सत्ता में बढ़ता स्त्री का कद

योग्यता, कर्मठता और अनुशासन के साथसाथ धर्मनिरपेक्ष छवि रखने वाली बीजेपी की वरिष्ठ महिला नेता सुषमा स्वराज को भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का रुतबा हासिल हुआ है.

फरवरी, 1952 को अंबाला कैंट में जन्मीं सुषमा स्वराज ने पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिगरी ली है. लंबे समय तक बतौर अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय में काम करने के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुईं और 1998 में दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया. वे भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता बनने वाली पहली महिला भी हैं और भारत की सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार पाने वाली पहली महिला भी.

सुषमा शुरू से ही लोगों के आगे एक मिसाल बनती रही हैं. 1970 में उन्हें एस.डी. कालेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा का सम्मान दिया गया. वे 3 साल तक इस कालेज में एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट और

3 साल तक राज्य की श्रेष्ठ वक्ता भी चुनी गईं. चौधरी देवीलाल की सरकार में 1977 से 79 के बीच हरियाणा की श्रम मंत्री रह कर 25 साल की उम्र में कैबिनेट मंत्री बनने का रिकौर्ड बनाया. 1987 और 1996 में केंद्र में सूचना व प्रसारण मंत्री के रूप में उन की काफी सराहना हुई.

2014 के लोकसभा चुनावों में विदिशा से सुषमा ने 4,10,698 वोटों से शानदार जीत हासिल की. जुलाई 1975 में स्वराज कौशल से उन का विवाह हुआ. कौशल 6 साल तक राज्यसभा के सांसद रहे. फिर मिजोरम के राज्यपाल भी बने. स्वराज कौशल अब तक सब से कम आयु में राज्यपाल का पद प्राप्त करने वाले व्यक्ति हैं. सुषमा स्वराज व उन के पति की उपलब्धियों के ये रिकौर्ड लिम्का बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में दर्ज करते हुए उन्हें विशेष दंपती का दर्जा दिया गया है.

स्वराज दंपती की एक बेटी है, जो औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन कर फिलहाल वकालत कर रही है. अमेठी संसदीय सीट से भारतीय आम चुनाव 2014 में कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी व आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास को कड़ी टक्कर देने वाली स्मृति ईरानी को मोदी मंत्रिमंडल में मानव संसाधन विकास मंत्री का कार्यभार दिया गया है.

 

वर्ष 1976 में दिल्ली में जन्मीं स्मृति एक रूढिवादी पंजाबी बंगाली परिवार से जुड़ी हैं. पर तमाम बंदिशों की परवाह न करते हुए 12वीं, बैचलर औफ कौमर्स पार्ट-1 (पत्राचार से) पास कर के उन्होंने ग्लैमर जगत में कदम रखा और 1998 में फेमिना मिस इंडिया सौंदर्य प्रतियोगिता के फाइनल तक पहुंचीं.

वर्ष 2000 में टीवी धारावाहिक ‘हम हैं कल आज और कल’ से कैरियर की शुरुआत की और फिर एकता कपूर के धारावाहिक ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में लीड रोल निभा कर घरघर में पहचान बना ली.

स्मृति ने 5 भारतीय टैलीविजन अकादमी अवार्ड (सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री), 4 इंडियन टैली अवार्ड और 8 स्टार परिवार अवार्ड जीते हैं. बाद में राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करते हुए 2003 में स्मृति बीजेपी में शामिल हुईं. 2010 में इन्हें भाजपा महिला मोरचा की कमान सौंपी गई. 2011 में गुजरात से वे राज्यसभा की सांसद चुनी गईं.

वर्ष 2001 में स्मृति ने जुबिन ईरानी से शादी की. उसी वर्ष उन्हें एक बेटा हुआ जिस का नाम जौहर है. सितंबर 2003 में उन्हें एक बेटी हुई. स्मृति एक बच्ची की सौतेली मां भी हैं, जो जुबिन की पहली पत्नी मोना ईरानी से है.

38 वर्षीय स्मृति ईरानी फिलहाल केंद्रीय मंत्रिमंडल की सब से कम उम्र की मंत्री हैं.

 

16वीं लोकसभा में पीलीभीत सीट से विजयी, मेनका गांधी को मोदी मंत्रिमंडल में भारत की महिला और बाल विकास मंत्री का कार्यभार दिया गया है.

मेनका गांधी का जन्म 26 अगस्त, 1956 को दिल्ली की एक सिक्ख फैमिली में हुआ था. उन की शिक्षा लौरेंस स्कूल और फिर लेडी श्रीराम कालेज, नई दिल्ली में हुई. वे मात्र 18 साल की थीं, जब इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र, संजय गांधी के साथ उन की शादी हुई. और फिर महज 23 साल की उम्र में जब उन का बेटा वरुण गांधी सिर्फ 100 दिन का था. एअरक्रैश में पति संजय गांधी की मौत हो गई. उन्होंने संजय गांधी मंच नाम से एक पार्टी बनाई और 1982 से वे सक्रिय राजनीति में आ गईं.

1988 में मेनका ने अपनी पार्टी को जनता दल के साथ मिला दिया और इस की जैनरल सैके्रटरी बनीं. पार्टी ने चुनाव जीता और 33 साल की उम्र में उन्होंने सब से कम उम्र की मंत्री बनने का रिकौर्ड बनाया.

राजनीति के अलावा मेनका एक लेखिका, पर्यावरणविद व पशु अधिकारवादी भी हैं और एक पत्रिका की संपादक भी रह चुकी हैं. उन्होंने कानून व पशुपक्षियों पर आधारित बहुत सी पुस्तकें लिखी हैं.

गृहशोभा पत्रिका में भी पशुपक्षियों और पर्यावरण से संबंधित विषयों पर मेनका गांधी का नियमित कौलम जाता है और लेखन के प्रति उन की अभिरुचि लोकसभा चुनाव में भी कम नहीं हुई और चुनावों के दौरान भी उन्होंने लिखना जारी रखा.

बेजबान पशुओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें खासतौर पर माना जाता है.

 

47 साल की हरसिमरत कौर बादल को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री के तौर पर सरकार में शामिल किया गया. वे भटिंडा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से वर्ष 2009 से लगातार 15वीं और 16वीं लोकसभा की सांसद हैं. वे शिरोमणि अकाली दल की सदस्य और पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हैं.

1966 में दिल्ली में जन्मीं हरसिमरत कौर की शादी 1991 में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर सिंह बादल के साथ हुई. हरसिमरत कौर मैट्रिकुलेट हैं और टैक्सटाइल डिजाइनिंग में डिप्लोमा होल्डर हैं.

 

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में झांसी क्षेत्र से निर्वाचित, आत्मविश्वासी व्यक्तित्व वाली उमा भारती एक प्रखर राजनीतिज्ञ, समाजसेवी होने के साथसाथ हिंदू महाकाव्यों की अच्छी जानकार भी हैं. उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में भारत की जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री बनाया गया है. वे मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं.

बीजेपी की इस बेबाक महिला नेता का जन्म मई, 1959 में मध्य प्रदेश के एक लोधी राजपूत परिवार में हुआ था. उन का पूरा नाम उमाश्री भारती है. उन का पालनपोषण ग्वालियर की तत्कालीन राजमाता विजया राजे सिंधिया द्वारा हुआ था. केवल छठी कक्षा तक पढ़ीं उमा भारती की 3 किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं.

उमा भारती का राजनैतिक सफर बहुत छोटी आयु में ही शुरू हो गया था. बीजेपी से जुड़ कर उमा ने 1984 में पहली दफा चुनाव लड़ा. वर्ष 1991 में उन्होंने खजुराहो लोकसभा सीट में जीत दर्ज कराई. इस के बाद लगातार 3 बार वे इस सीट से जीतती रहीं. वाजपेयी सरकार में उमा भारती ने विभिन्न मंत्रालयों जैसे मानव संसाधन विभाग, पर्यटन, खेल और युवा मामले आदि का पद भार संभाला.

2003 के चुनाव में विजयी होने के बाद उन्हें मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनाया गया. कुछ समय के लिए उन्हें बीजेपी से निलंबित भी किया गया था. उस दौरान उन्होंने भारतीय जनशक्ति दल का गठन किया. बाद में फिर से उन की बीजेपी में वापसी हुई और उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने गंगा बचाओ अभियान चलाया. सादगीपूर्ण लिबास में रहने वाली उमा भारती अविवाहिता हैं और अपने मकसद की राह पर आगे बढ़ रही हैं.

 

74 वर्षीय नजमा हेपतुल्ला, मोदी मंत्रिमंडल में सब से अधिक उम्र की और एकमात्र मुसलिम महिला सदस्या हैं. उन्हें अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया है. नजमा हेपतुल्ला ने मुंबई प्रदेश कांगे्रस कमेटी की महासचिव के तौर पर अपना राष्ट्रीय जीवन शुरू किया. बाद में उपाध्यक्ष का दायित्व भी निभाया. वे 1985 से 1986  और 1988 से 2007 तक राज्यसभा की उपसभापति भी रहीं. इस दौरान उन्होंने सदन की कार्यवाही का कुशल संचालन किया और सत्ता पक्ष तथा विपक्ष में भी लोकप्रिय बनीं.

13 अप्रैल 1940 को मध्य प्रदेश के भोपाल में जन्मीं डा. हेपतुल्ला को राजनीति विरासत में मिली है. रिश्ते में मोहम्मद अबुल कलाम आजाद की नातिन, नजमा ने एम.एससी. करने के बाद यूनिवर्सिटी औफ डेनवर से हृदय रोग विज्ञान में पी.एचडी. प्राप्त की पर राजनीति में दिलचस्पी के कारण वे इसी में सक्रिय हो गईं.

राजनीतिज्ञ होने के साथसाथ वे लेखिका भी हैं. उन्होंने ‘एड्स: ऐप्रोचेज टु प्रिवैंशन’ नाम की किताब भी लिखी है. इस के अलावा भी वे कई तरह के विषयों पर लिखती रही हैं.

नजमा के पति अकबर अली ए. हेपतुल्ला का निधन हो चुका है. उन की 3 बेटियां हैं, जो अमेरिका में हैं.

 

निर्मला सीतारमन बीजेपी की प्रवक्ता के साथसाथ भारत की वाणिज्य और उद्योग (स्वतंत्र प्रभार) तथा वित्त व कौरपोरेट मामले की राज्यमंत्री हैं.

अगस्त, 1959 में तिरुचिरापेल्ली तमिलनाडु में जन्मीं निर्मला ने 1980 में ग्रैजुएशन किया और फिर जेएनयू से अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विषय से एम.फिल. की डिगरी ली.

निर्मला सीतारमन ने प्राइसवाटर हाउस कूपर्स के साथ वरिष्ठ प्रबंधन, शोध एवं विश्लेषक के तौर पर भी काम किया. कुछ समय के लिए उन्होंने बीबीसी विश्व सेवा के लिए भी काम किया. वे हैदराबाद स्थित प्रणव स्कूल के संस्थापकों में से एक हैं.

निर्मला 2003 से 2005 तक राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य भी रह चुकी हैं. उन का विवाह डा. परमल प्रभाकर से हुआ, जो लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स के पूर्व छात्र हैं. वे एक राजनीतिक टीकाकार, लोकप्रिय टीवी ऐेंकर और एक बुद्धिजीवी हैं, वर्तमान समय में डा. परमल प्रभाकर राईफोलिया में एम.डी. हैं.

गरीबी बन रही सजा

ऊपर आप ने कंबोडिया के अंगकोरवत्त और किलिंग के बारे में पढ़ा. अब यह भी जान लें कि वहां गरीबी भी है और नौकरानियों के लिए वहां की लड़कियों को स्मगल किया जाता है. इस रैकेट में ताईवानी औरत लिन यू शिन को पकड़ा गया है और उसे नीदरलैंड में 10 साल की सजा सुनाई गई है. रांची की लड़कियों के व्यापार पर क्या किसी को इस तरह की सजा मिली है?

स्वाद के लिए मत मारो मुझे

पैक्ड मछली रू 850 किलोग्राम, पैक्ड बकरे का मांस रू 800 किलोग्राम, पैक्ड आदमी रू 20 किलोग्राम. यह नया सुपर मार्केट फ्रांस में दिखा जहां जानवरों के प्रति हिंसा के विरोधी आंदोलनकारी खुद को पैक कर के मीट खाने वालों को शर्मिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं.

यह कैसी शानोशौकत

जानवरों पर अत्याचार अभी भी कम नहीं हो रहे. अमीर लोग दुर्लभ जानवरों की हड्डियों, खालों, दांतों और यहां तक कि खोपडि़यों तक का इस्तेमाल महज सजावट के लिए करने से बाज नहीं आ रहे. आस्ट्रेलिया के कस्टम विभाग ने औरेंगुटन किस्म के बंदर की नक्काशी की हुई खोपडि़यां पकड़ीं. जानवरों को बचाना है तो अमीरों को उन्हें शान की चीज समझना बंद करना होगा.

अब स्मृतियां ही शेष

1975 से 1979 यानी केवल 4-5 वर्ष में कंबोडिया की कट्टर खामेर रूज सरकार ने लाखों को बेघर कर दिया और लाखों को मार डाला. उन की याद में जगहजगह अब स्मृतियां बची हैं जहां लोग अपने प्रियजनों को श्रद्धांजलि देने आते हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि अंगकोरवत्त मंदिरों के लिए प्रसिद्ध यह देश अब साफसुथरा भला सा लगता है, अपने देश जैसा बिखरा, गरीब, गंदा नहीं.

मेहनत का अच्छा नतीजा

यह छोटू कुमामोन कोई देवीदेवता नहीं, जापान के कुमामोटो जिले का एक प्रतीक चिह्न है जिसे अब वहां के एक जौहरी ने 10 किलोग्राम सोने का बनाया है. पर्यटक इस जिले में आएं और जापानी आवभगत का मजा लें, इस के लिए आम व्यापारी भी मेहनत करते रहते हैं.

बड़ा होता फिल्मी बाजार

जापान की जानीमानी अभिनेत्री अयाका कोमात्सु अब हौलीवुड को डरा रही है, क्योंकि जापानी, चीनी फिल्मों का बाजार अमेरिका के बाजार से बड़ा होता जा रहा है.

ताकि गुम न हो जाए इतिहास

गलीमहल्लों में होने वाली लीलाओं में उन्हें बड़ा मजा आता है जिन्हें नाटकों या अभिनय से कोई मतलब नहीं. एक टैंट में अपने को पोतते हुए युवक, युवती व बच्चे की खुशी तो देखिए. हर कालोनी, सोसाइटी और महल्ले को इस तरह के आयोजन करते रहना चाहिए.

कागज के फूल महकते नहीं

यौन संबंधों की आजादी की वकालत करना तो अच्छा लगता है पर यह आजादी भारी भी पड़ती है. जैसे नारायणदत्त तिवारी को अपने आखिरी दिनों में अपने जैविक बालिग बेटे को अपनाना पड़ा तो उस की मां को अपने जीवन में अपनी निजी इच्छा के खिलाफ फिर प्रवेश की इजाजत देनी पड़ी.

कांगे्रसी नेता दिग्विजय सिंह की खूब फजीहत उड़ी जब उन के एक पत्रकार के साथ संबंधों के राज ही नहीं, अंतरंग क्षणों के फोटो भी जगजाहिर हो गए.

दिल्ली में एक पुत्र ने 18 साल पहले हुई अपने पिता की मौत के लिए एक पुलिस वाले और अपनी मां के संबंधों को ले कर अदालत का दरवाजा खटखटाया है. इस मामले में 18 साल पहले उस के पिता की एक सड़क दुर्घटना में मौत हुई बताया गया और उस के बाद एक पुलिस वाले का घर आनाजाना बढ़ गया. अब जब बेटा 25 साल का हो गया तब भी उस पुलिस वाले का घर आना बरकरार रहा. बेटे ने सामाजिक आपत्ति की दुहाई देते हुए उस व्यक्ति को घर आने से रोका तो उसे धमकी दी गई कि जिस तरह उस के बाप को रास्ते से हटा दिया गया था, उसी तरह उसे भी हटा दिया जाएगा. बेटे ने अब मां और उस के मित्र के खिलाफ पिता की हत्या की जांच के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है.

विवाह या बच्चे दिल पर ताला नहीं लगा सकते. अगर स्त्रीपुरुष में लगाव पैदा होने लगे तो लोग अपने पूरे कैरियर, कामकाज, वर्षों के धंधे और राजपाट तक को दांव पर लगा देते हैं. बालिगों के बीच बनते संबंधों पर आसानी से रोक भी नहीं लगाई जा सकती. विवाहित साथी की तलाक की मांग से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उस के बाद विवाहित साथी को न सिर्फ आर्थिक कष्ट झेलने पड़ सकते हैं, अकेलापन व सामाजिक अवहेलना भी सहनी पड़ सकती है.

बच्चे भी अकसर बंट कर रह जाते हैं. उन का ध्यान अपने कैरियर से हट कर दूसरी ओर चला जाता है. यदि तलाक की लंबी उबाऊ प्रक्रिया चालू हो जाए तो बच्चों के पालनपोषण के अधिकार को ले कर वे चक्की के 2 पाटों में पिसने लगते हैं.

विवाह बाद के संबंधों में कानूनी रोक असंभव है, क्योंकि इस का अपराधीकरण करना एक नई मुसीबत को सामने लाना होगा. हमारे कानून में पति अपनी पत्नी के दूसरे से संबंधों पर आपराधिक कानूनी कार्यवाही तो कर सकता है पर उसे साबित करना पड़ेगा कि दोनों में यौन संबंध हैं. इस दौरान उस की फजीहत ज्यादा होगी इसलिए यह हक भी कम इस्तेमाल होता है.

विवाह एक सामाजिक समझौता है और दोनों पक्षों को इसे खुशीखुशी मानना चाहिए. यही सुख का आधार है. बाहर सुख ढूंढ़ना चाहोगे तो कंकड़ और कांटे ज्यादा मिलेंगे कहकहे कम. जहां यह होने लगे वहां पतिपत्नी दोनों को इस पर परदा डाल कर रखना चाहिए और बातबेबात हल्ला नहीं मचाना चाहिए. यह सोचना कि मरनेमारने की घुड़की से साथी को हराया जा सकता है, गलत है. परेशान साथी फिर बाहर शांति और सुकून ढूंढ़ता है.

स्त्री शक्ति पर भरोसा

नरेंद्र मोदी ने सुषमा स्वराज को विदेश मंत्रालय दे कर यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि मंत्रिमंडल में महिलाएं केवल दिखावटी, सजावटी चेहरा नहीं होतीं, उन से गंभीर काम भी कराए जा सकते हैं.

विदेश मंत्रालय आजकल एक तौर से गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय से भी ज्यादा महत्त्व का मंत्रालय बन गया है, क्योंकि सारे देशों की अर्थव्यवस्थाएं अब रेल के डब्बों की तरह एकदूसरे से जुड़ गई हैं और 1 डब्बे की आग दूसरे को खतरा पहुंचा सकती है. सभी देशों के साथ तालमेल बैठाए रखना एक टेढ़ी खीर है.

सुषमा स्वराज पहले आमतौर पर घरेलू राजनीति पर ही ज्यादा बोलती थीं पर आशा है कि वे हिलेरी क्लिंटन की तरह विदेश मंत्रालय को और प्रभावशाली बना सकेंगी.

भारत इस समय ज्वालामुखियों के बीच में है. पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, चीन सब विदेशी मामलों से जूझ रहे हैं, क्योंकि उन की आतंरिक स्थिति का निर्णय कहीं बाहर हो रहा है.

पाकिस्तान अमेरिका पर निर्भर है, तो चीन को तिब्बत व अपने मुसलिम इलाकों की वजह से विदेशी समर्थन चाहिए. श्रीलंका में तमिल संहार की खून भरी कहानी अभी फीकी नहीं पड़ी है, तो म्यांमार कब फिर फौजियों के हाथों चला जाए पता नहीं, क्योंकि उस के पड़ोस का थाईलैंड अच्छे भले लोकतंत्र से मुड़ कर सैनिक शासन की ओर जा रहा है.

विदेश मंत्री को अफगानिस्तान का मसला न दिल्ली, न काबुल और न इसलामाबाद बल्कि ब्रुसैल्स, लंदन, न्यूयार्क और वाशिंगटन में सुलझाना होगा. भारत के हित अफगानिस्तान से जुड़े हैं और कोई भूलचूक बहुत महंगी पड़ सकती है.

इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी सरकारों को चलाती रही हैं पर विदेश मंत्रालय में जो औपचारिकता निभानी होती है, वह विलक्षण होती है और वहां हलकी सी बात को भी गंभीर रूप से लिया जाता है. सौम्य व्यक्तित्व से वैसे काफी देशों की विदेश मंत्री काम बनाती रही हैं और उम्मीद करिए कि सुषमा स्वराज भी चूल्हे की गैस को उपयोगी बना कर रखेंगी.

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