बच्चों में मधुमेह के लक्षणों को कैसे पहचान सकते है?

सवाल

मेरे बेटे की उम्र 2 साल है. हमारे परिवार में मधुमेह की समस्या है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या मेरे बच्चे को भी यह समस्या हो सकती हैअपने बच्चे में मैं मधुमेह के लक्षणों को कैसे पहचान सकती हूं?

 जवाब

बच्चों में टाइप1 और टाइप 2 डायबिटीज होने के अलगअलग कारण और प्रभाव हो सकते हैं. टाइप 1 डायबिटीज तब होती है जब बच्चे का शरीर इंसुलिन का उत्पादन करने में सक्षम नहीं होता है. इंसुलिन एक हारमोन है जो आप के शरीर में ब्लड शुगर लैवल को नियंत्रित करने में मदद करता है. बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज को ‘जुविनाइल डायबिटीज’ या ‘इंसुलिन डिपैंडैंट डायबिटीज’ मेलिटस के रूप में भी जाना जाता था. यह एक ‘औटोइम्यून क्रोनिक कंडीशन’ है.

बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज आप के बच्चे की जीवनशैली और डायबिटीज का पारिवारिक इतिहास (माता या पिता को डायबिटीज होना) के कारण हो सकती है.

सवाल

मेरे बेटे की आंखों में आए दिन कोई न कोई समस्या रहती थी. डाक्टरी जांच करने पर यह पता चला कि उसे डायबिटीज है जिस का असर उस की आंखों पर पड़ रहा है. तो क्या डायबिटीज से ऐसी ही और स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैंयदि हां तो उन का उपचार क्या है?

 जवाब

अगर आप के बच्चे को टाइप 2 डायबिटीज है तो आंखों की समस्याएं (अंधापन सहित) होना इस का एक लक्षण हो सकता है, लेकिन इस के साथ टाइप 2 डायबिटीज से होने वाली कुछ अन्य समस्याएं भी हैं जैसेकि हाई कोलैस्ट्रौल, तंत्रिका क्षति (नर्व डैमेज), गुरदे की बीमारी, स्ट्रोक, हृदय और रक्तवाहिका क्षति (हार्ट ऐंड ब्लड वैसल डैमेज) आदि शामिल हैं. इसलिए इन समस्याओं से बचने के लिए उन के ब्लड शुगर लैवल को निर्धारित सीमा के अंदर रखना जरूरी है.

सवाल

 मैं गर्भावस्था के 7वें महीने में हूं. मैं ने सुना है की इस अवस्था में गैस्टेशनल डायबिटीज होने की बहुत संभावना होती है. मेरा सवाल यह है कि यदि गर्भावस्था के दौरान मां से बच्चे को डायबिटीज हो जाती है तो उस के क्या लक्षण होते हैं?

 जवाब

हर व्यक्ति में डायबिटीज के अलगअलग लक्षण देखे जा सकते हैं. इस कारण हमें टाइप 2 डायबिटीज होने पर अलगअलग समस्या का सामना करना पड़ सकता है. अब अगर बात की जाए बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज की तो उस के कुछ सामान्य लक्षण हैं जैसे धुंधली नजर, का धुंधला होना, भूख बढ़ना, बारबार पेशाब आना, थकान, त्वचा का काला पड़ना, तेजी से वजन घटना आदि.

. -डा. नवनीत अग्रवाल

चीफ क्लीनिकल औफिसर, बीटओ.

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डायबिटीज और प्रजनन: क्या आप डायबिटीज के साथ गर्भधारण कर सकते हैं?

एक परिवार की शुरूआत करना, जीवन के सबसे खुशनुमा सफर में से एक होता है! वैसे यह थकाने वाला भी हो सकता है. इस पर हैरानी होना, स्वाभाविक बात है कि क्या यह पुरानी बीमारी आपकी प्रजनन यात्रा को प्रभावित कर सकती है, खासकर यदि आप टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित हैं.

डायबिटीज आप पर और आपके बच्चे के लिये गंभीर परिणाम खड़ी कर सकती है और इसलिए जानकारी हासिल करना और सावधानी बरतना, आपके प्रजनन को आसान बनाने के लिये बेहद जरूरी हो जाता है. अच्छी बात ये है कि समय से पहले इसके बारे में प्लानिंग करने और अपने डॉक्टर की मदद लेने से इससे जुड़े जोखिमों को काफी हद तक कम करने में मदद मिल सकती है. इसके परिणामस्वरूप, आप हेल्दी प्रेग्नेंसी का अनुभव ले पाएंगी और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे पाएंगी.

डॉ.अस्वति नायर,आईवीएफ स्पेशलिस्ट, नोवा साउथेंड आईवीएफ एंड फटिर्लिटी, राजौरी गार्डन की बता रही हैं टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज के साथ प्रेग्नेंसी के लिये कैसे तैयारी करें.

गर्भधारण करने का प्रयास शुरू करने के कम से कम 6 महीने पहले अपने गाइनकोलॉजिस्ट या फर्टिलिटी विशेषज्ञ से परामर्श लें. उनसे पूछें कि कैसे ब्लड शुगर को अच्छी तरह नियंत्रित रखा जा सकता है, वहीं जरूरी सप्लीमेंट जैसे फोलेट के बारे में पूछें. आपको दवाइयां बदलने को लेकर भी सलाह मिल सकती है.

यदि आपकी सेहत अच्छी है, आप गर्भवती हैं और आपका डायबिटीज पूरी तरह नियंत्रित है तो एक सामान्य प्रेग्नेंसी और प्रसव की बेहतर संभावना है. यदि प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज अच्छी तरह नियंत्रित ना हो तो आपको आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं और यह आपके बच्चे के लिये भी खतरनाक हो सकता है.

डायबिटीज किस तरह प्रजनन को प्रभावित करता है?
डायबिटीज, महिलाओं और पुरुषों दोनों में ही प्रजनन को प्रभावित करता है और इसका संबंध खराब स्पर्म क्वालिटी, एम्ब्रयो का क्षतिग्रस्‍त होना और डीएनए के क्षतिग्रस्‍त होने से है. डायबिटीज की वजह से होने वाला हॉर्मोनल अवरोध, इम्प्लांटेशन और गर्भधारण में होने वाली देरी का प्रमुख कारण है.

डायबिटीज, महिला प्रजनन अंगों की नसों और रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करके यौन रोग का कारण बन सकता है.यह मासिक धर्म चक्र में व्यवधान पैदा कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप समय से पहले मोनोपॉज हो सकता है. डायबिटीज, इस प्रकार एक महिला की प्रजनन अवधि को कम कर देता है.इसके अलावा, ब्लड ग्लूकोज का उच्च स्तर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर से इरेक्शन की समस्या होती है.इसे इरेक्टाइल डिसफंक्शन कहा जाता है. डायबिटीज मेलिटस, स्पर्म में डीएनए के विखंडन को बढ़ा सकता है, जोकि बेहद खतरनाक है क्योंकि यह गर्भधारण की संभावना को कम कर सकता है और कुछ मामलों में गर्भपात के जोखिम को बढ़ा सकता है. खंडित शुक्राणु द्वारा निषेचित अंडा एक अस्वास्थ्यकर भ्रूण के जन्म का कारण बनता है.

एक स्वस्थ गर्भावस्था का सफर-
टाइप 1 वाली कुछ महिलाओं को उनके इंसुलिन डोज को बदलने या फिर इंसुलिन पंप लेने की सलाह दी जा सकती है. वहीं, टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं को प्रेग्नेंसी के शुरूआती चरणों में बिना किसी दवा के केवल आहार के माध्यम से अपना ब्लड शुगर नियंत्रित करने की सलाह दी जा सकती है. नीचे, लाइफस्टाइल में बदलाव के कुछ और कारक दिए गए हैं जोकि आपको अपने डायबिटीज को नियंत्रित करने में थोड़ी और मदद कर सकते हैं.
1. आहार विशेषज्ञ/डाइटिशियन से सलाह लेना
2. मादक पदार्थ (धूम्रपान, शराब) का इस्तेमाल करने से बचना
3. दवाओं में बदलाव
4.विटामिन और मिनरल सप्लीमेंट लेना

सेहतमंद गर्भावस्था सुनिश्चित करने के लिये नीचे कुछ कारक दिए गए हैं, जिन्हें आपको नियंत्रित करने की जरूरत है.

ब्लड ग्लूकोज का स्तर: हो सकता है आप पहले से ही अपना अच्छी तरह ख्याल रख रहे हों, लेकिन गर्भावस्था के लिये यह और भी जरूरी हो जाता है. यह आपके और आपके बच्चे की सेहत के लिये महत्वपूर्ण है कि आपके ब्लड ग्लूकोज का स्तर स्थिर रहे.उपवास (भोजन से पहले) के दौरान आदर्श ब्लड ग्लूकोज का स्तर 4.0 और 5.5 mmol/L के बीच होता है और भोजन के 2 घंटे बाद 7.0 mmol/L से कम होता है. यदि आपको डायबिटीज है, तो स्वस्थ रहने और स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिये गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान जितना हो सके अपने ब्लड ग्लूकोज के स्तर को सामान्य रखना जरूरी है.

HbA1c स्तर:
आपके प्रजनन के शुरूआत में, आपके HbA1c का स्तर आवश्यक रेंज के अंदर रहना जरूरी है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि HbA1c का अधिक स्तर आपके बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता है. खासातौर से गर्भावस्था की पहली तिमाही (पहले आठ हफ्ते) के दौरान यह महत्वपूर्ण है, जब बच्चे के अंगे विकसित हो रहे होते हैं.

HbA1c के स्तर को 48 mmol/mol से नीचे रखना बेहद आवश्यक है.यदि इसका स्तर 48 mmol/mol से अधिक हो जाता है तो खतरे को कम करने के लिये आपको सावधानियां बरतनी चाहिए.

फॉलिक एसिड:
अपने बच्चे के खतरों को कम करने के लिये गर्भधारण करने से पहले कम से कम 12 हफ्तों के लिये हर रोज 5 एमजी डोज लेना जरूरी है.

आहार और एक्सरसाइज:
एक्सरसाइज और संतुलित आहार, ब्लड ग्लूकोज के लक्ष्य तक पहुंचने में आपकी मदद कर सकते हैं. शारीरिक सक्रियता, तनाव को दूर कर, आपके दिल और हड्डियों को मजबूती देकर, मांसपेशियों की ताकत बढ़ाकर और आपके जोड़ों को लचीला बनाए रखकर, एक सेहतमंद ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है.गर्भावस्था के दौरान हर दिन 30 मिनट का ब्रिस्क वॉक भी रक्तसंचार को नियमित बनाए रखने का एक बेहतरीन तरीका है. अपनी मेडिकल टीम से बात करें कि वो आपको प्रभावी गतिविधियों के बारे में बताएं जोकि गर्भावस्था के दौरान आपके लिये सबसे अच्छे हैं.

डायबिटीज के चपेट में परिवार भी

भारत में हर व्यक्ति किसी न किसी ऐसे व्यक्ति को जानता होगा जिसे डायबिटीज की बीमारी होगी क्योंकि यहां 6.20 करोड़ लोग इस मर्ज से पीडि़त हैं. अनुमान है कि 2030 तक पीडि़तों की संख्या 10 करोड़ तक पहुंच जाएगी. अस्वस्थ खानपान, शारीरिक व्यायाम की कमी और तनाव डायबिटीज का मुख्य कारण बनते हैं.

इस बीमारी से भविष्य में मरीजों के साथसाथ उन के परिवारों और देश पर पड़ने वाले आर्थिक व मानसिक बोझ को देखते हुए इस से बचाव और समय पर इस का प्रबंधन बेहद जरूरी है. एक अध्ययन के मुताबिक, डायबिटीज और इस से जुड़ी बीमारियों के इलाज व मैनेजमैंट का खर्च भारत में 73 अरब रुपए है.

पेनक्रियाज जब आवश्यक इंसुलिन नहीं बनाती या शरीर जब बने हुए इनसुलिन का उचित प्रयोग नहीं कर पाता तो डायबिटीज होती है जो कि एक लंबी बीमारी है. इंसुलिन वह हार्मोन है जो ब्लडशुगर को नियंत्रित करता है. अनियंत्रित डायबिटीज की वजह से आमतौर पर ब्लडशुगर की समस्या हो जाती है. इस के चलते आगे चल कर शरीर के नाड़ी तंत्र और रक्त धमनियों सहित कई अहम अंगों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है.

रोग, रोगी और बचाव

डायबिटीज बचपन से ले कर बुढ़ापे तक किसी भी उम्र में हो सकती है. गोरों के मुकाबले भारतीयों में यह बीमारी 10-15 साल जल्दी हो जाती है. चूंकि इस का अभी तक कोई पक्का इलाज नहीं है और नियमित इलाज पूरी उम्र चलता है, इसलिए बाद में दवा पर निर्भर होने से बेहतर है अभी से बचाव

कर लिया जाए. जीवनशैली में मामूली बदलाव कर के डायबिटीज होने के खतरे को कम किया जा सकता है, कुछ मामलों में तो शुरुआती दौर में इसे ठीक भी किया गया है.

परिवार पर मार

दूसरी बीमारियों के मुकाबले डायबिटीज एक पारिवारिक रोग सरीखा है. इस के प्रभाव एक व्यक्ति पर नहीं पड़ते. घर के किसी सदस्य के डायबिटीज से पीडि़त होने पर पूरे परिवार को अपने खानपान व जीवन के अन्य तरीके बदलने पड़ते हैं. रोग का परिवार के बजट पर भी गहरा असर पड़ता है.

पर्सन सैंटर्ड केयर इन द सैकंड डायबिटीज एटीट्यूड, विशेज ऐंड नीड्स: इंसपीरेशन फ्रौम इंडिया नामक एक मल्टीनैशनल स्टडी में पता चला कि डायबिटीज की वजह से शारीरिक, आर्थिक व भावनात्मक बोझ पूरे परिवार को उठाना पड़ता है. इस के तहत दुनियाभर के 34 प्रतिशत परिवार कहते हैं कि किसी परिवारजन को डायबिटीज होने से परिवार के आर्थिक हालात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जबकि भारत में ऐसे परिवारों की संख्या 93 से 97 प्रतिशत तक है.

दुनियाभर में 20 प्रतिशत पारिवारिक सदस्य मानते हैं कि डायबिटीज की वजह से लोग उन के अपनों से भेदभाव करते हैं. दरअसल, जिस समाज में वे रहते हैं उसे डायबिटीज पसंद नहीं है जबकि भारत में ऐसे 14-32 प्रतिशत परिवार ऐसा ही महसूस करते हैं.

वक्त पर इस का प्रबंधन करने के लिए डायबिटीज के रोगी के परिवार की भूमिका अहम होती है. यह साबित हो चुका है कि परिवार का सहयोग न मिलने पर रोगी अकसर अपनी दवा का नियमित सेवन और ग्लूकोज पर नियंत्रण नहीं रख पाता. इसलिए जरूरी है कि परिवार का एक सदस्य शुरुआत से ही इन सब बातों का ध्यान रखने में जुट जाए. डाक्टर के पास जाते वक्त साथ जा कर पारिवारिक सदस्य न सिर्फ काउंसलिंग सैशन का हिस्सा बन सकता है बल्कि यह भी समझ सकता है कि इस हालत को वे बेहतर तरीके से कैसे मैनेज कर सकते हैं.

कैसे करें शुगर प्रबंधन

डायबिटीज को मैनेज किया जा सकता है. अगर उचित कदम उठाए जाएं तो इस के रोगी लंबा व सामान्य जीवन गुजार सकते हैं. प्रबंधन के लिए कुछ कदम इस प्रकार हैं :

–  पेट के मोटापे पर नियंत्रण रख के इस से बचा जा सकता है क्योंकि इस का सीधा संबंध टाइप 2 डायबिटीज से है. पुरुष अपनी कमर का घेरा 40 इंच और महिलाएं 35 इंज तक रखें. सेहतमंद और संतुलित खानपान, नियमित व्यायाम मोटापे पर काबू    पाने में मदद कर सकता है.

–  गुड कोलैस्ट्रौल 50 एमजी रखने से दिल के रोग और डायबिटीज से बचा जा सकता है.

–  ट्रिग्सीसाइड एक आहारीय फैट है जो मीट व दुग्ध उत्पादों में होता है जिसे शरीर ऊर्जा के लिए प्रयोग करता है और अकसर शरीर में जमा कर लेता है. इस का स्तर 150 एमजी या इस से ज्यादा होने पर यह डायबिटीज का खतरा बढ़ा सकता है.

–  आप का सिस्टौलिक ब्लडप्रैशर 130 से कम और डायस्टौलिक ब्लडप्रैशर 85 से कम होना चाहिए. तनावमुक्त रह कर ऐसा किया जा सकता है.

–  खाली पेट ग्लूकोज 100 एमजी या ज्यादा होने से डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.

–  दिन में 10,000 कदम चलने की सलाह दी जाती है.

परिवार मिल कर सप्ताह में 6 दिन सेहतमंद खानपान और रविवार को चीट डे के रूप में अपना सकते हैं ताकि नियमितरूप से हाई ट्रांस फैट और मीठा खाने से बचा जा सके. रविवार को बाहर जा कर शारीरिक व्यायाम करने के लिए भी रखा जा सकता है. परिवार में तनावमुक्त जीवन जीने की प्रभावशाली तकनीक बता कर सेहतमंद व खुशहाल जीवन जीने के लिए उत्साहित कर के एकदूसरे की मदद की जा सकती है.

(लेखक एंडोक्राइनोलौजिस्ट हैं.)

एओर्टिक स्टेनोसिस : समय पर इलाज जरूरी

डायबिटीज रोगी 77 साल के बिपिन चंद्रा की जिंदगी अब थोड़ी सुकूनभरी है लेकिन साल 2014 में उन की स्थिति काफी तकलीफदेह हो गई थी. किडनी की बीमारी से जूझ रहे बिपिन चंद्रा की बाईपास सर्जरी हो चुकी थी. उम्र के इस पड़ाव में उन का चलनाफिरना या काम करना मुश्किल हो गया था. थोड़ा चलने पर ही वे हांफने लगते. उन की बढ़ती समस्या को देखते हुए डाक्टर से परामर्श लिया गया.

डाक्टर ने उन के कुछ टैस्ट किए जिन में एमएससीटी (इस तकनीक में हृदय और वैसल्स की 3डी इमेज बनाने के लिए एक्सरे बीम तथा लिक्विड डाई का इस्तेमाल किया जाता है) भी शामिल है. टैस्ट के बाद खुलासा हुआ कि वे गंभीररूप से एओर्टिक स्टेनोसिस से पीडि़त थे. बिपिन चंद्रा की सर्जरी हुए 2 साल हो गए हैं और अब वे बेहतरीन जिंदगी जी रहे हैं.

एओर्टिक स्टेनोसिस क्या है?

जब हृदय पंप करता है तो दिल के वौल्व खुल जाते हैं जिस से रक्त आगे जाता है और हृदय की धड़कनों के बीच तुरंत ही वे बंद हो जाते हैं ताकि रक्त पीछे की तरफ वापस न आ सके. एओर्टिक वौल्व रक्त को बाएं लोअर चैंबर (बायां वैंट्रिकल) से एओर्टिक में जाने के निर्देश देते हैं.

एओर्टिक मुख्य रक्तवाहिका है जो बाएं लोअर चैंबर से निकल कर शरीर के बाकी हिस्सों में जाती है. अगर सामान्य प्रवाह में व्यवधान पड़ जाए तो हृदय प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पाता. गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस यानी एएस में एओर्टिक वौल्व ठीक से खुल नहीं पाते.

मेदांता अस्पताल के कार्डियोलौजिस्ट डा. प्रवीण चंद्रा कहते हैं कि गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस की स्थिति में आप के हृदय को शरीर में रक्त पहुंचाने में अधिक मेहनत करनी पड़ती है. समय के साथ इस वजह से दिल कमजोर हो जाता है. यह पूरे शरीर को प्रभावित करता है और इस वजह से सामान्य गतिविधियां करने में दिक्कत होती है. जटिल एएस बहुत गंभीर समस्या है. अगर इस का इलाज न किया जाए तो इस से जिंदगी को खतरा हो सकता है. यह हार्ट फेल्योर व अचानक कार्डिएक मृत्यु का कारण बन सकता है.

लक्षण पहचानें

एओर्टिक स्टेनोसिस के कई मामलों में लक्षण तब तक नजर नहीं आते जब तक रक्त का प्रवाह तेजी से गिरने नहीं लगता. इसलिए यह बीमारी काफी खतरनाक है. हालांकि यह बेहतर रहता है कि बुजुर्गों में सामने आने वाले विशिष्ट लक्षणों पर खासतौर से नजर रखनी चाहिए. ये लक्षण छाती में दर्द, दबाव या जकड़न, सांस लेने में तकलीफ, बेहोशी, कार्य करने में स्तर गिरना, घबराहट या भारीपन महसूस होना और तेज या धीमी दिल की धड़कन होना हैं.

बुजुर्ग लोगों को एओर्टिक स्टेनोसिस का बहुत रिस्क रहता है क्योंकि इस का काफी समय तक शुरुआती लक्षण नहीं दिखता. जब तक लक्षण, जैसे कि छाती में दर्द या तकलीफ, बेहोशी या सांस लेने में तकलीफ, विकसित होने लगते हैं तब तक मरीज की जीने की उम्र सीमित हो जाती है. ऐसी स्थिति में इस का इलाज सिर्फ वौल्व का रिप्लेसमैंट करना ही बचता है. हाल ही में विकसित ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) तकनीक की मदद से गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों का इलाज प्रभावी तरीके से किया जा सकता है जिन की सर्जरी करने में बहुत ज्यादा जोखिम होता है.

एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट

टीएवीआर से उन एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों को बहुत लाभ मिलेगा जिन्हें ओपन हार्ट सर्जरी करने के लिए अनफिट माना गया है. इस उपचार की सलाह उन मरीजों को दी जाती है जिन का औपरेशन रिस्कभरा होता है. इस से उन के जीने और कार्यक्षमता में बहुत सुधार होता है.

गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस में जान जाने का खतरा रहता है और अधिकतर मामलों में सर्जरी की ही जरूरत पड़ती है. कुछ सालों तक इस बीमारी का इलाज ओपन हार्ट सर्जरी ही थी. लेकिन टीएवीआर के आने से अब काफी बदलाव हो रहे हैं. टीएवीआर मिनिमल इंवेसिव सर्जिकल रिप्लेसमैंट प्रक्रिया है जो गंभीर रूप से पीडि़त एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों और ओपन हार्ट सर्जरी के लिए रिस्की माने जाने वाले रोगियों के लिए उपलब्ध है. इस के अलावा जो रोगी कई तरह की बीमारियों से घिरे हुए हैं, उन के लिए भी यह काफी प्रभावी और सुरक्षित प्रक्रिया है.

टीएवीआर ने दी नई जिंदगी

देहरादून के 53 साल के संजीव कुमार का वजन 140 किलो था और वे हाइपरटैंशन व डायबिटीज से पीडि़त थे. इस के साथ उन्हें अनस्टेबल एंजाइना की समस्या थी जिस में रोगी को अचानक छाती में दर्द होता है और अकसर यह दर्द आराम करते समय महसूस होता है. संजीव को कई और बीमारियां जैसे कि नौन क्रीटिकल क्रोनोरी आर्टरी बीमारी (सीएडी), औबस्ट्रैक्टिव स्लीप अपनिया (सोते समय सांस लेने में तकलीफ), उच्च रक्तचाप, क्रोनिक वीनस इनसफिशिएंसी (बाएं पैर), ग्रेड 2 फैटी लीवर (कमजोर लीवर), हर्निया और गंभीर एलवी डायफंक्शन के साथ खराब इंजैक्शन फ्रैक्शन 25 फीसदी (हृदय के पंपिग करने की कार्यक्षमता) थीं.

संजीव की स्थिति दिनबदिन गंभीर होती जा रही थी और उन का पल्स रेट 98 प्रति मिनट (सामान्य से काफी ज्यादा) था. सीटी स्कैन और अन्य परीक्षणों के बाद खुलासा हुआ कि वे गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से भी पीडि़त थे. इतनी बीमारियों के कारण डाक्टर ने मोेटापे से ग्रस्त संजीव का इलाज ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) से किया. हालांकि जब फरवरी 2016 में उन पर यह प्रक्रिया अपनाई गई, तब तक वे 25-30 किलो वजन कम कर चुके थे और जिंदगी को ले कर उन का नजरिया काफी सकारात्मक हो गया था.

समय पर चैकअप जरूरी

गौरतलब है कि एएस की बीमारी आमतौर पर जब तक गंभीर रूप नहीं ले लेती तब तक इस बीमारी के लक्षणों का पता नहीं चलता. इसलिए नियमित चैकअप कराने की सलाह दी जाती है. उम्र बढ़ने के साथ एएस के मामले भी बढ़ते जाते हैं. इसलिए बुजुर्ग रोगियों को वौल्व फंक्शन टैस्ट के बारे में डाक्टर से पूछना चाहिए और गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस के इलाज की आधुनिक तकनीकों की जानकारी भी लेते रहना चाहिए.

अनियंत्रित Diabetes छीन सकती है आंखों की रोशनी

डायबीटिज को सामान्य रोग समझ कर उस की अनदेखी करना आप के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि डायबीटिज की जटिलता से छिन सकती है आंखों की रोशनी भी. डायबिटीज रेटिनोपैथी में नई रक्तवाहिनियां, रेटिना के आसपास बनने लगती हैं जिस से रक्तस्राव होने लगता है.

55 वर्षीय सुशीलकांत 10 वर्षों से डायबीटिज यानी डायबिटीज के मरीज हैं. पिछले कई दिनों से उन की शुगर भी नियंत्रण में नहीं है. एक शाम उन को लगा कि उन की आंखों के आगे अंधेरा सा छा रहा है, फिर कुछ देर ठीक रहा और थोड़ी देर बाद फिर वही स्थिति हो गई. 2 दिनों के बाद अचानक उन्हें लगा कि उन्हें नहीं के बराबर यानी बहुत ही कम दिख रहा है. तुरंत चिकित्सक से संपर्क किया गया. जांच से मालूम हुआ कि डायबीटिज का असर आंख पर पड़ा है और उन का रेटिना क्षतिग्रस्त हो गया है. चिकित्सक की सलाह पर शहर के बाहर विशेषज्ञ रेटिना सर्जन से संपर्क किया गया. रेटिना सर्जन के इलाज से उन की आंखों की रोशनी को बचाया जा सका वरना वे नेत्रहीन हो जाते.

डायबीटिज यदि ज्यादा पुराना हो या अनियंत्रित हो तो उस का कुप्रभाव आंखों पर अवश्य पड़ता है. इसे चिकित्सा शास्त्र में ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’ कहा गया है. इस जटिलता, जो डायबीटिज जन्य है, में आंखों के परदे, जिसे ‘रेटिना’ कहा गया है, की रक्तवाहिनियां नष्ट हो जाती हैं और इस से रक्त बहने लगता है या रिसाव होने लगता है. यह जटिलता समाज के  उच्चवर्ग में अधिक देखने को मिलती है. ऐसे में हरेक डायबीटिज रोगी को चाहिए कि वह वर्ष में 2 बार अपना नेत्रपरीक्षण अवश्य करवाएं.

दृष्टि पर प्रभाव : कैसेकैसे

एक तरह की रेटिनोपैथी तो अधिकतर लोगों में देखने को मिलती है. इस का कोई लक्षण या संकेत नहीं मिलता. इस में रेटिना में सूजन आ सकती है तथा आंखों के पास गंदगी या मैल जमा हो सकता है. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, आंख की इस छोटी से रक्तवाहिनी को काफी नुकसान झेलना पड़ता है. यह रेटिनोपैथी फैलती नहीं है.

दूसरी तरह की रेटिनोपैथी में नई रक्तवाहिनियां रेटिना के आसपास बनने लगती हैं, जिस से रक्तस्राव होने लगता है. इस में कई बार व्यक्ति की दृष्टि चली जाती है. नई रक्तवाहिनियों के पनपने से रेटिना पर खिंचाव आ सकता है जिस से वह अलग भी हो सकती है. रेटिना की आगे की जैली में भी खून आ सकता है.

जब रेटिना से द्रव्य बाहर निकलता है तो वह रेटिना के बीच ‘मैक्यूला’ पर आने लगता है. इसे ‘मैक्युलोपैथी’ कहा जाता है.

इस के अलावा डायबीटिज के रोगियों में मोतियाबिंद भी जल्दी पनपता है. अल्प आय वर्ग में यह ज्यादा देखने को मिलता है क्योंकि उन का ज्यादातर कार्य सूर्य की रोशनी में होता है. रक्त संचार अव्यवस्थित व अपूर्ण होने के कारण आंखों को लकवा भी मार सकता है.

डायबीटिज के पुराने मरीजों की दृष्टि में शुरूशुरू में धुंधलापन आता है, रेटिना की सतह तथा दृष्टि के लिए उत्तरदायी मुख्य नाड़ी ‘औप्टिक नर्व’ पर नई रक्त वाहिनियां बनने लगती हैं.

बचाव : कैसे हो मजबूत

– डायबीटिज हो या उच्च रक्तचाप या दोनों, इन्हें हर हालत में नियंत्रित रखें. चाहे दवा से या परहेज से.

– अपने रक्तशर्करा व रक्तचाप की नियमित जांच कराएं.

– धूम्रपान या तंबाकू का सेवन त्याग दें.

– हरी सब्जियों का अधिक सेवन करें.

– खुराक में विटामिन ए, विटामिन सी व विटामीन ई आदि का भरपूर सेवन करें.

– फिश या फिश औयल का सेवन करें.

प्रमुख कारण

– आंख की रेटिना पर कुप्रभाव का पहला महत्त्वपूर्ण कारण है डायबीटिज कितने समय से है. एक चिकित्सकीय आंकड़े के अनुसार, करीब 10 वर्षों से डायबीटिज के रोगी पर इस के होने की संभावना 50 फीसदी, 20 वर्षों से डायबीटिज के रोगी पर 70 फीसदी तथा 30 वर्षों से डायबीटिज के रोगी पर 90 फीसदी संभावना रहती है.

– यदि डायबीटिज के साथ उच्च रक्तचाप भी है तो संभावना और अधिक बढ़ जाती है.

– गर्भावस्था में भी इस की संभावना बढ़ जाती है.

– यह स्थिति वंशानुगत भी होती है.

– स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा यह स्थिति अधिक पाई जाती है.

निदान तकनीकें

– रक्त शर्करा स्तर की नियमित जांच कराते रहें.

– ‘फंडस फ्लोरिसीन एजिंयोग्राफी’ नामक विशिष्ट जांच से यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि लेजर तकनीक द्वारा उपचार की जरूरत कहांकहां है.

– ‘औफ्थालमोस्कोप’ नामक उपकरण द्वारा आंखों की नियमित जांच करवाएं.

इस प्रकार, इस वैज्ञानिक जानकारी के साथ डायबीटिज के रोगी अपनी आंखों की रोशनी को बचा सकते हैं क्योंकि अंधेपन के कारणों में इस स्थिति की विशेष भूमिका रहती है.

लेजर पद्धति से उपचार

लेजर फोटो कोएगुलेशन द्वारा लेजर बीम प्रभावित रेटिना पर डाली जाती है जिस से रक्तस्राव या रिसाव बंद हो जाता है, साथ ही, दूसरी असामान्य रक्तवाहिनियों का बनना भी बंद हो जाता है. यह उपचार यदि रोगी को समय पर मिल जाए तो परिणाम अच्छे रहते हैं.

यदि रोग काफी ज्यादा बढ़ गया हो तो शल्यक्रिया द्वारा उपचार संभव है, जिसे ‘वीट्रेक्टौमी सर्जरी’ कहा गया है. इस में अलग हुए रेटिना को फिर जोड़ा जाता है.

एक नया इंजैक्शन वीईजीएफ आंखों में लगाया जाता है, जिस के प्रभाव से इस के अतिरिक्त अन्य खामियां भी ठीक हो जाती हैं. इस के साथसाथ लेजर द्वारा भी उपचार लिए जाने के अच्छे परिणाम आते हैं.

डायबिटीज कंट्रोल है मुमकिन

अनुमान है कि 2030 तक डायबिटीज मैलिटस भारत के 7.94 करोड़ लोगों को प्रभावित कर सकता है तो चीन के 4.23 करोड़ और अमेरिका के 3.03 करोड़ लोग इस रोग से पीडि़त होंगे. कई ऐसे फैक्टर्स हैं, जो देश भर में इस रोग की मौजूदगी के लिए जिम्मेदार हैं. मसलन, आबादी, शहरीकरण, मोटापा, श्रमरहित लाइफस्टाइल आदि.

डायबिटीज पीडि़त इन आशंकाओं के साथ जीने लगते हैं कि उन की आंखों की रोशनी चली जाएगी या उन की टांग अथवा पैर काटना पड़ सकता है या फिर किडनी फेल्यर के कारण उन की मौत हो जाएगी.

युवाओं में बढ़ते मामले

भारत में 22 से 30 साल की आयु वाले युवाओं की आबादी सब से अधिक है, जो ऊर्जावान एवं रचनाशील हैं, लेकिन इन युवाओं ने जिंदगी जीने के जिन तौरतरीकों को अपना लिया है, उन से कई तरह के रोगों का इन पर बुरा असर पड़ने लगा है.

भारत को डायबिटीज की राजधानी कहा जाने लगा है. दरअसल युवा अस्वास्थ्यकर खानपान की आदतों के कारण मोटापे का शिकार हो रहे हैं, जो डायबिटीज और अन्य कार्डियोवैस्क्युलर समस्याओं का मुख्य कारण है. पहले जहां ये रोग 40 से 45 साल की उम्र वाले लोगों को होते थे वहीं अब 22 से 25 साल के युवा भी इन की चपेट में आने लगे हैं और इस का कारण है आज की पीढ़ी द्वारा पश्चिमी लाइफस्टाइल अपनाना.

संक्रमण का खतरा

थोड़ा सा कटने से ही त्वचा में होने वाले खतरनाक संक्रमण को सैल्युलाइटिस कहा जाता है. यदि आप को डायबिटीज है, तो अपनी त्वचा के प्रति ज्यादा सावधान रहें, क्योंकि ब्लड ग्लूकोस लैवल अधिक रहने पर संक्रमण का अधिक खतरा रहता है.

सैल्युलाइटिस एक गंभीर संक्रमण है, जो त्वचा के अंदर फैलता है और त्वचा तथा उस के अंदर की चरबी को प्रभावित करता है.

लोग अकसर सैल्युलाइटिस को सैल्युलाइट मान बैठते हैं. दरअसल, दोनों बिलकुल अलग चीजें हैं. सैल्युलाइटिस चरबी की अंदरूनी परत डर्मीज और त्वचा के अंदर के टिशू का एक बैक्टीरियल संक्रमण होता है जबकि सैल्युलाइट त्वचा के अंदर चरबी जमने के कारण होता है, जो संतरे के छिलके की तरह दिखता है. सैल्युलाइटिस की सब से बड़ी खराबी यह है कि सही समय पर उचित इलाज न होने पर यह बड़ी तेजी से फैलता है. इस वजह से टिशू क्षतिग्रस्त होने लगते हैं और इस का बैक्टीरिया रक्तनलिकाओं के जरीए फैल जाता है.

सैल्युलाइटिस से सुरक्षा

– त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले कठिन

और अधिक कार्य करने से बचें. वही कार्य चुनें, जिन से आप को जल्दी थकान महसूस न हो. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह कि ब्लड शुगर का संतुलित स्तर बनाए रखें. ब्लड शुगर लैवल बढ़ने का मतलब है कि शरीर का इम्यून सिस्टम निश्चित रूप से कमजोर होगा और जख्म को भरने में यह असमर्थ हो जाएगा.

– कम कार्बोहाइडे्रट वाला भोजन करें और फाइबरयुक्त फलों का भरपूर सेवन करें. अपने साथ ग्लूकोस टैस्ट मीटर रखने से आप को इस की वृद्धि पर नजर रखने में मदद मिलेगी.

– यदि आप सैल्युलाइटिस के ज्ञात छोटे से छोटे रिस्क फैक्टर की चपेट में हैं तो प्रतिदिन अपनी टांगों पर नजर रखें. जख्म पर भी पूरा ध्यान रखें. त्वचा की सूजन, लाली जैसे लक्षणों पर नजर रखें.

– जख्मों को ठीक करने के लिए डाक्टर से ही परामर्श लें. याद रखें कि नियमित जांच के अभाव में छोटा सा जख्म भी सैल्युलाइटिस का कारण बन सकता है. जख्म वाले हिस्से को अच्छी तरह साफ रखें ताकि उस में पानी न लगने पाए. कुछ समय के लिए उसे खुली हवा में सुखा लें. डाक्टर की सलाह के अनुसार ही जख्म को ड्रैसिंग से ढक कर रखें और स्वच्छ ड्रैसिंग ही इस्तेमाल करें.

ऐसा करने पर आप डायबिटीज होने के बावजूद स्वस्थ व्यक्ति जैसा जीवन जी सकते हैं. लाइफस्टाइल में मामूली बदलाव से आप अपना ब्लड शुगर लैवल भी नियंत्रित रख सकते हैं और बेहतर महसूस कर सकते हैं.

(डा. मीना छाबड़ा, डायबिटीज क्लीनिक, नई दिल्ली)

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सास को डायबिटीज में चश्मा लगाने के बाद भी धुंधला दिखाई देता है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी सास को डायबिटीज है. उन्हें चश्मा लगाने के बाद भी धुंधला दिखाई देता है. क्या यह आंखों से संबंधित किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या का संकेत है?

जवाब-

यह समस्या उन्हें डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण हो रही है. रक्त में शुगर के उच्च स्तर के कारण रेटिना क्षतिग्रस्त हो जाता है. अगर समय रहते इस का उपचार न कराया जाए तो आंखों की रोशनी भी जा सकती है. इसलिए जिन लोगों को डायबिटीज है उन्हें हर 6 महीनों में अपनी आंखों की जांच कराने के लिए कहा जाता है. आप तुरंत उन की आंखों की जांच कराएं और रक्त में शुगर के स्तर को अनियंत्रित न होने दें.

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मधुमेह यानी डायबीटिज खतरनाक रोग है, जो शरीर को धीरेधीरे खोखला कर देता है. इस बीमारी में रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है. चूंकि हमारे शरीर के हर हिस्से में रक्तसंचार होता है, इसलिए मधुमेह होने पर शरीर का कोई भी हिस्सा खराब हो सकता है. मधुमेह होने पर हार्टअटैक, किडनियों के खराब होने और आंखों की रोशनी तक चले जाने की बहुत संभावना रहती है.

पहले यह बीमारी एक निश्चित वर्ग और उम्र के लोगों को ही होती थी, लेकिन वर्तमान में असंतुलित खानपान और अव्यवस्थित रहनसहन के कारण बच्चों, बूढ़ों और युवाओं सभी को यह बीमारी अपनी चपेट में ले रही है. इस बीमारी से बचने और नजात पाने के निम्न उपाय हैं. जिन पर अमल कर के मधुमेह से बचा जा सकता है:

क्या करें

वजन कम करें: अकसर लोग अपने खानपान पर नियंत्रण नहीं रख पाते. दिन में जितनी बार भी भूख लगती है कुछ भी खा कर पेट भर लेते हैं. ऐसा करने से वजन तो बढ़ता ही है साथ ही असंतुलित आहार शरीर को बीमारियों का घर भी बना देता है. इन बीमारियों में ओबेसिटी यानी मोटापा बेहिसाब और बेवक्त खाने का ही नतीजा होता है. ओबेसिटी के शिकार को डायबिटीज आसानी से अपना शिकार बना लेती है. लेकिन इस का शिकार होने से बचा जा सकता है और इस के लिए ज्यादा मशक्कत करने की भी जरूरत नहीं पड़ती. बस, अपने आहार को छोटेछोटे मील्स में विभाजित कर दीजिए. हर मील का समय निर्धारित हो. इस से आप की भूख भी नियंत्रित हो जाएगी और वजन भी नहीं बढ़ेगा. इस के अलावा वजन कम करने के लिए दिन में 1 बार 30 से 45 मिनट तेज चलने की आदत डालें. इस से ब्लडशुगर कंट्रोल में रहती है. हफ्ते में 4-5 दिन तेज चलें.

Diabetes में कैसी हो डाइट

आधुनिक जीवनशैली और खानपान की बदलती आदतों ने महिलाओं को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का आसान शिकार बना दिया है. डायबिटीज उन में से एक है. आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में विश्वभर में 19-20 करोड़ महिलाएं डायबिटीज से पीडि़त हैं. अनुमान है कि 2040 तक यह संख्या बढ़ कर 31 करोड़ हो जाएगी.

डायबिटीज एक लाइलाज बीमारी है, इसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन अनुशासित जीवनशैली, खानपान में सुधार, नियमित वर्कआउट, तनाव से बच कर और उचित दवाइयों का सेवन कर रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित रख कर सामान्य जीवन जीया जा सकता है.

महिलाएं और डायबिटीज

बढ़ती आधुनिक सुखसुविधाओं ने महिलाओं की जीवनशैली में काफी परिवर्तन ला दिया है. इस के अलावा कामकाजी महिलाओं की लगातार बढ़ती संख्या के कारण जीवनशैली से जुड़ी हुई बीमारियों की शिकार महिलाओं के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं.

पिछले 2 दशकों में महिलाओं में डायबिटीज के मामलों में भी काफी वृद्धि हुई है. बढ़ता तनाव और घटती शारीरिक सक्रियता महिलाओं को डायबिटीज का आसान शिकार बना रही है. बदलती जीवनशैली के कारण उन की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर हो रही है, जिस से वे बीमारियों की आसान शिकार बन रही हैं. डायबिटीज पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से ही प्रभावित करती है, लेकिन महिलाओं में इस के कारण जटिलताएं अधिक हो सकती हैं.

डाइट

डायबिटीज को नियंत्रित करने में खानपान सब से प्रमुख भूमिका निभाता है. दरअसल, डायबिटीज के मरीजों के लिए डायबिटिक डाइट जैसा कुछ नहीं होता है. उन्हें बैलेंस्ड डाइट का सेवन करना चाहिए. अपनी डाइट में ताजे फलों, सब्जियों, फलियों, दालों, साबूत अनाज, सूखे मेवों, बीजों सभी को शामिल करें. लेकिन डायबिटीज के मरीजों को सिर्फ इतना ध्यान रखना है कि उन्हें किस खाद्यपदार्थ को कितनी मात्रा में और कैसे खाना है.

आप गेहूं की रोटी खा सकती हैं, लेकिन ध्यान रखें वह चोकरयुक्त आटे से बनी हो. आटे में थोड़ा बेसन मिला लें तो ज्यादा बेहतर रहेगा. मल्टीग्रेन आटा भी चुन सकती हैं. आप दिन में एक बार उबले हुए और मांड निकले हुए एक छोटी कटोरी चावल भी खा सकती हैं.

रोज 200 ग्राम फल खाएं:

डायबिटीज के मरीजों के लिए सेब, संतरा, मौसमी, अंगूर, नाशपाती, पपीता जैसे फल अच्छे रहते हैं. उन्हें केले, चीकू, आम, पाइनऐप्पल जैसे फलों को खाने से बचना चाहिए. वैसे कभीकभी थोड़ी मात्रा में इन फलों का सेवन भी कर सकती हैं. रोज थोड़ी मात्रा में ड्राई फ्रूट्स का सेवन भी करें. दिन में 2 बार स्नैक्स भी लें. स्नैक्स में अंकुरित अनाज, सलाद, सूप आदि का सेवन करें. फाइबर युक्त खाद्यपदार्थों का इनटेक बढ़ा दें. फाइबर ग्लूकोस के अवशोषण को बेहतर बनाता है. रोजाना कम से कम 8 गिलास पानी पीना चाहिए.

जंक और प्रोसैस्ड फूड्स के सेवन से बचें क्योंकि इन में कैलोरी की मात्रा काफी अधिक होती है और पोषकता बिलकुल नहीं होती. इन का ग्लाइसेमिक इंडैक्स भी अधिक होता है, जिस से इन्हें खाने के बाद रक्त में शुगर का स्तर तेजी से बढ़ सकता है. चीनी, तलीभुनी चीजों, लाल मांस, चायकौफी, तंबाकू, शराब आदि के सेवन से बचें.

लाइफस्टाइल

अगर आप को डायबिटीज हो गई है तो अपने जीने के अंदाज में थोड़ा सा बदलाव लाएं. ये छोटेछोटे बदलाव आप के रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में काफी सहायता कर सकते हैं.

अनुशासित जीवनशैली अपनाएं

अनुशासित जीवनशैली का पालन करें. नियत समय पर सोएं, जागें और खाएं. पेशेवर और पारिवारिक जीवन में संतुलन बनाए रखें. गैजेट्स के अत्यधिक इस्तेमाल से बचें. 7-8 घंटे की नींद लें. दिन में 3 बार मेगा मील खाने के बजाय 6 बार मिनी मील खाएं.

टीवी के सामने बैठ कर कभी न खाएं. इस से आप ओवर ईटिंग का शिकार हो सकती हैं. रात को सोने से 2 घंटे पहले खाना खा लें. रात को खाना खाने के बाद 15 मिनट टहलें. इस से पाचन भी अच्छा होगा और सुबह शुगर का स्तर भी सामान्य रहेगा.

नियमित रूप से वर्कआउट करें

अपनी शारीरिक सक्रियता बढ़ा दें. रोज 40-45 मिनिट अपना मनपसंद वर्कआउट करें. आप ऐरोबिक्स, साइक्लिंग, स्विमिंग, रनिंग, जौगिंग, वाकिंग आदि कर सकती हैं. नियमितरूप से वर्कआउट करने से वजन भी नहीं बढ़ेगा और रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी. वर्कआउट का रक्त में शुगर के स्तर पर 12 घंटे तक प्रभाव रहता है.

तनाव से दूर रहें

मानसिक तनाव से बचें. तनाव के कारण रक्त में शुगर का स्तर बढ़ जाता है. कुछ महिलाएं मानसिक तनाव के कारण इमोशनल ईटिंग की शिकार हो जाती हैं, जो वजन और रक्त में शुगर का स्तर बढ़ने का कारण बन जाता है. मस्तिष्क को शांत रखने के लिए मनपसंद संगीत सुनें, किताबें पढ़ें या अपना कोई और शौक पूरा करें.

वजन न बढ़ने दें

मोटापे के कारण इंसुलिन की कार्यक्षमता कम हो जाती है. मोटी महिलाओं के शरीर में इंसुलिन होता तो है, लेकिन काम नहीं कर पाता, जिस से शुगर का स्तर बढ़ जाता है. वजन कम होने से इंसुलिन की कार्यक्षमता बढ़ती है. अपना स्वस्थ वजन बनाए रखें. अगर वजन अधिक है तो उसे कम करने का प्रयास करें.

अगर रोजाना आप अपनी जरूरत से 100-150 कैलोरी का इनटेक कम करेंगी तो 1 साल में बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के अपना वजन 9-10 किलोग्राम तक कम कर लेंगी.

दवा समय पर लें

अगर डाक्टर ने कोई दवा या इंसुलिन का इंजैक्शन लेने की सलाह दी है तो उसे नियमित समय पर लें. अपने डाक्टर के संपर्क में रहें.

ध्यान रहे

डायबिटीज के मरीजों के लिए डेल्ही डायबिटीज रिसर्च सैंटर द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, सभी मरीज जिन्हें डायबिटीज है उन्हें अपना ब्लड प्रैशर 130/80 से कम रखना चाहिए और खाली पेट रक्त में शुगर की मात्रा 110 मिलीग्राम और खाना खाने के 2 घंटे बाद 150 मिलीग्राम से कम रखें.

सब से जरूरी है महिलाएं अपनी कमर का घेरा 32 इंच से कम रखें. बुरे कोलैस्ट्रौल (एलडीएल) को 100 से कम और अच्छे कोलैस्ट्रौल (एचडीएल) 50 से अधिक रखें. ये सभी सावधानियां डायबिटीज के मरीजों को लंबा और सामान्य जीवन जीने में सहायक होती हैं.

-डा. ए.के.  झिंगन

चेयरमैन, डेल्ही डायबिटीज रिसर्च सैंटर, नई दिल्ली. 

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जब खतरा हो डायबिटीज का

डाइबिटीज एक तरह का मेटाबौलिज्म  डिसआर्डर है. सामान्यता हमारे द्वारा खाए गए भोजन का अधिकांश हिस्सा ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है. पाचन के बाद ग्लूकोज खून के जरिए कोशिकाओं तक पहुंचता है, जहां कोशिकाएं इस का उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने और उस की वृद्धि में करती हैं. इस कार्य में मददगार होता है पैंक्रियाज से निकलने वाला खास हारमोन इंसुलिन. डाइबिटीज से पीडि़त व्यक्तियों के शरीर से इंसुलिन निकलना बंद हो जाता है या कम होता है या फिर शरीर इस इंसुलिन का उपयोग ही नहीं कर पाता. ऐसे में शरीर में रक्त शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, जो पेशाब के जरिए बाहर आने लगती है.

मुख्य रूप से डाइबिटीज 2 तरह की होती है :

टाइप 1 : इस में इम्यून सिस्टम इंसुलिन उत्पाद करने वाली बीटा कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट करने लगता है, जिस से इंसुलिन की कमी हो जाती है और शरीर में रक्त शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है.

इस के मुख्य लक्ष्ण हैं- प्यास ज्यादा लगना, बारबार पेशाब आना, भूख बढ़ना, वजन कम होना, धुंधला नजर आना और बहुत ज्यादा थकावट महसूस करना.

टाइप 2 : 90 से 95% लोग टाइप 2 डाइबिटीज से पीडि़त होते हैं. इस स्थिति में पैंक्रियाज से इंसुलिन तो काफी मात्रा में निकलता है पर शरीर इस का सही उपयोग नहीं कर पाता है. इस अवस्था को इंसुलिन रिजिस्टेंस कहा जाता है. समय के साथ इंसुलिन उत्पादन भी घटने लगता है.

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टाइप 2 डाइबिटीज के लक्षण धीरेधीरे  विकसित होते हैं. इन में प्रमुख हैं- थकान होना, अधिक प्यास लगना, ज्यादा भूख लगना, वजन में परिवर्तन, नजर का धुंधला पड़ना, व्याकुलता होना, इन्फैक्शन होना (स्किन इन्फैक्शन, यूटीआई), घाव भरने में वक्त लगना आदि. इस समस्या के लिए मुख्य रूप से मोटापा और अधिक उम्र जिम्मेदार होती है. टाइप 2 से पीडि़त 80% लोग अधिक वजन के होते हैं. इस के अलावा डाइबिटिक फैमिली हिस्ट्री, शारीरिक असक्रियता, तनाव, इन्फैक्शन, हाइपरटेंशन आदि मुख्य कारण हैं. डाइबिटीज की वजह से किडनी, दिल, नर्वस सिस्टम और आंखोें पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए इस से बचाव बहुत जरूरी है. साधारणतया, डाइबिटीज की समस्या पूरी तरह ठीक नहीं हो पाती, मगर नियमित दवा लेने, व्यायाम करने, शारीरिक सक्रियता और खानपान का ध्यान रख कर हम इसे कंट्रोल में रख सकते हैं. मसलन :

अपने भोजन में पोषक तत्त्वों, जैसे विटामिन बी6, विटामिन सी,ई,डी, जिंक, मैग्नीशियम, बायोटिन, क्रोमियम, ओमेगा 3 आदि की संतुलित मात्रा लेने का प्रयास करें. हाई फाइबर वाली सब्जियां खाएं. जंक फूड, सैचुरेटेड फैट या कोलैस्ट्रौल बढ़ाने वाली चीजें कम लें.

शारीरिक सक्रियता बनाए रखें. रोज कम से कम 30 मिनट जरूर टहलें.

ब्लडप्रैशर व कोलैस्ट्रौल नियमित रखें और इन की नियमित जांच कराते रहें. ब्लड ग्लूकोज की जांच भी नियमित अंतराल पर कराएं.

ताजा रिसर्च में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पाया है कि बहुत से हर्बल सप्लीमैंट, जैसे बिल्बरी, गर्लिक, त्रिफला, ओनियन, नोपल कैक्टस, मेलन वगैरह भी ग्लूकोज लेवल घटाने में सहायक हैं. अत: इन का उपयोग भी किया जा सकता है.

वजन न बढ़ने दें और तनाव से भी बचें.

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मेरे पति को डायबिटीज के कारण खाने पीने में परेशानी हो रही है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरे पति की उम्र 48 साल है. उन्हें शुगर है. कुछ दिनों से उन के सामने के दांत हिलने लगे हैं. इस कारण उन्हें खानेपीने में काफी परेशानी हो रही है. कृपया कोई समाधान बताएं ताकि वे इस समस्या से छुटकारा पा सकें?

जवाब-

डायबिटीज होने पर शुगर का कंट्रोल बिगड़ने से मसूढ़ों के स्वास्थ्य पर उलटा असर पड़ता है. मसूढ़ों में इन्फैक्शन हो जाने से सूजन हो जाती है और दांत हिलने लगते हैं. मसूढ़ों का यह विकार पायरिया कहलाता है. इस स्थिति में पहली जरूरत शुगर पर कंट्रोल करने की है. अच्छा होगा कि इस के लिए आप के पति अपने डायबिटोलौजिस्ट से मिलें. खानपान में संयम बरतने, नियमित शारीरिक कसरत करने और डाक्टरी सलाह पर समय से दवा लेने से ब्लड शुगर पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं. यह संभव है कि उन की ब्लड शुगर बहुत बढ़ी हुई हो और स्थिति को भांपते हुए डायबिटोलौजिस्ट उन्हें इंसुलिन लेने की सलाह दें. इस सूरत में आप के पति का इंसुलिन से कतराना ठीक नहीं होगा. यकीन मानिए जब तक उन की ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं होगी तब तक पायरिया कंट्रोल में नहीं आने वाला. मगर ब्लड शुगर के साथसाथ उन्हें मसूढ़ों की तंदुरुस्ती पर भी ध्यान देने की सख्त जरूरत है. मसूढ़ों और दांतों की सुबह नाश्ते के बाद और रात में सोने से पहले सौफ्ट टूथब्रश से सफाई व हर भोजन करने के बाद ऐंटीसैप्टिक माउथवाश से कुल्ला करने, डैंटल हाईजीनिस्ट से मसूढ़ों और दांतों की सफाई और डैंटल सर्जन की देखरेख में ली गई दवा पायरिया से छुटकारा दिलाने में सहायक है.

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बिना चीनी वाला भोजन न केवल कई तरह की गंभीर बीमारियों से बचाता है, बल्कि वजन कम करने में भी मदद करता है. लेकिन ऐसे भोजन लेना शुरू करने से पहले कुछ चीजों को समझ लेना बेहद जरूरी है.

शुगरफ्री भोजन क्या है

शुगरफ्री भोजन का मतलब है कि उस में हर तरह की जरूरत से ज्यादा या छिपी चीनी का सेवन बंद. इस में सिंपल कार्बोहाइडे्रट भी शामिल हैं. रोजाना 350 कैलोरी से अधिक शुगर लेने से मोटापा, मधुमेह और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

इस के अलावा जरूरत से ज्यादा शुगर लेना शरीर के इम्यून सिस्टम को भी कमजोर बनाता है. कुछ लोग सोचते हैं कि शुगरफ्री भोजन का अर्थ है हर तरह की चीनी लेना बंद कर देना. लेकिन ऐसा नहीं है. इस में अनाज और फलों की मात्रा को कम करना चाहिए, लेकिन बंद बिलकुल नहीं करना चाहिए.

कैसे करता है काम

शुगरफ्री भोजन करने से ब्लड शुगर में अचानक बदलाव नहीं आता. इस में ज्यादा ग्लाइसेमिक से युक्त खाने वाली चीजें शामिल होती हैं, जिन का सीधा असर ब्लड शुगर और ग्लूकोज के स्तर पर पड़ता है. कम ग्लाइसेमिक से युक्त चीजें पचाने में ज्यादा मुश्किल होती हैं. इन्हें लेने से मैटाबोलिक रेट में सुधार होता है और आप पेट भरा हुआ महसूस करते हैं. आप के शरीर में प्रोटीन और वसा से ऊर्जा पैदा होती है. इस से धीरेधीरे वजन भी कम होने लगता है.

शुगरफ्री डाइट प्लान

ऐसे भोजन में कई खाने वाली चीजों को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है. कुछ को ही शामिल किया जाता है. खट्टे फल ज्यादा खाए जाते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्यों जरूरी है शुगर फ्री भोजन

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