नई सरकार से महंगाई पर काबू पाने की जो आशाएं थीं वे एक माह में ही फूल के धूल में समा जाने जैसी हो गईं. नरेंद्र मोदी की सरकार उसी तरह चल रही है जैसे पहले सरकारें चल रही थीं और एक माह में एक भी फैसला ऐसा न हुआ
जिस से देश में महंगाई सुरक्षा, सुकारक, शराफत और सुख का एहसास हो. बात साफ है कि नीयत अच्छी हो तो भी सरकार चलाना एक टेढ़ी खीर है. और जब जनता की अपेक्षाएं बहुत ज्यादा बढ़ा दी जाएं तो थोड़ी भी ढील बहुत अखरती है.
महंगाई की जिम्मेदारी इराक के युद्ध को दी जा सकती है पर यह अधूरी बात है. कच्चा तेल अब महंगा होने लगा है, क्योंकि इराक युद्ध का असर, ईरान, कुवैत, बहराइन, सऊदी अरब सब पर पड़ने का डर लगने लगा है और तेल कंपनियों ने आगे के लिए स्टौक बढ़ाना शुरू कर दिया है.
पर देश में महंगाई का जिम्मेदार ढीला व बेईमान शासन है. यहां गरीब को बुरी तरह लूटा जाता है और लूटने की आदत पड़ गई है, तो लूट की आग में मध्य व उच्च वर्ग भी फंस जाता है. महंगाई पगपग पर बढ़ती है. लोगों की मेहनत का बड़ा हिस्सा उत्पादन में नहीं, शासन की सड़ी नीतियों के हवन में स्वाहा होता है. ऊपर से अब वह सरकार है जो हर जरा से काम में घी, तेल, लकड़ी जलाना शुभ काम समझती है और आग के सामने घंटों मंत्र पढ़ने को मेहनत समझती है.
लोग समझ रहे थे कि महंगाई की वजह भ्रष्टाचार है, कोयला घोटाला है, 2जी स्कैम है, कौमनवैल्थ खेलों की हेराफेरी है. पर निकला यह कि महंगाई तो सरकार के निकम्मेपन का सुबूत है और 30-40 दिनों में सरकार की गति तेज होने लगी है, कहीं से नहीं दिख रहा.
महंगाई की मार अभी हर रोज और ज्यादा तेज होगी, क्योंकि इस बार मौनसून का मूड बिगड़ा है और खेतों का उत्पादन कम हो सकता है. ऐसा होते ही प्याज व आलू ही नहीं, गेहूं, चावल भी महंगे होने लगेंगे. मजदूरी महंगी होगी और फिर महंगाई डायन सब को खाने लगेगी. डायन को समाप्त करने के लिए पंडों, ओझाओं को नहीं कर्मठता को पुरस्कार देने की जरूरत है. लेकिन इसे यहां भाग्य का असर माना जाता है.
नरेंद्र मोदी की सरकार के पास कोई फौर्मूला नहीं दिखता, जिस से मेहनत का सही मुआवजा मिलने की नीति बने और आलसी को भुगतने की सजा. यहां उलटा है. आलसी, बातें बनाने वाले राज करते हैं और काम करने वाले पिसते हैं. अगर सरकार के नियमकानून ढीले होने लगें तो अपनेआप चीजें सस्ती हो जाएं. मोबाइल सस्ते हैं, क्योंकि इन पर नाम का आयात टैक्स है और लोग धड़ल्ले से तरहतरह के मोबाइल आयात कर रहे हैं. पर उत्पादन करने वाली मशीनों पर भारी आयात टैक्स और तरहतरह की बंदिशें हैं. बकबक करने वाला देश बकबकिए काम को प्रोत्साहन देगा तो सामान कैसे बनेगा? पहले सोचते थे कि यह सब सिर्फ कांग्रेसी नेताओं के कारण हो रहा है. अब साबित हो रहा है कि नेता कोई हो, सरकार तो वही है.