प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी ब्रैस्ट कैंसर का निदान

अभी हाल ही में सोशल नैटवर्किंग साइट में हौलीवुड अभिनेत्री एंजेलिना जोली के एक पोस्ट ने उन के चाहने वालों के बीच हलचल मचा दी. अपने पोस्ट में एंजेलिना ने अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए स्वेच्छा से अपने स्तन को निकलवा देने यानी मैस्टेकटोमी करवा लेने का एलान किया.

बहरहाल, सोशल नैटवर्किंग साइट में इस एलान के कुछ दिनों बाद उन्होंने न्यूयार्क टाइम्स में ‘माई मैडिकल चौइस’ शीर्षक से एक लेख में लिखा कि उन्होंने हाल ही में खून में बीआरसीए-1 जिन, जो स्तन कैंसर के लिए जिम्मेदार माना जाता है, की उपस्थिति की जांच करवाई थी. इस जांच से पता चला कि इस जिन की उपस्थिति उन के खून में है. जांच रिपोर्ट में कयास लगाया गया था कि निकट भविष्य में स्तन और बच्चेदानी में कैंसर की आशंका है.

हालांकि जांच में 87% स्तन कैंसर की और 50% बच्चेदानी में कैंसर की आशंका व्यक्त की थी, लेकिन स्तन कैंसर की आशंका 87% थी, इसीलिए उन्होंने सब से पहले प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का रास्ता चुना और इस के तहत उन्होंने अपने दोनों स्तन सर्जरी के माध्यम से कटवा कर निकलवा दिया.

इतना कठिन फैसला लेने के बावजूद एंजेलिना जोली के आत्मविश्वास में जरा भी कमी नहीं आई. उलटे उन्होंने लिखा है कि इस से नारीत्व पर जरा भी असर नहीं पड़ेगा. हालांकि लेख में उन्होंने यह भी लिखा है कि जांच में कैंसर की संभावना ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया था, क्योंकि 2007 में स्तन कैंसर ने महज 56 साल की उम्र में उन की मां को छीन लिया था. अपनी मां को उन्होंने तड़पते हुए देखा था. वे खुद उस दौर से गुजरने को कतई तैयार नहीं थीं, इसीलिए उन्होंने मैस्टेकटोमी का फैसला लेना कहीं बेहतर समझा.

और भी हैं इस राह के राही

पर तथ्य बताते हैं कि प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का रास्ता अकेले एंजेलिना जोली ने नहीं अपनाया है, बल्कि अमेरिका में ऐसे बहुत सारे मामले देखने को मिल जाएंगे. खून में बीआरसीए-1 जिन जांच का नतीजा पौजिटिव पाए जाने के बाद अमेरिका में कैंसर पीडि़त होने की संभावना वाली 30% महिलाएं मैस्टेकटोमी का रुख अपनाती हैं.

डाक्टरी परिभाषा में इसे प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का नाम दिया गया है और अमेरिका सहित यूरोप में इस की बहुत सारी मिसालें मिल जाएंगी. जाहिर है इस तरह के फैसले की घोषणा करने वाली अकेली एंजेलिना नहीं हैं.

1974 में अमेरिका की फर्स्ट लेडी बेट्टी फोर्ड ने भी यही किया था. बेट्टी फोर्ड अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जेराल्ड फोर्ड की पत्नी हैं.

2007 में लास एंजिल्स टाइम्स की एक महिला पत्रकार ऐन गरमैन ने भी अपने कौलम ‘फर्स्ट पर्सन अकाउंट’ में अपने मैस्टेकटोमी की खबर को आम किया था.

कैंसर का प्रकोप

आजकल दुनिया भर में स्तन कैंसर का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि इस समय हमारे देश में स्तन कैंसर पीडि़त महिलाओं की संख्या 4 लाख से भी अधिक है. अकेले प. बंगाल में इस समय लगभग 50 हजार महिलाएं इस की शिकार हैं. चिंता का विषय यह है कि पूरे देश में हर साल कम से कम डेढ़ लाख महिलाएं स्तन कैंसर की शिकार होती हैं.

कोलकाता में विजया मुखर्जी नाम की एक महिला, जो लगभग 30 साल पहले 44 साल की उम्र में स्तन कैंसर की शिकार हो गई थीं, बताती हैं कि कैंसर से पीडि़त होने की बात मेरे लिए पहला झटका थी. सुनते ही मेरे मन में पति और अपने दोनों बच्चों का खयाल आया. दूसरा झटका तब लगा कि जब डाक्टर ने कैंसर की भयावहता के बारे में बताया.

मुझ से कहा गया कि जल्द ही कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित करने जा रहा है और इसे रोकने के लिए मैस्टेकटोमी ही एकमात्र रास्ता है. फिर मेरा औपरेशन हुआ. मैं बहुत मायूस थी, लेकिन शारीरिक तौर पर कुछ खास फर्क का पता नहीं चला. लेकिन कुछ दिनों के बाद जब घर लौटने लगी तब लगा सैकड़ों नजरें मुझे भीतर तक बींध रही हैं. मुझे लगा कि लोगों की नजरों से बचने के लिए मैं अपनेआप को कहीं छिपा लूं. मैं ने पूरी दुनिया से अपनेआप को अलग कर लिया.

आज विजया मुखर्जी ‘हितैषणी’ नामक एक एनजीओ चलाती हैं. इस के बारे में वे कहती हैं कि 1995 में स्तन कैंसर से पीडि़त और मैस्टेकटोमी करवाने वाली महिलाओं का एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था. इस सम्मेलन में वे भी शामिल हुई थीं. सम्मेलन के अनुभव को काम में लगा कर उन्होंने ‘हितैषणी’ संस्था की स्थापना की, जिस का मकसद स्तन कैंसर से पीडि़त महिलाओं को मानसिक तौर पर मजबूती देना है. शुरूशुरू में संस्था के सदस्यों की संख्या महज 5-6 थी, लेकिन आज 57 सदस्य हैं. विजया मुखर्जी की संस्था स्तन कैंसर पीडि़तों का हर तरह से सहयोग करती है.

डाक्टर की राय

आइए जानें कि प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी के मुद्दे पर डाक्टर क्या कहते हैं. कोलकाता के जानेमाने एंकोलौजिस्ट डा. गौतम मुखर्जी का कहना है कि एंजेलिना जोली ने साहस भरा कदम उठाया है, यह कहना ही पड़ेगा. लेकिन एक कैंसर विशेषज्ञ के रूप में मैं एंजेलिना जोली के इस कदम का समर्थन नहीं करता, क्योंकि कैंसर के मरीज के लिए यह सब से आखिरी विकल्प होता है. जबकि एंजेलिना जोली ने इस विकल्प का इस्तेमाल तब किया, जब जांच में सिर्फ ऐसी संभावना जताई गई थी.

वैसे भी विदेश में प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का केवल चलन ही नहीं है, बल्कि यह चलन मास हिस्टीरिया का रूप ले चुका है. इस से दुनिया के अन्य देशों में भी इस चलन के बढ़ने की आशंका प्रबल होती जाएगी.

एंजेलिना जोली का फौर्मूला मान कर चलें तो गाल ब्लैडर में पथरी की आशंका होते ही गाल ब्लैडर काट कर फेंक दिया जाना चाहिए. इसी तरह एपेंडिसाइटिस की आशंका होते ही एपेंडिक्स निकलवा दिया जाना चाहिए. बीआरएसी-1 और बीआरएसी-2 नामक जांचों का प्रचार इसलिए किया जा रहा है ताकि कैंसर होने की संभावना का पता चल सके. लेकिन इन की रिपोर्ट पौजिटिव आने का अर्थ यह कतई नहीं कि देरसवेर कैंसर का शिकार होना ही है. इन दोनों जिन की उपस्थिति से सिर्फ कैंसर की आशंका की जा सकती है. डाक्टर तो फैमिली हिस्ट्री, लाइफस्टाइल के अलावा अन्य किसी बीमारी से पीडि़त होने जैसे कई फैक्टर्स पर विचार करने के बाद ही खून की बहुत ही महंगी जांच करवाने की सलाह देते हैं.

देह सौंदर्य बनाम जीवन

स्तन कैंसर के प्रति जागरूकता अच्छी बात है. इस आधार पर महिलाओं को खुद अपनी जांच करनी चाहिए या 40 की उम्र के बाद साल में एक बार डाक्टर की सलाह पर मेमोग्राफी, सीटी स्कैन, बायोप्सी जैसी कुछ जांचें नियमित रूप से करवानी चाहिए. अगर कैंसर हो भी गया है तो रेडियोथेरैपी, कीमोथेरैपी, हारमोन थेरैपी के बाद ही मैस्टेकटोमी आखिरी विकल्प है. हालांकि डा. गौतम मुखर्जी का यह भी कहना है कि स्तन कैंसर के 90% मामलों में मैस्टेकटोमी का सहारा लिया जाता है, केवल 10% मामलों में ब्रैस्ट कंजरवेटिव सर्जरी काम आती है. इस के लिए सरकारी अस्पताल में खर्च क्व10 हजार आता है तो निजी अस्पतालों में क्व30-50 हजार और यह सर्जरी कोई भी सर्जन कर सकता है.

पर इस से भी बड़ी बात यह है कि केवल आशंका भर से इतना बड़ा कदम उठाए जाने का समर्थन नहीं किया जा सकता है. डा. गौतम मुखर्जी कहते हैं कि स्तन सर्जरी के बाद हारमोन थेरैपी की जरूरत पड़ती है, ताकि विशेष तरह के हारमोन की कमी का असर शरीर पर न पड़े. साथ ही वे यह भी कहते हैं कि मैस्टेकटोमी के बाद गर्भधारण में कोई समस्या नहीं आती है. पर हां, स्तनपान संभव नहीं है. इसलिए बच्चा स्तनपान से वंचित रहेगा, क्योंकि स्तन के अभाव में दूध नहीं बनेगा.

नारी सौंदर्य का सवाल

पर जहां तक नारी सौंदर्य का सवाल है तो इस के लिए ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन तकनीक यानी कृत्रित स्तन का विकल्प है और यह काम कौस्मैटिक सर्जन बखूबी कर सकता है. इस बारे में जानेमाने कौस्मैटिक सर्जन मनोज खन्ना का कहना है कि जहां तक ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन तकनीक की सफलता का सवाल है, तो यह बहुत कुछ इंप्लांट मैटीरियल पर निर्भर करता है. दरअसल, ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन के लिए सिलिकौन इंप्लांट, जैल इंप्लांट और स्लाइन इंप्लांट औल्टरनेटिव कंपोजिशन इंप्लांट तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस का खर्च भी मैटीरियल के आधार पर आता है.

बहरहाल, जहां तक नारी देह के सौंदर्य का सवाल है तो कैंसर पीडि़त स्तन को काट कर अलग कर देना किसी खूबसूरत ढांचे को ढहा देने जैसा हो सकता है. और अगर कैंसर की संभावना के आधार पर मैस्टेकटोमी का रास्ता अपनाया जाए तो भारतीय दर्शन में इसे देह वैराग्य से जोड़ कर देखा जा सकता है.

लेकिन एंजेलिना जोली का मामला तसलीमा नसरीन के नजरिए में नारी का अपने शरीर पर अपना नियंत्रण जैसा है. उन का कहना है कि हरेक महिला को एंजेलिना जोली की तरह खून में कैंसर पैदा करने वाले जिन की जांच करवा कर मैस्टेकटोमी के जरीए अपने शरीर का नियंत्रण अपने हाथों में रखना चाहिए, क्योंकि नारी सौंदर्य की तुलना में जीवन कहीं अधिक बड़ा और महत्त्वपूर्ण है. 

लाठी के हिमायती

भारतीय मूल के लोगों ने विदेशों में, खासतौर पर अमेरिका में खासी जगह बना ली है और उन में बौबी जिंदल भी हैं जो कट्टरवादी धर्मांध रिपब्लिक पार्टी में घुसे हैं. वे दूसरे रिपब्लिकों की तरह हर हाथ में बंदूक देने के हिमायती हैं, चाहे कितने भी निहत्थे निर्दोष मरें. उन्होंने भारत से सीखा है कि हर हाथ में लाठी हो तो बहुत कुछ हो सकता है.

मजा बच्चों और बड़ों दोनों को

ऐनिमेशन फिल्मों में बच्चों और बड़ों दोनों को मजा आता है. ‘लीजैंड औफ ओज’ नाटक की शृंखला काफी लोकप्रिय हो रही है. इस की हीरोइन बेली मैडीसन एक कार्यक्रम में ओज के कपड़े पहने मपट के साथ फिल्म की सफलता पर खुशी जाहिर कर रही है.

बाइयां बन रहीं ताकतवर

नौकरानियों पर अत्याचार केवल हमारे देश में ही नहीं होते, दुनिया भर में हो रहे हैं. दरवियाना सुलीरस्यानिंगसिंह इंडोनेशिया से हौंगकौंग ले जाई गई नौकरानी है, जिसे उस के मालिकों ने मारापीटा. अब वह नौकरानियों के हकों की प्रतीक बन गई है और 1 मई को हौंगकौंग के जुलूसों में उस के मुखौटे खूब पहने गए. अब बाई की चिंता करने का समय आ गया है. वे सच में ताकतवर बन रही हैं.

धर्म का पाखंड ऐसा भी

धर्म की दुकानें यों ही नहीं चलतीं, इस के लिए हर समय कुछ न कुछ करना पड़ता है. ईस्टर के समय सारे ईसाई जगत में धर्मगुरुओं ने ईसा की मृत्यु और पुनर्जीवित होने के दृश्य मंचित कराए ताकि धर्म का पाखंड मन में गहरा बैठा रहे और दानपात्र खनकते रहें.

मैं लड़की हूं या लड़का

हाय, मैं कैसी लग रही हूं प्यारे. प्यारे मैं जानती हूं कि मैं सैक्सी लग रही हूं पर मैं लड़की हूं या लड़का जानू तुम कैसे जानोगे, क्योंकि मैं तो टोक्यो की एलजीबीटी कम्युनिटी की हूं. एलजीबीटी यानी लेस्बियन बाई सैक्सुअल ट्रांसजैंडर. नहीं समझ आया? छोडि़ए, तसवीर देख लीजिए.

क्या होगा कुछ पता नहीं:

इस तरह  के मासूम भोले चेहरे अफगानिस्तान की जेलों में भरे पड़े हैं. वहां कानून की नहीं, पुलिस, सेना और कबीलों की चलती है और भोली, निर्दोष औरतें भी चक्करों में फंस जाती हैं. ईरान शहर की जेल से आईं 27 औरतों को वर्षों और महीनों बाद रहम खा कर छोड़ा गया है. क्या इन औरतों का भविष्य बाहर भी सुरक्षित होगा या समाज के दरिंदे इन्हें दागी मान कर नोच खाएंगे?

यह चुड़ैल है या और कोई

भागो. न जाने कौन से ग्रह से आ गई है यह चुड़ैल. अजी डरिए नहीं, यह कमाल बौडी पेंट का है, जो रूस के शहर सैंट पीटर्सबर्ग (अफवाह है कि इस का नाम जल्दी ही पुटीनबर्ग होने वाला है) के एक शो में दिखा.

पार्कों की खूबी

डिजनीलैंड पार्कों की खूबी यही है कि वहां कहानियों के पात्र सड़क पर घूमते नजर आ जाते हैं. अब पार्कों ने आम लोगों को भी परियों की दुनिया की पोशाकें देनी शुरू कर दी हैं. जरा ध्यान से जाना वहां, कहीं आप के साहब को ऐसी परी उड़ा न ले जाए.

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