दीनानाथजी बालकनी में बैठे चाय पी रहे थे. वे 5वीं मंजिल के अपने अपार्टमैंट में रोज शाम को इसी समय चाय पीते और नीचे बच्चों को खेलते देखा करते थे. उन की पत्नी भी अकसर उन के साथ बैठ कर चाय पिया करती थीं. पर अभी वे किचन में महरी से कुछ काम करा रही थीं. तभी बगल में स्टूल पर रखा उन का मोबाइल फोन बजा. उन्होंने देखा कि उन की बड़ी बेटी अमोलिका का फोन था. दीनानाथ बोले, ‘‘हां बेटा, बोलो, क्या हाल है?’’
अमोलिका बोली, ‘‘ठीक हूं पापा. आप कैसे हैं? मम्मी से बात करनी है.’’ ‘‘मैं ठीक हूं बेटा. एक मिनट होल्ड करना, मम्मी को बुलाता हूं,’’ कह कर उन्होंने पत्नी को बुलाया.
उन की पत्नी बोलीं, ‘‘अमोल बेटा, कैसी तबीयत है तेरी? अभी तो डिलीवरी में एक महीना बाकी है न?’’ ‘‘वह तो है, पर डाक्टर ने कहा है कि कुछ कौंप्लिकेशन है, बैडरैस्ट करना है. तुम तो जानती हो जतिन ने लवमैरिज की है मुझ से अपने मातापिता की मरजी के खिलाफ. ससुराल से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलने वाली है. तुम 2-3 महीने के लिए यहां आ जातीं, तो बड़ा सहारा मिलता.’’
‘‘मैं समझ सकती हूं बेटा, पर तेरे पापा दिल के मरीज हैं. एक हार्टअटैक झेल चुके हैं. ऐसे में उन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं होगा.’’ ‘‘तो तुम दुर्गा को भेज सकती हो न? उस के फाइनल एग्जाम्स भी हो चुके हैं.’’
‘‘ठीक है. मैं उस से पूछ कर तुम्हें फोन करती हूं. अभी वह घर पर नहीं है.’’
दुर्गा अमोलिका की छोटी बहन थी. वह संस्कृत में एमए कर रही थी. अमोलिका की शादी एक माइनिंग इंजीनियर जतिन से हुई थी. उस की पोस्ंिटग झारखंड और ओडिशा के बौर्डर पर मेघाताबुरू में एक लोहे की खदान में थी. वह खदान जंगल और पहाड़ों के बीच में थी, हालांकि वहां सारी सुविधाएं थीं. बड़ा सा बंगला, नौकरचाकर, जीप आदि. कंपनी का एक अस्पताल भी था जहां सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध थीं. फिर भी अमोलिका को बैडरैस्ट के चलते कोई अपना, जो चौबीसों घंटे उस के साथ रहे, चाहिए था. अमोलिका के मातापिता ने छोटी बेटी दुर्गा से इस बारे में बात की. दुर्गा बोली कि ऐसे में दीदी का अकेले रहना ठीक नहीं है. वह अमोलिका के यहां जाने को तैयार हो गई. उस के जीजा जतिन खुद आ कर उसे मेघाताबुरू ले गए.
दुर्गा के वहां पहुंचने के 2 हफ्ते बाद ही अमोलिका को पेट दर्द हुआ. उसे अस्पताल ले जाया गया. डाक्टर ने उसे भरती होने की सलाह दी और कहा कि किसी भी समय डिलीवरी हो सकती है. अमोलिका ने भरती होने के तीसरे दिन एक बेटे को जन्म दिया. पर बेटे को जौंडिस हो गया था, डाक्टर ने बच्चे को एक सप्ताह तक अस्पताल में रखने की सलाह दी. जतिन और दुर्गा प्रतिदिन विजिटिंग आवर्स में अस्पताल आते और खानेपीने का सामान दे जाते थे. एक दिन जतिन ने जीप को कुछ जरूरी सामान, दवा आदि लेने के लिए शहर भेज दिया था. दुर्गा मोटरसाइकिल पर ही उस के साथ अस्पताल आई थी. उस दिन मौसम खराब था. अस्पताल से लौटते समय बारिश होने लगी. दोनों बुरी तरह भीग गए थे. दुर्गा मोटरसाइकिल से उतर कर गेट का ताला खोल रही थी. उस के गीले कपड़े उस के बदन से चिपके हुए थे जिस के चलते उस के अंगों की रेखाएं स्पष्ट झलक रही थीं. जतिन के मन में तरंगें उठने लगी थीं.
ताला खुलने पर दोनों अंदर गए. बिजली गुल थी. दुर्गा सीधे बाथरूम में गीले कपड़े बदलने चली गई. इस बात से अनजान जतिन तौलिया लेने के लिए बाथरूम में गया. वह रैक पर से तौलिया उठाना चाहता था. दुर्गा साड़ी खोल कर पेटीकोट व ब्लाउज में थी. उस ने नहाने की सोच कर हैंडशावर हाथ में ले रखा था. उस ने दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया था ताकि कुछ रोशनी अंदर आ सके. अचानक किसी की उपस्थिति महसूस होने पर उस ने पूछा, ‘‘अरे आप, जीजू, अभी क्यों आए? निकलिए, मैं बंद कर लेती हूं.’’ इतना कह कर उस ने खेलखेल में हैंडशावर से जतिन को गीला कर दिया. जतिन बोलता रहा, ‘‘यह क्या कर रही हो? मुझे पता नहीं था कि तुम अंदर हो़’’
‘‘मुझे भी पता नहीं, अंधेरे में पानी किधर जा रहा है,’’ और वह हंसने लगी. ‘‘रुको, मैं बताता हूं पानी किधर छोड़ा है तुम ने. यह रहा मैं और यह रही तुम,’’ इतना बोल कर जतिन ने उसे बांहों में भर लिया. दुर्गा को भी लगा कि उस का गीला बदन तप रहा है.
‘‘क्या कर रहे हैं आप? छोडि़ए मुझे.’’ ‘‘अभी कहां कुछ किया है मैं ने?’’
दुर्गा को अपने भुजबंधन में लिए हुए ही एक चुंबन उस के होंठों पर जड़ दिया जतिन ने. इस के बाद तपिश खत्म होने पर ही अलग हुए वे दोनों. दुर्गा बोली, ‘‘जो भी हुआ, वह हरगिज नहीं होना चाहिए था. क्षणिक आवेश में आ कर हम दोनों ने अपनी सीमाएं तोड़ डालीं. जरा सोचिए, दीदी को जब कभी यह बात मालूम होगी तो उस पर क्या गुजरेगी.’’
जतिन बोला, ‘‘अब जाने दो, जो हुआ सो हुआ. उसे बदला तो नहीं जा सकता. ठीक तो मैं भी नहीं समझता हूं, पर बेहतर होगा अमोलिका को इस बारे में कुछ भी पता न चले.’’
इस घटना के एक सप्ताह बाद अमोलिका भी अस्पताल से घर आई. उस का बेटा बंटी ठीक हो गया था. घर में सभी खुश थे. दुर्गा भी मौसी बन कर प्रसन्न थी. वह अपनी दीदी और भतीजे की देखभाल अच्छी तरह कर रही थी. जतिन ने शानदार पार्टी दी थी. अमोलिका के मातापिता भी आए थे. एक सप्ताह रह कर वे लौट गए. लगभग 2 महीने तक सबकुछ सामान्य रहा. दुर्गा की तबीयत ठीक नहीं रह रही थी. अमोलिका ने जतिन से कहा, ‘‘इसे थोड़ा डाक्टर को दिखा लाओ.’’
दुर्गा को अपने अंदर कुछ बदलाव महसूस होने लगा था. पीरियड मिस होने से वह अंदर से डरी हुई थी. जतिन दुर्गा को ले कर अस्पताल गया. वहां लेडी डाक्टर ने चैक कर कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, सबकुछ नौर्मल है. दुर्गा मां बनने वाली है. जतिन और दुर्गा एकदूसरे को आश्चर्य से देख रहे थे. पर डाक्टर के सामने बनावटी मुसकराहट दिखाते रहे ताकि डाक्टर को सबकुछ नौर्मल लगे.
छोटे से माइनिंग वाले शहर में सभी अफसर एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. थोड़ी ही देर में डाक्टर ने अमोलिका को फोन कर कहा, ‘‘मुबारक हो, शाम को मैं आ रही हूं, मिठाई खिलाना.’’ ‘‘श्योर, दरअसल हम लोगों ने जिस दिन पार्टी दी थी आप छुट्टी ले कर बाहर गई थीं.’’
‘‘वह तो ठीक है, मैं तुम्हारी मौसी बनने की खुशी में मिठाई मांग रही हूं. ठीक है, शाम को डबल मिठाई खा लूंगी.’’ डाक्टर से बात करने के बाद अमोलिका के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. उस के मन में संदेह हुआ क्योंकि दुर्गा और जतिन के अलावा घर में तीसरा और कोई नहीं था, कहीं यह बच्चा जतिन का न हो. उसे अपनी बहन पर क्रोध आ रहा था. साथ ही, उसे नफरत भी हो रही थी.
अभी तक दुर्गा और जतिन दोनों अस्पताल से घर भी नहीं लौटे थे. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आने वाले भीषण तूफान से कैसे निबटा जाए. कुछ पलों का आनंद इतनी बड़ी मुसीबत बन जाएगा, उन्होंने इस की कल्पना भी नहीं की थी. दोनों सोच रहे थे कि आज नहीं तो कल अमोलिका को यह बात तो पता चलेगी ही, तब उस के सामने कैसे मुंह दिखाएंगे.
घर पहुंच कर दुर्गा बंटी के लिए दूध बना कर ले गई. उस ने दूध की बोतल अमोलिका को दी. वह बहुत गंभीर थी. दुर्गा वापस जाने को मुड़ी ही थी कि अमोलिका ने उसे हाथ पकड़ कर रोक लिया. पहले तो वह सोच रही थी कि सारा गुस्सा अभी के अभी उतार दे, पर उस ने बात बदलते हुए पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारा एमए भी पूरा हो गया है. अगले महीने तुम्हारा कौन्वोकेशन भी है.’’ दुर्गा बोली, ‘‘हां.’’
‘‘आगे के लिए क्या सोचा है? और तुम ने संस्कृत ही क्यों चुनी? इनफैक्ट संस्कृत की तो यहां कोई कद्र नहीं है.’’ ‘‘आजकल जरमनी में लोग संस्कृत में रुचि ले रहे हैं. बीए करने के बाद मैं एक साल स्कूल में पार्टटाइम संस्कृत टीचर थी. मैं ने जरमनी की एक यूनिवर्सिटी में संस्कृत ट्यूटर के लिए आवेदन दिया था. मैं ने जरमन भाषा का भी एक शौर्टटर्म कोर्स किया है. मुझे उम्मीद है कि जरमनी से जल्दी ही बुलावा आएगा.’’
‘‘कब तक जाने की संभावना है?’’ ‘‘कुछ पक्का नहीं कह सकती हूं, पर 6 महीने या सालभर लग सकता है. उन्होंने कहा है कि अभी तुरंत वैकेंसी नहीं है, होने पर सूचित करेंगे.’’
‘‘तब तक तुम्हारा ये बच्चा…’’ अमोलिका के मुंह से अचानक यह सुनना दुर्गा के लिए अनपेक्षित था. इस अप्रत्याशित प्रश्न के लिए वह तैयार नहीं थी. उसे चुप देख कर अमोलिका ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आई दीदी के यहां आ कर यह सब गुल खिलाने में. वैसे तो मैं समझ सकती हूं तेरे पेट में किस का अंश है, फिर भी मैं तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं.’’
दुर्गा सिर नीचे किए रो रही थी, कुछ बोल नहीं पा रही थी. अमोलिका ने ही फिर कड़क कर कहा, ‘‘यह किस का काम है? बंटी के सिर पर हाथ रख कर कसम खा तू, किस का काम है यह?’’ दुर्गा फिर चुप रही. तब अमोलिका ने ही कहा, ‘‘जतिन का ही दुष्कर्म है न यह? सच बता तुझे बंटी की कसम.’’
‘‘तुम्हारी खामोशी को मैं तुम्हारी स्वीकृति समझ रही हूं. बाकी मैं जतिन से समझ लूंगी.’’ दुर्गा वहां से चली गई. अमोलिका ने अपनी मां को फोन कर कहा, ‘‘मां, मैं कुछ दिनों के लिए वहां आ कर तुम लोगों के साथ रहना चाहती हूं.’’
मां ने कहा, ‘‘बेटा, यह तेरा घर है. जब चाहे आओ और जितने दिन चाहो आराम से रहो.’’ उस रात अमोलिका और जतिन में काफी कहासुनी हुई. उस ने जतिन से कहा, ‘‘तुम्हारे दुष्कर्म के बाद मुझे तुम से घिन हो रही है. मुझे नहीं लगता, मैं यहां और रह पाऊंगी.’’
जतिन के माफी मांगने और मना करने के बावजूद दूसरे दिन अमोलिका दुर्गा के साथ पीहर आ गई. उस ने मेघाताबुरू की कहानी मां को बताई. उस की मां भी बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने दुर्गा से कहा, ‘‘अरे, तू अपनी सगी बहन के घर में आग लगा बैठी.’’ दुर्गा के पास कोई जवाब न था. वह चुप रही. मां ने कहा, ‘‘मैं तेरी जैसी कुलटा को अपने घर में नहीं रख सकती. तू निकल जा मेरे घर से. हम लोग तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहते.’’
उस रात दुर्गा को नींद नहीं आ रही थी. वह रात में एक बैग ले कर दरवाजा खोल कर घर से निकलना ही चाहती थी कि अमोलिका जग उठी. उस ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो?’’ दुर्गा बोली, ‘‘कुछ सोचा नहीं है, या तो आत्महत्या करूंगी या फिर सब से दूर कहीं चली जाऊंगी.’’
‘‘एक पाप तो तूने पहले ही किया, दूसरा पाप आत्महत्या करने का होगा.’’ ‘‘तो मैं क्या करूं?’’
‘‘तू एबौर्शन करा ले, उस के बाद आगे की जिंदगी का रास्ता साफ हो जाएगा.’’
‘‘एबौर्शन कराना भी तो एक पाप ही होगा.’’ ‘‘तू अभी चुपचाप घर में बैठ. कुछ दिनों में हम सब लोग मिलजुल कर बात कर कोई समाधान ढूंढ़ लेंगे.’’
दुर्गा ने महसूस किया कि उस के मातापिता दोनों ने ही उस से बोलचाल बंद कर दी है. वह तो अमोलिका की गुनाहगार थी, फिर भी दीदी कभीकभी उस से बात कर लेती थीं. उस को अंदर से ग्लानि थी कि उस की एक छोटी सी भूल की सजा दीदी और बंटी को भी मिल रही है. 2 दिनों बाद ही दुर्गा अचानक घर छोड़ कर कहीं चली गई. उस ने अपना कोई अतापता किसी को नहीं बताया. दुर्गा अपने साथ पढ़ी एक सहेली माधुरी के यहां कोलकाता आ गई. दोनों ने 12वीं तक साथ पढ़ाई की थी. उस ने उसे अपनी कहानी बताई और कहा, ‘‘प्लीज, मेरा पता किसी को मत बताना. मुझे कुछ दिनों के लिए पनाह दे, फिर मैं कहीं दूरदराज चली जाऊंगी.’’
माधुरी अविवाहित थी और नौकरी करती थी. वह बोली, ‘‘तू कहीं नहीं जाएगी. तू जब तक चाहे यहां रह सकती है. तू तो जानती ही है कि इस दुनिया में मेरा अपना निकटसंबंधी कोई नहीं है. तू यहीं रह, तू मां बनेगी और मैं मौसी.’’
वहीं दुर्गा ने एक बालक को जन्म दिया. उस ने वहीं रह कर इग्नू से 2 साल का मास्टर इन वैदिक स्टडीज का कोर्स किया. इसी बीच, उस ने झारखंड में धनबाद के निकट काको मठ और महाराष्ट्र में नासिक के निकट वेद पाठशालाओं में वहां के संतों व गुरुजनों से भी वेद पर विशेष चर्चा कर वेद के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाया.
माधुरी ने उस से कहा, ‘‘तुम वेदों को इतना महत्त्व क्यों दे रही हो? मैं ने तो सुना है कि वेद स्त्रियों के लिए नहीं हैं.’’ दुर्गा बोली, ‘‘तू उस की छोड़, क्लासिकल भाषाओं के अच्छे जानकारों की जरूरत हमेशा रहेगी. हर युग में उन्हें नए ढंग से पढ़ा और समझा जाता है.’’ जब तक दुर्गा माधुरी के साथ रही, उस ने दुर्गा की आर्थिक सहायता भी की. कुछ पैसे दुर्गा ट्यूशन पढ़ा कर भी कमा लेती थी. इस बीच, दुर्गा का बेटा शलभ 2 साल का हो चुका था. तभी जरमनी से संस्कृत टीचर के लिए उस का बुलावा आ गया.
कोलकाता के जरमन कौन्सुलेट से दुर्गा और बेटे शलभ को वीजा भी मिल गया. वह जरमनी के हीडेलबर्ग यूनिवर्सिटी गई.
जरमनी पहुंच कर दुर्गा को बिलकुल अलग माहौल मिला. जरमनी के लगभग एक दर्जन से ज्यादा शीर्ष विश्वविद्यालयों हीडेलबर्ग, एलएम यूनिवर्सिटी म्यूनिक, वुर्जबर्ग यूनिवर्सिटी, टुएबिनजेन यूनिवर्सिटी आदि में संस्कृत की पढ़ाई होती है. उसे देख कर खुशी हुई कि जरमनी के अतिरिक्त अन्य यूरोपियन देश और अमेरिका के विद्यार्थी भी संस्कृत पढ़ते हैं. वे जानना चाहते हैं कि भारत के प्राचीन इतिहास व विचार किस तरह इन ग्रंथों में छिपे हैं. भारत में संस्कृत की डिगरी तो नौकरी के लिए बटोरी जाती है लेकिन जरमनी में लोग अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए संस्कृत पढ़ने आते हैं. इन विद्यार्थियों में हर उम्र के बच्चे, किशोर, युवा और प्रौढ़ होते हैं. दुर्गा ने देखा कि इन में कुछ नौकरीपेशा यहां तक कि डाक्टर भी हैं. दुर्गा को पता चला कि अमेरिका और ब्रिटेन में जरमन टीचर संस्कृत पढ़ाते हैं. हम अपनी प्राचीन संस्कृति और भाषा की समृद्ध विरासत को सहेजने में सफल नहीं रहे हैं. यहां का माहौल देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि जरमन लोग ही शायद भविष्य में संस्कृत के संरक्षक हों. वे दूसरी लेटिन व रोमन भाषाओं को भी संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं.
दुर्गा का बेटा शलभ भी अब बड़ा हो रहा था. वह जरमन के अतिरिक्त हिंदी, इंगलिश और संस्कृत भी सीख रहा था. दुर्गा ने कुछ प्राचीन पुस्तकों, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम, गीता और वेद के जरमन अनुवाद भी देखे और कुछ पढ़े भी. जरमन विद्वानों का कहना है कि भारत के वेदों में बहुतकुछ छिपा है जिन से वे काफी सीख सकते हैं. सामान्य बातें और सामान्य ज्ञान से ले कर विज्ञान के बारे में भी वेद से सीखा जा सकता है.
जरमनी आने पर भी दुर्गा हमेशा अपनी सहेली माधुरी के संपर्क में रही थी. उस ने माधुरी को कुछ पैसे भी लौटा दिए थे जिस के चलते माधुरी थोड़ा नाराज भी हुई थी. माधुरी से ही दुर्गा को मालूम हुआ कि उस की दीदी अमोलिका और पापा दीनानाथ अब नहीं रहे. अमोलिका का बेटा बंटी कुछ साल नानी के साथ रहा था, बाद में वह अपने पापा जतिन के पास चला गया. उस की नानी भी उसी के साथ रहती थी. बंटी 16 साल का हो चुका था और कालेज में पढ़ रहा था. इधर, दुर्गा का बेटा शलभ 15 साल का हो गया था. वह भी अगले साल कालेज में चला जाएगा. दुर्गा के निमंत्रण पर माधुरी जरमनी आई थी. वह करीब एक महीने यहां रही. दुर्गा ने उसे बर्लिन, बोन, म्युनिक, फ्रैंकफर्ट, कौंलोन आदि जगहें घुमाईं. माधुरी इंडिया लौट गई.
दुर्गा से यूनिवर्सिटी की ओर से वेद पढ़ाने को कहा गया. उस से वेद के कुछ अध्यायों व श्लोकों का समुचित विश्लेषण करने को कहा गया. दुर्गा ने वेदों का अध्ययन किया था, इसलिए उसे पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं हुई. उस के पढ़ाने के तरीके की विद्यार्थियों और शिक्षकों ने खूब प्रशंसा की. दुर्गा अब यूनिवर्सिटी में प्रतिष्ठित हो चुकी थी, बल्कि उसे अन्य पश्चिमी देशों में भी कभीकभी पढ़ाने जाना होता था.
5 वर्षों बाद शलभ फिजिक्स से ग्रेजुएशन कर चुका था. उसे न्यूक्लिअर फिजिक्स में आगे की पढ़ाई करनी थी. पीजी में ऐडमिशन से पहले उस ने मां से इंडिया जाने की पेशकश की तो दुर्गा ने उस की बात मान ली. दुर्गा ने उस के जन्म की सचाई अब उसे बता दी थी. सच जान कर उसे अपनी मां पर गर्व हुआ. अकेले ही काफी दुख झेल कर, अपने साहस के बलबूते पर मां खुद को और मुझे सम्मानजनक स्थिति में लाई थी. शलभ को अपनी मां पर गर्व हो रहा था. हालांकि वह किसी संबंधी के यहां नहीं जाना चाहता था लेकिन दुर्गा ने उसे अपने पिता जतिन और नानी से मिलने को कहा. माधुरी ने दुर्गा को जतिन का ठिकाना बता दिया था. जतिन आजकल नागपुर के पास वैस्टर्न कोलफील्ड में कार्यरत था.
इंडिया आ कर शलभ ने पहले देश के विभिन्न ऐतिहासिक व प्राचीन नगरों का भ्रमण किया. बाद में वह पिता से मिलने नागपुर गया. उस दिन रविवार था, जतिन और नानी दोनों घर पर ही थे. डोरबैल बजाने पर जतिन ने दरवाजा खोला. शलभ ने उस के पैर छुए. जतिन बोला, ‘‘मैं ने तुम को पहचाना नहीं.’’ शलभ बोला, ‘‘मैं एक जरमन नागरिक हूं. भारत घूमने आया हूं. मैं अंदर आ सकता हूं. मेरी मां ने मुझे आप से मिलने के लिए कहा है.’’
शलभ का चेहरा एकदम अपनी मां से मिलता था. तब तक उस की नानी भी आई तो उस ने नानी के भी पैर छू कर प्रणाम किया. जतिन और नानी दोनों शलभ को बड़े गौर से देख रहे थे. शलभ ने देखा कि शोकेस पर उस की मौसी और मां दोनों की फोटो पर माला पड़ी हुई है. शलभ ने दोनों तसवीरों की ओर संकेत करते हुए पूछा, ‘‘ये महिलाएं कौन हैं?’’
जतिन ने बताया, ‘‘एक मेरी पत्नी अमोलिका, दूसरी उन की छोटी बहन दुर्गा है, अब दोनों इस दुनिया में नहीं हैं.’’
‘‘एस तुत मिर लाइट,’’ शलभ बोला. ‘‘मैं समझा नहीं,’’ जतिन ने कहा.
‘‘आई एम सौरी, यही पहले मैं ने जरमन भाषा में कहा था,’’ शलभ बोला. ‘‘अरे वाह, कितनी भाषाएं जानते हो,’’ जतिन ने हैरानी जताई.
‘‘सब मेरी मां की देन है,’’ शलभ ने कहा. फिर दुर्गा की फोटो को दिखाते हुए शलभ बोला, ‘‘तो ये आप की केलिकुंचिका हैं.’’
‘‘व्हाट?’’ ‘‘केलिकुंचिका यानी साली, सिस्टर इन लौ.’’
‘‘यह कौन सी भाषा है…जरमन?’’ ‘‘जी नहीं, संस्कृत.’’
‘‘तो तुम संस्कृत भी जानते हो?’’ ‘‘जी, आप की केलिकुंचिका संस्कृत की विदुषी हैं, उन्हीं ने मुझे संस्कृत भी सिखाई है.’’
‘‘वह तो बहुत पहले मर चुकी है.’’ ‘‘आप के लिए मृत होंगी.’’
‘‘व्हाट? हम लोगों ने उसे ढूढ़ने की बहुत कोशिश की थी, पर वह नहीं मिली. आखिर में हम ने उसे मृत मान लिया.’’ ‘‘अच्छा, तो अब चलता हूं, कल दिल्ली से मेरी फ्लाइट है.’’
शलभ ने उठ कर दोनों के पैर छुए और बाहर निकल गया. ‘‘अरे, जरा रुको तो सही, हमारी बात तो सुनते जाओ, शलभ…’’
वे दोनों उसे पुकारते रहे, पर उस ने एक बार भी मुड़ कर उन की तरफ नहीं देखा.