.’’

तनु ने कहा, ‘‘यार संदली, जब तेरे घर आते हैं, कितनी शांति रहती है, कितना स्पेस देती हैं तेरी मम्मी. थोड़ी देर हम सब से मिल कर उठ जाती हैं. यहां तो ऐसे लगता है जैसे आंटी की जेल में बंद हो गए.’’

संदली फुसफुसाई, ‘‘धीरे बोल, कहीं आंटी अभी फिर न आ जाएं. मेरा तो रात में मन कर रहा था कि कार निकालूं और घर चली जाऊं. हर बार यही होता है कि हम आपस में कभी समय बिता ही नहीं पाते. ठीक है, आंटी को हमारे साथ अच्छा लगता होगा पर हमें तो जरा भी ऐंजौय नहीं करने देतीं. कितनी पर्सनल बातों पर कमैंट करती हैं. जरा भी अच्छा नहीं लगता. मेरी डाइट तो उन का प्रिय टौपिक है. ऐसे कहती हैं जैसे मेरे पेरैंट्स मु झे खिलाते ही नहीं.’’

इतने में सुधा आ गईं, ‘‘अरे, उठ गए तुम लोग. चलो, फ्रैश हो जाओ. नाश्ता बनाया है. उन लोगों को भी उठाती हूं. फिर बैठ कर थोड़ी बातें करते हैं.’’

संदली, तनु और प्रिया ने एकदूसरे को देखा और बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी. सुधा ने बड़े प्यार से सब बच्चों को नाश्ता करवाया.

फिर संदली ने कहा, ‘‘आंटी, बहुत अच्छा लगा आ कर, अब हम घर चलते हैं.’’

‘‘अरे, चले जाना, इतने दिन बाद तो  आए हो.’’

कोई फायदा नहीं

सुधा ने फिर शुरू किया अपने परिवार के बारे में वही सब बताना जो बच्चे पिछले कई सालों से सुनते आ रहे थे. अब तो बच्चों को ये किस्से याद हो गए थे. उन के रिश्तेदारों के नाम तक याद हो चुके थे.

विशाल ने बीचबीच में कहा, ‘‘मम्मी, बस कर दो न. आप पिछली बार भी तो यही सब बता रही थीं.’’

पर कोई फायदा नहीं था. 2 घंटे सुधा ने अपने किस्से हमेशा की तरह सुनाए जिन में किसी की भी रुचि नहीं थी. विशाल अपने दोस्तों के चेहरे देख रहा था पर सब उस के इतने अच्छे पुराने दोस्त थे कि कोई भी ऐसा रिएक्शन न देते जिस से किसी भी तरह का सुधा के लिए अपमान दिखे. सुधा ने कहा, ‘‘अरे, बच्चो, तुम्हें पता है मैं ने तुम लोगों के साथ आज टाइम पास करने के लिए छुट्टी ली हुई है, शाम तक जाना.’’

बच्चे रुक सकते थे पर हमेशा की तरह वे उन की बातों से मानसिक रूप से इतने थक  गए थे कि जैसे उन की सारी ऐनर्जी खत्म हो गई है. सब घर जाने के लिए उठ ही गए.

संदली ही अपनी कार से प्रिया और तनु को उन के घर तक छोड़ रही थी. सब एक ही एरिया के थे.

प्रिया ने कहा, ‘‘यह ब्रेक लिया हम ने? थका देती हैं यार आंटी तो. मैं हर बार सोचती हूं कि नहीं जाऊंगी, पर विशाल की वजह से फिर आ जाती हूं. इस से तो अच्छा कि मैं छुट्टी ले कर आराम से घर पर सो लेती, अच्छा ब्रेक मिलता.’’

तनु ने कहा, ‘‘आंटी को शायद हम लोगों से बातें करना अच्छा लगता है. थोड़ी देर तो हमें भी अच्छा लगता है पर आंटी तो हम लोगों को आपस में भी कोई बात नहीं करने देतीं लगातार बोलती  हैं यार.’’

‘‘इन की अपनी फ्रैंड्स नहीं हैं क्या, यार?’’

संदली ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘बस अब तुम लोग अपनी बात कर लो. भई, अब भी आंटी की ही बातें करनी हैं क्या? घर आने वाला है. मु झे तो लगता है हम बस अब फिर फोन पर ही बातें कर पाएंगें अपनी.’’

सवालों की बौछार

शामली में रहने वाली मीता अपनी सहेली अनु के घर जब भी जाती, उस की तलाकशुदा बुआ जो अनु के घर ही रहती थीं, उन दोनों के पास आ कर बैठतीं और ऐसेऐसे सवाल पूछतीं कि मीता घबरा जाती, ‘‘बौयफ्रेंड है? बहन अपने ससुराल में खुश है? लड़कों से दोस्ती है तुम्हारी?’’

फिर अगर अनु मीता के लिए कुछ चाय, पानी लेने किचन में जाती तो उस के जाते ही बुआ मीता से पूछती, ‘‘इस अनु का कोई बौयफ्रैंड तो नहीं है? कालेज में लड़कों से ज्यादा बातें करती है क्या? तुम तो इस की सहेली हो, सब जानती होगी, जल्दी बताओ कुछ.’’

मीता बस यही मनाती कि अनु जल्दी से आ जाए और बूआ के सवाल बंद हों.

ओमैक्स रैजीडैंसी, लखनऊ में रहने वाली अरीशा की कालेज में आरती से बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी थी. वे बताती हैं, ‘‘मेरे डैड हमेशा उस समय मेरे आसपास घूमते, हमारी बातें सुनने की पूरी कोशिश करते जब भी आरती घर आती. मेरी बड़ी बहन अंजुम को तो हमेशा यही खोजबीन करनी होती कि आरती का कोई भाई तो नहीं है. जब पता चला, 2 भाई हैं, तो मैं जब भी आरती के घर जाने की बात करती, तो मेरी बहन कहतीं कि क्यों कर रखी है उस से दोस्ती.

‘‘कालेज में जितनी बात हो जाए हो जाए. एकदूसरे के घर बैठ कर तो बात करना ही मुश्किल था. हमारी बातें सुनने के लिए सब अपना काम छोड़ कर हमारे आसपास मंडराते कि पता नहीं क्या बातें कर लेंगे. जब घर में ही आराम से किसी दोस्त के साथ बैठ कर बातें न कर पाएं तो बड़ी कोफ्त होती है.’’

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एक अजीब स्थिति

मेरठ में रहने वाली रिद्धि का ऐक्सीडैंट हुआ. उस का पैर टूट गया था जिस वजह से बैड पर लेटेलेटे उस का कुछ वजन बढ़ गया था. सब बच्चे उसे देखने गए. उस की दादी भी वहीं आ कर बैठ गईं. एक एक बच्चे को ध्यान से देखती रहीं और फिर रिद्धि से कहने लगीं, ‘‘तू मोटी  हो जाएगी लेटेलेटे, देख इन में से कोई मोटा  नहीं है.’’

फिर ग्रुप में जो 2 लड़के भी उसे देखने गए थे, दादी ने उन से उन के घरपरिवार के बारे में इतने सवाल पूछे कि बच्चे जल्द ही शर्मिंदगी से भाग खड़े हुए. रिद्धि को अपनी दादी के सवाल बहुत नागवार गुजरे.

कई बार ऐसी गलतियां कर के बड़े बच्चों और उन के दोस्तों को एक अजीब स्थिति में डाल देते हैं जिन का उन्हें अंदाजा नहीं होता. कहीं आप भी तो यह गलती नहीं करतीं जब आप के बच्चों के दोस्त आप के घर आते हैं? युवा पीढ़ी से बात करते हुए बहुत सी बातों का ध्यान रखते हुए तालमेल बैठाना होता है.

आजकल इतने स्ट्रैस के माहौल में जब बच्चे दोस्तों के साथ इकट्ठे बैठ कर हंसनाबोलना चाहें तो उन्हें एक स्पेस दें. उन से मिलें, कुछ देर बातें भी करें पर अपना टाइम पास करने के चक्कर में उन के सिर पर न बैठे रहें. अपनी भपियाने की आदत पर कंट्रोल रखें. युवा बच्चों से उन की पर्सनल लाइफ पर सवाल करने की गलती न करें.

रिश्तों की अजीब उलझनें

सिचुएशन 1

आप किसी परिचित के यहां खाना खाने गए हैं लेकिन खाना या तो बेस्वाद है या फिर इतना स्पाइसी कि गले से नीचे उतारना मुश्किल है. कई बार आप जिन चीजों को हाथ तक नहीं लगाते, यदि वे आप के आगे परोस दी जाएं तो भी मुश्किल होती है, जैसे प्याज व लहसुन से बना भोजन या कद्दू, करेले जैसी सब्जियां.

ऐसे संभालें

किसी ने बड़े चाव से भोजन परोसा और आप नखरे दिखाएं कि आप को यह भोजन कतई पसंद नहीं, तो यह अशिष्टता होगी और मेजबान का अपमान भी होगा. मेजबान का दिल दुखाने के बजाय आप को कुछ बहाने बनाने होंगे, जैसे आज मेरा फास्ट है, तबीयत ठीक नहीं है इसलिए दिन में एक बार खाती हूं, पेट गड़बड़ है या अभीअभी घर से खा कर ही आए हैं. साथ ही, उन से कहें, ‘ऐसा कीजिए आप मुझे एक कप चाय पिला दीजिए.’ इस से उन का मान भी रह जाएगा और आप अरुचिकर भोजन खाने से भी बच जाएंगे.

सिचुएशन 2

आप की फ्रैंड की नईनई शादी हुई है. आप को पता चल गया है कि उस का पति अच्छा इंसान नहीं है. वह आवारा है, नशेड़ी है या फिर बदनाम इंसान है. ऊपर से सहेली पूछ रही है कि बता, मेरा पति कैसा लगा?

ऐसे संभालें

बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ना बुद्धिमानी की बात नहीं. जब शादी हो ही चुकी है तो सहेली को उस के पति के बारे में सबकुछ साफसाफ बता देना ठीक नहीं होगा. कई बार शादी के बाद इंसान बदल भी  जाता है.  हो सकता है जिसे आप आवारा या बदनाम समझ रही हों, वह शादी के बाद सुधर जाए. लेकिन सहेली से आप अपने मुंह से यह सब कहेंगी, तो उस का दांपत्य जीवन शुरू से ही खटाई में पड़ जाएगा और वह अपने पति के बारे में बुरी धारणा बना लेगी या तो दुखी होगी या फिर पति के साथ दुर्व्यवहार करेगी और उसे उसी नजरिए से देखने लगेगी. इस से बात बनने के बजाय बिगड़ जाएगी. बेहतर होगा कि सहेली के पूछने पर, ‘हां, अच्छे लग रहे हैं. इन्हें भरपूर प्यार देना और सुखी जीवन जीना.’ फिर मजाकमजाक में यह भी कह दें कि शुरू से ही ध्यान रखना, इन्हें कोई बुरी आदत न लग जाए.

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सिचुएशन 3

आप किसी के बारे में बुराभला कह रही हैं और पता चले कि वह तो आप के ठीक पीछे खड़ा है और सबकुछ सुन चुका है.

ऐसे संभालें

बात को छिपाने या बहाने बनाने से कोई फायदा नहीं. या तो आप को बेहद कुशल अभिनेता बनते हुए यह जताना होगा कि आप उस की उपस्थिति के बारे में जानती थीं और आप ने जानबूझ कर ऐसा सुनाने व छेड़ने के लिए कहा या फिर सीधेसीधे माफी मांग लेने में ही फायदा है. भले ही वह बुरी तरह नाराज हो जाए और उस वक्त आप को माफ न करे, लेकिन फिर भी गुस्से की आंच जरा धीमी तो पड़ ही जाती है.

सिचुएशन 4

आप की फ्रैंड अचानक आप के सामने अजीब तरह की ड्रैस पहन कर आती है और पूछती है कि कैसी लग रही हूं मैं. सच यह है कि वह बहुत बेढंगी और फनी लग रही है. न तो ड्रैस अच्छी है और न ही उस की बौडी पर पहनने लायक है.

ऐसे संभालें

फ्रैंड का मजाक उड़ाने की गलती न करें. इस से उस का मन दुखी होगा, शर्मिंदगी महसूस होगी और रिश्तों पर विपरीत असर पड़ेगा लेकिन, वह आप की फास्ट फ्रैंड है इसलिए उस से किसी गलतफहमी में रखना भी ठीक नहीं वरना दूसरे उस का मजाक बनाएंगे. उसे कुछ ऐसा कहें, ‘अरे वाह, कलर तो काफी अच्छा चूज किया, लेकिन यह स्टाइल मुझे जरा कम जंचा. आजकल ऐसी स्टाइल कम चल रही है. इस से अच्छा होता कि तुम मौजूद फैशन के मुताबिक ड्रैस खरीदतीं.  एक काम करो, इसे घर में या कौंप्लैक्स में ही पहनना. बाहर जाना हो, तो इस के बजाय अपनी अमुक ड्रैस पहनना. तेरी कदकाठी और फिगर पर वह ज्यादा मस्त लगती है. इस प्रकार आप इशारों ही इशारों में उसे ड्रैस की कमी बता देंगी.

सिचुएशन 5

पड़ोसिन का निकला हुआ पेट देख कर आप को लगा कि वह गर्भवती है और आप ने बिना आगापीछा सोचे पूछ डाला, ‘कब की डेट है?’ भौचक्की पड़ोसिन ने कहा, ‘काहे की डेट है? मैं प्रैग्नैंट थोड़ी हूं?’

ऐसे संभालें

बात को तुरंत ट्विस्ट देते हुए मजाकिया लहजे में अपनापन जताते हुए कुछ ऐसा कहें, ‘अरी बावली बहन, मैं ने तो तुझे जानबूझ कर ऐसा कहा. अपनी सेहत पर ध्यान दे. मोटा पेट हजार बीमारियों की जड़ है. सुबहशाम वाक, जौगिंग वगैरा किया कर वरना आज जो सवाल मैं ने मजाक में किया है वही सवाल लोग सचमुच तुझ से करने लगेंगे. मुझे ही देख, मैं ने खानपान कितना कंट्रोल किया, तब जा कर मोटापा काबू में आया है वरना टुनटुन हो जाती. मेरे हसबैंड तो सुबहशाम वाक पर जाते हैं और व्यायाम भी करते हैं.’

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सिचुएशन 6

आप के मित्र दंपती में अनबन हो गई. अनबन भी ऐसी कि तलाक तक बात पहुंच गई. दोनों ही आप के दोस्त हैं. दोनों आप से अलगअलग मिल कर एकदूसरे की बुराई करते हैं, आप से राय मांगते हैं और दूसरे पक्ष से संबंध तोड़ने के लिए कहते हुए संबंधों की दुहाई देते हैं.

ऐसे संभालें

इस स्थिति में आप दोनों को कभी खुश नहीं रख सकते. दोनों को खुश रखने की कोशिश करेंगी तो दोनों से ही संबंधों में खटास आ जाएगी. चूंकि स्थिति काफी बिगड़ चुकी है और तलाक तक की नौबत आ गई है, इसलिए दोनों में तालमेल बैठाने या उन के संबंधों को जोड़ने की कोशिश भी बेकार साबित होगी. बेहतर यह होगा कि आप किसी एक से हमदर्दी रखें, उसे भावनात्मक या आर्थिक सहारा दें, उस का संबल बन कर एक अच्छी दोस्त साबित हों. हां, इस के लिए उसे चुनें जो दिल से आप के ज्यादा करीब हो, कम दोषी हो और जिस के साथ आप के रिश्ते ज्यादा पुराने रहे हों.

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