मीरा और शाहिद के तरह आप भी ऐसे बनें Ideal Couple

एक्टर शाहिद कपूर और उनकी वाइफ मीरा राजपूत (Shahid Kapoor And Mira Rajput) की जोड़ी बॉलीवुड के पौपुलर कपल में से एक हैं. दोनों सोशलमीडिया पर अपनी फोटोज और वीडियो शेयर करते रहते हैं. एयरपोर्ट हो या कोई डिनर आउटिंग दोनों अक्सर रोमांटिक अंदाज में साथ नजर आते हैं. इस सेलेब कपल की बौंडिग देखकर फैंस दोनों के रिश्ते से रिलेशनशिप टिप्स भी ले सकते हैं.

पति के साथ करें दोस्ती…

 

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मीरा राजपूत और शाहिद कपूर की लव स्टोरी से हर कोई वाकिफ है. दोनों कई बार अपनी लव स्टोरी शेयर कर चुके हैं. दरअसल, एक इंटरव्यू में शाहिद कपूर ने बताया था कि वह शादी से पहले मीरा से केवल 3 या 4 बार मिले हैं. हालांकि दोनों की बौंडिग देखकर ऐसा लगता नहीं है, जिसका कारण है दोनों की दोस्ती. शाहिद और मीरा की दोस्ती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह भले ही कम वक्त साथ में बिताएं. लेकिन एक दूसरे को समझने की पूरी कोशिश करते हैं ताकि उनका रिश्ता और भी ज्यादा मजबूत हो सके.

 

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फैमिली के साथ बिताएं वक्त…

 

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पति पत्नी के रिश्ते में परिवार की अहम भूमिका होती है. अगर परिवार के साथ वक्त बिताया जाए और उन्हें समझा जाए तो शादी का रिश्ता निभाना आसान हो जाता है. मीरा राजपूत भी ऐसा ही करते हैं. वह अपनी ननद, देवर और सास-ससुर के साथ क्वालिटी टाइम स्पैंड करना कभी नहीं भूलती, जिसकी फोटोज और वीडियोज वो फैंस के साथ भी शेयर करती रहती हैं.

बच्चों के साथ करें दोस्ती…

 

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एक्टर शाहिद कपूर अक्सर शूटिंग में बिजी रहते हैं, जिसके कारण वह फैमिली के साथ वक्त नहीं बिता पाते. हालांकि उनकी वाइफ मीरा इस बात को समझती हैं, जिसके चलते वह बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताती हैं. बच्चों के साथ खेलना या मस्ती करना हो या उन्हें पढ़ाना, मीरा राजपूत इस बात का पूरा ख्याल रखती हैं कि वह बच्चों के साथ हमेशा रहें.

बता दें, शाहिद कपूर और मीरा राजपूत की साल 2015 में अरेंज्ड मैरिज हुई थी, जिसके बाद दोनों एक बेटा और एक बेटी के पेरेंट बनें. दोनों अक्सर अपनी फैमिली के साथ क्वालिटी टाइम बिताते नजर आते हैं.

शादी से डर कैसा

आप खूबसूरत हैं, शादी की उम्र भी है, संस्कारी भी हैं और अच्छा कमा भी रहे हैं यानी सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन हैं, तो आप के चर्चे आसपास होने लगते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आप सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन हैं, लेकिन शादी से कतराते हैं. सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन की शादी के बारे में उन से ज्यादा उन के दोस्त, परिवार वाले और पासपड़ोस के लोग बातें करते हैं. ऐसा सिर्फ छोटे या मैट्रो शहरों में ही नहीं होता, बल्कि देशविदेश सभी जगह यही हाल है.

मुंबई के मलाड में रहने वाली दीपा 30 साल की लड़की है. बेहद खूबसूरत है और अच्छा कमा भी रही है. अपने पैसे से देशविदेश हर जगह घूमती है. उस की बड़ी बहन और भाई की शादी 24-25 साल की उम्र में ही हो चुकी है, लेकिन दीपा अभी शादी नहीं करना चाहती. उस की मां जया शर्मा ने उस पर बहुत जोर डाला, लेकिन अंतत: हार मान ली. भाई की शादी और बच्चे होने पर छोटे घर में रहने की दिक्कत को देखते हुए दीपा ने अपनी मां को राजी कर लिया कि वह अलग घर ले कर अकेले रहेगी और शनिवारइतवार उन से मिलने आ जाया करेगी. लेकिन जब भी दीपा से उस की शादी की बात करो, वह शादी को जिंदगी का एक बहुत ही बड़ा निर्णय मानती है. यह निर्णय गलत न हो जाए, इसलिए फूंकफूंक कर कदम रखने के चक्कर में इस रास्ते पर आगे बढ़ ही नहीं पा रही. ऐसा नहीं है कि वह कभी शादी नहीं करना चाहती, लेकिन निर्णय नहीं ले पाती. अब तक उस की जिंदगी में 2 लड़के आ भी चुके हैं. एक रिश्तों के मामलों में बहुत गंभीर था. शादी भी जल्दी करना चाहता था तो दूसरे से दीपा की बनी नहीं, इसलिए दूरियां आ गईं.

ऐसा सिर्फ मुंबई में रहने वाली दीपा के साथ ही नहीं, कई लड़केलड़कियों के साथ होता है. वे शादी करना तो चाहते हैं, लेकिन शादी की उम्र और वक्त को पहचान नहीं पा रहे होते या कहें कि शादी के बाद के जिस डर से वे बच रहे होते हैं, दरअसल वह सब कुछ वे बिना शादी के भी झेल रहे होते हैं. इस संबंध में मुंबई के एस.एल. रहेजा (फोर्टिस एसोसिएट) के क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट डा. भूपेश शाह बताते हैं कि आजकल की लड़कियां बहुत नाजुक मिजाज हैं, क्योंकि वे स्वावलंबी हैं. वे अपनी जिंदगी में कोई भी समझौता नहीं करना चाहतीं, इसलिए ऐसा घर ढूंढ़ती हैं, जहां पति सुंदर हो, उस के मातापिता साथ न रहते हों, अकेला बेटा हो, अच्छे पद पर हो, तनख्वाह भी अच्छी हो और उन्हें समझ भी सके. लेकिन सारी खूबियां एक शख्स में मिलना आसान नहीं होता, इसलिए लड़कियों का इंतजार लंबा होता जाता है.

31 साल की तान्या मूलत: लखनऊ से है, दिल्ली की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती है और पिछले कई सालों से मातापिता के साथ दिल्ली में ही रह रही है, लेकिन शादी से डरती है. वह बताती है कि करीब 4-5 साल पहले उस के इर्दगिर्द दोस्तों की लाइन लगी रहती थी. जैसे ही आफिस में अपनी सीट से उठती, दोस्त आ जाते और फिर कहीं न कहीं खानेपीने जाने का प्रोग्राम बन जाता. इन में ज्यादातर लड़के थे और उसे शादी के लिए प्रपोज भी कर रहे थे. वे चाहते थे कि वह हां कर दे. लेकिन हर बार तान्या किसी न किसी बात को ले कर डर जाती. किसी लड़के के बातचीत के ढंग में अतिविश्वास झलकता था, तो किसी का परिवार रूढिवादी होता. कोई उस से जूनियर था, कमाता भी अच्छा नहीं था. राजीव नाम के एक लड़के से तो उस ने अपने मातापिता को भी मिलवाया था, लेकिन बाद में उसे राजीव बहुत ही भावुक और बेमतलब की बातें करने वाला बोरिंग लगने लगा. ऐसे ही समय निकल गया. आज उन सभी लड़कों की शादियां हो चुकी हैं, लेकिन अब भी तान्या का बहुत मन होता है, दोस्तों के साथ जाए, खाएपीए, घूमेफिरे. पहले की तरह उस का ग्रुप हो, लेकिन आज दोस्त अपनीअपनी जिंदगी में मसरूफ हैं. कभीकभी मिलने का कार्यक्रम बना कर रद्द तक कर देते हैं. तान्या की सुयोग्यतम भावी दुलहन वाली उम्र निकल गई. अब जब कभी दोस्तों के साथ कहीं घूमने जाती है तो वही पैसे खर्च करती है, जबकि यही दोस्त महज कुछ साल पहले तक उस पर खर्च करने के लिए एक पांव पर खड़े रहते थे.

सुयोग्यतम दूल्हा/दुलहन होने में मजा

जो कैरियर में अच्छा कर रहे हों, होशियार हों, खूबसूरत हों और अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते हों, तमाम लोग उन की तरक्की और उन की शादी के बारे में ही बातें करते हों, उन के यारदोस्त उन के जैसा बनने की कोशिश करते हैं, कुछ उन से जलते भी हैं. अगर ऐसे लड़केलड़की अपनी सारी खूबियों को खुद जानते हैं तो वे शादी करने से और भी ज्यादा डरने लगते हैं. उन्हें हमेशा इस बात का डर लगता है कि उन के बराबर का मैच नहीं मिला तो क्या होगा? डा. भूपेश शाह बताते हैं कि ऐसे लड़केलड़कियां बराबर का वर/वधू चाहने लगे हैं. वे अपने से थोड़ा ऊपर और नीचे के वर/वधू से सामंजस्य नहीं बैठाना चाहते.

यहां बात सिर्फ सेलिब्रिटी की नहीं है. आम जिंदगी में भी हमारे आसपास सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन होते ही हैं. जब लड़के या लड़की को यह एहसास होता है कि वह तो सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन है उस के व्यवहार या स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है. ऐसे युवा ऐसे वक्त का वे आनंद उठाने लगते हैं. उन के आसपास सब लोग उन के साथ खूब फ्लर्ट करते हैं. उन्हें खासी एहमियत मिलती है. ऐसे में उन के परिवार या दोस्तों की जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें सच से वाकिफ कराएं. आगे आने वाले वक्त के बारे में सोचने को कहें. डा. भूपेश शाह के मुताबिक, ऐसे संबंधों में रहते हुए भी मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से आप उतने ही तालमेल बैठा रहे होते हैं, जितना शादी के बाद बैठाना होता है.

शादी न करने के पीछे का डर

जब आप की जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा हो तो निम्न डर भी होते हैं, जो आप को शादी से रोकते हैं:

सामने वाला जो आप को प्रपोज कर रहा है, कहीं वह आप के पैसे और ओहदे के कारण तो आकर्षित नहीं है. हालांकि यह भय लड़कियों के मन में ज्यादा होता है. लेकिन लड़के भी चाहते हैं कि उन्हें पसंद किया जाए तो उन के स्वभाव या व्यक्तित्व को पसंद किया जाए न कि उन के ओहदे और कमाई को देख कर आप उन्हें पसंद करें. हालांकि वे आप को रिझाने के लिए अपने पैसे और ओहदे का इस्तेमाल कर रहे होते हैं.

अपने जैसी सोच वाले या अपने बराबर होशियार लड़कालड़की न मिलने का डर. यह भी लगता है कि कहीं गलती न हो जाए, सही व्यक्ति चुनने में, वह हमारे

सोचता है या नहीं, हमारी तरह होशियार है या नहीं. प्रोफैशन क्या है. कैरियर में आगे बढ़ने की इच्छा और काबिलीयत है या नहीं. यानी पहले की तरह अब हम सिर्फ एक घरेलू सीधीसादी लड़की या फिर एक बढि़या संस्कारी लड़का नहीं ढूंढ़ रहे होते, बल्कि एक पूरा पैकेज चाहिए और यह पैकेज जिस के पास है, वह खास हो जाता है.

कई बार मातापिता या किसी दोस्त की शादी में दूरियां देखी हों या असफल शादी देखी हो तो अपनी शादी के प्रति ज्यादा सतर्क हो जाते हैं. इसलिए इस शादी नाम के बंधन में बंधने से घबराहट होती है.

कुछ युवा खुद को किसी भी बंधन से आजाद रखना चाहते हैं. शादी कहीं उन के कैरियर में आगे बढ़ने के रास्ते न बंद कर दे. जिम्मेदारियों का बोझ उन की तरक्की में रुकावट होगा. शादी उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी या जवाबदेही लग रही होती है. डर होता है कि कहीं प्यार का रिश्ता, जबरदस्ती के रिश्ते में न बदल जाए.

जो जैसा चल रहा है बढि़या है. आप को पता ही नहीं है कि आप को शादी से किस तरह का डर है. बस, आप शादी करने के पीछे नहीं पड़ना चाहते, जब होनी होगी हो जाएगी. उस के लिए कोशिश करने का न तो वक्त न ही मन है.

शादी को ले कर आया लोगों की सोच में बदलाव

आज लड़का या लड़की ढूंढ़ने के मामले में सब से बड़ा आधार धर्म या जाति न हो कर प्रोफैशन और शिक्षा बन रही है. शादी डौटकौम के बिजनैस हैड गौरव रक्षित के मुताबिक, प्रोफैशन में भी कई श्रेणियां हैं. जैसे, अकसर कई गुजराती लोग बिजनैसमैन दामाद ही ढूंढ़ते हैं. उन्हें नौकरीपेशा लड़के पसंद नहीं आते. हालांकि जीवनसाथी चुनने के मामले में लोगों की पसंद में समयसमय पर बदलाव भी आते रहते हैं. जैसे आर्थिक मंदी के दौर के पहले तक भारत में सब से ज्यादा सौफ्टवेयर इंजीनियर्स की डिमांड थी, लेकिन मंदी के समय में जब विदेशों में कमा रहे बहुत से सौफ्टवेयर इंजीनियर भारत लौटे, तब से शादी के मामलों में उन की मांग घटी है. लड़कियों के मातापिता दूसरे व्यवसाय के लड़के ढूंढ़ने लगे. समय के साथ यह भी बदलाव आया है कि आज ज्यादातर लोग नौकरीपेशा बहू या बीवी ही ढूंढ़ रहे हैं.

गौरव कहते हैं कि यों तो शादी के लिए रजिस्टर करने वाले अधिकतर लोगों की उम्र 18 से 40 के बीच होती है, लेकिन सब से ज्यादा 24 से 30 साल के लोग इस में आते हैं और ज्यादातर लोग 30 से कम उम्र की लड़कियां ही ढूंढ़ते हैं. देर से शादी करने के बारे में डा. भूपेश शाह कहते हैं कि अधिक उम्र में शादी करने पर सब से ज्यादा मुश्किल लड़कियों को ही होती है, क्योंकि आज के जमाने में सचिन तेंदुलकर की तरह अधिक उम्र की लड़की से शादी करने के मामले अपवाद ही हैं.

वो गुजर रहे हैं उन्हीं परिस्थितियों से, जिन से शादी के बाद गुजरते

जिस तरह के जीवनसाथी की आप ने कल्पना की है, वैसा आप के इर्दगिर्द नहीं या फिर जो आप को पसंद आता है, उसे आप पसंद नहीं और जिन्हें आप पसंद हों, वे आप को पसंद नहीं. इसी कशमकश में जिंदगी के साल गुजर रहे हैं. लेकिन आप अड़े बैठे हैं कि जैसा जीवनसाथी आप चाहते हैं, उसी से शादी करेंगे नहीं तो शादी ही नहीं करेंगे. लेकिन इस दौरान अगर आप का बौयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड है तो क्या आप वैसे ही पूरी जिम्मेदारी उठा रहे हैं जैसे शादी के बाद उठाते? रीना उदय से शादी नहीं करना चाहती. अभी नहीं या कभी नहीं, यह तो वह भी नहीं जानती, लेकिन दोनों पिछले 3 सालों से गर्लफ्रैंड, बौयफ्रैंड हैं. दोनों ने अलगअलग घर लिया लेकिन दोनों का ज्यादातर समय एकदूसरे के घर पर ही बीतता है. उदय और रोज शाम रीना को आफिस से घर छोड़ता है. दोनों ज्यादातर बाजार में खाते हैं या फिर रीना पका कर खिलाती है.

रीना की मां की तबीयत बिगड़ी तो उदय उस के साथ मेरठ गया और सारा खर्च उस ने उठाया. यानी जितनी जिम्मेदारी एक पति की उठाई जाती उतनी रीना उठा रही है और जितने नाजनखरे बीवियों के सहने पड़ते हैं वे सब उदय सह रहा है. बीच में करीब 8 महीने तक दोनों में बातचीत बंद थी. उस दौरान रीना के जीवन में एक लड़का भी आया, लेकिन उस के साथ भी बात आगे बनी नहीं. 8 महीने बाद रीना और उदय में फिर से सुलह हो गई. अब 2 साल से दोनों साथ हैं, लेकिन शादी के लिए रीना अभी भी तैयार नहीं. जीवन में जितने भी समझौते करने हैं वे तो आप कर ही रहे हैं तो फिर शादी से डर कैसा? यह तालमेल आप अपनी शर्तों पर भी कर सकते हैं, जैसे कि बौलीवुड एक्टर इमरान खान और उन की पत्नी अवंतिका ने किया. हाल ही में दोनों ने अपनी शादी पर थाईलैंड में अपनी लिखी शर्तें या कहें वादे पढे़. ऐसा कुछ आप भी सोच सकते हैं.

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स्पाइनल इंजरी और मैरिड लाइफ

स्पाइनल इंजरी किसी के भी जीवन की त्रासदपूर्ण घटना हो सकती है. इस से व्यक्ति एक तरह से लकवाग्रस्त हो सकता है. इंजरी जब गरदन में हो तो इस से टेट्राप्लेजिया हो सकता है. यदि इंजरी गरदन के नीचे हो तो इस से पाराप्लेजिया यानी दोनों टांगों और इंजरी से निचले धड़ में लकवा हो सकता है. केंद्रीय स्नायुतंत्र का हिस्सा होने के कारण स्पाइनल कौर्ड की सेहत पर ही पूरे शरीर की सेहत निर्भर करती है. इंजरी से यौन सक्रियता भी प्रभावित हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी ऊंचाई से गिरने, सड़क दुर्घटना, हिंसक या खेल की घटनाओं के कारण हो सकती है. स्पाइनल कौर्ड इंजरी के नौनट्रोमेटिक कारणों में स्पाइन और ट्यूमर के टीबी जैसे संक्रमण शामिल हैं.

यौन सक्रियता जरूरी

स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति को यथासंभव आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश होनी चाहिए. भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में यौन स्वास्थ्य पर चर्चा करना हमेशा वर्जित विषय माना जाता रहा है, इसलिए इस विषय पर बात करने से लोग कतराते हैं और मरीज खामोशी से इसे सहता रहता है. शिक्षा, ज्ञान और जागरूकता के अभाव में लोग ऐसे मरीजों के बारे में यह समझने लगते हैं कि वे यौनेच्छा एवं यौन उत्कंठा से पीडि़त हैं. लेकिन सच यह है कि सामान्य व्यक्ति की तरह ही स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्ति के लिए भी यौन सक्रियता उतनी ही जरूरी है.

पार्टनर का अभाव

दरअसल, स्पाइन इंजरी इच्छाशक्ति का स्तर तो प्रभावित नहीं करती, लेकिन किसी व्यक्ति की यौन गतिविधि प्रभावित जरूर हो जाती हैं. कई बार ऐसा पार्टनर के अभाव में भी होता है. अन्य मामलों में यह मांसपेशियों पर नियंत्रण रखने वाले व्यायाम की कमजोर क्षमता के कारण भी हो सकता है. यौन अनिच्छा लिंग के आधार पर भी अलगअलग हो सकती है. पुरुष जहां उत्तेजना के अभाव के कारण प्रभावित होते हैं, वहीं महिलाएं आमतौर पर शिथिल पार्टनर होने के कारण इस से कम प्रभावित होती हैं खासकर भारतीय समाज में. लेकिन स्पाइनल इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन अनिच्छा को सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम और निरंतर अभ्यास से बहुत हद तक दूर किया जा सकता है.

समस्या की अनदेखी

ऐसे मरीजों में आत्मविश्वास जगाना और यौन स्वास्थ्य के बारे में उन से खुल कर बात करना बहुत जरूरी होता है. इस में तंबाकू पूरी तरह से निषेध होना चाहिए. शारीरिक गतिविधियों के अभाव और दर्द के अलावा एससीआई मरीज आकर्षण, संबंधों और प्रजनन की क्षमता जैसे अन्य कारकों को ले कर भी चिंतित रहते हैं. समय के साथ जहां मरीज अपने नवजात शिशु के साथ जीना सीख जाते हैं और परिवर्तित जिंदगी अपना लेते हैं, वहीं वे अपने यौन स्वास्थ्य को ले कर अकसर अनजान रहते हैं. मरीज के शरीर की कुछ खोई गतिविधियां बहाल करने के लिए व्यापक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के दौरान भी यौन समस्या की अनदेखी ही की जाती है.

खुद पहल नहीं करतीं

एससीआई के मामले में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए अकसर सैक्सुअल पार्टनर बनना ज्यादा आसान होता है जो न सिर्फ शारीरिक रचना के कारण, बल्कि सक्रियता के स्तर पर भी संभव होता है. भारत जैसे रूढिवादी समाज में महिलाओं से यौनइच्छा की उम्मीद करना मुश्किल है. भारत की 80% महिलाएं ऐसी पैसिव सैक्सुअल पार्टनर होती हैं जो खुद पहल नहीं करतीं. इसलिए पुरुषों की तुलना में उन के लिए यौन स्वास्थ्य वापस पाना ज्यादा आसान होता है और उन का मुख्य लक्ष्य यौन सक्रियता वापस पाना तथा संभोग करने की क्षमता हासिल करना होता है.

समस्या का समाधान

पुरुषों के मामले में समस्याएं उत्तेजना में कमी और स्खलन से ही जुड़ी होती हैं. उन की उत्तेजना क्षमता और स्खलन में बदलाव आने के अलावा कामोत्तेजना की यौन संतुष्टि भी एक ऐसा क्षेत्र है जो एससीआई पीडि़त पुरुषों के लिए चिंता का कारण होता है. एक अन्य चिंता स्पर्म की क्वालिटी पर होने वाले प्रभाव और स्पर्म काउंट को ले कर होती है. ज्यादातर स्पाइनल इंजरी के मामले में वियाग्रा जैसी दवा से उत्तेजना की समस्या दूर की जा सकती है. कुछ मामलों में वैक्यूम ट्यूमेसेंस कंस्ट्रक्शन थेरैपी (वीटीसीटी) या पैनाइल प्रोस्थेसिस जैसे उपकरण की भी जरूरत पड़ सकती है.

गलत धारणा की वजह

सैक्सुअल काउंसलिंग और मैनेजमैंट विकासशील देशों में एससीआई के सब से उपेक्षित पहलुओं में से एक है. लेखकों के एक अध्ययन से पाया गया है कि एससीआई से पीडि़त 60% मरीजों और उन के 57% पार्टनरों ने पर्याप्त रूप से सैक्सुअल काउंसलिंग नहीं ली. जिन फैक्टर्स पर बहुत कम जोर दिया जाता है, उन में से एक है जागरूकता और सांस्कृतिक बदलाव. पति और पत्नी के बीच यौन संबंध का मकसद सिर्फ बच्चे पैदा करना ही माना जाता है. सैक्स के बारे में बातचीत को खराब माना जाता है. यौन समस्याएं न सिर्फ आम हो गई हैं, बल्कि सैक्स की अनदेखी, सैक्स के बारे में गलत धारणाओं और नकारात्मक सोच भी इस के मुख्य कारण माने जाते हैं. पारंपरिक वर्जना भी इस में अहम भूमिका निभाती है. सैक्सुअलिटी को प्रभावित करने वाले अन्य सामाजिक, पारंपरिक फैक्टर्स में यौन संबंधी सोच, मातापिता के प्रति सम्मान तथा अन्य ऐसे कारण शामिल हैं, जिन में सैक्स को खराब माना जाता है और पुरुषों तथा महिलाओं के लिए बरताव के दोहरे मानदंड अपनाए जाते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्थिति बदतर होती है.

आत्मविश्वास में कमी

एक अध्ययन के अनुसार, विकसित देशों की तुलना में भारत जैसे देश में स्पाइनल कौर्ड इंजरी से पीडि़त व्यक्तियों की यौन गतिविधि की बारंबारता कम रहती है. ज्यादातर मरीज इंजरी से पहले की तुलना में मौजूदा स्तर पर अपने सैक्स जीवन को कमतर आंकते हैं. यह शायद एससीआई की समस्याओं, इंजरी के बाद पार्टनर की असंतुष्टि, यौनक्रिया के दौरान पार्टनर से कम सहयोग, आत्मविश्वास में कमी तथा अपर्यात सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के कारण भी हो सकता है. पश्चिमी देशों के मामलों की तरह बहुत कम पार्टनर संतुष्ट होते हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाएं यौन संतुष्टि के अभाव की शिकायतें ज्यादा करती हैं. इस के पीछे प्रचलित सांस्कृतिक मान्यता है कि किसी बीमार महिला के साथ यौन संबंध बनाना नैतिकता के विरुद्ध है और इस से पुरुष पार्टनर में भी रोग संचारित हो सकता है. भारतीय समाज में महिलाओं की कमतर स्थिति, पार्टनर की भिन्न सोच, पाचनतंत्र आदि की गड़बड़ी और निजता का अभाव भी इस के कुछ अन्य संभावित कारण हो सकते हैं.

यौनजीवन का अंत नहीं

निष्कर्षतया स्पाइनल इंजरी को यौनजीवन का अंत नहीं मान लेना चाहिए. इस से इंजरी पीडि़त व्यक्ति को अपने नए शरीर में यौन सुख स्वीकार करने में मदद की जरूरत पड़ती है और कई बार उस के लिए अलग तरीके से सोचने की जरूरत होती है. परिवर्तित संवेदनशीलता, शारीरिक प्रतिबंध की स्वीकृति या उन्नत मसल कंट्रोल जैसे फैक्टर्स को समझने से स्पाइनल इंजरी मरीज को स्वस्थ यौनजीवन बहाल करने में मदद मिल सकती है. उस के सैक्सुअल रिहैबिलिटेशन के लिए मैडिकल प्रोफैशनल्स की मदद की जरूरत होती है. इस संबंध में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है खासकर भारतीय समाज तथा प्रोफैशनल्स के बीच.      –

(डा. एच.एस. छाबड़ा, इंडियन स्पाइनल इंजरीज सैंटर में स्पाइन सर्वि के प्रमुख और मैडिकल डायरैक्टर)

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जब घर आएं माता पिता

मैं अपनी पड़ोसिन कविता को कुछ दिनों से बहुत व्यस्त देख रही थी. वह बाजार के भी खूब चक्कर लगा रही थी. हर दिन शाम की वाक हम साथ करती थीं पर अपनी व्यस्तता के कारण वह आजकल नहीं आ रही थी, तो पार्क में खेलती उस की बेटी काव्या को बुला कर मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘काव्या, बहुत दिनों से तुम्हारी मम्मी नहीं दिख रही हैं. सब ठीक तो है?’’

‘‘आंटी, दादादादी आने वाले हैं मेरे घर. मम्मी उन की आने की तैयारी में ही लगी हैं,’’ काव्या ने बताया.

पता नहीं क्यों ‘मेरे घर’ शब्द सुन देर तक हथौड़े से बजते रहे मेरे मन में. फिर दूसरे ही दिन कविता के पति कामेश को देखा. शायद वह अपने मातापिता को स्टेशन से ले कर आ रहा था. उस के बाद करीब 10 दिनों तक कविता बिलकुल नहीं दिखी. दफ्तर से भी उस ने छुट्टी ले रखी थी. शाम की वाक बंद थी ही उस की.

एक दिन मैं उस के सासससुर और उस से मिलने उस के घर जा पहुंची. सासससुर ड्राइंगरूम में बैठे थे. कविता अस्तव्यस्त सी रसोई और अन्य कमरों के बीच दौड़ लगा रही थी. मैं उस के सासससुर से बातें करने लगी.

भेदभाव क्यों

‘‘हमारे आने से कविता का काम बढ़ जाता है. मुझे बुरा लगता है,’’ उस के ससुर ने कहा.

‘‘सच, मुझेभी कोई काम करने नहीं देती, बिलकुल मेहमान बना कर रख दिया है,’’ उस की सासूमां ने कहा.

उन लोगों की बातचीत से लगा कि वे जल्दी चले जाएंगे ताकि कविता अपने दफ्तर जा सके. मैं लौटने लगी तो कविता मुझे गेट तक छोड़ने आई. तब मैं ने पूछा, ‘‘क्यों मेहमानों जैसा ट्रीट कर रही उन के साथ, जबकि वे दोनों अभी इतने भी बूढ़े या लाचार नहीं हैं?’’

‘‘नहीं बाबा, मुझे अपने सासससुर से कुछ भी नहीं कराना है. मेरी बहन ने अपनी सास को जब वे उस के साथ रहने आई थीं, कुछ करने को कह दिया था तो बात का बतंगड़ बन गया था. फिर मेरे पति की भी यही इच्छा रहती है कि मैं उन्हें हाथोंहाथ रखूं पर यह अलग बात है कि मैं अब इंतजार करने लगी हूं इन के लौटने का,’’ कविता ने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा.

मैं मजबूर हो गई कि क्यों बोझ बना दिया है कविता ने सासससुर की विजिट को. वे लोग अपने बेटे और बहू के साथ रहने आए हैं अपना घर समझते हुए, परंतु उन के साथ मेहमानों जैसा सुलूक किया जा रहा है. मुझे याद आया उस की बेटी काव्या का वह कथन ‘मेरे घर’ दादादादी आ रहे हैं, जबकि वास्तव में घर तो उन का ही है यानी सब का है.

एक अलग संरचना

वहीं तसवीर का एक और पहलू भी होता है, जब बहू सासससुर के आगमन को अपनी कलह और कटुता से रिश्तों में कड़वाहट भर लेती है. मेरी मौसी को जोड़ों में दर्द रहता था. रोजमर्रा के काम करने में भी उन्हें दिक्कत आने लगी तो वे मौसाजी के साथ अपने बेटे के पास चली गईं. मगर महीना पूरा होतेहोते वे वापस अपने घर का ताला खोलते दिख गईं. वहां बेटे के तीसरी मंजिल के घर की सीढि़यां चढ़नाउतरना और कष्टकर था. फिर वे उतना घरेलू कार्य करने में भी अक्षम थीं जितनी कि उन से वहां उम्मीद की जा रही थी.

विकसित देशों में वृद्धों के लिए सरकार की तरफ से बहुत कुछ होता है ताकि वे अपने बच्चों के बगैर भी अच्छी जिंदगी जी सकें, पर विदेशों से उलट हमारे देश में मातापिता बच्चों की काफी बड़ी उम्र तक देखभाल करते हैं. मध्यवर्गीय पेरैंट्स के जीवन का मकसद ही होता है बच्चों को सैटल करना. वही बच्चे जब सैटल हो जाते हैं, उन का अपना घरसंसार बस जाता है तो मातापिता को बाहर वाला समझने लगते हैं.  बेटाबहू हो या बेटीदामाद क्या वे सहजता से मातापिता के आगमन को स्वीकार नहीं कर सकते? हो सकता है रहने का ढंग कुछ अलग हो पर क्या उन्हें अपनी दिनचर्या के हिसाब से इज्जत के साथ नहीं रखा जा सकता है? ये वही होते हैं, जो बिना बोले आप की जरूरतों को समझ लिया करते थे.

हमारे यहां सामाजिक ढांचा ही कुछ ऐसा होता है कि सब आपस में जुड़े ही रहते हैं. संयुक्त परिवारों की एक अलग संरचना होती है. यहां हम वैसे मातापिता का जिक्र कर रहे हैं, जो साल 6 महीनों में अपने बच्चों से मिलने जाते हैं. कुछ दिन या महीने 2 महीने के लिए. ऐसे में बच्चे इन बातों का ध्यान रख लें तो आपस में मिलनाजुलना, साथ रहना सुखद हो जाएगा:

– मिलतेजुलते रहना चाहिए वरना एकदूसरे के बिना जीने की आदत हो जाएगी. हमेशा मिलते रहने से दोनों ही एकदूसरे की आदतों से परिचित रहेंगे.

खुद भी सोचिए

– यह बात सही है कि वे अपने स्थान पर खुश हैं, फिर भी बच्चों का यह फर्ज बनता है कि वे मातापिता को जल्दीजल्दी बुलाएं, कम से कम जब तक वे स्वस्थ हैं. 3-4 साल में 1 बार बुलाने की जगह 3-4 महीनों में बुलाते रहें, भले ही कम दिनों के लिए ही सही, क्योंकि निरंतर मेलजोल से प्यार बना रहता है. फिर 5-6 दिनों के आगमन हेतु उन्हें कोई विशेष तैयारी भी नहीं करनी पड़ेगी.

– वे ‘आप के घर’ नहीं वरन ‘अपने घर’ आते हैं. इस सोच का आभास उन्हें भी कराएं और अपने बच्चों को भी. घर के छोटे या बड़े होने से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना दिलों के संकुचन से पड़ता है. अकसर सुना जाता है पोतेपोती/नातीनातिन कहेंगे दादाजी मेरे कमरे में सोते हैं. कितनी बार देर रात तक बत्ती जलाए रखने पर दादी द्वारा टोकने पर पोती कह देगी उफ, तुम कब जाओगी दादी? सोचिए कि आप के मातापिता के दिल पर क्या गुजरेगी जब आप के बच्चे ऐसा बोलेंगे. यह आप ही की गलती है, जो आप ने अपने बच्चों के मन में ऐसे विचार डाले हैं कि दादादादी/नानानानी बाहर वाले हैं और घर सिर्फ आप और आप के बच्चों का है. सोच कर देखिए कल को इसी तरह आप भी अपने बच्चों के जीवन में हाशिए पर होंगे.

खयाल रखें

यदि आप सुनते हैं कि बच्चों ने ऐसा कहा है तो तुरंत मातापिता के समक्ष ही उन्हें सही बात समझाएं कि आप अपने मातापिता के घर में नहीं दादादादी के घर में रह रहे हैं.

उन के आने पर अपने रूटीन को न बदलें, बल्कि उन्हें भी अपने रूटीन के हिसाब से सैट कर लें अन्यथा उन का आना और रहना जल्दी बोझ महसूस होने लगेगा.

आप जो खाते हैं जैसा खाते हैं वही उन्हें भी खिलाएं. हां, यदि स्वास्थ्य की समस्या हो तो आप को उसी हिसाब से कुछ बदलाव करना चाहिए. नई पीढ़ी का खानपान अपनी पुरानी पीढ़ी से बिलकुल बदल चुका है. रोटीसब्जी, दालचावल खाने वाले मातापिता कभीकभी ही बर्गरपिज्जा खा सकेंगे. अत: उन के स्वाद और स्वास्थ्य के अनुसार भोजन का प्रबंध अवश्य करें. यह आप का फर्ज भी है. तय करें कि बढ़ती उम्र के साथ उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्व मिल रहे हों.

यदि वे स्वेच्छा से कुछ करना चाहें तो अवश्य करने दें. जितनी उन की सेहत आज्ञा दे उन्हें गृहस्थी में शामिल करें. इस से उन का मन भी लगेगा, व्यस्त भी महसूस करेंगे और भागीदारी की खुशी भी महसूस करेंगे.

समझदारी से काम लें

न अति चुप भली न ही अति बोलना. जब मातापिता साथ हों तो उन के लिए कुछ समय अवश्य रखें, क्योंकि वे उसी के लिए आप के पास आए हैं. साथ टहलने जाएं या छुट्टी वाले दिन साथ कहीं घूमने जाएं. कुछ अपनी रोजमर्रा की बातें शेयर करें तो कुछ उन की सुनें.

उन की बदलती आदतों को गौर से देखें. कहीं किसी बीमारी के लक्षण तो नहीं. जरूरत हो तो डाक्टर को दिखाएं. याद करें कि कैसे मां आप के चेहरे को देख आप की तकलीफों को भांप लेती थी.

यदि मिलना जल्दीजल्दी होता रहेगा तो आप समय पूर्व ही उन की बीमारियों को भांप लेंगे और इस से पहले कि उन की तकलीफें ज्यादा बढ़ें आप वक्त पर उन का इलाज करा सकेंगे.

अपने बच्चों को उन के नानानानी/दादादादी से जुड़ने दें. यह बहुत जरूरी है कि बच्चे बूढ़े होते ग्रैंड पेरैंट्स को जानें. वे उन के प्रति संवेदनशील बनें. यह बात उन्हें एक बेहतर इनसान बनने में मदद करेगी. कल आप के बुढ़ापे को भी आप के बच्चे सहजता से ग्रहण कर लेंगे.

जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरैंट्स से जुड़े रहते हैं वे अधिक समझदार व परिपक्व होते हैं. उन बच्चों की तुलना में जो इन से महरूम होते हैं. अकसर एकल परिवारों के बच्चे बेहद स्वार्र्थी और आत्मलीन प्रवृत्ति के हो जाते हैं.

कुछ बातों को नजरअंदाज करें. जब 2 बरतन साथ होंगे तो उन का टकराव स्वाभाविक है. छोटी बातों को छोटी समझ दफन कर देना ही समझदारी है.

सुमेधा के पति उस के पापा को बिलकुल पसंद नहीं करते थे, परंतु इस के बावजूद सुमेधा ने पापा को बुलाना नहीं छोड़ा. न चाहते हुए भी मिलतेजुलते रहने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे को समझने लगे. सुमेधा को एक बार 3 महीनों के लिए विदेश जाना पड़ा. उस के पीछे उस के पति की टांग में फ्रैक्चर हो गया. तब उस के ससुर ने  ही आ कर उसे संभाला.

दूरियां मिटाएं

सासबहू के रिश्ते को सब से ज्यादा बदनाम किया जाता है जबकि सचाई यह है कि ये दोनों एक ही व्यक्ति को प्यार करती हैं और इस तरह यह वर्चस्व की लड़ाई बन जाती है. बेटे की समझदारी और सूझबूझ से आए दिन की टकराहट को टाला जा सकता है. पर इस के चलते मिलनाजुलना बंद कर देना रिश्तों का कत्ल है. साथ रहने से, मिलतेजुलते रहने से धीरेधीरे एकदूजे को समझने में मदद मिलेगी. मिलते रहने से ही समस्या सुलझेगी, दूरियों के मिटने से ही अंतरंगता बढ़ेगी.

मातापिता वे इनसान हैं जिन्होंने आप को पालपोस कर बड़ा किया. जब वे आप की परवरिश कर सकते हैं तो खुद की भी कर सकते हैं. अभी जब वे स्वस्थ हैं, अकेले रहने में सक्षम हैं तो आप का यह फर्ज है कि आप हमेशा मिलतेजुलते रहने का मौका तलाश करते रहें. उन्हें हमेशा अपने पास बुलाएं और इज्जत और स्नेह दें. कल को जब वे आशक्त हों, आप के साथ रहने को मजबूर हो जाएं तो उन्हें तालमेल बैठाने में कोई दिक्कत न हो. स्नेहपूर्वक बिताए हुए ये छोटेछोटे पल तब उन की जड़ों के लिए खादपानी का काम करेंगे.

रिश्ते कठपुलियों की तरह होते हैं, जिन की डोर हमारी आपसी सोच, समझदारी, सामंजस्य और सहजता में होती है. भारतीय सामाजिक संरचना भी कुछ ऐसी ही है कि दूर रहें या पास सब रहते एकदूसरे के दिल और दिमाग में ही हैं हमेशा.

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अकेले हैं तो क्या गम है

महिलाएं अब शादी करने की सामाजिक बाध्यता से आजाद हो रही हैं. वे अपनी जिंदगी की कहानी अपने हिसाब से लिखना चाहती हैं और ऐसा करने वाली महिलाओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है. पहले दहेज के कारण ही शादी न होना एक बड़ा कारण होता था.

2015 में डी पाउलो ने औनलाइन ऐसे लोगों को अपने अनुभव शेयर करने को आमंत्रित किया जो अपनी इच्छा से सिंगल थे और इस स्टेटस से खुश थे. ‘कम्युनिटी औफ सिंगल पीपुल’ नाम के इस गु्रप में 5 महीनों के अंदर अलगअलग देशों से 600 से ज्यादा लोग शामिल हो गए और मई 2016 तक यानी 1 साल बाद यह संख्या बढ़ कर 1170 तक पहुंच गई.

इस औनलाइन ग्रुप में सिंगल लाइफ से जुड़े हर तरह के मसले व अच्छे अनुभवों पर चर्चा की जाती है न कि किसी संभावित हमसफर को आकर्षित करने के तरीके बताए जाते हैं.

बदलती सोच

पिछले दशक से जनगणना करने वाले अमेरिकी ‘यू. एस. सैंसस ब्यूरो’ द्वारा सितंबर के तीसरे सप्ताह को अनमैरिड और सिंगल अमेरिकन वीक के रूप में मनाया जा रहा है. पिछले 10 सालों से स्थिति यह है कि तलाकशुदों, अविवाहितों या विधवा/विधुरों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है.

दरअसल, अब विवाह को खुशियों की गोली नहीं माना जाता. जरूरी नहीं कि हर शख्स विवाह कर परिवार के दायरे में स्वयं को सीमित करे. पुरुष हो या स्त्री, सभी को अपनी मंजिल तय करने का हक है. इस दिशा में कुछ हद तक सामाजिक सोच भी बदल रही है.

लोग मानने लगे हैं कि सिंगल एक स्टेटस नहीं वरन एक शब्द है, जो यह बताता है कि यह शख्स मजबूत और दृढ़ संकल्प वाला है और किसी पर निर्भर हुए बगैर अपनी जिंदगी जी सकता है.

सामाजिक दबाव

ऐसा नहीं है कि हर जगह सिंगल्स की भावनाओं को समझा जाता है. ‘यूनिवर्सिटी औफ मिसौरी’ के शोधकर्ताओं के नए अध्ययन के मुताबिक भले ही मिड 30 की सिंगल महिलाओं की संख्या बढ़ी हो, मगर सामाजिक अकेलेपन से जुड़ा खौफ कम नहीं हुआ है. अविवाहित महिलाओं पर सामाजिक परंपरा को निभाने का सामाजिक दबाव कायम है.

टैक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा मध्यवर्ग की 32 अविवाहित महिलाओं का इंटरव्यू लिया गया. इन महिलाओं ने स्वीकार किया कि विवाह या दूसरे इस तरह के मौकों पर उन के सिंगल स्टेटस को ले कर बेवजह भेदते हुए से सवाल पूछे जाते हैं, तो वहीं बहुत से लोग यह कल्पना भी करने लगते हैं कि जरूर वह झूठ बोल रही है और उस की शादी हो चुकी होगी. पति से नहीं बनती होगी या वह तलाकशुदा होगी. कई लोग मुंह पर यह कह भी देते हैं कि शादी नहीं हुई तो जीवन बेकार है.

हाल के एक शोध के मुताबिक अविवाहित महिलाओं को दुख इस बात का नहीं होता कि वे सिंगल हैं बल्कि तकलीफ  यह रहती है कि समाज उन के सिंगल स्टेटस को स्वीकार नहीं करता और उन पर लगातार किसी से भी शादी कर लेने का दबाव बनाया जाता है.

‘ब्रिटिश सोशियोलौजिकल ऐसोसिएशन कौंन्फ्रैंस’ में किए गए एक अध्ययन में पूरे विश्व से 22,000 विवाहित और अविवाहित लोगों के प्रसन्नता के स्तर को मापा गया और पाया गया कि वैसे देश जहां विवाह से जुड़ी पारंपरिक सोच अधिक मजबूत है वहां अविवाहितों में अधिक अप्रसन्नता पाई गई क्योंकि वहां शादी न करने वाली महिलाओं को दया वाली या नीच निगाहों से देखा जाता है.

पाया गया है कि 35 साल से ऊपर की सिंगल महिलाएं फिर भी अपनी स्थिति से संतुष्ट रहती हैं, जबकि यंग वूमन खासकर 25 से 35 साल की जमाने से सब से ज्यादा खौफजदा होती हैं क्योंकि उन से सब से ज्यादा सवाल पूछे जाते हैं. 25 साल से पहले इस संदर्भ में ज्यादा चर्चा नहीं होती.

कुछ तो लोग कहेंगे

सिंगल महिलाओं के लिए जरूरी है कि मुफ्त की सलाह देने वालों की बातों से दिलोदिमाग पर दबाव न बनने दें. आप जरा अपनी निगाहें घुमा कर देखिए, जो शादीशुदा हैं, क्या उन्हें हर खुशी मिल रही है? क्या उन की जिंदगी में नई परेशानियों ने धावा नहीं बोल दिया? कोई भी काम करने से पहले घर वालों को सूचित करना, पैसों के लिए दूसरों का मुंह देखना, एकएक पैसे का हिसाब देना, अपने वजूद को भूल कर हर तरह के कंप्रोमाइज के लिए तैयार रहना, घर संभालना ये सब आसान नहीं होता. बहुत से तालमेल बैठाने पड़ते हैं, जिन से जुड़े तनाव से सिंगल वूमन आजाद रहती है.

जो महिलाएं आप पर शादी करने का दबाव डाल रही हैं, वे दरअसल आप की स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और झंझटों से मुक्त जिंदगी से जलती हैं.

आप अपने दिल की सुनिए. यदि आप किसी ऐसे शख्स का इंतजार कर रही हैं, जो आप की सोच और नजरिए वाला हो तो इस में कुछ भी गलत नहीं. बस शादी करनी जरूरी है, इसलिए किसी से भी कर लो, भले ही वह आप के योग्य नहीं, इस बात का कोई औचित्य नहीं.

कुछ कर के दिखाना है

बहुत सी लड़कियों/महिलाओं के दिलों में कुछ करने का जज्बा होता है, मगर शादी के बाद आमतौर पर वे ऐसा कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाती हैं. एक तरफ  घरपरिवार की जिम्मेदारियां, तो दूसरी तरफ बच्चे. ऐसे में वे चाह कर भी अपने सपनों को जी नहीं पातीं. जिन लड़कियों की प्राथमिकता अपना पैशन होता है, शादी नहीं वे सहजता से शादी न करने का फैसला ले पाती हैं या फिर शादी करती भी हैं तो अपने ही जैसे पैशन या हौबी रखने वाले से.

गलत से बेहतर है न हो जीवनसाथी

पेशे से पत्रकार 32 वर्षीय अनिंदिता कहती हैं, ‘‘गलत व्यक्ति के साथ आप जुड़ जाती हैं तो आप को धोखा मिलता है या फिर आप का जीवनसाथी गालीगलौज और मारपीट करता है तो क्या इस कदर अपने सम्मान को दांव पर लगा कर भी विवाह बंधन में बंधना जरूरी है?’’

सिंगल्स होते हैं ज्यादा जिम्मेदार

अकसर माना जाता है कि सिंगल व्यक्ति सैल्फ सैंटर्ड होता है, पर ऐसा नहीं है. सिंगल अपनी जिंदगी की स्क्रिप्ट स्वयं लिखता है. जब व्यक्ति शादी करता है तो उस का फोकस अपने परिवार और बच्चों तक सिमट कर रह जाता है. मगर सिंगल व्यक्ति दिल से मांबाप, दोस्तों, रिश्तेदारों व सभी करीबी व्यक्तियों के करीब होता है. सही अर्थों में वह स्वार्थरहित और सभी के लिए स्नेहपूर्ण व्यवहार कर पाता है.

शोधों के मुताबिक  हम सभी के पास खुशी की एक बेसलाइन होती है और शादी साधारणगत इसे बदलती नहीं, उस अल्पकालीन खुशी के सिवा.

ऐक्सपर्ट्स के विचार

विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में शादी या जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं के बारे में सामाजिक अपेक्षाएं बनी रहती हैं और इन अपेक्षाओं को पूरा न करने पर चुनौतीपूर्ण एहसास का सामना करना पड़ता है. हालांकि यह ध्यान देना आवश्यक है कि हम में से प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को स्वयं स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार होता है. हालांकि इस तरह के दबाव से निबटना दुखदाई हो सकता है.

यदि इस से आप को असहज लगता है तो इस बारे में अपनी राय जोर दे कर रखनी होगी. याद रखें कि किसी भी प्रकार का दबाव मन पर न डालें क्योंकि शादी अपने व्यक्तिगत जीवन का विकल्प है और आप को इस के लिए निर्णय लेने से पहले मानसिक रूप से तैयार होना जरूरी है.

समीर पारीख, मनोचिकित्सक 

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16 Tips: अच्छा पड़ोसी बनने के गुर

शांति जीवन के लिए बहुत जरूरी है. शांति का एक पक्ष पड़ोसियों से बेहतर तालमेल के जरीए पाया जा सकता है. आप के अच्छे व्यवहार से आप के पड़ोसी सदैव आप के बन सकते हैं. जानिए अच्छे पड़ोसी बनने के गुर ताकि आप की गुडी इमेज आप को सोसायटी में सिर उठा कर जीने का अधिकार दे:

1. आप कालोनी में नए आए हैं, तो पड़ोसी के समक्ष अपनी अकड़ू इमेज न बनाएं. नई जगह पर अपनी पहचान बनाएं. इस के लिए आप को स्वयं पहल करनी होगी. यकीन मानिए आप मुसकरा कर सामने वाले से बात करेंगे, तो सामने वाला भी आप के साथ वैसे ही पेश आएगा.

2. कालोनी में नए आए हैं, तो पासपड़ोस में चेहरे पर मुसकराहट लिए नमस्तेसलाम या वैलकम गिफ्ट से जानपहचान बढ़ाएं.

3. पड़ोसी से उन का लाइफस्टाइल जानें. ऐसा करने से लड़ाईझगड़े से बचा जा सकता है. मसलन, आप के पड़ोसी नाइट शिफ्ट में काम करते हैं. ऐसे में सुबह व शाम आराम के लिहाज से उन के लिए बहुत अहम हैं. आप का बच्चा स्कूल के बाद गानेबजाने की प्रैक्टिस करता है. यह बात पड़ोसी को बताने से होने वाले झगड़े से बच जाएंगे. ऐसे में दोनों अपनीअपनी समस्या का बीच का रास्ता खोज सकते हैं.

4. आप दूसरी मंजिल पर रहते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि भारीभरकम उपकरणों के खिसकाने आदि से उपजे शोर से पहली मंजिल वाले को खीज हो सकती है. फिर खीज लड़ाईझगडे़ का रूप भी ले सकती है. ऐसे में समझदारी इसी में है कि आप भारी उपकरणों के नीचे मोटा रबर मैट बिछाएं ताकि शोर कम हो.

5. टहलने, चलने की तहजीब भी बहुत जरूरी है. खटखट की आवाज करते जूते या सैंडल किसी भी को डिस्टर्ब कर सकते हैं. अत: आज से ही अपनी कालोनी, ब्लौक या गलीमहल्ले में खटखट की आवाज करने वाले जूते या सैंडल पहनना बंद कर दें. जूतेचप्पल ऐसे हों जो आवाज न करें.

6. घर में पैट है, तो ध्यान रहे वह हमेशा चेन से बंधा रहे. कालोनी में पैट के साथ बाहर हैं, तो उसे चेन से बांध कर रखें. आप को उस से भले डर न लगता हो, लेकिन दूसरों को लग सकता है. यही नहीं, अगर पैट चेन से बंधा न हो तो किसी को काट भी सकता है, जो झगड़े की वजह बन सकता है.

7. पार्किंग ऐटिकेट्स से भी जरूर वाकिफ हों. गाड़ी, स्कूटर या बाइक ऐसे पार्क करें कि किसी का रास्ता ब्लौक न हो. किसी के घर के आगे गाड़ी पार्क न करें. पार्किंग ऐटिकेट्स से वाकिफ होने से पासपड़ोस में झगड़े से बच सकते हैं.

8. पड़ोसियों से मेलजोल बनाए रखें. स्वयं पहल कर के पड़ोसी को अपने घर चायनाश्ते पर बुलाएं. अच्छा माहौल आप को मानसिक सुकून तो प्रदान करेगा ही, जरूरत के समय आप के पड़ोसी भी आप के साथ होंगे.

9. धीमा बोलना बहुत जरूरी है. आप किसी से फोन पर बात कर रहे हैं और आप की कालोनी में महिलाएं तेज आवाज में बात कर रही हैं तो उन्हें मना करने पर झगड़ा हो सकता है. ऐसे में घर के हर छोटेबड़े सदस्य को सिखाएं कि घर, टैरेस, पार्क आदि जगहों पर धीमी आवाज में बोलें. आप की तेज आवाज दूसरे की शांति भंग कर सकती है.

10. पड़ोसियों से संवाद बनाए रखें. उन के हर सुखदुख में उन का साथ दें. समय की कमी रहती है, तो अपने पड़ोसियों से व्हाट्सऐप, फेसबुक से जुड़ें.

11. घर में पार्टी करने वाले हैं, तो पहले ही अपने पड़ोसियों को इस बारे में बता दें अन्यथा पार्टी के दौरान आप के पड़ोसी मूड खराब कर सकते हैं. पहले बताने से पड़ोसी शोरशराबा होने पर ऐडजस्ट करने की कोशिश करेंगे.

12. घर का कूड़ाकरकट डस्टबिन में डालें. यहांवहां न फेंकें. यहांवहां बिखरा कूड़ा झगड़े का कारण बन सकता है. इसी तरह कालोनी में बिखरे कूड़े को नजरअंदाज न करें. उसे उठा कर डस्टबिन में डालें. आप को देख कर दूसरे लोग भी ऐसा करेंगे यानी कालोनी साफसुथरी रहेगी.

13. आसपास के इलाके में कोई दिल दहलाने वाली घटना घटी है, तो इस बारे में पड़ोसियों से बात करें ताकि यह बात वैलफेयर ऐसोसिएशन के हैड के कानों तक पहुंच जाए और कालोनी में वैसी कोई घटना न घटे.

14. बड़ेबुजुर्गों की खैरखबर लेते रहें. कालोनी में जरूरतमंदों की सहायता करने से पीछे न हटें.

15. चौकन्ने रहें कि कहीं आप का व्यवहार, आप का रहनसहन या किसी भी प्रकार का आचरण पड़ोसी को कष्ट तो नहीं दे रहा.

16. अपने पड़ोसियों से सरलता से पूछें कि कहीं उन्हें आप की वजह से कोई दिक्कत तो नहीं. यह जान कर झगड़े की जड़ को ही नष्ट कर सकते हैं.

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स्मार्ट पेरैंट्स तो स्मार्ट बच्चे

सभी मातापिता अपने बच्चों को सब से आगे और सफलता की ऊंचाइयों पर देखना चाहते हैं. इस के लिए वे क्याक्या नहीं करते. सुखसुविधाओं के साधन जुटाते हैं, पौष्टिक आहार खिलाते हैं, फिर भी ऐसा क्यों होता है कि कुछ बच्चे बेहद विलक्षण बुद्धि के होते हैं तो कुछ सामान्य व औसत बुद्धि के? दरअसल, जन्म के समय बच्चे के दिमाग के सैल्स सांस लेने, दिल की धड़कन जैसी कुछ खास क्रियाओं से ही जुड़े होते हैं. मस्तिष्क का बाकी हिस्सा जन्म के 5 साल के भीतर विकसित होता है. न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के चाइल्ड स्टडी सैंटर के मैनेजिंग डायरेक्टर पी. ल्यूकास के अनुसार, ‘‘जन्म के शुरुआती 5 सालों में शिशु के जीवन में घटने वाली घटनाएं न सिर्फ उस के मस्तिष्क का तत्कालीन विकास निर्धारित करती हैं, बल्कि यह भी निर्धारित करती हैं कि आने वाले जीवन में उस का मस्तिष्क कितना विकसित होगा.’’

यद्यपि शिशु के मस्तिष्क विकास के रहस्य को विशेषज्ञ अभी भी पूरी तरह सुलझा नहीं पाए हैं, लेकिन फिर भी यह तो तय है कि अभिभावकों द्वारा किए गए प्रयास बच्चे के मस्तिष्क के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

बनें स्मार्ट पेरैंट्स

यदि आप को लगता है कि बाजार में उपलब्ध बेबी डेवलपमेंट सीडी से या जल्द से जल्द उसे प्ले स्कूल में भेजने से आप के बच्चे का दिमाग तेजी से चलने लगेगा तो आप का सोचना गलत है. विशेषज्ञों की राय में बच्चे के मस्तिष्क का विकास इस पर निर्भर करता है कि आप ने उस के साथ कितना वक्त बिताया है. जी हां, बेशक यह बच्चे पालने का पारंपरिक तरीका हो, लेकिन यह बात सही है कि कंप्यूटर, वैबसाइट्स और टीवी की तुलना में बच्चे के साथ खेले गए छोटेमोटे सरल खेल, अभिभावकों का सान्निध्य बच्चे को ज्यादा ऐक्टिव और स्मार्ट बनाता है, क्योंकि इस दौरान शिशु को जो आत्मीयता और स्नेह मिलता है उस की बराबरी कोई नहीं कर सकता.यदि आप भी अपने शिशु को स्मार्ट बेबी बनाना चाहती हैं तो पहले स्मार्ट मदर बनें और उस की स्मार्ट टीचर भी. आप के द्वारा कही गई हर बात और किया गया हर कार्य आप का नन्हामुन्ना गौर से देखसुन रहा है और उस पर उस का प्रभाव भी पड़ र हा है. इसलिए उस के सर्वश्रेष्ठ विकास के लिए निम्न बातों पर गौर करें:

जन्म से 4 माह तक

उसे कुछ पढ़ कर सुनाएं, लोरी गा कर सुनाएं. शिशु के सामने तरहतरह के चेहरे बनाएं, उसे गुदगुदी करें, बच्चे की आंखों के आगे धीरेधीरे कोई रंगबिरंगी वस्तु, खिलौना या झुनझुना घुमाएं, ऐसे गाने या पोयम्स सुनाएं, जिन में शब्दों का दोहराव हो, आप और शिशु जो भी कर रहे हैं, उसे बोल कर बताएं जैसे ‘अब हम गाड़ी में जा रहे हैं’, ‘अब हम ने आप को कार की सीट पर बैठा दिया है’, ‘अब मम्मी भी कार में बैठेंगी’ आदि.

4 से 6 माह तक

स्टफ टौयज को हग करने में शिशु की मदद करें, छोटेछोटे प्लास्टिक के ब्लाक्स शिशु के आगे रख दें और देखें कि आप का नन्हामुन्ना किस तरह उन को गिरा कर अपने लिए रास्ता बनाता है. अलगअलग रिदम वाला संगीत सुनाएं, रंगबिरंगी तसवीरों वाली किताबें दिखाएं और उस की प्रतिक्रिया देखें. कोमल, खुरदरी सतह वाली विभिन्न वस्तुएं उसे स्पर्श करने को दें ताकि उन के अंतर को वह महसूस कर सके.

6 माह से 18 माह तक

बच्चे से ज्यादा से ज्यादा बातचीत करें ताकि वह विभिन्न ध्वनियों और शब्दों में तालमेल बैठा सके. परिचितों, परिवार के सदस्यों व रोजमर्रा की उपयोग की वस्तुओं से उस का रोज परिचय कराएं, सब के नाम बारबार दोहराएं, शब्दों के दोहराव वाले गाने और पोयम्स हाथों से एक्शन कर के उसे सिखाएं, उस के साथ लुकाछिपी खेलें.

18 से 24 माह

विभिन्न वस्तुओं व रंगों की पहचान कराने वाले खेल उस के साथ खेलें जैसे कई रंगों के बीच में से किसी खास रंग की वस्तु जैसे फूल, कुरसी, उस के तकिए आदि की पहचान, उस के सामने कई सारी चीजें, जिन्हें वह रोज देखता है, रख दें और उन में से कोई भी एक चीज उठाने को कहें. जितना अधिक हो सके अपने शिशु से बातचीत करें, रंगों और कागज से अब धीरेधीरे उस की पहचान कराना शुरू करें, किसी किताब में से उसे कोई कहानी पढ़ कर सुनाएं और इस दौरान उस से कुछ न कुछ सवाल पूछते रहें जैसे कब, कहां पर क्या हुआ आदि उस के खिलौने उसे स्वयं खेलने या चलाने को दें.

24 से 36 माह

जैसेजैसे शिशु साइकिल चलाना या अन्य कोई गतिविधि बखूबी करना शुरू कर दे, उसे पर्याप्त सराहना व प्रोत्साहन दें, अपने खिलौनों से विभिन्न प्रकार के खेल खेलने को प्रोत्साहित कर उस की कल्पनाशक्ति बढ़ाएं, खेलखेल में कुछ ऐसे काम उसे करने को प्रेरित करें, जो आप असल जिंदगी में करते हैं जैसे फोन पर बात करना, गाड़ी चलाना, चाय या दूध पीना आदि. कोई कहानी पढ़ कर सुनाते हुए उस से विभिन्न सवाल पूछते रहें ताकि उस की रुचि बरकरार रहे, कुछ पढ़ कर सुनाते समय विभिन्न अक्षरों या शब्दों की पहचान कराएं, फिर उस से किताब के पेज पर उन्हें ढूंढ़ने को कहें या उन की ध्वनि से परिचय कराएं.

3 से 5 वर्ष

शिशु को अपनी चीजें दूसरों से बांटना सिखाएं, इस के लिए विभिन्न उदाहरण दें, बच्चों के लिए बनाए गए गेम्स उस के साथ खेलें, जिन से उस की सोचनेसमझने और सीखने की क्षमता में वृद्धि हो, बच्चे के द्वारा टीवी देखने के समय को दिन में 1 से 2 घंटे तक सीमित करें व उस के साथ बैठ कर टीवी देखें और उस दौरान उसे बताते रहें कि टीवी में क्या हो रहा है. यदि बच्चा रुचि दिखाता है तो किताब पढ़ने या कोई पहेली हल करने जैसे विकल्प उसे दें. बच्चे को हर छोटीबड़ी चीज करने से रोकेंटोकें नहीं, बल्कि नएनए काम स्वयं करने और अपनी जिज्ञासा स्वयं शांत करने के अवसर प्रदान करें. अपने बच्चे व उस की इच्छा को पर्याप्त सम्मान व अटेंशन दें. उस की हर बात, हर नया अनुभव, चाहे वह अजीबोगरीब ही क्यों न हो, ध्यान से सुनें. रोज अपने बच्चे के साथ कुछ फुरसत के पल जरूर बिताएं और उस से पूछें कि आज दिन भर उस ने क्या किया. बच्चे को नए काम करने, नए अनुभव लेने और उन का बखान करने के लिए भी प्रोत्साहित करें.

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शादी के बाद भी जिएं आजादी से

स्वाति की नईनई शादी हुई है. वह मेहुल को 5 सालों से जानती है. दोनों ने एकदूसरे को जानासमझा तो दोनों को ही लगा कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं. फिर अभिभावकों की मरजी से विवाह करने का निर्णय ले लिया. लेकिन आजाद खयाल की स्वाति ने विवाह से पहले ही मेहुल के सामने अपनी सारी टर्म्स ऐंड कंडीशंस ठीक वैसे ही रखीं जैसे कोई बिजनैस डील करते समय 2 लोग एकदूसरे के सामने रखते हैं. हालांकि ये लिखी नहीं गईं पर बातोंबातों में स्पष्ट कर दी गईं.

आइए, जरा स्वाति की टर्म्स ऐंड कंडीशंस पर एक नजर डालते हैं:

  1. शादी के बाद भी मैं वैसे ही रहूंगी जैसे शादी से पहले रहती आई हूं. मसलन, मेरे पढ़ने, पहननेओढ़ने, घूमनेफिरने, जागनेसोने के समय पर कोई पाबंदी नहीं होगी.
  2. तुम्हारे रिश्तेदारों की आवभगत की जिम्मेदारी मेरी अकेली की नहीं होगी.
  3. अगर मुझे औफिस से आने में देर हो जाए, तो तुम या तुम्हारे परिवार वाले मुझ से यह सवाल नहीं करेंगे कि देर क्यों हुई?
  4. मुझ से उम्मीद न करना कि मैं सुबहसुबह उठ कर तुम्हारे लिए पुराने जमाने की बीवी की तरह बैड टी बना कर कहूंगी कि जानू, जाग जाओ सुबह हो गई है.
  5. मेरे फाइनैंशियल मैटर्स में तुम दखल नहीं दोगे यानी जो मेरा है वह मेरा रहेगा और जो तुम्हारा है वह हमारा हो जाएगा.
  6. अपने मायके वालों के लिए जैसा मैं पहले से करती आ रही हूं वैसा ही करती रहूंगी. इस पर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होगी. मेरे और अपने रिश्तेदारों को तुम बराबर का महत्त्व दोगे.

स्वाति की इन टर्म्स ऐंड कंडीशंस से आप भी समझ गए होंगे कि आज की युवती विवाह के बाद भी पंछी बन कर मस्त गगन में उड़ना चाहती है. पहले की विवाहित महिला की तरह वह मसालों से सनी, सिर पर पल्लू लिए सास का हुक्म बजाती, देवरननद की देखभाल करती बेचारी बन कर नहीं रहना चाहती. दरअसल, आज की युवती पढ़ीलिखी, आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर है. वह हर स्थिति का सामना करने में सक्षम है. अपने किसी भी काम के लिए पति या ससुराल के अन्य सदस्यों पर निर्भर नहीं है. इसीलिए वह विवाह के बाद भी अपनी आजादी को खोना नहीं चाहती.

जिंदगी की चाबी हमारे खुद के हाथ में

आज की पढ़ीलिखी युवती विवाह अपनी मरजी और अपनी खुशी के लिए करती है. वह नहीं चाहती कि विवाह उस की आजादी की राह में रोड़ा बने. वह अपनी आजादी की चाबी पति या ससुराल के दूसरे सदस्यों को सौंपने के बजाय अपने हाथ में रखना चाहती है. वह चाहती है कि अगर सासससुर साथ रहते हैं, तो वे उस की मदद करें. पति और वह मिल कर बराबरी से घर की जिम्मेदारी उठाएं. आज की युवती का दायरा घर और रसोई से आगे औफिस और दोस्तों के साथ मस्ती करने तक फैल गया है. वह जिंदगी का हर निर्णय खुद लेती है. फिर चाहे वह विवाह का निर्णय हो, पसंद की नौकरी करने का हो अथवा विवाह के बाद मां बनने का.

रहूंगी लिव इन की तरह

आज की युवती के लिए विवाह का अर्थ बदल गया है. अब उस के लिए विवाह का अर्थ पाबंदी या जिम्मेदारी न हो कर आजादी हो गया है. आज वह विवाह कर के वे चीजें अपनाती है, जो उसे अच्छी लगती हैं और उन्हें सिरे से नकार देती है, जो उस की आजादी की राह में रुकावट बनती हैं. मसलन, व्यर्थ के रीतिरिवाज, त्योहार और अंधविश्वास, जो उस के जीने की आजादी की राह में बाधा बनते हैं उन्हें वह नहीं अपनाती. वह उन रीतिरिवाजों और त्योहारों को मनाती व मानती है, जो उसे सजनेसंवरने और मौजमस्ती करने का मौका देते हैं. वह अपने होने वाले पति से कहती है कि हम विवाह के बंधन में बंध तो रहे हैं, लेकिन रहेंगे लिव इन पार्टनर की तरह. हम साथ रहते हुए भी आजाद होंगे. एकदूसरे के मामलों में दखल नहीं देंगे. एकदूसरे को पूरी स्पेस देंगे. एकदूसरे के मोबाइल, लैपटौप में ताकाझांकी नहीं करेंगे. हमारी रिलेशनशिप फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स वाली होगी, जिस में तुम यानी पति फ्रैंड विद बैनिफिट पार्टनर की तरह रहोगे, जिस में कोई कमिटमैंट नहीं होगी. हमारा रिश्ता फ्रीमाइंडेड रिलेशनशिप वाला होगा, जिस में कोई रोकटोक नहीं होगी. जब हमें एकदूसरे की जरूरत होगी, हम मदद करेंगे, लेकिन इस मदद के लिए कोई एकदूसरे को बाध्य नहीं करेगा. हमारे बीच पजैसिवनैस की भावना नहीं होगी. मैं अपने किस दोस्त के साथ चैटिंग करूं, किस के साथ घूमनेफिरने जाऊं इस पर कोई पाबंदी नहीं होगी.

आजादी मांगने व देने के पीछे का कारण

युवतियों में शादी को ले कर आए इस बदलाव के पीछे एक कारण यह भी है कि उन्होंने अपनी दादीनानी और मां को घर की चारदीवारी में बंद अपनी इच्छाओं व खुशियों को मारते देखा है. वे अपनी हर खुशी के लिए पति पर निर्भर रहती थीं. लेकिन आज स्थिति विपरीत है. आज की पढ़ीलिखी व आत्मनिर्भर युवतियां चाहती हैं कि जब वे बराबरी से घर के काम और आर्थिक मोरचे को संभाल रही हैं, तो वे विवाह के बाद आजाद क्यों न रहें? क्यों वे विवाह के बाद पति और ससुराल के बाकी सदस्यों की मरजी के अनुसार अपनी जिंदगी जीएं? आज की पढ़ीलिखी युवतियां अपनी शिक्षा व योग्यता को घर बैठ कर जाया नहीं होने देना चाहतीं. वे चाहती हैं कि जब पति घर से बाहर व्यस्त है, तो वे घर बैठ कर क्यों उस के आने का इंतजार करें और अगर वह औफिस के बाद अपने दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने का अधिकार रखता है तो उन्हें भी विवाह के बाद ऐसा करने का पूर्ण अधिकार है.

दूसरी ओर पति भी चाहता है कि उस की पत्नी विवाह के बाद छोटीछोटी आर्थिक जरूरतों के लिए उस पर निर्भर न रहे. अगर पत्नी कामकाजी नहीं है, तो उस के घर आने पर घरपरिवार की समस्याओं का रोना उस के सामने रो कर उसे परेशान न करे, इसलिए वह उसे आजादी दे कर अपनी आजादी को कायम रखना चाहता है. तकनीक ने भी आज युवतियों को आजाद खयाल का होने में मदद की है. तकनीक के माध्यम से वे दूर बैठी अपने दोस्तों से जुड़ी रहती है और अपनी आजादी को ऐंजौय करती हैं. पति भी चाहता है कि वह व्यस्त रहे ताकि उस की आजाद जिंदगी में कोई रोकटोक न हो.

आजादी के नाम पर गैरजिम्मेदार न बनें

विवाह के बाद आजाद बन कर मस्त गगन में उड़ने की चाह रखने वाली युवती को ध्यान रखना होगा कि कहीं वह आजादी के नाम पर गैरजिम्मेदार तो नहीं बन रही? उस की आजादी से उस के घरपरिवार, बच्चों पर कोई बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है, क्योंकि सिर्फ अपनी टर्म्स ऐंड कंडीशंस पर जीना आजादी नहीं, अपनी बात मनवाना आजादी नहीं, महज घर से बाहर निकल कर मल्टीटास्किंग करना ही आजाद खयाल का होना नहीं. विवाह बंधन नहीं, जिस में आप आजादी चाहते हैं. विवाह का अर्थ एकदूसरे के सुखदुख में भागीदार होना है. पढ़नेलिखने, आत्मनिर्भर होने का अर्थ जरूरी नहीं कि आप नौकरी ही करें. आप चाहें तो अपने आसपास के बच्चों को मुफ्त शिक्षा दें. अपनी घर की जिम्मेदारियां सुचारु रूप से निभाएं. आजादी का अर्थ है विचारों की स्वतंत्रता, पढ़नेलिखने की स्वतंत्रता, निर्णय लेने की आजादी, अपने ढंग से घर चलाने की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी, रुढियों व दकियानूसी विचारों से आजादी, अपना जीवन संवारने की आजादी न कि कर्तव्यों से भटकने की आजादी. प्रकृति ने महिला व पुरुष को अपनीअपनी योग्यता के अनुसार जिम्मेदारियां सौंपी हैं. उन्हीं जिम्मेदारियों का अपनी सीमाओं में रह कर पालन करना ही सही माने में आजादी है, जिस से प्रकृति का संतुलन भी कायम रहेगा और कोई किसी की आजादी का भी उल्लंघन नहीं करेगा. इसलिए सामाजिक दायरे में रह कर अपनी क्षमताएं पहचान कर अपने दायित्वों को निभाना ही सही में आजादी है.

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खुश रहो और खुश रखो

हमारे समाज में ऐसे पुरुषों की कमी नहीं है, जो पूरी तरह से मूड के गुलाम हैं. मूड ठीक है तो अपनी पत्नी पर ऐसे प्यार लुटाएंगे, जैसे उन से ज्यादा प्यार करने वाला पति इस दुनिया में दूसरा कोई है ही नहीं. और जिन दिनों उन का मूड ठीक नहीं रहता, तो पत्नी के खिलाफ शिकायतों का वे पिटारा खोल देते हैं और तब, पत्नी से वे ऐसा बेरुखा व्यवहार करना शुरू कर देते हैं, जैसे कोई अपरिचित महिला जबरदस्ती उन के घर में घुस आई हो, जिस से बात करना भी उन्हें पसंद न हो. बारबार ऐसा व्यवहार करने वाले पति को पत्नी समझ नहीं पाती कि जब उस ने अपने जीवनसाथी का मूड खराब करने वाला कोई काम ही नहीं किया है, उन की प्रौब्लम उन के दफ्तर या कारोबार से जुड़ी है और इस प्रौब्लम में उस का कहीं कोई हाथ ही नहीं है, तो फिर वे अपने खराब मूड का शिकार उसे बना रहे हैं?

क्यों खराब मूड के चलते घर में अपनी पत्नी के साथ बेरुखे व्यवहार को सहतेसहते एक वक्त के बाद पत्नी यह बात सोचना शुरू कर देती है कि ऐसे इनसान के साथ जिंदगी के लंबे वर्ष कैसे निभाए जा सकते हैं? ऐसे में पत्नी भी तब ईंट का जवाब पत्थर से देने की तर्ज पर, पति की ही तरह, घर में पति के रहते भी पति की उपस्थिति को अनदेखा करना शुरू कर देती है या फिर पति की ही तरह चुप्पी साध लेती है. ऐसे में दोनों के बीच दूरियां बढ़ती जाती हैं और ये बढ़ती दूरियां कई बार तो उन्हें संबंधविच्छेद के बारे में सोचने को भी मजबूर कर देती हैं.

बिना किसी ठोस वजह के, संबंध तोड़ने की राह पर चलने की सोचने वाले पतिपत्नी दोनों ही तब इस बात को सोचना मुनासिब नहीं समझते कि रिश्तों का टूटना बहुत दर्द देने वाला होता है और एक बार टूटने के बाद अगर फिर से जुड़ भी गए तब भी टूटने के निशान तो रह ही जाते हैं. और ये निशान आगे की जिंदगी में हर पल उन्हें याद दिलाते रहते हैं कि प्यार के रिश्ते के मामले में वे कैसे नासमझ थे और अपने ही हाथों उन्होंने अपनी जिंदगी बदमजा बना ली है. यहां कुछ ऐसे नुसखे बताए जा रहे हैं, जिन से कमजोर होते जा रहे गृहस्थ जीवन के रिश्तों को मजबूत ही नहीं, बल्कि अटूट बनाया जा सकता है.

अपनी समस्या बताएं, दूसरे की समझें

समस्या यह है कि ज्यादातर जोड़े आलोचना और शिकायत के अंतर को समझ ही नहीं पाते. किसी काम या कथन की साधारण आलोचना को भी वे अपने पर की गई गंभीर शिकायत मान कर नाराज हो जाते हैं और अपने जीवनसाथी के साथ बोलचाल बंद कर के एक चुप्पी वाला व्यवहार अपना लेते हैं. इस से रिश्तों के रस में खटास आ जाती है. जबकि वाजिब तरीका तो यह है कि अगर पति को पत्नी के और पत्नी को पति के किसी व्यवहार से समस्या है भी तो एकदूसरे की समस्या समझने से किसी समस्या को सहज ही दूर किया जा सकता है. पति व पत्नी दोनों को ही इस बात को समझना चाहिए कि चुभने वाली किसी बात से या व्यवहार से दुखी होने पर, जब आप अपनी तकलीफ बताएंगे ही नहीं तो दूसरा उस बात को कैसे समझेगा? और आगे कैसे उस चुभने वाली बातें कहने पर रोक लगा पाएगा. इसलिए आपस की छोटीमोटी बातों को धैर्य के साथ सुने व समझें.

चुप्पी को हथियार न बनाएं

चुप्पी साधने के मामले में पति लोग हमेशा अपनी पत्नियों के मुकाबले तेजी से चलते हैं. ऐसे पति गृहस्थ जीवन में आने वाली मुश्किलों को तब ऐसे निर्विकार भाव से लेना शुरू कर देते हैं, जैसे ऐसी बातों से उन का कोई सीधा सरोकार ही न हो. उन की पार्टनर अगर उन को राह पर लाने के लिए चेहरे पर मीठी चितवन ला कर बात भी करती है, तो वे ऐसे बने रहते हैं, जैसे उन्होंने कुछ देखा ही न हो. रात को बिस्तर पर भी वे पत्नी की तरफ ऐसे पीठ कर के सोना शुरू कर देते हैं, जैसे वह कोई बेगानी औरत हो. यह स्थिति बहुत ही खतरनाक होती है. ऐसी स्थिति आने पर कई बार उन की पत्नी सोचने लगती है कि उस के रूप और यौवन के दीवाने उस के पति आखिर उस के प्रति ऐसी बेरुखी क्यों दिखा रहे हैं? कहीं उन के किसी दूसरी औरत के साथ रिश्ते तो नहीं बन गए? निराधार ही सही, पर ऐसी सोच की वजह से सुखी जीवन में दरार आ सकती है. सो पति लोग चुप्पी को हथियार बनाने से बचें.

अपनी आदतों में लाएं बदलाव

पतिपत्नी दोनों में ही कुछ ऐसी आदतें होती हैं, जो उन के जोड़ीदार को नापसंद होती हैं. जैसे, पति का अपना मोबाइल इधरउधर रख कर भूल जाना और पत्नी को जल्द ढूंढ़ कर देने को कहना. और न मिलने पर कहना, ‘‘यार, तुम तो मेरा कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाती हो. यहां मेरे साथ ही तुम्हारा गुजारा हो रहा है, किसी दूसरे के पल्ले पड़तीं तो तुम्हें बहुत मुश्किल होती.’’ इस के अलावा पत्नी व बच्चों के साथ रहते भी तेज गाड़ी चलाना और पत्नी के इस अनुरोध के बावजूद कि ‘धीरे चलो जी, हमारे बच्चे हमारे साथ हैं,’ अनुरोध को नजरअंदाज कर के उसी स्पीड पर गाड़ी दौड़ाते रहना. पत्नी के मना करने के बावजूद, शौपिंग के समय गैरजरूरी चीजें खरीदते जाना. ऐसी तमाम बातें पतिपत्नी के बीच मनमुटाव की वजह बन जाती हैं. बहुत सी पत्नियां भी ऐसी हैं, जो दिन में तो टीवी पर अपने मनपसंद कार्यक्रम देखती ही हैं, शाम को व रात को भी उन की कोशि  यही रहती है कि उन का पति देश और दुनिया की खबरें सुनने के बजाय, इस समय भी वही सब कुछ देखे जो उस की पत्नी को पसंद है. ऐसी बातों से आपसी चिढ़ बढ़ती है.

एकदूसरे को चिढ़ाने वाले काम करने के बजाय पतिपत्नी दोनों को ही एकदूसरे की भावनाओं को सम्मान देते हुए, अपनी आदतों में बदलाव ला कर, जीवनसंगी को खुश रखने की कोशिश करनी चाहिए.

सहयोग और समझौता

इंसान का व्यवहार सब समय एक सा नहीं रहता. कभी तीखा और कभी मीठा होना तो मानव व्यवहार के अंग हैं, जो लोग जीवनसाथी के तीखे और मीठे व्यवहार को समान रूप से झेल जाते हैं, उन के जीवनसाथी उन का सम्मान कई गुना बढ़ जाता है. असल में शादी नाम है सहयोग और समझौतों का. जो लोग इस बात को समझ लेते हैं, उन के जीवन में खुशियों का संदेश देने वाली शहनाइयों की मधुर गूंज हमेशा बजती रहती है और ऐसे लोग एकदूसरे के साथ सुखपूर्वक लंबा जीवन जीते हैं. खुद खुश रहो और जीवनसाथी को खुश रखो, क्योंकि यही तो है जिंदगी.

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थोड़ा प्यार थोड़ी तकरार

रमा जब औफिस पहुंची तो उस का मूड उखड़ा हुआ था. चेहरे पर शिकनें साफ दिखाई दे रही थीं. वह गुस्से में कीबोर्ड पर उंगलियां कुछ ज्यादा ही तेज चला रही थी.

रमा की बगल वाली कुरसी पर बैठी सुमिता ने जब रमा से उस की परेशानी की वजह जाननी चाही तो वह भावुक हो उठी, ‘‘आज फिर ओम से झगड़ा हो गया. बात छोटी सी थी, पर बहस बढ़ती चली गई. तंग आ गई हूं मैं इस रोजरोज के झगड़े से.’’

‘‘झगड़ा तो हर पतिपत्नी के बीच होता है. इस में मूड इतना खराब करने की क्या बात है? अगर इस बात को ले कर एकदूसरे से बातचीत करना बंद कर दें या घर में कलह का माहौल बन जाए, तो अवश्य ही रिश्ते में दरार आ सकती है. वैसे तो थोड़ीबहुत तकरार आम बात होती है,’’ सुमिता ने उसे समझाते हुए कहा. ‘‘कह तो तू सही रही है, क्योंकि हमारे झगड़े की वजह कुछ नहीं होती और शाम को जब हम दोनों घर पहुंचते हैं, तो सब कुछ सामान्य भी हो जाता है. पर सुबह तकरार हो जाए तो मूड खराब हो ही जाता है,’’ रमा बोली.

इस से पहले कि सुमिता कोई जवाब देती, रमा का मोबाइल बज उठा. उस के बात करने के अंदाज से सुमिता समझ गई कि उस के पति ओम का फोन है. बात करने के बाद रमा का मूड एकदम ठीक हो गया और वह सुमिता को देख कर मुसकराई.

सुमिता ने भी हंसते हुए कहा, ‘‘ऐसे ही दुखी हो जाती है. लेकिन आगे से यह बात याद रखना कि पतिपत्नी के बीच इस तरह की तकरार होती ही रहती है. अगर यह न हो तो जीवन नीरस बन जाएगा. थोड़ी तूतू, मैंमैं न हो तो जिंदगी सपाट लगने लगेगी.’ पतिपत्नी के बीच बिना किसी ठोस वजह के झगड़ा या तकरार हो जाना एक सामान्य बात है, क्योंकि 2 भिन्न विचारों वाले लोगों की सोच का टकराना कोई असहज बात नहीं है. लेकिन उस से आहत होना या अपने साथी को आहत करना अथवा उस तकरार को संबंधों में कड़वाहट लाने की वजह बनाना ठीक नहीं है. तकरार को कुछ देर बाद भूल जाएं या जिस की गलती हो वह गलती मान ले तो स्थिति सामान्य हो जाती है. वैसे भी पतिपत्नी का रिश्ता ऐसा होता है कि चाहे कितना भी झगड़ा क्यों न हो जाए, उन के बीच मनमुटाव बहुत देर तक कायम नहीं रह सकता है.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि झगड़ना एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, इसलिए कोई भी व्यक्ति इस से अछूता नहीं रह सकता है. पति पत्नी को बर्थडे विश करना भूल गया तो तकरार हो गई. पत्नी ने पति का सूट ड्राईक्लीन करा कर नहीं रखा तो तकरार हो गई या अगर वादा कर के पति समय पर घर नहीं आया तो तकरार हो गई. यानी तकरार की अनगिनत वजहें हो सकती हैं. लेकिन तकरार इसलिए नहीं होती कि वे एकदूसरे को पसंद नहीं करते हैं, बल्कि इसलिए होती है, क्योंकि दोनों एकदूसरे को प्यार करते हैं.

मधुरता बनी रहती है

मनोवैज्ञानिक आराधना मलिक का कहना है कि जहां प्यार होता है, वहां अपेक्षाएं सहज ही पैदा हो जाती हैं और जब अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं तो आपस में लड़ाई हो ही जाती है, जो बहुत ही स्वाभाविक बात है. रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसा होता है कि अपनी आदतों व हरकतों से पतिपत्नी एकदूसरे को चोट पहुंचाते हैं. किंतु इस चोट का दर्द स्थायी नहीं होता है और उन दोनों के बीच इस के बावजूद मधुरता बनी रहती है

मोना और विनीत के विवाह को 13 वर्ष हो चुके हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमारे बीच कभी झगड़ा नहीं हुआ. यहां तक कि किसी बात को ले कर तकरार भी नहीं हुई. हमें इस बात की खुशी है. जब हम दूसरे युगलों को लड़ते देखते हैं, तो हमें उन की आपसी अंडरस्टैंडिंग में कमी देख कर दुख होता है. हम ने तो विवाह के बाद ही यह तय कर लिया था कि हम दोनों एकदूसरे की जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, इसलिए झगड़ने की नौबत आई ही नहीं और अगर कभी आई भी तो हम ने चुपचाप उसे नजरअंदाज कर दिया.’’

इस युगल की बात सुन कर इन्हें आदर्श दंपती मानने का मन अवश्य करता है, पर इस का मतलब यह कतई नहीं लगाया जा सकता है कि इन का दांपत्यजीवन बहुत सुखद है, बल्कि इस से तो यह लगता है कि ये लोग न तो कभी आपस में लंबी बातचीत करते हैं और न ही खुल कर अपने मन की बात कह पाते हैं. बहस से बचने के लिए ये अपनी बात अपने दिल में ही रखते हैं जबकि रिश्ते में प्रगाढ़ता और मधुरता बनाए रखने के लिए तकरार या झगड़ा होना नितांत आवश्यक है.

मजबूत होता है रिश्ता

‘‘कल तो तुम अपने पति के देर से घर आने और तुम्हें तुम्हारे मायके न ले जाने की बात से इतनी नाराज थीं और आज तुम दोनों शाम को पार्क में हाथ में हाथ डाले टहल रहे हो?’’ पार्क में अपनी सहेली शारदा को अपने पति के साथ हंसहंस कर बात करते और घूमते देख कर राधा का हैरान होना स्वाभाविक था.

इस पर शारदा हंसते हुए बोली, ‘‘अरे, वह तो कल की बात थी. इस तरह की लड़ाई तो हमारे बीच अकसर हो जाती है. अब मैं अपने पति से नहीं रूठूंगी तो और किस से रूठूंगी और फिर इन्हें भी मुझे मनाने में मजा आता है. अगर इस झगड़े को गंभीरता से लेने लगूं तो 2 दिन भी साथ रहना मुश्किल हो जाएगा. मुझे तो लगता है कि इस तरह की तकरार से रिश्ता मजबूत होता है.’’

अध्ययनों से भी यह बात सामने आई है कि जो युगल झगड़ा करते हैं, उन का रिश्ता ज्यादा मजबूत होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जो युगल झगड़े से बचने की कोशिश करते हैं, उन के बीच अलगाव होने की आशंका सब से ज्यादा होती है, क्योंकि वे कभी भी उन मुद्दों को सुलझाने की कोशिश नहीं करते हैं, जिन्हें सुलझाने की आवश्यकता होती है. वे चुप रह कर जिन कुंठाओं को दबा देते हैं, बाद में वही ज्वाला बन कर फूटती हैं. समस्याएं उत्पन्न होने पर अगर वे 2 समझदार व्यक्तियों की तरह बात करें तो खाई पाटी जा सकती है.

आपसी जुड़ाव की निशानी

अगर पतिपत्नी के बीच तकरार होती रहती है, तो इसे वैचारिक भिन्नता से ज्यादा इस बात की निशानी मानना चाहिए कि उन के बीच जुड़ाव बहुत अधिक है. मनोवैज्ञानिक आराधना मलिक के अनुसार, ‘‘झगड़ा इस बात का प्रतीक होता है कि संबंधों में जीवंतता बरकरार है. वे चाहें कितना ही झगड़ें पर एकदूसरे से अलग नहीं हैं. सचाई तो यह है कि कोई भी इंसान परफैक्ट नहीं होता है. कमी हर रिश्ते की तरह पतिपत्नी के रिश्ते में भी होती है.’’

आपसी जुड़ाव तभी उत्पन्न होता है,जब एक साथी को यह पता हो कि दूसरा साथी क्या सोच रहा है या क्या महसूस कर रहा है. इस का अर्थ यह हुआ कि विचारों की भिन्नता को एकदूसरे के समक्ष लाना न कि चुप रह कर मन ही मन घुलते रहना. बोल कर, अपनी राय दे कर इस नतीजे पर पहुंचना कि क्या सही है और क्या गलत, एक स्वस्थ रिश्ते की निशानी है.

अपने साथी से मन की बात कहने में आखिर बुराई ही क्या है और अगर इस वजह से तकरार हो भी जाए तो मुद्दा सुलझ भी तो जाता है. बात चाहे छोटी ही क्यों न हो, चुप रहने के बजाय बात सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए. बहस से बचने के चक्कर में अगर झगड़ा न किया जाए तो समस्या गंभीर बन सकती है और रिश्ते में दरार भी आ सकती है.

मैरिज काउंसलर मणिका मानती हैं कि झगड़ा करना स्वास्थ्यवर्धक भी होता है और अगर उस का उपयोग ठीक तरह से किया जाए तो वह रिश्ते को पुख्ता करने और ऊर्जावान बनाने में भी सहायक होता है. पर इस का अर्थ यह नहीं है कि जब भी आप को लगे कि रिश्ते में गरमाहट की कमी हो रही है, आप झगड़ा करने लगें.

पतिपत्नी का संबंध ऐसा होता है कि उन के बीच कोई भी विवाद बहुत लंबे समय तक चल ही नहीं सकता है. इसलिए अगर तकरार हो भी गई हो तो उसे तूल न दें और न ही यह उम्मीद रखें कि साथी आप को मनाए. बिना हिचक के साथी से माफी मांग लें. इस से आप किसी भी तरह से उस की नजरों में छोटे नहीं होंगे, बल्कि आप की पहल आप के संबंधों को और प्रगाढ़ता देगी.

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