‘बधाई हो’ ‘अंधाधुन’ और ‘ड्रीम गर्ल’ जैसी फिल्मों से बौलीवुड में छाने वाले टौप एक्टर आयुष्मान खुराना की मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ का ट्रेलर रिलीज हो गया है. फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान का ट्रेलर रिलीज होते ही यूट्यूब पर छा गया है. जिसमें आयुष्मान एक बार फिर नए अवतार में नजर आ रहे हैं.
आपको बता दे आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ सामाजिक मुद्दे पर आधारित कॉमेडी फिल्म है. जो ‘गे’ लव स्टोरी पर आधारित है. बच्चे के गे होने का पता चलने पर फैमिली के साथ जो स्ट्रगल होता है. वह इसमें दिलचस्प तरीके से दिखाया गया है. इस फिल्म में आपको कुछ डबल मीनिंग वर्ड्स भी सुनाई देंगे.
फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ का ट्रेलर रिलीज होते ही बस कुछ ही मिनटों में 15 हजार से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं. फिल्म के ट्रेलर में आयुष्मान खुराना नाक में रिंग पहने नजर आ रहे हैं. नीना गुप्ता और गजराज एक बार फिर अपनी कॉमेडी से दर्शकों के दिल में खास जगह बना रहे हैं और जितेंद्र भी खास अंदाज में नजर आ रहे है.
‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ फिल्म के डायलॉग्स खास है. नीना गुप्ता और गजराज का ‘मां के पास दिल होता है’ डायलॉग सोशल मीडिया पर चर्चा में है. इसके अलावा ‘हमें परिवार के साथ जो लड़ाई लड़नी पड़ती है. वो सबसे बड़ी और खतरनाक होती है’ जैसे डायलॉग्स भी प्रभावित करते है.
आयुष्मान खुराना ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इस बारे में ट्वीट भी किया था. उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल पर इसके पोस्टर्स भी शेयर करने के साथ कैप्शन भी दिया है, कार्तिक का प्यार होकर रहेगा अमन! इस नए पोस्टर में इसकी कास्ट दिखाई दे रही है जिसमें नीना गुप्ता, गजराज राव, जितेंद्र कुमार, मनुऋषि चड्ढा, सुनीता रजवार, मानवी शामिल हैं.
उन्होंने फिल्म के दो पोस्टर रिलीज किए हैं. पहले पोस्टर में हम आयुष्मान खुराना और उनके फिल्म में पार्टनर जितेंद्र कुमार वेडिंग चेयर पर बैठे दिख रहे हैं और पूरा परिवार उनकी ओर देख रहा है. वहीं दूसरे पोस्टर में वह दिलवाले दुलहनिया ले जाएं का क्लाइमैक्स सीन इनऐक्ट करते दिखाई दे रहे हैं.
हितेश केवल्य ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ फिल्म के लेखक और निर्देशक हैं। डायरेक्शन के फील्ड में हितेश की यह डेब्यू फिल्म है. आनंद एल राय और भूषण कुमार इस फिल्म के निर्माता हैं. यह फिल्म 21 फरवरी को रिलीज होगी. इससे पहले आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ को लोगो ने काफी पसंद किया था.
कलाकारः आयुष्मान खुराना, भूमि पेडणेकर, यामी गौतम, दीपिका चिखालिया, धीरेंद्र कुमार, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी, सौरभ शुक्ला, अभिषेक बनर्जी व अन्य.
अवधिः दो घंटे सत्रह मिनट
हमारे यहां शारीरिक रंगत, मोटापा, दुबलापन, छोटे कद आदि के चलते लड़कियों को जिंदगी भर अपमान सहना पड़ता है. वह हीनग्रंथि कर शिकार होकर खुद को बदलने यानी कि चेहरे को खूबसूरत बनाने के लिए कई तरह की फेअरनेस क्रीम लगाती हैं, कद बढ़ाने के उपाय, मोटापा कम करने के उपाय करती रहती है. तो वही लड़के अपने सिर के गंजेपन से मुक्ति पाने के उपाय करते नजर आते हैं. फिल्मकार अमर कौशिक ने इन्ही मुद्दों को फिल्म ‘बाला’ में गंजेपन को लेकर कहानी गढ़ते हुए जिस अंदाज में उठाया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. अंततः वह सदियों से चली आ रही इन समस्यओं से मुक्ति का उपाय देते हुए कहते हैं कि ‘खुद को बदलने की जरुरत क्यों? अपनी कहानी में वह काली लड़की के प्रति समाज के संकीर्ण रवैए को बताने में वह पीछे नही रहते.
यह कहानी कानपुर निवासी बालमुकुंद शुक्ला उर्फ बाला (आयुष्मान खुराना) के बचपन व स्कूल दिनों से शुरू होती है. जब उसके सिर के बाल घने और सिल्की होते थे और वह अपने बालों पर इस कदर घमंड करता था कि स्कूल में हर खूबसूरत लड़की उसकी दीवानी थी. वह भी श्रुति का दीवाना था. मगर गाहे बगाहे बाला अपनी सबसे अच्छी दोस्त लतिका के काले चेहरे को लेकर उसका तिरस्कार भी करता रहता था. स्कूल में कक्षा के बोर्ड पर वह अपने गंजे शिक्षक की तस्वीर बनाकर उसे तकला लिखा करता था. मगर पच्चीस साल की उम्र तक पहुंचते ही बाला के सिर से बाल इस कदर झड़े कि वह भी गंजे हो गए. उनकी बचपन की प्रेमिका श्रुति ने अन्य युवक से शादी कर ली. समाज में उसका लोग मजाक उड़ाने लगे हैं. बाला अब एक सुंदर बनाने वाली क्रीम बनाने वाली कंपनी में नौकरी कर रहे हैं. इसके प्रचार के लिए वह औरतों के बीच अपने अंदाज में बातें कर प्रोडक्ट बेचते हैं. एक बार लतिका (भूमि पेडणेकर) भी अपनी मौसी के साथ पहुंच जाती है. और बाला के सिर से टोपी हटाकर कर लोगों के सामने उसका गंजापन ले आती है. बाला का मजाक उड़ता है. प्रोडक्ट नही बिकता. परिणामतः नौकरी मे उसे मार्केटिंग से हटाकर आफिस में बैठा दिया जाता है.
लतिका ने ऐसा पहली बार नही किया. लतिका स्कूल दिनों से ही बाला को बार-बार आईना दिखाने की कोशिश करती रही है, वह कहती रही है कि खुद को बदलने की जरुरत क्यों हैं. मगर बाला लतिका से चिढ़ता है. पेशे से जानी- मानी दबंग वकील लतिका काले रंग के कारण नकारी जाती रही है.मगर उसने कभी खुद को हीन महसूस नहीं किया.
बाला के माता (सीमा पाहवा) व पिता (सौरभ शुक्ला) भी परेशान हैं. क्योंकि बाला की शादी नहीं हो रही है. बालों को सिर का ताज समझने वाला बाला, बालों को उगाने के लिए सैकड़ों नुस्खे अपनाता है, वह हास्यास्पद व घिनौने हैं. मगर बाला को यकीन है कि उसके बालों की बगिया एक दिन जरूर खिलेगी. पर ऐसा नहीं होता. अंततः वह बाल ट्रांसप्लांट कराने के लिए तैयार होता है, पर उसे डायबिटीज है और डायबिटीज के कारण पैदा हो सकने वाली समस्या से डरकर वह ऐसा नही कराता. अपने बेटे को निराश देखकर उनके पिता (सौरभ शुक्ला) बाला के लिए दिल्ली से विग मंगवा देते हैं. विग पहनने से बाला का आत्म विश्वास लौटता है. इसी आत्मविश्वास के बल पर लखनउ की टिक टौक स्टार व कंपनी की ब्रांड अम्बेसेडर परी (यामी गौतम) को अपने प्रेम जाल में फंसाकर उससे शादी कर लेता है. मगर सुहागरात से पहले ही परी को पता चल जाता है कि उसका पति बाला गंजा है. परी तुरंत ससुराल छोड़कर मायके पहुंच जाती है. अपनी मां (दीपिका चिखालिया) की सलासह पर वह अदालत में बाला पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए शादी को निरस्त करने की गुहार लगाती है.बाला अपना मुकदमा लड़ने के लिए वकील के रूप में लतिका को ही खड़ा करता है. पर अदालती काररवाही के दौरान बाला को सबसे बड़ा ज्ञान मिलता है.
लेखन व निर्देशनः
अमर कौशिक ने लगभग हर लड़की के निजी जीवन से जुड़ी हीनग्रथि और समाज के संकीर्ण रवैए को हास्य के साथ बिना उपदेशात्मक भाषण के जिस शैली में फिल्म में पेश किया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. मगर इंटरवल के बाद भाषणबाजी पर जोर देकर फिल्म को थोड़ा कमजोर कर डाला. फिल्म के संवाद कहीं भी अपनी मर्यादा नहीं खोते और न ही अश्लील बनते हैं. कुछ संवाद बहुत संदर बने हैं. अमर कौशिक ने महज फिल्म बनाने के लिए गंजेपन का मुद्दा नहीं उठाया, बल्कि वह इस मुद्दे को गहराई से उठाते हुए इसकी तह तक गए हैं. अमूमन फिल्म की कहानी व किरदार जिस शहर में स्थापित होते हैं, वहां की बोलचाल की भाषा को फिल्मकार मिमिक्री की तरह पेश करते रहे हैं, मगर इस फिल्म में कानपुर व लखनउ की बोलचाल की भाषा को यथार्थ के धरातल पर पेश किया गया है. फिल्मकार ने अपरोक्ष रूप से ‘टिकटौक स्टारपना’ पर भी कटाक्ष किया है. फिल्मकार ने इमानदारी के साथ इस सच को उजागर किया है कि जो लड़की महज दिखावे की जिंदगी जीती है, वह जिंदादिल नही हो सकती.
बाला के किरदार में आयुष्मान खुराना ने शानदार अभिनय किया है. दर्शक गंजेपन को भूलकर सिर्फ बाला के गम का हिस्सा बनकर रह जाता है. बाला की गंजेपन के चलते जो हताशा है, उसे दर्शकों के दिलों तक पहंचाने में आयुष्मान खुराना पूरी तरह से सफल रहे हैं. पर बौलीवुड के महान कलाकारों की मिमिक्री करते हुए कुछ जगह वह थकाउ हो गए हैं. भूमि ने साबित कर दिखाया कि सांवले /काले रंग के चहरे वाली लड़की लतिका के किरदार को उनसे बेहतर कोई नहीं निभा सकता था. कई दृश्यों में वह चिंगारी पैदा करती हैं. टिकटौक स्टार परी के किरदार में यामी गौतम सुंदर जरुर लगी हैं, मगर कई दृश्यों में उन्होंने ओवर एक्टिंग की है. छोटे से किरदार में दीपिका चिखालिया अपनी उपस्थिति दर्ज करा जाती हैं. सौरभ शुक्ला, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी, धीरेंद्र कुमार ने ठीक ठाक अभिनय किया है.
कलाकारः आयुष्मान खुराना ,नुसरत भरूचा,मनजोत सिंह और अन्नू कपूर
अवधिः दो घंटे 12 मिनट
छोटे शहरों में होने वाली रामलीला में सीता का किरदार भी महिला की बजाय पुरूष ही निभाते हैं.और ऐसा युगो से होता आ रहा है.इसी को आधार बनाकर पहली बार लेखक से निर्देशक बने राज शांडिल्य ने हास्य फिल्म‘‘ड्रीम गर्ल’’में करमवीर का किरदार निभा रहे आयुष्मान खुराना को विभन्न मंचों पर सीता,राधा, द्रौपदी आदि के किरदार में पेश किया. इसके पीछे मूल वजह यह भी है कि करण के अंदर महिला की आवाज में बोलने की क्षमता है. इसके साथ फिल्मकार ने इसमें शहरी जीवन में अकेलेपन की समस्या को भी गूंठने का असफल प्रयास किया है.
कहानीः
कहानी शुरू होती है मथुरा से,जहां जगजीत सिंह (अन्नू कपूर) से, जिनकी दाह संस्कार का सामान बेचने की दुकान है. पर जगजीत सिंह ने कई बैंको से कर्ज ले रखा है. उनका मकान भी गिरवी है. जगजीत का युवा बेटा करम वीर सिंह (आयुष्मान खुराना) बेरोजगारी से परेशान है. मगर मोहल्ले के लोग सीता के रूप में उसकी पूजा करते हैं, क्योंकि करम सिंह बचपन से ही लड़की की आवाज बहुत ही खूबसूरती से निकालते आए हैं, जिसके चलते बचपन से ही मोहल्ले में होने वाली ‘रामलीला’ में उन्हें सीता और ‘कृष्णलीला’ में राधा का किरदार मिलता आ रहा है. वह अपनी भूमिकाओं से वह पैसे भी कमा लेता हैं और उसे पहचान भी खूब मिलती है. पर जगजीत सिंह को बेटे की इस कला से आपत्ति है. वह चाहते हैं कि करम सिंह कोई सम्मानित नौकरी पा जाए. नौकरी की ऐसी ही तलाश में करम सिंह को डब्लू जी (राजेश शर्मा) के कौल सेंटर में मोटी तनख्वाह पर नौकरी मिलती है, जहां वह पूजा नामक लड़की की आवाज निकालकर ग्राहकों से लंबी मीठी-मीठी प्यार भरी बातें करनी होंती हैं.कर्ज और घर की जरूरतों को ध्यान में रखकर करमवीर,पूजा की आवाज बनकर काम करने लगता है,उसका यह राज उसके दोस्त स्माइली (मनजोत सिंह) के अलावा किसी को भी पता नहीं है.
इसी बीच करमवीर को माही (नुसरत भरूचा) से प्यार होजाता है.और उनकी शादी तय हो जाती है.तो दूसरी तरफ कौल सेंटर में पूजा बनकर प्यार भरी बातें करने के चलते करम की आवाज का जादू पुलिस हवलदार राजपाल (विजय राज),माही के भाई महेंद्र (अभिषेक बनर्जी), किशोर टोटो (राज भंसाली),रोमा (निधि बिष्ट) के अलावा उसके अपने पिता जगजीत सिंह के सिर इस कदर चढ़कर बोलता है कि सभी उसके इश्क में पागल होकर शादी करने को उतावले हो उठते हैं.अब इस हालात से बाहर निकलकर माही से शादी करने के लिए करमवीर और उसके दोस्त स्माइली कई तरह के कारनामें करते हैं.
लेखन व निर्देशनः
कुछ हास्य कार्यक्रम व फिल्मों का लेखन कर चुके राज शांडिल्य ने पहली बार निर्देशन में कदम रखा है,पर वह पूरी तरह से सफल नहीं रहे.अपने हास्यप्रद संवादों के माध्यम से वह दर्शकों को हॅंसाते जरुर है,मगर इस फिल्म का मजा दर्शक तभी ले सकता है,जब वह अपना दिमाग घर पर रखकर आए.तर्क की कसौटी पर बहुत कुछ गड़बड़ है.फिल्म की पटकथा में कई झोल व कमियां हैं.पूरी फिल्म कौमेडी सीरियल सी लगती है.फिल्म का आधार यह है कि शहरी जीवन में लोग अकेलेपन से बचने के लिए इस तरह के कौल सेंटर का सहारा लेते हैं,पर यह बात भी ठीक से उभर नही पाती. फिल्मकार ने जबरन हिंदू व मुस्लिम मुद्दा भी ठूंसने का प्रयास किया है.इंटरवल तक फिल्म घिसटती रहती है, पर इंटरवल के बाद गति पकड़ती है.फिल्मकार ने आयुष्मान खुराना और नुसरत भरूचा की प्रेम कहानी को विकसित करने में बहुत जल्दबाजी की, पर वह इसे भी सही ढंग से साकार नहीं कर पाए.हास्य के संदेश परोसने के लिए पितृसत्तात्मक रवैए की खिलाफत करते हुए माही का अपने दादाजी के दाह संस्कार में श्यमशान घाट जाने का ऐलान करना और फिल्म के क्लायमेक्स में आयुष्मान खुराना का सोशल मीडिया से दूर रहने का संदेश भी असरदार साबित नही होता. जबकि अपने भाषणनुमा संदेश में आयुष्मान संदेश देते हैं कि सोशल मीडिया व फेशबुक में व्यस्त रहने के चलते हर इंसान अकेला है.
अभिनयः
यह फिल्म पूरी तरह से आयुष्मान खुराना के ही कंधे पर है.पूजा की आवाज में बात करना और उनकी बौडी लैंगवेज दर्शकों को हंसा-हंसाकर लोटपोट करती रहती है.यदि आयुष्मान खुराना की जगह कोई दूसरा कलाकार होता तो शायद फिल्म का बंटाधार हो जाता.यह आयुष्मान खुराना की अभिनय क्षमता का परिणाम है कि वह मुस्लिम महिला जुबेदा के किरदार में भी खरे उतरते हैं.आयुष्मान खुुराना के बाद अन्नू कपूर की कौमिक टाइमिंग का हर कोई मुराद हो जाता है.नुसरत भरूचा के हिस्से कुछ खास करने को रहा ही नहीं. दोस्त स्माइली के किरदार में मनजोत सिंह भी हंसाने में कामयाब रहते हैं. विजय राज की अभिनय प्रतिभा को भी अनदेखा नही किया जा सकता. फिल्म में आयुष्मान खुराना और मनजोत सिंह की केमिस्ट्री अच्छी जमी है, मगर आयुष्मान खुराना और नुसरत भरूचा की केमिस्ट्री नही जमती.
आज से कई साल पहले ‘टिप टिप बरसा पानी…….’ फिल्म ‘मोहरा’ का ये गाना हिट हुआ, जिसकी रीमेक एक बार फिर किया जा रहा है. दरअसल बारिश की बूंदों को लेकर बनी तक़रीबन सभी गाने प्रकृति की रोमांस को दर्शाते है, जिसे फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों में फिल्माने से कभी नहीं कतराएं, फिर चाहे वह देश में हो या विदेश में, उसकी सुन्दरता दर्शकों को हमेशा भाया और हो भी क्यों न? मानसून की बौछार से जनजीवन से लेकर पेड़ पौधे और जानवर सभी खिल जाते है, लेकिन जहां इस बारिश को कलाकार पर्दे पर भले ही रोमांटिक पहलू को जीवंत करने के लिए करते हो, पर असल जीवन में कुछ कलाकार को बारिश कतई पसंद नहीं, जबकि कुछ को पसंद भी है. क्या कहते है वे इस बारें में, आइये जाने उन्ही से.
मल्लिका शेरावत
मानसून को बहुत एन्जौय करती हूं. विदेश में भी बारिश होती है, पर वहां ठण्ड अधिक होने से अच्छा नहीं लगता. सूरज नहीं निकलता और डिप्रेसिंग होता है. हमारे देश में मानसून खुशियों के साथ नवजीवन को साथ लेकर आता है. माटी की सौधी-सौधी खुश्बू,गर्मी का कम होना,चारों तरफ हरियाली आदि सबकुछ देखना मुझे बहुत अच्छा लगता है. मुझे मानसून में समुद्री तट पर चलना बहुत पसंद है.
मानसून पहले मुझे अधिक पसंद नहीं था. बेटे के आने के बाद इसे मैं अधिक पसंद करने लगा हूं. इस मौसम में लक्ष्य के साथ मैं पार्क में जाता हूँ और वह 2 से 3 घंटे तक खेलता है. इसलिए अब मैं इसे पसंद करने लगा हूं.
सिमोन सिंह
मुझे मानसून बहुत अच्छा लगता है. इस मौसम में मिट्टी की भीनी-भीनी खुश्बू और पेड़ पौधों से टपकते बारिश की बूँदें इस मौसम में देखना बहुत अच्छा लगता है. बचपन से ही मैंने इसे एन्जॉय करती आई हूँ. ख़ासकर समुद्री तट इस मौसम में बहुत सुंदर लगता है.
विद्या बालन
मुझे इस मौसम में ठंडी हवा और बारिश को देखना बहुत अधिक पसंद है. मैंने बचपन से इसे पसंद किया है. सिर्फ आउटडोर शूटिंग और बाहर जाना इन दिनों मुश्किल होता है. गरम चाय और पकौड़े इस मौसम को और अधिक सुहावना बनाते है.
सोनाक्षी सिन्हा
मानसून मुझे पसंद नहीं. खास कर मुंबई में तो हर जगह पानी भर जाता है और इस मौसम में मुझे काम करना भी अच्छा नहीं लगता. उदासी वाले इस मौसम में कुछ भी करना मुझे पसंद नहीं. इस मौसम में मैं घर पर रहना पसंद करती हूँ.
आयुष्मान खुराना
मुझे बारिश और मानसून का मौसम बहुत पसंद है इसे मैं बहुत एन्जौय करता हूं. खास कर परिवार और दोस्तों के साथ रहने में मुझे बहुत अच्छा लगता है. पानी जीवन है और बारिश इसका एक माध्यम, जिसे मैं कभी मिस नहीं करना चाहता.
मुझे बारिश की बौछार से आने वाली माटी की खुश्बू बहुत पसंद है. इसे मैं मुंबई में रहकर एन्जौय करना चाहती हूं, लेकिन अगर ऐसा न हुआ, तो मैं इसे बहुत मिस करती हूं. बारिश की बूंदे मुझे बहुत अच्छी लगती है. बारिश की ये बूंदे प्यार और रोमांस का एहसास करवाते है.