कैसी हो वर्किंग प्रैगनैंट वूमन की डाइट

मां बनना हर महिला के लिए सब से सुखद एहसास होता है. गर्भ में पलने वाला बच्चा महिला को कई चीजें सिखाता है. संवेदनशील बनाता है, प्यार करना सिखाता है. यही वजह है कि कोई भी महिला गर्भवती होने पर अपना खास खयाल रखती है, क्योंकि इस समय मां बनने वाली महिला सिर्फ अपना ही खाना नहीं खाती वरन बच्चे का भी खाती है.

मां बनने वाली वर्किंग लेडी अकसर खुद को थकाथका सा महसूस करती है. 8-9 घंटे औफिस में रहने के कारण वह ज्यादा थक जाती है. उस के बाद वर्किंग महिला को घर का कामकाज भी करना पड़ता है. इसलिए पूरा दिन उस के लिए मुश्किल भरा होता है. आइए, जानें कि वर्किंग लेडी जो मां बनने वाली हो उस के लिए पूरे दिन का डाइट प्लान कैसा हो:

ऐसा हो नाश्ता

अगर आप सुबह उठते ही खाना बनाना या फिर घर का अन्य काम शुरू कर देती हैं तो यह गलत है. सुबह उठते ही सब से पहले आप ग्रीन टी पीएं. अगर आप की सुबह की शुरुआत ग्रीन टी से होगी तो आप दिन भर ऐनर्जी से भरपूर रहेंगी. उस के बाद आप सब से पहले फ्रैश हो नहा लें. यदि लंच खुद ही तैयार करती हैं तो रात को ही इस की तैयारी कर लें. अगर आप को सुबह सब कुछ तैयार मिलेगा तो खाना बनाना सिरदर्द नहीं बनेगा. खाना बनाने के बाद सब से पहले नाश्ता कर लें. नाश्ते में उबले अंडे, रोटी और सब्जी खाएं, इस के बाद अपना टिफिन तैयार करें. टिफिन में आप फ्रूट्स, नट्स और लंच रखें. दही या छाछ रखना तो बिलकुल न भूलें.

औफिस पहुंचने पर

औफिस पहुंचने पर सब से पहले पानी पीएं. पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. उस के बाद थोड़ी देर आराम करें. काम शुरू करने से पहले सेब या अनार खा लें. यह आप की सेहत के साथसाथ बच्चे के लिए भी अच्छा है. केला रखा हो तो उसे भी खा लें. इस के बाद अपना काम शुरू करें.

लंच में खाएं बढि़या खाना

लंच में दालरोटी, सब्जी, दही या छाछ जो कुछ भी आप लाई हों उसे अच्छी तरह से चबाचबा कर खाएं. खाने में जल्दबाजी न करें. खाने के साथसाथ खीरा भी खाएं. इस वक्त आप के लिए और बच्चे के लिए सलाद बहुत जरूरी है.

ईवनिंग स्नैक्स

अकसर देखा जाता है कि ईवनिंग स्नैक्स के रूप में प्रैगनैंट महिला समोसा, जलेबी जैसी चीजें खा लेती हैं. ये चीजें स्वादिष्ठ तो होती हैं, लेकिन हैल्दी बिलकुल भी नहीं. अत: आप घर से नट्स ले कर आएं और फिर उन्हें ही खाएं. अगर आप का चाय या कौफी पीने का मन है तो पी लें. दोनों के लिए फायदेमंद रहेंगे. ईवनिंग स्नैक्स के नाम पर पूरा पेट न भरें, क्योंकि रात को डिनर भी करना है.

घर पहुंचने के लिए जल्दबाजी न करें. अगर  औफिस की कैब है, तो अच्छी बात है वरना शाम के समय सड़कों पर भीड़ होती है. अत: आराम से निकलें. थोड़ी देर होगी, लेकिन आराम से घर पहुंचें, सुरक्षित पहुंचें. घर पहुंचने पर थोड़ा आराम करें. पानी पीएं. उस के बाद घर के काम करें.

डिनर में सेहतमंद खाना

डिनर में सेहतमंद खाना बनाएं. एक टाइम दाल जरूर खाएं, साथ में रोटी, सलाद, सब्जी के रूप में बेबीकौर्न, ब्रोकली, पनीर आदि खा सकती हैं.

रात का खाना खाते ही सोएं नहीं. थोड़ा टहलें. 1 गिलास दूध दिन भर में जरूर पीएं. प्रैगनैंसी के दौरान दूध आप के लिए बेहद जरूरी भी है. साथ ही डाक्टर ने आप को जो दवाएं दी हैं उन्हें याद से खा लें.

अगर आप औफिस के साथसाथ घर का काम मैनेज नहीं कर पा रही हैं तो घर में मदद के लिए मेड रख लें. सारा काम अपनेआप पर न लें. इस से आप को आराम मिलेगा.

7 हैल्थ समस्याओं से बचाता है पू्रंस

कम कैलोरी और ज्यादा फाइबर वाला ड्राईफ्रूट पू्रंस यानी सूखा आलूबुखारा सेहत का ध्यान रखने वालों के बीच आजकल खासा ट्रैंड में है. इस में मौजूद पौलीफिनोल नामक ऐंटीऔक्सीडैंट और पोटैशियम दोनों हड्डियों को मजबूत बनाते हैं. बिगड़ी हुई जीवनशैली में हम छोटी भूख लगने पर कुछ भी खा लेते हैं. जबकि इस के बजाय दिन में एक बार 5-6 पू्रंस खा लें तो शरीर को सही पोषण मिल सकता है.

  1. आंतों को बनाए सेहतमंद

पू्रंस में सौल्यूबल फाइबर काफी मात्रा में होता है जिस से आंतों की सफाई अच्छी तरह होती है. इस के सेवन से आंतें स्वस्थ रहती हैं और कब्ज की समस्या में राहत मिलती है.

2. औस्टियोपोरोसिस में लाभदायक

कई मैडिकल शोधों में यह माना गया है कि औस्टियोपोरोसिस की समस्या से ग्रस्त लोगों में पू्रंस काफी लाभदायक रहा है. इस के संतुलित सेवन से बोन डैंसिटी में सुधार होने की संभावना बढ़ जाती है खासतौर पर यदि किसी महिला को मेनोपौज के बाद यह समस्या हुई है तो उसे डाक्टर की सलाह से इस का सेवन जरूर करना चाहिए.

3. ऐनीमिया से करे बचाव

पू्रंस आयरन के साथसाथ पोटैशियम, विटामिन के, विटामिन बी, जिंक और मैग्नीशियम का भी अच्छा स्रोत है. इस के नियमित सेवन से आप के शरीर के लिए जरूरी मिनरल्स की जरूरत काफी हद तक पूरी हो सकती है.

4. डायबिटीज नियंत्रण में सहायक

चूंकि इस में सौल्यूबल फाइबर पाया जाता है इसलिए यह डाइजेशन प्रोसैस को धीमा करने में सहायक है और जब पाचनक्रिया धीमी हो जाए तो डायबिटीज की समस्या से ग्रस्त लोगों की ब्लड शुगर नियंत्रण में रहती है.

5. मांसपेशियों की चोट से उबारे

पू्रंस में बोरोन नाम का खनिज पाया जाता है जो मांसपेशियों के लिए बहुत जरूरी होता है. यदि आप को मांसपेशियों से जुड़ी समस्याएं हर दूसरे दिन हो जाती हैं तो यह संकेत है कि आप के शरीर में बोरोन की कमी है.

6. दिल की सेहत का रखे खयाल

चूंकि पू्रंस कौलेस्ट्रौल और शुगर को नियंत्रण में रखने में सहायक है इसलिए यह दिल के लिए भी लाभदायक है क्योंकि इन समस्याओं का सीधा असर दिल की सेहत पर पड़ता है.

7. ओबेसिटी कम करे

मोटापा आज की जीवनशैली में सब से बड़ी समस्या है. पू्रंस खाने से आप की बारबार कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती जिस से आप अपने वजन को नियंत्रित रख सकती हैं.

कैसे खाएं: वैसे तो पू्रंस को स्नैक की तरह भी खाया जा सकता है लेकिन दूसरे विकल्प भी हैं:

  •  नाश्ते में ओटमील या दलिया के साथ मिक्स कर खा सकती हैं.
  • दूसरे नट्स के साथ संतुलित मात्रा में मिक्स कर खा सकती हैं.
  • हैल्दी ड्रिंक्स या स्मूदी के साथ इसे ब्लैंड कर सकती हैं.
  • प्यूरी बना कर जैम की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं.
  • बेकिंग का शौक है तो कुछ डिशेज में इस का इस्तेमाल किया जा सकता है.

सेहत से जुड़े इन फायदों के साथसाथ पू्रंस के और भी कई फायदे हैं जैसे:

  • यह बालों को मजबूत बनाने में सहायक है.
  • आंखों की रोशनी के लिए फायदेमंद है.
  • इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक है.
  • समय से पहले झुर्रियों का आना रोकने में सहायक है.

9 टिप्स लाइफ में बनाएं बैलेंस

रितु कितना भी कोशिश कर ले, दफ्तर का तनाव उस पर हावी ही रहता है. जैसे ही कोई काम आता है उसे करना आरंभ कर देती है. जब वह कार्य के मध्य तक पहुंचती है तो बौस के निर्देश बदल जाते हैं. नतीजतन रितु चिड़चिड़ाहट से भर उठती है. वह इतना अधिक चिड़चिड़ाती है कि घरपरिवार में भी उस की लड़ाई हो जाती है. इस तनाव के कारण वह बहुत बार गलत डिसीजन भी ले लेती है. खुल कर हंसना क्या होता है वह भूल चुकी है.

चाह कर भी रितु खुद को कंट्रोल नहीं कर पाती है. जैसे ही कोई कार्य आता है वह बिना सोचेसम?ो उसे करने में जुट जाती है. थके मन से कार्य करने के कारण उस की वर्क ऐफिशिएंसी जीरो हो गई.

रितु का मन सोचता नहीं बल्कि दौड़ता है, उस के आसपास आने से लोग कतराते हैं. उधर घर में भी रितु सारे कार्य खुद के ही सुपरविजन में करवाती. घर के कामों के लिए किसी पर विश्वास नहीं कर पाती है.

रितु हाई ब्लड प्रैशर, डायबिटीज की मरीज बन चुकी है. दफ्तर और घर के लोग अब उस से कन्नी काटते हैं. आज भी रितु तनाव में जी रही है पर अब तनाव काम से हट कर सेहत का हो गया है.

पूजा को भी यही बीमारी है. दफ्तर से ले कर घर का हर कार्य खुद ही करने की उस की आदत हो गई है. लगता है कि उस के बिना कोई काम ठीक से नहीं हो सकता है पूजा को हर काम खुद करना भी होता और फिर सब के सामने रोना भी होता कि घर और दफ्तर में कोई भी कार्य उस के बिना नहीं हो सकता है.

इस का नतीजा यह निकला कि आसपास के लोगों में पूजा हंसी का पात्र बन गई है. सब को लगता है पूजा लाइमलाइट में रहने के लिए ऐसा करती है. इसलिए अब उस के रोने का न घर में और न ही दफ्तर में किसी पर असर होता है. जब भी कोई काम होता है तब सब को पूजा की याद आती है. खाली समय पूजा को भी काटने को दौड़ता है क्योंकि उसे खुद नहीं पता है कि खुद के साथ समय कैसे व्यतीत होता है. वह एक प्रोग्राम्ड रोबोट बन गई है.

कुमुद घर की सब से बड़ी बहू थी. वह एक भरे पूरे परिवार में रहती थी. धीरेधीरे वह कब कुमुद से भाभी, चाची, ताई और मामी बन गई उसे खुद ही नहीं पता चला. परिवार की हर शादी और हर फंक्शन में वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

कुमुद अपनेआप को तो कहीं पीछे छोड़ आई थी. अपने बुटीक का सपना परिवार की जिम्मेदारियों में कहीं स्वाहा हो गया था. मगर जब कुमुद का संयुक्त परिवार अलग हो गया तो उस के पास बहुत अधिक समय हो गया. उस ने अपने पुराने सपने को फिर से जिंदा करा और अपने घर में ही छोटा सा बुटीक खोल लिया था और देर से ही सही खुद का सपना पूरा कर लिया.

आप को अपने परिवार में या दफ्तर में ऐसे उदाहरण देखने को आराम से मिल जाएंगे जो पूरे दफ्तर या घर की धुरी को संभाल कर रखते हैं. हर कार्य चाहे छोटा हो या बड़ा उन के बिना पूरा नहीं होता है. काम करतेकरते वे इतने ओवरवर्कड हो जाते हैं कि उन की खुद की प्रोडक्टिविटी जीरो हो जाती है.

रिश्तों के नाम पर, शौक के मामले में, हर तरह से वे शून्य हो जाते हैं. इंसान हो कर भी वे मशीन का जीवन जीते हैं.

क्या करें और कैसे करें ताकि आप अपनी प्रोफैशनल, पर्सनल और सोशल लाइफ में बैलेंस बना सकें?

  1. हर समय अवेलेबल न रहें

कुछ लोगों की आदत होती है कि वे हर समय काम करने के लिए तत्पर रहते हैं. घर हो या दफ्तर वे हर काम को करने के लिए अवेलेबल रहते हैं. जानेअनजाने सारे काम का भार उन के सिर पर ही आ जाता है. थके हुए मन और तन से वे कितना काम कर पाएंगे? धीरेधीरे उन की प्रोडक्टिविटी जीरो हो जाती है. छुट्टी के दिन और नौर्मल दिन में उन के लिए कोई फर्क नहीं रह जाता है. नतीजतन ऐसे लोग हर समय चिड़चिड़ाने लगते हैं.

2. खुद को थोड़ा रिलैक्स रखें

24 घंटे काम में ध्यान न लगाएं, थोड़ी देर आंखें बंद कर के यों ही बैठ जाएं. अगर बहुत सारे काम पाइपलाइन में हैं तो कामों को प्रायोरिटाइज करें. अगर कुछ काम छूट जाते हैं तो उन्हें छोड़ दे. आप हर काम के लिए जिम्मेदार नहीं हैं. कुछ जिम्मेदारी अपने लिए भी लें.

3. हर समय लीड न करें

घर हो या दफ्तर हर समय लीड लेने से बचें. कभीकभी दूसरों को भी नेतृत्व करने का मौका दें. जिन लोगों को लीड लेने की आदत होती है वे अकसर अपनी टीम में दोगुना काम करते हैं. काम उतना ही करें जितना आप का शरीर इजाजत दे.

4. दफ्तर का तनाव दफ्तर में ही रखें

दफ्तर में तनाव हो सकता है मगर उसे घर पर मत ले कर आएं. जैसे आप दफ्तर में घर का काम नहीं करती हैं वैसे ही दफ्तर का काम घर पर मत ले कर आएं. दफ्तर का तनाव वहां ही छोड़ आएं, अपने बच्चों या परिवार के सदस्यों पर बेवजह गुस्सा न करें. याद रहे घर में आप के टाइम पर उन का पूरा हक है.

5. घर में करें काम विभाजित

जैसे दफ्तर में हर काम को विभाजित करा जाता है वैसे ही घर पर भी करें. खुद को अपनी मां या सास से कंपेयर न करें. घर के जितने काम के लिए आप जिम्मेदार हैं उतनी ही जिम्मेदारी अपने पति को भी दें. खुद को देवी नहीं, एक औरत ही रहने दें.

6. पौजिटिव वोकैबुलरी का करे प्रयोग

कोशिश करें कि नकारात्मक शब्दावली का प्रयोग कम से कम करें. आप जो बोलते हैं उस की ऐनर्जी आप के चारों तरफ रहती है. अपनी वोकैबुलरी में बस सकारात्मक शब्दों को ही स्थान दें. आप जैसे बोलेंगे वैसा ही सोचेंगे और जैसा सोचेंगे वैसा ही हो जाएगा.

7. न कहना सीखें

अपनेआप को वरीयता दें, खुद को हर समय अवेलेबल न रखें. फिर चाहे घर हो या दफ्तर. जो काम करना नहीं चाहती हैं, उसे न कहना सीख लें. अपनेआप को वरीयता देना सीखें. हमेशा दूसरों को खुश करने के चक्कर में कहीं खुद को ही नाराज न कर दें.

8. हर काम में परफैक्शन न ढूंढें

अगर आप को हर काम में परफैक्शन ढूंढ़ने की आदत है तो आप हमेश ही नाखुश रहने वाले हैं. काम को काम की तरह ही करें, उस के लिए अपनेआप को स्वाहा न कीजिए. परफैक्शन ढूंढ़ने वाले लोग हमेशा परेशान ही रहते हैं. कुछ काम को सीधेसादे ढंग से करना होता है और कुछ काम को बहुत परफैक्टली करना ही होता है. अगर आप ऐसा करना सीख लेंगी तो आप की जिंदगी आसान हो जाएगी.

9. बदलाव का करें स्वागत

जिंदगी में एक ही चीज स्थाई है और वह है बदलाव यानी चेंज. कोई रिश्ता, कोई काम कभी भी एक सा नहीं रहता है. आप आज अपने बच्चों के लिए जरूरी होंगे मगर कल उन के लिए आप शायद फालतू बन जाएं, इस बात को याद रखें और खुद को वरीयता देना सीखें वरना बाद में आप की जिंदगी रोतेबिसूरते ही बीतेगी. दूसरों को भी समय दें मगर खुद की जिम्मेदारी उठाना और खुद के लिए समय देना बेहद जरूरी है.

कितनी कैलोरी है जरूरी

आप एक दिन में जितनी कैलोरी का सेवन करते हैं उस का असर आप के वजन पर पड़ता है. स्वस्थ रहने एवं वजन नियंत्रण के लिए आप को ज्यादा कैलोरी की आवश्यकता नहीं होती है. इस के लिए अपनी डाइट में कम कैलोरीयुक्त खानपान की चीजें शामिल करना आवश्यक है, साथ ही वेट लौस ऐक्सरसाइज को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना आवश्यक है.

यदि आप वजन कम करना चाहते हैं तो आप सीआईसीओ यानी ‘कैलोरी इन कैलोरी आउट’ डाइट को अपना सकते हैं.

वजन नियंत्रित करने के लिए कितनी कैलोरी आवश्यक है? इस के लिए सब से पहले अपने बेसल मेटाबौलिक रेट (बीएमआर) की गणना करें, जो आप के शरीर की क्रियाओं जैसे सांस लेने, दिल की धड़कन, पाचन और मांसपेशियों आदि के लिए चाहिए.

अगर आप अपना वजन घटाना चाहते हैं तो अपनी डाइट में कम कैलोरी और वजन बढ़ाने के लिए अधिक कैलोरी को शामिल करें.

सीआईसीओ डाइट क्या है

  •  यह आप के प्रतिदिन कैलोरी इंटेक से जुड़ी डाइट है.
  •  यह वजन घटाने और वजन बढ़ाने दोनों के लिए ही उपयुक्त है क्योंकि यह आप की कैलोरी की खपत को पूरी तरह से नियंत्रित रख सकती है.
  •  जब आप का कैलोरी इन्टेक कम होता है और खपत ज्यादा होती है तो कैलोरी डैफिसिट माना जाता है जिस की वजह से आप का वजन तेजी से कम होता है.
  •  इस डाइट को करने के लिए आप को आप का बीएमआर कैलकुलेट करना पड़ता है. इस के बाद कैलोरी को डैफिसिट करते हैं ताकि आप का वजन कम हो सके. जैसे आप का कैलोरी  इन्टेक 2,000 प्रतिदिन कैलोरी है और आप ने दिनभर में बर्न की 2,500 कैलोरी तो यहां 500 कैलोरी का डैफिसिट है. इस का अर्थ हुआ कि अब आवश्यक 500 कैलोरी आप के शरीर में स्टोर्ड फैट और मसल्स से बर्न होगी और आप का वजन तेजी से कम होने लगेगा.

सीआईसीओ के फायदे

  •  कैलोरी की खपत को नियंत्रित करती है.
  •  इस डाइट को फौलो करने से आप वजन बढ़ाने से बच सकते हैं.
  •  यह डाइट हृदय रोग, अवसाद, कैंसर और सांस की समस्याओं तक कई बीमारियों से सुरक्षित रखने में मदद कर सकती है.
  •  शरीर की अतिरिक्त चरबी को प्राकृतिक रूप से कम करने के लिए भी इस डाइट को फौलो किया जा सकता है.
  • इस के अलावा आप औक्सीडेटिव तनाव कम करने और हारमोनल संतुलन बनाए रखने के लिए भी इस डाइट को अपना सकते हैं.

सीआईसीओ के नुकसान

  •  कैलोरी पर बहुत अधिक ध्यान देने से शरीर में महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों की कमी होने का खतरा बढ़ जाता है.
  •  इस डाइट से बालों का ?ाड़ना, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं, हृदय रोग, मस्तिष्क रोग, सूजन और कमजोर रोगप्रतिरोधक क्षमता जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
  •  इस के अतिरिक्त कैलोरी की कमी से ऐक्सरसाइज करने में कठिनाई भी हो सकती है.

वजन कम करने के लिए आवश्यक नहीं कि आप अपनी कैलोरी को काउंट करें. आप इस के लिए एक बेहतर डाइट प्लान बना सकते हैं ताकि शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी न हो और कमजोरी महसूस न हो और आप का शरीर स्वस्थ बना रहे.

अपनाएं ये टिप्स

अपने आहार में चुनें ऐसी चीजें जिन की कैलोरी कम हो. चयन करें पोषक तत्त्वों से भरपूर खाना न कि कैलोरी के हिसाब से जैसे लो कैलोरी वाली चीजें चावल, केक, एग व्हाइट आदि की जगह न्यूट्रिशएस फूड को अपने आहार में शामिल करें जैसे फल, सब्जियां, फिश, एग्स, बींस और नट्स.

रहें ऐक्टिव

अपनी कैलोरी को बर्न करने के लिए अपनी हौबी के अनुसार ऐक्टिविटी का चुनाव करें ताकि कैलोरी का डैफिसिट हो सके. अपनी नींद और स्ट्रैस को मैनेज करें. अच्छी नींद और कम तनाव दोनों वजन कम करने में सहायक होते हैं. अत: 7-8 घंटे की साउंड नींद लें और तनाव से दूर रहें.

डिंपल पाना है अब सिंपल

28 साल की ईशा अवस्थी देखने में बहुत अट्रैक्टिव है. उस की फीगर एकदम परफैक्ट है. लेकिन प्रोब्लम बस एक है. उस के फेस पर डिंपल नहीं है. बस एक यही कमी है जो उसे सताती है. जब भी वह दीपिका पादुकोण की कोई फोटो या रील देखती है तो उस की आंखें दीपिका के डिंपल पर आ कर रुक जाती हैं. इतना ही नहीं जब उसे इस बात का एहसास हुआ कि उस के पार्टनर आदित्य को डिंपल वाली लड़कियां अट्रैक्ट करती हैं तो वह कौस्मैटिक सर्जन डाक्टर नागेश्वरी के पास गालों पर डिंपल्स बनवाने पहुंच गई ताकि वह अपने पार्टनर को एक आकर्षक तोहफा दे सके. डाक्टर ने उस के गालों पर डिंपल्स बना दिए. असल में, डिंपल गाल के मांसल हिस्से में एक छोटा सा गड्ढा होता है, जो मामूली पेशी विकृति के कारण होता है. वैसे तो डिंपल्स ज्यादातर जींस पर डिपैंड करते हैं पर आजकल आधुनिक तकनीक के द्वारा इन्हें बनवाया भी जा रहा है.

मुंबई के बेथनी अस्पताल की डा. नागेश्वरी शर्मा कहती हैं, ‘‘यह एक पेशी की कमी है, जो सुंदरता को बढ़ाती है. इसीलिए पुरुषों से ज्यादा महिलाएं मेरे पास डिंपल्स बनवाने आती हैं. यह एक छोटा सा सर्जरी प्रोसैस है. इसे करवाने वाले गालों पर डिंपल्स की जगह या तो खुद बताते हैं या फिर मैं उन्हें खुद सजैस्ट कर देती हूं. ये ज्यादातर आंखों के कोनों से लाइन ड्रा कर मुंह के कोने से खींची जाने वाली लाइन के मिलने वाले बिंदु पर बनाए जाते हैं. ये 2 तरह के होते हैं – सर्कुलर और लंबे. पहले गालों पर मार्क लगाया जाता है फिर सर्जरी की जाती है.

कैसे होती है सर्जरी

जिस पौइंट पर डिंपल बनाना होता है उस पौइंट के बाहर से हाथ लगाना पड़ता है. इस सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले औजार को कोर बायोप्सी नीडल कहते हैं. इस औजार की हैल्प से मुंह के अंदर से 0.5 मिलीमीटर या 0.7 मिलीमीटर का कट लगा कर गोलाई या लंबाकार में मसल्स को ध्यान से निकालना पड़ता है.  फिर अंदर के दोनों भागों की स्किन को जोड़ कर गांठ बना कर मसल्स पर चिपका दिया जाता है. इस के बाद जब मसल्स हिलती हैं तो गालों पर डिंपल्स पड़ने लगते हैं.

एक तरफ डिंपल बनाने की पूरी प्रक्रिया में 20 से 30 मिनट का समय लगता है. इसे करने से पहले लोकल ऐनेस्थीसिया देना पड़ता है. इस सर्जरी के लिए नींद की दवा भी दी जाती है.

शुरू में डिंपल्स हर समय गालों पर दिखते हैं, लेकिन 3 हफ्तों के बाद जब घाव भर जाते हैं तब ये डिंपल हंसने पर ही पड़ते हैं. सर्जरी के बाद ऐंटीबायोटिक माउथवाश और पेनकिलर दी जाती है. पहले दिन बर्फ की सिंकाई करने की भी सलाह दी जाती है. बात करें अगर खर्चे की तो एक तरफ का डिंपल बनवाने का खर्चा 15 से 20 हजार रुपए तक आता है.

सुंदर दिखने की चाह

डा. नागेश्वरी कहती हैं, ‘‘18 साल से ज्यादा एज की कोई भी महिला या पुरुष इन्हें बनवा सकते हैं. लेकिन मैं उन्हीं के गालों पर डिंपल्स बनाती हूं, जो सुंदर दिखने की चाह रखते हैं. इन्हें बनवाने का किसी पर कोई दबाव तो नहीं है, मैं इस की पूरी जांच करती हूं. आप में कौन्फिडैंट होना बहुत जरूरी है.

सावधानियां

  •    सर्जरी करवाने वाला पर्सन अगर किसी तरह की मैडिसिन ले रहा है तो इस के बारे में डाक्टर को जरूर बताएं.
  •     सर्जरी से कम से कम 3 दिन पहले स्मोकिंग और ड्रिंकिंग से बचना चाहिए.
  •    सर्जरी के बाद कुछ दिनों तक नरम और लिक्विड डाइट लेने की सलाह दी जाती है.

इस बात का ध्यान रखें कि सर्जरी हमेशा प्रशिक्षित और हाइजीन से युक्त कौस्मैटिक सर्जन से ही करवाएं ताकि बाद में किसी भी प्रकार के इन्फैक्शन का खतरा न हो. डिंपल सर्जरी करवाने के बाद आप और अधिक अट्रैक्टिव लगते हैं.

दबे पांव दस्तक देता है मोटापा

स्त्रियों में ओबेसिटी यानी मोटापा आज सब से बड़ी समस्याओं में से एक है, जिस से हर तीसरी महिला परेशान है. डब्ल्यूएचओ ने मोटापे को स्वास्थ्य के 10 प्रमुख जोखिमों में से एक बताया है. विश्व में 23 फीसदी से अधिक महिलाएं मोटापे की शिकार हैं. भारत तो ‘ग्लोबल ओबैसिटी इंडैक्स’ में तीसरे स्थान पर है.

महामारी का रूप ले चुका है मोटापा

देश में ओबैसिटी 21वीं सदी की मौन महामारी (साइलैंट एपिडेमिक) का रूप लेती जा रही है. भारत में मोटापे की समस्या आज चीन और अमेरिका के आंकड़ों को भी पार कर चुकी है.

मोटापे के मुख्य कारण

खानेपीने की गलत आदतें, ऐक्सरसाइज की कमी, नींद पूरी न होना और तनाव आदि मोटापे के मुख्य कारणों में शामिल हैं. कुछ महिलाओं में सिंड्रोमिक और वंशानुगत ओबैसिटी भी देखने को मिलती है.

मोटापे के दुष्प्रभाव

डायबिटीज, हाई ब्लजड प्रैशर, डिसलिपिडीमिया, औस्टियो आर्थ्राइटिस, पित्त की थैली में पथरी, श्वसन समस्याएं, प्रजनन संबंधी समस्याएं आदि मोटापे से हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कई प्रकार के कैंसर (ब्रैस्ट, ओवरी, यूटरस, पैंक्रियाज) तथा किडनी से संबंधित रोगों की संभावना तक बढ़ जाती है. किशोरवय में अत्यधिक मोटापा अवसाद का कारण भी बन सकता है.

सामान्य लक्षण

छोटेछोटे काम करने में सांस फूलना तथा पसीना आना, शरीर के विभिन्न भागों में वसा या चरबी का जमना आदि. इस के अलावा कई बार मानसिक और मनोवैज्ञानिक लक्षण जैसे आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की कमी इत्यादि देखे जा सकते हैं.

मोटापे का निदान

  •  बीएमआई की गणना.
  •  कमर की परिधि को मापना.
  • लिपिड प्रोफाइल.
  • लिवर फंक्शन टैस्ट.
  • फास्टिंग ग्लूकोस.
  • थायराइड टैस्ट.

बचाव के 10 कारगर उपाय

  •  संतुलित आहार का सेवन करें.
  • कम वसा वाले खाद्यपदार्थों का उपयोग करें.
  • रोजाना सुबह जल्दी उठ कर सैर पर जाएं.
  • नियमित रूप से दिन में कम से कम 30 मिनट तक ऐरोबिक व्यायाम करें.
  • रात को सोने से 2 घंटे पहले ही डिनर ले लें.
  • जंक/फास्ट फूड का सेवन करने से बचें.
  • मैदा, चावल और चीनी का प्रयोग कम ही करें.
  • वसा के हार्ट फ्रैंडली स्रोतों जैसे जैतून, कैनोला औयल, अखरोट के तेल का इस्तेमाल करें. बिंज ईटिंग अर्थात् एकसाथ अत्यधिक खाना न खाएं, बल्कि थोड़ीथोड़ी देर में सुपाच्य एवं हलके भोजन करें.
  • न्यूनतम 8 घंटे की पर्याप्त नींद लें. प्रैगनैंसी व प्रसव पश्चात भी कुछ महिलाओं को मोटापे की समस्या का सामना करना पड़ता है. नवजात को पर्याप्त मात्रा में स्तनपान के माध्यम से इस मुश्किल से छुटकारा पाया जा सकता है.

नवीनतम उपचार

अगर किसी महिला का वजन बहुत अधिक है तथा आहार में सुधार करने, नियमित व्यायाम एवं मोटापा कम करने वाली दवाओं के सेवन के बाद भी उस का वजन कम न हो तो वह डाक्टर से संपर्क कर वजन घटाने वाली शल्यक्रिया अर्थात बैरिएट्रिक सर्जरी का सहारा ले सकती है. यह पद्धति बहुत अधिक मोटे लोगों के लिए वरदान साबित होती है.

कहीं आप भी ज्यादा नट्स तो नहीं खाते

दिल को स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए आहार में नट्स को शामिल करना लाभदायक हो सकता है. नट्स में अनसैचुरेटेड फैटी एसिड के साथ साथ अन्य विटामिन और मिनरल होते हैं. ये बेहद आकर्षक एवं लोकप्रिय स्नैक के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं, क्योंकि बहुत ज्यादा महंगे नहीं होते हैं, इन्हें रखना सुविधाजनक होता है, और इन्हें चलते फिरते कहीं भी खाया जा सकता है.

लेकिन कुछ नट्स में ज्यादा कैलोरी होती है, जो नुकसानदायक है. इसलिए इनकी मात्रा का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.

मनप्रीत कालरा- आहार विशेषज्ञ और रिबूटगुट प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक बता रही हैं कि किस तरह के नट्स आपके दिल के लिए नुकसानदायक हैं?

नट्स में ज्यादा ऊर्जा होती है, क्योंकि इनमें ज्यादा मात्रा में वसा शामिल है. सैचुरेटेड बसा की मात्रा ब्राजीलियाई नट्स, कैश्यू और मैकाडेमिया नट्स में ज्यादा होती है. इन्हें कम मात्रा में खाएं, क्योंकि इनका ज्यादा सेवन करने से कॉलेस्टेरॉल स्तर बढ़ सकता है.

ड्राई-रोस्टेड, साल्टेड, फ्लेवर वाले, या हनी-रोस्टेड नट्स का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इनमें ज्यादा नमक और कभी अधिक कभी चीनी शामिल हो सकती है. यदि आप किसी पार्टी में हैं तो याद रखें कि साल्टेड नट्स खाने से आपका कॉलेस्टेरॉल लेवल बढ़ सकता है, जो आपके दिल को नुकसान पहुंचा सकता है.

यदि आप नमक और चीनी जैसे अस्वस्थ तत्वों से दूर बने रहकर और नट्स की उचित मात्रा का ध्यान रखकर नट्स लेते हैं तो ये आपके नाश्ते के साथ पोषक स्नैक हो साबित हो सकते हैं.

एक हेल्दी नाश्ते में कितने नट्स होने चाहिए?

नट्स वसायुक्त होते हैं. भले ही इनमें अच्छी वसा ज्यादा हो, लेकिन इनके सेवन से कैलोरी की मात्रा बढ़ सकती है. इसलिए, कम मात्रा में नट्स का सेवन करने की सलाह दी जाती है.

वयस्कों को संतुलित आहार के तौर पर हर सप्ताह 5-6 बार गैर नमक वाले बादाम खाने चाहिए. बच्चों के लिए यह मात्रा उनकी उम्र के हिसाब से अलग हो सकती है. फ्रायड नट्स से परहेज करें और इसके बजाय कच्चे या ड्राई-रोस्टेड पर ध्यान दें. मुट्ठीभर साबुत नट्स या 2 चम्मच नट बटर एक सर्विंग में शामिल करें.

आपको किस तरह के नट्स खाने चाहिए?

ऐसा माना गया है कि कई तरह के नट्स फायदेमंद होते हैं. लेकिन कुछ में ज्यादा पोषक तत्व होते हैं जो अन्य के मुकाबले दिल के लिए अच्छे होते हैं. उदाहरण के लिए, अखरोट ओमेगा-3 फैटी एसिड का अच्छा स्रोत है. बादाम, मैकाडेमिया नट्स, पेकॉन और हेजलनट्स भी दिल के लिए अच्छे माने जाते हैं.

संभव हो तो गैर नमक वाले या गैर-मीठे नट्स का चयन करें. नमक या चीनी मिले हुए नट्स आपके दिल को मिलने वाले लाभ नहीं दे सकते हैं.

नट्स से किसी का स्वास्थ्य कैसे प्रभावित हो सकता है?

नट्स न सिर्फ पोषक होते हैं बल्कि बेहद टेस्टी और अनेक गुणों से भरपूर भी होते हैं. इन्हें कई तरह से आपके आहार में शामिल किया जा सकता है. अपने फूड का जायका सुधारने के लिए केक, डेजर्ज या सूदी में नट्स शामिल करें. हालांकि ज्यादातर लोगों को अत्यधिक मात्रा में नट्स सेवन का स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का पता नहीं होता है. यदि हम ज्यादा मात्रा में नट्स का सेवन करते हैं तो क्या हो सकता है, इस बारे में नीचे जानकारी दी जा रही हैः

  1. जब आप वजन घटाने की कोशिश कर रहे हों तो नट्स अच्छे स्नैक हैं. लेकिन इनका ज्यादा सेवन करने से वजन बढ़ सकता है. इसकी वजह यह है कि नट्स में कैलोरी ज्यादा होती है और निर्धारित मात्रा से ज्यादा सेवन करने से वजन घटाने की आपकी कोशिश प्रभावित हो सकती है और आखिरकार आपके दिल को भी नुकसान पहुंच सकता है.
  2. ज्यादा नट्स खाने के बाद सामान्य तौर पर पेट फूलने और गैस बनने जैसी समस्या होने लगती है. आप इसकी वजह इनमें पाए जाने वाले केमिकल को मान सकते हैं. ज्यादातर नट्स में फाइटेट्स और टैनिन जैसे पदार्थ शामिल होते हैं जिन्हें आसानी से पचाना हमारे पेट के लिए मुश्किल होता है. इसके अलावा, नट्स में कई तरह की वसा होती है जो डायरिया जैसी समस्या बढ़ा सकती है.
  3. कुछ नट्स के अत्यधिक सेवन से फूड पॉइजनिंग हो सकती है. ब्राजीलियाई नट्स, बादाम और जायफल का अत्यधिक सेवन सावधानी के साथ किया जाना चाहिए, क्योंकि इनके नकारात्मक प्रभाव होते हैं. बादाम में हाइड्रोसायनिक एसिड होता है जो सांस लेने में समस्या और दम घुटने का कारण बन सकता है, लेकिन अधिक मात्रा में ब्राजीलियाई नट्स खाने से सेलेनियम की मात्रा भी बढ़ सकती है.

बांझपन के भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक दबाव: इनके साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट के संसाधन

आज के समाज में बांझपन (इंफर्टिलिटी) तेजी से चिंता का विषय बनता जा रहा है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के एक आकलन के मुताबिक, भारत में बांझपन की समस्‍या 3.9% से 16.8% तक है. बांझपन (इंफर्टिलिटी) की बढ़ती वजह आज के दौर लोगों की दबाव से भरपूर जीवनशैली और स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक आदतों से दूर होने को माना जा रहा है. आधुनिक युग में पुरुषों और औरतों पर वर्क-लाइफ संतुलन बनाने का काफी दबाव है, उस पर अल्‍कोहल और कैफीन का अत्‍यधिक मात्रा में सेवन, तथा बढ़ता धूम्रपान भी इंफर्टिलिटी का कारण बन रहा है.

डॉ राम्या मिश्रा, वरिष्ठ सलाहकार- फर्टिलिटी और आईवीएफ, अपोलो फर्टिलिटी (लाजपत नगर) का कहना है

बेशक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई रोग नहीं है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसकी वजह से प्रभावित व्‍यक्ति की भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक सेहत पर असर पड़ता है. इसके कारण कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक-भावनात्‍मक विकार या साइड इफेक्‍ट्स जैसे कि तनाव, अवसाद, नाउम्‍मीदी, अपरोधबोध, झुंझलाहट, चिंता और जीवन में किसी लायक न होने जैसा भाव पैदा होता है.

एनसीबीआई के मुताबिक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) से जूझ रहे लोग कई बार दु:ख, अफसोस, अकेलेपन जैसी समस्‍याओं के अलावा मानसिक रूप से काफी परेशान भी महसूस करते हैं. इंफर्टिलिटी से गुज़र रहे व्‍यक्ति की सेहत इन तमाम कारणों से काफी प्रभावित हो सकती है, लेकिन इनसे निपटने और सांत्‍वना देने के लिए कई उपाय और सपोर्ट सिस्‍टम्‍स भी हैं, जो मददगार साबित हो सकते हैं.

  1. इंफर्टिलिटी का भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक प्रभाव

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई जीवनघाती समस्‍या नहीं है, लेकिन इसे कपल्‍स के जीवन में तनावपूर्ण स्थिति के रूप में देखा जाता है। चूंकि हमारे समाज में, वैवाहिक जीवन में बच्‍चों का होना काफी महत्‍वपूर्ण घटना मानी जाती है, ऐसे में बांझपन के चलते तनाव की स्थिति काफी बढ़ सकती है. गर्भधारण नहीं कर पाने के चलते कपल्‍स अपरोध बोध, पश्‍चाताप, निराशा, दुख, चिंता और झुंझलाहट जैसी भावनाओं के ज्‍वार से जूझते हैं. उस पर उन्‍हें समाज के दबाव भी झेलने पड़ते हैं, जो उनकी पहले से तनाव की स्थिति को और बढ़ाता है तथा उनके आत्‍म-सम्‍मान की भावना भी घटाता है। इसका परिणाम यह होता है कि वे अपने खुद के महत्‍व को लेकर सवाल करने लगते हैं.

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या से पुरुष और महिलाएं दोनों ही जूझ सकते हैं, लेकिन अक्‍सर समाज में महिलाओं को ही इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराया जाता है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का कहना है कि बांझपन झेल रहे कपल्‍स की जिंदगी पर समाज का नकारात्‍मक असर पड़ता है, खासतौर से महिलाओं को इसका दबाव ज्‍यादा सहना पड़ता है और वे कई बार हिंसा, तलाक, सामाजिक तौर पर बेइज्‍़ज़ती, भावनात्‍मक दबाव, निराशा, चिंता तथा आत्‍म-सम्‍मान में कमी जैसी समस्‍याओं को सहने को मजबूर होती हैं.

बांझपन (इंफर्टिलिटी) की वजह से पैदा होने वाला निराशा का भाव आपको अवसाद के गर्त में डुबो सकता है जहां से वापसी या आत्‍म-सम्‍मान वापस प्राप्‍त करना काफी चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है. लेकिन इससे निपटने के कई उपाय हैं और कई तरह के सपोर्ट भी उपलब्‍ध हैं जो कपल्‍स को बांझपन के दबावों से मुक्‍त रखने में मददगार साबित हो सकते हैं.

2. समस्‍या के साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट समाधान

1.सैल्‍फ-केयर

इसमें कोई शक नहीं कि खुद की देखभाल (सैल्‍फ केयर) सबसे बेहतरीन तरीका होता है अपना ख्‍याल रखने का. अपना मनपसंद मील बनाएं, सुकूनदायक संगीत को सुनें, सैर पर जाएं, रिलैक्सिंग स्‍नान करें और अच्‍छी नींद लें. अपने लिए कुछ समय निकालें और अपना ख्‍याल करें.

2. किसी नई हॉबी को अपनाएं

इंफर्टिलिटी से जूझते हुए बेशक, अपनी भावनाओं को समझना और संभावना काफी अहम् होता है, लेकिन लगातार उनके बारे में सोचते रहते से आप तनाव बढ़ाते हैं और एंग्‍ज़ाइटी भी लगातार बढ़ती रहती है. इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने लिए कुछ समय निकालें, अपनी मनपसंद हॉबी को समय दें. कुछ ऐसा करें जिससे आपको सहजता हो और आप खुद को रिलैक्‍स महसूस करें, जैसे कि कुकिंग क्‍लास, म्‍युज़‍िक लैसन या पेंटिंग क्‍लास आदि से जुड़ें.

3. एक्‍सपर्ट की सहायता लें

अगर आपको लगता है कि आपके हालात बेकाबू हो रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप किसी हैल्‍थ प्रोफेशनल की मदद लें जो आपको सही तरीके से अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के उपायों के बारे में बता सकते हैं और आपको खुद को सकारात्‍मक बनाने की दिशा भी दिखा सकते हैं. सच तो यह है कि किसी फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट से परामर्श लेना सही फैसला हो सकता है, जो आपको कुछ अन्‍य तरीकों से गर्भधारण के बारे में जानकारी दे सकते हैं.

4. क्‍या करें कि सब ठीक रहे

आज के समय में बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या काफी व्‍यापक हो चली है जिसका लोगों के भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक स्‍वास्‍थ्‍य पर विपरीत असर पड़ता है. इसका नकारात्‍मक असर तनाव, स्‍वभाव में चिडचिड़ापन, नाउम्‍मीदी का भाव, अपरोधबोध, निराशा और एंग्‍जाइटी बढ़ाता है. जब आप खुद को व्‍यस्‍त रखने के लिए किसी नई हॉबी को अपनाते हैं, सैल्‍फ-केयर पर ध्‍यान देते हैं और अपने हालात से निपटने के लिए प्रोफेशनल मार्गदर्शन लेते हैं, तभी आपको इस पूरे हालात के बारे में सकारात्‍मक परिप्रेक्ष्‍य दिखायी देता है.

Monsoon special: फिट रहने के लिए 7 डाइट प्लान्स

हाल ही में महिलाओं की न्यूट्रिशन संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जानकारी के लिए हेलियोन (कंज्यूमर हैल्थ केयर ब्रैंड) ने कांतार (रिसर्च कंपनी) के साथ मिल कर ‘द सैंट्रम इंडिया वूमंस हैल्थ सर्वे’ किया. यह सर्वे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में 1200 से ज्यादा 2 से 65 साल की महिलाओं के बीच किया गया.

इस सर्वे के अनुसार कमजोर हड्डी (वीक बोन हैल्थ), अपर्याप्त रोगप्रतिरोधक क्षमता (लो इम्यूनिटी) और लो ऐनर्जी भारतीय महिलाओं की 3 मुख्य स्वास्थ्य समस्याएं हैं. इस की वजह उन की डाइट में प्रौपर न्यूट्रिशन की कमी है. वे अपनी सेहत का खयाल नहीं रखतीं.

अब समय आ गया है कि महिलाएं भी अपनी डाइट का पूरा खयाल रखें और उन के शरीर को जिस तरह की डाइट की जरूरत है वैसी ही डाइट लें.

आप ऐक्सपर्ट्स से बात कर या किताबों में पढ़ कर अपने लिए सही डाइट का विकल्प चुन सकती हैं. कोई भी नई डाइट चुनने से पहले खुद से कुछ सवाल पूछिए जैसे:

आप की रिक्वायरमैंट क्या है? आप अपने लिए जो डाइट प्लान बनाने वाली हैं वह किस मकसद से बना रही हैं? क्या आप को हैल्थ इशूज हैं? क्या आप मोटापे से ग्रस्त हैं या आप को अपनी ओवरऔल हैल्थ सही नहीं लगती या फिर आप एक नए आकर्षक अवतार में दिखना चाहती हैं? जो भी समस्या या जरूरत है उस के अनुरूप अपने डाइट प्लान को तैयार करें और उस पर पूरे भरोसे के साथ आगे बढ़ें. ऐसा न हो कि 2-4 दिन बाद ही आप का मन डगमगाने लगे और डाइट फौलो करना छोड़ दें.

क्या यह आहार बहुत रैस्ट्रिक्ट्रिव है और आप इस की वजह से अपनी जिंदगी और अपने भोजन में अधूरापन महसूस कर रही हैं? क्या आप इस डाइट को लेते हुए खुश और संतुष्ट रह कर अपना जीवन जी पाएंगी या फिर रोज यह सोचेंगी कि काश मुझे कुछ अच्छा खाने को मिल जाता?

क्या आप को अपनी इस डाइट से पर्याप्त पोषण मिल रहा है या आप कमजोरी महसूस कर रही हैं? डाइट वही लें जिस से आप अच्छी ऐनर्जी महसूस करें.

इस संदर्भ में डाइटीशियन शमन मित्तल ने फिट रहने के लिए 7 तरह के डाइट प्लान्स डिस्कस किए जिन्हें फौलो कर आप स्वस्थ रह सकती हैं या जो भी शारीरिक परेशानियां हैं उन पर काबू पा सकती हैं. ये डाइट प्लान्स निम्न हैं:

  1. हाई फाइबर लो कोलैस्ट्रौल डाइट चार्ट

जिन को गाल ब्लैडर का औपरेशन हुआ है, कौंस्टिपेशन की ज्यादा समस्या रहती है या पेट की दूसरी समस्याएं रहती हैं वे इस डाइट को फौलो कर सकती हैं. इस डाइट में आसानी से पचने वाली चीजें और फाइबर ज्यादा दिया जाता है ताकि बौडी के टौक्सिन निकल जाएं. इस डाइट से इंसान के शरीर को 55 से 60 ग्राम प्रोटीन और दिन में करीब 700 से 800 मिलीग्राम कैल्सियम मिल जाता है.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग (6:00 एएम)- रात को 1 चम्मच मेथीदाना 1 गिलास पानी में भिगो कर रखें और उसे सुबह खाली पेट पी लें.

नाश्ता (9:00 एएम)- मलाई उतरा हुआ दूध (1 कप), सूजी का उपमा/पोहा/दलिया/ मल्टीग्रेन रोटी, मिड मौर्निंग(12 पीएम)- फल/सब्जी का जूस, लंच (2 पीएम)- सलाद, दाल या पनीर के साथ 2 रोटी/लिन चिकन या फिश के साथ, 2 रोटी या 1 रोटी और आधी प्लेट चावल, दही 1 कटोरी, ईवनिंग (4 पीएम)- सोया मिल्क/स्प्राउट्स/दाल चाट, डिनर (8 पीएम)- हरी सब्जी के साथ

2 रोटी/हलकी दाल के साथ 2 रोटी, बैड टाइम

(10 पीएम)-दालचीनी का पानी.

2. हाई प्रोटीन लो कैलोरी डाइट चार्ट

इस तरह की डाइट जिस में डायबिटीज या ओबैसिटी के पेशैंट को दी दी जाती है. इस डाइट में व्यक्ति को करीब 550 से 670 मिलीग्राम कैल्सियम मिलता है. प्रोटीन भी अच्छे अनुपात में होता है.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग (6 एएम)- खाली पेट 1 गिलास गरम पानी में नीबू निचोड़ कर पीएं, नाश्ता (9 एएम)- वैजिटेबल ओट्स /दलिया /वैजिटेबल पोहा/सूजी का उपमा, मिड मौर्निंग (12 पीएम)- फल या नमकीन छाछ, लंच (2 पीएम)- सलाद आधी प्लेट, टोफू या पनीर के साथ 2 मल्टीग्रेन रोटी/काले चने के साथ 2 मल्टीग्रेन रोटी, वैजिटेबल रायता, ईवनिंग (4 पीएम)- ग्रीन टी 1 या 2 उबले अंडों का सफेद हिस्सा या कोई भी रोस्टेड नमकीन 2 चम्मच, डिनर -(9 पीएम) सब्जी वाली खिचड़ी या टोफू का सलाद या हरी सब्जी के साथ 1 रोटी, सोते समय (10 पीएम)- दालचीनी का पानी.

3. डिटौक्स डाइट प्लान

यह डाइट उन के लिए है जो अपनी बौडी या जो अपने लिवर को डिटौक्स करना या वेट कम करनी चाहती हैं. यह लो कार्ब, लो साल्ट रहता है और नैचुरली बौडी को डिटौक्स करती है. फ्रूट्स वगैरह ज्यादा खाने होते हैं.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग (6 एम)- अजवाइन वाली ग्रीन टी, नाश्ता (9 एएम)- फ्रूट सलाद के साथ 5 बादाम और 2 अखरोट, मिड मौर्निंग (12 पीएम) नारियल का पानी या छाछ, लंच (2 पीएम)- सलाद, दही के साथ स्प्राउट्स की 1 कटोरी/उबले हुए 3 अंडे, ईवनिंग (4 पीएम)- चाय के साथ भुने हुए मखाने या भुने चने, डिनर (9 पीएम)- सूप के साथ 2 उबले अंडे या सूप के साथ पनीर का सलाद, बैड टाइम (10 पीएम)- हलदी और अजवाइन का पानी.

4. हाई प्रोटीन डाइट चार्ट

इस तरह की डाइट उन के लिए है जो प्रैगनैंसी या किसी इलनैस से रिकवर कर रही हैं जैसे टीबी. यह हाई प्रोटीन डाइट है जिस में पूरे दिन में 70 से 80 ग्राम प्रोटीन खाना होता है. इस से करीब 1800 कैलोरी मिलती है.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग- (6 एएम)- ग्रीन टी के साथ 6 बादाम, नाश्ता (9 एएम)- सोया मिल्क, बेसन का चीला/मूंग दाल का चीला/पनीर की भुरजी के साथ 1 रोटी, मिड मौर्निंग (12 पीएम)- सूप या लस्सी अथवा फल, लंच (2 पीएम)- मल्टीग्रेन रोटी या चावल के साथ दाल या पनीर की सब्जी, वैजिटेबल रायता, सलाद, ईवनिंग (4 पीएम)- सोया मिल्क के साथ पनीर का सैंडविच या पनीर के कटलेट, डिनर (9 पीएम)- सलाद, टोफू की सब्जी के साथ 2 रोटी या सोयाबीन की बडि़यों की सब्जी के साथ 2 रोटी या चिकन और फिश के साथ 2 रोटी, बैड टाइम (10 पीएम)- हलदी वाले दूध के साथ 5 बादाम.

5.वेगन डाइट प्लान

यह केवल प्लांट बेस्ड खाना है ताकि ऐनिमल को हार्म नहीं पहुंचाया जाए. आप इस में सोयाबीन मिल्क कोकोनट या आमंड मिल्क लेती हो. यह एक तरह से स्टेटस सिंबल है. इस में 1300-1400 कैलोरीज मिलती है. प्रोटीन ज्यादा नहीं लिया जाता.

डाइट चार्ट: अली मौर्निंग (6 एएम)- सोयाबीन के दूध की चाय के साथ 5 बादाम, नाश्ता (9 एएम)- वैजिटेबल पैनकेक के साथ 1 गिलास सोयाबीन मिल्क, मिड मौर्निंग (12 पीएम)- फल या फ्रूट्स स्मूदी या नारियल पानी, लंच (2 पीएम)- सलाद, क्विनो पुलाव, ईवनिंग (4 पीएम)- बादाम के दूध की चाय के साथ ऐवोकाडो टोस्ट या स्प्राउट्स, डिनर (8 पीएम)-  वैजिटेबल टोफू के साथ चावल या रोटी या किसी भी दाल या सब्जी के साथ रोटी या चावल, बैड टाइम (10 पीएम)- बादाम का दूध 1 गिलास.

6. लो कार्बोहाइड्रेट लो फैट डाइट चार्ट

ऐसी डाइट ओबैसिटी और कोलैस्ट्रौल के पेशैंट के लिए परफैक्ट है. यह काफी लो इन कोलैस्ट्रौल, लो इन फैट और लो इन कैलोरीज डाइट है और इस से बहुत जल्दी वेट कम हो जाता है. इसे मैंटेन रखा जाए तो परमानैंट वेट काबू में रहता है. इस डाइट में प्रोटीन 70 से 80 ग्राम तक लेना होता है.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग (6 एएम)- रात को भिगो कर मेथीदाने के पानी का सुबह सेवन करें. ब्रेकफास्ट (9 एएम)- मलाई उतरा हुआ दूध (1 गिलास), वैजिटेबल दलिया/वैजिटेबल ओट्स या सूजी का उपमा, मिड मौर्निंग (12 पीएम)- नारियल पानी या छाछ, लंच (2 पीएम)- सलाद, वैजिटेबल पुलाव के साथ दही या दाल के साथ 2 रोटी, ईवनिंग (6 पीएम)- 1 कप चाय के साथ स्प्राउट्स/दाल/चाट या पनीर का टोस्ट, डिनर (9 पीएम)- सलाद, सब्जी के साथ रोटी या सब्जी वाली खिचड़ी अथवा वैजिटेबल ओट्स, बैड टाइम (10 पीएम)- हलदी वाला मलाई उतरा हुआ दूध.

7. इंटरमिटैंट फास्ट डाइट चार्ट

यह डाइट उन के लिए है जिन्हें पीसीओडी या सीवियर ओबैसिटी (ग्रेड 2) है. यह लो कैलोरी और हाई प्रोटीन डाइट है. इस में 60 से 70 ग्राम प्रोटीन मिलता है. वैजीटेरियन हैं तो टोफू और सोयाबीन ज्यादा लेना होगा और नौनवैज चिकन वगैरह ज्यादा यूज करें.

फास्ट ऐंड विंडोज (8 एएम, 12 पीएम), ब्रेकफास्ट (12 पीएम)- ओट्स का चीला या मूंग दाल का चीला या 2 प्लेन अंडों के साथ 2 ब्रैडस्लाइस, (2 पीएम)- फ्रूट सलाद, (4 पीएम) ग्रीन टी/छाछ या नारियल पानी, (6 पीएम)- सूप या रोस्टेड पनीर, डिनर (9 पीएम)- सलाद, दाल या सब्जी के साथ 2 रोटी या रोस्टेड चिकन, बैड टाइम- जीरे का पानी.

मौनसून का मिलेट्स से क्या है रिश्ता

आजकल स्वास्थ्य को ले कर लोगों में जागरूकता बढ़ी है. नियमित वर्कआउट करना उन की दिनचर्या में शामिल हो चुका है, लेकिन उन की डाइट में जागरूकता की बहुत कमी है क्योंकि आज के युवा जंक फूड पर अधिक रहने लगे हैं. उन्हें घर का बना खाना पसंद नहीं. ऐसे में बहुत कम उम्र में उन्हें मोटापा, कोलैस्ट्रौल, ब्लडप्रैशर आदि कई बीमारियां घेर लेती हैं, जिन से निकल पाना उन के लिए मुश्किल होता है.

ऐसे में आज डाइटीशियन हर व्यक्ति को मिलेट्स को दैनिक जीवन में शामिल करने की सलाह बारबार दे रहे हैं. मिलेट्स यानी मोटा अनाज. यह 2 तरह का होता है- मोटा दाना और छोटा दाना. मिलेट्स की कैटेगरी में बाजरा, रागी, बैरी, झंझगोरा, कुटकी, चना और जौ आदि आते हैं.

जागरूकता है जरूरी

इस बारे में क्लीनिकल डाइटीशियन हेतल व्यास कहती है कि मिलेट्स इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है. 2023 को सरकार ने ‘मिलेट्स ईयर’ घोषित किया है ताकि लोगों में मिलेट्स के प्रति जागरूकता बढे़. मिलेट्स में कैल्सियम, आयरन, जिंक, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटैशियम, फाइबर, विटामिन बी-6 मौजूद होते हैं.

ऐसिडिटी की समस्या में मिलेट्स फायदेमंद साबित हो सकता है. इस में विटामिन बी-3 होता है, जो शरीर के मैटाबोलिज्म को बैलेंस रखता है. मिलेट्स में कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट रहता है, इसलिए फाइबर की मात्रा अधिक होती है. यह ग्लूटेन फ्री होता है. इस से वजन कम होता है. कुछ लोग ग्लूटेन सैंसिटिव होते हैं. इस से उन का वजन बढ़ जाता है. मिलेट्स में इन सब की मात्रा न होने की वजह से डाइजेशन शक्ति बढ़ती है.

मौनसून में अधिक उपयोगी

मौनसून में पूरा मौसम बदल जाता है. बच्चों से ले कर वयस्कों सभी को कोल्ड, कफ, डायरिया आदि हो जाता है. इस मौसम ने रोगप्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है, साथ ही पीने का पानी बदल जाता है. बारिश की वजह से उस समय लोगों की चटपटा खाने की इच्छा होती है. इस से पेट खराब हो जाता है. इस मौसम में मिलेट्स से बना भोजन अधिक लेना चाहिए क्योंकि यह हलका होने के साथसाथ पच भी जल्दी जाता है.

नाचनी की रोटी, पोरिज, ड्राईफू्रट के साथ उस के लड्डू आदि सभी चीजें इस मौसम में खाई जा सकती हैं. अगर मौनसून में बाहर का खाना खाते हैं तो कब्ज की शिकायत हो जाती है और पेट फूल जाता है. ऐसे में नाचनी, ज्वार, बाजरा आदि से बना भोजन अच्छा होता है. नाचनी को रेनी सीजन का बैस्ट भोजन माना जाता है.

वेट लौस का है मंत्र

हेतल कहती है कि वेट लौस का भी यही मंत्र है, अगर कोई व्यक्ति गेहूं की 4 रोटियां खाता है, तो वह ज्वार या बाजरा की 2 रोटी ही खा सकेगा. इस के अलावा रागी में कैल्सियम होता है. इस से ऐसिडिटी नहीं होती. हजम करना भी आसान होता है. डाइजेशन सिस्टम पर किसी प्रकार का प्रैशर नहीं होता. छोटे मिलेट्स जैसे कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी आते हैं. ये छोटे अवश्य हैं, लेकिन इन के फाइबर कंटैंट बहुत अधिक हैं. कुछ

फायदे मिलेट्स के निम्न हैं:

  •  मिलेट्स ब्लड सिर्कुलेशन को बढ़ाता है. इसे नियमित भोजन में शामिल करना अच्छा होता है, जिस से इम्यूनिटी बढ़ती है.
  • वजन कम करने में सहायक होता है क्योंकि मिलेट्स के सेवन से पेट भरा हुआ महसूस होता है, जिस से भूख कम लगती है.
  • मिलेट्स में ऐंटीऐजिंग के गुण होने की वजह से त्वचा पर काले धब्बे, डलनैस, पिंपल्स और ?ार्रियों में कमी आती है.
  • पाचनशक्ति को बढ़ाने में सहायक होने की वजह अधिक फाइबर का होना.
  • डायबिटीज को कम करने में सहायक होने की वजह ग्लूटेन फ्री होना.
  • कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि मिलेट्स में मौजूद मैग्नीशियम पीरियड्स क्रैंप्स से राहत देता है.
  • कैल्सियम अधिक होने की वजह से हड्डियां मजबूत होती हैं.
  • मिलेट्स में मैग्नीशियम बहुत अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जो हार्ट अटैक से शरीर का बचाव करने में सहायक होता है क्योंकि यह मांसपेशियों को आराम दे कर ब्लड को निरंतर चलने में सहायता करता है.
  • मिलेट्स में ऐंटीऔक्सीडैंट्स शरीर में मौजूद सभी कैंसर कोशिकाओं पर नजर रखते हैं. इस से कैंसर का खतरा कम होता है.
  • बौडी डिटौक्स करने में सहायक होता है.

कैसे करें सेवन

हेतल कहती है कि दूध में नाचनी या ज्वार के आटे को डाल कर सुबह का नाश्ता यानी पोरिज बना सकते हैं. इस के लिए नाचनी के आटे को धीमी आंच पर थोड़ा घी डाल कर सेंक लें. उस में दूध या छाछ मिला कर ठंडा या गरम पोरिज ले सकते हैं. उस के ऊपर थोड़ा ड्राईफ्रूट डाल देने से वह और अधिक स्वादिष्ठ बन जाता है. दिन में 2 बार नाचनी, ज्वार, बाजरा की रोटी खाई जा सकती है.

मधुमेह के रोगी सांवा की रोटी चावल के स्थान पर खाते हैं. नाचनी के डोसे और इडली भी बनाई जा सकती है. खाने में हमेशा उस की मात्रा पर अधिक ध्यान देना पड़ता है. फाइबर अधिक होने से कम मात्रा में खाने से ही पेट भरा हुआ लगता है.

आज के यूथ को जंक फूड के अलावा कुछ और खिलाना मुश्किल होता है. ऐसे में नाचनी, ज्वार, बाजरा को गेहूं में मिला कर आटा बनाया जा सकता है. इस से बनी रोटी फायदेमंद होती है. इस के अलावा मखना, राजगिरा के मीठे लड्डू आदि सभी बच्चे आसानी से खा लेते हैं.

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