पैसे की कमी के कारण कई बार हौकी छोड़ने का विचार आया- रानी रामपाल, हौकी खिलाड़ी

हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के शाहबाद में एक गरीब परिवार में 4 दिसंबर, 1994 को जन्मी रानी रामपाल के पिता परिवार का पेट पालने के लिए टांगा चलाते थे. दिन भर में बमुश्किल 100 रुपए उन की कमाई होती थी जिस में पत्नी, 3 बच्चे, अपना और घोड़े का खाना जुटाना मुश्किल होता था. रानी के दोनों बड़े भाइयों ने जब होश संभाला तो पिता का हाथ बंटाने के लिए एक भाई ने एक दुकान में सेलसमैन की नौकरी कर ली और दूसरा बढ़ई बन गया.

पिता की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण रानी का स्कूल में एडमिशन बड़ी मुश्किल से हुआ. रानी स्कूल के मैदान में दूसरे बच्चों को हौकी खेलते हुए देखती थी. उस समय उन की उम्र सिर्फ 6 साल थी. हौकी का खेल उन्हें आकर्षित करती थी.

कभीकभी वे दूसरे बच्चों से हौकी स्टिक ले कर खेलने लगती थीं. धीरेधीरे हौकी पर उन का हाथ जमने लगा. स्कूल के बच्चे अकसर उन को अपने साथ खिलाने लगे.

पैसे की समस्या

एक दिन रानी ने अपने पिता से हाकी खेलने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन पिता राजी नहीं हुए. उस समय लड़कियों का हाफ पैंट पहन कर हौकी खेलना बहुत बड़ी बात थी. जिस लोकैलिटी में उन का परिवार रहता था वहां बेटियों का हाफ पैंट पहनने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था.

रानी के बहुत जिद करने के बाद उन के पिता ने रानी का दाखिला शाहाबाद हौकी ऐकैडमी में करवा दिया. एडमिशन तो मिल गया, लेकिन मुश्किल यह थी कि रानी के पिता के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वे उन की कोचिंग की फीस चुका सकें. कई बार भाइयों ने कुछ पैसे जमा कर बहन को दिए तो कभी पिता ने उधार ले कर फीस चुकाई. रानी ने इस कारण कई बार हौकी छोड़ने के बारे में सोचा. लेकिन जब पैसे की समस्या की बात उन के कोच बलदेव सिंह और कुछ सीनियर खिलाडि़यों के सामने आई तो उन्होंने रानी को समझाया और उन की आर्थिक मदद की.

खेल के साथ पढ़ाई

खेल के साथसाथ रानी की पढ़ाई भी चलती रही. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बीए में एडमिशन ले लिया लिया लेकिन अभ्यास के कारण वे ग्रैजुएशन पूरा नहीं कर पाईं.

रानी रामपाल ने 212 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले और भारतीय महिला हौकी टीम की कप्तान बनीं. रानी ने जून, 2009 में रूस के कजान में आयोजित चैंपियंस चैलेंज टूरनामैंट में खेला और फाइनल में 4 गोल कर के भारत को जीत दिलाई. उन्हें ‘द टौप गोल स्कोरर’ और ‘यंग प्लेयर औफ द टूरनामैंट’ चुना गया. नवंबर, 2009 में आयोजित एशिया कप में भारतीय टीम के लिए रजत पदक जीतने में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.

2010 राष्ट्रमंडल खेलों और 2010 एशियाई खेलों में भारत की राष्ट्रीय टीम के साथ खेलने के बाद रानी रामपाल को 2010 की एफआईएच महिला औल स्टार टीम में नामांकित किया गया. वे ‘वर्ष की युवा महिला खिलाड़ी’ पुरस्कार के लिए नामांकित हुईं. उन्हें ग्वांगझोउ में 2010 एशियाई खेलों में उन के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें एशियाई हौकी महासंघ की औल स्टार टीम में भी शामिल किया गया था. 2010 में अर्जेंटीना के रोसारियो में आयोजित महिला हौकी विश्व कप में उन्होंने कुल 7 गोल किए, जिस ने भारत को विश्व महिला हौकी रैंकिंग में 9वें स्थान पर रखा.

लाजवाब प्रदर्शन

उन्हें 2013 जूनियर विश्व कप में ‘टूरनामैंट का खिलाड़ी’ चुना गया था. 2013 के जूनियर विश्व कप में उन्होंने भारत को पहला कांस्य पदक दिलाया. उन्हें 2014 के फिक्की कमबैक औफ द ईयर अवार्ड के लिए नामित किया गया. वे 2017 महिला एशियाई कप का हिस्सा रहीं और 2017 में जापान के काकामीगहारा में दूसरी बार खिताब भी जीता था.

रानी ने भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ सहायक कोच के रूप में भी काम किया. राष्ट्रमंडल खेलों में रानी रामपाल का प्रदर्शन लाजवाब रहा है. 2020 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया.

टैनिस की वजह से ही कुश्ती से जुड़ पाई-विनेश फोगाट, रैसलर

2006 रियो ओलिंपिक. कुश्ती के मैट पर भारत की विनेश फोगाट और चीन की सुन यान आमनेसामने थीं. मुकाबला था क्वार्टर फाइनल और विनेश फंसी थीं सुन यान के एक दांव में. भारतीय पहलवान ने अपनी प्रतिद्वंद्वी की पकड़ से बाहर निकलने की कोशिश की और इस संघर्ष में उन का दाहिना घुटना चोटिल हो गया.

ये पल विनेश फोगाट के लिए सब से ज्यादा दर्दनाक पलों में से थे क्योंकि इस के बाद वे रियो ओलिंपिक में आगे नहीं बढ़ पाई थीं. तब फूटफूट कर रोती विनेश फोगाट ने कहा था, ‘‘मुझे अभी भी पता नहीं है कि क्या हुआ था. मैं बस उठ कर जारी रखना चाहती थी, लेकिन मेरे पैर काम नहीं कर रहे थे.

‘‘मैं चाह रही थी कि कोई मुझे दर्द दूर करने की दवा दे दे. मैं फिर से वहां जाना चाहती थी. मैं ने अभी हार नहीं मानी थी. मैं हार मानने वालों में से नहीं हूं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मैं सबकुछ देख सकती थी और वहां असहाय पड़ी हुई थी.’’

खेल के प्रति लगाव

विनेश फोगाट का वह आंखों में नमी वाला गमगीन चेहरा कोई भी कुश्ती प्रेमी नहीं भूल पाएगा और शायद वह चेहरा भी नहीं भूल पाएगा, जब इस साल के जनवरी महीने में विनेश फोगाट दिल्ली के जंतरमंतर पर अपने साथी पहलवानों के साथ एक अलग ही लड़ाई लड़ने के लिए बैठी थीं. तब उन की आंखों का सूनापन साफ बता रहा था कि सर्द सड़क पर हो रही यह हक की लड़ाई उस कुश्ती से कितनी ज्यादा मुश्किल है, जहां अपने जैसे खिलाडि़यों की आवाज को अपनों के सामने ही बुलंद करना है.

विनेश फोगाट उन्हीं महिला पहलवान बबीता और गीता फोगाट की चचेरी बहन हैं, जिन के जीवन पर आमिर खान ने फिल्म ‘दंगल’ बनाई थी. अपनी बहनों से प्रेरणा पा कर और ताऊजी महाबीर फोगाट से प्रशिक्षण ले कर विनेश फोगाट ने कुश्ती खेलना शुरू किया था. लेकिन यह सब उतना आसान नहीं था, जितनी आसानी से विनेश फोगाट सामने वाली पहलवान को चित कर देती हैं.

सब से हैरत की बात तो यह कि विनेश फोगाट का पहला प्रेम कुश्ती को ले कर नहीं था, बल्कि लौन टैनिस पर वे अपनी जान छिड़कती थीं. उन का कहना है, ‘‘बचपन से ही मुझे इस खेल के प्रति लगाव था. मैं टैनिस सितारों के पोस्टर जमा करती थी. सानिया मिर्जा की मैं बहुत बड़ी फैन हूं. उन का जब भी अखबार में फोटो आता था, तो मैं उसे काट कर अपनी बुक में लगा लेती थी. पता नहीं मैं कभी टैनिस खेल पाती या नहीं, पर शायद इसी वजह से मैं कुश्ती से जुड़ पाई हूं.’’

हरियाणा के चरखी दादरी जिले के गांव बलाली की रहने वाली विनेश फोगाट की मां प्रेमलता को 2003 में बच्चेदानी में कैंसर हो गया था. यह खबर परिवार को हिला देने वाली थी, पर तभी रोडवेज विभाग में चालक विनेश फोगाट के पिता राजपाल फोगाट की मौत हो गई. विनेश तो तब नादान थीं, पर कैंसर और पति की मौत ने प्रेमलता को बुरी तरह झकझोर दिया था.

विनेश फोगाट ने उन दिनों को याद करते हुए बताया, ‘‘मेरी मां बड़े जीवट वाली महिला हैं. उन्होंने हार नहीं मानी और अपने तीनों बच्चों का भविष्य संवारने के लिए कैंसर से जंग लड़ने की ठानी. उन्होंने औपरेशन करा कर बच्चेदानी को निकलवा दिया. उस समय मेरा भाई हरविंद्र 10वीं, बड़ी बहन प्रियंका 7वीं और मैं चौथी क्लास में पढ़ती थी.’’

दर्जनों मैडल नाम किए

विनेश फोगाट ने 13 दिसंबर, 2018 को अपनी शादी में 7 के बजाय 8 फेरे लिए थे. यह 8वां फेरा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और बेटी खिलाओ’ संदेश को समर्पित था. उन के पति सोमवीर राठी भी पहलवान हैं, जिहोंने दहेज के नाम पर एक रुपया लिया था. कुश्ती के लिए 2020 में ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड’ और 2016 में ‘अर्जुन अवार्ड’ जीतने वाली विनेश फोगाट ने एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को सोने के तमगे दिलाने के अलावा कई दूसरे इंटरनैशनल मुकाबलों में भी दर्जनों मैडल अपने नाम किए हैं और यह साबित किया है कि असली खिलाड़ी वही है, जो अपने संघर्षों से जूझ कर बड़ी वापसी करता है.

सफल स्टार्टअप खड़ा करना है तो सबसे पहले खुद पर भरोसा करना होगा- विनीता सिंह

गुजरात के एक छोटे से गांव में जन्मीं विनीता सिंह ऐसी ही युवा व्यवसायी हैं. अपने पहले 2 स्टार्टअप में सफल न हो पाने के बावजूद विनीता का खुद पर भरोसा डगमगाया नहीं. अपनी योग्यता और मेहनत के दम पर फिर से एक ऐसी कंपनी शुरू करने का प्लान बनाया जो महिलाओं के लिए हो और जिस में महिलाएं रोजगार भी पा सकें. उन्होंने चुनौतियों के सामने कभी घुटने नहीं टेके और फिर इस तरह शुगर कौस्मैटिक्स का जन्म हुआ.

जिंदगी का सफरनामा

विनीता का जन्म 1983 में हुआ था. उन के पिता तेज पाल सिंह एम्स के साइंटिस्ट थे और मां पीएचडी होल्डर. विनीता ने दिल्ली पब्लिक स्कूल से पढ़ाई की और ग्रैजुएशन करने के लिए आईआईटी मद्रास चली गईं. इस के बाद उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए की डिगरी प्राप्त की. विनीता के पति कौशिक मुखर्जी हैं. दोनों की मुलाकात एमबीए करने के दौरान हुई थी और 2011 में दोनों ने शादी कर ली.

स्टार्टअप्स की प्लानिंग के शुरुआती दिनों को याद करते हुए विनीता कहती हैं, ‘‘मुझे और कौशिक को यह एहसास हो गया था कि अब युवतियां बंधनों से आजाद हो कर बाहर भी निकल रही हैं और अपना रास्ता भी खुद बना रही हैं. फिर हम ने फैबबैग की शुरुआत की.’’

शुगर की शुरुआत

अपने व्यवसाय के अनुभवों से विनीता को यह एहसास हो गया था कि महिलाएं आखिर ब्यूटी इंडस्ट्री से किस बात की उम्मीद रखती हैं. उन्होंने फैबबैग के दौरान मिले कंज्यूमर फीडबैक को आधार बना कर यह समझ लिया कि ब्यूटी इंडस्ट्री में ट्रांसफर प्रूफ और लंबे समय तक टिकने वाले मेकअप की डिमांड ज्यादा है. विनीता ने ब्यूटी वर्ल्ड में पाई जमाने की शुरुआत की क्रेयौन लिपस्टिक्स से.

विनीता ने स्टार्टअप शुरू करने की चाह रखने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए एक बार ट्वीट किया था, ‘‘यदि आप अपनी कौरपोरेट जौब को छोड़ कर स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं तो सफल होने के लिए सब से जरूरी है खुद पर भरोसा करना. यदि खुद पर भरोसा न हो तो उतारचढ़ाव भरे इस सफर में आप डगमगा सकते हैं.’’

आज शुगर कौस्मैटिक्स भारत के टौप 3 ब्यूटी ब्रैंड्स में शामिल है और देशभर में इस के 45 हजार से भी ज्यादा आउटलेट्स हैं.

शुगर ब्रैंड शुरू करने के उद्देश्य के बारे में विनीता कहती हैं, ‘‘मैं हमेशा से ऐसा काम करना चाहती थी जिस में मेरी मुख्य ग्राहक महिलाएं ही हों. जब मेरे पहले 2 स्टार्टअप सफल नहीं हुए तो मैं ने अपने पति कौशिक के साथ 2012 में सब्सक्रिप्शन मौडल पर आधारित ब्यूटी ब्रैंड शुरू करने का प्लान बनाया. धीरेधीरे हमारे पास लगभग 2 लाख महिलाओं ने अपनी ब्यूटी से जुड़ी प्राथमिकताएं भेजीं और फिर 2015 में कंज्यूमर ब्यूटी ब्रैंड शुगर कॉस्मेटिक्स लौंच हुआ.’’

अब जज करने की बारी

स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने वाले ‘शार्क टैंक’ के बारे में आज हरकोई जानता है. ‘शार्क टैंक’ के सफर के बारे में बात करते हुए विनीता कहती हैं, ‘‘लगभग 15 साल पहले तक स्टार्टअप व्यवसायी को बेरोजगार ही माना जाता था. अब ‘शार्क टैंक’ की वजह से यह सोच बदल रही है. खुद के लिए फंड रेज करने से ले कर इनवैस्टर बनने तक की राह थोड़ी मुश्किल भरी थी, लेकिन खुश हूं कि अपने आत्मविश्वास के बलबूते मैं यह सब कर सकी.’’

अपने दम पर पहचान बनाने की चाह रखने वाली महिलाओं के लिए विनीता का कहना है, ‘‘आज जो भी महिला स्टार्टअप शुरू करने की सोच रही है उसे सब से पहले खुद की स्किल्स पर अटूट भरोसा करना होगा. माना कि आज भी महिलाओं का नंबर स्टार्टअप की दुनिया में बेहद कम है, लेकिन जिस तरह से महिलाएं आगे आ रही हैं उस से साफ है कि वह दिन दूर नहीं जब इस क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से आगे निकल जाएंगी.’’

Women’s Day: अकेली महिला रोज बनाएं मनचाहा खाना

आज स्त्री पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है. उस स्थिति में स्त्री के गुणों में भी परिवर्तन आया है. सब से बड़ा बदलाव है. आज की लड़कियों का पाक कला के प्रति बढ़ता रुझान है. पहले भी औरत के गुणों में पाक कला की निपुणता थी, पर आज उस की क्लालिटी बदल गई है.

युवतियों ने घर से बाहर की ओर कदम बढ़ाए हैं. आज एकल रहना आम होता जा रहा तो सब से पहले वे सही खाना बनाने की घर से चली आ रही आदत को छोड़ रही हैं. सीए इला को अपनी सर्विस के कारण घर व मातापिता से दूर रहना पड़ रहा है. वह अपनी जौब पूरे कमिटमैंट से करती हुई आगे बढ़ रही है. मगर पीछे छूट गईर् तो खुद खाना बना कर खाने की आदत, जिस के कारण वह आधा वक्त बाहर से खा कर काम चलाती है तो आधा वक्त भूखी ही रहती है, पर खुद खाना नहीं बनाती.

पेशे से वकील रजनी 32 साल की ही है पर तलाकशुदा है. वह अपनी निजी प्रैक्टिस करती है. उस का कहना है, ‘‘मैं पहले खाना बनाती थी पर अकेले के लिए क्या खाना बनाऊं. बाहर से मंगाती हूं व खाती हूं कोई परेशानी नहीं होती. मेरा काम चल ही जाता है.’’

किन कारणों के चलते एक एकल रहने वाली स्त्री खाना बनाने से बचने लगती है?

अकेलापन: एक अकेली युवती को अपने जीवन में कहीं न कहीं एक बात कचोटती रहती है कि वह अकेले जीवन जी नहीं रही बल्कि काट रही है. इस वजह से उस के मन से सब से पहली आवाज यही आती है कि वह खाना क्यों और किस के लिए बनाए? दूसरा कोई साथ हो तभी खाना बनाना अच्छा लगता है और जरूरी भी पर मैं तो अकेली हूं कैसे भी मैनेज कर लूंगी.’’ इस मैनेज शब्द के साथ ही रसोई से वह अपना नाता तोड़ देती है.

थकावट: एकल युवती होने के कारण यह भी लाजिम है कि दिनभर की भागदौड़ खुद करने के बाद वह इतना अधिक थकी होती है कि उस के पास थकावट के कारण इतनी हिम्मत नहीं बचती कि रसोई की ओर रुख करे. थकावट चुपकेचुपके उस से कहती है कि रसोई की तरफ मत जा बाजार से कुछ मंगा, खा और खा कर सो जा.

अहम: एकल रह रही युवती को रसोई में आने से रोकता है उस का अहम, जो उसे बारबार यही एहसास कराता है कि जब तू पुरुषों की तरह हजारों रुपए कमा रही है और बड़ी सम  झदारी व हिम्मत से अकेले निडर हो कर रह रही है तो तु  झे रसोई में जा कर इतना खपने की जरूरत ही क्या है. शान से पैसा फेंक बढि़या खाना और्डर कर और खा कर मस्त रह.

समय: एकल महिला के पास समय की कमी का पाया जाना भी एक मुख्य कारण है जोकि उसे विवश करता है कि नहीं तू खाना मत बना क्योंकि जितनी देर में सब्जी लाएगी, ग्रौसरी जमा करेगी, खाना बनाएगी उतनी देर में तो अपना एक और जरूरी काम पूरा कर लेगी. समय सीमा में बंधी स्त्री मजबूरीवश भोजन बनाना न चाहते हुए भी छोड़ देती है.

ये वे मुख्य कारण हैं जिन के चलते एकल रह रही महिला अपने लिए खाना नहीं बनाना चाहती पर कई वजहें हैं जिन के कारण एकल रह रही स्त्री को अपने लिए खाना बनाना ही चाहिए:

सेहत: कहते है ‘जान है तो जहान है’ इस कहावत को अगर एकल महिला मूलमंत्र मान ले तो वह कभी भी खाना बनाने से कतराएगी नहीं क्योंकि घर में बना खाना जितना शुद्ध होता है उतना बाहर का बना खाना नहीं. घर के खाने में जहां कम घी, तेल, मिर्चमसालों को वरियता दी जाती है वहीं बाहर के खाने में इस का उलटा ही होता है यानी चिकनाई व मिर्चमसालों की भरमार.  इसलिए एकल स्त्री अपना खाना स्वयं बनाए और सेहतमंद रहे.

बचत: आज आसमान छूती महंगाई में जहां जीवन की जरूरतों को पूरा करना कठिन हो चला है उस स्थिति में अगर एकल महिला घर पर स्वयं ही खाना बनाएगी तो पूंजी की काफी बड़ी मात्रा में बचत कर पाएगी. उदाहरण के तौर पर अगर बाजार में खाना 100-200 रुपए में मंगाती है तो घर पर वही खाना 30-40 रुपए खर्च कर आसानी से बना कर बड़ी मात्रा में धन हानि को रोक सकती है. क्लाइंड किचनों का वैसे भी भरोसा नहीं कि क्लालिटी क्या होगी. बाहर से मंगाया खाना हमेशा ज्यादा पोर्शन वाला होता है और फिर ज्यादा खाया जाता है.

समय: कई बार एकल युवतियां बोरियत व खाली समय जैसे शब्दों से भी घिरी होती हैं. उन की अकसर यह शिकायत होती है कि खाली वक्त को कैसे कम करें तो उस के लिए एक ही विकल्प है कि जब भी आप को लगे कि आप खालीपन के कारण बोर हो रही हैं तो उस वक्त रसोई में जा कर अपने लिए कोई बढि़या डिश तैयार कर मजे से खाए और अपने खालीपन का सदुपयोग करे.

मेजबान बने: एकल युवती के पास एक कारण होता है कि किस के लिए बनाए तो इस बात की काट भी खुद ही करे यानी एक अच्छी कुक व मेजबान बन कर अपनी सहेलियों को खाने पर आमंत्रण दे. उन के लिए दिल से अच्छा भोजन स्वयं बनाए और उन्हें भी खिलाए व खुद भी खाए यानी मेजबानी करना सीखे. पौटलक का आयोजन करती रहे चाहे अकेली लड़कियों व लड़कों के साथ चाहे विवाहित दोस्तों के साथ.

सामंजस्य: एकल रहना किसी भी युवती के लिए आसान कार्य नहीं है क्योंकि कई बार युवती मजबूरी से एकल रहती है तो कभी परिस्थितिवश. कारण कोई भी हो पर एकल रहना आसान नहीं होता. उन परिस्थितियों में एकल युवती को चाहिए कि वह अपनी परिस्थिति को सम  झे और अपने दिल और दिमाग से एकल शब्द को निकाल कर अपना खाना स्वयं जरूर बनाए और खाए.

खुद को खुद ही चेलैंज करे कि जब तू सब कार्य एकल करने में सक्षम है तो खाना बनाने में पीछे क्यों रहे. इस तरह की सकारात्मक सोच ही एक एकल युवती को खाना बनाने के लिए प्रेरित कर सकती है. यानी एकल महिला का आत्मविश्वास ही उसे रसोई तक ले जाने की क्षमता रख सकता है.

मनोचिकित्सकों के अनुसार कितनी युवतियां होती हैं जिन्हें यही समस्या होती कि चूंकि वे अकेले रह रही हैं तो उन का अपने लिए कुछ खाने की चीजें बनाना तो दूर रसोई की तरफ देखने की भी इच्छा नहीं होती है तो क्या करें. इस पर उन्हें यही सलाह है कि अकेले रहते हुए जैसे वे बाकी कार्यों को बखूबी पूरा कर रही हैं वैसे ही अपने लिए भोजन भी जरूर बनाएं.

अपनी आदत को बनाए रखने के लिए

1 सप्ताह का मैन्यू बना कर रखें और उस के अनुसार ही डेवाइज भोजन बनाएं. इस से उन्हें एक नहीं अनेक लाभ मिलेंगे जैसे समय पर सही ताजा भोजन मिलेगा, समय का उपयोग हो कर खालीपन दूर होगा, पैसे की बचत होगी और सब से जरूरी आप को अपना जीवन सजीव लगेगा.

तो सभी एकल महिलाओं को चाहिए कि वे अपना भोजन रोज व स्वयं बनाएं. अगर नहीं बनाती हैं तो बनाने की आदत डालें और जीवन को पूर्णता व सजीवता के साथ जीएं क्योंकि एकल होना जीवन में आ रही परिस्थिति का ही एक हिस्सा है अभिशाप का नहीं. इसलिए एकल हो कर भी खुल कर जीएं.

Women’s Day: अकेली लड़की- कैसी थी महक की कहानी

” बेटे आप दोनों को गिफ्ट में क्या चाहिए? ” मुंबई जा रहे लोकनाथ ने अपनी बच्चियों पलक और महक से पूछा.

12 साल की पलक बोली,” पापा आप मेरे लिए एक दुपट्टे वाला सूट लाना.”

” मुझे किताबें पढ़नी हैं पापा. आप मेरे लिए फोटो वाली किताब लाना,” 7 साल की महक ने भी अपनी फरमाइश रखी.

“अच्छा ले आऊंगा. अब बताओ मेरे पीछे में मम्मी को परेशान तो नहीं करोगे ?”

“नहीं पापा मैं तो काम में मम्मी की हैल्प करूंगी.”

“मैं भी खूब सारी पेंटिंग बनाऊंगी. मम्मी को बिल्कुल तंग नहीं करूंगी. पापा मुझे भी ले चलो न, मुझे मुंबई देखना है,” मचलते हुए महक ने कहा.

” चुप कर मुंबई बहुत दूर है. क्या करना है जा कर? अपने बनारस से अच्छा कुछ नहीं,” पलक ने बहन को डांटा.

” नहीं मुझे तो पूरी दुनिया देखनी है,” महक ने जिद की.

” ठीक है मेरी बच्ची. अभी तू छोटी है न. बड़ी होगी तो खुद से देख लेना दुनिया,” लोकनाथ ने प्यार से महक के सर पर हाथ फिराते हुए कहा.

पलक और महक दोनों एक ही मां की कोख से पैदा हुई थीं मगर उन की सोच, जीवन को देखने का नजरिया और स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क था. बड़ी बहन पलक जहां बेहद घरेलू और बातूनी थी और जो भी मिल गया उसी में संतुष्ट रहने वाली लड़की थी तो वहीं महक को नईनई बातें जानने का शौक था. वह कम बोलती और ज्यादा समझती थी.

पलक को बचपन से ही घर के काम करने पसंद थे. वह 6 साल की उम्र में मां की साड़ी लपेट कर किचन में घुस जाती और कलछी चलाती हुई कहती,” देखो छोटी मम्मी खाना बना रही है.”

तब उस के पिता उसे गोद में उठा कर बाहर निकालते हुए अपनी पत्नी से कहते,” लगता है हमें इस की शादी 18 साल से भी पहले ही करनी पड़ेगी. इसे घरघर खेलना ज्यादा ही पसंद है. ”

18 तो नहीं लेकिन 23 साल की होतेहोते पलक ने शादी की सहमति दे दी और एक बड़े बिजनेसमैन से उस की अरेंज मैरिज कर दी गई. इधर महक बड़ी बहन के बिलकुल विपरीत शादीब्याह के नाम से ही कोसों दूर भागती थी. उसे ज्ञानविज्ञान और तर्कवितर्क की बातों में आनंद मिलता. वह जीवन में दूसरों से अलग कुछ करना चाहती थी. जॉब कर के आत्मनिर्भर जीवन जीना चाहती थी.

जल्द ही उसे एक एडवरटाइजिंग कंपनी में कॉपी एडिटर की जॉब भी लग गई. वक्त गुजरता गया. पलक अब तक 32 साल की हो चुकी थी मगर जब भी घर वाले शादी की बात उठाते वह कोई न कोई बहाना बना देती. शादी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती. इस बीच एक एक्सीडेंट में उस के मम्मीपापा की मौत हो गई. यह वक्त महक के लिए बहुत कठिन गुजरा. अब उसे खुद को अकेले संभालना था. शुरू में तो कुछ समय तक वह पलक के घर में रही. पर बहन की ससुराल में ज्यादा लंबे समय तक रहना अजीब लगता है इसलिए वह अपने घर लौट आई और अकेली रहने लगी.

अकेले रहने की आदी न होने के कारण उसे शुरू में अच्छा नहीं लगता. रिश्तेदार बहुत से थे मगर सब अपने जीवन में व्यस्त थे. इसलिए समय के साथ उस ने ऐसे ही जीने की आदत डाल ली. मांबाप की मौत ने उस के अंदर गहरा खालीपन भर दिया था. यह ऐसा समय था जब वह खुद को अंदर से कमजोर महसूस करने लगी थी. ऐसे में उसे पलक का सहारा था. पलक उसे सपोर्ट देती थी मगर यह बात कहीं न कहीं पलक के घरवालों को अखरती थी.

उस के जीजा नवीन पलक से अक्सर कहा करते,” तुम्हारी बहन शादी क्यों नहीं करती? क्या जिंदगी भर तुम्हारा आंचल पकड़ कर चलेगी? समझाती क्यों नहीं कि बिना शादी के जीना बहुत कठिन है.”

तब पलक हंस कर कहती,” मैं ने उसे आंचल पकड़ाया ही कहां है? वैसे भी उसे जो करना होता है वही करती है. मेरे समझाने का कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.”

अकेली लड़की की जिंदगी में परेशानियां कम नहीं आतीं. लोगों की बुरी नजरों से खुद को बचाते हुए अपने दम पर परिस्थितियों का सामना करना महक धीरेधीरे सीख रही थी.

उस दिन महक ऑफिस से घर लौटी तो तबीयत काफी खराब लग रही थी. बुखार नापा तो 102 डिग्री बुखार था. कुछ करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. वह क्रोसिन खा कर सो गई. अगले दिन बुखार और भी ज्यादा बढ़ गया. उसे डॉक्टर के पास जाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी. तब उस ने पलक को फोन लगाया. पलक ने उसे अपने घर बुला लिया. घर के पास ही एक डॉक्टर से दवाइयां लिखवा दीं. महक को टाइफाइड था. ठीक होने में 10- 12 दिन लग गए. फिर जब तक महक पूरी तरह ठीक नहीं हो गई तब तक वह पलक के ही घर रही. पलक उस के खानेपीने का अच्छे से प्रबंध करती रही. महक की वजह से उस के काम काफी बढ़ गए थे. कई बार उस की वजह से पलक को पति की बात भी सुननी पड़ जाती. तब पलक उसे समझाती कि शादी कर ले।

ठीक होते ही महक अपने घर आ गई. एक दिन रात में 8 बजे महक ने पलक को फोन कर कहा,” मेरे घर के सामने दो अनजान युवक बहुत देर से खड़े बातें कर रहे हैं. मुझे उन की मंशा सही नहीं लग रही. बारबार मेरे ही घर की तरफ देख रहे हैं.”

” ऐसा कर तू सारी खिड़कियांदरवाजे बंद कर और लाइट ऑफ कर के सोने का नाटक कर. वे खुद चले जाएंगे ,” पलक ने सलाह दी.

उस दिन तो किसी तरह मामला निपट गया मगर अब यह रोज की दिनचर्या बन गई थी. लड़के उस के घर की तरफ ही देखते रहते. पलक को असहज महसूस होता. वह घर से निकलती तब भी वे लड़के उसे घूरते रहते.

कुछ समय से वह वर्क फ्रॉम होम कर रही थी मगर आसपड़ोस में काफी शोरगुल होता रहता था. इसलिए वह ठीक से काम नहीं कर पाती थी. उस के घर के ऊपरी फ्लोर पर नया परिवार आया था. ये लोग हर 2 -4 दिन के अंतर पर घर में कीर्तन रखवा देते. माइक लगा कर घंटों भजन गाए जाते. कीर्तन और घंटियों की आवाजें सुनसुन कर उस के दिमाग की नसें हिल जातीं. तब उस ने तय किया कि वह घर शिफ्ट कर लेगी मगर जल्दी ही उसे समझ आ गया कि अकेली लड़की के लिए अपनी पसंद का फ्लैट खोजना भी इतना आसान नहीं है. उस ने 2- 3 सोसाइटीज पसंद कीं जहां उस ने घर लेने की कोशिश की तो पता चला कि वहां बैचलर्स को घर नहीं दिया जाता. इस बात को ले कर महक कई दिनों तक परेशान रही.

उस की परेशानियों के मद्देनज़र उस के जीजा एक ही बात कहते,” शादी कर लो. जीवन में आ रही सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी.”

पलक भी उसे समझाती,” अकेले रहने में समस्याएं तो आएंगी ही. हम हर समय तुम्हारी मदद के लिए खड़े नहीं रह सकते. अपना परिवार बनाओ और चैन से रहो. देख मैं कितनी निश्चिन्त हूँ. जो भी चिंता करनी होती है वह तेरे जीजा करते हैं.”

यह बात तो महक को भी समझ आती थी मगर वह ऐसे ही किसी से शादी करने को तैयार नहीं थी. वह शादी तभी करना चाहती थी जब कोई उसे पसंद आए और उस के लायक हो. तब उस के लिए जीजा ने एक रिश्ता सुझाया और उस के साथ महक की मीटिंग फिक्स कर दी. वह लड़का महक के जीजा के पुराने जानपहचान का था इसलिए वह चाहते थे कि महक शादी के लिए हां कह दे. मगर महक को वह जरा भी पसंद नहीं आया. ठिगना कद और बारहवीं पास वह लड़का महक की सोच के आगे कहीं भी नहीं टिकता था.

भले ही उस लड़के के पास धनदौलत और शानोशौकत की कोई कमी नहीं थी. वह एक शानदार बंगले और कई गाड़ियों का मालिक भी था. मगर महक को जीवनसाथी के रूप में कोई अपने जैसा पढ़ालिखा और काबिल इंसान चाहिए था. महक उसे इंकार कर के चली आई. इस बात पर जीजा और भी ज्यादा भड़क गए.

पलक को सुनाते हुए बोले,” खबरदार जो अब महक के लिए कुछ भी किया या उस की मदद करने की कोशिश भी की. उसे खुद की काबिलियत और शिक्षा पर बहुत घमंड है न. देखता हूं, अकेली लड़की कितने समय तक अपने बल पर जी सकेगी. हर काम में तो उसे हमारी मदद चाहिए होती है. हमारे बिना 4 दिन भी रह ले तो बताना. ”

” यह तो सच है कि उसे हर समय हमारी मदद चाहिए होती है मगर जब कोई सलूशन बताओ तो मानती नहीं. मैं खुद उस से तंग आ गई हूं. ”

इस के बाद दोनों पतिपत्नी ने तय कर लिया कि वह महक को अपनी जिंदगी से दूर रखेंगे. इस बात को 4- 6 महीने बीत गए. पलक ने महक को खुद से दूर कर दिया था. महक सब समझ रही थी मगर उस ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी जंग जारी रखी.

एक दिन पलक ने रोते हुए फोन किया,” महक तेरे जीजा जी का एक्सीडेंट हो गया है. वे छत से गिर गए हैं. सिर पर चोट आई है. खून बह रहा है. मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा कि क्या करूं. निक्कू भी एग्जाम देने गया हुआ है और गोकुल (नौकर) 2 दिन से आ ही नहीं रहा. घर में कोई नहीं है. पापा जी भी जानती ही है, पैरों में तकलीफ की वजह से चल नहीं सकते.”

” कोई नहीं पलक दी मैं आ रही हूं,” महक ने बहन को हिम्मत दी.

बिजली की सी फुर्ती से महक घर से निकली. रास्ते में ही उस ने एंबुलेंस वाले को फोन कर दिया था. आननफानन में उस ने एंबुलेंस में जीजा को हॉस्पिटल पहुंचाया. पलक से उस ने इंश्योरेंस के कागजात भी रखने को कह दिया था. हॉस्पिटल पहुँचते ही उस ने जीजा को एडमिट कराने की सारी प्रक्रिया फटाफट पूरी कराई और उन्हें एडमिट करा दिया. बड़े से बड़े डॉक्टरों से बात कर अच्छे इलाज का पूरा प्रबंध भी करा दिया. कुछ देर में जीजा को होश आ गया. माथे पर गहरी चोट लगी थी सो सर्जरी करनी पड़ी.

इस बीच पलक ने बताया कि इंश्योरेंस वालों ने किसी वजह से क्लेम कैंसिल कर दिया है. महक तुरंत सारे कागजात ले कर भागी और सब कुछ सही कर के ही वापस लौटी.

महक के प्रयासों से सब कुछ अच्छे से निबट गया. कुछ दिन हॉस्पिटल में रख कर जीजा को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. जीजा इतने दिनों में महक को बाहरभीतर की सारी जिम्मेदारियां निभाते देख काफी प्रभावित हो गया था. पलक भी अपनी बहन की तारीफ किए बगैर नहीं रह सकी, ” सच महक अब मुझे यकीन हो गया है कि तू अकेले भी खुद को बहुत अच्छे से संभाल सकती है. अकेली हो कर भी तू कमजोर नहीं है. खुद में पूर्ण है. ”

” दीदी जिंदगी में एक पल ऐसा जरूर आता है जब कोई भी इंसान खुद को अकेला या कमजोर महसूस करता है. जैसे आप की जिंदगी में भले ही सब कुछ है. पति है, बेटा है, घरपरिवार है, मगर सोचिए जब पूरे दिन परिवार के लिए काम करने के बाद रात में जीजाजी आप को किसी कारण से बात सुना कर बाहर चले जाते हैं, निक्कू अपने मोबाइल में और अंकल टीवी में बिजी रहते हैं, तब क्या आप को नहीं लगता कि आप बहुत अकेली हो. इसी तरह मुझे भी कभीकभी लगता है कि मैं बहुत अकेली हूं. मगर जब चुनौतियों को हरा कर कुछ अच्छा करती हूं तो दिल का खालीपन भर जाता है. आखिर अपनी जिंदगी अपनी पसंद के अनुसार हम खुद चुनते हैं. इस में सही या गलत नहीं होता. बस परिस्थितियां ही सही या गलत होती हैं. ”

पलक ने बहन को गले लगाते हुए कहा,” मैं समझ गई हूं महक तू मेरे जैसी नहीं पर मुझ से कम भी नहीं. तेरी सोच अलग है मगर कमजोर नहीं. बहुत स्ट्रॉन्ग है तू. आज तेरा लोहा सिर्फ मैं ने ही नहीं तेरे जीजा ने भी मान लिया है. मेरी प्यारी बहन मुझे तुझ पर गर्व है, ” पलक से अपनी तारीफ सुन कर महक की आंखों में विश्वास भरी चमक उभर आई थी.

Women’s Day: यंग लुक के लिए Makeup टिप्स

40 पार करने का यह मतलब नहीं कि आप मेकअप से तोबा कर लें. इस उम्र में भी आप मेकअप के सही शेड्स और तकनीक का इस्तेमाल कर यंग लुक पा सकती हैं. 40+महिलाएं यंग ऐंड फ्रैश लुक के लिए क्या रखें अपने वैनिटी बौक्स में यह जानने के लिए हम ने बात की मेकअप आर्टिस्ट मनीष केरकर से.

कौन्फिडैंस बढ़ाता है मेकअप

माना कि मेकअप चेहरे की खूबसूरती बढ़ाता है, लेकिन यह भी एक सच है कि मेकअप करने से आत्मविश्वास भी दोगुना हो जाता है. जब आप कहीं सजधज कर जाती हैं और लोग आप की तारीफ करते हैं तो खुदबखुद आप की बौडी लैंग्वेज बदल जाती है क्योंकि उस समय आप खुद को कौन्फिडैंट महसूसकरती हैं. इसलिए जब भी घर से बाहर जाएं, मेकअप करना न भूलें.

मेकअप से परहेज क्यों

ज्यादातर एकल महिलाएं खासकर तलाकशुदा या विधवाएं मेकअप से परहेज करती हैं, जबकि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. डार्क न सही, मगर मेकअप के लाइट शेड्स आप की खूबसूरती में चार चांद लगा सकते हैं. ऐसे प्रोडक्ट्स को मेकअप बौक्स में खास जगह दें. फाउंडेशन के बजाय बीबी या सीसी क्रीम लगाएं. इस से आप को नैचुरल लुक मिलेगा. होंठों पर लिप बाम लगाएं. आई मेकअप के लिए काजल का इस्तेमाल कर सकती हैं. यह न भूलें कि भीड़ में अपनी मौजदूगी दर्ज कराने के लिए प्रेजैंटेबल नजर आना जरूरी है.

मौइस्चराइजर

बढ़ती उम्र के साथ त्वचा भी रूखी हो जाती है. ऐसे में त्वचा को जरूरत होती है ऐक्स्ट्रा मौइस्चराइजर की, जो त्वचा में नमी की कमी को पूरा कर सके. अत: चेहरे के रूखेपन को कम करने के लिए दिन और रात दोनों समय मौइस्चराइजर लगा कर चेहरे को मौइस्चराइज करें. इस से त्वचा मुलायम महसूस होगी और ग्लो भी करेगी.

ऐंटीएजिंग क्रीम

चेहरे पर उभर आई झुरियों को छिपाने के लिए ऐंटीएजिंग क्रीम का इस्तेमाल करें. इस से त्वचा में कसाव महसूस होगा. आप चाहें तो बाजार में उपलब्ध पौंड्स का बीवी या लैक्मे का सीसी क्रीम भी यूज कर सकती हैं. इस में मौइस्चराइजर, ऐंटीएजिंग क्रीम, सनस्क्रीन आदि के गुण होते हैं, जिस से आप को फाउंडेशन, सनस्क्रीन, ऐंटीएजिंग क्रीम आदि अलगअलग लगाने की जरूरत नहीं होगी.

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बेस मेकअप

– बेस मेकअप के लिए फेस पाउडर का इस्तेमाल करने से बचें. इस से चेहरे की   झुर्रियां उभर कर दिखाई देती हैं.

– परफैक्ट बेस के लिए मैट फिनिश वाला लिक्विड फाउंडेशन यूज करें.

– यदि आप कंसीलर यूज करना चाहती हैं, तो फाउंडेशन की तरह कंसीलर भी लिक्विड बेस्ड ही खरीदें.

फाउंडेशन

– यंग लुक के लिए मौइस्चराइजर युक्त फाउंडेशन खरीदें. यह रूखी त्वचा को कोमलता प्रदान करता है.

– स्किन को शाइनी इफैक्ट देने के लिए हलके पीले शेड का फाउंडेशन लगाएं.

– पूरे चेहरे पर फाउंडेशन लगाने की गलती न

करें. इसे सिर्फ चेहरे पर उभर आई फाइन लाइंस, रैडनैस, ब्राउन स्पौट आदि को छिपाने के लिए यूज करें.

– थिक फाउंडेशन का इस्तेमाल आप की फाइन लाइंस को उभार सकता है. अत: लाइट वेट फाउंडेशन ही खरीदें.

नैक मेकअप

– इस उम्र में सिर्फ बेस मेकअप से काम नहीं चलेगा, परफैक्ट लुक के लिए आप को नैक मेकअप भी करना पड़ेगा.

– बेस मेकअप की तरह नैक मेकअप के लिए भी नैक और बस्ट एरिया, अगर आप डीप नैक ड्रैस पहन रही हैं, तो फाउंडेशन लगाएं.

आई मेकअप

– आईशैडो लगाने से पहले प्राइमर लगा कर आई मेकअप को परफैक्ट बेस दें. इस से फाइन लाइंस उभर कर नजर नहीं आएंगी.

– प्राइमर की तरह परफैक्ट बेस के लिए कंसीलर भी लगा सकती हैं, लेकिन इसे आंखों के चारों तरफ नहीं, सिर्फ आंखों के निचले हिस्से पर लगाएं ताकि डार्क सर्कल्स छिप जाएं.

– अच्छे परिणाम के लिए कंसीलर में थोड़ा सी आई क्रीम मिला कर अप्लाई करें.

आईशैडो

– डार्क आई मेकअप करने से बचें. इस में आप की उम्र और अधिक नजर आ सकती है.

– मैट फिनिश वाला क्रीम बेस्ड आईशैडो यूज करें.

– फुल शिमर शेड के बजाय शैंपेन आईशैडो लगाएं. यह आप को यंग लुक देगा.

– पूरी पलकों पर आईशैडो का कोई भी डार्क कलर न लगाएं. हां, डार्क ऐंड लाइट का कौंबिनेशन लगा सकती हैं.

– ब्राइट आईशैडो का इस्तेमाल न करें. इस से   झुर्रियां उभर कर दिखेंगी.

आईलाइनर

– ब्लैक आईलाइनर के बजाय अपने वैनिटी बौक्स में डीप ब्राउन शेड का आईलाइनर रखें.

– लिक्विड आईलाइनर का इस्तेमाल आप के आई मेकअप को हैवी लुक दे सकता है, इसलिए लैक्मे का पैंसिल आईलाइनर खरीदें. इस से सौफ्ट लुक मिलेगा.

– नैचुरल लुक के लिए आईलाइनर सिर्फ आंखों की ऊपरी आईलिड पर लगाएं. निचली आईलिड पर न लगाएं.

– लाइनर को पलकों के कोने पर ला कर ऊपर की तरफ ले जाएं. इस से आंखें बड़ी और आकर्षक नजर आएंगी.

कर्ली आईलैशेज

– उम्र के बढ़ने के साथसाथ आईलैशेज कम होती

जाती हैं. इसलिए मसकारा लगा कर आईलैशेज को कर्ल करना न भूलें.

– डिफरैंट लुक के लिए ब्लैक या ब्राउन के बजाय ग्रे कलर का मसकारा लगाएं.

– ट्रांसपैरेंट मसकारा लगा कर भी आईलैशेज को कर्ल कर सकती हैं.

– कलरफुल या ब्राइट शेड्स का मसकारा

न लगाएं.

आईब्रोज

– आईलैशेज की तरह ही 40 के बाद आईब्रोज की ग्रोथ भी कम हो जाती है. इसे हाईलाइट करने के लिए ब्लैक का सब से लाइट शेड आईब्रो पैंसिल यूज करें.

– बहुत ज्यादा आईब्रोज करवाने से बचें वरना आईब्रोज के पास की त्वचा ढीली पड़ सकती है.

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लिपस्टिक

– होंठों की त्वचा बहुत नाजुक होने से बहुत जल्दी रूखी नजर आती है. इसे मुलायम बनाए रखने के लिए रोजाना रात में सोने से पहले होंठों पर वैसलीन लगाएं.

– अगर लिप को शेप देने के लिए लिप लाइनर का इस्तेमाल कर रही हैं, तो ध्यान रहे कि इस के लिए लाइनर का शेड लिपस्टिक के शेड से लाइट हो.

– नैचुरल और डीप शेड लिपस्टिक के बजाय दोनों के बीच का कोई शेड चुनें.

– मैट के बजाय क्रीमी लिपस्टिक खरीदें. यह होंठों को सौफ्ट टच देगी.

– लिपस्टिक के लिए ब्राउन, बरगंडी जैसे डार्क शेड न चुनें. लाइट शेड्स को तवज्जो दें.

– रूखे होंठों को सौफ्ट टच देने के लिए लिपस्टिक लगाने के बाद लिप ग्लौस लगाना

न भूलें.

चीक मेकअप

– बढ़ती उम्र के साथ चेहरे का फैट कम हो जाता है. ऐसे में चीकबोन को हाईलाइट कर के आप आकर्षक लुक पा सकती हैं.

– चीक्स के लिए पाउडर नहीं, क्रीम बेस्ड मैट ब्लशर इस्तेमाल करें.

– पीच, पिंक जैसे ब्लशर आप को यंग लुक दे सकते हैं.

हाईलाइटर से छिपाएं रिंकल्स

मेकअप पूरा करने के बाद भी अगर रिंकल्स नजर आएं तो उन्हें छिपाने के लिए हाईलाइटर का इस्तेमाल करें, लेकिन इसे पूरे चेहरे पर लगाने की गलती न करें, सिर्फ वहीं लगाएं, जहां पर रिंकल्स नजर आ रही हों. यदि आप सांवली हैं तो शैंपेन शेड और गोरी हैं तो गोल्डन बेज कलर का हाईला इंटर खरीदें.

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Women’s Day: 75 साल में महिलाओं को धर्म से नहीं मिली आजादी

15 अगस्त को देश की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो गए हैं. इन 7 दशकों में औरतों के हालात कितने बदले? वे कितनी स्वतंत्र हो पाई हैं? धार्मिक, सामाजिक जंजीरों की जकड़न में वे आज भी बंधी हैं. उन पर पैर की जूती, बदचलन, चरित्रहीन, डायन जैसे विशेषण चस्पा होने बंद नहीं हो रहे. उन की इच्छाओं का कोई मोल नहीं है. कभी कद्र नहीं की गई. आज भेदभाव के विरुद्ध औरतें खड़ी जरूर हैं और वे समाज को चुनौतियां भी दे रही हैं.

7 दशक का समय कोई अधिक नहीं होता. सदियों की बेडि़यां उतार फेंकने में 7 दशक का समय कम ही है. फिर भी इस दौरान स्त्रियां अपनी आजादी के लिए बगावती तेवरों में देखी गईं. सामाजिक रूढिवादी जंजीरों को उतार फेंकने को उद्यत दिखाई दीं और संपूर्ण स्वतंत्रता के लिए उन का संघर्ष अब भी जारी है. संपूर्ण स्त्री स्वराज के लिए औरतों के अपने घर, परिवार, समाज के विरुद्ध बगावती तेवर रोज देखने को मिल रहे हैं.

एक तरफ औरत की शिक्षा, स्वतंत्रता, समानता एवं अधिकारों के बुनियादी सवाल हैं, तो दूसरी ओर स्त्री को दूसरे दर्जे की वस्तु मानने वाले धार्मिक, सामाजिक विधिविधान, प्रथापरंपराएं, रीतिरिवाज और अंधविश्वास जोरशोर से थोपे जा रहे हैं और एक नहीं अनेक प्रवचनों में ये बातें दोहराई जा रही हैं.

स्त्री नर्क का द्वार

धर्मशास्त्रों में स्त्री को नर्क का द्वार, पाप की गठरी कहा गया है. मनु ने स्त्री जाति को पढ़ने और सुनने से वर्जित कर दिया था. उसे पिता, पति, पुत्र और परिवार पर आश्रित रखा. यह विधान हर धर्म द्वारा रचा गया. घर की चारदीवारी के भीतर परिवार की देखभाल और संतान पैदा करना ही उस का धर्म बताया गया. औरतों को क्या करना है, क्या नहीं स्मृतियों में इस का जिक्र है. सती प्रथा से ले कर मंदिरों में देवदासियों तक की अनगिनत गाथाएं हैं. यह सोच आज भी गहराई तक जड़ें जमाए है. इस के खिलाफ बोलने वालों को देशद्रोही कहा जाना धर्म है. स्त्री स्वतंत्रता आज खतरे में है.

औरत हमेशा से धर्म के कारण परतंत्र रही है. उसे सदियों से अपने बारे में फैसले खुद करने का हक नहीं था. धर्म ने औरत को बचपन में पिता, जवानी में पति और बुढ़ापे में बेटों के अधीन रहने का आदेश दिया. शिक्षा, नौकरी, प्रेम, विवाह, सैक्स करना पिता, परिवार, समाज और धर्म के पास यह अधिकार रहा है और 7 दशक बाद यह किस तरह बदला यह दिखता ही नहीं है. कानूनों और अदालती आदेशों में यह हर रोज दिखता है.

अब औरतें अपने फैसले खुद करने के लिए आगे बढ़ रही हैं. कहींकहीं वे परिवार, समाज से विद्रोह पर उतारू दिखती हैं.

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आजादी के बाद औरत को कितनी स्वतंत्रता मिली, उसे मापने का कोई पैमाना नहीं है. लेकिन समाजशास्त्रियों से बातचीत के अनुसार देश में लोग अभी भी घर की औरतों को दहलीज से केवल शिक्षा या नौकरी के अलावा बाहर नहीं निकलने देते. लिबरल, पढे़लिखे परिवार हैं, जिन्हें जबरन लड़कियों के प्रेमविवाह, लिव इन रिलेशन को स्वीकार करना पड़ रहा है. लोग बेटी और बहू को नौकरी, व्यवसाय करने देने पर इसलिए सहमत हैं, क्योंकि उन का पैसा पूरा परिवार को मिलता है. फिर भी इन लोगों को समाज के ताने झेलने पड़ते हैं. देश में घूंघट प्रथा, परदा प्रथा का लगभग अंत हो रहा है पर शरीर को ढक कर रखो के उपदेश चारों ओर सुनने को मिल रहे हैं.

आज औरतें शिक्षा, राजनीति, न्याय, सुरक्षा, तकनीक, खेल, फिल्म, व्यवसाय हर क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही हैं. यह बराबरी संविधान ने दी है. वे आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हो रही हैं. उन में आत्मविश्वास आ रहा है, पर पुरुषों के मुकाबले अभी वे बहुत पीछे हैं.

इन 70 सालों में औरत को बहुत जद्दोजहद के बाद आधीअधूरी आजादी मिली है. इस की भी उसे कीमत चुकानी पड़ रही है. आजादी के लिए वह जान गंवा रही है. आए दिन बलात्कार, हत्या, आत्महत्या, घर त्यागना आम हो गया है. महिलाओं के प्रति ज्यादातर अपराधों में दकियानूसी सोच होती है.

लगभग स्वतंत्रता के समय दिल्ली के जामा मसजिद, चांदनी चौक  इलाके में अमीर मुसलिम घरों की औरतों को बाहर जाना होता था, तो 4 लोग उन के चारों तरफ परदा कर के चलते थे. अब जाकिर हुसैन कालेज, जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में युवतियां बुरके के बजाय जींसटौप में देखी जा सकती हैं. पर ठीक उसी के पास कम्युनिटी सैंटर में खुले रेस्तराओं में हिजाब और बुरके में लिपटी भी दिखेंगी.

बराबरी का हक

जीन और जींस की आजादी यानी पहननेओढ़ने की आजादी, पढ़नेलिखने की आजादी, घूमनेफिरने की आजादी, सैक्स करने की आजादी जैसे नारे आज हर कहीं सुनाई पड़ रहे हैं पर बराबरी का प्राकृतिक हक स्त्री को भारत में अब तक नहीं मिल पाया है.

दुनिया भर में लड़कियों को शिक्षित होने के हरसंभव प्रयास हुए. अफगानिस्तान में हाल  तक बड़ी संख्या में लड़कियों के स्कूलों को मोर्टरों से उड़ा दिया गया. मलाला यूसुफ जई ने कट्टरपंथियों के खिलाफ जब मोरचा खोला, तो उस पर जानलेवा हमला किया गया. कट्टर समाज आज भी स्त्री की स्वतंत्रता पर शोर मचाने लगता है.

दरअसल, औरत को राजनीति या पुरुषों ने नहीं रोका. आजादी के बाद सरकारों ने उन्हें बराबरी का हक दिलाने के लिए कई योजनाएं लागू कीं. पुरुषों ने ही नए कानून बनाए, कानूनों में संशोधन किए. स्वतंत्रता के बाद कानून में स्त्री को हक मिले हैं. उसे शिक्षा, रोजगार, संपत्ति का अधिकार, प्रेमविवाह जैसे मामलों में समानता का कागजों पर हक है. सती प्रथा उन्मूलन, विधवा विवाह, पंचायती राज के 73वें संविधान संशोधन में औरतों को एकतिहाई आरक्षण, पिता की संपत्ति में बराबरी का हक, अंतर्जातीय, अंतधार्मिक विवाह का अधिकार जैसे कई कानूनों के जरीए स्त्री को बराबरी के अधिकार दिए गए. बदलते कानूनों से महिलाओं का सशक्तीकरण हुआ है.

स्वतंत्रता पर अंकुश

औरतों पर बंदिशें धर्म ने थोपीं. समाज के ठेकेदारों की सहायता से उन की स्वतंत्रता पर तरहतरह के अंकुश लगाए. उन के लिए नियमकायदे गढे़. उन की स्वतंत्रता का विरोध किया. उन पर आचारसंहिता लागू की, फतवे जारी किए. अग्निपरीक्षाएं ली गईं.

कहीं लव जेहाद, खाप पंचायतों के फैसले, वैलेंटाइन डे का विरोध, प्रेमविवाह का विरोध, डायन बता कर हमले समाज की देन हैं. औरतें समाज को चुनौती दे रही हैं. सरकारें इन सब बातों से औरतों को बचाने की कोशिश करती हैं.

पर औरत को अपनी अभिव्यक्ति की, अपनी स्वतंत्रता की कीमत चुकानी पड़ रही है. मनमरजी के कपड़े पहनना, रात को घूमना, सैक्स की चाहत रखना, प्रेम करना ये बातें समाज को चुनौती देने वाली हैं इसलिए इन पर हमले किए जाते हैं.

आज स्त्री के लिए अपनी देह की आजादी का सवाल सब से ऊपर है. उस की देह पर पुरुष का अवैध कब्जा है. वह अपने ही शरीर का, अंगों का खुद की मरजी से इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. उस पर अधिकार पुरुष का ही है. पुरुष 2-2, 3-3 औरतों के साथ संबंध रख सकता है पर औरत को परपुरुष से दोस्ती रखने की मनाही है. यहां पवित्रता की बात आ जाती है, चरित्र का सवाल उठ जाता है, इज्जत चली जाने, नाक कटने की नौबत उठ खड़ी होती है. आज ज्यादातर अपराधों की जड़ में स्त्री की आजादी का संघर्ष निहित है. भंवरी कांड, निर्भया मामला औरत का स्वतंत्रता की ओर बढ़ते कदम को रोकने का प्रयास था. औरतें आज घर से बाहर निकल रही हैं, तो इस तरह के अपराध उन्हें रोकने के लिए सामने आ रहे हैं. स्त्रियों की स्वतंत्रता से समाज के ठेकेदारों को अपनी सत्ता हिलती दिख रही है.

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आजकल अखबारों में रोज 5-7 विज्ञापन युवा लड़कियों के गायब होने, अपहरण होने के छप रहे हैं. ये वे युवतियां होती हैं, जिन्हें परिवार, समाज से अपने निर्णय खुद करने की स्वतंत्रता हासिल नहीं हो पाती, इसलिए इन्हें प्रेम, शादी, शिक्षा, रोजगार जैसी आजादी पाने के लिए घर से बगावत करनी पड़ रही है.

स्वतंत्रता का असर इतना है कि अब औरत की सिसकियां ही नहीं, दहाड़ें भी सुनाई पड़ती हैं. पिछले 30 सालों में औरतें घर से निकलना शुरू हुई हैं. आज दफ्तरों में औरतों की तादाद पुरुषों के लगभग बराबर नजर आने लगी है. शाम को औफिसों की छुट्टी के बाद सड़कों पर, बसों, टे्रेनों, मैट्रो, कारों में चारों ओर औरतें बड़ी संख्या में दिखाई दे रही हैं.

उन के लिए आज अलग स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय बन गए हैं. उन्हें पुरुषों के साथ भी पढ़नेलिखने की आजादी मिल रही है.

औरतों ने जो स्वतंत्रता पाई है वह संघर्ष से, जिद्द से, बिना किसी की परवाह किए. नौकरीपेशा औरतें औफिसों में पुरुष साथी के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. घर आ कर भी फोन पर कलीग से, बौस से लंबी बातें कर रही हैं. वे अपने पुरुष मित्र के साथ हाथ में हाथ लिए सड़कों, पार्कों, होटलों, रेस्तराओं, पबों, बारों, मौलों, सिनेमाहालों में जा रही हैं. निश्चित तौर पर वे सैक्स भी कर रही हैं.

कई औरतें खुल कर समाज से बगावत पर उतर आई हैं. वे बराबरी का झंडा बुलंद कर रही हैं. समाज को खतरा इन्हीं औरतों से लगता है, इसलिए समाज के ठेकेदार कभी ड्रैस कोड के नियम थोपने की बात करते हैं, तो कभी मंदिरों में प्रवेश से इनकार करते हैं. हालांकि मंदिरों में जाने से औरतों की दशा नहीं सुधर जाएगी. इस से फायदा उलटा धर्म के धंधेबाजों को होगा.

अब औरत प्रेम निवेदन करने की पहल कर रही है, सैक्स रिक्वैस्ट करने में भी उसे कोई हिचक नहीं है. समाज ऐसी औरतों से डरता है, जो उस पर थोपे गए नियमकायदों से हट कर स्वेच्छाचारी बन रही हैं.

पर औरत के पैरों में अभी भी धार्मिक, सामाजिक बेडि़यां पड़ी हैं. इन बेडि़यों को तोड़ने का औरत प्रयास करती दिख रही है. केरल में सबरीमाला, महाराष्ट्र में शनि शिगणापुर और मुंबई में हाजी अली दरगाह में महिलाएं प्रवेश की जद्दोजहद कर रही हैं.

यहां भी औरतों को समाज रोक रहा है, संविधान नहीं. संविधान तो उसे बराबरी का अधिकार देने की वकालत कर रहा है. इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने रोक को गलत बताया है. उन्हें बराबरी का हक है.

लेकिन औरत को जो बराबरी मिल रही है वह प्राकृतिक नहीं है. उसे कोई बड़ा पद दिया जाता है, तो एहसान जताया जाता है. जबप्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति बनाया तो खूब गीत गाए कि देखो हम ने एक महिला को इस बड़े पद पर बैठाया है. महिला को राज्यपाल, राजदूत, जज, पायलट बनाया तो हम ने बहुत एहसान जता कर दुनिया को बताया. इस में बताने की जरूरत क्यों पड़ती है? स्त्री क्या कुछ नहीं बन सकती?

लड़की जब पैदा होती है, तो कुदरती लक्षणों को अपने अंदर ले कर आती है. उसे स्वतंत्रता का प्राकृतिक हक मिला होता है. सांस लेने, हंसने, रोने, चारों तरफ देखने, दूध पीने जैसे प्राकृतिक अधिकार प्राप्त होते हैं. धीरेधीरे वह बड़ी होती जाती है, तो उस से प्राकृतिक अधिकार छीन लिए जाते हैं. उस के प्रकृतिप्रदत्त अधिकारों पर परिवार, समाज का गैरकानूनी अधिग्रहण शुरू हो जाता है. उस पर धार्मिक, सामाजिक बंदिशों की बेडि़यां डाल दी जाती हैं. उसे कृत्रिम आवरण ओढ़ा दिया जाता है.  ऊपरी आडंबर थोप दिए जाते हैं. ऐसे आचारविधान बनाए गए जिन से स्त्री पर पुरुष का एकाधिकार बना रहे और स्वेच्छा से उस की पराधीनता स्वीकार कर लें.

हिंदू धर्म ने स्त्री और दलित को समाज में एक ही श्रेणी में रखा है. दोनों के साथ सदियों से भेदभाव किया गया. दलित रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया गया तो खूब प्रचारित किया गया कि घासफूस की झोपड़ी में रहने वाले दलित को हम ने 360 आलीशान कमरों वाले राष्ट्रपति भवन में पहुंचा दिया, लेकिन आप ने इन्हें क्यों सदियों तक दबा कर रखा? ऊपर नहीं उठने दिया उस की सफाई कोई नही दे रहा.

आज औरत को जो आजादी मिल रही है वह संविधान की वजह से मिल रही है पर धर्म की सड़ीगली मान्यताओं, पीछे की ओर ले जाने वाली परंपराओं और प्रगति में बाधक रीतिरिवाजों को जिंदा रखने वाला समाज औरत की स्वतंत्रता को रोक रहा है. दुख इस बात का है कि औरतें धर्म, संस्कृति की दुहाई दे कर अपनी आजादी को खुद बाधित करने में आगे हैं. अपनी दशा को वे भाग्य, नियति, पूर्व जन्म का दोष मान कर परतंत्रता की कोठरी में कैद रही हैं. आजादी के लिए उन्हें धर्म की बेडि़यों को उतार फेंकना होगा.

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Women’s Day: ‘ड्राइव हर बैक’ कैंपेन महिलाओं को कैरियर से दोबारा जोड़ने की पहल

महिलाओं का जीवन जिम्मेदारियों व उतारचढ़ाव से भरा होता है. परिवार व बच्चों की खातिर उन्हें कई बार ऐसे समझते भी करने पड़ते हैं, जो उनके सपनों से जुड़े होते हैं यानी अच्छीखासी नौकरी करने के बावजूद उन्हें कई बार किन्हीं कारणों से जौब छोड़नी पड़ती है या फिर जौब से ब्रेक लेना पड़ता है, जो सीधे तौर पर उनके आत्मविश्वास को कम करने के साथसाथ उनके मनोबल को तोड़ने का भी काम करता है. वे मन ही मन यही सोचती हैं कि कैरियर से ब्रेक तो आसानी से ले लिया, लेकिन क्या कैरियर में वापसी भी उतनी आसानी से हो पाएगी. यही सवाल उन्हें मन ही मन परेशान करता है.

महिलाओं की इसी परेशानी को समझते हुए 2019 में एमजी मोटर इंडिया की पहल पर ‘ड्राइव हर बैक’ (डीएचबी) कैंपेन की शुरुआत हुई, जिस से कैरियर में वापस लौटने वाली महिलाओं को जोड़ कर उन्हें न सिर्फ रोजगार दिया बल्कि उनके आत्मविश्वास व कोन्फिडेन्स को भी वापस लौटाने का काम किया.

तो आइए जानते हैं इसके बारे में

एमजी मोटर इंडिया कुछ समय से उन प्रतिभावान व अनुभवी महिलाओं की मदद करना चाहता था, जो परिवार, बच्चों व प्रेग्नेंसी इत्यादि कारणों की वजह से कैरियर से ब्रेक ले चुकी थीं, लेकिन अब दोबारा से अपनी कारपोरेट यात्रा को शुरू करना चाहती थीं. उनकी भावना व परेशानी को अपनी परेशानी समझते हुए एमजी मोटर इंडिया ने 2019 में ‘ड्राइव हर बैक’ कैंपेन की शुरुआत की ताकि ऐसी महिलाओं के हुनर को प्रशिक्षण से और निखार कर वे कामयाबी की ऊंचाइयों को छूने में सफल हो सकें. उनका खोया हुआ कोन्फिडेन्स वापस लौटे और वे अपने अधूरे सपनों को इस प्लेटफार्म के जरिए पूरा कर सकें.

‘ड्राइव हर बैक’ कैंपेन के पहले सीजन में 250 महिलाओं ने भाग लिया, वहीं दूसरे सीजन में इनकी संख्या दोगुनी होकर 500 पहुंच गई है. जिसके माध्यम से अब तक 42 महिलाओं को दोबारा से अपना कैरियर शुरू करने में सहयोग मिल चुका है. जो इस कैंपेन की बड़ी सफलता को दर्शाने का काम करता है. बता दें कि जिन महिलाओं ने कैरियर से ब्रेक लिया था, उनमें आत्मविश्वास पैदा करने के लिए इसके अंतर्गत उनके लिए कार्यशालाएं चलाई जाती हैं. ये कार्यशालाएं प्रवेश कार्यक्रम के दौरान होती हैं, जहां टीम के हर सदस्य को एक उपयुक्त संरक्षक दिया जाता है.

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महिलाओं को ट्रेनिंग

हमारे आफलाइन वार्षिक कार्यक्रम के अंतर्गत महिलाओं को कुशल संरक्षकों द्वारा जरूरी ट्रेनिंग दी जाती है ताकि उन्हें कॉरपोरेट सेक्टर में उतरने के लिए स्ट्रौंग ट्रेनिंग दी जाने के साथसाथ वे वर्क व जीवन में बैलेंस बनाना भी सीख सकें.

इसके लिए हमने गुजरात के आसपास से योग्य महिला अभ्यर्थियों को खोजा और उन्हें एमजी इंडिया की सपोर्ट टीम में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया. महिलाएं के इस प्रशिक्षण में हिस्सा लेने पर उन्हें कई बेहतरीन अवसर मिल सकते हैं व मिल रहे हैं.

एमजी मोटर इंडिया ‘ड्राइव हर बैक’ कैंपेन की टीम में प्रोफेशनल्स को नियुक्त करता है, जो हमेशा कंपनी के मिशन व विजन को ध्यान में रखकर काम करें. छोटेबड़े हर स्तर पर पहल करने की कोशिश की जा रही है ताकि इस कार्यक्रम को सफल बनाया जा सके. यहां तक कि अपने कर्मचारियों के लिए तरहतरह के डी एंड आई सत्रों (डाइवर्सिटी एंड इनक्लूसन) सत्रों का आयोजन भी किया जाता है ताकि कहीं कोई कमी न रहने पाए और समावेशी संस्कृति को भी बढ़ावा मिले.

एक उपयुक्त मंच है

इसके अंतर्गत हर कर्मचारी के लिए लचीली समयसारणि व रणनीतियां तैयार करते हैं ताकि उनका व्यक्तिगत व प्रोफेशनल तरीके से विकास हो. इसके अनुसार डीएचबी की महिला सदस्याएं प्रशिक्षण व मेहनत के अनुसार अपना कॉरपोरेट कैरियर शुरू कर सकती हैं. हम जमीनी स्तर पर भी सीख देते हैं ताकि कहीं भी किसी भी तरह की कोई दिक्कत न आए.

‘ड्राइव हर बैक’ प्रोग्राम महिलाओं में कुशलताओं का निर्माण करने के अलावा सीखने और विचारों का आदानप्रदान करने के लिए भी एक बहुत ही उपयुक्त मंच है ताकि वे इसका हिस्सा बनकर खुद को बेहतर साबित करने में सफल हो सकें.

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इसके दो सीजन की सक्सेस को देखते हुए एमजी मोटर इंडिया इसके तीसरे सीजन में कुछ और बदलाव कर रहा है. विभिन्न स्तरों और कुशलताओं के आधार पर नियुक्ति होगी और कई उद्योगों से महिलाओं को आमंत्रित किया जाएगा. इस कार्यक्रम से जुड़कर महिलाएं खुद में काफी सुधार महसूस कर

रही हैं. शुरुआत में उनमें विचारों को व्यक्त करने में जो हिचकिचाहट थी, वे प्रशिक्षण से दूर होकर खुद को अब कोन्फिडेन्स से भरपूर पा रही हैं, क्योंकि मेहनत, प्रशिक्षण के दम पर उनकी जोरदार तरीके से कैरियर में वापसी जो हो रही है.

Women’s Day: पाएं चमकदार और खूबसूरत Skin

हर औरत का ख्वाब होता है कि उसकी त्वचा चमकदार व सुंदर हो. हर मौसम में त्वचा हर मौसम के हिसाब से खुद को बदलती है और हम उस की जरूरतों को पूरा करना चाहिए, वैक्सिंग से आपका कान्फिडेंस चार गुना बढ़ जायेगा अगर अगर आप अपनी त्वचा का ख्याल रखेंगे, क्या आप जानना चाहते है कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं. प्रदूषण और अधिकधूप आप की त्वचा में एजिंग ला सकती है, इन कुछ बातों का ध्यान रखकर आप अपनी त्वचा को ड्रायनेस और एजिंग से बचा सकते हो.

वैक्सिंग के बाद स्किन को प्रोटेक्ट करे

वैक्सिंग के बाद, अगर आपकी स्किन औयली है तो एस्ट्रिजेंट का इस्तेमाल करें और अगर आपकी स्किन ड्राई है तो क्लीजिंग मिल्क या टोनर का इस्तेमाल करना न भूलें, ये आपकी त्वचा को जवान और खूबसूरत रखेगा, वैक्सिंग के बाद हमारी त्वचा ड्राई और रूखी हो जाती है, तो उसका ख्याल रखना बहुत जरूरी है. अनचाहे बाल किसे पसंद होते है? वैक्सिंग एक सबसे अच्छा तरीका है उनसे छुटकारा पाने का, पर हमें अपनी त्वचा का भी ख्याल रखना चाहिए. वैक्सिंग के बाद रेडनेस और डायनेस लाजमी है, उसकी केयर करना हमारे हाथ में है. लोशन, एस्ट्रिजेंट, टोनर और गुलाब जल का इस्तेमाल करे और अपनी त्वचा को सुरक्षित बनाएं.

अपने लिए सब से बेहतर चुनने

बाजार में हर प्रकार की वैक्स उपलब्ध है, अपने लिए सबसे बेहतर वैक्स चुने जिससे आपको किसी भी तरह का नुकसान न हो और आपकी त्वचा कोमल रहे, ताकि आप पेनलेस वैक्सिंग का आनंद ले सकें. वैक्सिंग सबसे अच्छा तरीका है अनचाहे बालों से छुटकारा पानें का, क्योंकि रेजर और हेयर रिमूवल क्रीम्स आपकी त्वचा को रफ करती है, जिससे आपकी स्किन का मॉइस्चर कम या थोड़े वक्त में खत्म भी हो सकता है. वैक्सिंग के लिए अच्छे प्रोड्क्ट का होना बहुत जरूरी है जो आपकी स्किन को कोई नुकसान न पहुंचाए.

अपनी त्वचा के बारे में स्टडी करें

कुदरत ने हर किसी की त्वचा अलग बनाई हैं, और ये जरूरी है हमें त्वचा के बारे में सब पता होना चाहिए कि हमारी त्वचा का टाइप क्या है और हमारी त्वचा पर क्याक्या प्रोडक्ट्स सूट करेंगे और क्या प्रोडक्ट्स सूट नहीं करेंगे. अपनी त्वचाका टाइप जानिए, अगर आपकी त्वचा ड्राई है तो क्लीजिंग मिल्क का इस्तेमाल करे और अगर आपकी त्वचा औयली है तो एस्ट्रिजेंट का इस्तेमाल करें. वैक्सिंग के बाद एस्ट्रिजेंट या क्लीजिंग पोर्स ओपन करने का काम करता है, इसके बाद आप टोनर का इस्तेमाल करें जिससे आपकी स्किन के पोर्स मिनीमाइज हो जाए. आपकी त्वचा की देखभाल आपके हाथ में है, अपने लिए सबसे बेहतर चुनें.

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वैक्सिंग के बाद स्क्रब का इस्तेमाल बिलकुल न करे

वैक्सिंग से ही हमारी त्वचा की सन टैन और डेड स्किन सेल्स हट जाते हैं. पर वैक्सिंग के बाद हमारी स्किन बहुत ज्यादा सेंसिटिव हो जाती है और हमें उसका खास ख्याल रखना चाहिए. वैक्सिंग के बाद अपनी स्किन को तौलिये से न पोछे और स्क्रबिंग न करें, ये हमारी स्किन को ड्राई बना सकता है. अकसर वैक्सिंग के बाद हमारी स्किन के पोर्स ओपन हो जाते हैं और हमें उन्हें मिनीमाइज कर देना चाहिए ताकि प्रदूषण और डर्ट से हमारी स्किन खराब न हो. अच्छे लोशन व एस्ट्रिजेंट का इस्तेमाल करें और अपनी स्किन को मॉइश्चराइज करें.

टाइट कपड़े न पहनें

वैक्सिंग के बाद हमारी त्वचा को आराम की जरूरत होती है, तो हमें टाइट कपड़े नहीं पहनने चाहिए, इससे हमारी स्किन में एयर पास नहीं होगी और हमारी स्किन पर रेडनेस और दानें होने की संभावना बढ़ जाएगी. अपनी स्किन को थोड़ा समय दे, उससे सांस लेने दे, ताकि वो और चमकदार और स्मूथ हो. काटन के लूज कपड़े पहनें जिससे आपकी स्किन को किसी भी प्रकार का नुकसान न हो और आप कोई भी आउटफिट अच्छे से कैरी कर पाएं.

वैक्सिंग के समय रखें इन चीजों का ख्याल

वैक्स की थिक लेयर न लगाए, इससे आपकी स्किन पे चोट लग सकती है, स्किन पील भी हो सकती है, या स्किन जल भी सकती है. अपनी स्किन पर पहने टेलकम पाउडर लगाए और वैक्स की पतली लेयर लगाए जिससे आपकी स्किन को किसी प्रकार का नुकसान न हो. वैक्स के बाद अपनी स्किन को वेट वाइप्स से पोंछे ताकि स्किन के ओपन पोरस मिनीमाइज हो जाएं.

अपने पर्सनल वैक्सिंग वेट वाइप्स कैसे बनाये?

  1. काटन पैड्स को काटें.
  2. काटन पैड को एस्ट्रिजेंट या रोज वाटर में डिप करें.
  3. काटन पैड को फ्रिज में स्टोर करे.
  4. उस से वैक्सिंग के बाद इस्तेमाल करें.

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वैक्स और उनके प्रकार

एलोवेरा वैक्स: ये वैक्स ऑयली स्किन के लिए बेस्ट है, क्योंकि ये आपकी स्किन को मॉइश्चरीज्ड और औयल फ्री रखेगी. एलोवेरा बढ़ते दाने और रेडनेस को रोकती है और आपकी त्वचा को हैल्थी बनाता है.

वाइट चॉकलेट वैक्स: ये वैक्स ड्राई स्किन के लिए बैस्ट है, क्योंकि ये आपकी स्किन को हाइड्रेट करता है और उसका रूखापन और रिंकल्स हटाती है. इस वैक्स से आपकी स्किन कोमल और टैन फ्री हो जायेगी.

डार्क चॉकलेट वैक्स: ये वैक्स हर स्किन टाइप के लिए बेस्ट है क्योंकि ये हर मौसम के लिए बेहतरीन है. ये स्किन को स्क्रब करती है और डेड स्किन सेल्स निकालती है.

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