फ्रैपे टी

सामग्री

1 कप पानी, 1/2 कप दूध, 1 छोटा चम्मच चायपत्ती, 1 छोटा चम्मच चीनी, चुटकी भर दालचीनी पाउडर, थोड़े से आइस क्यूब्स.

विधि

पानी को 2-3 मिनट उबाल कर उस में सारी सामग्री डाल दें. इस मिश्रण के ठंडा होने पर आइस क्यूब्स डाल कर सर्र्व करें.

चौकलेट शेक

सामग्री

1 बार चौकलेट, 3 छोटे चम्मच चौकलेट हैजलनट्स, 2 कप क्रीम, 1 कप दूध, थोड़े से चौकलेट चिप्स डैकोरेशन के लिए.

विधि

चौकलेट को 1 मिनट माइक्रोवेव में रख कर पिघला लें. फिर इस में क्रीम, दूध और चौकलेट हैजलनट्स मिलाएं और 2 घंटे फ्रिज में ठंडा कर परोसें.

मछली खा रहे हैं या प्लास्टिक

जब आप मछली खा रहे होते हैं तो क्या आप को पता होता है कि असल में आप क्या खा रहे हैं? कैमिकल्स, इंसानी मल या फिर प्लास्टिक?

कुछ समय पहले मरीन पौल्यूशन बुलेटिन में प्लाईमाउथ यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट की एक रिसर्च छपी थी, जिस में बताया गया था कि इंगलैंड के समुद्री तटों पर पकड़ी गई एकतिहाई मछलियों में भरपूर मात्रा में प्लास्टिक तत्त्व पाए गए. यह केवल उत्तरी या अटलांटिक सागर की मछलियों का मामला नहीं है.

प्लैनेट अर्थ औनलाइन में वैज्ञानिक रिचर्ड थौमसन ने बताया कि प्रारंभिक शोध के नतीजों में विश्व की पूरी समुद्री तटरेखा, समुद्री सतह और यूनाईटेड किंगडम के सागरों में प्लास्टिक के छोटेछोटे तत्त्व भारी मात्रा में बिखरे हुए हैं. रिसर्च में यह भी पता चला है कि किस तरह प्लास्टिक के ये तत्त्व जीवों के शरीर में अपनी जगह बना रहे हैं.

चौंकाने वाले तथ्य

प्लाईमाउथ समुद्र तट से 10 किलोमीटर अंदर जा कर 504 मछलियों को पकड़ा गया, जिन में व्हाइटिंग, हौर्स मैकरेल, जौन डौरी और रैड गर्नर्ड जैसी मछलियां भी शामिल थीं. इन में से 184 मछलियों के पाचनतंत्र में से 1 से ले कर 15 पीस तक प्लास्टिक तत्त्वों के निकाले गए. अन्य तरह के 351 प्लास्टिक के तत्त्व भी मछलियों के शरीर में पाए गए. इन में ज्यादातर तत्त्व प्लास्टिक बोतल, पौलिथीन, स्टाइरोफोम (एक तरह का थर्मोकोल), प्लास्टिक के दस्ताने, ढक्कन, फोम के पैकेजिंग आइटम, प्लास्टिक की रस्सी, प्लास्टिक के मछली पकड़ने वाले जाल, अंडे रखने वाले प्लास्टिक के गत्ते, लाइटर, स्ट्रा, कौस्मैटिक और सैनिटरी उत्पादों इत्यादि के थे. इस के अलावा सिगरेट का बचा हिस्सा भी काफी मात्रा में मिला.

इन में से कुछ मरी हुई मछलियों के शरीर से धातु के बने ढक्कन और कांच के टुकड़े भी निकाले गए. इन सभी मछलियों का जीवन इन के मांस के शौकीनों का आहार बन कर खत्म होना था.

प्लास्टिक का स्रोत

2011 में यूनाईटेड किंगडम की सुपरमार्केट्स ने लगभग 8 करोड़ पतले पौलिथीन बैग लोगों को दिए, जो वर्ष 2010 में इस्तेमाल किए गए बैगों की तुलना में 5.4% अधिक थे. आज यूनाईटेड किंगडम का हर दुकानदार 1 महीने में लगभग 11 प्लास्टिक बैगों का प्रयोग करता है जिन का अंत मछलियों के आहार के रूप में होता है.

कौस्मैटिक उत्पाद बनाने वाली कंपनियां प्लास्टिक का इस्तेमाल छोटेछोटे पार्टिकल्स के रूप में करती हैं जोकि आसानी से मछलियों का खाना बन जाते हैं. बाद में ये पार्टिकल्स मछलियों के पेट में पहुंच कर उन के आहार का हिस्सा बन जाते हैं.

खतरनाक है प्लास्टिक कूड़ा

2010 में अमेरिका में 31 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा निकला जिस का 92% हिस्सा समुद्र में फेंक दिया गया. 2011 में वैज्ञानिकों ने पैसिफिक सागर से पकड़ी गईं 10% लैंटर्न मछलियों में प्लास्टिक पाया. लैंटर्न मछलियों को ज्यादातर वे बड़ी मछलियां खाती हैं, जो खुद इंसानों का प्रिय भोजन हैं.

सैन डिएगो के ‘स्क्रिप्स इंस्टिट्यूशन औफ ओसिनोग्राफी’ के एक शोध विज्ञानी की रिपोर्ट के अनुसार उत्तरी पैसिफिक सागर के मध्य की गहराई में पाई जाने वाली मछलियां 1 साल में 24 हजार टन प्लास्टिक खा जाती हैं.

मछलियों के शरीर में मौजूद प्लास्टिक चाहे बड़ा ही क्यों न हो, यह बाद में इतने छोटेछोटे टुकड़ों में विभाजित हो जाता है कि मछलियां खाने वाले इन टुकड़ों को देख नहीं पाते.

शोध लेखिका रेबेका ऐश बताती हैं कि 10% तो बहुत कम है. यहां तक कि यह बता पाना भी बेहद मुश्किल है कि कितनी मछलियां प्लास्टिक खा कर मर गईं, कितनी मछलियों ने प्लास्टिक खाने के बाद उस को उगल दिया या वह प्लास्टिक उन के पाचनतंत्र में पहुंच गया.

ऐलगालिता मरीन रिसर्च फाउंडेशन ने एक अध्ययन में पाया कि पैसिफिक सागर के मध्य भाग की 35% मछलियों के पेट में प्लास्टिक है.

पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा

सस्ता, टिकाऊ और हलका प्लास्टिक बहुत से उद्योगों द्वारा इस्तेमाल में लाया जाता है. लेकिन इस प्लास्टिक के बहुत कम भाग का दोबारा दोहन किया जाता है. बाकी बचे भाग को पर्यावरण को दूषित करने के लिए नदियों और समुद्रों में बहा दिया जाता है जहां यह नष्ट होने के बजाय टुकड़ेटुकड़े हो कर बड़े नुकसान का कारण बनता है. इस प्लास्टिक का कुछ हिस्सा मछलियों द्वारा खा लिया जाता है, जो बाद में इंसानों के शरीर में भी पहुंचता है.

दिल्ली से हर साल ढाई लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा निकलता है. इस कूड़े में प्लास्टिक बैग्स, शीटें इत्यादि होती हैं, जिन्हें पानी में फेंक दिया जाता है.

अत्यधिक प्लास्टिक के कारण उत्तरी पैसिफिक सागर में ‘ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच’ बन गया है जोकि सैकड़ों किलोमीटर के दायरे में फैल रहा है. यह एक आईलैंड जैसा है जोकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को मिला दें तो भी इन से बड़ा ही दिखेगा. यह समुद्र में उतराता हुआ, धुंधला सा एक ऐसा आईलैंड बन रहा है कि यूएफओ की तलाश में निकला एलियन इस को एक देश समझ बैठे.

और भी हैं प्लास्टिक के शिकार

समुद्री कछुए बेहद संवेदनशील होते हैं. मछलियां पकड़ने वाले जाल में फंस जाने के बाद ये अकसर प्लास्टिक बैग्स को अपना प्रिय भोजन जेलीफिश समझ कर खा लेते हैं. जो कछुए पकड़े और खाए जाते हैं उन के पेट में ज्यादातर प्लास्टिक की मात्रा पाई जाती है. प्लास्टिक कछुए की आंतों को बांध देता है और वे भूख से मर जाते हैं.

प्लास्टिक को गला कर बनाई गई छोटीछोटी गोलियां अनेक उद्योगों में इस्तेमाल की जाती हैं और समुद्री जहाजों पर लाद कर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई जाती हैं. ये गोलियां अकसर समुद्र में बह जाती हैं और समुद्री चिडि़यों द्वारा खा ली जाती हैं. बाद में ये चिडि़यां गोलियों को अपने बच्चों को खिला देती हैं. समुद्री चिडि़यों की 250 प्रजातियों में से 63 प्रजातियों के पेट में प्लास्टिक के पार्टिकल्स पाए गए हैं.

मछली के शौकीनो सावधान

मछलियों के शरीर में पाया जाने वाला प्लास्टिक कई तरह से मछली खाने वालों के लिए जहरीला साबित हो सकता है. प्लास्टिक में तमाम तरह के रंग और कैमिकल जैसे बिसफेनौल ए, जैविक प्रदूषक और अन्य जहरीले तत्त्व होते हैं, जो मछलियों को भी जहरीला बना सकते हैं.

मछली खाने वाले मछली के साथसाथ इन कैंसर पैदा करने वाले जहरीले पदार्थों को भी खा जाते हैं.

जो प्लास्टिक सीवर से, टौयलेट से, मैडिकल वैस्ट के तौर पर, डायपर, कंडोम या अन्य रूपों में पानी में बहा दिया जाता है उसे छोटी मछलियां खाना समझ कर खा लेती हैं. इन छोटी मछलियों को बड़ी मछलियां खा लेती हैं और फिर इन बड़ी मछलियों को इंसान अपना भोजन बना लेते हैं.

1975 में नैशनल ऐकैडमी औफ साइंसेज ने रिसर्च कर के अनुमान लगाया कि लगभग 14 करोड़ पौंड कूड़ा हर साल समुद्र में फेंका जा रहा है यानी 1.5 करोड़ पौंड हर घंटे. 1985 में एक रिपोर्ट आई जिस में खुलासा किया गया कि व्यापारिक जहाज लगभग साढ़े चार लाख प्लास्टिक कंटेनर रोज समुद्र में गिराते हैं.

मछलियां पकड़ने वाले व्यापारियों, सेना के पोतों, व्यापारिक जहाजों, बोटों और तेल और गैस का दोहन करने वालों के द्वारा टनों प्लास्टिक का कूड़ा समुद्रों में फेंका जा रहा है.

इंसानी फितरत है कि उसे मुफ्त की चीजें बेहद पसंद आती हैं. जब आप मछली खाते हैं तो बहुत सारा प्लास्टिक मुफ्त में खा जाते हैं. छोटी मछलियां प्लास्टिक के टुकड़ों को अपना आम खाना प्लैंकटन समझ कर खा लेती हैं. प्लैंकटन और प्लास्टिक पार्टिकल्स की संख्या को ले कर ढेरों आंकड़े मौजूद हैं. कुछ आंकड़े 6 और 1 का अनुपात बताते हैं तो कुछ विनाशकारी 46 और 1 का यानी 46 प्लास्टिक पार्टिकल्स और 1 प्लैंकटन.

जल्द ही ऐसा भी होगा कि मछलियां खाने में ज्यादातर प्लास्टिक खाने लगेंगी. तब जब मछली प्लास्टिक में लपेट कर आप को खाने के लिए दी जाए तो समझें कि बाहर भी प्लास्टिक और अंदर भी प्लास्टिक. क्यों न उसे काटा जाए जो इस में मध्यस्थ है और लंच में प्लास्टिक बैग खाएं?                   

मौनसून में क्या पहनें क्या नहीं

मौनसून में चारों तरफ पानी ही पानी दिखाई देता है. ऐसे में जब हम औफिस जाने या कहीं घूमने के लिए निकलते हैं तो हमेशा यही कोशिश करते हैं कि कहीं कीचड़ से हमारे कपड़े खराब न हो जाएं.

इसी संदर्भ में फैशन डिजाइनर अर्चना कोचर कहती हैं, ‘‘अचानक बारिश से गला हो जाना और फिर औफिस में बैठ कर घंटों काम करना कामकाजी महिलाओं के लिए बेहद परेशानी भरा होता है. ऐसे में सही फैब्रिक का चयन ही इस मौसम में आप को खुल कर जीने की आजादी देता है. पौली कौटन, क्रैप्स, पौलियस्टर, नायलौन आदि ऐसे कपड़े हैं, जो पानी को आसानी से नहीं सोखते. मगर लिनेन के कपड़े ऐसे मौसम में ठीक नहीं.’’

आइए, जानें कि मौनसून में किस तरह के कपड़े पहनें और किस तरह के नहीं.

  • जौर्जेट, शिफौन आदि कपड़ों को अवाइड करें, क्योंकि इन पारदर्शी कपड़ों के गीला हो जाने पर बेवजह अंगप्रदर्शन होता है
  • ऐसे परिधान पहनें, जो जल्दी सूख जाएं.
  • अगर आप का साइज प्लस है तो शरीर से चिपकने वाले परिधान न पहनें.
  • छोटे और नीलैंथ कपड़े पहनने की कोशिश करें.
  • गहरे रंग के प्रिंट अवश्य पहनें.
  • टाइट फिटिंग के कपड़े न पहनें.
  • मौनसून में हमेशा अपने बैग में एक अलग कपड़ों का सैट रखें ताकि जरूरत पड़ने पर आप ड्रैस बदल सकें. गुलाबी, नीला, हरा, औरेंज आदि रंगों के फैब्रिक इस मौसम में अच्छे दिखते हैं.
  • रौंपर्स, स्कर्ट्स, लूज प्रिंटेड शर्ट और पैंट कैजुअल के लिए बेहतर है तो ग्लैमरस लुक के लिए कफ्तान, ट्यूनिक्स और शौर्ट ड्रैस काफी सुंदर दिखती हैं.

मंडप के नीचे

बत कुछ समय पहले की है. मैं एक मित्र की शादी में गया था. विदाई का समय था. एक तरफ हम बराती नाच रहे थे तो दूसरी ओर वधू पक्ष वालों की आंखें नम थीं. दुलहन भी रो रही थी. जैसे ही मेरे मित्र के पिता की नजर एक ट्रक पर पड़ी तो उन्होंने तुरंत उस के बारे में अपने समधी से पूछा.

समधी बोले, ‘‘यह हमारी तरफ से वरवधू के लिए कुछ सामान है. नई गृहस्थी बसाने में काम आएगा.’’

मेरे मित्र के पिता ने यह सुन कर सारा सामान उतरवा दिया और अपने समधी से बोले, ‘‘हम यहां दहेज के लिए नहीं आए हैं. हम तो संबंध बनाने आए हैं. हमें बेटी चाहिए थी वह हमें मिल गई. आप की बेटी को नई गृहस्थी नहीं बसानी है. उस का असली घर उस का इंतजार कर रहा है.’’

वधू के पिता ने मेरे मित्र के पिता को गले से लगाते हुए कहा, ‘‘मैं अपने बेटे की शादी में आप की बातें याद रखूंगा.’’

उन भावुक क्षणों में मुझे अपनी शादी की याद आ गई, क्योंकि मैं ने भी बिना दहेज के शादी की थी.

आर.के. वशिष्ठ

बात मेरे मौसेरे भाई के मित्र की शादी की है. मेरे मौसेरे भाई अपने मित्र की शादी में लखनऊ गए हुए थे. वहां उन्हें अपने मित्र सुधीर से बातोंबातों में पता चला कि दुलहन की बड़ी बहन से उस की शादी

की बात चली थी. पर बचपन में पैर में चोट लगने के बाद वह लंगड़ा कर चलती है, अत: उन्होंने उस रिश्ते से इनकार कर दिया और उस की छोटी बहन से शादी के लिए हां कह दी.

यह सुन कर भैया ने कहा, ‘‘सुधीर, इतनी छोटी सी बात के लिए तुम ने शादी के लिए मना कर दिया. यह सुन कर मुझे अच्छा नहीं लगा.’’

सुधीर ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘भाई, विवाह जिंदगी में 1 बार होता है, अत: ठोकबजा कर करना पड़ता है.’’

दरवाजे पर बरात पहुंची तो दुलहन के साथ उस की बहन शालू भी थी. वह बड़े आदरभाव के साथ सब की आवभगत में लगी थी. पर कहीं न कहीं उस के चेहरे पर निराशा के भाव थे. और फिर उसे आसपास के लोगों के ताने भी साफ सुनाई दे रहे थे. रात में दुलहन का छोटा  भाई मेरे मौसेरे भैया के पास बैठा था. उसे भी अफसोस था कि आज बड़ी दीदी की शादी होती तो कितना अच्छा होता. दीदी में किसी बात की कमी नहीं है. दिखने में जितनी सुंदर हैं व्यवहार में उस से भी अधिक कोमल हैं. न जाने क्यों भैया को शालू में वे सब खूबियां नजर आईं, जिन की तलाश उन को थी. अत: उन्होंने शालू के भाई से उस के पिताजी से मिलने की इच्छा जाहिर की तो वह अपने पापा को बुला लाया.

भैया ने बिना संकोच अपने लिए शालू का हाथ मांगा. शालू के पिता को यह सुन कर यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सच है या सपना?

भैया बोले, ‘‘पिताजी, आप शालू से पूछ लीजिए, क्योंकि उन की हां पर ही यह रिश्ता तय हो तो मुझे अच्छा लगेगा.’’

यह बात शालू तक पहुंची तो उस ने तुरंत विनम्रता से पूछा, ‘‘कहीं आप मुझ पर तरस खा कर जल्दबाजी में तो यह प्रस्ताव नहीं रख रहे हैं?’’

भैया बोले, ‘‘बिलकुल नहीं. मुझे आप में कोई कमी नजर नहीं आ रही है. यदि आप मुझे अपने योग्य नहीं समझती हैं तो यह निर्णय भी मुझे स्वीकार है.’’

शालू ने मुसकरा कर शरमाते हुए कहा, ‘‘पापा, मुझे यह रिश्ता मंजूर है.’’ फिर दोनों परिवारों की रजामंदी से कुछ समय बाद भैया का विवाह हो गया.

उषा श्रीवास्तव

सर्वश्रेष्ठ संस्मरण

मैं बूआ की शादी के समय 12 वर्ष की थी. घर में कोई छोटी बूआ न होने पर मैं बहुत खुश थी कि दूल्हे के जूते मैं ही चुराऊंगी और फिर नेग पाऊंगी. रात को फेरों के समय मैं ने चतुराई से जूते चुरा कर धर्मशाला के ऊपरी हिस्से में बने एक कमरे के सामने रखे जूतों के रैक में जूते यह सोच कर छिपा दिए कि यहां किसी की नजर नहीं जाएगी.

खैर, सुबह 5 बजे बरात विदा होने के समय जूतों की तलाश शुरू हुई. मैं नेग ले कर बड़े गर्व से जूते लेने ऊपर गई. मगर यह क्या, जूते क्या वहां तो पूरा रैक ही गायब था. नीचे आ कर सब को यह बात बताई तो चौकीदार ने बताया कि उस कमरे में तो कालेज का स्टूडैंट रहता है. वह रात को ही सामान समेट कर 15 दिन की छुट्टी पर अपने गांव गया है.

उस के बाद मुझे जो डांट पड़ी वह नेग की खुशी को निगल गई. फूफाजी को बिना जूतों के ही बरात ले जानी पड़ी, क्योंकि इतनी सुबह जूतों की व्यवस्था संभव नहीं थी. उस दिन से मैं ने फिर कभी जूते न चुराने का प्रण कर लिया.

डा. लता अग्रवाल

विनीता मित्तल : ब्रैंड निदेशक, कासा ब्रैंड्स

सौम्य, शालीन और आत्मविश्वास से लबरेज टौप फैशन डिजाइनिंग इंस्टिट्यूट ‘निफ्ट’ की ग्रैजुएट विनीता मित्तल कासा ब्रैंड्स इंडिया प्रा. लि. की ब्रैंड डायरैक्टर हैं, जिस के उत्पाद बोनिटा नाम से बनते हैं. आइए, होते हैं उन की शख्सीयत से रूबरू…

आप को उद्यमी बनने की प्रेरणा कहां से मिली?

कुछ करने की ललक और अपने जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाने की प्रेरणा से ही मैं एक उद्यमी बनी हूं. फिर मुझे खयाल आया कि क्यों न भारतीय महिलाओं की जिंदगी आसान बनाने और उन के चेहरों पर मुसकान बिखेरने के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्वालिटी के होम यूटिलिटी (घरेलू उपयोगिता) उत्पाद बनाए जाएं. इन 2 महत्त्वाकांक्षाओं के मिलते ही मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली.

पुरुषों के वर्चस्व वाले कौरपोरेट सैक्टर में महिलाओं को उद्यमी बनने के लिए किस तरह के प्रयास करने पड़ते हैं?

आप जो काम करने जा रहे हैं, उस में सफलता के लिए संबंधित विषय की पूरी जानकारी होनी बहुत जरूरी है. आप जो कर रहे हैं उस में आप की महारत होनी चाहिए. आगे बढ़ने के लिए दृढ़इच्छाशक्ति भी जरूरी है. इस के बिना आप की महत्त्वाकांक्षाएं धरी की धरी रह जाती हैं. साथ ही सकारात्मक सोच रखना भी जरूरी है.

महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए सब से अहम चीज आप की नजर में क्या होनी चाहिए और देश की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए क्या किया जाना चाहिए?

निश्चित रूप से शिक्षा. शिक्षा ही महिलाओें को घर में कैद कर रखने वाले तालों की चाबी है. उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने में शिक्षा की अहम भूमिका होती है. यह विभिन्न पृष्ठभूमि वाले अलगअलग परिवार के लोगों को एक सतह पर लाती है. महिलाओं के शिक्षा की बदौलत ही अवसर पाने की शक्ति मिलती है और वे वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर हो पाती हैं.

आप की आदर्श महिला, जो आप की प्रेरणास्रोत रही हों?

किरण बेदी और मेरी मां. मां का उद्देश्य हमें बेहतर भविष्य देना था और इस के लिए वे कड़ी मेहनत करती थीं. बहुत कम संसाधनों में भी घर पर वे अपना स्कूल चलाती थीं.

आप अपने काम और पारिवारिक जिंदगी के बीच कैसे तालमेल बैठाती हैं?

मैं समय का सदुपयोग करते हुए अपने काम और पारिवारिक जिंदगी के बीच संतुलन बनाए रखती हूं. मैं ने दिन के वक्त काम के अनुसार अपना समय बांट रखा है. मैं खुद को स्वस्थ रखने के लिए सुबह व्यायाम और ध्यान करती हूं और फिर दोपहर से अपना दैनिक कामकाज संभालती हूं, जिस में औफिस जाना भी शामिल है. मैं शाम के वक्त अपने परिवार के साथ पर्याप्त समय बिताती हूं.

अपने कैरियर के शुरुआती चरण में किसी तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा और उन से कैसे उबरीं?

शुरू से ही मेरी अच्छी शुरुआत रही, क्योंकि मैं ईमानदार, आत्मप्रेरित और परिश्रमी रही. मेरी एकमात्र दिक्कत यह थी कि लोगों के साथ कारोबार करने के दौरान मैं आक्रामक नहीं हो पाती थी. अभी भी मैं इस प्रवृत्ति से उबरने की कोशिश कर रही हूं.

आप के कैरियर में क्या कोई ऐसा व्यक्ति भी आया जिस ने आप की काबिलीयत पर उंगली उठाई हो?

मैं अपने कैरियर के प्रति बहुत कर्तव्यनिष्ठ रही हूं, इसलिए मेरी काबिलीयत पर किसी ने अब तक उंगली नहीं उठाई है. सभी ने मुझे सहयोग दिया और मुझे अपना लक्ष्य पाने में मदद की.

क्या आप को अभी भी लगता है कि पुरुष वर्चस्व वाले इस उद्योग में आप के लिए सफलता की सीढि़यां चढ़ना मुश्किल है?

नहीं, मैं ने ऐसा कभी महसूस नहीं किया. अपने मामले में तो मुझे कभी आगे बढ़ने में मुश्किलें नहीं आईं. मैं ने जो चाहा उसे अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण की बदौलत हासिल किया.

आप को परिवार वालों ने कैसे प्रोत्साहित किया?

उन्होंने हमेशा मुझे सहयोग दिया और मेरी कई समस्याओं का निबटारा किया ताकि मुझे अपना काम करने के लिए समय मिल सके.

हमारे देश में महिलाओं की भूमिका पिछले 2 दशकों के दौरान काफी बदल गई है. बहुत सारी महिलाएं उन क्षेत्रों में पदार्पण कर रही हैं, जिन्हें उन के बस की बात नहीं माना जाता था. आप इस बदलाव को किस नजरिए से देखती हैं और आज भी किन चुनौतियों से महिलाओं को निबटना पड़ता है?

महिलाएं किसी भी माने में पुरुषों से कमतर नहीं हैं. उन्होंने जो करना चाहा है, उस में हमेशा आगे बढ़ी हैं. उन के सामने सब से बड़ी समस्या अपनी सुरक्षा को ले कर है. पुरुष कार्यस्थलों पर भी अपनी समकक्ष महिलाओं पर हावी होने की कोशिश करते हैं. यह एक बड़ी मुश्किल है, जिस से महिलाओं को निबटना पड़ता है.

आप की नजरों में महिलाओं को वित्तीय रूप से मजबूत होना चाहिए और जब वे शिक्षित हो जाती हैं और वित्तीय रूप से भी किसी पर निर्भर नहीं रहतीं तब क्या उन्हें पुरुषों का अत्याचार नहीं सहना पड़ता है?

इस में संदेह नहीं कि महिलाएं जब शिक्षित होती हैं और वित्तीय रूप से किसी पर निर्भर नहीं रहतीं तो उन्हें पुरुषों का अत्याचार नहीं सहना पड़ता है. महिलाएं दूसरों पर निर्भर रहने और अशिक्षित रहने के कारण ही जुल्म सहती हैं.

बोनिटा की ब्रैंड निदेशक के नाते इस ब्रैंड की खासीयतों के बारे में बताएं?

बोनिटा के उत्पाद खूबसूरत और अभिनव होते हैं. इन उत्पादों को आधुनिक शहरी और खुले विचारों की महिलाओं को ध्यान में रख कर तैयार किया जाता है. बहुत कम समय में ही बोनिटा ने उपभोक्ताओं के बीच अपनी एक खास जगह बना ली है. शहरी महिलाओं ने इस के साथ एक गहरा नाता बना लिया है, क्योंकि उन्हें बोनिटा के उत्पाद उन की जरूरतों के अनुकूल बनाए गए लगते हैं.

ऐसा भी बिकनी फैशन शो

ट्राइमफ नाम की इनरवियर बनाने वाली कंपनी ने अब औरतों के मेकअप का सामान भी बनाना शुरू कर दिया है. अब बिकनी फैशन शो में नएनए मेकअप प्रसाधन भी देखने को मिल रहे हैं.

इन्हें न समझें रक्षक

वाह, जब ऐसे रक्षक हों तो कहीं डर होगा ही नहीं. पर जनाब, ये रक्षक नहीं, ये तो पकड़ने वाले हैं, जो दक्षिणी अमेरिका में काराकास में सरकार विरोधी प्रदर्शन में उन प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रहे हैं जिन में लड़कियां भी हैं.

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