मां की दखलंदाज़ी जब ज्यादा हो जाए

हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट में एक मामले की सुनवाई हुई. यह मामला एक दंपत्ति का था. पति का कहना था कि शादी के कुछ महीने बाद से ही वह अपने इनलौज की हद से अधिक दखलंदाजी की वजह से पत्नी के साथ अपने रिश्ते में आई खटास से जूझ रहा था. हाईकोर्ट जज कैलाश गंभीर ने पति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए और तलाक की अर्जी स्वीकार करते हुए कहा कि लड़की के मांबाप को उस की शादी के बाद एक दूरी बना कर रखनी चाहिए ताकि बेटी खुशहाल वैवाहिक जीवन का आनंद ले सके. बेटी को घरेलू मामलों में मॉनिटर करते रहना उचित नहीं. बेटी की विवाहित जिंदगी में अभिभावक की दखलअंदाजी युगल दंपत्ति के अलग होने की मुख्य वजहो में एक है.

दरअसल ज्यादातर मां अपनी बेटी के बहुत करीब होती हैं. कुछ महिलाएं तो बेटी को सब से अच्छी दोस्त मानती हैं. दोनों एकदूसरे से दिल की हर बात शेयर करती हैं. मगर जब यह नजदीकी जरूरत से ज्यादा हो जाए तो युवा होती या विवाहित बेटी के जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित भी कर सकती है.

ऐसा ही कुछ हुआ गीता के साथ. गीता और उस की मां एकदूसरे के बहुत करीब थीं. बचपन और किशोरावस्था में तो सब कुछ ठीक चला मगर जब गीता हाई स्कूल और फिर कॉलेज में आई तो उसे हर चीज में मां की दखलअंदाजी परेशान करने लगी. वह मां से बहुत प्यार करती थी मगर उन से थोड़ी दूरी चाहती थी ताकि अपने व्यक्तित्व को सही विकास का अवसर दे सके.

इधर उस की मां हर वीकएंड पर उसे हॉस्टल से घर बुलाती और उस के पास जिन चीज़ों की कमी होती तुरंत वे चीज़ें ले कर आतीं. यही नहीं वह बेटी के कपड़े धोतीं, अलमारी साफ करतीं, उस के पासबुक वगैरह का हिसाब रखतीं, खानेपीने की चीजें बनातीं. जबकि गीता अब इतनी मैच्योर थी कि वह अपने सारे काम खुद कर सकती थी.

वैसे तो बेटी के लिए यह सब करने के पीछे मां का इंटेंशन केवल उस का ख्याल रखना था पर कहीं न कहीं मां बदले में बेटी का समय जरूर चाहती थी. गीता के पिता का व्यवहार उस की मां के प्रति उतना अच्छा नहीं था. मां गीता से अपनी सारी तकलीफें शेयर करना चाहती थीं. कई दफा उस के कंधे पर सर रख कर रो पड़ती थीं. गीता अपनी मां को इमोशनल सपोर्ट देती. इस के लिए कई दफा उसे अपने दोस्तों के साथ मस्ती करने का मौका छोड़ना पड़ता. ऐसी बातें गीता के व्यक्तित्व के विकास में बाधक बन रही थीं. उस की जिंदगी को प्रभावित कर रही थीं. मां के कारण गीता खुल कर जी नहीं पा रही थी.

बहुत सोचने के बाद गीता जानबूझ कर मां से थोड़ी दूरी बनाने लगी ताकि वीकेंड में दोस्तों के साथ कैंपस फन एंजॉय कर सके या कहीं घूमने जा सके. इस पर मां उस से ऐसे सवाल पूछने लगतीं कि गीता को अपराध बोध महसूस होता जैसे,” क्या दोस्त तुम्हारे लिए मुझ से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए?”

ऐसे में वह मां के लिए अपनी खुशियों का गला घोटने लगती ताकि मां को कंपनी दे सके. गीता की मां यह नहीं समझ पा रही थी कि ऐसा कर के वह अपनी बेटी के स्टेबल और हेल्दी एडल्ट बनने की राह में बाधा पैदा कर रही हैैं. मां का जरूरत से ज्यादा जुड़ाव न सिर्फ गीता की जिंदगी पर बुरा असर डाल रहा था बल्कि उन के रिश्ते को भी प्रभावित करने लगा था.

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हाल यह था कि थर्टीज़ में आ कर भी गीता शादी का फैसला नहीं ले सकी न ही कोई बॉयफ्रेंड ही उस की जिंदगी में आ सका. इन बातों का प्रभाव मां बेटी के रिश्ते पर पड़ा. धीरेधीरे गीता अपनी मां की तरफ से उदासीन होने लगी. वह मां को अवॉयड करने लगी. जब दोनों साथ होते तो भी गीता खामोशी से बैठी रहती. उसे एक काउंसलर की जरूरत महसूस होने लगी. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे.

शुरुआत में गीता के व्यवहार में आए परिवर्तन ने मां को बहुत परेशान कर दिया. वह रोने लगतीं और खुद को कोसतीं. समय के साथ मां को भी बात समझ आ गई कि उन्हें खुद से मतलब रखना चाहिए. वह अपनी बेटी के सहारे नहीं जी सकतीं.

तब मां ने समाज सेवा के कुछ कामों से जुड़ना शुरू किया. कुछ संस्थाओं की सदस्या बनीं और कुछ नए दोस्त बनाए. दोनों ने आपस में कुछ दूरियां बनाईं और अपनीअपनी जिंदगी जीने लगीं . इस से उन के रिश्ते में भी सहजता आने लगी. गीता मां का साथ पहले से ज्यादा इंजॉय करने लगी. अब उसे यह महसूस नहीं होता था कि मां के करीब रहना उस की मजबूरी है.

आप की बड़ी होती बेटी के व्यक्तित्व के विकास के लिए जरूरी है कि आप खुद को उस से थोड़ा दूर कर लें. अपनी बेटी से यह अपेक्षा कतई न रखें कि वह हमेशा आप की जिंदगी की परेशानियों का हिस्सा बनेगी या आप की भावनात्मक पीड़ा को आत्मसात करेगी. उसे अपने पिता या घर वालों के खिलाफ बातें न सुनाएं. याद रखें वह आप की थैरेपिस्ट नहीं जो आप अपने गमों का बोझ उस के सीने पर रखें.

इस बात का भी ख्याल रखें कि वह आप की बेटी है न कि आप उस की छोटी सी बच्ची है जिसे वह चुप कराती फिरे या इमोशनल सपोर्ट देती रहे. इसी तरह उस की जिंदगी को मॉनिटर करना भी छोड़ दीजिये. वह मैच्योर है और अपना भला बुरा खुद समझ सकती है. खासकर शादी के बाद उसे सिखाना बिलकुल छोड़ दीजिये.

मायके की धमकी

अमूमन ऐसा देखा जाता है कि यदि शादीशुदा लड़की के मांबाप थोड़ी अच्छी स्थिति में है तो लड़की की मां अपनी बेटी को हर वक्त घर छोड़ आने की सलाह देती रहती है. वह घर को जोड़ने नहीं बल्कि तोड़ने वाली बातें ज्यादा करती हैं और यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब एक ही बात को बारबार कहा जाए तो लड़की के मन में भी यह बात बैठ जाती है कि उस पर बहुत अत्याचार हो रहे हैं और उसे घर छोड़ कर चले जाना चाहिए या अपने पति को तलाक दे देना चाहिए. ऐसे में लड़कियां बात पीछे पति को मायके जाने की धमकी देने लेती हैं. कई बार लड़कियां मायके चली भी आती हैं और फिर धीरेधीरे वापस जाने के सारे रास्ते बंद होते जाते हैं. फिर बात तलाक या आत्महत्या तक पहुँच जाती है. जाहिर है कि इस तरह की जो वारदात होती है उस में कहीं न कहीं मां की जरुरत से ज्यादा दखलअंदाजी का हाथ जरूर होता.

मां के लिए कठिन है हालातों को समझना

ज्यादातर लड़कियों को ससुराल की बातें मां को बताने की आदत होती है. बेटी अपनी मां से सच कह रही है या झूठ और किस बात को अपनी सोच के हिसाब से कैसे मोल्ड कर के मां तक पहुंचा रही है इन बातों का बहुत असर पड़ता है. मां बेटी का पक्ष सुन कर किसी भी घटना को उसी अनुरूप गलत तरीके से इंटरप्रेट करती है और फिर उस हिसाब से रिएक्शन देती है. वह बेटी को समझाती है कि उसे क्या करना चाहिए. अपनी स्थिति कैसे मजबूत रखनी है.

इस तरह जो झगड़े घर में बहुत आसानी से सुलझ सकते हैं वे भी बहुत लंबे खिंच जाते हैं. कई दफा बेटी का घर भी टूट जाता है. यहां गलती मां की भी नहीं है क्योंकि जब बेटी ने मां को सारी बात ही नहीं बताई तो मां हकीकत कैसे जान पाएगी. गलती बेटी की है जो एकएक बात मां से डिसकस कर रही है. एक बार बेटियां ससुराल की बातें बताने लगती हैं तो मां भी खोदखोद कर पूछती हैं और बेटी की जिंदगी में अपनी दखल बढ़ाती जाती है. यह प्रवृत्ति सही नहीं. हर इंसान को अपनी लड़ाई खुद लड़नी चाहिए.

ऐसा नहीं है कि मां गलत कह रही है. मां अपने हिसाब से सही है. पर लड़की को यह समझना चाहिए कि वह अपनी परिस्थितियां ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकती है. उन परिस्थितियों को अपने हिसाब से भी ज्यादा अच्छे तरीके से हल कर सकती है. मां की सलाह पर अमल करते हुए उसे कई बार लेने के देने पड़ जाते हैं. कितने ही रिश्ते मां की जरुरत से ज्यादा दखलंदाज़ी की वजह से टूट जाते हैं. बात तलाक तक आ जाती है. बाद में सिवा पछतावे के कुछ भी हासिल नहीं होता. इसलिए कभी छोटीछोटी बातें अपनी मां को नहीं बतानी चाहिए.

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मां की दखलअंदाजी कितनी हो

1. मां को अपनी तकलीफ तभी बताएं जब आप उसे सह नहीं पा रही है. जब आप को वास्तव में कोई बड़ी समस्या हो, कोई बड़ी घटना घट जाए, कोई एक्सीडेंट हो जाए, तबियत खराब हो, दहेज़ उत्पीड़न किया जा रहा हो या ससुराल वालों के द्वारा किसी और तरह की मानसिक या शारीरिक पीड़ा पहुंचाई जा रही हो. ऐसे में हकीकत अपनी मां तक जरूर पहुंचाएं. लेकिन यदि आप अपने साथ हो रही समस्या की वजह खुद है तो उसे खुद ही सॉल्व करें. हमेशा पति या सास की गलती हो यह जरूरी नहीं. अपनी मां को ससुराल की बात तब बताएं जब आप ने अपनी तरफ से समस्या सुलझाने का प्रयास कर लिया हो पर आप को अब कोई रास्ता नजर न आ रहा हो या घरवालों का रिएक्शन गलत रहा हो.

2. अपनी मां को ससुराल की अच्छी बातें भी बताएं. घर में कोई आयोजन हो रहा है, किसी की तरक्की हुई है या और कोई ख़ुशी की बात है तो ऐसी चीज़ें अपनी मां से जरूर शेयर करें. सास या पति ने आप के लिए कुछ अच्छा किया हो, ननद ने आप का ख़याल रखा हो, ससुर बेटियों सा प्यार लुटा रहे हों तो ऐसी बातें बढ़ाचढ़ा कर बताएं न कि झगड़े. माँ को वे बातें बताएं जिस से आप के ससुराल का नाम हो न कि रुसवाई. हर घर की कुछ खूबियां होती हैं तो कुछ कमजोरियां. अपने परिवार की कमजोरियां बाहर न पहुचाएं.

जब दखल ज्यादा हो जाए

देखा जाए तो दंपतियों के बीच होने वाले अलगाव के 60 से 80 फीसदी मामले में मायके पक्ष के अधिक दखल से उत्पन्न विवाद होते हैं. कई बार दंपती साथ रहना चाहते हैं लेकिन ससुराल और मायके वाले अपनी प्रतिष्ठा की बात पर अड़ जाते हैं और रिश्ता टूट जाता है.

कई बार परिवारों के बीच विवाद इतना बढ़ जाता है कि पतिपत्नी चाहते हुए भी अपनी बात नहीं रख पाते हैं और परिवार की भावनाओं में बह कर रिश्ता तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं.

नोएडा में रहने वाली 36 वर्षीया प्रिया को उस का पति सुधीर गुप्ता काफी परेशान करता था और अक्सर मारपीट भी करता रहता था. इस मामले में प्रिया की मां अक्सर फोन कर के अपनी बेटी को समझाती थी लेकिन फिर भी घर में विवाद और बढ़ता गया. जिस से दोनों ने अलग होने की ठान ली. पुलिस के पास मामला पहुंचा तो पति ने उन के आगे अपना दुखड़ा रोते हुए बताया,” मेरी सास मेरी पत्नी से बात करना बंद कर दें तो मुझ को कोई परेशानी नहीं है. मेरी पत्नी एकएक बात अपनी मां को बताती हैं. ऐसे में सासु मां अपनी बेटी को समझाने के बजाय उसे और शह दे देती हैं जिस से मेरे अंदर सहने की क्षमता कम हो जाती है. वह मायके का सपोर्ट मिलने पर लड़ने पर आमदा रहती हैं. अनबन होने पर मायके जाने की धमकी देती हैं. इसी वजह से मैं चिढ़ जाता हूँ. ”

बात प्रिया की समझ में आ गई. उस ने मां को बीच में लाना छोड़ दिया. अब दोनों काफी समय से बिना झगड़े एक साथ रह रहे हैं. दरअसल कई बार माँ की दखल कहीं न कहीं पतिपत्नी के झगड़े की आग में घी का काम करती है. बात दंपति के बीच रहे तो मामला आसानी से सुलझ जाता है. इसी तरह

मां रखे इन बातों का ख़याल

यदि आप को लगे कि आप अपनी बेटी के ज्यादा करीब हो गई हैं जिस से वह कंफर्टेबल महसूस नहीं कर रही या उदासीन हो गई है तो समझ जाइए कि समय आ गया है जब आप को उस से थोड़ी दूरी बना कर खुद से जुड़ना है. खुद को समय देना है. अपने सपनों और उम्मीदों को पंख देना है. इस के लिए अपने दोस्तों और परिचितों की संख्या बढ़ाइए. सामाजिक कार्यों में मन लगाइए. अपनी हॉबी को अपनाइये.

अपने रिश्ते में संतुलन बना कर रखें. हर वक्त उस की जिंदगी में दखल देना उचित नहीं. पर थोड़ी दूरी कायम रखते हुए भी यह विश्वास जरूर दिलाएं कि जब उसे मां की जरूरत होगी तो आप उस के लिए हाजिर रहेंगी. जब उसे अपना दर्द बांटना होगा, कुछ कहना होगा तब आप सुनने और सलाह देने के लिए तैयार मिलेंगी. वस्तुतः मांबेटी दोनों एकदूसरे को सपोर्ट करते हुए भी थोड़ी दूरी बना कर अपनी जिंदगी बेहतर ढंग से जीना सीख सकती हैं.

शादी के बाद लड़की को ससुराल में अपनी जगह बनाने में कुछ समय लगता है. उसे वह समय दीजिए. उसे बारबार मायके न बुलाएं. रोज फ़ोन कर के उस की जिंदगी की हर छोटीबड़ी बात जानने का प्रयास न करें. हर बात पर अपनी सलाह न दे. वरना ऐसा करना उस की आदत बन जायेगी. विवाह के बाद उस का असली घर ससुराल है. उसे ससुराल में घुलमिल जाने का मौका दें.

विवाह के पश्चात् बेटी की आवश्यकता से अधिक देखभाल न करें. उस की सहायता करें पर उन्हीं परिस्थितियों में जब उसे अपने परिवार से सहायता न मिल रही हो.

बेटी के गृहस्थ जीवन में ज्यादा हस्तक्षेप न करें. बेटी को अपनी समस्याएं उस के अपने हिसाब से सुलझाने को प्रोत्साहित करें. ध्यान रहे आप अपनी सीखों से अपनी बेटी की गृहस्थी को सुखमय भी बना सकती हैं और उजाड़ भी सकती हैं. इसलिए अपनी बेटी की सोच को बड़ा व सकारात्मक बनाने की कोशिश करें ताकि उस के ससुराल वाले उस पर नाज कर सकें.

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यदि मां को दखल देनी ही है तो पॉजिटिव वे में देनी चाहिए. जैसे यदि बेटी कह रही है कि वह झगड़े की वजह से अपसेट है और घर छोड़ कर आ रही है तो मां का फर्ज है कि बेटी को जल्दबाजी न करने और धैर्य रखने की बात समझाए. ऐसे में यदि वह मां की बात मान तुरंत कोई बड़ा कदम न उठा कर थोड़ा धैर्य रखती है तो पति को खुद अपनी गलती महसूस होगी और वह उस के प्रति नम्र हो जाएगा. बात आगे नहीं बढ़ेगी.

मां जब बेटी से मिलने उस के घर जाएं तो बेटी के कमरे में ही बैठे रहने के बजाय घर के सभी सदस्यों के साथ बात करें. वरना ससुराल वालो को लगेगा कि आप बेटी को उन के खिलाफ सिखापढ़ा रही हैं.

बेटी को उस की सास या ननद के खिलाफ न भड़काएं. उसे हमेशा सीख दें कि उस का व्यवहार अपनी ननद से बहन की तरह और सास से बेटी की तरह ही होना चाहिए.

अगर आप का दामाद अपने परिवार वालों पर कोई खर्चा करता है तो अपनी बेटी को दामाद के इस खर्चे में कटौती करने के लिए न उकसाएं. जब आप की बेटी अपने भाईबहनों पर खर्च कर सकती है तो आप का दामाद अपने परिवार पर खर्च क्यों नहीं कर सकता.

मैं अभी गर्भवती नहीं होना चाहती?

सवाल-

मैं 25 साल की शादीशुदा महिला हूं. कोरोना वायरस से जहां पूरा विश्व परेशान है और डर का माहौल है, मैं अभी गर्भवती नहीं होना चाहती. पति भी फिलहाल बच्चा नहीं चाहते. मगर समस्या मेरी सासूमां को ले कर है. वे चाहती हैं कि उन्हें पोता या पोती हो और घर में किलकारियां गूंजे. कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

शादी के बाद फिलहाल बच्चा न हो, इस का निर्णय लेना कि सभी दंपति का अधिकार होता है. अगर आप व आप के पति ऐसा नहीं चाहते तो यही सही है. रही बात कोरोना के सय गर्भधारण व बच्चा जनने की बात तो इस का कोरोना से कोई लेनादेना एक दंपती का अधिकार है. अगर ऐसा कोई डर का माहौल होता तो देश के अस्पतालों में अभी डिलीवरी ही नहीं कराई जाती. अगर इस बात को ले कर मन में किसी तरह का भय है तो इस भय को मन से निकाल दें. फिलहाल आप दोनों बच्चा नहीं चाहते तो इस के लिए सासूमां से बात कर सकती हैं कि आप मानसिक रूप से अभी इस के लिए तैयार नहीं हैं. वे भी एक औरत हैं और कतई नहीं चाहेंगी कि बिना आप की मरजी से आप गर्भधारण करें.

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शादी के बाद कपल्स सारी कोशिश करके भी मां-बाप नहीं बन पाते हैं तो इसकी वजह इन्फर्टिलिटी यानी बांझपन को माना जाता है. इसमें बच्चा पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है या फिर पूरी तरह खत्म हो जाती है.

आमतौर पर शादी के एक से डेढ़ साल बाद अगर बिना किसी प्रोटेक्शन के कपल्स रिलेशनशिप बनाने के बाद भी मां-बाप नहीं बन पाते हैं तो मेडिकली इन्हें इन्फर्टिलिटी का शिकार माना जाता है. इसमें समस्या महिला और पुरुष दोनों में हो सकती है.

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