4 Tips: सही खानपान से कंट्रोल करें Thyroid

मोटापे के कई कारण हो सकते हैं. खानपान की आदतें, जीवनशैली, देर रात तक जागना और कई बार अनुवांशि‍क कारणों के चलते मोटापे की शि‍कायत हो जाती है. लेकिन कुछ ऐसे कारण भी होते हैं जिन पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता और ये समस्या भयानक रूप ले लेती है.

थायरॉइड एक ऐसी ही बीमारी है जिसमें वजन तेजी से बढ़ने लगता है और अगर समय रहते इसे कंट्रोल न किया जाए तो यह शुगर जैसी कई बीमारियों की वजह भी बन सकता है. इस बीमारी को थोड़ी सी सजगता और खानपान की सही आदतों को अपनाकर ठीक किया जा सकता है.

1. आयोडीन युक्त भोजन

रोगी को उन पदार्थों का सेवन करना चाहिए जिसमें आयोडीन की भरपूर मात्रा हो क्‍योंकि इसकी मात्रा थायरॉइड फंक्शन को प्रभावित करती है. सी फूड खासकर मछलियों में आयोडीन की मात्रा भरपूर होती है इसलिए इन्हें डाइट में शामिल करना न भूलें.

2. कॉपर और आयरन युक्त भोजन

कॉपर और आयरन युक्‍त आहार लें क्योंकि यह भी थायरॉइड फंक्‍शन को प्रभावित करते हैं. कॉपर की सबसे ज्‍यादा मात्रा काजू, बादाम और सूरजमुखी के बीज में होती है और हरे पत्‍तेदार सब्जियों में आयरन भरपूर मात्रा में होता है.

3. विटामिन और मिनरल्स

विटामिन और मिनरल्‍स युक्‍त चीजों को डाइट का हिस्सा बनाएं. यह थायरॉइड की अनियमितता में फायदेमंद होता है. पनीर, हरी मिर्च, टमाटर, प्‍याज, लहसुन, मशरूम में पर्याप्त मात्रा में विटामिन और लवण पाए जाते हैं.

4. कम वसा युक्त भोजन

कम वसा युक्‍त आहार का सेवन करें. इसके साथ ही गाय का दूध भी थायरॉइड के रोगी के लिए फायदेमंद होता है. खाना बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना भी फायदेमंद रहेगा.

थायरॉइड के रोगी क्या न खाएं?

1. सोया और उससे बनीं चीजों के सेवन से बचें.

2. जंक और फास्ट फूड का सेवन कम से कम करें.

3. ब्रोकली, गोभी जैसे सब्जियों के सेवन से बचें.

थायरॉइड के मरीजों को उचित आहार के साथ ही नियमित रूप से योग और व्यायाम भी करना चाहिए. थायरॉइड की समस्‍या होने पर रोगी को चिकित्‍सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए और उसी के अनुसार जीवशैली अपनानी चाहिए.

क्या स्पाइनल स्ट्रोक का इलाज सर्जरी के बिना हो सकता है?

सवाल-

मेरे ससुर की उम्र 58 साल है, उन्हें कुछ दिन पहले स्पाइनल स्ट्रोक आया था. डाक्टर ने सर्जरी कराने की सलाह दी है. क्या सर्जरी के बिना भी इस का उपचार संभव है?

जवाब-

स्पाइनल स्ट्रोक में स्पाइनल कार्ड की ओर रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है. स्पाइनल स्ट्रोक एक गंभीर स्थिति है और इस के लिए तुरंत उपचार की जरूरत होती है. अगर समस्या अधिक गंभीर नहीं है तो सूजन को कम करने, रक्त को पतला करने, रक्तदाब को कम करने और कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित करने वाली दवा से आराम मिल जाता है. आप के ससुर की स्थिति गंभीर होगी, इसलिए डाक्टर ने सर्जरी की सलाह दी है. सर्जरी से डरने की जरूरत नहीं है. मिनिमली इनवेसिव सर्जरी (एमईएस) तकनीक ने सर्जरी को बहुत आसान बना दिया है. इस में पारंपरिक सर्जरी की तुलना में परेशानियां कम होती हैं और अस्पताल में ज्यादा रुकने की जरूरत भी नहीं होती है.

पति को दोबारा ब्रेनस्ट्रोक आने का खतरा क्या ज्यादा है?

सवाल-

मेरे पति को पिछले महीने ब्रेन स्ट्रोक हुआ था. वे अभी पूरी तरह रिकवर नहीं हुए हैं. मैं ने सुना है दोबारा स्ट्रोक की चपेट में आने का खतरा काफी अधिक होता है?

जवाब-

यह सही है कि ब्रेन स्ट्रोक से रिकवर होने में काफी समय लगता है और अगर जरूरी सावधानियां न बरती जाएं तो दोबारा इस की चपेट में आने का खतरा काफी अधिक होता है. पहले सप्ताह में स्ट्रोक की पुन: चपेट में आने का खतरा 10-12% और पहले 3 महीनों में 20-25% होता है. डाक्टर के लगातार संपर्क में रहें और उन के द्वारा सुझई दवा नियत समय पर दें. उन्हें पूरी तरह बैड रैस्ट पर न रखें, बल्कि हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज करने या टहलने के लिए कहें. उन के खानपान का ध्यान रखें. संतुलित, सुपाच्य और पोषक भोजन खिलाएं.

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पक्षाघात यानी ब्रेन स्ट्रोक दिमाग के किसी भाग में ब्लड सप्लाई बाधित होने या कम होने से होता है. दिमाग में औक्सीजन और पोषक तत्त्वों की कमी से ब्लड वैसेल्स यानी रक्त वाहिकाओं के बीच ब्लड क्लोटिंग की वजह से उस की क्रियाएं बाधित होने लगती है, इस कारण दिमाग की पेशियां नष्ट होने लगती है जिस से दिमाग अपना नियंत्रण खो देता है, जिसे स्ट्रोक सा पक्षाघात कहते हैं. यदि इस का इलाज समय पर नहीं कराया जाए तो दिमाग हमेशा के लिए डैमेज हो सकता है. व्यक्ति की मौत भी हो सकती है.

आज विश्व में करीब 80 मिलियन लोग स्ट्रोक से ग्रस्त हैं, 50 मिलियन से ज्यादा लोग स्थाई तौर पर विकलांग हो चुके हैं. ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार 25% ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की उम्र 40 वर्ष है. इस बात को ध्यान में रखते हुए हर साल 29 अक्तूबर को ‘वर्ल्ड स्ट्रोक डे’ मनाया जाता है, जिस का उद्देश्य स्ट्रोक की रोकथाम, उपचार और सहयोग के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है.

मुंबई के अपैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के वरिष्ठ मस्तिष्क रोग स्पैशलिस्ट एवं न्यूरोलौजिस्ट डा. मोहिनीश भटजीवाले बताते हैं कि दुनियाभर में ब्रेन स्ट्रोक को मौत का तीसरा बड़ा कारण माना जा रहा है. केवल भारत में हर 1 मिनट में 6 लोगों की मौत हो रही है, क्योंकि यहां ब्रेन स्ट्रोक जैसी मैडिकल इमरजैंसी की स्थिति में इस के लक्षणों, कारणों, रोकथाम और तत्काल उपायों के प्रति जनजागरूकता का बहुत अभाव है जबकि ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों को तत्काल उपचार से उन के अच्छे होने के चांसेस 50 से 70% तक बढ़ जाते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जानें क्या है ब्रेन स्ट्रोक और क्या है इसका इलाज

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बढते स्तन के कारण कही आप परेशान तो नहीं, पढ़े यहां

महिलाओं को कई बार अचानक अपने ब्रेस्ट साइज में बड़ा बदलाव देखने को मिलता है. दरअसल, अचानक से यदि ब्रेस्ट का साइज बढ़ने लगे, तो महिलाएं शर्मिदा होने लगती है, लेकिन ये शर्मिदा होने वाली नहीं बल्कि बीमारी का संकेत होता है. मेडिकल की भाषा में इस समस्या को गिगेंटोमैस्टिया या ब्रेस्‍ट हाइपरट्रॉफी कहते हैं. ये एक दुर्लभ कंडीशन है, इसके सिर्फ कुछ ही मामले सामने आते हैं. हालांकि, इसके कारण अभी पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन फिर भी कुछ लक्षण और कारण ऐसे होते हैं, जिनसे इस समस्या का पता लगाया जा सकता है तो जानते हैं ब्रेस्ट के साइज के बड़े होने के कारण और लक्षण, साथ में इलाज को भी जान लेते है

आपको जानकार यह आश्चर्य होगा कि ब्रेस्ट एन्हांसमेंट को एक ब्यूटी समझी जाती है, अधिकतर सेलेब्स इसे करवाकर खुद को आकर्षक और सेक्सी बनाती है, जिसमें शिल्पा शेट्टी, बिपाशा बासु, कंगना रनौत, आयशा टाकिया, सुस्मिता सेन आदि कई अभिनेत्रियाँ है, जो खुद की सुन्दरता को बनाए रखने के लिए इस तरह की सर्जरी करवाती है. हालाँकि इसका ट्रेंड हॉलीवुड से आया है, जहाँ किमकार्दासिया ने ब्रैस्ट एन्हांसमेंट कर अपनी खूबसूरती में 4 चाँद लगवाए, लेकिन अगर जरुरत से ज्यादा स्तन बढने लगे, तो समझ लेना पड़ता है कि ये कोई बीमारी है

मुंबई की 17 साल की रौशनी को कम उम्र में अचानक स्तन का आकार बढ़ने लगा पहले उसने इस पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया, लेकिन कुछ दिनों बाद उसे इतनी समस्या होने लगी कि वह कॉलेज जाना अवॉयड करने लगी. पहले माँ को समझना मुश्किल था कि वह ऐसा क्यों कर रही है, पर बाद में बहुत पूछने पर पता चला, तो कॉस्मेटिक सर्जन के पास जाने पर डॉक्टर ने बताया कि ये ब्यूटी नही,गिगेंटोमैस्टियाएक बीमारी है, जिसके लिएदवा या सर्जरी करनी पड़ती है.

इसके अलावा, बहुत ज्‍यादा बड़े ब्रेस्‍ट के परिणामस्वरूप मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक समस्याएं हो सकती है.

असल में गिगेंटोमैस्टिया एक दुर्लभ बीमारी है, जो महिलाओं को प्रभावित करती है, जिसमें किशोर, गर्भावस्था और बढते उम्र में स्तन वृद्धि की समस्या दिखाई देती है.गिगेंटोमैस्टिया एक बहुत ही दुर्लभ बीमारी है, जहां ब्रेस्ट बहुत अधिक बढ़ जाते है. अपोलो स्पेक्ट्रा अस्पताल के ब्रेस्ट सर्जन डॉ. नीरजा गुप्ता ने ब्रेस्ट रिडक्शन सर्जरी ने मेडिकल लिटरेचर में अभी तक इसके केवल 200 मामले ही दर्ज किए गए है, ज्यादातर यह हार्मोन के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता के कारण होता है और कई बार गर्भावस्था के बाद स्तन वापस सामान्य आकार में नहीं आते है.कुछ लक्षण निम्न है,

लक्षण

  • ब्रेस्‍ट में दर्द
  • सिरदर्द
  • कंधे, पीठ और गर्दन में दर्द
  • खराब पोश्चर
  • ब्रेस्‍ट के नीचे त्वचा पर चकत्ते, संक्रमण या फोड़े
  • ब्रेस्‍ट एसिमिट्री (जब एक ब्रेस्‍ट दूसरे से बड़ा होता है)
  • अस्थायी या स्थायी नर्वस डैमेज
  • खेल खेलने या एक्‍सरसाइज करने में कठिनाई

अपने अनुभव के बारें में डॉ. नीरजा कहती है कि गिगेंटोमैस्टिया नामक इस दुर्लभ बीमारी से स्तन के बढ़ने के कारण दिल्ली में रहनेवाली एक 40 उम्र के निशा अरोड़ा को चलने में दिक्कत आ रही थी. 40 वर्षीय महिला के स्तन का आकार बढता जा रहा था. 5 साल पहले डिलिवरी के बाद यह समस्या अधिक होने लगी थी, लेकिन महिला ने इसे नजरअंदाज किया, बढते स्तन के कारण महिला को गर्दन और पीठ दर्द, कंधे में दर्द और चलने में कठिनाई होने लगी थी.डॉ गुप्ता आगे कहती है कि “गिगेंटोमैस्टिया एक जेंटल यानि सौम्य (गैर-कैंसरयुक्त) स्थिति है. यह बिमारी यौवन या फिर गर्भावस्था के दौरान हो सकती है. यह एक ऐसी स्थिती है, जिसमें स्तन का आकार बढता जाता है. यह एक या दोनों स्तनों को प्रभावित कर सकता है. स्तनों के बढ़ने से महिला का आत्मविश्वास कम होने लगता है.

कुछ कारण निम्न है,

  • फीटस की खराब वृद्धि
  • सहज गर्भपात
  • मास्टिटिस (ब्रेस्‍ट संक्रमण)

इलाज

डॉ गुप्ता ने कहा, “गिगेंटोमैस्टिया के इलाज के लिए सबसे प्रभावी तरीका दवा और सर्जरी है, लेकिन इसमें सर्जरी फायदेमंद साबित हो सकती है. सर्जरी करने से पहले मैमोग्राम, यूएसजी, स्तनों का एमआरआई, सीरम थायरॉयड फंक्शन टेस्ट, सीरम प्रोलैक्टिन, ऑस्ट्राडियोल और टेस्टोस्टेरोन का स्तर की जाँच करना जरूरी है. सर्जरी द्वारा 40 साल के महिला के दोनों तरफ से लगभग 1000 ग्राम निकाला गया हैं. यह सर्जरी 4.5 घंटे तक चली. मरीज के सेहत में सुधार देखकर सर्जरी के अगले दिन उसे डिस्जार्च दिया गया हैं.

अनुभव

असल में निशा अरोड़ा की दूसरे बच्चे की डिलीवरी के बाद स्तन का बढ़ना शुरू हुआ.स्तन बढ़कर नाभि के नीचे तक आ गया था. स्तन का वजन उन पर आ गया था, बढते स्तन के कारण ब्रा खरीदना, पीठ के बल सोना और सामान लेने के लिए नीचे झुकना काफी मुश्किल हो गया था. इस बीमारी ने उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित किया था. स्तन दर्द, पीठ दर्द, आत्मसम्मान खोना, कंधे और गर्दन में दर्द, थकान, सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी. शर्म के कारण मैं घर में बाहर नही निकलती थी. असामान्य स्तनोंके साथ अकेले रहना बिलकुल भी आसान नहीं था.शर्मिंदगी और अपमान का शिकार होना पड़ता था. मैंने डॉक्टर की परामर्श से इलाज करवाने पर अब बहुत राहत है 40 बी से अब 32 बी साइज़ की ब्रा का उपयोग कर रही हूँ. मैं अब चल सकती हूं और खुलकर सांस ले सकती हूँ मैंने अपनी दैनिक गतिविधियों को आसानी से करना शुरू कर दिया है.

समय से करवाएं इलाज

गिगेंटोमैस्टिया यह आनुवंशिक बिमारी नही है.इस बिमारी का इलाज जोखिम भरा नहीं हैं, लेकिन निदान व इलाज समय रहते नही हुआ, तो यह शारीरिक, मनोसामाजिक और शरीर की छवि से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता हैं. हार्मोनल असंतुलन के कारण स्तन का आकार बढता जाता हैं. इसपर सर्जरीही एकमात्र उपचार हैं, लेकिन सर्जरी के बाद सावधानियां बरतनी काफी जरूरी हैं, जैसे बार-बार स्तन की जांच करवाना, स्तन के आकार में कुछ बदलाव दिखाई पड़े तो डॉक्टर के पास जाना आदि इस इलाज के बाद व्यक्ति साधारण तरीके से अपनी जिंदगी गुजार सकता है.

यूरिनरी इन्फैक्शन: न करें अनदेखा

महिलाओं के लिए यूरिन से जुड़ी दिक्कतें परेशानी का सबब बनती हैं. ऐसी ही एक परेशानी है यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन (यूटीआई). शरीर में मौजूद मूत्रमार्ग जिंदगी भर ऐसे जीवाणुओं को पेशाब की थैली में जाने का रास्ता देता रहता है, जिन की वजह से यूटीआई दिक्कत होती है. इसी वजह से हर दूसरी महिला को जीवन में कभी न कभी यूटीआई से जरूर जूझना पड़ता है.

दरअसल, मेनोपौज के बाद ऐस्ट्रोजन हारमोन में कमी की वजह से इन्फैक्शन पैदा करने वाले जीवाणुओं के पनपने की संभावना काफी बढ़ जाती है. महिलाओं के प्रजनन काल के समय ऐस्ट्रोजन हानिकारक जीवाणुओं को वैजाइना में घर बनाने से रोकता है. उस के पीएच स्तर को कम रखता है और उस के लिए जरूरी जीवाणुओं की वृद्धि में मदद करता है. यही जीवाणु यूटीआई से लड़ते हैं. ऐस्ट्रोजन में कमी और बढ़ोतरी दोनों से ही यूटीआई होता है, क्योंकि दोनों ही स्थितियों में योनि की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं.

क्या है यूटीआई ?

यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन यानी मूत्रमार्ग के संक्रमण को बोलचाल की भाषा में यूटीआई कहते हैं. यह दरअसल, बैक्टीरिया का संक्रमण है. यह मूत्रमार्ग के किसी हिस्से को प्रभावित कर सकता है. मुख्यतया ई-कोलाई नामक बैक्टीरिया से यूटीआई की समस्या पैदा होती है. अन्य कई किस्म के बैक्टीरिया, फंगस और परजीवियों से भी यूटीआई की समस्या होती है.

यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है हमारे यूरिनरी सिस्टम का संक्रमण है. इस सिस्टम के अंग हैं किडनी, यूरिनरी ब्लैडर और यूरेथ्रा. इन में कोई अंग संक्रमित हो जाए तो उसे यूटीआई कहते हैं. इस संक्रमण के अधिकांश मरीजों के यूरिनरी टै्रक्ट का निचला हिस्सा प्रभावित होता है और यह संक्रमण यूरेथ्रा और ब्लैडर तक फैल जाता है. यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन वैसे तो अधिक गंभीर  समस्या नहीं है, पर समय पर इलाज न हो तो इस संक्रमण के चलते कई अन्य गंभीर समस्याएं जन्म ले सकती हैं.

यूटीआई के कुछ आम कारण हैं- पीरियड्स के दिनों में योनि और गुदामार्ग की साफसफाई में कमी, प्रौस्टेट का बड़ा होना और शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता में कमी.

मूत्र मार्ग के अंदर और आसपास मौजूद बैक्टीरिया मौनसून में बहुत तेजी से बढ़ते हैं, जिस से संक्रमण का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है. यह समस्या महिला और पुरुष दोनों में होती है. मगर महिलाओं में अधिक होती है. इस की वजह है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का यूरिनरी ट्रैक्ट छोटा होना.

रोकथाम के उपाय

– शारीरिक साफ-सफाई पर ध्यान देना जैसे यौन संबंध से पहले और बाद में पेशाब कर लेना.

– अधिक मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करना और पेशाब देर तक न रोकना.

– क्रैनबैरीज खाना या उन का जूस पीना, अनन्नास का जूस पीना भी इस बीमारी और इस के खतरे को कम करने में सहायक होता है.

– पर्याप्त विटामिन सी लेने से भी पेशाब में बैक्टीरिया नहीं पनपता है.

-डा. अनुभा सिंह

गाइनोकोलौजिस्ट व आईवीएफ ऐक्सपर्ट

अनियंत्रित Diabetes छीन सकती है आंखों की रोशनी

डायबीटिज को सामान्य रोग समझ कर उस की अनदेखी करना आप के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि डायबीटिज की जटिलता से छिन सकती है आंखों की रोशनी भी. डायबिटीज रेटिनोपैथी में नई रक्तवाहिनियां, रेटिना के आसपास बनने लगती हैं जिस से रक्तस्राव होने लगता है.

55 वर्षीय सुशीलकांत 10 वर्षों से डायबीटिज यानी डायबिटीज के मरीज हैं. पिछले कई दिनों से उन की शुगर भी नियंत्रण में नहीं है. एक शाम उन को लगा कि उन की आंखों के आगे अंधेरा सा छा रहा है, फिर कुछ देर ठीक रहा और थोड़ी देर बाद फिर वही स्थिति हो गई. 2 दिनों के बाद अचानक उन्हें लगा कि उन्हें नहीं के बराबर यानी बहुत ही कम दिख रहा है. तुरंत चिकित्सक से संपर्क किया गया. जांच से मालूम हुआ कि डायबीटिज का असर आंख पर पड़ा है और उन का रेटिना क्षतिग्रस्त हो गया है. चिकित्सक की सलाह पर शहर के बाहर विशेषज्ञ रेटिना सर्जन से संपर्क किया गया. रेटिना सर्जन के इलाज से उन की आंखों की रोशनी को बचाया जा सका वरना वे नेत्रहीन हो जाते.

डायबीटिज यदि ज्यादा पुराना हो या अनियंत्रित हो तो उस का कुप्रभाव आंखों पर अवश्य पड़ता है. इसे चिकित्सा शास्त्र में ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’ कहा गया है. इस जटिलता, जो डायबीटिज जन्य है, में आंखों के परदे, जिसे ‘रेटिना’ कहा गया है, की रक्तवाहिनियां नष्ट हो जाती हैं और इस से रक्त बहने लगता है या रिसाव होने लगता है. यह जटिलता समाज के  उच्चवर्ग में अधिक देखने को मिलती है. ऐसे में हरेक डायबीटिज रोगी को चाहिए कि वह वर्ष में 2 बार अपना नेत्रपरीक्षण अवश्य करवाएं.

दृष्टि पर प्रभाव : कैसेकैसे

एक तरह की रेटिनोपैथी तो अधिकतर लोगों में देखने को मिलती है. इस का कोई लक्षण या संकेत नहीं मिलता. इस में रेटिना में सूजन आ सकती है तथा आंखों के पास गंदगी या मैल जमा हो सकता है. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, आंख की इस छोटी से रक्तवाहिनी को काफी नुकसान झेलना पड़ता है. यह रेटिनोपैथी फैलती नहीं है.

दूसरी तरह की रेटिनोपैथी में नई रक्तवाहिनियां रेटिना के आसपास बनने लगती हैं, जिस से रक्तस्राव होने लगता है. इस में कई बार व्यक्ति की दृष्टि चली जाती है. नई रक्तवाहिनियों के पनपने से रेटिना पर खिंचाव आ सकता है जिस से वह अलग भी हो सकती है. रेटिना की आगे की जैली में भी खून आ सकता है.

जब रेटिना से द्रव्य बाहर निकलता है तो वह रेटिना के बीच ‘मैक्यूला’ पर आने लगता है. इसे ‘मैक्युलोपैथी’ कहा जाता है.

इस के अलावा डायबीटिज के रोगियों में मोतियाबिंद भी जल्दी पनपता है. अल्प आय वर्ग में यह ज्यादा देखने को मिलता है क्योंकि उन का ज्यादातर कार्य सूर्य की रोशनी में होता है. रक्त संचार अव्यवस्थित व अपूर्ण होने के कारण आंखों को लकवा भी मार सकता है.

डायबीटिज के पुराने मरीजों की दृष्टि में शुरूशुरू में धुंधलापन आता है, रेटिना की सतह तथा दृष्टि के लिए उत्तरदायी मुख्य नाड़ी ‘औप्टिक नर्व’ पर नई रक्त वाहिनियां बनने लगती हैं.

बचाव : कैसे हो मजबूत

– डायबीटिज हो या उच्च रक्तचाप या दोनों, इन्हें हर हालत में नियंत्रित रखें. चाहे दवा से या परहेज से.

– अपने रक्तशर्करा व रक्तचाप की नियमित जांच कराएं.

– धूम्रपान या तंबाकू का सेवन त्याग दें.

– हरी सब्जियों का अधिक सेवन करें.

– खुराक में विटामिन ए, विटामिन सी व विटामीन ई आदि का भरपूर सेवन करें.

– फिश या फिश औयल का सेवन करें.

प्रमुख कारण

– आंख की रेटिना पर कुप्रभाव का पहला महत्त्वपूर्ण कारण है डायबीटिज कितने समय से है. एक चिकित्सकीय आंकड़े के अनुसार, करीब 10 वर्षों से डायबीटिज के रोगी पर इस के होने की संभावना 50 फीसदी, 20 वर्षों से डायबीटिज के रोगी पर 70 फीसदी तथा 30 वर्षों से डायबीटिज के रोगी पर 90 फीसदी संभावना रहती है.

– यदि डायबीटिज के साथ उच्च रक्तचाप भी है तो संभावना और अधिक बढ़ जाती है.

– गर्भावस्था में भी इस की संभावना बढ़ जाती है.

– यह स्थिति वंशानुगत भी होती है.

– स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा यह स्थिति अधिक पाई जाती है.

निदान तकनीकें

– रक्त शर्करा स्तर की नियमित जांच कराते रहें.

– ‘फंडस फ्लोरिसीन एजिंयोग्राफी’ नामक विशिष्ट जांच से यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि लेजर तकनीक द्वारा उपचार की जरूरत कहांकहां है.

– ‘औफ्थालमोस्कोप’ नामक उपकरण द्वारा आंखों की नियमित जांच करवाएं.

इस प्रकार, इस वैज्ञानिक जानकारी के साथ डायबीटिज के रोगी अपनी आंखों की रोशनी को बचा सकते हैं क्योंकि अंधेपन के कारणों में इस स्थिति की विशेष भूमिका रहती है.

लेजर पद्धति से उपचार

लेजर फोटो कोएगुलेशन द्वारा लेजर बीम प्रभावित रेटिना पर डाली जाती है जिस से रक्तस्राव या रिसाव बंद हो जाता है, साथ ही, दूसरी असामान्य रक्तवाहिनियों का बनना भी बंद हो जाता है. यह उपचार यदि रोगी को समय पर मिल जाए तो परिणाम अच्छे रहते हैं.

यदि रोग काफी ज्यादा बढ़ गया हो तो शल्यक्रिया द्वारा उपचार संभव है, जिसे ‘वीट्रेक्टौमी सर्जरी’ कहा गया है. इस में अलग हुए रेटिना को फिर जोड़ा जाता है.

एक नया इंजैक्शन वीईजीएफ आंखों में लगाया जाता है, जिस के प्रभाव से इस के अतिरिक्त अन्य खामियां भी ठीक हो जाती हैं. इस के साथसाथ लेजर द्वारा भी उपचार लिए जाने के अच्छे परिणाम आते हैं.

ब्लड डोनेशन के फायदों से अनजान हैं आप

रक्तदान या ब्लड डोनेशन के बारे में तो सुना होगा. पर क्या कभी ब्लड डोनेट करने के बारे में सोचा है? या कभी रक्तदान किया है? ब्लड डोनेशन को लेकर बहुत से लोगों के मन में गलत धारनायें हैं. कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि हमारा खून हम किसी को क्यों दें? खा पीकर बनाया है. पर ये सब बेतुकी बातें हैं. ब्लड डोनेट करना दूसरों के साथ साथ आपके लिए भी हेल्दी है.

जरूरी है ब्लड डोनेशन

– ब्लड डोनेट कर आप किसी की जान बचा सकती हैं.

– विज्ञान ने बहुत सारी उपलब्धियां हासिल की है पर ब्लड का किसी भी प्रकार से उत्पादन नहीं किया जा सकता और न ही इसका कोई विकल्प है.

– देश में हर साल लगभग 250 सीसी की 4 करोड़ यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है. पर सिर्फ 5,00,000 यूनिट ब्लड ही मुहैया हो पाता है.

रक्तदान के फायदे

– ब्लड डोनेशन से हार्ट अटैक की आशंका कम हो जाती है. डॉक्टर्स का मानना है कि डोनेशन से खून पतला होता है, जो कि हृदय के लिए अच्छा होता है.

– एक नई रिसर्च के मुताबिक नियमित ब्लड डोनेट करने से कैंसर व दूसरी बिमारियों के होने का खतरा भी कम हो जाता है, क्योंकि यह शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है.

– ब्लड डोनेट करने के बाद बोनमैरो नए रेड सेल्स बनाता है. इससे शरीर को नए ब्लड सेल्स मिलने के अलावा तंदुरुस्ती भी मिलती है.

– ब्लड डोनेशन सुरक्षित व स्वस्थ परंपरा है. इसमें जितना खून लिया जाता है, वह 21 दिन में शरीर फिर से बना लेता है. ब्लड का वॉल्यूम तो शरीर 24 से 72 घंटे में ही पूरा बन जाता है.

ब्लड डोनेट करने से पहले

– ब्लड देने से पहले मिनी ब्लड टेस्ट होता है, जिसमें हीमोग्लोबिन टेस्ट, ब्लड प्रेशर व वजन लिया जाता है. ब्लड डोनेट करने के बाद इसमें हेपेटाइटिस बी व सी, एचआईवी, सिफलिस व मलेरिया आदि की जांच की जाती है. इन बीमारियों के लक्षण पाए जाने पर डोनर का ब्लड न लेकर उसे तुरंत सूचित किया जाता है.

– ब्लड की कमी का एकमात्र कारण जागरूकता का अभाव है.

– 18 साल से अधिक उम्र के स्त्री-पुरुष, जिनका वजन 50 किलोग्राम या अधिक हो, वर्ष में तीन-चार बार ब्लड डोनेट कर सकते हैं.

– ब्लड डोनेट करने योग्य लोगों में से अगर मात्र 3 प्रतिशत भी खून दें तो देश में ब्लड की कमी दूर हो सकती है. ऐसा करने से असमय होने वाली मौतों को रोका जा सकता है.

– ब्लड डोनेट करने से पहले व कुछ घंटे बाद तक धूम्रपान से परहेज करना चाहिए.

– ब्लड डोनेट करने वाले शख्स को रक्तदान के 24 से 48 घंटे पहले ड्रिंक नहीं करनी चाहिए.

– ब्लड डोनेट करने से पहले पूछे जाने वाले सभी प्रश्नों के सही व स्पष्ट जवाब देना चाहिए.

वजन बढ़ाने का तरीका बताएं?

सवाल-

मैं 23 वर्षीय युवती हूं. मेरा वजन 31 किलोग्राम है. मैं बचपन से ही बहुत दुबलीपतली हूं. मेरा विवाह हो चुका है और 2 साल की एक बेटी भी है. मैं सारे टेस्ट भी करवा चुकी हूं. सब कुछ नौर्मल है. मैं कुछ भी पहनती हूं तो वह मुझ पर जंचता नहीं है. मेरे दोस्त, रिश्तेदार मेरा मजाक उड़ाते हैं. कृपया बताएं कि मैं ऐसा क्या करूं जिस से मेरा वजन बढ़ जाए और मैं आकर्षक दिखूं?

जवाब-

दुबलापतला होना कई कारणों पर निर्भर करता है. जैसे आनुवंशिकता, व्यक्ति विशेष का मैटाबोलिज्म, उस का खानपान व बौडी स्ट्रक्चर आदि. आप आकर्षक दिखने व चेहरे पर रौनक लाने के लिए ऐक्सरसाइज करें. चेहरे को गुब्बारे की तरह फुलाएं व बंद करें. ऐसा 15-20 बार करें. इस से चेहरे पर रौनक आएगी व गाल भरेभरे लगेंगे. जहां तक वजन बढ़ाने की बात है तो भोजन में दूध, दही, पनीर जैसे डेयरी प्रोडक्ट्स अधिक मात्रा में शामिल करें. कार्बोहाइड्रेट्स अधिक लें. केले का सेवन करें. दिन में 5-6 बार थोड़ेथोड़े अंतराल पर खाएं. ऐसा करने से वजन बढ़ाने में मदद मिलेगी. नियमित ऐक्सरसाइज करें. इस से भूख बढ़ेगी और फिर खाना खाने से वजन बढ़ेगा.

सवाल

मैं 16 वर्षीय युवती हूं. मैं अपने बड़े स्तनों को ले कर परेशान हूं. उन की वजह से मुझे बड़े साइज के कपड़े खरीदने पड़ते हैं. इस से सही फिटिंग नहीं आ पाती. कृपया स्तनों को छोटा करने का कोई तरीका बताएं?

जवाब

स्तनों का छोटा या बड़ा होना आनुवंशिकता पर निर्भर करता है. साथ ही अगर वजन अधिक हो तो भी स्तनों का साइज बड़ा होता है. उन के साइज को कम करने का एक तरीका प्लास्टिक सर्जरी है और एक ऐक्सरसाइज. कई बार हारमोनल असंतुलन भी ब्रैस्ट साइज के घटने या बढ़ने का कारण होता है. जहां छोटी ब्रैस्ट की वजह ऐस्ट्रोजन की कमी व टैस्टोस्टेरौन की अधिकता होती है, वहीं बड़ी ब्रैस्ट में स्थिति इस के विपरीत होती है. हारमोनल बैलेंस के लिए आप किसी गाइनोकोलौजिस्ट से संपर्क कर सकती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Monsoon Special: बरसात के मौसम में इन से बचना है बेहद जरूरी

बरसात के मौसम में घर के बाहर पैर रखते ही कीचड़, नालों का गंदा पानी, कूड़े के ढेर से उठती सड़ांध से दिमाग खराब हो जाता है. बारिश की बूंदों से गरमी से राहत मिलती है लेकिन इस मौसम में पनपने वाली कई बीमारियों से बचना बेहद जरूरी है. आइए, जानते हैं दिल्ली के वरिष्ठ फिजिशियन व कार्डियोलौजिस्ट डा. के के अग्रवाल से कि इन बीमारियों से कैसे बचें.

1. लेप्टोस्पायरोसिस

इस बीमारी में बुखार आता है और आंखों में सूजन आती है. यह बीमारी जानवरों के मलमूत्र से फैलने वाले लेप्टोस्पाइश नामक बैक्टीरिया के कारण होती है. खासकर यह चूहों से होती है. चूहे जब पानी में या अन्य जगह पेशाब करते हैं तो आप के पैरों के माध्यम से, विशेषकर यदि आप के पैरों में घाव हैं तो, उस पेशाब के कीटाणु जिस्म में घुस जाते हैं. इस मौसम में जलभराव व बहते पानी के कारण यह संक्रमण पानी में मिल कर उसे दूषित कर देता है. इस वजह से इस बीमारी की आशंका अधिक रहती है.

बारिश के मौसम में नंगेपैर चलना ठीक नहीं रहता, हमेशा जूते, चप्पल, दस्ताने, चश्मा, मास्क आदि लगाएं. तालाबों, पूलों व नदियों आदि के  पास जाने, मृत जानवरों को छूने से बचें. घावों की नियमित साफसफाई करते रहें.

2. मलेरिया

बारिश की वजह से जगहजगह सड़कों व नालों में पानी जमा हो जाता है और गंदे पानी में मच्छर पनपने शुरू हो जाते हैं, जिन में से कुछ मलेरिया के भी मच्छर होते हैं. इस मौसम में दिल्ली में डेंगू व चिकनगुनिया, गुजरात में जिका और पूर्वोत्तर में मलेरिया का जबरदस्त आतंक रहता है.

मच्छर को घर में या बाहर पनपने न दें. छोटे व बड़े बरतन में पानी को ढक कर रखें. पानी की टंकी को बराबर साफ करते रहें. मांसपेशियों में दर्द और कंपकंपी के साथ बुखार आना मलेरिया के लक्षण हो सकते हैं.

3. डायरिया, टायफायड व जौंडिस

ये तीनों बीमारियां दूषित पानी पीने से होती हैं. इस मौसम में उबला पानी पिएं. अच्छी तरह पका हुआ खाना खाएं. सब्जी को छील कर या अच्छी तरह धो कर पकाएं और ठंडा खाना हमेशा गरम कर के ही खाएं.

सर्दीजुकाम, गले में खराश या बुखार हो तो टायफायड के लक्षण हो सकते हैं. उलटी, कमजोरी या फिर आंखों व हाथ के नाखूनों में पीलापन आना जौडिंस के लक्षण हैं.

4. स्नेक पौयजनिंग

बरसात में बिलों में पानी घुसने से अकसर सांप बाहर निकल आते हैं. यदि सांप काट ले तो तुरंत अस्पताल जाएं नजदीकी डाक्टर को दिखाएं. फिल्मों में जो दिखाया जाता है कि सांप काटने से मुंह से जहर खींच लेते हैं, ऐसा कतई न करें.

जानें पुरुष मैनोपौज के लक्षण और इलाज

पुरुष रजोनिवृत्ति सुनने में भले नया व अजीबोगरीब लगता हो लेकिन यह महिलाओं की रजोनिवृत्ति से काफी अलग स्थिति होती है. इस के संकेत, लक्षण व आवश्यक इलाज बता रहे हैं विशेषज्ञ.

पुरुषों के लिए रजोनिवृत्ति शब्द का प्रयोग कभी कभी उम्र बढ़ने के कारण टेस्टोस्टोरोन का स्तर कम होने या टेस्टोस्टोरोन की जैव उपलब्धता में कमी बताने के लिए किया जाता है.

महिलाओं की रजोनिवृत्ति और पुरुषों में रजोनिवृत्ति 2 भिन्न स्थितियां हैं. हालांकि, महिलाओं में अंडोत्सर्ग (औव्यूलेशन) खत्म हो जाता है और हार्मोंस बनने भी कम हो जाते हैं और यह सब अपेक्षाकृत कम समय में होता है जबकि पुरुषों में हार्मोन बनना और टेस्टोस्टोरोन की जैव उपलब्धता कई वर्षों में कम होती है. जरूरी नहीं है कि इस के नतीजे स्पष्ट हों.

पुरुषों में रजोनिवृत्ति महिलाओं की अपेक्षा अचानक नहीं होती है. इस के संकेत और लक्षण धीरे-धीरे और सूक्ष्मतौर पर सामने आते हैं. पुरुषों के हार्मोन टेस्टोस्टोरोन के स्तर में कमी किसी भी सूरत में उस तेजी से नहीं होती है जिस तेजी से महिलाओं में होती है. हैल्थकेयर विशेषज्ञ इसे एंड्रोपौज, टेस्टोस्टोरोन डैफिशिएंसी या देर से

शुरू हुआ हाइपोगोनाडिज्म कहते हैं. हाइपोगोनाडिज्म का मतलब है पुरुषों के हार्मोन में इतनी कमी जो किसी उम्रदराज व्यक्त्ति के लिए भी कम हो.

संकेत और लक्षण

– मूड बदलना और चिड़चिड़ापन.

– शरीर में चरबी का पुनर्वितरण.

– मांसपेशियों की कमी.

– शुष्क व पतली त्वचा.

– हाइपर हाइड्रोसिस यानी अत्यधिक पसीना निकलना.

– एकाग्रता की अवधि कम होना.

– उत्साह कम होना.

– सोने में असुविधा यानी अनिद्रा या थकान महसूस होना.

– यौन इच्छा कम हो जाना.

– यौन क्रिया ठीक से न होना

उपरोक्त लक्षण भिन्न पुरुषों में अलगअलग हो सकते हैं और यह अवसाद से ले कर दैनिक जीवन व खुशी में हस्तक्षेप तक, कुछ भी हो सकता है. इसलिए, संबंधित कारण मालूम करना महत्त्वपूर्ण है और इसे दूर करने के लिए आवश्यक इलाज किया जाना चाहिए. कुछ लोगों की हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं. इसे औस्टियोपीनिया कहा जाता है.

कुछ मामलों में जब जीवनशैली या मनोवैज्ञानिक समस्या आदि जिम्मेदार नहीं लगते हैं, तो पुरुष रजोनिवृत्ति के लक्षण हाइपोगोनाडिज्म के कारण हो सकते हैं जब हार्मोन कम बनते हैं या बनते ही नहीं हैं. कभी-कभी हाइपोगोनाडिज्म जन्म से ही मौजूद होता है. इस से यौनारंभ देर से आने और अंडग्रंथि छोटा होने जैसे लक्षण हो सकते हैं. कुछेक मामलों में हाइपोगोनाडिज्म का विकास जीवन में आगे चल कर भी हो सकता है खासकर उन पुरुषों में जो मोटे हैं या जिन्हें टाइप 2 डायबिटीज है. इसे देर से हुआ  हाइपोगोनाडिज्म कहा जा सकता है और ऐसे पुरुष में रजोनिवृत्ति के लक्षण सामने आ सकते हैं.

हाइपोगोनाडिज्म देर से शुरू होने का पता आमतौर पर आप के लक्षणों और खून की जांच के नतीजों से पता चलता है. इस का उपयोग टेस्टोस्टोरोन का स्तर जानने के लिए किया जाता है. पुरुष रजोनिवृत्ति के लक्षण का सब से आम किस्म का उपचार जीवनशैली से संबंधित स्वास्थ्यकर विकल्प चुनना है. उदाहरण के लिए, आप का चिकित्सक आप को सलाह दे सकता है :

– पौष्टिक आहार लें

– नियमित व्यायाम करें

– पर्याप्त नींद लें

– तनाव मुक्त रहें

जीवनशैली से संबंधित ये आदतें सभी पुरुषों के लिए फायदेमंद हो सकती हैं. इन आदतों को अपनाने के बाद पुरुष, रजोनिवृत्ति के लक्षणों को महसूस करने वाले पुरुष अपने संपूर्ण स्वास्थ्य में सकारात्मक परिवर्तन देख सकते हैं. अगर आप अवसाद में हैं तो आप के चिकित्सक ऐंटी डिप्रैसैंट्स थेरैपी और जीवनशैली

में परिवर्तन की सलाह देंगे. हार्मोन रीप्लेसमैंट थेरैपी भी एक उपचार है. हालांकि इलाज के लिए मरीज के परिवार का कैंसर प्रोस्टेट का इतिहास और ब्लड पीएसए

की रिपोर्ट चाहिए होती है अगर डाक्टर को लगता है कि हार्मोन रीप्लेसमैंट थेरैपी से फायदा होगा.

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