दरिंदे: बलात्कार के आरोप में क्यों नहीं मिली राजेश को सजा

वह अपना सिर घुटनों में छिपा कर बैठी थी लेकिन रहरह कर एक जोर का कहकहा लगता और सारी मेहनत बेकार हो जाती. पास बैठा सोनाली का पति सुरेंद्र भरी आवाज में उसे दिलासा देने में जुटा था, ‘‘ऐसे हिम्मत मत हारो… ठंडे दिमाग से सोचेंगे कि आगे क्या करना है.’’ सुरेंद्र के बहते आंसू सोनाली की साड़ी और चादर पर आसरा पा रहे थे. बच्चों को दूसरे कमरे में टैलीविजन देखने के लिए कह दिया गया था. 6 साल का विकी तो अपनी धुन में मगन था लेकिन 10 साल का गुड्डू बहुतकुछ समझने की कोशिश कर रहा था. विकी बीचबीच में उसे टोक देता मगर वह किसी समझदार की तरह उसे कोई नया चैनल दिखा कर बहलाने लगता था.

2 साल पहले तक सोनाली की जिंदगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था. पति की साधारण सरकारी नौकरी थी, पर उन के छोटेछोटे सपनों को पूरा करने में कभी कोई अड़चन नहीं आई थी. पुराना पुश्तैनी घर भी प्यार की गुनगुनाहट से महलों जैसा लगता था. बूढ़े सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने सोनाली को मांबाप की कमी कभी महसूस नहीं होने दी थी. एक दिन सुरेंद्र औफिस से अचानक घबराया हुआ लौटा और कहने लगा था, ‘कोई नया मंत्री आया है और उस ने तबादलों की झड़ी लगा दी है. मुझे भी दूसरे जिले में भेज दिया गया है.’ ‘क्या…’ सोनाली का दिल धक से रह गया था. 2 घंटे तक अपने परिवार से दूर रहने से घबराने वाला सुरेंद्र अब 2 हफ्ते में एक बार घर आ पाता था. बच्चे भी बहुत उदास हुए, लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता. मनचाही जगह पर पोस्टिंग मिल तो जाती, मगर उस की कीमत उन की पहुंच से बाहर थी. हार कर सोनाली ने खुद को किसी तरह समझा लिया था. वीडियो काल, चैटिंग के सहारे उन का मेलजोल बना रहता था. जब भी सुरेंद्र घर आता था, सोनाली को रात छोटी लगने लगती थी. सुरेंद्र की बांहों में भिंच कर वह प्यार का इतना रस निचोड़ लेने की कोशिश करती थी कि उन का दोबारा मिलन होने तक उसे बचाए रख सके. उस के दिल की इस तड़प को समझ कर निंदिया रानी तो उन्हें रोकटोक करने आती नहीं थी.

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बिस्तर से ले कर जमीन तक बिखरे दोनों के कपड़े भी सुबह होने के बाद ही उन को आवाज देते थे. जिंदगी की गाड़ी चलती रही, लेकिन अपनी दुनिया में मगन रहने वाली सोनाली एक बड़े खतरे से अनजान थी. उस खतरे का नाम राजेश सिंह था जो ठीक उन के पड़ोस में रहता था. शरीर से बेहद लंबेतगड़े राजेश को न अपनी 55 पार कर चुकी उम्र का कोई लिहाज था और न ही गांव के रिश्ते से कहे जाने वाले ‘चाचा’ शब्द का. उस की गंदी नजरें खूबसूरत बदन की मालकिन सोनाली पर गड़ चुकी थीं. दबंग राजेश सिंह हत्या, देह धंधा जैसे अनेक मामलों में फंस कर कई बार जेल जा चुका था लेकिन हमेशा किसी न किसी से पैरवी करा कर बाहर आ जाता था. सुरेंद्र का साधारण समुदाय से होना भी राजेश सिंह की हिम्मत बढ़ाता था. राजेश सिंह का कोई तय काम नहीं था. बेटों की मेहनत पर खेतों से आने वाला अनाज खा कर पड़े रहना और चुनाव के समय अपनी जाति के नेताओं के पक्ष में इधर से उधर दलाली करना उस का पेशा था. हालांकि बेटे भी कोई दूध के धुले नहीं थे. बाकी सारा समय अपने दरवाजे पर किसीकिसी के साथ बैठ कर यहांवहां की गप हांकना राजेश सिंह की आदत थी. सोनाली बाहर कम ही निकलती थी, लेकिन जब भी जाती और राजेश सिंह को पता चल जाता तो घर से निकलने से ले कर वापस लौटने तक वह उस को ही ताकता रहता.

उस के उभारों और खुले हिस्सों को तो वह ऐसे देखता जैसे अभी खा जाएगा. एक दिन सोनाली जब आटोरिकशा पर चढ़ रही थी तो उस की साड़ी के उठे भाग के नीचे दिख रही पिंडलियों को घूरने की धुन में राजेश सिंह अपने दरवाजे पर ठोकर खा कर गिरतेगिरते बचा. उस के साथ बैठे लोग जोर से हंस पड़े. सोनाली ने घूम कर उन की हंसी देखी भी, पर उन की भावना नहीं समझ पाई. आखिर वह दिन भी आया जिस ने सोनाली का सबकुछ छीन लिया. उस के सासससुर किसी संबंधी के यहां गए हुए थे और छोटा बेटा विकी नानी के घर था. बड़ा बेटा गुड्डू स्कूल में था. बाहर हो रही तेज बारिश की वजह से मोबाइल नैटवर्क भी खराब चल रहा था जिस के चलते सोनाली और सुरेंद्र की ठीक से बात नहीं हो पा रही थी. ऊब कर उस ने मोबाइल फोन बिस्तर पर रखा और नहाने चली गई. सोनाली ने दोपहर के भोजन के लिए दालचावल चूल्हे पर पहले ही चढ़ा दिए थे और नहाने के बीच में कुकर की सीटियां भी गिन रही थी. हमेशा की तरह उस का नहाना पूरा होतेहोते कुकर ने अपना काम कर लिया. सोनाली ने जल्दीजल्दी अपने बालों और बदन पर तौलिए लपेटे और बैडरूम में भागी आई. बालों को झटपट पोंछ कर उस ने बिस्तर पर रखे नए सूखे कपड़े पहनने के लिए जैसे ही अपने शरीर पर बंधा तौलिया हटाया कि अचानक 2 मजबूत हाथों ने उसे पीछे से दबोच लिया. अचानक हुए इस हमले से बौखलाई सोनाली ने पीछे मुड़ कर देखा तो हमलावर राजेश सिंह था जो छत के रास्ते उस के घर में घुस आया था और कमरे में पलंग के नीचे छिप कर उस का ही इंतजार कर रहा था. उस के मुंह से शराब की तेज गंध भी आ रही थी. सोनाली चीखती, इस से पहले ही किसी दूसरे आदमी ने उस का मुंह भी दबा दिया. वह जितना पहचान पाई उस के मुताबिक वह राजेश सिंह का खास साथी भूरा था और उम्र में राजेश सिंह के ही बराबर था. सोनाली के कुछ सोचने से पहले ही वे दोनों उसे पलंग पर लिटा कर वहां रखी उस की ही साड़ी के टुकड़े कर उसे बांध चुके थे. सोनाली के मुंह पर भूरा ने अपना गमछा लपेट दिया था. इस के बाद राजेश सिंह ने पहले तो कुछ देर तक अपनी फटीफटी आंखों से सोनाली के जिस्म को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उस के ऊपर झुकता चला गया. काफी देर बाद हांफता हुआ राजेश सिंह सोनाली के ऊपर से उठा. भयंकर दर्द से जूझती, पसीने से तरबतर सोनाली सांयसांय चल रहे सीलिंग फैन को नम आंखों से देख रही थी. टैलीविजन पर रखा सोनाली, सुरेंद्र और बच्चों का ग्रुप फोटो गिर कर टूट चुका था. रसोईघर में चूल्हे पर चढ़े दालचावल सोनाली के सपनों की तरह जल कर धुआं दे रहे थे. इस के बाद भूरा बेशर्मी से हंसता हुआ अपनी हवस मिटाने के लिए बढ़ा. राजेश सिंह बिस्तर पर पड़े सोनाली के पेटीकोट से अपना पसीना पोंछ रहा था. भूरा ने अपने हाथ सोनाली के कूल्हों पर रखे ही थे कि तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई. राजेश सिंह ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो गुड्डू की स्कूल वैन का ड्राइवर उसे साथ ले कर खड़ा था. राजेश सिंह ने जल्दी से भूरा को हटने का इशारा किया.

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वह झल्लाया चेहरा लिए उठा और अपने कपड़े ठीक करने लगा. ‘तुम ने बहुत ज्यादा समय ले ही लिया इस के साथ, नहीं तो हम को भी मौका मिल जाता न,’ भूरा भुनभुनाया. लेकिन राजेश सिंह ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और जैसेतैसे अपने कपड़े पहन कर जिधर से आया था, उधर से ही भाग गया. जब दरवाजा नहीं खुला तो गुड्डू के कहने पर ड्राइवर ने ऊपर से हाथ घुसा कर कुंडी खोली. घुसते ही अंदर के कमरे का सब नजारा दिखता था. ड्राइवर के तो होश उड़ गए. उस ने शोर मचा दिया. सुरेंद्र आननफानन आया. सोनाली के बयान पर राजेश सिंह और भूरा पर केस दर्ज हुए. दोनों की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन राजेश सिंह ने अपनी पहचान के नेता से बयान दिलवा लिया कि घटना वाले दिन वह और भूरा उस के साथ मीटिंग में थे. मैडिकल जांच पर भी सवाल खड़े कर दिए गए. कुछ समाचार चैनलों और स्थानीय महिला संगठनों ने थोड़े दिनों तक अपनीअपनी पब्लिसिटी के लिए प्रदर्शन जरूर किए, बाद में अचानक शांत पड़ते गए. सालभर होतेहोते राजेश सिंह और भूरा दोनों बाइज्जत बरी हो कर निकल आए. ऊपरी अदालत में जाने लायक माली हालत सुरेंद्र की थी नहीं. आज राजेश सिंह के घर पर हो रही पार्टी सुरेंद्र और सोनाली के घावों पर रातभर नमक छिड़कती रही. इस के बाद राजेश सिंह और भी छुट्टा सांड़ हो गया. छत पर जब भी सोनाली से नजरें मिलतीं, वह गंदे इशारे कर देता. इस सदमे से सोनाली के सासससुर भी बीमार रहने लगे थे. राजेश सिंह के छूट जाने से सोनाली के मन में भरा डर अब और बढ़ने लगा था. रातों को अपने निजी अंगों पर सुरेंद्र का हाथ पा कर भी वह बुरी तरह से चौंक कर जाग उठती थी. कई बार सोनाली के मन में खुदकुशी का विचार आया, लेकिन अपने पति और बच्चों का चेहरा उसे यह गलत कदम उठाने नहीं देता था. दिन बीतते गए. गुड्डू का जन्मदिन आ गया. केवल उस की खुशी के लिए सोनाली पूरे परिवार के साथ होटल चलने को राजी हो गई. खाना खाने के बाद वे लोग काउंटर पर बिल भर रहे थे कि तभी सामने राजेश सिंह दिखाई दिया. सफेद कुरतापाजामा पहने हुए वह एक पान की दुकान की ओट में किसी से मोबाइल फोन पर बात कर रहा था. राजेश सिंह पर नजर पड़ते ही सोनाली के मन में उसी दिन का उस का हवस से भरा चेहरा घूमने लगा.

उस के द्वारा फोन पर कहे जा रहे शब्द उसे वही आवाज लग रहे थे जो उस की इज्जत लूटते समय वह अपने मुंह से निकाल रहा था. सोनाली का दिमाग तेजी से चलने लगा. उबलते गुस्से और डर को काबू में रख वह आज अचानक कोई फैसला ले चुकी थी. उस ने सुरेंद्र के कान में कुछ कहा. सुरेंद्र ने बच्चों से खाने की मेज पर ही बैठ कर इंतजार करने को बोला और होटल के दरवाजे के पास आ कर खड़ा हो गया. सोनाली ने आसपास देखा और राजेश सिंह के ठीक पीछे आ गई. वह अपनी धुन में था इसलिए उसे कुछ पता नहीं चला. सोनाली ने अपने पेटीकोट की डोरी पहले ही थोड़ी ढीली कर ली थी. उस ने राजेश सिंह का दूसरा हाथ पकड़ा और अपने पेटीकोट में डाल लिया. राजेश सिंह ने चौंक कर सोनाली की तरफ देखा. वह कुछ समझ पाता, इस से पहले ही सोनाली उस का हाथ पकड़ेपकड़े रोते हुए चिल्लाने लगी,

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‘‘अरे, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी घटिया हरकत करने की?’’ सोनाली के चिल्लाते ही सुरेंद्र होटल से भागाभागा वहां आया और उस ने राजेश सिंह पर मुक्कों की बरसात कर दी. वह मारतेमारते जोरजोर से बोल रहा था, ‘‘राह चलती औरत के पेटीकोट में हाथ डालेगा तू?’’ जिन लोगों ने राजेश सिंह का हाथ सोनाली के पेटीकोट में घुसा देख लिया था, वे भी आगबबूला हुए उधर दौड़े और उस को पीटने लगे. भीड़ जुटती देख सुरेंद्र ने अपने जूते के कई जोरदार वार राजेश सिंह के पेट और गुप्तांग पर कर दिए और मौका पा कर भीड़ से निकल गया. जब तक कुछ लोग बीचबचाव करते, तब तक खून से लथपथ राजेश सिंह मर चुका था. जो सजा उसे बलात्कार के आरोप में मिलनी चाहिए थी, वह उसे छेड़खानी के आरोप ने दिलवा दी थी. द्य

घुंघरू: भाग 5- राजा के बारे में क्या जान गई थी मौली

लेखक – पुष्कर पुष्प  

इधर ढोलक पर मानू की थाप पड़ी और उधर मौली के पैर थिरके. पलभर में समां बंध गया. मौली उस दिन ऐसा नाची, जैसे वह उस का अंतिम नृत्य हो. लोगों के दिल धड़कधड़क कर रह गए. अंग्रेज रेजीडेंट बेहद खुश हुआ. उस ने नृत्य, गायन और वादन का ऐसा अनूठा समन्वय पहली बार देखा था. राजा समर सिंह का जो मकसद था, पूरा हुआ. महफिल समाप्त हुई, तो मौली ने मानू से हमेशा की तरह घुंघरू खुलवाने चाहे, लेकिन राजा ने इस की इजाजत नहीं दी.

अंग्रेज अधिकारी वापस चला गया, तो मानू को महल के बाहर कर दिया गया. मौली अपने कक्ष में चली गई. उस ने कसम खा ली कि उस के पैरों के घुंघरू खुलेंगे, तो मानू के हाथों से ही.

झील किनारे वाला महल तैयार होने में एक वर्ष लगा. छोटे से इस महल में राजा समर सिंह ने मौली के लिए सारी सुविधाएं जुटाई थीं. मौली की इच्छानुसार एक परकोटा भी बनवाया गया था, जहां खड़ी हो कर वह झील के उस पार स्थित अपने गांव को निहार सके.

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मौली और मानू एकदूसरे को बेहद प्यार करते हैं. प्यार में वे दोनों किसी भी हद तक जा सकते थे. इसी बात को ध्यान में रख कर राजा समर सिंह ने महल से सौ गज दूर झील के पानी में पत्थरों की एक ऐसी अदृश्य दीवार बनवाई, जिस के आरपार पानी तो जा सके, पर जीवों का जाना संभव न हो. दीवार के इस पार उन्होंने पानी में 2 मगरमच्छ छुड़वा दिए. यह सब उन्होंने इसलिए किया था, ताकि मानू झील में तैर कर इस पार न आ सके. आए, तो मगरमच्छों का शिकार बन जाए.

पूरी तैयारी हो गई, तो मौली को झील किनारे निर्मित महल में भेज दिया गया. जिस दिन मौली को महल में ले जाया गया, उस दिन महल को खूब सजाया गया. राजा समर सिंह की उस दिन वर्ष भर पुरानी आरजू पूरी होनी थी.

वादे के अनुसार मौली ने राजा के सामने स्वयं को समर्पित कर दिया. उस दिन उस ने अपना श्रृंगार खुद किया था, बेहद खूबसूरत लग रही थी वह. समर सिंह की बाहों में सिमटते हुए उस ने सिर्फ इतना कहा था, ‘‘आज से मेरा तन आप का है, पर मन को आप कभी नहीं छू पाएंगे. मन पर मानू का ही अधिकार रहेगा.’’

राजा को मौली के मन से क्या लेनादेना था. उन की जिद भी पूरी हो गई और हवस भी. उस दिन के बाद मौली स्थाई रूप से उसी महल में रहने लगी. सेवा में दासदासियां और सुरक्षा के लिए सैनिकों की व्यवस्था थी. महीने में 6-7 दिन मौली के साथ गुजारने के लिए राजा समर सिंह झीलवाले महल में आते रहते थे. वहीं रह कर वह पास वाले जंगल में शिकार भी खेलते थे.

मौली का रोज का नियम था. हर शाम वह महल के परकोटे पर खड़ी हो कर अपनी वही चुनरी हवा में लहराती, जो गांव से ओढ़ कर आई थी.

मानू को मालूम  था कि मौली झीलवाले महल में आ चुकी है. वह हर रोज झील के किनारे बैठा मौली की चुनरी को देखा करता. इस से उस के मन को काफी तसल्ली मिलती. कई बार उस का दिल करता भी, कि वह झील को पार कर के मौली के पास जा पहुंचे, लेकिन मौली की कसम उस के पैर बांध देती थी.

देखतेदेखते एक वर्ष और गुजर गया. मौली को गांव छोड़े दो वर्ष होने को थे. तभी एक दिन राजा समर सिंह को अंग्रेज रेजीडेंट का संदेश मिला कि वह उन की रियासत के मुआयने पर आ रहे हैं और उसी नर्तकी का नृत्य देखना चाहते हैं, जो पिछली यात्रा में उन के सामने पेश की गई थी.

राजा समर सिंह ने जब यह बात मौली को बताई, तो उस ने अपनी शर्त रखते हुए कहा, ‘‘यह तभी संभव है, जब मानू मेरे साथ हो. उस के बिना नृत्य का कोई भी आयोजन मेरे बूते में नहीं है.’’

समर सिंह ने मौली को समझाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. अंग्रेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. फलस्वरूप राजा समर सिंह को झुकना पड़ा. मौली ने राजा से कहा कि वह चंदनगढ़ जाने के बजाय उसी महल में नृत्य करेगी और मानू को भी वहीं बुलाना होगा.

राजा समर सिंह नहीं चाहते थे कि मानू किसी भी रूप में मौली के सामने आए. जबकि अंग्रेज रेजीडेंट को खुश करना भी उन की मजबूरी थी. सोचविचार कर राजा ने झील में बनी अदृश्य दीवार (पानी के नीचे) पर ठीक महल के परकोटे के सामने पत्थरों का एक बड़ा सा गोल चबूतरा बनवा कर उस पर प्रकाश स्तंभ स्थापित कराया. इस चबूतरे और महल के बीच ही वह कुंड था, जिस में मगरमच्छ थे. मगरमच्छों को भोजन चूंकि उसी कुंड में डाला जाता था, अत: वे वहीं मंडराते रहते थे. महल के परकोटे से 2 मजबूत रस्सियां इस प्रकार प्रकाश स्तंभ में बांधी गईं, कि आदमी एक रस्सी के द्वारा स्तंभ तक जा सके और दूसरी से आ सके.

अंग्रेज रेजीडेंट के आने का दिन तय हो चुका था. उसी हिसाब से राजा ने झीलवाले महल में मेहमानवाजी की तैयारियां कराईं. जिस दिन रेजीडेंट को आना था, उस दिन 2 सैनिक इस आदेश के साथ राखावास भेजे गए कि वे झील के रास्ते मानू को प्रकाश स्तंभ तक भेजेंगे. मौली ने मानू को झील में न उतरने की कसम दे रखी थी, यह बात समर सिंह नहीं जानते थे.

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तयशुदा दिन जब अंग्रेज रेजीडेंट चंदनगढ़ पहुंचा, राजा समर सिंह यह कह कर उसे झीलवाले महल में ले गए, कि उन्होंने इस बार उन के मनोरंजन की व्यवस्था प्रकृति की गोद में की है. राजा का झीलवाला महल अंग्रेज रेजीडेंट को खूब पसंद आया.

मौली भी उस दिन खूब खुश थी. मानू से मिलने की खुशी उस के चेहरे से फूटी पड़ रही थी. उसे क्या मालूम था कि मानू को उस के सामने झीलवाले रास्ते से लाया जाएगा और वह ठीक से उस की सूरत भी नहीं देख पाएगी.

जब सारी तैयारियां हो गईं और अंग्रेज रेजीडेंट भी आ गया, तो महल के परकोटे से मौली की चुनरी से राखावास की ओर वहां मौजूद सैनिकों को इशारा किया गया. सैनिकों ने मानू से झील के रास्ते प्रकाश स्तंभ तक तैर कर जाने को कहा, तो उस ने इनकार कर दिया कि वह मौली की कसम नहीं तोड़ सकता. इस पर सैनिकों ने उस से झूठ बोला कि मौली ने अपनी कसम तोड़ दी है, वह अपनी चुनरी लहरा कर उसे बुला रही है. मानू ने महल के परकोटे पर चुनरी लहराते देखी, तो उसे सैनिकों की बात सच लगी. उस ने बिना सोचेसमझे मौली के नाम पर झील में छलांग लगा दी.

जिस समय मानू झील को पार कर प्रकाश स्तंभ तक पहुंचा, उस समय तक  राजा समर सिंह का एक कारिंदा रस्सी के सहारे ढोलक लेकर वहां जा पहुंचा था. उसी ने मानू को बताया कि महल और प्रकाश स्तंभ के बीच मगरमच्छ हैं. उसे उसी स्तंभ पर बैठ कर ढोलक बजानी होगी और मौली उसी धुन पर परकोटे पर नाचेगी. कारिंदा राजा का हुक्म सुना कर दूसरी रस्सी के सहारे वापस लौट आया.

मौली को जब राजा की इस चाल का पता चला, तो वह मन ही मन खूब कुढ़ी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. उस ने मन ही मन फैसला किया कि आज वह अंतिम बार राजा की महफिल में नाचेगी और नाचतेगाते ही हमेशाहमेशा के लिए अपने मानू से जा मिलेगी.

राजा की महफिल छत पर सजी थी. प्रकाश स्तंभ और महल की छत पर विशेष प्रकाश व्यवस्था कराई गई थी. जब अंधेरा घिर आया और चारों ओर निस्तब्ध्ता छा गई, तो मौली को महफिल में बुलाया गया. उस समय उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. सजीधजी मौली घुंघरू खनकाती महफिल में पहुंची, तो लोगों के दिल धड़क उठे. मौली ने परकोटे पर खड़े हो कर श्वेत ज्योत्सना में नहाई झील को देखा. प्रकाश स्तंभ के पास सिकुड़ेसिमटे बैठे मानू को देखा और फिर आकाश के माथे पर टिकुली की तरह चमकते चांद को निहारते हुए बुदबुदाई, ‘‘हे मालिक, तुम से कभी कुछ नहीं मांगा, पर आज मांगती हूं. इस नाचीज को एक बार, सिर्फ एक बार उस के प्यार के गले जरूर लग जाने देना.’’

मन की मुराद मांग कर मौली ने एक बार जोर से पुकारा, ‘‘मानू…’’

उस की आवाज के साथ ही मानू के हाथ ढोलक पर चलने लग. ढोलक की आवाज वादियों में गूंजने लगी और उस के साथ ही मौली के पैरों के घुंघरू भी. पल भर में समां बंध गया. सभा में मौजूद लोग दिल थामे मौली की कला का आनंद लेने लगे. अभी महफिल जमे ज्यादा देर नहीं हुई थी.

मौली का पहला नृत्य पूरा होने वाला था. लोग वाहवाह कर रहे थे. तभी मौली तेजी से पीछे पलटी और कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही मानू का नाम ले कर चीखते हुए परकोटे से प्रकाश स्तंभ तक जानेवाले रस्से को पकड़ कर झूल गई. मौली का यह दुस्साहसिक रूप देख पूरी सभा सन्न रह गई.

महल के परकोटे से प्रकाश स्तंभ तक आनेजाने वाले कारिंदे रस्सों में विशेष प्रकार के कुंडे में बंध झूला डाल कर आतेजाते थे. काम के बाद कुंडे और झूला निकाल कर रख दिए जाते थे. मौली चूंकि रस्से को यूं ही पकड़ कर झूल गई थी, फलस्वरूप रस्से की रगड़ से उस के हाथ बुरी तरह घायल हो गए. वह ज्यादा देर तक अपने आप को संभाल नहीं पाई और झटके के साथ कुंड में जा गिरी.

हतप्रभ मानू यह दृश्य देख रहा था. मौली के गिरने की छपाक की आवाज उभरी, तो मानू ने भी कुंड में छलांग लगा दी. अंग्रेज रेजीडेंट, राजा और उस की महफिल इस भयावह दृश्य को देखती रह गई. कुछ देर मानू और मौली पानी में डूबतेउतराते दिखाई दिए भी, लेकिन थोड़ी देर में वे आंखों से ओझल हो गए.

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घुंघरू: भाग 3- राजा के बारे में क्या जान गई थी मौली

लेखक – पुष्कर पुष्प  

मानू ने एक विशाल शिला को चुन कर अपना साधनास्थल बनाया और मौली के पैरों में अपने हाथों से घुंघरू बांधे. उसी दिन से मानू की ढफ की ताल पर मौली की नृत्य साधना शुरू हुई, जो अगले 2 वर्षों तक निर्बाध चलती रही. इस बीच ढफ और ढोलक पर मानू ने नएनए ताल ईजाद किए और मौली ने नृत्य एवं गायन की नईनई कलाएं सीखीं.

अपनीअपनी कलाओं में पारंगत होने के बाद मौली और मानू ने होली के मौके पर गांव वालों के सामने अपनीअपनी कलाओं का पहला प्रदर्शन किया, तो लोग हतप्रभ रह गए. उन्होंने इस से पहले न ऐसा ढोलक बजाने वाला देखा था, न ऐसी अनोखी अदाओं के साथ नृत्य करने वाली. कई गांव वालों ने उसी दिन भविष्यवाणी कर दी थी कि मौली और मानू की जोड़ी एक दिन राजदरबार में जा कर इस गांव का मान बढ़ाएगी.

समय के साथ मानू और मौली का भेड़करियां चराना छूट गया और नृत्यगायन पेशा बन गया. कुछ ही दिन में इलाकेभर में उन की धूम मच गई. आसपास के गांवों के लोग अब उन दोनों को तीजत्योहार और विवाहशादियों के अवसर पर बुलाने लगे. इस के बदले उन्हें धनधन्य भी मिल जाता था. मानू ने अपनी कमाई के पैसे जोड़ कर सब से पहले मौली के लिए चांदी  के घुंघरू बनवाए. घुंघरू मौली को सौंपते हुए वह बोला, ‘‘ये मेरे प्यार की पहली निशानी है, इन्हें संभाल कर रखना. लोग घुंघरूओं को नाचने वाली के पैरों की जंजीर कहते हैं, लेकिन मेरे विचार से किसी भी नृत्यांगना के लिए इस से बढि़या कोई तोहफा नहीं हो सकता. तुम इन्हें जंजीर मत समझना. इन घुंघरूओं को तुम्हारे पैरों में बांधूगा भी मैं और खोलूंगा भी मैं.’’

मौली को मानू की बात भी अच्छी लगी और तोहफा भी. उस दिन के बाद से वही हुआ, जो मानू ने कहा था. मौली को जहां भी नृत्यकला का प्रदर्शन करना होता, मानू खुद उस के पैरों में घुंघरू बांधकर ढोलक पर ताल देता. ताल के साथ ही मौली के पैर थिरकने लगते. जब तक मौली नाचती, मानू की निगाह उस के पैरों पर ही जमी रहती. प्रदर्शन के बाद वही अपने हाथों से मौली के पैरों के घुंघरू खोलता.

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प्यार क्या होता है, यह न मौली जानती थी, न मानू. वे तो केवल इतना जानते थे कि वे दोनों बने ही एकदूसरे के लिए हैं. मरेंगे तो साथ, जिएंगे तो साथ. मौली और मानू अपने प्यार की परिभाषा भले ही न जानते हों, पर गांववाले उन के अगाध प्रेम को देख जरूर जान गए थे कि वे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. उन्हें उन के इस प्यार पर नाज भी था. किसी ने उन के प्यार में बाधा बनने की कोशिश भी नहीं की. मौली के मातापिता तक ने भी नहीं.

एक बार एक पहुंचे हुए साधू घूमतेघामते राखावास आए, तो गांव के कुछ युवकयुवतियां उन से अपनाअपना भविष्य पूछने लगे. उन में मौली भी शामिल थी. साधू बाबा उस के हाथ की लकीरें देखते ही बोले, ‘‘तेरी किस्मत में राजयोग लिखा है. किसी राजा की चहेती बनेगी तू.’’

मौली ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, मानू से बिछुड़ने की. उस के लिए वह राजवाज तो क्या, सारी दुनिया को ठोकर मार सकती थी. उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘मेरी किस्मत में राजयोग लिखा है, तो मानू का क्या होगा बाबा? …वह तो मेरे बिना…?’’

साधू बाबा पल भर आंखें बंद किए बैठे रहे. फिर आंखें खोल कर वह नीली झील की ओर निहारते हुए बोले, ‘‘वह इस झील में डूब कर मरेगा.’’

मौली सन्न रह गई. लगा, जैसे धरतीआकाश एक साथ हिल रहे हों, न चाहते हुए भी उस के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ऐसा होने नहीं दूंगी. मुझे मानू से कोई अलग नहीं कर सकता.’’

उस की बात सुन कर साधू बाबा ठहाका लगा कर हंसे. थोड़ी देर हंसने के बाद वे शांत स्वर में बोले, ‘‘होनी को कौन टाल सकता है बालिका.’’

बाबा अपनी राह चले गए. मौली को लगा, जैसे उस के सीने पर सैकड़ों मन वजन का पत्थर रख गए हों. यह बात सोचसोच कर वह पागल हुई जा रही थी कि बाबा की भविष्यवाणी सच निकली, तो क्या होगा? उस दिन जब मानू मिला, तो मौली उसे खींचते हुए झीलकिनारे ले गई और उस का हाथ अपने सिर पर रख कर बोली, ‘‘मेरी कसम खा मानू, तू आज के बाद जिंदगी भर कभी इस झील में कदम तक नहीं रखेगा.’’

मानू को मौली की यह बात बड़ी अजीब लगी. वह उस की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘यह कसम तो मैंने उसी दिन खा ली थी, जब तेरा खून इस झील के जल में मिल गया था. फिर भी तू कहती है, तो एक बार फिर कसम खा लेता हूं …पर बात क्या है? …इतनी घबराई हुई क्यों है?’’

मानू के कसम खा लेने के बाद मौली ने बाबा की बात उसे बताई, तो मानू हंसते हुए बोला, ‘‘तू इतना डरती क्यों है? जब मैं झील के पानी में कभी उतरूंगा ही नहीं, तो डूबूंगा कैसे? फिर कोई जरूरी तो नहीं कि बाबा की भविष्यवाणी सच ही हो.’’

साधू की भविष्यवाणी को वर्षों बीत चुके थे. इस बीच मौली 17 साल की हो गई थी और मानू 19 का. दोनों ही बाबा की बात भूल चुके थे.

…और तभी शिकार से लौटते समय राजा समर सिंह राखावास में रुके थे.

समर सिंह मौली को अपने साथ क्या ले गए, राखावास के प्राकृतिक दृश्यों की शोभा चली गई, गांव वालों का अभिमान चला गया और चली गई मानू की जान. पागलसा हो गया मानू. बस झील किनारे बैठा उस राह को निहारता रहता, जिस राह  राजा के साथ मौली गई थी. खानेपीने का होश ही नहीं था उसे. लगता था, जैसे राजा उस की जान निकाल कर ले गया हो.

बात तब की है, जब हिन्दुस्तान में मुगलिया सल्तनत का पराभव हो चुका था और ईस्ट इंडिया कंपनी का परचम पूरे देश में फहराने के प्रयास किए जा रहे थे. देश के कितने ही राजेरजवाड़े विलायती झंडे के नीचे आ चुके थे, और कितने आने को मजबूर थे. उन्हीं दिनों अरावती पर्वतमाला की घाटियों में बसी एक छोटीसी रियासत थी चंदनगढ़. इस रियासत के राजा समर सिंह थे तो अंग्रेज विरोधी, पर शक्तिहीनता की वजह से उन्हें भी ईस्ट इंडिया कंपनी के झंडे तले आना पड़ा था. उन पर अंग्रेजों का इतना प्रभाव था कि उन्हें अपने घोड़े गोरा का नाम बदल कर गोरू करना पड़ा था.

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समर सिंह उन राजाओं में थे, जो रासरंग में डूबे रहने के कारण राजकाज और प्रजा का ठीक से ध्यान नहीं रख पाते थे. राजा समर सिंह को 2 ही शौक थे, पहला शिकार का और दूसरा नाचगाने और मौजमस्ती का. मौली को भी उन्होंने इसी उद्देश्य से चुना था. लेकिन यह उन की भूल थी. वह नहीं जानते थे कि मौली दौलत की नहीं, प्यार की दीवानी है.

राजा समर सिंह मौली के रूपलावण्य, मदमाते यौवन और उस की नृत्यकला से प्रभावित हो कर उसे साथ जरूर ले आए थे, लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी भान नहीं था कि यह सौदा उन्हें सस्ता नहीं पड़ेगा.

राजमहल में पहुंच कर मौली का रंग ही बदल गया. राजा ने उस की सेवा के लिए दासियां भेजीं, नएनए वस्त्र, आभूषण और श्रृंगार प्रसाधन भेजे, लेकिन मौली ने किसी चीज की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा. वह जिंदा लाशसी शांत बैठी रही. किसी से बोली तक नहीं, मानों गूंगी हो गई थी वह. दासियों ने समझाया, पड़दायतों ने मनुहार की, पर कोई फायदा नहीं हुआ.

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बहन का सुहाग: भाग 3- क्या रिया अपनी बहन का घर बर्बाद कर पाई

लेखकनीरज कुमार मिश्रा

राजवीर सिंह की शानोशौकत देख कर रिया सोचती कि निहारिका कितनी खुशकिस्मत है, जो इसे बड़ा और अमीर परिवार मिला. उस के मन में भी कहीं न कहीं राजवीर सिंह जैसा पति पाने की उम्मीद जग गई थी.

‘‘ये लो… तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट,‘‘ राजवीर सिंह ने एक सुनहरा पैकेट रिया की और बढ़ाते हुए कहा.

‘‘ओह, ये क्या… लैपटौप… अरे, वौव जीजू… मुझे लैपटौप की सख्त जरूरत थी. आप सच में बहुत अच्छे हो जीजू…‘‘ रिया खुशी से चहक उठी थी.

राजवीर को पता था कि रिया को अपनी पढ़ाई के लिए एक लैपटौप चाहिए था, इसलिए आज उस के जन्मदिन पर उसे गिफ्ट दे कर खुश कर दिया था राजवीर ने.

रात को अपने कमरे में जा कर लैपटौप औन कर के रिया गेम्स खेलने लगी. कुछ देर बाद उस की नजर लैपटौप में पड़ी एक ‘निहारिका‘ नाम की फाइल पर पड़ी, तो उत्सुकतावश रिया ने उसे खोला. वह एक ब्लू फिल्म थी, जो अब लैपटौप की स्क्रीन पर प्ले हो रही थी.

पहले तो रिया को कुछ हैरानी हुई कि नए लैपटौप में ये ब्लू फिल्म कैसे आई, पर युवा होने के नाते उस की रुचि उस फिल्म में बढ़ती गई और फिल्म में आतेजाते दृश्यों को देख कर वह भी उत्तेजित होने लगी.
यही वह समय था, जब कोई उस के कमरे में आया और अपना हाथ रिया के सीने पर फिराने लगा था.

रिया ने चौंक कर लैपटौप बंद कर दिया और पीछे घूम कर देखा तो वह राजवीर था, ‘‘व …वो ज… जीजाजी, वह लैपटौप औन करते ही फिल्म…‘‘

‘‘अरे, कोई बात नहीं… तुम खूबसूरत हो, जवान हो, तुम नहीं देखोगी, तो कौन देखेगा… वैसे, तुम ने उस दिन मुझे और निहारिका को भी एकदूसरे को किस करते देख लिया था,‘‘ राजवीर ने इतना कह कर रिया को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लिया और उस के नरम होंठों को चूसने लगा.

जीजाजी को ऐसा करते रिया कोई विरोध न कर सकी थी. जैसे उसे भी राजवीर की इन बांहों में आने का इंतजार था.

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राजवीर रिया की खूबसूरती का दीवाना हो चुका था, तो रिया भी उस के पैसे और शानोशौकत पर फिदा थी.
दोनों की सांसों की गरमी से कमरा दहक उठा था. राजवीर ने रिया के कपड़े उतारने शुरू कर दिए. रिया थोड़ा शरमाईसकुचाई, पर सैक्स का नशा उस पर भी हावी हो रहा था. दोनों ही एकदूसरे में समा गए और उस सुख को पाने के लिए यात्रा शुरू कर दी, जिसे लोग जन्नत का सुख कहते हैं.

उस दिन जीजासाली दोनों के बीच का रिश्ता तारतार क्या हुआ, फिर तो दोनों के बीच की सारी दीवारें ही गिर गईं.

राजवीर का काफी समय घर में ही बीतता. जरूरी काम से भी वह बाहर जाने में कतराता था. घर पर जब भी मौका मिलता, तो वह रिया को छूने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देता. और तो और दोनों सैक्स करने में भी नहीं चूकते थे.

एक दोपहर जब निहारिका कुछ रसोई के काम निबटा रही थी, तभी राजवीर रिया के कमरे में घुस गया और रिया को बांहों में दबोच लिया. दोनों एकदूसरे में डूब कर सैक्स का मजा लूटने लगे. अभी दोनों अधबीच में ही थे कि कमरे के खुले दरवाजे से निहारिका अंदर आ गई. अंदर का नजारा देख उस के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई. दोनों को नंगा एकदूसरे में लिप्त देख पागल होने लगी थी निहारिका.

‘‘ओह राजवीर, ये क्या कर रहे हो मेरी बहन के साथ… अरे, जब मेरा पेट तुम से नहीं भरा, तो मेरी बहन पर मुंह मारने लगे. माना कि मैं तुम्हारी सारी मांगें पूरी नहीं कर पाती थी, पर तुम्हें कुछ तो अपने ऊपर कंट्रोल रखना चाहिए था.

‘‘और तुम रिया…‘‘ रिया की ओर घूमते हुए निहारिका बोली, ‘‘बहन ही बहन की दुश्मन बन गई. तुम से अपनी जवानी नहीं संभली जा रही थी तो मुझे बता दिया होता. मैं मम्मीपापा से कह कर तुम्हारी शादी करा देती, पर ये क्या… तुम्हें मेरा ही आदमी मिला था अपना मुंह काला करने के लिए. मैं अभी जा कर यह बात पापा को बताती हूं,‘‘ कमरे के बाहर जाते हुए निहारिका फुंफकार रही थी.

राजवीर ने सोचा कि आज तो निहारिका पापा को यह बात बता ही देगी. अपने ही पिता की नजरों में वह गिर जाएगा…
‘‘मैं कहता हूं, रुक जाओ निहारिका… रुक जाओ, नहीं तो मैं गोली चला दूंगा…‘‘

‘‘धांय…‘‘

और अगले ही पल निहारिका के मुंह से एक चीख निकली और उस की लाश फर्श पर पड़ी हुई थी.

अपनी जेब में राजवीर हमेशा ही एक रिवौल्वर रखता था, पर किसे पता था कि वह उसे अपनी ही प्रेमिका और नईनवेली दुलहन को जान से मारने के लिए इस्तेमाल कर देगा.

यह देख रिया सकते में थी. अभी वह पूरे कपडे़ भी नहीं पहन पाई थी कि गोली की आवाज सुनते ही पापामम्मी ऊपर कमरे में आ गए.

अंदर का नजारा देख सभी के चेहरे पर कई सवालिया निशान थे और ऊपर से रिया का इस अवस्था में होना उन की हैरानी को और भी बढ़ाता जा रहा था.

‘‘क्या हुआ, बहू को क्यों मार दिया…?‘‘ मां बुदबुदाई, ‘‘पर, क्यों राजवीर?‘‘

‘‘न… नहीं… मां, मैं ने नहीं मारा उसे, बल्कि उस ने आत्महत्या कर ली है,‘‘ राजवीर ने निहारिका के हाथ के पास पड़े रिवौल्वर की तरफ इशारा करते हुए कहा और इस हत्या को आत्महत्या का रुख देने की कोशिश की.

यह देख कर सभी चुप थे.

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राजवीर, रिया… और अब उस के मम्मीपापा पर अब तक बिना कहे ही कुछकुछ कहानी उन की समझ में आने लगी थी.

निहारिका के मम्मीपापा को खबर की गई.

अगले साल निहारिका के मम्मीपापा भी रोते हुए आए. पर यह बताने का साहस किसी में नहीं हुआ कि निहारिका को किस ने मारा है.

आनंद रंजन ने रोते हुए कहा, ‘‘अच्छीखासी तो थी, जब मैं मिल कर गया था उस से… अचानक से क्या हो गया और भला वह आत्महत्या क्यों करेगी? बोलो दामादजी, बोलो रिया, तुम तो उस के साथ थे. वह अपने को क्यों मारेगी…

आनंद रंजन बदहवास थे. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वे पुलिस को बुलाना चाहते थे और मामले की जांच कराना चाहते थे.

उन की मंशा समझ राजवीर ने खुद ही पुलिस को फोन किया.

आनंद रंजन को समझाते हुए राजवीर ने कहा, ‘‘देखिए… जो होना था हो गया. ऐसा क्यों हुआ, कैसे हुआ, इस की तह में ज्यादा जाने की जरूरत नहीं है… हां, अगर आप को यही लगता है कि हम निहारिका की हत्या के दोषी हैं, तो बेशक हमारे खिलाफ रिपोर्ट कर दीजिए और हम को जेल भेज दीजिए…

‘‘पर, आप को बता दें कि अगर हम जेल चले भी गए, तो जेल के अंदर भी वैसे ही रहेंगे, जैसे हम यहां रहते हैं. और अगर आप जेल नहीं भेजे हम को तो आप की छोटी बेटी की जिंदगी भी संवार देंगे.

“अगर हमारी बात का भरोसा न हो तो पूछ लीजिए अपनी बेटी रिया से.‘‘

इतना सुनने के बाद आनंद रंजन के चेहरे पर कई तरह के भाव आएगए. एक बार भरी आंखों से उन्होंने रिया की तरफ सवाल किया, पर रिया खामोश रही, मानो उस की खामोशी राजवीर की हां में हां मिला रही थी.

आनंद रंजन ने दुनिया देखी थी. वे बहुतकुछ समझे और जो नहीं समझ पाए, उस को समझने की जरूरत भी नहीं थी.

पुलिस आई और राजवीर के पैसे और रसूख के आगे इसे महज एक आत्महत्या का केस बना कर रफादफा कर दिया गया.

किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि सभी राजवीर के जलवे को जानते थे, पर हां, आनंद रंजन के नातेरिश्तेदारों और राजवीर के पड़ोसियों को जबरदस्त हैरानी तब जरूर हई, जब एक साल बाद ही आनंद रंजन ने रिया की शादी राजवीर से कर दी.

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निहारिका के बैडरूम पर अब रिया का अधिकार था और राजवीर की गाड़ी में रिया घूमती थी. इस तरह एक बहन ने दूसरी बहन के ही सुहाग को छीन लिया था.

ये अलग बात थी कि जानतेबूझते हुए भी अपनी बेटी को इंसाफ न दिला पाने का गम आनंद रंजन सहन न कर पाए और रिया की शादी राजवीर के साथ कर देने के कुछ दिनों बाद ही उन की मृत्यु हो गई.
रिया अब भी राजवीर के साथ ऐश कर रही थी.

हवाई जहाज दुर्घटना: भाग 3- क्या हुआ था आकृति के साथ

लेखक-डा. भारत खुशालानी

नब्ज की धड़कन को महसूस करने के लिए अब उसे कनपटियों पर उंगलियां फिराने की जरूरत नहीं थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे खून की यह नाड़ी कनपटियों के बाहर आ गई हो. जैसेजैसे उस की बेचैनी बढ़ रही थी, वैसेवैसे नाड़ी की धड़कन बढ़ रही थी. उस के दिलों की धड़कन तो बढ़ ही गई थी, लेकिन अधिक दबाव के कारण कनपटियों की नाड़ी सिर में दर्द पैदा कर रही थी. आमतौर पर सौ से नीचे रहने वाली यह धड़कन अब शायद डेढ़ सौ तक पहुंच गई थी.

ऐसा लग रहा था कि कानों के पास का हिस्सा फट जाएगा. उस ने थोड़ा सोचने की कोशिश की, लेकिन सोचने का समय नहीं था. स्टौल की स्थिति गंभीर हो कर और खराब हो रही थी.

अचानक आकृति को एहसास हुआ कि यदि इस क्षण में वो किसी नतीजे पर पहुंच कर ठोस कदम नहीं उठाएगी, तो विमान आकाश से नीचे गिर जाएगा.

उस क्षण में आकृति ने अपना मन बना लिया. उस ने फैसला कर लिया कि विमान को बचाने के लिए वह उसे नीचे की ओर ले जाएगी. उस ने कार के स्टीयरिंग व्हील जैसे दिखने वाले जोत को सामने की ओर धकेला, जिस से विमान के सामने का नाक वाला हिस्सा नीचे की ओर झुक गया और विमान के पीछे का हिस्सा ऊपर उठ गया. इस से विमान अपनी नाक की सीध में नीचे की ओर जाने लगा.

आकृति ने मन ही मन कहा कि विमान की रफ्तार तेज हो जाए. तुरंत ही, विमान की रफ्तार तेज हो गई. लेकिन अब समस्या यह खड़ी हो गई कि विमानतल के दौड़पथ की तरफ जाने के बदले विमान शहर के इलाके में जा रहा था.

ऊंचाईसूचक यंत्र बता रहा था कि विमान की ऊंचाई तेजी से शून्य की ओर बढ़ रही है. मतलब, विमान तेजी से जमीन की ओर आ रहा था.

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जैसेजैसे इस यंत्र की सूई शून्य की तरफ झुक रही थी, वैसेवैसे शहर के इलाके में घुस कर विमान के तबाही मचा देने के आसार बढ़ रहे थे. लेकिन विमान के अतिरिक्त वेग का एक फायदा यह हुआ कि आकृति को विमान को समतल बनाने में अचानक ही आसानी हो गई.

जिस समय इंजन में आग लगी थी, उस समय से ले कर अब तक, पहली बार आकृति को प्रतीत हुआ कि विमान को नियंत्रण में ला कर उसे स्थिर रास्ते पर लाया जा सकता है.

वैसे तो विमान अभी भी किसी भारी पत्थर की तरह ही नीचे गिर रहा था, लेकिन आकृति उस को एक सीधी रेखा में रख काबू में रखने की कोशिश कर पा रही थी. उस ने तब तक इंतजार किया, जब तक विमान 2,000 फुट नीचे न गिर गया हो, उस के बाद उस ने जोत को पीछे की ओर खींचा.

जोत को पीछे की ओर खींचने से विमान की नाक नीचे की ओर से ऊपर आ कर सीधी हो गई और विमान आकाश में समतल हो गया.

इस के बाद आकृति ने थ्रौटल को आगे धकेला, जिस से विमान की गति बढ़ी. विमान की उड़ान में अभी भी ऊबड़खाबड़ मची हुई थी, लेकिन एक इंजन पर विमान को उस दिशा में घुमा पाना संभव हो गया था, जिस दिशा से वह भटक गया था. विमान की उतराई का मार्ग अब निशाने पर था.

आकृति ने अवतरण गियर को नीचे किया, जिस से वायुयान के पहिए अपनी सामान्य गति से विमान के बाहर आ गए. अपने सामने के वायुरोधक शीशे से उसे हवाईअड्डे का दौड़पथ नजर आ रहा था.

आकृति ने अपना ध्यान विमान को नियंत्रित रखने पर केंद्रित किया और दौड़पथ पर लगी बत्तियों को सामने के शीशे के बीचोंबीच रखने का प्रयास किया. उस ने ऊंचाईसूचक यंत्र की तरफ जल्दी से नजर डाली. यंत्र की सूई 500 फुट से गिर कर 400 फुट हुई, फिर 300 फुट, फिर 200 फुट, फिर 100 फुट.

100 फुट के बाद आकृति ने विमान को दौड़पथ की रोशनियों के सहारे विमान को बिलकुल बीच में लाने का प्रयास किया. यंत्र की सूई 50 फुट तक आई, फिर 25, फिर 10 और फिर विमान तीव्रता से दौड़पथ से आ कर मिला. एक गतिरोधक के ऊपर से गुजरने वाली वेदना के साथ विमान ठोस धरती से टकराया और दौड़पथ पर दौड़ने लगा.

विमान की उतरान बदसूरत थी. आकृति ने जोर से ब्रेक दबाए. उस ने तेज गति से और झटके से विमान को मोड़ा, ताकि विमान के पंख अपने निर्धारित दौड़पथ की रेखाओं के अंदर आ जाएं. अगर उतरने के बाद भी विमान को काबू में न रखा गया तो वह आसपास के दौड़पथ पर जा कर दूसरी चीजों से टकरा सकता था.

विमान सुरक्षित तो नीचे उतर गया था, लेकिन उतरने के बाद जोर से ब्रेक लगने और झटके से मुड़ने के कारण वह दौड़पथ पर अस्थिर रूप से इधरउधर दौड़ रहा था.

आकृति ने अपना हौसला नहीं खोया. इंजन में आग लग जाने के बावजूद भी वह विमान को सुरक्षित तरीके से नीचे ले आने में कामयाब हो पाई थी, इस बात से उस का आत्मविश्वास अब काफी हद तक बढ़ गया था. उस ने जोत को कस कर पकड़ लिया और उसे एकदम सीधे मजबूती से पकड़ कर रखा. इस से विमान की लहरदार चाल पर लगाम लग गई और विमान धीरेधीरे कर के दौड़पथ के बीच की रेखा में सीधा आ गया.

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जोर से ब्रेक लगाने के कारण विमान ने दौड़पथ पर अपनी निश्चित सीमा का उल्लंघन नहीं किया और दौड़पथ खत्म होने से पहले ही अपनी दौड़ को विराम दिया.

जब विमान पूरी तरह से स्थिर हो कर खड़ा हो गया तो आकृति ने अपने हाथ जोत पर से हटाए, अपने माथे को जोर से रगड़ा और दो पल के लिए अपना सिर नीचे की ओर झुकाया.

आज की अविश्वसनीय घटना आकृति ने दूसरों से होती हुई सुनी थी, लेकिन जिंदगी में कभी भी यह नहीं सोचा था कि किसी दिन उस के साथ भी ऐसा होगा.

विमान के बाहर अग्निशामक दस्ते दौड़ते हुए विमान की तरफ आ रहे थे. मई की भीषण गरमी में बदन को झुलसाती इस विमान में लगी आग… विमान के अंदर, एक कोरोना से बचने के लिए मास्क काफी नहीं था, यात्रियों को ऊपर से गिरा औक्सीजन का मास्क भी पहनना पड़ा था.

विमान के इंजन में आग लगते ही औक्सीजन के मास्क नीचे आ गए थे और एयर होस्टेस ने यात्रियों की मदद की थी औक्सीजन मास्क पहनने में, हालांकि यात्रियों से थोड़ा सा दूर रह कर. जब एक के ऊपर एक आपदाएं आती हैं, तो उन सब से एकसाथ निबटने के लिए नए आयामों को ईजाद करना पड़ता है.

यात्रियों ने विमान के जमीन पर उतरते ही एक नए जीवन को अपने भीतर जाते हुए महसूस किया. विमान के पूरी तरह से स्थिर हो जाने के बाद भी तब तक खतरा बना हुआ था, जब तक सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर नहीं निकाल लिया जाता. एक तरफ आग को काबू में लाने के लिए पानी की बौछारें बरसाई जा रही थी, तो वहीं दूसरी तरफ यात्रियों को सुरक्षित नीचे उतारने के लिए सीढ़ियां पीछे के दरवाजे पर लगाई जा रही थीं.

आकृति अपना सिर नीचे झुकाए बैठी थी. उस की आंखों में आंसू आ गए थे. वह अपनेआप को ही इस विपदा का कारण समझने लगी थी, ‘मेरी ही गलत सोच थी यह, जिस ने ऐसी परिस्थितियों को पैदा किया, जिस से विमान के इंजन में आग लग गई. अगर मेरी सोच सकारात्मक होती तो विमान के इंजन में आग कभी नहीं लगती,’ यही सोच आकृति को खाए जा रही थी. वह यह भूल गई कि अगर उस की जगह कोई और होता तो शायद विमान उसी प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो गया होता, जैसे 2 दिन पहले कराची में हुआ था.

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रावण अब भी जिंदा है : क्या मीना उस रात अपनी इज्जत बचा पाई

मीना सड़क पर आ कर आटोरिकशे का इंतजार करने लगी, मगर आटोरिकशा नहीं आया. वह अकेली ही बूआ के यहां गीतसंगीत के प्रोग्राम में गाने आई थी. तब बूआ ने भी कहा था, ‘अकेली मत जा. किसी को साथ ले जा.’

मीना ने कहा था, ‘क्यों तकलीफ दूं किसी को? मैं खुद ही आटोरिकशे में बैठ कर चली जाऊंगी?’ मीना को तो अकेले सफर करने का जुनून था. यहां आने से पहले उस ने राहुल से भी यही कहा था, ‘मैं बूआ के यहां गीत गाने जा रही हूं.’

‘चलो, मैं छोड़ आता हूं.’

‘नहीं, मैं चली जाऊंगी,’ मीना ने अनमने मन से कह कर टाल दिया था.

तब राहुल बोला था, ‘जमाना बड़ा खराब है. अकेली औरत का बाहर जाना खतरे से खाली नहीं है.’

‘आप तो बेवजह की चिंता पाल रहे हैं. मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूं, जो कोई रावण मुझे उठा कर ले जाएगा.’

‘यह तुम नहीं तुम्हारा अहम बोल रहा है,’ समझाते हुए एक बार फिर राहुल बोला था, ‘जब से दिल्ली में चलती बस में निर्भया के साथ…’

‘इस दुनिया में कितनी औरतें ऐसी हैं, जो अकेले ही नौकरी कर रही हैं…’ बीच में ही बात काटते हुए मीना बोली थी, ‘मैं तो बस गीत गा कर वापस आ जाऊंगी.’

यहां से उस की बूआ का घर 3 किलोमीटर दूर है. वह आटोरिकशे में बैठ कर बूआ के यहां पहुंच गई थी. वहां जा कर राहुल को फोन कर दिया था कि वह बूआ के यहां पहुंच गई है. फिर वह बूआ के परिवार में ही खो गई. मगर अब रात को सड़क पर आ कर आटोरिकशे का इंतजार करना उसे महंगा पड़ने लगा था.

जैसेजैसे रात गहराती जा रही थी, सन्नाटा पसरता जा रहा था. इक्कादुक्का आदमी उसे अजीब सी निगाह डाल कर गुजर रहे थे. जितने भी आटोरिकशे वाले गुजरे, वे सब भरे हुए थे. जब कोई औरत किसी स्कूटर के पीछे मर्द के सहारे बैठी दिखती थी, तब मीना भी यादों में खो जाती थी. वह इसी तरह राहुल के स्कूटर पर कई बार पीछे बैठ चुकी थी.

आटोरिकशा तो अभी भी नहीं आया था. रात का सन्नाटा उसे डरा रहा था. क्या राहुल को यहां बुला ले? अगर वह बुला लेगी, तब उस की हार होगी. वह साबित करना चाहती थी कि औरत अकेली भी घूम सकती है, इसलिए उस ने राहुल को फोन नहीं किया.

इतने में एक सवारी टैंपो वहां आया. वह खचाखच भरा हुआ था. टैंपो वाला उसे बैठने का इशारा कर रहा था. मीना ने कहा, ‘‘कहां बैठूंगी भैया?’’

वह मुसकराता हुआ चला गया. तब वह दूसरे टैंपों का इंतजार करने लगी, मगर काफी देर तक टैंपो नहीं आया. तभी एक शख्स उस के पास आ कर बोला, ‘‘चलोगी मेरे साथ?’’

‘‘कहां?’’ मीना ने पूछा.

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‘‘उस खंडहर के पास. कितने पैसे लोगी?’’ उस आदमी ने जब यह कहा, तब उसे समझते देर न लगी. वह आदमी उसे धंधे वाली समझ रहा था. वह भी एक धंधे वाली औरत बन कर बोली, ‘‘कितना पैसा दोगे?’’ वह आदमी कुछ न बोला. सोचने लगा. तब मीना फिर बोली, ‘‘जेब में कितना माल है?’’

‘‘बस, 50 रुपए.’’

‘‘जेब में पैसा नहीं है और आ गया… सुन, मैं वह औरत नहीं हूं, जो तू समझ रहा है,’’ मीना ने कहा.

‘‘तब यहां क्यों खड़ी है?’’

‘‘भागता है कि नहीं… नहीं तो चप्पल उतार कर सारा नशा उतार दूंगी तेरा,’’ मीना की इस बात को सुन कर वह आदमी चलता बना.

अब मीना ने ठान लिया था कि वह खाली आटोरिकशे में नहीं बैठेगी, क्योंकि उस ड्राइवर में अकेली औरत को देख कर न जाने कब रावण जिंदा हो जाए?

‘‘कहां चलना है मैडम?’’ एक आटोरिकशा वाला उस के पास आ कर बोला. जब मीना ने देखा कि उस की आंखों में वासना है, तब वह समझ गई कि इस की नीयत साफ नहीं है.

वह बोली, ‘‘कहीं नहीं.’’

‘‘मैडम, अब कोई टैंपो मिलने वाला नहीं है…’’ वह लार टपकाते हुए बोला, ‘‘आप को कहां चलना है? मैं छोड़ आता हूं.’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना है,’’ वह उसे झिड़कते हुए बोली.

‘‘जैसी आप की मरजी,’’ इतना कह कर वह आगे बढ़ गया.

मीना ने राहत की सांस ली. शायद आटोरिकशे वाला सही कह रहा था कि अब कोई टैंपो नहीं मिलने वाला है. अगर वह मिलेगा, तो भरा हुआ मिलेगा. मगर अब कितना भी भरा हुआ टैंपो आए, वह उस में लद जाएगी. वह लोगों की निगाह में बाजारू औरत नहीं बनना चाहती थी.

मीना को फिल्मों के वे सीन याद आए, जब हीरोइन को अकेले पा कर गुंडे उठा कर ले जाते हैं, मगर न जाने कहां से हीरो आ जाता है और हीरोइन को बचा लेता है. मगर यहां किसी ने उस का अपहरण कर लिया, तब उसे बचाने के लिए कोई हीरो नहीं आएगा.

मीना आएदिन अखबारों में पढ़ती रहती थी कि किसी औरत के साथ यह हुआ, वह हुआ, वह यहां ज्यादा देर खड़ी रहेगी, तब उसे लोग गलत समझेंगे.

तभी मीना ने देखा कि 3-4 नौजवान हंसते हुए उस की ओर आ रहे थे. उन्हें देख वह सिहर गई. अब वह क्या करेगी? खतरा अपने ऊपर मंडराता देख कर वह कांप उठी. वे लोग पास आ कर उस के आसपास खड़े हो गए. उन में से एक बोला, ‘यहां क्यों खड़ी है?’’

दूसरे आदमी ने जवाब दिया, ‘‘उस्ताद, ग्राहक ढूंढ़ रही है.’’

तीसरा शख्स बोला, ‘‘मिला कोई ग्राहक?’’

पहले वाला बोला, ‘‘अरे, कोई ग्राहक नहीं मिला, तो हमारे साथ चल.’’

मीना ने उस अकेले शख्स से तो मजाक कर के भगा दिया था, मगर यहां 3-3 जिंदा रावण उस के सामने खड़े थे. उन्हें कैसे भगाए?

वे तीनों ठहाके लगा कर हंस रहे थे, मगर तभी पुलिस की गाड़ी सायरन बजाती हुई आती दिखी.

एक बोला, ‘‘चलो उस्ताद, पुलिस आ रही है.’’

वे तीनों वहां से भाग गए. मगर मीना इन पुलिस वालों से कैसे बचेगी? पुलिस की जीप उस के पास आ कर खड़ी हो गई. उन में से एक पुलिस वाला उतरा और कड़क आवाज में बोला, ‘‘इतनी रात को सड़क पर क्यों खड़ी है?’’

‘‘टैंपो का इंतजार कर रही हूं,’’ मीना सहमते हुए बोली.

‘‘अब रात को 11 बजे टैंपो नहीं मिलेगा. कहां जाना है?’’

‘‘सर, सांवरिया कालोनी.’’

‘‘झूठ तो नहीं बोल रही है?’’

‘‘नहीं सर, मैं झूठ नहीं बोलती,’’ मीना ने एक बार फिर सफाई दी.

‘‘मैं अच्छी तरह जानता हूं तुम जैसी धंधा करने वाली औरतों को…’’ पुलिस वाला जरा अकड़ कर बोला, ‘‘अब जब पकड़ी गई हो, तो सती सावित्री बन रही हो. बता, वे तीनों लोग कौन थे?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम सर.’’

‘‘झूठ बोलते शर्म नहीं आती तुझे,’’ पुलिस वाला फिर गरजा.

‘‘मैं सच कह रही हूं सर. वह तीनों कौन थे, मुझे कुछ नहीं मालूम. मुझे अकेली देख कर वे तीनों आए थे. मैं वैसी औरत नहीं हूं, जो आप समझ रहे हैं,’’ मीना ने अपनी सफाई दी.

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‘‘चल थाने, वहां सब असलियत का पता चल जाएगा. चल बैठ जीप में… सुना कि नहीं?’’

‘‘सर, मुझे मत ले चलो. मैं घरेलू औरत हूं.’’

‘‘अरे, तू घरगृहस्थी वाली औरत है, तो रात के 11 बजे यहां क्या कर रही है? ठीक है, बता, तेरा पति कहां है?’’

‘‘सर, वे तो घर में हैं.’’

‘‘मतलब, वही हुआ न… तू धंधा करने के लिए रात को अकेली निकली है और अपने पति की आंखों में धूल झोंक रही है. तेरा झूठ यहीं पकड़ा गया…

‘‘अच्छा, अब बता कि तू कहां से आ रही है?’’

‘‘बूआ के यहां गीतसंगीत के प्रोग्राम में आई थी सर. वहीं देर हो गई.’’

‘‘फिर झूठ बोल रही है. बैठ जीप में,’’ पुलिस वाला अब तक उस पर शिकंजा कस चुका था.

‘‘ठीक है सर, अगर आप को यकीन नहीं हो रहा है, तो मैं उन्हें फोन कर के बुलाती हूं, ताकि आप को असलियत का पता चल जाए,’’ कह कर वह पर्स में से मोबाइल फोन निकालने लगी.

तभी पुलिस वाला दहाड़ा, ‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है. मुझे मालूम है कि तू अपने पति को बुला कर उस के सामने अपने को सतीसावित्री साबित करना चाहेगी. सीधेसीधे क्यों नहीं कह देती है कि तू धंधा करती है.’’

मीना की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था कि तभी अचानक राहुल उसे गाड़ी से आता दिखाई दिया. उस ने आवाज लगाई, ‘‘राहुल… राहुल.’’

राहुल पास आ कर बोला, ‘‘अरे मीना, तुम यहां…’’

अचानक उस की नजर जब पुलिस पर पड़ी, तब वह हैरानी से आंखें फाड़ते हुए देखता रहा. पुलिस वाला उसे देख कर गरजा, ‘‘तुम कौन हो?’’

‘‘मैं इस का पति हूं.’’

‘‘तुझे झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती,’’ पुलिस वाला अपनी वरदी का रोब दिखाते हुए बोला, ‘‘तुम दोनों मुझे बेवकूफ बना रहे हो. अपनी पत्नी से धंधा कराते हुए तुझे शर्म नहीं आती. चल थाने में जब डंडे पड़ेंगे, तब भूल जाएगा अपनी पत्नी से धंधा कराना.’’

यह सुन कर राहुल हाथ जोड़ता हुआ बोला, ‘‘आप यकीन रखिए सर, यह मेरी पत्नी है, बूआ के यहां गीत गाने अकेली गई थी. लौटने में जब देर हो गई, तब बूआ ने बताया कि यह तो घंटेभर पहले ही निकल चुकी है.

‘‘जब यह घर न पहुंची, तब मैं इसे ढूंढ़ने के लिए निकला. अगर आप को यकीन न हो, तो मैं बूआ को यहीं बुला लेता हूं.’’

‘‘ठीक है, ठीक है. तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो,’’ पुलिस वाले ने जरा नरम पड़ते हुए कहा.

‘‘अकेली औरत को देर रात को बाहर नहीं भेजना चाहिए,’’ पुलिस वाले को जैसे अब यकीन हो गया था, इसलिए अपने तेवर ठंडे करते हुए वह बोला, ‘‘यह तो मैं समय पर आ गया, वरना वे तीनों गुंडे आप की पत्नी की न जाने क्या हालत करते. फिर आप लोग पुलिस वालों को बदनाम करते.’’

‘‘गलती हमारी है. आगे से मैं ध्यान रखूंगा,’’ राहुल ने हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुए कहा.

पुलिस की गाड़ी वहां से चली गई. मीना नीचे गरदन कर के खड़ी रही. राहुल बोला, ‘‘देख लिया अकेले आने का नतीजा.’’

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‘‘राहुल, मुझे शर्मिंदा मत करो. रावण तो एक था, मगर इस 2 घंटे के समय में मुझे लगा कि आज भी कई रावण जिंदा हैं.

‘‘अगर आप नहीं आते, तो वह पुलिस वाला मुझे थाने में बैठा देता,’’ कह कर मीना ने मन को हलका कर लिया.

‘‘तो बैठो गाड़ी में…’’ गुस्से से राहुल ने कहा, ‘‘बड़ी लक्ष्मीबाई बनने चली थी.’’ मीना नजरें झुकाए चुपचाप गाड़ी में जा कर बैठ गई.

बंद किताब : रत्ना के लिए क्या करना चाहता था अभिषेक

लेखक- रामदेव लाल श्रीवास्तव

‘‘तुम…’’

‘‘मुझे अभिषेक कहते हैं.’’

‘‘कैसे आए?’’

‘‘मुझे एक बीमारी है.’’

‘‘कैसी बीमारी?’’

‘‘पहले भीतर आने को तो कहो.’’

‘‘आओ, अब बताओ कैसी बीमारी?’’

‘‘किसी को मुसीबत में देख कर मैं अपनेआप को रोक नहीं पाता.’’

‘‘मैं तो किसी मुसीबत में नहीं हूं.’’

‘‘क्या तुम्हारे पति बीमार नहीं हैं?’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’

‘‘मैं अस्पताल में बतौर कंपाउंडर काम करता हूं.’’

‘‘मैं ने तो उन्हें प्राइवेट नर्सिंग होम में दिखाया था.’’

‘‘वह बात भी मैं जानता हूं.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘तुम ने सर्जन राजेश से अपने पति को दिखाया था न?’’

‘‘हां.’’

‘‘उन्होंने तुम्हारी मदद करने के लिए मुझे फोन किया था.’’

‘‘तुम्हें क्यों?’’

‘‘उन्हें मेरी काबिलीयत और ईमानदारी पर भरोसा है. वे हर केस में मुझे ही बुलाते हैं.’’

‘‘खैर, तुम असली बात पर आओ.’’

‘‘मैं यह कहने आया था कि यही मौका है, जब तुम अपने पति से छुटकारा पा सकती हो.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘बनो मत. मैं ने जोकुछ कहा है, वह तुम्हारे ही मन की बात है. तुम्हारी उम्र इस समय 30 साल से ज्यादा नहीं है, जबकि तुम्हारे पति 60 से ऊपर के हैं. औरत को सिर्फ दौलत ही नहीं चाहिए, उस की कुछ जिस्मानी जरूरतें भी होती हैं, जो तुम्हारे बूढ़े प्रोफैसर कभी पूरी नहीं कर सके.

‘‘10 साल पहले किन हालात में तुम्हारी शादी हुई थी, वह भी मैं जानता हूं. उस समय तुम 20 साल की थीं और प्रोफैसर साहब 50 के थे. शादी से ले कर आज तक मैं ने तुम्हारी आंखों में खुशी नहीं देखी है. तुम्हारी हर मुसकराहट में मजबूरी होती है.’’

‘‘वह तो अपनाअपना नसीब है.’’

‘‘देखो, नसीब, किस्मत, भाग्य का कोई मतलब नहीं होता. 2 विश्व युद्ध हुए, जिन में करोड़ों आदमी मार दिए गए. इस देश ने 4 युद्ध झेले हैं. उन में भी लाखों लोग मारे गए. बंगलादेश की आजादी की लड़ाई में 20 लाख बेगुनाह लोगों की हत्याएं हुईं. क्या यह मान लिया जाए कि सब की किस्मत

खराब थी?

‘‘उन में से हजारों तो भगवान पर भरोसा करने वाले भी होंगे, लेकिन कोई भगवान या खुदा उन्हें बचाने नहीं आया. इसलिए इन बातों को भूल जाओ. ये बातें सिर्फ कहने और सुनने में अच्छी लगती हैं. मैं सिर्फ 25 हजार रुपए लूंगा और बड़ी सफाई से तुम्हारे बूढ़े पति को रास्ते से हटा दूंगा.’’

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अभिषेक की बातें सुन कर रत्ना चीख पड़ी, ‘‘चले जाओ यहां से. दोबारा अपना मुंह मत दिखाना. तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मैं इतनी नीचता पर उतर आऊंगी?’’

‘‘अभी जाता हूं, लेकिन 2 दिन के बाद फिर आऊंगा. शायद तब तक मेरी बात तुम्हारी समझ में आ जाए,’’ इतना कह कर अभिषेक लौट गया.

रत्ना अपने बैडरूम में जा कर फफकफफक कर रोने लगी. अभिषेक ने जोकुछ कहा था, वह बिलकुल सही था.

रत्ना को ताज्जुब हो रहा था कि वह उस के बारे में इतनी सारी बातें कैसे जानता था. हो सकता है कि उस का कोई दोस्त रत्ना के कालेज में पढ़ता रहा हो, क्योंकि वह तो रत्ना के साथ कालेज में था नहीं. वह उस की कालोनी में भी नहीं रहता था.

रत्ना के पति बीमारी के पहले रोज सुबह टहलने जाया करते थे. हो सकता है कि अभिषेक भी उन के साथ टहलने जाता रहा हो. वहीं उस का उस के पति से परिचय हुआ हो और उन्होंने ही ये सारी बातें उसे बता दी हों. उस के लिए अभिषेक इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाना चाहता है. आखिर यह तो एक तरह की हत्या ही हुई. बात खुल भी सकती है. कहीं अभिषेक का यह पेशा तो नहीं है? बेमेल शादी केवल उसी की तो नहीं हुई है. इस तरह के बहुत सारे मामले हैं. अभिषेक के चेहरे से तो ऐसा नहीं लगता कि वह अपराधी किस्म का आदमी है. कहीं उस के दिल में उस के लिए प्यार तो नहीं पैदा हो गया है.

रत्ना को किसी भी तरह के सुख की कमी नहीं थी. प्रोफैसर साहब अच्छीखासी तनख्वाह पाते थे. उस के लिए काफीकुछ कर रखा था. 5 कमरों का मकान, 3 लाख के जेवर, 5 लाख बैंक बैलेंस, सबकुछ उस के हाथ में था. 50 हजार रुपए सालाना तो प्रोफैसर साहब की किताबों की रौयल्टी आती थी. इन सब बातों के बावजूद रत्ना को जिस्मानी सुख कभी नहीं मिल सका. प्रोफैसर साहब की पहली बीवी बिना किसी बालबच्चे के मरी थी. रत्ना को भी कोई बच्चा नहीं था. कसबाई माहौल में पलीबढ़ी रत्ना पति को मारने का कलंक अपने सिर लेने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

रत्ना ने अभिषेक से चले जाने के लिए कह तो दिया था, लेकिन बाद में उसे लगने लगा था कि उस की बात को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता था. रत्ना अपनेआप को तोलने लगी थी कि 2 दिन के बाद अभिषेक आएगा, तो वह उस को क्या जवाब देगी. इस योजना में शामिल होने की उस की हिम्मत नहीं हो पा रही थी.

अभिषेक अपने वादे के मुताबिक 2 दिन बाद आया. इस बार रत्ना उसे चले जाने को नहीं कह सकी. उस की आवाज में पहले वाली कठोरता भी नहीं थी. रत्ना को देखते ही अभिषेक मुसकराया, ‘‘हां बताओ, तुम ने क्या सोचा?’’

‘‘कहीं बात खुल गई तो…’’

‘‘वह सब मेरे ऊपर छोड़ दो. मैं सारी बातें इतनी खूबसूरती के साथ करूंगा कि किसी को भी पता नहीं चलेगा. हां, इस काम के लिए 10 हजार रुपए बतौर पेशगी देनी होगी. यह मत समझो कि यह मेरा पेशा है. मैं यह सब तुम्हारे लिए करूंगा.’’

‘‘मेरे लिए क्यों?’’

‘‘सही बात यह है कि मैं तुम्हें  पिछले 15 साल से जानता हूं. तुम्हारे पिता ने मुझे प्राइमरी स्कूल में पढ़ाया था. मैं जानता हूं कि किन मजबूरियों में गुरुजी ने तुम्हारी शादी इस बूढ़े प्रोफैसर से की थी.’’

‘‘मेरी इज्जत तो इन्हीं की वजह से है. इन के न रहने पर तो मैं बिलकुल अकेली हो जाऊंगी.’’

‘‘जब से तुम्हारी शादी हुई है, तभी से तुम अकेली हो गई रत्ना, और आज तक अकेली हो.’’

‘‘मुझे भीतर से बहुत डर लग रहा है.’’

‘‘तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है. अगर भेद खुल भी जाता है, तो मैं सबकुछ अपने ऊपर ले लूंगा, तुम्हारा नाम कहीं भी नहीं आने पाएगा. मैं तुम्हें सुखी देखना चाहता हूं रत्ना. मेरा और कोई दूसरा मकसद नहीं है.’’

‘‘तो ठीक है, तुम्हें पेशगी के रुपए मिल जाएंगे,’’ कह कर रत्ना भीतर गई और 10 हजार रुपए की एक गड्डी ला कर अभिषेक के हाथों पर रख दी. रुपए ले कर अभिषेक वापस लौट गया.

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तय समय पर रत्ना के पति को नर्सिंग होम में भरती करवा दिया गया. सभी तरह की जांच होने के बाद प्रोफैसर साहब का आपरेशन किया गया, जो पूरी तरह से कामयाब रहा. बाद में उन्हें खून चढ़ाया जाना था. अभिषेक सर्जन राजेश की पूरी मदद करता रहा. डाक्टर साहब आपरेशन के बाद अपने बंगले पर चले गए थे. खून चढ़ाने वगैरह की सारी जिम्मेदारी अभिषेक पर थी. सारा इंतजाम कर के अभिषेक अपनी जगह पर आ कर बैठ गया था. रत्ना भी पास ही कुरसी पर बैठी हुई थी. अभिषेक ने उसे आराम करने को कह दिया था.

रत्ना ने आंखें मूंद ली थीं, पर उस के भीतर उथलपुथल मची हुई थी. उस का दिमाग तेजी से काम कर रहा था. दिमाग में अनेकअनेक तरह के विचार पैदा हो रहे थे. अभिषेक ड्रिप में बूंदबूंद गिर कर प्रोफैसर के शरीर में जाते हुए खून को देख रहा था. अचानक वह उठा. अब तक रात काफी गहरी हो गई थी. वह मरीज के पास आया और ड्रिप से शरीर में जाते हुए खून को तेज करना चाहा, ताकि प्रोफैसर का कमजोर दिल उसे बरदाश्त न कर सके. तभी अचानक रत्ना झटके से अपनी सीट से उठी और उस ने अभिषेक को वैसा करने से रोक दिया.

वह उसे ले कर एकांत में गई और फुसफुसा कर कहा, ‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे, रुपए भले ही अपने पास रख लो. मैं अपने पति को मौत के पहले मरते नहीं देख सकती. जैसे इतने साल उन के साथ गुजारे हैं, बाकी समय भी गुजर जाएगा.’’ अभिषेक ने उस की आंखों में झांका. थोड़ी देर तक वह चुप रहा, फिर बोला, ‘‘तुम बड़ी कमजोर हो रत्ना. तुम जैसी औरतों की यही कमजोरी है. जिंदगीभर घुटघुट कर मरती रहेंगी, पर उस से उबरने का कोई उपाय नहीं करेंगी. खैर, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ इतना कह कर अभिषेक ने पेशगी के रुपए उसे वापस कर दिए. इस के बाद वह आगे कहने लगा, ‘‘जिस बात को मैं ने इतने सालों से छिपा रखा था, आज उसे साफसाफ कहना पड़ रहा है.

‘‘रत्ना, जिस दिन मैं ने तुम्हें देखा था, उसी दिन से तुम्हें ले कर मेरे दिल में प्यार फूट पड़ा था, जो आज बढ़तेबढ़ते यहां तक पहुंच गया है. ‘‘इस बात को मैं कभी तुम से कह नहीं पाया. प्यार शादी में ही बदल जाए, ऐसा मैं ने कभी नहीं माना.

‘‘मैं उम्मीद में था कि तुम अपनी बेमेल शादी के खिलाफ एक न एक दिन बगावत करोगी. मेरी भावनाओं को खुदबखुद समझ जाओगी या मैं ही हिम्मत कर के तुम से अपनी बात कह दूंगा.

‘‘इसी जद्दोजेहद में मैं ने 15 साल गुजार दिए. आज तक मैं तुम्हारा ही इंतजार करता रहा. जब बरदाश्त की हद हो गई, तब मौका पा कर तुम्हारे पति को खत्म करने की योजना बना डाली. रुपए की बात मैं ने बीच में इसलिए रखी थी कि तुम मेरी भावनाओं को समझ न सको.

‘‘तुम ने इस घिनौने काम में मेरी मदद न कर मुझे एक अपराध से बचा लिया. वैसे, मैं तुम्हारे लिए जेल भी जाने को तैयार था, फांसी का फंदा भी चूमने को तैयार था.

‘‘मैं तुम्हें तिलतिल मरते हुए नहीं देख सकता था रत्ना, इसलिए मैं ने इतना बड़ा कदम उठाने का फैसला लिया था.’’

अपनी बात कह कर अभिषेक ने चुप्पी साध ली. रत्ना उसे एकटक देखती रह गई.

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अंधविश्वास की बलिवेदी पर : रूपल क्या बचा पाई इज्जत

‘‘अरे बावली, कहां रह गई तू?’’ रमा की कड़कती हुई आवाज ने रूपल के पैरों की रफ्तार को बढ़ा दिया.

‘‘बस, आ रही हूं मामी,’’ तेज कदमों से चलते हुए रूपल ने मामी से आगे बढ़ हाथ के दोनों थैले जमीन पर रख दरवाजे का ताला खोला.

‘‘जल्दी से रात के खाने की तैयारी कर ले, तेरे मामा औफिस से आते ही होंगे,’’ रमा ने सोफे पर पसरते हुए कहा.

‘‘जी मामी,’’ कह कर रूपल कपड़े बदल कर चौके में जा घुसी. एक तरफ कुकर में आलू उबलने के लिए गैस पर रखे और दूसरी तरफ जल्दी से परात निकाल कर आटा गूंधने लगी.

आटा गूंधते समय रूपल का ध्यान अचानक अपने हाथों पर चला गया. उसे अपने हाथों से घिन हो आई. आज भी गुरु महाराज उसके हाथों को देर तक थामे सहलाते रहे और वह कुछ न कह सकी. उन्हें देख कर कितनी नफरत होती है, पर मामी को कैसे मना करे. वे तो हर दूसरेतीसरे दिन ही उसे गुरु कमलाप्रसाद की सेवादारी में भेज देती हैं.

पहली बार जब रूपल वहां गई थी तो बड़ा सा आश्रम देख कर उसे बहुत अच्छा लगा था. खुलीखुली जगह, चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी.

खिचड़ी बालों की लंबी दाढ़ी, कुछ आगे को निकली तोंद, माथे पर बड़ा सा तिलक लगाए सफेद कपड़े पहने, चांदी से चमकते सिंहासन पर आंखें बंद किए बैठे गुरु महाराज रूपल को पहली नजर में बहुत पहुंचे हुए महात्मा लगे थे जिन के दर्शन से उस की और उस के घर की सारी समस्याओं का जैसे खात्मा हो जाने वाला था.

अपनी बारी आने पर बेखौफ रूपल उन के पास जा पहुंची थी. महाराज उस के सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देते हुए देर तक उसे देखते रहे.

मामी की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस दिन गुरु महाराज की कृपा उस पर औरों से ज्यादा बरसी थी.

वापसी में महाराज के एक सेवादार ने मामी के कान में कुछ कहा, जिस से उन के चेहरे पर एक चमक आ गई. तब से हर दूसरेतीसरे दिन वे रूपल को महाराज के पास भेज देती हैं.

मामी कहती हैं कि गुरु महाराज की कृपा से उस के घर के हालात सुधर जाएंगे जिस से दोनों छोटी बहनों की पढ़ाईलिखाई आसान हो जाएगी और उन का भविष्य बन जाएगा.

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रूपल भी तो यही चाहती है कि मां की मदद कर उन के बोझ को कुछ कम कर सके, तभी तो दोनों छोटी बहनों और उन्हें गांव में छोड़ वह यहां मामामामी के पास रहने आ गई है.

पिछले साल जब मामामामी गांव आए थे तब अपने दुखड़े बताती मां को आंचल से आंखों के गीले कोर पोंछते देख रूपल को बड़ी तकलीफ हुई थी.

14 साल की हो चुकी थी रूपल, पर अभी भी अपने बचपने से बाहर नहीं निकल पाई थी. माली हालत खराब होने से पढ़ाई तो छूट गई थी, पर सखियों के संग मौजमस्ती अभी भी चालू थी.

ठाकुर चाचा के आम के बगीचे से कच्चे आम चुराने हों या फुलवा ताई के दालान से कांटों की परवाह किए बगैर झरबेरी के बेर तोड़ने में उस का कहीं कोई मुकाबला न था.

पर उस दिन किवाड़ के पीछे खड़ी रूपल अपनी मां की तकलीफें जान कर हैरान रह गई थी. 4 साल पहले उस के अध्यापक बाऊजी किसी लाइलाज बीमारी में चल बसे थे. मां बहुत पढ़ीलिखी न थीं इसलिए स्कूल मैनेजमैंट बाऊजी की जगह पर उन के लिए टीचर की नौकरी का इंतजाम न कर पाया. अलबत्ता, उन्हें चपरासी और बाइयों के सुपरविजन का काम दे कर एक छोटी सी तनख्वाह का जुगाड़ कर दिया था.

इधर बाऊजी के इलाज में काफी जमीन बेचनी पड़ गई थी. घर भी ठाकुर चाचा के पास ही गिरवी पड़ा था. सो, अब नाममात्र की खेतीबारी और मां की छोटी सी नौकरी 4 जनों का खर्चा पूरा करने में नाकाम थी.

रूपल को उस वक्त अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया था कि वह मां के दुखों से कैसे अनजान रही, इसीलिए जब मामी ने अपने साथ चलने के लिए पूछा तो उस ने कुछ भी सोचेसमझे बिना एकदम से हां कर दी.

तभी से मामामामी के साथ रह रही रूपल ने उन्हें शिकायत का कोई मौका नहीं दिया था. शुरुआत में मामी ने उसे यही कहा था, ‘देख रूपल, हमारे तो कोई औलाद है नहीं, इसलिए तुझे हम ने जिज्जी से मांग लिया है. अब से तुझे यहीं रहना है और हमें ही अपने मांबाप समझना है. हम तुझे खूब पढ़ाएंगे, जितना तू चाहे.’

बस, मामी के इन्हीं शब्दों को रूपल ने गांठ से बांध लिया था. लेकिन उन के साथ रहते हुए वह इतना तो समझ गई थी कि मामी अपने किसी निजी फायदे के तहत ही उसे यहां लाई हैं. फिर भी उन की किसी बात का विरोध करे बगैर वह गूंगी गुडि़या बन मामी की सभी बातों को मानती चली जा रही थी ताकि गांव में मां और बहनें कुछ बेहतर जिंदगी जी सकें.

रूपल को यहां आए तकरीबन 6-8 महीने हो चुके थे, लेकिन मामी ने उस का किसी भी स्कूल में दाखिला नहीं कराया था, बल्कि इस बीच मामी उस से पूरे घर का काम कराने लगी थीं.

मामा काम के सिलसिले में अकसर बाहर रहा करते थे. वैसे तो घर के काम करने में रूपल को कोई तकलीफ नहीं थी और रही उस की पढ़ाई की बात तो वह गांव में भी छूटी हुई थी. उसे तो बस मामी के दकियानूसी विचारों से परेशानी होती थी, क्योंकि वे बड़ी ही अंधविश्वासी थीं और उस से उलटेसीधे काम कराया करती थीं.

वे कभी आधा नीबू काट कर उस पर सिंदूर लगा कर उसे तिराहे पर रख आने को कहतीं तो कभी किसी पोटली में कुछ बांध कर आधी रात को उसे किसी के घर के सामने फेंक कर आने को कहतीं. महल्ले में किसी से उन की ज्यादा पटती नहीं थी.

मामी की बातें रूपल को चिंतित कर देती थीं. वह भले ही गांव की रहने वाली थी, पर उस के बाऊजी बड़े प्रगतिशील विचारों के थे. उन की तीनों बेटियां उन की शान थीं.

गांव के माहौल में 3-3 लड़कियां होने के बाद भी उन्हें कभी इस बात की शर्मिंदगी नहीं हुई कि उन के बेटा नहीं है. उन के ही विचारों से भरी रूपल इन अंधविश्वासों पर बिलकुल यकीन नहीं करती थी. पर न चाहते हुए भी उसे मामी के इन ढकोसलों का न सिर्फ हिस्सा बनना पड़ता, बल्कि उन्हें मानने को भी मजबूर होना पड़ता. क्योंकि अगर वह इस में जरा भी आनाकानी करती तो मामी तुरंत उस की मां को फोन लगा कर उस की बहुत चुगली करतीं और उस के लिए उलटासीधा भिड़ाया करतीं.

पर अभी जो रूपल के साथ हो रहा था, वह तो और भी बुरा था. पिछले कुछ वक्त से उस ने महसूस किया था कि आश्रम के काम के बहाने उसे गुरुजी के साथ जानबूझ कर अकेले छोड़ा जाता है.

रूपल छोटी जरूर थी, पर इतनी भी नहीं कि अपने शरीर पर रेंगते उन हाथों की बदनीयती पहचान न सके. वैसे भी उस ने गुरुदेव को अपने खास कमरे में आश्रम की एक दूसरी सेवादारिन के साथ जिन कपड़ों और हालात में देखा था, वे उसे बहुत गलत लगे थे. गुरुदेव के प्रति उस की भक्ति और आस्था उसी वक्त चूर हो चुकी थी.

मगर उस ने यह बात जब मामी को बताई तो उन्होंने इसे नजर का धोखा कह कर बात वहीं खत्म करने को कह दिया था. तब से रूपल के मन में एक दहशत सी समा गई थी. वह बिना मामी के उस आश्रम में पैर भी नहीं रखना चाहती थी. सपने में भी वह बाबा अपनी आंखों में लाल डोरे लिए अट्टहास लगाता उस की ओर बढ़ता चला आता और नींद में ही डर से कांपते हुए रूपल की चीख निकल जाती. पर मामी का गुस्सा उसे वहां जाने पर मजबूर कर देता.

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‘आखिर इस हालत में कब तक मैं बची रह सकती हूं. काश, मैं मां को बता सकती. वे आ कर मुझे यहां से ले जातीं…’ रूपल का दर्द आंखों से बह निकला.

‘‘बहरी हो गई क्या. कुकर सीटी पर सीटी दिए जा रहा?है, तुझे सुनाई नहीं देता?’’ अचानक मामी के चिल्लाने पर रूपल ने गालों पर ढुलक आए आंसू आहिस्ता से पोंछ डाले, ‘‘जी मामी, यहीं हूं,’’ कह कर उस ने गैस पर से कुकर उतारा.

‘‘सुन, आज गुरुजी का बुलावा है. सब काम निबटा कर वहां चली जाना,’’ सुबह मामा के औफिस जाते ही मामी ने रूपल को फरमान सुनाया.

‘‘मामीजी, एक बात कहनी थी आप से…’’ थोड़ा डरते हुए रूपल के मुंह से निकला, ‘‘दरअसल, मैं उन बाबा के पास नहीं जाना चाहती. वह मुझे अकेले में बुला कर यहांवहां छूने की कोशिश करता है. मुझे बहुत घिन आती है.’’

‘‘पागल हुई है लड़की… इतने बड़े महात्मा पर इतना घिनौना इलजाम लगाते हुए तुझे शर्म नहीं आती. उस दिन भी तू उन के बारे में अनापशनाप बके जा रही थी. तू बखूबी जानती भी है कि वे कितने चमत्कारी हैं.’’

‘‘मामीजी, मैं आप से सच कह रही हूं. प्लीज, आप मुझ से कोई भी काम करा लो लेकिन उन के पास मत भेजो,’’ रूपल की आंखों में दहशत साफ दिखाई दे रही थी.

‘‘देख रूपल, अगर तुझे यहां रहना है, तो फिर मेरी बात माननी पड़ेगी, नहीं तो तेरी मां को फोन लगाती हूं और तुझे यहां से ले जाने के लिए कहती हूं.’’

‘‘नहीं मामी, मां पहले ही बहुत परेशान हैं, आप उन्हें फोन मत करना. आप जहां कहेंगी मैं चली जाऊंगी,’’ रूपल ने दुखी हो कर हथियार डाल दिए.

यह सुन कर मामी के होंठों पर एक राजभरी मुसकान बिखर गई. पता नहीं पर उस दिन रूपल की मामी भी उस के साथ गुरुजी के आश्रम पहुंचीं. कुछ ही देर में बाबा भक्तों को दर्शन देने वाले थे.

‘‘तू यहीं बैठ, मैं अंदर कुछ जरूरी काम से जा रही हूं,’’ मामी बोलीं.

रूपल को सब से अगली लाइन में बिठा कर मामी ने उसे अपना मोबाइल फोन पकड़ाया.

‘‘बाबा, मैं ने अपना काम पूरा किया. आप को एक कन्या भेंट की है. अब तो मेरी गोदी में नन्हा राजकुमार खेलेगा न?’’ मामी ने बाबा के सामने अपना आंचल फैलाते हुए कहा.

‘‘अभी देवी से प्रभु का मिलन बाकी है. जब तक यह काम नहीं हो जाता, तू कोई उम्मीद लगा कर मत बैठना,’’ बाबा के पास खड़े सेवादार ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन, मैं ने तो अपना काम पूरा कर दिया…’’

‘‘हम ने तुझे पहले ही कहा था कि प्रभु और देवी के मिलन में कोई अड़चन नहीं आनी चाहिए. तुझे उसे खुद तैयार करना होगा. इस काम में प्रभु को जबरदस्ती पसंद नहीं.’’

‘‘ठीक है, कल तक यह काम भी हो जाएगा,’’ मामी ने बाबा के पैरों को छूते हुए कहा. उधर तुरंत ही किसी काम से मामा का फोन आने से मामी के पीछे चल पड़ी रूपल ने जैसे ही ये बातें सुनीं, उस के पैरों तले जमीन सरक गई.

मामी को आते देख रूपल थोड़ी सी आड़ में हो गई. ‘कहां गई थी?’’ उसे अपने पीछे से आते देख मामी हैरान हो उठीं.

‘‘बाथरूम गई थी…’’ रूपल ने धीरे से इशारों में बताया.

रूपल बुरी तरह डर चुकी थी. अपनी मामी का खौफनाक चेहरा उस के सामने आ चुका था. अब तक उसे यही लगता था कि मामी भले ही तेज हैं, पर वे अच्छी हैं और बाबा की सचाई से बेखबर हैं, जिस दिन उन्हें गुरुजी की असलियत पता चलेगी वे उसे कभी आश्रम नहीं भेजेंगी. पर अब खुद उस की आंखों पर पड़ा परदा उठ गया था. उसे मामी की हर चाल अब समझ आ चुकी थी.

शादी के 10 साल तक बेऔलाद होने का दुख उन्होंने इस तरह दूर करने की कोशिश की. गांव में आ कर उन की गरीबी पर तरस खा कर उसे यहां एक साजिश के तहत लाना और बाबा के आश्रम में जबरदस्ती भेजना. इन बातों का मतलब अब वह समझ चुकी थी.

लेकिन अब रूपल क्या करे. उसे अपनी मां की बहुत याद आ रही थी. वह बस हमेशा की तरह उन के आंचल के पीछे छिप जाना चाहती थी.

‘मैं मां से इस बारे में बात करूं क्या… पर मां तो मामी की बातों पर इतना भरोसा करती हैं कि मेरी बात उन्हें झूठी ही लगेगी. और फिर घर के हालात… अगर मां जान भी जाएं तो क्या उस का गांव जाना ठीक होगा. वहां मां अकेली 4-4 जनों का खानाखर्चा कैसे संभालेंगी?’ बेबसी और पीड़ा से उस की आंखें भर आईं.

‘‘रूपल… 2 लिटर दूध ले आना, आज तेरी पसंद की सेवइयां बना दूंगी. तुझे मेरे हाथ की बहुत अच्छी लगती हैं न,’’ बातों में मामी ने उसे भरपूर प्यार परोसा.

खाना खा कर रात को बिस्तर पर लेटी रूपल की आंखों से नींद कोसों दूर थी. मामी ने आज उसे बहुत लाड़ किया था और मांबहनों के सुखद भविष्य का वास्ता दे कर सच्चे भाव से बाबा की हर बात मान कर उन की भक्ति में डूब जाने को कहा था. पर अब वह बाबा की भक्ति में डूब जाने का मतलब अच्छी तरह समझती थी.

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अगले दिन मामी की योजना के तहत रूपल बाबा के खास कमरे में थी. दूसरी सेवादारिनों ने उसे देवी की तरह कपड़े व गहने वगैरह पहना कर दुलहन की तरह सजा दिया था.

पलपल कांपती रूपल को आज अपनी इज्जत लुट जाने का डर था. लेकिन वह किसी भी तरह से हार नहीं मानना चाहती थी. अभी भी वह अपने बचाव की सारी उम्मीदों पर सोच रही थी कि गुरु कमलाप्रसाद ने कमरे में प्रवेश किया. आमजन का भगवान एक शैतान की तरह अट्टहास लगाता रूपल की तरफ बढ़ चला.

‘‘बाबा, मैं पैर पड़ती हूं आप के, मुझ पर दया करो. मुझे जाने दो,’’ उस ने दौड़ कर बाबा के चरण पकड़ लिए.

‘‘देख लड़की, सुहाग सेज पर मुझे किसी तरह का दखल पसंद नहीं. क्या तुझे समर्पण का भाव नहीं समझाया गया?’’

बाबा की आंखों में वासना का ज्वार अपनी हद पर था. उस के मुंह से निकला शराब का भभका रूपल की सांसों में पिघलते सीसे जैसा समाने लगा.

‘‘बाबा, छोड़ दीजिए मुझे, हाथ जोड़ती हूं आप के आगे…’’ रूपल ने अपने शरीर पर रेंग रहे उन हाथों को हटाने की पूरी कोशिश की.

‘‘वैसे तो मैं किसी से जबरदस्ती नहीं करता, पर तेरे रूप ने मुझे सम्मोहित कर दिया है. पहले ही मैं बहुत इंतजार कर चुका हूं, अब और नहीं… चिल्लाने की सारी कोशिशें बेकार हैं. तेरी आवाज यहां से बाहर नहीं जा सकती,’’ कह कर बाबा ने रूपल के मुंह पर हाथ रख उसे बिस्तर पर पटक दिया और एक वहशी दरिंदे की तरह उस पर टूट पड़ा.

तभी अचानक ‘धाड़’ की आवाज से कमरे का दरवाजा खुला. अगले ही पल पुलिस कमरे के अंदर थी. बाबा की पकड़ तनिक ढीली पड़ते ही घबराई रूपल झटक कर अलग खड़ी हो गई.

पुलिस के पीछे ही ‘रूपल…’ जोर से आवाज लगाती उस की मां ने कमरे में प्रवेश किया और डर से कांप रही रूपल को अपनी छाती से चिपटा लिया.

इस तरह अचानक रंगे हाथों पकड़े जाने से हवस के पुजारी गुरु कमलाप्रसाद के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. फिर भी वह पुलिस वालों को अपने रोब का हवाला दे कर धमकाने लगा.

तभी उस की एक पुरानी सेवादारिन ने आगे बढ़ कर उस के गाल पर एक जोरदार तमाचा रसीद किया. पहले वह भी इसी वहशी की हवस का शिकार हुई थी. वह बाबा के खिलाफ पुलिस की गवाह बनने को तैयार हो गई.

बाबा का मुखौटा लगाए उस ढोंगी का परदाफाश हो चुका था. आखिरकार एक नाबालिग लड़की पर रेप और जबरदस्ती करने के जुर्म में बाबा को

तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया. उस के सभी चेलेचपाटे कानून के शिकंजे में पहले ही कसे जा चुके थे.

मां की छाती से लगी रूपल को अभी भी अपने सुरक्षित बच जाने का यकीन नहीं हो रहा था, ‘‘मां… मामी ने मुझे जबरदस्ती यहां…’’

‘‘मैं सब जान चुकी हूं मेरी बच्ची…’’ मां ने उस के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा. ‘‘तू चिंता मत कर, भाभी को भी सजा मिल कर रहेगी. पुलिस उन्हें पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है.

‘‘मैं अपनी बच्ची की इस बदहाली के लिए उन्हें कभी माफ नहीं करूंगी. तू मेरे ही पास रहेगी मेरी बच्ची. तेरी मां गरीब जरूर है, पर लाचार नहीं. मैं तुझ पर कभी कोई आंच नहीं आने दूंगी.

‘‘मेरी मति मारी गई थी कि मैं भाभी की बातों में आ गई और सुनहरे भविष्य के लालच में तुझे अपने से दूर कर दिया.

‘‘भला हो तुम्हारे उस पड़ोसी का, जिस ने तुम्हारे दिए नंबर पर फोन कर के मुझे इस बात की जानकारी दे दी वरना मैं अपनेआप को कभी माफ न कर पाती,’’ शर्मिंदगी में मां अपनेआप को कोसे जा रही थीं.

‘‘मुझे माफ कर दो दीदी. मैं रमा की असलियत से अनजान था. गलती तो मुझ से भी हुई है. मैं ने सबकुछ उस के भरोसे छोड़ दिया, यह कभी जानने की कोशिश नहीं की कि रूपल किस तरह से कैसे हालात में रह रही है,’’ सामने से आ रहे मामा ने अपनी बहन के पैर पकड़ लिए.

बहन ने कोई जवाब न देते हुए भाई पर एक तीखी नजर डाली और बेटी का हाथ पकड़ कर अपने घर की राह पकड़ी. रूपल मन ही मन उस पड़ोसी का शुक्रिया अदा कर रही थी जिसे सेवइयों के लिए दूध लाते वक्त उस ने मां का फोन नंबर दिया था और उस ने ही समय रहते मां को मामी की कारगुजारी के बारे में बताया था जिस के चलते ही आज वह अंधविश्वास की बलिवेदी पर भेंट चढ़ने से बच गई थी.

मां का हाथ थामे गांव लौटती रूपल अब खुली हवा में एक बार फिर सुकून की सांसें ले रही थी.

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उन दोनों का सच: भाग 3- क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा

लेखिका- रेणु गुप्ता

तभी उन्हीं दिनों कोविड के प्रकोप से आई विश्वव्यापी मंदी की वजह से पलाश की छंटनी हो गई. एक तरफ उस की महंगी महंगी दवाओं का खर्च, दूसरी तरफ घरगृहस्थी के सौ खर्चे. पलाश की उड़ाऊ आदत और अस्पताल में उस के इलाज पर हुए खर्चे के चलते उस के पास बचत भी कोई खास न थी. नौकरी के दिनों में बिब्बो से अफेयर चलातेचलाते वह उस पर महंगेमहंगे तोहफों के रूप में अपनी तनख्वाह की एक बड़ी रकम उस पर खर्च करता आया था, लेकिन अब उस के बेरोजगार होने पर वह उस पर पहले की तरह उपहारों की बारिश नहीं कर पाता. सो उस की कड़की देख कर उस ने भी पलाश से आंखें फेर ली और किसी दूसरे मुरगे की तलाश में जुट गई. वक्त के साथ अब पलाश के घर उस का आना न के बराबर रह गया था.

पिछले 1 साल से गौरा की मां अपने पड़ोस में किराए पर रहने वाले 10-15 लड़कों के लिए 2 वक्त के खाने का टिफिन भेजने का काम कर रही थी, जो दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था. गौरा की मां पाककला में निपुण थीं. एक बार जो भी उन का बनाया खाना, खासकर सब्जी, दाल चख लेता, उन के स्वाद का दीवाना बने न रहता. वक्त के साथ गौरा की मां के टिफिन के और्डर बढ़ते ही जा रहे थे. काम इतना बढ़ता जा रहा था कि उन से अकेले सिमट नहीं पा रहा था.

तभी घर में पलाश की नौकरी जाने की दशा में गौरा की मां ने गौरा से भी यह काम शुरू करने के लिए कहा, और अपने कुछ और्डर उसे दे दिए. गौरा भी कुकिंग में अपनी मां की तरह सिद्धहस्त थी. गौरा ने पूरी मेहनत और लगन से यह काम शुरू किया और मां की तरह उस की टिफिन सर्विस भी अच्छी चल निकली.
वक्त का फेर, पलाश की नौकरी गए 6 माह होने आए, लेकिन उसे कोई दूसरी अच्छी नौकरी नहीं मिली. नौकरी गई, माशूका गई और इस के साथ ही आर्थिक स्वतंत्रता जाने के साथसाथ पलाश अब गौरा पर पूरी तरह से आश्रित हो गया.

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उस की महंगीमहंगी दवाएं सालभर तक चलने वाली थीं. परिस्थितियों के इस मोड़ पर उसे बिब्बो और गौरा के बीच का अंतर स्पष्ट दिखाई देने लगा था. गौरा मुंह से कुछ न कहती, न जताती लेकिन उस के प्रति किए गए अपने अन्याय के एहसास से वह अब उस से आंखें न मिला पाता. उस के मन का चोर उसे हर लमहा शर्मिंदा करता.

वक्त के साथ गौरा की टिफिन सर्विस का काम अच्छाखासा बढ़ता जा रहा था. अब उसने रसोई में अपनी मदद के लिए 2 सहायिकाएं रख लीं थीं, जो पूरे काम में उस की मदद करतीं. उसे अब अपनी जिंदगी का मकसद मिल गया था. पति की बेशर्म बेवफाई के बाद यह एक सुखद परिवर्तन था.उधर जिंदगी के इस कठिन दौर ने पलाश को भी एहसास दिला दिया था कि गौरा खरा सोना है और बिब्बो जैसी मतलबपरस्त, चरित्रहीन औरत के लिए उस की बेकद्री कर के उस ने अपनी जिंदगी की महत भूल की थी.
अब वह गौरा के प्रति अपने दुर्व्यवहार को ले कर बेहद शर्मिंदा महसूस करता. इतना कुछ हो जाने के बाद भी गौरा के पति के प्रति पूर्ण समर्पण और परवाह में कोई कमी नहीं आई थी.

वह एक परंपरावादी महिला थी, जो पति के साथ हर हाल में एक छत के नीचे रहने में विश्वास रखती थी. पलाश की बचत लगभग खत्म होने आई थी. अब घर का खर्च पूरी तरह से गौरा की टिफिन सर्विस की आमदनी से चलता. पलाश की महंगीमहंगी दवाओं का आना बदस्तूर जारी रहा. डाक्टरों के निर्देशों के मुताबिक उस के त्वरित स्वास्थ्य लाभ के लिए उस की थाली में भरपूर महंगेमहंगे पोषक खाद्य पदार्थ रहते. उन में किसी तरह की कोई कमी एक दिन के लिए भी नहीं आई. कमी आई थी तो महज पति के प्रति उस के व्यवहार में.

पति के निर्लज्ज प्रेम प्रसंग से उस का उस से मन पूरी तरह से फट गया. उसे उस की शक्ल तक देखना गवारा नहीं था. वह दिनदिन भर मात्र अपनी टिफिन सर्विस के काम में अपने होंठ भींचे व्यस्त रहती. पति के साथ उस की बोलचाल मात्र हां या न तक सीमित रह गई. उस की उस से बात करने की तनिक भी इच्छा न होती.

पति के बेशर्म आचरण से क्षतविक्षत आहत मन उस ने अपनेआप को मौन के अभेद्य खोल में समेट लिया था. पलाश कभी उस से बात भी करता तो वह मात्र हूंहां कर वहां से इधरउधर हो जाती. पिछले कुछ समय से पत्नी के इस नितांत शुष्क और रूखे व्यवहार से पलाश बेहद बेचैनी का अनुभव कर रहा था.

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उस दिन गौरा की दोनों सहायिकाओं ने अचानक किसी जरूरी काम से छुट्टी ले ली. गौरा को खुश करने की मंशा से पलाश भी रसोई में घुस गया. उस ने पूरे वक्त एक पैर पर खड़े रह पत्नी की यथासंभव मदद की. अपनी गलती का मन से एहसास कर वह एक बार फिर से पत्नी से अपने संबंध सामान्य बनाना चाहता था. जब से बिब्बो उन दोनों के बीच आई थी, गौरा दोनों बच्चों के साथ दूसरे बैडरूम में सोने लगी थी. गौरा बच्चों के साथ उन के बैडरूम में लेटी हुई थी कि पलाश ने दोनों सोते हुए बच्चों को गोद में उठा कर अपने बैडरूम के पलंग पर सुलाया और खुद पत्नी के बगल में लेट गया.

तभी उसे पलंग पर आया देख गौरा ने उठने का उपक्रम किया ही था कि पलाश ने उसे खींच कर अपने सीने पर गिरा दिया और उस की आंखों में झांकते हुए उस से बोला, “गौरा और कितने दिन मुझ से गुस्सा रहोगी? अब गुस्सा थूक भी दो. मुझे अपनी गलतियों का एहसास हो गया है.

“बिब्बो जैसी औरत के लिए मैं ने तुम्हारी बेकद्री की. मुझ से बड़ी भूल हुई. प्लीज, मुझे माफ कर दो,” पति की यह बातें सुन कर गौरा की आंखों में आंसुओं का सैलाब उतर आया और रुंधे गले से वह बोली, “तुम्हारी गलती की कोई माफी नहीं है. तुम ने बिब्बो जैसी सस्ती औरत के लिए मुझे खून के आंसू रुलाए. मैं तुम्हें जिंदगी भर माफ नहीं करूंगी. तुम ने मेरा बहुत जी दुखाया है. अब मुझ से माफी की उम्मीद मत रखो.”

पलाश के पास पत्नी के इस कड़वे उलाहने का कोई जवाब नहीं था. उस ने बेबस करवट बदल कर आंखें मूंद लीं. गोरा की आंखों में खून के आंसू थे तो पलाश की आंखों में पश्चाताप के. अब शायद आंसू ही उन दोनों की नियति थी, उन दोनों का सच था.

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उन दोनों का सच: भाग 2- क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा

लेखिका- रेणु गुप्ता

उस मुश्किल घड़ी में पति की यह हालत देख वह बेहद घबरा गई. वह सोच नहीं पा रही थी कि आखिरकार पति को उस के पीछे एसी की बाहरी यूनिट को साफ करने की जरूरत क्या आन पड़ी और वह भी तब, जब वह घर पर नहीं थी.

उधर पलाश गिरने के बाद पूरी तरह से मौन हो गया था. उस ने गिरने के बाद गौरा से बिलकुल कोई भी बात नहीं की. वह बस वीरान निगाहों से शून्य में ताक रहा था. एक तरफ उस की यह हालत देख उस का कलेजा मुंह में था, वहीं दूसरी ओर उस के प्रति गुस्से का भाव भी था कि आखिर वह बेवजह एसी की बाहरी यूनिट साफ करने उस ऊंचे स्टूल पर चढ़ा ही क्यों जिस से आज उसे अस्पताल में धक्के खाने की नौबत आ गई. उस नाजुक वक्त में बिब्बो ने उसे बहुत सहारा दिया.

बिब्बो भी ग्रैजुएट ही थी, लेकिन दुनिया देखीभाली, खेलीखाई महिला थी. पुरुषों से बेहद धड़ल्ले से बातें करती. सो पलाश के इलाज के सिलसिले में डाक्टरों से बातचीत करने में वही आगे रही .

अस्पताल के डाक्टर मिहिर और उन की टीम ने पलाश का ट्रीटमैंट शुरू किया. गौरा तो बस बेहद घबराई हुई कलेजा मुंह में लिए डाक्टरों और बिब्बो की बातें सुनती रहती. तभी डाक्टर मिहिर ने गौरा से कहा, “गौरा, आप के हसबैंड के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई करवाना पड़ेगा, यह देखने के लिए कि कहीं उन्हें कोई अंदरूनी चोट तो नहीं पहुंची.”

“ठीक है डाक्टर साहब, आप जो ठीक समझें”, गौरा ने डॉक्टर से कहा.

“डाक्टर साहब, पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई होगा? एक बात बताइए डाक्टर साहब, इन की गरदन के पीछे कुछ दाने हो रहे हैं. सीटी स्कैन और एमआरआई में कोई दिक्कत तो नहीं आएगी?” बिब्बो के मुंह से अनायास यह शब्द निकले ही थे कि अगले ही क्षण अपनी जीभ काटते हुए वह चुप हो गई.

यह वह क्या कह बैठी, अगले ही क्षण उसे एहसास हुआ और वह घबरा गई.

“नहींनहीं, उस की वजह से कोई परेशानी नहीं होगी,” डाक्टर ने जवाब दिया.

इधर बिब्बो के मुंह से पति की गरदन के पीछे हुए दानों के बारे में सुन कर गौरा के जेहन में घंटी बजी, यह बिब्बो को पलाश की गरदन के पीछे के दानों के बारे में कैसे पता? वह एक असहज बेचैनी में डूब गई. बारबार एक ही प्रश्न उस के दिलोदिमाग को मथने लगा, ‘आखिर बिब्बो ने यह बात कैसे बोली?’

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पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई हुआ और उन की रिपोर्ट से पता चला कि पलाश के ऊंचाई से गिरने की वजह से उस के ब्रेन में तीव्र हेमरेज हुआ था. दोनों जांचों की रिपोर्ट आने के बाद डाक्टर ने उस की हालत बेहद गंभीर बताई.

पति की गंभीर हालत के विषय में सुन कर गौरा के हाथों के तोते उड़ गए. डाक्टर ने उसे यह भी कहा कि पलाश की हालत बहुत नाजुक है. अगले ढाई घंटों में कुछ भी हो सकता है.”

आखिरकार डाक्टरों का इलाज रंग लाई. ढाई घंटे सकुशल बिना किसी अनहोनी के बीत गए. उस के बाद पलाश की हालत में शीघ्रता से सुधार हुआ. करीब 1 सप्ताह आईसीयू में रहने के बाद पलाश को एक अलग कमरे में शिफ्ट किया गया. अस्पताल में गुजरा वह समय गौरा के लिए बेहद उथलपुथल भरा रहा, पर वहां बीता आखिरी दिन उसे एक जबरदस्त झटका दे गया.

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उस दिन पलाश को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी. उसे डिस्चार्ज करने के पहले डाक्टर मिहिर उसे उस की दवाओं और घर पर ली जाने वाली सावधानियों के बारे में बताने के लिए अपने चैंबर ले गए. आधे घंटे बाद डाक्टर से बात कर गौरा जैसे ही पलाश के कमरे में घुसी, यह देख कर उस के पांवों तले जमीन न रही कि पलाश अपनी आंखें मूंदे बिब्बो के दोनों हाथों को अपने हाथों में थामे हुए उन्हें चूम रहा था और बुदबुदा रहा था, “तुम ने मेरी जान बचा दी. अगर तुम मुझे उस दिन वक्त पर अस्पताल नहीं लातीं तो न जाने क्या होता?”

उस के अचानक कमरे में पहुंचने पर बिब्बो ने सकपका कर अपने हाथ पलाश के हाथों की गिरफ्त से छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन पलाश ने उस के हाथ नहीं छोड़े और गौरा पर एक घोर उपेक्षा की दृष्टि डाल वह बिब्बो से इधरउधर की बातें करता रहा.

एक ओर पति की गंभीर शारीरिक हालत, तो दूसरी ओर उस का निर्लज्ज आचरण गौरा के सीने में छुरियां चला रहा था. वह सोच नहीं पा रही थी कि जिंदगी के इस कठिन मुकाम पर वह उन विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करे? बिस्तर पर पड़े पलाश और बिब्बो का अनवरत प्रेमालाप देख उस का खून उबल उठता, लेकिन वह हालातों के आगे बेबस थी. आर्थिक तौर पर वह पूरी तरह से पलाश पर आश्रित थी.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस दिन पलाश अपने 5 साल के बेटे और 7 साल की बेटी के सामने ही गौरा द्वारा परोसी गई लौकी की सब्जी को परे हटा बिब्बो की लाई सब्जी की चटखारे लेते खा रहा था और बिब्बो की कुकिंग की प्रशंसा कर रहा था, “बिब्बो से सीखो सब्जी बनाना. तुम्हें तो तुम्हारी मां ने महज हींगजीरे का छौंक लगाना सिखाया है. बिब्बो के हाथ की बनी यह पनीर की सब्जी खा कर देखो तो समझ आएगा कुकिंग किसे कहते हैं.”

पलाश की इस बात से गौरा का चेहरा स्याह हो आया और उस दिन वह अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई और बिब्बो के अपने घर जाते ही घोर आवेश में आ उस से बोल पड़ी, “बिब्बो के हाथ की बनी सब्जी तो बहुत अच्छी लग रही है आप को. उस की तरह मैं भी किसी गैर मर्द के साथ इश्क के पेंच लड़ाऊं तो भी आप को बहुत अच्छा लगेगा न?”

गौरा की यह हिमाकत देख पलाश आगबबूला हो गया और गुस्से में गौरा पर फट पड़ा, “मैं जो चाहे करूं, तुम होती कौन हो मुझे आंख दिखाने वाली? मेरा ही खाती है और मुझ पर ही गुर्राती है बदजात? इतनी ही ऊंची नाक है तो चली जा अपनी मां के घर.”

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गौरा के पास पति की प्रताड़ना को सहने के अलावा और कोई चारा न था. एक बार को तो उस का मन किया कि वह सबकुछ छोड़छाड़ मां के घर चली जाए, लेकिन वृद्धा विधवा मां जो अपना और एक बेटी का गुजारा बड़ी मुश्किल से कर रही हो वह उसे किस दम पर संभालती? सो बस आंखों में पानी भर उस ने पति के इस तिरस्कार को खून के घूंट पीते हुए सहा, लेकिन उस दिन उस ने जिंदगी में पहली बार अपने आत्मनिर्भर होने की दिशा में सोचा.

आगे पढ़ें- पलाश की उड़ाऊ आदत और…

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