मेरी दोस्त डिप्रेशन की शिकार हो गई हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी सहेली को बचपन में पिता का प्यार नहीं मिला. उस की मां ने मेहनत कर के उसे पढ़ायालिखाया. अब उस के पति को  ब्लड कैंसर है, जिस से वह मेरी सहेली से बहुत रूखा व्यवहार करता है. बचपन से अब तक उपेक्षा झेलतेझेलते वह डिप्रैशन का शिकार हो गई है. रातरात भर रोती है. नींद की 2-2 गोलियां खाने पर भी उसे नींद नहीं आती. उसे अपनी मां की परवाह है. उन्हें दुखी नहीं करना चाहती, इसीलिए खुदकुशी नहीं करना चाहती. वह क्या करे कि तनाव से बाहर आ कर खुशहाल जीवन जी सके?

जवाब-

जीवन में कमियों के साथ जीने की तो आदत डालनी ही होती है. अगर पति को ब्लड कैंसर है और मां अकेली हैं, तो आप की सहेली को दोगुनी मेहनत कर के दोनों को संभालना होगा वरना सभी नुकसान में रहेंगे, वह खुद भी. नींद की गोलियां खाना इलाज नहीं, क्योंकि इस से समस्या सुलझने वाली नहीं. समस्या तो और ज्यादा काम, चाहे वह घरों की सफाई का हो, दफ्तर का हो या खुद हाथ से मेहनत का, करना ही होगा.

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रीमा का सारा दिन चिड़चिड़ाना, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना और बेवजह रोने लग जाना, नींद न आना, किसी काम में मन न लगना और अकेले बैठना, उसके इस व्यवहार से घर के सारे लोग परेशान थे. पति चिल्लाता कि कोई कमी नहीं है, फिर भी यह खुश नहीं रह सकती है, सास अलग ताने मारती कि इसे तो काम न करने के बहाने चाहिए. जब देखो अपने कमरे में जाकर बैठ जाती है.

 भौतिकतावादी संस्कृति से उपजी समस्याएं

रीमा की तरह कितने लोग हैं जो आज ऐसे हालातों से गुजर रहे हैं और जानते तक नहीं कि वे डिप्रेशन का शिकार हैं. वक्त जिस तेजी से बदला है और भौतिकवादी संस्कृति और सोशल मीडिया ने जिस तरह से हमारे जीवन में पैठ बनाई है, उसने डिप्रेशन को बड़े पैमाने पर जन्म दिया है और हर उम्र का व्यक्ति चाहे बच्चा ही क्यों न हो, इससे जूझ रहा है. मानसिक रूप से एक लड़ाई लड़ने वाले इंसान को बाहर से देखने पर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि वह भीतर से टूट रहा है. यहां तक कि ऐसे लोग जिनकी जिंदगी रुपहले पर्दे पर चमकती दिखाई देती है, भी इसका शिकार हो चुके हैं, जैसे आलिया भट्ट, वरुण धवन, मनीषा कोईराला, शाहरुख खान, और प्रसिद्ध लेखक जे.के. ऱॉउलिंग, कुछ ऐसे नाम हैं जो डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से डिप्रेशन को लेकर समाज में चिंता और ज्यादा बढ़ गई है. केवल पैसे या स्टेट्स की कमी ही अब इसकी वजह नहीं रही है. भौतिकतावादी संस्कृति ने दिखावे की संस्कृति को बढ़ाया है डिसकी वजह से हर जगह प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और जो इस प्रतिस्पर्धा में खुद को असफल या पीछे रह जाने के एहसास से घिरा पाता है, वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है. संघर्ष करने, चुनौतियों का सामना और सहनशीलता कम होने से केवल ‘अपने लिए’ जीने की चाह ने संबंधों में दूरियां पैदा कर दी हैं. यही वजह है कि व्यक्ति समाज से कटा हुआ अनुभव करता है और अकेलेपन का शिकार हो जाता है.

जानें क्या हैं Married Life के 9 वचन

समय के साथसाथ परिवर्तन भी जरूरी है. आज के युग में दंपतियों विशेषकर नवविवाहित जोड़ों को अपने वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए अपने विचारों, अपनी भावनाओं का नजरिया थोड़ा बदलना ही चाहिए. पहले विवाह का मतलब सिर्फ प्यार और समर्पण था, जिस में ज्यादातर पत्नियां ही पति और उस के घरपरिवार के लिए समर्पित रहने में अपने जीवन की सार्थकता मानती थीं और त्याग व कर्तव्य की प्रतिमा बनीं सारा जीवन खुशीखुशी गुजार देती थीं. घरपरिवार में इसी से उन्हें इज्जत भी मिला करती थी.

पुरुष भी ऐसी पत्नी पा कर खुश होते थे. उन की सोच भी औरतों के लिए बस यही थी. पर आज हालात बदल गए हैं. स्त्रीपुरुष दोनों इस बात को समझ चुके हैं. आज औरतें भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में काम कर रही हैं, आगे बढ़ रही हैं. आज प्यार और समर्पण की शक्ल प्यार और साझेदारी ने ले ली है, जो व्यावहारिक भी है.

वरवधू शादी के समय रस्म के तौर पर 7 वचन लेते हैं और शायद बहुत जल्दी भूल भी जाते हैं पर दंपती सर्वेक्षण के आधार पर निष्कर्ष स्वरूप निकले इन वचनों को शादी के बाद भी लें, इन्हें याद रखें और निभाएं भी. विवाह का यह प्यारा बंधन प्यार, विश्वास और साझेदारी का ही तो है, जहां पतिपत्नी दोनों ही घरबाहर के काम करते हैं, तो दोनों को ही एकदूसरे के काम में सहयोग द्वारा तालमेल बैठा कर चलने की जरूरत है, जिस में ये सब के विचार मंथन से निकले निम्न वचन बड़े काम के हैं:

जो मेरा है वह तुम्हारा भी

लखनऊ के आर्किटैक्ट सुहास और उन की पत्नी सीमा में शुरूशुरू में छोटीछोटी बातों को ले कर अकसर अनबन हो जाती थी. सीमा कहती है, ‘‘जैसे मायके से मिले महंगे बैड कवर, क्रौकरी आदि को अगर सुहास अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के लिए इस्तेमाल करते, तो मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता. इसी तरह इन्हें भी मेरे रिश्तेदारों, सहेलियों द्वारा इन के म्यूजिक सिस्टम, नौवलों से छेड़छाड़ एकदम नागवार गुजरती. फिर एक दिन हम ने तय किया कि हम एक हैं, तो एकदूसरे की चीजों का इस्तेमाल क्यों न करें? उस दिन से सारा परायापन दूर हो गया.’’

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जैसे मुझे अपने मम्मीपापा, भाईबहन, दोस्तरिश्तेदार प्यारे हैं वैसे ही तुम्हें भी अपने

जयपुर के डा. राजेश और उन की होममेकर पत्नी ईशा ने इस बात का खुलासा किया कि पतिपत्नी दोनों के परिवारों का, रिश्तेदारों का घर में बराबर का सम्मान जरूरी है. राजेश ने अपनी बहन रीमा के घर में अपने व अपने मातापिता के बारबार अपमानित होने की घटना बताई. बहन अपने पति के इस अपमानित व्यवहार से आहत रहती है.

इस से उन के आपसी रिश्ते कभी मधुर नहीं हो पाए. यह तो गलत अपेक्षा है कि केवल पत्नी पति के घर वालों को पलकों पर बैठाए और पति उस के पीहर के लोगों को सम्मान न दे कर जबतब अपमानित करता फिरे. पति का भी उतना ही फर्ज है. पत्नी अर्धांगिनी है, सहचरी है कोई गुलाम नहीं.

जैसे मेरी जरूरतें जरूरी वैसे तुम्हारी भी

सुजाता एक कौरपोरेट औफिस में काम करती है. अकसर उसे घर आने में देर हो जाती है. घर पर भी कभीकभी उसे औफिस का काम निबटाना पड़ता है. इस पर पति विशाल चिड़चिड़ करता था. एक दिन सुजाता ने उसे बैठा कर अच्छी

तरह समझाया कि विशाल मैं ने शादी के पहले ही तुम्हें बता दिया था. तब तो तुम्हें मेरे अच्छे पैकेज के आगे सब मंजूर था. जब तुम अपनी बिजनैस मीटिंग से लेट आते हो तब मुझे तो कोई आपत्ति नहीं होती. फिर तुम क्यों नहीं समझते? मैं नौकरी नहीं छोड़ सकती. मां का हर महीने ब्लड ट्रांसफ्यूजन मैं नहीं रोक सकती. बेशक तुम मुझे छोड़ सकते हो. मुझे इस में भी कोई आपत्ति नहीं. मैं तलाक के लिए तैयार हूं.

मैं कल ही कहीं और शिफ्ट हो जाती हूं. पर सोचो मेरी मां की जगह तुम्हारी मां होती तो भी तुम यही कहते? अपनीअपनी जौब, जरूरत व जिम्मेदारी पूरी करने में एकदूसरे का सहयोग होगा तभी संबंधों में मधुरता आएगी और संबंध बना रहेगा वरना अपनेअपने रास्ते जाना ही बेहतर है.

उस दिन से विशाल समझ गया. अब बड़ीबड़ी क्या मेरी भूखप्यास, नींद जैसी छोटी जरूरतों को भी तवज्जो देने लगा है. मेरा दर्द, मेरी थकान उसे सब समझ आता है. लाइफ पार्टनर बने हैं तो यह जरूरी भी है.

अपनी आदतें, शौक, संस्कार जैसे मेरे वैसे तुम्हारे

पतिपत्नी अलग परिवारों से अलग परवरिश से आते हैं पर दूसरे से अपने जैसा व्यवहार, रहनसहन की ही अपेक्षा रखते हैं या अलग देख मखौल उड़ाते हैं तो वह ठीक नहीं, बल्कि हल ढूंढ़ना उचित है. स्कूल टीचर दीप्ति अपने बैंक मैनेजर पति शिखर के नंगे पांव घर में घूमने के बाद बिस्तर में घुसने से परेशान रहती थी, तो शिखर उस के कहीं से आने के बाद कपड़े चैंज कर बिस्तर पर छोड़ देने से परेशान रहता था. आखिर एक दिन बैठ कर दोनों ने समस्या का हल निकाला. अब पैरों की गंदगी से बचने के लिए शिखर ने कारपेट बिछा दिया तो दीप्ति ने भी शिखर की देखादेखी कपड़े सलीके से हैंग करने शुरू कर दिए. उन की जिंदगी फिर से गुनगुनाने लगी है.

दूसरों के सामने एकदूसरे की मीनमेख या मखौल नहीं

दिल्ली के ग्रेटर कैलाश की माला पहली बार विवाह के बाद हवाईयात्रा कर रही थी. पति अंश पेशे से चार्टर्ड अकाउंटैंट था. उस का एक दोस्त भी सपत्नीक उन के साथ था. सब किसी तीसरे दोस्त की शादी में जा रहे थे. बैल्ट बांधने की घोषणा हुई तो माला ने जल्दी से बगल वाली सीट की बैल्ट उठा ली और लगाने की कोशिश करने लगी. यह देख अंश हंस पड़ा, ‘‘अकल घास चरने गई है क्या? इतना भी नहीं आता क्या?’’ यह देख सब मुसकराने लगे तो माला को बहुत बुरा लगा. अत: बोली, ‘‘तुम्हें हंसने के बजाय मेरी मदद करनी चाहिए थी या इन की तरह अमीर घर की पत्नी लाते.’’

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अंश को अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था.

इसी तरह बरेली निवासी गीता के भैयाभाभी उस से मिलने आए तो पति दीपक बोतल से ही पानी पी रहा था. उस ने भैया को भी पानी की वही बोतल औफर कर दी.

‘‘रुकिए, मैं गिलास लाती हूं. हमारे यहां कोई गंवारों जैसे नहीं पीता,’’ गीता बोली.

दीपक को उस की बात चुभ गई. बोला, ‘‘और हमारे यहां भी पति से ऐसे कोई बात नहीं करता.’’

‘‘भैया ने गीता को टोक कर बात संभाली. बाद में दोनों ने एकदूसरे को सौरी बोला और दूसरों के सामने एकदूसरे का मखौल न उड़ाने और मीनमेख न निकालने का वादा किया.’’

जैसी मेरी सोशल बौंडिंग वैसी तुम्हारी भी

दीपांकर की पत्नी जया शादी से पहले के ही बड़ी सोशल रही है. सब के दुखसुख, उत्सवत्योहार इत्यादि में शामिल होती आई है. औफिस हो या पड़ोसरिश्तेदार सब से निभाती आई है और अब भी निभा रही है. दीपांकर भी उसे सहयोग करता है, सो जया भी दीपांकर के सामाजिक रिश्तों को निभाने में कोई गुरेज नहीं करती.

जैसे मुझे कुछ स्पेस चाहिए वैसे ही तुम्हें भी

पारुल ने बताया सारा दिन तो वह पति रवि के सिर पर सवार नहीं रहती. कुछ वक्त उसे अकेला छोड़ देती है ताकि वह अपना कुछ काम कर सके. पति भी इस बात का ध्यान रखता है कि मुझ को स्पेस मिलता रहे. दोनों में इस बात को ले कर कभी कोई तकरार नहीं होती. अगले दिन के लिए अपना होमवर्क भी आसानी से कर लेते हैं. साथ होते हैं तो खूब छनती है.

जैसी मेरी कुछ सीक्रेट्स न बताने की मेरी इच्छा वैसी ही तुम्हारी भी

शादी के पहले क्या हुआ था पति के साथ या पत्नी के साथ या उन के घरखानदान में. यदि यह बात कोई नहीं बताना चाहता है तो ठीक है, कुरेदकुरेद कर पूछना क्यों? शक में रहना बेकार है. कालेज के अंगरेजी के व्याख्याता डा. नगेंद्र और उन की हिंदी की व्याख्याता पत्नी नीलम का यही मानना है. उन के अनुसार रिश्ते की प्रगाढ़ता के लिए यह आवश्यक है. वर्तमान को देखें, एकदूसरे का आत्मसम्मान बना रहने दें.

पौकेट मनी खर्च पर नो रोकटोक

‘‘अपन दोनों की मस्त लाइफ का यही तो सीधा फंडा है. घर खर्च में हम सहमति से बराबर शेयर करते हैं और पौकेट मनी पर एकदूसरे की नो टोकाटोकी,’’ स्टेट बैंक कर्मी प्रिया और उन के असिस्टैंट मैनेजर पति करण ने अपनी मजेदार बातों में एक और महत्त्वपूर्ण वचन भी बता दिया.

तो अब देर किस बात की. शादी के समय 7 वचन लिए हैं, तो शादी के बाद पतिपत्नी दोनों इन वचनों को आत्मसात कर लें और फिर प्रेमपूर्वक निभाएं यह रिश्ता.

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हमेशा बुरी नहीं जलन

जलन या ईर्ष्या की भावना को आजकल मनोवैज्ञानिक तथा समाज विश्लेषक एक नए अंदाज में देखने लगे हैं. उन के शोध यह साबित कर रहे हैं कि अगर उन्हें किसी की तरक्की का ग्राफ देख कर जलन महसूस होती है तो घबराई सी दशा में रहने के बजाय उस के सकारात्मक पक्ष टटोलें. अगर जलन से प्रेरित हो कर अपनी दशा सुधारने में लग जाएंगे तो हालात सुधरने लगेंगे. इस का लाभ यह होगा कि यह ईर्ष्या कुंठा तक जाने के बजाय खुशियों की राह आसान करती जाएगी.

दूसरे की तरक्की या सफलता देख कर अगर मारे जलन के आप अच्छी मेहनत करने का संकल्प लेते हैं, तो यह ईर्ष्या आप के लिए सुखद परिणाम ला सकती है. यह भविष्य के लिए शुभ संकेत है.

नए प्रयोग करें

कहते हैं न कि भावनाओं पर तो किसी का भी वश नहीं चल पाता, परंतु अपना नजरिया तो ठीक किया ही जा सकता है न? कहने का तात्पर्य यह है कि दृष्टिकोण को सही फ्रेम में लगा कर अपने को अच्छे वातावरण के लिए तैयार करते रहें वरना खाली ईर्ष्या ही ईर्ष्या करने से मानसिक शांति का तो सर्वनाश होगा ही, साथ ही हृदय, लिवर, रक्तचाप आदि बीमारियां भी अपना ठिकाना आप के शरीर में ही बना लेंगी.

समय के मिजाज को भांप कर भी अपनी जलन का लाभ उठाया जा सकता है यानी दुनिया नए प्रयोग कर के आगे बढ़ रही है तो आप भी करिए. अगर समय नवीनता और ताजापन चाहता है तो आप भी वैसा करने की तरफ अपना ध्यान दीजिए.

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लक्ष्य बना लें

मन में जलन की भावना पैठ बना ले तो अपना ध्यान कुछ करने के जज्बे की तरफ मोड़ लेना बहुत लाभकारी हो सकता है. इस मामले में आलसी, निकम्मे लोग बस सोचत ही रह जाते हैं या वक्त को कोसते रहते हैं जबकि सही सोच रखने वाले खुद को भटकने नहीं देते. फट से अपनी कमियों की तरफ ध्यान देते हैं. अपना एक लक्ष्य तय करते हैं और ईर्ष्या को रोग की जगह बना डालते हैं अपनी बहुत अच्छी औषधि.

ईर्ष्या अगर सकारात्मक भाव पैदा करने लगी है, तो ऐसी कथाएं बारबार सुनते हुए या पढ़ते रहना भी लाभदायक है जो आप में एक तरंग पैदा कर दें, आप की ताकत को कई गुना बढ़ा दें और आप एक अच्छा पद, अच्छी स्थिति या फिर अच्छा नाम प्राप्त करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा दें.

मूल्यांकन करें

अपनी स्पर्धा अपनेआप से ही करना अति उत्तम होता है यानी हर दिन पिछले दिनों से अच्छा और उत्पादक बने, इस के लिए एक कैलेंडर बना कर रखना बहुत ही मददगार साबित होता है. अपनेआप का सच्चा मूल्यांकन भी करते रहना चाहिए. इस में कैलेंडर सहायक रहता है. समय का चक्र और प्रकृति हमारे लिए हमेशा बेहतर से बेहतर व्यवस्था बना कर रखती है. इस पर विचार अवश्य करते रहना चाहिए.

खुद से ही रायमशविरा करेंगे तो आप की हर कमजोरी खुद आप के सामने आएगी. अपनी कमजोरी को अपनी चुनौती बना कर हौसला रखना सचमुच जिंदादिली का पर्याय है. हिचकिचाएं बिलकुल नहीं, बस नाराजगी और शिकायतों में थोड़ी सी कटौती कर संभावनाएं जाग्रत करें और जीवन को संवार लें.

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छोटी बहन के लिए आपराधिक इतिहास वाले परिवार से रिश्ता आया है, मैं क्या करुं?

सवाल

मेरी छोटी बहन जो स्कूल टीचर है, के लिए हम ने एक लड़के से बात चलाई थी. लड़का सरकारी नौकरी में था. तहकीकात करने पर पता चला कि उस के बड़े भाइयों का आपराधिक इतिहास रहा है. इसलिए हम वहां रिश्ता करने से इनकार कर रहे हैं. लेकिन जो व्यक्ति यह रिश्ता करा रहा था उस का कहना है कि आप जिस लड़के से रिश्ता करने जा रहे हैं वह तो ठीक है, उस के भाइयों की गतिविधियों से आप को क्या लेना? कृपया बताएं कि क्या हमें ऐसे लड़के से बहन का रिश्ता करना चाहिए?

जवाब

शादी ब्याह से केवल 2 व्यक्तियों का ही नहीं वरन 2 परिवारों का भी रिश्ता जुड़ता है. इसलिए यदि उस लड़के के बड़े भाइयों के आपराधिक इतिहास के कारण रिश्ता करने से इनकार कर रहे हैं तो यह सही फैसला है.

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बहन की शादी, निभाएं फर्ज

बड़ी बहन की शादी का मौका हो तो घर में खुशी का माहौल होता ही है. ऐसे में फुल ऐंजौय करने का मौका भी मिलता है, लेकिन अगर हम सिर्फ ऐंजौय करने के चक्कर में सारी जिम्मेदारियों को पेरैंट्स के सिर पर डाल कर खुद फ्री हो जाएं तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि इस से जहां उन का स्ट्रैस बढ़ेगा वहीं अकेले होने के कारण वे चीजों को ज्यादा अच्छी तरह से हैंडिल नहीं कर पाएंगे और कोईर् न कोई गलती कर ही जाएंगे, जिस से सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा. ऐसे में घर में छोटे होने के बावजूद आप की जिम्मेदारी बनती है कि अपने पेरैंट्स के साथ हाथ बंटाएं ताकि इस बेहतरीन माहौल का सभी मजा ले पाएं औैर किसी को शिकायत का मौका भी न मिले.

आप निम्न चीजों में अपना रोल अदा कर सकते हैं :

शौपिंग में करें हैल्प

चाहे रिश्तेदारों के देनेलेने के कपड़े हों या फिर खुद बहन के लिए शौपिंग करनी हो, आप पेरैंट्स के इस काम को हलका कर सकते हैं, जैसे अगर पापा किसी काम में बिजी हैं और वे मार्केट जाने के लिए समय नहीं निकाल पा रहे है, तो आप मम्मी व बहन को शौपिंग कराने के लिए ले जाएं ताकि पापा भी अपना काम कर लें और शौपिंग का काम भी निबट सके.

सामान की पैकिंग का जिम्मा लें खुद पर

मैरिज में दिया जाने वाला सामान तो खरीद लिया है, लेकिन अब उसे पैक करने की जिम्मेदारी भी है. बाहर से पैकिंग करवाना काफी महंगा पड़ता है. इसलिए अगर आप सब भाईबहन मिल कर इस काम को कर लें तो न केवल यह काम आसानी से होगा बल्कि सस्ता भी पड़ेगा.

वैडिंग कार्ड के लिए करें मार्केट रिसर्च

वैडिंग कार्ड का और्डर देने से पहले मार्केट में रेट पता कर लें कि सिंपल से ले कर क्रिएटिव कार्ड की क्या कौस्ट है और कौन सा दुकानदार ज्यादा डिस्काउंट दे रहा है. इस से आप के पापा पर सिर्फ और्डर देने का काम रह जाएगा. हो सके तो जिन फ्रैंड्स के घर अभी हाल में ही शादी हुई है, उन से भी आप एक अंदाजा ले सकते हैं.

मेहमानों के रहने का बंदोबस्त

अगर आप के घर में मेहमानों को ठहराने के लिए पर्याप्त स्पेस नहीं है, तो आप को उन के रहने का बंदोबस्त करना पड़ेगा, इस के लिए आप अपने पापा की हैल्प यह बता कर कर सकते हैं कि पापा हमारे एरिया में फलांफलां मकान खाली हैं, हम उन के मालिकों से इन्हें किराए पर लेने की बात कर सकते हैं. आप अपने फ्रैंड्स से भी रिक्वैस्ट कर सकते हैं कि क्या उन के खाली फ्लोर को 1-2 दिन के लिए हम इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर वे इस में हामी भर दें तो आप के पापा का काम काफी आसान हो जाएगा.

संगीत नाइट का अरेंजमैंट करें

बहन के संगीत प्रोग्राम में जान डालने के लिए आप पहले से ही बहन के फेवरिट गानों के साथसाथ हिट सौंग्स को भी डाउनलोड कर के पैनड्राइव में सेव कर लें, साथ ही म्यूजिक प्लेयर का भी बंदोबस्त कर के रखें ताकि ऐनवक्त पर कोई प्रौब्लम न हो. अगर डीजे वाला धोखा दे जाए तो आप का अपना अरेंजमैंट संगीत की रात का मजा खराब नहीं होने देगा.

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वैन्यू के बंदोबस्त की देखरेख

वैन्यू बुक कराने की जिम्मेदारी तो पापा को ही बखूबी निभाने दें, क्योंकि बुकिंग में जरा सी गड़बड़ी होने पर काफी परेशानी हो सकती है. लेकिन आप यहां इस तरह अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं कि मैरिज से एक दिन पहले जिस से वैन्यू बुक कराया है उसे कौल कर के रिमाइंड करवा सकते हैं औैर मैरिज वाले दिन वहां जा कर जायजा लें कि सबकुछ ठीक चल रहा है न.

बहन की ख्वाहिशों को करें सपोर्ट

इस दिन को ले कर हर लड़केलड़की के मन में कई तरह की ख्वाहिशें होती हैं, लेकिन घर के रीतिरिवाजों के कारण उन्हें अपनी इच्छा को दबाना पड़ता है. ऐसे में आप अपनी बहन की हर जायज ख्वाहिश को सपोर्ट करें, जैसे अगर आप की फैमिली में चूड़ा पहनने का रिवाज नहीं है, लेकिन बहन पहनना चाहती है तो आप इस के लिए घर के बड़ों को राजी करें कि इस से किसी का कोई नुकसान नहीं होने वाला बल्कि समय के साथ खुद में बदलाव लाना जरूरी है. इस से वे आप की बात को जरूर मानेंगे औैर बहन के चेहरे पर भी खुशी आएगी.

बैंक के कार्यों में करें हैल्प

अगर आप के पापा को ईबैंकिंग की नौलेज नहीं है और इस चक्कर में उन का काफी समय बरबाद हो रहा है तो बैंक के कार्यों को निबटाने में आप उन की सहायता कर सकते हैं. यहां तक कि एटीएम से पैसा निकालने में भी उन की हैल्प करें.

खुद के पास भी रखें थोड़ा पैसा

घर में शादी का माहौल हो, ऐसे में हर छोटीछोटी चीज के लिए पापा को डिस्टर्ब करते रहने से काम नहीं बनने वाला. इसलिए आप पहले से ही पापा से 5-6 हजार रुपए ले कर रखें ताकि अगर ऐनवक्त पर कोई चीज खरीदनी पड़ जाए या बहन को ही कुछ मंगाना पड़ जाए तो इस के लिए आप को पापा या मम्मी का इंतजार न करना पड़े बल्कि आप खुद ही सब आसानी से हैंडिल कर लें. इस से आप छोटी उम्र से ही चीजों को हैंडिल करना सीख जाएंगे.

बहन का रखें खयाल

नए परिवार में जाने के डर से अगर  बहन खानापीना छोड़ देगी तो इस से वे इस मूवमैंट को ऐंजौय भी नहीं कर पाएगी औैर चक्कर वगैरा आने का डर भी बना रहेगा. इसलिए आप उस के खानेपीने का खयाल रखें, समय पर उसे जूस वगैरा देते रहें. साथ ही मम्मीपापा की भी प्रौपर केयर करें, तभी आप इस जिम्मेदारी को अच्छे से निभा पाएंगे.

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बरातियों के वैलकम में न छोड़ें कमी

पापा को पहले ही कह दें कि आप चाचा वगैरा के साथ मेन वैन्यू पर जिम्मेदारी संभालें और हम कजिंस के साथ मिल कर रीअसैंबल पौइंट पर. इस से काम बंट जाएगा. ध्यान रखें बरातियों के वैलकम में कमी न रहने पाए. साथ ही बहन के फ्रैंड्स को भी पूरा ऐंटरटेन करें. यहां तक कि उन्हें छोड़ने या फिर अपने यहां ठहराने का बंदोबस्त करें.

अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के बीच आप को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि हर काम बजट में हो. इस तरह आप छोटे होते हुए भी बड़ों की काफी मदद कर पाएंगे.

शादी के बाद आखिर क्यों निभाएं शराबी पति से

फरवरी के पहले हफ्ते में राज्य महिला आयोग के भोपाल के दफ्तर में सुमन की दास्तां सुन कर न केवल आयोग की मुखिया लता वानखेड़े, बल्कि मौजूद दूसरी मैंबर्स भी सकते में आ गई थीं.

सुमन की शादी पिछले साल 22 जनवरी को रेलवे कालोनी के वाशिंदे अमित गौतम के साथ हुई थी.

शादी के वक्त सुमन बहुत खुश थी क्योंकि पति फिल्में बनाने का काम करता था और रेलवे में अफसर भी था. सुमन को उम्मीद थी कि उसे ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं होगी. जिंदगी खुशनुमा गुजरेगी क्योंकि रेलवे अफसर की पगार अच्छीखासी होती है और फिर फिल्में बनाने से भी बेशुमार पैसा मिलता है.

शादी के बाद कुछ दिन तो ठीकठाक गुजरे और सुमन ससुराल वालों की तिमीरदारी में लग गई. वह अपनी तरफ से किसी को शिकायत का मौका नहीं देना चाहती थी. यह बात उसे उस के मांबाप ने सिखाई भी थी कि ससुराल में सब से हिलमिल कर रहना, घर के काम करना और छोटीमोटी परेशानियां पेश आएं तो उन से घबराना नहीं बल्कि उन का मुकाबला करना और अपनी तरफ से समझौता करने से हिचकिचाना नहीं.

कुछ महीनों बाद ही सुमन को पता चल गया कि अमित न तो रेलवे में अफसर है और न ही फिल्में बनाता है, उस से झूठ बोल कर शादी की गई थी. बात गाज गिरने जैसी ही थी, लेकिन सुमन ने यह सोचते हुए खुद को तसल्ली दे ली कि इस झूठ की अनदेखी करना ही भविष्य के लिहाज से बेहतर होगा. हल्ला मचाने से कोई फायदा नहीं होने वाला. जो है उस से समझौता कर जिंदगी गुजारी जाए.

नशैला निकला पति

यहां तक तो बात बरदाश्त थी, लेकिन जल्द ही पति का दूसरा रूप भी सामने आया तो सुमन की सब्र जवाब दे गई. अमित तरहतरह के नशे का आदी था और इतना ही नहीं, नशा कर के ऐसी ऊटपटांग हरकतें करता था कि किसी भी बीवी की जिंदगी नर्क बन जाए.

पति के नशैले होने की शिकायतें ले कर आने वाली औरतों की तादाद कम नहीं होती, इसलिए महिला आयोग की अध्यक्ष को कोई खास हैरानी नहीं हुई थी पर जब उन्होंने सुबकती सुमन के मुंह से यह सुना कि पति रूमफ्रैशनर तक सूंघ कर नशा करता है और फिर नशे में नागिन डांस करता है तो उन्हें समझ आ गया कि सुमन की परेशानी वाकई बड़ी है.

सुनने वालों की आंखें उस वक्त और फटी की फटी रह गईं जब सुमन ने यह खुलासा भी किया कि पति की नशे की लत का बेजा फायदा ससुर भी उठाता है. वह अकसर उसे इधरउधर छूने की कोशिश करता है. इतना ही नहीं शायरमिजाज ससुर उस की आंखों और बालों पर गजलें भी लिखता है.

हालांकि सफाई मांगे जाने पर अमित और उस के पिता ने सुमन के आरोपों को झूठा बताया, लेकिन सुमन की बात में दम इसलिए भी था कि आमतौर पर ऐसे मामलों में बीवियां परेशान करने और दहेज का इलजाम लगाती हैं पर सुमन ने सीधे नशे की बात कही थी.

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जब पति नशे की आदी हो तो बीवी को किन और कैसी दुश्वारियों से रूबरू होना पड़ता है यह सुमन की हालत से समझ आता है कि वे कहीं की नहीं रह जाती. मायके वालों से शिकायत करो तो वे समझाते हैं कि पति से निभाने की कोशिश करो. आजकल तो हर कोई नशा करता है.

मगर बीवी पर क्या गुजरती है यह तो नशैले पति के गले बंध गई या बांध दी गई बीवी ही बेहतर जानती है. पति की इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए उस पर हर नीयत बिगाड़ लेता है और हैरत की बात तो यह है कि इस में घर के मर्द ससुर, जेठ और देवर अव्वल रहते हैं.

बीवी की परेशानियां उस वक्त और बढ़ जाती हैं जब नशे का गुलाम पति उस की न सुन कर घर वालों की ही तरफदारी करता है. ससुर, जेठ या देवर बुरी निगाह रखते हैं यह बात बीवी किसी से कहे तो खोट उस के ही चालचलन में लोग निकालना शुरू कर देते हैं.

कैसीकैसी परेशानियां

नशे के आदी मर्दों की बीवियों की जिंदगी आम बीवियों जैसी आसान नहीं रह जाती क्योंकि नशैला पति न केवल मारपीट करता है, बल्कि उसे तरहतरह से तंग कर अपनी कमजोरी को छिपाने की भी कोशिश करता है ताकि बीवी मुंह न खोले. इस मर्दानगी से परेशान बीवियों को सैक्स सुख भी ढंग से नहीं मिल पाता क्योंकि नशे के आदी पति सैक्स में फिसड्डी होते हैं.

बात सिर्फ सैक्स की नहीं रह जाती. इस से जुड़ी दूसरी ज्यादतियों का शिकार भी बीवी को होना पड़ता है तो उस का ससुराल में दम घुटने लगता है. पर कोई सहारा या ठिकाना न होने के चलते वह ज्यादतियां बरदाश्त करती जाती है, जिस से पति का हौसला बुलंद होने लगता है. इसी दौरान अगर एकाध बच्चा भी हो जाए तो नशैले पति से छुटकारा पाना और भी मुश्किल काम हो जाता है.

पैसों की बाबत भी बीवी कुछ नहीं बोल सकती क्योंकि कमाईका बड़ा हिस्सा तो पति नशे में ही उड़ा देता है और जब शरीर कमजोर पड़ने लगता है तो वह बेशर्मों, निकम्मों की तरह घर पर पड़ा रहता है. नशीले पति का उठनाबैठना भी नशैलों में रहता है. दिक्कत उस वक्त भी पेश आती है जब पति की ली गई उधारी का तकाजा करने देनदार घर आना शुरू कर देते हैं.

भोपाल के एक प्राइवेट दफ्तर में काम करने वाली सुधा 2 बच्चों की मां है. 5 साल पहले उस की शादी सुधीर से हुई थी. सुधीर को शराब की ऐसी लत थी कि जिस दिन शराब न मिले वह छटपटाने लगता था और खुदकुशी तक करने की धौंस देने लगता था. एक कंपनी में दिहाड़ी पर काम करने वाले सुधीर की नशे की लत से आजिज आ गई सुधा ने क्व6 हजार महीने की नौकरी कर ली तो सुधीर और भी मनमानी करने लगा.

शराब के लिए पैसे देने से सुधा मना करती तो वह चिल्लाचिल्ला कर उस के चालचलन पर उंगली उठाता था और जबरदस्ती पैसे छीन कर ठेके पहुंच जाता था. छोटेछोटे बेटों का मुंह देखती सुधा अब पछताती है कि फालतू इन्हें पैदा कर लिया जिन के हिस्से में बाप का सुख और हिफाजत नहीं.

सुधा को अब कुछ नहीं सूझ रहा है कि क्या करे. पति को छोड़ने पर उसे अंदाजा है कि जिंदगी और दुश्वार हो जाएगी. बाहर दूसरे मर्द भूखे भेडि़यों की तरह उस के जिस्म पर नजरें गड़ाए बैठे हैं जो अभी सुधीर की वजह से पूरी तरह अपनी बदनीयती जाहिर नहीं कर रहे पर इशारोंइशारों में दिल और दिमाग की गंदगी उस पर फेंकने से कतई नहीं चूकते.

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क्या करें

धोखे या इत्तफाक से ही सही जब नशैला पति गले पड़ जाए तो बीवियां क्या करें, इस बात का सटीक जवाब या परेशानी का हल किसी के पास नहीं. यह फैसला तो खुद बीवियों को ही करना पड़ता है कि वे नशैले पति की ज्यादतियों को बरदाश्त करते हुए उस के गले से बंधी रहें या फिर छोड़ कर अलग जिंदगी जीएं.

खतरे घर में भी हैं और बाहर भी, इसलिए बीवियां फैसला लेने में देर कर देती हैं और बाद में पछताती ही हैं, क्योंकि बाहर के खतरे पति की नशे की लत के चलते धीरेधीरे घर में दाखिल हो कर उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं. पति की रजामंदी भी इस में होती है जिसे बीवी से ज्यादा नशे की जरूरत होती है.

सुमन ने ठीक किया जो वक्त रहते महिला आयोग पहुंच गई जहां से उस की परेशानी दूर न हुई तो तय है वह तलाक के लिए अदालत जाएगी और मुमकिन है तलाक के बाद कोई दूसरा अच्छा हमसफर मिल जाए और न भी मिले तो इस बदतर जिंदगी और घुटन से तो वह छुटकारा पा ही जाएगी.

तेरा यार हूं मैं

अक़्सर देखा जाता है कि बच्चे अपने दिल की बात जितना खुलकर अपने दोस्तों के साथ कर लेते हैं, उतना खुलकर वह अपने माता पिता से नहीं कह पाते. कई बार तो बच्चे अपने माता-पिता के सामने इतना संकोच करते हैं कि वह अपनी बात तक नहीं रख पाते. आजकल इसीलिए ये जरूरी हो गया है कि पेरेंट्स अपने बच्चों के दोस्त बनकर रहें. जब दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता होता है तो संवाद भी काफी आसान हो जाता है. इस से माहौल सहज होने से दोनों एक दूसरे की बात को समझने का प्रयास करते हैं. लेकिन बड़ा प्रश्न ये है कि बच्चों से दोस्ती की किस तरह जाए. यदि आप भी चाहते हैं बच्चों के दोस्त बनना तो जरूरत है बस कुछ कदम बढ़ाने की उसके बाद बच्चों से दोस्ती का रिश्ता कायम करना मुश्किल नहीं है तो चलिए जानते हैं कुछ आसान तरीके जिनसे  ये करना आसान हो जाएगा.

अधिक नियंत्रण से बचें

कई माता पिता अपने बच्चों को कड़े अनुशासन के नाम पर कठोर नियंत्रण में रखते हैं जिस से वो गलत राह पर न जाएँ पर इसके परिणाम ठीक उलट हो जाते हैं. बच्चे बहुत जिद्दी और गुस्से वाले बन जाते हैं.इसलिए धैर्य रखें और उन्हें अपना जीवन अपने अनुरूप जीने दें. कोई गलती हो जाने पर उन्हें डांटने की बजाय प्यार से समझाएँ. उन्हें उस गलती से होने वाले नुकसान बता कर अगली बार उस गलती को न करने सलाह दें.उन्हें यकीन दिलाएं कि आपको उन पर पूरा विश्वास है कि अब वो ये ग़लती नहीं दोहरायेंगे .

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करें जीवन भर का वादा

अगर आप सच में बच्चों के नजदीक जाना चाहते हैं तो पहल आपको ही करनी होगी इसकी शुरूआत कुछ ऐसे करें कि उन्हें ये अहसास कराएँ कि जीवन के किसी भी वक़्त में आप उनके साथ होंगे. मसलन आप उन्हें कहें कि जीवन में चाहे कोई भी परिस्थिति हो वो अपनी हर छोटी बड़ी परेशानी या खुशी आपसे बाँट सकते हैं और यदि उनसे कोई छोटी या बड़ी ग़लती भी होती है तो आपके प्यार में कमी नहीं आएगी बल्कि आप उस से बाहर निकलने में उनकी मदद करेंगे . वैसे तो माता-पिता का प्यार बिना शर्त और जीवन भर के लिए ही होता है, लेकिन बच्चे को ये जताना  भी जरूरी होता है  इससे आपसी बॉन्ड मजबूत होता है. इसी तरह आप उन्हें कह सकते हैं कि एक दोस्त की तरह वो आपसे गंदी बात भी बांट सकते हैं आप उसे सुनकर उन्हें समझने का प्रयास करेंगे और उनके प्रति जजमेन्टल नहीं होंगे.

साथ समय बिताएँ

आज के इस भागमभाग वाले समय में पेरेंट्स बच्चों से दोस्ती तो करना चाहते हैं पर समय की कमी उनकी राह का रोड़ा होती है. हम यह नहीं कहते कि आप अपना सारा काम छोड़कर बच्चों के पास सारा दिन बैठे रहें पर दिन भर में कम से कम एक घंटा सिर्फ और सिर्फ उन्हीं के लिए सुरक्षित रखें, फिर भले ही वह आपका डिनर टाइम ही क्यों ना हो.इस तरह पूरे साल में आप अपने बच्चों के साथ पूरे 365 घंटे बिता पाएँगे जो कि आपके बीच दोस्ती विकसित करने में बेहद मददगार होगा. ध्यान रखें कि दोस्ती का रिश्ता एक दिन में नहीं बनता इसको पक्का बनाने के लिए लगातार प्रयास करने होते हैं.

बच्चों के लिए हमेशा उपलब्ध रहें

दिन में एक घंटा बच्चों के लिए निकल लेने भर से आपकी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती. आपको बच्चों में ये भरोसा जगाना होगा कि आप हमेशा उनके लिए मौजूद हैं. आपने कभी महसूस किया है की आपके दोस्तों से भले ही कई दिनों तक बात ना करें, लेकिन अगर आप किसी मुश्किल में हैं तो आपको यकीन होता है कि वह आपके लिए उपलब्ध होंगे, ठीक उसी तरह, बच्चों को भी यह विश्वास होना चाहिए कि अगर वह किसी तरह की मुश्किल में हैं या फिर उन्हें कोई बात आपसे शेयर करनी है तो आप उनके लिए हमेशा उपलब्ध रहेंगे.

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प्यार भरा स्पर्श

बच्चों के साथ एक प्यार भरे और दोस्ती के रिश्ते के लिए आपका स्पर्श भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जब आप अपने बच्चे को प्यार से स्पर्श करते हैं तो इससे उसके मस्तिष्क में कई सन्देश जाते हैं. आपने अक्सर देखा होगा कि जब बच्चा गुस्से में होता है या फिर रो रहा होता है, ऐसे में अगर आप उसे प्यार से गले लगा लें तो वह एकदम से शांत हो जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि जो माता-पिता अपने बच्चों को दिन में कम से कम पांच या छह बार प्यार से गले लगाते हैं या स्पर्श करते हैं उनका जीवन काल पांच या छह साल बढ़ जाता है. आज के दौर में बच्चों में कई भावनात्मक समस्याओं से जूझना पड़ता है जिसका  मुख्य कारण सिर्फ स्पर्श, स्नेह भरे स्पर्श की कमी और प्यार को महसूस न कर पाना है. जब आप उन्हें प्यार से गले लगाते हैं तो इससे आपका बच्चा न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी लाभान्वित होता है.

इन कुछ बातों का ध्यान रखने से आपके बच्चे न सिर्फ आपके अच्छे दोस्त बन जायेंगे बल्कि वो आपका अधिक सम्मान करने लगेंगे.

तो हमेशा रहेगा 2 बहनों में प्यार

‘‘वाह इस गुलाबी मिडी में तो अपनी अमिता शहजादी जैसी प्यारी लग रही है,’’ मम्मी से बात करते हुए पापा ने कहा तो नमिता उदास हो गई.

अपने हाथ में पकड़ी हुई उसी डिजाइन की पीली मिडी उस ने बिना पहने ही अलमारी में रख दी. वह जानती है कि उस के ऊपर कपड़े नहीं जंचते जबकि उस की बहन पर हर कपड़ा अच्छा लगता है. ऐसा नहीं है कि अपनी बड़ी बहन की तारीफ सुनना उसे बुरा लगता है. मगर बुरा इस बात का लगता है कि उस के पापा और मम्मी हमेशा अमिता की ही तारीफ करते हैं.

नमिता और अमिता 2 बहनें थीं. बड़ी अमिता थी जो बहुत ही खूबसूरत थी और यही एक कारण था कि नमिता अकसर हीनभावना का शिकार हो जाती थी. वह सांवलीसलोनी थी. मांबाप हमेशा बड़ी की तारीफ करते थे.

खूबसूरत होने से उस के व्यक्तित्व में एक अलग आकर्षण नजर आता था. उस के अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ गया था. बचपन से खूब बोलती थी. घर के काम भी फटाफट निबटाती, जबकि नमिता लोगों से बहुत कम बात करती थी.

मांबाप उन के बीच की प्रतिस्पर्धा को कम करने के बजाय अनजाने ही यह बोल कर बढ़ाते जाते थे कि अमिता बहुत खूबसूरत है. हर काम कितनी सफाई से करती है, जब कि नमिता को कुछ नहीं आता. इस का असर यह हुआ कि धीरेधीरे अमिता के मन में भी घमंड आता गया और वह अपने आगे नमिता को हीन सम  झने लगी.

नतीजा यह हुआ कि नमिता ने अपनी दुनिया में रहना शुरू कर दिया. वह पढ़लिख कर बहुत ऊंचे ओहदे पर पहुंचना चाहती थी ताकि सब को दिखा दे कि वह अपनी बहन से कम नहीं. फिर एक दिन सच में ऐसा आया जब नमिता अपनी मेहनत के बल पर बहुत बड़ी अधिकारी बन गई और लोगों को अपने इशारों पर नचाने लगी.

यहां नमिता ने प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप दिया इसलिए सफल हुई. मगर कई बार ऐसा नहीं भी होता है कि इंसान का व्यक्तित्व उम्रभर के लिए कुंद हो जाता है. बचपन में खोया हुआ आत्मविश्वास वापस नहीं आ पाता और इस प्रतिस्पर्धा की भेंट चढ़ जाता है.

अकसर 2 सगी बहनों के बीच भी आपसी प्रतिस्पर्धा की स्थिति पैदा हो जाती है. खासतौर पर ऐसा उन परिस्थितियों में होता है जब मातापिता अपनी बेटियों का पालनपोषण करते समय उन से जानेअनजाने किसी प्रकार का भेदभाव कर बैठते हैं. इस के कई कारण हो सकते हैं.

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किसी एक बेटी के प्रति उन का विशेष लगाव होना: कई दफा मांबाप के लिए वह बेटी ज्यादा प्यारी हो जाती जिस के जन्म के बाद घर में कुछ अच्छा होता है जैसे बेटे का जन्म, नौकरी में तरक्की होना या किसी परेशानी से छुटकारा मिलना. उन्हें लगता है कि बेटी के कारण ही अच्छे दिन आए हैं और वे स्वाभाविक रूप से उस बच्ची से ज्यादा स्नेह करने लगते हैं.

किसी एक बेटी के व्यक्तित्व से प्रभावित होना:

हो सकता है कि एक बेटी ज्यादा गुणी हो, खूबसूरत हो, प्रतिभावान हो या उस का व्यक्तित्व अधिक प्रभावशाली हो, जबकि दूसरी बेटी रूपगुण में औसत हो और व्यक्तित्व भी साधारण हो. ऐसे में मांबाप गुणी और सुंदर बेटी की हर बात पर तारीफ करना शुरू कर देते हैं.

इस से दूसरी बेटी के दिल को चोट लगती है. बचपन से ही वह एक हीनभावना के साथ बड़ी होती है. इस का असर उस के पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है.

बहनों के बीच यह प्रतिस्पर्धा अकसर बचपन से ही पैदा हो जाती है. बचपन में कभी रंगरूप को ले कर, कभी मम्मी ज्यादा प्यार किसे करती है और कभी किस के कपड़े/खिलौने अच्छे हैं जैसी बातें प्रतियोगिता की वजह बनती हैं. बड़ा होने पर ससुराल का अच्छा या बुरा होना, आर्थिक संपन्नता और जीवनसाथी कैसा है जैसी बातों पर भी जलन या प्रतिस्पर्धा पैदा हो जाती है.

बहने जैसेजैसे बड़ी होती हैं वैसेवैसे प्रतिस्पर्धा का कारण बदलता जाता है. यदि दोनों एक ही घर में बहू बन कर जाएं तो यह प्रतिस्पर्धा और भी ज्यादा देखने को मिल सकती है.

पेरैंट्स न करें भेदभाव

अनजाने में मातापिता द्वारा किए भेदभाव के कारण बहनें आपस में प्रतिस्पर्धा करने लगती हैं. उन के स्वभाव में एकदूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष पनपने लगता है. यही द्वेष प्रतिस्पर्धा के रूप में सामने आता है और एकदूसरे से अपनेआप को श्रेष्ठ साबित करने का कोई अवसर नहीं छोड़तीं.

इस के विपरीत यदि सभी संतान के साथ समान व्यवहार किया गया हो और बचपन से ही उन के मन में बैठा दिया जाए कि कोई किसी से कम नहीं है तो उन के बीच ऐसी प्रतियोगिता पैदा नहीं होगी. यदि दोनों को ही शुरू से समान अवसर, समान मौके और समान प्यार दिया जाए तो वे प्रतिस्पर्धा करने के बजाय हमेशा खुद से ज्यादा अहमियत बहन की खुशी को देंगी.

40 साल की कमला बताती हैं कि उन की 2 बेटियां हैं. उन की उम्र क्रमश: 7 और 5 साल है. छोटीछोटी चीजों को ले कर अकसर वे आपस में   झगड़ती हैं. उन्हें हमेशा यही शिकायत रहती है कि मम्मी मु  झ से ज्यादा मेरी बहन को प्यार करती हैं.

दरअसल, इस मामले में दोनों बेटियों के बीच मात्र 2 साल का अंतर है. जाहिर है जब छोटी बेटी का जन्म हुआ होगा तो मां उस की देखभाल में व्यस्त हो गई होंगी. इस से उस की बड़ी बहन को मां की ओर से वह प्यार और अटैंशन नहीं मिल पाया होगा जो उस के लिए बेहद जरूरी था.

जब 2 बच्चों के बीच उम्र का इतना कम फासला हो तो दोनों पर समान रूप से ध्यान दे पाना मुश्किल हो जाता है.

इस तरह लगातार बच्चे होने पर बहुत जरूरी है कि उन दोनों के साथ बराबरी का व्यवहार किया जाए. नए शिशु की देखभाल से जुड़ी ऐक्टिविटीज में अपने बड़े बच्चे को विशेष रूप से शामिल करें. छोटे भाई या बहन के साथ ज्यादा वक्त बिताने से उस के मन में स्वाभाविक रूप से अपनत्व की भावना विकसित होगी.

रोजाना अपने बड़े बच्चे को गोद में बैठा कर उस से प्यार भरी बातें करना न भूलें. इस से वह खुद को उपेक्षित महसूस नहीं करेगा.

प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लें

आपस में प्रतिस्पर्धा होना गलत नहीं है. कई बार इंसान की उन्नति/तरक्की या फिर कहिए तो उस के व्यक्तित्व का विकास प्रतिस्पर्धा की भावना के कारण ही होता है. यदि एक बहन पढ़ाई, खेलकूद, खाना बनाने या किसी और तरह से आगे है या ज्यादा चपल है तो दूसरी बहन कहीं न कहीं हीनभावना का शिकार होगी. उसे अपनी बहन से जलन होगी.

बाद में कोशिश करने पर वह किसी और फील्ड में ही भले, लेकिन आगे बढ़ कर जरूर दिखाती है. इस से उस की जिंदगी बेहतर बनती है. इसलिए प्रतिस्पर्धा को हमेशा सकारात्मक रूप में लेना चाहिए.

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रिश्ते पर न आए आंच

अगर दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा है तो यह महत्त्वपूर्ण है कि आप उसे टैकल कैसे करती हैं. आप का उस के प्रति रवैया कैसा है. प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लीजिए और इस के कारण अपने रिश्ते को कभी खराब न होने दीजिए. याद रखिए 2 बहनों का रिश्ता बहुत खास होता है. आज के समय में वैसे भी ज्यादा भाईबहन नहीं होते हैं.

यदि आप का बहन से रिश्ता खराब हो जाए तो आप के मन में जो खालीपन रह जाएगा वह कभी भर नहीं सकता क्योंकि बहन की जगह कभी भी दोस्त या रिलेटिव नहीं ले सकते. बहन तो बहन होती है. इसलिए रिश्ते में पनपी इस प्रतिस्पर्धा को कभी भी इतना तूल न दें कि वह रिश्ते पर चोट करे.

मैं अपनी सासूमां से परेशान हूं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मुझे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां समझती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी समझ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान समझेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

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सिर्फ 7 फेरे ले लेने से पतिपत्नी का रिश्ता नहीं बनता है. रिश्ता बनता है समझदारी से निबाहने के जज्बे से, पतिपत्नी का रिश्ता बनते ही सब से अहम रिश्ता बनता है सासबहू का. या तो सासबहू का रिश्ता बेहद मधुर बनता है या फिर दोनों ही जिद्दी और चिड़चिड़ी होती हैं. ऐसा बहुत कम पाया गया है कि दोनों में से एक ही जिद्दी और चिड़चिड़ी हो. जिद दोनों तरफ से होती है. एक तरफ से जिद हो और कहना मान लिया जाए तो झगड़ा किस बात का? एक तरफ से जिद होती है तो उस की प्रतिक्रियास्वरूप दूसरी ओर से भी और भी ज्यादा जिद का प्रयास होता है. यह संबंधों को बिगाड़ देता है. इस के नुकसान देर से पता चलते हैं. तब यह रोग लाइलाज हो जाता है.

कटुता से प्रभावित रिश्ते

सासबहू के संबंध में कटुता आना अन्य रिश्तों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है. मनोवैज्ञानिक स्टीव कूपर का मत है कि संबंध में कटुता एक कुचक्र है. एक बार यह शुरू हो गया तो संबंध निरंतर बिगड़ते चले जाते हैं. बिगड़ते रिश्तों में आप जीवन के आनंद से वंचित रह जाते हैं. अन्य रिश्ते जो प्रभावित होते हैं वे हैं छोटे बच्चों के साथ संबंध, देवरदेवरानी, ननदननदोई, जेठजेठानी, पति के भाईभाभी आदि. ये वह रिश्ते हैं जो परिवार में वृद्धि के साथ जन्म लेते हैं. इन रिश्तों को निभाना रस्सी पर नट के बैलेंस बनाने के समान है. हर रिश्ते में अहं अपना काम करता है और अनियंत्रित तथा असंतुलित अहं के कारण घर का माहौल शीघ्रता से बिगड़ता है.

सास-बहू मजबूत बनाएं रिश्तों की डोर

सास और बहू का बेहद नजदीकी रिश्ता होते हुए भी सदियों से विवादित रहा है. तब भी जब महिलाएं अशिक्षित होती थीं खासकर सास की पीढ़ी अधिक शिक्षित नहीं होती थी और आज भी जबकि दोनों पीढि़यां शिक्षित हैं और कहींकहीं तो दोनों ही उच्चशिक्षित भी हैं. फिर क्या कारण बन जाते हैं इस प्यारे रिश्ते के बिगड़ते समीकरण के.

संयुक्त परिवारों में जहां सास और बहू दोनों साथ रह रही हैं वहां अगर सासबहू की अनबन रहती है तो पूरे घर में अशांति का माहौल रहता है. सासबहू के रिश्ते का तनाव बहूबेटे की जिंदगी की खुशियों को भी लील जाता है. कभीकभी तो बेटेबहू का रिश्ता इस तनाव के कारण तलाक के कगार तक पहुंच जाता है.

हालांकि भारत की महिलाओं का एक छोटा हिस्सा तेजी से बदला है और साथ ही बदली है उन की मानसिकता. उस हिस्से की सासें अब नई पीढ़ी की बहुओं के साथ एडजैस्टमैंट बैठाने की कोशिश करने लगी हैं. सास को बहू अब आराम देने वाली नहीं, बल्कि उस का हाथ बंटाने वाली लगने लगी है. यह बदलाव सुखद है. नई पीढ़ी की बहुओं के लिए सासों की बदलती सोच सुखद भविष्य का आगाज है. फिर भी हर वर्ग की पूरी सामाजिक सोच को बदलने में अभी वक्त लगेगा.

बहुत कुछ बदलने की जरूरत

भले ही आज की सास बहू से खाना पकाने व घर के दूसरे कामों की जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद नहीं करती, बहू पर कोई बंधन नहीं लगाती और न ही उस के व्यक्तिगत मसलों में हस्तक्षेप करती है. पर फिर भी कुछ कारण ऐसे बन जाते हैं जो अधिकतर घरों में इस प्यारे रिश्ते को बहुत सहज नहीं होने देते. अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है क्योंकि आज भी कहीं सास तो कहीं बहू भारी है.

वे कारण जो शिक्षित होते हुए भी इन  2 रिश्तों के समीकरण बिगाड़ते हैं:

– आज की बहू उच्चशिक्षित होने के साथ आत्मनिर्भर भी है, मायके से मजबूत भी है क्योंकि अधिकतर 1 या 2 ही बच्चे हैं. अधिकतर लड़कियां इकलौती हैं, जिस के कारण वे सास से क्या किसी से भी दब कर नहीं चलतीं.

– आज के समय में लड़की के मातापिता सास व ससुराल से क्या पति से भी बिना कारण समझता करने की पारंपरिक शिक्षा नहीं देते जो सही भी है.

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– बहुओं का आज के समय में खाना बनाना न आना एक स्वाभाविक सी बात है और बनाना आना आश्चर्य की.

– गेंद अब सास के पाले से निकल कर बहू के पाले में चली गई.

– बहू नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है, इसलिए बेटा उसे अधिक तवज्जो देता है जो सास को थोड़ा उपेक्षित सा कर देता है.

– सास शिक्षित होते हुए भी और नए जमाने के अनुसार खुद को बदलने का दावा करने के बावजूद बहू के इस बदले हुए आधुनिक, आत्मविश्वासी व बिंदास रूप को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रही है.

– पतिपत्नी के बंधे हुए पारंपरिक रिश्ते से उतर कर बहूबेटे के दोस्ताने रिश्ते को कई सासों को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है.

– बहू के बजाय बेटे को घर संभालना पड़े तो सास की पारंपरिक सोच उसे कचोटती है.

ये कुछ ऐसे कारण हैं जो आज की सासबहू दोनों शिक्षित पीढ़ी के बीच अलगाव व तनाव का कारण बन रहे हैं. फलस्वरूप विचारों व भावनाओं की टकराहट दोनों तरफ से होती है.

छोटीछोटी बातें चिनगारी भड़काने का काम करती हैं जिस की परिणति कभीकभी बेटेबहू को कोर्ट की दहलीज तक पहुंचा कर होती है.

यूनिवर्सिटी औफ कैंब्रिज की सीनियर प्रोफैसर राइटर और मनोचिकित्सक डा. टेरी आप्टर ने अपनी किताब ‘व्हाट डू यू वांट फ्रौम मी’ के लिए की गई अपनी रिसर्च में पाया कि 50% मामलों में सासबहू का रिश्ता खराब होता है. 55% बुजुर्ग महिलाओं ने स्वीकार किया कि वे खुद को बहू के साथ असहज और तनावग्रस्त पाती हैं, जबकि करीब दोतिहाई महिलाओं ने महसूस किया कि उन्हें उन की बहू ने अपने ही  घर में अलगथलग कर दिया.

दुनिया के सभी रिश्तों से कहीं ज्यादा जटिल रिश्ता है सासबहू का. भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में इसे कठिन रिश्ता माना गया है. भारत में यह समस्या ज्यादा इसलिए है क्योंकि यहां परिवार व बड़ेबुजुर्गों को अहमियत दी जाती है.

नई पीढ़ी की बहुओं की सोच:

नई पीढ़ी की लड़कियों की सोच बहुत बदल गई है. वे पारंपरिक बहू की परिधि में खुद को किसी तरह भी फिट नहीं करना चाहतीं. उन की सोच कुछकुछ पाश्चात्य हो चुकी है. उन्हें ढोंग व दिखावा पसंद नहीं है. वे विवाह बाद अपने घर को अपनी तरह से संवारना चाहती हैं. वे अपने जीवन में किसी की भी दखलांदाजी पसंद नहीं है. उन के लिए उन का परिवार उन के बच्चे व पति हैं. बेटी ही बहू बनती है.

आज बेटियों को पालनेपोषने का तरीका बहुत बदल गया है. लड़कियां आज विवाह, ससुराल, सासससुर के बारे में अधिक नहीं सोचतीं. उन के लिए उन का कैरियर, खुद के विचार व व्यक्तित्व प्राथमिकता में रहते हैं.

सास की सोच:

सास की पारंपरिक सामाजिक तसवीर बेहद नैगेटिव है. समाजशास्त्री रितु सारस्वत के अनुसार, सास की इमेज के प्रति ये ऐसे जमे हुए विचार हैं, जो इतनी आसानी से मिटाए नहीं जा सकते. आज की शिक्षित सास ने बहू के रूप में एक पारंपरिक सास को निभाया है. बहुत कुछ अच्छाबुरा ?ोला है. बड़ेबड़े परिवार निभाए हैं. नौकरी करते हुए या बिना नौकरी किए ढेर सारा काम किया है.

वहीं बहू का रूप इतना बदल गया कि खुद को बहुत बदलने के बावजूद सास के लिए बहू का यह नया रूप आत्मसात करना सरल नहीं हो रहा है जिस के कारण न चाहते हुए भी दोनों के रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं.

सास का डर:

सासबहू के तनावपूर्ण रिश्ते का सब से बड़ा कारण है सास में ‘पावर इनसिक्योरिटी’ का होना. सास बेटे की शादी होने के बाद इस चिंता में पड़ जाती है कि कहीं मेहनत से तैयार किया हुआ उन का बसाबसाया साम्राज्य छिन न जाए. जो सासें इस इनसिक्योरिटी के भाव से ग्रस्त रहती हैं, उन के अपनी बहू से रिश्ते अधिकतर खराब रहते है.

बेटेबहू का रिश्ता मजबूत बनाने में मां की अहम भूमिका: विवाह से पहले बेटा अपनी मां के ही सब से नजदीक होता है. विवाह के बाद बेटे की प्राथमिकता में बदलाव आता है. जहां सास चाहती है कि बेटा तो विवाह के बाद उस का रहे ही अपितु बहू भी उस की हो जाए. यह सुंदर भाव व अभिलाषा है. हर मां ऐसा चाहती है. लेकिन इस के लिए कुछ बातों का पहले ही दिन से बहुत ध्यान रखने की जरूरत है.

सब से पहले तो बहू को अपनी अल्हड़ सी बेटी के रूप में स्वीकार करने की जरूरत है जिस की हर उपलब्धि पर खुशियों व तारीफ के पुल बांधे जाएं व हर गलती को मुसकरा कर प्यार से टाल दिया जाए क्योंकि एक सुकुमार लाडली सी बेटी विवाह होते ही बहू की जिम्मेदारी के खोल में नहीं सिमट सकती.

बहू को बेटे की पत्नी व अपनी बहू मानने से पहले एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करे. उस के विचारों, फ्रैंड सर्कल, उस के काम को भी उतना ही महत्त्व दे जितना बेटे को देती है. युवा लड़कों में अपनी कामकाजी पत्नी को ले कर बहुत बदलाव आया है, लेकिन अकसर देखने को मिलता है कि मां बेटे के इस भाव को पोषित नहीं कर पाती.

बहू बेटे की पीढ़ी की व उसी के समकक्ष शिक्षित है, नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है. बेटा और बहू की कई आपसी बातें, सलाहें उन की अपनी पीढ़ी के अनुसार हैं जो अकसर सास को समझ नहीं आतीं और वह खुद को उपेक्षित महसूस करती है. बेटेबहू के आपसी रिश्ते को सहजता से लेने की जरूरत है, जैसे बेटीदामाद का लेते हैं. क्या वे मां को सबकुछ बता देते हैं?

निजी जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं: बेटे बहू के बीच छोटीमोटा झगड़ा होना आम बात है. वे दोनों इसे खुद ही सुलझ लेते हैं. लेकिन उन दोनों के बीच पड़ कर यह सोचना कि बहू गलती मान कर सुलह कर ले, छोटे से झगड़े को बड़ा कर देता है.

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एकदूसरे से जलन क्यों:

सास और बहू के बीच जलन यह बात थोड़ी अजीब लगती है क्योंकि दोनों का रिश्ता अच्छा हो या बुरा होता तो मांबेटी का ही है. लेकिन इन दोनों के बीच जलन कहां किस रूप में जन्म ले ले, कहा नहीं जा सकता. लड़के ने अपनी मां को ज्यादा पूछा, उन के लिए बिना पत्नी को बताए कुछ खरीद लाए, किसी मसले पर उन से सलाह मांग कर उन्हें तवज्जो दे, मां के बनाए खाने की अधिक तारीफ कर दी, पत्नी को मां से खाना बनाना व गृहस्थी चलाने के गुर सीखने की सलाह दे डाले तो बहू के दिल में सास के प्रति जिद्द व जलन के भाव आ जाते हैं. वहीं सास भी इन्हीं सब कारणों से बहू के प्रति ईष्यालु हो सकती है.

सास के जमाने में बहू के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियां बहुत थी. आज की लड़की के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियों के माने बदल गए हैं. उस के बदले हुए तरीके को सहर्ष स्वीकार करें. बेमन से स्वीकार करने पर रिश्ता हमेशा भार बना रहेगा. सासबहू के बीच की सहजता खत्म होगी तो इस का असर बेटेबहू के रिश्ते पर पड़ेगा.

बेटा तो अपना ही है. अगर कभी पक्ष लेने की जरूरत पड़े तो बहू का ले वरना तटस्थ बनी रहे.

बच्चों के रिश्ते को बचाए रखने की जिम्मेदारी दोनों परिवारों की: यह सही है कि बहू का असली घर उस के पति का ही घर माना जाता है. इसलिए उस के ससुराल वालों पर बच्चों के विवाह को मजबूत बनाने की और अलगाव की स्थिति में बचाने की जिम्मेदारी ज्यादा आती है. जो बेटा जितना अपनी मां के करीब होगा वह मां और भी इस के लिए प्रयासरत रह सकती है क्योंकि बेटा अपनी मां की सलाह सुन लेता है.

मगर आज के समय लड़की के मातापिता भी इस के लिए कम कुसूरवार नहीं हैं. वे भी छोटीछोटी बातों में बेटी को उकसा कर तिल का ताड़ बना देते हैं. बेटी पर कोई अत्याचार हो रहा है तो जरूर साथ दें, लेकिन छोटीछोटी बातों, परिस्थितियों में बेटी को समझतावादी नजरिया रखने को कहें क्योंकि एक विवाह टूट कर दूसरा इतना सरल नहीं होता.

तलाक सिर्फ एक रास्ता है, मंजिल नहीं है खास कर जब बच्चे हों, क्योंकि तलाक पतिपत्नी का होता है, मातापिता का नहीं होता. बच्चों को दोनों की जरूरत होती है.

हर छोटी सी बात को मानसम्मान का प्रश्न बना लेना कोई समझदारी नहीं है. ससुराल वालों को भी अपना नजरिया बदलने की जरूरत है.

बहू के रूप में आई लड़की के स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकार करना सीखें. ‘तारीफ करने की आदत’ व ‘स्वीकार करने’ का स्वभाव किसी भी रिश्ते को टूटने से ही नहीं बचाता, अपितु मजबूत भी बनाता है.

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जब मायके से न लौटे बीवी

पेशे से मैकैनिक 22 साल का शफीक खान भोपाल की अकबर कालोनी में परिवार के साथ रहता था. उस की कमाई भी ठीकठाक थी और दूसरी परेशानी भी नहीं थी. लेकिन बीते 18 अक्तूबर को उस ने घर में फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली. ऐशबाग थाने की पुलिस ने जब मामला दर्ज कर तफतीश शुरू की तो पता चला कि शरीफ की शादी कुछ महीने पहले ही हुई थी और उस की बीवी शादी के बाद पहली बार मायके गई तो फिर नहीं लौटी.

शरीफ और उस के घर वालों ने पूरी कोशिश की थी कि बहू घर लौट आए. लेकिन कई दफा बुलाने और लाने जाने पर भी उस ने ससुराल आने से इनकार कर दिया तो शरीफ परेशान हो उठा और वह तनाव में रहने लगा. फिर उसे परेशानी और तनाव से बचने का बेहतर रास्ता खुदकुशी करना ही लगा.

22 साल की उम्र ज्यादा नहीं होती. फिर भी इस उम्र में शादी हो जाए तो मियांबीवी हसीन सपने देखते हैं. एकदूसरे से वादे करते हैं और चौबीसों घंटों रोमांस में डूबे रहते हैं, पर कई मामलों में उलटा भी होता है. जैसाकि अगस्त के महीने में भोपाल के ही एक और नौजवान अभिषेक के साथ हुआ था. उस की शादी को भी ज्यादा दिन नहीं हुए थे. लेकिन बीवी मायके गई तो फिर उस ने ससुराल आने से साफ इनकार कर दिया.

अभिषेक खातेपीते इज्जतदार घराने का लड़का था. अच्छे काम की तलाश में था. घर में पैसों की कमी न थी और शादी के पहले ही उस की ससुराल वालों को बता दिया था कि नौकरी या करोबार अभिषेक की बहुत बड़ी जरूरत नहीं. लड़का अच्छा था, ग्रैजएुट था, सेहतमंद था और मालदार घराने का था, इसलिए ससुराल वालों ने अनामिका (बदला नाम) की शादी उस से धूमधाम से कर दी. जब पहली विदाई के लिए अभिषेक के घर वालों ने समधियाने फोन किया तो यह सुन कर सन्न रह गए कि बहू ससुराल नहीं लौटना चाहती. वजह पूछने पर कोई साफ जवाब नहीं मिला.

कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा. अभी बहू बच्ची ही तो है. मायके का लगाव नहीं छोड़ पा रही है जैसी बातें सोच कर अभिषेक के घर वाले सब्र कर गए. लेकिन अभिषेक ज्यादा सब्र नहीं रख पाया और उस ने भी शफीक की तरह जीवन समाप्त करने का कदम उठा डाला.

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मौज के दिनों में मौत

शादी के बाद के शुरुआती दिन शादीशुदाओं के लिए बेहद रंगीन, रोमांटिक, हसीन होते हैं, लेकिन शफीक और अभिषेक जैसे नौजवानों की भी कमी नहीं, जिन के हिस्से में महज इस वजह से मायूसी, तनाव और ताने आते हैं, क्योंकि उन की बीवियां मायके से नहीं लौटतीं. मौजमस्ती के इन दिनों अगर बीवी की यह बेरुखी कोई शौहर न झेल पाए तो बात कतई हैरत की नहीं, क्योंकि आमतौर पर इस का दोष उस के सिर मढ़ दिया जाता है जो खुद नहीं समझ पाता कि आखिरकार क्यों बीवी वापस नहीं आ रही.

बीवियों के मायके में रहने या वहां से न आने की कई वजहें होती हैं, लेकिन समाज और रिश्तेदार उंगली पति की मर्दानगी पर उठाने का लुत्फ उठाते हैं. कई दफा ये ताने कि इस में दम नहीं होगा या बीवी का पहले से ही मायके में किसी से चक्कर चल रहा होगा, इसलिए वापस नहीं आ रही. इस से नातजर बेकार पति परेशान हो उठता है. बीवी से बात करता है तो वह साफसाफ वजह नहीं बताती पर साफसाफ यह जरूर कह देती है कि मुझे नहीं रहना तुम्हारे और तुम्हारे घर वालों के साथ. तब शौहर के सपने चकनाचूर हो जाते हैं. एक मियाद के बाद वह भी यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि

उस का पहले से कहीं चक्कर चल रहा होगा. शादी तो उस ने घर वालों के दबाव में आ कर कर ली होगी.

पर मेरा क्या कुसूर, यह सवाल जब शौहर के जेहन में बारबार हथोड़े की तरह बजता है और इस का कोई मुकम्मल जवाब कहीं से नहीं मिलता तो उसे जिंदगी और दुनिया बेकार लगती है. उसे लगता है सारे लोग उसे ही घूरघूर कर यह कहते देख रहे हैं कि कैसे मर्द हो, जो बीवी को काबू में नहीं रख पाए? जरूर तुम्हीं में कोई कमी होगी.

धीरेधीरे शफीक और अभिषेक जैसे शौहरों की हालत पिंजरे में फड़फड़ाते पक्षी की तरह होने लगती है. वे गुमसुम रहने लगते हैं, लोगों से कन्नी काटते हैं, अपना काम सलीके और लगन से नहीं कर पाते. बीवी की याद आती है तो हर कीमत पर वे वापस लाना चाहते हैं, लेकिन बीवी किसी भी कीमत पर आने को तैयार नहीं होती तो इन का मरने की हद तक उतारू हो जाना चिंता की बात समाज के दबाव और कायदेकानून के लिहाज से है. कई दफा तो घर वाले भी शौहरों का साथ यह कहते हुए नहीं देते कि तुम जाने और तुम्हारी बीवी. हमारी जिम्मेदारी शादी कराने की थी जो हम ने पूरी कर दी. अब वह नहीं आ रही तो हम क्या उस की चौखट पर अपनी नाक रगड़ें?

क्या हैं वजहें

बीवी के ससुराल वापस न आने की वजहों पर गौर करें तो पहली और अहम बात है उस की नादानी, नासमझी और जिम्मेदारियां न उठा पाने की नाकामी. जाहिर है, इस का सीधा संबंध उम्र से है, जो वक्त रहते ठीक हो जाता है. लेकिन कई मामलों से समझ आता है कि वाकई लड़की का मायके में किसी से चक्कर था.

और वह आशिक के दबाव में है या ब्लेकमैलिंग की शिकार है. कई लड़कियां घर वालों की खुशी के लिए शादी तो कर लेती हैं, पर अपने पहले प्यार को नहीं भूल पातीं. इसलिए भी उन का शौहर से लगाव नहीं हो पाता.

विदिशा के उमेश की शादी को 2 साल हो चले हैं, लेकिन उस की बीवी भी ससुराल नहीं आती. पहली रात ही उस ने दिनेश को बता दिया था कि वह भरेपूरे परिवार में नहीं रह सकती, इसलिए वह अलग हो जाए. इस पर उमेश ने समझा कि ऐसा तो होता रहता है. आजकल हर लड़की आजादी से रहना चाहती है. धीरेधीरे बीवी घर वालों से घुलमिल जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा.

लेकिन जिस तालमेल की उम्मीद दिनेश कर रहा था वह बीवी और घर वालों के बीच नहीं बैठा तो 2-3 बार ससुराल आ कर बीवी ने ऐलान कर दिया कि अब कुछ भी हो जाए वह मायके में ही रहेगी.

उमेश जैसे पतियों की समझ में नहीं आता कि कैसे इस स्थिति से निबटें, क्योंकि ससुराल वाले भी अपनी बेटी का साथ देते हैं. उधर यारदोस्त, नातेरिश्तेदार और समाज वाले भी बातें बनाना शुरू कर देते हैं, तो पूरा घर हैरानपेरशान हो जाता है.

मगर उमेश ने बुजदिली का रास्ता न चुनते हुए अदालत की पनाह ली. एक वकील की सलाह पर कोर्ट में बीवी को वापस आने के लिए दरख्वास्त लगा दी. वह सोच रहा था कि इस से बीवी को अक्ल आ जाएगी. लेकिन हुआ उलटा. ससुराल वालों और बीवी ने उस के घर वालों के खिलाफ दहेज मांगने और परेशान करने का झूठा मामला दर्ज करा दिया. उमेश गिरफ्तार हो गया. कुछ दिन बाद जमानत पर छूट आया, लेकिन अब वह खुद नहीं चाहता कि ऐसी बेगैरत, झूठी और बेवफा औरत के साथ जिंदगी काटे, इसलिए अब वह तलाक चाहता है.

कई मामलों में बीवियां अपनी कोई कमजोरी या छोटीमोटी जिस्मानी या दिमागी बीमारी छिपाने के लिए भी ससुराल नहीं लौटतीं

इधर कानून भी ज्यादा मदद हैरानपेरशान शौहरों की नहीं कर पाता. वजह काररवाई का लंबा चलना, बदनामी होना और अदालत में गुनहगारों सरीखे खड़े रहना होती है. इसलिए अधिकतर शौहर अदालत के नाम से घबराते हैं. जाहिर है, बीवी का वापस न आना ऐसी समस्या है, जिस का कोई सटीक हल नहीं मगर हल यह भी नहीं है कि खुदकुशी कर ली जाए.

ऐसा भी नहीं है कि ससुराल न लौटने की जिम्मेदार बीवी ही हो. कुछ मामलों में पति की बेरोजगारी, निकम्मापन, घर में पूछपरख न होना, नामर्दी जैसी वजहें भी होतीं हैं.

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क्या है हल

ऐसे शौहर क्या करें, जिन की बीवियां लाख समझानेबुझाने पर भी ससुराल नहीं आतीं? इस का सटीक जवाब किसी के पास नहीं. वजह हर मामले में थोड़ी अलग होती है.

बीवी मायके में रहे तो शौहर को समझ और सब्र से काम लेना चाहिए और लोगों की बातों और तानों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. सब से पहले वजह ढूंढ़नी चाहिए. अगर बीवी की पटरी घर वालों से नहीं बैठ रही है या वह जिद्दी और गुस्सैल स्वाभाव की है तो अलग रहना ही बेहतर रहता है. यह ठीक है कि जिन मातापिता ने जन्म दिया, पालापोसा, तामील दिलाई और अपने पैरों पर खड़ा किया उन्हें एक कल की लड़की के लिए छोड़ देने का फैसला खुद को धिक्कारने वाला ही नहीं शर्मिंदगी भरा भी होता है, लेकिन सवाल चूंकि पूरी जिंदगी का होता है, इसलिए कारगर यही साबित होता है.

बेहतर यह फैसला लेने से पहले घर वालों को भरोसे में ले कर सारी बात समझाई जाए. बेटे की इस मजबूरी को अब मातापिता समझने लगे हैं, इसलिए उन्हें रोकते नहीं. ससुराल वापस न आने की वजह अगर बीवी का शादी से पहले के प्यार का चक्कर हो तो अलग होने से भी कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि बीवी सुधरने या पहले को तो छोड़ने से रही. इसलिए ऐसे मामले में तलाक देना बेहतर होता है. लेकिन इस के लिए सब्र और हिम्मत की जरूरत होती है. पहले बीवी से इस बाबत खुल कर बात करना चाहिए. अपनी जिद पर नहीं अड़ना चाहिए, क्योंकि यह तय है कि वह आप की हो कर नहीं रह सकती.

धीरेधीरे जब वह समझ जाए और तलाक  के लिए तैयार हो जाए तो बजाय मुकदमे के रजामंदी से तलाक लेना बेहतर होता है. इस के लिए कानून की धारा हिंदू मैरिज ऐक्ट 13 (सी) में इंतजाम है, जिस के तहत मियांबीवी दोनों अदालत में दरख्वाहस्त देते हैं कि खयालात न मिलने से उन का साथ रहना मुमकिन नहीं, इसलिए तलाक कर दिया जाए. इस के लिए अदालत दोनों को सोचने के लिए 6 महीने या 1 साल का वक्त देती है, जिसे खामोशी से गुजार देना शौहर के लिए फायदेमंद रहता है. इस मियाद के बाद भी दोनों अदालत में अपनी बात पर कायम रहें तो तलाक आसानी से हो जाता है. आमतौर पर आपसी रजामंदी से तलाक में शौहर बीवी का सारा सामान और दहेज में मिले तोहफे व नक्दी लौटा देता है. लेकिन इस की लिखापढ़ी दरख्वाहस्त में जरूर करनी चाहिए.

कमउम्र बीवियां अगर ससुराल में तालमेल न बैठा पाने की शिकायत करें तो बजाय जल्दबाजी के सब्र से काम लेना चाहिए. ऐसी बीवियां शौहर से ज्यादा वक्त चाहती हैं इसलिए शादी के बाद हनीमून पर जाना और वक्तवक्त पर कुछ दिनों के लिए घूमने जाना कारगर साबित होता है ताकि बीवी का शौहर से लगाव बढ़े.

इस के बाद भी बात न बने तो समाज से घबरा कर शराब पीने लगना, बीवी और उस के घर वालों को धमकाना, लड़नाझगड़ना या फिर खुदकुशी कर लेना बेवकूफी है. थोड़ा इंतजार कर हालात देखना ठीक रहता है.

लोग क्या कहेंगे, बीवी बदचलन है या खुद को कमजोर समझने लगना जैसी बातें समस्या का हल नहीं हैं. समस्या का हल है तलाक जो आसानी से नहीं होता, लेकिन देरसबेर हो ही जाता है. इस दौरान बेहतर रहता है कि आने वाली जिंदगी के सपने नए सिरे से बुने जाएं और पैसा कमाया जाए. याद रखें जिंदगी जीने के लिए होती है, जिसे किसी दूसरे की गलती पर कुरबार कर देना कतई बुद्धिमानी की बात नहीं.

सैक्स में जल्दबाजी नहीं

यह दिलचस्प मामला भी भोपाल का है, जिसे शौहर के बहनोई ने सुलाझाया. हुआ यों कि उस के साले की बीवी ससुराल नहीं आ रही थी. बात फैली तो तरहतरह की बातें होने लगीं. बहनोई ने साले को भरोसे में ले कर वजह पूछी तो पता चला कि गड़बड़ पहली ही रात हो हो गई थी.

शौहर जबरन हमबिस्तरी करने पर उतारू था और बीवी डर रही थी. जब वह नहीं मानी तो शौहर ने जबरदस्ती की कोशिश की लेकिन कायमयाब नहीं हो पाया. दूसरे दिन बीवी बहाना बना कर सास के पास सो गई और 4 दिन बाद विदा हो कर मायके चली गई. इस दौरान वह पति के वहशियाना बरवात से काफी डरीसहमी रही.

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मायके जा कर उस ने सुकून की सांस ली और मातापिता से कह दिया कि अब वह ससुराल नहीं जाएगी. मां ने पुचकार कर वजह पूछी तो उस ने सच बता दिया. दोनों के घर वालों के बीच बातचीज हुई. शौहर को उस के जीजा ने समझाया कि सैक्स के मामले में जल्दबाजी न करें. धीरेधीरे करे तो बीवी का डर खत्म हो जाएगा और वह खुद साथ देने लगेगी. बात शौहर की समझ में आ गई. अब 3 साल बाद हालात यह है कि बीवी मायके नहीं जाना चाहती क्योंकि उस के डर की जगह प्यार ने ले ली. 1 साल के बच्चे की मां भी है. यानी सैक्स से डर भी कभीकभार ससुराल न लौटने की वजह बन जाता है. ऐसे मामलों में जिम्मेदारी पति की बनती है कि वह पहली रात को ही शेर बनने के चक्कर में न पड़े. बीवी से प्यार से पेश आए, उस का डर खत्म करे.

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