प्रेग्नेंसी में होती है मौर्निंग सिकनेस? ऐसे करें ठीक

27 वर्षीय अंजलि को प्रैगनैंट होते ही मौर्निंग सिकनेस की समस्या शुरू हो गई, लेकिन उस ने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि परिवार वालों ने कहा था कि यह आम बात है. 2-3 महीनों में यह समस्या ठीक हो जाती है. मगर अंजलि के साथ ऐसा नहीं हुआ. धीरेधीरे वह कमजोर होती गई. और फिर एक वक्त ऐसा आया कि चलने फिरने में भी असमर्थ महसूस करने लगी.

परेशान हो कर जब डाक्टर के पास आई तो उन्होंने बताया कि वह डिहाइड्रेशन की शिकार हो चुकी है, जो इस अवस्था में बिलकुल ठीक नहीं है और किसी भी वक्त मिस कैरेज हो सकता है. अंजलि को हौस्पिटल में दाखिल कर आईवी के द्वारा पानी और दवा दी गई. 2-3 दिनों में वह स्वस्थ हो गई. बाद में एक हैल्दी बच्चे को जन्म दिया.

बीमारी नहीं है यह

असल में प्रैगनैंसी में मौर्निंग सिकनेस आम बात है. यह कोई बीमारी नहीं, क्योंकि इस दौरान महिलाएं कई हारमोनल बदलावों से गुजरती हैं. पहली तिमाही में मौर्निंग सिकनेस ज्यादा होती है. इस बारे में मुंबई की ‘वर्ल्ड औफ वूमन क्लीनिक’ की डाइरैक्टर और स्त्रीरोग विशेषज्ञा बंदिता सिन्हा बताती हैं कि गर्भावस्था में मौर्निंग सिकनेस को अच्छा माना जाता है, करीब 60 से 80% महिलाओं को यह होती है, लेकिन बारबार होने पर शरीर से अधिक मात्रा में पानी बाहर निकल जाता है, जिस से निर्जलीकरण हो जाता है और इस का प्रभाव बच्चे और मां दोनों पर पड़ने लगता है.

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कुछ महिलाओं को सवेरे ही नहीं, पूरा दिन यह समस्या होती रहती है. लेकिन यह अधिक और 3 महीने के बाद भी होती है, तो डाक्टर की सलाह लेना जरूरी होता है, क्योंकि हारमोनल बदलाव 4-5 महीने तक ही रहता है. इस के बाद शरीर इसे एडजस्ट कर लेता है.

बारबार उलटियां होने पर महिला थकान और कमजोरी महसूस करती है. इस से गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास पर असर पड़ता है. वह कुपोषण का शिकार हो सकता है, जिस से मिस कैरेज या समय से पहले डिलिवरी होने का डर रहता है.

गंभीर मौर्निंग सिकनेस को हाइपरमेसिस ग्रैविडेरम कहते हैं. इस का इलाज समय रहते करा लेना चाहिए ताकि बच्चा और मां दोनों स्वस्थ रहें. यह समस्या उन महिलाओं को अधिक होती है, जिन के जुड़वां या ट्रिप्लेट बच्चे होते हैं.

ऐसे करें काबू

इन बातों का ध्यान रखने से मौर्निंग सिकनेस को काबू में किया जा सकता है:

  • सुबह बिस्तर से उठते ही तुरंत ड्राई प्लेन बिस्कुट, ड्राई फ्रूट्स, सेब, इडली आदि का सेवन करें. बाद में कोई तरल पदार्थ या पानी पीएं.
  • थोड़ीथोड़ी देर बाद कुछ न कुछ खाती रहें.
  • जिस फूड की गंध से उलटी आती हो उसे न खाएं.
  • बाहर का खाना न खाएं, क्योंकि इस से अपच होने पर ऐसिडिटी की मात्रा बढ़ जाती है, जिस से उलटियां होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है.
  • खाना अधिक गरम न खाएं. हमेशा हलका ठंडा भोजन करें.
  • पानी, सूप, नारियल पानी, इलैक्ट्रोल पाउडर आदि का अधिक सेवन करें. फ्रूट जूस न लें, क्योंकि इस में कैमिकल होता है, जो कई बार नुकसानदायक साबित होता है.
  • वजन अधिक होने पर उलटियां होने के चांस अधिक रहते हैं, इसलिए वजन को काबू में रखें.
  • जिन्हें माइग्रेन या ऐसिडिटी अधिक होती हो, उन्हें भी उलटियां अधिक हो सकती हैं.
  • तनाव को दूर रखें.
  • पूरी नींद लें.

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ये घरेलू नुसखे भी अपना सकती हैं:

  • अदरक को नमक के साथ लेने पर काफी हद तक इस परेशानी को दूर किया जा सकता है.
  • पानी, नीबू और पुदीने के रस को मिला कर लेने से भी मौर्निंग सिकनेस दूर होती है.

इस के बाद भी अगर मौर्निंग सिकनेस की समस्या रहती है, तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

बच्चों की आंख में लालिमा का कारण

पिंक आंखें आमतौर पर आंख की अन्य परेशानियों का एक लक्षण  है जो सौम्य से लेकर गंभीर तक हो सकती है.  ये तब होता है जब आंख के सफ़ेद भाग की रक्त नलिकाएं फैल जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है. यह समस्या एक या दोनों आंखों में हो सकती है.

लक्षण-आंखों में चिड़चिड़ाहट, जलन, खुजली, सूखापन, दर्द, निर्वहन, बहुत पानी आना,रोशनी के प्रति संवेदनशीलता. आदि पिंक आयी के लक्षण हैं. कुछ मामलों में बच्चे की आंखों में लालिमा के अतिरिक्त कोई लक्षण दिखाई नहीं देता.

कारण-कभी कभी बच्चे की आंखों में लालिमा का कोई विशेष कारण नहीं होता,और यह अपने आप ठीक भी हो जाती है,लेकिन कुछ मामलों में यदि ध्यान न दिया जाय तो यह समस्या और भी गम्भीर हो जाती है. बच्चे की आँखों की ललिमा के कुछ कारण इस प्रकार हैं-

1-एलर्जी-

यदि आपका शिशु आंखों में जलन होने के कारकों,जैसे सिगरेट का धुआं,पराग के कण,पालतू पशुओं की रूसी या धूल कणों के सम्पर्क में आता है,तो संवेदनशीलता के कारण उसे एलर्जी होने की संभावना हो सकती है. जिससे,आमतौर पर आंखों में सूजन या इसके लाल होने के लक्षण दिखाई देने लगते  हैं.

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2-बच्चों के दांत निकलना-

चूंकि आंखों और दांतों की नसें आपस में जुड़ी होती हैं,इसलिए दांत निकलने पर भी आँखों में सूजन हो सकती है.

3-मच्छर का काटना-

इस तरह की lलाली में आंखों में दर्द नहीं होता,बस खुजली होती है,एक नवजात शिशु में यह समस्या लगभग 10 दिनों तक रहती है.  यह लाली, आमतौर पर गुलाबी या लाल रंग की होती है.

4-चोट लगना-

आंख के पास सिर की चोट से,आंखों में जलन,सूजन,लाली या इससे अधिक भी कुछ हो सकता है.  छोटे बच्चे इधर उधर घूमते रहते हैं,इसलिए उन्हें चोट लगने का ख़तरा ज़्यादा होता है. क़ई बार सूजन  के बावजूद भी उन्हें दर्द नहीं होता.

5-स्टाय और पलकों में गिल्टी(कलेजियन)-

स्टाय एक लाल गांठ होती है जो पलक के किनारे या उसके नीचे हो सकती है और सूजन का कारण बन सकती है. ये समस्या अपने आप ठीक हो जाती है.

दूसरी ओर जब तैलीय ग्रंथि सूज जाती है और उससे खुले भाग में तेल जमा हो जाता है तो पलकों में गिल्टी हो जाती है जिसे कलेजियन भी कहते है. यह आम तौर पर स्टाय से बड़ा होता है

6-ब्लेफराइटिस-

पलकों में उपस्थित एक तेलीय ग्रंथि होती है जिसमें सूजन भी आ सकती इससे ब्लेफराइटिस हो सकता है,जो रात के समय अधिक प्रभावशाली होता है. इसके लक्षण हैं पलकों पर पपड़ी बनना,आंखों में सूजन,संवेदनशीलता और दर्द के कारण शिशू को खुजली या जलन महसूस हो सकती है और वो इसे छूने और रगड़ने का प्रयास करता है

7-नवजात शिशु का आंख आना-

कभी कभी शिशु का जन्म के समय संक्रमण का अधिक ख़तरा होता है,जिससे उसके आंखे आ जाती हैं. ऐसी स्थिति का सबसे आम कारण गोनोरिया,क्लेमेडिया और हरपीज है. इस समस्या के लक्षण हैं सूजी हुई लाल आंखें और अत्यधिक स्त्राव.

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उपचार-

ठंडा सेक-यदि लाली और सूजन ज़्यादा प्रभावी न हो तो,बच्चे की आंखों पर ठंडा सेक करें.

मां का दूध-मां के दूध की दो बूंद (इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं)बच्चे की आँखों में टपकाएं.

आंखें साफ़ करें-गुनगुने पानी में कपड़ा भिगोकर बच्चे की आँखें साफ़ कर सकते हैं.

रोज़ाना बाल धोएं-अपने बच्चे के बालों को रोज़ाना धोने का नियम बनाएं, क्योंकि इसमें परागकोश की धूल या पालतू जानवरों की रूसी हो सकती है,जो आपके शिशु की आंखों में जलन पैदा कर सकती है.

बिस्तर साफ़ करें-सप्ताह में एक बार उसका बिस्तर साफ़ करें

डाक्टर से सम्पर्क कब करें- यदि सूजन और लाली उपरोक्त घरेलू उपचारों से कम न हो और आंखें पूर्णत:प्रभावित हो चुकी हों,दर्द,संवेदनशीलता और अत्यधिक लाली और बुखार भी आ जाय तो, डाक्टर से तुरंत सम्पर्क करें.  अन्यथा परिस्थिति गंभीर हो सकती है.

यदि आपको उन विशिष्ट कारकों के बारे में पता है जो आंखों की सूजन को बढ़ाते हैं, तो समस्या को संभालना कम चुनौतिपूर्ण होता है.

4 टिप्स: बेबी की स्किन रहेगी हमेशा सौफ्ट

नवजात और बड़ों की स्किन में कुछ खास अंतर होते हैं जैसे नवजात की एपिडर्मिस यानी बाह्य स्किन बड़ों की तुलना में काफी पतली होती है. नवजात की पसीने की ग्रंथियां बड़ों की तुलना में कम काम करती हैं, जिस से स्किन नमी जल्दी सोखती भी है और जल्दी खो भी देती है. इस के अलावा नवजात की स्किन बहुत कोमल भी होती है. आइए, जानते हैं कि शिशु की कोमल स्किन को इन समस्याओं से कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है:

1. उत्पादों के लेबल जरूर पढ़ें

यदि किसी बेबी स्किन केयर प्रोडक्ट पर हाइपोऐलर्जिक लिखा है तो इस का मतलब यह है कि हो सकता है कि उत्पाद के इस्तेमाल से शिशु को ऐलर्जी हो जाए. जरूरी नहीं कि ऐसा उत्पाद शिशु की स्किन के लिए सुरक्षित हो. ऐसे में नैचुरल उत्पादों को प्राथमिकता दें. यदि उत्पाद की सामग्री में थैलेट और पैराबीन हो तो उसे बिलकुल न खरीदें.

यों तो नैचुरल बीबी केयर उत्पाद नवजात के लिए सुरक्षित होते हैं, लेकिन यदि परिवार में किसी को ऐलर्जिक अस्थमा इत्यादि की समस्या रही हो तो संभव है कि शिशु को भी किसी खास हर्ब से ऐलर्जी हो. ऐसे में डाक्टर की सलाह से ही बेबी स्किन केयर उत्पाद खरीदें.

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2. गरमी में बेबी मसाज

कई नई मांएं इस डर से गरमी में शिशु की मालिश करना बंद कर देती हैं कि कहीं उसे हीट रैशेज न हो जाएं. ऐसा कतई न करें, क्योंकि मालिश हड्डियों को मजबूत बनाने के साथसाथ शिशु के नर्वस सिस्टम को भी फायदा पहुंचाती है. हां, इस मौसम में मालिश के लिए नारियल तेल, औलिव औयल या फिर बाजार में मौजूद कोई भी हलका मसाज औयल इस्तेमाल करें, साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि उसे नहलाते समय तेल उस के शरीर से पूरी तरह निकल जाए. ऐसा न होने पर उस के रोमछिद्र बंद हो सकते हैं और उसे हीट रैशेज की समस्या हो सकती है.

3. बेबी ड्रैस ऐंड रूम टैंपरेचर

आप को यह नई बात लग सकती है, मगर इस का ध्यान रखना जरूरी है. इस के लिए बारबार रूम टैंपरेचर चैक करने की जरूरत नहीं है, बस उसे ब्रीदिंग फैब्रिक वाले कपड़े पहनाएं. शिशु हैड और फेस के जरीए हीट रिलीज कर बौडी टैंपरेचर को नियंत्रित करता है, इसलिए उसे सुलाते समय उस का सिर और चेहरा कवर न करें. ऐसा करने से वह ओवरहीट हो सकता है. इस का शिशु की स्किन पर भी गहरा असर पड़ता है. सौफ्ट फैब्रिक न होने से जहां शिशु को स्किन इरिटेशन की समस्या हो सकती है, वहीं कमरा ज्यादा ठंडा होने से उस की स्किन ड्राई भी हो सकती है.

4. स्किन हाइजीन के लिए वाइप्स

ज्यादातर मांएं नवजात को ब्रैस्ट फीड कराने, डायपर बदलने या उस का मलमूत्र साफ करने के लिए कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. ऐसा करना न सिर्फ शिशु के हाइजीन के लिए खतरनाक है, बल्कि उस की कोमल स्किन को भी नुकसान पहुंचाता है. कई बार तो सुबह से ले कर शाम तक शिशु के गले में एक ही बिब बंधा रहता है, जिस का इस्तेमाल दिनभर उस का मुंह साफ करने के लिए किया जाता है. ये सभी विकल्प शिशु की स्किन से कोमलता को छीन लेते हैं और उसे बैक्टीरिया के संपर्क में ला देते हैं. आजकल बाजार में खासतौर पर नवजात के लिए तैयार किए गए बेबी वेट वाइप्स उपलब्ध हैं, जो उस की स्किन को बिना नुकसान पहुंचाए उसे साफ करते हैं. इन के इस्तेमाल से शिशु की स्किन पर रैशेज भी नहीं पड़ते.

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ध्यान रखें कि जन्म से 1 साल तक नवजात की स्किन बेहद कोमल होती है और छोटीमोटी स्किन संबंधी समस्याओं के लिए स्किन बैरियर बना रही होती है. अत: इस दौरान उस की स्किन की ऐक्स्ट्रा केयर न की जाए तो उसे स्किन से जुड़ी कौमन प्रौब्लम्स का शिकार होना पड़ सकता है.

नवजात बच्चे की सही ग्रोथ के लिए मददगार है रागी

हर मां अपने बच्चे को कुछ ऐसा खिलाना चाहती है जिसमें प्रोटीन, कौर्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, आयरन, फाइबर सरीखे तमाम जरूरी पोषक तत्व हो, जिसे खाकर बच्चे को संपूर्ण पोषण मिलें और बच्चा सेहतमंद रहे. अगर आप भी कुछ ऐसी ही खोज में हैं, तो रागी सबसे बेहतरीन विकल्प है, जिसे आप विभिन्न तरीकों से अपने बच्चे की डाइट में शामिल कर सकती हैं. शैली मेहरा (होममेकर) कहती हैं कि अपनी बेटी को उसके पहले आहार (दूध छूटने के बाद) से ही मैं ने रागी खिलाना शुरू कर दिया था क्योंकि मुझे मेरी दादी ने इसके उच्च पौष्टिक गुणों के बारे में बताया था और इसे अपनी बेटी को खिलाने के बाद मुझे उस के पोषण से जुड़ी कोई चिंता नहीं होती है.

बाल चिकित्सक डा. संजय निरंजन कहते हैं कि रागी कई लाभ और पौष्टिक गुणों के कारण एक अनोखा अनाज है. आप बच्चे को कई तरह से रागी खिला सकती हैं. रागी में महत्वपूर्ण अमीनो एसिड जैसे आइसोल्यूसिन, ल्यूसिन, मेथिओनीन एवं फिनाइल एलिनीन होते हैं जो स्टार्च वाले अन्य खा- पदार्थों जैसे चावल में नही होते हैं.

कैल्शियम से भरपूर

आपने डाक्टर को यह कहते सुना होगा कि बच्चों को कैल्शियम से भरपूर आहार देना चाहिए क्योंकि बढ़ते बच्चे को कैल्शियम की जरूरत होती है. कैल्शियम बच्चों की हडिड्यों व दांतों को मजबूत बनाने के साथ लंबाई बढ़ाने में भी मदद करता है, इसलिए बच्चे को ऐसा आहार देना जरूरी है, जो कैल्शियम से भरपूर हो और रागी उन्हीं में से एक है, जो बच्चों में हड्डी के फ्रैक्चर के जोखिम को कम करने और हड्डियों की समस्याओं को दूर रखने में मदद करती है और बच्चों में कैल्शियम की कमी को पूरा करती है.

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आयरन की न होने दे कमी

बच्चे के लिए आयरन बहुत आवश्यक होता है क्योंकि आयरन की कमी से बच्चे में रक्तलपता रोग हो सकता है, इसलिए जरूरी है कि दो साल की उम्र तक बच्चे को अधिक आयरन वाले आहार दें. वैसे कुछ ऐसे खा- पदार्थ होते हैं, जो शरीर में आयरन की कमी को पूरा करते हैं और रागी उन्ही में से एक है, क्योंकि इस के सेवन से शरीर में खून की कमी नहीं होती है. यह हीमोग्लोबिन के लेवल को भी बढ़ाने का काम करता है. इसे खाने से बच्चे में स्ट्रेस, डिप्रेशन, अनिद्रा की समस्या भी घट जाती है, इसमें मौजूद एंटीऔक्सीडेंट्स, ट्रिप्टोफेन और अमीनो एसिड प्राकृतिक रूप से तनाव से छुटकारा दिलाते हैं.

कब्ज से राहत दिलाए

छोटे बच्चों में कब्ज होते ही उन्हें पेट दर्द की समस्या हो जाती है. लेकिन बच्चों को रागी खिलाने से उन्हें कब्ज नहीं बनती है क्योंकि रागी में फाइबर की मात्रा अधिक होती है और फाइबरयुक्त आहार के सेवन से कब्ज और अपच में सहायता मिलती है.

भूख को करें कम

कई बार बिना भूख के भी बच्चे खाना मांगते हैं और मोटापे के शिकार हो जाते हैं. लेकिन रागी खाने से आपके बच्चे की बार-बार खाना मांगने की आदत छूट सकती है क्योंकि रागी में ट्राइपोफान एमिनो एसिड होता है, जो भूख को कम करता है और बच्चे के स्वास्य्ं को बेहतर बनाता है.

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ताकि बच्चा ले पूरी नींद

दूध पी लेने भर से बच्चे का पेट नहीं भरता है, बल्कि पेट भरने के लिए बच्चे को ठोस आहार खिलाना पड़ता है और रागी से बेहतर और सेहतमंद आहार भला क्या होगा, जिसे खाकर बच्चे का पेट भरे और बच्चा लंबे समय तक सोए.

इम्यूनिटी रहे मजबूत

अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होनी चाहिए, तो उसे रागी से बने आहार खिलाइए क्योंकि इसमें उच्च पोषक तत्व होते हैं, जो इम्यूनिटी मजबूत करते हैं और बच्चे को अंदर से मजबूत बनाते हैं.

रागी एक फायदे अनेक

रागी को अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कि बिहार में रागी को मडुआ तो अंग्रेजी में इसे फिंगर मिलेट कहा जाता है, जिस तरह से इसके नाम अनेक एक उसी तरह से इसमें गुण भी अनेक है.

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– 6 महीने के बाद बच्चे को ठोस आहार खिलाना जरूरी होता है और आप अपने बच्चे को रागी से बना दलिया खिला सकती हैं क्योंकि यह शिशु के लिए लाभप्रद होता है, जो पौषक तत्वों से भरपूर होता है.

– जहां रागी शिशुओं की पाचन शक्ति को सही रखती है, वहीं इसमें मौजूद कैल्शियम और आयरन विकास में सहायक है.

– मां का दूध छूटने के बाद रागी से बनी खिचड़ी, हल्वा बच्चे को खिलाने के लिए अच्छे विकल्प हैं.

– दूध पिलाने वाली मां भी रागी को अपने आहार में शामिल कर सकती हैं.

6 टिप्स: ऐसे करें न्यू बौर्न बेबी की सुरक्षित देखभाल

बच्चे की सुरक्षा की बात करें, तो यह शब्द हर माता-पिता की लिस्ट में सबसे पहले नंबर पर आता है, अब सुरक्षा किस चीज से और कैसे है, यह अलग-अलग अवस्था पर निर्भर करता है. दुनिया के सभी माता-पिता अपने बच्चे के लिए बेहतर से बेहतर उत्पाद चाहते हैं, चाहे वो खिलौने हों, कपड़े हों या फिर बेबी केयर प्रोडक्ट्स ही क्यों न हों. लेकिन आज के समय वे कैमिकल युक्त मौजूदा बेबी केयर उत्पादों को उपयोग करते हुए डरते हैं और उसे लेने से पहले दस बार सोचते हैं कि क्या ये हमारे बच्चे के लिए सुरक्षित हैं.

ऐसा ही कुछ वरूण और गजल के साथ भी हुआ, जिन्होंने मार्केट में मौजूद बेबी केयर उत्पादों पर गहराई से रिसर्च किया और शिशु के लिए मौजूद लोशन, शैम्पू, पाउडर आदि में भरपूर टॉक्सिन को पाया जो शिशु के लिए हानिकारक होते हैं. इसे देख दोनों को अपने बच्चे के साथ उन तमाम बच्चों की चिंता होने लगी जिन्हें ये जानते थे और तब इन्होंने इन बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को देखते हुए ऐसे बेबी केयर प्रोडक्ट्स बनाने का फैसला किया जो पूरी तरह से सुरक्षित और टौक्सिन फ्री हैं और इस तरह से ममाअर्थ का जन्म हुआ.

ममाअर्थ हर अभिभावक का एक ऐसा साथी है, जो आपको समझता है, आपकी परेशानियों को जानता है और उन्हें हल करने का प्रयास करता है. इसलिए आप हम पर भरोसा कर सकते हैं, क्योंकि हम आपके बच्चे की फिक्र करते हैं.

ममाअर्थ एक ऐसा ब्रांड है, जो शिशुओं के लिए स्वस्थ और सुरक्षित उत्पाद बनाता है और प्रत्येक अभिभावक की उम्मीदों पर खरा उतरता है, जो अपने बच्चे की देखभाल के लिए कुछ खास व सुरक्षित चाहते हैं वो हम विश्वास करते हैं.

1. क्यों है खास

ममा अर्थ आपके बच्चे के लिए सुरक्षित, प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए उत्पाद बनाता है, जो 8000+टौक्सिन मुक्त हैं और सिलिकॉन, पराबेन, खनिज तेल, रंगों और कृत्रिम सुगंध जैसे हानिकारक रसायनों से पूरी तरह मुक्त हैं.

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ममाअर्थ की शुरूआत 5 मेड सेफ सर्टिफाइड बेबी प्रोडक्ट्स के साथ हुई थी, लेकिन आज हमारे 65 से अधिक उत्पाद हैं, जिनमें से 23 बेबी केयर रेंज हैं. हमारे उत्पाद आपके बच्चे का पूरी तरह से ख्याल रखते हैं. आप अपने शिशु के लिए स्किन, बाल या ओरल से जुड़े कोई भी उत्पाद चुन सकते हैं. हमें उम्मीद है कि इनके इस्तेमाल के बाद आप निराश नहीं होंगे.

2. माइल्ड हो साबुन

शिशु के लिए साबुन ऐसा होना चाहिए, जो स्किन को शुष्क नहीं बल्कि उसे साफ करने के साथ मौइश्चराइज भी करे और ममाअर्थ मौइश्चराइजिंग बाथिंग बार में वे सारे गुण हैं, जो आपके शिशु के साबुन में होने चाहिए. बकरी के दूध, दलिया और शिया बटर से बने साबुन में भरपूर नमी है, जो सिर से पैर तक के लिए सुरक्षित है. इससे नहाने के बाद आपके बच्चे की स्किन रूई जैसी कोमल बन जाएगी.

3. मुलायम स्किन के लिए

टैल्क-फ्री डस्टिंग पाउडर, ऐसा पाउडर है, जो फेफड़ों के काम को बंद नहीं होने देता क्योंकि इस डस्टिंग पाउडर में आरारोट और ओटमील पाउडर होता है, जो स्किन को शुष्क और चिकना बनाए रखने में मदद करता है. कैमोमाइल स्किन की समस्याओं को ठीक करता है. इस पाउडर की खास बात है कि यह रसोई में मौजूद सामग्री से बनाया गया है.

4. बैक्टीरिया को करें खत्म

बच्चों के कपड़े धोने के लिए ममाअर्थ डिटर्जेन्ट पाउडर ही इस्तेमाल करें क्योंकि इसमें प्राकृतिक तत्व और बायो-एंजाइम हैं, जो गंदगी और तेल को निकालते हैं. बैक्टीरिया को जड़ से खत्म करते हैं और प्लांट-बेस्ड सर्फेक्टेंट दाग को बड़े ही आराम से निकाल देते हैं और यह बच्चे के कपड़े और स्किन के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है. इसलिए जिद्दी दाग के बारे में नहीं, बल्कि अपने बच्चे को खाना खिलाने पर ध्यान दीजिए.

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5. स्किन रहे सुरक्षित

मच्छर पसीने की गंध से आकर्षित होते हैं और मच्छरों से बचने का एकमात्र तरीका है पसीने की गंध को छिपाना. ममाअर्थ बच्चों को मच्छरों से बचाने में सक्षम है. आप चाहे तो फैब्रिक रोल औन को कपड़ों या बच्चों के प्रैम पर लगाएं या उनके कपड़ों पर पैच चिपकाएं जो पूरी तरह से सुरक्षित हैं और डीट फ्री है. मच्छर भगाने वाले स्प्रे में नीलगिरी तेल है, जो एक प्राकृतिक मौइश्चराइजिंग एजेंट है, जो स्किन को पोषण देता है.

6. दर्द में तुरंत आराम

हींग तेल शिशुओं को आसानी से गैस पास करने में मदद करता है. यह पेट में दर्द और बेचैनी से राहत दिलाता है. इसमें मौजूद सौंफ का तेल, पेपरमिंट तेल, अदरक का तेल और डिल सीड तेल का विशेष मिश्रण पेट के दर्द और सूजन से राहत देता है. यह ईजी टमी रोल औन 1.5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए है, अगर बच्चे के पेट में दर्द है, तो उसे रोकने के लिए हर बार कुछ खिलाने के बाद इसे देना चाहिए.

बच्चों को ना पिलाएं प्लास्टिक बोतल से दूध, हो सकता हैं प्रोस्टेट कैंसर

एक शोध में कहा गया है कि बच्चों के प्लास्टिक बोतलों में पाया जाने वाला रसायन उनके बाद के जीवन में प्रोस्टेट कैंसर की संभावना को बढ़ा देता है. वैज्ञानिकों ने इसका परीक्षण चूहों के जन्मे बच्चों पर किया. परीक्षण में चूहों को बिसफेनोल-ए खिलाया गया. बिसफेनोल-ए रसायन का इस्तेमाल ज्यादातर प्लास्टिक के निर्माण में किया जाता है. परीक्षण में चूहों की उम्र बढ़ने के साथ ही उनमें पूर्व कैंसर कोशिकाओं के विकास होने की संभावना देखी गई.

वैज्ञानिकों का कहना है कि उनका यह निष्कर्ष बच्चों के स्वास्थ्य से सीधे तौर पर जुड़ा है. पत्रिका रिप्रोडक्टिव टॉक्सीकोलोजी के अनुसार वैज्ञानिकों की यह चेतावनी यूरोप के खाद्य पदार्थो की निगरानी करने वाली एजेंसी के उस बयान के बाद आया है,जिसमें कहा गया है कि इतनी रसायन की मात्रा मनुष्य रोजाना ग्रहण करता है.

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रसायन की इस मात्रा से नुकसान पहुंचने की संभावना काफी कम है. एक समाचार पत्र के मुताबिक फूट स्टैंडर्ड एजेंसी ने कहा है कि रसायन बिसफेनोल-ए में नुकसान करने की क्षमता नहीं है. लेकिन ताजा अध्ययन ने इस रसायन को लेकर चिंता जाहिर की है. इस रसायन का इस्तेमाल सीडी, धूप के चश्मे, प्लास्टिक चाकू, कांटे, मोबाइल फोन के निर्माण में किया जाता है.

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इलीनाएस विश्वविद्यालय के शोधकर्ता गेल प्रिंस ने बताया, “प्रोस्टेट स्वास्थ्य के बारे में जो नतीजे सामने आए हैं, वे बिसफेनोल-ए के संपर्क में आने वाले मनुष्य के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं.” उल्लेखनीय है कि बिसफेनोल-ए को पहले भी स्तन, प्रोस्टेट कैंसर और हृदयघात से जोड़कर देखा गया है.

 

महिलाओं में तेजी से बढ़ रही है बांझपन, ऐसे करें इलाज

औरतों के लिए मां बनना किसी सपने से कम नहीं होता. पर आज की खराब लाइफस्टाइल और खानपान के कारण महिलाओं को प्रेग्नेंसी में काफी परेशानियां आ रही हैं. इस खबर में हम आपको इनफर्टिलिटी के बारे में और इसके इलाज के बारे में बताएंगे. तो आइए शुरू करें.

क्या होती है इनफर्टिलिटी

इनफर्टिलिटी यानी बांझपन एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें महिलाओं को गर्भधारण करने में परेशानी होती है. अगर कोई महिला लगातार कोशिशों के बाद भी एक साल से अधिक समय तक कंसीव नहीं कर पा रही है तो इसका मतलब हुआ वो इनफर्टिलिटी या बांझपन का शिकार हो सकती है.

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क्या हो सकते हैं बांझपन के कारण

  • बांझपन के कई कारण हो सकते हैं कई बार खाने से जुड़ा कोई रोग या एन्‍डोमीट्रीओसिस (महिलाओं से संबंधित बीमारी जिसमें पीरियड्स और सेक्स के दौरान महिला को दर्द होता है) भी बांझपन की वजह बन सकता है.
  • इसके अलावा तनाव के कारण कई बार महिलाएं इनफर्टाइल हो जाती हैं.
  • हार्मोनल इमबैलेंस भी बांझपन का कारण हो सकता है. इस अवस्था में शरीर में सामान्‍य हार्मोनल परिवर्तन ना हो पाने की वजह से अंडाशय से अंडे नहीं निकल पाते हैं.
  • पीसीओएस भी एक वजह है महिलाओं के बांझपन का. इस बीमारी में फैलोपियन ट्यूब में सिस्‍ट बन जाते हैं जिसके कारण महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं.
  • शादी में होने वाली देरी भी इस परेशानी का कारण हो सकती है. आज महिलाएं शादी करने से पहले अपना करियर बनाना चाहती हैं, जिसके कारण उनकी शादी में देरी होती है. बता दें, महिलाओं की ओवरी 40 वर्ष की आयु के बाद काम करना बंद कर देती है. अगर इस उम्र से पहले किसी महिला की ओवरी काम करना बंद कर देती है तो इसकी वजह कोई बीमारी, सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन हो सकती है. अत्यधिक जंकफूड का सेवन करने से भी महिलाओं को बांझपन की परेशानी होती है.

कैसे बचें बांझपन से

जानकारों की माने तो बांझपन से बचने के लिए अपनी जीवनशैली को दुरुस्त करना जरूरी है. इसके अलावा महिलाओं को अपने खानपान पर भी खासा ध्यान देना होगा. फास्टफूड या जंकफूड का अत्यधिक इस्तेमाल उनकी इस परेशानी का कारण है.

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मौसमी फल और सब्जियों का सेवन करने से भी महिलाएं अपनी फर्टिलिटी बढ़ा सकती हैं. जानकारों का मानना है कि इस समस्या से बचने के लिए महिलाओं को अपने आहार में जस्ता, नाइट्रिक ऑक्साइड और विटामिन सी और विटामिन ई जैसे पोषक तत्वों को शामिल करना चाहिए.  इसके अलावा महिलाओं को अपनी दिनचर्या में वाटर इन्टेक भी बढ़ना चाहिए.

मां की इस एक गलती से बच्चे हो सकते हैं मोटापे का शिकार

धूम्रपान सेहत के लिए बेहद हानिकारक होता है, फिर चाहे वो पुरुष हो या महिला, धूम्रपान सभी की सेहत को बुरी तरह से प्रभावित करता है. खास कर के गर्भवती महिलाओं को और अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए. जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के वक्त स्मोकिंग करती हैं वो अपनी सेहत के साथ साथ अपने बच्चे की भी सेहत के साथ खिलवाड़ करती हैं. हाल ही में सामने आई एक स्टडी में ये बात सामने आई की जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के वक्त धूम्रपान करती हैं, उनके बच्चे बड़े हो कर मोटापे का शिकार हो सकते हैं.

क्या कहती है रिपोर्ट

स्टडी की रिपोर्ट में बताया गया है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती हैं उनके बच्चे की स्किन में केम्रीन प्रोटीन फैल जाता है. बता दें यह एक तरह का प्रोटीन है जो शरीर में फैट कोशिकाओं द्वारा बनता है.

smoking of mother causes obesity in child

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कहीं आपके प्रेग्नेंट ना होने का कारण आपके पति की ये कमी तो नहीं?

क्या कहती है पहले की रिपोर्ट

इसी मामले में आई पिछली रिपोर्ट में कहा गया था कि मोटापे से पीड़ित लोगों के ब्लड में केम्रीन प्रोटीन भारी मात्रा में पाया जाता है. जबकि हाल में इसपर आई नई रिपोर्ट के मुताबिक प्रेग्नेंसी के दौरान स्मोकिंग करने से बच्चों की जींस में बदलाव आते हैं, जो शरीर की फैट कोशिकाओं को बनाने में अहम भूमिका निभाती हैं.

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बच्चों की अच्छी सेहत के लिए इस खबर को पढ़ें

क्या कहते हैं जानकार

शोध में शामिल जानकारों की माने तो स्टडी के आधार पर ये कहा जा सकता है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती हैं, उनके बच्चों को मोटे होने का अधिक खतरा होता है. हालांकि, इसके पीछे के कारण की अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो पाई है.

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ये हैं सैंपल

बता दें, इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने 65 प्रेग्नेंट महिलाओं को शामिल किया. नतीजों में सामने आया कि स्टडी में शामिल आधी से ज्यादा प्रेग्नेंट महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती थीं.

अगर मां को है डायबिटिज तो बच्चों को हो सकती है ये बीमारी

आजकल लोगों में शुगर की शिकायत बेहद आम हो गई है. खानपान और खराब लाइफस्टाइल इसका सबसे बड़ा कारण है. ये परेशानी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है. ऐसे में गर्भवती महिलाएं जो शुगर से पीड़ित हैं उनके लिए खतरा और अधिक हो जाता है. हाल ही में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि गर्भवती महिलाएं जिनको शुगर की बीमारी है उनके बच्चों में अटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऔर्डर (एएसडी) का खतरा बढ़ जाता है.

क्या है अटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऔर्डर (एएसडी)

ये एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति को समाजिक संवाद स्थपित करने में परेशानी आती है और वो आत्मकेंद्रित बन जाता है.

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क्या कहता है शोध

इस शोध में ये बात सामने आई कि यह खतरा टाइप-1 और टाइप-2 के विकार और गर्भावस्था के दौरान मधुमेह से पीड़ित होने से संबंधित है. शोध में पाया गया कि एएसडी का खतरा मधुमेह रहित महिलाओं के बच्चों की तुलना में उन गर्भवती महिलाओं के बच्चों में ज्यादा होता है, जिनमें 26 सप्ताह के गर्भ के दौरान मधुमेह की शिकायत पाई जाती है.

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कौन हैं सैंपल

इस शोध में 4,19,425 बच्चों को शामिल किया गया, जिनका जन्म 28 से 44 सप्ताह के भीतर हुआ था. यह शोध 1995 से लेकर 2012 के दौरान किया गया.

प्रेग्नेंसी में नहीं आती है नींद? आजमाएं तुरंत असर करने वाली ये 6 आसान टिप्स

प्रेग्नेंसी का वक्त महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. इस दौरान महिलाओं को अधिक देखभाल की जरूरत होती है. इसके अलावा उन्हें अच्छी डाइट की जरूरत होती है ताकि जच्चा और बच्चा दोनों की सेहत पर किसी तरह का बुरा असर ना पड़े. इन्ही सारी जरूरी चीजों में अच्छी और पूरी नींद भी शामिल है.

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में ऐसे कई बदलाव होते हैं जो उनकी सेहत पर असर डालते हैं. इस दौरान महिलाओं के हार्मोन्स में भी बहुत से बदलाव होते हैं जो उनकी दिनचर्या पर बुरा असर डालते हैं. इन बदलावों का नतीजा है कि कई बार गर्भवती महिलाओं को घबराहट महसूस होती है. ऐसे में उन्हें नींद नहीं आती, जिसका सीधा असर उनके बच्चे पर भी होता है.

ऐसे में हम आपको कुछ टिप्स बताने वाले हैं, जिसे फौलो कर के प्रेग्नेंट महिलाएं सुकून की नींद ले सकेंगी.

  • सोने से पहले हल्का म्यूजिक सुने. इससे मन शांत रहता है और अच्छी नींद आती है.
  • प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने से कमर के बल ज्यादा देर तक ना सोएं. थोड़ी थोड़ी देर में करवट बदलते रहें. कोशिश करें कि अधिक समय बाईं करवट सोएं. इस तरह से सोने से ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है.
  • दिन भर हल्का ही सही, पर कुछ ना कुछ खाते रहें. खाली पेट रहने से जी मिचलता है.
  • सोने से पहले गुनगुने पानी से नहाएं. ऐसा करने से शरीर की थकान दूर होती है और आपको अच्छी नींद आएगी.
  • रात में हल्के खाने का सेवन करें. एसिडिटी और अपच की समस्या से बचने के लिए मसालेदार और तली हुई चीजों का सेवन ना करें.
  • हेल्दी रहने के लिए हल्के एक्सरसाइजेज करते रहें. इससे आपके पैर दर्द और ऐंठन कम होगी.
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