सही वसीयत: भाग 2- हरीश बाबू क्या था आखिरी हथियार

हरीश बाबू के समझानेबुझाने पर वह मान गया. समय सरकता रहा. एक दिन सुमंत इंजीनियर बन गया. जब उस का कैंपस चयन हुआ तो सभी खुश थे. हरीश बाबू ने इस अवसर पर सभी का मुंह मीठा कराया. खुशी के साथ उन्हें यह जान कर तकलीफ भी थी कि सुमंत अब बेंगलुरु में रहेगा. पहली बार वह अकेला गया.

हरीश बाबू बूढ़े हो चले थे. उन की देखभाल सुनीता और सुधीर के लिए समस्या थी. समय पर दवा और भोजन न मिलता तो वे चिढ़ जाते. कभी सुनीता, तो कभी सुधीर से उलझ जाते. दोनों उन की हरकतों से आजिज थे. सिर्फ मौके की तलाश में थे.

जैसे ही सुमंत ने उन्हें बेंगलुरु बुलाया, दोनों ने एक पल में हरीश बाबू के एहसानों को धो डाला. जिस हरीश बाबू ने सुमंत को कलेजे से लगा कर पालापोसा, सुधीर, सुनीता का खर्चा भी उठाया, सुमंत की इंजीनियरिंग की फीस भरी, अपनी पत्नी के सारे जेवरात सुनीता को दे दिए, बची उन की असल संपति, फिक्स डिपौजिट के रुपए, वे सभी सुमंत को ही मिलते, को छोड़ कर सुधीर व सुनीता ने बेंगलुरु में बसने का फैसला लिया तो उन्हें गहरा आघात लगा.

वे नितांत अकेला महसूस करने लगे. पत्नी के गुजर जाने पर उन्हें उतना नहीं खला, जितना आज. कैसे कटेगा वक्त उन चेहरों के बगैर जिन्हें रोज देखने के वे आदी थे. कल्पनामात्र से ही उन के दिल में हूक उठती. वे अपने दुखों का बयान किस से करें. घर के आंगन में एक रोज वे रोने लगे. ‘वे अपनेआप को कोसने लगे. मैं ने ऐसा कौन सा अपराध किया था जो प्रकृति ने बुढ़ापे का एक सहारा देना भी मुनासिब नहीं समझा. लोग गंदे काम कर के भी आनंद का जीवन गुजारते हैं, मुझे तो याद भी नहीं आता कि मैं ने किसी का दिल दुखाया है. फिर अकेलेपन की पीड़ा मुझे ही क्यों?’ तभी सुनीता की आवाज ने उन की तंद्रा तोड़ी. जल्दीजल्दी उन्होंने आंसू पोंछे.

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‘‘गाड़ी का वक्त हो रहा है,’’ वह बोली. दोनों ने हरीश बाबू के पैर छू कर रस्मअदायगी की. दोनों अंदर ही अंदर खुश थे कि चलो, मुक्ति मिली इस बूढ़े की सेवा करने से. अकेले रहेगा तो दिमाग ठिकाने पर आ जाएगा. बेंगलुरु आने का न्योता सुधीर ने सिर्फ औपचारिकतावश दिया. पर उन्होंने इनकार कर दिया. ‘‘इस बुढ़ापे में परदेस में बसने की क्या तुक? यहां तो लोग मुझे जानते हैं, वहां कौन पहचानेगा?’’ हरीश बाबू के कथन पर दोनों की जान छूटी. अब यह कहने को तो नहीं रह जाएगा कि हम ने साथ रहने को नहीं कहा.

सुधीर और सुनीता अच्छी तरह जानते थे कि हरीश बाबू गोदनामा बदलेंगे नहीं. इस उम्र में दूसरा कदम उठाने से हर आदमी डरता है. वैसे भी, हरीश बाबू को अपने मकान का कोई मोह नहीं था. उम्र के इस पड़ाव पर वे सिर्फ यही चाहते थे कि कोई उन्हें समय पर खाना व बीमारी में दवा का प्रबंध कर दे. सुधीर के संस्कारों का ही असर था कि सुमंत भी सुधीर और अपनी मां की तरह सोचने लगा. सिर्फ कहने के लिए वह हरीश बाबू का दत्तक पुत्र था. जब तक अबोध था तभी तक उस के दिल में हरीश बाबू के प्रति लगाव था. जैसे ही उस में दुनियादारी की समझ आई, अपने मांबाप का हो कर रह गया.

सुमंत के चले जाने के बाद हरीश बाबू को अपने फैसले पर पछतावा होने लगा. वे सोचने लगे, इस से अच्छा होता कि वे किसी को गोद ही न लेते. मरने के बाद संपत्ति जो चाहे लेता. क्या फर्क पड़ता? गोद ले कर एक तरह से सभी से बैर ले लिया.

एक सुबह, हरीश बाबू टहल कर आए. आते ही उन्हें चाय की तलब हुई. दिक्कत इस बात की थी कि कौन बनाए? नौकरानी 3 दिनों से छुट्टी पर थी. वे चाय बनाने ही जा रहे थे कि फाटक पर किसी की दस्तक हुई. चल कर आए. देखा, सामने नटवर सपत्नी खड़ा था. दोनों ने हरीश बाबू के चरण स्पर्श किए.

‘‘बैठो, मैं तुम लोगों के लिए चाय ले कर आता हूं,’’ वे किचन की तरफ जाने लगे.

‘‘आप क्यों चाय बनाओगे, सुधीर नहीं है क्या?’’ नटवर बोला.

‘‘वह सपरिवार बेंगलुरु में बस गया.’’

‘‘आप को खाना बना कर कौन देता होगा?’’

‘‘नौकरानी है. वही सुबहशाम खाना बनाती है.’’

नटवर को अपने रिश्ते की अहमियत दिखाने का अच्छा मौका मिला. तुरंत अपनी पत्नी को चायनाश्ता बनाने का आदेश दिया. हरीश बाबू मना करते रहे मगर नटवर ने रिश्ते की दुहाई दे कर उन्हें कुछ नहीं करने दिया. इस बीच उन के कान भरता रहा.

‘‘सुमंत को गोद लेने से क्या फायदा जब बुढ़ापे में अपने ही हाथ से खाना बनाना है,’’ नटवर बोला.

‘‘ऐसी बात नहीं है, वह मुझे भी ले जाना चाहता था,’’ हरीश बाबू ने सफाई दी.

‘‘सिर्फ कहने को. वह जानता है कि आप अपना घरशहर छोड़ कर जाने वाले नहीं. सुमंत तक तो ठीक था, सुधीर क्यों चला गया?’’

‘‘सुमंत को खानेपीने की तकलीफ थी.’’

‘‘शादी कर देते और खुद आप के पास रहते,’’ नटवर को लगा कि तीर निशाने पर लगा है तो आगे बोला, ‘‘आप की करोड़ों की अचल संपत्ति का मालिक सुधीर का बेटा ही तो है. क्या उस का लाभ सुधीर को नहीं मिलेगा? ऐसे में क्या सुधीर और सुनीता का फर्ज नहीं बनता कि मृत्युपर्यंत आप की सेवा करें?’’ नटवर की बात ठीक थी. कल तक जिस नटवर से उन्हें चिढ़ थी, आज अचानक उस की कही बातें उन्हें तर्कसंगत लगने लगीं.

उस रोज नटवर दिनभर वहीं रहा. नटवर ने भरसक सुमंत के खिलाफ हरीश बाबू को भड़काया. हरीश बाबू सुनते रहे. उन के दिल में सुमंत को ले कर कोई मलाल नहीं था. तो भी, क्या सुधीर का कोई फर्ज नहीं बनता?

इस बीच, नटवर की पत्नी ने घर की साफसफाई की. हरीश बाबू के गंदे कपड़े धोए. घर में जिन चीजों की कमी थी उन्हें नटवर ने अपने रुपयों से खरीद कर घर में रख दिया. रोजाना के लिए कुछ नाश्ते का सामान बना कर रख दिया ताकि सुबहसुबह उन्हें खाली पेट देर तक न रहना पड़े. जातेजाते रात का खाना भी बना दिया. एक तरह से नटवर और उस की पत्नी ने हरीश बाबू को खून का लगाव दिखाने में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी. जातेजाते नटवर ने अकसर आने का हरीश बाबू को आश्वासन दिया.

सुधीर को हरीश बाबू का पूछना नागवार लगा.

ऐंठ कर बोला, ‘‘बचता तो आप को नहीं दे देता.’’

‘‘नहीं देते, इसलिए पूछ रहा हूं,’’ हरीश बाबू बोले. सुनीता के कानों में दोनों के संवाद पड़ रहे थे. उसे भी हरीश बाबू का तहकीकात करना बुरा लग रहा था. जानने को वह अपने पति की हर आदत जानती थी.

‘‘यानी मैं बचे पैसे उड़ा देता हूं,’’ सुधीर अकड़ा.

‘‘पैसे बचते हैं.’’

‘‘आप सठिया गए हैं. बेसिरपैर की बातें करते हैं. सुनीता से अनापशनाप खानेपीने की फरमाइश करते हैं. न देने पर मुंह फुला लेते हैं और मुझे चोर समझते हैं.’’

‘‘मैं तुम्हें चोर समझ रहा हूं?’’ हरीश बाबू भड़के.

‘‘और नहीं तो क्या? आप के साथ जब से रह रहा हूं सिवा जलालत के कुछ नहीं मिला. कभीकभी तो जी करता है कि घर छोड़ कर चला जाऊं.’’

‘‘चले जाओ, मैं ने कब रोका है.’’

‘‘चला जाऊंगा, आज ही चला जाऊंगा,’’ पैर पटक कर वह बाहर चला गया.

उस रात उस ने सुनीता से सलाह कर ससुराल में रहने का निश्चय किया, हालांकि यह व्यावहारिक नहीं था. भले ही तैश में आ कर उस ने कहा हो, पर वह अपनी औकात जानता था. वहां जा कर खाएगा क्या? सुमंत भी किसी लायक नहीं था. उस पर यहां से चला गया तो हो सकता है हरीश बाबू वसीयत ही बदल दें. फिर तो वह न घर का रहेगा, न घाट का. अचल संपत्ति तो थी ही, सावित्री के जेवरात, बैंक में फिक्स रुपए इन सब से उसे हाथ धोना पड़ता.

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सुनीता भी कम शातिर नहीं थी. थोड़ा अपमान सह कर रहने में उसे हर्ज नहीं नजर आता था. एक कहावत है, ‘दुधारी गाय की लात भी भली.’ सुधीर को उस ने अच्छे से समझाया. सुधीर इतना बेवकूफ नहीं था जितना सुनीता समझती थी. उस ने तो सिर्फ गीदड़ धमकी दी थी हरीश बाबू को. वह हरीश बाबू की कमजोरी जानता था. सुमंत के बगैर वे एक पल नहीं रह सकते थे. दिखाने के लिए वह अपना सामान पैक करने लगा.

‘‘कहां की तैयारी है?’’ हरीश बाबू का गुस्सा शांत हो चुका था.

‘‘मैं आप के साथ नहीं रह सकता.’’

‘‘मैं तुम्हारा जीजा हूं. उम्र में तुम से बड़ा हूं. क्या इतना भी पूछने का हक नहीं है मुझे?’’

‘‘सलीके से पूछा कीजिए. क्या मेरी कोई इज्जत नहीं. मेरा बेटा बड़ा हो रहा है, क्या सोचेगा वह मेरे बारे में.’’ सुधीर के कथन में सचाई थी, इसलिए वे भी मानमनौवल पर आ गए.

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कारवां: भाग 3- क्यों परिवार की ईष्या झेल रही थी सौंदर्या

‘‘‘शुरुआत में सभी ऐसा करने की सोचते हैं. देखती नहीं, कमरे में एसी लगा हुआ है, पंखा नहीं है. बहुत जल्द कैमरा भी लग जाएगा. वैसे, कैमरा नहीं है तो क्या? नम्रता मैडम की आंखें उस से कम हैं क्या?’ वह लड़की बोली तो मैं ने कहा, ‘बेटा, तुम यहां कब…’ मेरा वाक्य खत्म होने से पहले वह बोल पड़ी,‘चुप कर, खबरदार, जो मुझे बेटा कहा. इस शब्द से छली गई हूं मैं. तू राधा मैडम बोलेगी मुझे, समझी.’

‘‘‘क्या?’ मैं हैरान रह गई.

‘‘मुझे डांटती हुई सी वह आगे बोली, ‘सीनियर की रिस्पैक्ट करना नहीं सीखा क्या? उम्र में भले ही तू मुझ से बड़ी होगी, पर इस लाइन में मैं तेरी सीनियर हूं. पढ़ीलिखी नहीं है क्या तू? सीनियर का मतलब तो पता होगा?’

‘‘ऐसे समय में भी अपनी हंसी नहीं रोक पाई थी मैं. ‘आप काफी पढ़ीलिखी लगती हैं, राधा मैडम?’ अपनी हंसी दबाते हुए मैं ने उस से पूछा था.

‘‘‘किताब नहीं मैडम, मैं ने जिंदगी पढ़ी है. तुम्हें भी तैयार कर दूंगी,’ वह बोली.

‘‘‘यहां, यह सब. मेरा मतलब है…’ मेरी बात पूरी होने से पहले ही वह बोली, ‘यहां जितनी साध्वियां दिख रहीं, वे सब…’ उस ने अपनी बात जारी रखी, ‘तेरे साथ एक नई लड़की भी आई है. नम्रता दीदी उसे ले कर आती होंगी. देखा तो है उसे तूने. क्या नाम है उस का? हां, गुडि़या, यही है उस का नाम.’

‘‘‘पर वह तो बहुत छोटी है,’ मैं ने चिंता प्रकट की.

‘‘‘छोटी, इस काम में क्या छोटी, क्या बड़ी? अब खुद को ही देख लें,’  राधा बोली थी.

‘‘‘सिर्फ 7 साल की है वह,’ मैं ने कहा था.

‘‘‘मैं 10 साल की थी जब इस लाइन में आई थी,’ राधा के शब्द थे.

‘‘सचमुच, उम्र में बड़ी होते हुए भी मैं उस के सामने कितनी छोटी थी, मैं सोच रही थी.

‘‘‘देख, तेरा नाम क्या है?’ राधा ने पूछा तो मैं ने कहा, सौंदर्या.

‘‘‘अरे वाह, मांबाप ने नाम बड़ा चुन कर रखा,’ राधा ने अपनी सोच प्रकट की.

‘‘मैं कुछ न बोली.’’

‘‘‘देखो, ऐसा है, कुछ लोगों को तेरी जैसी अनुभवी औरतें पसंद आती हैं तो कुछ को हमारे जैसी. वहीं, कुछ लोगों को गुडि़या की उम्र की लड़कियां चाहिए होती हैं. डिमांड और सप्लाई का खेल है.’ उस ने बताया.

‘‘‘ढोंगी हैं ये सारे?’ मैं ने घृणा भरे लहजे में कहा.

‘‘‘सही कहा. चल सो जा, वरना नम्रता दीदी आ जाएंगी,’ राधा बोली थी.

‘‘‘वे कौन हैं?’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘‘इन सब से भी बढ़ कर,’ राधा ने कह कर ठहाका लगाया.’

‘‘राधा चली गई थी. वह मेरी बगल में सो रही थी. पता नहीं, कब मेरे आंसू बहने लगे. क्या हुआ मौसी? कहीं चोट लगी है? दर्द हो रहा है?’

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‘‘अब क्या बताऊं उस मासूम को? कैसे दिखाऊं उसे अपनी चोट? खुद ही रिश्ता जोड़ लिया था उस ने. मौसी, …मां सी… मेरा अपना बचपन कौंध गया था मेरे सामने. ‘नहीं, गुडि़या को मैं एक और सौंदर्या या राधा नहीं बनने दूंगी.’ मेरे लक्ष्यविहीन जीवन को एक लक्ष्य मिल गया था.

‘‘अपने अंदर आए इस बदलाव से मैं खुद ही आश्चर्यचकित थी. अगले दिन मैं खुद उस पाखंडी के पास गई थी.

‘‘‘जयजय गुरुजी.’

‘‘‘साध्वी सौंदर्या, आइए,आइए. जयजय.’

‘तो क्या सोचा आप ने?’

‘‘‘कुछ सोचने लायक कहां छोड़ा आप ने?’

‘‘जी?’

‘‘‘गुरुजी, आज तक मैं अपने सौंदर्य को अपना शत्रु मानती थी. परंतु आप की कृपा से मैं यह जान पाई हूं कि इस का इस्तेमाल कर के मैं कितना कुछ प्राप्त कर सकती हूं. इसी की माया है कि आप जैसा पुरुष भी मेरा दास बनने को तैयार है. कहिए गुरुजी, कुछ गलत कहा मैं ने.’

‘‘‘बिलकुल भी नहीं.’

‘‘‘मैं इस कार्य के लिए सहमत हूं, परंतु आप से एक विनती है?’

‘‘‘तुम तो हुक्म करो.’

‘‘‘मुझे आप अभी अपनी सेवा में ही रहने दें.’

‘‘‘देखो, वैसे तो भगत तुम्हें बहुत पसंद करता है परंतु…अच्छा, परसों समागम का आयोजन किया गया है. उस के बाद बात करते हैं.’

‘‘‘ठीक है.’

‘‘उस ढोंगी से अनुमति मिल चुकी थी. अब मुझे सिर्फ एक काम करना था, वह भी उस के चाटुकारों की फौज से छिप कर. इस काम में मेरी मदद की सुषमा ने. सुषमा एक इलैक्ट्रौनिक इंजीनियर थी. अंधविश्वास और अंधश्रद्घा एक मनुष्य का कितना पतन कर सकती है, इस का वह जीताजागता उदाहरण थी. एक बड़ी कंपनी में काम करने वाली सुषमा आज इस कामी के पिंजरे में बंद थी.

‘‘समागम का जम कर प्रचार हुआ था. वैसे भी इस देश में धर्र्म के नाम पर तो पैसे लुटाने के लिए लोग तत्पर रहते ही हैं. परंतु एक गरीब को उस के हक का पैसा भी देने में लोग सौ तरह के बहाने करते हैं. पंक्तियों के हिसाब से बैठने का रेट निर्धारित था. प्रथम पंक्ति वीआईपी लोगों की थी. जिस देश में भगवान के दर्शन में भी मुद्रा की माया चलती है, उस देश में भगवान के इन तथाकथित मैनेजरों के दर्शन आप मुफ्त में कैसे पा सकते हैं. ईश्वर से संवाद तो आखिर यही बेचारे करते हैं.

‘‘प्रथम पंक्ति में कुछ खास लोगों तथा पत्रकारों को मुफ्त पास दिए गए थे. बाकी जो लोग उस पंक्ति में बैठना चाहते थे उन्हें 15 हजार रुपए देने पड़े थे. इसी प्रकार हर पंक्ति का अपना रेट फिक्स था. जो बेचारे मूल्य चुका नहीं सकते थे, परंतु गुरुजी को सुनने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे थे, वे आसपास के पेड़ों पर टंगे हुए थे.

‘‘नियत समय पर लोगों का आना शुरू हो गया. सुधाकर और नम्रता उन लोगों को समझा रहे थे जिन्हें गुरुजी भीड़ में से बीचबीच में उठाने वाले थे. उन्हें बस यही कहना था कि गुरुजी के उन के जीवन में आने से उन की जिंदगी में कितना सुधार हुआ है. किसी को नौकरी मिल गई थी, किसी के बच्चे की बीमारी ठीक हो गई थी. आखिर प्रोडक्ट का प्रचार भी तो करना होता है.

‘‘गुरुजी का समागम में आने का समय 12 बजे का था, उस के पहले उन्होंने राधा को बुलाया था. वह ढोंगी एक टोटके को मानता था. उस का मानना था कि समागम  के पहले अगर वह किसी लड़की के साथ संबंध बनाएगा तो उस का वह आयोजन काफी सफल होगा.

‘‘‘गुरुजी’ राधा पहुंच गई थी.

‘‘‘आ गई. चल, कपड़े उतार और लेट जा. क्या हुआ, खड़ी क्यों है,’ गुरुजी बोले.

‘‘‘गुरुजी वह…मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मेरा महीना…’ राधा बनावटीपन में कह रही थी.

‘‘‘क्या आज पहली बार कर रहा हूं, चल.’’

‘‘दर्द हो…’’

‘‘नाटक कर रही है. उतार साड़ी…’

‘‘‘नहीं उतारूंगी,’ राधा अब दहाड़ी थी.’

‘‘‘तेरी इतनी हिम्मत, भूल गई, पहली बार तेरा क्या हाल किया था. 10 दिनों तक उठ नहीं पाई थी.’

‘‘‘याद है भेडि़ए, सब याद है. पर अब तेरा खेल खत्म. अब किसी और लड़की को तू छू भी नहीं पाएगा?’

‘‘राधा ने यह कहा तो गुरुजी के भेष में वह घिनौना अपराधी जवाब में बोला, ‘‘‘अच्छा, कैसे भला, कौन बचाएगा उन्हें?’

‘‘‘मैं, दरवाजे पर मुझे देख कर वह ढोंगी चौंक गया.’

‘‘‘तू, वह मक्कारी का ठहाका लगा रहा था.’’

‘‘‘हां, मैं और ये सब लोग…’

‘‘उस कमीने और चाटुकारों की उस की फौज को पता ही नहीं चला था. एक रात पहले सुषमा ने समागम के लिए आए कैमरों में से 2 कैमरे गुरुजी के कमरे में लगा दिए थे. और अंदर का सारा नाटक, बाहर बैठे उस के भक्तगण देख चुके थे. और फिर उस भीड़ ने वही किया जिस की उम्मीद थी.

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‘‘गुरुजी के प्राणपखेरु भीड़ की पिटाई से उड़ गए थे. सभी चाटुकारों तथा गुरुजी के सभी ग्राहकों के खिलाफ आश्रम की हर स्त्री ने गवाही दी थी.

‘‘जिंदगी ने मुझे सिखा दिया है, मेरी सुंदरता कभी भी मेरी दुश्मन नहीं थी. अगर कोई मुझे गलत नजर से देखता था, तो दोष उस की नजर का था. खुद से प्रेम करना हम सभी सीख गए हैं.

‘‘अब हम से कोई भी साध्वी नहीं है. सब अपनी इच्छानुसार चुने हुए क्षेत्रों में कार्यरत हैं. हमारा कोई आश्रम नहीं है. एक कारवां है हम सब पथिकों का जो एक ही राह के राही हैं. मेरी इस पुस्तक में इन सभी पथिकों के संघर्ष की कहानियां हैं.

‘‘मेरा और मेरी सखियों का सफर अभी समाप्त नहीं हुआ है, न कभी होगा. कई नए साथी आएंगे, कई पुराने हंसते हुए हम से विदा हो जाएंगे परंतु यह कारवां बढ़ता ही जाएगा, चलता ही जाएगा.

‘‘अपनी और अपने कारवां की सखियों की सभी कहानियों का निचोड़ इन पंक्तियों द्वारा व्यक्त कर रही हूं-

‘‘चले थे इस पथ पर खुशियों को खोजते

मगर इस तलाश में खुद को ही खो दिया

स्वयं को खो कर, ढूंढ़ना था मुश्किल

चल पड़े हैं यारो, शायद रस्ते में मिल जाएं.’?’

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कारवां: भाग 2- क्यों परिवार की ईष्या झेल रही थी सौंदर्या

‘‘‘चलचल, बाकी बात कल कर लेंगे. पत्नी है न, तो पत्नी का फर्ज पूरा कर.’

‘‘मेरे सारे स्वप्न सुहाग सेज पर जल कर राख हो गए. मेरा कहीं भी अकेले आनाजाना बंद था, फोन उठाना भी मना था. औफिस की पार्टियों में भी वे अकेले ही जाते. मेरा मेकअप करना भी अजय को पसंद नहीं था. कपड़े भी मुझे उन से पूछ कर पहनने पड़ते थे. एक बार दुकान में उन के एक सहकर्मी मिल गए थे.

‘‘‘अरे अजय, क्या हाल हैं, अच्छा, भाभीजी भी साथ हैं, नमस्ते, भाभीजी.’

‘‘‘जी नमस्ते,’ मैं ने नमस्ते का जवाब दिया.

‘‘‘आज पता चला, भाभीजी, अजय आप को छिपा कर क्यों रखता है. कई बार कहा मिलाओ भाभी से. पर यह तो…’

‘‘‘अच्छा भाई रमेश, कल औफिस में मिलते हैं, आज थोड़ा जल्दी है,’ कहते हुए पति ने अपने साथी से पीछा छुड़ाया.

‘‘फिर घर आ कर अजय ने मुझ पर पहली बार हाथ उठाया था. परंतु वह आखिरी बार नहीं था. उस के बाद तो यह उन की आदत में शुमार हो गया. अब सोचती हूं तो लगता है कि मुझे मार कर, मेरे चेहरे पर निशान बना कर अजय अपने अहं को संतुष्ट करते थे. अजय का साधारण नैननक्श का होना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी. परंतु उन्हें कौन समझाता?

‘‘जब मेरे दोनों बच्चों नमन और रजनी का जन्म हुआ, मेरी जिंदगी बदल सी गई. मुझे लगा ये दोनों मेरा दर्द समझेंगे. परंतु जैसेजैसे बच्चे बड़े होते गए, उन का व्यवहार मेरे प्रति बदलता चला गया. उन्होंने अपने पिता का रूपरंग ही नहीं उन की सोच तथा उन का व्यवहार भी ले लिया था. दोनों की जिंदगी में दखल सिर्फ उन के पिता का था. रजनी और नमन के 15वें जन्मदिन पर तो कुछ ऐसा हुआ जिस ने मुझे मानसिक रूप से तोड़ दिया.

‘‘नमन तो अपना जन्मदिन किसी होटल में मनाने चला गया था परंतु रजनी का प्लान कुछ और था. उस दिन रजनी की कुछ सहेलियां घर आई थीं. उन सब को मेरा बनाया खाना बड़ा पसंद आया था. एक सहेली बोल पड़ी,‘रजनी, आंटी तो ग्रेट हैं. जितनी सुंदर हैं, खाना तो उस से भी स्वादिष्ठ बनाती हैं. लगता ही नहीं, इन के इतने बड़े बच्चे होंगे और तू तो आंटी की बेटी लगती ही नहीं.’

‘‘‘ऐसा नहीं है बेटा, सुमन,’ मैं ने कहा था.

‘‘‘मम्मी, आप अंदर जाइए,’ रजनी ने मुझे निर्देश दिया.

‘‘बाद में  क्या होने वाला था, उस का कुछकुछ एहसास मुझे हो गया था. अपने पापा और भाई के आने पर रजनी ने कुहराम मचा दिया था.

‘‘‘पापा, इन से कह दीजिए, अपनी सुंदरता की नुमाइश करने के लिए कोई और जगह ढूंढ़ लें. हमेशा मुझे नीचा दिखाने के तरीके ढूंढ़ती रहती हैं.’

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‘‘‘रजनी, मां हूं मैं तुम्हारी,’ मैं बोली थी.

‘‘‘तो मां बन कर रहो, अक्ल तो ढेले बराबर कि नहीं है. मेरे बच्चों की जिंदगी से दूर रहो समझी या दूसरी तरह समझाऊं?’ इतना कह कर पति अजय बेटी रजनी को ले कर उस के कमरे में चले गए.

‘‘बेटा नमन जो अब तक चुपचाप सब तमाशा देख रहा था, मेरे पास आया और बोला, ‘चुपचाप रह नहीं सकतीं, पिटने की आदत हो गई है क्या?’

‘‘अजय के रोजरोज के अपमान ने मेरे बच्चों को भी मुझे अपमानित करने का हक दे दिया था. हर पल मैं यही सोचती कि काश, ऐसा हो कि मेरी सुंदरता नष्ट हो जाए. मैं ने अपनेआप को अपने अंदर ही कैद कर लिया था. मानसिक व्यथा को दूर करने के लिए मैं ने अपनेआप को दूसरे कामों में लगा लिया. इसी दौरान मेरी मुलाकात स्वामीजी से हुई.

‘‘जीवन में पहली बार मैं ने इतनी बात किसी से की थी. हमेशा श्रोता रही थी मैं. अपनी पड़ोसिन गीता के घर में उन से पहली बार मेरी मुलाकात हुई थी. उस के बाद तो मैं गुरुजी की परमभक्त हो गई. दर्द से भरे हुए मेरे हृदयरूपी रेगिस्तान

में गुरुजी ठंडी फुहार के रूप में बरसने लगे थे. लगातार उन के आश्रम में मेरा आनाजाना होने लगा. धीरेधीरे मुझे यकीन होने लगा था कि मेरा जन्म ही गुरुजी की सेवा के लिए हुआ है.

‘‘मैं ने संन्यास लेने का निर्णय ले लिया. अजय गुस्से से पागल हो गए थे. बच्चे मजाक बना रहे थे. अपनेअपने तरीके से सब ने समझाने की कोशिश की, परंतु मैं रुकती भी तो किस के लिए, अजय और बच्चों के जीवन में तो मेरा अस्तित्व घर में रखे हुए फर्नीचर से ज्यादा कभी रहा नहीं था. गुरुजी में ही मुझे अपना वर्तमान तथा भविष्य दोनों नजर आ रहे थे.

‘‘आरंभ में सबकुछ अच्छा लग रहा था. लगभग एक महीने के बाद एक रात गुरुजी ने कुछ व्यक्तिगत मसलों पर चर्चा करने के लिए मुझे बुलाया था.

उस रात का मेरे इस जीवन पर सब से ज्यादा प्रभाव पड़ा था, सबकुछ बदल

गया था.

‘‘वहां जब मैं पहुंची, 2 सज्जन पहले से मौजूद थे. शायद गुरुजी के भक्त होंगे, सोच कर मैं अंदर आ गई थी. परंतु उन की नजरों में छिपी हुई भावना को मैं चाह कर भी नजरअंदाज नहीं कर पाई. इस नजर से मेरा सामना कई बार मेरे जीवन में हुआ था.

‘‘‘जैसा कि आप ने कहा था गुरुदेव, साध्वीजी तो उस से भी ज्यादा…’ उन में से एक बोला.

‘‘‘साध्वी सौंदर्या, क्या हुआ? डरें नहीं, अपने ही लोग हैं,’ गुरुजी ने प्यार से कहा.

‘‘जहां सब से ज्यादा विश्वास होता है, विश्वासघात भी वहीं होता है. विश्वास करना सही है, परंतु अंधविश्वास पतन की ओर ले जाता है.

‘‘गुरुजी की बात सुन कर मैं बैठ गई.

‘‘गुरुजी बोले, ‘साध्वीजी, आश्रम में दुखियारी स्त्रियों के लिए जो भवन बनने वाला था, उस के बारे में तो आप को बताया था.’

‘‘‘देखो, आप के कदम हमारे आश्रम के लिए कितने लाभकारी हैं. ये

2 परोपकारी मनुष्य सहयोग करने को तैयार हैं.’

‘‘‘अरे वाह, गुरुदेव,’ मैं ने खुशी जाहिर की.

‘‘‘अब, आप लोग आपस में बात कर लो. क्योंकि इस प्रोजैक्ट की पूरी जिम्मेदारी मैं आप को देना चाहता हूं, साध्वीजी,’ गुरुजी ने गेंद मेरे पाले में डाल दी.

‘‘‘क्या बात कह रहे हैं आप गुरुजी? मुझ में कहां इतनी काबिलीयत है?’ मैं ने दिल की सचाई को बयान कर दिया.

‘‘‘आप तो कमाल की हैं. हम से पूछिए अपनी काबिलीयत दूसरा आदमी बोला.’

‘‘‘आप चुप रहें, लालजी, हम बात कर रहे हैं न,’ गुरुजी ने उसे चुप कराया.

‘‘‘साध्वी सौंदर्या, यह तो एक शुरुआत है. बहुत जल्द पूरे आश्रम की जिम्मेदारी मैं आप को देना चाहता हूं.’

‘‘मैं तो भावविभोर हो गई, ‘गुरुजी, शब्द नहीं हैं मेरे पास आप का आभार व्यक्त करने के लिए, मेरे जीवन को एक दिशा देने के लिए.’

‘‘‘परंतु उस के लिए आप को…’ उन दो में से एक व्यक्ति बोला तो गुरुजी ने ‘चुप रह रामदास’ कह कर उसे चुप करा दिया, फिर मेरी तरफ मुखातिब हुए, ‘साध्वीजी को पता है सामाजिक उत्थान के लिए यदि थोड़ा व्यक्तिगत नुकसान भी उठाना पड़े तो उस में कोई बुराई नहीं है.’

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‘‘‘जी, मैं मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटती.’ मैं उत्साहित हो गई थी.

‘‘‘अरेअरे, आप को मेहनत कौन करने देगा? मेहनत तो हम कर लेंगे. आप तो बस…’ एक व्यक्ति बोला तो गुरुजी ने कहा, ‘चुप रह भगत, मैं बात कर रहा हूं न.’

‘‘मेरे अंदर संशय का नाग फन उठा चुका था, परंतु मेरी अंधश्रद्घा ने उसे कुचल दिया.

‘‘‘आप को कुछ नहीं करना, साध्वीजी. बस, जगत कल्याण का कार्य करना है,’ गुरुजी के शब्द थे.

‘‘‘जी,’ मैं ने धीरे से कहा, तो फिर उन्होंने इशारा किया, ‘आप को तो पता ही है, पुराने समय में देवदासी होती थीं. वे होती तो भगवान की ब्याहता थीं, परंतु जगतकल्याण के लिए ईश्वर के सभी भक्तों को सुख प्रदान करती थीं.’

‘‘‘जी, क्या?’ मैं कांप गई थी.

‘‘‘जी, बस, वही सुख आप को मुझे तथा परमपिता के भक्तों को प्रदान करना है.’

‘‘‘आप पागल हो गए हो क्या?’ क्रोधित हो कर मैं बोली.

‘‘गुरुजी थोड़ा नाराजगी के साथ बोले, ‘आप शब्दों का चुनाव सोचसमझ कर करें तो सही रहेगा. और वैसे भी, दुखीजनों के कल्याण से पुण्य ही मिलेगा. और आप की भी दबी हुई कामनाओं को…आखिर उम्र ही क्या है आप की?’

‘‘‘केवल 38 साल’ एक भक्त बोला.

‘‘‘गुरुजी, नहीं…नहीं,’ मैं सिसकते हुए बोली.

‘‘भक्त जब अपने भगवान का घिनौना रूप देख ले तो उस के जीने की रहीसही इच्छा भी दम तोड़ देती है. कई बार छली गई थी मैं, परंतु आज मैं टूट गई थी. मेरे आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. रोती हुई मैं आगे बोली, ‘मैं तो आप की पूजा करती थी, गुरुजी.’

‘‘‘मेरा प्रेम तो आप के साथ रहेगा ही, उस प्रेम को भी तो पूर्णरूप देना अभी बाकी है.’

‘‘आप जाइए, सोच लीजिए. आप के पास 2 दिनों का समय है,’ गुरुजी के शब्द थे.

‘‘मुझे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. भाग कर जाती भी तो कहां, कोई दरवाजा मेरे लिए नहीं खुला था. किसी को मेरा इंतजार नहीं था. उस समय ही मैं ने आत्महत्या के विकल्प के बारे में सोचा. जहर खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. नस काटने के लिए चाकू लाना होगा. साड़ी से फंदा लगा कर मरना ही मुझे सही लग रहा था. साड़ी तो मैं ने पहनी हुई थी, बस, उस का फंदा लगाना था. चादर का भी इस्तेमाल कर सकती थी. फंदा लगाने के लिए मैं ऊपर कील ढूंढ़ने लगी थी. परंतु तभी एक आवाज ने मेरे विचारों की शृंखला को तोड़ दिया.

‘‘‘कोई कील नहीं है इस कमरे में, पंखा भी नहीं है.’

‘‘मेरे सामने एक 15-16 साल की सुंदर लड़की थी. ऐसा लगा जैसे रजनी खड़ी हो. मां का दिल ऐसा ही होता है, चाह कर भी अपनी संतान से नफरत नहीं कर पाती. मैं ने उस से पूछा, ‘तुम, तुम्हें कैसे पता…?’

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कारवां: भाग 1- क्यों परिवार की ईष्या झेल रही थी सौंदर्या

कौन से भगवान को पूजें, सोचते हैं हम मंदिर में बैठा या दरगाह में सोया है शायद बिजी है वो, तभी उसे पता न चला कि तू रोया है, बहुत रोया है.

‘‘मौसीमौसी गाड़ी आ गई.’’ गुडि़या की आवाज ने मेरी कलम की रफ्तार को रोक दिया था.

‘‘थोड़ी देर से चले जाएंगे तो…’’

‘‘राधा… उन का फोन आया तो.’’

राधा ने इस आयोजन के लिए बहुत मेहनत की थी. इन 10 सालों में कितनी बदल गई थी राधा.

‘‘मौसी, फिर खो गईं आप, माना कि आप लेखकों को कल्पनालोक की यात्रा कुछ ज्यादा ही पसंद है किंतु यथार्थ में रहना उतना भी बुरा नहीं है, क्यों?’’

‘‘चलो.’’ कलम नीचे रख कर सौंदर्या चल पड़ी. आज उस की पुस्तक ‘कारवां’ के लिए उसे सम्मानित किया जाना था.

पूरा हौल खचाखच भरा था. कार्यक्रम संचालक तथा बाकी साथी लेखक उस की किताब व उस के बारे में मधुर बातें बोल रहे थे. जब सौंदर्या से दो शब्द बोलने को कहा गया तो वह बहुत पीछे चली गई थी, अपनी स्मृतियों के साथ. उस ने बोलना शुरू किया-

‘‘मध्य प्रदेश का एक छोटा सा शहर ‘सागर’, जहां मेरा बचपन बीता था. सागर का वास्तविक नाम सौगोर हुआ करता था. ‘सौ’ यानी एक सौ, ‘गोर’ यानी किला, असंख्य किलों का शहर सागर. परंतु कालांतर में लोगों ने सौगोर का सागर कर दिया.

‘‘मेरे पिता एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे और माता एक गृहिणी. 3 भाईबहनों की सूची में, मैं आखिरी नंबर में आती थी. भैया व दीदी दोनों की लाड़ली हुआ करती थी मैं. परंतु धीरेधीरे यह प्यार ईर्ष्या में बदलने लगा. इस का प्रमुख कारण था मेरा सुंदर होना. साधारण रूपरंग वाले परिवार में मैं न जाने कहां से आ गई थी.

‘‘दीदी को मेरी सुंदरता से ईर्ष्या थी, तो भैया को मेरी बुद्घि से. जहां भैया इंटरमीडिएट से ज्यादा नहीं पढ़ पाए वहीं मैं हर साल अपनी कक्षा में प्रथम आती थी.

‘‘‘यह लड़की तो डायन लगती है मुझे, सारे मंतर जानती है. इसी ने कुछ कर के मेरे बेटे से विद्या चुराई होगी. वरना औरत जात में इतनी बुद्घि कहां होती है,’ मां कहा करती थीं.

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‘‘एक दिन स्कूल से लौटने पर पता चला, दीदी को लड़के वाले देखने आ रहे हैं. पड़ोस की रमा काकी रिश्ता लाई थीं. दीदी 18 वर्ष की होने वाली थीं, मां को उन की शादी की जल्दी थी.

‘‘‘सोनू की मां, इस राजकुमारी को छिपा कर रखना. पता चला कि देखने बड़ी को आए हैं और पसंद छोटी को कर लिया. बाद में न कहना कि रमा ने बताया नहीं.’

‘‘‘क्या काकी, मैं क्यों छिपूं,’ मैं ने कहा था.

‘‘‘चुप कर छोटी, अंदर जा.’ मां ने मुझे डांट कर अंदर भेज दिया था. ‘अरे बहन, यही तो रोना है. इतना रूप ले कर मुझ गरीब के घर में आ गई है. इस खुले खजाने को देख कर लूटने वाले भी तो पीछे आते हैं.’

‘‘फिर उस रात मां, पापाजी तथा भैया में मंत्रणा हुई और उस की परिणति मेरी कैद से हुई. अगला पूरा दिन मैं कमरे में बंद रही. कहीं अपनी बालसुलभ जिज्ञासा के वशीभूत हो कर मैं बाहर न निकल जाऊं, इस के लिए कमरे के बाहर ताला लगा दिया गया था. दीदी की शादी तय हो गई थी.

‘‘शादी से 3-4 दिनों पहले से ही रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था. एक दिन जब मैं दीदी की साड़ी में गोटे लगाने का काम कर रही थी तो मौसी को कहते सुना, ‘जीजी, छोटी भी तो 13 वर्ष की हो गई होगी?’

‘‘‘हां, और क्या, 14 वर्ष की हो जाएगी इस साल तो. पिछले महीने तो महीना भी शुरू हो गया इस का,’ मां ने कहा था.

‘‘मुझे बड़ी शर्म आ रही थी मां के इस तरह से यह बात कहने पर. ऐसा लग रहा था जैसे मैं ने कोई गलती कर दी हो.

‘‘‘अच्छा, तभी इस का रूप और निखर आया है’ मौसी ने अपनी सोच जाहिर की थी.

‘‘‘उसी का तो रोना है. बड़ी की दिखाई में बंद कर के रखा था इसे,’ मां बोली थीं.

‘‘‘जीजी, शादी के दिन क्या करोगी? मर्द जात है, शादी के दिन मना कर दिया तो क्या करोगी? मेरी बात मानो, शादी तक इसे कहीं भेज दो,’ मौसी ने कहा तो मैं बोल पड़ी थी, ‘मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं सुंदर हूं इस में मेरा क्या गलती है?’

‘‘‘नहीं, हमारी है? चुप कर. बात तो सही है. मेरा बस चले तो इस का चेहरा गरम राख से जला दूं,’ मां ने कहा तो मैं बोली, ‘तो जला क्यों नहीं देतीं. मैं भी हमेशा की…’

‘‘फिर मां ने मेरा मुंह हमेशा की तरह थप्पड़ से बंद कर दिया. निरपराध रोतीबिलखती मुझे नानी के घर भेज दिया गया. विवाह में बनने वाले पकवान, नए कपड़ों का लोभ मैं विस्मरण नहीं कर पा रही थी. परंतु वहां मेरी कौन सुनने वाला था?

‘‘जब मैं दीदी की शादी के बाद घर आई, सारे मेहमान जा चुके थे. दीदी अपने पगफेरों के लिए घर आई हुई थीं. मैं ने पहली बार उस आदमी को देखा जिस से छिपाने के लिए मुझे सजा दी गई थी. मेरे जीजाजी की नजर जब एक बार मुझ पर पड़ी, फिर वह हटी ही नहीं. आंखों ही आंखों में वे मुझे जैसे उलाहना दे रहे थे कि कहां थी अब तक…

‘‘‘कौन है यह, आभा?’ वह पूछ तो दीदी से रहे थे परंतु उन की नजर मुझ पर ही थी.

‘‘‘मैं, आप की इकलौती साली, जीजाजी,’ मैं ने कहा तो वे बोले ‘कहां थी अब तक?’

‘‘‘आप से बचाने के लिए मुझे यहां से दूर भेजा गया था. आप क्या इतने बुरे हो? लगते तो नहीं हो,’ मैं ने कह दिया.

‘‘‘कुछ अज्ञानता और कुछ नाराजगी में मैं और न जाने क्याक्या बोल जाती, अगर दीदी मुझे वहां से खींच कर मां के पास न ले जातीं.’

‘‘‘मां, इस छोटी को संभाल लो वरना अपनी बड़ी बहन की सौतन बनने में देर न लगाएगी,’ दीदी ने शंका जाहिर की.

‘‘‘यह सौतन क्या होता है?’ मैं ने जिज्ञासावश कहा था.

‘‘‘क्या हो गया?’ मां बोली थीं.

‘‘‘कुछ कांड कर देगी तब समझोगी क्या?’ दीदी ने कहा.

‘‘‘अब मैं ने क्या किया? अपने दूल्हे को देखो. कैसे घूर रहा था मुझे. मां, वह अच्छा आदमी नहीं है,’ मैं ने स्पष्ट कह दिया.

‘‘चटाक… मां के थप्पड़ ने बता दिया कि गलती मेरी ही थी. फिर जब तक दीदी व जीजाजी चले नहीं गए, मुझे कमरे में नजरबंद कर दिया गया.

‘‘स्कूल तथा कालेज के रास्ते में भी मैं ने इन नारीलोलुप नजरों का सामना कई बार किया था. कुछ नजरों में हवस होती थी, कुछ में जलन तथा कुछ में कामना. इस पुरुषदंभी समाज का सामना कई लड़कियों ने किया था. शिक्षा पाने की यह कीमत मान ली हो जैसे उन्होंने. उस रास्ते से जाने वाली किसी नारी ने कभी भी मुड़ कर उन पुरुषों का प्रतिवाद नहीं किया था. परंतु यह गलती एक दिन मुझ से हो गई थी.

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‘‘मेरे कालेज का पहला दिन था. रोज की तरह मैं पैदल ही घर आ रही थी. उस दिन वह रास्ता खाली था. मैं खुश थी, तभी पीछे से मोटरसाइकिल की आवाज सुनाई दी. मैं तो किनारे पर चल रही थी, इसलिए मैं ने ध्यान नहीं दिया. वह मोटरसाइकिल मेरे पास आ कर थोड़ी धीमी हो गई. एक हाथ आगे बढ़ कर मेरे वक्षों को इतनी जोर से खींचा कि मैं गिर पड़ी. दर्द और शर्मिंदगी के ज्वार ने मुझे घेर लिया. अपने सीने पर हाथ रख कर मैं कई घंटे बैठी रही थी.

‘‘जब मैं घर पहुंची, दीदी भी आई हुई थीं. मुझे रोता देख कर दीदी व मां दोनों मेरे पास चली आईं. मां को मुझे गले लगाना चाहिए था, परंतु… ‘अरी, रो क्यों रही है? कुछ करवा कर आ रही है क्या?’ कह कर मुझ पर आरोप लगाने की कोशिश की.

‘‘मैं ने रोतेरोते मां को सब बताया, ‘मां, मैं ने मोटरसाइकिल का नंबर देखा था, चलो पुलिस के पास. मैं उसे नहीं छोड़ूंगी.’

‘‘‘लो, अब यही दिन रह गए थे. सुन, तूने ही कुछ किया होगा,’ मां ने मेरे स्पष्टीकरण को नजरअंदाज किया तो दीदी भी मुझे ही दोषी ठहराने लगीं.

‘‘‘और नहीं तो क्या मां, हमारे साथ तो ऐसा कभी न हुआ. पहले मर्दों को ऐसे कपड़े पहन कर भड़काओ, फिर वे कुछ कर दें तो उन का क्या दोष?’

‘‘‘दीदी, सूट ही तो पहना है,’  मैं ने साफ कहा तो उन्होंने कहा, ‘सीना नहीं ढका होगा.’

‘‘‘चुप करो तुम दोनों. और सुन छोटी, यह बात यहीं भूल जा. तेरे भाई को पता चला तो तुझे काट कर रख देगा. तुझे ही ध्यान रखना चाहिए था,’ मां बोलीं.

‘‘‘और पढ़ाओ इसे, मां. अभी तो शुरुआत है,’ दीदी ने ताना सा मारा.

‘‘औरत की इज्जत औरत के पास ही सब से कम है. वह नहीं जानती कि इसी वजह से घरघर में उस की उपेक्षा होती है. दीदी और मां भी इस के इतर नहीं थीं. इस घटना का नतीजा यह हुआ कि मेरी पढ़ाई छुड़ा दी गई और मेरे लिए लड़का ढूंढ़ा जाने लगा, जैसे कि विवाह हर समस्या का समाधान हो. वैसे भी, बोझ जितना जल्दी उतर जाए उतना अच्छा, यह समाज का नियम है. और इस नियम को बनाने वाले भी पुरुष ही होंगे. जब तक हम किसी क्रांति को पैदा करने में असमर्थ हैं, तब तक समाज के विधान को सिर झुका कर स्वीकार करना ही होगा. यही मैं ने भी किया.

‘‘अजय एक सरकारी बैंक में कार्यरत थे, शादी कर के मैं भोपाल आ गई. गहन अंधकार में ही प्रकाश की किरणें घुली रहती हैं, यह सोच कर मैं ने अपने नवजीवन में प्रवेश किया. परंतु शादी की पहली रात मैं अजय के व्यवहार से दुखी हो गई.

‘‘‘सुनो, अपनी सुंदरता का घमंड मुझे मत दिखाना. मेरी पत्नी हो, अपनी औकात कभी मत भूलना. और हां, ज्यादा ताकझांक करने की जरूरत नहीं है. मेरी नजर रहेगी तुम पर. समझ गईं,’ पति महोदय ऐसा बोले तो मैं बोली, ‘यह क्या कह रहे हैं आप? मैं आप की पत्नी हूं.’

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बहुत देर कर दी: भाग 4- हानिया की दीवानी कोन थी

रात को गजाला हानिया के पास आई और उस ने साफसाफ कह दिया कि वह अली को पसंद करती है. उस से उस की अच्छी अंडरस्टैंडिंग है, इसलिए अली के रिश्ते को मंजूरी दे दी जाए. अब हानिया की समझ में आया, इसी वजह से उस ने अमान को ‘नहीं’ कह दिया था. रूमी उस की दोस्त है. उस की अली से मुलाकात हुई होगी. दोनों एकदूसरे को पसंद करते होंगे. पर यह बात वह सलमान को बता कर बेटी को नीचा नहीं दिखाना चाहती थी. उस ने और जीशान ने अली के खानदान, उस के रखरखाव की इतनी तारीफ की कि आधेअधूरे मन से सलमान को अली के रिश्ते के लिए हां कहना पड़ा.

शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. सलमान खूब धूमधाम से शादी करना चाहता था. हानिया ने भी कपड़ेजेवर सभीकुछ बहुत कीमती व अच्छा चुना. ताकि अब उस पर कोई इलजाम न आए. सलमान सब देख कर खुश तो बहुत हुआ पर मुंह से तारीफ न की. लेकिन इतना जरूर कहा, ‘‘मैं तो अमान को बेटी देना चाहता था, खूब रईस खानदान था. मेरी बेटी ऐश करती. सब से बड़ी बात इकलौता बेटा था. सबकुछ गजाला का ही होता. पर अपनीअपनी सोच है. ठीक है अली डाक्टर है, इसलिए उसे बेटी दे दी. आज भी तुम उसे अपनी बेटी न समझ सकीं. इतने दौलतमंद घराने को छोड़ कर डाक्टर के यहां बेटी ब्याह दी.’’

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हानिया को लगा, उसे किसी ने शोलों में धकेल दिया हो. सारी उम्र की मेहनत व कुरबानी सब बेकार गई. उस ने बेबस आंखों से सलमान को देखा और सिर झुका लिया, कुछ कह कर वह बात बढ़ाना नहीं चाहती थी. जीशान भी वहीं था. वह गुस्से से होंठ काटने लगा. पर मां का खयाल कर के चुप रहा. आज तक हानिया अनुशा की जगह न ले सकी थी. मौत के 17-18 साल बाद भी अनुशा उस के दिल पर राज कर रही थी. शादी खूब अच्छे से हो गई. सभी रिश्तेदारों, मेहमानों ने खूब तारीफ की. हर किसी की जबान पर एक ही बात थी, ‘मां हो तो हानिया जैसी.’ इतनी तारीफें भी हानिया के होंठों पर हंसी न ला सकीं. एक रोबोट की तरह वह सारे काम निबटाती रही, मुसकरा कर लोगों से मिलती रही. विदाई से पहले उसे गजाला के पास बैठने का वक्त मिला. जैसे ही वह मां के गले लगी, बिलखबिलख कर रो पड़ी और दोनों हाथ जोड़ कर गजाला कहने लगी, ‘‘अम्मी, मुझे माफ कर दीजिए, आप ने मेरे लिए जो किया वह सगी मां भी नहीं कर सकती. आप ने मेरे लिए कितने उलाहने, कितने ताने, कितनी बातें सहीं. मेरी वजह से आप की जिंदगी एक अजाब बन गई. सिर्फ मेरी वजह से आप ने जीशान को होस्टल भेज दिया, अपनी ममता का गला घोंट दिया. अम्मी, मैं किसकिस बात के लिए आप से माफी मांगूं? मेरी अली से शादी पर भी कैसेकैसे इलजाम पापा ने आप पर लगाए. आप तो पापा की मरजी के अनुसार अमान से ही मेरी शादी पर राजी थीं. पर मेरे कहने पर मेरी पसंद पर आप को अपनी राय बदलनी पड़ी. और मेरा दिल रखने के लिए आप ने अली का नाम लिया. पापा आप से नाराज भी हुए पर मेरी खातिर आप अपनी बात पर अड़ी रहीं. अम्मी, मैं कैसे इतने एहसान उतार पाऊंगी? आप ने सगी मां से बढ़ कर मेरे लिए किया है.’’ एक बार फिर वह सिसक उठी. हानिया उसे चुप कराने लगी.

सलमान जो बेटी से मिलने कमरे में आ रहा था, बेटी की आवाज, ‘‘अम्मी, मुझे माफ कर दो…’’ सुन कर बाहर ही रुक गया. बेटी के मुंह से हकीकत और मां की तारीफ सुन कर जैसे वह शर्म से पानीपानी हो रहा था. उस ने हानिया के साथ क्याक्या न जुल्म किए, कितना अपमान किया, कैसेकैसे इलजाम न लगाए पर वह खामोश, सब सुनती रही, सहती रही. सलमान बेटी के मुंह से अली के बारे में सुन कर बहुत शर्मिंदा हुआ. इस के लिए भी उस ने हानिया को दोष दिया था. सच में हानिया ने सलमान और गजाला के लिए अपनी परवा न की. घर का माहौल न बिगड़े, उस ने मासूम बच्चे को होस्टल भेज दिया. कैसी अंधी मुहब्बत थी सलमान की अनुशा और गजाला के लिए कि वह जीतीजागती चाहने वाली बीवी की मुहब्बत पैरों तले रौंदता रहा और मरी हुई बीवी का दम भरता रहा. आज उसे एहसास हो रहा था, हानिया उस के लिए कितनी जरूरी है. कितनी अच्छी तरह उस ने उस की गृहस्थी चलाई. दिल में हानिया की मुहब्बत तो सिर उभार रही थी, चाहत तो कब से पनप रही थी पर वह मानने को राजी न था. अपनी गलती, अपने जुल्म, अपनी लापरवाही पर उसे बड़ी शर्मिंदगी हो रही थी. उस ने इरादा कर लिया कि वह जल्द ही हानिया से अपनी गलतियों की माफी मांग लेगा. उसे उस का सही मुकाम व इज्जत देगा. जो तकलीफें उस ने उठाई हैं उतने ही सुख उसे देगा.

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हानिया उसी वक्त गजाला को समझाती हुई दरवाजे से बाहर ला रही थी. सलमान ने आगे बढ़ कर बेटी को गले लगाया. गजाला बाप से मिल कर फूटफूट कर रोई. सलमान भी रो पड़े, दिल भारी हो गया. विदाई के बाद घर में बेहद सन्नाटा हो गया. एक अजीब सी उदासी पसर गई. मंजूर और फैमिली दूसरे दिन जाने वाले थे. हानिया घर समेट रही थी, पता नहीं कब सोई. दूसरे दिन सुबह सलमान की आंख देर से खुली. नाश्ते की टेबल पर सब उन का इंतजार कर रहे थे. नाश्ता कर के सब बातें करते रहे. मंजूर वगैरा अपनी तैयारी करने के लिए उठ गए. सलमान उठ कर अपने कमरे में आया. कमरा हमेशा की तरह साफसुथरा महकता हुआ मिला. उस का दिल खुश हो गया. उसे याद आया, ‘हानिया कितनी ही थकी हुई हो, कितनी ही देर से सोई हो पर सवेरे कमरा इसी तरह चमकतादमकता मिलता था.’ उस ने सोचा कि आज वह हानिया का खूब शुक्रिया अदा करेगा. तारीफ कर के उस का जी खुश कर देगा.

हानिया उसी वक्त सूटकेस खींचती स्टोर से बाहर निकली और सलमान के सामने खड़ी हो गई. उस की आंखों में निश्चय की चमक और विश्वास था. उस ने धीरेधीरे बात कहना शुरू किया, ‘‘सलमान, आज आप से मुझे जरूरी बात करनी है. आप ने शादी की पहली रात ही मुझे बता दिया था कि आप सिर्फ गजाला के लिए मुझे ब्याह कर लाए हैं. उस के बाद भी कभी आप ने मुझे गजाला की मां नहीं समझा. शक और वहम आप को भरमाते रहे. आप ने कभी भी मुझे बीवी की इज्जत और मुहब्बत नहीं दी. ‘‘अब आप की बेटी इस घर से विदा हो गई है. मेरी जिम्मेदारी खत्म हो गई. अब आप को और आप के घर को मेरी जरूरत नहीं है. मैं अपनी अम्मी के साथ जा रही हूं. इतने अरसे तक मैं ने अपने बेटे को खुद से दूर रखा. उसे मां की मुहब्बत से वंचित रखा. अब मैं उस के पास रह कर उस का पूरा हक अदा करूंगी. मेरा उस के प्रति भी कोई फर्ज है जो मैं पूरा करना चाहती हूं. उस के हिस्से की मुहब्बत उसे दूंगी. आप अब मुझे इजाजत दीजिए.’’ सलमान को लगा जैसे किसी ने उस के पांवों के नीचे से जमीन खींच ली हो. वह अब हानिया के बिना जिंदगी गुजारने की सोच भी नहीं सकता था. वह जल्दी से बोल उठा, ‘‘हानिया, मेरी बात सुनो, मैं अपनी गलतियों पर शर्मिंदा हूं. मैं मानता हूं मैं ने तुम्हारे साथ बहुत ज्यादती की है. पर मुझे इस तरह छोड़ कर न जाओ. मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है.’’

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हानिया ने अटल लहजे में जवाब दिया, ‘‘जब मुझे आप की जरूरत थी तब आप ने साथ न दिया. अब मुझे आदत हो चुकी है. मैं ने फैसला कर लिया है, मैं जीशान के पास रहूंगी. मैं जा रही हूं. अब मुझे आप की कोई दलील रोक नहीं सकेगी.’’ यह कह कर, सूटकेस ले कर वह कमरे से बाहर निकल गई. बाहर मंजूर, जीशान सभी तैयार खड़े थे. वह उन लोगों के साथ गाड़ी में बैठ गई. सलमान देखता रह गया.

बहुत देर कर दी: भाग 3- हानिया की दीवानी कोन थी

वह मंजूर के साथ बैठ कर बातें कर रही थी. साढ़े 7 बजे के करीब सलमान औफिस से आ गया. चाय वगैरा पी कर उस ने गजाला के बारे में पूछा. जैसे ही उसे पता चला, गजाला अपनी दोस्त के पेरैंट्स के साथ फंक्शन में गई है और अब तक नहीं आई है, उस का पारा चढ़ गया. ‘‘हानिया, तुम्हें गजाला की जरा भी फिक्र नहीं है. साल में 1-2 बार ही उस के स्कूल जाना पड़ता है. तुम वह भी नहीं करतीं. आखिर, तुम्हें जाने में क्या तकलीफ थी?’’ हानिया ने उसे जीशान की तबीयत के बारे में बताया कि उसे ऐडमिट करना पड़ा था.’’ जवाब मिला, ‘‘उसे अम्मा देख लेतीं. तुम्हें उसे अकेले नहीं भेजना था. 8 बज रहे हैं, अभी तक पता नहीं है उन सब का?’’

उसी वक्त कार रुकने की आवाज आई. दोनों लपक कर गेट पर पहुंचे. गजाला गाड़ी से उतर रही थी. उस के हाथ पर पट्टी बंधी थी. अंकलआंटी को भी थोड़ी चोट लगी थी. उन लोगों ने बताया कि वे लोग फंक्शन के बाद स्कूल से लौट रहे थे. ट्रैफिक बहुत था. इसी बीच किसी जीप ने उन की गाड़ी को टक्कर मारी और तेजी से निकल गई. वह तो गनीमत रही कि किसी को ज्यादा चोट नहीं आई. गजाला के हाथ पर चोट लगी, हलका सा हेयरलाइन फ्रैक्चर है. वे लोग डाक्टर को दिखा कर आए थे. वे लोग चले गए. हानिया ने गजाला को दूध और दवा दे कर सुला दिया. सलमान का गुस्सा किसी तरह कम नहीं हो रहा था. एक हंगामा खड़ा कर दिया. हानिया की इतने सालों की मुहब्बत, मेहनत सब भुला दी.

‘‘मुझे मालूम था मेरी बच्ची इतनी तकलीफ में सिर्फ तुम्हारी वजह से है. तुम्हें अपने बेटे की पड़ी थी. दिखा दिया न तुम ने सौतेलापन? उस का खयाल होता तो तुम कभी उसे अकेली न भेजतीं.’’

इतनी शिकायतें, इतनी बदगुमानियां जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. ताई ने सलमान को रोकासमझाया. मंजूर ने कहा, ‘‘भाईजान, ये सब तो होता रहता है. बच्चे गिरपड़ कर ही बड़े होते हैं.’’ जब तक गजाला के हाथ में पट्टी रही, सलमान का मूड औफ ही रहा. यह तो अच्छा हुआ कि हाथ जल्दी ठीक हो गया और कोई नुक्स न रहा.

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दिनरात का पहिया घूमता रहा. हानिया हद से ज्यादा गजाला का खयाल रखती. इस चक्कर में जीशान उपेक्षित भी हो जाता पर वह भी शायद बाप का मिजाज और मां की मजबूरी समझ गया था. कभी कोई शिकायत न करता. जीशान भी स्कूल जाता. दोनों के स्कूल अलगअलग थे पर टाइम एक ही था. सुबह के वक्त दोनों को तैयार करना, लंचबौक्स साथ देना, एक हड़बड़ी सी मच जाती. उस दिन भी वह इन्हीं कामों में लगी थी कि मंजूर उस से मिलने आया. वह वापस पुणे जा रहा था. वह कई दिनों से अम्मा के पास भी न जा सकी थी. बच्चों को नाश्ता दे कर वह वहीं बैठ कर बातें करने लगी. उसी वक्त जीशान दूध का गिलास उठा रहा था कि वह उस के हाथ से फिसल गया. गजाला के हाथ पर कुछ छींटे पड़े हालांकि दूध ज्यादा गरम न था पर सलमान फिर शुरू हो गए. गजाला कहती रही कि कुछ खास नहीं जला पर वह उस पर जरा सी ज्यादती बरदाश्त नहीं कर पाता था. एक लंबे भाषण और इलजाम के बाद हंगामा शांत हुआ.

सलमान के जाने के बाद मंजूर ने बहन को समझाया, ‘‘सलमान भाई को लगता है गजाला उन की महबूबा अनुशा की निशानी है. तुम उस से जरा भी ज्यादती न करो. तुम तो उसे बहुत प्यार करती हो पर उन्हें लगता है तुम्हारा ध्यान जीशान में है. इसलिए ऐसी घटनाएं घटती हैं. मुझे लगता है कि समस्या जीशान की वजह से ही उठती है. मेरी जौब पुणे में है. वहां बहुत अच्छेअच्छे स्कूल हैं. मैं नए सैशन में उस का ऐडमिशन करा देता हूं. पढ़ाई भी अच्छी होगी. जीशान यहां एक कौंपलैक्स में जी रहा है. अगर यह कौंपलैक्स बढ़ गया तो वह बाप व बहन से नफरत करने लग जाएगा. बेहतर है आप उसे पुणे भेज दो. मैं उस की पूरी देखरेख करूंगा और औरंगाबाद से पुणे ज्यादा दूर भी नहीं है.’’

हानिया को उस की बात समझ में आ गई. उस ने रजामंदी दे दी. वह धीरेधीरे जीशान को दिमागीतौर पर तैयार करने लगी. उस ने यह बात सलमान और ताई से कही. ताई तुरंत विरोध करने लगीं. सलमान ने कहा, ‘‘जैसा ठीक समझो, वह करो. मुझे कोई एतराज नहीं है.’’ उस ने समझाबुझा कर ताई व गजाला को भी राजी कर लिया. नए सैशन में जीशान मंजूर के साथ पुणे चला गया. घर में जैसे सन्नाटा छा गया. हानिया के दिल का एक कोना एकदम वीरान हो गया. 8 साल का मासूम बच्चा मां से जुदा हो गया. यह एक मां की कड़ी परीक्षा थी. शादी को खुशहाल बनाने की उसे यह कीमत चुकानी पड़ी. हालात पहले से बेहतर हो गए. सलमान का बेवजह का गुस्सा खत्म हो गया. अब हानिया पूरी तरह से गजाला की परवरिश में लग गई. गजाला बड़ी हो रही थी. उस पर ज्यादा ध्यान देना भी जरूरी था. जीशान छुट्टियों में आता रहता. उस का दिल होस्टल में लग गया था. पर मां की, घर की कमी तो महसूस होती ही थी. जिंदगी गुजरती रही. ताई कुछ दिन बीमार रहीं, फिर चल बसीं. हानिया को लगा, उस के सिर से मुहब्बत का साया हट गया. उन्होंने उसे हमेशा मां से बढ़ कर प्यार दिया था. वे उस के दुख को खूब समझती थीं.

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मंजूर की शादी थी. वह हफ्तेभर के लिए मायके गई. खूब अच्छी लड़की मिली, शादी भी अच्छे से हो गई. शादी के बाद हानिया के मम्मीपापा भी पुणे चले गए. गजाला बीए फाइनल में आ गई. जीशान ने 12वीं मैरिट में पास किया. उस का पुणे मैडिकल कालेज में ऐडमिशन हो गया. जीशान नानानानी के पास रह कर मैडिकल की पढ़ाई करने लगा. उस दिन सलमान बहुत खुशीखुशी घर आया और बताया कि उन का दोस्त जो अमेरिका में था, अब यहां आ कर सैट हो गया है. हमीर ने अपना बिजनैस शुरू किया है. उस का बेटा अमान एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब कर रहा है. उन का घर मुंबई में है, वहीं सब साथ रह रहे हैं. अमान बहुत स्मार्ट और समझदार है. हमीर ने उस का रिश्ता गजाला के लिए दिया है. यह फोटो भी भेजा है. तुम फोटो दिखा कर गजाला से उस की मरजी मालूम कर लो ताकि बात तय की जा सके.

हानिया ने गजाला को फोटो दिखाया और उस की मरजी पूछी तो वह एकदम चुप हो गई, फिर बोली, ‘‘अम्मी, आप पापा को बोल दो कि मैं इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहती.’’ सलमान ने सुना तो गुस्से में आ गया, कहने लगा, ‘‘इतना अच्छा रिश्ता है, बिजनैस क्लास फैमिली है, गजाला वहां राज करेगी. पता नहीं क्यों आजकल की लड़कियां बस अपनी मरजी चलाना चाहती हैं. मैं खुद बात करूंगा.’’

सलमान की गजाला से बात करने की नौबत ही नहीं आई, उस के पहले गजाला की सहेली रूमी के मम्मीपापा अपने डाक्टर बेटे का रिश्ता ले कर आ गए. रूमी के पापा शहर के माने हुए सर्जन थे. उन का खुद का अस्पताल था. उन का बेटा अली भी उन्हीं के साथ था. काफी अच्छा खानदान था. दूसरा बेटा भी मैडिकल में था. एक बेटी रूमी थी जो गजाला के साथ थी. अली देखने में काफी स्मार्ट और मिलनसार था. सभी को खूब पसंद आया. जीशान तो अली के ही पक्ष में था क्योंकि वह खुद भी मैडिकल में था. सलमान खामोश हो गया. दोनों रिश्ते अच्छे थे पर सलामन का इरादा अपने दोस्त के बेटे अमान के लिए था. हानिया ने सोच कर जवाब देने को कह दिया.

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बहुत देर कर दी: भाग 2- हानिया की दीवानी कोन थी

सलमान ने मजबूरी के आगे सिर झुका दिया. हानिया अब सलमान की  दुलहन बन कर ताई के घर आ गई. पहली ही रात सलमान ने उसे उस की हैसियत समझा दी, ‘‘देखो हानिया, यह शादी मैं ने सिर्फ गजाला की वजह से की है, उसी के लिए तुम्हें लाया हूं. अनुशा को भूल पाना मेरे लिए मुश्किल है. उस की चाहत किसी से बांटना भी नहीं चाहता. मुझ से तुम उम्मीदें मत लगा लेना. और हां, यह बात याद रखना, गजाला में मेरी जान बसती है. उस की कोई तकलीफ मुझ से बरदाश्त न होगी. इस से अगर तुम ने कोई ज्यादती की तो मैं बरदाश्त नहीं करूंगा.’’ अरमानभरी रात सलमान की हिदायतों में गुजर गई. हानिया ने आंसूभरी आंखों से उस इंसान को देखा जो उस का हमसफर था. शायद, वह यह जानता भी न होगा कि हानिया के दिल में सलमान की मुहब्बत की कोंपल नवजवानी की सोंधी मिट्टी में जम चुकी थी पर अपनी कमसूरती का एहसास कर के उस ने अपने जज्बात अपने दिल में ही घोंट लिए थे. जबां पर ताला लगा लिया था. पर उस की मुहब्बत की आंच धीमेधीमे उस के दिल को तपा कर कुंदन बनाती रही. हानिया की अनुशा व गजाला से चाहत सलमान की मुहब्बत से ही जुड़ी थी. जो सलमान को प्यारा वह उसे भी प्यारा था. काश, अपनी मुहब्बत वह सलमान पर जाहिर कर सकती. उसे जो कुछ भी मिला है उसी में वह खुश रहने की काशिश करती.

जिंदगी कब दिल और जज्बात देखती है, वह तो अपनी रफ्तार से गुजरती है. हानिया के लिए कुछ नया न था, सिर्फ रिश्ता बदल गया था. हानिया ने सलमान से कोई उम्मीद नहीं जोड़ी थी. वह जानती थी, अनुशा उस के दिल पर राज करती है. उसे अपनी खिदमत, अपनी चाहत से ही सलमान के दिल में थोड़ी सी जगह बनानी थी जो कि एक मुश्किल काम था. कम से कम घर में उस के लिए रोशनी के मीनार थे- ताई की मुहब्बत और गजाला का मासूम प्यार. इतनी रोशनी जिंदगी गुजारने के लिए काफी थी. सलमान औफिस से आते, कुछ देर ताई के पास बैठते, कुछ वक्त गजाला के साथ बिताता, कुछ आम सवाल हानिया से पूछता. उस की हर जरूरत व ख्वाहिश का खयाल रखता पर मुहब्बत के मामले में वह बेहिस पत्थर बना रहा. हानिया ने भी हालात से समझौता कर लिया, उस ने जानतेबूझते यह सौदा किया, फिर गिला कैसा?

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हानिया की तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं थी. डाक्टर को दिखाने पर खुशखबरी मिली कि वह मां बनने वाली है. ताई बेहद खुश हुईं. उसी वक्त मिठाई मंगवाई. उस के अम्मीअब्बा भी आए. अच्छाखासा खुशी का माहौल बन गया. बस, सलमान जरा चुपचुप सा था. रात को हानिया ने हिम्मत कर के पूछा, ‘‘क्या आप को बच्चे की खबर से खुशी नहीं हुई?’’ वह बोला, ‘‘खुशी, नाखुशी का क्या सवाल? अभी शादी को 6 महीने हुए, जरा जल्दी नहीं हो गया? पर तुम्हें इस बात का बहुत खयाल रखना होगा कि इस बच्चे की देखभाल में गजाला को न भूल जाओ.’’

हानिया का दिल कट कर रह गया, आंसू बहाने का कोई मतलब न था. उसे अपने व्यवहार से यह साबित करना था कि वह सगी मां से बढ़ कर है. बेटे के जन्म से घर में एक रौनक सी आ गई. ताई तो फूले न समातीं. गजाला को भी भाई को देख कर बहुत खुशी हुई. पर हानिया के लिए एक नया इम्तिहान शुरू हो गया. गजाला का पूरा खयाल रखते हुए बेटे जीशान को संभालना था. गजाला मां के मरने के बाद से थोड़ी जिद्दी व चिड़चिड़ी हो गई थी. उसे बड़ी होशियारी और प्यार से नौर्मल करना था. कहीं उस के दिल में यह खयाल न आ जाए कि मां, भाई को ज्यादा चाहती है. शायद नन्हा जीशान मां की मजबूरी जान गया था. वह थोड़े में ही सब्र करने लगा. उस का ज्यादा वक्त दादी के पास रखे झूले में ही गुजरता. उस दिन हानिया गजाला को एक नया खिलौना चलाना सिखा रही थी कि जीशान के रोने की आवाज आई. पहले तो वह बैठी रही पर रोना बढ़ गया तो वह उठ कर जीशान को देखने चली गई. सलमान बैठे न्यूजपेपर पढ़ रहे थे. अभी हानिया को बच्चे को संभालते 10 मिनट ही हुए थे कि गजाला के चीखचीख कर रोने की आवाज आई. वह घबरा कर उस के पास पहुंची. गजाला ने खिलौने का स्ंिप्रग मुंह के पास रख कर खींच दिया था, होंठ पर जरा सी चोट लग गई थी. सलमान ने एक हंगामा खड़ा कर दिया.

थोड़ी देर में ही हानिया ने गजाला को चुप करा लिया. उस के फूले होंठ पर शहद लगा दिया. पर सलमान की शिकायतें एक घंटा चलती रहीं, ‘‘तुम गजाला को छोड़ कर कैसे चली गईं. उस के हाथ से खिलौना ले कर जाना था. बेटे का रोना सुनते ही एकदम बेचैन हो जाती हो. अगर ज्यादा जोर से लग जाती तो? सच है अपना, अपना ही होता है.’’ वह सब खामोशी से सुनती रही. लेकिन ताई ने सलमान को डांटा, ‘‘इतनी चाहने वाली मां पर तुम इलजाम लगा रहे हो. वह अपने बच्चे से ज्यादा गजाला का खयाल रखती है. पर तुम्हारे दिमाग में जो वहम पल रहे हैं वे कभी तुम्हें सुकून से नहीं रहने देंगे, समझे.’’

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हानिया अब और सावधान हो गई. घर के कामकाज के साथ 2 छोटे बच्चों को संभालना. वह फिरकनी की तरह फिरती. खाना भी खुद पकाती क्योंकि सलमान को बूआ के हाथ का खाना पसंद न था. वह हर मुमकिन कोशिश करती कि कुछ ऐसा न हो जाए कि सलमान को लगे कि बेटी की उपेक्षा हो रही है. जीशान भी सलमान का खून था पर उस के दिल में जो चाहत गजाला के लिए थी, जीशान से वैसी मुहब्बत न थी. जीशान की हर जरूरत पूरी की जाती, बहुत खयाल रखा जाता. वह हर चीज का हकदार था, पर गजाला सी चाहत का नहीं. हां, ताई गजाला की तरह जीशान पर भी जीजान से न्योछावर थीं. हानिया का जब जी भर आता, मांबाप के पास चली जाती. वहां दोनों को बेपनाह मुहब्बत मिलती. उम्र इसी तरह सरक रही थी. गजाला थर्ड स्टैंडर्ड में आ गई. उस के स्कूल में कोई फंक्शन था, जिस में पेरैंट्स को बुलाया गया था. सलमान तो अपनी व्यस्तता की वजह से जा नहीं सकता था. हानिया का जाने का पक्का इरादा था. अचानक जीशान के पेट में सख्त दर्द उठा और फिर उलटी व दस्त शुरू हो गए. हानिया को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. जीशान को इस हालत में छोड़ कर वह नहीं जा सकती थी. गजाला ने ही सुझाया, उस की दोस्त जो करीब में ही रहती है, वह उस की मम्मीडैडी के साथ चली जाएगी. हानिया की भी उन से अच्छी दोस्ती थी. उस ने उन्हें फोन कर दिया.

तभी मंजूर, उस का भाई, आ गया जो पुणे में कहीं जौब कर रहा था. भांजे की तबीयत खराब देखी तो बहन को डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने जीशान को ऐडमिट कर लिया. हानिया मंजूर को वहां छोड़ कर घर आ गई. 4 बजे गजाला की दोस्त व उस के मम्मीपापा आ गए. वे लोग खुशीखुशी पूरी तसल्ली दे कर गजाला को साथ ले गए. 2 घंटे का प्रोग्राम था. शाम को 7 बज गए. अभी तक वे लोग नहीं आए थे. हानिया वैसे भी बहुत परेशान थी क्योंकि जीशान को पास ही के एक नर्सिंगहोम में ऐडमिट करना पड़ा था. जैसेजैसे वक्त बीतता जा रहा था, उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. शुक्र हुआ मंजूर जीशान को ले कर घर आ गया. ग्लूकोज चढ़ाने के बाद उस की तबीयत काफी अच्छी थी.

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बहुत देर कर दी: भाग 1- हानिया की दीवानी कोन थी

सूरत ज्यादा अच्छी न हो और उम्र 30 पार कर जाए तो रिश्ते घर का दरवाजा भूल जाते हैं. कभी भूलेभटके कोई रिश्ता आ भी जाता है तो ऐसा होता है कि आप उसे कुबूल नहीं कर पाते, बहुत कमतर. आजकल हानिया इसी मुश्किल से गुजर रही थी. नाकनक्शा तो अच्छा था मगर रंग सांवला था. बड़ीबड़ी आंखें जिन में गजब की कशिश थी पर पता नहीं लड़के वालों की पहली मांग गोरा रंग ही क्यों होती है. नाकनक्शा कैसा भी हो पर रंग गोरा हो तो लड़की पसंद कर ली जाती है, भले लड़का काला हो. हानिया से छोटी बहन सानी, जिस का रंग गोरा था, की 3 साल पहले शादी हो गई थी. आज एक बच्चे की मां थी. हानिया 32 साल की हो रही थी पर कहीं कोई बात नहीं बन रही थी. न कोई ढंग का रिश्ता आ रहा था न कहीं बात चल रही थी. कभी किसी कम पढ़ेलिखे व कम पैसे वाले की बहनें देखने आ जातीं या कभी 40-45 साल के आदमी, जिन के औलाद न हुई हो या बीवी की मृत्यु हो चुकी हो, के बच्चे संभालने को रिश्ता आ जाता. हानिया के अम्मीअब्बा पढ़ेलिखे, सुलझे हुए थे. वे इस विचार के थे कि पढ़ीलिखी बेटी को गलत रिश्ते में झोंकने से अच्छा है वह कुंआरी  रहे.

हानिया ने फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर लिया था और उसी इंस्टिट्यूट में जौब कर रही थी. सब से अच्छी बात यह थी कि उसे इस बात का कोई कौम्प्लैक्स नहीं था कि उस से पहले छोटी बहन की शादी हो गई, बल्कि उस ने ही सानी का रिश्ता आने पर मांबाप को उस की शादी कर देने के लिए राजी किया था. उस ने उन्हें यह तल्ख हकीकत समझाई थी कि अच्छे रिश्ते बारबार नहीं आते. इस तरह उस से पहले सानी की शादी हो गई. हानिया के ताया और ताई उसे खूब प्यार करते थे. उन का एक ही बेटा था सलमान, बेटी की कमी हानिया से पूरी हो जाती थी. वह वक्त मिलने पर अकसर ही ताया के यहां चली जाती. उस के जाने से उस घर में रौनक आ जाती. उन का बेटा सलमान गंभीर स्वभाव का था. उस ने अपनी पसंद अनुशा से शादी की थी. अनुशा बहुत खूबसूरत थी. वह जितनी खूबसूरत थी उतनी ही स्वभाव की भी अच्छी थी, खूब हंसनेहंसाने वाली लड़की. हानिया से उस की खूब बनती थी. अच्छी दोस्ती के लिए अच्छी सोच का होना जरूरी था जो दोनों में खूब थी.

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अनुशा की 2 साल की बेटी गजाला, हानिया की दीवानी थी. जैसे ही हानिया वहां पहुंचती, जिंदगी खिलखिला उठती. अनुशा को नईनई चीजें पकाने का बहुत शौक था. दोनों मिल कर खूब एक्सपेरिमैंट करतीं. जिंदगी इसी तरह गुजर रही थी. बीचबीच में हानिया के रिश्ते आते रहते पर ऐसे न होते जिन्हें कुबूल किया जाता. किसी रिश्तेदार की शादी में शिरकत कर के तायाताई, अनुशा और गजाला लौट रहे थे कि कार का ऐक्सिडैंट हो गया. सलमान औफिस की जरूरी मीटिंग की वजह से शादी में नहीं जा सके थे. ताया और अनुशा मौके पर ही खत्म हो गए. ताई के पैर की हड्डी टूट गई. गजाला को थोड़ी खरोंचें आई थीं. सारे खानदान में कोहराम मच गया. एक हंसतामुसकराता घर पलभर में बरबाद हो गया. हानिया उस के अम्मीअब्बा और भाई मंजूर, ताया के गम में बराबर के शरीक थे. मरने वाले तो मर गए पर अपने पीछे बेबसी और परेशानी छोड़ गए. ताई अस्पताल में ऐडमिट थीं. पैर के औपरेशन के बाद रौड डाल दी गई.

वक्त का काम गुजरना है. बड़े से बड़ा जख्म भी समय के साथ भर जाता है. ताई लकड़ी के सहारे चलने लगी थीं. हानिया उस के मांबाप, भाई इतने दिनों से ताया के घर पर ही थे. अब अपने घर लौट गए. वैसे घर पास ही था. घर में काम करने वाली बूआ का काम भी बढ़ गया था. वह बड़ी ईमानदार और हमदर्द औरत थी. इस बुरे वक्त में वह पूरा साथ दे रही थी. पर गजाला को संभालना उस के बस की बात न थी. इसलिए हानिया इंस्टिट्यूट से आते वक्त उसे साथ ले कर अपने घर चली जाती और सलमान औफिस से वापसी पर उसे पिक कर लेता. ताई छुट्टी के दिन हानिया और उस के छोटे भाई मंजूर को अपने घर पर बुला लेतीं. 3-4 महीने यही रूटीन रहा. सब ठीकठाक चल रहा था.

समय ऐसा भी आया कि हानिया के लिए एक अच्छा रिश्ता आ गया. लड़का 35-36 साल का था. उस की बीवी की बच्चे की डिलीवरी में मौत हो गई थी और बच्चे वगैरा नहीं थे. दुबई में अच्छी पोस्ट पर काम कर रहा था. रिश्ता हानिया के पापा के दोस्त लाए थे. हर तरह की तसल्ली दी, रिश्ता सभी को पसंद आया. सब लोग यह खुशखबरी सुनाने ताई के पास गए. ताई ने रिश्ते के बारे में सुन कर मुबारकबाद दी. पर उन का चेहरा उतर गया. उन्होंने बड़ी नरमी से देवर से कहा, ‘‘भाई अजहर, रिश्ता तो बहुत अच्छा है पर हम लोग हानिया के बगैर बेआसरा हो जाएंगे. मैं हानिया को अपने से दूर नहीं कर सकती. आप बस 15-20 दिन रुक जाएं. मैं सलमान की मरजी मालूम करती हूं. मैं हानिया को अपनी बहू बनाना चाहती हूं. गजाला को मां और मुझे बेटी मिल जाएगी. धीरेधीरे सलमान भी ऐडजस्ट हो जाएगा. बस, थोड़े दिन रुक जाइए.’’ अजहर साहब को भाभी से बड़ी हमदर्दी थी, भतीजे व पोती का बड़ा खयाल था, इसलिए बात दिल को लगी. हानिया की अम्मी भी बेटी को दूर नहीं भेजना चाहती थीं. वे भी इसी पक्ष में थीं कि सलमान से शादी हो जाए, बेटी पास में रहेगी. सलमान में कोई कमी न थी. उस की उम्र भी 36-37 साल ही थी, देखाभाला था. पर जो रिश्ता हानिया के लिए आया था वह भी एक शादी कर चुका था. जहां तक हानिया की मरजी जानने का सवाल था, वह मांबाप की खुशी में खुश थी. मंजूर, जो हानिया से 7-8 साल छोटा था, उसे भी सलमान पसंद था.

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ताई ने जब सलमान से हानिया से शादी करने को कहा तो उस ने साफ इनकार कर दिया, ‘‘मैं अनुशा से बहुत मुहब्बत करता हूं. मैं उसे भूल नहीं सकता. मैं उस की जगह दूसरी लड़की ला कर उस की जिंदगी बरबाद नहीं कर सकता. न मैं उस की जगह किसी को देना चाहता हूं.’’ ताई उस वक्त चुप हो गईं, क्या कहतीं. 4-5 दिन बाद गजाला को तेज बुखार आ गया. सलमान ने छुट्टी ली पर गजाला हानिया से ज्यादा अटैच्ड थी. सलमान से संभल ही नहीं रही थी, न कुछ खा रही थी, न दवा पी रही थी. एक ही दिन में सारा घर परेशान हो गया. 4 बजे हानिया आई. उस ने सब अच्छे से संभाल लिया. गजाला को चिकन सूप और दलिया खिलाया, दवा पिलाई. वह आराम से सो गई. उस ने 2 दिनों की छुट्टी ले ली. उस ने गजाला के ठीक होने तक सारी जिम्मेदारी उठा ली. तीसरे दिन वह ठीक हो गई. यह सब हानिया की मुहब्बत और देखभाल का कमाल था.

उस दिन छुट्टी थी, सलमान घर पर था. गजाला को बर्गर खाना था. बूआ को बनाना नहीं आता था. थकहार कर सलमान उसे हानिया के घर छोड़ आए. फिर ताई ने सलमान को जिंदगी की हकीकत समझाई, ‘‘बेटा, जब देखो तब तुम गजाला को हानिया के यहां छोड़ आते हो. बीमारी में भी वही उसे संभाल सकती है. अब उस के लिए दुबई से एक अच्छा रिश्ता आया है. जल्द ही वह शादी कर के दुबई चली जाएगी. फिर तुम क्या करोगे? मैं पैर व बीमारी से मजबूर हूं. बूआ घर का काम संभाल लेती है, यही बहुत है. गजाला को संभालना हमारे बस का नहीं है. मैं तुम्हें इसीलिए हानिया से शादी करने को कह रही हूं. घर की लड़की है, सबकुछ जानतीसमझती है और सब से बड़ी बात गजाला को बहुत प्यार करती है.’’

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तजरबा: भाग 1- कैसे जाल में फंस कर रह गई रेणु

अगले मुलाकाती का नाम देखते ही ऋषिराज चौंक पड़ा. ‘डा. धवल पनंग.’ इस से पहले कि वह अपनी सेक्रेटरी सीपा से कुछ पूछता, उस ने आगंतुक के आने की सूचना दे दी. सीपा के सामने वह गाली तो दे नहीं सकता था फिर भी कहे बिना न रह सका, ‘‘तू अपना नर्सिंग होम छोड़ कर मेरे आफिस में क्या कर रहा है?’’

‘‘मास्टर डिटेक्टिव ऋषिराज से मुलाकात का इंतजार. भाई, क्लाइंट हूं आप का, बाकायदा फीस भर कर समय लिया…’’

‘‘मगर क्यों? घर पर नहीं आ सकता था?’’ ऋषि ने बात काटी.

‘‘जैसे मरीज के रोग का इलाज डाक्टर नर्सिंग होम में करते हैं वैसे ही मैं समझता हूं कि जासूस समस्या का सही समाधान अपने आफिस में करते होंगे,’’ धवल बोला.

‘‘वह तो है पर तू अपनी समस्या बता?’’

‘‘पिछले सप्ताह की बात है. एक दिन नर्सिंग होम में मोबाइल पर बात करते वक्त रेणु ने घबराए स्वर में कहा था, ‘कहा न मैं आऊंगी, फिर बारबार फोन क्यों…हां, जितना भी हो सकेगा करूंगी.’ रेणु के मायके वाले अपनी हर छोटीबड़ी घरेलू समस्या में रेणु को जरूर उलझाते हैं. सो यह सोच कर कि वहीं से फोन होगा, मैं ने कुछ नहीं पूछा. फिर मैं ने गौर किया कि रेणु काफी कोशिश कर के भी अपनी घबराहट छिपा नहीं पा रही है और अपने कुछ खास मरीज भी उस ने अपनी सहायक डा. सुरेखा के सिपुर्द कर दिए.

‘‘भले ही एकसाथ काम करते हैं, मगर मैं और रेणु अपनीअपनी गाड़ी से जाते हैं ताकि जिसे जब फुरसत मिले वह बच्चों को देखने घर आ जाए. उस दिन रेणु ने कहा कि उस का गाड़ी चलाने का मन नहीं है सो वह मेरे साथ चलेगी. मैं ने कहा कि शौक से चले, मगर वापस कैसे आएगी क्योंकि मुझे तो एक आपरेशन करने जल्दी आना है तो उस ने कहा कि सुरेखा से पिकअप करने को कह दिया है. रास्ते में मैं ने उस से पूछा कि किस का फोन था तो उस के चेहरे पर ऐसे डर के भाव आए जैसे कोई खून करते हुए वह रंगेहाथों पकड़ी गई हो.

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‘‘वह सकपका कर बोली, ‘यहां तो सारे दिन ही फोन आते रहते हैं, आप किस की बात कर रहे हो?’ मैं चाह कर भी नहीं कह सका कि जिसे सुन कर तुम्हारा हाल बेहाल हो गया है, लेकिन ऋषि, घर पहुंचने पर रेणु के बाथरूम जाते ही मैं ने उस के मोबाइल में वह नंबर ढूंढ़ लिया. वह रेणु के मायके वालों का नंबर नहीं था…’’

‘‘नंबर बता, अभी नामपता मंगवा देता हूं,’’ ऋषि ने बात काटी.

‘‘तेरा खयाल है, मैं नंबर पता लगवाने तेरे पास आया हूं?’’ धवल सूखी सी हंसी हंसा. फिर कहने लगा, ‘‘खैर, अगली सुबह मैं तो जल्दी निकल गया और आपरेशन से फुरसत मिलने पर जब बाहर आया तो देखा कि रेणु आज नर्सिंग होम आई ही नहीं है. घर पर फोन किया तो पता चला कि मैडम वहां भी नहीं है और गाड़ी नर्सिंग होम में खड़ी है. उस के मोबाइल पर फोन किया तो बोली कि किसी जरूरी काम से सिविल लाइन आई थी, अब ट्रैफिक में फंसी हुई हूं. सिविल लाइन में मेरी ससुराल है सो सोचा कि मायके की परदादारी रखना चाह रही है तो रखे.

‘‘मगर परसों शाम जब रेणु एक डिलीवरी केस में व्यस्त थी, मैं बच्चों को ले कर डिजनी वर्ल्ड चला गया. वहां जिस बैंक में हमारा खाता है उस के मैनेजर भी सपरिवार घूम रहे थे. उन्होंने मजाक में पूछा कि क्या डाक्टर साहिबा अभी भी खरीदारी में व्यस्त हैं, कल उन्होंने खरीदारी करने के लिए 1 लाख रुपए निकलवाए थे.

‘‘मैं यह सुन कर स्तब्ध रह गया. रेणु जो घरखर्च के लिए भी मुझ से पूछ कर पैसे निकलवाती थी, चुपचाप 1 लाख रुपए निकलवा ले, यकीन नहीं आया. अभी इस उलझन से उबर नहीं पाया था कि मेरी छोटी साली और साला मिल गए. वह हमारे घर गए थे, पता चलने पर कि हम यहां हैं, वह भी यहीं आ गए. बच्चों को उन के मामा को सौंप कर मैं साली के साथ बैठ गया और पूछा कि घर में ऐसी क्या परेशानी है जिसे फोन पर सुनते ही रेणु भी परेशान हो जाती है.

‘‘सुनते ही मीनू चौंक पड़ी. बोली, ‘क्या कह रहे हैं, जीजाजी? दीदी को घर पर आए 15 रोज से ज्यादा हो गए हैं और पिछले 4-5 रोज से उन्होंने फोन भी नहीं किया. तभी तो मां ने हमें उन का हालचाल जानने को भेजा है क्योंकि हमें फोन करने को तो जीजी ने मना कर रखा है.’

‘‘अब चौंकने की मेरी बारी थी, ‘रेणु ने कब से तुम्हें फोन करने को मना किया हुआ है?’

‘‘‘हमेशा से बहुत ही जरूरी काम होने पर हम उन्हें फोन करते हैं, फुरसत मिलने पर वह खुद ही रोज सब से बात कर लेती हैं, कभीकभी तो दिन में 2 बार भी. सो 4-5 रोज से फोन न आने पर सब को चिंता हो रही है.’

‘‘‘चिंता की कोई बात नहीं है, रेणु आजकल थोड़ी व्यस्त है,’ अपनी चिंता को दरकिनार करते हुए मैं ने मीनू की चिंता दूर की. वह अनजान फोन नंबर जो मैं ने अपने मोबाइल में नोट कर लिया था, दिखा कर मीनू से पूछा कि यह किस का नंबर है?

‘‘‘यह तो अपने पड़ोसी डा. शिवमोहन चाचा का नंबर है. छोटीमोटी बीमारी में हम उन्हीं के पास जाते हैं. समझ में आ गया जीजाजी, इस नंबर से फोन आने पर जीजी क्यों परेशान हुई थीं और क्यों काम छोड़ कर उन से मिलने गई थीं. डा. चाचा का एक डाक्टर बेटा रतन मोहन है. भोपाल के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम करता था. एक गलत रिपोर्ट देने के सिलसिले में नौकरी से निलंबित कर दिया गया सो यहां आ गया है. चाचाजी जीजी के पीछे पड़े होंगे कि उसे अपने नर्सिंग होम में रख लें और जीजी परेशान होंगी कि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर का नर्सिंग होम में क्या काम?’

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‘‘मैं ने जब मीनू से पूछा कि रतन की उम्र क्या है? तो वह बताने लगी कि वह मेडिकल कालिज में रेणु दीदी से 2 साल सीनियर था. पहले उस का घर में बेहद आनाजाना था लेकिन फिर मां ने मुर्दे चीरने वाले रतन के घर में आनेजाने पर रोक लगा दी.

‘‘मैं बुरी तरह आहत हो गया. साफ जाहिर था कि रेणु ने वह 1 लाख रुपए रतन को पुरानी दोस्ती की खातिर दिए थे. जब किसी अपने से किसी गैर के लिए धोखा मिले तो बहुत तकलीफ होती है, ऋषि. खैर, जब मैं बच्चों के साथ घर पहुंचा तो रेणु आ चुकी थी. बच्चों से यह सुन कर कि उन्हें डिजनी वर्ल्ड में बड़ा मजा आया, रेणु के चेहरे पर अजीब से राहत और संतुष्टि के भाव उभरे और मैं ने उसे बुदबुदाते हुए सुना, ‘चलो, यह तसल्ली तो हुई कि मेरे जाने के बाद धवल बच्चों को बहला लेंगे.’ उस की यह बात सुनते ही मैं स्तब्ध रह गया. ऋषि, रेणु मुझे छोड़ने की सोच रही है.’’

‘‘तू ने भाभी से इस बुदबुदाने का मतलब नहीं पूछा?’’ ऋषि ने धवल से पूछा.

‘‘नहीं, ऋषि, मैं उस से अभी कुछ भी पूछना नहीं चाहता. तू मुझे रेणु और रतन के सही संबंधों के बारे में जो भी पता लगा कर दे सकता है, दे. उस के बाद मैं सोचूंगा कि क्या करना है. कितना समय लगेगा यह सब पता लगाने में?’’

‘‘अगर रतन के कालिज का नाम, किस साल से किस साल तक उस ने पढ़ाई की और उस के अन्य सहपाठियों के नाम का पता चल जाए तो 2-3 रोज में गड़े मुर्दे उखड़ जाएंगे और फिलहाल क्या हो रहा है, यह जानने के लिए भाभी और रतन की गतिविधियों पर पहरा बैठा देता हूं. रतन का अतापता मालूम है?’’

धवल को जो भी मालूम था वह ऋषि को बता कर थके कदमों से लौट आया. उस का खयाल था कि ऋषि 2-3 रोज से पहले क्या फोन करेगा लेकिन ऋषि ने उसी शाम फोन किया.

‘‘धवल, या तो अभी मेरे आफिस में आजा या फिर रात में खाने के बाद मेरे घर पर आ जाना.’’

‘‘अभी आया,’’ कह कर धवल ने फोन रख दिया. काम में दिल नहीं लग रहा था सो उस ने कल से ही नए मरीजों को समय देने से मना किया हुआ था.

आगे पढ़ें- धवल कुछ देर सोचता रहा फिर बोला…

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पतंग: भाग 1- जिव्हानी ने क्यों छोड़ा शहर

लेखक- डा. भारत खुशालानी

दिलेंद्रके भैया ने पूछा, ‘‘कल जिस से मिलने गए थे तुम, उस का क्या हुआ?’’

दिलेंद्र ने ठंडी सांस भरी, ‘‘होना क्या था? वही हुआ जो हमेशा होता है. वह औरत अपने ही बारे में बोलती रही. इतना ज्यादा बोलती रही कि मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया उस ने.’’

भैया ने कहा, ‘‘लेकिन स्वभाव में वह

कैसी है?’’

‘‘आप और भाभी ने मुझे उस से मिलाया. आप की पहचान की थी. आप को उस के स्वभाव के बारे में ज्यादा पता होगा. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया,’’ दिलेंद्र बोला.

भैया ने निराशा में कहा, ‘‘मतलब इस रिश्ते को भी ना ही समझें, है ना?’’

दिलेंद्र ने कुछ नहीं कहा.

भाभी सुन रही थी. उस ने भैया से कहा, ‘‘मैं ने तो पहले ही कहा था आप से कि वह लड़की भैया के लायक नहीं है.’’

भैया, ‘‘अब दिलेंद्र के जन्मदिन पर इसे किसी से मिलाएंगे.’’

‘‘आज से संक्त्रांति महोत्सव का रजिस्ट्रेशन शुरू कर दिया है संस्था वालों ने,’’ भाभी बोली.

‘‘दिलेंद्र तो बचपन से आज तक कभी चूका नहीं है इस में भाग लेने से,’’ भैया बोले.

‘‘बस वहीं जा रहा हूं. चल भई शांति सिंह,’’ दिलेंद्र ने कहा.

शांति सिंह उस के कुत्ते का नाम था. एकदम शांतिप्रिय था. इसीलिए दिलेंद्र ने उस का यह नाम रख दिया था. लेकिन अभी इस कुत्ते को कुछ आता नहीं था. अपना नाम भी नहीं पहचान

पाता था. दिलेंद्र अपने कुत्ते को ले कर

भैयाभाभी के घर से रवाना हो गया.

संस्था के कार्यालय में रजिस्ट्रेशन के इंचार्ज किवैदहेय से उस की मुलाकात हो

गई. हमेशा की तरह संक्रांति महोत्सव के फ्लायर और पैंपलेट पर किवैदहेय ने अपना फोटो नीचे दाईं ओर लगा दिया था. वह अपना प्रचार करने का कोई अवसर नहीं चूकता था. महोत्सव के लिए उस ने दिलेंद्र की ऐंट्री ले ली.

दिलेंद्र के पीछेपीछे जिव्हानी आ गई. किवैदहेय को देख कर वह मुसकरा दी. किवैदहेय ने ही उसे संस्था में फ्लैट दिलाया था. वैसे तो जिव्हानी शहर से अपरिचित नहीं थी, लेकिन नौकरी के लिए उस ने यह शहर छोड़ दिया था. महानगर में चली गई थी. वहीं उस का ब्याह भी हुआ और बेटा भी. बस कुछ ही दिन हुए थे उसे वापस आए हुए. अपने बच्चे स्वाभेश के साथ वापस आ गई थी. आज स्वाभेश भी उस के साथ ही था.

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किवैदहेय ने मुसकरा कर आश्चर्य से उस से पूछा, ‘‘आप यहां क्या कर रही हैं? यहां तो संक्रांति महोत्सव का रजिस्ट्रेशन हो रहा है. सिर्फ पतंगबाजी के शौकीनों के लिए है.’’

स्वाभेश की नजर तब तक शांति सिंह पर पड़ चुकी थी और वह कुत्ते को पुचकार रहा था. उस ने दिलेंद्र से पूछा, ‘‘यह आप का कुत्ता है?’’

दिलेंद्र ने हामी भर कर उत्तर दिया, ‘‘काटता नहीं है. विश्व शांति संगठन का सदस्य है.’’

7 साल की उम्र का स्वाभेश यह तो समझा नहीं, लेकिन उस ने कुत्ते को सहलाना शुरू कर दिया.

दिलेंद्र को यह देख कर अच्छा लगा, ‘‘शांति सिंह है इस का नाम. तुम को पतंग उड़ाने का शौक है?’’

स्वाभेश ने अचरजभरा उत्तर दिया, ‘‘मेरी मां को है. अभीअभी हम लोग यहां फ्लैट में रहने के लिए आए हैं. मैं ने तो आज तक पतंग कभी नहीं उड़ाई है.’’

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‘‘अरे, बहुत मजा आता है पतंग उड़ाने में. इस कालोनी में तो एक से बढ़ कर एक महारथी हैं. मेरे पास कुछ पतंगें हैं. आ कर ले जाना. सभी लोग येवकर्णिम पार्क में उड़ाते हैं,’’ दिलेंद्र ने कहा.

किवैदहेय ने जिव्हानी का रजिस्ट्रेशन लेते हुए उसे बताया, ‘‘आप के मम्मीपापा से मुलाकात हुई थी.’’

‘‘अच्छा,’’ जिव्हानी बोली.

किवैदहेय की पहचान जिव्हानी के मांबाप से थी. जब उन्होंने कहा कि उन की बेटी शहर वापस आ रही है और उस के रहने के लिए फ्लैट चाहिए, तो किवैदहेय ने तुरंत अपनी संस्था की बिल्डिंगों में से एक फ्लैट दिलवा दिया. फिलहाल किराए पर था.

किवैदहेय, ‘‘मेरा नंबर तो है ही आप के पास. कोई बात हो तो जरूर काल करिए.’’

स्वाभेश ने उत्साहित हो कर अपनी मां से कहा, ‘‘मम्मी, अंकल मुझे पतंग देने वाले हैं. मैं भी पतंग उड़ाऊंगा.’’

जिव्हानी ने मुसकरा कर दिलेंद्र को धन्यवाद दिया, ‘‘वैसे भी मुझे देख कर तो कभी न कभी इसे शौक लगना ही था. आप ने शुरुआत करा दी, वह भी ठीक है.’’

दिलेंद्र ने अपना परिचय दिया, ‘‘मेरा

नाम दिलेंद्र है. मैं डांस कोरियोग्राफर हूं. डांस सिखाता हूं.’’

स्वाभेश यह सुन कर प्रफुल्लित हो उठा. बोला, ‘‘मुझे डांस करने का बेहद शौक है.’’

‘‘बेटा, आप के नानानानी यहीं रहते हैं?’’ दिलेंद्र ने पूछा.

‘‘मेरे मम्मीपापा कुछ दूरी पर रहते हैं.

मेरे पिताजी की पतंग बनाने की फैक्टरी है,’’ जिव्हानी बोली.

दिलेंद्र को अचंभा हुआ. पूछा, ‘‘किस नाम से?’’ पतंगों का शौकीन होने से उसे इस क्षेत्र की काफी जानकारी थी.

‘‘मुरुक्षेश पतंग फैक्टरी,’’ जिव्हानी ने बताया.

‘‘बिलकुल सुना है नाम और कई बार उड़ाई भी हैं मुरुक्षेश पतंगें. लेकिन आम लोगों के लिए नहीं हैं. वे उच्च क्वालिटी की महंगी पतंगें बनाते हैं,’’ दिलेंद्र बोला.

जिव्हानी को यह सुन कर प्रसन्नता हुई, ‘‘हम लोग आकार में बड़ी और नायाब पतंगें बनाते हैं. भेड़चाल वाली आम बाजारू पतंगों की तरह नहीं.

अपने घर वापस आ कर जिव्हानी फिर से घर के सामान की फेरबदल करने लगी. घर अभी भी अस्तव्यस्त पड़ा था. स्वाभेश पतंग लेने दिलेंद्र के घर पहुंचा, तो वह कुछ महिलाओं को जुंबा सिखा रहा था. जब जुंबा डांस क्लास खत्म हुई तो उस ने खुशी से कुछ पतंगें स्वाभेश को दे दीं. स्वाभेश येवकर्णिम पार्क पहुंचा और पतंग उड़ाने लगा. फरफर की आवाज के साथ हवा से खेलती हुई उस की पतंग थोड़ी ही देर में आसमान की सैर करने लगी. नानाजी और मां कितने खुश होंगे यह देख कर, वह सोचने लगा. पतंग थोड़ी देर इधरउधर मंडराती रही, फिर नीचे गिर गई.

थोड़ी ही देर में अपने कुत्ते को टहलाने दिलेंद्र भी वहां आ पहुंचा और उस ने स्वाभेश को पतंग उड़ाने के उचित तरीके बताए. स्वाभेश शांति सिंह को देख कर और भी खुश हुआ. खेलने की 2 वस्तुएं उसे दिलेंद्र से प्राप्त हुई थीं.

कुछ देर वह खेलता रहा. फिर स्वाभेश को बुलाने उस की मम्मी आ गईं. जिव्हानी ने स्वाभेश को दिलेंद्र के कुत्ते के साथ खेलते देखा. उस ने दिलेंद्र से कहा, ‘‘अगर पतंगों का आप को इतना ही शौक है, तो हमारी फैक्टरी में आइए. मैं वहीं जा रही हूं. आप चाहें तो चल सकते हैं.’’

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दिलेंद्र ने बिना हिचकिचाहट के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. जिव्हानी की कार में बैठ कर तीनों मुरुक्षेश फैक्टरी पहुंच गए जहां दिलेंद्र की मुलाकात जिव्हानी के मातापिता से भी हुई. जिव्हानी ने दिलेंद्र को फैक्टरी की सैर कराई.

इतने वर्षों से दिलेंद्र पतंगें उड़ा रहा था, लेकिन आज उस की आंखें खुल गईं. जिन्हें

वाकई में पतंगबाजी का शौक है और जो अव्वल दर्जे की पतंगें उड़ाने में विश्वास रखते हैं, उन्हीं लोगों के लिए यहां पतंगें बन रही थीं. कोई कारीगर यहां कागजों की कटाई नहीं कर रहा था. एक मशीन बेहद महीनता से कृत्रिम पौलिएस्टर कपडे की कटाई कर रही थी. कपड़ा लचीला था. हां, अलगअलग रंग के कटे हुए टुकड़ों को एक कारीगर जरूर इकट्ठा कर के वहीं स्टील की मेज पर रख रहा था. इस कपड़े पर प्रिंट जमाने के लिए 2 लड़के स्क्रीन प्रिंटिंग कर रहे थे. जिव्हानी ने बताया कि प्रिंट की स्याही, विशेष मिश्रण होती है और वह भी एकदम सही अनुपात में.

आगे पढ़ें- फैक्टरी देख कर दिलेंद्र को दंग रहते..

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