पतंग: भाग 3- जिव्हानी ने क्यों छोड़ा शहर

लेखक- डा. भारत खुशालानी

‘‘मुझे पता है कि आप दोनों मेरा रिश्ता खोजने के लिए बेताब हो. मैं भी आप दोनों को निराश नहीं करना चाहता, परंतु अपनी वर्तमान स्थिति में भी मैं वास्तव में बहुत संतुष्ट और खुश हूं,’’ दिलेंद्र की इच्छा हुई कि अपने भैयाभाभी को ऐसी जीवनशैली की खासीयतों के बारे में बताए जिन्हें वह जी रहा है लेकिन जिस के बारे में लोग बात या तो करते नहीं थे या करना पसंद नहीं करते थे.

‘‘वह कैसे?’’ भैया ने पूछा.

‘‘अपनी मरजी का टीवी प्रोग्राम देख रहा हूं, जितने पर पंखा चाहिए, उतने पर चलाता हूं, जब मन होता है तब उठता हूं,’’ दिलेंद्र बोला.

‘‘परिवार चलाने के समक्ष ये सारी बातें नगण्य हैं,’’ भैया बोले.

‘‘मेरी जितनी भी आदतें हैं, उन में से किसी से भी मैं शर्र्मिंदा नहीं हूं. पत्नी आने के बाद यह स्थिति बदल जाएगी,’’ दिलेंद्र बोला.

‘‘भैया, अपनी उम्र का भी खयाल कीजिए. 40 हो रही है और आप डांस सिखाते हो, कहीं किसी जनरल मैनेजर के पद पर नहीं हो,’’ भाभी बोली.

बात चुभने वाली थी, लेकिन एकदम सत्य.

‘‘भाभी, आप जो कह रही हो, मैं वाकई उस की सराहना करता हूं और मेरा विश्वास कीजिए कि मैं आप की बात पर अच्छे से विचार करूंगा.’’

भाभी ने उसे चिंतित नजरों

से देखा.

उसी दिन सुबह करीब 10 बजे जिव्हानी किवैदहेय के औफिस पहुंची. किवैदहेय वहीं था जिस ने उसे फ्लैट दिलाया था. संक्रांति महोत्सव के रजिस्ट्रेशन के समय जिव्हानी की उस से मुलाकात हुई थी. उस के मांबाप की पहचान का था. उम्र करीब 40 बरस होगी. जिव्हानी ज्यादा कुछ नहीं जानती थी उस के बारे में. किवैदहेय का औफिस देख कर अचरज में पड गई. इतना भव्य औफिस. महानगरों में तो ऐसा औफिस सिर्फ बड़ी कंपनियों का ही होता है. उस ने प्रवेश किया, यहांवहां देखा और रिसैप्शनिस्ट से बात कर के किवैदहेय के कक्ष तक पहुंची.

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उस ने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘‘आप का कार्यालय तो बहुत फैंसी है?’’

किवैदहेय ने उस का मुसकरा कर अभिवादन किया.

‘‘आप तो कह रहे थे कि मेरा छोटा सा व्यापार है. यहां तो मध्यम साइज की कंपनी दिख रही है?’’ जिव्हानी ने पूछा.

‘‘‘छोटा’ शब्द सापेक्ष है,’’ किवैदहेय बोला. फिर उस ने जिव्हानी के फ्लैट वाली फाइल निकाली और एक पेज पर उसे हस्ताक्षर करने के लिए कहा, ‘‘आप के पिताजी ने तो डिपौजिट भर ही दिया है. बस आप के हस्ताक्षर चाहिए.’’

फ्लैट के मालिक विदेश में थे और अपने फ्लैट का जिम्मा किवैदहेय को दे दिया था.

जिव्हानी ने साइन करते हुए कहा, ‘‘मैं बहुत आभारी हूं आप की. अब अपनी फीस बताइए.’’

किवैदहेय बोला, ‘‘कैसी बातें करती हैं आप.’’

महानगरों में कोई भी व्यक्ति बिना स्वार्थ भाव से किसी के लिए कोई

काम नहीं करता. इसीलिए जिव्हानी को थोड़ा अटपटा लगा, ‘‘कम से कम दलाली का तो हिस्सा बता दीजिए.’’

‘‘कुछ नहीं,’’ किवैदहेय बोला. इस तरह किसी का आर्थिक एहसान लेने में जिव्हानी को असुविधा हो रही थी, ‘‘आप के मम्मीपापा ने भी यही बात कही, लेकिन मैं उन से भी कैसे पैसे ले सकता हूं. बिलकुल सही नहीं लगेगा.’’

जिव्हानी ने कुछ कहना चाहा पर किवैदहेय ने कहने का अवसर नहीं दिया, ‘‘इसके बदले हम लोग कभी आप के बेटे के साथ मिल कर खाने पर किसी अच्छे से रैस्टोरैंट जा सकते हैं.’’

जिव्हानी को यह बात अजीब लगी, लेकिन उसने मुसकरा कर हामी भर दी, ‘‘बिलकुल.’’

किवैदहेय ने जिज्ञासा से पूछा, ‘‘अभी बेटा कहां हैं? स्कूल गया है क्या?’’

‘‘स्कूल में अभी दाखिला पूरा नहीं हुआ है. पापा की पहचान वाले हैं. कुछ ही दिन में ट्रांसफर पूरा हो जाएगा. अभी उसे उस के नए मित्र दिलेंद्रजी के पास छोड़ आई हूं.’’

किवैदहेय को सुन कर जैसे टीस लगी, ‘‘दिलेंद्र के पास वह क्या करेगा?’’

जिव्हानी ने किवैदहेय की जलन को भांप लिया, ‘‘उन के कुत्ते के साथ खेलता है. दिलेंद्र उसे डांस भी सिखाते हैं और पतंग उड़ाना भी सिखा रहे हैं.’’

दिलेंद्र को इस तरह से पूरी तरह जिव्हानी के घरपरिवार में घुसा जान कर किवैदहेय का चेहरा लाल हो गया. अपनी भावनाओं को वह अपने चेहरे पर आने से छिपा न सका. जिव्हानी चकित हो कर उसके हावभाव देखती रह गई. उसे इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी.

दोपहर 2 बजे जब किवैदहेय भोजन करने घर पहुंचा, तो अचानक बिल्डिंग के बाहर ही उस की मुलाकात दिलेंद्र से हो गई.

‘‘क्या बात है बड़े खुशमिजाज लग रहे हो?’’ किवैदहेय ने पूछा.

दिलेंद्र को स्वयं पता नहीं था कि यह जिंदादिल मनोवृत्ति कहां से उस के अंदर इतने सालों के बाद जाग उठी है.

‘‘मेरे लिए तो यह थकाऊ दिन रहा है… औफिस का बहुत काम है,’’ किवैदहेय बोला.

दिलेंद्र ने उस का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘शाम को पार्क में पतंग उड़ा कर देखना कैसे पतंग के साथसाथ मन भी आकाश में उड़ने लगेगा.’’

‘‘वास्तव में पहले तो मैं ने कभी भाग नहीं लिया है, लेकिन सोचता हूं इस बार जरूर लूं,’’ किवैदहेय बोला.

‘‘पतंग उड़ाना अपने घावों पर मरहम लगाने जैसा है. सब दुखों को दूर करने वाला अनुभव, सब घावों को भर देने वाली दवा. हवा में उड़ती हुई किसी चीज को अपने काबू में रख पाने की अनुभूति… सच बहुत मजा आएगा तुम्हें भी,’’ दिलेंद्र बोला.

किवैदहेय ने रुक कर कहा, ‘‘जिव्हानी ने बताया कि तुम उस के बेटे के लिए आया का काम कर रहे हो जब तक उस का स्कूल में दाखिला नहीं हो जाता?’’

दिलेंद्र जैसे आसमान से नीचे गिर गया हो. बोला, ‘‘आया?’’

‘‘हां, तुम्हारे पास इतना काम नहीं है इसीलिए तुम दाई का काम करके दूसरों के बच्चों की देखभाल कर सकते हो. वैसे भी डांस क्लास के बहाने लोग अपने बच्चे तुम्हारे पास छोड़ कर ही जाते हैं.’’

किवैदहेय का मुंह ताकता रह गया.

किवैदहेय ने मोबाइल में समय देखा और कहा, ‘‘मेरा समय हो रहा है. स्वाभेश का ध्यान रखने के लिए हम दोनों की ओर से बहुत शुक्रिया.’’

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दिलेंद्र के मुंह से निकला, ‘‘हम दोनों?’’

‘‘मेरी और जिव्हानी की ओर से,’’ किवैदहेय बोला और फिर चला गया.

दिनभर दिलेंद्र को यह वार्त्तालाप परेशान करता रहा. शाम को पार्क में स्वाभेश उस का इंतजार करता रहा. सूर्यास्त हो गया, लेकिन दिलेंद्र दिखाई नहीं दिया. स्वाभेश मायूस हो कर घर लौट आया. सोफे पर हताश हो कर बैठ गया तो मां ने कारण पूछा. स्वाभेश ने बता दिया. मां को समझ आ गया कि स्वाभेश का दिल दिलेंद्र के साथ लग चुका है.

दूसरी ओर दिलेंद्र दोपहर से शाम तक अपने बिस्तर पर पड़ा रहा. दोपहर

की क्लास भी रद्द कर दी. उसे बिलकुल समझ नहीं आ रहा था कि अचानक उस के साथ ऐसा कैसे हो रहा है. 7 बजे उस ने अपनेआप को हिम्मत दी और निकल कर भैयाभाभी के घर पहुंचा और उन से जिक्र किया.

भैयाभाभी को एक ही क्षण में सारा मामला समझ में आ गया. दिलेंद्र के मन को गहरी चोट पहुंची थी. लेकिन यह इसीलिए था कि उस ने जिव्हानी और उस के बेटे को अपना समझा.

भाभी ने उसे समझाया, ‘‘कोई कुछ भी कहे उस की बातों का एकदम यकीन नहीं करना चाहिए जो कुछ भी किवैदहेय ने कहा है मुझे उस पर जरा भी विश्वास नहीं कि यह जिव्हानी ऐसा कह सकती हैं.’’

मकर संक्रांति का दिन आ गया. सुबह से ही लोगों में उत्साह था. येवकर्णिम पार्क को सुबह सबेरे ही खोल दिया गया. इक्कादुक्का आवारा लड़के भटक कर अपनी पतंगों के साथ 5 बजे ही आ गए. एक दिन पहले ही तिलगुड़ के लड्डू बन चुके थे. आज एकदूसरे में वितरित होंगे. आज पतंगें जब हवा में लहराएंगी, तो चोरीछिपे या ग्लानि की भावना से नहीं, बल्कि सीना तान कर आधिकारिक रूप से. आज उन्हीं का दिन है.

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पतंग: भाग 2- जिव्हानी ने क्यों छोड़ा शहर

लेखक- डा. भारत खुशालानी

स्याही को सूखने के लिए रख दिया जाता. तत्पश्चात यह देखा जाता कि उस के छिल जाने या रंग उतरने का खतरा तो नहीं. कुछकुछ अंतराल पर ऐसी टेबलें थीं, जिन में नीचे से प्रकाश आ रहा था, जिस से टेबल के ऊपर रखे पतंग के कपडे की जांच हो सके कि उस में छेद या कोई और नुक्स तो नहीं है. पतंग के अलगअलग रंग के गत्तों को एक कारीगर बड़े प्रेम से टेप लगा कर चिपका रहा था. टेप से चिपके हुए गत्ते सिलाई मशीन तक जा रहे थे, जहां एक महिला मशीन से उन की सिलाई कर रही थी. जैसे कागज की पतंग पर बारीक लकड़ी की तीलियां लगती थीं, यहां उन तीलियों के बजाय रौड से पतंग का ढांचा बनाया जा रहा था जिस से पतंग के सिकुड़ने का डर नहीं था.

फैक्टरी देख कर दिलेंद्र को दंग रहते देखा तो जिव्हानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘कागज की पतंग कभी आसमान में बादलों को नहीं छू सकती है. लेकिन आधुनिक तरीके से बनाई ये पतंगें छूने में सक्षम हैं.’’

स्तब्ध दिलेंद्र ने पूछा, ‘‘यह सब पिताजी ने सीखा कहां से?’’

पिताजी ने अपने नाम का जिक्र सुना तो बुला कर एक ज्यामितीय आकार की तीनआयामी पतंग दिखाई. त्रिकोणीय बक्से सी दिखने वाली पतंग पर वे काम कर रहे थे, ‘‘मिस्र के पिरामिड देखे हैं? उन्हीं के आकार की पतंग है यह वाली.’’

माताजी, जो कांच के बने औफिस के अंदर लेखांकन का काम कर रही थीं, ने कहा, ‘‘पहले जिव्हानी महज शौकिया नजरिए से पतंगों को देखती थी.’’

‘‘अब वह दार्शनिक हो गई है. कहती है कि डोर तो मेरे हाथ में है, लेकिन

पतंग कोई और उड़ा रहा है,’’ पिताजी बोले.

दिलेंद्र ने हंसते हुए कहा, ‘‘बिलकुल सही बात है. न जाने कब किस की नौकरी छूट जाए, किसी का परिवार टूट जाए, इन्हीं सब को भारतीय दर्शन में कटी हुई पतंग से जोड़ा जाता है.’’

जिव्हानी को ऐसा लगा कि दिलेंद्र और उस की सोच मेल

खाती है.

‘‘कितनी उमंगों के साथ उड़ती हुई हमारी बच्ची नौकरी के लिए इस घर से निकली थी…’’

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माताजी ने तुरंत बात काट दी, ‘‘सब कुदरत का लेखाजोखा है,’’ पिताजी बोले.

दिलेंद्र को कुछ भी नहीं समझा कि वे क्या कह रहे हैं. उस ने बात को कुरेदना उचित नहीं समझा.

वापस जाते वक्त पिताजी ने अपनी पसंद की एक बड़ी सी आलीशान पतंग दिलेंद्र को भेंट की. उस की खुशी की सीमा न रही.

अगले दिन उस ने भैयाभाभी के घर संपूर्ण किस्सा

बयां किया. भाभी ने अचरज से कहा, ‘‘मैं तो जानती हूं जिव्हानी को, हमारे ही स्कूल में पढ़ती थी. मुझ से 1 साल छोटी है. मुझे नहीं पता था कि अब वह यहां आ गई है रहने के लिए.’’

भैयाभाभी तुरंत दिलेंद्र के साथ उस के घर गए. भैया और दिलेंद्र घर पर ही रहे, भाभी जिव्हानी से मिलने उस के फ्लैट पहुंची.

भाभी ने घंटी बजाई. जिव्हानी ने दरवाजा खोला तो पहचान न सकी. भाभी ने परिचय दिया, तो खुशी से भाभी का स्वागत किया. चाय पिलाई. दोनों ने बहुत बातें की. अस्तव्यस्त सामान में भाभी को एक तसवीर दिखी जिस में जिव्हानी की गोद में छोटी उम्र का स्वाभेश था और उनके साथ एक व्यक्ति था.

भाभी ने फोटो की ओर इशारा कर पूछा, ‘‘ये पति हैं?’’

जिव्हानी ने थोड़ी मायूसी से कहा, ‘‘थे.’’

भाभी समझ गई कि मामला नाजुक है. अत: उस ने कुछ नहीं कहा.

जिव्हानी ने स्वयं ही कह दिया, ‘‘चल बसे.’’

जिव्हानी के साथ कोई नजदीकी रिश्ता न होते हुए भी भाभी को यह सुन कर बहुत दुख हुआ.

‘‘2 साल पहले गुजर गए,

तब स्वाभेश 5 साल का था. कुछ समय वहीं रह कर नौकरी की, फिर मन लगना बंद हो गया. इसीलिए यहां चली आई हूं. अब पिताजी की ही पतंग फैक्टरी संभालूंगी,’’ जिव्हानी बोली.

जिव्हानी ने सही निर्णय लिया था. इतनी कम उम्र में ऐसा हादसा हो जाना किसी भी इंसान को असमंजस की स्थिति में डाल देने के लिए काफी था. स्वयं को भ्रमित महसूस कर इस उलझन और शहर से बाहर निकलना ही उसे उपयुक्त लगा. कोई उसे दोष नहीं दे सकता था. मांबाप ने बहुत समझाया कि उन्हीं के साथ रहे, कोई कुछ नहीं कहेगा, लेकिन वह अड़ी रही कि उसे अपनी जिंदगी आगे भी बढ़ानी है. सब से जटिल कार्य उसे यह लगा कि स्वाभेश को कैसे बताए. 5 वर्ष के बच्चे को क्या स्पष्ट और प्रत्यक्ष शब्दों का प्रयोग कर के कहा जा सकता है कि उस के पिताजी की मृत्यु हो गई है? किस प्रकार की प्रतिक्रिया होगी उस की?

मगर न तो वह रोया, न ही उस ने कोई सवाल पूछा. जिव्हानी को लगा कि शायद अपने दुखी होने की भावना को वह अपने बच्चे से साझा करे तो हो सकता है कि उस की भी भावनाएं सामने आ जाएं. शहर छोड़ते वक्त भी उसे ग्लानि महसूस हुई कि 7 साल के बालक को कैसे बताया जाए कि उसके जीवन और उस की दिनचर्या दोनों में बदलाव आने वाला है, इस के लिए वह तैयार हो जाए. अपने बेटे को दिलेंद्र के साथ सामान्य तरीके से व्यवहार करते देख समझ में आ गया कि स्वाभेश ने अपनी नई जिंदगी को बिना किसी झिझक के अपना लिया है.

भाभी वापस चली आई तथा भैया और दिलेंद्र को स्थिति से अवगत किया. फिर भैया और भाभी वापस अपने घर लौट गए.

शाम को फिर पार्क में पतंगें हवा में लहराने लगीं. उड़ती हुई पतंगें देख कर सभी खुश थे. आसमान में उड़ नहीं सकते तो क्या हुआ, कम से कम पतंग तो उड़ा सकते हैं. जिन वयस्कों के परिवार थे और उन की स्त्रियां यह दलील देती थी कि ए जी, आप तो इतने बड़े हो गए हो. अब क्यों आप पतंग उड़ा रहे हो? तो उन्हें वे कहते कि श्रीराम ने भी तो पतंग उड़ाई थी.

पार्क में एक पागल भिखारी कचरे में मिली हुई एकदम पतले कपडे़ की बनी टोपी को रस्सी से बांध कर पतंग बना कर उड़ाने का प्रयास कर रहा था. बच्चों का एक झुंड, कटी हुई पतंग को लूटने के लिए दौड़ रहा था.

दिलेंद्र जब अपने कुत्ते को ले कर पार्क पहुंचा, तो स्वाभेश को पतंग उड़ाने की कोशिश करते पाया. दिलेंद्र ने स्वाभेश को धागे का तनाव बनाए रखने के गुर सिखाए ताकि कमान तनी रही. किस प्रकार हवा पतंग के नीचे से होती हुई ऊपर से गुजर जाती है, इस के बारे में समझाया ताकि स्वाभेश हवा के प्रवाह का लाभ उठा सके और पतंग को निश्चित दिशा दे सके. ठीक हवाईजहाज की तरह पतंग के नीचे हवा का दबाव ज्यादा होने से वह हवा में उड़ पाती है, इस वैज्ञानिक सिद्धांत को समझाया. थोड़ी ही देर में स्वाभेश ने ढील देने के दांवपेंच सीख लिए.

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जब स्वाभेश वापस घर लौटा, तो सूर्यास्त हो चुका था. ्र

आज वह 7वें आसमान पर था. संक्रांति महोत्सव से पहले उस में इतना आत्मविश्वास तो भर ही जाएगा कि वह चंद लोगों के साथ पेंच लड़ा सके. घर में उस के नानानानी आए हुए थे. नानी ने गरमगरम बेसन और प्याज के पकोड़े तले थे.

जिस आदमी के साथ स्वाभेश और उस की मम्मी फैक्टरी आए थे, उस के विषय में चर्चा हो रही थी.

‘‘क्या करता है वह?’’ नानी

ने पूछा.

‘‘डांस सिखाता है. बच्चों को भी, बड़ों को भी,’’ जिव्हानी ने बताया.

‘‘और पतंग उड़ाने में भी नंबर वन,’’ स्वाभेश बोला.

‘‘तभी तो फैक्टरी में इतने ध्यान से सबकुछ देख रहा था,’’ नाना बोले.

‘‘और एक प्यारा सा कुत्ता भी है उनके पास, शांतिसिंह नाम का,’’ स्वाभेश ने बताया.

‘‘स्वाभेश भी उस से डांस सीखेगा,’’ जिव्हानी बोली.

अगले दिन दिलेंद्र की मुलाकात अपने भैयाभाभी से हुई तो एक बार फिर किसी के साथ उस के मेलमिलाप की संभावना की चर्चा हुई.

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पतंग: भाग 4- जिव्हानी ने क्यों छोड़ा शहर

लेखक- डा. भारत खुशालानी

मांझे के अपराधों ने पतंगों को भी बदनाम कर दिया था जिस से पतंगों में रोष था. सख्त आदेश थे कि कांच से घोटे हुए मांझे का इस्तेमाल नहीं होगा. ऐसे किसी भी तेज मांझे का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा जिस से पक्षियों की जान को खतरा हो. जो उड़ाएगा वह खुद अपने अरमान को आसमानों में पहुंचाएगा और जो नहीं उडाएगा वह महोत्सव देख कर अपना मुफ्त मनोरंजन करेगा, उड़ाने वालों की हौसलाअफजाही करेगा.

आज इन 5 बजे से ही जमा हो रहे आवारा लड़कों को भी कोई कुछ नहीं कहेगा क्योंकि भारत की प्राचीन परंपरा को जिंदा रखने की जिम्मेदारी इन्हीं के सिर पर है. पक्षियों को तो जैसे हर बात का पता पहले से होता है. इस बात का पता भी पहले ही चल चुका था कि उन के प्रतिद्वंदी से आज उन की मुलाकात है. सर्दी के कारण लोग स्वैटर पहन कर पार्क में आ रहे थे. सूर्योदय होतेहोते डोर पर सवार पतंगों की सवारियां किसी दुलहन की तरह सज कर निकल चुकी थीं.

पिछले कई दिनों से सूर्यास्त देखने वाली पतंगों को आज सूर्योदय देखने का

सौभाग्य प्राप्त हुआ. कुछ लोग अपने वफादार अनुयायिओं को साथ ले कर आ रहे थे जो मांझे की रील पकड़ेंगे. जैसे पतंग के साथ डोर बंधी होती है, वैसे ही ये निष्ठावान अनुगामी भी अपने पतंग उड़ाने वाले मालिक के साथ बंधे थे,ठीक उसी तरह जैसे कोई समर्पित सेनापति अपने राजा के साथ बंधा होता है.

8 बजे जिव्हानी अपने मातापिता और अपने बेटे स्वाभेश के साथ पार्क पहुंच गई. उस के हाथ में पिताजी की स्पेशल बनाई पतंग थी जो सिल्क से बनी थी. 1 मीटर चौड़ी और आधा मीटर लंबी इस पतंग की शान का मुकाबला अगर कोई कर पाएगा, तो वह मुरुक्षेश पतंग ही होगी. स्वाभेश के नानाजी ने दिल लगा कर अपने हाथों से इसे बनाया था. पतंग के बीच में ‘मुरुक्षेश’ भी प्रिंट कर दिया था ताकि आकाशवाणी की तरह ही आसमान से सब तक यह संदेश पहुंचे कि शान से पतंग उड़ानी है तो मुरुक्षेश पतंग ही उडाएं.

ठीक 9 बजे दिलेंद्र अपनी पतंगों के सैट और अपने भैयाभाभी के साथ पार्क पहुंच गया. पार्क बहुत बड़ा था. और जमा होती लोगों की भीड़ में एकदूसरे को ढूंढ़ निकालना आसान नहीं था. जिन के पास रजिस्ट्रेशन के समय प्राप्त संक्रांति महोत्सव का टिकेट था, वही पतंग प्रतियोगिता में भाग ले सकते थे और उन्हीं के लिए विशेष भोजन और उपहारों की छोटी टोकरी थी. भैया ने चक्री संभाली और दिलेंद्र ने अपनी पहली पतंग को आसानी से मंद सर्द हवाओं में ऊपर उठा लिया.

दिलेंद्र के मन में अचानक यह खयाल आया कि हो सकता है हवा का रुख इस प्रकार चले कि जिव्हानी की पतंग अपनेआप ही उस की पतंग से आ कर मिल जाए या फिर दोनों की पतंगों की डोरें आपस में जुड़ जाएं. आज दोनों के पतंगों की लड़ाई हो ही जाए और दोनों में से जो भी पतंग कटेगी, वह आज अपशकुन नहीं बल्कि लूट प्रतियोगिता का कारण बनेगी.

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कभी संक्रांति महोत्सव में भाग न लेने वाले किवैदहेय ने भी आज हिस्सा लिया. उस ने भी भारतीय संस्कृति में होली के रंगों की तरह रंग जाने का प्रमाण दे कर पतंग उड़ाई लेकिन एक ही झटके में उस की पतंग कट गई. ठीक तरह से ऊंचाई भी न पकड़ पाई. आसपास के बच्चे उस के इस अनुभवहीन प्रयास को देख कर हंसने लगे. उस की कटी पतंग को किसी दौड़ते बच्चे के पांवों ने रौंद दिया.

स्वाभेश पतंग उड़ाने वालों की भीड़ को चीरता हुआ दिलेंद्र तक जा पहुंचा. उस के पास नानाजी द्वारा बनाई गई पतंग थी, लेकिन जिव्हानी की पतंग से छोटी थी. अपनी पतंग नीचे रख कर पहले वह शांति सिंह के साथ खिलवाड़ करने लगा. शांति सिंह की जोड़ी उस के साथ जम चुकी थी. फिर उस ने दिलेंद्र से अनुरोध किया कि उस की मुरुक्षेश पतंग की उड़ान भरने में उस की सहायता करे.

दिलेंद्र ने भैया के कहने पर अपनी पतंग को नीचे कर लिया तथा स्वाभेश के साथ मुरुक्षेश पतंग तान दी. कलाबाजियां खाती हुई स्वाभेश की पतंग शान के साथ सूरज की पीली चमकदार किरणों को सीना तान कर आत्मसात करने लगी. आकाश में 2 नायाब मुरुक्षेश पतंगें दिख रही थीं. जैसे 2 राजा एकसाथ सिंहासन पर बैठे राज कर रहे हों. आकाश में नजारा देखने लायक था, 2 महलों के आसपास ढेर सारी झोपडि़यां, लेकिन एक म्यान में 2 तलवारें. दिलेंद्र ने धीरेधीरे ढील देते हुए सूरज की सुनहरी किरणों को प्रतिबिंबित करती हुई अपनी चमकदार पतंग को आकाश में उड़ रही दूसरी मुरुक्षेश पतंग की ओर मोड़ दिया. उल्फत और उमंगों के संगम से बने दिलेंद्र के संदेश को ले कर पतंग अपनी बड़ी बहन से मिलने चल दी.

दोनों पतंगें बहनें थीं क्योंकि उन का निर्माता सह पिता एक ही था- स्वाभेश के नानाजी. चंद ही क्षणों में संदेश के साथ छोटी बहन ने बड़ी का दरवाजा खटखटाया. आकाश के पंछी आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे थे. वैसे तो उन्होंने आज सबेरे से ही सैकड़ों भिन्नभिन्न प्रकार की पतंगों के दर्शन कर लिए थे, लेकिन इन 2 महारथियों की शान बेमिसाल थी. 2-4 पंछी और आ गए और इन दोनों महारथियों के ऊपर मंडराने लगे जैसे इंतजार में हों कि देखें आगे क्या होता है.

पार्क वालों ने भी जब यह नजारा देखा तो अपनी पतंगों को भूल कर वृहंगम पतंगों की जंग का अद्भुत दृश्य देखने लगे. दोनों महाकाय पतंगों की डोरें आपस में उलझ गईं. दोनों बहनें एकदूसरे से लिपट गईं. दोनों के बीच स्नेहशील गुत्थमगुत्था होने लगी. सुबह की कुनकुनी धूप से छंटते हुए बादलों की छांव तले दोनों विशाल पतंगें में जैसे द्वंद्वयुद्ध हो रहा हो. युद्ध का तेज किरणों को मात देने लगा. बाकियों की पतंगें उन के आसपास घूमफिर कर चुपचाप वहां से खिसक लीं.

न तो उन में इतना दम था, न ही उन के हौसले इतने बुलंद थे कि इस महायुद्ध में भागीदार बन सकें. बस ऊंची नजरें कर इन दोनों में से जो कटेगी, आज जिसे वह मिलेगी, उस की खुशहाल हो गया समझो. इस महायुद्ध में डोर की शक्ति उस की शारीरिक क्षमता पर नहीं, अपितु उड़ाने वाले के जोश पर निर्भर थी और दोनों उड़ाने वाले, दिलेंद्र और जिव्हानी जोशखरोश में आ गए थे. दिलेंद्र का अनमनापन कब काफूर हो गया उसे पता ही न चला. महाशक्तियों की पैतरेबाजी से विरक्ति आह्लाद में परिवर्तित हो चुकी थी. विशेष कर यह जान कर कि दूसरी पतंग की डोर जिव्हानी के हाथों में है. मुरुक्षेश की प्रेमरूपी पतंगों का यह खेल चलता रहा.

और फिर जोर की आवाज से आकाश गूंज उठा, ‘‘वह काट,’’ जैसे सारा स्टेडियम क्रिकेट के मैदान में छक्का लगने से गूंज उठ हो. कटी हुई पतंग लहराती हुई दूर अनजान प्रदेश में जाने लगी. 30-40 बच्चे और युवक उस के पीछे भागे.

दिलेंद्र की बांछें खिल गईं. स्वाभेश खुशी से झूमने लगा. जिव्हानी की पतंग कट गई थी. स्वाभेश की पतंग आसमान में अपनी बुलंदी पर इतरा रही थी.

थोड़ी ही देर में जिव्हानी आकाश में उडती इकलौती मुरुक्षेश पतंग की डोर की

दिशा पकड़ कर उन के पास आ पहुंची. अपनी रोबीली पतंग कट जाने से उस के चेहरे पर न तो कोई शिकन के भाव थे न ही गम.

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आते ही सब से पहले उस ने अपने ही हाथों से बनी तिलगुड़ की मिठाई का डब्बा भैयाभाभी के सामने खोल दिया. दिलेंद्र ने स्वाभेश की पतंग नीचे ला कर वापस अपने पास खींच ली. सभी ने मुंह मीठा किया.

भाभी ने मौका देख कर जिव्हानी से पूछ ही डाला, ‘‘तुम किवैदहेय के साथ हो क्या?’’

जिव्हानी ने हैरानी के साथ कहा, ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं.’’

भाभी ने किवैदहेय और दिलेंद्र के बीच हुए संवाद को दोहरा दिया. जिव्हानी ने सभी से इस बात के लिए माफी मांगी और कहा, ‘‘दरअसल, मेरे मम्मीपापा की पहचान का है वह. मम्मीपापा ने मेरे इस शहर में आने से पूर्व मेरी सगाई की बात उस से की थी. लेकिन मुझे मंजूर नहीं है, यह बात मैं ने अपने मम्मीपापा से साफ कह दी है. किवैदहेय भ्रम में है. ऐसा कुछ भी नहीं है. बस, उस ने मुझे फ्लैट दिलाया है.’’

दिलेंद्र के अरमानों ने एक बार फिर पंख फैलाए. एक बार फिर पतंग की तरह आसमान में उड़ने के लिए वह तैयार था और अब उस की पतंग को कोई नहीं काट सकेगा. सर्वसम्मति से संक्रांति महोत्सव का उसे विजेता घोषित कर दिया गया.

उसी दहलीज पर बार-बार: भाग 2- क्या था रोहित का असली चेहरा

कहानी- यामिनी वर्मा

शाम को सोमी ममता से मिलने उस के घर आई तो ममता ने बिना किसी भूमिका के बता दिया कि रिया रोहित की बेटी है और उस की मां का पिछले साल निधन हो गया है. रोहित हमारे स्कूल में अपनी बच्ची का दाखिला करवाने आया था.

‘‘रोहित को कैसे पता चला कि तुम यहां हो?’’ सोमी ने पूछा.

‘‘नहीं, उस को पहले पता नहीं था. वह भी मुझे देख कर आश्चर्य कर रहा था.’’

थोड़ी देर बैठ कर सोमी अपने घर लौट गई. उसे कुछ अच्छा नहीं लगा था यह ममता ने साफ महसूस किया था. वह बिस्तर पर लेट गई और अतीत के बारे में सोचने लगी. ममता और रोहित एक- साथ पढ़ते थे और वह उन से एक साल जूनियर थी. इन तीनों के ग्रुप में योगेश भी था जो उस की क्लास में था. योगेश की दोस्ती रोहित के साथ भी थी, उधर रोहित और ममता भी एक ही क्लास में पढ़ने के कारण दोस्त थे. फिर चारों मिले और उन की एकदूसरे से दोस्ती हो गई.

ममता का रंग गोरा और बाल काले व घुंघराले थे जो उस के खूबसूरत चेहरे पर छाए रहते थे.

रोहित भी बेहद खूबसूरत नौजवान था. जाने कब रोहित और ममता में प्यार पनपा और फिर तो मानो 2-3 साल तक दोनों ने किसी की परवा भी नहीं की. दोनों के प्यार को एक मुकाम हासिल हो इस प्रयास में सोमी व योगेश ने उन का भरपूर साथ दिया था.

ममता और रोहित ने एम.एससी. कर लिया था. सोमी बी.एड. करने चली गई और योगेश सरकारी नौकरी में चला गया. यह वह समय था जब चारों बिछड़ रहे थे.

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रोहित ने ममता के घर जा कर उस के मातापिता को आश्वस्त किया था कि बढि़या नौकरी मिलते ही वे विवाह करेंगे और उस के बूढ़े मातापिता अपनी बेटी की ओर से ऐसा दामाद पा कर आश्वस्त हो चुके थे.

ममता की मां तो रोहित को देख कर निहाल हो रही थीं वरना उन के घर की जैसी दशा थी उस में उन्होंने अच्छा दामाद पा लेने की उम्मीद ही छोड़ दी थी. पति रिटायर थे. बेटा इतना स्वार्थी निकला कि शादी करते ही अलग घर बसा लिया. पति के रिटायर होने पर जो पैसा मिला उस में से कुछ उन की बीमारी पर और कुछ बेटे की शादी पर खर्च हो गया.

एक दिन रोहित को उदास देख कर ममता ने उस की उदासी का कारण पूछा तो उस ने बताया कि उस के पापा उस की शादी कहीं और करना चाहते हैं. तब ममता बहुत रोई थी. सोमी और योगेश ने भी रोहित को बहुत समझाया लेकिन वह लगातार मजबूर होता जा रहा था.

आखिर रोहित ने शिखा से शादी कर ली. इस शादी से जितनी ममता टूटी उस से कहीं ज्यादा उस के मातापिता टूटे थे. एक टूटे परिवार को ममता कहां तक संभालती. घोर हताशा और निराशा में उस के दिन बीत रहे थे. वह कहीं चली जाना चाहती थी जहां उस को जानने वाला कोई न हो. और फिर ममता का इस स्कूल में आने का कठोर निर्णय रोहित की बेवफाई थी या कोई मजबूरी यह वह आज तक समझ ही नहीं पाई.

इस अनजाने शहर में ममता का सोमी से मिलना भी महज एक संयोग ही था. सोमी भी अपने पति व दोनों बच्चों के साथ इसी शहर में रह रही थी. दोनों गले मिल कर खूब रोई थीं. सोमी यह जान कर अवाक्  थी… कोई किसी को कितना चाह सकता है कि बस, उसी की यादों के सहारे पूरी जिंदगी बिताने का फैसला ले ले.

सोमी को भी ममता ने स्कूल में नौकरी दिलवा दी तो एक बार फिर दोनों की दोस्ती प्रगाढ़ हो गई.

स्कूल ट्रस्टियों ने ममता की काबिलीयत और काम के प्रति समर्पण भाव को देखते हुए उसे प्रिंसिपल बना दिया. उस ने भी प्रिंसिपल बनते ही स्कूल की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और उस की देखरेख में स्कूल अनुशासित हो प्रगति करने लगा.

अतीत की इन यादों में खोई सोमी कब सो गई उसे पता ही नहीं चला. जब उठी तो देखा दफ्तर से आ कर पति उसे जगा रहे हैं.

‘‘ममता, तुम जानती हो, रिया रोहित की लड़की है. इतना रिस्पांस देने की क्या जरूरत है?’’ एक दिन चिढ़ कर सोमी ने कहा.

‘‘जानती हूं, तभी तो रिस्पांस दे रही हूं. क्या तुम नहीं जानतीं कि अतीत के रिश्ते से रिया मेरी बेटी ही है?’’

अब क्या कहती सोमी? न जाने किस रिश्ते से आज तक ममता रोहित से बंधी हुई है. सोमी जानती है कि उस ने अपनी अलमारी में रोहित की बड़ी सी तसवीर लगा रखी है. तसवीर की उस चौखट में वह रोहित के अलावा किसी और को बैठा ही नहीं पाई थी.

ममता को लगता जैसे बीच के सालों में उस ने कोई लंबा दर्दनाक सपना देखा हो. अब वह रोहित के प्यार में पहले जैसी ही पागल हो उठी थी.

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पापा की मौत हो चुकी थी और मां को भाई अपने साथ ले गया था. जब उम्र का वह दौर गुजर जाए तो विवाह में रुपयों की उतनी आवश्यकता नहीं रह जाती जितना जीवनसाथी के रूप में किसी को पाना.

विधुर कर्नल मेहरोत्रा का प्रस्ताव आया था और ममता ने सख्ती से मां को मना कर दिया था. स्कूल के वार्षिकोत्सव में एम.पी. सुरेश आए थे, उन की उम्र ज्यादा नहीं थी, उन्होंने भी ममता के साथ विवाह का प्रस्ताव भेजा था. इस प्रस्ताव के लिए सोमी और उस के पति ने ममता को बहुत समझाया था. तब उस ने इतना भर कहा था, ‘‘सोमी, प्यार सिर्फ एक बार किया जाता है. मुझे प्यारहीन रिश्तों में कोई विश्वास नहीं है.’’

प्यार और विश्वास ने ममता के भीतर फिर अंगड़ाई ली थी. रोहित आया तो उस ने आग्रह कर के उसे 3-4 दिन रोक लिया. पहले दिन रोहित, ममता और सोमी तीनों मिल कर घूमने गए. बाहर ही खाना खाया.

सोमी कुछ ज्यादा रोहित से बोल नहीं पाई… क्या पता रोहित ही सही हो… वह ममता की कोमल भावनाएं कुचलना नहीं चाहती थी. अगर ममता की जिंदगी संवर जाए तो उसे खुशी ही होगी.

अगले दिन ममता रोहित के साथ घूमने निकली. थोड़ी देर पहले ही बारिश हुई थी. अत: ठंड बढ़ गई थी.

‘‘कौफी पी ली जाए, क्यों ममता?’’ उसे रोहित का स्वर फिर कालिज के दिनों जैसा लगा.

‘‘हां, जरूर.’’

रेस्तरां में लकड़ी के बने लैंप धीमी रोशनी देते लटक रहे थे. रोहित गहरी नजरों से ममता को देखे जा रहा था और वह शर्म के मारे लाल हुई  जा रही थी. उस को कालिज के दिनों का वह रेस्तरां याद आया जहां दोनों एकदूसरे में खोए घंटों बैठे रहते थे.

‘‘कहां खो गईं, ममता?’’ इस आवाज से उस ने हड़बड़ा कर देखा तो रोहित का हाथ उस के हाथ के ऊपर था. सालों बाद पुरुष के हाथ की गरमाई से वह मोम की तरह पिघल गई.

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परित्याग: भाग 2- क्या पहली पत्नी को छोड़ पाया रितेश

‘‘अभी गरम कर देता हूं. मूंग छिलके वाली दाल के साथ चावल बनाए हैं. आप भी लीजिए,’’ रितेश ने कहा.

‘‘मैं अपना टिफिन लाई हूं. आप आराम कीजिए, मैं खाना गरम कर देती हूं.’’

खाना खाते समय रिया ने रितेश से पारिवारिक प्रश्न पूछ ही लिया, ‘‘सर, आप की तबीयत ठीक नहीं है, अपने घर से किसी को बुला दीजिए.’’

‘‘बूढ़े मातापिता को मैं तकलीफ नहीं देना चाहता हूं. दोचार दिन में ठीक हो जाऊंगा. बहनभाई अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में रहते हैं. अब बुखार तो उतर ही गया है.’’

‘‘आप के मातापिता कहां रहते हैं?’’

‘‘बड़े भाई के साथ रहते हैं.’’

‘‘आप विवाह कर लीजिए, एक से दो भले,’’ रिया की बात सुन कर रितेश मुसकरा दिया और खाना खाने के बाद बोला, ‘‘विवाह के कारण ही यहां अकेला रह रहा हूं.’’

‘‘आप की पत्नी अलग रहती है?’’

‘‘मेरा पत्नी से तलाक हो गया है. 4 साल पहले मेरा रीमा से विवाह हुआ था. मैं भी आर्किटेक्ट और रीमा भी आर्किटेक्ट. हम दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे.

“उस समय हम कोलकाता में काम करते थे. विवाह के एक महीने बाद ही रीमा अपने मायके गुवाहाटी गई और लौट कर नहीं आई.

“मैं ने उसे बुलाया, गुवाहाटी भी कर्ई बार लेने गया, पर वह मेरे साथ रहने को तैयार नहीं हुई. 6 महीने के प्रयास के बाद मैं ने थक कर बिना किसी कारण के रीमा का परित्याग करने पर हिंदू मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत तलाक ले लिया. पिछले वर्ष कोर्ट ने तलाक पर मुहर लगा दी और मैं कोलकाता छोड़ कर दिल्ली आ गया.’’

‘‘कोई कारण तो अवश्य होगा?’’

‘‘उस ने कोर्ट में भी कोई कारण नहीं बताया और तलाक हो गया. विवाह के बाद हम मुश्किल से एक महीना साथ रहे. मुझे आज तक उस का बिना कारण छोड़ कर चले जाने का रहस्य समझ नहीं आया.

“जब उसे रहना ही नहीं था, तब विवाह क्यों किया? खैर, अब एक वर्ष से अकेला रह रहा हूं. अपने गुजारे के लिए खाना बना लेता हूं…

“आप जो गीत सुन रही थीं, वह मेरे हाल पर सही बैठता है. रीमा को भूलना चाहता हूं और वो याद आ जाती है.’’

‘‘वो तो मैं देख रही हूं,’’
रिया पूरे दिन रितेश के साथ रही, मिलजुल कर काम करते रहे और शाम को अपने बौस कमलनाथ को कार्य प्रगति की सूचना दी.

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कमलनाथ ने रितेश को आराम करने को कहा कि औफिस आने की जल्दी न करे और रिया को अगले 3-4 दिन रितेश के घर से काम करने को कहा.

‘‘रिया, हमारे बौस भी महान हैं. मुझे आराम करने को कह रहे हैं और तुम्हें मेरे साथ काम करने को कह रहे हैं. जब काम करूंगा, तब आराम कैसे करूंगा.’’

‘‘मैं आप को परेशान नहीं करूंगी. आप अधिक आराम कीजिए और सिर्फ मुझे काम बता दीजिए. काम मैं कर लूंगी, क्योंकि मैं ने ऐसे प्रोजैक्ट पर काम नहीं किया है, इसलिए आप को अधिक नहीं थोड़ा सा परेशान करूंगी.’’

‘‘रिया, मैं तो मजाक कर रहा था, क्योंकि तुम्हें मालूम है कि मैं एक मिनट भी खाली नहीं बैठ सकता हूं.’’

‘‘आप आराम कीजिए, अपना खाना मत बनाना. मैं आप के लिए खाना ले आऊंगी.’’

‘‘शाम को तो बनाना ही होगा.’’

‘‘शाम को जाते समय मैं बना दूंगी.’’

एक सप्ताह तक रिया रितेश के घर आ कर काम करती रही. शनिवार और रविवार की छुट्टी वाले दिन भी रिया रितेश के घर आई. काम करने के साथ दोनों पारिवारिक और औफिस की बातों पर चर्चा करते.

रिया भी तलाकशुदा थी, जिस का अभी 6 महीने पहले ही आपसी रजामंदी से तलाक हुआ था.

रिया अपने टिफिन में रितेश का भी खाना लाती और रात का खाना बना कर जाती. एक सप्ताह में रितेश और रिया ने अपने जीवन को साझा किया और छोटे से समय में कुछ नजदीक होते हुए.

रितेश स्वस्थ होने के बाद औफिस आने लगा. रिया रितेश के लिए खाना यथापूर्वक लाती रही. धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं और 5 महीने बाद दोनों एकदूसरे के बिना अधूरे से लगने लगे.

एक दिन उन के बौस कमलनाथ ने उन्हें नया जीवन आरंभ करने की सलाह दी.

रितेश और रिया विवाह के बंधन में बंध गए. दिन गुजरते गए और दोनों दो से तीन हो गए. एक पुत्री के आने से दोनों का जीवन पूर्ण हो गया. रितेश कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ता गया.

आर्किटेक्ट एसोसिएशन के अधिवेशन में रितेश का कोलकाता जाना हुआ. वहां रीमा ने उसे देख लिया. रितेश अपना कार्य संपन्न करने के बाद दिल्ली वापस आ गया. थोड़े दिन बाद उसे कोर्ट से नोटिस मिला.

नोटिस रीमा ने दंड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) के सैक्शन 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता देने के लिए था.

नोटिस मिलने पर उदास रितेश से रिया ने कारण पूछा.

‘‘रिया, जब तुम्हारा तलाक हुआ था, तब गुजारा भत्ता के लिए कोई आदेश जारी हुआ था?’’

‘‘रितेश, मेरा तलाक आपसी सहमति से हुआ था. हमारा लिखित अनुबंध हुआ था, जिस के तहत मुझे एकमुश्त रकम मिली थी. लेकिन तुम यह क्यों पूछ रहे हो?’’

‘‘रीमा ने गुजारा भत्ता के लिए कोर्ट में केस किया है,’’ रितेश ने कोर्ट के नोटिस को रिया के आगे किया.

‘‘जब तुम्हारा तलाक हुआ था, तब गुजारा भत्ता नहीं मांगा था?’’

‘‘रिया, यह नोटिस मुझे इसलिए हैरान कर रहा है कि तलाक के केस के दौरान रीमा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया था. शादी के एक महीने के बाद बिना कारण वह मुझे छोड़ गई थी. इसी कारण पर तलाक हो गया था और उस ने गुजारा भत्ता के लिए कोई जिक्र ही नहीं किया था.’’

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‘‘अब क्या होगा?’’

‘‘कोर्ट का नोटिस है, वकील से बात करनी होगी. कोलकाता कोर्ट में तलाक हुआ था, वहीं कोर्ट में केस किया है. अब सारी कार्यवाही कोलकाता में होगी. दिल्ली में रहने वाला कोलकाता कोर्ट के चक्कर काटेगा. मुसीबत ही मुसीबत है. काम का हर्ज भी होगा, कोलकाता आनेजाने का खर्चा, वकील की फीस के साथ दिमाग चौबीस घंटे खराब और परेशान रहेगा,’’ कह कर रितेश गहरी सोच में डूब गया.

‘‘तुम चिंता मत करो. अब जो मुसीबत आ गई है, उस का मुकाबला मिल कर करेंगे. आप वकील से बात करो, अधिक चिंता मत करो,’’ रिया को अपने साथ कंधे से कंधे मिला कर खड़ा देख रितेश में हिम्मत आ गई और कोलकाता में उस वकील से बात की, जिस ने उस का तलाक का केस लड़ा था.

वकील बनर्जी बाबू ने रितेश को कोलकाता आ कर एक बार मिलने को कहा, ताकि केस की पैरवी की जा सके.

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परित्याग: भाग 3- क्या पहली पत्नी को छोड़ पाया रितेश

रितेश के साथ रिया भी कोलकाता में वकील बनर्जी से मिली. वकील बनर्जी तलाक की पुरानी फाइल देख कर कहता है कि आप का तलाक परित्याग के कारण हुआ था. रीमा ने बिना कारण आप का परित्याग किया है. गुजारा भत्ता क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सैक्शन 125 के अंदर मिलता है. उस ने देरी से केस फाइल किया है, जिस का हम विरोध करेंगे और दूसरी आपत्ति हमारी सैक्शन 125 (4) के अंतर्गत करेंगे कि रीमा ने बिना किसी कारण आप का परित्याग किया और आप के साथ रहने से इनकार किया था. इन्हीं वजहों से तलाक मिला था और आप का गुजारा भत्ता देना नहीं बनता है. आप केस जीतेंगे, आप बेफिक्र रहें.’’

रिया ने अपने तलाक का जिक्र किया, तब वकील बनर्जी ने समझाया कि सैक्शन 125 के तहत आपसी रजामंदी से हुए तलाक में समझौते के अंतर्गत गुजारा भत्ता नहीं बनता है, क्योंकि ऐसे केस में एकमुश्त राशि पर समझौता होता है.

रितेश कोर्ट की तारीख पर कोलकाता आया. रीमा से आमनासामना हुआ. रितेश ने कहा, ‘‘रीमा, तुम ने बिना किसी कारण के मेरा परित्याग किया था, जिस कारण हमारा तलाक हुआ और अब तुम गुजारा भत्ता मांग रही हो, जो तुम्हारा हक भी नहीं है और मिलेगा भी नहीं.’’

‘‘रितेश, यह तो मेरा हक है. पहले नहीं मांगा, अब मांग लिया. यह तो देना ही होगा तुम्हें.’’

‘‘जब शादी से भाग गई, तब हक नहीं बनता है.’’

‘‘कानून महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है, तुम मेरा हक नहीं छीन सकते हो.’’

‘‘अपने मन से पूछो, जब वैवाहिक जीवन का कोई दायित्व नहीं निभाया. तुम भाग खड़ी हुई. इस को भगोड़ा कहते हैं. कोर्ट भगोड़ों से कोई सहानुभूति नहीं रखती है. तुम अपना केस वापस ले लो.’’

‘‘मैं ने केस वापस लेने के लिए नहीं किया है, गुजारा भत्ता लेने के लिए किया है.’’

‘‘क्या तुम ने शादी गुजारा भत्ता लेने की लिए की थी?’’

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‘‘बिलकुल यही समझो.’’

‘‘तुम भारतीय स्त्री के नाम पर एक कलंक हो. विवाह जनमजनम का रिश्ता होता है. पति और पत्नी अपना संपूर्ण जीवन एकदूसरे पर न्यौछावर करते हैं. सुख और दुख में बराबर के भागीदार होते हैं. तुम ने क्या किया? विवाह से भाग खड़ी हुई, सिर्फ गुजारा भत्ता लेने के लिए?’’

‘‘अब जो भी बात होगी, कोर्ट में होगी. मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है,’’ कह कर रीमा चली गई.

कोर्ट में हर दूसरे महीने तारीख पड़ जाती. रितेश को औफिस से छुट्टी ले कर कोलकाता जाना पड़ता. वकील से बात कर के पेशी के दौरान की रणनीति बनानी पड़ती. कभी जज महोदय छुट्टी पर होते, तो कभी रीमा का वकील तारीख ले लेता कि वह दूसरी कोर्ट में व्यस्त है, कभी उस का वकील तारीख लेता और कभी वकीलों की हड़ताल के कारण तारीख मिल जाती. एक बार जज का तबादला हो गया और नए जज ने तारीख दे दी. तारीख पर तारीख के बीच कभीकभार दोचार मिनट की सुनवाई हो जाती.

रितेश कोर्ट के पचड़ों से परेशान था, लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा था. आखिर तीन वर्ष बाद कोर्ट का फैसला आया.

रीमा की ओर से तर्क दिया गया कि सैक्शन 125 के अंतर्गत तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता का हक है, क्योंकि उस ने दूसरा विवाह नहीं किया. जबकि रितेश की ओर से तर्क दिया गया, क्योंकि रीमा स्वयं विवाह के एक महीने बाद भाग गई थी और कई प्रयासों के बावजूद रितेश के संग नहीं रही और रीमा ने रितेश का परित्याग कर दिया और इसी कारण हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत तलाक हुआ और सैक्शन 125 (4) के अंतर्गत रीमा जानबूझ कर रितेश के साथ नहीं रही, इसलिए वह गुजारा भत्ता की हकदार नहीं है.

कोर्ट ने रितेश के पक्ष में फैसला दिया. रितेश प्रसन्न हो गया, लेकिन रीमा ने कोर्ट से बाहर आते ही रितेश को हाईकोर्ट में मिलने की चेतावनी दे दी.

रीमा ने हाईकोर्ट में अपील दायर की. अगले 3 वर्ष कोलकाता हाईकोर्ट के चक्कर काटने में लग गए. हाईकोर्ट ने रीमा के पक्ष में फैसला सुनाया.

हाईकोर्ट ने रीमा के पक्ष में फैसला इस आधार पर दिया कि रीमा का रितेश के साथ तलाक हो गया है. उस ने दोबारा विवाह नहीं किया. सैक्शन 125 के तहत रीमा गुजारा भत्ता की हकदार है.

हाईकोर्ट के फैसले से रितेश मायूस हो गया कि उसे किस जुर्म की सजा मिल रही है. जुर्म उस का इतना कि उस ने अपने साथ औफिस में काम करने वाली सहकर्मी से विवाह किया, जो एक महीने बाद उसे त्याग कर भाग गई. गलती पत्नी की और गुजारा भत्ता दे पति, यह कहां का इंसाफ है.

रिया ने रितेश का हौसला बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सलाह दी.

‘‘रिया, आज 6 वर्ष हो गए हैं मुकदमा लड़ते हुए. हिम्मत टूट गई है अब. बिना कुसूर के सजा काट रहा हूं मैं.’’

‘‘रितेश, हमारे देश और समाज की यह बहुत बड़ी विडंबना है कि बेकुसूर सजा भुगतता है और कुसूरवार मजे करते हैं. सैक्शन 125 एक भले काम के लिए बनाया गया है, लेकिन इस का दुरुपयोग रीमा जैसी औरतें करती हैं, जो भले पुरुषों से विवाह कर के छोड़ देती हैं और पुरुषों को जीवनभर बिना किसी कारण के दंड भुगतना पड़ता है.’’

रितेश ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. सुप्रीम कोर्ट में अपील का फैसला तीन वर्ष बाद आया.

सुप्रीम कोर्ट ने रितेश की दलील को अस्वीकार कर दिया कि रीमा ने दूसरी शादी नहीं की, इसलिए रीमा गुजारा भत्ता की हकदार है. विवाह के बाद रीमा ने रितेश का परित्याग किया, जिस कारण हिंदू मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत तलाक हो गया. सैक्शन 125 में तलाक के बाद गुजारा भत्ता है.

तलाक के बाद रीमा और रितेश स्वाभाविक रूप से अलग रहेंगे. यह अलग रहना ही गुजारा भत्ता दिलाता है.

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रितेश की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया कि यह किस का परित्याग है. रीमा ने जानबूझ कर बिना कारण के रितेश का परित्याग किया और इस परित्याग के कारण रीमा को गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए.

रीमा पढ़ीलिखी आर्किटेक्ट है. वह स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है, लेकिन रीमा ने स्वयं को बेरोजगार बताया. रीमा ने दोबारा विवाह नहीं किया और बेरोजगार की बात मानते हुए रीमा के हक में फैसला किया.

10 वर्ष की लंबी कानूनी लड़ाई में चंद सिक्कों की जीत से रीमा को क्या मिला, यह रितेश और रिया नहीं समझ सके. ऐसी स्त्रियों को गुजारा भत्ता का कानून भी बेसिरपैर का लगा, लेकिन उन के हाथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बंधे हुए थे. आखिर कानून को अंधा क्यों बनाया हुआ है. अबला नारी को संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन अबला पुरुष को सबला नारी से भी बचाना चाहिए. कानून को किताब से निकाल कर व्यावहारिक निर्णय लेने चाहिए. रितेश और रिया जवाब ढूंढ़ने में नाकामयाब हैं. उन के हाथ 10 वर्ष की लंबी लड़ाई के बाद सिर्फ निराशा ही मिली. सचझूठ के आवरण में छिप कर अपना स्वरूप खो बैठा.

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परित्याग: भाग 1- क्या पहली पत्नी को छोड़ पाया रितेश

रितेश अपने औफिस में काम में व्यस्त था. पेशे से वह एक बहुत बड़ी आर्किटेक्ट फर्म में काम करता था. सारा समय वह काम में डूबा रहता था. उम्र उस की मात्र 32 वर्ष की ही थी, लेकिन उस के दिमाग के घोड़े जब दौड़ते थे, तब अनुभवी आर्किटेक्ट भी चारों खाने चित हो जाते थे.

हमेशा शांत रहने वाला रितेश एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा था. घर से औफिस और औफिस से घर तक ही रितेश का जीवन सीमित था. रितेश का व्यक्तित्व साधारण था, गेहुंआ रंग और मध्यम कदकाठी. उस का शरीर किसी को आकर्षित नहीं करता था, लेकिन उस का काम और काम के प्रति समर्पण हर किसी को आकर्षित करता था.

औफिस के नजदीक ही उस ने रहने के लिए एक कमरा किराए पर लिया था. वह औफिस पैदल आया जाया करता था. उस के पास कोई कार, स्कूटर, बाइक वगैरह कुछ भी नहीं था. कमरे में एक बिस्तर, कुछ कपड़े, कुछ किताबें के अतिरिक्त कुछ बरतन, जिन में वह अपना खाना बनाया करता था. दाल, रोटी, चावल बनाना वह सीख गया था और इन्हीं में अपना गुजारा करता था. कभी रोटी नहीं भी बनाता था, फलाहार से काम चल जाता था.

औफिस में रिया नई आई थी. वह भी काम के प्रति समर्पित थी. सुबहसवेरे रिया को औफिस में रितेश नहीं दिखा. वह एक प्रोजैक्ट पर रितेश के साथ काम कर रही थी. उस ने फोन किया, लेकिन रितेश ने फोन नहीं उठाया. रितेश को रात में तेज बुखार हो गया था, जिस कारण वह करवटें बदलता रहा और सुबह नींद आई. तेज नींद के झौंके में फोन की घंटी उसे सुनाई नहीं दी.

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औफिस में रितेश के बौस कमलनाथ को आश्चर्य हुआ कि बिना बताए रितेश कहां चला गया. उस ने कोई संदेश भी नहीं छोड़ा. रितेश औफिस के समीप ही रहता था, इसलिए लंच समय में टहलते हुए कमलनाथ रितेश के घर की ओर रिया के संग चल दिए.

रितेश एक मकान की तीसरी मंजिल पर बने एक कमरे में रहता था. जब कमलनाथ और रिया रितेश के कमरे में पहुंचे, तब डाक्टर रितेश का चेकअप कर रहा था. डाक्टर ने दवाई का परचा लिख दिया.

‘‘परचा तो आप ने लिख दिया, लेकिन बिस्तर से उठने की हिम्मत ही नहीं हो रही है,’’ रितेश ने डाक्टर को अपनी लाचारी बताई.

डाक्टर ने अपने बैग से दवा निकाल कर रितेश को दी और कहा, ‘‘यह दवा अभी ले लो. पानी किधर है.’’

पानी की बोतल बिस्तर के पास एक स्टूल पर रखी हुई थी. रितेश ने दवा ली. कमलनाथ ने डाक्टर से रितेश की तबीयत का हालचाल पूछा.

‘‘मैं कुछ टैस्ट लिख देता हूं. लैब का टैक्निशियन खून और पेशाब के सैंपल जांच के लिए यहीं से ले जाएगा. रितेश को तीन दिन से बुखार आ रह था. मुझे टाइफाइड लग रहा है.’’

डाक्टर के जाने के बाद कमलनाथ ने रितेश से दवा का परचा लिया और रिया को कैमिस्ट शौप से दवा लाने को कहा.

‘‘कमरे को देख कर ऐसा लगता है कि तुम अकेले रहते हो?’’ कमलनाथ ने रितेश से पूछा. रितेश ने गरदन हिला कर हां बोल दिया.

‘‘रितेश तुम आराम करो, मैं यहां औफिस बौय को भेज देता हूं. वह तुम्हारी मदद कर देगा. तुम कुछ दिन आराम करो, काम हम देख लेंगे,’’ रिया ने रितेश को दवा दी और कमलनाथ के संग वापस औफिस चली गई.

रितेश को बारबार उतरतेचढ़ते बुखार से कमजोरी हो गई. शाम को औफिस बौय रितेश के लिए बाजार से कुछ फल ले आया और दालचावल बना दिए. अगले दिन जांच रिपोर्ट आने पर टाइफाइड की पुष्टि हो गई.

रितेश औफिस जाने की स्थिति में नहीं था. टाइफाइटड ने उस का बदन निचोड़ लिया, जिस कारण वह औफिस नहीं जा सका.

3 दिन बाद कमलनाथ ने रितेश से उस की तबीयत पूछी और उस के औफिस आने की असमर्थता जताने पर जरूरी काम निबटाने के लिए रिया को उस के घर जा कर काम करने को कहा.

कमजोरी के कारण रितेश ने शेव भी नहीं बनाई थी. स्नान करने के पश्चात उस ने कपड़े बदले थे और चाय बना कर ब्रेड को चाय में डुबो कर खा रहा था.

फाइल और लैपटौप के साथ रिया रितेश के कमरे में पहुंची. पिछली शाम कमलनाथ से बातचीत के बाद रिया के उस के पास आ कर काम करने का कार्यक्रम बन गया था.

रितेश ने कमरा व्यवस्थित कर लिया था. बिस्तर पर नई बेडशीट बिछा दी थी और झाड़ू लगा कर कमरा साफ कर दिया था. 2 कुरसी के साथ एक गोल मेज थी.

सुबह का अखबार पढ़ते हुए रितेश चाय पी रहा था. ब्रेड को चाय में डुबा कर खाते देख रिया अपनी मुसकराहट रोक नहीं सकी. उसे अपने बचपन के दिन याद आ गए, जब वह भी चाय में बिसकुट और ब्रेड डुबो कर खाती थी.

‘‘मुसकराहट के पीछे का राज भी बता दो?’’ रितेश ने आखिर पूछ ही लिया.

रिया लैपटौप और फाइल गोल मेज पर रख कर एक कुरसी पर बैठ गई. रितेश ने रिया को चाय देते हुए कहा, ‘‘अभी बनाई है, गरम है. पहले चाय पी लो, फिर काम करते हैं. बिसकुट मीठे भी हैं और नमकीन भी हैं,’’ कह कर रितेश ने बिसकुट के डब्बे रिया के सामने रखे.

चाय पीने के पश्चात दोनों ने काम आरंभ किया. एक घंटा काम करने के पश्चात रितेश ने आंखें बंद कर लीं.
‘‘सर, आप को थकान हो रही है. कुछ देर के लिए काम रोक लेते हैं, बाद में कर लेते हैं.’’

‘‘टाइफाइड ने बदन निचोड़ लिया है, एकमुश्त काम नहीं होता है. थोड़ा आराम करता हूं, 10-15 मिनट बाद काम करते हैं.’’

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‘‘जी सर, आप आराम कीजिए.’’

रितेश ने एफएम रेडियो लगाया. रेडियो पर गीत आ रहा था, ‘जिन्हें हम भूलना चाहें वो अकसर याद आते हैं…’ रितेश ने एफएम स्टेशन बदल दिया, वहां नए गीत आ रहे थे.

‘‘अच्छा गाना था, ‘जिन्हें हम भूलना चाहें वो अकसर याद आते हैं…’ रिया ने रितेश से कहा.

‘‘पुराना गीत है और साथ में थोड़ा उदासी वाला. शायद, आप को पसंद न आए, इसीलिए बदल लिया.’’

‘‘सर, मुझे नएपुराने सभी गीत पसंद हैं,’’ रिया की बात सुन कर रितेश मुसकरा दिया और काम फिर से शुरू कर दिया.

धीमे स्वर में एफएम रेडियो बजता रहा और हर आधे घंटे बाद रितेश काम बंद कर 10 मिनट आराम करता. दोपहर के एक बजे रिया ने रितेश से खाने के बारे में पूछा.

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New Year 2022: मिनी की न्यू ईयर पार्टी- क्या प्लान बना रही थी मिनी

अगलेकुछ दिनों में कुछ होने वाला था. मैं चारों पैरों पर खड़ा हो कर ताकने की कोशिश कर रहा था. घर की चौकीदारी तो मेरा ही काम है न. हर जने की आवाज पहचानता हूं. मिनी की सारी सहेलियों को जानता हूं. मालिकमालकिन का दुलारा हूं और मिनी तो कई बार कह देती है कि मैं तीसरा बेटा हूं उन का. उन की बातें चाहे समझ न आएं पर चेहरा तो पढ़ ही सकता हूं न.

‘‘मिनी, घर पर दोस्तों का जमघट न लगा लेना. अंजलि या रिया को बुलाना हो तो सोने के लिए बुला लेना और किसी को नहीं.’’

‘‘ओह मम्मी, मैं छोटी बच्ची थोड़े ही हूं. औफिस जाने लगी हूं. सचमुच इतनी हिदायतें देने की जरूरत है क्या?’’

शेखर ने फौरन मिनी को हमेशा की तरह पुचकारा, ‘‘माया, मिनी बड़ी हो गई है, यह जानती है कैसे रहना है. न्यू ईयर का समय है, बच्चे भी तो ऐंजौय करेंगे. जब हम दोनों बाहर जा रहे हैं तो यह भी घर में अकेली क्यों रहे… दोस्त आ भी जाएंगे तो बुरा क्या है?’’

‘‘मेरे सामने इस के फ्रैंड्स आते ही हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं पर मेरे पीछे से आने में मुझे चिंता रहती है, साफ बात है. राहुल भी दोस्तों के साथ गोवा चला गया वरना परेशानी की कोई बात ही न होती.’’

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मिनी ने अब लाड़ से माया के गले में हाथ डाल दिया, ‘‘ओके मम्मी. आप आराम से जाओ… जमघट नहीं लगेगा. खुश?’’

माया ने भी मिनी का गाल चूम लिया. मैं वहीं खड़ा यह रोचक दृश्य देख रहा था. शेखर ने मेरे सिर पर हाथ फेरा तो मैं भी पूंछ हिलाता हुआ उन से लिपट गया.

शेखर और माया हर साल तो न्यू ईयर पर मुंबई में घर पर ही रहते थे पर इस बार माया को न्यू ईयर पर कुछ दोस्तों के साथ गोवा जाना था.

राहुल भी औफिस से छुट्टी ले कर गोवा जा चुका है. उसे वैसे भी कोई ज्यादा रोकताटोकता नहीं है. अब यह मिनी… शैतान लड़की… हर साल न्यू ईयर पार्टी अंजलि के घर होती है. वहीं सब बच्चे इकट्ठा होते हैं. मिनी की एक बात मुझे पसंद है. उसे बाहर से अच्छा अपने घर पर दोस्तों के साथ समय बिताना पसंद है. उस में भी माया मना कर रही है. गलत बात है. बस, न्यू ईयर पर मिनी अंजलि के घर न चली जाए वरना मैं अकेला रह जाऊंगा. वैसे आज तक अकेला नहीं रहा.

शेखर और माया चले गए. मिनी ने मुझे गोद में बैठा लिया. लिपट गई मुझ से. कैसे जान लेती है न मेरे मन की बात. बोली, ‘‘डौंट वरी बडी, तू अकेला नहीं रहेगा. मैं कहीं नहीं जाऊंगी. घर पर पार्टी करेंगे.’’

मैं मन ही मन हंसा. बडी नाम रखा था मिनी ने मेरा. अपना नाम पसंद है मुझे. मिनी सोफे पर पसर गई. मैं भी वहीं फर्श पर लेट गया. उस ने फोन स्पीकर पर रखा और चहकी, ‘‘अंजलि, गुड न्यूज. न्यू ईयर पार्टी इस बार मेरे घर पर.’’

‘‘अरे वाह, अंकलआंटी गए?’’

‘‘हां. बोल, किसेकिसे बुलाना है?’’

‘‘वही अपना पूरा ग्रुप.’’

‘‘ठीक है, डिनर और्डर करेंगे, मूवी देखेंगे… सब शाम को आ जाओ. तुम ही सब से बात कर लो.’’

मेरे कान खड़े हुए मूवी. ओह, यह मिनी की बच्ची फिर ‘ओम शांति ओम’ लगाएगी. इतनी बड़ी फैन जो है शाहरूख की. इस का मूड अच्छा हो तो यही मूवी देखती है. चलो ठीक है. शेखर और माया के हर साल के टीवी के न्यू ईयर के प्रोग्राम से तो अच्छा ही कटेगा मेरा समय.

उन दोनों की टीवी की पसंद के प्रोग्राम से परेशान हो चुका हूं. जब से शेखर रिटायर हुए हैं पूरा दिन दोनों ‘सावधान इंडिया’ या ‘क्राइम पैट्रोल’ देखते हैं. उस के बाद दोनों बातें भी वैसी ही करने लगे हैं. देखा था न, अभी जाते हुए मिनी को कैसे समझा रहे थे कि जमाना खराब है, कोई किसी का नहीं, दोस्त ही दुश्मन होते हैं, किसी पर भी विश्वास नहीं करना वगैरावगैरा.

वह तो अच्छा है मिनी एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल रही थी. यह क्राइम पैट्रोल का ज्ञान है, मिनी जानती है वरना तो पार्टी हो ही न पाती. इस के दोस्त तो बहुत अच्छे हैं. जब भी आते हैं कैसा यंग माहौल हो जाता है. वाह, आज की रात धमाल रहेगा… मजा आएगा. अभी सो लेना चाहिए.

जैसे ही आंख लगी, मिनी संजय के साथ मेन्यू डिस्कस करने लगी, शेखर और माया घर पर नहीं होते तो मिनी का फोन स्पीकर पर रहता है, इसलिए मैं सब आराम से सुनता हूं. राहुल भी स्पीकर पर रखता है. उस की भी सब बातें मुझे पता हैं. गोवा दोस्तों के साथ नहीं गया है गर्लफ्रैंड प्रीति के साथ गया है और यह सिर्फ मैं जानता हूं. बडी सब जानता है.

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मिनी जोरशोर से पार्टी की तैयारी में लग गई है. न… न… कामवाम में नहीं, बस सोफे पर लेट कर फोन करने में. मिनी का बस चले तो पार्टी भी सोफे पर लेट कर निबटा लें. लेट कर फोन पर वीडियो, शो देखना या कोई किताब पढ़ना उस का शौक है पर बहुत मस्ती है उस में… मूड अच्छा हो तो मुझे बैठने ही नहीं देगी… इतना खेलेगी… क्या खेलती है? बताऊं? बुद्धू बनाती है मुझे.

इसी सोफे पर लेटीलेटी बारबार बौल फेंकती रहती है और

‘बडी जाओ, बौल लाओ… शाबाश’ कहती रहती है. कभी इधर फेंकेंगी, कभी उधर… कभी डाइनिंग टेबल के नीचे तो कभी सोफे के नीचे… पागल बनाती है पर मजा भी आता है. मुंबई के इन फ्लैट्स में यही खेल सकते हैं.

मिनी खाने का और्डर दे रही है. मेरे कान खड़े हो गए. यहां घर में सब वैजिटेरियन हैं, राहुल कभीकभी मेरे लिए कुछ नौनवैज पैक करवा लाता है. किसी को पता नहीं है कि वह बाहर नौनवैज खाने लगा है. बस, मुझे पता है. मुझे स्मैल आ जाती है कि जनाब बाहर नौनवैज उड़ा कर आए हैं. हां, तो जिस दिन राहुल मेरे लिए नौनवैज पैक करवा कर लाता है, अपनी पार्टी हो जाती है. वैसे माया के हाथ की सादी दाल और रोटी में भी स्वाद है पर रोजरोज… चेंज मुझे भी चाहिए.

मिनी फाइनल कर रही है… पिज्जा, चिकन बिरयानी, वेज बिरयानी, कोल्ड ड्रिंक्स, आइसक्रीम… मुझे खास इंट्रैस्ट नहीं आया. खैर, चिकन बिरयानी चलेगी. दालरोटी से तो बैटर ही रहेगी.

मिनी मेरे ऊपर गिरती हुए लिपट गई. हो गई इस की मस्ती शुरू. ‘‘बडी, पार्टी है. मजा आएगा… तेरे लिए चिकन बिरयानी, ठीक है?’’

मैं ने पूंछ हिला दी. हंसा, मिनी का हाथ चाट लिया.

‘‘चल, अब लंच करते हैं, फिर सोएंगे, शाम को फिर फ्रैश रहेंगे.’’

मिनी हम दोनों का खाना ले आई. दाल में भिगो कर रोटी के टुकड़े मेरे बरतन में मुझे दिए, खुद भी अपनी प्लेट ले कर बैठ गई. मिनी कुछ चीजों में सीधी है… जो भी माया बनाती है, चुपचाप खा लेती है. राहुल को खिला कर देखो दाल और रोटी, देखते ही कहता है कि क्या मैं बीमार हूं मां? उस समय मुझे जोर से हंसी आती है.

खाना खा कर हम दोनों सोने चले गए. बहुत सालों बाद दिन में 2 घंटे जम कर सोया, यह नींद रोज मेरे नसीब में कहां. ‘सावधान इंडिया’ और ‘क्राइम पैट्रोल’ की आवाजें सुनी हैं कभी? हर कोने में छिप कर लेट कर देख लिया… सो नहीं पाता.

शाम को मिनी मुझे बाहर घुमाने ले गई. सोसायटी की आंटियां मिनी से पूछ रही हैं कि और मिनी,

न्यू ईयर पार्टी कहां है? और शैतान मिनी कितना भोला मुंह बना कर कह रही है, ‘‘पार्टी नहीं है आंटी, घर पर ही हूं.’’

ये माया की सहेलियां हैं न… ये आंटियां नहीं, रिपोर्टर होती हैं. मिनी नहाधो कर तैयार हो रही है. दोस्तों के फोन आते रहे. सब खुश हैं… पार्टी के लिए एक घर खाली मिल गया है. 8 बजे सब आ गए. संजय, अंजलि, रोमा, टोनी, मयंक, रिया, नेहा, आरती… सब अच्छे लगते हैं मुझे.

टोनी ने पहला काम जमीन पर ही बैठ कर मुझ से खेलने का किया, ‘‘हैलो बडी, मिस यू यार.’’

यही कहता है वह हमेशा. मैं ने भी कहा, ‘‘मिस यू टू, तुम सब जल्दी आया करो… पर बोल नहीं पाता तो मेरी बात तो मुंह में ही रह जाती है न. सब मुझे ‘हैलो बडी’ कह कर प्यार कर रहे थे.’’

सैल्फी की शौकीन आरती ने सब से पहले मेरे साथ कई फोटो लिए, मैं ने भी

अच्छे पोज दिए, मुझे तो आदत हो गई है. राहुल व मिनी के सारे दोस्त मेरे साथ सैल्फी लेते हैं. तब मुझे स्टार जैसा फील होता है.

9 बजे तक खाने की डिलिवरी हो गई, रोमा ने कहा, ‘‘सुनो, खाना गरम है. पहले खा लें?’’

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मिनी की चिंता सब से अलग होती है. बोली, ‘‘रातभर पार्टी करेंगे. दोबारा भूख लग आई तो?’’

संजय ने कहा, ‘‘न्यू ईयर का टाइम है, फिर मंगवा लेंगे.’’ खाने के पैकेट खुल गए. मेरे बरतन में सब से पहले मिनी ने चिकन बिरयानी परोसी. थैंक्यू मिनी, कहते हुए मैं टूट पड़ा. बहुत बढि़या सारी खत्म कर दी. सब बच्चे ड्राइंगरूम में खा रहे थे.

मयंक ने पूछा, ‘‘बडी पिज्जा चाहिए?’’

मैं वहां से हट गया. बिरयानी के बाद पिज्जा कौन खाएगा. मुंह का स्वाद अच्छा था.

मिनी सब को समझा रही थी, ‘‘सुनो, सब लोग प्लीज 1-1 चीज कूड़ेदान में डालना…’’ सब अपनेअपने बरतन धोपोंछ कर रखना. मम्मी को बताना नहीं है कि हम ने पार्टी की है. उन के सामने पार्टी हो तो उन्हें ठीक लगता है. उन के पीछे से पार्टी हो तो उन्हें चिंता हो जाती है कि पता नहीं क्याक्या होता होगा.

रिया ने कहा, ‘‘डौंट वरी, हम सब संभाल लेंगे.’’ 10 बजे तक धीरेधीरे खाते हुए सब ने मजेदार गप्पें मारीं. कितनी अलग है इन की दुनिया. हलकीफुलकी मजेदार बातें… मूवीज की, नए गानों की… अपनेअपने औफिस की मजेदार बातें. मुझे यह साफ समझ आया कि संजय रिया का बौयफ्रैंड है, टोनी आरती का. बस, बाकी सब में अच्छी मजबूत दोस्ती है. सब ने मिल कर 1-1 चीज समेट दी.

मिनी ने कहा, ‘‘सुबह 8 बजे तक सब चले जाना वरना 9 बजे लता आंटी काम के लिए आएंगी… वे मम्मी को सब बता देंगी.’’

‘‘हांहां, डौंट वरी. आज पार्टी के लिए घर मिल गया, इतना बहुत है. न्यू ईयर पर होटलों की वेटिंग बहुत लंबी रहती है. अब आराम से खाना तो खाया… अब टाइमपास करेंगे.’’

मिनी बोली, ‘‘चलो, मूवी देखें कोई.’’

मेरे कान खड़े हो गए. कोई मूवी क्या? यह पक्का ‘ओम शांति ओम’ लगाएगी, इस का अच्छा मूड हो और यह यह मूवी न देखे… डायलौग रट गए हैं मुझे. सब अपनीअपनी पसंद बताने लगे, मैं आराम से बैठ गया, जानता हूं किसी की नहीं चलेगी. मिनी शाहरूख के अलावा किसी की मूवी नहीं देखेगी. 20 मिनट बाद तय हुआ कि ‘ओम शांति ओम’ देखी जाएगी.

देखा? वही हुआ जो मुझे सुबह से पता था. शैतान मिनी. हमेशा कैसे भोली सूरत बना कर अपनी बात मनवा लेती है… प्यारी है, दोस्त

प्यार करते हैं उसे. मूवी का नाम सुनते ही मैं मालिक और मालकिन के बैड के नीचे घुस

कर यह सोच कर लेट गया. शायद वहां आवाज कम आए.

टोनी आवाज देने लगा, ‘‘बडी आओ, मूवी देखें… कहां हो यार?’’

मैं ने कहा, ‘‘रहने दो भाई, तुम ही देख लो, तुम ने शायद एक बार ही देखी होगी… मुझे बख्शो. मैं मिनी के साथ ही रहता हूं.’’

मयंक भी आवाज दे रहा है, ‘‘कम,

बडी कम.’’

‘‘ओह, जाना पड़ेगा. कोई बुलाता है तो जाना ही पड़ता है. मैं ड्राइंगरूम में बच्चों के पास जा कर खड़ा हो गया. मयंक ने मुझे अपने से लिपटा लिया, ‘‘आओ, बडी, मूवी देखेंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘मुझे एक भी सीन नहीं देखना इस मूवी का. मुझे पूरी मूवी रट गई है, अब तो मिनी के अच्छे मूड से डर लगने लगा है. मुझे माफ करो.’’

अजी कहां, मिनी ने मेरे पास फर्श पर ही अपना तकिया रख लिया. लेट गई. बोली, ‘‘आ जा बडी, तेरे बिना मूवी देखने में मुझे मजा नहीं आता.’’

अब तो कहीं छिप कर बैठ नहीं सकता न. मूवी शुरू हो गई. मैं आंखें बंद किए लेटा तो था पर कानों में डायलौग तो पड़ने ही थे. अगर शाहरूख खान की मूवी के डायलौग का इम्तिहान हो तो मैं ही फर्स्ट आऊंगा और मिनी को श्रेय दूंगा. 12 बजने में 2 मिनट पर टीवी बंद कर दिया गया. फिर हैप्पी न्यू ईयर के शोर से ड्राइंगरूम गूंज उठा. सब एक दूसरे के गले मिल रहे थे. मुझे भी सब ने हैप्पी न्यू ईयर कहा. बच्चों में मैनर्स हैं.

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रोमा चिल्लाते हुए बोली, ‘‘अब थोड़ा डांस हो जाए.’’

मुझे पता है रोमा को डांस का शौक है. एक दिन बता रही थी कि उस ने डांस क्लास जौइन की है. मैं तो बहुत किनारे जा कर बैठ गया. डांस तो देखना था. मुझे इन बच्चों का डांस देखने में मजा आता है. ड्राइंगरूम का फर्नीचर एक तरफ कर जगह बना ली गई. मुझे पता था मिनी कौन सा म्यूजिक लगाएगी, यही तो सुनती है आजकल. बादशाह के गाने…

वैसे उसे और कर्णप्रिय मधुर गाने भी पसंद हैं पर फिर वही बात, उस का मूड अच्छा हो तो आप शाहरूख की मूवीज और बादशाह के गानों से बच ही नहीं सकते. बच्चे बढि़या डांस कर रहे हैं. यह टोनी… थोड़ा मोटा है पर डांस अच्छा कर लेता है. सब रोमा के स्टैप कौपी कर रहे हैं. वह सीखती है न, सब को नएनए स्टैप बता रही है हमारी मिनी. उसे किसी के डांस से मतलब नहीं. उस का अपना ही डांस होता है. कोई उसे तो कौपी कर ही नहीं सकता. कुछ भी करती है, अच्छा करती है.

अब डांस शुरू हो गया तो जल्दी नहीं रुकेगा. बीचबीच में कोल्ड ड्रिंक पी जाती, फिर शुरू हो जाते. 3 बजे तक डांस किया सब ने. बहुत मजा आया. वैसे तो मिनी माया के बताए घर के 2 काम करने में थक जाती है, पर इस समय देखो, अच्छा है… बच्चे मेरे सामने हैं. अच्छी पार्टी है. नहीं तो हर बार न्यू ईयर पर टीवी के बोरिंग प्रोग्राम.

डांस के बाद जिसे जो जगह समझ आई, वहीं सो गया. मिनी के बैड पर 3

लड़कियां… बाकी नीचे चादर बिछा कर सो गईं. शेखर व माया के बैडरूम में लड़के सो गए. सब इंतजाम देख मैं भी ड्राइंगरूम में फर्श पर बिछे अपने बैड पर सो गया. टोनी सोफे पर ही लेटा था, उस के खर्राटों से मेरी नींद खुलती रही. सब को पता था टोनी खर्राटे लेता है, इसलिए उसे सोफे पर सुलाया गया था, पर मैं तो फंस गया न.

मिनी के 7 बजे के अलार्म से भगदड़ सी मची. मिनटों में पूरा घर जैसे था वैसे व्यवस्थित कर दिया गया. एक बार फिर एकदूसरे को हैप्पी न्यू ईयर कहते हुए सब अपनेअपने घर चले गए. मिनी मुझे बाहर घुमा लाई. फिर लताबाई आ गई. मिनी ने लताबाई को भी न्यू ईयर विश किया. लता बाई ने पूछा, ‘‘मिनी, घर पर ही थी? कहीं गई नहीं? फ्रैंड्स लोग आए क्या?’’

‘‘नहीं, आंटी.’’

‘‘पार्टी नहीं की?’’

‘‘नहीं आंटी,’’ मिनी ने मुझे आंख मारते हुए ताली दी तो मैं ने भी आंख मारते हुए अपना पंजा उठा दिया.

‘‘ओह बडी, आई लव यू,’’ मिनी मुझ से लिपट गई, ‘‘लव यू टू, मिनी.’’

मिनी ने मेरे कान में पूछा, ‘‘बडी, मजा आया न पार्टी में?’’

‘‘हां, बहुत,’’ मैं ने जोरजोर से अपनी पूंछ हिला दी. युवा कहकहों से गूंजते घर में, हंसतेखेलते, डांस देखते मेरे नए साल की शुरुआत काफी अच्छी थी.

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इंग्लिश रोज: भाग 1- क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

वह आज भी वहीं खड़ी है. जैसे वक्त थम गया है. 10 वर्ष कैसे बीत जाते हैं…? वही गांव, वही शहर, वही लोग…यहां तक कि फूल और पत्तियां तक नहीं बदले. ट्यूलिप्स, सफेद डेजी, जरेनियम, लाल और पीले गुलाब सभी उस की तरफ ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे उस की निगाह को पहचानते हों. चौश्चर काउंटी के एक छोटे से गांव नैनटविच तक सिमट कर रह गई उस की जिंदगी. अपनी आरामकुरसी पर बैठ वह उन फूलों का पूरा जीवन अपनी आंखों से जी लेती है. वसंत से पतझड़ तक पूरी यात्रा. हर ऋतु के साथ उस के चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, कभी उदासी, कभी मुसकराहट. उदासी अपने प्यार को खोने की, मुसकराहट उस के साथ समय व्यतीत करने की. उसे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि सभी के जीवन का लेखाजोखा प्रकृति के हाथ में ही है. समय के साथसाथ वह सब के जीवन की गुत्थियां सुलझाती जाती है. वह संतुष्ट थी. बेशक, प्रकृति ने उसे, क्वान्टिटी औफ लाइफ न दी हो किंतु क्वालिटी औफ लाइफ तो दी ही थी, जिस के हर लमहे का आनंद वह जीवनभर उठा सकेगी.

यह भी तो संयोग की ही बात थी, तलाक के बाद जब वह बुरे वक्त से निकल रही थी, उस की बड़ी बहन ने उसे छुट्टियों में लंदन बुला लिया था. उस की दुखदाई यादों से दूर नए वातावरण में, जहां उस का मन दूसरी ओर चला जाए. 2 महीने बाद लंदन से वापसी के वक्त हवाईजहाज में उस के साथ वाली कुरसी पर बैठे जौन से उस की मुलाकात हुई. बातोंबातों में जौन ने बताया कि रिटायरमैंट के बाद वे भारत घूमने जा रहे हैं. वहां उन का बचपन गुजरा था. उन के पिता ब्रिटिश आर्मी में थे. 10 वर्ष पहले उन की पत्नी का देहांत हो गया. तीनों बच्चे शादीशुदा हैं. अब उन के पास समय ही समय है. भारत से उन का आत्मीय संबंध है. मरने से पहले वे अपना जन्मस्थान देखना चाहते हैं, यह उन की हार्दिक इच्छा है. उन्होंने फिर उस से पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘मैं भारत में ही रहती हूं. छुट्टियों में लंदन आई थी.’’

‘‘मैं भारत घूमना चाहता हूं. अगर किसी गाइड का प्रबंध हो जाए तो मैं आप का आभारी रहूंगा,’’ जौन ने निवेदन करते कहा.

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‘‘भाइयों से पूछ कर फोन कर दूंगी,’’ विधि ने आश्वासन दिया. बातोंबातों में 8 घंटे का सफर न जाने कैसे बीत गया. एकदूसरे से विदा लेते समय दोनों ने टैलीफोन नंबर का आदानप्रदान किया. दूसरे दिन अचानक जौन सीधे विधि के घर पहुंच गए. 6 फुट लंबी देह, कायदे से पहनी गई विदेशी वेशभूषा, काला ब्लेजर और दर्पण से चमकते जूते पहने अंगरेज को देख कर सभी चकित रह गए. विधि ने भाइयों से उस का परिचय करवाते कहा, ‘‘भैया, ये जौन हैं, जिन्हें भारत में घूमने के लिए गाइड चाहिए.’’

‘‘गाइड? गाइड तो कोई है नहीं ध्यान में.’’

‘‘विधि, तुम क्यों नहीं चल पड़ती?’’ जौन ने सुझाव दिया. प्रश्न बहुत कठिन था. विधि सोच में पड़ गई. इतने में विधि का छोटा भाई सन्नी बोला, ‘‘हांहां, दीदी, हर्ज की क्या बात है.’’

‘‘थैंक्यू सन्नी, वंडरफुल आइडिया. विधि से अधिक बुद्धिमान गाइड कहां मिल सकता है,’’ जौन ने कहा. 2 सप्ताह तक दक्षिण भारत के सभी पर्यटन स्थलों को देखने के बाद दोनों दिल्ली पहुंचे. उस के एक सप्ताह बाद जौन की वापसी थी. जाने से पहले तकरीबन रोज मुलाकात हो जाती. किसी कारणवश जौन की विधि से बात न हो पाती तो वह अधीर हो उठता. उस की बहुमुखी प्रतिभा पर जौन मरमिटा था. वह गुणवान, स्वाभिमानी, साहसी और खरा सोना थी. विधि भी जौन के रंगीले, सजीले, जिंदादिल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई. उस की उम्र के बारे में सोच कर रह जाती. जौन 60 वर्ष पार कर चुका था. विधि ने अभी 35 वर्ष ही पूरे किए थे. लंदन लौटने से 2 दिन पहले, शाम को टहलतेटहलते भरे बाजार में घुटनों के बल बैठ कर जौन ने अपने मन की बात विधि से कह डाली, ‘‘विधि, जब से तुम से मिला हूं, मेरा चैन खो गया है. न जाने तुम में ऐसा कौन सा आकर्षण है कि मैं इस उम्र में भी बरबस तुम्हारी ओर खिंचा आया हूं.’’ इस के बाद जौन ने विधि की ओर अंगूठी बढ़ाते हुए प्रस्ताव रखा, ‘‘विधि, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

विधि निशब्द और स्तब्ध सी रह गई. यह तो उस ने कभी नहीं सोचा था. कहते हैं न, जो कभी खयालों में हमें छू कर भी नहीं गुजरता, वो, पल में सामने आ खड़ा होता है. कुछ पल ठहर कर विधि ने एक ही सांस में कह डाला, ‘‘नहींनहीं, यह नहीं हो सकता. हम एकदूसरे के बारे में जानते ही कितना हैं, और तुम जानते भी हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’ ‘‘हांहां, भली प्रकार से जानता हूं, क्या कह रहा हूं. तुम बताओ, बात क्या है? मैं तुम्हारे संग जीवन बिताना चाहता हूं.’’ विधि चुप रही.

जौन ने परिस्थिति को भांपते कहा, ‘‘यू टेक योर टाइम, कोई जल्दी नहीं है.’’ 2 दिनों बाद जौन तो चला गया किंतु उस के इस दुर्लभ प्रश्न से विधि दुविधा में थी. मन में उठते तरहतरह के सवालों से जूझती रही, ‘कब तक रहेगी भाईभाभियों की छत्रछाया में? तलाकशुदा की तख्ती के साथ क्या समाज तुझे चैन से जीने देगा? कौन होगा तेरे दुखसुख का साथी? क्या होगा तेरा अस्तित्व? क्या उत्तर देगी जब लोग पूछेंगे इतने बूढ़े से शादी की है? कोई और नहीं मिला क्या?’ इन्हीं उलझनों में समय निकलता गया. समय थोड़े ही ठहर पाया है किसी के लिए. दोनों की कभीकभी फोन पर बात हो जाती थी एक दोस्त की तरह. कालेज में भी खोईखोई रहती. एक दिन उस की सहेली रेणु ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘विधि, जौन के जाने के बाद तू तो गुमसुम ही हो गई. बात क्या है?’’

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‘‘जाने से पहले जौन ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था.’’

‘‘पगली…बात तो गंभीर है पर गौर करने वाली है. भारतीय पुरुषों की मनोवृत्ति तो तू जान ही चुकी है. अगर यहां कोई मिला तो उम्रभर उस के एहसानों के नीचे दबी रहेगी. उस के बच्चे भी तुझे स्वीकार नहीं करेंगे.

जौन की आंखों में मैं ने तेरे लिए प्यार देखा है. तुझे चाहता है. उस ने खुद अपना हाथ आगे बढ़ाया है. अपना ले उसे. हटा दे जीवन से यह तलाक की तख्ती. तू कर सकती है. हम सब जानते हैं कि बड़ी हिम्मत से तू ने समाज की छींटाकशी की परवा न करते हुए अपने पंथ से जरा भी विचलित नहीं हुई. समाज में अपना एक स्थान बनाया है. अब नए रिश्ते को जोड़ने से क्यों हिचकिचा रही है. आगे बढ़. खुशियों ने तुझे आमंत्रण दिया है. ठुकरा मत, औरत को भी हक है अपनी जिंदगी बदलने का. बदल दे अपनी जिंदगी की दिशा और दशा,’’ रेणु ने समझाते हुए कहा. ‘‘क्या करूं, अपनी दुविधाओं के क्रौसरोड पर खड़ी हूं. वैसे भी, मैं ने तो ‘न’ कर दी है,’’ विधि ने कहा. ‘‘न कर दी है, तो हां भी की जा सकती है. तेरा भी कुछ समझ में नहीं आता. एक तरफ कहती है, जौन बड़ा अलग सा है. मेरी बेमानी जरूरतों का भी खयाल रखता है. बड़ी ललक से बात करता है. छोटीछोटी शरारतों से दिल को उमंगों से भर देता है. मुझे चहकती देख कर खुशी से बेहाल हो जाता है. मेरे रंगों को पहचानने लगा है. तो फिर झिझक क्यों रही है?’’

‘‘उम्र देखी है? 60 वर्ष पार कर चुका है. सोच कर डर लगता है, क्या वह वैवाहिक सुख दे पाएगा मुझे?’’ ‘‘आजमा कर देख लेती? मजाक कर रही हूं. यह समय पर छोड़ दे. यह सोच कि तेरी आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. तेरा अपना घर होगा जहां तू राज करेगी. ठंडे दिमाग से सोचना…’’ ‘‘डर लगता है कहीं विदेशी चेहरों की भीड़ में खो तो नहीं जाऊंगी. धर्म, सोच, संस्कृति, सभ्यता, कुछ भी तो नहीं है एकजैसा हमारा. फिर इतनी दूर…’’ ‘‘प्रेम उम्र, धर्म, भाषा, रंग और जाति सभी दीवारों को गिराने की शक्ति रखता है. मेरी प्यारी सखी, प्यार में दूरियां भी नजदीकियां हो जाती हैं. अभी ईमेल कर उसे, वरना मैं कर देती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं खुद ही कर लूंगी,’’ विधि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘डियर जौन,

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इंग्लिश रोज: भाग 2- क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

मैं ने आप के प्रस्ताव पर विचार किया. कोई भी नया रिश्ता जोड़ने से पहले एकदूसरे के बीते जीवन के बारे में जानना बहुत जरूरी है. ऐसी मेरी सोच है. 10 वर्ष पहले मेरा विवाह एक बहुत रईस घर में संपन्न हुआ. मेरी ससुराल का मेरे रहनसहन, सोचविचार और संस्कारों से कोई मेल नहीं था. वहां के तौरतरीकों के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी. वहां मुझे लगा कि मैं चूहेदानी में फंस गई हूं. मेरे पति शराब और ऐयाशी में डूबे रहते थे. शराब पी कर वे बेलगाम घुड़साल के घोड़े की तरह हो जाते थे, जिस का मकसद सवार को चोट पहुंचाना था. ऐसा हर रोज का सिलसिला था. हर रात अलगअलग औरतों से रंगरेलियां मनाते थे.

धीरेधीरे बात यहां तक पहुंच गई कि वे ग्रुपसैक्स की क्रियाओं में भाग लेने लगे. जबरदस्ती मुझ से भी औरों के साथ हमबिस्तर होने की अपेक्षा करने लगे. उन के अनुकूल उन की बात मानते जाओ तो ठीक था वरना कहते, ‘हम मर्द अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे औरतों को अपने हिसाब से रखा जाए.’ ‘‘एक साधारण सी लड़की के लिए कितना कठिन था यह. एक दिन जब मैं ने किसी और के साथ हमबिस्तर होने से इनकार किया तो मुझे घसीट कर सामने बिठा कर सबकुछ देखने को मजबूर कर दिया. उस दिन मैं ने बरदाश्त की सभी सीमाएं लांघ कर उन के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया और सामान उठा कर भाई के घर चली आई. पैसे और मनगढ़ंत कहानियों के बल पर मेरा बेटा उन्होंने अपने पास रख लिया. उस दिन के बाद आज तक मैं अपने बेटे को देख नहीं पाई. अब सबकुछ जानते हुए भी आप तैयार हैं तो आप मेरे बड़े भाईसाहब अजय से बात करें.’’

‘‘आप की विधि’’

विधि का ईमेल पढ़ कर जौन नाचने लगा. तुरंत ही उस ने उत्तर दिया,

‘‘मेरी प्यारी विधि,

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बस, इतनी सी बात से परेशान हो. जीवन में हादसे सभी के साथ होते हैं. मैं ने तो तुम से पूछा तक नहीं. तुम ने बता दिया तो मेरे मन में तुम्हारे लिए इज्जत और बढ़ गई. मेरी जान, मैं ने तुम्हें चाहा है. मैं स्त्री और पुरुष की समानता में विश्वास रखता हूं. तुम मेरी जीवनसाथी ही नहीं, पगसाथी भी होगी. जिन खुशियों से तुम वंचित रही हो, मैं उन की भरपाई की पूरी कोशिश करूंगा. मैं अगली फ्लाइट से दिल्ली पहुंच रहा हूं.

‘‘प्यार सहित

‘‘तुम्हारा जौन.’’

वह दिल्ली आ पहुंचा. होटल में विधि के बड़े भाईसाहब को बुला कर ईमेल दिखाते हुए उन से विधि का हाथ मांगा. भाईसाहब ने कहा, ‘‘शाम को तुम घर आ जाना.’’ पूरा परिवार बैठक में उस की प्रतीक्षा कर रहा था. जौन का प्रस्ताव सामने रखा गया. सभी हैरान थे. सन्नी तैश में आ कर बोला, ‘‘इतने बूढ़े से…? दिमाग खराब हो गया है क्या. जाहिर है विधि की उम्र के उस के बच्चे होंगे. अंगरेजों का कोई भरोसा नहीं.’’ बाकी बहनभाई भी सन्नी की बात से सहमत थे.

‘‘तुम ने क्या सोचा?’’ बड़े भाई अजय ने विधि से पूछा.

‘‘मुझे कोई एतराज नहीं,’’ उस ने कहा.

‘‘दीदी, होश में तो हो, क्या सचमुच सठियाए से शादी…?’’ विधि के हां करते ही अजय ने जौन को बुला कर कहा, ‘‘शादी तय करने से पहले हमारी कुछ शर्तें हैं. शादी हिंदू रीतिरिवाजों से होगी. उस के लिए तुम्हें हिंदू बनना होगा. हिंदू नाम रखना होगा. विवाह के बाद विधि को लंदन ले जाना होगा.’’ जौन को सब शर्तें मंजूर थीं. वह उत्तेजना से ‘आई विल, आई विल’ कहता नाचने लगा. पुरुष चहेती स्त्री को पाने का हर संभव प्रयास करता है. उस में साम, दाम, दंड, भेद सभी भाव जायज हैं. अच्छा सा मुहूर्त देख कर उन का विवाह संपन्न हआ. जौन लंदन से इमीग्रेशन के लिए जरूरी कागजात ले कर आया था. विधि का पासपोर्ट तैयार ही हो रहा था कि अचानक जौन के बेटे मार्क का ऐक्सिडैंट होने के कारण, जौन को विधि के बिना ही लंदन जाना पड़ा. जौन तो चला गया. विधि का मन बेईमान होने लगा. उसे घबराहट होने लगी. मन में अनेक प्रश्न उठने लगे. किसी से शिकायत भी तो नहीं कर सकती थी. 6 महीने से ऊपर हो गए. उधर जौन बहुत बेचैन था, चिंतित था. वह बारबार रेणु को ईमेल कर के पूछता. एक दिन हार कर रेणु विधि के घर आ ही पहुंची और उसे बहुत डांटा, ‘‘विधि, क्या मजाक बना रखा है, क्यों उस बेचारे को परेशान कर रही हो? तुम्हें पता भी है कितनी मेल डाल चुका है. कहतेकहते थक गया है कि आप विधि को समझाएं और कहें ‘डर की कोई बात नहीं है. मैं उसे पलकों पर बिठा कर रखूंगा.’ ‘‘अब गुमसुम क्यों बैठी हो. कुछ तो बोलो. यह तुम्हारा ही फैसला था. अब तुम्हीं बताओ, क्या जवाब दूं उसे?’’

‘‘मैं बहुत उलझन में हूं. परेशान हूं. खानापीना, उठनाबैठना बिलकुल अलग होगा. फिर उस के बच्चे…? क्या वे स्वीकार करेंगे मुझे…?’’

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‘‘विधि, तुम बेकार में भावनाओं के द्वंद्व में डूबतीउतरती रहती हो. यह तो तुम्हें वहीं जा कर पता लगेगा. हम सब जानते हैं, तुम हर स्थिति को आसानी से हैंडल कर सकती हो. ऐसा भी होता है  कभीकभी सबकुछ सही होते हुए भी, लगता है कुछ गलत है. तू बिना कोशिश किए पीछे नहीं मुड़ सकती. चिंता मत कर. अभी जौन को मेल करती हूं कि तुझे आ कर ले जाए.’’ जौन को मेल करते ही एक हफ्ते में वह दिल्ली आ पहुंचा. 2 हफ्ते में विधि को लंदन भी ले गया. लंदन में घर पहुंचते ही जौन ने अंगरेजी रिवाजों के अनुसार विधि को गोद में उठा कर घर की दहलीज पार की. अंदर पहुंचते ही वह हतप्रभ रह गई. अकेले होते हुए भी जौन ने घर बहुत तरतीब और सलीके से रखा था. सुरुचिपूर्ण सजाया था. घर में सभी सुविधाएं थीं, जैसे कपड़े धोने की मशीन, ड्रायर, स्टोव, डिशवाशर और औवन…काटेज के पीछे एक छोटा सा गार्डन था जो जौन का प्राइड ऐंड जौय था. पहली ही रात को जौन ने विधि को एक अनमोल उपहार देते हुए कहा, ‘‘विधि, मैं तुम्हें क्रूर संसार की कोलाहल से दूर, दुनिया के कटाक्षों से हटा कर अपने हृदय में रखने के लिए लाया हूं. तुम से मिलने के बाद तुम्हारी मुसकान और चिरपरिचित अदा ही तो मुझे चुंबक की तरह बारबार खींचती रही है और मरते दम तक खींचती रहेगी. मैं तुम्हें इतना प्यार दूंगा कि तुम अपने अतीत को भूल जाओगी. मैं तुम्हारा तुम्हारे घर में स्वागत करता हूं.’’ इतना कह कर जौन ने उसे सीने से लगा लिया और यह सब सुन कर विधि की आंखों में खुशी के आंसू छलकने लगे.

ऐसे प्रेम का एहसास उसे पहली बार हुआ था. धीरेधीरे वह जान पाई कि जौन केवल गोराचिट्टा, ऊंचे कद का ही नहीं, वह रोमांटिक, सलोना, जिंदादिल, शरारती और मस्त इंसान है जो बातबात में किसी को भी अपना बनाने का हुनर जानता है. उस का हृदय जीवन की आकांक्षाओं से धड़क उठा. जौन ने उसे इतना प्यार दिया कि जल्दी ही उस की सब शंकाएं दूर हो गईं. विधि उसे मन से चाहने लगी थी. दोनों बेहद खुश थे. वीकेंड में जौन के तीनों बच्चों ने खुली बांहों से विधि का स्वागत किया और अपने पिता के विवाह पर एक भव्य पार्टी दी. विधि अपने फैसले पर प्रसन्न थी. अब उस का अपना घर था. अलग परिवार था. असीम प्यार देने वाला पति. जौन ने घर की बागडोर उसी के हाथ में थमा दी थी. उसे प्यार करना सिखाया, उस का आत्मविश्वास जगाया यहां तक कि उसे पोस्टग्रेजुएशन भी करवा दिया. क्योंकि भीतर से वह जानता था कि उस के जाने के बाद विधि अपने समय का सदुपयोग कर सकेगी.

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