पंजाब के छोटे से गांव से आई Shehnaaz Gill इस फिल्म को कर रही हैं प्रोड्यूस

Shehnaaz Gill : पंजाब के छोटे से गांव से आई पंजाबी एक्ट्रेस शहनाज गिल जिन्होंने कलर्स के अतिचर्चित शो बिग बौस 13 से बतौर प्रतियोगी अपने करियर की शुरुआत की थी, उनकी असल जिंदगी की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. बिग बौस में ही शहनाज गिल को अन्य प्रतियोगी सिद्धार्थ शुकला से प्यार हो गया, जो एक बौलीवुड और टीवी एक्टर और मौडल थे , दोनों प्रतियोगियों ने शो खत्म होने के बाद शादी करने का प्लान बनाया था, लेकिन तभी करोना महामारी का प्रकोप हो गया और शादी भी टल गई लेकिन क्योंकि दोनों को प्यार सच्चा था इसलिए कोरोना खत्म होने के बाद दोनों शादी करने वाले ही थे की तभी 40 साल की उम्र में सिद्धार्थ शुक्ला का दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया.

जिसके बाद कुछ महीनों तक शहनाज गिल की हालत बहुत खराब रही. लेकिन बाद में सिद्धार्थ शुक्ला की फैमिली, शो के एंकर सलमान खान जो शहनाज गिल को शो में बहुत पसंद करते थे और पूरी फिल्म इंडस्ट्री ने सिंपैथी के चलते शहनाज गिल को सपोर्ट किया. सबके सपोर्ट की वजह से शहनाज गिल एक बार फिर से संभल पाई और उन्होंने कुछ बड़ी फिल्मों में काम किया जिसने एक फिल्म सलमान खान की किसी का भाई किसी की जान भी थी.

वही शहनाज गिल अपनी कड़ी मेहनत के बाद टीवी एक्ट्रेस से निर्मात्री बनने की ओर बढ़ चुकी है. हाल ही में शहनाज गिल ने सोशल मीडिया पर गुड न्यूज शेयर करते हुए बताया कि बतौर निर्मात्री उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया है जिसमें वह दिनरात मेहनत कर रही हैं. इस प्रोडक्शन हाउस के जरिए वह एक कुड़ी नामक फिल्म प्रोड्यूस कर रही है. जो कि 13 जून को सिनेमाघर में प्रदर्शित होगी. गौरतलब है शहनाज गिल ने अपने प्रोडक्शन हाउस के साथ एक और प्रोडक्शन हाउस की जोड़ा है ताकि वह और अच्छा काम कर सके.

एक्ट्रेस चाहत खन्ना से जानें, Stretch Marks से बचने के उपाय

खूबसूरत अभिनेत्री चाहत खन्ना (Chahat Khanna) को हमेशा से ही जीवन के प्रति अपनी बेबाक और सहज सोच के लिए सराहा जाता रहा है, खासकर जब स्त्रियों के स्वास्थ्य और जीवनशैली की बात आती है, तो हमेशा वह आगे आकर अपनी बात रखती है. इस बार उन्होंने एक ऐसे विषय पर प्रकाश डाली है, जो आज की कई स्त्रियों को प्रभावित करता है. खासकर गर्भावस्था के दौरान और बाद में स्ट्रेच मार्क से निपटना उनके लिए बड़ी बात होती है. चाहत दो बार गर्भावस्था में रही और दो बेटियों की मां बनी है, लेकिन अभी भी वह खूबसूरत है और आगे कई फिल्मों और वेब सीरीज में काम कर रही है. गर्भावस्था के दौरान हुए परिवर्तन को उन्होंने नई माओं के साथ शेयर किया है और बताया कि कैसे उन्होंने अपनी त्वचा को स्वस्थ, कोमल और स्ट्रेच मार्क्स से पूरी तरह मुक्त रखा है.

प्रेग्नेंसी में स्ट्रेच मार्क समस्या नहीं

अपने अनुभव को शेयर करते हुए चाहत का कहना है कि अधिकतर नई मां प्रेग्नेंट होने पर डर जाती है और सोचती है कि उनके पेट पर हुए स्ट्रेच मार्क कभी जाएंगे नहीं, जबकि ऐसा नहीं होता, ये भी धीरेधीरे त्वचा से गायब हो जाते है. गर्भावस्था के दौरान और बाद में खिंचाव के निशान बहुत आम होते है, ये कोई समस्या घबराने की नहीं होती है, क्योंकि गर्भावस्था एक अच्छी बात है, लेकिन ये शरीर में कई परिवर्तन को भी लेकर आती है. जब मैं पहली बार प्रेग्नेंट हुई थी, तो मैं भी स्ट्रेच मार्क से डरती थी, लेकिन डिलीवरी के बाद धीरेधीरे वे गायब भी हो गए. इतना ही नहीं गर्भावस्था में वजन भी मेरा काफी बढ़ गया था, जिसकी वजह से शरीर की कई जगहों जैसे पेट, स्तन, कूल्हों, जांघों और पीठ के निचले हिस्सों पर स्ट्रेच मार्क्स आ गए थे. मैंने दिन में दो बार बायो औयल या भरोसेमंद एंटीस्ट्रेच मार्क औयल से 2 से 3 मिनट तक हल्के हाथों से मसाज करती थी, इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ा और किसी प्रकार की स्ट्रेच मार्क का सामना नहीं करना पड़ा. ये काम अपनी व्यस्त दिनचर्या में भी हमेशा किया है. ड्राइ स्किन डेज में मैं माइल्ड मौइश्चराईजर या बौडी बटर से एक्स्ट्रा हाईड्रेशन त्वचा को देती थी, ये कोई कठिन काम नहीं है, बल्कि एक आसान तरीका स्ट्रेच मार्क से खुद को बचाने का है.

डाइट का रखें ध्यान

इसके आगे चाहत कहती है कि प्रेग्नेंसी के दौरान हर मौसम में डाइट की बड़ी भूमिका त्वचा को ठीक रखने में होती है, मसलन पानी अधिक पीना पड़ता है, ताकि स्किन हाईड्रेटेड रहे, इसके लिए थोड़ी मात्रा में नट्स, सीड्स और एवाकाडो खाना अच्छा रहता है. इसके साथसाथ प्रोटीन रिच फूड खाने की कोशिश करनी पड़ती है, जो स्किन की कोलेजन के बढ़ाने में सहायक होती है. अगर आपकी त्वचा ड्राई है, तो डौक्टर से पूछकर विटामिन-E जैसी सप्लीमेंट्स ले सकती है, जो अंदर से आपकी स्किन को नौरिश करती है.
त्वचा की करें केयर

ये भी सही है कि हर स्त्री की स्किन एक दूसरे से अलग होती है और प्रेग्नेंसी का रिएक्शन भी अलग होता है, जो अधिकतर जेनेटिक्स पर आधारित होता है, जैसे कि कुछ स्त्रियों को सब कुछ कर लेने के बाद भी स्ट्रेच मार्क से बचना संभव नहीं होता. मेरा उनसे कहना है कि प्रेग्नेंसी के शुरू होते ही त्वचा ही केयर करना शुरू करें, स्ट्रेच मार्क दिखाई पड़ने की इंतजार न करें, क्योंकि कई बार स्किन के डैमेज होने के बाद ही स्ट्रेच मार्क दिखते है. इसलिए अगर आप प्रेग्नेंट है या फिर वजन कम करने के बारें में सोच रहे है, तो बौडी चेंज के बारें में पहले से सोचें, स्किन के इची या स्ट्रेच मार्क होने का इंतजार न करें.

अंत में चाहत कहती हैं कि मेरा सभी से अपनी बात शेयर करने का असली मकसद उन्हें प्रेग्नेसी में हुए स्ट्रेच मार्क के फ्रस्ट्रैशन से उन्हे दूर रखना है, क्योंकि आज की स्त्री हर समय खूबसूरत और स्मार्ट लगना चाहती है, ताकि बेबी होने के बाद भी वे स्विम सूट पहन सके, क्योंकि अच्छी बौडी उन्हे कौन्फिडेंट, सुंदर और प्राउड बनाए रखती है. अपनी त्वचा का ख्याल हर स्त्री कर सकती है, क्योंकि स्किन केयर अभिमान नहीं, खुद से प्यार को दर्शाती है.

Married Life : पति के बदले व्यवहार से परेशान हो गई हूं, मैं क्या करूं ?

Married Life : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 28 साल की विवाहित स्त्री हूं. मेरे पति और मेरी कामेच्छा में जमीन आसमान का अंतर है. मुझे लगता है कि मेरी योनि में पहले की तुलना में काफी ढीलापन आ गया है और मेरा सैक्स के प्रति रुझान घट गया है. लेकिन पति की कामेच्छा पहले की ही तरह बनी हुई है. मैं उन का साथ नहीं दे पाती. इस से उन के व्यवहार में मेरे प्रति रूखापन आता जा रहा है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

कामसुख दांपत्य जीवन की महत्त्वपूर्ण कड़ी है. इस से दांपत्य में अबाध प्रेम, भावात्मक बंधन, सुख, संतोष और आस्था के स्वर गहरे होते हैं, परस्पर आकर्षण बना रहता है और प्रेम गाढ़ा होता है.

प्रत्येक विवाहित स्त्री के लिए यह जानना जरूरी है कि पति के लिए कामसुख प्रेम की तीव्रतम अभिव्यक्ति है. पति के अंतर्मन में पत्नी की अस्वीकृति शूल सी चुभ जाती है. उस का मन क्षोभ और पीड़ा से भर उठता है, जिस के फलस्वरूप वैवाहिक जीवन में असंतोष और बिखराव की रेखाएं सघन होने लगती हैं, दांपत्य संबंधों में ठंडापन आ जाता है और कलह सिर उठाने लगती है.

आप के लिए उचित यही होगा कि आप अपने पति की भावनाओं का आदर करें. यदि किसी कारण कभी मन संबंध बनाने का न हो, तब भी अपने मधुर व्यवहार से पति के मन को संभालें, उन्हें टीस न लगने दें.

योनि में आए ढीलेपन को मिटाने के लिए आप श्रोणि पेशियों का व्यायाम करें. यह व्यायाम आप दिन के किसी भी पहर कर सकती हैं. इसे आप लेटे हुए, बैठे हुए या खड़े किसी भी मुद्रा में कर सकती हैं. करने की विधि बिलकुल आसान है. बस, श्रोणि पेशियों को इस प्रकार सिकोड़ें और भींच कर रखें मानो मूत्रत्याग की क्रिया पर रोक लगाने की जरूरत है.

10 की गिनती तक श्रोणि पेशियों को भींचे रखें और फिर उन्हें ढीला छोड़ दें. अगले 10 सैकंड तक श्रोणि पेशियों को आराम दें. इस के लिए 10 तक गिनती गिनें. यह व्यायाम पहले दिन 12 बार दोहराएं. फिर धीरेधीरे बढ़ाते हुए सुबहशाम 24-24 बार इसे करने का नियम बना लें. 2-3 महीनों के भीतर ही आप योनि की पेशियों को फिर से कसा हुआ पाएंगी. नतीजतन आप पतिपत्नी के बीच यौनसुख भी दोगुना हो जाएगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz . सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जोरदार ऐक्टिंग से दर्शकों को दीवाना बना दिया : Shabana Azmi

Shabana Azmi : 20 मार्च, 2025 को गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स 2025 का आयोजन त्रावनकोर पैलेस, नई दिल्ली में किया गया. इस सम्मान समारोह में उन इंस्पायरिंग महिलाओं को सम्मानित किया गया, जिन्होंने समाज में बेहतरीन योगदान दिया है. इसी कड़ी में शबाना आजमी जो हिंदी सिनेमा की ऐसी अदाकारा हैं जो अपनेआप को हर रोल के हिसाब से बखूबी ढाल लेती हैं, उन्हें ऐंटरटेनमैंट आइकोन कैटेगरी के लिए गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स से नवाजा गया.

शबाना आजमी ने हिंदी फिल्मों के साथसाथ हौलीवुड में भी में तरहतरह के रोल अदा किए हैं. वे आज भी फिल्मों में सक्रिय हैं. एक ऐक्ट्रैस होने के साथसाथ शबाना आजमी कई सामाजिक कार्यों से भी जुड़ी रहती हैं. वैसे तो शबाना आजमी मशहूर शायर और कवि कैफी आजमी की बेटी और हिंदी सिनेमा के मशहूर लेखक, संगीतकार जावेद अख्तर की पत्नी हैं पर उन की बेहतरीन परफौर्मैंस और अदाकारी के चलते उन्हें अपने पिता और पति की पौपुलैरिटी का अपने कैरियर में सहारा नहीं लेना पड़ा.

पहली फिल्म से ही बन गई थीं स्टार

हैदराबाद में जन्मी शबाना आजमी ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1973 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘अंकुर’ से की थी. इस फिल्म में शबाना ने अपनी जोरदार ऐक्टिंग से क्रिटिक्स के साथसाथ दर्शकों को भी दीवाना बना लिया. यह फिल्म बौक्स औफिस पर हिट रही. अपनी पहली ही फिल्म के लिए उन्हें बैस्ट ऐक्ट्रैस का नैशनल अवार्ड हासिल हुआ.

शबाना भारत की पहली ऐसी ऐक्ट्रैस हैं जिन्हें 5 बार बैस्ट ऐक्ट्रैस के लिए नैशनल अवार्ड मिल चुका है. उन्हें ‘अंकुर’ के अलावा ‘अर्थ’ (1982), ‘खंडहर’ (1984), ‘पार’ (1984) और ‘गौडमदर’ (1999) नैशनल अवार्ड से नवाजा गया है.

शबाना करीब कई दशकों से इंडियन सिनेमा में अपनी ऐक्टिंग का लोहा मनवाती आई हैं और अब तक हिंदी, बंगाली और अंगरेजी सहित

140 से ज्यादा फिल्में कर चुकी हैं. उन्होंने जहां अपने कैरियर के पीक में लीजैंडरी डाइरैक्टर्स श्याम बेनेगल, सत्यजित रे, अपर्णा सेन आदि के साथ काम किया है, वहीं नसीरुद्दीन शाह, अमिताभ बच्चन और ओमपुरी सहित कई और कलाकारों के साथ भी हिट फिल्में की हैं. हाल ही में उन्हें नैटफ्लिक्स पर रिलीज हुई ड्रामा सीरीज डब्बा कार्टेल में देखा गया है.

जावेद से शादी नहीं होने देना चाहते थे शबाना के पेरैंट्स

9 दिसंबर, 1984 को शबाना आजमी ने हिंदी फिल्मों के गीतकार, कवि और पटकथा लेखक जावेद अख्तर से शादी की. जावेद अकसर शबाना के पिता कैफी आजमी से सलाह लेने आते थे. इसी बीच शबाना और जावेद की दोस्ती हुई और फिर यह प्यार में बदल गई. लेकिन शबाना के मातापिता को दोनों की रिलेशनशिप से दिक्कत थी क्योंकि जावेद अख्तर शादीशुदा थे. बाद में जावेद ने अपनी की पहली पत्नी हनी ईरानी से तलाक ले लिया. उस के बाद शबाना के पिता दोनों की शादी के लिए राजी हो गए. गौरतलब है कि शबाना और जावेद की कोई संतान नहीं है.

शबाना आजमी की शख्शियत ही उन्हें दूसरे अदाकारों से अलग करती है. निजी जिंदगी में वे हर मुद्दे पर अपनी राय पूरी बेबाकी से रखती हैं. उन्होंने एक निडर महिला की तसवीर दुनिया के सामने पेश की है और सभी महिलाओं को यह प्रेरणा दी है कि कभी अपनी बात आगे रखने से डरना नहीं चाहिए और परिस्थिति चाहे जैसी हो कभी झुकना नहीं चाहिए. औनस्क्रीन और औफस्क्रीन दोनों जगहों पर उन्होंने अपने पक्ष को हमेशा मजबूती के साथ रखा है. शबाना सही मायने में महिलाओं के लिए इंस्पिरेशन हैं.

टीम के साथ मिल कर कई गाडि़यों की शानदार डिजाइनिंग की : रामकृपा अनंतन

जब आप किसी आइकोनिक इंडियन एसयूवी के नाम के बारे में सोचते हैं तो एक नाम सब से पहले आप के दिमाग में आता है और वह है महिंद्रा थार ऐक्सयूवी और स्कौर्पियो. इन दोनों गाडि़यों की समानता के बारे में अगर हम सोचें तो सहज ही रामकृपा अनंथन का नाम दिमाग में आता है. रामकृपा अनंथन एक मशहूर और सक्सैसफुल औटोमोबाइल डिजाइनर हैं. उन्होंने कई ऐसी गाडि़यों को डिजाइन किया है, जिन्हें खरीदने में लोग दिलचस्पी रखते हैं.

रामकृपा अनंथन ने स्कौर्पियो और एसयूवीएस से ले कर महिंद्रा थार के भी मौडल को डिजाइन किया है. महिंद्रा की ये सभी गडि़यां लोगों के बीच काफी पौपुलर हैं. वे इस समय रामकृपा अनंथन ओला इलैक्ट्रिक में हैं और इस कंपनी की डिजाइन हैड हैं. रामकृपा अनंथन ने 1997 से अपने कैरियर की शुरुआत की और इन 28 सालों में उन्होंने दुनियाभर में भारत का नाम रोशन किया.

रही चुनौतियां

पुरुषप्रधान इंडस्ट्री में रामकृपा अनंथन का टिके रहना आसान नहीं था. वे अपनी लगन, मेहनत और धैर्य के बल पर औटोमोबाइल के क्षेत्र में आज सभी महिलाओं के लिए रोल मौडल बनीं और देश में ही नहीं, पूरे विश्व में नाम कमाया.

रामकृपा अनंथन ने बिट्स पिलानी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. इन्होंने आईआईटी बौंबे से डिजाइन प्रोग्राम में मास्टर्स भी किया है. पढ़ाई पूरी करने के बाद रामकृपा अनंथन ने महिंद्रा ऐंड महिंद्रा से ही अपने कैरियर की शुरुआत की थी. 1997 में इंटीरियर डिजाइनर की पोस्ट के लिए इन्हें कंपनी ने हायर किया था.

इंटीरियर डिजाइनर की पोस्ट पर आने के 8 साल बाद यानी 2005 में महिंद्रा ऐंड महिंद्रा में ही उन्हें डिजाइन डिपार्टमैंट का हैड बना दिया गया. डिजाइन डिपार्टमैंट की हैड बनने के बाद इन्होंने अपनी टीम के साथ मिल कर कई गाडि़यों की शानदार डिजाइनिंग की, जिन में थार, ऐक्सयूवी 700 और स्कौर्पियो के लिए 3 आइकोनिक डिजाइन को लोगों ने काफी पसंद किया.

पौपुलर गाडि़यों की बनाईं डिजाइन

रामकृपा अनंथन और उन की टीम की डिजाइन की हुई कारों की लिस्ट में बोलेरो, जायलो, महिंद्रा ऐक्सयूवी 700, स्कौर्पियो, महिंद्रा थार आदि कई पौपुलर गाडि़यों के नाम शामिल हैं. रामकृपा अनंथन ने औटो इंडस्ट्री की दुनिया में खूब नाम कमाया है.

मिली प्रेरणा

यह सही है कि हर व्यक्ति के जीवन में कुछ अलग अचीवमैंट के लिए किसी से प्रेरित होना आवश्यक होता है और यही बात रामकृपा के साथ भी लागू होती है. उन के जीवन में उन की प्रेरणास्रोत उन की मां रही हैं. उन्होंने कुछ समय पहले एक पोस्ट में अपनी मां के बारे में बताया कि उन की मां ने शादी के बाद अपनी पढ़ाई को पूरा किया. 3 बच्चों को अच्छे से पालने के साथसाथ ही उन की मां ने पीयूसी, बीए, एमए, बीएड की शिक्षा पूरी की और शिक्षिका बनीं. उन की मां ने 70 साल की उम्र में टीचिंग से रिटायर होने के बाद संस्कृत विषय में एक और मास्टर्स की डिगरी को हासिल किया. मां की ये सारी बातें उन्हें हमेशा किसी काम को करते रहने के लिए उत्साह बढ़ाती रहीं.

इस तरह रामकृपा अनंथन केवल एक औटोमोबाइल डिजाइनर ही नहीं बल्कि एक विलक्षण प्रतिभा की धनी है, जिन्होंने इंडियन औटोमोबाइल के क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ी है. यही नहीं एक सफल महिला इंजीनियर और डिजाइनर होने के नाते वे युवा महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं. उन्होंने जो कुछ हासिल किया है वह युवाओं खासकर लड़कियों के लिए उत्साह बढ़ाने वाला है.

Summer Fashion : समर में स्टाइलिंग के साथ कूलिंग का अहसास दिलाती चिकनकारी कुर्तीज

Summer Fashion : समर में स्टाइलिश और कूल दिखने के लिए लड़कियां नित नएनए फैशन ट्रैंड को अपनाती है और अपने कंफर्ट से कौम्प्रोमाईज़ कर लेती है. लेकिन क्या आपको पता है अब आपको इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि समर सीजन को देखते हुए मार्केट में नए स्टाइल के लखनवी चिकन सूट आ गए हैं. इन्हें पहनकर अब आप समर में भी स्टालिंग के साथ कूलिंग का अहसास ले सकती हैं. वो कैसे आइए जानते हैं.

लखनवी चिकनकारी कुर्ती सेट

समर के सीजन में स्टाइलिश और कूल दिखने के लिए हमेशा से ही हर लड़की और महिला की पहली चौइस कौटन फैब्रिक की चिकनकारी कुर्ती सेट ही होती हैं. क्योंकि यह कुर्तीयां हल्के और हवादार कपड़ों जैसे कपास, मलमल और शिफॉन का उपयोग करके तैयार की जाती हैं. जो बहुत ही कम्फर्टेबल होती हैं और आसानी से पसीने को सोख लेती हैं. ये मार्केट में हर कलर और डिजाइन में यह अवलेबल हैं. समर सीजन को ध्यान रखते हुए देखा जाए तो आजकल वाइट चिकनकारी वाली कुर्ती सभी की पहली पसंद हैं.

गर्ल्स की पहली पसंद वाइट चिकनकारी कुर्ती सेट 

कौलेज जाने वाली लड़की हो या औफिस जाने वाली. सभी वाइट कुर्ती सेट पहनना पसंद करती हैं. इसमें आपको कुर्ती के साथ पेंट स्टाइल पायजामा,कम मोहरी वाला या ज्यादा मोहरी वाला चिकनकारी वाला पायजामा मिल जाएगा, और साथ में अगर आप दुपट्टा भी लेना चाहती हैं तो वो भी मैचिंग का मिलेगा जो आपके लुक में चार -चांद लगाएगा.

क्लासी लुक

अगर आप समर में कुछ अलग दिखना चाहती हैं तो आपको लखनवी चिकन सूट पूरा लेने की जरुरत नही सिर्फ कुर्ती लेकर भी आप स्टाइलिश नजर आ सकती हैं. इस कुर्ती को आप अपनी डेनिम जींस के साथ पहन सकती हैं. फिर चाहे वो कुर्ती लॉन्ग हो या शार्ट दोनों ही कुर्तीया जींस पर क्लासी लुक देती हैं. यदि आप स्किन टाइट जींस पहन रहीं हैं तो फुटवियर में हील्स पहनें. यदि वाइड लेग जींस पहन रहीं हैं तो शूज कैरी कर सकती हैं.

डिफेंरेंट कलर डिजाइन और फैब्रिक 

इन कुर्तीयों में आपको लॉन्ग कुर्ती, शार्ट कुर्ती, फ्रॉक कुर्ती और अंगरखा कुर्ती, स्ट्रेप्पी कुर्ती, स्लीवलेस कुर्ती, शार्ट बाजु कुर्ती और लॉन्ग बाजु कुर्ती सभी तरह की अलग-अलग कलर और फैब्रिक में मार्केट में अवलेवल हैं जैसे – कॉटन, शिफान, रियान, लिलेन, आर्गेजा और जार्जेट में मिल जाएंगी लेकिन देखना आपको हैं की बॉडी पर कौन सी कुर्ती परफेक्ट लगती हैं.

स्टाइलिश लुक

जींस के अलावा प्लाजो के साथ भी आप चिकनकारी कुर्ती कैरी कर सकती हैं ये आपको एथनिक लुक देगा. अपने लुक को कम्पलीट करने के लिए आप इसके साथ ऑक्सीडाइज ज्वेलरी ही पहनें, क्योंकि चिकनकारी कुर्ती का रंग काफी हल्का होता है। ऐसे में आप इसके साथ ऑक्सीडाइज ज्वेलरी पहनकर अलग स्टाइल बना सकती हैं. प्लाजो के साथ फुटवियर में फ्लैट्स ही पहनें ये परफेक्ट लुक दिखाएगा.

खास स्टाइलिंग टिप्स

1.लांग चिकनकारी कुर्ती के साथ पलाजो को पेयर करें. लांग फ्लोई पलाजो और लूज फिटेड चिकनकारी कुर्ती खूबसूरत लुक देती है। साथ में थ्रेड वर्क वाली जूती को पेयर करें.

2.शार्ट चिकनकारी कुर्ती को रेगुलर फिट या रिप्ड जींस के साथ पेयर करें. ये आपको फैशनेबल लुक देगी. इसके साथ स्ट्रैपी हील्स पेयर करें तो बेस्ट दिखेंगी.

3.चिकनकारी कुर्ती के साथ बोहो लुक अपनाए इसके लिए सिल्वर
ऑक्सीडाइज्ड ज्वैलरी को कुर्तीज के साथ पेयर करें. सिल्वर कड़े, स्टेटमेंट नेकपीस या ईयररिंग्स आपके सिंपल लुक को एकदम से स्टाइलिश बना देंगे.

4.चिकनकारी कुर्ती ट्रांसपेरेंट होती हैं और इसका मैटैरियल सॉफ्ट और शियर होता है तो इसकी लेंथ के हिसाब से मैचिंग लांग वेस्ट फिटिंग इनरवियर जरूर पहने. जिससे कुर्ती का बेहतर लुक नजर आए, ट्रांसपैरेंट दिखने वाली कुर्ती पहनने पर ओड ना दिखे.

5.चिकनकारी कुर्ती वैसे तो लूज फिटिंग ही अच्छी लगती लेकिन ज्यादा लूज़ आपका लुक ही बिगाड़ देती हैं ऐसे में अपनी बॉडी के हिसाब से इसे हल्का फिट करवाएं.

6.चिकनकारी सूट के साथ आप कोल्हापुरी, मोजरी और फ्लैट सैंडल के साथ पेयर करें तो आपका लुक अट्रैक्टिव लगेगा.

Hindi Stories Online : आसमान की ओर

Hindi Stories Online :  मेरी यात्रा लगातार जारी है. मैं शायद किसी बस में हूं. मुझे यों प्रतीत हो रहा है. बस के भीतर बैठने की सीटें नहीं हैं. सब लोग नीचे ही बस के तले पर बैठे हैं. कुछ लोग इसी तल पर लेटे हैं. बस से बाहर जाने का कोई भी मार्ग अभी तक मुझे दिखाई नहीं दिया है और न ही किसी और कोे.

बस की दीवारों में छोटेछोटे छेद हैं, जिन में से रोशनी कभीकभी छन कर भीतर आ जाती है. जब रोशनी उन छिद्रों से बस के भीतर आती है तो उस से रोशनी की लंबीलंबी लकीरें बन जाती हैं. मेरे सहित सब लोग उसे पकड़ने की भरसक कोशिश करते हैं, लेकिन नाकाम हो जाते हैं. कोईर् भी उन को पकड़ नहीं पाया है. बहुत देर से कई लोग इस तरह की कोशिश कर चुके हैं.

बस को कौन चला रहा है, इस बात का भी अभी तक किसी को पता नहीं है. मैं कभीकभार बस के भीतर घूम लेता हूं, लेकिन यह खत्म होने को ही नहीं आती है. शायद यह बहुत लंबी है. मैं थकहार कर फिर वहीं आ बैठता हूं जहां से मैं उठ कर गया था. मेरी तरह और भी बहुत सारे लोग इस बस में घूमघूम कर फिर से वहीं आ बैठते हैं जहां से वे उठ कर जाते हैं.

यह एक बस है और यह कई सदियों से ऐसे ही चल रही है. सच बताऊं तो, पता मुझे भी पूरी तरह से नहीं है. मैं कई बार यह समझने की कोशिश करता हूं कि यह बस है या फिर कुछ और. लेकिन सच का पता नहीं चल रहा है. अजीब किस्म का रहस्य है, जिस का पता नहीं चल रहा है.

कभीकभार कुछ लोग आते हैं और हमारा खून निकाल कर ले जाते हैं. पूछने पर कुछ नहीं बताते. जब कभी गुस्सा कर लें, तो फिर बहुत एहसान से बताते हैं कि वे लोग इस बस को चला रहे हैं. इस बस को चलाने के लिए उन को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, इस का तो उन लोगों को ही पता है. पूछें तो कहते हैं कि यह बस उन के अपने खून से चल रही है.

‘‘लेकिन खून तो आप लोग हमारा ले रहे हो?’’ हम में से कोई बोलता है.

‘‘तुम्हारा खून तो हम कभीकभार लेते हैं, बस तो हम अपने खून से ही चलाते हैं.’’

फिर जब हम अपनी ओर देखते हैं तो हम तो नुचेसिकुड़े से कमजोर से हैं और वे हट्टेकट्टे, हृष्टपुष्ट जवान. समझ कुछ भी नहीं आता है. हर समय हम लोग परेशान रहते हैं. उन की पूंछें सदैव ऊपर आसमान की तरफ तनी हुई रहती हैं और हमारी जमीन पर लटकी रहती हैं, जैसे कि इन में हड्डी ही न हो. खून लेने आने वाले लोग कुछ देर बाद बदल जाते हैं. बहुत ही एहसान से वे हमारा खून ले कर जाते हैं जैसे कि वे लोग हम पर बहुत दया कर रहे हों. हम भी इस डर से खून दे देते हैं कि कहीं हमारी बस रुक ही न जाए. पसोपेश वाली स्थिति है कि यह बस है या फिर कुछ और, और यह हमें कहां ले जा रही है.

बस चलाने वाले पूछने पर गुस्सा करते हैं, कहते हैं, ‘‘आप लोग चुप रहो, आराम से बैठो, आप को कुछ नहीं पता है. आप, बस, हमें अपना खून दो.’’

कुछ देर बाद खून लेने वाले फिर बदल जाते हैं. यह भी समझ नहीं आता कि पहले वाले लोग कहां गए. पूछने पर कोई जवाब नहीं देते हैं. बारबार पूछने पर कहते हैं, ‘‘वे पहले वाले लोग सारा का सारा खून खुद ही डकार गए हैं, खून वाली सारी टंकी खाली है. अब हम क्या करें, हमें खून चाहिए, वरना बस नहीं चलेगी.’’

हम फिर अपना हाथ खून देने के लिए उन के आगे कर देते हैं. फिर बस चलती रहती है. फिर बस की दीवारों के छेदों से रोशनी की लकीरें अंदर तक पहुंचती हैं. फिर से हम लोग उन को पकड़ने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन वे किसी के भी हाथ नहीं आतीं. सब थकहार कर फिर वहीं बैठ जाते हैं. कुछ दिनों पहले उड़ती हुई एक अफवाह आईर् थी कि बस को चलाने वाले कुछ लोग हमारे से लिए खून में से ज्यादा खून तो खुद ही पी जाते हैं और बाकी जो बच जाता है उसे बस की टंकी में डाल देते हैं. और कई बार तो वे लोग बस के पुर्जे तक खा जाते हैं.

यह तो गनीमत है कि बस के जो पुर्जे कम हो जाते हैं, वे कुछ दिनों बाद खुदबखुद ही पनप उठते हैं. बस में सफर करने वाले सब लोग भोलेभाले, ईमानदार और साफ दिल के हैं. कभीकभी वे लोग इस तरह की बातें सुन कर निराश हो जाते हैं. लेकिन कुछ समय बाद वे लोग फिर अपनेआप ही ठीक हो जाते हैं. यही आम आदमी की विशेषता है. वैसे इस के अलावा उन के पास और कोई चारा भी नहीं है. और फिर जब उन का खून ले लिया जाता है तो वे फिर अपनेआप शांत हो जाते हैं.

बस बहुत समय से ऐसे ही चल रही है. कहां जा रही है, क्यों जा रही है, यह रहस्य है जो किसी को पता नही है. कभीकभार खून लेने वाले ही कह जाते हैं कि –

‘‘बस स्वर्ग जा रही है’’

‘‘परंतु इतनी देर…’’ हम में से कोई कहता है.

‘‘धैर्य रखो, रास्ता बहुत लंबा और मुश्किल है, समय तो लगता ही है,’’ वे कहते हैं.

हम लोग फिर उन की बातें सुन कर चुप हो जाते हैं. हम यह सोचते हैं कि ये चालाक व समझदार लोग हैं, ठीक ही कहते होंगे. देखेंभालें तो न बस का चालक दिखता है, न ही कोई इंजन और न ही कोई टैंक. खून किस टंकी में पड़ता है, कहां जाता है, यह भी पता नहीं चलता है. सभी रहस्यमयी विचारों में उलझे रहते हैं.

अभी कुछ दिनों पहले की बात है. कुछ लोग हमारा खून लेने के लिए आए थे. वे लोग नएनए ही लग रहे थे. वे बहुत जोशीले थे. वे बहुत ही चालाकी से बातें कर रहे थे. वे पूरे वातावरण में एक अलग तरह का उत्साह भर रहे थे. वे बहुत प्यार से हमारा खून ले रहे थे. सब ने उन की बातें सुन कर उन को बहुत ही प्यार व सम्मान सहित अपना खून दिया.

वे लोग सब को यह भरोसा दिला रहे थे कि हम लोग बहुत जल्दी स्वर्ग पहुंच जाएंगे. सब उन की बातें सुनसुन कर बहुत खुश हो रहे थे. कितनी देर से दबेकुचले हम लोग भी आखिरकार स्वर्ग को जा रहे हैं, यह सोचसोच कर बहुत खुशी हो रही थी. सब लोग मारे खुशी के उन की जयजयकार कर रहे थे.

कुछ दिनों बाद फिर वे लोग हमारा खून लेने के लिए आए. ये पहले से कुछ जल्दी आ गए थे. उन्होंने फिर हमारे भीतर जोश भरा. हमें फिर सब्जबाग दिखाए. हमारी बांछें खिल उठीं. हम फिर मुसकराए. उन की बातों में बहुत उत्साह व जोश था. उन की बातें सुनसुन कर हमारे भीतर भी जोश आ गया. चारों ओर फिर उन की जयजयकार होने लगी. जोश ही जोश में उन्होंने हमारा खून निकालने वाले टीके निकाल लिए और हमारा खून निकालना शुरू कर दिया.

सब ने बहुत खुशीखुशी अपना खून दिया. परंतु इस बार हमारा खून निकालने वाले टीके पहले से कुछ बड़े थे. लेकिन हमारे भीतर जोश इतना भर गया था कि हमें सब पता होते हुए भी बुरा न लगा. कुछ अजीब तो लगा परंतु ज्यादा बुरा न लगा. थोड़ा सा बुरा लगा लेकिन यह तो होना ही है, ठीक है, अब बस को चलाने के लिए हमें भी तो कुछ करना ही है. सब की आस्था बस के ठीक रहने और उस के स्वर्ग तक पहुंचने की है. बस, इसी जोश और जज्बे के चलते हर कोई अपना सबकुछ न्योछावर करने को तैयार बैठा है.

अजीब बात तब हुई जब वे लोग फिर हमारे पास आए और हम से हमारी थोड़ीथोड़ी टांगों की मांग करने लगे. मतलब कि उन को हमारी टांगों के छोटेछोटे टुकड़े चाहिए थे. सब ने उन की इस मांग पर आपत्ति की. कोई भी उन को अपनी टांगें देने को तैयार नहीं था. उन को हमारी टांगें क्यों चाहिए, इस बात का किसी के पास कोई जवाब न था.

आखिर उन में से एक ने बताया कि वे लोग हमारी टांगों के छोटेछोटे टुकड़े ले कर बस में लगाएंगे ताकि बस तेजी से स्वर्ग की ओर जा सके. मेरे साथसाथ सब को बहुत बुरा लगा. सब ने फिर विरोध किया. कोई अपनी टांगों के टुकड़े देने को तैयार न था. आखिर वे लोग जोरजबरदस्ती पर उतर आए और हमारी टांगों के छोटेछोट टुकड़े उतार कर ले गए. हमारे सब के कद छोटे हो गए. आहिस्ताआहिस्ता यह परंपरा बन गई.

अब जब वे लोग हमारा खून लेने के लिए आते हैं तो वे हमारी टांगों के छोटेछोटे टुकड़े भी उतार कर ले जाते हैं. पूछने पर कहते कि बस को बहुत सारी टांगों की जरूरत है. उस में लगा रहे हैं. परंतु अजीब बात तो यह है कि हम बस में लगी अपनी टांगें देख नहीं पाते हैं क्योंकि बस में से बाहर जाने को हमारे लिए कोईर् रास्ता ही नहीं है. बस को चलाने वाले कैसे बाहर जाते हैं, हमें इस का भी कोई पता नहीं है.

हमें कभीकभी अपनी अवस्था गुलामों जैसी लगती है. लेकिन जब हम उन खून लेने वाले लोगों की बातें सुनते हैं तो हमें लगता है कि हम लोग ही सबकुछ हैं, लेकिन कई बार लगता है कि हम लोग कुछ भी नहीं है. यह भी बहुत अजीब तरह का एहसास है.

एक और अजीब बात है कि हमारे कद तो छोटे होते जा रहे हैं और हमारा खून लेने वालों के कद बड़े. हम लोग सूखते जा रहे हैं और वे लोग ताकतवर होते जा रहे हैं. हमारी पूंछें तो जमीन पर लटकती जा रही हैं और उन की तनती जा रही हैं.

अजीब बात है कि हम लोगों को लगता है कि हमारी पूंछ में कोई हड्डी ही नहीं. बस चलाने वाले अकसर यह कहते है कि वे लोग बस में हमारी टांगें लगा कर उस को रेलगाड़ी बना देंगे और अगर आप का ऐसा ही सहयोग रहा तो एक दिन रेलगाड़ी को हवाईजहाज बना देंगे. उन की बातों में बहुत ही जोश है और बहुत ही उत्साह. सब लोग उन की ऐसी बातें सुन कर बहुत ही उत्साह में आ जाते हैं. सब को उन की बातें सुन कर ऐसा लगता है कि ये लोग एक न एक दिन उन को स्वर्ग जरूर पहुंचा देंगे. हमारी बस को रेलगाड़ी और रेलगाड़ी को एक न एक दिन हवाईजहाज जरूर बना देंगे.

इसी विश्वास के साथ हम लोग हर बार उन की मांग के अनुसार उन को खून देने के लिए अपनेआप को उन के सम्मुख कर देते हैं. अपनी टांगों के छोटेछोटे टुकड़े भी उतार कर दे देते हैं, चाहे आहिस्ताआहिस्ता हमारा खून निकालने वाले टीकों के आकार बढ़ते जा रहे हों. हमारे कद छोटे होते जा रहे हैं और उन के बड़े. उन की पूंछें आसमान की ओर तनी जा रही हैं और हमारी जमीन पर लटकती जा रही हैं. लेकिन हम तो यही सोच कर अपना सबकुछ समर्पित करते जा रहे हैं कि एक न एक दिन ये लोग हमें स्वर्ग जरूर पहुंचा देंगे. लेकिन हमारे नौजवान उन की आसमान की ओर तनी पूछें देख कर अकसर दांत पीसते नजर आते हैं.   यह भी खूब रही राम अपने कंजूस दोस्त श्याम को कथा सुनाने ले गया. दोनों जब वहां पहुंचे तो देखा कि चारों तरफ पंडाल रंगबिरंगे कपड़ों से सजा हुआ था. फूलमाला पहने कथावाचक लोगों को दानपुण्य की महिमा बता रहे थे. कहने का मतलब पूरी कथा में दानपुण्य की महिमा बताई गई थी. वापस आने के बाद राम ने पूछा, ‘‘अब तुम्हारा क्या विचार है दान देने के बारे में?’’

श्याम ने कहा, ‘‘भाई, मैं तो धन्य हो गया आज की कथा सुन कर. सोच रहा हूं, मैं भी दान मांगना शुरू कर दूं.’’ यह सुनते ही राम की बोलती बंद हो गई.

मेरा बेटा 9 महीने का था. दिसंबर का महीना होने की वजह से कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. एक दिन रात को करीब 3 बजे मेरे बेटे ने सोते समय पोटी कर दी. दांत निकल रहे थे, इसलिए पोटी पतली होने की वजह से उस के पैर भी गंदे हो गए थे.

पानी एकदम बर्फ की तरह ठंडा होेने की वजह से मैं ने बराबर में दूसरे बिस्तर पर सो रहे अपने पति को उठाया कि थोड़ा पानी गरम कर दें. जिस से मैं बेटे की पोटी साफ कर सकूं और उसे ठंड न लगे. किंतु मेरी बहुत कोशिश के बावजूद मेरे पति उठने को तैयार नहीं हुए. करवट बदल कर दूसरी तरफ मुंह कर के लिहाफ में दुबक कर सो गए.

मजबूर हो कर मैं ने बर्फ जैसे पानी से ही अपने बेटे की पोटी को साफ किया. पानी इतना ठंडा था कि मेरा बेटा बुरी तरह रो रहा था. मेरी भी उंगलियां ठंडे पानी की वजह से गली जा रही थीं. किंतु मेरे पतिदेव अब भी लिहाफ से मुंह ढक कर सो रहे थे. मैं ने जैसेतैसे बेटे को कपड़े से पोंछ कर सुखाया और लिहाफ में गरम कर के सुला दिया.

किंतु मेरी आंखों में नींद बिलकुल नहीं थी. मुझे पति पर गुस्सा आ रहा था कि उन के पानी न गरम करने की वजह से मुझे अपने बेटे को ठंडे पानी से साफ करना पड़ा और उसे परेशानी हुई.

अचानक मैं उठी और वही बर्फ जैसा पानी बालटी में ले आई. फिर गहरी नींद में सो रहे अपने पति के ऊपर उलट दिया. अब गुस्सा होने की बारी उन की थी. उन्होंने उठ कर एक जोर का चांटा मेरे गाल पर जड़ दिया. किंतु, फिर भी मैं उन को गीला करने के बाद अपने लिहाफ में चैन से सो गई.

आज उस घटना को 18 वर्ष बीत चुके, किंतु अब भी उस घटना को याद कर के हम लोग हंस पड़ते हैं.

Interesting Hindi Stories : कुढ़न – औरत की इज्जत से खेलने पर आमादा समाज

Interesting Hindi Stories : हर साल इस नदी के किनारे मेला लगता है. इस बार भी मेला लगा. मेले में कमला भी रमिया बूआ को अपने साथ ले कर आई थीं. तभी जोर का शोर उठा.

2 संत वेशधारी आपस में जगह के लिए झगड़ पड़े और देखते ही देखते कुछ ही देर में एक छोटी तमाशाई भीड़ जुट गई. जो संत वेशधारी अभीअभी लोगों की श्रद्धा का पात्र बने प्रवचन दे रहे थे, उन का इस तरह झगड़ पड़ना मनोरंजन की बात बन गया.

कमला बहुत देख चुकी थीं ऐसे नाटक. क्या पुजारी, क्या मुल्ला, सभी अपना मतलब साधते हैं और दूसरों को आपस में लड़ाने की कोशिश करते हैं. सब दुकानदारी करते हैं. डरा कर लोगों की अंटी ढीली कराते हैं. कमला के पति किसना पिछले कई महीनों तक बीमार रहे थे. डाक्टर ने उन्हें टीबी की बीमारी बताई थी. कितना इलाज कराया, कितनी सेवा की उन की, तनमनधन से. अपने सारे जेवर, यहां तक कि सुहाग की निशानियां भी बेच दीं. जिस ने जोजो बताया, वे सब करती चली गईं और आखिर में उन के किसना बिलकुल ठीक हो गए, बल्कि अब तो वे पहले से भी कहीं ज्यादा सेहतमंद हैं.

लोग कहते नहीं थकते हैं कि कमला अपने पति किसना को मौत के मुंह से वापस खींच कर ले आई हैं. इस बात से उन की इज्जत बढ़ी है. कमला को घर लौटने की जल्दी हो रही थी, पर रमिया बूआ का मन अभी भरा नहीं था.

‘‘अब चलो भी बूआ, बहुत देर हो गई है,’’ बूआ को मनातेसमझाते उन्हें अपने साथ ले कर कमला अपने घर की ओर लौट चलीं. अपनी झोंपड़ी की ओर कमला आगे बढ़ीं कि उन के इंतजार में आंखें बिछाए शन्नोमन्नो भाग कर आती दिखीं.

कमला ने प्यार से उन के लिए लाई चूड़ी, माला दोनों को पहना दीं, तब तक किसना भी आ गए, कमला ने उन्हें भी मिठाई दे दी. तभी इन पलों का सम्मोहन एक झटके से टूट गया. एक लंबी, छरहरी, खूबसूरत औरत कमला से आ लिपटी. इस धक्के से अपने परिवार में मगन कमला संभलतेसंभलते भी लड़खड़ा गईं.

‘‘दीदी, मुझे अपनी शरण में ले लो. अब तो तुम्हारा ही आसरा है,’’ वह औरत बोली. ‘‘ऐसे कैसे आई लक्ष्मी? क्या हुआ?’’ उसे पहचानते ही किसी अनहोनी के डर से कमला का दिल बैठने लगा. किसना भी हैरानी से खड़े रहे.

लक्ष्मी को हांफतीकांपती देख कमला उसे सहारा दे कर झोंपड़ी के अंदर ले आईं और पानी लाने के लिए मुड़ीं, तो शन्नो को कटोरे में संभाल कर पानी लाते देखा. पानी का घूंट भरते ही लक्ष्मी ने रोतेबिलखते टूटे शब्दों में जो बताया, उस का मतलब यह था कि कुछ ही दिन पहले लक्ष्मी का मरद उसे अपने मांबाप के पास छोड़ कर दूसरे शहर में काम करने चला गया. कल सुबह तक तो सब ठीक ही चला, पर शाम को जब सासू मां रोज की तरह पड़ोस में चली गईं, उस के ससुर काम पर से जल्दी घर लौट आए और आते ही उस से पानी मांगा. जब वह पानी देने गई, तो उन्होंने उस का हाथ ही पकड़ लिया. उन की बदनीयती भांप कर उन्हें एक जोर से धक्का दे कर वह सीधी बाहर भाग ली.

लक्ष्मी का भोला चेहरा और रोने से गुड़हल सी लाल और सूजी आंखें देख कर कमला ने पूछा, ‘‘पर, तू यहां तक आई कैसे? तुझे अकेले बाहर निकलते डर नहीं लगा? कहीं कुछ हो जाता तो?’’ ‘‘नहीं दीदी, डर तो अपने ही घर में लगा, तभी तो अपनी लाज बचाने के लिए यहां भाग आई. पहले तो कभी अकले घर की दहलीज भी नहीं लांघी थी, पर उस समय इतना डर गई कि और कुछ समझ में ही नहीं आया, होश उड़ गए थे मेरे. बस, फिर तुम्हारा ध्यान आया और निकल भागी इधर की ओर,’’ लक्ष्मी ने बताया.

कमला अपने जंजालों को भूल लक्ष्मी को अपने साथ ले कर पीसीओ तक आई और उस के मरद से बात कराई. मरद से बात हो जाने पर लक्ष्मी ने किलकती आवाज में उन्हें बताया कि उस के मरद ने कहा है कि अभी वह दीदी के पास ही रहे.

झोंपड़ी पर पहुंच कर कमला ने फौरन चाय का पानी चढ़ा दिया. किसना दुकान से डबलरोटी ले आए. मासूम बच्चियां बहुत भूखी थीं. कमला अपने हिस्से का भी उन्हें खिला कर किसना को जरूरी हिदायतें दे कर लक्ष्मी को साथ ले कर अपने काम पर चल दी. मेहंदीरत्ता मेमसाहब के यहां आज किटी पार्टी है. उन्होंने काफी मेहमान बुला रखे हैं. लक्ष्मी साथ रहेगी, तो थोड़ा हाथ बंटा देगी. जल्दी काम हो जाएगा.

लक्ष्मी यह देख कर हैरान थी कि मेहंदीरत्ता मेमसाहब अपनी किटी पार्टी में मस्त थीं और साहब अकेले अपने कमरे में कंप्यूटर और मोबाइल फोन में बिजी थे. कमला ने लक्ष्मी से कहा, ‘‘जरा साहब को चाय दे आ.’’

अपने में मस्त साहब ने चाय देने आई ताजगी से भरी लक्ष्मी को नजर उठा कर देखा और देखते ही मुसकरा कर उस से कुछ ऐसी हलकी बात कह दी कि वह घबरा कर फिर कमला के पास भाग गई. लौटते समय रास्ते में लक्ष्मी बोली, ‘‘इतने पढ़ेलिखे आदमी हैं, लेकिन नजरें बिलकुल वैसी ही.

‘‘हम लोग तो ढोरडंगरों की जिंदगी जीते हैं, पर ऐसी शानदार जिंदगी जीने वाले सफेदपोश लोग भी कितने ओछे होते हैं.’’ लक्ष्मी की इस बात पर कमला

चुप थीं. लक्ष्मी ने फिर पूछा, ‘‘दीदी, क्या सभी बड़े आदमी ऐसे होते हैं?’’

‘‘नहीं, सब ऐसे नहीं होते. अच्छेबुरे, ओछे आदमी तो कभी भी कहीं भी हो सकते हैं,’’ कमला ने कहा, फिर कुछ याद कर वे कहने लगीं, ‘‘जानती हो, कुछ समय पहले यहां से थोड़ी दूरी पर एक साहब व मेमसाहब रहते थे और साथ में उन का एक छोटा सा खूबसूरत बच्चा था. दोनों ही एकदूसरे से बड़ा प्यार करते थे. मेमसाहब कभी झगड़ती भी थीं, तो साहब उन्हें प्यार से मना लेते थे.

‘‘उन्होंने अपने ही घर में एक बड़े कमरे में कोई प्रयोगशाला बनाई थी, वहीं दोनों मिल कर कुछ किया करते, फिर एक दिन…’’ कहतेकहते कमला का गला रुंध आया, ‘‘मेमसाहब प्रयोगशाला में कुछ कर रही थीं. साहब बाहर चंदा मांगने वाले आए थे, उन्हें चंदा दे रहे थे, हम भी तभी काम करने पहुंचे कि अंदर से धमाके की आवाज आई और आग की लपटें… ‘‘साहब बदहवास अंदर भागे. वहां सब धूंधूं कर जल रहा था. मेमसाहब और बच्चे को साहब जलती आग की लपटों से खींच लाए थे, पर वे उन्हें बचा नहीं पाए…

‘‘वे खुद भी बुरी तरह झुलस गए थे, एक खूबसूरत, प्यार भरा घर उजड़ गया. फिर उन के कई आपरेशन हुए. बाद में चलनेफिरने लायक होते ही अपनी सारी जायदाद महिला आश्रम और बाल आश्रम को दान कर न जाने कहां चले गए. ‘‘कुछ लोग बताते हैं कि वे शायद वैरागी हो गए हैं,’’ कमला ने एक गहरी सांस ली.

बातों में न समय का पता चला और न ही रास्ते का, झोंपड़ी आ गई थी. कमला ने झोंपड़ी के अंदर ही शन्नोमन्नो के साथ लक्ष्मी के भी सोने का इंतजाम कर दिया. वे और किसना बाहर खुले में सो जाएंगे.

अचानक ही किसी ने कमला को झकझोर कर उठा दिया. थरथर कांपती लक्ष्मी उन के कान में फुसफुसा रही थी, ‘‘अंदर कोई नरपिशाच है दीदी.’’ कमला झटके से उठीं, ढिबरी जला कर पूरी झोंपड़ी में देखने लगीं. कनस्तर और संदूक के पीछे भी देखा. कहीं कोई नहीं था.

‘‘तुझे वहम हुआ होगा, कौन आएगा यहां,’’ चिढ़ कर कमला ने झिड़क दिया लक्ष्मी को, फिर वे रसोई की तरफ बढ़ी थीं कि वहां उकड़ू बैठे, मुंह छिपाए अपने पति को देख झट से ढिबरी बुझाई और बोलीं, ‘‘यहां तो कोई नहीं, चल तू आराम से सो जा. मैं दरवाजे पर बैठी हूं.’’ अंधेरे में कमला ने अपने पति किसना को बाहर निकल जाने दिया. फिर वे भरभरा कर दरवाजे पर ही ढह गईं.

Hindi Fiction Stories : समन का चक्कर – थानेदार की समझाइशों का जगन्नाथ पर कैसा हुआ असर

Hindi Fiction Stories :  अजीब मुसीबत है भई, जब मैं जगन्नाथ हूं तो विश्वनाथ नाम का चोला क्यों गले में डालूं. थानेदार की समझाइशों का असर मुझ पर होने ही वाला था कि दिमाग की बत्ती जल गई वरना हम तो गए थे काम से.

घर पहुंचा तो माताश्री ने एक कागज मेरी ओर बढ़ाया, ‘‘2 पुलिस वाले आए थे, उन्होंने कहा, जब तुम घर पहुंचो तो तुम्हें यह दिखला दूं.’’

पुलिस की बात सुनते ही मेरे हाथपांव फूल गए. कागज फौरन मैं ने लपक लिया. यह एसडीएम कोर्ट से जारी किसी विश्वनाथ नामक व्यक्ति के लिए समन था. इसे पुलिस वाले बिना पूछताछ किए मेरी माताजी को थमा कर चले गए थे. गांव की निपट मेरी अशिक्षित माताश्री ने बिना सोचेसमझे इसे ले कर ‘आ बैल मुझे मार’ जैसी स्थिति मेरे लिए कर दी थी.

मामला कोर्ट का था. इस आई बला को टालने मैं फौरन थाने जा पहुंचा. पुलिस वालों की गलती बताते हुए समन वापस करना चाहा तो थानेदार ने हवलदार को तलब किया.

‘‘महल्ले वालों ने ही इन के घर का पता बताया था,’’ मुझे टारगेट करते हुए हवलदार ने बयान दिया,  ‘‘घर के बाहर टंगी इन की नेमप्लेट और यहां तक कि घर का नंबर मिलान करने के बाद ही समन तामील किया था.’’

‘‘अब तुम इनकार कर ही नहीं सकते, तुम वे नहीं हो, जिसे समन तामील किया गया है. यह समन तुम्हारा ही है. संभाल कर इसे रखो. बड़े काम की चीज है यह तुम्हारे लिए. कोर्ट में हाजिरी के समय इसे दिखाना पड़ेगा,’’ थानेदार ने मुझे समन का हकदार बता दिया.

बहरहाल, समन तामीली के सिलसिले में हवलदार ने मेरे घर का नंबर और उस के बाहर टंगी नेमप्लेट का हवाला दिया तो आखिर माजरा क्या है, मेरी समझ में आ गया.

दरअसल, जिस घर में मैं रहने लगा हूं, 2 दिन ही हुए थे किराए पर लिए उसे. पहले के किराएदार को 2-3 दिन ही हुए थे इसे खाली किए. घर खाली उस ने कर तो दिया, अपनी नेमप्लेट ले जाना भूल गया. यह विश्वनाथ वही व्यक्ति था, समन जिसे जारी किया गया था. घर को ठीक करने की हड़बड़ी में उस की नेमप्लेट की ओर मैं ध्यान दे नहीं पाया. इसी को देख कर पुलिस वालों ने माना होगा कि विश्वनाथ रहता यहीं है. वे मेरी माताजी को विश्वनाथ की माता समझ कर समन सौंप कर चले गए होंगे.

इस पूरे घटनाक्रम का बयान कर थानेदार के सामने मैं ने अपनी बात रखी, ‘‘फिर भी समन देते समय पुलिस वालों को साफसाफ बतला देना था कि वह किस के नाम है?’’

‘‘कहना तो तुम्हें यह चाहिए कि तामील करते वक्त महल्ले वालों का पंचनामा बनवा क्यों नहीं लिया गया?’’ थानेदार पुलिस की गलती मानने को तैयार नहीं था, ‘‘चूक सरासर तुम्हारी है, घर किराए पर लेते समय देख तो लेना था. बिना देखे आपराधिक रिकौर्ड वाले किराएदार के बाद घर आंख मूंद कर ले लिया. ऊपर से घर के बाहर टंगी उस की नेमप्लेट का इस्तेमाल भी करते रहे. आप को इस का मोल कभी न कभी चुकाना ही था. जब चुकाने की बारी आई तो अपनी गलतियों का ठीकरा पुलिस के सिर फोड़ने लगे.’’

‘‘आप की बातें अपनी जगह ठीक हैं, पर इस समन का मैं करूंगा क्या?’’ थानेदार को मैं ने मनाने की कोशिश की कि समन वापस ले कर वे मुझे बख्श दें.

‘‘समन की तामीली रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जा चुकी है. अब करना जो भी है, वह कोर्ट तय करेगा. तुम्हारे हक में करने को बस यह है कि समय पर कोर्ट में हाजिर हो जाओ,’’ थानेदार ने एक तरह से मेरी बेचारगी की बात कही.

‘‘क्या मैं आप को बलि का बकरा नजर आता हूं, विश्वनाथ के बदले जिस की बलि दी जा सके. अजीब मुसीबत है. मैं जब विश्वनाथ हूं ही नहीं, कोर्ट में फिर पेश क्यों होऊं? मुझे नहीं होना कोर्ट में पेश.’’

‘‘गिरफ्तारी वारंट जब जारी होगा, फिर तो होओगे न कोर्ट में पेश?’’ मेरी जिद का खमियाजा भुगतने की वह चेतावनी देने लगा.

‘‘यह तो नाइंसाफी है,’’ मैं ने विरोध किया.

‘‘समन जिस के करकमलों में दिया जाता है, बाद में जब उस की गिरफ्तारी की नौबत आती है, तुम्हीं बताओ, पुलिस किसे करेगी गिरफ्तार?’’ थानेदार ने कानून की दुहाई दी, ‘‘नाइंसाफी तब होगी जब समन की तामीली किसी और को और गिरफ्तारी किसी और की की जाएगी.’’

‘‘कोईर् तोड़ तो होगा इस चक्रव्यूह को भेदने का?’’ मैं ने उपाय पूछा.

‘‘इतनी देर से मैं तुम को समझा क्या रहा हूं? तुम्हारी मुक्ति के सभी रास्ते बंद हैं सिवा एक के, वह जाता सीधे कोर्ट को है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर जैसे ही जाने को हुआ, थानेदार के मन में अचानक मेरे लिए सहानुभूति उमड़ पड़ी, ‘‘वैसे क्या नाम बताया था आप ने अपना?’’

‘‘यदि मैं अपने मौलिक नाम के साथ कोर्ट में हाजिर होऊं तो? जानबूझ कर दूसरे का अपराध अपने सिर लेने की इजाजत मेरा जमीर मुझे दे नहीं रहा है.’’

‘‘मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि इतना समझाने के बावजूद तुम्हारे अंदर की गलत सोच जा क्यों नहीं रही? ठीक है, अपनी असलियत साबित करने के लिए कोर्ट के जब चक्कर पे चक्कर लगाने पड़ेंगे, फिर यह भी याद नहीं रहेगा कि जमीर किस चिडि़या का नाम है? कान उलटा क्यों पकड़ना चाहते हो?’’ थानेदार ने कोर्ट की दुनियादारी से रूबरू करवाया.

‘‘आप के कहने का मतलब है कि मेरी भलाई इसी में है कि कोर्ट के लिए मैं विश्वनाथ बना रहूं.’’

‘‘लगता है, तुम्हारे भेजे में बात घुसती देर से है,’’ उस ने मुझे आश्वस्त करने का प्रयास किया, ‘‘अभी तक मैं तुम्हें समझा क्या रहा हूं?’’

‘‘इतना भर और समझा दीजिए कि कोर्ट के सामने मुझे कहना क्या होगा?’’

‘‘मेरी समझाइशों का असर तुम पर होने लगा है,’’ उत्साहित हो कर उस ने कार्यक्रम बताया, ‘‘एसडीएम साहब के सामने कान पकड़ कर तुम्हें कहना है कि भविष्य में तुम महल्ले वालों से लड़ाईझगड़ा करने से तोबा करते हो. एकदो पेशी के बाद व्यवहार ठीक रखने की शर्त पर कोर्ट मामला बंद कर देगा.’’

दूसरे दिन एसडीएम कोर्ट जा कर पेशकार से मिला. मामले की पूरी जानकारी उसे दी. साथ ही, इस के निबटारे की दिशा में थानेदार की सलाह पर उस की प्रतिक्रिया जाननी चाही. यह सोच कर कि कहीं पुलिस वालों की गलती पर परदा डालने के लिए दूसरे का अपराध अपने सिर लेने के लिए थानेदार मुझे प्रोत्साहित तो नहीं कर रहा?

‘‘ऐसी खास सलाह कोई सुलझा हुआ पुलिस वाला ही दे सकता है,’’ थानेदार की वह प्रशंसा करने लगा, ‘‘भावुकता में बह कर भूले से भी अपनी असलियत कोर्ट को जाहिर मत कर देना.’’

‘‘वरना?’’ नतीजा मैं ने जानना चाहा.

‘‘थानेदार ने बताया नहीं?’’

‘‘आप के श्रीमुख से भी सुनना चाहता हूं.’’

‘‘मालूम होता है कि कोर्ट से पाला कभी पड़ा नहीं आप का. आप के कहने भर से कोर्ट आप को जगन्नाथ नहीं मान लेगा, साबित करना पड़ेगा? खुद को खुद साबित करने आप को जाने कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे. मामले में पेशीदरपेशी से परेशान हो कर हो सकता है कि इस के लिए आप को किसी वकील की सेवा में जाना पड़े. इस चक्कर में गांठ से पैसा जाएगा, सो अलग.’’ उस ने भी वही बात कही, जो थानेदार ने मुझ से कही थी.

‘‘कोर्टकचहरी के चक्कर में कभी पड़े?’’ कुछ देर बाद उस ने जानना चाहा.

‘‘नहीं.’’

‘‘तो विश्वनाथ बन कर अब पड़ जाओ. लेकिन इस मौके को हाथ से जाने मत दो. असल मामले में अदालत से सामना जब होगा, इस का तजरबा आप के काम आएगा,’’ प्रेरित करतेकरते वह उपदेश देने लगा, ‘‘आप को तो विश्वनाथजी का एहसानमंद होना चाहिए जिस की बदौलत अदालती कार्यवाहियों से रूबरू होने का मौका जो आप को मिलने जा रहा है.’’

सलाह के लिए उस का शुक्रिया अदा कर जैसे ही जाने लगा, उस ने मुझ से पूछ लेना जरूरी समझा, ‘‘यह तो बताते जाओ कि पेशी में पालनहार के किस रूप में अवतरित होगे?’’ उस ने आगे खुलासा किया, ‘‘कहने का मतलब है कि विश्वनाथ बन कर या जगन्नाथ के नाम से? पूछ इसलिए रहा हूं, यदि जगन्नाथ के रूप में प्रकट होना है तो आप की सुविधा के लिए कोई वकील तय कर के रखूंगा.’’

‘‘थानेदार और आप की लाख समझाइशों के बावजूद क्या मुझे किसी पागल कुत्ते ने काटा है जो जगन्नाथ का चोला पहन कर आऊं?’’ हालत के मद्देनजर आखिरकार मैं ने हथियार डाल दिया, ‘‘समझ लीजिए जगन्नाथ तब तक के लिए मर गया है जब तक कोर्ट के लिए विश्वनाथ जिंदा है,’’ मैं ने उसे यकीन दिलाया.

‘‘यह की न बुद्धिमानों वाली बात.’’ अपनी शहादत के लिए अनुकूल विकल्प चुनने पर मेरी तारीफ किए बिना वह रह नहीं सका.

घर पहुंचते ही फौरन उस को खाली करने में मैं ने अपनी खैरियत समझी. इस आशंका से कि मेरा पर्यायवाची ‘विश्वनाथ’ इस घर में रहते हुए जाने और क्याक्या गुल खिला कर गया हो? उस के दुष्कमों का अदृश्य साया इस घर पर मंडराते हुए मुझे महसूस होने लगा था.

लेखक- दौलतराम देवांगन

Hindi Moral Tales : मंदिर – क्या अपनी पत्नी और बच्चों का कष्ट दूर कर पाएगा परमहंस

Hindi Moral Tales : परमहंस गांव से उकता चुका था. गांव के मंदिर के मालिक से उसे महीने भर का राशन ही तो मिलता था, बाकी जरूरतों के लिए उसे और उस की पत्नी को भक्तों द्वारा दिए जाने वाले न के बराबर चढ़ावे पर निर्भर रहना पड़ता था. अब तो उस की बेटी भी 4 साल की हो गई है और उस का खर्च भी बढ़ गया है. तन पर न तो ठीक से कपड़ा, न पेट भर भोजन. एक रात परमहंस अपनी पत्नी को विश्वास में ले कर बोला, ‘‘क्यों न मैं काशी चला जाऊं.’’ ‘‘अकेले?’’ पत्नी सशंकित हो कर बोली.

‘‘अभी तो अकेले ही ठीक रहेगा लेकिन जब वहां काम जम जाएगा तो तुम्हें भी बुला लूंगा,’’ परमहंस खुश होते हुए बोला. ‘‘काशी तो धरमकरम का स्थान है. मुझे पूरा भरोसा है कि वहां तुम्हारा काम जम जाएगा.’’ पत्नी की विश्वास भरी बातें सुन कर परमहंस की बांछें खिल गईं. दूसरे दिन पत्नी से विदा ले कर परमहंस ट्रेन पर चढ़ गया. चलते समय रामनामी ओढ़ना वह नहीं भूला था, क्योंकि बिना टिकट चलने का यही तो लाइसेंस था. माथे पर तिलक लगाए वह बनारस के हसीन खयालों में कुछ ऐसे खोया कि तंद्रा ही तब टूटी जब बनारस आ गया. बनारस पहुंचने पर परमहंस ने चैन की सांस ली.

प्लेटफार्म से बाहर आते ही उस ने अपना दिमाग दौड़ाया. थोडे़ से सोचविचार के बाद गंगाघाट जाना उसे मुनासिब लगा. 2 दिन हो गए उसे घाट पर टहलते मगर कोई खास सफलता नहीं मिली. यहां पंडे़ पहले से ही जमे थे. कहने लगे, ‘‘एक इंच भी नहीं देंगे. पुश्तैनी जगह है. अगर धंधा जमाने की कोशिश की तो समझ लेना लतियाए जाओगे.’’ निराश परमहंस की इस दौरान एक व्यक्ति से जानपहचान हो गई. वह उसे घाट पर सुबहशाम बैठे देखता.

बातोंबातों में परमहंस ने उस के काम के बारे में पूछा तो वह हंस पड़ा और कहने लगा, ‘‘हम कोई काम नहीं करते. सिपाही थे, नौकरी से निकाल दिए गए तो दालरोटी के लिए यहीं जम गए.’’ ‘‘दालरोटी, वह भी यहां?’’ परमहंस आश्चर्य से बोला, ‘‘बिना काम के कैसी दालरोटी?’’ वह सोचने लगा कि वह भी तो ऐसे ही अवसर की तलाश में यहां आया है. फिर तो यह आदमी बड़े काम का है. उस की आंखें चमक उठीं, ‘‘भाई, मुझे भी बताओ, मैं बिहार के एक गांव से रोजीरोटी की तलाश में आया हूं.

क्या मेरा भी कोई जुगाड़ हो सकता है?’’ ‘‘क्यों नहीं,’’ बडे़ इत्मीनान से वह बोला, ‘‘तुम भी मेरे साथ रहो, पूरीकचौरी से आकंठ डूबे रहोगे. बाबा विश्वनाथ की नगरी है, यहां कोई भी भूखा नहीं सोता. कम से कम हम जैसे तो बिलकुल नहीं.’’ इस तरह परमहंस को एक हमकिरदार मिल गया. तभी पंडा सा दिखने वाला एक आदमी, सिपाही के पास आया, ‘‘चलो, जजमान आ गए हैं.’’ सिपाही उठ कर जाने लगा तो इशारे से परमहंस को भी चलने का संकेत दिया. दोनों एक पुराने से मंदिर के पास आए.

वहां एक व्यक्ति सिर मुंडाए श्वेत वस्त्र में खड़ा था. पंडे ने उसे बैठाया फिर खुद भी बैठ गया. कुछ पूजापाठ वगैरह किया. उस के बाद जजमान ने खानेपीने का सामान उस के सामने रख कर खाने का आग्रह किया. तीनों ने बडे़ चाव से देसी घी से छनी पूरी व मिठाइयों का भोजन किया. जजमान उठ कर जाने को हुआ तो पंडे ने उस से पूरे साल का राशनपानी मांगा. जजमान हिचकिचाते हुए बोला, ‘‘इतना कहां से लाएं. अभी मृतक की तेरहवीं का खर्चा पड़ा था.’’ वह चिरौरी करने लगा, ‘‘पीठ ठोक दीजिए महाराज, इस से ज्यादा मुझ से नहीं होगा.’’

बिना लिएदिए जजमान की पीठ ठोकने को पंडा तैयार नहीं था. परमहंस इन सब को बडे़ गौर से देख रहा था. कैसे शास्त्रों की आड़ में जजमान से सबकुछ लूट लेने की कोशिश पंडा कर रहा था. अंतत: 1,001 रुपए लेने के बाद ही पंडे ने सिर झुकवा कर जजमान की पीठ ठोकी. उस ने परम संतोष की सांस ली. अब मृतक की आत्मा को शांति मिल गई होगी, यह सोच कर उस ने आकाश की तरफ देखा. लौटते समय पंडे को छोड़ कर दोनों घाट पर आए. कई सालों के बाद परमहंस ने तबीयत से मनपसंद भोजन का स्वाद लिया था. सिपाही के साथ रहते उसे 15 दिन से ऊपर हो चुके थे. खानेपीने की कोई कमी नहीं थी मगर पत्नी को उस ने वचन दिया था कि सबकुछ ठीक कर के वह उसे बुला लेगा.

कम से कम न बुला पाने की स्थिति में रुपएपैसे तो भेजने ही चाहिए पर पैसे आएं कहां से? परमहंस चिंता में पड़ गया. मेहनत वह कर नहीं सकता था. फिर मेहनत वह करे तो क्यों? पंडे को ही देखा, कैसे छक कर खाया, ऊपर से 1,001 रुपए ले कर भी गया. उसे यह नेमत पैदाइशी मिली है. वह उसे भला क्यों छोडे़? इसी उधेड़बुन में कई दिन और निकल गए. एक दिन सिपाही नहीं आया. पंडा भी नहीं दिख रहा था. हो सकता हो दोनों कहीं गए हों. परमहंस का भूख के मारे बुरा हाल था. वह पत्थर के चबूतरे पर लेटा पेट भरने के बारे में सोच रहा था कि एक महिला अपने बेटे के साथ उस के करीब आ कर बैठ गई और सुस्ताने लगी. परमहंस ने देखा कि उस ने टोकरी में कुछ फल ले रखे थे. मांगने में परमहंस को पहले भी संकोच नहीं था फिर आज तो वह भूखा है, ऐसे में मुंह खोलने में क्या हर्ज?

‘‘माता, आप के पास कुछ खाने के लिए होगा. सुबह से कुछ नहीं खाया है.’’ साधु जान कर उस महिला ने परमहंस को निराश नहीं किया. फल खाते समय परमहंस ने महिला से उस के आने की वजह पूछी तो वह कहने लगी, ‘‘पिछले दिनों मेरे बेटे की तबीयत खराब हो गई थी. मैं ने शीतला मां से मन्नत मांगी थी.’’ परमहंस को अब ज्यादा पूछने की जरूरत नहीं थी. इतने दिन काशी में रह कर कुछकुछ यहां पैसा कमाने के तरीके सीख चुका था. अत: बोला, ‘‘माताजी, मैं आप की हथेली देख सकता हूं.’’ वह महिला पहले तो हिचकिचाई मगर भविष्य जानने का लोभ संवरण नहीं कर सकी. परमहंस कुछ जानता तो था नहीं. उसे तो बस, पैसे जोड़ कर घर भेजने थे. अत: महिला का हाथ देख कर बोला, ‘‘आप की तो भाग्य रेखा ही नहीं है.’’ उस का इतना कहना भर था कि महिला की आंखें नम हो गईं, ‘‘आप ठीक कहते हैं. शादी के 2 साल बाद ही पति का फौज में इंतकाल हो गया.

यही एक बच्चा है जिसे ले कर मैं हमेशा परेशान रहती हूं. एक प्राइवेट स्कूल में काम करती हूं. बच्चा दाई के भरोसे छोड़ कर जाती हूं. यह अकसर बीमार रहता है.’’ ‘‘घर आप का है?’’ परमहंस ने पूछा. ‘‘हां’’ बातों के सिलसिले में परमहंस को पता चला कि वह विधवा थी, और उस ने अपना नाम सावित्री बताया था. विधवा से परमहंस को खयाल आया कि जब वह छोटा था तो एक बार अपने पिता मनसाराम के साथ एक विधवा जजमान के घर अखंड रामायण पाठ करने गया था. रामायण पाठ खत्म होने के बाद पिताजी रात में उस विधवा के यहां ही रुक गए. अगली सुबह पिताजी कुछ परेशान थे. जजमान को बुला कर पूछा, ‘बेटी, यहां कोई बुजुर्ग महिला जल कर मरी थी?’ यह सुन कर वह विधवा जजमान सकते में आ गई. ‘जली तो थी और वह कोई नहीं मेरी मां थी. बाबूजी बहरे थे. दूसरे कमरे में कुछ कर रहे थे. उसी दौरान चूल्हा जलाते समय अचानक मां की साड़ी में आग लग गई.

वह लाख चिल्लाई मगर बहरे होने के कारण पास ही के कमरे में रहते हुए बाबूजी कुछ सुन न सके. इस प्रकार मां अकाल मृत्यु को प्राप्त हुई.’ मनसाराम के मुख से मां के जलने की बात जान कर विधवा की उत्सुकता बढ़ गई और वह बोली, ‘आप को कैसे पता चला?’ ‘बेटी, कल रात मैं ने स्वप्न में देखा कि एक बुजुर्ग महिला जल रही है. वह मुक्ति के लिए छटपटा रही है,’ मनसाराम रहस्यमय ढंग से बोले, ‘इस घटना को 20 साल गुजर चुके थे फिर भी मां को मुक्ति नहीं मिली. मिलेगी भी तो कैसे? अकाल मृत्यु वाले बिना पूजापाठ के नहीं छूटते. उन की आत्मा भटकती रहती है.’

यह सुन कर वह विधवा जजमान भावुक हो उठी. उस ने मुक्ति पाठ कराना मंजूर कर लिया. इस तरह मनसाराम को जो अतिरिक्त दक्षिणा मिली तो वह उस का जिक्र घर आने पर अपनी पत्नी से करना न भूले. परमहंस छोटा था पर इतना भी नहीं कि समझ न सके. उसे पिताजी की कही एकएक बात आज भी याद है जो वह मां को बता रहे थे. जजमान अधेड़ विधवा थी. पास के ही गांव में ग्रामसेविका थी. पैसे की कोई कमी नहीं थी. सो चलतेचलते सोचा, क्यों न कुछ और ऐंठ लिया जाए. शाम को रामायण पाठ खत्म होने के बाद मैं गांव में टहल रहा था कि एक जगह कुछ लोग बैठे आपस में कह रहे थे कि इस विधवा ने अखंड रामायण पाठ करवा कर गांव को पवित्र कर दिया और अपनी मां को भी. मां की बात पूछने पर गांव वालों ने उन्हें बताया कि 20 बरस पहले उन की मां जल कर मरी थी.

बस, मैं ने इसी को पकड़ लिया. स्वप्न की झूठी कहानी गढ़ कर अतिरिक्त दक्षिणा का भी जुगाड़ कर लिया. और इसी के साथ दोनों हंस पडे़. परमहंस के मन में भी ऐसा ही एक विचार जागा, ‘‘आप के पास कुंडली तो होगी?’’ ‘‘हां, घर पर है,’’ सावित्री ने जवाब दिया. ‘‘आप चाहें तो मुझे एक बार दिखा दें, मैं आप को कष्टनिवारण का उपाय बता दूंगा,’’ परमहंस ने इतने निश्छल भाव से कहा कि वह ना न कर सकी. सावित्री तो परमहंस से इतनी प्रभावित हो गई कि घर आने तक का न्योता दे दिया.

परमहंस यही तो चाहता था. सावित्री का अच्छाखासा मकान था. देख कर परमहंस के मन में लालच आ गया. वह इस फिराक में पड़ गया कि कैसे ऐसी कुछ व्यवस्था हो कि कहीं और जाने की जरूरत ही न हो और यह तभी संभव था जब कोई मंदिर वगैरह बने और वह उस का स्थायी पुजारी बन जाए. काशी में धर्म के नाम पर धंधा चमकाने में कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ती.

वह तो उस ने घाट पर ही देख लिया था. मानो दूध गंगा में या फिर बाबा विश्वनाथ को लोग चढ़ा देते हैं. भले ही आम आदमी को पीने के लिए न मिलता हो. सावित्री ने उस की अच्छी आवभगत की. परमहंस कुंडली के बारे में उतना ही जानता था जितना उस का पिता मनसाराम. इधरउधर का जोड़घटाना करने के बाद परमहंस तनिक चिंतित सा बोला, ‘‘ग्रह दोष तो बहुत बड़ा है. बेटे पर हमेशा बना रहेगा.’’ ‘‘कोई उपाय,’’ सावित्री अधीर हो उठी. उपाय है न, शास्त्रों में हर संकट का उपाय है, बशर्ते विश्वास के साथ उस का पालन किया जाए,’’ परमहंस बोला, ‘‘होता यह है कि लोग नास्तिकों के कहने पर बीच में ही पूजापाठ छोड़ देते हैं,’’ कुंडली पर दोबारा नजर डाल कर वह बोला, ‘‘रोजाना सुंदरकांड का पाठ करना होगा व शनिवार को हनुमान का दर्शन.’’

‘‘हनुमानजी का आसपास कोई मंदिर नहीं है. वैसे भी जिस मंदिर की महत्ता है वह काफी दूर है,’’ सावित्री बोली. परमहंस कुछ सोचने लगा. योजना के मुताबिक उस ने गोटी फेंकी, ‘‘क्यों न आप ही पहल करतीं, मंदिर यहीं बन जाएगा. पुण्य का काम है, हनुमानजी सब ठीक कर देंगे.’’ सावित्री ने सोचने का मौका मांगा. परमहंस उस रोज वापस घाट चला आया. सिपाही पहले से ही वहां बैठा था. ‘‘कहां चले गए थे?’’ सिपाही ने पूछा तो परमहंस ने सारी बातें विस्तार से उसे बता दीं. ‘‘ये तुम ने अच्छा किया. भाई मान गए तुम्हारे दिमाग को. महीना भी नहीं बीता और तुम पूरे पंडे हो गए,’’ सिपाही ने हंसी की.

उस के बाद परमहंस सावित्री का रोज घाट पर इंतजार करने लगा. करीब एक सप्ताह बाद वह आते दिखाई दी. परमहंस ने जल्दीजल्दी अपने को ठीक किया. रामनामी सिरहाने से उठा कर बदन पर डाली. ध्यान भाव में आ कर वह कुछ बुदबुदाने लगा. सावित्री ने आते ही परमहंस के पांव छुए. क्षणांश इंतजारी के बाद परमहंस ने आंखें खोलीं. आशीर्वाद दिया. ‘‘मैं ने आप का ध्यान तो नहीं तोड़ा?’’ ‘‘अरे नहीं, यह तो रोज का किस्सा है. वैसे भी शास्त्रों में ‘परोपकार: परमोधर्म’ को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है. आप का कष्ट दूर हो इस से बड़ा ध्यान और क्या हो सकता है मेरे लिए.’’ परमहंस का निस्वार्थ भाव उस के दिल को छू गया. ‘‘महाराज, कल रात मैं ने स्वप्न में हनुमानजी को देखा,’’ सावित्री बोली. ‘‘इस से बड़ा आदेश और क्या हो सकता है, रुद्रावतार हनुमानजी का आप के लिए.

अब इस में विलंब करना उचित नहीं. मंदिर का निर्माण अति शीघ्र होना चाहिए,’’ गरम लोहे पर चोट करने का अवसर न खोते हुए परमहंस ने अपनी शातिर बुद्धि का इस्तेमाल किया. ‘‘पर एक बाधा है,’’ सावित्री तनिक उदास हो बोली, ‘‘मैं ज्यादा खर्च नहीं कर सकती.’’ परमहंस सोच में पड़ गया. फिर बोला,‘‘कोई बात नहीं. आप के महल्ले से चंदा ले कर इस काम को पूरा किया जाएगा.’’ और इसी के साथ सावित्री के सिर से एक बड़ा बोझ हट चुका था. परमहंस कुछ पैसा घर भेजना चाह रहा था मगर जुगाड़ नहीं बैठ रहा था. उस के मन में एक विचार आया कि क्यों न ग्रहशांति के नाम से हवनपूजन कराया जाए. सावित्री मना न कर सकेगी. परमहंस के प्रस्ताव पर सावित्री सहर्ष तैयार हो गई.

2 दिन के पूजापाठ में उस ने कुल 2 हजार बनाए. कुछ सावित्री से तो कुछ महल्ले की महिलाओं के चढ़ावे से. मौका अच्छा था, सो परमहंस ने मंदिर की बात छेड़ी. अब तक महिलाएं परमहंस से परिचित हो चुकी थीं. उन सभी ने एक स्वर में सहयोग देने का वचन दिया. परमहंस ने इस आयोजन से 2 काम किए. एक अर्थोपार्जन, दूसरे मंदिर के लिए प्रचार. सावित्री का पति फौज में था. फौजी का गौरव देश के लिए हो जाने वाली कुरबानी में होता है. देश के लिए शहीद होना कोई ग्रहों के प्रतिकूल होने जैसा नहीं. जैसा की सावित्री सोचती थी. सावित्री का बेटा हमेशा बीमार रहता था.

यह भी पर्याप्त देखभाल न होने की वजह से था. सावित्री का मूल वजहों से हट जाना ही परमहंस जैसों के लिए अपनी जमीन तैयार करने में आसानी होती है. परमहंस सावित्री की इसी कमजोरी का फायदा उठा रहा था. दुर्गा पूजा नजदीक आ रही थी, सो महल्ला कमेटी के सदस्य सक्रिय हो गए. अच्छाखासा चंदा जुटा कर उन्होंने एक दुर्गा की प्रतिमा खरीदी. पूजा पाठ के लिए समय निर्धारित किया गया तो पता चला कि पुराने पुरोहितजी बीमार हैं. ऐसे में किसी ने परमहंस का जिक्र किया. आननफानन में सावित्री से परमहंस का पता ले कर कुछ उत्साही युवक उसे घाट से लिवा लाए. परमहंस ने दक्षिणा में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि उस ने दूर तक की सोच रखी थी.

पूजापाठ खत्म होने के बाद उस ने कमेटी वालों के सामने मंदिर की बात छेड़ी. युवाओं ने जहां तेजी दिखाई वहीं लंपट किस्म के लोग, जिन का मकसद चंदे के जरिए होंठ तर करना था, ने तनमन से इस पुण्य के काम में हाथ बंटाना स्वीकार किया. घर से दुत्कारे ऐसे लोगों को मंदिर बनने के साथ पीनेखाने का एक स्थायी आसरा मिल जाएगा. इसलिए वे जहां भी जाते मंदिर की चर्चा जरूर करते, ‘‘चचा, जरा सोचो, कितना लाभ होगा मंदिर बनने से. कितना दूर जाना पड़ता है हमें दर्शन करने के लिए. बच्चों को परीक्षा के समय हनुमानजी का ही आसरा होता है. ऐसे में उन्हें कितना आत्मबल मिलेगा. वैसे भी राम ने कलयुग में अपने से अधिक हनुमान की पूजा का जिक्र किया है.’’ धीरेधीरे लोगों की समझ में आने लगा कि मंदिर बनना पुण्य का काम है. आखिर उन का अन्नदाता ईश्वर ही है.

हम कितने स्वार्थी हैं कि भगवान के रहने के लिए थोड़ी सी जगह नहीं दे सकते, जबकि खुद आलिशान मकानों के लिए जीवन भर जोड़तोड़ करते रहते हैं. इस तरह आसपास मंदिर चर्चा का विषय बन गया. कुछ ने विरोध किया तो परमहंस के गुर्गों ने कहा, ‘‘दूसरे मजहब के लोगों को देखो, बड़ीबड़ी मीनार खड़ी करने में जरा भी कोताही नहीं बरतते. एक हम हिंदू ही हैं जो अव्वल दरजे के खुदगर्ज होते हैं. जिस का खाते हैं उसी को कोसते हैं. हम क्या इतने गएगुजरे हैं कि 2-4 सौ धर्मकर्म के नाम पर नहीं खर्च कर सकते?’’ चंदा उगाही शुरू हुई तो आगेआगे परमहंस पीछेपीछे उस के आदमी.

उन्होंने ऐसा माहौल बनाया कि दूसरे लोग भी अभियान में जुट गए. अच्छीखासी भीड़ जब न देने वालों के पास जाती तो दबाववश उन्हें भी देना पड़ता. परमहंस ने एक समझदारी दिखाई. फूटी कौड़ी भी घालमेल नहीं किया. वह जनता के बीच अपने को गिराना नहीं चाहता था क्योंकि उस ने तो कुछ और ही सोच रखा था. मंदिर के लिए जब कोई जगह देने को तैयार नहीं हुआ तो सड़क के किनारे खाली जमीन पर एक रात कुछ शोहदों ने हनुमान की मूर्ति रख कर श्रीगणेश कर दिया और अगले दिन से भजनकीर्तन शुरू हो गया. दान पेटिका रखी गई ताकि राहगीरों का भी सहयोग मिलता रहे.

फिरकापरस्त नेता को बुलवा कर बाकायदा निर्माण की नींव रखी गई ताकि अतिक्रमण के नाम पर कोई सरकारी अधिकारी व्यवधान न डाले. सावित्री खुश थी. चलो, परमहंसजी महाराज की बदौलत उस के कष्टों का निवारण हो रहा था. तमाम कामचोर महिलाओं को भजनपूजन के नाम पर समय काटने की स्थायी जगह मिल रही थी. सावित्री के रिश्तेदारों ने सुना कि उस ने मंदिर बनवाने में आर्थिक सहयोग दिया है तो प्रसन्न हो कर बोले, ‘‘चलो उस ने अपना विधवा जीवन सार्थक कर लिया.’’ मंदिर बन कर तैयार हो गया. प्राणप्रतिष्ठा के दिन अनेक साधुसंतों व संन्यासियों को बुलाया गया.

यह सब देख कर परमहंस की छाती फूल कर दोगुनी हो गई. परमहंस ने मंदिर निर्माण का सारा श्रेय खुद ले कर खूब वाहवाही लूटी. उस का सपना पूरा हो चुका था. आज उस की पत्नी भी मौजूद थी. काशी में उस के पति ने धर्म की स्थायी दुकान खोल ली थी इसलिए वह फूली न समा रही थी. इस में कोई शक भी नहीं था कि थोड़े समय में ही परमहंस ने जो कर दिखाया वह किसी के लिए भी ईर्ष्या का विषय हो सकता था. परमहंस के विशेष आग्रह पर सावित्री भी आई जबकि उस के बच्चे की तबीयत ठीक नहीं थी.

पूजापाठ के दौरान ही किसी ने सावित्री को खबर दी कि उस के बेटे की हालत ठीक नहीं है. वह भागते हुए घर आई. बच्चा एकदम सुस्त पड़ गया था. उसे सांस लेने में दिक्कत आ रही थी. वह किस से कहे जो उस की मदद के लिए आगे आए. सारा महल्ला तो मंदिर में जुटा था. अंतत वह खुद बच्चे को ले कर अस्पताल की ओर भागी परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी. निमोनिया के चलते बच्चा रास्ते में ही दम तोड़ चुका था.

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