उम्र हो जाने पर भी कशिश बनी रहे यह सब से बड़ी सफलता है. 37 वर्षीय इसराइली टीवी होस्टेसवहां की आकर्षक हस्तियों में से है.
उम्र हो जाने पर भी कशिश बनी रहे यह सब से बड़ी सफलता है. 37 वर्षीय इसराइली टीवी होस्टेसवहां की आकर्षक हस्तियों में से है.
बीच बौल के बाद अब लौंजरी कुश्ती भी होने लगी है, जिस में बिकनी में लड़कियां जोरआजमाइश करती हैं. कौन जीते कौन हारे इस की चिंता करे बिना दर्शक खूब मजा लेते हैं.
कोमल हाथों और सुंदर चेहरेवालियों के हाथ छोटी चीजों की भी नीलामी हो तो बोली लगाने वाले जी भर कर देते हैं. अमेरिका में एड्स के लिए काम कर रही संस्था ने शैरोन स्टोन जैसी कई सुंदरियों को जमा कर खूब पैसा दान में पाया.
तनिष्क ने निजी जौहरियों की मौजूदगी के बावजूद भी अपनी जगह मार्केट में बना ली है. पहले सोचा जा रहा था कि जौहरियों का काम बड़ी कंपनियां नहीं कर पाएंगी पर अच्छे प्रचार और सही डिजाइनों के बल पर एक कंपनी ने अब जौहरियों को टक्कर देनी शुरू कर दी है. इन में एक बड़ी बात है उन के प्रचार में प्यारापन. उन की एडवर्टाइजिंग एजेंसी लौ लिंटास ने एक विज्ञापन बनाया है जिस में एक ससुर जब अपनी बहू को जन्मदिन पर ई कार्ड भेजने वाला होता है तो सास बहू के लिए लाए तनिष्क के बुंदे पकड़ा देती है.
विज्ञापन चाहे जेवर बेचने के उद्देश्य से बनाया गया हो पर यह संदेश देना कि सासससुर यदि बहू के प्रति प्यार और दुलार रखेंगे तो ही घरपरिवार में सुख होगा, अच्छा लगता है. कुछ समय पहले कैडबरीज चौकलेट ने ‘कुछ मीठा हो जाए’ कह कर मिठाइयों के व्यापार को झटका दे दिया था. उस के विज्ञापन में कैडबरीज चौकलेट के साथ अच्छे काम के लिए समझदारी की बात ज्यादा लोकप्रिय हुई. इतनी कि चुटकुला चल पड़ा कि पत्नी कहे कि वह तलाक दे देगी तो पति उसे चौकलेट खिलाए. मनाने के लिए नहीं, अच्छा काम करने से पहले मीठा खिलाने के लिए.
बड़ी कंपनियों ने अब प्रचार और सेवा के बल पर छोटे दुकानदारों को बड़ी चुनौती दी है. छोटे दुकानदार आज भी ग्राहक को पैसा लूटने का माध्यम समझते हैं और उस की सेवा करना उन की शब्दावली में ही नहीं होता. जिस की दुकान चलती है वह ठसके से व्यवहार करता है- माल लेना है तो लो वरना आगे चलो. छोटे दुकानदार प्रचार करना तो दूर जहां ग्राहक खड़ा हो वहां की जगह न साफ रखते हैं न वहां पंखा तक लगाते हैं. बहुत तो दुकान ही इस तरह बनाते हैं कि ग्राहक सड़क पर खड़ा हो. ग्राहक का मन पढ़ना और उस की सेवा करना हर उत्पादक और उस के विक्रेता का काम है. यह पाठ छोटे मंझोले दुकानदार नहीं समझते क्योंकि वे ग्राहक की जेब ढीली करने में लगे रहते हैं. ऐसे दुकानदार खराब डुप्लीकेट सामान औनेपौने दामों में बेचते हैं और फिर ग्राहकों से झगड़ते हैं. उधर बड़ी कंपनियां उन्हें घर में रहने का पाठ भी पढ़ाती हैं.
कस्टमर इज द किंग का मतलब ही यह है कि किंग की हर बात का खयाल रखें. अगर लाखों छोटे व्यापारियों के होने के बाद बड़े दुकानदारों की चेन बिना मालिक की मौजूदगी में मैनेजरों के बल पर पल रही है तो इसीलिए कि बड़े दुकानदार ग्राहक को ज्यादा समझते हैं. उस से कमाते हैं, उसे धोखा दे कर लूटते नहीं.
प्याज और पैट्रोल के दाम नरेंद्र मोदी के अच्छे दिनों के वादों पर काले धब्बे लगा रहे हैं. जबरदस्त प्रचार और वादों, सपनों पर जो चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने जीता था उस का रंग उतर रहा है. नरेंद्र मोदी की सरकार बजाय प्रशासन को चुस्त करने और भ्रष्टाचार दूर करने, सरकारी शिकंजों को ढीला करने के लिए गवर्नरों को हटाने में लगी दिखाई दे रही है.
जब सरकार बदलती है तो बहुत से लोग बदलते हैं. पर यदि कांग्रेस द्वारा नियुक्त किए गए गवर्नर 5-6 महीने रुक जाते तो आफत क्या आ जाती? ये गवर्नर सरकार के काम में अडं़गा तो नहीं डाल रहे. इस के बजाय सरकार को अर्थव्यवस्था को सुधारने में समय लगाना चाहिए.
आज जनता उन नियमों व कानूनों से कराह रही है, जो पिछली सरकारों ने जनता पर थोपे थे. जिन का एकमात्र उद्देश्य आम जनता को सरकारी नौकरशाही का गुलाम बनाना था. बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाना हो या ड्राइविंग लाइसैंस बनवाना हो, न केवल समय लगता है, पगपग पर नौकरशाही द्वारा थोपी गई रिश्वतखोरी का भी सामना करना पड़ता है. अगर पिछली सरकार को भ्रष्ट होने के कारण हटाया गया है तो नई सरकार को इन खंदकों को पाटने का काम शुरू करना चाहिए न कि अपनों को रेवडि़यां देने के लिए गवर्नरों व आयोगों में स्थान खाली कराने का.
यह ठीक है कि राज्यपालशान से रहते हैं पर जब तक उन का कार्यकाल नियत है, केवल शासन बदलने पर उन्हें हटाना वैसे गलत है. नैतिकता को आधार बना कर जीती पार्टी पिछली पार्टी की तरह पहले ही माह में निरर्थक अनैतिक कामों में उलझने लगे तो जनता का खिन्न होना स्वाभाविक है.
आज जनता सरकार से बहुत अपेक्षाएं कर रही है, लेकिन जनता पर सरकार इतनी हावी हो गई है कि जनता को जो चाहिए उस के लिए सरकार की ओर देखती है. सरकार ने भी जिम्मेदारियों को जबरन अपने सिर पर ले लिया है क्योंकि उस से उसे लाभ होता है, नौकरशाही मजबूत होती है.
नरेंद्र मोदी की सरकार यदि इन मामलों में कुछ नहीं करेगी तो जनता अपनेआप को ऐसे ही ठगा महसूस करेगी जैसे बेटी की बलि खजाने के लालच में देने वाला पिता करता है. अब फैसले टोटकों और मंत्रों के नहीं, व्यावहारिकता और सरलता के हों ताकि जनता अपना काम निडर हो कर कर सके. कांग्रेसी राज्यपालों व आयोगों के सदस्यों को कुछ माह मजे करने दिए जाते तो क्या हरज होता?
अस्पताल में अपने साथ बैठे बीमार के प्रति सहानुभूति अनायास ही पैदा हो जाती है और यदि उसे आर्थिक कठिनाई हो तो लोग आसानी से अपनी जेब ढीली कर देते हैं. इस मानवीयता का गलत लाभ उठाने वाले कम नहीं हैं. दिल्ली के एम्स में तो ऐसे लोगों की तादाद बहुत है, जो इस तरह के नए व अच्छे बहाने बनाते हैं कि साथ वाले इन के झांसे में आ ही जाते हैं.
ये लुटेरे बाकायदा अपनी परची बनवाते हैं. इन में महिलाएं भी होती हैं. ये चेहरे पर दर्द का नाटक दिखा सकते हैं और पैसे की कमी का रोना व अपने रिश्तेदारों का बखान कर सकते हैं, जो समय पर पहुंच नहीं पाए. ये लोग नकली मोबाइल पर नेताओं से बात करते भी नजर आते हैं और दिखाते हैं कि उधार लिया पैसा कुछ घंटों में लौटा देंगे. लेकिन ऐसे दरियादिल दूसरे बीमार व्यक्ति या उस के रिश्तेदारों से पैसा मिला नहीं कि वे गायब और किसी और कोने में शिकार ढूंढ़ने लगते हैं.
यह मानवता ही है कि लोग अपने अनजान साथी की भी सहायता करते ही हैं. यह अच्छी बात है पर इस मानवता पर तेजाब ये लुटेरे डाल रहे हैं. कानून की तो नहीं पर समाज की पकड़ इन पर होनी चाहिए कि ये मानवता को नष्ट करने की इतनी ज्यादा बेईमानी न करें कि लोग जरूरतमंद की सहायता करना ही भूल जाएं.
हमारा धर्म भी इस में कम नहीं है. हर मंदिर में बोर्ड लगे रहते हैं कि चोरों जेबकतरों से सावधान रहें. क्या भगवान या पुजारी और प्रबंधक इतनी तेज दृष्टि भी नहीं रखते कि चोर और साहूकार में फर्क कर सकें? असल में मंदिर में जहां लाइनें लगती हैं वहां चोरों और जेबकतरों के गिरोह बन जाते हैं, जो चौकीदारों के साथ मिल कर भगवानों की नाक के नीचे लूटपाट करते हैं. ये भगवान कैसे भक्तों की रक्षा कर सकते हैं, यह सवाल पूछने लायक ही नहीं, क्योंकि कुल मिला कर धर्म में सिखाया ही यह जाता है कि भक्तों को पैसा देने को तैयार करो और वह भी कपोलकल्पित कथाओं के बल पर.
हर धर्मस्थल पर, चाहे किसी धर्म का हो, लूटपाट होती है. पिछले वर्ष उत्तराखंड क्षेत्र में आई आपदा के दौरान मरते लोगों को भी लूटा गया और जो मर गए उन के भी पैसे व जेवर लूटे गए. जब समाज का सब से सुधरा माने जाने वाला अंग इस तरह लूट मचाता है तो बाकी का तो क्या?
अस्पतालों में लोग साथ वाले मरीज की सहायता इसलिए करते हैं क्योंकि वे खुद बीमारी का दर्द महसूस कर रहे होते हैं. वे पुण्य कमाने की इच्छा से नहीं, बल्कि अपने साथ बैठे अनजान का दर्द कम करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. अस्पतालों में ऐसों की कमी नहीं, जो घंटों अनजान बीमारों की सेवा करते हैं, दवाएं ला कर देते हैं, खून तक देते हैं.
जहां दर्द है, जहां मौत दिखती है और जहां किसी पुण्य या चमत्कार की इच्छा न हो वहां लोग मानवता नहीं दिखाते पर जहां धर्म है वहां मलाला यूसुफ जई जैसियों को गोली मारी जाती है. धर्म के नाम पर अबोध लड़कियों को बोको हराम जैसे नाइजीरियाई इसलामी कट्टर गुटों द्वारा अपहरण कर के बलात्कार का निशाना बनाया जाता है, तो छोटी विधवाओं को वाराणसी और वृंदावन की गलियों में धकेल दिया जाता है.
मानवता धर्मांधता से ज्यादा श्रेष्ठ है और यही समाज को चला रही है, घंटेघडि़याल नहीं.
गृहशोभा का मई (द्वितीय), 2014 ‘समर ब्यूटी × मेकअप विशेष’ कई चीजों से सावधान कराता है. इस अंक में प्रकाशित लेख ‘जी का जंजाल नौकर’ बेहद पसंद आया. इस में नौकरों व मालिकों की मानसिकता का संपूर्ण विश्लेषण किया गया है.
जैसे महरी रखने पर उस के नाजनखरे उठाना स्वाभाविक है, ठीक वैसे ही नौकर रखने पर डर लगना भी स्वाभाविक है. फिर भी अगर सुरक्षा के लिहाज से कहा जाए कि नौकर न रखें तो यह पूरी तरह ठीक न होगा.
लेख में यह भी बताया गया है कि नौकर से रिश्ता भरोसेमंद बनाए रखने के लिए किनकिन बातों का ध्यान रखा जाए.
–नूपुर अग्रवाल, उत्तर प्रदेश
गृहशोभा, मई (द्वितीय), 2014 अंक पसंद आया. लेकिन लेख ‘पंडों का चक्रव्यूह’ अतिशयोक्तिपूर्ण लगा. वर्तमान समय में देश में शायद ही कोई घर ऐसा हो जहां मरीज को डाक्टर को दिखाने के बजाय पूजापाठ व पंडों को दानदक्षिणा दे कर मरीज के ठीक होने की उम्मीद की जाती हो. आज पूरा देश अंधविश्वास एवं धर्मआधारित राजनीति से बाहर आने का तेजी से प्रयास कर रहा है. 16वीं लोकसभा के चुनाव इस बात का प्रमाण हैं कि सभी धर्मों के लोगों ने धार्मिक एवं जातिगत आधार छोड़ कर मतदान किया. यह देश की राजनीति और समाज के लिए शुभ संकेत है.
–जयंत सराफ, मध्य प्रदेश
गृहशोभा का मई (द्वितीय), 2014 ‘समर ब्यूटी × मेकअप विशेष’ हमेशा की तरह अपनी पूर्ण साजसज्जा के साथ मेरे हाथों में है. गृहशोभा में जीवन के हर आवश्यक पहलू जैसे फैशन, स्वास्थ्य, यात्रा, दांपत्य, मनोरंजन, तरहतरह के व्यंजन, कविताएं, कहानियां और ज्ञानवर्धक लेखों के साथसाथ महिलाओं से संबंधित उपयोगी जानकारी भी समयसमय पर पढ़ने को मिल जाती है, जिसे पढ़ कर महिलाएं अपने कर्तव्यों के प्रति सजग एवं आत्मनिर्भर बन कर अपनी घरगृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने में सक्षम होती हैं.
अवसाद के क्षणों में कभी जब मूड औफ होता है, मन उदास होता है, तो ‘बात जो दिल को छू गई’, ‘मंडप के नीचे’, ‘फुहार’ आदि स्तंभ पढ़ने पर चेहरे पर मुसकान आ जाती है.
–कंचन खनेजा, दिल्ली
गृहशोभा के मई (द्वितीय), 2014 अंक में प्रकाशित लेख ‘7 उपाय केशों को गरमी से बचाएं’ मन को बहुत भाया. हर साल की तरह इस बार भी गृहशोभा ने गरमी शुरू होते ही अपने पाठकपाठिकाओं के लिए ‘समर ब्यूटी × मेकअप विशेष’ प्रस्तुत कर एक बार फिर यह साबित कर दिया कि आखिर गृहशोभा क्यों सब की पहली पसंद है. इस लेख ने महिलाओं को अपनी सुंदरता बनाए रखने के कई कारगर घरेलू नुसखों से अवगत कराया.
महिलाओं को गरमी के मौसम में सब से बड़ी समस्या केशों को ले कर होती है, जिस के समाधान के इस लेख में आसान नुसखे बताए गए हैं.
-खुशबू, नई दिल्ली
सर्वश्रेष्ठ पत्र
गृहशोभा के मई (द्वितीय), 2014 अंक में विहंगम में प्रकाशित टिप्पणी ‘सावधान, यहां एक से बढ़ कर एक शातिर हैं’, वर्तमान समय की एक बड़ी हकीकत है.
कई बड़े शहरों में इस तरह की समस्या से आम जनता जूझ रही है. इतनी महंगाई और ऊपर से मकान मिलने की उम्मीद में पैसा लगाने के काफी समय बाद कोर्ट के आदेश से अवैध घोषित होने पर भवननिर्माण पर रोक लग जाना वाकई खरीदारों के लिए बेहद परेशानी भरा होता है.
दूसरी ओर बिल्डरों की मनमानी और जालसाजी के मामले भी आए दिन देखनेपढ़ने को मिलते हैं. कुल मिला कर नुकसान खरीदारों को ही उठाना पड़ता है.
इस अंक में इन सब कठिनाइयों से न केवल अवगत कराया गया वरन इन से कैसे बचें, गृहशोभा के इस लेख ने हमें इस के उपाय भी बताए.
-सारा गुप्ता, राजस्थान
गृहशोभा के मई (द्वितीय), 2014 अंक में कहानी ‘फायदे का नुकसान’ बहुत अच्छी लगी. इस में इंसानी जज्बातों का बहुत ही सार्थक ढंग से वर्णन किया गया है. नाराज रिश्तेदारों को अपने घर में देख कर स्मिता बहुत खुश हो गई और उसे चोरों द्वारा ले जाई गई चीजों के बदले मिली खुशी ज्यादा फायदे की लगी. हम अपने स्वाभिमान के कारण रूठे हुओं को मनाने नहीं जाते पर हम अपनों से प्यार बहुत करते हैं. उन का हमेशा साथ चाहते हैं. यही सोच हमारे अपनों की भी होती है.
यह कहानी पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. इन्हीं प्रभावपूर्ण कहानियों की वजह से मैं गृहशोभा की नियमित पाठिका हूं.
-पुष्पा शर्मा, दिल्ली
कलर टीवी के धारावाहिक ‘उतरन’ की तपस्या (रश्मि देसाई) अपने बढ़ते मोटापे से इतना परेशान हो गईं कि उन्हें इस से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ सर्जरी ही एकमात्र उपाय नजर आया. रश्मि ने लाइपोसक्शन करा शरीर की कुछ चरबी घटाई है. दरअसल, बढ़ते वजन ने रिऐलिटी शो ‘झलक दिखला जा 5’ में उन्हें कई बार परेशानी में डाल दिया था. तब उन की स्थूल काया की खूब आलोचना भी हुई थी. उस दौरान उन्होंने अपने वजन को मैंटेन करने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी
रवि दुबे इन दिनों अपना नाम निया शर्मा के साथ जोड़े जाने के कारण नाराज हैं. उन का कहना है कि बिना वजह उन का नाम निया के साथ बदनाम किया जा रहा है. उन दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है जिस की चर्चा हो रही है. रवि दुबे और निया शर्मा जल्द जी टीवी के एक आने वाले शो में एकदूसरे के अपोजिट नजर आने वाले हैं. लेकिन अभी हाल ही में वे एक इलैक्ट्रौनिक चैनल के कैमरे में लेट नाइट एक कौफी हाउस में नजर आए थे. यहीं से दोनों के लिंकअप की खबर भी फैल गई. दोनों ही इस बात से खफा हैं कि इस तरह की अफवाहें उन की नकारात्मक छवि गढ़ रही हैं. रवि हाल ही में कुछ समय पहले टीवी ऐक्ट्रैस सरगुन मेहता के साथ शादी के बंधन में बंधे हैं, ऐसे में उन का परेशान होना भी लाजिमी है.
बीते दिनों की अदाकारा पद्मिनी कोल्हापुरे और पूनम ढिल्लन कई सालों के बाद एकसाथ छोटे परदे पर दस्तक दे रही हैं. ये दोनों ही सोनी चैनल के फेमस सासबहू के रिश्तों पर आधारित धारावाहिक ‘एक नई पहचान’ में एकसाथ अभिनय करती दिखाई देंगी. गौरतलब है कि 23 साल पहले वे फिल्म ‘कुरबानी रंग लाएगी’ में नजर आई थीं. इस फिल्म में संजय दत्त मुख्य किरदार में थे.
इस धारावाहिक में पूनम ढिल्लन पहले से ही महत्त्वपूर्ण किरदार निभा रही हैं. अब पद्मिनी कोल्हापुरे भी इस सीरियल में ऐंट्री ले कर अपना टीवी कैरियर शुरू करने जा रही हैं.