क्या है शेफ गरिमा अरोड़ा के जीवन के ‘लो फेज’, पढ़े इंटरव्यू

मुंबई की शेफ गरिमा अरोड़ा ने इस मुकाम पर पहुँचने के लिए काफी संघर्ष किये है. पहले वह एक फार्मा जौर्नलिस्ट थी, लेकिन उन्हें तरह के खाना बनाना पसंद रहा. वह अपनी कुकिंग स्किल्स बढ़ाने के लिए वर्ष 2008 में पेरिस गई. असल में गरिमा के माता-पिता चाहते थे कि वह दुनिया की बेहतरीन डिशेज बनाना सीखें. वहां उन्होंने कई जानी – मानी शेफ के साथ काम किया, जिसमे शेफ गगन आनंद, गॉर्डोन रामसे आदि है. ग्रेजुएशन के बाद करीब एक साल तक शेफ गगन आनंद के रेस्तरां में काम करने के बाद उन्होंने बैंकाक में अपनी रेस्तरां खोली और इंडियन कुइजिन को प्रधानता दी.

उन्हें वर्ष 2018 में मिचेलिन स्टार का ग्रेड मिला, यह एक रेटिंग सिस्टम है, जिसके तहत रेस्तरां की गुणवत्ता की ग्रेडिंग की जाती है. गरिमा को 26 मार्च को एशिया के 50 बेस्ट रेस्तरां की सेरेमनी में यह अवॉर्ड दिया गया. इस पुरस्कार को पाने वाली वह पहली महिला शेफ बनी, जिसे इस अवार्ड से नवाजा गया. गरिमा की मेन्यू में काफी विभिन्नता है, यही वजह है कि लोग उनतक पहुँचते है. यहाँ कस्टमर्स 10-14 कोर्स का टेस्टिंग मेन्यू चुन सकते हैं. डक डोनट और रोटी-अचार के साथ जैकफ्रूट उनके यहां काफी पसंद किया जाता है. भारतीय की गरिमा अरोड़ा का एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला शेफ चुनी जाना उनके लिए गर्व की बात थी. इस समय गरिमा आबुधाबी में सोनी टीवी पर मास्टर शेफ इंडिया में शूटिंग कर रही है. उनसे हुई बातचीत के अंश इस प्रकार है.

पसंद है मुझे वैरायटी

गरिमा कहती है कि टीवी पर मास्टर शेफ इंडिया का मेरा पहला सीजन है, पहली बार मैं टीवी के सामने हूँ. मेरे लिए सब कुछ नया है. बहुत रुचिपूर्ण और मोटिवेट करने वाली ये शो है. टैलेंटेड होम कुक्स को देखने का ये मौका मेरे लिए बहुत अधिक अच्छी है. इसमें भाग लेने वाले सभी शेफ अलग-अलग कम्युनिटी से आये है और कम्युनिटी पकवान को सबके साथ शेयर कर रहे है. सबमे बहुत उत्साह है और मुझे इंडियन खाने में इतनी वैरायटी और प्राइड देखने को मिलेगी, ये पता नहीं था. 15 साल बाद मैं इंडिया में कुछ कर रही हूँ और मेरे लिए ये बहुत अधिक ख़ुशी की बात है.

सही सपोर्ट सिस्टम

गरिमा आगे कहती है कि शेफ में पुरुष और महिला में कोई अंतर नहीं होता, दोनों की चुनौतियाँ एक जैसी ही होती है. महिला शेफ के चेलेंज पुरुष शेफ से नहीं होती, उनके आसपास के लोगों से आते है. असल में सबकी स्किल और ड्रीम्स अलग होती है. सबके गोल्स भी पता होते है. समस्या तब आती है, जब आपके परिवार वाले आपको सपोर्ट नहीं करते. हमेशा मैंने देखा है कि औरतों को उनके आसपास के लोग रोकते है, उनकी एबिलिटी कभी उन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोकती. मेरे लिए लकी ये है कि मेरे माता-पिता, पति, भाई सभी ने मेरा साथ दिया है. मैंने जो भी अचीव किया है, वह महिला या पुरुष होने से नहीं मेरे सपोर्ट सिस्टम की वजह से है. कोविड का समय था कठिन कठिन समय के बारें में गरिमा का कहना है कि एक उद्यमी के जीवन में बहुत सारी बाधाएं या समस्याएं आती है, लेकिन एक शेफ की जीवन में इतनी कठिन परिस्थियाँ नहीं आती है.

मेरे लिए कोविड के दो साल बहुत मुश्किल भरे थे. जब पूरा व्यवसाय खुद सम्हालना पड़ा, तब केवल अपने लिए नहीं, बल्कि 40 एम्प्लोयी का भी ध्यान रखना पड़ा. उनके वित्तीय समस्या को देखना पड़ा. तब उनकी समस्या मेरी समस्या हो गई. उन डेढ़ सालों तक मैं बैंकाक में अकेली थी, मेरे पति साथ में नहीं थे, मेरे पेरेंट्स मुझे देख नहीं पा रहे थे. उन डेढ़ साल तक मेरी और बाकी सभी की उत्तरदायित्व को लेना कठिन समय था, लेकिन उससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. हर एक ‘लो मोमेंट’ एक पाठ जरुर पढ़ाती है, क्योंकि वही आपको एक शेप में लाती है, सुदृढ़ बनाती है और वही आपके चरित्र का निर्माण भी करती है.

अभिनेत्री हिमानी भाटिया, वेलेंटाइन डे, किसके साथ मनाने वाली है, पढ़े इंटरव्यू

सोशल मीडिया पर अक्सर बॉलीवुड अभिनेत्रियों, स्टार किड्स और फीमेल सेलिब्रिटी के ग्लैमरस लुक चर्चा में रहते हैं, लेकिन अभिनेत्री हिमानी भाटिया की बिकिनी लुक खूब सुर्खियां बटोरते हैं. उनके फैन फोलोवर्स वन मिलियन से अधिक है, जिनकी स्टाइल और ड्रेसेज सभी फोलो करते है.

शोर्ट फिल्म ‘ब्लिंक’ फेम  एक्ट्रेस हिमानी भाटिया ने ग्लोबल फेम अवॉर्ड में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता. उन्हें बॉलीवुड एक्ट्रेस नेहा धूपिया ने इस अवॉर्ड से सम्मानित किया. इसके अलावा उन्हें दादा साहेब फाल्के अवार्ड, सत्यजीत रे आइकोन आवर्ड आदि कई पुरस्कार इस फिल्म को लेकर मिल चुके है, हिमानी भाटिया एक एक्ट्रेस होने के साथ ही निर्माता, लेखिका, होस्ट और मॉडल भी हैं. उनकी शोर्ट फिल्म ‘ब्लिंक’ एम एक्स प्लेयर पर रिलीज हो चुकी है. ये एक इमोशनल और थ्रिलर फिल्म है. शॉर्ट फिल्म को क्रिटिकल और कमर्शियल दोनों तरह से सफलता मिली है, लेकिन हिमानी के अभिनय की सबसे ज्यादा चर्चा इस फिल्म से मिली है. लोगों ने उनके प्रदर्शन को पसंद किया और उनकी अभिनय प्रतिभा की प्रशंसा की. इसकी खास बात यह है कि इस फिल्म को कोरोना महामारी के दौरान शूट किया गया था. इसलिए इस फिल्म की सफलता उनके लिए बड़ी बात थी. हिमानी अलग और उम्दा अभिनय के लिए जानी जाती है.

हिमानी को बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी, उन्होंने इसके लिए बहुत संघर्ष भी किया है. अभिनय के सपनों को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कॉर्पोरेट नौकरी को छोड़कर अभिनय में जुट गई. उन्होंने रूमेट्स, खत, लॉकडाउन बिरयानी, हवा की खिड़की, नेटफ्लिक्स और अन्य कई ओटीटी शोज के लिए काम कर चुकी हैं. इसके अलावा हिमानी को जानवरों से बहुत प्यार है, उनके लिए काम करना आवश्यक समझती है. बाद में वह एक संस्था खोलना चाहती है.

टर्निंग पॉइंट 

स्वभाव से चुलबुली और हंसमुख हिमानी ने अपनी जर्नी के बारें में बात की और उन्होंने बताया कि ब्लिंक, थ्रिलर शोर्ट फिल्म रिलीज हो चुकी है और इससे मुझे बहुत अधिक पॉपुलैरिटी मिली है. ये मेरे लाइफ का टर्निंग पॉइंट रहा. इस वेब के बाद मेरा नाम देसी गोन गर्ल नाम पद गया है. इसमें मेरी भूमिका ‘गजल’ की है, जो पहले बहुत ही सहमी हुई सी लड़की है, लेकिन उनका ट्रांसफार्मेशन होकर एक बोल्ड और स्ट्रोंग लड़की बन जाती है. इस भूमिका में मुझे बहुत कुछ करने का मौका था और मुझे करने में भी बहुत मज़ा आया था. इस शोर्ट फिल्म ने मेरी लाइफ को एक ऊँची मुकाम पर बैठा दिया है. ये एक मल्टी लेयर्ड चरित्र है.

मिली प्रेरणा

एक्टिंग की प्रेरणा के बारें में पूछने पर वह कहती है कि एक्टिंग और डांसिंग मुझे हमेशा से पसंद रहा है. स्कूल और कॉलेज में मैंने एक्टिंग और डांस परफोर्मेंस बहुत किये है. परिवार से कोई एक्टिंग में नहीं था. कॉलेज ख़त्म करने के बाद मुझे अच्छी नौकरी मिल गई थी, लेकिन एक्टिंग करने की इच्छा मेरे मन में हमेशा रही. इसलिए मैंने जॉब के साथ भी थिएटर भी करती रही. इसके अलावा शोर्ट फिल्म और वीडियो बनाकर यू ट्यूब पर डालती थी, एक मेरी फिल्म एक्ट नार्मल थी, जिसे मैंने यू ट्यूब पर खुद शूट कर डाली थी. इसे मैंने अपनी फ्रेंड के साथ मिलकर जीरो बजट की फिल्म बनाई थी. उस फिल्म को एक महीने के अंदर एक लाख से अधिक व्यूअर्स मिले. पूरे विश्व के लोगों ने इसे देखा और मुझे फ़ोन कॉल्स भी आने लगे थे. हिंदी सिनेमा के काफी फिल्म मेकर्स ने इसे अच्छा कहा और ऑडिशन के लिए बुलाया और मैंने दिल की सुनी और जॉब छोड़कर मुंबई आ गयी. 6 महीने रही और अपना एक बेस बनाया और इंडस्ट्री को समझ पाई. मेरे सारे काम कोविड के दिनों में ऑनलाइन से शुरू हुई.

किये संघर्ष 

संघर्ष तो था, लेकिन दिल्ली से ही मैंने ऑडिशन देना शुरू किया था, लेकिन मुंबई की तरह दिल्ली में काम नहीं है. मुंबई आने पर मैंने बड़ी कंपनियों के विज्ञापनों में काम करना शुरू कर दिया था, इससे लोग मुझे जानने लगे थे. बड़ा ब्रेक मुझे ब्लिंक से ही मिला. दूसरी बड़ी ब्रेक नेटफ्लिक्स के लिए था. शुरू में तो मुंबई में सरवाईव करना बहुत मुश्किल था, क्योंकि तब लॉक डाउन का दौर चल रहा था. पहले घर लिया, फिर छोड़ देना पड़ा. नए शहर में टिक कर रहना बहुत मुशिकल था, लेकिन एक बड़ी पब्लिकेशन की वेब सीरीज के बाद मुझे बहुत काम मिलने लगा.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Actress Adda (@indianactressadda)

मिला सहयोग परिवार का

मैं पहले कभी घर से अलग नहीं रही थी, मुंबई आकर अकेले रहना सबकुछ एरेंज करना कठिन था. इसके अलावा यहाँ किसी को जानती नहीं थी. मैं सब छोड़कर मुंबई आ गई थी. मेरे पेरेंट्स को शॉक लगा, क्योंकि कंपनी में प्रोमोशन हुआ अच्छी सैलरी थी, लेकिन मैंने उन्हें बता दिया था कि सफलता न मिलने पर मैं वापस दिल्ली आकर जॉब कर लुंगी और दो साल का समय माँगा. उन्हें पता था कि मैं किसी चीज को अगर ठान लूँ तो उसमे सफलता अवश्य हासिल कर सकती हूँ. मुंबई आने के बाद मुझे किसी प्रकार की गलत चीजों का सामना नहीं करना पड़ा. यहाँ का अनुभव मेरे लिए अच्छा है. मैंने यहाँ पर काम की एक सूची बना ली थी. मैंने 3 महीने की ट्रेनिंग दिल्ली में ली है और नाटकों में अभिनय भी दिल्ली और मुंबई में किया है. थिएटर मेरे लिए सबसे अधिक अच्छा रहा.

मिला सहयोग सोशल मीडिया का

हिमानी आगे कहती है कि मुंबई में आने के बाद मैंने देखा कि काम के लिए यहाँ व्हाट्स एप ग्रुप होते है, जहाँ से ऑडिशन का पता चलता है और उसी से लोग ऑडिशन पर बुलाते है. एक बार मुझे किसी ने ऑडिशन के बाद कोम्प्रोमाईज़ करने की बात कही, मुझे समझ में नहीं आया, (हंसती हुई)  कॉर्पोरेट वर्ल्ड में कोम्प्रोमाईज़ का अर्थ बजट लो करना होता है. मैंने पूछा कि आपने तो कोई बजट मुझे बताया नहीं, इसपर उन्होंने मुझे समझने की बात कही. फिर एक फ्रेंड ने मुझे इसका अर्थ बताया, इसे सुनते ही मुझे बहुत गुस्सा आया. मैंने उसका चित्र और मेसेज का स्क्रीन शॉट लेकर सोशल मीडिया पर डाल दिया, इससे लोग मुझसे डरने  लगे थे और ऐसी हरकत फिर नहीं हुई. पेरेंट्स भी डर गए थे, पर मैंने गलत चीज को कभी सहना नहीं सीखा है. इससे काम छूट जाता है, लेकिन मैंने कम काम सही, लेकिन डिसेंट लोगों के साथ ही काम करना चाहती हूँ.

नहीं सहज इंटिमेट सीन्स करने में  

हिमानी कहती है कि इंटिमेट सीन्स के बारें में सभी एक्ट्रेस की अलग-अलग सोच है, लेकिन मैं इसे करने में सहज नहीं और जिसमे मैं सहज नहीं होती, उसमे मेरा परफोर्मेंस अच्छा नहीं हो सकता. आजतक के मेरे सभी काम में इंटिमेट सीन्स नहीं थे, मैंने कई प्रोजेक्ट को मना भी किया है. दिल से जो अच्छा लगे उसे करना चाहती हूँ.

खुद की प्रतिभा को समझना जरुरी

हिमानी जानती है कि उनकी प्रतिभा क्या है और उसके अनुसार ही ऑडिशन देती है, वह कहती है कि मैंने टीवी शोज के लिए खुद को कभी सही नहीं पाई, क्योंकि ओटीटी के लिए ऑडिशन जब भी दिया, उसमे चुन ली जाती रही, लेकिन टीवी में नहीं चुनी गई, इसलिए मैंने अपना फोकस टीवी से हटा लिया है. असल में मेरी शक्ल थोड़ी अलग है, मेरे कर्ली हेयर और लुक ओटीटी के लिए परफेक्ट है.

प्यार और सम्मान जरुरी

वेलेंटाइन डे का जीवन में महत्व और प्यार के बारें में पूछने पर उनका कहना है कि इस वेलेंटाइन डे पर मेरे दो बछड़े की बर्थडे है, जो हरिद्वार में रहते है मैं उनके पास जाना चाहती हूँ. मेरे हिसाब से वेलेंटाइन डे केवल बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के लिए नहीं होता. अगर मैं किसी से प्यार करती हूँ तो उस दिन को उसके साथ मनाना भी मेरे लिए वेलेंटाइन डे को मनाना हुआ. इसके अलावा मेरे पेरेंट्स के साथ बिताना चाहती हूँ. मेरे सपनों का राजकुमार अभी सपने में है, लेकिन मैं रियल, सपोर्टिव और प्यार करने वाला पर्सन चाहती हूँ, बनावटी नहीं. एक दूसरे के बीच रेस्पेक्ट रहे, क्योंकि आजकल प्यार के नाम पर मारपीट और गालियां देते है, वैसा व्यक्ति मुझे कभी पसंद नहीं. रियल प्यार और सम्मान देने वाला व्यक्ति ही मुझे चाहिए.

अभिनेत्री अनन्या खरे किताबें कम पढने को लेकर क्यों है उदास, पढ़े इंटरव्यू

दूरदर्शन की प्रसिद्ध धारावाहिक ‘हमलोग’ और ‘देख भाई देख’ से अभिनय क्षेत्र में कदम रखने वाली अभिनेत्री अनन्या खरे से कोई अपरिचित नहीं. उन्होंने कई पोपुलर शो में काम किया, जिसमे ‘आहट’, ‘पुनर्विवाह’, ‘रंग रसिया’आदि है. अनन्या ने सिर्फ टीवी शो ही नहीं फिल्मों में भी जबरदस्त भूमिका निभाई है, जिसमे ‘चांदनी बार’ फिल्म की दीपा से ‘देवदास’ फिल्म की कुमुद है. कई शानदार किरदारों से इंडस्ट्री में अलग पहचान बनाने वाली अभिनेत्री अनन्या खरे ने पर्दे पर कुछ नकारात्मक और सकारात्मक भूमिका निभाये है और हिंदी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में उन्होंने दर्शकों का प्यार हमेशा पाया है. टेलीविजन हो या हिंदी फिल्में उन्होंने अपने अभिनय से सबको मोहित किया है.

क्रिएटिव माहौल में जन्मी अनन्या के पिता विष्णु खरे एक पत्रकार हुआ करते थे,उनके दादा संगीतज्ञ थे. हालाँकि अनन्या ने कभी अभिनय के बारें में सोचा नहीं था, लेकिन क्रिएटिव फील्ड उन्हें पसंद था और यही वजह थी कि वह मुंबई आई और अभिनय की शुरुआत की. काम के दौरान उन्होंने 10 साल का ब्रेक लिया और पति डेविड के साथ रहने विदेश चली गयी, लेकिन बाद में वह फिर आकर इंडस्ट्री से जुड़ गयी. वह स्पष्टभाषी है और समय के साथ चलना जानती है.

अनन्या स्क्रीन पर निगेटिव किरदार निभाकर अधिक प्रसिद्ध हुई और इस चरित्र में उन्हें काफी पसंद भी किया गया. फिल्म ‘देवदास’ के बाद उन्हें नकारात्मक किरदार के लिए पहचाना गया और उनकी एक अलग पहचान बनी. उनके लिए हर भूमिका को निभाना एक चुनौती होती है. जी टीवी पर उनकी शो ‘मैत्री’ आने वाली है, जिसमे उन्होंने एक देसी पर बुद्धिमान सास की भूमिका निभाई है, जो किसी बात को आज की परिवेश के हिसाब से मानती है और इस भूमिका को लेकर बहुत उत्साहित है. अनन्या ने अपनी इस सफल जर्नी के बारें में गृहशोभा के साथ शेयर की. वह इस पत्रिका के प्रोग्रेसिव विचार से बहुत प्रभावित है और चाहती है कि इसमें महिलाओं के लिए कैरियर आप्शन पर लगातार कुछ लेख दिए जाय, ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अधिक अग्रसर हो. इसे वे खुद ही नहीं, बल्कि उनकी दादी को भी पढ़ते हुए देखा है.

सही मित्र का होना जरुरी

इस शो में काम करने की उत्सुकता के बारें में पूछे जाने पर वह कहती है कि मुझे फॅमिली शो करना पसंद है, जिसे दर्शक पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकें. मैत्री एक ऐसा कांसेप्ट है, जो हर किसी उम्र या वर्ग के लिए अहम होता है. हर किसी को एक अच्छी दोस्ती और दोस्त की जरुरत होती है. विषय काफी रोचक है, इसमें काफी उतार-चढ़ाव है, तीन दोस्त कैसे अपनी दोस्ती को परिवार के साथ बनाये रखने में सफल होते है, उसे दिखाने की कोशिश की गयी है. मेरी भूमिका इसमें देसी सासूमाँ की है. पढ़ी-लिखी नहीं है और देहाती चरित्र है, जो मूर्ख नहीं, प्रैक्टिकल, आत्मविश्वासी, समझदार और चुनौती लेने वाली है. इसके अलावा वह स्ट्रोंग हेडेड भी है.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Jaya Ojha (@jayaojha_)

आवश्यकता है सही लिखावट की

देसीपन को पर्दे पर लाने के लिए अनन्या ने काफी तैयारी की है, लेकिन इस चरित्र को लिखने वाले ने काफी मेहनत से इसे लिखा है, जिससे उन्हें अधिक तैयारी नहीं करनी पड़ी. इसके अलावा वह दिल्ली की है, जहाँ हर तरह की भाषा बोलने वाले लोग साथ रहते है.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ananya Bellos (@ananyakhare1)

बदला है जमाना

सासूमाँ की कल्पना पहले से आज काफी बदल चुकी है और इस बदलाव को अनन्या जरुरी भी मानती है. वह कहती है कि मैंने अपने आसपास जो चाची और मामियां है, वे काफी रिलेक्स रहती है. बहू का अपनी मर्जी से काम करना, बच्चों को पालना, जॉब करना आदि को बहुत ही साधारण तरीके से लेती है, किसी में दखलंदाजी नहीं करती. सामंजस्य बनाये रखती है. पहले की सास की तरह कम पढ़ी-लिखी नहीं, आज की सास कॉलेज तक जा चुकी है.

इत्तफाक था अभिनय करना

अपनी सफल जर्नी के बारें में अनन्या का कहना है कि अभिनय मेरे लिए एक इत्तफाक था, क्योंकि मैं इस प्रोफेशन में आना नहीं चाहती थी. मुझे टीचर या आई ए एस बनना था. उसके बाद मैंने ट्रांसलेशन करने की इच्छा रखती थी. मैंने जर्मनी भाषा में मास्टर किया है, मैंने उस दिशा में बहुत कोशिश की, लेकिन कोई ढंग का काम नहीं मिला. इसके बाद मैंने इंडस्ट्री की ओर रुख किया और धीरे-धीरे आगे बढती गई. मैंने अपने काम को लेकर कभी कोई रिग्रेट नहीं किया है. जो नहीं मिला, उसकी कोई वजह होगी, इसे मैंने हमेशा माना है, इसलिए मलाल नहीं हुआ. खास समय पर खास जगह पर होना मेरे लिए जरुरी होता है और मैं वहां पहुँच जाती हूँ.

एक्टर डायरेक्टर की

अनन्या खुद को डायरेक्टर की एक्टर मानती है, वह कहती है कि फिल्म और कैमरा, राइटर और डायरेक्टर का ही माध्यम है. एक्टर एक टूल है, जिससे पॉलिश किया जा सकता है. इसलिए एक एक्टर जितना खुद को पॉलिश करेगा, डायरेक्टर उसका उतना ही अच्छे से प्रयोग कर सकेगा.

बदलाव हमेशा अच्छी हो जरुरी नहीं

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की कहानियों में परिवर्तन के बारें में पूछे जाने पर वह कहती है कि आज कल इंटररिलेशनशिप पर अधिक फिल्में बन रही है. आज परिवारों के अकार छोटे होते जा रहे है. वही चीजे फिल्मों और टीवी शोज में देखे जा रहे है. बड़े परिवार और गांव के शोज कम है, जबकि शहरों से सम्बंधित शो अधिक दिखाए जाते है. मैन स्ट्रीम में शहरों पर आधारित शो को अधिक महत्व दिया जाता है. इन्ही शो को वे डबिंग करवाकर बाहर के देशों में भी रिलीज़ करते है, इसलिए कहानियों के बीच अधिक गैप नहीं रख पाते. पहले डीडी मेट्रो के जो शोज थे, उनका दौर काफी अलग था. उपन्यासों पर शोज बनते थे, जो अब नहीं बनते, क्योंकि पढने की आदत बच्चों में कम हो गयी है, वे किताबे नहीं पढ़ते वे सिर्फ देखते है. इसके अलावा इंटरनेशनल लेवल पर किसी चीज को ले जाने के लिए कहानियां वैसी ही होनी चाहिए, ताकि सभी इससे जुड़ सकें. समाज में बदलाव जरुरी है, लेकिन ये बदलाव हमेशा अच्छाई के लिए हो, जरुरी नहीं.

किताबों का पढना है जरुरी

वह आगे कहती है कि पढने का कल्चर मेन्टेन रहना चाहिए, किताबों का जो कल्चर चला गया है वह ठीक नहीं. अब लोग सिर्फ मोबाइल पर सब देखते है. ऐसे में लेखक और उन्हें छापने वालों का क्या होगा? ये मस्तिष्क को एकाग्र रखने का एक अच्छा माध्यम है. किताब खोलकर पढने का चाव है, उसका मजा अलग है. मोबाइल पर खोलकर पढने से उसकी स्पिरिट खोती हुई दिखाई पड़ती है. साथ ही आज के बच्चे बाहर जाकर खेलते नहीं समय नहीं होता, हर जगह एक प्रतियोगिता है, हर जगह पर काम के लिए मारधाड़ लगी हुई है. बच्चे को भी उसी रेस में जाना पड़ेगा. मैं इसे अच्छा और पॉजिटिव विकास नहीं मानती.

सीखा है सबसे

हर अभिनय में सहजता लाने के बारें में अनन्या का कहना है कि मैंने एक्टिंग की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है. मैंने कोई कोर्स भी नहीं किया है, जितना मैंने काम किया है, उतना ही मैंने सीखा है, इसमें मैंने छोटे-बड़े जैसी किसी को नहीं देखा , सभी से कुछ सीखने को मिलता है. इसके अलावा मेरे पिता काफी टैलेंटेड थे. वे पत्रकार थे, उन्होंने हिंदी और मराठी में बहुत लिखा है. उनकी क्रिएटिविटी मुझे किसी रूप में आई है. मेरे दादा भी सितार बजाते थे.

अभिनेत्री कावेरी प्रियम से जाने बुजुर्गो के अकेलापन का सीधा हल, कैसे, पढ़े इंटरव्यू

अभिनेत्री कावेरी प्रियम झारखंड के बोकारों की है. उन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक रहा. उनके पिता सेल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) में प्रबंधक के रूप में काम करते हैं, उनके भाई रितेश आनंद ब्रिटिश टेलीकॉम में वित्तीय विश्लेषक हैं. कावेरी के परिवार में कोई भी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से नहीं है, फिर भी उनका साथ हमेशा रहा है. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, वेल्लोर से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया. कावेरी ने एक्टिंग का कोर्स दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिएटिव एक्सीलेंस से वर्ष 2016 में किया था. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह कैरियर बनाने के लिए मुंबई आ गईं और कई प्रिंट शूट और विज्ञापन करके एक मॉडल के रूप में अपना करियर शुरू किया.

टेलीविजन पर कैरियर की शुरुआत उन्होंने साल 2015 में नागिन सीजन 2 से की थी. उस शो में उन्होंने एक छोटी सी भूमिका निभाई थी. इस शो के बाद उन्होंने सीरियल “परदेस में है मेरा दिल” में काम मिला. साल 2019 में, उन्होंने हिंदी टीवी सीरियल “ये रिश्ते हैं प्यार के” में कुहू माहेश्वरी की भूमिका निभाई थी, जिसमे आलोचकों ने उनके काम को काफी सराहा. इसके बाद उन्हें कई शोज मिले, हर तरह की भूमिका पसंद करने वाली कावेरी अब सोनी सब की शो ‘दिल दिया गल्लां’ में अमृता ब्रार की मुख्य भूमिका में है. शो और अपनी  जर्नी के बारें में उन्होंने खास गृहशोभा के लिए बात की,  आइये जानते है उनकी जर्नी कैसी रही.

 

रिलेटेबल कहानी

कावेरी के पेरेंट्स झाड़खंड के बोकारो में रहते है और उन्होंने स्कूल की पढ़ाई वही से की है. आज के हालात पर बनी इस शो में काम करने की वजह के बारें में पूछने पर कावेरी बताती है कि आज अधिकतर घरों में बच्चे पेरेंट्स को छोड़कर बाहर या विदेश काम करने या पढने चले जाते है, ऐसे में उनके पेरेंट्स अकेले रह जाते है. धीरे-धीरे उनके बीच दूरियां बढती जाती है, जेनरेशन  गैप बढ़ता जाता है. माता-पिता अपने दिल की बात किसी से शेयर नहीं कर पाते. उनमे डिप्रेशन और अकेलापन का विकास हो जाता है. इतना ही नहीं मैं इस भूमिका से खुद को हमेशा रिलेटेबल पाती हूँ, क्योंकि मैं भी अपने पेरेंट्स को छोड़कर मुंबई आ गई हूँ. मुझे उनकी भावनाओं की समझ है. चरित्र को निभाना भी मुझे अच्छा लग रहा है, क्योंकि इसमें मैं मॉडर्न लड़की हूँ, लेकिन गुजराती पारंपरिक परिवार से हूँ, ऐसी परिस्थिति में भी मैं बहुत ग्राउंडेड हूँ. मैं इससे खुद को बहुत अच्छी तरीके से जोड़ पाती हूँ, क्योंकि मैं रियल लाइफ में प्रैक्टिकल होने के साथ-साथ पारंपरिक चीजों को भी फोलो करती हूँ. दोनों शेड मुझे बहुत पसंद है.

रिश्तों में होनी चाहिए बातचीत

आज के एकाकी परिवार में बुजुर्गों को एक उम्र के बाद सम्हालने वाले कम होते है और विदेशों की तरह यहाँ उतनी सुविधा नहीं है कि एक बुजुर्ग अकेले शांतिपूर्वक सुरक्षित रह सकें और उनकी देखभाल सरकार या किसी संस्था के द्वारा किया जाता हो. देखभाल की व्यवस्था होने पर उन्हें अकेले रहने में किसी प्रकार की समस्या नहीं होती, पर यहाँ ऐसा नहीं है और बुजुर्गो की देखभाल कमोवेश बच्चों को ही करना पड़ता है. कावेरी कहती है कि रिश्ते को अच्छा बनाए रखने के लिए दो लोगों के बीच में बातचीत होने की बहुत जरुरत है, क्योंकि भाई-बहन, पति-पत्नी, या किसी भी रिश्ते में एक दूसरे की खैर खबर लेने की जरुरत होती है, इससे व्यक्ति दूर रहकर भी एक दूसरे से जुड़ा रह सकता है. इसे अपनाने की जरुरत है, क्योंकि भविष्य में आगे बढ़ने के लिए कोई भी कही जा सकता है, लेकिन परिवार भी इग्नोर न हो, इसका ख्याल उन्हें रखना है. मैं कितनी भी व्यस्त क्यों न रहूं, मैं अपने परिवार और दोस्तों से बात करने का समय अवश्य निकाल लेती हूँ और ये मुझ पर ही निर्भर करता है. इसलिए ये सभी बच्चों पर अधिक निर्भर करता है, वैसे ही पेरेंट्स को भी बच्चों को समझना है, वे अधिक एक्सपेक्टेशन बच्चों से न रखे, तभी वे खुश रह सकते है. ये सही है कि बाहर जाने वाले बच्चों के लिए लगातार एक सपोर्ट की जरुरत होती है. पहले विदेश जाने पर किसी को भी परिवार की खबर लेना मुश्किल होता था, पर आज ये नहीं है, तकनीक ने अपना योगदान दिया है. इसमें सब सही हो सकता है, एफर्ट दोनों तरफ से होनी चाहिए.

 

मिली प्रेरणा

फिल्मों में आने की प्रेरणा के बारें में पूछने पर कावेरी का कहना है कि बचपन से ही मुझे एक्टिंग का काफी शौक रहा है. स्कूल कॉलेज में मैंने काफी नाटकों और डांस में भाग लिया है. बडी हुई, तो एक्स्ट्रा कर्रिकुलम भाग लेना भी अच्छा लगता था, इससे मेरे अंदर अभिनय की तरफ बढ़ने की प्रेरणा मिली. सोसाइटी में किसी भी फेस्टिवल पर मैं आसपास के सबको बुलाकर स्क्रिप्ट लिखती थी और स्टेज पर परफॉर्म करती थी. ये खेल-खेल में निकल जाता था. तब मैंने नहीं सोचा नहीं था कि एक्टिंग मेरा प्रोफेशन बनेगा, क्योंकि परिवार में एजुकेशन को अधिक महत्व दिया जाता था, पढाई को पूरा करना मेरे लिए जरुरी था. मैं उसे पूरा कर रही थी और साथ में दिल्ली में नाटक देखा करती थी. एक जगह मैंने शो के लिए ऑडिशन दिया था, जो मुंबई में होना था, मैं चुन ली गई और उस शो के लिए मुंबई आई, लेकिन शो शुरू नहीं हुआ, पर मैंने समय न गवाकर मुंबई आकर एक्टिंग का कोर्स ज्वाइन कर लिया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि मैं अभिनय के क्षेत्र में कुछ कर सकती हूँ. मेरा पैशन एक्टिंग ही है और इसमें मुझे समय देने और मेहनत करने की जरुरत है.

परिवार का सहयोग 

कावेरी का आगे कहना है कि परिवार ने हमेशा सहयोग दिया है, पहले उनके मन में डाउट तो था कि मैं कैसे मुंबई जाकर सरवाईव करुँगी, लेकिन उन्होंने ही मुझे मुंबई छोड़ने आये और सारा इंतजाम कर वापस गए. मैं इस बात में खुद को लकी मानती हूँ.

संघर्ष 

कावेरी कहती है कि मेहनत की बात करें. तो वह मेरे लिए बहुत अधिक ही था, शुरू में मैंने एक दिन में 20 से 25 ऑडिशन दिए है. हर दिन ऑडिशन के लिए जाती है, ऑडिशन देकर ही मैंने बहुत कुछ सीखा है. कैसे रिलेटेबल ऑडिशन दिया जाता है, उनकी पसंद क्या होती है, आदि को समझने में समय लगा, लेकिन मैं उन दिनों थिएटर करती रहती थी, इससे समय का पता अधिक नहीं चला. असल ब्रेक वर्ष 2018 में ‘ये रिश्ते है प्यार के’ से मिला. मैने दो साल तक संघर्ष किया है. हर स्टेज का अलग संघर्ष रहता है. पहले लोगों को जानना, जान जाने पर काम का मिलना, और अंत में खुद के अनुसार काम का मिल पाना. ऑफ़र आते है, पर मुझे करना नहीं है, तो ना बोलना पड़ता है. ना कहने के बाद पसंद का काम मिलना, इसमें संघर्ष रहता है. मुझे अब अच्छा काम मिला.

नहीं है कोई दायरा

मैंने कभी खुद को किसी दायरे में नहीं बाँधा, अलग-अलग एक्टिंग करनी है, बस यही सोच हमेशा रही है. किसी भी फिल्म, वेब या टीवी शो हर में काम करने की इच्छा है. वेब में इंटिमेट सीन्स होते है, पर ये कहानी पर निर्भर होता है.  मैंने हमेशा फॅमिली शो करने की कोशिश की है. मैं इंटिमेट सीन्स को गलत नहीं कहती. ये हर कलाकार पर निर्भर करता है कि वह कौन सी शो करे और किसे ना कहे. मैं एक कलाकार हूँ और हर एक्टर डायरेक्टर के साथ काम करना चाहती हूँ, लेकिन अमिताभ बच्चन मेरे ड्रीम को-स्टार है.

दिल्ली से मुंबई आकर खुद को सेटल्ड करना कावेरी के लिए आसान नहीं था, लेकिन उन्हें करना क्या है, इसकी जानकारी थी, जिससे उन्हें अधिक इधर-उधर भटकना नहीं पड़ा. बाहर से आने पर स्ट्रेस लेवल हमेशा हाई रहता है, ऐसे में खुद को स्ट्रेस मुक्त रखने के लिए कावेरी ने हमेशा परिवार का सहारा लिया. वह कहती है कि तकनीक का सहारा आज अधिक है, ऐसे में तनाव होने पर एक वेब सीरीज उठा कर पूरा देख लेती हूँ, ताकि बाकी कुछ भी भूल जाऊं, इसके अलावा मैडिटेशन करती हूँ. मेरी इच्छा है कि दर्शक मुझे देंखे और उनका प्यार मेरे लिए हमेशा बनी रहे.

‘‘सिर्फ औरतों के प्रति ही नहीं, बल्कि आज के वक्त में लड़कों के लिए भी आवाज उठाना चाहिए.’’ -रिद्धि डोगरा

मषहूर अदाकारा रिद्धि डोगरा पिछले 15 वर्षों से अभिनय जगत में काम कर रही हैं,जबकि वह अभिनेत्री बनना नहीं चाहती थी.वह तो डंास के षौक के चलते षाॅमक डावर से डांस की ट्ेनिंग ले रही थी.उसके बाद उन्हे एक चैनल पर नौकरी मिल गयी.पर एक दिन नौकरी छोड़ दी और अचानक दिया टोनी सिंह ने उन्हे सीरियल ‘‘मर्यादा’’ में अभिनय करने का अवसर दे दिया.उसके बाद से उन्होने पीछे मुड़कर नहीं देखा.कई टीवी सीरियलांे में अभिनय करने के अलावा वह ‘नच बलिए’ और ‘खतरों के खिलाड़ी’ जैसे रियालिटी षो का भी हिस्सा बनी.फिर वेब सीरीज ‘असुर’,‘मैरीड ओमन’ व ‘पिचर्स’ में भी नजर आयीं.मगर वह फिल्मों से नहीं जुड़ना चाहती थी.लेकिन उनकी तकदीर उन्हे फिल्मों में ले आयी.बतौर हीरोईन उनकी पहली फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ तेरह जनवरी 2023 को सिनेमाघरों में प्रदर्षित हो चुकी हंै.जबकि षाहरुख खान के साथ फिल्म ‘जवान’ और सलमान खान के साथ फिल्म ‘‘टाइगर 3’’ की षूटिंग कर चुकी हैं.

 

प्रस्तुत है रिद्धि डोगरा के साथ हुई बातचीत के अंष…

 

सवाल – आपके अंदर अभिनय के प्रति रूचि कहां से पैदा हुई थी?

जवाब – मुझे लगता है कि मेरे मम्मी पापा में कुछ तो रहा होगा.मेरी मम्मी ने स्कूल व कालेज में स्टेज पर बहुत काम किया है.तो वही मेरे खून में आ गया.मेरे पापा को फिल्मों का बहुत षौक था.उनको सिनेमा का काफी ज्ञान था.जब मैं व मेरा भाई बच्चे थे,तब वह हमें फिल्मों के बारे में बताया करते थे कि कौन सी फिल्म में क्या है और वह कहंा फिल्मायी गयी थी.तो आप कह सकते हैं कि हमें यह सिनेमा के प्रति लगाव व रचनात्मकता के प्रति झुकाव कहीं न कहीं हमें हमारे माता पिता से ही मिला है.पर यह सच है कि मुझे अभिनेत्री नही बनना था.पर तकदीर ने मुझे  अभिनेत्री बना दिया.

सवाल – 2007 से 2022 तक के अपने कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

जवाब – मैं पीछे मुड़कर देखती नही हॅूं.मैं तो सिर्फ काम करते जा रही हॅूं.लेकिन अब मैं 2007 से पहले की बहुत सी चीजों को देख व समझ सकती हॅॅंू.मेरे अभिनेत्री बनने की बात अब मेरी समझ में आ रही है.हकीकत यही है कि मैं कभी भी अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी.मैने कभी नहीं सोचा था कि मुझे बड़े होकर अभिनय को कैरियर बनाना है.जबकि षुरू से ही मैं स्टेज पर या लोगों के बीच सहज रही हूॅॅं,क्योंकि मैं डांसर रही हॅूं.जब मैं कालेज में थी,तो मैने सायकोलाॅजी आॅनर्स किया.इसी के चलते मानवीय व्यवहार की समझ विकसित हुई.कलाकार को बहुत आॅब्जर्व करना चाहिए,वह आदत मेरे अंदर भी है.हर कलाकार मानवीय भावनाओं से काफी जुड़ा रहता है.मैं कभी अकेले रहते हुए बोर नही होती.क्योंकि तब मैं लोगों को आॅब्जर्व करती रहती हॅूं.उनके बात करने के तरीके,चाल ढाल वगैरह पर मेरी नजर रहती है.तो अब मेरी समझ में आया कि मैने सायकोलाॅजी/मनोविज्ञान से पढ़ाई क्यों की थी? मैं जूम टीवी पर नौकरी कर रही थी,पर यह नौकरी छोड़ दी,क्योंकि मुझे लगा कि मुझे कोई ‘बाॅस’ कैसे बता सकता है कि मुझेक्या करना है और क्या नहीं करना है.अब मेरी समझ में आया कि वह नौकरी मुझे क्यों नही भायी और मैं अपनी बाॅस बन गयी.आज बतौर कलाकार मैं अपने निर्णय खुद ले रही हॅॅंू.तो अब 2007 से पहले की बातें मेरी समझ में आ रही हैं.

सवाल – कभी आपने कहा था कि आप टीवी पर काम करते हुए खुष हैं.फिल्म नही करना चाहती.पर अब आपकी पहली फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ सिनेमाघर में पहुॅच चुकी है?

जवाब – मैने बहुत बड़े सपने कभी नही देखे.मैं तो अच्छा काम करना चाहती थी.टीवी पर मुझे सषक्त किरदार निभाने को मिल रहे थे.पर जब ओटीटी षुरू हुआ,तब भी मुझे उससे जुड़ने की इचछा नही हुई.लेकिन एक दिन मेरे पास वेब सीरीज ‘असुर’ का आफर आया,कहानी सुनकर मना नही कर पायी.फिर‘मैरीड ओमन’ ओर ‘पिचर्स’ भी की.फिर जब एक दिन मेरे पास अंषुमन झा व फिल्म ‘लकड़बग्घा’ के निर्देषक विक्टर मुखर्जी आए और मुझे कहानी सुनायी,तो कर लिया.अगर आप इस पर कोई लेबल लगाना चाहते हैं तो यह मेरी पहली फिल्म है.हालांकि, मुझे लगता है कि मैं हमेशा दर्शकों से जुड़ी रही हूं, इसलिए मुझे ऐसा नहीं लग रहा है कि मैं पहली बार दर्शकों से मिली.जब भी मैं कहती हूं कि यह मेरी पहली फिल्म है,तो कभी-कभी मुझे यह अजीब लगता है.लेकिन यह भी सच है कि मैं पहली बार बड़े पर्दे पर नजर आ रही हूं, जो मेरे लिए काफी रोमांचक है.मैने इस फिल्म को दो वजहों से किया.एक तो यह फिल्म जानवरों पर बनी है और दूसरी वजह यह कि मुझे क्राव मागा सीखना था,जो कि इस फिल्म के निर्माता ने मुझे क्राव मागा सीखने का अवसर दिया.

riddhi dogra

सवाल – क्राव मागा सीखना कितना फायदेमंद रहा?

जवाब – मेरी समझ से क्राव मागा सभी को सीखना चाहिए,क्योंकि यह एक उस तरह का मार्शल आर्ट है,जिसमें हाथ से हाथ का मुकाबला होता है.यहां हथियार का उपयोग नहीं होता.क्राव मागा हमारे देष की महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी है.वह इसका उपयोग आत्मरक्षा के लिए कर सकती हैं.

सवाल – अब तो आप षाहरुख खान और सलमान खान के साथ भी फिल्में कर रही हैं?

जवाब – जी हाॅ! जब मैने ‘लकड़बग्घा’ साइन की थी,उसके बाद ही मुझे षाहरुख खान के ेसाथ फिल्म ‘जवान’ और सलमान खान के ेसाथ ‘‘टाइगर 3’’ की है.इन फिल्मों को लेकर फिलहाल ज्यादा बात नही कर सकती.

सवाल – डांसर होने का अभिनय में कितनी मदद मिल रही है?

जवाब – मेरी राय में डांस और अभिनय सब परफार्मेंस ही हैं.डांस,अदाकारी में बहुत मदद करती हैं.हालांकि मैने क्लासिकल डांस कभी नही किया.क्लासिकल डांस से अभिनय करने में मदद बहुत मिलती है.लेकिन मुझे डांस से उर्जा मिलती है.जिसके चलते जब मैं कैमरे के सामने होती हॅूं,तो वह पल जाया नहीं होने देती.इतना ही नही डांस परफार्मेंस देते रहने के कारण जब मैं पहली बार कैमरे के ेसामने पहुॅची,तो मुझे डर नहीं लगा.जबकि तमाम कलाकार बताते हैं कि वह कैमरे के सामने फ्रिज हो गयी थी.या उन्हें डर लगा था.मंै तो सेट पर पूरी युनिट व कैमरे के सामने एकदम सहज थी.दूसरी बात स्टेज पर डांस करते रहने के कारण मेरे अंदर अनुषासन की भावना आ गयी है.मैंने षाॅमक डावर से नृत्य सीखा है. उन्होेने सिखाया था कि बिना अनुषासन के परफार्मेंस अच्छी हो ही नही सकती.सुबह से षाम तक एक ही डांस को बार बार करते रहना होता था.डांस करते समय हमें यह याद रखना होता था कि हर स्टेप सही होना चाहिए.तो डंास से मैंने हर छोटी छोटी चीज पर ध्यान देना सीखा.

सवाल – सायकोलाॅजी की पढ़ाई करने के कारण अभिनय में कितनी मदद मिल रही है?

जवाब – मुझे तो यही लगता है कि मैने सायकोलाॅजी मंे आॅनर्स किया, इसीलिए अभिनय मंे मेरा षौक बढ़ा.पहले मैं काॅमर्स स्टूडेंट थी.पर कालेज जाने पर मंैने साॅयकोलाॅजी ले ली.मेरे इस निर्णय से मेरे माता पिता भी हैरान हुए थे.अब जब मैं पटकथा पढ़ती हॅंू,अपने किरदार के बारे में पढ़ती हॅूं,या अलग अलग निर्देषक के साथ किरदार को लेकर विचार विमर्ष करती हॅूं,तो इंज्वाॅय करती हॅूं.सायकोलाॅजी पढ़ा है,इसलिए मैं किरदार का विष्लेषण करती हॅंूं कि यह इंसान ऐसा क्यों है?

मैं यहां पर बताना चाहॅूॅंगी कि जब मैं जूम टीवी में नौकरी कर रही थी,तो मेरा आफिस मंुबई में ही लोअर परेल में था.वहां से यहां अंध्ेारी तक लोकल ट्ेन से आती जाती थी.तो मैं हर किसी को आॅब्जर्व करती रहती थी.ट्ेन में मछली वाली मिलती थी.उनकी आपस की लड़ाईयों को आब्जर्व किया करती थी.घर आकर मैं मौसी को उसी तरह से एक्टिंग करके बताती थी कि आज ट्ेन में ऐसा हुआ.उन दिनों मैं अपनी मौसी के साथ रहती थी.तब मुझे अभिनेत्री नहीं बनना था.पर वह मेरे अंदर कहीं न कहीं था.क्यांेकि मैं आब्जर्व कर अभिनय कर रही थी.

सवाल- वैसे भी अभिनय में दो चीजमहत्वपूर्ण होती हैं.एक तो कलाकार के निजी जीवन के अनुभव व उसका अपना आब्जर्वेषन और दूसरा उसकी कल्पना षक्ति.आप इनमें से किसका कितना उपयोग करती हैं?

जवाब – कलाकार के तौर पर मैं दोनों का ही उपयोग करती हॅूं.आब्जर्वेषन और कल्पनाषक्ति दोनों का उपयोग करती हॅूं.मगर मैं अपनी निजी जिंदगी का ज्यादा उपयोग नहीं करती.क्यांेकि फिर मैं बहुत खर्च हो जाती हॅूं.इसलिए उससे बचने का प्रयास करती हॅूं.कई बार जब रोने का दृष्य हो,तो मैं अपनी निजी जिंदगी की घटना याद करती हॅूं,पर फिर लगता है कि मैं यह क्या कर रही हॅूं.मैं तो अपने गम को ही याद करके यूज करती हॅॅंू.पहले मैं अपनी निजी जिंदगी की घटनाओं का उपयोग करती थी,पर अब कम करती हॅूं.पहले मैं अपनी निजी जिंदगी के अनुभव,भावनाओं, अहसास का बहुत उपयोग करती थी,पर फिर लगा कि इसे अपने आप से अलग करना बहुत भारी हो जाता है.इसलिए षूटिंग से पहले वर्कषाॅप करना जरुरी है.वर्कषाॅप में हमंे समझ मंे आता है कि यह किरदार है,इसके यह चारित्रिक विषेषताएं हैं,इसकी यह बौडी लैंगवेज है और इस हिसाब से हमें चलना है.मैं मानती हॅूॅं कि कल्पना षक्ति काम आती है.कलाकार के तौर पर हमें किरदार में रूचि लेनी होती है.इसीलिए कहते हंै कि कलाकार भावुक होता है.कलाकार खुद को खर्च करने किए बगैर किरदार को समझ पाता है.

सवाल – आपने अब तक कई किरदार निभाए.कोई ऐसा किरदार जिसने आपकी निजी जिंदगी पर असर किया हो?

जवाब – टीवी पर तो लगभग सभी किरदार असर करते थे.क्योकि मैं ख्ुाद सीखती थी,मैं हर किरदार निभाते हुए बड़ी हो रही थी.षुरूआत में मेेरे हिस्से ऐसे किरदार आए,जहंा मैं कई संवाद बोलती थी,जो कि लड़कियों की जिंदगी के उत्थान के लिए होते थे.उस वक्त मैं भी बीस वर्ष की थी,तो उसका असर मुझ पर भी हो रहा था. उन चीजों,संवादों ने मुझे खुद को स्ट्ांग बनाने में बहुत प्रभावित किया था.फिर अभी मैने ओटीटी पर वेब सीरीज ‘‘मैरीड ओमन’’ किया,जिसका मुझ पर काफी असर हुआ.यदि हम औरतों की सेक्सुअल ओरिएंटेषन को नजरंदाज कर दें,तो समाज में कितनी औरते हैं,जो बोल नहीं पाती.तमाम औरतें बोल या बता नही पाती कि उनके दिल में क्या है?वह क्या अहसास करती हैं.मेरे मन में औरतों के प्रति संवेदना है.सिर्फ औरतों के प्रति ही नहीं,बल्कि आज के वक्त में लड़कों के लिए भी आवाज उठाना चाहिए.सभी ने अपने घर की बेटियों को सिखा दिया है कि आपको अपनी आवाज उठानी चाहिए.लड़कों को किसी ने नही सिखाया कि लड़कियां आवाज उठा रही हैं,उनकी इज्जत करो.लड़के तो अपने आप मंे जी रहे हैं.मुझे लगता है कि अब लड़कों को भी सिखाना चाहिए.बेचारे लड़के कन्फ्यूज हंै कि लड़कियां स्ट्ांग हो गयी,अब हम क्या करें?

सवाल – आप ओमन इम्पावरमेंट की बात कर रही हैं.पर आपको लगता है कि इसका समाज पर कुछ असर हो रहा है?

जवाब – फिल्म इंडस्ट्ी में ओमन इम्पावरमेंट तो कई वर्षों से चल रहा है.ब्लैक एंड व्हाइट के युग से स्ट्ांग ओमन किरदार फिल्मों में पेष किए जाते रहे हैं.मुझे लगता है कि समाज व फिल्म इंडस्ट्ी दोनों एक दूसरे के प्रतिबिंब ही हैं.लेकिन समाज ज्यादा बड़ा है.समाज की सोच ज्यादा बड़ी है.समाज में काफी बदलाव आया है.सोषल मीडिया की वजह से भी बदलाव आया है.अब उन्हे अपने मन की बात कहने की जगह मिल गयी है.पर अभी और बदलाव आने की जरुरत है.मैं टीवी से ओटीटी और फिल्म तक पहुॅची हॅूं,तो मैं बहुत ज्यादा आब्जर्व कर रही हॅूं.मैं अहसास कर रही हूॅॅं कि महिलाओं की आवाज उठाने का अवसर टीवी में ज्यादा था.फिल्मों में स्ट्ांग किरदार कम हैं, मुझे स्ट्ांग किरदार ढूढ़ने पड़ेंगे. इसके लिए मुझे ही लिखना पड़ेगा.नारी सषक्त है,पर समाज उन्हें दबा देता है.तो हम लड़कियों और औरतों को आवाज उठाते रहना पड़ेगा.दुनिया का दस्तूर तो औरतों को दबाते रहना ही है.

नए साल में अभिनेत्री हरलीन सेठी कैसे जीना चाहती है, आइये जाने

हरलीन सेठी का जन्म 23 जून को मुंबई, महाराष्ट्र, भारत में पंजाबी माता-पिता के घर हुआ था. परिवार में उनके मम्मी पापा के अलावा एक भाई भी है, जिनका नाम करण सेठी है. उन्हें बचपन में अभिनय और नृत्य में गहरी रुचि थी. अपने सपने को पूरा करने के लिए, उन्होंने छोटी उम्र में अभिनय और नृत्य करना शुरू कर दिया.ग्लैमर की दुनिया उन्हें हमेशा से ही आकर्षित  करती थी, लेकिन इसके लिए अभिनय को जरुरी नहीं समझती थी. कला के क्षेत्र में कुछ करना चाहती थी. मुंबई की हरलीन ने समय के साथ-साथ  डायरेक्शन और प्रोड्यूसर बन अभिनय में आई और खुद को भाग्यशाली मानती है, क्योंकि उनकी इस यात्रा में उन्होंने हमेशा अपने परिवार को पाया है. गृहशोभा के लिए उन्होंने खास बातचीत की और अपनी जर्नी के बारें में बताई, जो बहुत रोचक थी, आइये जानते है, उनकी कहानी, उनकी जुबानी.

दिया अलग रूप

सोनी लाइव  पर उनकी वेब सीरीज काठमांडू कनेक्शन 2 रिलीज हो चुकी है, जिसमे हरलीन ने एक रॉ एजेंट की भूमिका निभाई है.  दूसरी सीजन में काम करने के  लिए हरलीन ने बहुत मेहनत किया है, क्योंकि पहले सीजन में उन्होंने अभिनय नहीं किया था. वह कहती है कि मैंने पहली वेब सीरीज देखी और अमित सियाल की भूमिका और संगीत बहुत पसंद आई थी, परिवार ने भी देखा था, आसपास के सभी ने इस शो की तारीफ़ की है. इसके अलाव इसमे काम करने वाले कलाकार भी बहुत अच्छे है,ऐसे में जब इसके अगले सीजन का ऑफर मिला तो मैंने ऑडिशन दिया और निर्देशक के साथ बैठकर थोड़ी चर्चा की, क्योंकि रॉ एजेंट्स बहुत सारे होते है, पर मुझे एक अलग और रियल रूप देना था. निर्देशक के साथ जो बातचीत हुई है, उसे ही साकार करना था, क्योंकि ये उनका विजन था. अलग-अलग लुक्स पर काम हुआ , क्योंकि रॉ एजेंट्स छुपकर रहते है. उन्हें पहचान पाना मुश्किल होता है. पहले की बॉलीवुड की इमेज मेरे दिमाग में थी, कई फिल्मे और कहानिया पढ़ी है, बस उसे देखते हुए मैंने एक अलग रूप दिया है.

ओरिजिनल चरित्र से थोड़ी मेल खाती

रॉ की भूमिका का केवल मेरे काम के साथ मेल खाता है, क्योंकि काम में मैं हमेशा प्रैक्टिकल एप्रोच रखती हूँ. इमोशन को सामने न लाकर काम पर फोकस्ड रहना, सबसे एक कदम आगे चलने की इच्छा दिमाग में रहती है और ये रॉ एजेंट भी करते है, उनकी आँखों से कोई छिप न पाए, इसकी कोशिश वे करते रहते है. देश को किसी प्रकार का खतरा न हो इस बारें में वे सतर्क रहते है.

मिली प्रेरणा और सहयोग

हरलीन कहती है कि एक्टिंग नहीं करनी है, ये  मैंने सोचा नहीं  था, क्योंकि मैने पर्दे के पीछे अस्सिस्टेंट डायरेक्टर और असिस्टेंट प्रोड्यूसर रह चुकी हूँ. एक्टिंग के बारें में न सोचने की खास वजह ये थी कि मैं टॉमबॉय टाइप की लड़की हूँ. बचपन में खेल-कूद में अधिक ध्यान था. अपना ख्याल कभी नहीं रखती थी. किसी प्रकार की चोट लगने से मैं घबराती नहीं थी. मस्ती खूब करती थी. एक्टिंग के लिए सुंदर कैसे दिखना है, पता नहीं था. परिवार का सहयोग रहा है, कभी एक्टर मुझे बनना नहीं था, क्योंकि उन्हें भी मेरे एक्टिंग को लेकर किसी प्रकार की उलझन नहीं थी. पहले फिल्मों में काम करने वालों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था. मेरे पेरेंट्स की सोच भी वैसी थी, क्योंकि परिवार का कोई भी इस फील्ड से नहीं था. उनकी हिचकिचाहट थी और मैंने भी उनको जानते हुए कोई बड़ा स्टेप नहीं लिया , पहले विज्ञापनों और छोटे-छोटे काम किये, ताकि वे सहज होकर मेरे साथ चल सकें. यहाँ तक पहुँचने में मैं पेरेंट्स का हाथ मानती हूँ, क्योंकि मैं उनके हाथ पकड़कर यहाँ तक पहुंची हूँ, ऐसा नहीं था कि मैं घर से भागकर अभिनय में गई और उन्हें मुझे लेकर किसी प्रकार की समस्या हो. मैं मुंबई की हूँ और मुझे पता नहीं था कि एक्टिंग में काम करना है या नहीं, ये तो धीरे-धीरे होते-होते यहाँ तक पहुंची है.

संघर्ष नहीं कह सकती

संघर्ष मैं नहीं कह सकती, क्योंकि मुझे शुरू से ही अभिनेत्री नहीं बनना था और मुझे खाने-पीने की समस्या नहीं हुई. जो भी काम मिला मैं करती गई, इससे मुझे आगे बढ़ने में आसानी हुई. काठमांडू कनेक्शन 2 में मेरे साथ को-स्टार लीजेंड थे, इससे काम करने से पहले थोडा सोचना पड़ा था. बड़े एक्ट्रेस के साथ काम करने पर खुद को भी उस लेवल तक लाना पड़ता है, उसमे कमी न हो इस बारें में हल्का डर रहा . इसके अलावा इसमें अलग लुक्स में एक्टिंग करना था, जो मेरे लिए आसान नहीं था. हर विग और लुक में मैं सुंदर नहीं लग रही थी, कई बार तो मुझे फैंसी ड्रेस की याद आ रही थी. मेरे निर्देशक मुझे बार-बार समझाते थे कि मैं एक छुपी हुई रॉ एजेंट हूँ जिसे सुंदर लगना जरुरी नहीं.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Harleen Sethi (@itsharleensethi)

मिला ब्रेक

मुझे एड एजेंसी में अभिनय करने के बाद से ब्रेक मिली है. मैंने ढाई साल तक बहुत सारें विज्ञापनों में काम किये है. इसके बाद एंकरिंग और छोटे -छोटे काम  भी किया है. विज्ञापन के जरिये मैं अभिनय में आई हूँ. इसलिए समय लगा,लेकिन अच्छा काम कर पायी. इंडस्ट्री में आज बहुत काम है, लड़कियों के लिए कहानियां लिखी जा रही है, लुक से अधिक टैलेंट पर ध्यान दिया जा रहा है. इसमें ये भी देखा जा रहा  है कि एक्टर्स कितना आसपास के बेहतरीन कलाकारों के साथ, जिन्होंने एक लम्बा समय अभिनय को दिया है, वहां पर खुद को फिट कर सकते  है और इसके लिए किसी भी अवसर को मेहनत के साथ पर्दे पर लाना मेरा मकसद होता है. मैंने पूरी कोशिश की है और अगले साल भी मैं लगन के साथ अच्छा काम करने के बारें में सोच रही हूँ, जिससे मेरे अलावा दर्शकों को भी एक मेसेज मेरी फिल्मों के ज़रिये मिले. जब मैंने शो ‘ब्रोकन बट ब्यूटीफुल’ की थी, तब मेरे चरित्र के द्वारा दर्शकों के मन बदले, उनके दिल को मेरी अभिनय ने छुआ, वही मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Harleen Sethi (@itsharleensethi)

संकल्प नए साल का

गृहशोभा के लिए मेरा कहना है कि नए साल में वे अपने अंदर की खुशियों को ढूंढे, जो किसी काम या पैसे में नहीं मिलती. खुद को हमेशा स्पेशल समझे. खुद से हमेशा प्यार करें और दूसरों से भी प्यार करना सीखें. स्वास्थ्य का ध्यान महिला हो या पुरुष सभी रखें, ताकि आप जिंदगी में खुश रह सकें.

एक्ट्रेस अमायरा दस्तूर-प्यार सब ठीक कर देता है

16 साल की उम्र में एक भारतीय मॉडल के रूप में अपना करियर शुरू करने वाली अमायरा दस्तूर एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं.जिन्होंने हिंदी, तमिल, अंतर्राष्ट्रीय और तेलुगु फिल्मों में अभिनय किया है.
और क्लीन एंड क्लियर, एयरटेल, गार्नियर और माइक्रोमैक्स जैसे बड़े ब्रांडों का समर्थन करके अपना नाम बनाया.इंटरव्यू के दौरान उन्होंने अपने बारे में कुछ खास बातें बताई वो क्या है आइए जानते है.

1.फ़िल्म इंडस्ट्री में जाने की प्रेरणा किससे मिली?

मुझे फिल्में हमेशा से पसंद रही हैं. बड़े होने के दौरान भी मैंने हमेशा फिल्म निर्माण और अभिनय की प्रशंसा की है. एक फिल्म आपको 2-3 घंटों के लिए एक अलग दुनिया में ले जा सकती है और इस दौरान परदे पर अभिनय करते कुछ अजनबी आपकी गहरी भावनाओं को सामने ला सकते हैं, यह कुछ ऐसा है जिससे मैं हमेशा प्रभावित और प्रेरित रही हूं.

2. त्योहारों के मौसम के लिए आप अपनी त्वचा और बालों को कैसे तैयार करती हैं?

मैं बिना चूके सप्ताह में एक बार हेयर एंड केयर ट्रिपल ब्लेंड ऑइल अपने बालों में लगाती हूं. मैं त्योहार से पहले अपने बालों पर एलोवेरा जेल और होममेड हेयर मास्क जैसे बहुत सारे प्राकृतिक उत्पादों का भी उपयोग करती हूं ताकि इस दौरान की गई सभी स्टाइलिंग मेरे बालों को नुकसान न पहुंचाएं या उन्हें रूखा न बनाएं.
शुक्र है, मेरी त्वचा के मामले में मुझे कभी कोई समस्या नहीं हुई. मुझे बस मीठे व्यंजनों से दूर रहना पड़ता है. हालाँकि, उस तरह का अनुशासन वास्तव में कठिन होता है जब सभी आंटियाँ मुझे खिलाने आती हैं. लेकिन मैं अपनी पूरी कोशिश करती हूं.

3.आप फेस्टिवल्स को कैसे सेलिब्रेट करती है?

यह मेरा अपने परिवार के साथ बिताने का समय है और मैं वास्तव में इस समय को संजोती हूं. मेरा शेड्यूल बहुत ही अनियमित है और यह केवल त्योहारों के दौरान ही है कि पूरा भारत काम के लिहाज से बंद हो जाता है.यह समय मुझे वह वक़्त मिलता है जो मुझे अपने प्रियजनों के साथ बिताने की जरूरत है. हम आमतौर पर ताश खेलते हैं और बातें करते हैं और निश्चित रूप से कुछ स्वादिष्ट भोजन करते हैं .

4.आपका फिटनेस रिजीम क्या है? फेस्टिव सीजन में आप अपनी डाइट कैसे मेंटेन करती हैं?

मैं वास्तव में कुछ नहीं करती.मैं अपने आप को जो कुछ भी चाहती हूं खाने के लिए देती हूं. मैं पूरी कोशिश करती हूं कि मीठा खाना छोड़ दूं क्योंकि यह मेरी दुखती रग है लेकिन इसके अलावा ऐसा कुछ नहीं है. त्योहारों के बाद मैं बहुत मेहनत करती हूं और एक हफ्ते में मैं अपनी आइडियल बॉडी में वापस आ जाती हूं.
मुझे लगता है कि यह एक वादा है जो मैं खुद से करती हूं कि मैं जश्न के दौरान सबसे ज्यादा आनंद लूंगी और काम के बाद अतिरिक्त वजन कम करूंगी .

5. आप हमें अपने खूबसूरत बालों का राज बताएं?

यह बहुत सरल है. हफ्ते में एक बार ऑयलिंग जरूर करनी चाहिए.हमारी दादी-नानी इस बारे में सही थीं और अब मैं अपने सभी दोस्तों को भी ऐसा करने की सलाह देती हूं. मैं हफ्ते में एक बार अपने बालों में तेल लगाती हूं, हर हफ्ते हेयर एंड केयर ट्रिपल ब्लेंड ऑयल का इस्तेमाल जरूर करती हूं और इसे रात भर के लिए लगा रहने देती हूं. यह मेरे बालों को रिपेयर करता है और साथ ही मेरे बालों की इलास्टिसिटी में सुधार करता है और मेरे बालों को टूटने से बचाता है.यहां तक कि मैं अपने बालों को धोने से पहले सिरों पर तेल लगाती हूं ताकि यह सूखें नहीं और नमी बनी रहे. इसने मुझे दोमुंहे बालों को रोकने में मदद की है. मैंने हमेशा सरल और आसान तरीकों में विश्वास किया है.

6. यदि आपके पास हमारे देश को एक बेहतर स्थान बनाने के लिए एक महाशक्ति होती, तो आप क्या बदलती?

जिस तरह से हम अपने गली के जानवरों के साथ व्यवहार करते हैं, मैं वह बदलना चाहूंगी. मैं वास्तव में विश्वास करती हूं कि अगर हम उनसे डरते नहीं हैं या उन्हें चोट नहीं पहुंचाते हैं और इसके बजाय उनसे प्यार करते हैं और उनकी देखभाल करते हैं, तो हमारा देश एक बेहतर जगह होगी. प्यार सब ठीक कर देता है. हम जितना अधिक प्रेम देंगे, उतना ही अधिक हमें प्राप्त होगा. दया से दया उत्पन्न होती है. इसलिए, मैं एक जादू से लोगों को जानवरो के प्रति अधिक प्यार करने वाला बनाऊंगी.जानवरों को खिलाने और उनकी देखभाल करने से मुझे लगता है कि हम और अधिक इंसान और अच्छे इंसान बन गए हैं.अगर आपके देश के लोग खुश और संतुष्ट हैं, तो आपका देश अपने आप सभी के लिए एक बेहतर जगह बन जाता है.

आखिर संजय मिश्रा मनोहर कहानियां से कैसे हुए प्रेरित, पढ़े इंटरव्यू

अभिनेता संजय मिश्रा के लिए ’वध’ एक ऐसे फिल्म की कहानी है,जो आज की दुनिया में उन सभी पैरेंट्स को समर्पित है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चो के पालन –पोषण के लिए लगा दिया है,लेकिन आज वे अकेले जीने पर मजबूर है, उन्हें देखने वाला कोई नहीं,उनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है. ‘वध’ ऐसे ही दुखद परिस्थिति को समाप्त करने की दिशा में लिया गया कदम है, जिसे वह जायज समझता है. इसमें मुख्य चरित्र मनोहर कहानियां है, जो इस परिस्थिति से निकलने में शंभूनाथ मिश्रा को मदद करता है. इंटरव्यू के दौरान संजय कहते है कि मैं ऐसे कई अंकल आंटी से मिला हूँ, जिसने दुनिया तो बनाई थी, पर वे अब अकेले रह गए है. किसी ने सही लिखा है कि बच्चों को दीवारों पर लिखने दो, उन्हें चिल्लाने दो, शरारत करने दो ,क्योंकि एक समय आएगा जब घर खाली होगा, आप अकेले होंगे, चारों तरफ शांति होगी. हालांकि संजय मानते है कि इसे वध नाम देने की वजह किरदार की सोच है,क्योंकि वध पापियों का किया जाता है,जबकि हत्या एक बड़ी क्राइम है. उनका आगे कहना है कि अगर रावण का वध नहीं होता, तो वह कईयों की हत्या कर सकता था. इसलिए उसके वध को जायज माना गया.

रहे काम से दूर

अभिनेता संजय ने हमेशा कॉमेडी और अलग तरीके की फिल्में की है, इन्होंने अधिकतर हिन्दी फ़िल्मों तथा टेलीविज़न धारावाहिकों में अभिनय किया है. वर्ष 2015 में उन्हें आँखों देखी के लिए फ़िल्मफ़ेयर क्रिटिक अवॉर्ड फ़ॉर बेस्ट एक्टर से नवाजा गया. वे एक इमोशनल इंसान है और पिता की मृत्यु के बाद कई साल तक फ़िल्मी दुनिया से दूर रहे और दूसरों के लिए काम किया. उनका कहना है कि जिंदगी केवल खुद के लिए काम करना नहीं होता, दूसरों के लिए भी बहुत कुछ करने की जरुरत है और वह निस्वार्थ भाव से करना पड़ता है. इससे एनर्जी बढती है.

प्रेरित करती है मनोहर कहानियां  

लीक से हटकर फिल्म वध उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण थी.उनका कहना है कि मुझे हमेशा से ही अलग भूमिका निभाना पसंद है, इस फिल्म की कहानी को जब लेखक ने मुझे मानकर लिखा है, तो ना कहने की कोई बात नहीं थी. मैंने तैयारी अधिक नही की, क्योंकि ऐसी स्टोरी मैंने मनोहर कहानियों में पढ़ा है. मुझे याद आता है, जब मैंने ट्रेन से जाते हुए कई डेस्टिनेशन को मनोहर कहानियां पढ़ते हुए पार किया है.

मिली प्रेरणा

बनारस के रहने वाले संजय मिश्रा को फिल्म और संगीत से बहुत अधिक लगाव था और उन्हें फिल्मों में एक्टर, डायरेक्टर, कैमरामैन या कॉस्टयूम डिज़ाइनर किसी एक में काम करने  का शौक बचपन से था, इसलिए उन्होंने दिल्ली के एन एस डी से एक्टिंग का कोर्स किया और मुंबई अपने दोस्त के साथ आ गए. मुंबई आकर उन्हें काम मिलना आसान नहीं था.कई प्रोडक्शन हाउस में पिक्चर्स दिए, कई अच्छे दोस्त मिले और कुछ दिनों बाद उन्हें ‘ओह डार्लिंग ये है इंडिया’ में काम करने का मौका मिला इसके बाद से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा.

मिला परिवार का सहयोग

उनकी इस जर्नी में परिवार का बहुत बड़ा योगदान रहा है, इसमें पहले वे अपने पेरेंट्स और शादी के बाद पत्नी किरण मिश्रा का हाथ मानते है. संजय का कहना है कि मेरी पत्नी ने हर समय मेरा साथ दिया है, पिथौडागढ़ के डीडीहाट की रहने वाली किरण से जब मेरी अरेंज शादी हुई, तो मैंने शादी के तुरंत बाद उसे गाड़ी चलाने की ट्रेनिग लेने को कहा, ताकि उसके लिए मुंबई में काम करना आसान हो.मेरी दोनों बेटियां पल (13वर्ष)और लम्हा (9वर्ष ) की है. दोनों की पढाई की सारी जिम्मेदारी किरण निभाती है. मुझे उनकी शिक्षा के बारें में अधिक ध्यान नहीं देना पड़ता. मेरी लड़कियां खूब मजेदार और शरारती है. समय मिले तो उनके साथ अधिक से अधिक समय बिताना पसंद करता हूँ.

गृहशोभा के लिए मेरा कहना है कि इस पत्रिका को मैंने बचपन से आजतक देखा है, पहले मेरी माँ और अब मेरी पत्नी इसे पढना पसंद करती है. ये एक प्रोग्रेसिव पत्रिका है,  इसलिए हर नागरिक को इसे पढना चाहिए और मैं इस पत्रिका को हर मुश्किल हालात में  टिके रहने और अपनी जिम्मेदारी को बनाए रखने के लिए पब्लिकेशन को बधाई देता हूँ.

जानें Bigg Boss 15 फेम विधि पांड्या के फिटनेस सीक्रेट्स

टीवी सीरियल तुम ऐसे ही रहना बालिका वधू, एक दूजे के वास्ते, उड़ान, लाल इश्क, क्राइम पेट्रोल, बिग बॉस 15 में नजर आ चुकी एक्ट्रेस विधि पांड्या अब सोनी टीवी के सीरियल ‘मोसे छल किए जाए’ में एक लेखिका सौम्या का किरदार निभाती नजर आ रही हैं. जो अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए घिसे-पिटे रिवाजों को तोड़ती हुई नजर आएंगी.

आपको बता दे विधि ने टीवी सीरियल तुम ऐसे ही रहना से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी. हालांकि, विधि को सफलता सीरियल उड़ान में चकोर की बहन के किरदार से मिली. उन्होंने सीरियल में निगेटिव किरदार निभाया था. मुंबई में जन्मी विधि सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. अक्सर अपनी फ़ैशनेबल फोटोज शेयर करती रहती है.

शो के प्रमोशन पर दिल्ली के ललित होटल आई विधि पांड्या ने शो के अलावा अपनी फिटनेस के बारे में कुछ सीक्रेट्स शेयर किए.

एक्ट्रेस विधि पांड्या के फिटनेस सीक्रेट्स

सुबह की शुरुआत

सुबह उठते ही मैं एप्पल इन सीडर विनेगर वार्म वाटर के साथ लेती हूं. नाश्ते में मूसली या पोहा लेती हूं.

डाइट

मैं कोई डाइट फॉर्मेट में बिलीव नही करती  मेरी कुछ बेसिक चीजे है सब कुछ खाओ लेकिन कम कॉन्टिटी में खाओ. रात को सोने से 2-3 घंटे पहले  अपना डिनर फिनिश कर लो ताकि डाइजेशन बेटर हो. मैं जंक फूड नही खाती, घर का खाना खाती हूं और खूब सारा पानी पीती हूं.

ये भी पढ़ें- 40 की उम्र में इन 20 टिप्स से रहें फिट

लंच

लंच के समय मैं रोज मक्के की रोटी के साथ डिफरेंट टाइप की वेजिटेबल और दाल खाती हूं.

हाइड्रेशन

मैंअपनी बॉडी को हाइड्रेट करने के लिए खूब सारा पानी पीती हूं. जिसमें लाइम वाटर, कोकोनेट वाटर, और टर्मनिक वाटर रोज़ लेती हूं.

एक्सरसाइज

फिट रहने के लिए एक टाइम पर मैं योगा करती थी लेकिन अब मैं एक्सरसाइज करती हूं मेरी बॉडी एक्सरसाइज के लिए कंफरटेबल है. मुझे रनिंग करना पसंद है. मैं 5 से 6 किलोमीटर रन करती हूं. रोज  एक घंटा जिम करती हूं जिसमें20 मिनट कार्डियो, 20 मिनट वेट् ट्रेनिंग और 20 मिनट दूसरी एक्सरसाइज करती हूं.

डिनर

डिनर मैं लाइट ही लेती हूं जिसमे पनीर सैलेड लेती हूं या मूसली, सूप लेती हूं जिससे रात में डाइजेशन सही रहे.

चीट डे

चीट डे में मैं कभी- कभी पिज़्जा, ब्राउनी और चॉकलेट खा लेती हूं क्योंकि ये मुझे बहुत पसंद है.

अगर आप भी रहना चाहती है फिट तो एक्ट्रेस विधि पांड्या के फिटनेस टिप्स को जरूर फॉलो करें. ….

ये भी पढ़ें- एक्सरसाइज काे लिए सबसे अच्छा औप्शन है साइक्लिंग

Interview Tips: ये हैं खुद को प्रैजेंट करने का बेस्ट तरीका

इंटरव्यू फेस करने पर अलग अलग लोगों की, अलग अलग प्रतिक्रियाएं होती हैं. कुछ लोगों को पसीना छूट जाता है, कुछ लोग सचमुच हंकलाने लगते हैं. कुछ लोग महीनों में याद की गई तमाम बातें उस क्षण भूल जाते हैं, अच्छे अच्छे वाचाल लोगों के मुंह से कई बार एक शब्द भी नहीं निकलता. जबकि कई लोग ऐसे भी होते हैं जो बड़ी सहजता से इंटरव्यूर को फेस करते हैं और कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो आम समय पर भले अपने को स्मार्ट ढंग से पेश न कर पाएं, लेकिन इंटरव्यू देते समय पता नहीं कहां से स्मार्टनेस आ जाती है और वह शानदार इंटरव्यू देते हैं.

सवाल है आखिरकार इंटरव्यू के संबंध में इतनी सारी अलग अलग प्रतिक्रियाएं क्यों होती हैं? न्यूर्याक की पैमेला स्किलिंग्स इंटरव्यू को बेहतर तरीके से देने की कोचिंग देती हैं. उनके मुताबिक इंटरव्यू फेस करना एक किस्म की कला है. यह कला बहुत कम लोगों में होती है. हालांकि पैमेला के मुताबिक इस कला को सीखा जा सकता है. दूसरे शब्दों में इंटरव्यू देते वक्त आत्मविश्वास से भरे होने की कला सीखी जा सकती है. इंटरव्यू देते समय किसी किस्म की दहशत में न आना, कूल बने रहना. ये तमाम कुशलताएं हम अभ्यास के जरिये सीख सकते हैं. ऐसा इंटरव्यू कला की कोचिंग देने वाली पैमेला स्किलिंग्स का मानना है.

क्या इंटरव्यू देने की कला न होने या न सीख पाने की वजह से हमें अपने जिंदगी में इसका नुकसान उठाना पड़ता है? इस सवाल का जवाब है बिल्कुल उठाना पड़ता है. पैमेला के पास ऐसे उदाहरणों की लंबी फेहरिस्त है, जो अच्छा इंटरव्यू न दे पाने की वजह से जिंदगीभर अपनी प्रतिभा और क्षमता से कम आंके गये या उन्हें अपनी क्षमता और प्रतिभा के बराबर सम्मान नहीं मिला. बहरहाल हम यहां ऐसे लोगों के बारे में नहीं जानना चाहते, इनके जिक्र का हमारा मकसद ये है कि हम कैसे इंटरव्यू देने की कला को सीखें, अपनी कमजोरियों से पार पाएं और हम जितने योग्य हैं, कम से कम अपनी योग्यता के बराबर का फल तो पाएं. सवाल है अच्छा इंटरव्यू देने के लिए क्या कला सीखनी होगी?

ये भी पढ़ें- करीने से सजाकर छोटे से रसोई घर को दिखाएं स्पेसफुल

जैसा कि हमने शुरु में जिक्र किया कि ऐसे तमाम लोग हैं, जो वैसे तो चीजों के बहुत अच्छे जानकार थे, अपनी जानकारी को बहुत अच्छी तरीके से व्यक्त भी कर लेते थे, लेकिन इंटरव्यू के समय उनमें कंपकंपाहट शुरु हो गई, वो हंकलाने लगे. वे सहज शब्दों का भी अटपटा उच्चारण करने लगे. दरअसल यह सब उनके अंतर्मुखी होने की वजह से था. विशेषज्ञ कहते हैं इन कमियों से छुटकारा पाया जा सकता है. पर सवाल है कैसे? पैमेला ने अपने एक क्लाइंट को सुझाव दिया कि वे सवालों के जवाब पर काम करें. उन्होंने अपने क्लाइंट को बोलने की स्टाइल के बारे में बताया और यह आत्मविश्वास भरा कि अगर अपनी बात शुरु करने के पहले एक दो जुमले में आप हंकला भी जाते हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. आप फोकस्ड रहें, आप तुरंत ट्रैक पर लौट सकते हैं और अच्छे जवाब देना शुरु कर सकते हैं.

दरअसल इंटरव्यू एक किस्म से अपने आपको बेचने की कला है, अपने आपको बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने का कौशल है. यह तभी संभव है, जब आप अपने आपका सम्मान करें. अपने अंदर यह भावना रखें कि आप भी कुछ हैं. ईमानदारी से चीजों को जानें, पढ़ें, समझें और फिर अपनी समझदारी पर यकीन करें. साथ ही यह भी मानें कि किसी भी सवाल का कोई एक रटारटाया जवाब नहीं हो सकता. अगर आप चीजों को जानते हैं तो आप उन चीजों को कई तरह से प्रस्तुत कर सकते हैं, वह प्रस्तुति आपकी मौलिक होगी. इसलिए इंटरव्यू के समय किसी सवाल का रटारटाया जवाब न याद करें. इंटरव्यू देते समय सवाल पूछने वाले के चेहरे पर नजर मिलाकर आत्मविश्वास से देखें, होंठों से फूट रहे उसके शब्दों की बाॅडी लैंग्वेज समझें और बजाय सवाल के जवाब देने के पहले एक क्षण को यह सोचें कि आखिर यह बंदा जानना क्या चाहता है?

जब आप सवाल को अच्छे ढंग से सुनेंगे तो वह सवाल सिर्फ ध्वनि का एक टुकड़ा नहीं होगा, आपके सामने उसका चित्र बन जायेगा और वह चित्र विस्तार से आपको बता रहा होगा कि ये सवाल आपसे जानना क्या चाहता है? लब्बोलुआब यह कि अगर आप इंटरव्यू देते समय इंटरव्यूर के सवाल को अच्छी तरह से सुनते हैं. उसकी आंखों में आंखें डालकर उसकी बाॅडी लैंग्वेज को समझते हैं तो अगर आप वाकई उस सवाल के बारे में जानते हैं तो तुरंत अपनी जानकारी तक पहुंच जाएंगे और उसके अपने तरीके से व्यक्त कर देंगे. अगर आपको लगता है कि आपने जो सवाल सुना है, उसमें कुछ कंफ्यूजन है, तो बिना इस बात की चिंता किये हुए कि इसका कोई नकारात्मक असर पड़ेगा. आप बड़ी सहजता से कहिये साॅरी, मैं सवाल नहीं समझ सका, कृपया इसे दोहरा दें और इंटरव्यूर के सवाल दोहराते समय अपना अधिकतम फोकस सवाल को समझने में लगाएं. आपको निश्चित रूप से कोई जवाब सूझ जायेगा. यहां तक कि अगर सवाल का जवाब आपने नहीं भी पढ़ा होगा तो सवाल अच्छे से सुनने पर, तो आपको कुछ न कुछ जवाब सूझ ही जायेगा. कहने का मतलब ये है कि आप हंकलाएंगे नहीं और इंटरव्यू अच्छा हो जायेगा.

ये भी पढ़ें- वीकैंड मस्ती: अब कल की बात

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें