खूबसूरती अंदर से आती है : यामी गौतम

विज्ञापनों से अपनी पहचान बनाने वाली अभिनेत्री यामी गौतम पहले आई.ए.एस. अधिकारी बनना चाहती थीं, क्योंकि वे एक अच्छी विद्यार्थी थीं. इस के अलावा यामी को बचपन से हमेशा कुछ अलग और चुनौतीपूर्ण काम करने की इच्छा थी, लेकिन वह क्षेत्र अभिनय का होगा यह पता नहीं था. हां यह जरूर रहा कि यामी के पिता फिल्मों और न्यूज चैनल से जुड़े हैं, जिन से उन्हें प्रेरणा मिली.

स्वभाव से नम्र, हंसमुख और मृदुभाषी यामी ने अपने कैरियर की शुरुआत धारावाहिक ‘चांद के पार चलो’ से की. इस के बाद ‘ये प्यार न होगा कम’, ‘मीठी छुरी नंबर वन’ धारावाहिकों और कई फिल्मों में भी काम किया. उन की फिल्म ‘विक्की डोनर’ काफी चर्चित रही, जिस में उन्होंने बंगाली लड़की आशिमा राय की भूमिका निभाई. इस के बाद उन की फिल्म ‘टोटल सियापा’ आई जो बौक्स औफिस पर सफल नहीं रही पर वे विज्ञापन की दुनिया में हमेशा सफल रहीं.

वे कहती हैं कि हर फिल्म के लिए मेहनत करनी पड़ती है पर अगर वह सफल नहीं हुई तो उस पर अधिक विचार न कर वे आगे निकल जाती हैं. हिंदी फिल्मों के अलावा यामी ने तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है.

एक उत्पाद की लौचिंग के वक्त उन से मुलाकात हुई तो दिलचस्प बातचीत हुई. पेश हैं बातचीत के खाश अंश:

आप अपनी खूबसूरती की देखभाल कैसे करती हैं?

मैं हमेशा संतुलित आहार लेती हूं और घर का खाना पसंद करती हूं. मैं हिमाचल की हूं, इसलिए वहां की स्पैशल डिशेज जैसे चंबा का राजमा, उरद की दाल वगैरह खूब खाती हूं. मैं अपने परिवार के बहुत करीब हूं. मुझे मां के हाथ का बना हर व्यंजन अच्छा लगता है. इस के अलावा मैं खूब पानी पीती हूं ताकि बौडी में पानी की कमी न हो.

अपनी त्वचा की देखभाल कैसे करती हैं?

संतुलित आहार हमेशा आप की त्वचा को अच्छा रखता है, इसलिए मैं खाने में फल और हरी सब्जियां अवश्य खाती हूं. इस के अलावा सुबह हलका गरम पानी नीबू के रस और शहद के साथ पीती हूं. जब घर से कहीं बाहर जाना होता है तो सनब्लौक क्रीम और मौइश्चराइजर अवश्य लगाती हूं. रात को सोने से पहले मेकअप को अच्छी तरह उतार कर मौइश्चराइजर लगा लेती हूं.

आप किस तरह के परिधान पहनना पसंद करती हैं?

मुझे जो भी परिधान आरामदायक लगता है मैं उसे पहनती हूं. मैं एक भारतीय लड़की हूं, इसलिए इंडियन ड्रैसेज अधिक पसंद हैं. मुझे गौरव गुप्ता, नम्रता जोशीपुरा, सव्यसाची, मसाबा आदि सभी डिजाइनरों के कपड़े पसंद हैं.

क्या आप मेकअप अधिक पसंद करती हैं? अपने पर्स में कौन सी 3 चीजें हमेशा रखती हैं?

मुझे मेकअप अधिक पसंद नहीं. मैं हमेशा लाइट मेकअप में ही रहना पसंद करती हूं. लेकिन जब मैं धारावाहिकों में काम कर रही थी तो काफी हैवी मेकअप करना पड़ता था. फिल्मों में उतना मेकअप नहीं करना पड़ता. मैं नैचुरल दिखना ज्यादा पसंद करती हूं. मेरे पर्स में लिपबाम, फेसवाश और मौइश्चराइजर हमेशा रहता है.

आप की नजर में खूबसूरती क्या है?

यह अंदर से आती है. इस के अलावा आप जो पहनते हैं उस से भी आप सुंदर दिखते हैं. सुंदर दिखने के लिए आप में आत्मविश्वास होना भी जरूरी है, साथ ही हमेशा खुश रहना भी.

आप किसे अपना आदर्श मानती हैं?

मेरे मातापिता मेरे आदर्श हैं.

किन हीरोइनों की खूबसूरती से आप प्रभावित हैं.

मधुबाला, वहीदा रहमान और नफीसा अली की सुंदरता मुझे प्रभावित करती है.

अपने जीवनसाथी के बारे में क्या सोचती हैं?

अभी सोचने का समय नहीं मिल पाता. मैं आगे और अच्छा काम करना चाहती हूं. इस समय बस इतना कह सकती हूं कि वह व्यक्ति मुझ से अलग सोच रखने वाला होना चाहिए.

अभिनेत्री, मौडल के रूप में आप कितनी सफल हैं?

हिंदी फिल्मों में तो मैं ने कम काम किया है और अभी मैं नई हूं इसलिए ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं. लेकिन मौडल के रूप में मुझे जो काम मिला है, उस से मैं खुश हूं. एक कंपनी का मैं शुरू से फेस हूं और उस की वजह से मैं हर घर तक पहुंच पाई हूं. मैं उस कंपनी को थैंक्स कहना चाहती हूं.

7 उपाय केशों को गरमी से बचाएं

धूप की तपिश और गरम हवाएं आप की त्वचा को ही नहीं, केशों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं, इसलिए गरमी के मौसम में उन की देखभाल के प्रति सजग रहना बहुत जरूरी होता है.

यहां मेकओवर ऐक्सपर्ट आशमीन मुंजाल आप को बता रहे हैं कि कैसे इस मौसम में भी केशों को रखें मुलायम और चमकदार;

क्लोरीन से बचाएं

गरमी से राहत पाने के लिए स्विमिंग पूल से बेहतर भला और क्या हो सकता है? मगर पूल के पानी में मौजूद क्लोरीन केशों के लिए बेहद हानिकारक होता है. ऐसे में पूल का मजा लेने से पहले केशों में हेयर औयल जरूर लगाएं और स्विमिंग कैप का इस्तेमाल करना न भूलें.पूल से निकलने के बाद शैंपू का इस्तेमाल किए बगैर शौवर से नहाएं. यदि आप अकसर स्विमिंग के लिए जाती हैं तो कभीकभी हेयर स्पा भी कराएं ताकि आप के केश हमेशा स्वस्थ रहें.

जब सिर की त्वचा हो तैलीय

यदि आप की स्कैल्प औयली है तो कंडीशनर का इस्तेमाल न करें. यह आप के केशों को और भी औयली बना सकता है. कंडीशनर का प्रयोग करना ही है, तो वाटर बेस्ड कंडीशनर चुनें. केशों से औयल को कम करने के लिए पानी में थोड़ा सा नीबू का रस मिला कर केशों को धोएं. केशों को चमकदार बनाने के लिए उन पर ऐस्ट्रिंजैंट स्प्रे कर के कंघी करें.

रूखे केश

केशों में रूखेपन की समस्या सर्दी के मौसम में होती है पर गरमी में यह समस्या और भी बढ़ जाती है, क्योंकि हम ज्यादा समय एअरकंडीशनर वाले बंद कमरों में बिताते हैं. ऐसे में केशों की नमी समाप्त हो जाती है और वे रूखे हो जाते हैं.

इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए लीव इन सीरम का स्प्रे करने के बाद कंघी करें. इस के अलावा कुछ समय के अंतराल पर हेयर औयलिंग अवश्य करें. केशों की हलकी स्टीमिंग और बनाना हेयर मास्क का प्रयोग भी रूखेपन को समाप्त करता है.

बेजान केश

केशों का बेजान होना तो किसी भी मौसम में समस्या है. इस से आप का लुक खराब होता है. इस समस्या को दूर करने के लिए केशों को कोकोनट मिल्क से धोएं. हेयर ऐक्सपर्ट से आप टैक्सचरिंग भी कर सकती हैं.

आजकल बाजार में केशों को चमकदार बनाए रखने के लिए कई उत्पाद मौजूद हैं. ये

2-3 महीनों तक टिकते भी हैं तो इन का प्रयोग कर सकती हैं.

रंगे केशो के लिए

गरमी और उमस से बच पाना इस मौसम में संभव नहीं होता. घर से बाहर निकलने से पहले स्कार्फ से केशों को अच्छी तरह से कवर कर लें. यदि आप को ज्यादा समय तक घर से बाहर धूप के संपर्क में रहना पड़ता है, तो शाम को शौवर जरूर लें, शौवर हमेशा ठंडे पानी का ही लें क्योंकि ठंडा पानी हेयरकलर को नुकसान नहीं पहुंचाता.

ठंडा पानी केशों में क्यूटिकल को लौक करता है जिस से वे दिखते हैं हमेशा चमकदार. केशों पर हेयर सनस्क्रीन एसपीएफ 10 भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

चिपचिपे केश

चिपचिपे केशों को धोने के लिए ड्राई शैंपू का इस्तेमाल करें. घरेलू उपाय के तौर पर नीबू के रस में अंडे का सफेद भाग मिला कर घोल तैयार करें और उस से केशों को धोएं. सप्ताह में 3 बार ऐसा करने से केशों का चिपचिपापन कम हो जाएगा. शिकाकाई का प्रयोग भी गरमी के मौसम में केशों के लिए उपयोगी है.

पतले केश

केशों का पतला होना आम समस्या है. इस से बचने के लिए 30-40 दिनों में 1 बार केशों को ट्रिम कराएं. इस से केशों की ग्रोथ तो बढ़ेगी ही, दोमुंहे केशों से भी छुटकारा मिलेगा. मुलायम ब्रिसल्स वाली कंघी का इस्तेमाल करें और यदि केश उलझ जाएं तो जबरदस्ती सुलझाने के बजाय हलके हाथों से कंघी कर के सुलझाएं.

अगर आप भी चाहती हैं कि सभी आप के केशों की तारीफ करें तो अपनाएं ये उपाय और केशों की समस्या को करें बायबाय.

जी का जंजाल नौकर

चित्तौड़गढ़, राजस्थान के लड्ढा दंपती बहुत से सामाजिक कार्यों में लगे हुए हैं. वैसे पति डा. दामोदर लड्ढा तो अपना क्लीनिक चलाते हैं और पत्नी सुशीला लड्ढा कालेज में पढ़ाती हैं, लेकिन दोनों मिल कर कई सामाजिक कामों में भी भाग लेते हैं और इस काम में उन के घरेलू सहायक महाराज भी उन का साथ देते हैं. महाराज चाहे घर का काम हो या बाहर का, हर काम बड़े चाव से करते हैं. इतना ही नहीं उन्हें लड्ढा दंपती के मित्रों, परिचितों की पसंद पता है. उन के आने पर वे खुशीखुशी उन की पसंद पूरी करते हैं. ऐसे में जो एक बार भी लड्ढा दंपती से मिलता है, अपने लिए एक महाराज की फरमाइश जरूर कर देता है.

 

इस से इतर दिल्ली और कई महानगरों से ले कर छोटे शहरों में भी मालिकों और नौकर के हैवानियत भरे रिश्तों ने मालिकों को जेल पहुंचाया है, तो कई नौकर मालिकों का माल ही नहीं उड़ाया, उन की हत्या तक कर बैठे. मालिकों ने काम से राहत पाने, नौकरी अमनचैन से करने तथा घरबच्चों की ठीक से देखरेख करने के लिए जिन्हें रखा था, उन्होंने ही अमनचैन हरा, छवि धूमिल की साथ ही उन्हें अपराधी बना कर कठघरे में ला खड़ा किया. आज सांसद धनंजय सिंह की पत्नी डा. जागृति नौकर के साथ दुर्व्यवहार के चलते जेल में हैं. उन्होंने ऐसी नौबत आने के बारे में सोचा भी न होगा कि वे हवालात की हवा भी खा सकती हैं.

 

किसलिए रखे जाते हैं नौकर

 

नौकर पैसे के लिए काम करते हैं और समय पूरा होते ही वे पैसे चाहते हैं. लेकिन अपने लक्ष्य के बारे में नौकर जितना सोचते हैं उतना ही मालिक के लक्ष्य के बारे में भी सोचें तो रिश्तों में खटास आए ही नहीं. काम को ठीक से करना, समझ कर करना, जिन शर्तों पर रखा गया उन का पालन करना आदि कई मुद्दे हैं जिन के कारण रिश्ते बनते भी हैं और बिगड़ते भी हैं.

 

सविता के अपनी मालकिन के साथ सखी जैसे ताल्लुकात हैं. इस का कारण बताते हुए सविता कहती है, ‘‘मैं काम को सब से बड़ी ताकत मानती हूं. मेरा काम ही मेरे काम आता है. इसी के कारण मेरी पूछ है. भैयाभाभी (मालिकमालकिन) अपना सब कुछ मुझ पर भरोसे से ही तो छोड़ जाते हैं. मेरा वे अपनेआप ध्यान रखते हैं. फिर भी कभी मैं याद दिला दूं तो वे बुरा नहीं मानते.

 

‘‘पड़ोस के ही एक घर में काम कर रहे एक लड़के से मेरा प्यार हो गया, तो भाभी ने उस लड़के का चालचलन पता लगाया. वह हर तरह से ठीक निकला तो उसे गाड़ी चलाना सिखा कर ड्राइवर का काम दिया. जब मेरा बच्चा हुआ तो मैं बच्चे को सास के पास छोड़ कर आना चाहती थी. मालिक ने छोटे बच्चे को दूर करने के लिए मना किया और बिना पैसा काटे एक और सहायिका रख ली.

 

‘‘हमें कई जगह ज्यादा पैसों का औफर मिलता है पर हमें पता है कि भैयाभाभी जैसा प्यार कहीं नहीं मिल सकता. भाभी ने अपने खर्चे से हमारी शादी कराई, ऐसा कौन करता है?’’ भरोसातोड़ नौकर कुछ साल पहले एक मामला पता चला जिस में दिल्ली में एक नौकरानी अपने मालिक के कुछ महीने के बच्चे को देखभाल के लिए भिखारियों को किराए पर दे देती थी. ऐसे में जब प्रौपर देखभाल न होने से बच्चा कमजोर होने लगा तो मालकिन ने रूटीन तोड़ा. उन की जल्दी आवाजाही से यह केस पकड़ में आया.

 

आरुषि मर्डर केस में भी नौकर हेमराज की भूमिका संदिग्ध है ही. कोई भी फैसला तलवार दंपती के जीवन का आधार रही एकमात्र संतान को नहीं लौटा सकता. उन के जीवन की कमी नहीं पूरी कर सकता.

 

आसपास के नौकरों से दोस्ती, उन से मिल कर षड्यंत्र रचना, कभी चोरी, तो कभी मालिकों के बच्चों का अपहरण, घर की बात इधरउधर करना, घर में ही लगाईबुझाई करना और  मालिकों को शारीरिक शोषण की बात से चूना लगाना आम बात है.

 

नौकर जब फुलटाइम का हो तो कितनी भी दूरी और कम्युनिकेशन गैप बनाया जाए फिर भी बहुत सी बातें उसे पता लग ही जाती हैं. इस स्थिति का नौकर बहुत फायदा उठाते हैं.

 

अनुभा कहती हैं, ‘‘हम पतिपत्नी बहुत धीरेधीरे बोलते थे फिर भी नौकर को हमारे बिगड़ते रिश्ते की भनक लग ही गई. फिर तो उस ने पलीता लगाने में जरा भी देरी नहीं की. कभी मुझे कुछ बताता कभी उन्हें कुछ. इतना ही नहीं वह प्रमाण भी जुटाने लगा.

 

‘‘ऐसा होने पर हमारे परिचित भी नौकर की चालाकी से हमें आगाह करने लगे तो हम संभले. हम ने आपस में चीजें क्लियर कीं तब पता चला कि कैसे नौकर ने हमारी मामूली खटपट को बढ़ाचढ़ा कर कोर्टकचहरी तक पहुंचा दिया.

 

वह बातें बनाबना कर दोनों से टिप पाता रहा और घर से विमुख हुए हम उसे चोरी, ऐश और मनमरजी का मौका देते रहे. आज हम फिर से एक हो गए हैं. हम काम भी मिल कर करते

 

हैं. बिना नौकर जिंदगी मुश्किल है पर 100 में 1 नौकर भी भरोसेमंद मिल जाए तो जीवन आसान हो जाए.’’

 

कैसे हो रिश्ता भरोसेमंद

 

1.नौकर के साथ रिश्ता भरोसेमंद बना रहे, इस के लिए इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है:

 

2.नौकर के साथ कम्युनिकेशन रखा जाए.

 

3.काम की गुणवत्ता और तरीका सिखा दिया जाए.

 

4.यदि नौकर कुछ उपयुक्त कहे तो उस पर ध्यान दिया जाए.

 

5.उस से अतिरिक्त कार्य कराने पर उस की पैसों से भरपाई की जाए.

 

6.छुट्टी तथा सुविधाओं का भी ध्यान रखा जाए.

 

7.रिश्ते सिर्फ आर्थिक या मैकैनिकल न हों. उन में संवेदना, मानवता और सूझबूझ, समझदारी तथा आपसदारी भी हो.

 

लौयल्टी व समर्पण जरूरी

 

राजू हौजखास, दिल्ली में एक घर में काम करता है. उस के अलावा उस घर में और लोग भी काम करते हैं. राजू कहता है, ‘‘मालकिन ने हमें यह छूट दे रखी है कि हम आपस में काम बांट लें. उन का कहना बस इतना ही है कि कोई काम छूटे नहीं, पड़ा न रहे या बिगड़े नहीं. मैं उन के पालतू कुत्ते घुमाता हूं, सब्जी, दूध आदि लाता हूं, सब के कपड़े प्रैस करता हूं. मंजू खाना पकाती है, बरतन मांजती है, झाड़ूपोंछा करती है. तीसरा गोपाल गाड़ी चलाता है. पर हम तीनों सब काम कर लेते हैं. मालकिन को मेरे हाथ का इडलीडोसा पसंद है, तो मंजू चाइनीज बनाने में दक्ष है. ड्राइवर नौनवेज का मास्टर है. इसलिए कभी कोई छुट्टी पर जाए तो घर का काम रुकता नहीं चलता रहता है. अब मुझे मालकिन मेरी इच्छा होने के कारण गाड़ी चलाना सिखा रही हैं. मंजू एक बार बीमार हो गई तो मालकिन ने बिना पैसे काटे उस का इलाज कराया, वह यह एहसान अकसर याद करती है.’’

 

मंजू कहती है, ‘‘मालिक को अपना व मेहमानों का मानसम्मान चाहिए. मेहमानों के सामने मुंह चढ़ाने वाले नौकर किसी को पसंद नहीं आते. साफसफाई, स्वच्छता, प्रसन्नता व विनम्रता जरूरी है.’’

 

सर्वोदय ऐनक्लेव, दिल्ली की नौकरानी सरोज कहती है कि नौकरनौकरानी मिलते ही मालिकों का बखान करने लगते हैं. उन के घर में क्या है, लड़की, बच्चे क्या कर रहे हैं, किस का किस से चक्कर चल रहा है. वगैरहवगैरह…

 

सरोज पहले उन के साथ बैठतीउठती थी, लेकिन रोज ऐसी ही बातें सुन कर उस ने उन से मिलना छोड़ दिया. वह जानती है कि इस महानगर में वह मालिक के भरोसे है. अगर  उस ने उन का दिल जीत लिया तो उस के लिए आसानी रहेगी. उस का गांव का घर चलता रहेगा.

 

मालकिन उस की तारीफ करती हैं तो वह उस का फायदा नहीं उठाती. कभी काम बढ़ जाए तो वह नाकभौं नहीं सिकोड़ती. मालकिन बच्चों के खातिर उसे भी घुमाने ले जाती हैं तो वह काम के साथसाथ घूमने का आनंद भी लेती है और उस अहसान को जताती भी है.

 

प्लेसमैंट एजेंसियों का मायाजाल

 

मालिक और नौकर के बिचौलिए बाकायदा प्लेसमैंट एजेंसी का नाम दे कर खूब पैसा वसूल कर के नौकर उपलब्ध कराते हैं. इस के लिए कई एनजीओ व संस्थाएं भी सक्रिय हैं तथा बाकायदा प्लेसमैंट एजेंट भी. दिल्ली में 1,754 प्लेसमैंट एजेंसियां हैं, जो पंजीकृत हैं, तो 2,300 प्लेसमैंट एजेंसियां अवैध रूप से चल रही हैं. हाईकोर्ट ने अप्रैल 2012 में दिल्ली सरकार से 3 महीने में इन अवैध एजेंसियों पर शिकंजा कसने के लिए कानून बनाने को कहा था पर अभी तक वह कानून नहीं बन पाया है.

 

प्लेसमैंट एजेंसियां आजकल चोखा धंधा बनती जा रही हैं. 1 कमरा, 1 कर्मचारी, एकाध रजिस्टर और कंप्यूटर, बस खुल गई एजेंसी. बोर्ड लग गया तो जरूरतमंद अपनेआप आ जाएगा और एजेंसी ढूंढ़ लेगा. कुछ एजेंसियों का तो लंबाचौड़ा कारोबार है.

 

गुरु गायत्री प्लेसमैंट एजेंसी नाथूपुर, गुड़गांव में है और दिल्ली में पंजीकृत है. पहले इन का कार्यालय शकूरपुर, दिल्ली में था. इस के मालिक गोपाल साह झारखंड के हैं तथा 12वीं तक पढ़ेलिखे हैं. ये घरेलू नौकर व होटल आदि में भी हाउसकीपिंग हेतु लोग देते हैं. नौकर को पंजीकरण शुल्क नहीं देना होता, मालिक ही रु.30 हजार देता है. 11 महीने के बाद यदि रिन्यूअल होता है तो फिर रु.30 हजार देता है.

 

आश्रम, दिल्ली स्थित आलसाई प्लेसमैंट सर्विस के अनुज कहते हैं कि हमारे पास लगभग 150 नौकर पंजीकृत हैं, जो बिहार, बंगाल तथा झारखंड के हैं. हमारी पंजीकरण शुल्क रु.21 हजार है.

 

जब इन एजेंसियों के मालिकों से पूछा गया कि क्या एक बार का शुल्क पर्याप्त नहीं? आप उस व्यक्ति को कंसर्न पार्टी से मिलवाने के अलावा क्या करते हैं? पुलिस वैरिफिकेशन पुलिस करती ही है. और व्यक्ति अपनेआप अपने खर्चे से आता है. आप कुछ काम भी नहीं सिखाते, तो कोई सही जवाब सुनने को न मिला.

 

बालमुकुंद दास, जो पहले दिल्ली में थे और अब 4-5 सालों से वाराणसी में वकील हैं, वे कहते हैं कि प्लेसमैंट एजेंसियों को जिम्मेदार बनाया जाए. उन का शुल्क सरकार तय करे. जितनी मोटी रकम ये एजेंसियां लेती हैं उस के हिसाब से मालिक सर्विस भी चाहता है. न मिलने पर नौकर दुर्व्यवहार का आसान टारगेट बन जाता है. अनट्रेंड नौकर सप्लाई करना तथा पैसे ले कर जिम्मेदार रुख न अपनाना सेवा में कमी है. फिलहाल वे लोग जो चार्ज ले रहे हैं, उसे एकडेढ़ महीना आराम से हाउसकीपिंग सिखाने में खर्च कर सकते हैं.

 

कैसे जुटाते हैं घरेलू नौकर

 

कई प्लेसमैंट एजेंसियों वाले भले ही कहते हैं कि हम गांवगांव जा कर नौकर लाते हैं, उन के पते कन्फर्म करते हैं. पर सचाई यह है कि ये क्षेत्र के दलालों से अपने ही शहर से संपर्क करते हैं. उन्हीं के जरीए लोग मिल जाते हैं. नौकर भी कहते हैं कि एजेंसी के मालिक उन के गांव तक नहीं जाते.

 

दूरदराज के गांवों और आदिवासी क्षेत्रों से गरीब बच्चे व बच्चियां मानव तस्करी के जरीए दिल्ली लाए जाते हैं. यहां आने पर वे प्लेसमैंट दलालों के शिकंजे में आ जाते हैं. इन्हें कभीकभी गांव के परिचित रिश्तेदार अथवा पहले से काम कर रहे नौकर इन स्थानों तक पहुंचाते हैं. गांवों में काम कर रही कई संस्थाएं और एनजीओ भी रोजगार, व्यवसाय के नाम पर गांव के लोग इन तक पहुंचाते हैं.

 

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी कहते हैं कि काम के लिए शहर लाए जा रहे बच्चों और उन के घर वालों तक को यह पता नहीं होता कि वे किस उद्देश्य के लिए ले जाए जा रहे हैं. प्लेसमैंट एजेंसी हर तरह का शोषण करती है तथा जहां ये काम पर रखवाए जाते हैं वहां मालिक भी.

 

हम ने जुलाई, 2013 में दिल्ली के कीर्तिनगर के आदिवासी समिति नामक एनजीओ द्वारा शोषित 13 लड़कियों को छुड़ाया. यह पंजीकृत एनजीओ फरीदाबाद तथा नोएडा में मेड सप्लाई कर रहा है. इस के पास 90% नाबालिग लड़कियां हैं. ये 6/6 के कमरे में लड़कों के साथ ही रहती हैं. उन की दशा अत्यंत शोचनीय है.

 

घरेलू मेड व नौकर बताते हैं कि एक बार प्लेसमैंट एजेंसी के चंगुल में आने के बाद निकल पाना आसान नहीं है. कई बार ये मोटी रकम ले कर कामगार को बेच भी देते हैं. कई बार एक व्यक्ति को अपने छूटने की एवज में 4-5 लोगों को अच्छी सर्विस का बता कर बहलाफुसला कर भी लाना पड़ता है. कई लड़कियां सैक्स रैकेटियर्स को भी सप्लाई कर दी जाती हैं. कई सैक्स के उद्देश्य से भी रखवा दी जाती हैं.

 

विदेशों में नौकर रखना आसान नहीं

 

हमारे देश में जितनी आसानी से नौकर मिल जाते हैं, उतनी आसानी से विदेशों में नहीं मिलते. हमारे यहां सामान्य नौकरीपेशा लोग भी एकाध नौकर फुलटाइम अफोर्ड कर लेते हैं, पार्ट टाइम तो हर कोई. विदेशों में पार्ट टाइम नौकर पाना भी आसान नहीं. वहां नौकर बहुत महंगे होते हैं. उन का घंटे के हिसाब से भुगतान करना होता है. वे हाउसकीपिंग, बेबी सिटिंग आदि गतिविधियों में प्रशिक्षित होते हैं.

 

डा. पूर्णिमा कहती हैं, ‘‘मैं लंदन में रहती हूं और बीचबीच में नौकर रखती हूं. मेरी अंगरेज मेड को मुझ से तथा मुझे उस से कोई शिकायत नहीं है. वहां मालिक को नौकर को ईक्वल ट्रीटमैंट देना पड़ता है. जैसे हम नौकरानी के साथ बाहर गए तो वह हमारे ही होटल में बगल के कमरे में ठहरेगी और जो हम खाएंगेपिएंगे वही वह भी खाएगी पिएगी.’’

 

डा. पूर्णिमा की सास रमा शर्मा गुड़गांव में रहती हैं. वे लंदन में शिक्षिका थीं. वे कहती हैं, ‘‘अपने देश में नौकरचाकर का बड़ा सुख है. विदेश में बिना नौकर रहने से इन का महत्त्व खूब पता चलता है.’’

 

नौकर बिना जीना

 

यदि जीवन नौकर के कारण आफत भरा बन जाए, उस के काम करने के तरीके आप का क्रोध, खीज, क्षोभ भड़काने वाले लगने लगें अथवा आप परफैक्शनिस्ट हैं तो नौकर के बिना जीना असंभव नहीं. कुछ समय बाद मुश्किल भरा भी नहीं लगेगा. नौकर को मारपीट कर के मारापीटी कर के आप हवालात में हों आप के घर की इज्जत तारतार हो इस से तो अच्छा है कि अपने काम खुद ही कर लिए जाएं.

 

विजय गोम्स ने नौकर का कैजुअल रुख तथा अपनी बेटी के प्रति आकर्षण भांपा तो मुस्तैद हो कर घर में कैमरे लगवा लिए. तब तो वे चौंक ही गए क्योंकि जितना सोचा नहीं था उतना देखा. तुरंत पत्नी को भरोसे में ले कर नौकर हटाया और गोवा में रह रहे मांबाप को अपने पास ले आए. वे कहते हैं कि अब सुबह का नाश्ता मैं तैयार करता हूं, खाना पत्नी बनाती है. मांबाप सिर्फ बच्चों को देखते हैं. मैं अब महसूस करता हूं कि स्तर और लोगों की देखादेखी नौकर का चलन ज्यादा है. जबकि व्यावहारिकता में उस के बिना लाइफ मैनेजेबल है.

 

डा. सी.के.एम. शर्मा का कहना है कि हमारे यहां सामंती सोच, वर्गभेद तथा आर्थिक असमानता के चलते नौकरमालिक संबंध में भेद आना सहज है. ऐसा न हो इस के लिए काम को हौआ बनाने के बजाय आधुनिक साधनों से आराम से काम किया जा सकता है.

 

मैं ने अपने यहां एक वृद्ध महिला रखी थी. सोचा था उस से थोड़ी मदद मिल जाएगी पर उस के नखरे भी कम नहीं सहे. विदेशों में बिना नौकर चल सकता है तो हमारे यहां क्यों नहीं? नौकर के साथ तनातनी से मूड खराब होता है, मानसिकता बदलती है.

 

गरीबों के प्रति जो सहज दया और सहायता का भाव होता है वह भी समाप्त हो सकता है. समाज की खाई बढ़ती जाती है.

 

इन सब बातों के बावजूद भी अनजाना परिवेश व प्रदेश, कम पढ़ालिखा होना और बौद्धिकता की सीमाएं, इस पक्ष को ध्यान में रख कर मालिक नौकर के साथ संवेदनशील व्यवहार करे और नौकर भी मालिक क्या चाहता है सोचे तो दोनों का बेहतर तालमेल हो सकता है. दोनों का सहयोग दोनों के स्वार्थों और आवश्यकता के लिए जरूरी जो है.

पति की ढाल बनती पत्नियां

पति की ढाल बनती पत्नियां

आमतौर पर पति अपनी पत्नियों की गलतियों और बेवकूफियों के कारण मुंह छिपाते रहते हैं पर प्रियंका गांधी वाड्रा को अपने पति पर लगाए गए जमीन घोटालों के आरोप के जवाब में खड़ा होना पड़ रहा है. पत्नी का पति की ढाल बनना सुखद लगता है कि अब जमाना आ गया है कि पत्नी पति को संकट से निकाले.

नरेंद्र मोदी की पत्नी जशोदाबेन की बात ऐसी ही है. अरविंद केजरीवाल तो भाजपा की भाषा में कुरसी छोड़ कर भागा पर जशोदाबेन का पति अपनी पति की जिम्मेदारियां छोड़ कर भाग गया. पर पत्नी आज 40 साल बाद भी उस के प्रधानमंत्री बनने के सपने को पूरा करने के लिए स्वयं को कष्ट देते हुए अपने एक कोठरी के घर से अज्ञातवास में चली गई है.

अब जमाना आ गया है जब पत्नियां पतियों की सुरक्षा करने लगी हैं. जब बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो मोनिका लेविंस्की से सैक्सी छेड़छाड़ के मामले में उन की पत्नी हिलेरी उन की ढाल बनी रहीं. लालू यादव जब जेल में रहे तो राबड़ी देवी ने न केवल सरकार और पार्टी को संभाला, पति को भी ऐसी हिम्मत दी कि वे आज भी राजनीति में सक्रिय हैं.

प्रियंका वाड्रा ने रौबर्ट वाड्रा पर लगे आरोपों का जवाब तो नहीं दिया पर जिस तरह नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि अगर उन की सरकार बनी तो वे बदले की भावना से रौबर्ट के खिलाफ कुछ न करेंगे, साफ करता है कि रौबर्ट वाड्रा के खिलाफ आरोप कुछ ऐसे ही हैं जैसे भाजपा के भूतपूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ हैं या गुजरात सरकार द्वारा अपने चहेतों को दिए गए सैकड़ों एकड़ जमीनों के टुकड़ों के. नरेंद्र मोदी शायद यह नहीं चाहते कि जमीनों के मामले खुलें. फिर चाहे वे अडानी के हों, रौबर्ट वाड्रा के या नितिन गडकरी के.

प्रियंका को भरोसा है कि चुनावों के बाद रौबर्ट वाड्रा की करतूतों को गलीचों के नीचे दफना दिया जाएगा. जो भी सरकार आएगी वह इस मामले को ढक कर रखेगी क्योंकि रौबर्ट वाड्रा को अगर गलत तरीके से जमीन दी गई है, तो बीसियों अफसरों पर भी आंच आएगी और अफसरशाही नरेंद्र मोदी को भी वह न करने देगी.

जो पति पत्नियों को दूसरे दर्जे का समझते हैं उन्हें यह याद रखना चाहिए कि हर दुखसुख में कोई अगर उन के साथ है तो पत्नी ही है. चाहे उन्होंने अच्छा काम किया हो या गलत. पत्नियां तो नई फिल्म ‘2 स्टेट्स’ की अमृता सिंह की तरह होती हैं जो शराबी हिंसक पति को भी सहती हैं और जिद्दी बेटे को भी.

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Bollywood : फिल्ममेकर्स कुछ नया और बड़ा करने के लिए धार्मिक फिल्मों का सहारा लेते हैं,

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ये दर्शकों के बीच सब से ज्यादा पसंद भी की जाती हैं. बौलीवुड में ऐसी ही कुछ फिल्में हैं जो काफी विवादों में रहने के बावजूद भी छप्परफाड़ कमाई कर चुकी हैं.

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हिंदी फिल्में असल में मनोरंजन का एक पैकेज हुआ करती हैं, जिस में गाने, डांस, मारधाड़ आदि दृश्य होते हैं. फिल्मों को समाज का आईना भी कहा जाता है, इस वजह से हिंदी फिल्में भी उस बात को ध्यान में रखते हुए ही बनाई जाती हैं, जिस में सब से अधिक धार्मिक फिल्में सब को अधिक पसंद आती है, क्योंकि धर्म हर व्यक्ति की भावनाओं से जुड़ा होता है और इस पर बनी फिल्में दर्शकों को अधिक आकर्षित करती हैं.

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बौलीवुड की ऐसी 5 सफल धार्मिक फिल्में हैं, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. ऐसी फिल्मों पर कई बार सवाल भी उठाए जाते हैं, लेकिन

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फिल्ममेकर इसे बनाने से नहीं चूकते.

पीके

अभिनेता आमिर खान और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘पीके’ भक्ति और आस्था के नाम पर चल रहे गोरखधंधे को ले कर बनाई गई फिल्म है, जिस में धर्म को ले कर आडंबर और लूटपाट की घटनाओं के बीच एक दूर ग्रह से एक अंतरिक्ष यात्री आता है, जिस के भाषा का कोई आचरण नहीं औ

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र न ही उस के शरीर पर वस्त्रों का कोई आवरण है. सच्चे दिल का एक इंसान है, लेकिन उस के बातचीत और सवालों से धरतीवासी चकित हो जाते हैं और मान बैठते हैं कि वह हमेशा पिए रहता है यानि पीके घूम रहा है.

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Baidyanath Sundari Sakhi : महावारी यानी मासिक धर्म एक ऐसी प्रक्रिया है जो हर महिला के जीवन का अहम हिस्सा है. यह केवल भौतिक विकास का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि अपने साथ काई तरह की समस्याएं भी उत्पन्न करता है. आइए, हम इन समस्याओं का विश्लेषण करें और उनके समाधान खोजें.

महावारी की समस्याएँ

   1. समस्याओं का संकोच 

बहुत सी महिलाएँ महावारी के दौरन होने वाले शरीरिक और मानसिक दर्द के बारे में बात करने में संकोच महसूस करती हैं. इसी वजह से उन्हें सहारा नहीं मिलता और समस्याओं को समझने और हल करने में कठिनाई होती है.

    2. शारीरिक दर्द

बहुत सी महिलाएँ महावारी के दौरन पेट दर्द, सर दर्द, और थकान का सामना करती हैं. ये दर्द कभीकभी इतना कठिन होता है कि उनका दिनचर्या प्रभावित होती है.

   3. मानसिक तनव

हार्मोनल परिवर्तन की वजह से महावरी के दौरान महिलाएं मानसिक तनाव और मूड स्विंग का सामना करती हैं. इस्से उनका सामान्य जीवन जीने में कठिनाइयां होती है.

   4. स्वास्थ्य संबंधि समस्याएँ

कुछ महिलाओं को अत्यधिक रक्तस्राव, अनियमित मासिक धर्म, या PCOS जैसा स्वास्थ्य संबंध समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो उनकी जीवन शैली को प्रभावित कर सकती हैं.

समाधान

     1. समस्या का विश्लेषण 

महावरी से जुड़ी समस्याओं पर खुली बातचीत करना जरूरी है. परिवार और दोस्त इसमें मददगार साबित हो सकते हैं. जागरूकता बढ़ाने से समस्या कम होती है.

    2. दर्द प्रबंधन

दर्द के लिए दर्द निवारक दवा का उपयोग किया जा सकता है. कुछ महिलाएं योग और ध्यान के माध्यम से भी दर्द को कम करने का प्रयास करती हैं.

   3. पोषण और व्यायाम 

सही पोषण और नियमित व्यायाम से आप अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं. फल, सब्जियां और hydration का ध्यान रखना जरूरी है.

   4. मानसिक स्वास्थ्य सहायता

अगर आपको मानसिक स्वास्थ्य के दौरान स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है, तो पेशेवर मदद लेना संभव है. Counselling या therapy से आपको समस्याओं का समाधान मिल सकता है.

यदि इसे भी आराम नहीं मिलता, तो आप वैद्य से परामर्श लेकर बैद्यनाथ द्वारा दी गई सुंदरी सखी का उपयोग कर सकते हैं;

बैद्यनाथ सुंदरी सखी आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों से तैयार किया गया एक healthy टॉनिक है, सेहत को हर स्तर पर सुधारने में मदद करता है। इसमें शामिल जड़ीबूटियाँ सिर्फ शारीरिक बल देती हैं, बल्कि मानसिक तनाव को भी कम करती हैं.

बैद्यनाथ सुंदरी सखी में शामिल आयुर्वेदिक जड़ीबूटियाँ

  1. अशोका: महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को सुधारने वाली यह जड़ीबूटी मासिक धर्म की अनियमितताओं में बहुत लाभकारी है.
  2. अश्वगंधा: यह जड़ीबूटी शरीर की थकान और दर्द को दूर कर ऊर्जा प्रदान करती है.
  3. मंजिष्ठा – यह त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है

सुंदरी सखी का उपयोग कैसे करें?

  • वैद्य से परामर्श लेकर रोजाना सुबह और शाम 2 चम्मच सुंदरी सखी को गुनगुने पानी  के साथ लें.
  • इसे नियमित रूप से 3 महीने तक उपयोग करें.
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