मदर्स डे पर खाने में बनाए कुछ स्पेशल, ट्राई करें ये रेसिपी

मदर्स डे आने वाला है और इस दिन आप अपनी मां को स्पेशल फील कराने के लिए उनके लिए कुछ खास बना सकती हैं. मां के इस दिन को और स्पेशल बनाने के लिए आपके साथ हम शेयर कर रहे हैं कुछ स्पेशल रेसिपी.

दाल के कबाब


सामग्री
काली मसूर की दाल- ½ किलो
देसी घी- 2 बड़े चम्मच
नमक- स्वादानुसार
हरी मिर्च- 2से4 बारीक कटी हुई
प्याज सादा गोल कटा हुआ

बनाने की विधि

सबसे पहले एक बर्तन में काली मसूर की दाल ले लीजिए. इसके बाद गैस पर कुकर गर्म होने के लिए रख दें. अब इसमें देसी घी डाले और उसमें ज़रा से जीरे के साथ भीगी हुई दाल में पानी और नमक मिलाकर उसमें 2-4 सीटी आने दें और फिर कुकर बंद कर दें.

थोड़ी देर के बाद कुकर खोले और मिश्रण को अच्छे से मैश कर लें. मैश करने के बाद इसकी छोटी-छोटी टिकिया बना लें फिर तवे पर या नॉन स्टिक पैन में इन टिक्कियों को हल्की आंच पर चपटा करके सेक लें. जब टिक्कियां तैयार हो जाएं तो उसे कटे प्याज के साथ नींबू डालकर परोसे. गार्निश के लिए आप उस पर धनिया रख भी रख सकते हैं.

चीज बौल्स

ग्रेटिड चीज 1/2 किलो
आलू-10 से 12
प्याज- 2 से 3 कटे हुए
हरी मिर्च – 2 से 3 बारीक कटी हुईं
लाल मिर्च- 2 छोटे चम्मच
ब्रेड का चूरा – 250 ग्राम
खट्टाई- 250 ग्राम
नमक- स्वादानुसार

बनाने की विधि

सबसे पहले आलू को उबाल लें. फिर इसके छिलके निकाल दें और इसे मैश कर लें फिर इसमें कटी हुई प्याज, हरी मिर्च, लाल मिर्च, खट्टाई और नमक मिला लें. अब आलू के बॉल्स बनाना शुरू करें. बॉल्स के बीच में थोड़ा सा चीज भरें और इसके बाद ब्रेड के चूरे में रोल करें डीप फ्राई कर लें। अब इन गरम गरम बॉल्स को टमैटो केचअप या फिर धनिये की चटनी के साथ परोसें.

चावल के लड्डू

सामग्री
चावल का पिसा हुआ आटा 1 किलो

पिसी हुई चीनी- 1 किलो

देसी घी-1/2 किलो

बनाने की विधि 
सबसे पहले एक साफ बर्तन ले लें. उसके बाद फिर उसमें पिसी हुई चीनी मिलाएं और लडडू बनाना शुरू कर दें. यह सबसे आसान रेसिपी है क्योंकि इसमें हमें सिर्फ तीन चीजों को अच्छे से मिलाकर लड्डू बनाने हैं.

Mothers’s Day 2024: गुरू घंटाल- मां अनीता के अंधविश्वास ने बदल दी बेटी नीति की जिंदगी

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. आज मुझे आश्रम जाना है. नाश्ता बना दिया है. दिन का खाना औफिस की कैंटीन में कर लेना या फिर गुरुजी के आश्रम में लंगर करने आ जाना,’’ अनीता ड्रैसिंगटेबल के सामने तैयार होते हुए बोली.

‘‘आज मेरी मीटिंग है. इतना समय नहीं होगा कि मैं लंच के लिए कहीं जा सकूं. मीटिंग कितनी देर चलेगी, कुछ पता नहीं,’’ विनय परेशान होते हुए बोला.

45 वर्षीय अनीता कर्कश स्वभाव की महिला है. हर वक्त लड़ने के मूड में रहती है. फिर चाहे घर हो या बाहर. लड़ने का कोई मौका नहीं चूकती. पति विनय और बेटी नीति उस के सामने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं. पड़ोसी भी उसे ज्यादा मुंह नहीं लगाते हैं. पूरी कालोनी में लड़ाकिन के नाम से बदनाम है. घर में कोई महरी नहीं टिक पाती. कोई न कोई इलजाम लगा कर महीने 2 महीने में भगा देगी. साल भर बाद फिर कोई नई मिली तो बहलाफुसला कर काम पर रख लेगी और फिर 2-4 महीनों में शक की बिना पर उसे बाहर का रास्ता दिखा देगी. ऐसे एक से बढ़ कर एक विभेष गुण भरे हैं उस में. पैसों को दांत से पकड़े रहती है. क्या मजाल पति की जो उस से पूछे बिना 1 रुपया भी खर्च ले. सुबह औफिस जाते समय गिन कर रुपए देगी और फिर शाम को उन का पूरा हिसाब लेगी. पति सरकारी अफसर है. मगर घर में उस की चपरासी की भी हैसियत नहीं है. पता नहीं अपने शौक कैसे पूरे करता है. शायद कुछ ऊपर की कमाई हो जाती होगी या फिर जिन का औफिस में उस से काम पड़ता होगा वही उस के शौक पूरे कर देते होंगे, क्योंकि जब विनय देर रात फाइवस्टार होटल में डिनर कर घर लौटता है तो अनीता अगली सुबह ही मेरे फ्लैट पर आ जाएगी अपना रोना रोने. बगल के फ्लैट में ही तो रहती है. देर रात की उठापटक से आधी कहानी तो मुझे वैसे ही पता चल जाती है और आधी का रोना वह मुझे सुबहसुबह खुद सुना जाती.

उस के पति से मैं इसलिए ज्यादा बात नहीं करती चूंकि मुझे पता है मेरे चरित्र पर भी कीचड़ उछालते उसे देर नहीं लगेगी. जो अपने पति पर विश्वास नहीं करती है वह भला मुझ पर क्या करेगी? अकसर मेरे से आ कर यही कहती है कि लगता है मेरे आदमी का अपनी सैक्रेटरी से चक्कर है. किसी दिन अचानक औफिस पहुंच कर रंगे हाथों पकड़ूंगी.

‘‘पर औफिस में वे 2 ही तो केवल काम नहीं करते, जो रंगरलियां मनाएंगे अनीता? वहां पूरा स्टाफ रहता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘वह तो मुझे पता है, लेकिन उस का कैबिन अलग है. वहां सोफा भी रखा है,’’ अनीता आंखें नचाते हुए बोली.

‘‘तो क्या सोफा इसीलिए रखवाया है?’’ मैं अपनी हंसी नहीं रोक पाई.

‘‘हंस ले खूब हंस ले, क्योंकि तेरा मियां, तो नाक की सीध में चलता है न… अगर मेरे आदमी की तरह टेढ़े दिमाग का मिला होता तो मैं भी देखती कि तू कितना हंस पाती,’’ अनीता बिफर पड़ी.

मैं तो अपने पति से यह कभी नहीं पूछती हूं कि उन्होंने दिन भर में किसकिस से मुलाकातें कीं? मुझे विश्वास है कि दिन भर के काम के तनाव के बीच रोमांस का समय कहां है उन के पास और फिर मुझ से ही पीछा नहीं छूटता है तो दूसरों के पास कैसे जा पाएंगे… मैं तो उलटे उन के तनाव को कम करने की कोशिश करती हूं.’’

‘‘मेरा आदमी तो हमेशा दूसरी औरतों की ही तारीफ करता रहता है. कहता है 102 वाली की ड्रैस सैंस कितनी अच्छी है, 108 वाली के बाल कितने सुंदर हैं, 105 वाली की फिगर कितनी सैक्सी है. अगर उन सब को अपने आदमी की बातें बता दूं तो इतने जूते पड़ेंगे कि सारे फ्लैट्स नंबर भूल जाएगा.’’

‘‘अनीता वे चाहते होंगे कि जब वे औफिस से लौटें तो सजीधजी बीवी घर का दरवाजा मुसकराते हुए खोले,’’ मैं ने समझाने की कोशिश की.

‘‘घर के काम क्या उस के रिश्तेदार करेंगे? पूरे घर की सफाई, खाना, बरतन करूं या फिर सजधज कर बैठक में टंग जाऊं?’’ अनीता हर बात को उलटा ही लेती.

‘‘तो महरी रख लो. क्यों सारा दिन खटती रहती हो… कुछ अपना भी खयाल कर लिया करो.’’

‘‘इस का तो महरी से भी चक्कर चल जाता है. उस से भी न जाने क्याक्या बातें करता रहता है. क्या पता चोरीछिपे पैसे भी पकड़ा देता हो. मैं तो तब तक स्नान भी नहीं कर पाती हूं, जब तक वह औफिस नहीं चला जाता,’’ अनीता ने बताया.

सुन कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. पूछा, ‘‘क्यों स्नान नहीं कर पाती?’’

‘‘अरे, तुम्हें पता तो है कि बेटी तो सुबह ही कालेज चली जाती है, फिर घर में हम दोनों ही रहते हैं. अगर मैं भी स्नानघर में चली गई तो इसे खुली छूट मिल जाएगी उस के साथ…’’ अनीता ने अपने शक का बखान किया.

अपने शक के चलते अनीता घर को नर्क बनाए रहती. इधर 5-6 सालों से गुरुजी की तरफ झुकाव तेजी से बढ़ गया था उस का. कभी अभिमंत्रित जल ला कर पति को पिलाती, तो कभी प्रसाद ला कर देती. बेटी भी मां के नक्शेकदम पर चलने लगी थी. वह भी पापा से कटने लगी थी और हर बृहस्पतिवार और रविवार को आश्रम चल देती. बेटी गाड़ी ड्राइव कर लेती तो अब आनेजाने में आसानी हो गई थी उन्हें. बेटी का एमबीए कंप्लीट हो गया था. गुरुजी की कृपा से उन के एक चेले ने अपने कालेज में नीति को नौकरी दिला दी. तब से मांबेटी तो गुरुजी की चरणरज पीने को तैयार रहने लगीं. पति को भी जबतब भोज, महाभोज के नाम पर आश्रम घसीट ही ले जातीं. अपनी मां को विनय गांव छोड़ आया था. 3-4 साल में 1-2 महीने उन के पास रहतीं तो घर में महाभारत चरम पर होता. इन सब से ऊब कर विनय मां को वापस गांव छोड़ आता. विनय के अन्य किसी घर वाले की हिम्मत ही न होती उस के घर आने की. अत: सब से कट कर रह गया था विनय.

एक दिन मुझे भी अपने संग आश्रम घसीट ले गई, ‘‘चल, तुझे आज नीति के होने वाले पति से मिलवाने ले चलती हूं. गुरुजी की बड़ी कृपा है. बड़े होनहार युवक से हमारी बेटी का रिश्ता तय करवा दिया है. तू तो जानती है इस कालोनी में सब मुझ से कितने जलते हैं. तू शादी होने तक किसी को रिश्ते की बात मत बताना,’’ अनीता मानो मुझे बता कर कोई एहसान कर रही हो.

‘‘चलो, चलते हैं,’’ मैं ने मन की मन सोचा कि अगर अब जाने से मना किया तो मेरे लिए भी यही कहेगी कि जलन के मारे नहीं गई.

हम गाड़ी से आश्रम पहुंच गए. आश्रम 8-10 एकड़ में फैला था. चारों तरफ फैली हरियाली आंखों को सुकून देने वाली थी. गुरुजी का मुख्य भवन थोड़ा अलग हट कर बना था. वहां जाने की अनुमति गिनेचुने लोगों को ही थी.

मैं ने अनीता से कहा, ‘‘तुम भीतर जा कर दर्शन करो. मैं ताजा हवा का आनंद ले रही हूं.’’

मगर वह न मानी. अपने साथ मुझे भी भीतर घसीट ले गई. अंदर 2-3 जगह तो हमारी ऐसी तलाशी ली गई मानो हम देश के किसी गोपनीय विभाग में प्रवेश कर रहे हों. बाद में एक बड़े हौल में पहुंचे जहां करीने से कुरसियां लगी थीं. अनीता झट आगे बढ़ पहली पंक्ति में बैठ गई और अपनी बगल के छोटे बच्चे को उठा कर मुझे बैठने का इशारा किया. बच्चा अपनी मां की गोद में बैठ गया. मैं चुपचाप अनीता की बगल में बैठ गई.

थोड़ी देर बाद सामने बने ऊंचे चबूतरे में लगे आसन पर गुरु का आगमन हुआ. जयजयकार और पुष्पवर्षा होने लगी. गुरु 50-55 वर्ष की उम्र के लग रहे थे. गेरुआ रंग का कुरता और उसी रंग की लुंगी, गले और हाथों में रुद्राक्ष की मालाएं, आधे से ज्यादा माथे पर पीला चंदन का टीका और उस के ऊपर लाल टीका, दाड़ीमूंछ और सिर के बाल सभी सफाचट. मैं ने मन ही मन सोचा सफेद हो गए होंगे तो सब साफ कर दिए. गोरे गोल मुंह पर छोटीछोटी मिचमिचाती आंखें और मोटेमोटे होंठों की जुगलबंदी देखने लायक थी. वे क्या बोल रहे थे और क्या नहीं, मैं ने ध्यान नहीं दिया. मेरा ध्यान तो उन की मुखमुद्रा के बनतेबिगड़ते रूप पर था.

अचानक अनीता ने मेरा हाथ दबाया तो मैं वर्तमान में लौटी. पूरा हौल खाली हो चुका था. लोग 1-1 कर गुरुजी के आसन के पास जा कर अपना दुखड़ा रोते. कुछ सलाहमशवरा होता और गुरुजी किसी का माथा चूम कर तो किसी के हाथ चूम कर आश्वस्त कर रहे थे. वह कृतज्ञ हो बाहर चला जाता. अनीता सब के जाने के इंतजार में थी. आखिर में उठी, मुझे भी खींचा, पर मैं जड़वत हो गई कि कोई पराया पुरुष मेरा स्पर्श करे और वह भी मेरी मरजी के बिना, मुझे गवारा न था. गुस्से से मेरा हाथ झटक गुरुजी के आसन के नीचे बैठ गई. गुरुजी के इशारे पर पीछे पंक्ति में बैठा नवयुवक भी आ कर गुरुजी के चरणों में बैठ गया. मैं समझ गई कि यही है अनीता का होने वाला दामाद. देखने में युवक लंबा, गोराचिट्टा और अच्छे स्वास्थ्य का मालिक लग रहा था. थोड़ी देर की खुसुरफुसुर के बाद गुरुजी ने उन दोनों को अपना चुंबनरूपी आशीर्वाद दिया और उठ कर चले गए. अब हौल में हम 3 ही थे. युवक का नाम अभिषेक था. वह काफी हंसमुख व मिलनसार लग रहा था. अनीता तो उसे ऐसे गले लगा रही थी मानो कोई खजाना हाथ लग गया हो. लौटते समय भी गाड़ी में अभिषेक का गुणगान करती रही. बोली, ‘‘देखा कितना सुदर्शन है मेरा दामाद. मेरी ससुराल वालों के कलेजे में तो इसे देख कर सांप लोटने लगेंगे. आज तक परिवार में इतना सुंदर दामाद किसी का भी नहीं आया है. मेरे गुरुजी का मजाक उड़ाते थे. अब जब शादी में आएंगे तो मुझ से गुरुजी का पता पूछते फिरेंगे. मैं क्यों मिलवाऊं सब को गुरुजी से… इतने सालों से आश्रम में सेवा कर रही हूं. उसी का फल मिला है मुझे. तुझे तो मिलवा दिया, क्योंकि एक तू ही तो मेरे काम आती है. अब शादी में भी तुझे ही सारी जिम्मेदारी निभानी होगी. मुझे किसी पर विश्वास नहीं है,’’ और भी न जाने क्याक्या बड़बड़ करती रही.

‘‘तुम लोग तो कुलीन ब्राह्मण हो, क्या ये भी ब्राह्मण हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे देखा नहीं, कितना सुदर्शन है. हां, हमारी जातिबिरादरी का नहीं है… मगर हिमाचल प्रदेश के कुलीन घराने का है. गुरुजी के तो पूरे देश में आश्रम हैं और शिष्य भी.’’

‘‘तुम कब मिली उस के घर वालों से?’’ मैं ने जिज्ञासा प्रकट की.

‘‘इतनी जल्दी क्या है… अभी से मिलूंगी, तो वही लेनदेन शुरू करना पड़ेगा तीजत्योहार का… लड़कालड़की राजी हैं… वह अब घर भी आया करेगा. गुरुजी का कहना है कि घर आनेजाने से उसे भी हमें समझने का मौका मिलेगा और हमें उसे,’’ अनीता ने कहा.

मैं ने कुछ बोलना उचित न समझा, क्योंकि वह कौन सा मेरे कहे अनुसार कुछ करने वाली थी.

कुछ महीनों से मैं ने नीति और अभिषेक को कई बार साथ आतेजाते देखा. अनीता ने बताया था कि वह नियमित आश्रम जाता है तो नीति को भी अपने साथ ले जाता है. गुरुजी दोनों से बड़े खुश हैं. फिर अचानक मांबेटी लापता हो गईं. जब लौटीं तो अनीता की बेटी की गोद में बच्चा था. पूरी कालोनी में खबर फैला दी कि दामाद विदेश चला गया है. हम बेटी की शादी हिमाचल जा कर कर के आए हैं. किसी को यह बात हजम नहीं हो रही थी. मगर अनीता के मुंह लगने की किसी की हिम्मत नहीं थी. बेटी घर से कम ही निकलती.

मैं ने उस के बच्चे के लिए कपड़े, खिलौने लिए और मिलने चल दी. मुझे देख कर अनीता शांत बैठी रही. फिर मैं ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘कोई बात नहीं अनीता, बच्चों से गलती हो ही जाती है… तू ने दोनों की झटपट शादी करा कर ठीक ही किया… जरूरी थोड़े है कि सारे रिश्तेदारों को बुलाओ.’’

‘‘हां, नजर लगा दी लोगों ने… मेरा बड़ा अरमान था कि इस की शादी धूमधाम से करूंगी, मगर सारे अरमान दिल में ही रह गए,’’ अनीता मायूसी से बोली.

‘‘कोई बात नहीं, अभिषेक जब वापस आएगा तो धूमधाम से बच्चे का जन्मोत्सव मना लेना… सब के मुंह भी बंद हो जाएंगे और तुम्हारे अरमान भी पूरे हो जाएंगे,’’ मैं ने सांत्वना दी.

‘‘तुझे तो पता है कि वह 2 साल के लिए विदेश जाने वाला था. मैं ने सोचा था कि शादी 2 साल बाद ही करूंगी. मगर जल्दबाजी में करनी पड़ी. विनय भी तो केवल हफ्ते भर के लिए वहां आ पाया. सब कुछ मुझे ही देखना पड़ा. अभी बच्चा छोटा है तो विदेश में कैसे पाल पाएगी. इस की ससुराल वाले तो भेज ही नहीं रहे थे मगर मैं ने वहां भी अपने साथ ही रखा और फिर यहां ले आई. कौन इन ससुराल वालों का विश्वास करे. खानेपहनने को दें न दें. पति जो साथ में नहीं है,’’ मैं अनीता के स्वभाव से भलीभांति परिचित थी, विश्वास तो उसे अपनी सालों पुरानी ससुराल पर भी नहीं था तो बेटी की नईनवेली ससुराल की तो बात ही दूर थी.

मैं ने माहौल हलकाफुलका करने के उद्देश्य से कहा, ‘‘अरे भई, नन्हेमुन्ने का मुंह तो दिखाओ… मैं आज तुम से नहीं, उस से मिलने आई हूं.’’

‘‘बेटी की तबीयत ठीक नहीं है. वह अभी दवा खा कर लेटी है. मैं मुन्ने को यहीं बैठक में उठा लाती हूं,’’ और मेरे जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर तेजी से उठ कर चल दी.

गोराचिट्टा, गोलमटोल, शिशु को उस ने मेरी गोद में डाल दिया. उसे देखते ही मेरे मुख से निकल गया, ‘‘बिलकुल अपने बाप पर गया है. नीति का रंग तो थोड़ा दबा है. इसे देखो कैसा उजलाउजला है. बाप की तरह ही लंबाचौड़ा निकलेगा,’’ मैं ने बच्चे को प्यार करते हुए कहा.

मेरी बातों से अनीता खुश हो कर बोली, ‘‘तू इसे संभाल मैं तेरे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘सुन, चाय की जरूरत नहीं है. तू बैठ न थोड़ी देर,’’ मैं ने कहा.

मगर अनीता नहीं मानी. बोली, ‘‘अरे नाती की मिठाई खिलाए बगैर थोड़े न जाने दूंगी.’’

फिर थोड़ी ही देर में चाय, मिठाई की ट्रे सजाए अनीता आते ही बोली, ‘‘इन कालोनी वालों के मुंह कैसे बंद करूं? अभिषेक सालछह महीने से पहले नहीं आने वाला.’’

‘‘तू एक छोटा सा गैटटूगैदर कर सभी को चायनाश्ता करा कर मुंह बंद कर दे. इस महीने का दूसरा शनिवार कैसा रहेगा?’’ मैं ने सुझाव दिया.

अपने स्वभाव के विपरीत जा कर उस ने उसे मान लिया, पर फिर अचानक बोली, ‘‘वैसे इन का ट्रांसफर दिल्ली होने वाला है… बिना बात इन लोगों पर क्यों खर्च करूं?’’

‘‘जैसा तुम्हें उचित लगे वैसा ही करो,’’ मैं ने कहा.

तभी अचानक बच्चा कुनमुनाया, ‘‘लगता है कुछ गड़बड़ की है इस ने… इस का डायपर बदलना पड़ेगा,’’ मैं ने अपनी बगल में सोए शिशु पर एक नजर डाल कर कहा.

अनीता डायपर लेने गई, तो मैं शिशु को निहारने लगी. अचानक एक झटका लगा मुझे. शिशु अपनी आंखें और होंठ एकसाथ चलाने लगा तो मेरी आंखों के सामने अचानक उस तथाकथित गुरुजी का चेहरा नाचने लगा. मेरा सिर घूमने लगा. वहां एक क्षण भी टिकना कठिन लगने लगा. फिर जैसे ही अनीता आई मैं बोल पड़ी, ‘‘अब मैं चलती हूं… लगता है बीपी लो हो रहा है मेरा.’’

‘‘फिर आना… थोड़े दिन ही हैं अब यहां,’’ अनीता ने कहा तो मैं ने सहमति में सिर हिला दिया और फिर कुछ अनुत्तरित सवालों के साथ अपने घर आ गई. अभिषेक से शादी हुई भी कि नहीं? शिशु का बाप कौन है? अगर आननफानन में भी शादी की तो उस के फोटोग्राफ्स कहां हैं? फिर अचानक तबादला क्यों ले कर जा रहे हैं? नीति क्यों नहीं लोगों का सामना करना चाहती?

कुछ भी हो इन सब की जड़ गुरु ही है यानी वही गुरू घंटाल. एक सुशिक्षित कन्या का जीवन बरबाद हो गया है. अब यहां से चले भी जाएंगे, तो भी क्या? नीति की जिंदगी में तो पतझड़ का मौसम पसर गया न.

 

Mother’s Day 2024: घर पर ही आटे और सूजी से बनाए रिबन पास्ता

पास्ता इटैलियन व्यंजन है जो आजकल भारत में भी काफी लोकप्रिय है. खासकर बच्चे और युवाओं को यह बहुत पसंद आता है. स्पेगेटी, मेकरोनी, लजानिया, रेवयोली, रिबन और वेरमिसेली आदि पास्ता के भारत में लोकप्रिय वेराइटीज हैं. आज हम आपको घर पर ही आटे और सूजी से रिबन पास्ता बना रहे हैं जो बाजार की अपेक्षा बहुत हैल्दी और हाइजीनिक है. आकार में रिबन जैसे लंबे होने के कारण इन्हें रिबन पास्ता कहा जाता है, तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं.

कितने लोंगों के लिए            4

बनने में लगने वाला समय     30 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री(बेसिक पास्ता के लिए)

गेहूं का आटा                     1 कप

सूजी                                1 कप

पिघला मक्खन                 2 टीस्पून

नमक                              1/2 टीस्पून

गुनगुना पानी                     1/2 कप

सामग्री (व्हाइट सॉस पास्ता के लिए)

मक्खन                             1 टेबलस्पून

कुटा लहसुन                       1 टीस्पून

मैदा                                   2 टीस्पून

दूध                                     2 कप

नमक                               स्वादानुसार

काली मिर्च पाउडर              1/4 टीस्पून

ग्रेटेड चीज                          1 कप

तेल                                    1 टीस्पून

मिक्स हर्ब्स                          1/2 टीस्पून

विधि

मैदा और सूजी को एक बाउल में डालकर पिघला मक्खन और नमक मिलाएं, अब गुनगुने पानी की सहायता से इसे कड़ा गूंथ लें. 5 मिनट तक चॉपिंग बोर्ड पर मसलकर सिल्वर फॉयल में लपेटकर आधे घण्टे के लिए रख दें. आधे घण्टे बाद पुनः अच्छी तरह मसलकर दो भागों में बांट लें और चकले पर लम्बाई में पतला रोटी जैसा बेल लें. अब इससे तेज धार वाले चाकू से पतली पतली लम्बी स्ट्रिप जैसी काट लें.

अब एक पैन में डेढ़ लीटर पानी गर्म करें, इसमें 1 टीस्पून तेल डाल दें. जब पानी उबलने लगे तो तैयार कटे पास्ता डाल दें. जब पास्ता थोड़े नरम हो जाएं तो छलनी में छान लें. अब एक पैन में मक्खन पिघलाकर लहसुन को भूरा होने तक भूनें. मैदा को भी हल्का सा भूनें ताकि रंग न बदले. दूध,नमक और काली मिर्च  डालकर अच्छी तरह मिलाएं. किसा चीज डालकर पास्ता अच्छी तरह मिलाएं. धीमी आंच पर गाढ़ा होने तक पकाएं. ऊपर से मिक्स हर्ब या चिली फ्लैक्स डालकर सर्व करें.

Mother’s Day 2024: जमाना है सुपर मौम्स का

महिरमा एक ऐसी वर्किंग वूमन है जो हमेशा औनटाइम रहती है. अपने काम के अलावा वह न सिर्फ परिवार का बेहद संतुलित ढंग से खयाल रखती है, बल्कि बच्चों की बहुत अच्छे ढंग से परवरिश भी करती है. यह बात अब हैरानी पैदा नहीं करती. दरअसल, आज की सुपरफास्ट, मल्टी टैलेंटेड, सुपर ऐक्टिव मम्मियां ऐसी ही हैं. घर और औफिस दोनों ही मोरचों पर मुस्तैदी से जुटी ये महिलाएं अपने अच्छे परफौर्मैंस, परफैक्ट टाइम मैनेजमैंट और मल्टीटैलेंटेड कौशल से न केवल औफिस के मोरचे पर बल्कि घरपरिवार के अच्छे प्रबंधन से भी पीढि़यों पुरानी एक घरेलू और आम मां की छवि को तोड़ रही हैं.

काम में हिट और सेहत में फिट इन मम्मियों के औफिस से ले कर घरपरिवार तथा लेडीज कम्यूनिटीज और सोशल गैदरिंग तक में जलवे हैं. आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में दोहरी भूमिका निभाना कठिन काम है. आज के आधुनिक जमाने में जन्मे सुपर किड्स को संभालना, उन्हें क्वालिटी ऐजुकेशन देना और बेहतर परवरिश एक बड़ी चुनौती से कम नहीं. बावजूद इस के हजारों युवतियां अपने बुलंद इरादों और कभी न हार मानने वाले जज्बे से न केवल परिवार बल्कि समाज और सोशल कम्यूनिटी में बेहतरीन उदाहरण पेश कर रही हैं. वह वक्त गया जब बच्चों का टिफिन पैक कर या एकाध संगीत या नृत्य कक्षा में भेज कर मांएं छुट्टी कर लेती थीं. आज वक्त बदल चुका है. बदलते जमाने के साथ मांओं ने भी अपनी सुघड़, सुशील व विनम्र मां वाली छवि को छोड़ मौडर्न मौम का रूप धारण कर लिया है. वे न केवल बच्चों की क्वालिटी ऐजुकेशन पर ध्यान दे रही हैं, बल्कि उन की ऐक्स्ट्रा कैरिकुलम ऐक्टिविटीज से ले कर हौबी क्लासेज और स्किल डैवलपमैंट कोर्सेज तक में एक सक्रिय मार्गदर्शक और ट्यूटर की भूमिका निभा रही हैं. तभी तो काम के सभी मोरचों पर हिट ऐसी युवतियों को ‘अल्ट्राऐक्टिव’, ‘होममेकर’, ‘मल्टी टैलेंटेड’, ‘वर्किंग वूमन’ और ‘परफैक्ट हाउसवाइफ’ जैसे टाइटिल दिए जाने लगे हैं.

ये बदलाव तो पिछले 1 दशक में हुए हैं. इस दौरान संचार के साधनों ने अपनी सशक्त दस्तक दी है और लोगों के सामने एक आइडियल वूमन की तसवीर पेश की है. आज की सुपर मम्मियों को स्रोत व संसाधनों की जो सुगमता उपलब्ध है, उस ने उन के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं. सेहत, कैरियर और किड्स अपब्रिंगिंग तक में सुपरहिट इन आधुनिक मांओं ने सीमाओं से परे मां की एक अलग परिभाषा गढ़ी है.

मौडर्न लेडीज ऐरौबिक्स क्लासेज चलाने वाली ज्योति ने यह बताया कि आज गलाकाट प्रतियोगिता के युग में पहले पायदान पर खड़े होने की चाहत और किसी अन्य से पिछड़ जाने का डर ही महिलाओं को हार्डकोर वर्क यानी कड़ी मेहनत के लिए प्रेरित और उत्साहित करता है. इस के अलावा उन के पास और कोई दूसरा विकल्प नहीं. अनु ने घर के पास के स्टेडियम में अपने बेटे तुषार के साथ खड़ी सागरिका से जब यह पूछा कि सुबह से शाम तक घरऔफिस के व्यस्त शैड्यूल के बीच वह अपने बच्चे के ऐक्स्ट्रा क्लासेज के लिए समय कैसे निकाल पाती है? तब उस का जवाब था कि परफैक्ट टाइम मैनेजमैंट और ऐक्स्ट्रा ऐफर्ट के बूते ही वह सबकुछ आसानी और सुगमता से मैनेज कर पाती है. हां थोड़ीबहुत मुश्किल तो आती है पर सजगता और प्रबंधन कौशल सारी राह आसान बना देता है. सागरिका के जवाब से स्पष्ट है कि आज की मांएं अपने पेरैंटल रोल को कहीं अधिक बेहतर तरीके से समझ व निभा पा रही हैं. वे अपनी सूझबूझ, कौशल, तार्किक क्षमता और काम में दिलचस्पी व मेहनत से न केवल खुद का बल्कि होनहारों के भविष्य को भी सही दिशा दे रही हैं. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्य करने वाली 27 वर्षीय अमिता ने कहा कि आज मांओं की प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं. वे हर कीमत पर अपने बच्चों को कामयाब व सफल देखना चाहती हैं. इस के लिए चाहे उन्हें ऐक्स्ट्रा ऐफर्ट व ऐक्स्ट्रा संसाधन ही क्यों न लगाना पड़े. हकीकत तो यही है कि ऐसी महिलाएं अब ऐक्टिव से ज्यादा सुपर ऐक्टिव हो गई हैं क्योंकि उन्हें अब एक नहीं 2-2 मोरचों पर झंडे गाड़ने हैं. समय का यही तकाजा है और फिर घर और बाहर इन दोनों मोरचों पर मुस्तैदी से डटे रहने के लिए जरूरी है खुद को अपडेट व प्रोऐक्टिव रखना, तभी आप बदलते वक्त के साथ कदमताल कर पाएंगी.        

Mother’s Day 2024: मां को फील कराना चाहते हैं स्पेशल तो इन तरीकों से करें मदर्स डे सेलिब्रेट

मां एक ऐसा शब्द जिसे ममता की मूरत कहा जाता है. मां वो है जो खुद हजार दुख सहती है लेकिन अपने बच्चों पर आंच ना आने पाए उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाती है. उसके मन में चल रही हजारों कुंठओं के बाद भी वह चेहरे पर एक भी शिकन नहीं आने देती और हमेशा एक प्यारी सी मुस्कान उसके चेहरे पर बनी रहती है. वैसे तो हर दिन मां के होता है लेकिन इस मदर्स डे पर हम आपको अपनी मां को स्पेशल फील कराने के तरीके बता रहे हैं.

बनाएं पसंद का खाना : मम्मी को खुश करने के लिए इस दिन उनकी पसंद का खाना बनाएं. उन्हें रसोई में ना जाने दें, उन्हें मिठाई में कुछ खास बनाकर दें जैसे खोये की बर्फी, बेसन के लड्डू, गुण के शक्कर पारे या कोई भी ऐसी चीज जिसे वे शौक से और आनंद के साथ खाएं.

गिफ्ट करें उनकी पसंदीदा ज्वेलरी : मदर्स डे पर मां को उनकी पसंद की ज्वेलरी शॉप पर ले जाकर सोने, चांदी, हीरा आदि रत्नों से जुड़ी ज्वेलरी भी दिला सकते हैं.

मां को दें स्पेशल लुक : प्यारी सी मां को इस दिन कुछ स्पेशल लुक दे. उन्हें रोजमर्रा से अलग कुछ पहनाएं या उनकी पसंदीदा साड़ी पर खुद से प्रेस करें और पहनाएं। इस दिन उनका सारा साजोश्रृंगार करें और उन्हे यह अहसास कराएं कि आप हैं तो हम हैं.

मां को उनके बीते बचपन की याद दिलाएं :  उन्हें बिना बताए उनके मायके लेकर जाएं या मामा जी, मौसी जी और उनकी सहेलियों को उन्हें बिना बताए घर पर बुलाएं और एक सरप्राइज दें.

भेजे डेट पर: आप अपनी मम्मी को पापा के साथ एक डिनर या लंच डेट पर भी भेज सकती हैं. जिससे उन्हें अपने युवास्था के दिन याद आएं

घर पर बनाएं केक : मदर्स डे पर मम्मी के लिए घर पर केक बनाएं एक पूरे कमरे को सजाकर उन्हें आंखों पर पट्टी बांधकर लेकर आएं और स्पेशल फील कराएं.

मां के जैसे तैयार हों :  घर पर जितनी भी लड़कियां और औरतें हैं वो अपनी मम्मी की तरह तैयार हो और उनकी मिमिक्री करके उनके स्पेशल होने का आभास कराएं.

तोहफे में दे सकते हैं पौधा:  इस दिन एक पौधा खरीदकर लाए और मां के साथ बागवानी करने में उनकी मदद करें. इस पौधे को रोज पानी दें और उसका ध्यान रखें.

हाथों से बुने स्वेटर : मां के लिए आप हाथों से बुना हुआ स्वेटर और पैरों में पहनने वाले मोजे भी बनाकर दे सकती हैं. जिससे उन्हें लगे कि आप उनका कितना ध्यान रखते हैं या जमीन पर बैठने वाला आसन बुनकर बना सकती हैं.

इलेक्ट्रौनिक गैजेट्स: अगर आपकी मां को गाने सुनने का शॉक है तो पॉकेट एफएम, आईपॉड या सारेगामा करवां भी गिफ्ट कर सकते हैं.

प्लैन करें वेकेशन: घर और बाहर के सारे कामों से इस दिन मां को छुट्टी देकर उनके लिए वेकेशंस भी प्लान कर सकती हैं. उन्हें किसी भी हिल स्टेशन पर लेकर जा सकती है. उनके साथ लौंग ड्राइव पर भी ले जा सकते हैं. उन्हें हवाई यात्रा भी करा सकती हैं.

Mother’s Day 2024- अधूरी मां- भाग 2: क्या खुश थी संविधा

संविधा भी पहले नौकरी करती थी. उसे भी 6 अंकों में वेतन मिलता था. इस तरह पतिपत्नी अच्छी कमाई कर रहे थे. लेकिन संविधा को इस में संतोष नहीं था. वह चाहती थी कि भाई की तरह उस का भी आपना कारोबार हो, क्योंकि नौकरी और अपने कारोबार में बड़ा अंतर होता है. अपना कारोबार अपना ही होता है.

नौकरी कितनी भी बड़ी क्यों न हो, कितना भी वेतन मिलता हो, नौकरी करने वाला नौकर ही होता है. इसीलिए संविधा भाई की तरह अपना कारोबार करना चाहती थी. वह फ्लैट में भी नहीं, कोठी में रहना चाहती थी. अपनी बड़ी सी गाड़ी और ड्राइवर चाहती थी. यही सोच कर उस ने सात्विक को प्रेरित किया, जिस से उस ने अपना कारोबार शुरू किया, जो चल निकला. कारोबार शुरू करने में राजन के ससुर ने काफी मदद की थी.

संविधा ने सात्विक को अपनी प्रैगनैंसी के बारे में बताया तो वह बहुत खुश

हुआ, जबकि संविधा अभी बच्चा नहीं चाहती थी. वह अपने कारोबार को और बढ़ाना चाहती भी. अभी वह अपना जो काम बाहर कराती थी, उस के लिए एक और फैक्टरी लगाना चाहती थी. इस के लिए वह काफी मेहनत कर रही थी. इसी वजह से अभी बच्चा नहीं चाहती थी, क्योंकि बच्चा होने पर कम से कम उस का 1 साल तो बरबाद होता ही. अभी वह इतना समय गंवाना नहीं चाहती थी.

सात्विक संविधा को बहुत प्यार करता था. उस की हर बात मानता था, पर इस तरह अपने बच्चे की हत्या के लिए वह तैयार नहीं था. वह चाहता था कि संविधा उस के बच्चे को जन्म दे. पहले उस ने खुद संविधा को समझाया, पर जब वह उस की बात नहीं मानी तो उस ने अपनी सास से उसे मनाने को कहा. रमा बेटी को मनाने की कोशिश कर रही थीं, पर वह जिद पर अड़ी थी. रमा ने उसे मनाने के लिए अपनी बहू ऋता को बुलाया था. लेकिन वह अभी तक आई नहीं थी. वह क्यों नहीं आई, यह जानने के लिए रमा देवी फोन करने जा ही रही थीं कि तभी डोरबैल बजी.

ऋता अकेली आई थी. राजन किसी जरूरी काम से बाहर गया था. संविधा भैयाभाभी की बात जल्दी नहीं टालती थी. वह अपनी भाभी को बहुत प्यार करती थी. ऋता भी उसे छोटी बहन की तरह मानती थी.

संविधा ने भाभी को देखा तो दौड़ कर गले लग गई. बोली, ‘‘भाभी, आप ही मम्मी को समझाएं, अभी मुझे कितने काम करने हैं, जबकि ये लोग मुझ पर बच्चे की जिम्मेदारी डालना चाहते हैं.’’

ऋता ने उस का हाथ पकड़ कर पास बैठाया और फिर गर्भपात न कराने के लिए समझाने लगी.

‘‘यह क्या भाभी, मैं ने तो सोचा था, आप मेरा साथ देंगी, पर आप भी मम्मी की हां में हां मिलाने लगीं,’’ संविधा ने ताना मारा.

‘‘खैर, तुम अपनी भाभी के लिए एक काम कर सकती हो?’’

‘‘कहो, लेकिन आप को मुझे इस बच्चे से छुटकारा दिलाने में मदद करनी होगी.’’

‘‘संविधा, तुम एक काम करो, अपना यह बच्चा मुझे दे दो.’’

‘‘ऋता…’’ रमा देवी चौंकीं.

‘‘हां मम्मी, इस में हम दोनों की समस्या का समाधान हो जाएगा. पराया बच्चा लेने से मेरी मम्मी मना करती हैं, जबकि संविधा के बच्चे को लेने से मना नहीं करेंगी. इस से संविधा की भी समस्या हल हो जाएगी और मेरी भी.’’

संविधा भाभी के इस प्रस्ताव पर खुश हो गई. उसे ऋता का यह प्रस्ताव स्वीकार था. रमा देवी भी खुश थीं. लेकिन उन्हें संदेह था तो सात्विक पर कि पता नहीं, वह मानेगा या नहीं?

संविधा ने आश्वासन दिया कि सात्विक की चिंता करने की जरूरत नहीं है, उसे वह मना लेगी. इस तरह यह मामला सुलझ गया. संविधा ने वादा करने के लिए हाथ बढ़ाया तो ऋता ने उस के हाथ पर हाथ रख कर गरदन हिलाई. इस के बाद संविधा उस के गले लग कर बोली, ‘‘लव यू भाभी.’’

‘‘पर बच्चे के जन्म तक इस बात की जानकारी किसी को नहीं होनी चाहिए,’’ ऋता

ने कहा.

ठीक समय पर संविधा ने बेटे को जन्म दिया. सात्विक बहुत खुश था. बेटे के

जन्म के बाद संविधा मम्मी के यहां रह रही थी. इसी बीच ऋता ने अपने लीगल एडवाइजर से लीगल दस्तावेज तैयार करा लिए थे. ऋता ने संविधा के बच्चे को लेने के लिए अपनी मम्मी और पापा को राजी कर लिया था. उन्हें भी ऐतराज नहीं था. राजन के ऐतराज का सवाल ही नहीं था. लीगल दस्तावेजों पर संविधा ने दस्तखत कर दिए. अब सात्विक को दस्तखत करने थे. सात्विक से दस्तखत करने को कहा गया तो वह बिगड़ गया.

रमा उसे अलग कमरे में ले जा कर कहने लगी, ‘‘बेटा, मैं ने और ऋता ने संविधा को समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह मानी ही नहीं. उस के बाद यह रास्ता निकाला गया. तुम्हारा बेटा किसी पराए घर तो जा नहीं रहा है. इस तरह तुम्हारा बेटा जिंदा भी है और तुम्हारी वजह से ऋता और राजन को बच्चा भी मिल रहा है.’’

रमा की बातों में निवेदन था. थोड़ा सात्विक को सोचने का मौका दे कर रमा देवी ने आगे कहा, ‘‘रही बच्चे की बात तो संविधा का जब मन होगा, उसे बच्चा हो ही जाएगा.’’

रमा देवी सात्विक को प्रेम से समझा तो रही थीं, लेकिन मन में आशंका थी कि पता नहीं, सात्विक मानेगा भी या नहीं.

सात्विक को लगा, जो हो रहा है, गलत कतई नहीं है. अगर संविधा ने बिना बताए ही गर्भपात करा लिया होता तो? ऐसे में कम से कम बच्चे ने जन्म तो ले लिया. ये सब सोच कर सात्विक ने कहा, ‘‘मम्मी, आप ठीक ही कह रही हैं… चलिए, मैं दस्तखत कर देता हूं.’’

सात्विक ने दस्तखत कर दिए. संविधा खुश थी, क्योंकि सात्विक को मनाना आसान नहीं था. लेकिन रमा देवी ने बड़ी आसानी से मना लिया था.

समय बीतने लगा. संविधा जो चाहती थी, वह हो गया था. 2 महीने आराम कर के संविधा औफिस जाने लगी थी. काफी दिनों बाद आने से औफिस में काम कुछ ज्यादा था. फिर बड़ा और्डर आने से संविधा काम में कुछ इस तरह व्यस्त हो गई कि ऋता के यहां आनाजाना तो दूर वह उस से फोन पर भी बातें नहीं कर पाती.

एक दिन ऋता ने फोन किया तो संविधा बोली, ‘‘भाभी, लगता है आप बच्चे में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गई हैं, फोन भी नहीं करतीं.’’

‘‘आप व्यस्त रहती हैं, इसलिए फोन नहीं किया. दिनभर औफिस की व्यस्तता, शाम को थकीमांदी घर पहुंचती हैं. सोचती हूं, फोन कर के क्यों बेकार परेशान करूं.’’

‘‘भाभी, इस में परेशान करने वाली क्या बात हुई? अरे, आप कभी भी फोन कर सकती हैं. भाभी, आप औफिस टाइम में भी फोन करेंगी, तब भी कोई परेशानी नहीं होगी. आप के लिए तो मैं हमेशा फ्री रहती हूं.’’

संविधा ने कहा, ‘‘बताओ, दिव्य कैसा है?’’

‘‘दिव्य तो बहुत अच्छा है. तुम्हारा धन्यवाद कैसे अदा करूं, मेरी समझ में नहीं आता. इस के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं. मम्मीपापा बहुत खुश रहते हैं. पूरा दिन उसी के साथ खेलते रहते हैं.

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