इस बार सेलेब्स की दिवाली, होगी इकोफ्रेंडली, कैसे पढ़ें यहाँ

दिवाली हर साल आती है और हर साल इसे नए रूप में उत्साह के साथ मनाया जाता है, इस बार की दिवाली को छोटे पर्दे की सेलिब्रिटीज इको – फ्रेंडली दिवाली मनाना चाहती है, क्या कहती है वो जाने ,

चारू मालिक

चारू कहती है कि मैं दिवाली को हर साल कुछ नए तरीके से आगे ले जाना चाहती हूँ. दीवाली मेरा सबसे फेवोरिट फेस्टिवल है, क्योंकि ये प्रकाश, ब्राइटनेस, सकारात्मक सोच और चारों तरफ के अन्धकार को मिटाने वाला पर्व है. मैं अधिकतर इस दिन घर पर ही रहती हूँ , लेकिन इस साल मेरे पिता अमेरिका से मेरे साथ दिवाली मनाने आये है, इसलिए मैं उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताना चाहती हूँ. इसमें मैं कुछ शौपिंग, घर को दिए से सजाना आदि करने वाली हूँ. इस बार मेरी दिवाली ग्रैंड सेलिब्रेशन के साथ होगी, जिसकी तैयारी मैंने कर ली है. दिवाली इको – फ्रेंडली होनी चाहिए, लेकिन कुछ लोग पटाखे फोड़ते है, जिसमे समय, एनर्जी, पैसे आदि सब बर्बाद होने के साथ -साथ प्रदूषण फैलता है. मैं खासकर पालतू डॉग्स को लेकर चिंतित हूँ, क्योंकि उनके लिए ये कठिन समय होता है, जब फायरक्रेकर्स से वे कई दिन तक खाना पीना छोड़ देते है. मैं उन सभी से कहना चाहती हूँ कि अगर आपके पास पैसे है, तो आप उन्हें जरुरत मंदों में बांटे या उन पैसों से अपने परिवार में खुशियाँ लायें.

मेहुल व्यास

अभिनेता मेहुल कहते है कि इस साल मैं दिवाली अपने परिवार के साथ मनाने वाला हूँ, जिसमे गिफ्ट्स, सेलिब्रेशन, अच्छे व्यंजन और एक यादगार बनाने जैसा होगा. इस त्यौहार में सभी को संतुलन बनाकर चलना है, क्योंकि प्रकाश के इस त्यौहार को मनाते हुए सभी को इस बात का ध्यान रखना जरुरी है कि आपके ख़ुशी में किसी को दुःख न मिले. पटाखे न फोड़े, शांतिपूर्ण दिवाली मनाएं. कपड़ों की शौपिंग, मिठाई, गिफ्ट्स आदि मेरे परिवार के लिए खरीदना मेरा मुख्य काम होगा. इस बार मैं ट्रेडिशनल फ्यूज़न विथ मॉडर्न टच वाले ड्रेस पहनने वाला हूँ, जो मुझे एक अलग लुक देगा. त्यौहार हर साल मनाया जाना चाहिए, क्योंकि इससे परिवार और दोस्तों में बोन्डिंग बढती है.

रिंकू घोष

दुर्गेश नंदिनी फेम अभिनेत्री रिंकू घोष का कहना है कि दिवाली आनंद का उत्सव है, जिसमे लाइट्स और दिए प्रमुख रूप से जलाये जाते है. मैं इस दिन एक सिंपल रंगोली के साथ दिए से घर को सजाती हूँ. मुझे दिवाली पर पटाखे फोड़ना पसंद नहीं है, इससे प्रदूषण बढ़ता है. मुझे खुद पटाखे जलाना पसंद नहीं. बचपन से मुझे क्रैकर की आवाज अच्छा नहीं लगता. इसे मैं पैसे की बर्बादी मानती हूँ, जो मेहनत से कमाया हुआ होता है, साथ ही वातावरण को प्रदूषित करता है. इस दिन मुझे करंजी और नमकीन, खाना बहुत पसंद है, जिसे मेरी नानी और चाची बनाती थी, मुझे बनाना नहीं आता, लेकिन मैं उसके स्वाद को पसंद करती हूँ. इस बार मेरा पहनावा हमेशा की तरह एक इंडियन साड़ी होगी, जो सुंदर लगने के साथ -साथ आरामदायक भी होती है.

सिंपल कौल

धारावाहिक कुटुंब, शरारत, तारक मेहता का उल्टा चश्मा आदि में काम कर चुकी अभिनेत्री सिंपल कौल कहती है कि मैं दिल्ली में अधिकतर अपने परिवार के साथ दिवाली मनाती हूँ और उस दिन मैं अपने सभी दोस्तों और परिवार के साथ इसे सेलिब्रेट करती हूँ, जिसमें फायरवर्क्स नहीं होता.दिवाली की खास बात यह होती है कि इसमें घर की साफ -सफाई हो जाती है, गिफ्ट्स अपने दोस्तों को देते है और घर के चारों तरफ दिए से सजाते है, जो एक अलग मनमोहक दृश्य होता है. इस बार मैंने दिवाली पर नए सूट्स या लहंगा दोनों में से किसी एक को पहनने वाली हूँ.

मेघा शर्मा  

अभिनेत्री मेघा शर्मा कहती है कि दिवाली सबकी फेवोरिट त्यौहार है, इस दिन मैं घर को लाइट्स, फ्लावर्स, लैंटर्नस आदि से सजाने वाली हूँ. मैं पटाखे नहीं फोडती और इस बार मैं ईको फ्रेंडली दिवाली मनाने वाली हूँ, क्योंकि आजकल बाज़ार में कई आप्शन उपलब्ध है. अभी चारों तरफ प्रदूषण का माहौल है, ऐसे में बिना पोल्यूशन के सभी चीजो को मैं इस त्यौहार में शामिल करना चाहती हूँ. इसके लिए मैंने तेल के दिए जलाने का प्लान किया है. इस बार मैं दिवाली पर पटियाला सूट पहनने वाली हूँ.

आदेश चौधरी    

अभिनेता आदेश कहते है कि मैं दिवाली को लेकर बहुत उत्साहित हूँ, क्योंकि इस बार मैं अपने घर पर दिवाली मनाने वाला हूँ. दिवाली का त्यौहार इमोशन्स से भरे हुए होते है. मुझे फायर क्रेकर्स पसंद है, लेकिन इतनी अधिक प्रदूषण को देखते हुए मैंने इकोफ्रेंडली दिवाली मनाने का मन बनाया है. दिवाली पर नए ट्रेडिशनल ड्रेस खरीदना और कुछ खास इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान खरीदना भी मुझे अच्छा लगता है. मिठाई में इस दिन मुझे काजू कतली खाना पसंद है. मैं इस बार ट्रेडिशनल कुर्ता पहनने वाला हूँ. हालाँकि शो के काम इस बार मैंने अधिक किये है, लेकिन मुझे दिवाली पर रिलैक्स होने का एक अच्छा मौका मिलेगा.

एकता सरैया

अभिनेत्री एकता सरैया के लिए दीवाली एक स्पेशल टाइम है, इसलिए उन्हें हर साल इस त्यौहार का इंतजार रहता है. वह कहती है कि मेरी शूट ख़त्म करने के बाद मैं अपने घर को फ्लावर और रंगोली से सजाऊँगी. इसके बाद शाम को मैं टीलाइट कैंडल्स और फ्लावर पेटेल्स का प्रयोग कर एक सुंदर वातावरण बनाना चाहती हूँ. हालांकि मुझे फुलझड़ी जलाना पसंद है, लेकिन पोल्यूशन इतना अधिक हो रहा है कि मैंने इस उसे भी न जलाने का संकल्प लिया है. इस दिन मेरी सास कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाती है, जिसमें चकली, पोहा का चिवडा, शकरपाड़ा, मठिया आदि होता है. इसके अलावा कुछ शुगरफ्री मिठाइयाँ भी बनती है. इस बार मेरी शूटिंग की व्यस्तता अधिक है, इसलिए मैं साड़ी पहनना ही पसंद करुँगी.

अभिनेता निशांत दहिया के सपने क्या सच हुए? पढ़ें इंटरव्यू

‘फिल्म 83’ फेम अभिनेता निशांत दहिया ने मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों में काम किया हैं, जिसमे टीटू एमबीए, मुझसे फ्रेंडशिप करोगे, मेरी प्यारी बिंदु आदि फिल्में शामिल हैं. निशांत ने मॉडलिंग से अपने अभिनय की शुरुआत की है और वर्ष 2006 में ग्रासिम मिस्टर इंडिया की प्रतियोगिता में भाग लिया, जिसमे वे फर्स्ट रनर अप रहे. बेस्ट स्माइल और मिस्टर फोटोजेनिक का टाइटल भी जीता. इसके बाद वे मुंबई आये और मॉडलिंग शुरू की. इससे उनकी पहचान इंडस्ट्री में बनी और उन्हें छोटी – छोटी भूमिका मिलने लगी. उन्होंने शुरू में जो भी काम मिला करते गए, क्योंकि इंडस्ट्री में पहचान बनाना आसान नहीं होता.

मध्यप्रदेश के जाट परिवार में जन्मे निशांत के पिता राजेंद्र सिंह इंडियन आर्मी में रहे और उनकी माँ उर्मिला एक हाउसवाइफ है. सरकारी पद पर कार्य करने की वजह से निशांत को देश के विभिन्न स्थानों पर जाना पड़ा. उनका एक बड़ा भाई प्रशांत दहिया भी सेना में है.

मिली प्रेरणा

निशांत कहते है कि मैं एक आर्मी परिवार से हूँ, मेरे पिता आर्मी में कर्नल थे, अब  रिटायर हो चुके है. मेरे दादा कर्नल रहे, वे भी रिटायर्ड है. मेरे बड़े भाई कर्नल है आर्मी में मेरे परिवार की तीसरी पीढ़ी चल रही है, पर मैं नहीं गया , क्योंकि भाई कश्मीर बॉर्डर पर है और पिता चाइना बॉर्डर पर रहे, ऐसे में माँ की इच्छा थी कि मैं उनके साथ रहूँ. उसी वजह से मैं आर्मी में नहीं गया. मैंने इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की, फ़ौज में सेलेक्ट भी हुआ, एक छोटी सी नौकरी भी किया, लेकिन अंत में मुंबई एक्टिंग के लिए आ गया, जबकि मैंने अभिनय के बारें में कभी सोचा नहीं था. मुझे परफॉर्म करना पसंद था. मुंबई आकर मैंने छोटे – छोटे काम करने लगा, इससे लोगों ने मुझे जाना और धीरे – धीरे बड़ा काम मिला. इस तरह एक फिल्म से दूसरी और दूसरी से तीसरी फिल्में की.

किये संघर्ष  

निशांत आगे कहते है कि बीच के 3 साल का दौर कभी ऐसा भी था, जब बहुत संघर्ष था और मुझे काम नहीं मिल रहा था. मैंने काफी अच्छे दोस्त खो दिए, रिश्ते टूटे, वित्तीय रूप से भी कमजोर रहा, लेकिन मेरी कोशिश हमेशा जारी रही और माता – पिता के आशीर्वाद से मैं यहाँ तक पहुँच पाया. आगे भी मेरी इच्छा है कि मैं अच्छा काम करू और दर्शकों का प्यार मिलता रहे.

सपना आगे बढ़ने का

निशांत की वेब सीरीज सुल्तान ऑफ़ दिल्ली डिजनी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हो चुकी है, जिसे सभी पसंद कर रहे है और निशांत खुश है कि उन्हें एक अच्छी वेब सीरीज में काम करने का अवसर मिला. उनका कहना है कि ये वेब सीरीज फिल्म की तरह है. इसकी कहानी बहुत रिलेटेबल है, क्योंकि देखा गया है कि सालों से लोगों का सपना सुल्तान यानि पॉवर को पाने का होता है. जिसमे उनके आपसी रिश्ते बंट जाने के अलावा बिगड़ भी जाते है.

इसके आगे निशांत कहते है कि हर व्यक्ति कामयाब होने का सपना देखता है. मैंने भी देखा है और उसी के अनुसार काम कर रहा हूँ. इसके लिए मुझे हर काम को चुनने से पहले सोच – विचार करना पड़ता है. मैं एक अभिनेता हूँ और अभिनय करना मेरा काम है. मैं अपने निर्णय स्क्रिप्ट को पढने के बाद लेता हूँ. स्क्रिप्ट फिल्म की है या वेब की इस बारें में नहीं पूछता, क्योंकि इतने कम्पटीशन में जहाँ इतने बड़े – बड़े एक्टर्स है, ऐसे में अगर कोई मेरे पास अपनी स्क्रिप्ट लेकर आता है, तो वह मेरे लिए बड़ी बात होती है, ऐसे में स्क्रिप्ट पसंद होने पर मैं कर लेता हूँ.

मैं जब छोटा था तो ओटीटी नहीं थी, थिएटर ही मुख्य था, ऐसे में जब बड़े पर्दे पर एक्टर्स को अभिनय करते हुए देखता था, तो मैं अपने मन में सोचता था कि शायद मैं भी कभी ऐसा काम कर सकूँ, तो मेरे लिए अच्छी बात होगी. ये दूर का सपना था और तब उस ख्याल से खुश हो जाता था. बड़े पर्दे पर दिखना मुझे पसंद रहा, लेकिन एक अच्छी कहानी का हिस्सा बनना ही मुझे बहुत अधिक अपील करती है.

Film Review: ‘‘आठ सौ- असाधारण क्रिकेटर पर अति साधारण फिल्म..’’

रेटिंगः पांच में से एक स्टार

 निर्माताः विवेक रंगाचारी

लेखकः एम एस श्रीपति शेहान करुणातिलका

निर्देषकः एम एस श्रीपति

कलाकारः मधुर मित्तल,महिमा नांबियार, नारायण,किंग रत्नम, नासर, वाड़िवरकरासी, रियाथिका, वेला राममूर्ति,विनोद सागर, रित्विक, यारथ लोहितस्व, दिलीपन अन्य

भाषा: तमिल हिंदी

अवधिः दो घंटे 39 मिनट

अब तक क्रिकेट पर आधारित जितनी भी फिल्में बनी हैं,उन सभी को दर्शक सिरे से नकारते रहे हैं.इसकी मूल वजह यह रही है कि हर फिल्मकार सिनेमा की मूल जरुरत मनोरंजन को दरकिनार कर हमेशा क्रिकेट के खेल व खिलाड़ी को महान साबित करने का ही प्रयास करता रहा है.अब मशहूर तमिल फिल्मकार श्रीलंका के आफ स्पिनर गेंदबाज व क्रिकेट टीम के पूर्व कैप्टन मुथैया मुरलीधरन की बायोपिक फिल्म ‘‘800’’ लेकिन आए हैं.तमिल भाषा में बनी यह फिल्म हिंदी में डब करके भी प्रदर्शित की गयी है.फिल्म की कहानी अस्सी के दशक,जब श्रीलंका गृहयुद्ध से जूझ रहा था,से लेकर मुथैया मुरलीधरन के 800 विकेट लेने के बाद क्रिकेट से संयास लेने तक की कहानी है.इस फिल्म में इस बात को खास तौर पर रेखंाकित किया गया है कि तमीलियन श्रीलंकन क्रिकेटर मुथैया मुरलीधरन के लिए प्रतिभा के बावजूद अपने देश श्रीलंका के लिए क्रिकेट खेलना कितना मुश्किल था.

जब इस फिल्म की घोषणा हुई थी,तब मुथैया मुरलीधरन का किरदार दक्षिण भारतीय अभिनेता विजय सेतुपति निभा रहे थे,पर बाद में उन्होने खुद को इस फिल्म से अलग कर लिया.उस वक्त कहा गया था कि विजय सेतुपति के प्रशंसकों ने उनके घर पर हमला बोलकर उनसे इस फिल्म का हिस्सा न बनने के लिए कहा था. लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद बात समझ में आ गयी कि विजय सेतुपति ने इस घटिया फिल्म से दूरी बनायी थी.इतना ही नही उस वक्त तमिलनाडु के राजनीतिक दलों ने भी फिल्म के निर्माण के खिलाफ आवाज उठाई थी,मगर निर्माता व निर्देशक ने आश्वस्त किया था कि इस फिल्म में मुरलीधरन की कहानी के साथ ही श्रीलंका के भारतीय तमिलों की अनकही कहानी भी बताएगी,जिन्हें अक्सर देश के अन्य श्रीलंकाई तमिलों व सिंहलियों से भेदभाव का सामना करना पड़ता है.फिल्म में मुरलीधरन पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हुए खुद को तमिल या सिंहली की बजाय एक क्रिकेटर ही कहते नजर आते हैं.पर उन्होने ‘तमिल’ होने की अपनी पहचान को कभी नहीं छिपाया.

कहानीः

फिल्म की शुरूआत तमिल बनाम सिंहली लड़ाई के दृष्य से होती है,जिसमें दिखाया गया है कि किस तरह सिंहली एक एक तमीलियन को मौत के घाट उतारने के साथ ही उनकी फैक्टरी तक को आग लगा रहे हैं.कैंडी में अपने माता पिता व दादी के साथ रहने वाले छह सात वर्षीय मुथैया मुरलीधरन को जब उसके गांव के बड़े बच्चे अपने साथ क्रिकेट नही खेलने देते, तब वह अपनी दादी को बुलाकर लाता है.दादी के हड़काने के बाद वह गांव के लड़कों के साथ फील्डिंग करने व बल्लेबाजी करते हुए क्रिकेट खेलता है.

एक दिन उसे गेंदबाजी करने का अवसर मिलता है,तभी वहां सिंहली उपद्रवी आ जाते हैं,और तमीलियन की तलाश कर उन्हे मौत की नींद सुलाने लगते हैं.तब एक मुस्लिम षख्स मुरली व मुरली की मां सहित कई लोगों को अपने घर में शरण देता है.पर सिंहली उसके पिता की बिस्कुट फैक्टरी में आग लगा देते हैं..उसके बाद उनकी मां उन्हें एक चर्च में पादरी से मिलकर रख देती हैं.पादरी की शरण में मुरली चर्च के ही स्कूल में पढ़ाई करने के साथ ही क्रिकेट भी खेलता है.वह पढ़ाई पर कम पर क्रिकेट में ज्यादा रूचि रखते हैं.

लेखन निर्देशनः

मुथैया मुरलीधरन ने टेस्ट क्रिकेट में 800 और वनडे क्रिकेट में 532 विकेट लिए.इसी से उनकी खतरनाक गेदबाजी का अंदाजा लगाया जा सकता है.सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि आस्ट्रेलियन व इंग्लैंड के बल्लेबाज भी उनकी गेंदबाजी से डरते थे.पर तमीलियन श्रीलंकन क्रिकेटर मुथैया मुरलीधरन के लिए प्रतिभा के बावजूद अपने देश श्रीलंका के लिए क्रिकेट खेलना बहुत ही कठिनाइयों वाली डगर थी. इसे सही ढंग से परदे पर उकेरना हर फिल्मकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है. फिल्म में मुरलीधरन के संघर्ष व दर्द भरी कहानी का चित्रण है,जो कि किसी भी युवा के लिए प्रेरणा बन सकती है,मगर इसका चित्रण व तकनीकी पक्ष इस कदर कमजोर है कि यह युवा पीढ़ी तक नही पहुॅच पाएगी.

नेक मकसद से बनायी गयी इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसकी पटकथा है.पूरी पटकथा विखरी हुई है.फिल्म देखते हुए अहसास होता है कि लेखक व निर्देशक का फोकश तय नही है.परिणामतः दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती. फिल्म में मुरलीधरन द्वारा खेेले गए कुछ चर्चित मैचों को पुनः जीवित करके दिखाया गया है,ऐसे दृष्यों के साथ फिल्मकार न्याय नही कर पाए. काश उन्होने ऐसे क्रिकेट मैचों के मौलिक दृष्यों के अधिकार खरीदकर उन्हे इस फिल्म में पिरोया होता. इस कमी के चलते सिनेमा के दर्शक ही नही क्रिकेट के फैन को भी इस फिल्म से कुछ नहीं मिलता.

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी बहुत खराब है.क्रोमा पर शूट किए गए दृष्य अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहे हैं. इतना ही नही भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाफ मुरलीधरन द्वारा खेल गए क्रिकेट मैचों को नजरंदाज किया गया है.यॅूं तो मैं क्रिकेट का बहुत बड़ा फैन नही हॅूं,पर फिल्म देखकर अहसास होता है कि फिल्मकार का पूरा ध्येय मुरलीधरन को नेकदिल व बेहतरीन इंसान के रूप में पेश करने की रही है और उन्होने उन सभी घटनाक्रमो से बचने का प्रयास किया, जिनसे भारतीय दर्शक नाराज हो सकता है.

मसलन एक टुर्नामेंट में श्रीलंका ने पूरी भारतीय टीम को महज 54 रनों पर आउट किया था और इसमें अहम भूमिका मुरलीधरन की ही थी,जिन्होने पांच विकेट लिए थे.फिल्मकार ने चकिंग विवाद को कुछ ज्यादा ही विस्तार से चित्रित किया है,हो सकता है कि कहानी के लिए इसकी जरुरत हो,पर सिने प्रेमियों को यह अखरता है.फिल्मकार मुरलीधरन के निजी जीवन व उनकी पत्नी को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए हैं. वास्तव में यह फिल्म मुरली धरन के लिए अपना दामन साफ करने व ख्ुाद का स्तुतिगान ही है,इसलिए भी फिल्म अपना महत्व खो देती है.

अभिनयः

इस फिल्म को बर्बाद करने में लेखक व निर्देशक के साथ ही अभिनेता मधुर मित्तल भी कम दोषी नही है.मधुर मित्तल ने ही इस फिल्म में मुथैया मुरलीधरन का किरदार निभाया है.जबकि छह सात वर्षीय मुरलीधरन के किरदार को निभाने वाला बाल कलाकार अपने अभिनय की छाप छोड़ जाता है.मधुर मित्तल का अभिनय व संवाद अदायगी काफी गड़बड़ है. इतना ही नहीं मधुर मित्तल एक भी दृश्य में मुथैया मुरलीधरन की तरह गेंदबाजी करते हुए नजर नही आए. मधुर मित्तल ने पहली बार अभिनय किया हो,ऐसा भी नही है.मधुर ने नौ वर्ष की उम्र में बाल कलाकार के रूप में अभिनय जगत में कदम रखा था.

2008 में उन्होने फिल्म ‘स्लमडाॅग मिलेनियर’ में सलीम का किरदार निभाया था.बाल कलाकार के तौर पर कुछ टीवी सीरियलों भी अभिनय किया.फिर तेइस वर्ष की उम्र में वह मिलियन डालर आर्म में भी नजर आए थे.फिर ‘पाॅकेट गैंगस्टर’ व ‘मातृ’ जैसी सुपर फ्लाप फिल्मों में नजर आए. दो वेब सीरीज भी की. इसके बावजूद बतौर अभिनेता वह इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी हैं.मधुर मित्तल को चाहिए कि वह एक दो वर्ष अपने अंदर की अभिनय प्रतिभा को निखारने के लिए मेहनत करें.अखबार के संपादक की भूमिका में अभिनेता नासर ने शानदार   अभिनय किया है.अर्जुन रणतुंगा के किरदार में राजा रत्नम अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे हैं.इसके अलावा कोई भी कलाकार ठीक से अभिनय नही कर पाया.मुरलीधरन की पत्नी मधिमलार के किरदार में महिमा नांबियार के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं.

अमिताभ बच्चन के 81वें जन्मदिन के पहले होगी उनके यादगार वस्तुओं की नीलामी!

भारतीय सिनेमा के “शहंशाह” अमिताभ बच्चन ने अपनी अद्वितीय प्रतिभा, करिश्मा और समर्पण से फिल्म उद्योग पर एक अद्भुत छाप छोड़ी है.  पांच दशक से अधिक लंबे करियर के साथ, बच्चन को न केवल एक अभिनेता के रूप में बल्कि सिनेमाई उत्कृष्टता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है.

11 अक्टूबर 2023 को महान सुपरस्टार अमिताभ बच्चन 81 साल के हो जाएंगे और इसी मौके के पहले एक अनूठे ढंग से उनकी यादगार वस्तुओं की नीलामी के जरिये इस जश्न को मना रहा है, भारत का सबसे युवा और सबसे तेजी से बढ़ता हुआ नाम, डेरिवाज़ एंड इवेस जिसके द्वारा एक अनूठी सार्वजनिक नीलामी को कार्यरत किया जाएगा जहाँ ‘बच्चनलिया’ शीर्षक से 5 और 7 अक्टूबर 2023 के बीच निर्धारित यह कार्यक्रम उनके शानदार करियर को सलामी देगा और संग्रहकर्ताओं और प्रशंसकों को उनकी अभूतपूर्व सिनेमाई यात्रा के एक ऐतिहासिक हिस्से को जीने का और उसे पाने का मौका देगा.

नीलामी में शामिल की जाने वाली वस्तुओं में प्रतिष्ठित फिल्म पोस्टर, तस्वीरें, लॉबी कार्ड, शोकार्ड तस्वीरें, फिल्म पुस्तिकाएं और मूल कलाकृतियां शामिल हैं।

नीलामी की मुख्य बातें इस प्रकार हैं: 

ज़ंजीर शोकार्ड

पहली रिलीज़ ज़ंजीर (1973) शोकार्ड का एक  सेट – सिल्वर जिलेटिन फोटोग्राफिक प्रिंट, पोस्टर पेंट और सावधानीपूर्वक हाथ और स्क्रीन-प्रिंटेड लेटरिंग से तैयार किया गया एक मूल, हाथ से बना कोलाज.  ये अनूठे टुकड़े अतीत की कलात्मक शिल्प कौशल का एक प्रमाण हैं, जो उस जटिल प्रक्रिया की झलक पेश करते हैं जिसने एक बार सिनेमा के जादू को जीवंत कर दिया था.

दीवार शोकार्ड

दीवार (1975) की पहली रिलीज शोकार्ड के साथ सिनेमाई इतिहास की एक अद्भुत भेंटअपने पास रखें, जिसे 1970 और 80 के दशक की कई प्रतिष्ठित अमिताभ बच्चन प्रचार कलाकृतियों के डिजाइनर दिवाकर करकरे द्वारा शानदार ढंग से डिजाइन किया गया है.

फ़रार शोकार्ड सेट

दिवाकर करकरे द्वारा डिज़ाइन किया गया शंकर मुखर्जी की फ़रार (1975) के छह असाधारण रूप से डिज़ाइन किए गए पहले रिलीज़ शोकार्ड का एक सेट भी ऑफर में है. गुलज़ार द्वारा लिखित यह थ्रिलर, किशोर-लता की मधुर जोड़ी “मैं प्यासा तुम सावन” के लिए प्रसिद्ध है.

शोले के फोटोग्राफिक चित्र लॉबी कार्डों पर लगे हुए हैं

1975 के क्लासिक के दिल को छू लेने वाले उत्साह को प्रतिबिंबित करते हुए, बोली लगाने वालों को शोले (1975) की पौराणिक दुनिया में प्रवेश करने का मौका मिलेगा.  रमेश सिप्पी क्लासिक के कुछ सबसे यादगार दृश्यों को प्रदर्शित करने वाले लॉबी कार्ड पर लगाए गए 15 री-रिलीज़ फ़ोटोग्राफ़िक स्टिल का उल्लेखनीय सेट.

एक अन्य लॉट में शोले की रिलीज के बाद आयोजित रमेश सिप्पी की विशेष पार्टी की चार निजी तस्वीरों का एक आकर्षक सेट पेश किया गया है, जो इस अविस्मरणीय फिल्म के पर्दे के पीछे के जादू की एक विशेष झलक प्रदान करता है.

प्रतिष्ठित पोस्टर

नीलामी में बच्चन की सबसे प्रसिद्ध फिल्मों जैसे मजबूर (1974), मिस्टर नटवरलाल (1979), द ग्रेट गैम्बलर (1979), सिलसिला (1981) कालिया (1981), नसीब (1986) के कुछ शानदार और अप्रतिम पोस्टर पेश किए गए हैं.

मशहूर ग्लैमर फोटोग्राफर गौतम राजाध्यक्ष द्वारा शूट किया गया अमिताभ बच्चन का एक स्टूडियो चित्र.  मूवी मैगज़ीन की प्रसिद्ध कवर स्टोरी के लिए किए गए एक विशेष फोटो-शूट से दो सुपरस्टार – राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन – को दिखाया गया है.

डेरिव्ज़ एंड इव्स भी बच्चन को कुछ समकालीन कलात्मक श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है.  सफदर शमी, शैलेश आचरेकर, मिठू बिस्वास और अनिल सोनी जैसे युवा कलाकारों की आंखों और सौंदर्यशास्त्र के माध्यम से देखी गई अमिताभ बच्चन की अलग-अलग प्रस्तुतियां और व्याख्याएं भी शामिल हैं.

नीलामी के बारे में बात करते हुए, डेरिवाज़ एंड इवेस के प्रवक्ता ने कहा, “हम डेरिवाज़ एंड इवेस में इस साल वैश्विक स्तर पर अपने फिल्म मेमोरैबिलिया विभाग का विकास कर रहे हैं, जिसमें 2023 में भारत और बरसात, सत्यजीत रे, अमिताभ बच्चन, राज कपूर, फेमिनिन आइकॉन की प्रतिष्ठित बिक्री होगी.  और हॉलीवुड की नीलामी 2024 से शुरू हो रही है.

सुपरस्टार और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व अमिताभ बच्चन पर यह फोकस पांच दशकों की विभिन्न भूमिकाओं में उनके अविश्वसनीय प्रदर्शन पर सावधानीपूर्वक तैयार की गई बिक्री है, जिसने उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय आइकन बना दिया है. हमें उम्मीद है कि यह प्रयास उनके प्रशंसकों को प्रसन्न करेगा. दुनिया भर में उनके प्रशंसक इसके नीलामी के जरिये, भारत को उसकी कागज-आधारित सिनेमाई विरासत को और अधिक गहराई से संरक्षित करने में मदद मिलेगी.”

 निम्नलिखित लिंक पर बोली लगाने के लिए बड़ी संख्या में संग्राहक आए:

 

 

फिल्मों में बदलते प्यार के अंदाज

कहते हैं फिल्में समाज का आईना हैं. इन में वही दिखाया जाता है, जो समाज में हो रहा होता है. फिर चाहे वह प्यार हो, तकरार हो, अपराध हो अथवा आज के समय में फिल्मों में दिखाया जाने वाला बदलता हुआ प्यार ही क्यों न हो. एक समय था जब प्यार का मतलब लैलामजनूं, हीररांझा और सोनीमहिवाल की प्रेम कहानी हुआ करती थी, लेकिन उस के बाद समय बदला, सोच बदली, तो ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे,’ ‘कुछकुछ होता है,’ ‘हम आप के हैं कौन,’ ‘मैं ने प्यार किया,’ जैसी फिल्मों का दौर आया, जिस में प्यार के अंदाज अलग थे, शादी के माने भी काफी अलग थे, लेकिन एक बात कौमन थी कि लड़कियां प्यार के मामले में शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, रितिक रोशन जैसे प्रेमी की कल्पना करती थीं. वे अपने पति में भी शाहरुख जैसे प्यार करने वाले प्रेमी को देखती थीं.

फिर जैसेजैसे वक्त बदला, लोगों की सोच बदली वैसेवैसे शादी और प्यार को ले कर भी लोगों का नजरिया बदलने लगा.जैसाकि कहते हैं ‘यह इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजिए एक आग का दरिया है और डूब के जाना है…’ ऐसा ही कुछ आजकल मुहब्बत का पाठ पढ़ाने वाली फिल्मों में अलग तरीके से देखने को मिल रहा है. आज के प्रेमीप्रेमिका या पतिपत्नी प्यार में अंधे नहीं हैं, बल्कि वे अपने प्रेमी और उस के साथ गुजारे जाने वाले जीवन को ले कर पूरी तरह से आजाद खयाल रखते हैं.

आज के प्रेमी झूठ में जीने के बजाय प्यार के साथ सच को कबूलने में विश्वास रखते हैं.मगर इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि आज के समय में प्यार मर गया है या लोगों का प्यार पर विश्वास नहीं रहा बल्कि आज भी लोगों में अपने प्रेमी या पति के लिए उतना ही प्यार है जितना कि लैलामजनूं के समय में था. लेकिन फर्क बस इतना है कि आज लोग प्यार और शादी के मामले में प्रैक्टिकल हो गए हैं क्योंकि जिंदगीभर का साथ है इसलिए दिखावा तो बिलकुल मंजूर नहीं है.

प्यार वही सोच अलगप्यार वही है बस सोच अलग है, जो आज की रोमांटिक फिल्मों में भी दिखाई दे रहा है. पेश है इसी सिलसिले पर एक नजर हालिया प्रदर्शित फिल्मों में दिखे प्यार के बदलते अंदाज के.हाल ही में प्रदर्शित करण जौहर की आलिया भट्ट और रणवीर सिंह द्वारा अभिनीत फिल्म ‘रौकी रानी की प्रेम कहानी’ में ऐसे 2 किरदारों को दिखाया है. आलिया भट्ट और रणवीर सिंह जिन के बीच प्यार हो जाता है, लेकिन दोनों ही एकदूसरे से एकदम विपरीत हैं, सिर्फ ये दोनों ही नहीं बल्कि इन के परिवार भी स्वभाव से एकदम विपरीत होते हैं.

लेकिन चूंकि ये दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं इसलिए परिवार से और अपनेआप से 3 महीने का समय मांगते हैं. इस के तहत ये दोनों प्रेमी तभी शादी करेंगे जब दोनों ही एकदूसरे के परिवार के बीच अपना सम्मान और प्यार बना पाएंगे. कहानी दिलचस्प और अलग भी है इसलिए दर्शकों ने इसे स्वीकारा.जरूरी है एकदूसरे का साथइसी तरह वरुण धवन और जाह्नवी कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म ‘बवाल’ एक ऐसी पतिपत्नी की कहानी है जहां पति अपनी पत्नी को इसलिए स्वीकार नहीं करता क्योंकि उसे मिर्गी के दौरे पड़ते हैं.

पत्नी को शादी के दिन ही मिर्गी का दौरा पड़ जाता है इसलिए बवाल में पति बना वरुण धवन अपनी पत्नी को स्वीकारने से मना कर देता है और उस से दूरी बना लेता है. लेकिन पत्नी हार मानने के बजाय पति के सामने यह साबित करने में कामयाब होती है कि भले ही उसे मिर्गी के दौरे आते हैं, लेकिन हर मामले में वह अपने पति से कहीं ज्यादा होशियार है. वह पति से नाराजगी दिखाने के बजाय अपनी काबिलीयत दिखा कर पति के दिल में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो जाती है.

इसी तरह ‘जरा हट के जरा बच के’ फिल्म की कहानी भी एक ऐसे ही पतिपत्नी की कहानी है जो प्यार में पड़ कर शादी तो कर लेते हैं, लेकिन खुद का मकान न होने की वजह से दुखी हो जाते हैं और मकान पाने की जुगाड़ में पतिपत्नी अपनी शादी को भी ताक पर रख देते हैं. लेकिन बाद में उन्हें एहसास होता है कि मकान से भी ज्यादा जरूरी उन के लिए एकदूसरे का साथ है. लिहाजा अपनी गलती सुधार कर एक हो जाते हैं.

एक अनोखी कहानी

हाल ही में प्रदर्शित रणबीर कपूर और श्रद्धा कपूर की फिल्म ‘तू ?ाठी मैं मक्कार’ की कहानी ऐसे 2 प्रेमियों की कहानी है जो आपस में प्यार तो बहुत करते हैं लेकिन प्रेमिका संयुक्त परिवार का हिस्सा नहीं बनना चाहती क्योंकि उस का मानना है कि जौइंट फैमिली में रहने से घर वालों की बहुत ज्यादा दखलंदाजी से पतिपत्नी की प्राइवेसी खत्म हो जाती है. लेकिन बाद में अपनी ससुराल वालों का प्यार देख कर प्रेमिका की सोच बदल जाती है और वह शादी के लिए मान जाती है.

इसी तरह शराबी प्रेमी पर आधारित फिल्में अमिताभ बच्चन की ‘शराबी,’ शाहिद कपूर की ‘कबीर सिंह,’ आदित्य राय कपूर की ‘आशिकी-2’ में ऐसे प्रेमियों को दिखाया गया जो अपनी प्रेमिका से प्यार तो बहुत करते हैं परंतु शराब नहीं छोड़ना चाहते, जिस वजह से काफी मुश्किलों के बाद उन्हें अपना प्यार मिलता है.

प्यार के लिए त्याग

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की कहानी भी एक ऐसी प्यार करने वाली गंगुबाई यानी आलिया भट्ट की कहानी है जो यह बात अच्छी तरह जानती है कि कोई भी प्रेमी वैश्या से प्यार तो कर सकता है परंतु समाज उस प्रेमी को जो वैश्या को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार लेगा समाज चैन से जीने नहीं देगा और बहुत ज्यादा तकलीफ देगा.

लिहाजा, गंगूबाई अपने प्रेमी को समाज में सम्मानीय बनाए रखने के चक्कर में अपने प्यार का बलिदान दे देती है और अपने प्रेमी की शादी खुद किसी और से करवा देती है.हाल ही में प्रदर्शित ‘गदर-2’ की कहानी भी एक ऐसे प्रेमीप्रेमिका की कहानी है जिस में प्रेमिका अपने प्यार के लिए पाकिस्तान से हिंदुस्तान आ जाती है और हिंदुस्तान में ही अपना परिवार बसाती है. इस से यही निष्कर्ष निकलता है कि आज के हालात के चलते प्यार करने का अंदाज भले ही बदल गया हो परंतु प्यार वही है जो आज से 100 साल पहले था. बस इस का स्वरूप बदल गया है.

 

बेटी दिवस’ (Daughter’s Day) पर क्या कहते है सितारे, आइये जानें

हर साल सितंबर का चौथा रविवार ‘बेटी दिवस’ (Daughter’s Day) के रूप में मनाया जाता है. इस साल 2023 में यह दिन 24 सितंबर को मनाया जा रहा है. इस दिन को आम लोगों के साथ – साथ सेलेब्स भी मनाते है और खुद को बेटी होने का गर्व महसूस करती है. इतना ही नहीं उन्होंने समय के साथ – साथ इसकी गहराई को महसूस किया है और वे अपने परिवार की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने में भी सक्षम हुई है, जबकि बचपन में वे घर की सबसे लाडली और प्रोटेक्टिव चाइल्ड रही. आज भी इसे हर बेटी एन्जॉय कर रही है. इस बार वे नेशनल डॉटर्स डे को कैसे मनाने वाली है और इस दिन का उनके जीवन में कितना महत्व है, आइये जानते है.

सेलेस्टी बैरागे

उडती का नाम रज्जो फेम अभिनेत्री सेलेस्टी बैरागे कहती है कि मैं परिवार की सबसे बड़ी बेटी हूँ मेरा एक छोटा भाई मृदुतपोल भी है. मैं असम की एक कॉलोनी में पली और बड़ी हुई हूँ और हमेशा कॉलोनी की दूसरे बच्चों के साथ खेलती थी, इससे मेरे अंदर सबसे मिलजुलकर रहने की आदत पनपी. मेरे पेरेंट्स ने मेरे किसी भी निर्णय का हमेशा साथ दिया और मैं बचपन से एक प्रिंसेस की तरह ही बड़ी हुई हूँ, लेकिन बड़ी होने पर मेरा रिश्ता पेरेंट्स के साथ काफी बदल चुका है. वे भी समय के साथ – साथ काफी बदले है, इससे मुझे उनके साथ किसी बात को शेयर करने में किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं होती. वे मेरे जीवन के सबसे बड़े चीयरलीडर्स है.

 

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फर्नाज़ शेट्टी

अभिनेत्री फर्नाज़ कहती है कि बेटी होना और बड़ी बेटी होने में बहुत अंतर होता है. मैं परिवार की बड़ी बेटी हूँ और मेरे दायित्व भी सबसे अलग है. देखा जाय तो पहला बच्चा किसी भी परिवार के लिए बहुत अधिक माइने रखता है, क्योंकि परिवार की आशाएं भी बड़ी बेटी से काफी होती है. मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ कि मैं एक बेटी, महिला और बहन हूँ और मुझे जिम्मेदारी निभाने का मौका मिल रहा है, नहीं तो लाइफ बड़ी बोरिंग हो जाती. मेरी माँ ने मुझे बेटी होने के गर्व को हमेशा महसूस करवाया है. उन्हें मेरे हर कामयाबी और काम से बहुत ख़ुशी मिलती है. यही मुझे आगे बढ़ने में भी प्रेरित करती है. मैने खुद को भाई से कभी कमतर नहीं समझी और न ही मेरी माँ ने मेरी तुलना कभी भाई से किया. मैं उनके लिए हमेशा स्पेशल हूँ और स्पेशल ही रहूंगी, ऐसा मैं सोचती हूँ.

 

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सुरभि दास

अभिनेत्री सुरभि दास का कहना है कि परिवार की इकलौती बेटी होने की वजह से मेरी जिम्मेदारियां बहुत अधिक है, लेकिन मैं उनके लिए स्पेशल भी हूँ. मैं कभी भी ‘पापा की परी गर्ल’ बनकर नहीं रही, जिसे सभी पैम्पर करें. मैंने बहुत कम उम्र में परिवार की किम्मेदारियां सम्हाली है, इससे मुझे किसी निर्णय को लेने, मैच्योर होने और एक मजबूत महिला होने में मदद मिली है. बेटी होने का मुझे गर्व है, क्योंकि मैं अपनी परिवार के किसी भी निर्णय को ले सकती हूँ. समय के साथ पेरेंट्स के साथ मेरा रिश्ता गहरा हुआ है, जिसमे खासकर मेरी माँ के साथ मेरा रिश्ता बहुत गहरा है.

 

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शीबा आकाशदीप

अभिनेत्री शीबा आकाशदीप कहती है कि बेटी होना मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है, क्योंकि बेटियों को सबसे अधिक प्यार मिलता है. मुझे कभी भी नहीं लगा कि मैं बेटी हूँ और मेरी बातें परिवार वाले कम सुनते है. मैं खुद को अपने परिवार का स्पेशल मानती हूँ. समय के साथ – साथ परिवार के साथ मेरी बोन्डिंग बढती गई है. शादी के बाद मैंने इसे और अधिक स्ट्रोंग और इंटेंस पाया है.

 

फैशन डिज़ाइनर कश्मीरा परदेशी कैसे बनीं अभिनेत्री, पढ़ें इंटरव्यू

मुंबई की 26 वर्षीय सुंदर कद – काठी, कश्मीरा परदेशी ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत वर्ष 2018 में तेलुगु फिल्म  ‘नर्तनासाला’ से की है. इसके बाद उन्होंने मराठी फिल्म ‘रामपत’ में ‘मुन्नी’ का अभिनय किया. वर्ष 2019 में उन्होंने हिंदी फिल्म ‘मिशन मंगल’ में ‘अन्या शिंदे’ की भूमिका निभाई है. स्वभाव से विनम्र, हंसमुख और मृदुभाषी कश्मीरा महाराष्ट्र के पुणे की है. उन्हें फैशन डिज़ाइनर बनने की इच्छा थी, उन्होंने मुंबई में एडमिशन लिया और साथ में मॉडलिंग भी करने लगी, इससे उन्हें अभिनय करने की इच्छा पैदा हुई, ऑडिशन दिया और साउथ में काम मिला. इस तरह से उन्होंने कई साउथ की फिल्मों में काम किया और अब उन्हें हिंदी वेब सीरीज में भी अभिनय करने का मौका मिला है. वह अपनी जर्नी से खुश है और आगे एक अच्छी मराठी फिल्म करने की इच्छा रखती है.

डिजनी + हॉटस्टार पर रिलीज हुई थ्रिलर वेब सीरीज ‘फ्रीलांसर’ में कश्मीरा ने आलिया खान की भूमिका निभाई है, जिसे सभी तारीफ कर रहे है. कश्मीरा ने खास गृहशोभा से ज़ूम पर बात की. पेश है कुछ खास अंश.

चुनौतीपूर्ण भूमिका

वेब सीरीज की सफलता पर कश्मीरा का कहना है कि मैं इस भूमिका को करने में बहुत उत्साहित थी. जब से मैंने ऑडिशन दिया, मुझे इस भूमिका को करने की इच्छा थी. शूटिंग के लिए सभी मोरक्को गए, अनुभव बहुत अच्छा था. निर्देशक नीरज पांडे के साथ काम करना अपने आप में एक बड़ी बात होती है. उन्हें पूरी फिल्म का विजन पता होता है इसमें मुझे केवल अपना सबसे अच्छा परफोर्मेंस देना पड़ा. रिलीज के बाद सबको मेरा काम पसंद आया है, ये मेरे लिए अच्छी बात है. इसमें आलिया एक सिंपल लड़की है, जिसे एक डार्क फेज से गुजरना पड़ता है.  शुरू में मैंने जब स्क्रिप्ट पढ़ी, तो अभिनय मुश्किल लगा, टीम से मैंने बात भी की, लेकिन निर्देशक ने मुझे चिंता न करने को कहा, इससे मेरे अंदर आत्मविश्वास आया और वाकई मैंने इस चुनौतीपूर्ण भूमिका को कर लिया. सेट पर मुझे खुद को टीम के अनुसार ढालना पड़ा, ऐसे में आलिया की भूमिका को करना कठिन नहीं था.  इसके अलावा इस भूमिका से मुझे बहुत कुछ सीखने को भी मिला. इसमें अलिया एक साहसी लड़की है, जो किसी भी हालत में पीछे नहीं हटती. साहसी होने की वजह से वह कठिन परिस्थिति में भी सब कर जाती है और मैं भी ऐसी ही सोच रखने लगी हूँ.

मिली प्रेरणा

कश्मीरा शुरू में फैशन डिज़ाइनर बनने की इच्छा रखती थी, लेकिन समय के साथ उन्हें अभिनय की इच्छा पैदा हुई. वह कहती है कि मैं मुंबई फैशन डिज़ाइनर बनने आई थी, तब मैंने पढ़ाई के साथ मॉडलिंग भी साउथ और मुंबई में करने लगी थी. जब मेरा कोर्स पूरा हुआ, तो मुझे ऑडिशन भी मिलने लगे. मुझे एक्टिंग तब आती नहीं थी. फिर मैंने नीरज कवी की थिएटर ज्वाइन किया फिर मुझे अभिनय की जानकारी मिली और एक साल में 4 अलग साउथ की भाषाओँ में फिल्में की. मुझे ये एक अच्छा मौका मिला, जिससे मेरी पहचान बनी और अब वेब सीरीज भी कर डाली.

किये संघर्ष   

संघर्ष के बारें में कश्मीरा कहती है कि पुणे से आने के बाद संघर्ष रहा. बाहर से आने पर हज़ार लोग हज़ार बातें करते है, उसमे सही क्या और गलत क्या है, उसे चुनने में समय लगता है.

परिवार का सहयोग

परिवार के सहयोग के बारें में कश्मीरा हंसती हुई कहती है कि मेरे पिता पुलिस में है, और वे हर बात में कुछ गलत को पहले से भांपते है. पहले तो उन्होंने ना कहा, पर बाद में वे मान गए, क्योंकि मैंने उनको मना लिया और एक साल का समय लिया. मेरे काम को देखने के बाद उन्होंने बहुत सहयोग दिया.

फैशन पसंद

कश्मीरा फैशन डिज़ाइनर है और उन्हें फैशन पसंद है वह कहती है कि फैशन डिज़ाइनर होने की वजह से कपड़ों को लेकर थोड़ी चूजी हूँ, लेकिन इंडस्ट्री डिज़ाइनर और स्टाइलिस्ट काफी टैलेंटेड है, इसलिए मुझे फिल्मों में कपड़ों के बारें में अधिक सोचना नहीं पड़ता. दैनिक जीवन में मुझे अरामदायक कपडे पहनना पसंद है. अवसर के अनुसार कपडे पहनती हूँ.

पसंदीदा व्यजंन  

कश्मीरा आगे कहती है कि मैं महाराष्ट्रियन हूँ और बहुत फूडी हूँ, लेकिन स्वास्थ्य का ध्यान रखना पड़ता है. महाराष्ट्रियन कोई भी व्यंजन मुझे बहुत पसंद है. माँ के हाथ का बना हुआ वरण भात मुझे बहुत पसंद है. अधिक नहीं खा पाती, क्योंकि इसे घी के साथ खाना पड़ता है. माँ के पास जाने पर अवश्य खा लेती हूँ.

कश्मीरा का यूथ से कहना है कि दुनिया में इम्पॉसिबल कुछ नहीं होता, केवल धीरज धरने की होती है और हिम्मती होना बहुत जरुरी है.

समीक्षा भटनागर के लिए मददगार साबित हुआ सस्पेंस थ्रिलर ‘मौका या धोखा’

फिल्म ‘पोस्टर बॉयस’  ‘कैलेंडर गर्ल’ और टीवी शो ‘बाल वीर’ ‘उतरन’ ‘कुमकुम भाग्य’ जैसे कई सारे टीवी शो में अपने अभिनय का जादू बिखेरने वाली गजब की खूबसूरत अभिनेत्री समीक्षा भटनागर अपने नए अवतार से  दर्शको का दिल जितने के लिए तैयार है. जी हाँ  ‘हंगामा’ पर 22 जून को रिलीज होने वाली सस्पेंस थ्रिलर वेब सीरीज  मौका या धोखा‘ में समीक्षा का एक अलग अवतार दिखाई देगा.
इस सीरीज में  समीक्षा भटनागरहिमांशु मल्होत्राऔर आभास मेहता की भूमिका सस्पेंस की हर हदों को पार कर जाएगा और अंत तक दर्शको को बांधे रखेगा. इन तीनों मल्टीटैलेंटेड सितारों ने “मौका या धोखा” के निर्माण के दौरान अनगिनत चुटकुलेशरारतें और प्रफुल्लित करने वाले क्षण साझा किए हैं. ऑनसेट सभी कलाकारों ने कई सारे ऐसे काम किये जिसे करके उनको अपने आप पर गर्व महसूस हुआ यहाँ तक की अपने अंदर के दर को भी ख़त्म किया. उनका तालमेल इतना प्रभावशाली है कि प्रशंसक उनकी ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री देखने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

 अपने इस सस्पेंस थ्रिलर पर समीक्षा भटनागर का कहना है कि “एक कलाकार के जीवन में बहुत कम ही ऐसा किरदार मिलता है जिससे आप डरे और उत्साहित होते हो. मुझे पानी से बहुत डर लगता हैजिसे अब मैंने दूर कर लिया है. यह डरावना था और मैं उस पल को नहीं भूल सकता जब मुझे पानी से भरे टब में गिरा दिया गया था. 

मेरे हाथ और पैर बंधे हुए थे. सही शॉट पाने के लिए शॉट को कई बार दोहराया जाना था और मुझे एक ब्रेकपॉइंट पर ले जाया गया. बाद में मुझे एहसास हुआ कि यह सबसे यथार्थवादी अभिव्यक्ति पाने की योजना थी. क्या यह इसके लायक था हाँ!  हिमांशुआभासऔर मैंने सेट पर और बाहर दोनों तरह से एक ऐसा बॉन्ड बनाया है जो वास्तव में कमाल का है. गोवा में शूटिंग करना सोने पर सुहागा था. मैं  उत्साहित हु यह जानने के लिए कि दर्शकों को हमारा शो बेहद पसंद आएगा.”

Video: सिगरेट का पैकेट छिपाते दिखे कपिल शर्मा, लोगों ने ऐसे किया रिएक्ट

कॉमेडी किंग कपिल शर्मा किसी न किसी वजह से लाइमलाइट का हिस्सा बने ही रहते हैं. कपिल ने अपनी मेहनत और टैलेंट के बदौलत लाखों लोगों के दिल में अपने लिए एक खास जगह बनाई है. वह अपने कॉमेडी के जरिए लोगों के चेहरे पर मुस्कान लेकर आते हैं. अब कपिल शर्मा एक बार फिर सुर्खियों में है. कॉमेडी किंग ने कुछ ऐसा किया है, जिसकी वजह से लोग उनकी जमकर तारीफें करते नजर आ रहे हैं.

दरअसल, सोशल मीडिया पर कपिल शर्मा की एक वीडियो जमकर वायरल हो रही हैं. इस वीडियो में वह सिगरेट का डिब्बा छिपाते हुए दिख रहे हैं. वायरल हो रहे वीडियो में देखा जा सकता है कि कपिल अपने दोस्तों के साथ किसी रेस्टोरेंट में दिखाई दे रहे हैं. वो इस दौरान काफी मस्ती के मूड में नजर आ रहे हैं. यहां वेटर उनका खाना लेकर आता है तो इस दौरान कपिल को सिगरेट के पैकेट को छिपाते हुए वीडियो में देखा जा रहा है. कपिल ये सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि सिगरेट का पैकेट वीडियो में दिखाई न दें.

Did you Guys see the way Kapil Sharma hid the packet of Cigarettes !
by u/The_Cruxz in BollyBlindsNGossip

कपिल का ये वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोग उनकी काफी तारीफें करते नजर आ रहे हैं. लोग कहते नजर आ रहे हैं कि क्योंकि कपिल एक पब्लिक फिगर हैं और उनको बड़ी संख्या में युवा फॉलो करते हैं और उनके कार्यों की युवाओं द्वारा नकल की जा सकती है, इसलिए वो सिगरेट के पैकेट्स को छिपा रहे हैं. तो वहीं कुछ लोग कपिल की तुलना उन बॉलीवुड सेलिब्रिटिज से भी करते नजर आ रहे हैं, जो कुछ पैसों के लिए ध्रूमपान के विज्ञापन करते हैं और ऐसी चीजों को बढ़ावा देते हैं.

जैसा कि आप जानते हैं कि कपिल शर्मा खुद शराब की लत और डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं, जिसके बाद उन्हें इससे छुटकारा पाने के लिए जंग लड़ने पड़ी थी. कपिल अक्सर ही अपने उस दौर के बारे में खुलकर बात करते नजर आ जाते हैं. कपिल जानते हैं कि किसी भी प्रकार का ध्रूमपान सेहत के लिए हानिकारक होता है, इसलिए वो ये सुनिश्चित करना चाहते है कि कोई और उनकी नकल न करें, इसलिए वो सिगरेट के पैकेट को छिपा रहे हैं. उनके इस कार्य की ही लोग सोशल मीडिया पर काफी तारीफें करते नजर आ रहे हैं.

इंडस्ट्री के किस सेफ गेम की बात कर रहे है अभिनेता पलाश दत्ता. पढ़े इंटरव्यू

मुंबई के पलाश दत्ता हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अभिनेता, मॉडल, निर्माता, थिएटर कलाकार और कास्टिंग डायरेक्टर हैं. अभिनेता पलाश दत्ता ने फिल्म मोहब्बतें में गुरुकुल बॉय के रूप में शुरुआत की, जो वर्ष 2000 में रिलीज़ हुई थी. इसके अलावा उन्होंने तेरे नाम, धूम, गुड बॉय बैड बॉय, एक आदत, गुड लक, ग्रांडमस्ती, और ग्रेट ग्रैंड मस्ती जैसी अन्य कई फिल्मों में अभिनय किया है.

पलाशदत्त का अंग्रेजी नाटक ‘ब्लेम इट ऑन यशराज’ कई शो पूरे कर चुका है और अब भी दमदार चल रहा है. पलाश ने कुमार भूटानी के पास अभिनय की ट्रेनिंग ली है. इसके अलावा वे लगातार वर्कशॉप करते रहते है, क्योंकि एक्टिंग में खुद को पॉलिश करना बहुत जरुरी होता है. पलाश को अतरंगी कपडे पहनना पसंद है, जिसकी डिजाईनिंग वे खुद करते है. फिल्मों के अलावा उन्होंने कई विज्ञापनों में भी काम किये है. 13 साल बाद उन्होंने टीवी पर शो ‘इश्कबाज’ से वपसी की. इसमें उन्होंने इंटरनेट सेंसेशन लड़के की भूमिका निभाई है. उन्होंने नेटफ्लिक्स वेब सीरीज ‘टाइपराइटर’ में श्री बनर्जी, एक कडक पिता की भूमिका निभाई है, जिसे आलोचकों ने काफी प्रसंशा की. उनकी प्रोडक्शन कंपनी पलाश दत्ता क्लासिक प्रोडक्शन कंपनी खोली है.

जिसमे पलाश ने पुरस्कार विजेता लघु फिल्म ‘साइलेंट टाईज’ का निर्माण किया, जो भाई-बहन के बंधन के बारे में एक संवेदनशील कहानी है. इस फिल्म को कई फेस्टिवल्स में दिखाया जा चुका है और इस फिल्म ने कई अवॉर्ड जीते हैं. उन्होंने खास गृहशोभा से अपनी जर्नी के बारें में बात की, जो रोचक रही. कुछ खास अंश इस प्रकार है. इन दिनों की व्यस्तता के बारें में पूछने पर पलाश कहते है कि अभी मैं दो वेब सीरीज कर रहा हूँ, एक वेब सीरीज ‘अविनाश’ में मैं किन्नर अंगूरी की केमियों भूमिका निभा रहा हूँ. ‘शोस्टॉपर’ शो में ब्रा फिटर की भूमिका निभा रहा हूँ. ये एक अलग और इंटरेस्टिंग कहानी है, जो 8 एपिसोड में चलती है, जिसमे कई लोग मिलकर एक फैशन हाउस चलाते है.

प्रेरणा कहाँ से मिली?

अभिनय में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली? मैं बचपन से ही डांस, सिंगिंग, इलोक्युशन में भाग लेता रहता था. स्कूल और कॉलेज से ही मेरा परफोर्मेंस जारी था. मेरे परिवार में कोई भी हिंदी फिल्मों में काम नहीं किया, लेकिन मेरे रिलेटिव का जुड़ाव क्रिएटिव वर्क से हमेशा रहा है. मेरे पेरेंट्स ने पहले पढ़ाई पूरी कर काम करने की सलाह दिया.

मैंने एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने एक एडवरटाइजिंग कंपनी में काम करना शुरू किया, काम करते-करते मुझे लगा कि मुझे इसमें ख़ुशी नहीं मिल रही है. फिर बिनाघर वालों से पूछे, मैंने मॉडलिंग में अप्लाई करना शुरू कर दिया. एक दिन एक अखबार में विज्ञापन देखकर अपना पोर्टफोलियों जमा कर दिया. मेरे पिता पृथ्वेश रंजन दत्ता बहुत स्ट्रिक्ट है, इसलिए मैंने उन्हें बताया नहीं.

इसलिए रोज पिता के ऑफिस जाने के साथ-साथ मैं भी टिफिन लेकर बाहर निकल जाता था, और पिता के ऑफिस जाने के बाद वापस घर आ जाता था, जबकि मैं जॉब छोड़ चुका था और ये बात सिर्फ माँ पापड़ी दत्ता को पता था, क्योंकि मैंने उन्हें अपनी इच्छा बता दिया था. घर आने के बाद मैं अपने सपनों को पूरा करने के लिए चेम्बूर से महालक्ष्मी स्टूडियों में ऑडिशन देने बस से चला जाता था. पहला विज्ञापन मिलने के बाद ही पिता को पता चल पाया था कि मैं मॉडलिंग कर रह हूँ.

इसे देख उन्होंने मुझ पर गुस्सा किया और डांटने लगे, पर मैंने नहीं माना और आगे बढ़ता गया. ये सही है कि मेरे परिवार में कोई इंडस्ट्री से नहीं है, इसलिए मेरे शुरूआती दिन काफी संघर्षपूर्ण रहे. पेरेंट्स को लगता था कि हिंदी सिनेमा में गन्दगी है, सुरक्षा नहीं है, अच्छे लोग यहाँ काम नहीं करते.

बना मॉडल कोर्डिनेटर

इसके आगे वे कहते है कि वर्ष 1995-96 में मैंने मॉडल कोर्डिनेटर का काम शुरू किया. मैंने विज्ञापनों के लिए बहुत अधिक मॉडल दिए है और ये अच्छा चल रहा था, लेकिन वर्ष 2000 में मैंने फिल्म ‘मोहब्बतें’ में एक होनहार छात्र की भूमिका के लिए ऑडिशन दिया और 3 राउंड की ऑडिशन के बाद मैं चुनलिया गया. इसमें बहुत सारे बड़े-बड़े चरित्र थे, जिससे मुझे उनसे मिलना और काम करने का सौभाग्य मिला. इसके अलावा मोहब्बतें के सेट पर करण जौहर से मुलाकात हुई और उन्होंने फिल्म ‘कभी ख़ुशी कभी गम’ में कास्टिंग का काम करने के लिए बुलाया.

तब कास्टिंग डायरेक्टर का जमाना नहीं था. कुछ आर्टिस्ट मसलन, रिमालागू, फरिदाजलाल, स्मिताजयकर आदि कुछ गिने चुने कलाकार ही माँ की भूमिका निभाते थे. मैंने उनका काम किया, जो उन्हें काफी पसंद आया, इसके बाद मैंने फिल्म ‘कल हो न हो’ के लिए भी कास्टिंग का काम किया.

इसके बाद कई फिल्मों में अभिनय भी किया. मैं 27-28 साल से कास्टिंग का काम करता हूँ. मैंने फिल्मों और वेब सीरीज के लिए हमेशा कास्टिंग डायरेक्टर का काम किया है. इसके साथ-साथ मैंने भरत दाभोलकर की नाट्य कम्पनी में अभिनय करना शुरू कर दिया. इस कंपनी की पहली अंग्रेजी शो ‘मंकी बिज़नेस’ थी और मैं दो महीने के लिए लंदन गया था. अभी दूसरी प्ले ‘ब्लेम इट ऑन यशराज’ में काम कर रहा हूँ. पिछले 4 से 5 साल से इस प्ले को पूरे विश्व में परफॉर्म किया जा रहा है. इसमें मैं वेडिंग प्लानर की भूमिका निभा रहा हूँ. ये मजेदार और कॉमेडी वाली शो है.

तीन साल पहले मैंने अपनी एक शोर्ट फिल्म ‘आई एम् फाइन’ प्रोड्यूस किया है, जो मेंटल हेल्थ कंडीशन को लेकर है. अभी मैंने शोर्ट फिल्म ‘साइलेंटाइज’ जो LGBT पर आधारित भाई-बहन की कहानी है. इसे कई अवार्ड भी मिले है. इसके लिए मुझे बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड भी मिला है.

किये संघर्ष

पलाश संघर्ष के बारें में कहते है कि मैंने हर काम में सफलता के लिए बहुत संघर्ष किये है, फिर चाहे वह अभिनेता हो या कास्टिंग का काम. उस समय कास्टिंग का काम करने वाले को कोई दूसरा काम करने नहीं दिया जाता था. मुझे काफी लोगों ने ओपोज भी किया, पर मैंने रिबेल होकर अपना काम जारी रखा. मैंने कई बड़े- बड़े कलाकारों को कास्ट किया है. दिन में मैं 300 से 400 फ़ोन कॉल करता था, कलाकारों को ऑडिशन पर भेजने के लिए और मेरा गला तक सूख जाता था. कई बार स्क्रिप्ट भी उन्हें देना पड़ता था. आज काफी बदलाव हो चुका है, जो अच्छी बात है. असल में कास्टिंग के काम में बड़े-बड़े निर्देशकों के साथ उठना-बैठना होता है, इससे कई बार उन्हें एक्टिंग का मौका भी मिल जाता है.

परिवार का सहयोग

परिवार के सहयोग के बारें में पूछने पर पलाश हँसते हुए कहते है कि पिता की स्वीकृति मिलना आज भी कठिन है, क्योंकि आज भी वे मेरे काम को पसंद नहीं करते. मैंने जो भी फिल्में की है, उन्होंने देखा है और प्राउड भी फील करते है, क्योंकि मैंने बिना किसी गोड्फादर के इंडस्ट्री में अपनी साख जमाई. ये सही है कि मेरे समय में पेरेंट्स या बच्चे अधिक एक्सप्रेसिव नहीं होते थे. तब शोअप और सोशल मीडिया नहीं थी. कुछ भी हम सामने बोलकर या गिफ्ट देकर जताते थे, लेकिन मेरे काम को वे पसंद करते है, क्योंकि मुझे कई अवार्ड मिले, आलोचकों ने मेरे काम की तारीफे की.

ईमानदारी से किये काम

पलाश कहते है कि मैं बांग्ला कल्चर में पला-बड़ा हुआ हूँ और मेरे पिता के बहुत स्ट्रिक्ट होने की वजह से मैंने कभी कास्टिंग डायरेक्टर के रूप में कुछ गलत काम नहीं किया और न ही कोई महिला कलाकार मेरे पास आने से कतराई, क्योंकि मैंने अपने काम की ईमानदारी और सम्मान को बनाए रखा.

कास्टिंग काउच की घटनाएं पहले थी और आज भी है और ये बड़े लेवल पर है, ये एक प्रकार का दलदल है. मैं भी इन परिस्थितियों से गुजरा और इसमें फंस भी सकता था, लेकिन मैं इसमें से निकल गया, क्योंकि मुझे किसी प्रकार का नशा या ड्रग लेने की आदत नहीं है, पार्टी में मैं जाता नहीं.

मुझे लोग इंडस्ट्री का कलंक कहते है. मैं एक परफोर्म करने वाला आर्टिस्ट हूँ, मैंने 45 साल की उम्र में कथक सीखना शुरू किया है. इसके अलावा सुरेश वाडेकर के यहाँ क्लासिकल हिन्दुस्तानी सोंग भी सीख रहा हूँ. बचपन में मैं रविन्द्र संगीत सीख चुका हूँ.

सोच के विपरीत किये अभिनय

अभिनेता पलाश का कहना है कि ये सब सीखते हुए मैं खुद को सम्पूर्ण फील करता हूँ. मुझे शुरू से कॉमिक एड्स जैसे चम्पू, नोर्डी, पढ़ाकू आदि चरित्र मिलते थे. तब स्लैपस्टिक कॉमेडी ही चलती थी और मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे इससे निकलना है, थिएटर में सिर्फ अलग भूमिका करने को मिलता था. मैंने अधिकतर कॉमेडी शो ही किये है, लेकिन एक वेब शो मिस्टर बनर्जी में मैंने एक बहुत स्ट्रिक्ट बंगाली पिता की भूमिका की है.

उस भूमिका के बाद मेरा शिफ्ट कॉमेडी से सीरियस भूमिका की तरफ हुआ है, मेरा इंडस्ट्री से कहना है कि अगर किसी को मौका कुछ अलग करने को नहीं मिलेगा, तो वह खुद को कैसे प्रूव करेगा. कास्टिंग डायरेक्टर रौशनी बैनर्जी ने मेरे अंदर से 9 साल के पिता की स्ट्रिक्ट पिता की भूमिका निकलवाई. डायरेक्टर सुजोय घोष खुद भी विश्वास नहीं कर पा रहे थे, कि मैं एक 9 साल के बच्चे का पिता बन सकता हूँ, लेकिन सही लुक के लिए कॉस्टयूम डायरेक्टर ने केवल एक मूंछ के प्रयोग किया, जिससे डायरेक्टर को भी मैं परफेक्ट लगा.

सेफ गेम खेलती है इंडस्ट्री मेरा एटरटेनमेंट इंडस्ट्री से कहना है कि व्यक्ति कैसा भी हो उसे हर तरह की भूमिका मिलनी चाहिए. इमेज के आधार पर नहीं. कॉमेडियन जोनी लीवर भी निगेटिव या सीरियस रोल कर सकते है, पर उन्हें वह मौका नहीं मिला. इंडस्ट्री में लोग केवल बड़ी बाते करते है. नयापन के नाम पर कुछ नहीं होता. ऐसे कई एक्टर भरे पड़े है, जो दीखते कुछ है, पर वे कुछ और एक्टिंग कर सकते है. मैंने अधिकतर कॉमेडी फिल्में की है. फिल्म आई एम् फाइन में मैंने जो भूमिका निभाई है, वैसा मैंने कभी नहीं किया है. ओटीटी की वजह से थोड़े बदलाव इंडस्ट्री में आई है, पर अभी बहुत बदलाव होना बाकी है. यहाँ वर्क कल्चर बहुत ख़राब है, आर्टिस्ट की वैल्यू नहीं है.

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