मैं ससुराल के माहौल से नाखुश हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

  मैं 23 वर्षीय नवविवाहिता हूं. शादी के बाद ढेरों सपने संजोए मायके से ससुराल आई, मगर ससुराल का माहौल मुझे जरा भी पसंद नहीं आ रहा. मेरी सास बातबेबात टोकाटाकी करती रहती हैं और कब खुश और कब नाराज हो जाएं, मैं समझ ही नहीं पाती. वे अकसर मुझ से कहती रहती हैं कि अब तुम शादीशुदा हो और तुम्हें उसी के अनुरूप रहना चाहिए. मन बहुत दुखी है. मैं क्या करूं, कृपया सलाह दें?

जवाब-

अगर आप की सास का मूड पलपल में बनताबिगड़ता रहता है, तो सब से पहले आप को उन्हें समझने की कोशिश करनी होगी. खुद को कोसते रहना और सास को गलत समझने की भूल आप को नहीं करनी चाहिए. घरगृहस्थी के दबाव में हो सकता है कि वे कभीकभी आप पर अपना गुस्सा उतार देती हों, मगर इस का मतलब यह कतई नहीं हो सकता कि उन का प्यार और स्नेह आप के लिए कम है.

दूसरा, अपनी हर समस्या के समाधान और अपनी हर मांग पूरी कराने के लिए आप ने शादी की है, यह सोचना व्यर्थ होगा. किसी बात के लिए मना कर देने से यह जरूरी तो नहीं कि वे आप की बेइज्जती करती हैं.

आज की सास आधुनिक खयालात वाली और घरगृहस्थी को स्मार्ट तरीके से चलाने की कूवत रखती हैं. एक बहू को बेटी बना कर तराशने का काम सास ही करती हैं. जाहिर है, घरपरिवार को कुशलता से चलाने और उन्हें समझने के लिए आप की सास आप को अभी से तैयार कर रही हों.

बेहतर यही होगा कि आप एक बहू नहीं बेटी बन कर रहें. सास के साथ अधिक से अधिक समय रहें, साथ घूमने जाएं, शौपिंग करने जाएं. जब आप की सास को यकीन हो जाएगा कि अब आप घरगृहस्थी संभाल सकती हैं तो वे घर की चाबी आप को सौंप निश्चिंत हो जाएंगी.

ये भी पढ़ें- मै अपनी दोस्त को पसंद करता हूं, मुझे क्या करना चाहिए?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मैं दकियानूसी विचारों वाली जेठानी से परेशान हो गई हूं?

सवाल-

मैं 31 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. हमारे 2 बच्चे हैं और हम एक ही छत के नीचे सासससुर, जेठजेठानी व उन के बच्चे के  साथ रहते हैं. मेरी जेठानी बातबेबात मु झ से  झगड़ती हैं  और सासूमां के कान भी भरती रहती हैं. मैं खुले विचारों वाली महिला हूं जबकि जेठानी दकियानूसी विचारों वाली और कम पढ़ीलिखी हैं. वे आएदिन मु झ से  झगड़ती रहती हैं. घर में जेठानी से बारबार लड़ाई होने की वजह से क्या हमें अलग घर में रहना चाहिए? सासूमां इस के लिए मु झे मना करती हैं पर जेठानी की बात सहते रहने के लिए भी कहती हैं. पति से इस बारे में बात करना चाहती हूं पर कभी कर नहीं पाई क्योंकि, वे अपने मातापिता को छोड़ अलग रहना नहीं चाहते. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

सुलह के सभी रास्ते बंद हों और गृहक्लेश आएदिन हो तो अलग रहने में कोई बुराई नहीं मगर इस से पहले अगर आप एक सार्थक पहल करें तो घर में सुकून और शांति का वातावरण स्थापित हो सकता है.

पहले आप के लिए यह जानना जरूरी होगा कि आपसी  झगड़े की असल वजह क्या है? आमतौर पर गृहक्लेश बजट की हिस्सेदारी को ले कर, रसोई में कौन कितना काम करे, घर के कामकाज के बंटवारे आदि को ले कर होता है. कभीकभी एकदूसरे से ईर्ष्या रखने पर भी आपसी मनमुटाव का वातावरण पैदा हो जाता है.

बेहतर होगा कि  झगड़े की असल वजह जान कर सुलह की कोशिश की जाए. सास और पति से जेठानी के  झगड़ालू बरताव की वजह जानने की कोशिश भी आपसी संबंधों को सही कर सकती है. जेठानी कम पढ़ीलिखी हैं तो संभव है यह भी एक वजह हो. आप को ले कर उन में हीनभावना हो सकती है. आप के लिए बेहतर यह भी होगा कि जेठानी से उपयुक्त समय देख कर बात करें. अगर सास आप को अलग घर लेने से मना कर रही हैं तो जाहिर है वे आप को व जेठानी को बेहतर रूप से जानतीसम झती हैं, इसलिए सही निर्णय आप की सास ही ले सकती हैं. यदि 1-2 बातों को नजरअंदाज कर दें तो संयुक्त परिवार आज की जरूरत है, जहां रहते हुए हरकोई अपने सपनों के पंखों को उड़ान दे सकता है.

ये भी पढ़ें- कोरोनावायरस में अगर सर्जरी करवाएं तो पहले की तुलना में खर्च ज्यादा आएगा?

सलाह दें मगर प्यार से

रति की शादी को अभी 2 महीने ही हुए थे. आज पहली बार उस के सासससुर उस के पास रहने आ रहे थे. रति की नईनई गृहस्थी थी और पहली बार ससुराल से कोई आ रहा था. इसलिए वह बहुत खुश थी. रति ने ढेर सारे फल, सब्जियां, पनीर, मिठाई आदि से अपना फ्रिज भर लिया. वह अपने सासससुर की आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी.

जब सासससुर आए तो रति की सास सारिका ने दूसरे दिन से ही नुक्ताचीनी करनी आरंभ कर दी थी. पहले तो सास ने ही बोला, ‘‘रति, इसी तरह तुम अपना फ्रिज बिना  सोचेसम झे भरती रहोगी तो जल्द ही मेरा बेटा बीमार हो जाएगा.’’

वहीं ससुर ने रति को फुजूलखर्ची पर भाषण दिया. जब रति ने अपने पति से इस बारे में बातचीत करनी चाही तो पति मनुज भी रति से बोला, ‘‘मम्मीपापा के पास अनुभव हैं. उन की बातों का बुरा न मान कर उन से कुछ सीख लो.’’

रति के सासससुर तो एक हफ्ते बाद चले गए पर रिश्ते में एक ऐसी गांठ बांध गए जो शायद अब खुल नहीं पाएगी.

अंशु के घर आज उस की बड़ी ननद निधि आई थी. अंशु ने प्यार और सम्मान से उस के लिए ढेर सारे पकवान बनाए.

निधि ने भोजन को देख कर नाक बनाते  हुए कहा, ‘‘अंशु, तुम्हारे बढ़ते वजन का यही कारण है और इसी कारण साकेत को रातदिन जिम में रहना पड़ता है. भई मु झे तो दालरोटी ही खानी है.’’

अंशु की आंखों में आंसू आ गए. मन ही मन वह सोच रही थी कि थोड़ा सा ही सही मन रखने के लिए खा लेती. उस के बढ़ते वजन पर कमैंट करने की क्या जरूरत थी.’’

मनीषा को घर सजाने का बड़ा शौक था. इस चक्कर में कभीकभी वह फुजूलखर्ची भी कर बैठती थी. इस बार जब उस की भाभी मीनाक्षी कानपुर आई तो पहले तो उस ने मनीषा के घर की साजसज्जा की खुल कर तारीफ करी. उस के बाद मीनाक्षी ने मनीषा को छोटेछोटे टिप्स भी दिए ताकि कम खर्च में ही वह अपने घर की साजसज्जा कर सके. सलाह देते हुए मीनाक्षी ने एक बात का ध्यान अवश्य रखा कि उस की बातों से मनीषा के सम्मान को ठेस न पहुंचे.

ये भी पढ़ें- कभी भूल कर भी अपने बच्चो के सामने न करें ऐसी बातें, वरना हो सकते है खतरनाक परिणाम

तापसी ने रातदिन एक कर के अपने बौस का प्रेजैंटेशन तैयार किया. सुबह जब तापसी ने अपने बौस को प्रेजैंटेशन दिखाया तो बौस अजय शर्मा ने उस के काम की तारीफ करते हुए उसे कुछ इंप्रूवमैंट के टिप्स भी दिए. जब तापसी प्रेजैंटेशन पर दोबारा काम कर रही थी तो उसे सम झ आ गया कि उस ने कितनी सारी गलतियां कर रखी थीं, परंतु उस के बौस ने उस के काम और उस का सम्मान करते हुए बस इंप्रोविजेशन बता दिया. तापसी को बेहतर काम करना भी आ गया और बौस के लिए उस के दिल में सम्मान भी दोगना हो गया.

इन उदाहरणों में अगर आप देखें तो सभी घटनाओं में सलाह देने वाले लोगों का प्रमुख उद्देश्य दूसरे की भलाई ही था, परंतु सीख या सलाह से अधिक महत्त्व इस बात का होता है कि सीख या सलाह देने वाले व्यक्ति ने किस भाव से अपनी सलाह को परोसा है. अगर आप दूसरे को नीचा दिखाने के भाव से सलाह दे रही हैं तो वह कभी न खत्म होने वाले शीतयुद्घ में तबदील हो जाएगी.

अपने बच्चों, सहकर्मियों, मातापिता या किसी को भी सलाह देना कोई गलत बात नहीं है. परंतु सलाह देने से पहले कुछ छोटीछोटी चीजों का ध्यान रखेंगी तो न केवल वह सामने वाले के लिए उपयोगी होगी, बल्कि यह आप के संबंधों को भी प्रगाढ़ बनाने में सहायक होगी.

शब्दों का चयन सावधानी से करें: आप की कोई भी सलाह कितनी भी अच्छी हो, अगर कड़वे शब्दों के साथ परोसी जाएगी तो सामने वाला व्यक्ति उसे सिरे से नकार देगा. अगर आप वही सलाह सम झदारी के साथ परोसेंगी तो वे अवश्य सुनेंगे. सलाह को उपयोगी बनाने में शब्दों की प्रमुख भूमिका होती है.

सम्मान को ठेस न पहुंचाएं: अकसर देखने में आता है कि जब भी कोई सलाह देता है तो वह हमेशा सामने वाले व्यक्ति को ऐसे सलाह देता है कि व्यक्ति को लगता है उस के कार्य को नहीं उसे ही नकार दिया गया है. व्यक्ति चाहे आप से छोटा ही क्यों न हो आप उसे सिरे से नकार नहीं सकते हैं.

एकदूसरे से सीखें: आप जिस भी व्यक्ति को सलाह देने जा रही हैं सब से पहले उस की बात को धैर्य से सुनें. ऐसा हो सकता है उस व्यक्ति के पास ऐसे कार्य करने की कोई न कोई वजह अवश्य रही होगी. आप उस की बात सुन कर उस की कार्यप्रणाली को अपने अनुभव या जानकारी के साथ थोड़ा सा मौडिफाई कर सकती हैं. इस से उसे न बुरा लगेगा और आप का काम भी हो जाएगा.

कार्य को नकारें व्यक्ति को नहीं: अगर रति की सास उसे प्यार से सम झाती कि जरूरत से ज्यादा फलसब्जियां खरीद कर रखने से वे बासी हो जाएंगी, जो स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होती हैं तो यकीन करिए केवल इस एक वाक्य से रति की नजरों में अपनी सास का सम्मान दोगुना हो जाता और भविष्य में वह अपने हर छोटेबड़े कार्य के लिए सास की सलाह अवश्य लेती.

ये भी पढ़ें- नए रिश्तों के साथ एडजस्टमेंट

स्कोप औफ इंप्रूवमैंट: किसी को सलाह इस प्रकार दें कि वह उन्हें सलाह नहीं, बल्कि स्कोप औफ इंप्रूवमैंट लगे. किसी भी व्यक्ति के कार्य या उस की कार्यप्रणाली को सिरे से नकार देना बिलकुल सही नहीं होता है. यह आप के रिश्तों में सदा के लिए खटास ला सकता है.

रिश्तों का रखें ध्यान: सलाह देते हुए रिश्तों की गरिमा का ध्यान अवश्य रखें. जो सलाह आप अपनी बेटी को दे सकती हैं वह आप अपने दामाद को नहीं दे सकती हैं. खुद  को अधिक सम झदार या अनुभवी सम झने के कारण ऐसा न हो कि आप के रिश्ते आप से दूर हो जाएं.

पति को निर्भर बनाएं अपने ऊपर

‘नाम मानसी मल्होत्रा, उम्र 30 वर्ष, विवाहित, शिक्षा बी.ए., एम.ए. घरेलू कार्यों में सुघड़. पति का गारमेंट्स का अच्छा व्यापार, छोटा परिवार, 2 बच्चे, 8 वर्षीय बेटी, 5 वर्षीय बेटा. दिल्ली के पौश इलाके में अपना घर, घर में नौकरचाकर, गाड़ी, सुखसुविधाओं की कोई कमी नहीं.’ फिर भी मानसी परेशान रहती है. आप हैरान हो गए न, अरे भई, सुखी जीवन के लिए और क्या चाहिए, इतना सब कुछ होते हुए भी कोई कैसे परेशान रह सकता है? लेकिन मानसी खुश नहीं है. घरपरिवार, प्यार करने वाला पति, बच्चे, आर्थिक संपन्नता सब कुछ होते हुए भी मानसी तनावग्रस्त रहती है. उसे लगता है कि उस की पढ़ाईलिखाई सब व्यर्थ हो गई. उस का सदुपयोग नहीं हो रहा है. वह बच्चों को तैयार कर के, लंच पैक कर के स्कूल भेजने, नौकरों पर हुक्म चलाने, शौपिंग करने, फोन पर गप्पें लड़ाने के अलावा और कुछ नहीं करती.

क्या ये सब करने के लिए उस के मातापिता ने उसे उच्च शिक्षा दिलाई थी? सब उसे एक हाउस वाइफ का दर्जा देते हैं. पति की कमाई पर ऐश करना मानसी को खुशी नहीं देता. वह चाहती है कि अपने दम पर कुछ करे, पति के काम में सहयोगी बने, अपनी शिक्षा का सदुपयोग करे  क्या घर से बाहर जा कर नौकरी करना ही शिक्षा का सदुपयोग है? क्या यही नारीमुक्ति व नारी की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है, नहीं यह केवल स्वैच्छिक सुख है, जिस के जरिए महिलाएं आर्थिक आत्मनिर्भरता का दम भरती हैं और घर में महायुद्ध मचता है. क्या किसी महिला के नौकरी भर कर लेने से उसे सुकून और शांति मिल सकती है? इस का जवाब आप सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक बसों में धक्के खा कर, भागतेभागते घर की जिम्मेदारियों को निबटा कर नौकरी करने वाली महिलाओं से पूछिए.

28 वर्षीय आंचल अग्रवाल पीतमपुरा में रहती हैं, जनकपुरी में नौकरी करती हैं. सुबह 10 बजे के आफिस के लिए उन्हें 9 बजे घर से निकलना पड़ता है. रात को 7 बजे बसों में धक्के खा कर घर पहुंचती हैं. घर पहुंचते ही घर का काम उन का स्वागत करता है. अपनी सेहत, स्वास्थ्य, परिवार के लिए उन के पास कोई समय नहीं है. नौकरी की आधी कमाई तो आनेजाने व कपड़ों पर खर्च हो जाती है, ऊपर से तनाव अलग होता है. जब पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तब इस बात पर बहस होती है कि यह काम मेरा नहीं, तुम्हारा है. जबकि अगर पति घर से बाहर कमाता है और पत्नी घर में रह कर घर और बच्चे संभालती है तो काम का दायरा बंट जाता है और गृहक्लेश की संभावना कम हो जाती है. घर पर रह कर महिलाएं न केवल पति की मदद कर सकती हैं बल्कि उन्हें पूरी तरह अपने पर निर्भर बना कर पंगु बना सकती हैं. उस स्थिति में आप के पति आप की मदद के बिना एक कदम भी नहीं चल पाएंगे. कैसे, खुद ही जानिए :

ये भी पढ़ें- शादी रे शादी, तेरे कितने रूप

घर की मेंटेनेंस में योगदान

एक पढ़ीलिखी गृहिणी घर की टूटफूट मसलन, प्लंबिंग, इलेक्ट्रिसिटी वर्क, घर के पेंट पौलिश बिना पति की मदद के बखूबी करा सकती है. कुछ महिलाएं चाहे घर के नल से पानी बह रहा हो, बिजली का फ्यूज उड़ जाए, दीवारों से पेंट उखड़ रहा हो, वे चुपचाप बैठी रहती हैं, पति की छुट्टी का इंतजार करती हैं कि कब वे घर पर होंगे और घर की मेंटेनेंस कराएंगे. वे घर की इन टूटफूट के कामों के लिए पति की जिम्मेदारी मानती हैं. बेचारे पति एक छुट्टी में इन सभी कामों में लगे रहते हैं और झुंझलाते रहते हैं, ‘‘क्या ये काम तुम घर पर रह कर करा नहीं सकती हो?’’

स्वाति घर पर ही रहती है. पढ़ीलिखी है. वह घर की इन छोटीमोटी जरूरतों का खुद ध्यान रखती है. जब भी कोई परेशानी हुई, मिस्त्री को फोन कर के बुलाती है और स्वयं अपनी निगरानी में ये सभी काम कराती है. स्वाति के इस नजरिए से उस के पति मेहुल बहुत खुश रहते हैं.

बच्चों की शिक्षा में मदद

अगर आप पढ़ीलिखी हैं और हाउस वाइफ हैं तो बच्चों की शिक्षा में आप अपनी पढ़ाईलिखाई का सदुपयोग कर सकती हैं. बच्चों को घर से बाहर ट्यूशन पढ़ाने भेजने के बजाय आप स्वयं अपने बच्चों को पढ़ा सकती हैं. इस से व्यर्थ के खर्च में तो बचत होगी ही, साथ ही बच्चे पढ़ाई में कैसा कर रहे हैं, आप की उन पर नजर भी रहेगी. बच्चों की स्कूली गतिविधियों में आप भाग ले सकती हैं. मेहुल अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई उन की पी.टी.एम., उन की फीस जमा कराना इन सभी के लिए स्वाति पर निर्भर रहता है, क्योंकि उसे तो आफिस से समय मिलता नहीं और उस की गैरहाजिरी में स्वाति इन सभी कार्यों को बखूबी निभाती है. इस से स्वाति के समय का तो सदुपयोग होता ही है, साथ ही उसे संतुष्टि भी होती है कि उस की शिक्षा का सही माने में उपयोग हो रहा है. बच्चों का अच्छा परीक्षा परिणाम देख कर मेहुल स्वाति की तारीफ करते नहीं थकता. बच्चों की शिक्षा को ले कर वह पूरी तरह से स्वाति पर निर्भर है.

परिवार की सेहत में मददगार

एक पढ़ीलिखी गृहिणी घर के स्वास्थ्य व सेहत के मसले पर भी पति को बेफिक्र कर सकती है. अभी पिछले दिनों की बात है, स्वाति की सास को अचानक दिल का दौरा पड़ा, तब मेहुल की आफिस में कोई महत्त्वपूर्ण मीटिंग चल रही थी. वह आफिस छोड़ कर आ नहीं सकता था, तब स्वाति ने ही पहले डाक्टर को घर पर बुलाया और जब डाक्टर ने कहा कि इन्हें फौरन अस्पताल ले जाइए, तब स्वाति एक पल का भी इंतजार किए बिना सास को स्वयं ड्राइव कर के अस्पताल ले कर गई. वहां अस्पताल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के सास को अस्पताल में दाखिल कराया.

डाक्टरों से सारी बातचीत, उन का इलाज, सारी भागदौड़ स्वयं स्वाति ने पूरी जिम्मेदारी से निभाई. इसी का परिणाम है कि आज स्वाति की सास पूरी तरह ठीक हो कर घर पर हैं. अगर उस दिन स्वाति ने फुर्ती व सजगता न दिखाई होती तो कुछ भी हो सकता था. मेहुल की अनुपस्थिति में उस ने अपनी शिक्षा व आत्मविश्वास का पूरा सदुपयोग और मेहुल के दिल में हमेशा के लिए जगह बना ली. जब पति घर से बाहर होते हैं और पत्नी घर पर होती है तो वह बच्चों, घरपरिवार की सेहत का पूरा ध्यान रख सकती है और पति को बेफिक्र कर के अपने ऊपर निर्भर बना सकती है.

हर क्षेत्र में भागीदार

पढ़ीलिखी पत्नियां घर पर रह क र पति की गैरहाजिरी में घर की सारी जिम्मेदारियां निभा कर पति को पंगु बना सकती हैं. घर के जरूरी सामानों की खरीदारी, घर की साफसफाई, बच्चों की शिक्षा, सेहत, घर का आर्थिक मैनेजमेंट, कानूनी दांवपेच, घर की मेंटेनेंस, गाड़ी की सर्विसिंग ये सभी काम, जिन के लिए अधिकांश पत्नियां पतियों के खाली समय होने का इंतजार करती हैं और कामकाजी पति के समयाभाव के कारण जरूरी कार्य टलते रहते हैं और घर में क्लेश होता है.

ये भी पढें- दूरी न कर दे दूर

एक सुघड़ पत्नी अपने गुणों से पति को अपने काबू में कर सकती है. अगर आप घर की ए टू जेड जिम्मेदारियां संभाल लेंगी तो पति स्वयंमेव आप के बस में हो जाएंगे, वे आप के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाएंगे. नौकरी से केवल आप पति की आर्थिकमददगार बनती हैं लेकिन घर संभाल कर आप उन के हर क्षेत्र में भागीदार बनती हैं. जब पत्नियां पति की सभी जिम्मेदारियां निभाती हैं तो पति भी उस से खुश रहते हैं, उन की हर संभव मदद करते हैं न कि जिम्मेदारियों को ले कर तूतू मैंमैं करते हैं. सलिए अगर पति के दिल पर राज करना है, अपने खाली समय का सदुपयोग करना है, अपनी शिक्षा का सदुपयोग करना है, व्यर्थ के तनाव से बचना है तो घर की हर जिम्मेदारी संभालिए. स्वयं को पूरी तरह व्यस्त कर लीजिए. पति को पूरी तरह अपने ऊपर निर्भर बना दीजिए. अगर वह घर पर हों तो बिना आप की मदद के कुछ भी न कर सकें, इतना अपने ऊपर निर्भर बना दीजिए उन को. फिर देखिए, वे कैसे दिनरात आप के नाम की माला जपेंगे और घर में हर तरफ खुशियों की बहार आ जाएगी.

जब मिलना हो फ्यूचर वाइफ के पेरेंट्स से

“देख अकेला पंछी मुझे यह जाल बिछाया है …. इसीलिए मम्मी ने तेरी मुझे चाय पर बुलाया है”

यह सदाबहार गाना अक्सर उन लोगों की जुबान पर होता है जो अपने भावी जीवनसाथी यानी बौयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के पैरंट्स से पहली दफा मिलने की प्लानिंग कर रहे होते हैं. मन में कहीं न कहीं यह खौफ जरूर होता है कि कहीं यह मुलाकात रिश्ते के लिए खतरे की घंटी न बन जाए.

वस्तुतः पहला इंप्रेशन ही अंतिम इंप्रेशन होता है. इसलिए पहली मुलाकात को ले कर युवा बहुत ही कौन्शस होते हैं. सही भी है रिश्ते की नींव भले ही पड़ चुकी हो मगर बंधन मजबूत बने इस के लिए जरूरी है भावी जीवनसाथी के करीबी लोगों से खूबसूरत रिश्ते की शुरुआत. बात जब बौयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के पेरेंट्स की हो तो इंसान कोई भी खतरा मोल लेना नहीं चाहता. भावी  फादर इन लौ या मदर इन लौ से पहली मुलाकात के लिए जाते समय कुछ बातों का ख्याल जरूर रखें.

1. नशे में चूर न रहें

पहली मुलाकात के समय किसी भी तरह का नशा न करें. इस से सामने वाले को महसूस होगा जैसे आप खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकते या ईमानदार नहीं है. जब कि पहली मुलाकात में जरूरी है कि आप खुद को विश्वसनीय , ईमानदार और संतुलित मानसिकता वाले व्यक्ति के रूप में दर्शाएं.

ये भी पढ़ें- बच्चे घर आएं तो न समझें मेहमान

2. धर्म, सेक्स या राजनीतिक विषयों पर न उलझें

कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं जिन को जितना ही छेड़ो उतना ही विवाद बढ़ता है या सामने वाले को आप के बारे में गलत संदेश जा सकता है. भले ही आप अपने भावी जीवनसाथी के साथ इन विषयों पर कितनी भी चर्चा करते हो मगर जरूरी नहीं कि उस के पेरेंट्स भी आप के साथ इन बातों को डिस्कस करने में रुचि रखते हो.

3. झूठ का सहारा न लें

कुछ लोग पहली मुलाकात में खुद को बेहतर साबित करने के चक्कर में अपनी खूबियों को बढ़ाचढ़ा कर बोलते हैं. प्रॉपर्टी को ले कर भी झूठ बोल जाते हैं. मगर ध्यान रखें , इस तरह आप अपने जीवनसाथी और उन के अभिभावकों की नजरों में गिर जाएंगे. क्योंकि जब उन्हें असलियत पता लगेगी तो उन की नजर में आप का सम्मान कम हो जाएगा.

4. फोन से उलझे न रहे

पहली मुलाकात के समय फोन पर लगातार मैसेज करने, व्हाट्सएप या ईमेल चेक करने या ब्राउजिंग आदि करने से बचें. इस से आप के भावी जीवनसाथी के पेरेंट्स को लगेगा जैसे आप उन से बातें करने में रुचि नहीं रखते और वे खुद को अपमानित महसूस करेंगे.

5. ओपन माइंड के बने

आप का जीवनसाथी अलग परिवेश से आता है. उस के मांबाप की सोच बिल्कुल जुदा हो सकती है इसलिए उन से पहली दफा मिलते समय अपना दृष्टिकोण संकुचित न रखें. उन की किसी भी बात पर आप उत्तेजित हो जाते हैं या उलटा जवाब देते हैं तो समझिए की एक खूबसूरत रिश्ता जुडताजुड़ता रह जाएगा.

ये भी पढ़ें- न जाने क्यों बोझ हो जाते हैं वो झुके हुए कंधे

6. मेहमान की तरह व्यवहार न करें

अगर आप मिलने के लिए उन के घर डिनर या लंच पर गए हैं तो खाना सर्व करते समय या टेबल क्लीन करते हुए बिल्कुल भी अलग बैठे न रहे. ये छोटेछोटे एटिकेट्स होते हैं जिन का ख्याल रखना जरुरी है. फैमिली मेंबर की तरह हर काम में आगे बढ़कर मदद करें.

7. पैसों के बारे में बात न करें

पहली बार मिलते समय घर पैसों से जुड़ी छोटीबड़ी बातें जैसे घर कितने का लिया, लोन पर है या खरीदा हुआ, सैलरी क्या है, या कितना किराया जाता है, कार कितने की है जैसी विषयों पर बात करने के बजाय रिश्ते को बेहतर बनाने पर फोकस करें.

8. अपने कपड़ों पर ध्यान दें

घर पर जो भी मिला वही पहन कर मिलने चल देना उचित नहीं. पहली मुलाकात में अपने कपड़ों पर विशेष ध्यान दें ताकि उन्हें महसूस हो कि आप इस मीटिंग को सीरियसली ले रहे हैं और उन को महत्व दे रहे हैं.

9. सिर्फ अपने बारे में बात न करें

पहली मुलाकात में आप और भावी जीवनसाथी के पेरेंट्स ,दोनों ही एक दूसरे से अनजान होते हैं. ऐसे में केवल अपनी जिंदगी की कहानी सुनाते रहने से अच्छा है कि आप उन के बारे में भी पूछें. ताकि उन्हें महसूस हो कि आप उन के बारे में जानने को उत्सुक है. अपनी बातचीत में संतुलन बना कर रखें.

ये भी पढ़ें- ये 5 गलतियां करती हैं रिश्तों को कमजोर

ससुर के साथ ऐसा हो आपका व्यवहार

वैशाली, मोनिका और सोनू बचपन की सहेलियां हैं. संयोग से तीनों की शादियां भी एक ही शहर में हुईं. शादी के बाद जब तीनों पहली बार अपने मायके आईं, तो सभी ने एकदूसरे की ससुराल के बारे में पूछा खासतौर पर यह कि ससुराल में कौनकौन हैं, उन का व्यवहार कैसा है, कौन अधिक प्यारदुलार करता है और कौन नहीं?

वैशाली ने कहा, ‘‘मेरे ससुरजी बड़े मजाकिया स्वभाव के हैं. बातबात में हंसाते हैं. शादी के पहले पापा मुझे हंसाते थे और अब यहां ससुरजी. उन का व्यवहार इतना अच्छा है कि लगता ही नहीं कि मैं उन की बहू हूं, वे मुझे अपनी बेटी ही मानते हैं और मेरी हर जरूरत का ध्यान रखते हैं.’’

मोनिका ने वैशाली की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘तुम ठीक कह रही हो. मेरे ससुरजी भी हर बात में मेरा पक्ष लेते हैं. मेरी हर पसंदनापसंद का खयाल रखते हैं. यहां तक कि मेरे लिए तरहतरह के गिफ्ट और बाजार से पकवान भी लाते हैं. लगता ही नहीं कि मैं ससुराल में हूं. सच तो यह है कि उन में मैं अपने बाबूजी की छवि ही पाती हूं.’’

पिता जैसा प्यारदुलार

दोनों की बातें सुन कर सोनू उदास हो गई. बोली, ‘‘तुम दोनों के ससुर अच्छे हैं, जो तुम्हें इतना अपनापन और स्नेह देते हैं, लेकिन मेरे ससुरजी तो हैं ही नहीं. यदि वे होते तो मुझे भी उन का प्यारदुलार मिलता. ससुर के बिना ससुराल कैसी? यदि वे होते तो पिता की तरह मैं उन का सम्मान करती. अकेली सास ससुरजी की कमी तो पूरा नहीं कर सकतीं.’’

ये भी पढ़ें- पत्नियों की इन 7 आदतों से चिढ़ते हैं पति

शादी के पूर्व लड़की अपने पिता के संरक्षण में रहती है, तो शादी के बाद ससुरजी उस के पिता के समान होते हैं, जो अपनी बहू को बेटी की तरह रख कर उस पर अपना प्यारदुलार बरसाते हैं. ऐसे में लड़की को अपने पिता की कमी नहीं खलती और वह अपने ससुरजी को ही पिता मानती है और उसी रूप में उन का आदर, मानसम्मान करती है.

निश्चित तौर पर वे लड़कियां अधिक खुश होती हैं, जिन की ससुराल में सास और ससुर दोनों होते हैं और यदि वे साथ रहते हैं तो सोने में सुहागा. ससुर के होने पर वे अपनेआप को सुरक्षित पाती हैं, क्योंकि बड़ेबूढ़ों का साया होना ही अपनेआप में बहुत बड़ी बात है.

जब कभी किसी लड़की के लिए रिश्ते की बात चलती है, तो लड़की वाले इस बात पर गौर करते हैं कि ससुराल में कौनकौन हैं. जहां लड़के के पिता जीवित होते हैं, उस रिश्ते को प्राथमिकता दी जाती है.

ससुराल में ससुर के न होने का कारण उन का तलाकशुदा होना भी हो सकता है. लड़का अपनी मां के साथ रहता हो और पिता से कोई संबंध न रखता हो तो ऐसे रिश्ते को वरीयता नहीं दी जाती है. यदि लड़के के पिता शादी के पूर्व ही दिवंगत हो चुके हों तो वह ससुराल ससुर बिना ससुराल होती है.

ससुर चाहे किसी भी उम्र के हों, परिवार में उन की उपस्थिति ही माने रखती है. जब वे ही नहीं होंगे तो बच्चे दादादादा कह कर किस की गोद में उछलकूद करेंगे? वे किस की उंगली पकड़ कर चलना सीखेंगे?

ससुर अपनी बहू को कितना प्यार करते हैं या उस की सुखसुविधाओं का कितना ध्यान रखते हैं, यह वही जानती है. बहू के जरा से इशारे पर वे उस की तमाम खुशियों का इंतजाम करते हैं. वे उसे खुश देख खुश होते हैं.

समस्याओं का समाधान

ससुर सासबहू और पतिपत्नी के बीच तालमेल बैठाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. सास कितनी ही अच्छी या सुलझे हुए विचारों वाली क्यों न हो, वह अपना ठसका बताए बगैर नहीं मानती. सास और बहू के बीच खटपट होना नई बात नहीं है. कभी गलती बहू की होती है, तो कभी सास की, पर सास तो सास है, वह अपनी गलती कैसे स्वीकार कर सकती है? हर बार बहू को ही झुकना पड़ता है. लेकिन जब ससुर मौजूद हों तो वे एक न्यायाधीश की भूमिका निभाते हुए निष्पक्ष फैसला सुनाते हैं, जो सास को भी मानना पड़ता है.

प्राय: देखा गया है कि सास अपनी बहू को अपना प्रतिद्वंद्वी मानती है, जबकि ससुर उसे पूरक मानते हैं. ससुर और बहू के बीच कोई लड़ाईझगड़ा या मनमुटाव नहीं होता और यदि सासबहू के बीच कोई मनमुटाव है तो भी वे उसे दूर करने की कोशिश करते हैं.

एक बहू अपनी सास को अच्छी तरह जानती है कि कौन सी बात वह मानने वाली है और कौन सी नहीं. ऐसे में उसे मनवाने के लिए वह अपने ससुर का सहारा लेती है. ससुर अपने तरीके से उसे मनवा लेते हैं. ऐसे में सास के अहं को भी ठेस नहीं पहुंचती और बहू का काम भी हो जाता है.

ये भी पढ़ें- क्या मां बनने के बाद लग जाता है करियर पर ब्रेक?

जिन घरपरिवारों में ससुर नहीं होते वहां उन का खालीपन बहू को खलता है. कई बार जब पतिपत्नी के बीच कोई विवाद हो जाता है तो पति को कौन समझाए? सास तो सदैव अपने बेटे का ही पक्ष लेती है, लेकिन ससुर होते तो वे अपने बेटे को भी तलब करते और उसे सुधरने को कहते. एक बेटा अपने पिता का कहना तो मान लेता है, लेकिन मां की बात को हवा में उड़ा देता है.

ससुर के होने से पतिपत्नी के बीच होने वाले मतभेद तलाक तक नहीं पहुंचते. वे एक काउंसलर की भूमिका निभाते हैं तथा अपने बहूबेटे दोनों को समझाते हैं. यदि बहू रूठ कर मायके चली जाती है या बेटा उसे वहां जाने के लिए मजबूर कर देता है तो ससुरजी उसे वापस लाने की पहल कर सकते हैं. यहां तक कि अपने समधी से चर्चा कर के दोनों पक्षों में सुलह भी करा सकते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें