ब्रैंडेड ज्वैलरी ही क्यों

अर्थव्यवस्था में कितनी भी गिरावट हो पर ब्रैंडेड ज्वैलरी की मांग हमेशा रहती है. इस की वजह इस का लुक और इस का मूल्य है. आज भी लोग अपनी भविष्य निधि के रूप में ब्रैंडेड ज्वैलरी को ही खरीदना पसंद करते हैं.

इस के बारे में ज्वैलरी डिजाइनर वरुणा डी. जानी बताती हैं कि ब्रैंडेड ज्वैलरी का महत्त्व सालोंसाल चलता है. इसे पहन कर महिला हमेशा अलग दिखती है.

इस के फायदे निम्न हैं:

– ब्रैंडेड ज्वैलरी में आजकल डायमंड को अधिक महत्त्व दिया जाता है, जो खूबसूरती बढ़ाने के साथसाथ निवेश के लिए भी अच्छा होता है.

– ब्रैंडेड ज्वैलरी की डिजाइनिंग केवल भारत में नहीं ग्लोबली होती है, इसलिए आप इसे खरीद कर कहीं भी पहन सकती हैं.

– इस के डिजाइन समय के साथ बदलते हैं. इसे कौपी करने के बावजूद लोग इस की ओरिजिनैलिटी को नहीं बना पाते, क्योंकि एक डिजाइन को बनाने में एक टीम काम करती है.

– ब्रैंडेड ज्वैलरी की गारंटी क्वालिटी के साथ दी जाती है.

– इस की गुणवत्ता में पारदर्शिता होती है, जिस से आप को ठगे जाने का डर नहीं होता.

– ब्रैंडेड ज्वैलरी लाइफटाइम रिश्ता ग्राहक से रखती है. इस के अंतर्गत अगर गहने में कुछ खराबी हो तो आप उसे ठीक करा सकती हैं.

– इस की ‘वियर ऐंड टीयर’ की गारंटी होती है.

– इस की गारंटी भी ग्लोबली होती है, जिस से आप इसे कभी भी कहीं भी इस में आई समस्या का समाधान पा सकती हैं.

– आजकल लोग लौकर में ज्वैलरी रखना पसंद नहीं करते, इसलिए केवल ब्रैंडेड ज्वैलरी ही नए फैशन और ट्रैंड को लगातार अपडेट करती है, जो करीब 10 या 20 की संख्या में डिजाइन होती है.

– इस के डिजाइन में वैराइटी इस तरह से तैयार की जाती है कि आप अपने हिसाब से खरीद कर उसे किसी भी तरह के परिधान के साथ मैच कर पहन सकती हैं.

– ब्रैंडेड ज्वैलरी खरीदते समय सर्टिफिकेट अवश्य लें जिस में कैरेट, गोल्ड की गारंटी आदि सभी लिखे होते हैं. इस के अलावा ‘बाईबैक पौलिसी’ को हमेशा क्लियर करें, ताकि आप को बाद में समस्या न हो.

– ब्रैंडेड ज्वैलरी के लाभ के बारे में आगे वरुणा बताती हैं कि आजकल गोल्ड का भाव कम हो रहा है पर डायमंड और सोने के साथ बने हुए गहने कभी भी पुराने और आउटडेटेड नहीं दिखते. डायमंड का भाव हमेशा बढ़ता है. ऐसे में आजकल ग्राहक 18 कैरेट और 14 कैरेट सोने से बने हुए हीरे के गहने अधिक खरीदते हैं. इस का मार्केट वैल्यू हमेशा बना रहता है. इस की चमक भी कम नहीं होती.

स्मार्ट ऐप्लिकेशंस बनाएं फैशनेबल व हैल्दी

महिलाओं में सौंदर्य व फिटनैस के प्रति बढ़ती जागरूकता उन्हें हर उम्र में युवा व फिट दिखने के लिए प्रेरित कर रही है. उन की इस चाहत को पूरा करने में मददगार हो रहे हैं स्मार्टफोन. जिस स्मार्टफोन से आप अपनों को मैसेजिंग, कालिंग, औडियो व वीडियो भेजते हैं, उसी स्मार्टफोन में उपलब्ध फैशन व फिटनैस ऐप्लिकेशन को डाउनलोड कर के आप लेटैस्ट ब्यूटी टिप्स व फैशन स्टाइल के बारे में जान कर अपनेआप को अपडेट रख सकती हैं. इन ऐप्लिकेशंस को डाउनलोड करने के लिए आप के फोन में इंटरनैट कार्ड होना चाहिए. एक बार डाउनलोड करने के बाद जब चाहें इन ऐप्लिकेशंस की सहायता से खुद को आकर्षक व फिट बना सकती हैं.

आइए, जानें कुछ पौपुलर ब्यूटी व फिटनैस ऐप्लिकेशंस के बारे में:

ब्यूटीलिश मेकअप ब्यूटी टिप्स

प्लेस्टोर से डाउनलोड कर के इस ऐप्लिकेशन द्वारा आप लेटैस्ट ब्यूटी लुक्स और ट्रैंड्स की जानकारी पा सकती हैं. साथ ही आप इस ऐप्लिकेशन से अनोखे व आकर्षक ब्यूटी प्रोडक्ट्स भी खरीद सकती हैं, जिस में आकर्षक हेयरस्टाइल, मेकअप लुक्स, नेल डिजाइन, ब्राइडल लुक्स और लेटैस्ट ब्यूटी ट्रैंड्स को आकर्षक पिक्चर्स द्वारा दिखाया गया है. इस ऐप्लिकेशन में मौजूद ट्यूटोरियल वीडियो द्वारा आप लेटैस्ट बे्रड स्टाइल की जानकारी प्राप्त कर सकती हैं और हर मौके पर खुद को खूबसूरत और आकर्षक दिखा सकती हैं. इस ऐप्लिकेशन में आप ऐक्सपर्ट्स द्वारा मेकअप, स्किन केयर व हेयरस्टाइल पर टिप्स व जानकारी भी ले सकती हैं.

फैशन कैलाइडोस्कोप

यह ऐप्लिकेशन पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इस ऐप्लिकेशन में दुनियाभर के अलगअलग शहरों में पहनी जाने वाली फैशनेबल ड्रैसेज और वहां के फैशन ट्रैंड की जानकारी मौजूद होती है. इस ऐप्लिकेशन में आप अपना निजी प्रोफाइल भी बना सकती हैं और फैशन जगत से जुड़ी अनोखी जानकारी को दोस्तों के साथ शेयर कर सकती हैं.

नेल आर्टिस्ट डिजाइन

अगर आप भी अपने नाखूनों को खूबसूरत दिखाना चाहती हैं, तो इस ऐप्लिकेशन की मदद से आप नाखूनों को अलगअलग आकार देने, खूबसूरती से नेलपौलिश लगाने और नाखूनों व हाथों की देखभाल की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकती हैं. इस में आप को नेलआर्ट के अनोखे डिजाइन देखने को मिलेंगे, जिन्हें देख कर आप भी अपनी नाखूनों को खूबसूरत बना सकती हैं. 31 एमबी की इस ऐप्लिकेशन से आप महंगे सैलून में नेलआर्ट पर खर्चे जाने वाले पैसे की बचत कर सकती हैं.

कैलोरी काउंटर

इस ऐप्लिकेशन में 11 लाख प्रकार के भोजन की जानकारी है. यह ऐप्लिकेशन आप को शौपिंग के समय खाद्य सामग्री के बारे में सूचना देने के लिए बारकोड स्कैनर उपलब्ध करवाता है, ताकि आप उसी खाद्य सामग्री की शौपिंग करें जो आप के हिसाब से उपयुक्त कैलोरी रखता हो. यह ऐप्लिकेशन आप की डाइट और कैलोरी पर नजर रखता है और आप को फिट रखने के टारगेट को पूरा करने में मदद करता है.

मूव्ज

यह ऐप्लिकेशन आप को वाक करने के लिए प्रेरित करता है. इस ऐप्लिकेशन का डिस्प्ले काफी रंगीन व आकर्षक है. यह आप की रोज की वाकिंग का हिसाबकिताब रखता है. इस की मदद से आप धीरेधीरे अपनी वाकिंग की समय सीमा बढ़ा सकती हैं. इस के काउंटिंग सिस्टम के जरीए आप मूल्यांकन कर सकती हैं कि आप को और कितना बेहतर करने की जरूरत है. ग्राफिक्स के जरीए यह ऐप्लिकेशन आप को अपने आसपास के टहलने के लिए बेहतरीन स्थानों की भी जानकारी देता है.

टैंडस्टौप फैशन ट्रैंड ट्रैकर

इस एप्प की मदद से आप फैशन जगत की ताजा जानकारी पा सकती हैं. फैशन वीक में विभिन्न फैशन शोज में प्रस्तुत डिजाइनों की जानकारी भी इस ऐप्लिकेशन में मौजूद होती है. इस ऐप्लिकेशन के जरीए आप अपने पर्सनल फैशनेबल फोटो भी शेयर कर सकते हैं. इस ऐप्लिकेशन में लेटैस्ट फोटो फैशन शो से संबंधित तकरीबन 80 वीडियो क्लिप व 3,500 फोटो का भी बैकअप रहता है. यानी आप रह सकती हैं पूरी तरह फैशनजगत में अपडेट.

लो फैट रैसिपी

यह आप के लिए एक अच्छी कुक बुक साबित हो सकती है. इस ऐप्लिकेशन में लो फैट रैसिपी की जानकारी होने के साथसाथ उस रैसिपी में मौजूद पोषक तत्त्वों की जानकारी मिलती है. आप चाहें तो इस एप्प में मौजूद रैसिपी को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कर सकती हैं. तो फिर तैयार हैं न आप मनपसंद रैसिपी का स्वाद चखने के लिए, वह भी लो फैट वाली जो आप को हैल्दी रखने में मदद करेगी.

धार्मिक त्योहार या पशु हत्या

जल्लीकट्टू भारत के सब से बेकार त्योहारों में से एक है. वह इसलिए कि जिन पशुओं से पूरा साल काम लेने के बदले हमें उन का सम्मान करना चाहिए, बजाय इस के उन्हें इस अवसर पर प्रताडि़त किया जाता है. यह अमानवीय जश्न मकर संक्रांति या मौनसून की घोषणा करते समय मनाया जाता है. गाय, भैंस, बैल, सांड़ आदि पशुओं का सचमुच हमें सम्मान करना चाहिए, क्योंकि ये पशु ही हमारा बोझ ढोते हैं, फसलें उगाने में हमारे सहायक होते हैं. फिर इन की ही पीठ पर फसलों को लाद कर बेचने के लिए ले जाया जाता है.

तमिलनाडु का त्योहार जल्लीकट्टू बर्बरता की एक मिसाल बन गया था, जिस में सांड़ों को अंधेरे कमरों में बंद कर के बारबार पीटा जाता था. इतना ही नहीं, इन्हें जबरन शराब पिलाई जाती थी और गुदा में मिर्चें भी भरी जाती थीं. यह सिलसिला तब तक चलता था जब तक कि सांड़ दर्द की वजह से पागल न हो जाएं. इस के बाद इन्हें जवान लोगों की भीड़ में छोड़ दिया जाता था. लोग सांड़ों को उकसाते थे. उन की पीठ पर चढ़ कर उन के कान खींचते थे. इस जश्न में हर साल कई सांड़ और आदमी मारे जाते थे.

यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने इस जश्न पर पूरी तरह रोक लगा दी. कर्नाटक में एक बार मकर संक्रांति का त्योहार कुछ इस तरह मनाया गया कि लोमडि़यों को पकड़ कर पिंजरों में बंद कर के सड़कों पर उन की परेड निकालने के बाद उन्हें मार दिया गया. मेरी टीम ने इस काम को लगभग 20 साल पहले बंद करवाया था.

बर्बरता के त्योहार और भी

नागपंचमी: यह भी एक बीभत्स त्योहार है. धार्मिक गं्रथों के अनुसार सावन के महीने में नागपंचमी मनाई जाती है. इस त्योहार में दिन में केवल एक बार भोजन करने का नियम है और इस दिन महिलाएं रंगोली में सांपों के चित्र भी बनाती हैं. इतना ही नहीं सोने, चांदी, लकड़ी और मिट्टी के सांप भी बनाए जाते हैं और फिर उन से मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना की जाती है.

फसलों से जुड़े इस उत्सव में तो सांपों का सम्मान होना चाहिए, क्योंकि वे खेतों में चूहों का शिकार कर के फसलों की सुरक्षा करते हैं. पर ऐसा नहीं होता है. इस उत्सव के कई सप्ताह पहले सैकड़ों सांपों को पकड़ कर टोकरियों में रखा जाता है. बाद में उन्हें टोकरियों से रस्सी की तरह खींचा जाता है. जहर निकालते समय हथौड़े के वार से उन के जबड़े तक टूट जाते हैं. इस के बाद उत्सव वाले दिन उन्हें महिलाओं के सामने लाते हैं और महिलाएं उन सापों को दूध पिलाती हैं.

इस दिन शाम होने तक हजारों सांप दम तोड़ देते हैं, क्योंकि दूध से उन्हें ऐलर्जी होती है. मरे हुए सांपों की त्वचा बैग और जूते आदि बनाने वालों को बेच दी जाती है.

कोरापुट का चैत्र पर्व: चैत्र पर्व कोरापुट के आदिवासियों का प्रमुख त्योहार है. यह पर्व उड़ीसा के मयूरभंज, सुंदरगढ़ और क्योंझर के साथसाथ झारखंड के सिंघभूम में भी मनाया जाता है. पर्व के दौरान पूरा महीना आदिवासी नाचगाना करते हैं और पशुओं की बलि देते हैं. आदिवासी नर जंगल में, जो भी जानवर उन के सामने आता है, उस का वे शिकार करते हैं. यहां तक कि सियार का भी. बलि के बाद जानवरों का मांस पूरे गांव में बांट दिया जाता है.

कोरापुट की बोंडा जनजाति के लोग पहाड़ों पर रहते हैं. ये 10 दिनों तक चलने वाला त्योहार सूमेगेलिरक मनाते हैं. इस दौरान इन के पुजारी पशुओं और पक्षियों की बलि देते हैं और अपने देवीदेवताओं को शराब चढ़ाते हैं. इस के बाद जवान आदिवासी लड़के बारीबारी से एकदूसरे को पेड़ की शाखाओं से पीटते हैं.

केडू उत्सव: कोरापुट, फूलबनी और गंजम की कोंध जनजाति का केडू उत्सव इंसानी बलि के साथ शुरू हुआ था. अंगरेज हुकूमत ने इस प्रथा पर पाबंदी लगा दी थी. इसलिए अब ये लोग भैंस की बलि चढ़ाते हैं और वह भी बेहद बीभत्स तरीके से. पहले ये लोग भैंस को पेड़ से बांध देते हैं. फिर पुरुष और महिलाएं शराब पी कर भैंस के चारों तरफ डांस करते हुए 1-1 टुकड़ा भैंस का मांस काट कर निकालते रहते हैं. इस के बाद ये लोग मांस के टुकड़े और खून को ले जा कर उस खेत में गाड़ देते हैं जहां हलदी उगाई जाती है.

उड़ीसा की दूसरी आदिवासी जनजातियां जैसे ओराओं, हो, किसान और कोल माघ पर्व मनाती हैं जोकि फसलों से जुड़ा पर्व है. इस में काले पक्षी की बलि देने का और महुआ की शराब देवता को चढ़ाने का रिवाज है.

बिशू सेंद्र पर्व (शिकार पर्व): झारखंड में मई महीने में सैकड़ों आदिवासी इस पर्व को मनाने के लिए जंगलों में घुस जाते हैं. हथियार ले कर सिंघभूम और सरायकेला खारस्वान के आदिवासियों के साथसाथ पश्चिम बंगाल और उड़ीसा राज्य की सीमाओं पर बसे आदिवासी भी झुंड बना कर जंगलों में घूमते हैं और एक ही दिन में करीब 20 हजार जंगली पशुपक्षियों को मार गिराते हैं. पर्व के तौर पर तो यह त्योहार कई दशक पहले ही खत्म हो चुका है. मगर अब स्मगलर और दलाल यहां के आदिवासियों का इस्तेमाल जंगली जानवरों को मार कर उन का मांस लाने के लिए करते हैं ताकि वे इसे अच्छे दाम पर बेच सकें.

सूलिया यात्रा: बिशू सेंद्र की तरह ही सूलिया यात्रा नामक शिकार का पर्व बोलंगीर जिले के गांवों में मनाया जाता है. इस पर्व में जंगली मुरगों, बकरियों और भैंसों को बड़ी संख्या में मारा जाता है. आदिवासी जानवरों की बलि देने से पहले उन को साफ कर के हलदी से उन का अभिषेक करते हैं. इस के बाद हजारों लोगों की मौजूदगी में इन की बलि दी जाती है. इस बीच एक महिला को सूलिया देवी का अवतार यानी ‘देहुरी’ मान लिया जाता है. यह महिला ढोलनगाड़ों और मंत्रों के स्वर के बीच बलि चढ़ाए गए जानवर का खून पीती है.

खार्ची पर्व : त्रिपुरा में मनाया जाने वाले इस पर्व पर धरती की पूजा की जाती है. लेकिन इस में भी सैकड़ों भैंसें, बकरियां और कबूतर मौत के घाट उतार दिए जाते हैं. इस पर्व को मनाने की वजह सिर्फ इतनी है कि कुछ वर्ष पहले त्रिपुरा के राजा त्रिलोचन ने त्रिपुरा में 14 देवताओं की स्थापना की थी. एक बार एक जंगली भैंस इन देवताओं के पीछे पड़ गई थी. त्रिलोचन की मां ने उस भैंस को मारने में त्रिलोचन की सहायता की थी.

दशहरा: अक्तूबर माह में मनाया जाने वाला सालाना फसल का त्योहार दशहरा सभी पर्वों में सब से ज्यादा खूनी पर्व है. कोलकाता के कालीघाट में ढोलनगाड़ों के शोर के बीच इस दिन हजारों भेडें़ मौत के घाट उतार दी जाती हैं. शोकग्रस्त महात्मा गांधी इसे कभी न भूलने वाली मौत की नदी बुलाते थे.

दुर्गा पूजा और दशहरा पर्व के नाम पर देश के कई हिस्सों में पशुपक्षियों को मारा जाता है. रिवाजों के चलते हजारों मुरगियां, बकरियां और भेड़ें बलि चढ़ा दी जाती हैं और इन का मांस प्रसाद के तौर पर बांट दिया जाता है.

गुवाहाटी में कामाख्या देवी मंदिर में हजारों की संख्या में नर पशु बलि के नाम पर मौत के घाट उतार दिए जाते हैं.

उड़ीसा के सिरलो में महाअष्टमी के दिन दुर्गा मंदिर में बकरियां और मेमने बलि चढ़ा दिए जाते हैं. माघी पूर्णिमा के बाद पड़ने वाले मंगलवार को महाराष्ट्र के छिवरी में एक मेला लगता है. इस दिन करीब 7 हजार पशुओं की लक्ष्मी के सामने बलि दे दी जाती है. इसी दिन एक और मेले का आयोजन किया जाता है जिस का नाम है- कयार यात्रा. इस मेले में आधी रात के बाद भैंसों की बलि दी जाती है. छिपे मेमने को ढूंढ़ कर पीटपीट कर मार डालना इस मेले का मुख्य आकर्षण है. मेमने को ढूंढ़ निकालने वाला इसे मारने के बाद इस की आंतों को गले में डाल कर घूमता है.

और भी हैं खूनी पर्व: आंध्र प्रदेश के दुरजपल्ली गांव में हर साल दुरजपल्ली जत्र नामक पर्व मनाया जाता है, जिस में लिंगनामंटालु स्वामी मंदिर में जानवरों की हत्या की जाती है.

कर्नाटक राज्य के यादगीर जिले के माइलापुर गांव के सालाना मेले में पूजा करने आए लोग माइलारेश्वर देवता की पालकी पर फूलमालाओं व फलों के बजाय जिंदा मेमनों को फेंकते हैं.

बानेरघट्टा नैशनल पार्क के बाहर औरु हब्बा पर्व मनाने के लिए आदिवासियों के 2 ग्रुप हक्कीपिक्की और इरुलिगा भैंसों और बकरियों की बलि देते हैं.

अरुणाचल प्रदेश के अपतनिस लोग मौनसून पर्व म्योको मनाते हैं. 10 दिन चलने वाले इस त्योहार के आखिरी दिन हिरन की बलि चढ़ाते हैं.

मेघालय के नौंगक्रेम पर्व में देवताओं का धन्यवाद करने के लिए बकरे की बलि देने का रिवाज है.

अक्तूबर और नवंबर माह के दौरान दशहरा और काली पूजा पर्व के चलते और जनवरी से अप्रैल तक फसलों से जुड़े पर्वों के चलते, पशुपक्षियों की बलि देने का सिलसिला पूरा साल चलता रहता है. इस के अलावा अलगअलग तरह के जत्रा तो हैं ही पूरा साल.

बलियों की बर्बरता में आंध्र प्रदेश सब से आगे है. यहां सूअर के बच्चे को उलटा कर जमीन में गड़े भाले से बींधा जाता है. इस की चीख जितनी ज्यादा ऊंची होती है, उसे गांव और फसल के लिए उतना ही अच्छा माना जाता है.

आंध्र प्रदेश के एक मंदिर की दीवारें 6 फुट ऊंची हैं. यहां जानवरों को तब तक मारा जाता है जब तक कि उन का खून दीवारों के अंतिम हिस्से को न छू जाए. वारंगल के दुरजपल्ली गांव के एक पर्व में पुजारी बकरी के बच्चे को दांत से गरदन पर काट कर उसे मारता है.

आंध्र प्रदेश के ही एक और त्योहार में लोग बकरी के बच्चे को ले कर ऊंची चोटी पर चढ़ जाते हैं. वहां ये लोग उस की गरदन पर दांत से काट कर उस की जीभ बाहर खींच लेते हैं और बच्चे को तड़पनेमरने के लिए चोटी से नीचे एक बड़े तालाब में फेंक देते हैं. यहां पहले से ही दूसरे बच्चे हड्डियां टूटी होने की वजह से तड़प रहे होते हैं.

आंध्र के जिन गांवों में काली या पार्वती की अवतार अंकम्मा की पूजा होती है वहां भी बलि चढ़ाना अनिवार्य है.

अंकम्मा के पर्व पर लोग इस तरह डांस करते हैं जैसे उन पर शैतान का साया हो. इस दौरान पुजारी औरतों की वेशभूषा में आ कर भेड़ के गले की नस को दांत से काट कर उस का खून पीता है. इस के बाद वह खूंटों से बंधे छटपटाते जानवरों के बीच जुलूस निकाल कर मंदिर तक पहुंचता है. छटपटाते जानवरों को हारे हुए दुश्मन की तरह देखा जाता है.

हैदराबाद में बोनालू पर्व देवी गंगम्मा और उस के भाई पोथुलाराजू के लिए मनाया जाता है. बोनालू शब्द भोजनालू से बना है और यह पर्व जूनजुलाई में मनाया जाता है. लेकिन भोजन के रूप में यहां मुरगों और बकरियों को मार कर खिलाने का रिवाज है.

धर्म निश्चित रूप से खून की लालसा पूरी करने और हिंसा का बहाना मात्र हैं. उत्तराखंड बलियों पर रोक लगाने वाला पहला राज्य है. यह काम निशंक की भारतीय जनता पार्टी वाली सरकार और हाई कोर्ट ने मिल कर किया है. पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाओं, खासतौर पर जानवरों से प्यार करने वाले लोगों ने इस चमत्कारिक काम को अंजाम देने के लिए कड़ी मेहनत की है, वहीं हिमाचल प्रदेश में आज भी जानवरों की हत्या का सिलसिला जारी है.

नई सरकार हत्याओं के इस सिलसिले को रोक सकती है. अगर केमल अतातुर्क तुर्की की संस्कृति को आधुनिकीकरण के बाद भी संजो सकते हैं तो भला हम क्यों नहीं? अब कोई भी हिंसा को और बढ़ावा नहीं दे सकता, क्योंकि ऐसा करना हम सभी के लिए खतरनाक है. इस बारे में आप भी उसी तरह शोध कर सकते हैं जिस तरह हम ने किया. पर्व के नाम पर जानवरों की हत्या करने वालों में से कई लोग महिलाओं और बच्चों पर भी हिंसा करने में लिप्त पाए गए.

हर सरकार शिक्षकों के आगे भिगी बिल्ली बनी रहती है

नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रास बिहारी प्रसाद सिंह का मानना है कि ऐजुकेशन सिस्टम को सुधारने के लिए सब से पहले शिक्षकों को सुधारना जरूरी है. शिक्षकों पर सख्ती और निगरानी हो और शिक्षकों की बहाली के मामले में क्वालिटी से कोई समझौता न किया जाए. शिक्षकों की नकेल कसने के बाद ही शिक्षा में सुधार की बात की जानी चाहिए. साथ ही वे यह भी कहते हैं कि शिक्षा में रिजर्वेशन की समयसमय पर समीक्षा होनी जरूरी है. इस का फायदा लेने वालों ने ऐसा जाल बुन रखा है कि कई जरूरतमंदों को इस का फायदा नहीं मिल पा रहा है. पेश हैं उन से हुई बातचीत के मुख्य अंश:

शिक्षा में सुधार की बात तो हर कोई करता है. इस के बाद भी इस में लगातार गिरावट ही आ रही है. आप की राय में सरकारी शिक्षा में सुधार कैसे मुमकिन है?

देखिए इस के लिए सब से जरूरी है शिक्षकों की नकेल कसना और अच्छे शिक्षकों को बहाल करना. हर सरकार शिक्षकों के आगे भीगी बिल्ली बनी रहती है. हर सरकार शिक्षकों के आंदोलन और भारी विरोध होने के खौफ से इस काम को नामुमकिन समझ कर टालती रही है. लेकिन सरकार चाहे तो यह काम आसानी से कर सकती है. जब तक पढ़ाने वाले ही अच्छे और सीरियस नहीं होंगे तो पढ़ने वाले कैसे सीरियस होंगे? लेकिन सवाल वही है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?

सरकार शिक्षा पर करोड़ों खर्च करती है, इस के बाद भी स्कूलों और कालेजों की हालत बदतर क्यों बनी रहती है?

स्कूलों और कालेजों को अपने संसाधन बढ़ाने पर भी सोचना होगा. उन्हें हर काम के लिए सरकार के आगे हाथ फैलाने केरवैये को छोड़ना होगा. अब देखिए कि पटना विश्वविद्यालय के सब से बेहतरीन साइंस कालेज की फीस क्13 हर महीना है. यह 1965 में तय की गई थी. होस्टल का किराया क्व100 हर माह लिया जाता है. यह भी 1965 में ही फिक्स किया गया था. इन का रिवीजन नहीं हो सका है, इस से कालेज अपना खर्च भी नहीं निकाल पाता है. 2007 में सरकार ने रिवीजन कमेटी बनाई. कमेटी ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी, पर छात्रों ने इस के विरोध में हंगामा और उत्पात मचाना शुरू कर दिया तो फीस बढ़ाने के प्रपोजल पर कुछ नहीं हुआ.

पढ़ाई में आरक्षण का मामला काफी सैंसिटिव माना जाता है. कोई भी इस बारे में बोलने से बचता है. आप की क्या राय है इस में? क्या इस से शिक्षा और पिछड़े स्टूडैंट्स का भला हुआ है? इस में क्या किसी बदलाव की जरूरत महसूस होती है?

इस में 2 राय नहीं कि आरक्षण से वंचित तबकों को काफी फायदा मिला है. अभी भी इस का फायदा लोगों को मिल रहा है पर इस की रफ्तार धीमी पड़ गई है, क्योंकि इस का फायदा उठाने वालों ने ऐसा तानाबाना बुन रखा है कि एक बार इस का फायदा लेने वाले ही बारबार इस का फायदा उठा रहे हैं. इस के बाद भी वंचित तबके के कई युवक इस का फायदा ले कर अच्छी पढ़ाई कर रहे हैं.

क्या स्कूल में बच्चों को स्कूल ड्रैस, भोजन, साइकिल आदि मुफ्त में बांटने से पढ़ाई में सुधार हो रहा है?

फिलहाल तो इस का कोई खास फायदा नहीं दिख रहा है. पर सब से बड़ी बात यह है कि बच्चों को स्कूलों में मिड डे मील, साइकिल, स्कूल ड्रैस आदि बांटने से उन के स्कूल जाने की लालसा बढ़ी है. स्कूलों की हाजिरी में जबरदस्त इजाफा हुआ है. इस का फायदा 15-20 सालों के बाद दिखाई देगा.

आप को लगता है कि हमारे देश के ऐजुकेशन सिस्टम को रोजगार से जोड़ने की जरूरत है?

बिलकुल है. हमारे देश का ऐजुकेशन सिस्टम तो बच्चों का भविष्य चौपट कर रहा है. स्कूलों और कालेजों को गारंटी लेनी होगी कि उन के संस्थान से पढ़ कर निकले स्टूडैंट्स बेहतरीन होंगे.

हैरत की बात है कि सरकारी स्कूल और कालेजों के शिक्षकों को प्राइवेट स्कूलकालेजों से ज्यादा वेतन और सुविधाएं दी जाती हैं. इस के बाद भी वे पढ़ाने में लापरवाही बरतते हैं. जहां तक ऐजुकेशन सिस्टम में सुधार की बात है, तो इस को ले कर ढेरों आयोग बने पर सभी की सिफारिशें रद्दी की टोकरी में फेंक दी गईं.

प्राइवेट कोचिंग संस्थान क्या शिक्षा की तरक्की में योगदान दे रहे हैं या यह कोरा कारोबार भर है?

80 और 90 के दशक तक प्राइवेट कोचिंग संस्थान पैसा कमाने का जरिया भर नहीं थे. कालेज में जिन बच्चों की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती थी, उन के लिए कोचिंग संस्थान वरदान की तरह थे. आज कोचिंग संस्थानों का मकसद बदल गया है. आज जो लोग खुद आईएएस नहीं बन पाते हैं, जो लोग इंजीनियरिंग और मैडिकल में ऐंट्रैंस टैस्ट तक पास नहीं कर पाते हैं, वैसे लोग ही कोचिंग इंस्टिट्यूट चला रहे हैं और बच्चों को आईएएस, इंजीनियर और डाक्टर बनने का सपना दिखा रहे हैं. आज ज्यादातर कोचिंग संस्थानों पर ऐसे ही नाकामयाब लोगों का कब्जा है.

डिस्टैंस ऐजुकेशन से शिक्षा और युवाओं को क्या और कितना फायदा हो पाता है?

डिस्टैंस ऐजुकेशन उच्च शिक्षा का लोकप्रिय जरीया है. नौकरी पाने के साथ नौकरी में तरक्की पाने में यह काफी मददगार है. इस से 40 फीसदी नौकरीपेशा लोग ही जुड़े हुए हैं. ऐसे लोग नियमित क्लास नहीं कर पाते हैं. उन्हें पढ़ने का पूरा मैटेरियल मुहैया कराया जाता है और हरेक पेपर के लिए उन्हें 8-10 दिनों की काउंसिलिंग क्लासेज अटैंड करनी पड़ती हैं.

व्यक्तिगत समस्याएं

मैं 2 बच्चों की मां हूं. मैं अपनी ही कमजोरी के कारण अपराधबोध महसूस करती हूं. कुछ वर्ष पूर्व हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. संयुक्त परिवार में रहने के कारण मेरे जेठ ने हमारी काफी मदद की. मैं उन के एहसान तले दब गई थी. एक दिन उन्होंने मुझे अपने इन्हीं एहसानों का वास्ता दे कर संबंध बनाने को कहा तो मैं उन के आगे झुक गई. यह सिलसिला आज तक जारी है. मेरी सास को इस की भनक लग गई है. उन्होंने मुझे समझाया कि यह गलत है. मैं तो समझ गई हूं और यह सब बंद करना चाहती हूं पर जेठ नहीं समझते. वे जान से मार देने की धमकी देते हैं. कहते हैं कि यदि मैं उन की बात नहीं मानूंगी तो वे मुझे सब में बदनाम कर देंगे. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं?

आप को उसी समय (जब आप के जेठ ने यह मांग की) जेठ की नाजायज मांग को अस्वीकार कर देना चाहिए था. पर आप ने उन के आगे घुटने टेक दिए, जिस से उन की हिम्मत बढ़ गई और अब वे आप को ब्लैकमेल कर रहे हैं कि वे आप को जान से मार देंगे वगैरहवगैरह. वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे. रही आप को बदनाम करने की बात, तो यदि वे अवैध संबंधों की बात सार्वजनिक करेंगे तो उन की और पूरे परिवार की बदनामी होगी इसलिए वे किसी के सामने मुंह नहीं खोलेंगे. आप उन्हें कठोरता से मना कर दें, क्योंकि इस तरह का व्यभिचार गलत है.

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. हम दोनों विवाह करना चाहते हैं पर हमारी जाति भिन्न होने के कारण घर वाले इस रिश्ते के खिलाफ हैं.हम समझ नहीं पा रहे कि हम अपने रिश्ते को आगे बढ़ाएं या नहीं. कृपया कोई सुझाव दें?

यदि आप दोनों इस रिश्ते को ले कर गंभीर हैं और आप को लगता है कि आप दोनों एकदूसरे के लिए सही जीवनसाथी साबित होंगे तो आप दोनों को ही अपनेअपने घर वालों को राजी करने का प्रयास करना चाहिए. आप उन्हें समझा सकते हैं कि विवाह में अब जाति माने नहीं रखती. अब अंतर्जातीय विवाह आम हो रहे हैं और सफल भी रहते हैं यदि दोनों के परिवार वाले फिर भी राजी न हों तो अपने किसी सगेसंबंधी या परिवार के मित्र की भी मदद ले सकते हैं, जो दोनों परिवारों को हकीकत से रूबरू कराने में आप की मदद कर सकते हों.

मुझे अपने पति के साथ संबंध बनाना अच्छा नहीं लगता. फिर भी जब भी वे सहवास करते हैं तो मैं साथ देने की भरपूर कोशिश करती हूं. मेरी शादी में कतई दिलचस्पी नहीं है पर बेटी के पैदा होने के बाद साथ रहना पड़ रहा है. बताएं क्या करूं?

आप ने पूरा खुलासा नहीं किया कि आप की उदासीनता की वजह क्या है. घर का वातावरण आप के मनमाफिक नहीं है या फिर पति आप को प्यार नहीं करते. सैक्स में रुचि कमज्यादा होना आम बात है पर उस में आप की सोच सकारात्मक है कि इच्छा न होने पर भी आप पति को सहयोग देती हैं. आप को जीवन को भी इसी तरह सकारात्मक नजरिए से देखना चाहिए. कोई समस्या है तो पति के साथ मिलबैठ कर उस का समाधान निकालना चाहिए ताकि जीवन खुशहाल हो सके. आप के साथ अब आप की बेटी की खुशियां भी जुड़ी हैं. उसे भी आप तभी खुशियां दे सकेंगी जब स्वयं खुश रहेंगी. इस के लिए आप को स्वयं ही प्रत्यन करना होगा.

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. हाल ही में मैं ने एक परीक्षा पास की है. अब अगले महीने मेरी मौखिक परीक्षा होनी है. मैं डरी हुई हूं.कारण यह है कि बातचीत के दौरान अकसर किसी शब्द को ले कर अटक जाती हूं. मैं यों तो हकलाती नहीं पर अजनबियों के सामने धाराप्रवाह बोल नहीं पाती. मैं क्या करूं?

जैसा कि आप ने बताया कि आप हकलाती नहीं पर अजनबियों के सामने बोलने में असहज महसूस करती हैं, उस से लगता है कि असल में एक डर है आप के अंदर, जिस से आप को बाहर आना पड़ेगा. खुद में आत्मविश्वास लाएं और अपनी बात विनम्रतापूर्वक व निडर हो कर कहें. चेहरे पर मुसकराहट और आत्मविश्वास के साथ परीक्षा देंगी तो अवश्य ही सामने वाला प्रभावित होगा. रही बात शब्दों पर अटकने की, तो जिस किसी शब्द को बोलने में असुविधा हो उसे बारबार बोल कर अभ्यास कर लें.

मैं 27 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से 4 वर्षों से प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है. पर शादी की बात आने पर कहता है कि तुम मेरे घर में ऐडजस्ट नहीं कर पाओगी इसलिए शादी मुश्किल है. दरअसल, वह गांव से है और मैं शहर में रहती हूं. कृपया बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

आप का प्रेमी आप से शादी करने के लिए पहले ही अपनी असमर्थता जाहिर कर चुका है. जबरदस्ती तो आप उस से शादी नहीं कर सकतीं. अत: इस विवाह का विचार अपने मन से निकाल दें. आप की उम्र हो चुकी है, इसलिए घर वालों की इच्छा से कहीं और विवाह कर लें. ज्यादा विलंब न करें वरना विवाह होना मुश्किल हो जाएगा.

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी हूं. पर अब डर रही हूं कि विवाह के बाद यदि यह बात मेरे पति पर जाहिर हो गई तो क्या होगा?

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बनाना पूरी तरह से अनैतिक तो है ही साथ ही इस बात का भी डर बराबर रहता है कि कहीं पति पर यह बात जाहिर न हो जाए, इसलिए अवैध संबंधों से परहेज करने की सलाह दी जाती है. आप जो गलती कर चुकी हैं उसे सुधारा तो नहीं जा सकता पर उस पर पूर्णविराम जरूर लगा सकती हैं. विवाह बाद के लिए यही सलाह दे सकते हैं कि आप इन संबंधों की बाबत अपने पति के सम्मुख कतई मुंह न खोलें.

पैशन से आगे बढ़ता है उद्यमी: आंचल खुराना

‘‘एक उद्यमी (ऐंटरप्रैन्योर) अपने पैशन द्वारा आगे बढ़ता है. यही पैशन उसे कठिन परिस्थितियों में भी मजबूत और मकसद के प्रति एकनिष्ठ बनाए रखने में मदद करता है,’’ यह कहना है स्काईडाइविंग के क्षेत्र में अग्रणी, काकनी ऐंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की संस्थापिका डा. आंचल खुराना का. डा. आंचल ने महज 29 साल की उम्र में पुरुष वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में न सिर्फ अपना बिजनैस शुरू किया वरन उसे बखूबी संभाल भी रही हैं.

आंचल खुराना एक जौइंट पंजाबी फैमिली से तअल्लुक रखती हैं. इन की बहुत ही वर्सेटाइल परवरिश रही है. मां हाउसवाइफ हैं, पापा बिजनैसमैन और भाई वकील हैं.

जैसा कि अमूमन पंजाबी परिवारों में हुआ करता है, इन के यहां भी लड़कियों की शादी जल्दी कर देने की परंपरा थी. इन के पापा चाहते थे कि ग्रैजुएशन करते ही इन की शादी कर दी जाए. पर ये तो कुछ और ही करना चाहती थीं. इन के सपनों को इन की मम्मी ने पंख दे दिए. उन की प्रेरणा से ही ये इस मुकाम तक पहुंच सकी हैं.

आंचल बताती हैं कि 2009 में बीडीएस करने के बाद मैं ने काकनी ऐंटरप्राइजेज की नींव डाली. काकनी का अर्थ होता है, अनुभव से प्राप्त ज्ञान या बुद्धिमान नारी. यह कंपनी फिलहाल स्काईडाइविंग की इंडिया में लार्जेस्ट प्राइवेट कंपनी है.

काकनी की स्थापना में मेरे गुरु कमांडर संजय कौल का पूरापूरा सहयोग रहा. सच कहूं तो उन के सपोर्ट की वजह से ही मैं ऐसा कर सकी हूं. कहते हैं न कि यदि कहीं आग है तो उसे हवा देनी पड़ती है. संजय कौल ने मेरे जोश और जज्बे को पहचाना और उसे सही दिशा दी.

जब तक आप किसी सोच को कार्यरूप नहीं देते सफलता नहीं मिलती. संजय कौल एक सोच रखते हैं और मैं उसे एक आकार देती हूं.

स्काईडाइविंग की तरफ रुझान

दरअसल, पहले भारत में स्काईडाइविंग बिलकुल भी नहीं होती थी. न ही कोई कंपनी इस दिशा में काम कर रही थी. विदेशों में जा कर लोग इस का अनुभव करते थे या फिर केवल फौज में इस की टे्रनिंग दी जाती थी. वहां से सीखे हुए लोग और रिटायर्ड आर्मी औफिसर वगैरह इस का कैंप लगाते थे. ऐसे ही एक कैंप में जब मैं ने हिस्सा लिया तो लगा कि जिंदगी तो यही है. जब आप हवा में हों और पैराशूट भी न खुला हो तो लगता है जैसे आप उड़ रहे हैं. यह अनुभव इतना खूबसूरत था कि मैं ने इस दिशा में काम करने का फैसला कर लिया.

स्काईडाइविंग क्या है

स्काईडाइविंग का सीधा अर्थ है, अपने लिंब्स का प्रयोग करते हुए हवा में पक्षियों की तरह उड़ना. सब से पहले एअरक्राफ्ट से जंप करना और फिर कुछ समय तक कई हजार फुट पर यों ही शरीर को छोड़ देना. बाद में पैराशूट के सहारे अपनी गति को मैनेज करते हुए जमीन पर लैंड करना. इसे करना एक अलग ही तरह की खुशी का एहसास देता है.

उस वक्त जब मैं ने यह काम शुरू किया था, तो मेरी उम्र कम थी. इसलिए बिजनैस मीटिंग्स के दौरान लोग यह सोचते थे कि इतनी छोटी लड़की इस तरह का बिजनैस कैसे कर पाएगी? लड़की होने की वजह से लोग मुझे सीरियसली नहीं लेते थे. कमिटमैंट की दिक्कत भी आई. ट्रैवल काफी करना पड़ता था.

तो ब्रेकअप नहीं बनेगा सिरदर्द

माना कि पहले प्यार को भूलना आसान नहीं होता, पर दिनरात उस के गम में आंसू बहाने से जिंदगी और भी मुश्किल बन सकती है. बदलते समय के अनुसार बे्रकअप के बाद अपनी लाइफ को हसीन बनाने का एक फंडा टीवी पर एक ऐड में दिखाया गया है, जिस में एक लड़की का अपने बौयफ्रैंड से बे्रकअप हो जाता है. वह परेशान हो कर अपने लुक को चेंज करती है. हेयर कट करवा कर फेसबुक पर अपना फोटो अपलोड करती है.

इस के अलावा दोस्तों के साथ घूमनेफिरने, स्विमिंग आदि की तसवीरें भी डालती है ताकि बे्रकअप की यादों से उबर सके.

मौडर्न युग का मौडर्न फंडा

आजकल मौडर्न गर्ल्स मेकओवर का फंडा ही अपना रही हैं. अब वे ब्रेकअप के बाद खुद को घर में कैद कर के रोतीबिलखती नहीं और न ही दूसरे के कंधे पर सिर रख कर अपना दुखड़ा सुनाती हैं. आज वे अपने गम को दूर करने का खुद प्रयास करती हैं, क्योंकि वे आत्मनिर्भर जो हैं. अब वे अपने क्रैडिट कार्ड, डेबिट कार्ड उठाती हैं और अपना कौन्फिडैंस गेन करने के लिए अपने वार्डरोब व लुक्स को अपडेट करने लग जाती हैं.

खास बात यह है कि तमाम सैलिब्रिटीज भी इसी तरह अपने टूटे दिल पर मरहम लगा रही हैं.

सैलिब्रिटीज के मेकओवर का फंडा

फिल्म स्टार जौन अब्राहम से लंबे समय तक रिलेशन रखने के बाद हुए बे्रकअप से उबरना फिल्म अभिनेत्री बिपाशा बसु के लिए आसान नहीं था, लेकिन तमाम तरीकों को फौलो कर के वे इस में सफल रहीं. इस में सब से ज्यादा सहयोग रहा मेकओवर का. उन का नया डीप रैड हेयर कलर और फिटनैस रिज्यूम बयां करता है कि वे आगे बढ़ रही हैं, अपनी लाइफ को अपने तरीके से ऐंजौय कर रही हैं.

इसी तरह दीपिका पादुकोण ने रणबीर कपूर से ब्रेकअप के बाद खुद को इस गम से उबारा तो सिद्धार्थ माल्या से अलग होने के बाद भी उन्होंने अपना फ्रस्ट्रेशन जिम में वर्कआउट कर के दूर किया. ऐसे ही कंगना राणावत भी अपने बे्रकअप ब्लूज से इसी तरह बाहर निकलीं.

बौलीवुड तारिकाओं ने ही नहीं, हौलीवुड की तारिकाओं ने भी बे्रकअप पेन दूर करने का यही तरीका अपनाया.

ऐक्टर रयान रेनौल्ड से जब स्कैरलेट जौनसन का बे्रकअप हुआ तो उन्होंने नया हेयरकट करवाया. ड्रयू बेरीमूर ने भी अटैंशन पाने के लिए यही तरीका अपनाया. जस्टिन टिंबरलेक से हुए बे्रकअप के बाद कैमरून डियाज ने न सिर्फ हेयर शौर्ट कराए, बल्कि चार्मिंग ड्रैसेज पर भी खूब पैसा खर्च किया.

2004 में मिस टीन इंटरनैशनल का खिताब जीतने वाली आस्ट्रेलिया की प्रोफैशनल बौक्सर लौरिन ईगल ने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप के बाद एक डेटिंग ऐप पर अपना प्रोफाइल बनाया. वाटर स्कीइंग चैंपियन रह चुकीं लैरिन का पिछले साल रग्बी लीग स्टार टौड कारन से बे्रकअप हो गया था. कई महीनों तक अकेले रहने के बाद अब लौरिन ने नए पार्टनर की तलाश में टिंडर नाम के डेटिंग ऐप पर अपना अकाउंट बनाया और इस ऐप पर बिकनी में लगाया अपना प्रोफाइल.

यह ऐप लोकेशन के आधार पर प्रोफाइल शौर्टलिस्ट करता है. लौरिन फिटनैस पर भी ध्यान देती हैं और वे अपनी पिक्स और वीडियो सोशल मीडिया पर अपने फैंस से शेयर करती हैं.

सामाजिक दायरा बढ़ाएं

फोर्टिस हौस्पिटल, मैंटल हैल्थ और बिहेवियरल साइंसेज के डायरैक्टर डाक्टर समीर पारिख कहते हैं, ‘‘बे्रकअप के बाद कोई भी डिप्रैशन में जा सकता है. ऐसे में कुछ लोग बस अपने रिलेशन का पोस्टमार्टम करते हैं तो कुछ ब्रेकअप के बाद रिफौर्मेशन का रास्ता पकड़ते हैं. बहुत से लोग इस से उबरने के लिए बदलाव की इच्छा रखते हैं. बे्रकअप से उबरने के लिए सिर्फ लुक्स में चेंज लाना ही काफी नहीं है, बल्कि इस से उबरने के लिए सोशल सर्कल में चेंज लाना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि लोगों से मिलनाजुलना भी आप को रिफ्रैश रखेगा. बे्रकअप होने पर अपने परिवार के साथ ज्यादा समय बिताएं.’’

जो लोग ब्रेकअप के दर्द को खुद पर हावी नहीं होने देते और जिंदगी को नए सिरे से जीने का प्रयास करते हैं वे औरों से ज्यादा खुशहाल होते हैं. यही नहीं ऐसे लोग खुद को ज्यादा आकर्षक भी मानने लगते हैं. इस से उन के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है.

डाक्टर समीर पारिख का कहना है कि नया लाइफस्टाइल किसी क्लोज पर्सन के दूर चले जाने के दर्द को कम करता है. लेकिन ऐक्सपर्ट इस के लिए ज्यादा प्रयास के लिए मना करते हैं. इसलिए अगर आप के सामने भी बे्रकअप से उबरने के लिए मेकओवर का औप्शन आए तो उसे वैसा रखें जो नौर्मल लाइफस्टाइल में सैट हो जाए.

मेकओवर के औप्शन

वार्डरोब अपडेट, फिटनैस, ऐरोबिक, बौडी या हेयर स्पा, हेयर कट, ट्रैवल जैसे तमाम तरीके हैं, जो आप को बे्रकअप ब्लूज से उबारेंगे.

मेकओवर के द्वारा लोग अपनी कमजोरी को दूर कर के अपीयरैंस तक में स्ट्रौंग नजर आने लगते हैं. ऐक्सपर्ट मानते हैं कि बे्रकअप के बाद नया हेयरस्टाइल या हेयर कलर अथवा नई डै्रस कौन्फिडैंस लैवल बढ़ाती है.

ब्रिटेन में हजारों लोग बे्रकअप के दर्द को खत्म करने के लिए हिप्नोथेरैपी (सम्मोहन) का अनोखा तरीका अपना रहे हैं और यह तरीका काफी कारगर भी साबित हो रहा है.

सम्मोहन विशेषज्ञा आलिया फ्रैंक इस तकनीक के जरीए दिल टूटने से परेशान कई महिलाओं और पुरुषों का इलाज कर रही हैं. इस में पीडि़त व्यक्ति से कहा जाता है कि पूर्व प्रेमी पर पत्थर आदि फेंकने की कल्पना करें. इस से गुस्सा बाहर निकल जाता है और मन शांत हो जाता है.

केबीसी पैसे ही नहीं यहां दिल भी जीते जाते हैं

‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो ने अपने प्रतिभागियों और विजेताओं के दिल में जीत का ऐसा जज्बा कायम किया है कि उन के लिए यह शो उन की जिंदगी का अहम मोड़ साबित हुआ है. आइए, पिछले कुछ सीजन के विजेताओं के अनुभव से आप को रूबरू कराते हैं:

केबीसी यानी ‘कौन बनेगा करोड़पति’ 2010 में क्व1 करोड़ की धनराशि जीतने वाली राहत तसलीम अपनी कामयाबी के अनुभव को हम से साझा करते हुए कहती हैं, ‘‘झारखंड के छोटे से शहर गिरिडीह की महिला के लिए क्व1 करोड़ जीतना किसी सपने के सच होने जैसा था. कभी नहीं सोचा था कि मैं वहां तक पहुंचूंगी और क्व1 करोड़ जीत पाऊंगी.’’

‘केबीसी में पैसे ही नहीं दिल भी जीते जाते हैं,’ इस टैग लाइन के बारे में राहत तसलीम कहती हैं, ‘‘यह टैग लाइन पहले ही बन जानी चाहिए थी. महानायक अमिताभ बच्चन जिस तरह धैर्य के साथ प्रतियोगियों का दिल जीतते हैं वह काबिलेतारीफ है. अमिताभ प्रतियोगियों के साथ उन के स्तर पर आ कर बात करते हैं. वहां का पूरा माहौल दोस्ताना व घर जैसा होता है.

‘‘अमिताभ बच्चन से पहली बार मिलना और उन के व्यक्तित्व व उन की आवाज में खो जाना मेरे लिए अनूठा अनुभव था. अभी तक जिन्हें सिर्फ फिल्मों में देखा था, उन के रूबरू बैठ कर उन से बात करना हमेशा यादगार अनुभव रहेगा.’’

‘कौन बनेगा करोड़पति’ 2013 में पहली महिला करोड़पति बनने का गौरव हासिल करने वाली, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के संसारपुर की रहने वाली फिरोज फातिमा कहती हैं, ‘‘जब मैं ने क्व1 करोड़ जीते तो मुझे बिलकुल विश्वास नहीं हो रहा था. लेकिन इतनी मेहनत के बाद अच्छा परिणाम मिला, तो बेहद खुशी हुई. जब अमिताभजी ने मुझे गले लगाया तो खुशी का एहसास दोगुना हो गया. मुझे लगा कि कुछ कर गुजरने का सपना और हौसला हो तो बड़ी से बड़ी बाधाएं भी आगे बढ़ने से नहीं रोक सकतीं.

‘‘पैसे कमाने के वैसे तो बहुत से जरीए हैं, लेकिन केबीसी के जरीए जीत हासिल करने से मुझे पैसों के साथसाथ लोगों का अपनापन भी मिला. सब ने मेरी जीत अपनी जीत समझी और मुझे उन का प्यार मिला. इसलिए ‘केबीसी में सिर्फ पैसे ही नहीं दिल भी जीते जाते हैं’, यह कथन हकीकत का ही पर्याय है.’’

अमिताभ बच्चन के साथ केबीसी में भाग लेने के अनुभव के बारे में फिरोज कहती हैं, ‘‘उन के साथ गुजारे वक्त को मैं कभी नहीं भूल सकती. एक सैलिब्रिटी, जिस से मिलने की चाह सभी को होती है, उस के साथ इतना वक्त गुजारना, गेम खेलना और फिर जीतना एक अनूठा और यादगार अनुभव था.’’

मुंबई के एक मध्यवर्गीय परिवार से तअल्लुक रखने वाली चंडीगढ़ मूल की निवासी सनमीत कौर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ 2012 की सब से बड़ी धनराशि जीतने वाली पहली महिला हैं. सनमीत ने एक टैलीफोनिक साक्षात्कार में अपनी इस जीत के अनुभव के बारे में बताया.

उन्होंने कहा, ‘‘केबीसी का विजेता बनना मेरी जिंदगी का सब से बड़ा सपना था. मुझे शुरू से कुछ करने व अपनेआप को साबित करने की चाहत थी. केबीसी की विजेता बन कर मुझे लगा कि अब मैं दुनिया से कह सकती हूं कि वह एक महिला को कभी कमतर न समझे. हौट सीट पर बैठ कर मैं ने अपने सारे इमोशंस एक तरफ रख दिए थे और जैसे ही अमिताभ सर ने मुझे मेरे जीतने की सूचना दी, मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि मैं ने इतनी बड़ी रकम जीत ली है. तब अमिताभ मुझे यकीन दिलाने के लिए मेरे पास आए और मुझे गले से लगा लिया.

‘केबीसी में पैसे ही नहीं दिल भी जीते जाते हैं,’ इस पर सनमीत ने कहा, ‘‘केबीसी ने मेरी जिंदगी ही बदल दी. यहां से न केवल मैं ने पैसा जीता बल्कि लोगों का दिल भी जीता है. जैसे ही लोगों को मेरे जीतने का पता चला, मेरे पास सभी तरफ से दुआएं और बधाई के संदेश आने लगे. ऐसा लगा कि अचानक हमारा परिवार बहुत बड़ा हो गया है. इस जीत से मैं ने लोगों का दिल जीता है. अगर पहले मेरी जिंदगी सोना थी तो अब ‘सोने में सुहागा’ हो गई है. लोगों ने मुझे पहचानना शुरू कर दिया और मैं एक सैलिब्रिटी बन गई.

‘‘मेरी दादी अमिताभ बच्चन की बहुत बड़ी फैन थीं. उन की फिल्म ‘मर्द’ उन की फैवरेट मूवी थी. जब मैं अमिताभ सर से पहली बार मिली तो मुझे अपनी दादी की याद आ गईं. उन से मिल कर ऐसा लगा जैसे मेरी लौटरी लग गई. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वे मेरे सामने खड़े हैं. मेरे हाथपैर ठंडे हो रहे थे. तब उन्होंने मुझे समझाया, मेरा उत्साह बढ़ाया. मुझे सहज कराया. उन के साथ डांस करना, बातें करना एक अनूठा अनुभव था. ‘ही इज लाइक फादर फौर माई फैमिली.’

स्मार्ट मौम परिवार रखे खुशहाल

जब हम मां की बात करते हैं तो कई बार हालबेहाल औरत की छवि सामने आती है, जो अपने बच्चों और घरगृहस्थी के बीच संतुलन बनाने में लगी रहती है. इस कशमकश में कई बार वह मानसिक रूप से परेशान हो जाती है. उस में चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है, जो कई बार उसे परिवार और बच्चों से दूर ले जाता है. मगर अब हालात बदल रहे हैं. समाज में ऐसी स्मार्ट मौम्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो घरपरिवार, बच्चों, पति व समाज सभी के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही हैं. ऐसी स्मार्ट मौम्स घरपरिवार के साथसाथ समाज को भी खुशहाल बनाए रखने में अहम भूमिका अदा कर रही हैं.

आइए, सब से पहले आप को मिलवाते हैं एक ऐसी सैलिब्रिटी स्मार्ट मौम से, जो अपने प्रोफैशन के साथसाथ अपने बच्चों और परिवार का तो खयाल रखती ही हैं, समाज को भी समय देती हैं.

जी हां, हम बात कर रहे हैं फिल्म अभिनेत्री सेलिना जेटली की. मिस इंडिया से फिल्म अभिनेत्री बनीं सेलिना जेटली के पिता वी.के. जेटली सेना में अफसर थे. उन की मां अफगान की थीं. वे सेना में नर्स थीं. सेलिना के भाई सेना में हैं. खुद सेलिना भी पायलट बन कर सेना में जाना चाहती थीं. उन्होंने बी.काम. किया है. पढ़ाई के दौरान ही उन्हें सौंदर्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का मौका मिलने लगा. 2001 में वे मिस इंडिया बनीं. यहीं से उन की शुरुआत फिल्मों में हुई. ‘जानशीन’ और ‘नो ऐंट्री’ जैसी अनेक फिल्मों में उन की अदाकारी को दर्शकों ने काफी पसंद किया. वे फिल्मी दुनिया की सब से खूबसूरत व बोल्ड अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती हैं.

सेलिना ने आस्ट्रेलिया के रहने वाले बिजनैसमैन पीटर हाग से 2011 में शादी की. पीटरहाग दुबई में अपना बिजनैस करते हैं. शादी के बाद सेलिना ने जुड़वां बेटों विराज हाग और विंस्टन हाग को जन्म दिया. उन्होंने मां बनने के बाद भी खुद को फिट और स्मार्ट बनाए रखा. अब वे दुबई से मुंबई बसने की तैयारी कर रही हैं ताकि अपने फिल्मी कैरियर को दोबारा शुरू कर सकें.

शादी और बच्चों के साथ कैरियर

पहले फिल्मों में काम करने वाली ज्यादातर अभिनेत्रियां शादी के बाद फिल्मों से रिटायरमैंट ले लेती थीं. इस कारण कई बार वे शादी उम्र की ढलान पर करती थीं मगर अब ऐसा नहीं है. विश्व सुंदरी और सफल फिल्म अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन ने अपने कैरियर की ऊंचाई के दौरान ही फिल्म अभिनेता अभिषेक बच्चन से शादी की. शादी के बाद आराध्या को जन्म दिया. ऐश्वर्या का परिवार देश का सब से मशहूर फिल्मी परिवार है. उन के पति अभिषेक के अलावा ससुर अमिताभ बच्चन और सास जया बच्चन बड़े कलाकार हैं. सभी अपनेअपने काम में व्यस्त रहते हैं. ऐसे में ऐश्वर्या ने बेटी के बड़े होने तक उस का पूरा ध्यान रखा. इस दौरान वे पूरी तरह से फिल्मी चकाचौंध से दूर रहीं. अब बेटी स्कूल जाने लायक हो गई है तो ऐश्वर्या फिर से अपने फिल्मी कैरियर पर ध्यान देने लगी हैं.

2000 में मिस यूनिवर्स का ताज जीतने वाली लारा दत्ता उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद शहर की रहने वाली हैं. इन के पिता एल.के. दत्ता और मां जेनिफर दत्ता ने लारा को मौडलिंग की दुनिया में कदम बढ़ाने में पूरापूरा सहयोग दिया. मिस यूनिवर्स बनने के बाद लारा दत्ता ने अपना फिल्मी कैरियर शुरू किया. जब उन का फिल्मी कैरियर ऊंचाइयों पर था तब लारा ने टैनिस स्टार महेश भूपति से शादी कर ली. शादी के बाद लारा के बेटी हुई, जिस का नाम सायरा भूपति रखा. लारा की बेटी भी अब स्कूल जाने वाली हो गई है, इसीलिए लारा भी दोबारा फिल्मी कैरियर शुरू करने वाली हैं.

ऐसी ही स्मार्ट मौम्स की लिस्ट में एक बड़ा नाम शिल्पा शेट्टी का भी है. राज कुंद्रा से शादी करने के बाद शिल्पा ने विवान नाम के बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के बाद भी शिल्पा ने अपना फिल्मी कैरियर बनाए रखा. आज भी वे फिल्मों, टीवी और मौडलिंग में पूरी तरह सक्रिय हैं. इस के साथ ही आईपीएल क्रिकेट टीम की मालकिन भी हैं. उन की फिगर देख कर नई से नई हीरोइन भी मात खा सकती है.

2 बच्चों की मां करिश्मा कपूर भी अपना फिल्मी कैरियर फिर से शुरू करने की तैयारी में हैं. 40 साल की करिश्मा कपूर फिल्मी दुनिया के मशहूर कपूर खानदान की बेटी हैं.

बिजनैसमैन संजय कपूर से शादी के बाद उन के 2 बच्चे समिएरा कपूर और किआन राजकपूर हुए. जिस समय करिश्मा ने फिल्मी दुनिया छोड़ी थी उन का फिल्मी कैरियर धूम मचा रहा था. फिल्मी दुनिया के हर बड़े अभिनेता के साथ उन्होंने हिट फिल्में दीं. शादी और बच्चों के बाद वे वापस फिल्मी दुनिया में धूम मचाने की तैयारी कर रही हैं.

फिल्मी स्मार्ट मौम्स की सूची में मंदिरा बेदी, मलाइका अरोड़ा खान, नंदिता दास और श्रीदेवी का नाम भी उल्लेखनीय है. मलाइका अरोड़ा, नंदिता दास और श्रीदेवी ने भी बच्चों की परवरिश के साथसाथ अपने फिल्मी कैरियर को जारी रखा.

पूरी तरह फिट और हैल्दी

बात केवल फिल्मी स्मार्ट मौम्स की ही नहीं है. समाज में हमें तमाम ऐसी स्मार्ट मौम्स नजर आती हैं. सरकारी से ले कर प्राइवेट औफिसों तक में काम करने वाली तमाम स्मार्ट मौम्स ने अपने को इतना स्मार्ट बनाया है कि वे अपनी उम्र से कई साल तक कम नजर आती हैं. इन का सब से बड़ा राज इन की सेहत में छिपा होता है. फिट और हैल्दी महिलाएं ज्यादा स्मार्ट होती हैं. कई बार ज्यादा वजन वाली महिलाएं भी अपने काम में इतना स्मार्ट होती हैं कि कम उम्र की महिलाएं उन के सामने टिक ही नहीं पाती हैं.

2 बेटियों की मां सोनिया कपूर एक प्राइवेट औफिस में काम करती हैं. वे कंपनी के मालिक की करीब 20 सालों से सैके्रटरी हैं. उन का वजन भले ही औफिस में काम करने वाली छरहरी लड़कियों से कुछ ज्यादा हो पर वे अपने काम और व्यवहार से सभी को मंत्रमुग्ध कर लेती हैं. यही नहीं वे अपने घरपरिवार और बेटियों को भी पूरा समय देती हैं. ज्यादा वजन होने के बावजूद वे पूरी तरह फिट और हैल्दी हैं.

पूनम चौहान अपने घर से 25 किलोमीटर दूर स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती हैं. उन की एक छोटी बेटी है. वह स्कूल जाने लगी है. पूनम सब से पहले बेटी को स्कूल पहुंचाती हैं. इस के बाद पब्लिक ट्रांसपोर्ट से स्कूल जाती हैं. दोपहर को स्कूल से लौटते हुए बेटी को भी घर लाती हैं.

वे कहती हैं, ‘‘जमाना बदल गया है. अब पतिपत्नी दोनों ही कमाने लगे हैं. पति भी पूरा सहयोग देते हैं. इस के बाद भी महिलाओं के हिस्से में ज्यादा काम आता है. ऐसे में सब से बड़ी जरूरत यह होती है कि हम शांत रहें. समझदारी के साथ टाइमटेबल बनाएं ताकि कोई जरूरी काम रह न जाए, और काम को सही तरह से करने के लिए जरूरी है कि हम अपनी हैल्थ का पूरा ध्यान रखें. समयसमय पर जरूरी चैकअप कराते रहें. ज्यादा काम करने के लिए ज्यादा ऐनर्जी की जरूरत होती है. ऐसे में हैल्दी फूड खाएं.’’

पतियों का टाइम बचाती हैं स्मार्ट मौम्स

स्मार्ट मौम्स केवल वे ही नहीं हैं जो नौकरी करती हैं या अपना बिजनैस. स्मार्ट मौम्स हाउसवाइफ के रूप में भी बहुत अच्छी तरह घरपरिवार की देखभाल करती हैं. इस से पतियों का न केवल समय बचता है, बल्कि वे अपना काम ज्यादा बेहतर तरीके से कर पाते हैं.

सुहानी की शादी दीपक के साथ हुई. सुहानी ने एम.बी.ए. किया था, लेकिन वे हाउसवाइफ बनीं. इस बात का उन्हें कोई अफसोस नहीं था. दरअसल, दीपक की नई नौकरी थी. उन्हें अपनी जौब में ज्यादा समय देना होता था. सुहानी के साथ उन के सासससुर भी रहते थे, जो अकसर बीमार रहते थे. दीपक उन की देखभाल नहीं कर सकता था. ऐसे में जब दीपक को सुहानी का साथ मिला तो रास्ता दिखा. अब वह अपनी नौकरी पर पूरा ध्यान देने लगा. सुहानी ने घर का पूरा काम संभाल लिया. ऐसेमें दीपक को औफिस में काम करने का पूरा मौका मिला और वह सफलता की सीढि़यां चढ़ने लगा.

सुहानी के मां बनने के बाद भी दीपक को कभी कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. सुहानी घर के छोटेबड़े काम जैसे बिजलीपानी का बिल जमा करना, राशन की खरीदारी करना, दवा आदि लाना खुद करती हैं. इस के लिए उन्होंने कभी दीपक को परेशान नहीं किया. दीपक को घर की जिम्मेदारियों से दूर रह कर नौकरी में आगे बढ़ने का पूरा मौका मिला.

सुहानी कहती हैं, ‘‘मैं हाउसवाइफ की जगह अपने को हाउस मैनेजर के रूप में देखती हूं. लेकिन अब बेटी बड़ी हो गई है. अत: मैं भी नौकरी कर के घर चलाने में पति की मदद करना चाहती हूं.’’

सुहानी जैसी कई पत्नियां समाज में हैं, जो घरपरिवार को संभाल कर अपनेअपने पति की मदद कर रही हैं. ये भी किसी स्मार्ट मौम से कम नहीं हैं.

बदल रही है सोच

महिला रोगों की जानकार डाक्टर रमा श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘लड़कियों की शादी की उम्र में अब बदलाव होने लगा है. अब लड़कियों की शादी 25 से 30 साल के बीच होने लगी है. ऐसे में लड़कियां पहले बच्चे पैदा कर के फिर अपने कैरियर को आगे बढ़ाने लगी हैं. स्मार्ट रहने से इन्हें कई लाभ होते हैं. सब से पहला यह कि 30 की उम्र के बाद भी नौकरी मिल जाती है. सरकारी से ज्यादा प्राइवेट नौकरियों के आने से लड़कियों को मां बनने के बाद भी कैरियर संवारने के मौके मिलने लगे हैं. सही उम्र में पढ़ाई शुरू करने से भी यह बदलाव होने लगा है. सही उम्र में शादी करने से लड़कियों के मां बनने की संभावना भी ज्यादा होती है.’’

22 साल की उम्र में ग्रैजुएशन करने वाली निहारिका की शादी 24 साल में हो गई. उस के बाद उन्होंने पढ़ाई जारी रखी. 26 साल में वे मां बन गईं. जब उन की बेटी स्कूल जाने लगी तो निहारिका जौब करने के लिए तैयार हो गईं. अब वे जौब और घर दोनों को बखूबी संभाल रही हैं. उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होती है. वे

खुद यह योजना बनाती हैं कि कहां से और किस तरह से बचत की जाए? कैसे घर का खर्च चलाएं?

निहारिका कहती हैं, ‘‘सही उम्र में शादी होने से परिवार की जिम्मेदारियां समय पर पूरी हो जाती हैं. नौकरी करने के लिए भी समय मिल जाता है. आज पतिपत्नी मिल कर काम करें तो ज्यादा बेहतर होगा. पति को भी स्मार्ट पत्नी पर गर्व होता है. उसे लगता है कि पत्नी अगर ऐसा कर सकती है तो उसे सहयोग देना चाहिए. इस से दोनों के बीच बेहतर तालमेल बनता है.’’

अपना बिजनैस करने वाली अनीता मिश्रा कहती हैं, ‘‘अब महिलाओं को हर काम करने में महारत हासिल हो रही है. ऐसे में वे स्मार्ट और हैल्दी रहें, तो लाइफ बेहतर हो जाती है. स्मार्ट मौम को किसी काम के लिए किसी दूसरे का मुहताज नहीं होना पड़ता है. अगर आप को स्कूटी, स्कूटर या कार जैसे वाहन चलाने आते हैं तो आप को कहीं आनेजाने के लिए पति या फिर किसी और की जरूरत नहीं पड़ती है. ऐसे में समय और पैसा दोनों ही बचता है.’’

महिलाओं के काम करने से केवल घरपरिवार का ही भला नहीं होता है, देश का भी भला होता है. किसी भी देश की तरक्की में महिलाओं की भी बड़ी भूमिका होती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें